ऋषिवर द्वारा कृषि विश्वविद्यालय के सामने स्थित विशाल मैदान, जोरागांव, रायपुर में किये गये ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ से सम्पूर्ण मानवसमाज को यह संदेश दिया गया कि नशा सामाजिक बुराई ही नहीं है, बल्कि इससे पारिवारिक सुख-शान्ति छिनने के साथ ही सम्पूर्ण व्यवस्था छिन्न-भिन्न होजाती है। 11-12 फरवरी 2017 को आयोजित द्विदिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में देश-देशान्तर से पहुंचे गुरुवरश्री के लाखों शिष्य, माता भगवती के भक्तों व क्षेत्रीय जनमानस ने इस कार्यक्रम में शामिल होकर अपने आपमें विशेष परिवर्तन का अनुभव किया। गुरुवरश्री के सान्निध्य में लाखों लोगों द्वारा किए गए शंखनाद की ध्वनि से वातावरण तरंगित हो उठा और परिवर्तन की एक नवीन सुबह के आगमन का संकेत मिलने लगा है। शिविर के एक दिवस पूर्व रायपुर नगर में विशाल नशामुक्ति वाहन रैली के मार्ग में भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं, परम पूज्य गुरुवरश्री के शिष्यों व क्षेत्रीय जनमानस द्वारा मानवशृंखला बनाई गई और सम्पूर्ण मानवसमाज को नशामुक्त, मांसाहारमुक्त, चरित्रवान् एवं चेतनावान् जीवन अपनाने का संदेश दिया गया।
नशामुक्ति शक्ति चेतना जनजागरण सद्भावना यात्रा
दिनांक 09 फरवरी 2017 की प्रातःकालीन बेला, आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की आरती करने व ध्यान-साधना के उपरान्त, सच्चिदानंदस्वरूप सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज जैसे ही छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के लिए पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम से प्रस्थित हुये, आश्रमवासियों व भक्तों के जयकारों और शंखनाद से वातावरण गुंजायमान हो उठा। गुरुवरश्री के वाहन के पीछे पूजनीया माता जी और शक्तिस्वरूपा बहनों का वाहन चल रहा था और उनके पीछे अनेक वाहनों में शिष्यगण चल रहे थे।
वाहन से ही आश्रमवासियों को आशीर्वाद प्रदान करते हुये सद्गुरुदेव भगवान् सर्वप्रथम स्वामी रामप्रसाद आश्रम जी महाराज की समाधिस्थल पर गये, पश्चात् त्रिशक्ति गौशाला पहुंचे, जहां उन्हें नमन् करने के लिये द्वार पर फूलों से आच्छादित तोरणद्वार सजाए गोसेवक कतारबद्ध जयकारे लगाते व शंखध्वनि करते हुये खड़े थे, इन्हें आपश्री ने आशीर्वाद प्रदान किया।
नशामुक्ति शक्ति चेतना जनजागरण सद्भावना यात्रा धीरे-धीरे शहडोल मार्ग पर आगे बढ़ी। परम पूज्य गुरुवरश्री की यात्रा का आभास पाकर ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में स्थान-स्थान पर शिष्यों-भक्तों द्वारा स्वागतद्वार सजाये गये थे। स्वागतद्वारों के दोनों ओर आरती की थाल सजाये खड़े भक्तों की आतुरता देखते ही बनती थी। खामडाड़ पंचायत, ब्यौहारी, जयसिंहनगर, खन्नौधी व गोहपारू होते हुए सद्भावना यात्रा दियापीपर सोन टोल नाका पहुंची। यहां सैकड़ों दुपहिया वाहनों में पहुंचे शहडोलवासी, गुरुवरश्री के शिष्यों ने अति उल्लास-उमंग के साथ आगवानी की। यात्रा मंदगति से आगे बढ़ी। आगे-आगे नशामुक्त जीवन अंगीकार करने का संदेश देता हुआ वाहन रथ चल रहा था, उसके पीछे सैकड़ों दोपहिया वाहनों में बैठे शिष्य। पीछे बैठे हर शिष्य के हाथ में शक्तिदण्डध्वज की शोभा दर्शनीय थी। सद्भावना यात्रा जैसे ही उपनगरीय क्षेत्र सोहागपुर (विराटनगर) शहडोल वार्ड क्र. 3, तिराहे पर पहुंचती है, ‘माँ’-गुरुवर के जयकारों व शंखध्वनि से समूचा क्षेत्र गूंज उठा। मार्ग के दोनों ओर गुरुभाई-बहनों, ‘माँ’ के भक्त व अनुशासनपूर्वक करबद्ध खड़े बच्चों के चेहरों पर अपार प्रसन्नता झलक रही थी। गुरुवरश्री ने वाहन से ही मृदुल मुस्कान बिखेरते हुए सभी को आशीर्वाद प्रदान किया। बुढ़ार रोड व सिंहपुर रोड में भी भक्तों ने यात्रा का स्वागत किया। ग्राम सिंहपुर में भक्तों ने शंखध्वनि व जयकारों के साथ गुरुदेव भगवान् को नमन्-वन्दन किया। अमरहा ग्राम में गुरुभाई-बहनों की भारी भीड़, सभी ने अनुशासनपूर्वक सड़क मार्ग के दोनों ओर खड़े होकर परम पूज्य गुरुवरश्री का दर्शनलाभ प्राप्त किया। बच्चों में तो अभूतपूर्व उत्साह परिलक्षित था।
यहां से आगे-आगे वाहन रथ व मोटरसाइकिलों की कतार के पीछे गुरुवरश्री, पूजनीया माता जी व शक्तिस्वरूपा बहनों तथा गुरुभाई-बहनों के अनेक वाहन ग्राम पथखई व सरई टोला की ओर बढ़े। इन ग्रामों में भी अपने आराध्य के दर्शन हेतु हज़ारों ग्रामवासी जयकारे लगाते हुए खड़े थे। पुष्पराजगढ़ ब्लॉक के ग्राम बगदरा, अमदरी, करण पठार व लहेरपुर में मार्ग के किनारे कतारबद्ध खड़े भक्त ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाने के साथ ही शंखनाद कर रहे थे। महिला भक्तों एवं बच्चियों के हाथ में दीप प्रज्वलित कलश शोभायमान हो रहे थे। सुसज्जित स्वागतद्वारों की अलग ही छटा थी। सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने सभी शिष्यों-भक्तों को आशीर्वाद प्रदान किया। तुलरा व पीपरटोला में करबद्ध खड़े प्राथमिक विद्यालय के बच्चों की बालसुलभता अत्यन्त ही मनमोहक थी। ग्रामवासी सद्गुरुदेव भगवान् से आशीर्वाद प्राप्त करके अति उत्साहित दिखे और पैदल ही जयकारे लगाते हुए कुछ दूर तक सद्भावना यात्रा का साथ दिया। चन्दन घाट में पुल के दोनों ओर गुरुदेव जी के स्वागत में भक्तों ने फूल की पंखुड़ियां बिछा रखी थीं।
सद्भावना यात्रा के साथ परम पूज्य गुरुवरश्री, पूजनीया माता जी व शक्तिस्वरूपा बहनों को देखकर ग्राम भर्राटोला, शुकुलपुरा व गाड़ासरई के लोगों में उत्साह का पारावार नहीं था। सभी ने गुरुवरश्री को नमन, वन्दन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। मोहतरा, धवा डोंगरी, गोरखपुर व रूषा ग्राम में सद्गुरुदेव भगवान् की एक झलक पाने के लिए ग्रामीणों का हुजूम उमड़ पड़ा था। जगह-जगह स्वागतद्वार व वन्दनवार सजाए गए थे। ग्रामवासियों ने नशामुक्ति सद्भावना यात्रा का स्वागत, मार्ग में पुष्पों को बिखेरकर किया। प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालयों के छात्र-छात्राओं में गुरुदर्शन की जिज्ञासा देखकर उनमें आध्यात्मिक बोध का संकेत मिल रहा था।
