कोई भी व्यक्ति कुसंस्कारों, कुकृत्यों, दुर्विचारों पर विजय तब तक प्राप्त नहीं कर सकता, जब तक कि उसने अपने चित्त को सत्य, प्रेम और कृतज्ञता से परिशुद्धि न किया हो। अपने जीवन में परिवर्तन के लिए जीवनदृष्टि में बदलाव लाने की आवश्यकता है, क्योंकि आप जैसा सोचेंगे, वैसा ही बन जायेंगे। वास्तव में सब कुछ चित्त से ही दिशा-निर्देशित होता है। अतः अपने चित्त में हम जो दृष्टिपथ अंकित करेंगे, वही तो भौतिक स्तर पर प्रकट होगा। अगर हम अपने चित्त में प्रकृतिसत्ता माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा के प्रति प्रेम और कृतज्ञता के भाव जगायेंगे, तो जीवन आनन्द से भरपूर होगा। ‘माँ’ ने हमें जीवन संचालन के लिए पृथ्वी, जल, वायु, अग्रि, आकाश के रूप में क्या कुछ नहीं दिया है। लेकिन, आप इतने स्वार्थी हो गए हैं कि कृतज्ञ होने के स्थान पर प्रकृतिसत्ता के नियमों का उल्लंघन पर उल्लंघन करते जा रहे हैं, उनकी बनाई रचना को ही उजाडऩे पर तुले हुए हैं। सोचिए, फिर आप कैसे सानन्द जीवन प्राप्त कर सकते हैं? सानन्द जीवन प्राप्त करने के लिए यम-नियमों का पालन करना अनिवार्य है।
शारदीय नवरात्र के प्रथम दिवस दिनांक 21 सितम्बर को सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने नित्यप्रति की तरह अखण्ड श्री दुर्गाचालीसा पाठ मंदिर में माता भगवती की पूजा-अर्चना के उपरान्त, मूलध्वज मंदिर में ‘माँ’ की स्तुति की। तत्पश्चात् नवीन ध्वजारोहण के उपरान्त आपश्री ने विश्व की मानवता के कल्याणार्थ मंदिर में ‘माँ’ की चुनरी बाँधी।
इस अवसर पर पूजनीया माता जी, शक्तिस्वरूपा बहन पूजा जी, संध्या जी, ज्योति जी सहित सिद्धाश्रम चेतना आरुणी जी, सिद्धाश्रमरत्न अजय योगभारती जी, सौरभ द्विवेदी जी एवं आशीष शुक्ला जी की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
विगत बीस वर्षों की भांति इस वर्ष भी शारदीय नवरात्र पर्व पर अष्टमी, नवमी व विजयादशमी तिथि को ‘योग-ध्यान-साधना’ शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में देश-देशान्तर से पहुंचे लाखों भक्तों व ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के शिष्यों ने आध्यात्मिक ज्ञानामृत का पान करके चेतनात्मक लाभ प्राप्त किया।
पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में 28, 29, 30 सितम्बर 2017 को पूर्णरूपेण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त व चरित्रवान् लाखों भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा था। शिविर के तीनों दिवसों में सर्वप्रथम ब्रह्ममुहूर्त पर 4:30 बजे, भक्तजन मूलध्वज मंदिर में आरतीक्रम पूर्ण करने के पश्चात् अखण्ड श्री दुर्गाचालीसा पाठ मंदिर परिसर में पहुंचकर विगत 20 वर्षों से चल रहे अखण्ड श्री दुर्गाचालीसा पाठ में सम्मिलित हुये, जहां परम पूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज ने प्रातः 6:00 बजे स्वयं उपस्थित होकर आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा व सहायक शक्तियों की पूजा-अर्चना व ध्यान-साधना नित्यप्रति की तरह करने के पश्चात् मूलध्वज मन्दिर पहुंचकर विश्व की मानवता के कल्याण की कामना ‘माँ’ जगदम्बे से की।
उक्त साधनात्मक क्रमों के पश्चात् प्रातः सात बजे ‘माँ’ के सभी भक्तों ने प्रवचनस्थल व सामने विशाल प्रांगण पर बैठकर पूरे मनोयोग से अति महत्त्वपूर्ण बीज मंत्र ‘माँ-ऊँ’ का सस्वर जाप व शक्तिस्वरूपा बहन पूजा दीदी जी, संध्या दीदी जी व ज्योति दीदी जी के मुखारविन्द से उच्चारित साधनाक्रम को दोहराया। इसके पश्चात् योगासन विधा को क्रियात्मक रूप से पूर्ण किया। यह क्रम प्रातः नौ बजे तक चला।