सद्भावना यात्रा मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ की सीमा में प्रवेश करती है। ग्राम पंचायत करंजिया में स्वागत के लिये आतुर खड़े भक्त गुरुवरश्री के दर्शन का लाभ प्राप्त करके अति आनन्दित हुये। जगतपुर से कबीर चबूतरा तक लोगों का उमंग, उत्साह देखते ही बनता था। मार्ग के किनारे जयकारे लगाते खड़े भक्त मन्दगति से चल रहे परम पूज्य गुरुवरश्री के वाहन को छूकर व पुष्प अर्पित करके तृप्ति का अनुभव कर रहे थे। यात्रा क्वेची की ओर बढ़ी। मार्ग के दोनों ओर सघन जंगल व नागिन की तरह बलखाती सड़कों के किनारे बैठे सैकड़ों बंदर, एक साथ कई वाहनों को देखकर उछल-कूद मचाने लगे, लेकिन एक बड़ा बन्दर निर्भीकता के साथ बीच सड़क में बैठा हुआ था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कि वह गुरुवर के दर्शनों की प्यास लिए प्रतीक्षारत हो। कुछ प्रसाद प्राप्त करने के बाद प्रसन्नता से अविभूत चीं-चीं की आवाज मुंह से निकालता हुआ वह उछलकर अपने साथियों के साथ जा मिला।
शिष्यों, भक्तों ने क्वेची, खोडऱी फाटक व पोड़ी ग्राम में सद्भावना यात्रा का स्वागत राह में फूल बिछाकर किया। रतनपुर होते हुए यात्रा बिलासपुर पहुंची। यहां स्थान-स्थान पर स्वागतद्वार सजाए गए थे। जयकारे लगाते हुए बच्चों का उत्साह मन को लुभाने वाला था। गुरुबहनें सिर में कलश लिए हुए खड़ी थीं और हज़ारों गुरुभाई अति उत्साहित होकर तालियां बजाते हुए ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगा रहे थे।
बिलासपुर स्थित गुरुआवास (हॉटल सिल्वर ऑक) में रात्रि विश्राम के बाद दिनांक 10 फरवरी को प्रातःकाल 10:00 बजे सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज जैसे ही निकलते हैं, जयकारों से समूचा वायुमंडल गुंजायमान हो उठा। यहां से सद्भावना यात्रा शिविरस्थल रायपुर के लिए प्रस्थित हुई। आगे-आगे सैकड़ों की संख्या में दोपहिया वाहनों के पीछे गुरुवरश्री व पूजनीया माताश्री और शक्तिस्वरूपा बहनों का वाहन और साथ में अनेकों चारपहिया वाहनों में चल रहे हज़ारों भक्त। रैली का विशाल स्वरूप अत्यन्त ही मनमोहक था।
सद्भावना यात्रा रायपुर रोड से धौराभाठा, सल्फा, सरगांव व बैतलपुर होते हुए नानघाट (चिचोली) पहुंची। सभी स्थानों में स्वागतद्वार सजाए गए थे व शिविर की होर्डिंग्स भी लगाई गई थीं। हज़ारों भक्त जयकारे लगाते व शंखध्वनि करते हुए सद्गुरुदेव भगवान् का दर्शन करके अति आनन्दित हुए। चिचोली से दरचुरा, दामाखेड़ा, सिमगा व धरसीवा होते हुए यात्रा रायपुर नगर की सीमा पर माँ बंजारी मंदिर, गुरुकुल विद्यालय के सामने अपराह्न 2ः00 बजे पहुंची। यहां मार्ग में गुरुभाई-बहनों ने पीले रंग के फूलों की पंखुड़ियां विखेरकर स्वागत किया व यूनीफार्म पहने गुरुकुल विद्यालय के छात्र-छात्राओं ने हाथ जोड़कर सद्गुरुदेव भगवान् को नमन् किया।
यहां से नशामुक्ति सद्भावना यात्रा ने विशाल वाहन रैली का रूप ले लिया। सैकड़ों वाहन क्रमबद्ध रूप से चल रहे थे। हज़ारों लोगों ने शहर के कई स्थानों पर जयकारे लगाते हुए शृंखलाबद्ध रूप से खड़े होकर सद्गुरुदेव भगवान् की अगवानी की और विशाल मानवशृंखला का सृजन किया। सड़क मार्ग के किनारे कतारबद्ध, अनुशासनपूर्वक खड़े जयकारे लगाते व शंखध्वनि करते भक्त तथा प्रायः सभी के हाथ में शक्ति दण्डध्वज। समूचा रायपुर शहर- गुरुवर जी का यह संदेश, नशामुक्त हो सारा देश, नशामुक्त जीवन अपनाओ, जीवन अपना सफल बनाओ, जाति-धर्म का भेट मिटा दो, मानवता का पथ अपना लो, जागो बहना, जागो भाई ‘माँ’ के नाम की आंधी आई, नशामुक्त हो हर इंसान, तभी होगा भारत देश महान, आदि नारों से गूंज रहा था। नशामुक्त जनजागरण सद्भावना वाहन रैली का समापन गुरुआवास (हॉटल उत्सव इन) के समक्ष अपराह्न 03:00 बजे हुआ।
प्रथम दिवस: दिव्य उद्बोधन
परमसत्ता के साथ हमारा सत्य का रिश्ता है। यह रिश्ता सृष्टिकाल से जुड़ा हुआ है। कुआं खोदकर हम अपनी प्यास बुझाते हैं और दूसरों की भी। प्रकृतिसत्ता के अंश के रूप में आत्मा का वही स्रोत हमारे अन्दर भी है। हमें उससे सम्बन्ध स्थापित करना है और उससे सत्य का सम्बन्ध जोड़ना है। पूर्णता केवल बाहर के संसाधनों से नहीं आएगी। इसके लिए हमारे अन्तर्मन का विकास भी होना चाहिए।
वेद-पुराणों का आप कितना भी अध्ययन कर लें, उससे कुछ नहीं होगा। आप उसे अपने जीवन में उतार नहीं सकते और भटक जाएंगे। मूल सार यह है कि आप कैसा जीवन जीते हैं? आज के कथावाचक आपका हित नहीं कर सकेंगे। रामकथा और भागवतादि आप बहुत दिनों से सुनते आए हैं। क्या आप उन महापुरुषों जैसा जीवन जी रहे हैं? अपने जीवनकाल में उन्होंने असम्भव से असम्भव कार्य किये हैं। उन्हें हम भूल गए। उनके पास शक्तियां थीं। उन्हीं अलौकिक शक्तियों का भण्डार आपके अन्दर भी छिपा हुआ है। फिर भी आप दीन-हीन भिखारियों का जीवन जी रहे हैं, अपराध कर रहे हैं और आत्महत्या की ओर बढ़ रहे हैं। यह सब क्या है? एक बार सोचो।
इस कलिकाल से अधिक सुन्दर और कोई काल नहीं है, जब हम सत्य की ओर बढ़ सकते हैं। जब समस्याएं नहीं होतीं, तो जीवन सामान्य बन जाता है। समस्याएं आती हैं, तो व्यक्ति एक चेतनावान् गुरु को पाकर उनका सामना करता है और उनसे पार हो जाता है। उस गुरु का सान्निध्य, जिस गुरु ने अपना सम्पूर्ण जीवन मानवता के कल्याण को समर्पित किया है। आजकल माता-पिता अपने बच्चों को ठीक नहीं कर पाते। मेरे साथ उन लोगों का ऐसा क्या रिश्ता है, जो दूर-दूर से आकर अपना जीवन संवार रहे हैं।