एक लाख से अधिक गुरुभाई-बहन व माँ के भक्त योग-ध्यान-साधना क्रम में हुए सम्मिलित
शिविर के प्रथम दिवस का प्रथम सत्र- वृहदाकार पंडाल ही नहीं, वरन् सिद्धाश्रम का विशाल परिसर अपार जनसमुदाय से भरा हुआ था। शक्तिस्वरूपा बहन संध्या दीदी जी के कोकिल कण्ठ से उच्चारित साधनाक्रम को पूर्ण करने के उपरान्त, योग सीखने की ललक लिए बैठे गुरुभाई-बहनों व भक्तों को सम्बोधित करती हुईं बहन संध्या दीदी जी योग के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहती हैं कि यौगिक क्रियाओं को नित्यप्रति करने से शरीर व मनमस्तिष्क स्वस्थ रहता है और स्वस्थ मनुष्य ही अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन अच्छी तरह कर सकता है। योगपथ पर चलने के लिए योग के प्रति पूर्ण निष्ठा, विश्वास और समर्पण की आवश्यकता होती है। योग के माध्यम से हमारी कोशिकाएं चैतन्य होती हैं और बुद्धि की निर्मलता व मन की एकाग्रता के लिए ध्यान-साधना भी आवश्यक है। शक्तिस्वरूपा बहन ने योग के विभिन्न आसनों व ध्यान-साधना के बारे में बतलाया, जिसे सुनकर व प्रशिक्षित शिष्यों की क्रियाओं को देखकर लाखों लोगों ने योग-ध्यान-साधना के क्रमों को सीखा।
इस प्रकार त्रिदिवसीय शिविर के प्रथम दो दिवस, प्रातःकालीन बेला के प्रथम सत्र में 07 से 09 बजे तक योग-ध्यान-साधना के क्रमों को सम्पन्न किया गया। इस अवसर पर शक्तिस्वरूपा बहन पूजा दीदी जी व ज्योति दीदी जी भी उपस्थित रहीं।
शिविर के प्रथम दिवस की अपराह्न बेला, भगवती मानव कल्याण संगठन के कलाकार सदस्यों द्वारा गुरुवरश्री के बैठने हेतु निर्मित मंच व आसन की भव्यता देखते ही बनती थी। मंच के समक्ष शिविर पंडाल व विशाल परिसर में अनुशासित ढंग से पंक्तिबद्ध बैठे हुए माता भगवती के लाखों भक्त गुरुवरश्री के आगमन की प्रतीक्षा में जयकारे लगाने में लीन थे कि तभी अपराह्न 2:30 बजे आपश्री का आगमन भक्तों के हृदय को शीतलता प्रदान करता चला गया। सद्गुरुदेव भगवान् के मंचासीन होते ही शक्तिस्वरूपा बहन पूजा जी, संध्या जी और ज्योति जी ने उपस्थित समस्त भक्तों की ओर से गुरुवरश्री का पदप्रक्षालन करके पुष्प समर्पित किये।
तत्पश्चात्, भगवती मानव कल्याण संगठन के सदस्यों में से, गीत-संगीत की प्रतिभा के धनी शिष्यों ने भावगीत प्रस्तुत किये। जिसके कुछ अंश इस प्रकार हैंः- ‘जय हो सिद्धाश्रम सरकार, कर दो दीनों का उद्धार…।’ -प्रतीक मिश्रा, कानपुर। ‘ओ अम्बे भवानी माँ, दूर करो दुःख मेरा…।’ -सोनी योगभारती जी, बाँदा। ‘कई जन्मों से जुड़ा आपसे तार हमारा है…।’ -बाबूलाल विश्वकर्मा, दमोह। कार्यक्रम का संचालन करते हुए वीरेन्द्र दीक्षित जी ने अपने भावसुमन में कहा कि- ‘गुरुदेव से निराला, गुरुवर सा देने वाला कोई और नहीं। …।।’
भावगीतों की शृंखला के बाद ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने ध्यानावस्थित होकर माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की स्तुति की और सभी शिष्यों, चेतनाअंशों तथा शिविरस्थल पर उपस्थित विशाल जनसमुदाय सहित व्यवस्था में लगे सभी कार्यकर्ताओं को पूर्ण आशीर्वाद प्रदान करते हुये मन्द मृदुल मुस्कान के साथ धीर-गम्भीर वाणी में कहते हैं कि-
नवरात्र का पावन पर्व और उस पर भी अष्टमी की तिथि, गोसेवा समर्पण दिवस व अति महत्त्वपूर्ण गुरुवार का दिन। मूलध्वज मंदिर में स्थापित ‘माँ’ की ध्वजा, जो सत्यधर्म का प्रतीक है, दण्डी संन्यासी स्वामी जी का समाधिस्थल और जहां विगत 20 वर्षों से श्री दुर्गाचालीसा पाठ अनन्तकाल के लिए अहर्निश चल रहा है। ‘माँ’ के आशीर्वाद से मेरे द्वारा स्वयं समाजकल्याण के लिए साधनाओं का क्रम चलता रहता है, ऐसी दिव्य ऊर्जातरंगों के बीच आप सब बैठे हुए हैं। यदि इन पवित्र क्षणों को आत्मसात् कर लें, तो विचारधारा सहज ही पवित्रता के आलोक में प्रवाहित हो उठेगी।
आप लोगों के पास तीन महत्त्वपूर्ण दिन हैं। एक-एक पल का महत्त्व होता है। यदि हर पल माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का स्मरण रखेंगे, इस दिव्यधाम की पवित्रता को बनाए रखेंगे, तो मेरा संकल्प है कि यहां से कोई भी खाली हाथ नहीं जायेगा। आप लोग यहां खाने व सोने के लिए नहीं आए हो, बल्कि ‘माँ’ का आशीर्वाद, गुरु का सान्निध्य प्राप्त करने आए हो।
परम पूज्य गुरुवरश्री ने कहा, सत्य को सत्य के रूप में जानो-समझो, तो चेतनातरंगों से प्लावित हो उठोगे। भिखारी बनकर नहीं, पात्र बनकर माता भगवती का आशीर्वाद प्राप्त करो, पात्रता के साथ आगे बढ़ो और जब पात्र आगे बढ़ते हैं, तो पवित्रता का वातावरण बनता चला जाता है। यह कर्मप्रधान सृष्टि है। माता भगवती से रिश्ता जोड़ने के लिए सम्पूर्ण स्वभाव में पवित्रता का होना बहुत जरूरी है। समाज का पतन इसलिए हुआ है, क्योंकि वह केवल कामनाओं के लिए ‘माँ’ के दर पर जाता है। यदि ‘माँ’ का आशीर्वाद चाहते हो, तो उनके अनुरूप बनो, गुरु का आशीर्वाद चाहते हो, तो गुरु के आचरण के अनुरूप चलो। यदि इनसे जुड़ना चाहते हो, तो इनके अनुरूप अपने आपको ढालना होगा। यह तीन दिन जो आपको प्राप्त हुए हैं, अपने आपको निर्मल बनाने में लगा दो। ये तीन दिन मुझे दे दो, तुम्हारी सतोगुणी कोशिकाएं चैतन्य हो जायेंगी।
सतोगुणी कोशिकाओं को चैतन्य बनाने के लिए दो ही मार्ग हैं- साधक बनो या भक्त बनो। यदि कोशिकाओं को रजोगुण व तमोगुण की ओर ले जाओगे, तो सतोगुणी कोशिकाएं कभी भी जाग्रत् नहीं होंगी। हमारी आत्मा में निखिल ब्रह्मांड समाहित है। जिस दिन कुविचारों को हटाने की सोच बना लोगे, सात्त्विक कोशिकाएं चैतन्य हो उठेंगी। सभी के अन्दर दिव्यता भरी हुई है। उस दिव्यता को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले अपने स्वभाव में परिवर्तन लाओ, माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा के सच्चे भक्त बनो।
लेकिन, एक पक्ष की दौड़ है कि आपकी समस्याएं दूर होजायें, कामनाओं की पूर्ति होजाए। इस दौड़ में आंशिक लाभ तो प्राप्त होगा, लेकिन कभी भी ‘माँ’ का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त नहीं कर सकोगे।
केवल एक भाव बनाकर रखो कि ‘माँ’ मेरी हैं और मैं ‘माँ’ का हूँ। माता आदिशक्ति जगज्जननी ने आपको कुण्डलिनी का वह मार्ग दे रखा है, उसे जितना जगाते जाओगे, शक्ति-सामर्थ्य आपके अन्दर भरती चली जायेगी। हम उन्हीं ऋषि-मुनियों के वंशज हैं, जिनमें अलौकिक शक्तियां विद्यमान थीं। तुम्हें क्या चाहिए? तुम्हें आनन्द चाहिए या सुख? वह सुख जो पतन के मार्ग पर लेजाता है। अधिकांश लोगों की यही कामना रहती है कि मैं धनवान् बन जाऊं, सबसे अधिक सुन्दर होजाऊं, सभी भौतिक कामनाएं पूरी होजाएं। क्या आपने कभी अपने अन्दर की सुन्दरता पर ध्यान दिया है?