आप लोगों को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है कि आप मेरे द्वारा दी गई तीनों धाराओं से जुड़े हैं। मानवता की सेवा, धर्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा की ये तीनों धाराएं मैंने समाज को लोककल्याण के लिए प्रदान की हैं। धर्मरक्षा का अर्थ है सभी धर्मों की रक्षा करना। अपने कर्तव्य को करो और सत्य को स्वीकार करो। ज्ञानी सदैव भटकता है, किन्तु भक्त कभी नहीं भटक सकता। बस, आप माँ के पूर्ण भक्त बन जायं। यदि आप भक्ति के मार्ग पर आजाते हैं, तो पूर्णता प्राप्त कर लेते हैं। भक्ति ही जीवन का मूल सार है।
‘माँ’ की साधना से सहज और सरल कोई मार्ग नहीं है। इसमें यदि भूल से गलती होजाय, तो ‘माँ’ माफ कर देती हैं। बस, जान-बूझकर गलती मत करो। वह ममतामयी हैं। उनसे भक्त का रिश्ता जोड़ो, सौदागर का नहीं। अज्ञानता से ऊपर उठो। थोड़ा सा हलवा प्रसाद चढ़ाकर आप करोड़ों का लाभ चाहते हैं। इससे बड़ा अज्ञान कुछ भी नहीं है। एक बार ‘माँ’-गुरुवर के चरणों में समस्या रख दो– मुझे मुक्ति नहीं, भक्ति चाहिए। मुक्ति का तात्पर्य नहीं समझ रहे हैं। भक्ति ही तो ऋषित्व का मार्ग है। वे कभी देवत्व नहीं चाहते। केवल भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति मांगो और अपनी चेतना की प्राप्ति करो।
यदि परमसत्ता की कृपा आपके साथ है, तो असम्भव कुछ भी नहीं है। अपने ‘मैं’ को जानो। भौतिक जगत् का नहीं, बल्कि मैं कौन हूँ और मेरा कौन है? इस मूल बिन्दु को पकड़ो। आत्मग्रन्थ का अध्ययन करो, जिसे अमीर-गरीब कोई भी कर सकता है। बल्कि, गरीब का मन जल्दी एकाग्र होगा।
हर मनुष्य की सात शक्तियां हैं–प्राण की, मन की, बुद्धि की, तन की, धन की, जन की और मान-सम्मान की शक्ति। इनमें प्राण, मन और बुद्धि की ये तीन शक्तियां तन के अन्दर की तथा धन-जन और मान-सम्मान की तीन शक्तियां तन के बाहर की हैं।
अपनी प्राणशक्ति को तन के आचार-व्यवहार से बढ़ाएं। प्राणशक्ति के माध्यम से हम अपनी कुण्डलिनी शक्ति को जगा सकते हैं, जो सबसे बड़ी शक्ति है। प्राणायाम करने से प्राणशक्ति बढ़ती है। पांच-दस मिनट के लिए प्रतिदिन सहज प्राणायाम करें। धीरे-धीरे सांस भरें और रोकें, फिर धीरे-धीरे निकाल दें और पूरी सांस निकाल दें। यह प्रक्रिया बार-बार करें। वर्तमान में लोगों की प्राणशक्ति कमज़ोर होती जा रही है। प्राणायाम जितना सशक्त होगा, उतनी ही प्राणशक्ति बढ़ेगी। प्राण हमारी आत्मा से जुड़ा है। प्राणशक्ति जाग्रत् होने से आपके अन्दर अलौकिक ऊर्जा आती है, वाक्शक्ति बढ़ती है, बुद्धि प्रखर होती है, निर्णय लेने की क्षमता प्रबल होती है और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।
मन से अधिक पवित्र और कुछ है ही नहीं। यह तो आत्मा की तरंग है। बुद्धि सदा पवित्र होती है। उस पर आवरण डाल दें, तो अलग बात है। दर्पण पर धूल पड़ी हो और उसे हम साफ कर दें, तो स्पष्ट दर्शन होगा। इसमें दर्पण का कोई दोष नहीं है। मन के माध्यम से ही हमारा जीवन चलता है। अपने आज्ञाचक्र पर अपना ध्यान केन्द्रित करो। सबसे पहले न्यूट्रल अवस्था को प्राप्त करो। मन को इधर-उधर जाने से रोको। नित्य पांच-दस मिनट का अभ्यास करो। दुर्गा सप्तशती का सार तभी पकड़ पाओगे, जब न्यूट्रल अवस्था को प्राप्त कर लोगे। इसमें आनन्द आएगा। एक बार उस स्थिति को प्राप्त कर लोगे, तो ऐसा आनन्द आएगा, जो भौतिक जगत् में कहीं भी नहीं है।
मन, बुद्धि की शक्ति के बाद धनशक्ति उत्पन्न होगी। धन कितना आवश्यक है, इससे यह ज्ञान मिलेगा कि उसे परोपकार में लगाओ। अन्यथा, आप भटक जाएंगे और कुसंस्कार उत्पन्न होंगे। इच्छाओं के पीछे नहीं भागेंगे तथा आवश्यकताओं की ही पूर्ति करेंगे, वरना जीवन विलासी बन जाएगा।
तदुपरान्त, जनशक्ति आएगा, किन्तु अपराधी क्षेत्र में नहीं जाओगे। आप सोचेंगे कि यह शक्ति ‘माँ’ की कृपा से मिली है और इसे समाजसेवा में लगाऊं।
जब मान-सम्मान की शक्ति आती है, तो प्रायः अहंकार बढ़ता है। आन्तरिक शक्तियों पर चाहो, तो अहंकार करो, किन्तु ‘माँ’ से सदैव जुड़े रहो, नहीं तो भटक जाओगे। सदैव सजग रहो।
यह जग निश्चित रूप से बदलेगा। उसे कोई रोक नहीं सकेगा, किन्तु पहले अपने आपको बदलो। तब अन्यायी-अधर्मियों के सामने घुटने नहीं टेकोगे। आपको एक चेतनावान् कर्मयोगी बनना है। सौभाग्यशाली होगा वह व्यक्ति, जो अपने शरीर को त्याग देगा, किन्तु अनीति-अन्याय-अधर्म से समझौता नहीं करेगा।
तुम उस गुरु के शिष्य हो, जिसने विश्व अध्यात्म जगत् को चुनौती दी है। सारा धर्मक्षेत्र आज भटका हुआ है। छत्तीसगढ़ की धरती से मैं एक बार पुनः धर्मरक्षा के लिए आवाहन करता हूँ कि धर्मगुरुओं का एक आयोजन हो। यदि किसी की कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत् है, तो वह आकर इसे सिद्ध करे। लोग सोचते हैं कि मैं अहंकार के वश होकर यह चुनौती दे रहा हूँ। यदि ऐसा है, तो मैं इस शरीर को त्यागना पसन्द करूंगा। मैं सभी संस्थाओं को सम्बोधित कर रहा हूँ कि यदि तुम यह सिद्ध कर दोगे, तो मैं अपने समस्त शिष्यों के साथ तुम्हारा गुलाम बन जाऊंगा। आदि शंकराचार्य ने कभी शास्त्रार्थ की चुनौती दी थी, किन्तु आज शास्त्रार्थ नहीं, कर्म करके दिखाने की आवश्यकता है। आज कोई निर्मल दरबार लगाकर समाज को ठग रहा है, कोई बीजमंत्र बेच रहा है, तो कोई योग के नाम पर लूट रहा है। ये सभी लोग अन्दर से शून्य हैं। आसाराम बापू और रामपाल जेल में पड़े हैं।
वास्तव में, धर्म की रक्षा करना शंकराचार्यों का दायित्व है। एक आयोजन करके सभी धर्मगुरुओं की आध्यात्मिक सामर्थ्य की परीक्षा होनी चाहिए। इस सम्बन्ध में शंकराचार्यों का भी आवाहन है। आज मानवता तड़प रही हैं, कराह रही है तथा नशे-मांसाहार की ओर बढ़ रही है। एक ऐसा ऐतिहासिक धर्मसम्मेलन होना चाहिए, जिसके द्वारा पता चल सके कि आज भी ऐसे ऋषि हैं, जो सामान्य सा जीवन जीते हैं और अपने साधनात्मक तपबल से किसी को भी पराजित करने की सामर्थ्य रखते हैं।
रामदेव ने नैतिकता खो दी है। अपनी मेरुदण्ड सीधी करके कुछ देर बैठ नहीं सकते, तो कैसे योगी हैं? यदि वह सत्य की विचारधारा पर चलें, तो समाज में परिवर्तन आ सकता है। पुरानी बातों को भूल जाओ, वह एक काला अध्याय हो सकता है। कालेधन के भण्डार पर खड़े होकर क्या कर रहे हो?
पांच साल का कोई बच्चा भी यदि मुझे कह देगा कि मेरे अन्दर यह कमी है, तो उस पर विचार करूंगा और उसे सुधारूंगा, किन्तु मुझे बुरा नहीं लगेगा। विज्ञान के पास आज ऐसी मशीनें हैं, जो बता सकती हैं कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ बोल रहा है? किसने अपना सूक्ष्मशरीर जाग्रत् किया है और कौन ध्यान की गहराई में जा सकता है? इन मशीनों से सभी धर्मगुरुओं का सत्य परीक्षण होना चाहिए।
रामदेव मूर्तिपूजा का विरोध करते हैं। अरे, परमसत्ता कण-कण में व्याप्त है। वह तुम्हारे एक-एक पल के कर्मों का आकलन करती है। तुम्हारी आत्मा तुम्हें देख-सुन रही है। वही तुम्हारे अच्छे-बुरे कर्मों का फल देती है। वह बड़ी न्यायप्रिय है।
धर्मरक्षा का अर्थ है निर्भीक बनना। आज लोग दूसरे धर्मों की आलोचना करते हैं। अरे, यदि सब अपने-अपने धर्म को सुधार लें, तो कोई समस्या नहीं रहेगी। आजकल लोग ग्रहों से डरकर अपनी उंगलियों में रत्नजड़ित अंगूठियां धारण किये रहते हैं। यदि किसी ने अपने इष्ट को अपने हृदय में बैठा लिया, तो ये सारे रत्न पैर से ठोकर मारने के बराबर हैं। और, रामदेव कहते हैं कि उनके हाथ में भाग्यरेखा नहीं है, फिर भी वह उन्नति कर रहे हैं!
मेरे द्वारा केवल कहा नहीं जाता, बल्कि उसे कर्म में परिणत किया जाता है। बिना किन्हीं संसाधनों के और बिना राजसत्ता की मदद के हमारे द्वारा नशे के विरुद्ध जनान्दोलन चलाया जा रहा है। अब तक करोड़ों लोगों को नशामुक्त किया जा चुका है। एक ओर हम लोगों को नशामुक्त करते हैं, वहीं वहां पर शासन द्वारा शराब का ठेका खोल दिया जाता है। आज मैं अधिकारियों और राजसत्ता का भी आवाहन कर रहा हूँ। कोई भी माँ-बाप अपने बच्चे को नशे में नहीं धकेलता, किन्तु राजनेता जनता को नशे में धकेल रहे हैं। नशे से समाज का सबसे ज़्यादा पतन होता है। बच्चे-बहन-बेटियां इसके कारण प्रताड़ित रहती हैं। सरकार का नारा है- नारी का सम्मान करो। ये सब खोखले नारे हैं। अरे, जगह-जगह शराब के ठेके खोलकर नारी का सम्मान नहीं किया जा सकता।
इस अवसर पर मैं मोदी जी से कहना चाहता हूँ कि बिहार को नीतीश कुमार ने नशामुक्त किया, आपने उनकी तारीफ की। आपका तो छप्पन इंच का सीना है, आप पूरे देश को नशामुक्त कर दो। कम से कम बीजेपी शासित प्रदेशों को तो नशामुक्त कर सकते हैं। नशे ने देश को बर्बाद कर दिया है। बच्चों की शिक्षा अधूरी रह जाती है और लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा नहीं हो पाती।
मैंने नशे के विरुद्ध तब आवाज़ उठाई है, जब बीस-पच्चीस वर्ष में करोड़ों लोगों को नशामुक्त कर दिया है। हमने किसी भी शराब के ठेके पर तोडफ़ोड़ नहीं की और न ही किसी राजनेता के खिलाफ उच्छृंखलता की है। हम विद्रोही हैं, किन्तु कार्य रचनात्मक करते हैं।
मैंने एक सौ आठ महाशक्तियज्ञ करने का संकल्प लिया है, जिनमें से आठ यज्ञ पहले ही सम्पन्न हो चुके हैं। मेरा सारा समय शेष सौ यज्ञ करने में ही व्यतीत होना है। मैंने अग्निपथ चुना है। एक महाशक्तियज्ञ में ग्यारह दिन लगते हैं और बत्तीस किलो सामग्री लगती है। आठ-आठ घण्टे प्रतिदिन एकासन पर बैठकर और निराहार रहकर बिना एक बूंद भी जल ग्रहण किये आहुतियां दी जाती हैं। आजकल तो हज़ार-हज़ार कुण्डीय यज्ञ हो रहे हैं और किराए के पण्डित बुलाए जाते हैं। यह खाली प्रदर्शन है। हर किसी की निगाह कैमरे की ओर रहती है कि वह देख रहा है या नहीं? मैंने अपने हर यज्ञ में प्रमाण दिये हैं। मैंने पहले ही कह दिया था कि मेरे हर यज्ञ में बरसात अवश्य होगी। यदि न हो, तो समझ लेना कि मुझमें यज्ञ करने की पात्रता नहीं है। मेरे आठ महशक्तियज्ञ अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न मौसमों में हुए हैं और हर यज्ञ में वर्षा हुई है, भले ही थोड़ी देर के लिए हुई हो। इसके अतिरिक्त उनमें मरणासन्न रोगियों को बिना स्पर्श किये और बिना कोई दवाई दिये ठीक किया गया है। एक यज्ञ में अग्नि की लपटें मुझे स्पर्श कर रही थीं, किन्तु मैं सुरक्षित रहा और बिना किसी व्यवधान के यज्ञ सम्पन्न हुआ है। यदि मेरे द्वारा दिये गये एक भी प्रमाण को कोई गलत सिद्ध कर देगा, तो मैं उससे बड़ा दूसरा प्रमाण उपस्थित कर दूंगा।
हरियाणा के इन्द्रपाल आहूजा और चौ. रणधीर सिंह यहां पर बैठे हैं। उनसे मिलकर जानकारी ले सकते हैं। उनके यहां एक भगवाधारी आए हुए थे, जो अपनी बातों से लोगों को प्रभावित करते थे। मैंने तब तक ये वस्त्र धारण नहीं किये थे, सफेद धोती-कुर्ता पहनता था। मुझे उनसे मिलवाया गया। सबने उनको नमन किया, किन्तु मैंने नहीं किया। वह अहंकारी थे और मैं उनका अहंकार तोड़ना चाहता था। मैंने कहा कि या तो वह मेरे प्रश्न का सही-सही उत्तर देदें या वह कोई भी प्रश्न पूछ लें, मैं उसका सही-सही उत्तर दे दूंगा। वह बोले कि कुछ दिनों से उनका सम्पर्क अपने गुरु जी से नहीं हो रहा है। उनका पता बता दीजिये। इस पर मुझे हंसी आगई और मैंने कहा कि रहे न मूर्ख के मूर्ख! अरे एक मौका दिया था, कुछ ऐसा पूछते जिससे तुम्हें कुछ सत्य का ज्ञान होता। तुम ऐसी बात पूछ रहे हो, जिसका तुम्हें ज्ञान है। तुम्हारे गुरु जी का पता तुम्हारी जेब में पड़ी डायरी में लिखा है। वह फलां देश में बलात्कार के मामले में जेल में बन्द है। अब कहो तो तुम्हारे बारे में भी बताऊं? इस पर वह सबके सामने उठे और दोनों हाथ जोड़कर मेरे सामने झुक गए। उस समय की बात अलग है, किन्तु अब चमत्कार दिखाना मेरा काम नहीं है। फिर भी, एक बार यदि सत्य परीक्षण के लिए धर्मगुरुओं का सम्मेलन होता है, तो धर्मरक्षा के लिए मैं यह चमत्कार भी दिखाने के लिए तैयार हूँ।
कुछ लोगों को शंका होती है कि मैं योगाग्नि से पंचज्योति किस प्रकार प्रज्वलित करूंगा? अरे, योगी अगर चाहे, तो अपनी योगशक्ति के बल पर पहाड़ को ध्वस्त कर सकता है। मेरी जानकारी के बिना यदि कोई व्यक्ति मेरे शरीर के किसी अंग को स्पर्श करता है, तो उसे 440 वोल्ट बिजली का झटका महसूस होता है। मेरे निकट रहने वाले लोग इस बात का अनुभव करते हैं।