ऋषिवर ने शिष्यों, भक्तों से कहा कि अच्छे कार्य की ओर बढ़ रहे हो, लेकिन गति धीमी है, अच्छा सुन रहे हो, लेकिन वह अन्तःकरण में व्याप्त नहीं हो रहा है। सबसे पहले आपको अपने अन्दर स्थापित अनीति-अन्याय-अधर्म को समाप्त करना होगा, बाहर का अनीति-अन्याय-अधर्म स्वतः समाप्त हो जायेगा। अपनी सकारात्मक ऊर्जा को स्थायित्त्व प्रदान करो। मैं आपकी समस्याओं को दूर करने की अपेक्षा हर समय यही चाहता हूँ कि आपका पतन कैसे रुके? नवरात्र में लोग तरह-तरह के अनुष्ठान करते हैं, लेकिन जब तक अपने अन्दर के अवगुणों को समाप्त नहीं करोगे, कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकोगे। साधना करो और साधक भी बनो। साधक बन गए, तो सहज ही ‘माँ’ की कृपा प्राप्त होने लगेगी। हम ‘माँ’ के अंश हैं। जिस जीवन के लिए देवाधिदेव भी तरसते हैं, वह मानवजीवन आपको ‘माँ’ ने दिया है। लेकिन, ऐसा अनुपम जीवन पाकर विषय-विकारों में गवां रहे हो। आज इससे बड़े-बड़े साधु-संत-संन्यासी ग्रसित हैं और अपने आत्मतत्त्व को आज तक जान नहीं पाए।
दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय में ब्रह्मा ने क्या कहा है? हम तीनों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) को माता आदिशक्ति जगज्जननी ने शरीर धारण कराया है। वे जगत् जननी हैं, हम उनके अंश हैं। ब्रह्मा जी की स्तुति को और पढ़ो और समझो। यदि नरसिंह भगवान् खम्भे को फाड़कर निकल आए, तो क्या वह खम्भा उनकी माँ हो गया? जब, जहां ‘माँ’ की स्तुति की गई, वह वहां प्रकट हो गईं। दुर्गा सप्तशती ऐसा ग्रन्थ है जिसके श्लोकों की व्याख्या की जाए, तो सभी ग्रन्थ एक ओर हो जायेंगे। ‘माँ’ तो अजन्मा, अविनाशी हैं, जबकि ब्रह्मा, विष्णु, महेश माया के वशीभूत हैं। बड़े-बड़े ज्ञानी वेदों का सार नहीं निकाल पाते। वे ग्रन्थज्ञानी तो हैं, लेकिन आत्मज्ञानी नहीं हैं। यदि होते, तो वेदों का सार निकालकर रख देते। ग्रन्थज्ञानी श्रेष्ठ नहीं होता, श्रेष्ठ होता है आत्मज्ञानी। अब आपको निर्णय लेना है कि एक सुनहरा समय फिर आपके पास आया है कि कुमार्ग छोड़कर सद्मार्ग की ओर बढ़ चलो, जगत् जननी से नजदीकता मिल जायेगी।
श्री दुर्गाचालीसा पाठ में अनेकों भ्रान्तियां आ जाती हैं। ‘निरंकार है ज्योति तुम्हारी,…।’ जो यह कहते हैं कि जगत् जननी निरंकार हैं, वे मूर्ख हैं। निरंकार शब्द ज्योति के लिए कहा गया है। जगत् जननी तो दिव्यरूप हैं, साकार हैं। कहीं भी निरंकार की हमारी कोई साधना नहीं है। राजा जनक, राम, कृष्ण व रावण भी देवी-देवताओं के साकार आराधक थे। क्या मूर्ति पूजा का विरोध करने वाले इनसे अधिक विद्वान हैं। राजा जनक जिन्हें विदेह कहा जाता था, रावण जिसे कालचक्र का ज्ञान था। अन्यथा लक्ष्मण को राम यह न कहते कि जाओ रावण से ज्ञान प्राप्त कर लो।