मैं यहां से राजसत्ता का आवाहन करता हूँ कि आगे बढ़कर आओ और मिलजुलकर कार्य करें। मैंने इस महाशंखनाद का आयोजन किया है। कोई भी धर्म हिंसा करना नहीं सिखाता। सभी धर्म परोपकार और भाईचारा सिखाते हैं। हमें नशे-मांस, दुराचार, नास्तिकता, साम्प्रदायिकता, जातीयता और छुआछूत आदि से ऊपर उठना है। तभी समाज में परिवर्तन आएगा। मेरा पूरा जीवन जनकल्याण के लिए समर्पित है। यदि सभी लोग इस कार्य में लग जाएं, तो बहुत परिवर्तन आ सकता है। छत्तीसगढ़ में तो अनेक महिलाएं नशा करती हैं। यहां की अनेक महिलाएं मेरे पास आश्रम में आती हैं और नशा छोड़कर जाती हैं। वहां पर भोजन-आवास आदि की सभी व्यवस्थाएं निःशुल्क हैं।
समाज को लूटने वालों के खिलाफ कहीं न कहीं आवाज़ उठानी पड़ेगी। कुमारस्वामी जैसे लोग पति-पत्नी के झगड़े बीजमंत्र के द्वारा निपटाने का दावा करते हैं। एक महिला ने मेरे पास आकर बताया कि उसे उसने बीजमंत्र दिया था, किन्तु जैसे ही उसने उस बीजमंत्र को बोलना शुरू किया, उसके पति ने डण्डा उठाया और जमकर उसे पीटा।
मैं मीडिया के लोगों का भी आवाहन करता हूँ कि यदि वे चाहें तो समाज में बहुत बड़ा परिवर्तन डाल सकते हैं। यदि कहीं पर धर्मगुरुओं का सत्यपरीक्षण करने के लिए कोई सम्मेलन होता हो, तो मीडिया के लोग उसमें अवश्य ही उपस्थित हों। यदि धर्मगुरुओं ने अपनी माँ के स्तन का दूध पिया है, तो शक्तिपुत्र के साधनात्मक तपबल का सामना करें। मैं एक ऋषि था, ऋषि हूँ और ऋषि ही रहूंगा। मैं किसी देवी-देवता का अवतार नहीं हूँ। आज आप टीवी चौनलों पर देखें कि इन धर्मगुरुओं के द्वारा किस प्रकार लोगों को लूटा जा रहा है! प्रकृतिसत्ता ने हमें इसलिए भेजा है कि हम इन्सान बनें तथा इन्सानियत के पथ पर चलें।
मेरे द्वारा गुरुदीक्षा केवल शिविर में ही दी जाती है। उसके अतिरिक्त कभी भी नहीं। यदि कोई करोड़ों रुपए भी दे, तब भी दीक्षा नहीं ले सकेगा। अन्य धर्मगुरु अपना पूजन कराते हैं तथा भारीभरकम दीक्षा शुल्क वसूलते हैं, किन्तु मेरे यहां दीक्षा निःशुल्क होती है। आप केवल आजीवन नशा न करने का संकल्प ले लें, बस यही मेरा दीक्षा शुल्क होगा।
गुरु-शिष्य का रिश्ता पिता-पुत्र के रिश्ते से बड़ा होता है। गुरु शिष्य को कभी लूटता नहीं है। दुनिया में ऐसा कोई पैदा नहीं हुआ, जो दान देकर मुझसे कुछ प्राप्त कर सके। मेरे आश्रम में गत लगभग बीस वर्ष से श्री दुर्गाचालीसा का अखण्ड पाठ जनकल्याण के लिए चल रहा है।
यदि मैं कटुसत्य नहीं कहूंगा, तो मैं कैसा धर्मगुरु हूँ? मैं तुम्हें भी कटु सत्य कहना सिखाता हूँ। गांधी जी के तीन बन्दरों वाली विचारधारा को समझो। यदि तुम बन्दर की औलाद हो, तो बुराई को मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो। किन्तु, यदि तुम इन्सान की औलाद हो, तो अपनी आंखों, कानों और मुंह को खोलकर रखो और आवश्यकता पड़ने पर अपने हाथ भी उठाओ। अन्यायी-अधर्मियों, या तो सुधर जाओ, अन्यथा भगवती मानव कल्याण संगठन तुम्हें सुधारेगा।
तुम लोग तो मेरे शिष्य हो। किससे भय खाते हो? अपना यह एक जीवन सत्य के लिए न्यौछावर कर दो! मानवजीवन के तीन मुख्य कर्तव्य हैं- मानवता की सेवा करना, धर्म की रक्षा करना और अपने राष्ट्र की रक्षा करना। इनके लिए मैंने क्रमशः भगवती मानव कल्याण संगठन, पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम और भारतीय शक्ति चेतना पार्टी का गठन किया है। इनका संचालन मेरी तीनों पुत्रियां पूजा, संध्या और ज्योति कर रही हैं। ये तीनों धाराएं मेरे द्वारा निर्देशित हैं। मैं इनमें से किसी भी संस्था का अध्यक्ष नहीं हूँ। मुझे कभी भी सक्रिय राजनीति में नहीं आना है और न ही कोई चुनावा लड़ना है। मेरे लिए राजनीति का बड़े से बड़ा पद भी पैर से ठोकर मारने के बराबर है।
हमारा किसी भी धर्म से विरोध नहीं है। अपने-अपने धर्म को सब गहराई से पकड़ें। आज कथावाचक रासरंग में डूब चुके हैं। समाज को अच्छे संस्कार देने की कोई प्रेरणा नहीं। समाज नशे-मांसाहार से मुक्त हो, इससे कोई मतलब नहीं। आप लोग हमारी इस विचारधारा को समझो और इससे जुड़ो। ‘माँ’ की भक्ति में डूबो और हर पल उसके सामने नतमस्तक रहो। कोई भी परिस्थिति आजाय, धर्म, धैर्य और पुरुषार्थ का कभी भी त्याग मत करो तथा अपने गुरु और इष्ट पर विश्वास रखो।
बलिप्रथा की बीमारी छत्तीसगढ़ में बहुत फैली हुई है। इससे दूर रहो। अपने भौतिक लाभ के लिए किसी निरीह पशु या पक्षी की जान लेना बहुत बड़ा पाप है। अपनी बुद्धि का उपयोग करो। बलि देने से किसी भी देवी-देवता को प्रसन्न नहीं किया जा सकता। सब से अच्छा मार्ग है कि नित्य ‘माँ’ की साधना करो। अपने घर में नित्य प्रातः-सायं शंखध्वनि करो। इससे समाज में सात्त्विक तरंगें जाती हैं। असन्तुलन और तनाव की स्थिति में शंख सही से नहीं बजेगा। सदैव निर्मल विचार लेकर तथा ‘माँ’ का ध्यान करके शंखध्वनि करें। जो भी इसे सुनेगा, उस पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इससे दूषित तरंगें नष्ट होती हैं। शंखध्वनि महिला और पुरुष दोनों कर सकते हैं।
समाज में तीन प्रकार के लोग होते हैं। कुछ लोग दूसरों को प्रताड़ित करते हैं, कुछ प्रभावित करते हैं और कुछ उन्हें प्रकाशित करते हैं। मैं न तो प्रताड़ित करता हूँ, न प्रभावित करता हूँ। मैं तो सबको प्रकाशित करता हूँ। सन्तानोत्पत्ति के उपरान्त मैं सपत्नीक पूर्ण ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करता हूँ। तभी तो मैं समाज को भी इसके लिए प्रेरित कर सकूंगा। विज्ञान चाहे तो मेरा परीक्षण कर सकता है। मेरा गृहस्थ जीवन जितना सुखी है, इस भूतल पर उतना सुखी कोई दूसरा नहीं है।
दोनों हाथ उठवाकर सबको संकल्प कराया गयाः मैं संकल्प करता/करती हूँ कि नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीते हुए मानवता की सेवा, धर्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा के लिए पूर्ण समर्पित रहूंगा/रहूंगी तथा विवाह से पूर्व पूर्ण ब्रह्मचर्यव्रत का पालन और विवाह के बाद एक पति/पत्नी व्रत का पालन करूंगा/करूंगी।