रावण ज्ञानी था, उसने जानबूझकर अपने वंश को नष्ट कराया, जिससे सभी का उद्धार हो सके, विभीषण को लात मारकर लंका से इसलिए निकाला कि वह राम की शरण में जा सके। रावण शिव का बहुत बड़ा भक्त था, अपनी भक्ति के बल पर शिव को साकार उपस्थित करा लेने की उसमें क्षमता थी। लेकिन, हर वर्ष विजयादशमी को रावण के पुतले का दहन किया जाता है। अरे, रावण का दहन करने का अधिकार उसे ही है, जो अपने अन्दर की राक्षसी प्रवृत्ति को नष्ट कर सके। लेकिन, आज अन्यायी-अधर्मी ही रावण के पुतले का दहन करते हैं।
सद्गुरुदेव महाराज जी ने कहा कि मेरे द्वारा 10-15 वर्ष पहले ही कहा गया था कि चाहे आशाराम हों, राम रहीम हों, रामपाल हों, इच्छाधारी हों या फलाहारी हों। मैं इनका सर्वनाश करने ही आया हूँ। जब प्रकृति का चक्र चलता है, तो बड़ा से बड़ा अन्यायी-अधर्मी धूल में मिल जाता है। आपका गुरु नशे-मांस से मुक्त पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है। यदि आप अपनी इंद्रियों पर अंकुश नहीं लगा सके, आप उन इन्द्रियों के गुलाम बन जाएं जो कि हमारी सहायक हैं, तो जीवन को धिक्कार है। कब सचेत होगे? विषय-विकारों से बाहर निकलो, दुर्विचारों को प्रेम का नाम मत दो, संकल्प का जीवन जिओ। जो बीत गया, उस पर विचार मत करो और वर्तमान को संवारो, भविष्य सुनहरा होगा।
कुसंस्कारों, कुकृत्यों, दुर्विचारों पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं, तो यम-नियमों का पालन करें, जीवन संवर जायेगा। यम एवं नियम को पांच-पांच भागों में विभक्त गया है।
यम- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह। हमारे पूर्वज इन नियमों का पूरी तरह पालन करते थे। लेकिन, आप विषय-विकारों में उलझकर उन्हें भूल गए, सत्याचरण भूल गए।
सत्य-सदा सत्य बोलो। मन, बुद्धि, अन्तःकरण व इन्द्रियों के द्वारा जो सत्य देखा, सुना व समझा जाए, वैसा ही मूलतः व्यक्त करना सत्य कहलाता है। दूसरों को जो भ्रम में न डाले, धोखा न दे, ऐसी वाणी सत्य कहलाती है। कुछ सत्य ऐसे होते हैं, जिसके लिए कटु भी बोलना पड़े, तो बोलने में हिचकना नहीं चाहिए। जैसे हत्यारे को हत्यारा कहना व देशद्रोही को देशद्रोही कहना, पूर्ण सत्य माना जाता है।
अहिंसा- हिंसा पहले अपने आपसे रोको, अपनी आत्मा पर हिंसा मत करो, उसमें अपवित्रता का कचरा मत डालो, नशे-मांस रूपी जहर के सेवन के द्वारा अपने शरीर पर हिंसा मत करो। मन-वचन-कर्म से कोई ऐसा कार्य न करो, जिससे किसी का अहित हो। अर्थात सभी के प्रति हित व प्रेम की भावना ही अहिंसा है। आत्मरक्षा एवं किसी पीड़ित के लिए उठाया गया कदम भी अहिंसा की श्रेणी में आता है। किसी दूसरे के द्वारा की जा रही हिंसा का विरोध करना भी अहिंसा है।
अस्तेय- वही प्राप्त करें, जितनी पात्रता हो, किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए अनाधिकार चेष्टा न करें। कोई ऐसा कार्य न करें जिससे दृष्टि झुकानी पड़े, अर्थात चोरी न करना ही अस्तेय है। यदि अस्तेय का पालन नहीं करते हो, तो सुषुम्रा नाड़ी संकुचित होती चली जाएगी।