सबसे पहली लड़ाई हमें अपने आपसे लड़नी पड़ेगी। कुमार्ग में चल रहे एक लड़का-लड़की रातभर जागते हैं। उन्हें पूरी रात छोटी नज़र आती है। चोर भी रातभर जागता है चोरी करने के लिए। किन्तु, उन्हें न तो नींद आती है, न आलस। क्या तुम अपनी इष्ट से इतना प्रेम भी नहीं कर सकते? तुम्हें आलस आजाता है। एक बार ‘माँ’ के सच्चे भक्त बन जाओ। ‘माँ’ की सच्ची भक्ति में डूब जाओ। ‘माँ’ ने तुम्हें छोड़ा ही कब था? वह तो तुम्हारे शरीर के कण-कण में विद्यमान हैं। अपने आचार-व्यवहार में परिवर्तन लाओ और माँ से कहो कि हे माँ, मैं तुम्हारा हूँ, तुम मेरी हो, मुझे अपनालो। मुझमें वह भक्ति पैदा कर दो कि मैं आपको कभी न भूलूं।
अन्त में आत्मकल्याण एवं जनकल्याण के लिए दो मिनट तक शंखध्वनि की गई।
द्वितीय दिवस – प्रथम सत्र
गुरुदीक्षा
शिविर के द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र में प्रातः 07.30 बजे से गुरुदीक्षा का क्रम प्रारम्भ हुआ। गुरुवरश्री ने लगभग 06 हज़ार नए भक्तों को दीक्षा प्रदान करने से पूर्व चिन्तन दियाः
मानवजीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षण वह होता है, जब चेतनावान् गुरु के सान्निध्य में दीक्षा प्राप्त होती है। मनुष्य यदि थोड़ी सी भी सजगता हासिल कर ले, तो जीवन को आनन्दमय बना सकता है। सभी रिश्तों से गुरु का रिश्ता सर्वोत्कृष्ट माना गया है, क्योंकि गुरु केवल शिष्यों का कल्याण चाहता है, जबकि अन्य रिश्ते स्वार्थ से बंधे होते हैं। एक चेतनावान् गुरु केवल यही चाहता है कि शिष्यों का हित हो, उनके जीवन में परिवर्तन आए, अवगुणों से दूर रहें, नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् व चेतनावान् बनें। जब तक आपके अन्दर की इच्छाशक्ति सतोगुणी नहीं होगी, आप चाहे कितना ही पूजा-पाठ क्यों न कर लें, भला नहीं होने वाला। गुरु ऐसे संस्कार डालता है कि आप सत्यपथ पर आगे बढ़ सकें। चेतनावान् गुरु शिष्यों को केवल स्वयं से नहीं जोड़ता, बल्कि वह शिष्य और इष्ट के बीच की कड़ी होता है, जो उससे जोड़ने का कार्य करता है। केवल सद्गुरु के बताए मार्ग पर चलने लगो, जीवन में पतन कभी नहीं होगा।
गुरुवरश्री ने कहा, केवल गुरुदीक्षा प्राप्त कर लेने से ही जीवन का कल्याण नहीं होता। तुम्हारा जीवन पुरुषार्थी बने, माता भगवती के प्रति अटूट विश्वास हो। वे जगज्जननी हैं और आपका पूरा शरीर उन्हीं की चेतना से संचालित है। उस चेतना को जानो और समझो।
गुरुवरश्री ने नित्य साधना के मंत्रों के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भले ही इन मन्त्रों को कई बार आपने सुना है, लेकिन जब गुरु द्वारा मन्त्र प्रदान किया जाता है, तो वे मन्त्र उत्कीलित हो जाते हैं।
आप लोगों को नित्य शुद्धता का ध्यान रखना है। एक बात का विशेष ध्यान रखें कि पूजन करते समय किसी भी छवि को पहले गीले कपड़े से पोछकर कुंकुम का तिलक लगा सकते हैं। भ्रान्ति से ऊपर उठें और यह न सोचें कि पहले किस छवि को तिलक लगाएं, कहीं कोई नाराज़ न हो जाए। देवी-देवताओं में कोई भेदभाव नहीं होता, सभी सूक्ष्म शक्तियां हैं।
चिन्तन के पश्चात् सद्गुरुदेव जी ने सहायक शक्तियों हनुमान जी का मंत्र- ऊँ हं हनुमतये नमः, भैरव जी का मंत्र- ऊँ भ्रं भैरवाय नमः एवं गणेश जी का मन्त्र- ऊँ गं गणपतये नमः के साथ चेतनामन्त्र- ऊँ जगदम्बिके दुर्गायै नमः और गुरुमन्त्र- ऊँ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः प्रदान करते हुये कहा कि मैं सभी को मन, वचन, कर्म से शिष्य रूप में स्वीकार करता हूँ।
दीक्षा ग्रहण करने के उपरान्त, शिष्यों ने संकल्प लिया कि ‘मैं…आज इस साधनात्मक शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में मन-वचन-कर्म से दृश्य एवं अदृश्य जगत् की समस्त शक्तियों, दसों दिशाओं, पंचतत्त्वों तथा उपस्थित जनसमुदाय को साक्षी मानते हुए संकल्प करता/करती हूँ कि मैं बह्मर्षि धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज को अपना धर्मगुरु स्वीकार करता/करती हूँ। परम पूज्य सद्गुरुदेव जी को साक्षी मानकर संकल्प करता/करती हूँ कि मैं जीवनपर्यन्त नशा-मांसाहारमुक्त व चरित्रवान् जीवन जीने के साथ ही परम पूज्य सद्गुरुदेव जी के हर आदेश का पूर्णतया पालन करूंगा/करूंगी तथा गुरुदेव जी के द्वारा मानवता की सेवा, धर्मरक्षा एवं राष्ट्ररक्षा के लिए प्रदत्त तीनों धाराओं के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित रहते हुए तीनों धाराओं से मिलने वाले हर आदेश का पालन करूंगा/करूंगी। मैं भगवती मानव कल्याण संगठन के नियमों-निर्देशों का पालन करने के साथ ही भगवती मानव कल्याण संगठन एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम के प्रति तन-मन-धन से पूर्णतया समर्पित रहूँगा/रहूँगी एवं संगठन के जनकल्याणकारी कार्यों में अपनी पूर्ण क्षमता के साथ सहभागी बनूँगा/बनूँगी।’
अन्त में सभी नये शिष्यों ने सद्गुरुदेव भगवान् को श्रद्धाभाव से नमन करते हुये विघ्रविनाशक शक्तिजल निःशुल्क प्राप्त किया।
द्वितीय दिवस-द्वितीय सत्र
दिव्य उद्बोधन
‘‘सब दुःखों का मूल अहंकार है। जब तक यह नष्ट नहीं होगा, आनन्द की प्राप्ति संभव नहीं।’’
ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज मन्द मृदुल मुस्कान के साथ धीर-गम्भीर वाणी में कहते हैं कि हम, आप सभी सौभाग्यशाली हैं कि मातेश्वरी आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की भक्ति करने का अवसर प्राप्त हो रहा है। ‘माँ’ ने हमें ज्ञान दिया है, तो क्यों न मानवीय मूल्यों की स्थापना की जाए। नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान्, चेतनावान् जीवन का निर्माण किया जाए। यदि किसी का जीवन नष्ट करना है, तो नशे-मांस में लिप्त करके दुश्चरित्रता के मार्ग पर बढ़ा दें और यदि संवारना है, तो इनसे दूर करते हुए उसे चेतनावान् बना दें।
महाराजश्री ने कहा कि लोगों के अन्दर तमोगुण और रजोगुण की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है और वे पतित होते जा रहे हैं। मनुष्य अपनी मानसिक संतुलन की शक्ति को खोता जा रहा है। माता-पिता के कृत्यों का प्रभाव बच्चों पर स्पष्ट रूप से पड़ता है। तात्पर्य माता-पिता जैसे होते हैं, उनका बच्चा भी वैसा बन जाता है। जब आपका स्वरूप आपके बच्चे पर उभर आता है, तो सोचिये संस्कारों का प्रभाव पड़ेगा कि नहीं। आज अनीति-अन्याय-अधर्म बढ़ रहा है। अन्यायी-अधर्मी अट्टहास लगा रहे हैं। आप लोगों में भी बहुत से ऐसे हैं, जिनके बच्चे दोनों समय का भोजन नहीं पाते, उन्हें अच्छी शिक्षा, अच्छी चिकित्सा उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हो। ये दारिद्रता, ये गरीबी, नशे के कारण हैं। नशे से विकास के सभी मार्ग अवरुद्ध होजाते हैं। इसीलिए भगवती मानव कल्याण संगठन ने नशामुक्त अभियान को हाथ में लिया है। यह संगठन देश के कोने-कोने में जो अभियान चला रहा है, उससे बहुत बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है। मेरा हर समय यह चिन्तन बना रहता है कि जो व्यक्ति नशा करता है, उसके परिवार की कितनी दयनीय दशा होती है। अतः पहला लक्ष्य स्वयं को सवांरना होना चाहिए। अपने तन को, अपनी बुद्धि को सवांरो और ‘माँ’ से स्वयं को जोड़कर रखो। यदि चेतनावान् बनना है, तो नित्य सूर्योदय से पहले उठ जायें, स्नान करके अपने इष्ट की पूजा-अर्चना कर लें तो और अच्छा है। यदि हो सके तो साधना भी पूर्ण कर लें। लेकिन आज स्थिति यह है कि गधे तो जग जायेंगे, लेकिन इन्सान सोता रहता है। कहते हैं कि हमें आज़ादी मिल चुकी है, जबकि गुलामी ने और जकड़ लिया है। अंग्रेज़ तो चले गए, लेकिन कुछ गलत संस्कार अवश्य दे गए। उसी लीक पर चलते हुए लोग मन-मस्तिष्क को पंगु बना चुके हैं।
स्वयं का जीवन सवांरने और चेतनावान् बनने के लिए ब्राह्ममुहूर्त में उठने के साथ ही आहार के प्रति सजग होजाओ। हर जीव के लिए आहार निर्धारित है। हम मनुष्य हैं और शाकाहारी हैं। अतः मांस का सेवन नहीं करना चाहिए। ज्य़ादा लहसुन, प्याज व तेल का सेवन न करें। शुद्ध, सात्त्विक भोजन को शान्ति व सन्तोष के साथ ग्रहण करें। कम भोजन में भी पर्याप्त एनर्जी प्राप्त होगी। स्वयं के द्वारा उपार्जित धन पर सन्तोष रखो। दूसरों की सम्पन्नता की ओर देखोगे, तो कभी शान्ति नहीं मिलेगी। इच्छायें कभी समाप्त नहीं होतीं। सन्तोष धारण करो, फिर देखो तुम्हारे अन्दर शक्ति कैसे नहीं आती। आलस्य का त्याग कर दो, निराशा का दामन छोड़कर आशावादी बनो। हर समय यही भाव होना चाहिए कि हम ऋषियों-मुनियों की सन्तानें हैं और परमसत्ता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा हमारी इष्ट हैं। आलस्य व निराशा मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु हैं। निराशा के भंवर में फंसकर लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं। मेरा मानना है कि आत्महत्या करना, हत्या से भी बड़ा पाप है। प्रकृति से सीखो, एक फूल खिल जाए, तो उसके सुगन्ध से कोई नहीं बच सकता। उसके पास से चाहे कोई दुर्गुणी व्यक्ति ही क्यों न निकल जाए। आत्मावान् बनकर देखो, फूल के समान बनो, जिससे तुम्हारी सुगन्ध से दुर्गुणी से दुर्गुणी व्यक्ति सदाचारी बन जाए। अपने अन्दर की चेतनाशक्ति को बढ़ाओ, निर्भीक बनो, भय को त्याग दो। भय से शरीर में संकुचन आजाता है और कार्यक्षमता प्रभावित होती है। एक न एक दिन मृत्यु सभी को आनी है फिर किस बात का भय!
ऋषिवर ने कहा कि आत्मकल्याण की साधना निष्काम साधना कहलाती है। इसके साथ जनकल्याण की भावना रखो, जन्म दर जन्म आपको अच्छा से अच्छा जीवन मिलेगा। अपने जीवन को दर्पण के समान बना डालो। हम बदलेंगे, जग बदलेगा, इस नारे को सार्थक बनाना है। पुत्र-पुत्रियों में भेद करना छोड़ दो, गलत परम्पराओं से ऊपर उठो, बलिप्रथा से सदैव अपने आपको दूर रखो, जातीयता व छुआछूत की भावना को निकाल फेंको। यही तो जीवन है। अपने धर्म का पालन करो, लेकिन किसी के धर्म की बुराई मत करो। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी के धर्म इन्सानियत की सीख देते हैं। अनीति-अन्याय-अधर्म से समाज को बचाना होगा, ‘माँ’ की यही सच्ची भक्ति है।
शिविर के प्रथम दिवस की तरह द्वितीय व अन्तिम दिवस भी दिव्य आरती से पूर्व ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के सान्निध्य में लाखों लोगों ने नशामुक्ति महाशंखनाद किया। दो मिनट तक चले शंखनाद से चर-अचर जगत् गुंजायमान हो उठा। निश्चय ही शंखनाद का यह क्रम लोगों के जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन का द्योतक है।
शक्तिस्वरूपा बहनों ने की दिव्यआरती
जिस दिव्यआरती के लिये देवाधिदेव भी लालायित रहते हैं, उस दिव्यआरती को शक्ति चेतना जनजागरण शिविर के दोनों दिवसों में लाखों भक्तों ने प्राप्त करके जीवन को कृतार्थ किया। शिविर के दोनों दिवसों में गुरुदेव भगवान् के चिन्तन के पश्चात सायंकालीन बेला में शक्तिस्वरूपा बहन पूजा जी, संध्या जी एवं ज्योति जी ने समस्त भक्तों की ओर से दिव्यआरती सम्पन्न की। उस समय का वातावरण अत्यन्त ही भक्तिमय था। गुरुवरश्री की ध्यानावस्थित मुद्रा और प्रवाहित चेतनातरंगों से शिविर में पहुंचे सभी भक्तों का रोम-रोम पुलकित हो उठा था।
शिविर की व्यवस्था में हज़ारों कार्यकर्त्ताओं का रहा अतुलनीय योगदान
शक्ति चेतना जनजागरण शिविर के विशाल आयोजन को सम्पन्न कराने में देश-देशान्तर से पहुंचे भगवती मानव कल्याण संगठन के सदस्यों मे से सैकड़ों कार्यकर्त्ता एक सप्ताह पूर्व से दिन-रात जुटे रहे। यह उनकी सक्रियता और सतर्कता का ही परिणाम था कि शिविर सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। कार्यकर्त्ताओं ने श्रद्धालुओं को ठहरने हेतु जहां आवासीय व प्रवचन पंडाल की व्यवस्था प्रदान की, वहीं शिविर के दोनों दिवस सुबह-शाम लाखों भक्तों को निःशुल्क भोजन कराया। जनसम्पर्क कार्यालय, स्टॉल व्यवस्था व पेयजल व्यवस्था के साथ ही प्रसाद वितरण के कार्य को सफलतापूर्वक पूर्ण किया गया। इसके लिये संगठन के हज़ारों सक्रिय कार्यकर्त्ताओं की जितनी भी प्रशंसा की जाये, कम होगी।
रायपुर से सिद्धाश्रम तक
दिनांक 14 फरवरी, मंगलवार को प्रातःकाल 07: 30 बजे ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज जैसे ही गुरुआवास से बाहर निकलते हैं, शिष्यों व ‘माँ’ भक्तों के मुखारविन्दों से उच्चारित जयकारों की प्रतिध्वनि से समूचा क्षेत्र सुवासित हो उठा।
रायपुर से बिलासपुर ज़िला होते हुए सिद्धाश्रम तक वापिसी नशामुक्त सद्भावना यात्रा के दौरान सड़क मार्ग पर पड़ने वाले नगरीय व ग्रामीण क्षेत्रों में परम पूज्य सद्गुरुदेव जी के दर्शन हेतु उमड़े भक्तों की आतुरता का वर्णन करना सहज नहीं है। रायपुर जिला मुख्यालय की सीमा रावांभाटा में मार्ग के दोनों ओर खड़े क्षेत्रीय भक्तों, गुरुभाई-बहनों व नगरवासियों ने परम पूज्य गुरुवरश्री को नमन् करते हुए सद्भावना यात्रा को भावभीनी विदाई दी। यात्रा रायपुर से कचुरा ग्राम पहुंची, जहां गुरुवरश्री के दर्शन हेतु ग्रामवासी पंक्तिबद्ध खड़े थे। ऐसा लग रहा था कि वे गुरुवर से धन-दौलत नहीं, बल्कि भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति मांग रहे हों। गुरुवर ने भी उनके भावों को जानकर अपना वाहन धीमा करवाते हुए अपना आशीर्वाद प्रदान किया। आगे बैतलपुर, सरगांव, चौराभाठा, तिफरा होते हुए यात्रा बिलासपुर पहुंची। गुरुदेव भगवान् जैसे ही पहुंचते हैं, जयकारों के बीच महिलाओं ने आरती उतारकर अगवानी की। सभी लोग आशीर्वाद की आकांक्षा में वाहन को छूकर ही तृप्त हो रहे थे। सिर पर कलश रखे महिलाओं का श्रद्धाभाव देखकर प्रतीत हो रहा था कि अध्यात्म की ओर नारीशक्ति का रुझान बढ़ रहा है और शीघ्र ही देश में परम पूज्य गुरुवर की विचारधारा के अनुरूप जनजागरण को और गति मिलेगी। यात्रा रतनपुर के बाद पेण्ड्रा रोड से गौरेला, व्येंकटनगर, जैतहरी होते हुए अपराह्न 03 बजे अनूपपुर पहुंची। यहां स्थान-स्थान पर स्वागतद्वार सजाए गये थे। यहां स्थित सामुदायिक भवन में कुछ समय रुककर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने वहां उपस्थित शिष्यों, भक्तों को आशीर्वाद प्रदान किया। अनूपपुर से बाईपास रोड होते हुए सद्भावना यात्रा गोरतरा (शहडोल) पहुंची। सड़क मार्ग के दोनों ओर खड़े भक्तों ने गुरुदेव जी को नमन् करके आशीर्वाद प्राप्त किया।
शहडोल नगरपालिका क्षेत्र से सम्बद्ध उपनगरीय क्षेत्र सोहागपुर, विराटनगर में भक्तिभाव से आल्हादित नर-नारियों का भारी समूह उमड़ पड़ा था। सद्गुरुदेव भगवान् के दर्शन प्राप्त करके प्रसन्नता के वशीभूत अनेक लोगों की पलकें भीग गईं। इस तरह ग्राम पिपरिया, गोहपारू, जयसिंहनगर व ब्यौहारी होते हुए सायं 07:30 बजे पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम पहुंचकर सद्भावना यात्रा का समापन हुआ।
प्रेसवार्ता
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 11-12 फरवरी 2017 को आयोजित दो दिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ की अभूतपूर्व सफलता के बाद दिनांक 13 फरवरी को गुरुआवास (हॉटल उत्सव इन) के सभागार में आयोजित पत्रकार वार्ता में पत्रकारों के द्वारा नमन्भाव से पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते हुए ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने कहा कि भगवती मानव कल्याण संगठन द्वारा जो नशामुक्त अभियान चलाया जा रहा है, उसके अन्तर्गत छत्तीसगढ़ में ही लाखों लोगों को नशामुक्त कराया जा चुका है। शासन को भी प्रेरित होना चाहिए। एक ओर हम लोगों को नशामुक्त कर रहे हैं, दूसरी ओर शासन नए-नए ठेके खोल देती है। यह अपराध के अन्तर्गत आता है कि शराब के नए ठेके खुलवाए जाएं। यदि देश को शराबमुक्त कर दिया जाए, तो 50 प्रतिशत अपराध स्वतः समाप्त हो जायेंगे। हम आप युवा भारत की बात करते हैं और यदि युवा नशे से ग्रसित हो जायेगा, तो सोचिए कैसा भारत बनेगा?
परम पूज्य गुरुवर जी ने कहा कि जिस पार्टी के द्वारा पूर्ण शराबबन्दी की जायेगी, भगवती मानव कल्याण संगठन के लाखों कार्यकर्ता उसके साथ होंगे।
पत्रकारों ने प्रश्न किया कि क्या एक-दो राज्यों में शराबबन्दी का प्रभाव पूरे देश में पड़ेगा? इस पर गुरुवरश्री ने कहा कि तो क्या प्रयास करना छोड़ दें? प्रयास से क्या नहीं हो सकता। एक अपराधी को यह सोचकर न पकड़ा जाए कि क्या इससे अपराध समाप्त हो जायेगा? उत्तरप्रदेश में राजनेता बारबालाओं को बुलाकर डांस करवाते हैं, क्या ये देश में सुधार लायेंगे? आपश्री ने कहा कि समाज का पतन सबसे ज्य़ादा राजनेताओं और धर्माधिकारियों ने किया है। यदि सभी सोचते कि हमें समाज को नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् बनाना है, तो पूरा समाज सुधर जाता, लेकिन उन्हें तो चाहे कोई नशेड़ी हो या व्यभिचारी, यदि दक्षिणा दे रहा है तो आशीर्वाद दे देते हैं कि इसी तरह आगे बढ़ते रहो, अच्छा है।
गुरुवरश्री ने कहा कि आशाराम, रामदेव व राम रहीम जैसों को राजनेताओं के द्वारा वोटबैंक के लिए संरक्षण दिया जाता है। राम रहीम ने कह दिया कि पंजाब चुनाव में बीजेपी और अकाली दल को समर्थन देंगे, जिसने पूरे पंजाब को बरबाद करने का कार्य किया है। आज़ादी से पहले देश को अंग्रेज लूट रहे थे, अब राजनेता लूट रहे हैं। मोदी जी को पहले ग्रामीण स्वरोजगार की ओर ध्यान देना चाहिए, स्मार्टसिटी से बदलाव नहीं आएगा। सरकार शराब से राजस्व की आड़ लेती है, जबकि वास्तव में राजस्व उतना नहीं मिल रहा है। एक ठेके के पीछे कई अवैध दुकानें चल रही हैं। राजस्व का रोना फरेब है, क्योंकि राजनेता स्वयं शराबी हैं। गांव का किसान जिसके पास 10 एकड़ जमीन है, वह सुख-समृद्धि की ओर बढ़ रहा है और यदि वह शराब पीने लगा तो भिखारी बन जायेगा। शराब का ठेका चलाकर सरकार स्वयं अपराध कर रही हैं।
इस अवसर पर समाचारपत्र हितवाद से अभिषेक जी, नई दुनिया से अनुज सक्सेना जी व दीपेन्द्र सोनी जी, पायोनियर से शगुफ्ता सीरीन जी, अमन पथ से राकेश विश्वकर्मा जी, पत्रिका से सुनील नायक जी, अमृत सन्देश से विजय कुमार जी, डेली छत्तीसगढ़ से हेमन्द गोस्वामी जी, तरुण छत्तीसगढ़ से जावेद खान जी, नवप्रदेश से शुभ्रानन्दी जी, राष्ट्रीय साप्ताहिक समाचार पत्र संकल्प शक्ति से अलोपी शुक्ला जी सहित अनेक क्षेत्रीय पत्रकारों के अलावा मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले से पहुंचे पत्रकार दिग्विजय सिंह जी व दमोह ज़िले के प्रमोद पटेल जी तथा भोपाल में पत्रकारिता का कोर्स कर रहीं शिखा सिंह तोमर जी, कानपुर ने परम पूज्य गुरुवरश्री के सान्निध्य का लाभ उठाया और सभी ने चरणस्पर्श करके आशीर्वाद प्राप्त किया।