ब्रह्मचर्य- ब्रह्मचर्य से तात्पर्य है, विकारों का संयमन करना। शादी से पहले पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और शादी के बाद एक पत्नी/एक पतिधर्म का पालन करते हुए गृहस्थ जीवन को संतुलित व मर्यादित रखें। और, जीवन आगे बढऩे पर पति/पत्नी आपसी सहमति से पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर सकते हैं।
अपरिग्रह- जीवन के लिए आवश्यकता से अधिक सुख-साधन का संग्रह न करना ही अपरिग्रह है। जो पात्रता है, उससे कम में जीवन निर्वाह करो, परोपकारी बनो, सदाचारी बनो, सात्त्विक आहार करो। जो ऐसा नहीं करता, वह अपरिग्रही नहीं है।
नियम- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्राणिधान।
शौच- शरीर व मन की शुद्धता व पवित्रता को शौच कहा गया है। इसमें नियम से नित्यप्रति शौच क्रिया आदि के लिए जाना, स्नान करना व सत्कर्मों से उपार्जित धन से सात्त्विक भोजन करना सम्मिलित है। राग-द्वेष, ईर्ष्या, काम-क्रोध-लोभ तथा भय का त्याग करने से अन्तःकरण व मन शुद्ध होता है।
संतोष- जिसके जीवन में सन्तोष है, उसे कोई भटका नहीं सकता। अपने सत्कर्मों तथा पुरुषार्थ से उपार्जित जो भी धन-संसाधन प्राप्त हो जाएं, उससे ही संतुष्ट रहना एवं सुख-दुःख, लाभ-हानि, यश-अपयश, सिद्धि-असिद्धि, अनुकूलता-प्रतिकूलता आदि के प्राप्त होने पर, हर स्थिति-परिस्थिति में हमेशा संतुष्ट व प्रसन्नचित्त रहने का नाम संतोष है।
तप- तपस्वी बनो। यदि जीवन में शौच, सन्तोष है, तो तप का जीवन जिओ। तप से तात्पर्य है जो कार्य कर रहे हो, उसे निष्ठा से करो। परमसत्ता की अटूट भक्ति करो। इससे आपकी पात्रता विकसित होगी और कुण्डलिनी चेतना ऊर्धगामी होगी। आपकी सुषुम्रा नाड़ी जितनी चैतन्य होगी, उतनी ही तेजी के साथ आपकी समस्याओं का निदान होगा। जिस दिन से अपनी सुषुम्रा नाड़ी से प्रेम करने लग जाओगे, कोई समस्या उत्पन्न हो ही नहीं सकती।
स्वाध्याय- अच्छे साहित्य पढऩा, अच्छी बातें सुनना, सात्त्विक भजन गाना, स्तुति-स्तोत्र पाठ करना आदि स्वाध्याय कहलाता है।
ईश्वरप्राणिधान- अपने इष्ट के प्रति समर्पण भाव रखना ही सच्चे अर्थों में ईश्वरप्राणिधान है।
सद्गुरुदेव भगवान् ने कहा कि नशा समाज के लिए अभिशाप है। जिस परिवार का एक भी व्यक्ति नशा करने लगता है, शराब पीने लगता है, पूरा परिवार बरबाद होजाता है। आज पूरा समाज नशे के कारण पतन की गर्त में डूब रहा है। सपनों के सौदागर नरेन्द्र मोदी से जो जनाकांक्षा थी कि वे देश को शराबमुक्त करेंगे, भ्रष्टाचार समाप्त करेंगे, मंहगाई पर रोक लगेगी, वह धूल-धूसरित हो चुकी है। स्वयं को देश का प्रधानसेवक कहने वाला देशवासियों को शराब पिलाए, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रधानसेवक ने आज तक किसी भी मुख्यमंत्री से नहीं कहा कि अपने प्रदेश को नशामुक्त कर दो और न ही भ्रष्टाचार में डूबे किसी मंत्री को जेल भेजा, जबकि दूसरों को तो भेज चुके हैं। तीन साल नहीं बीते कि नए चुनाव की रणनीति बनाने में लग गए। अधकचरे टायलेट बनवा देने से गरीबों का कल्याण नहीं होने वाला। प्रधानसेवक बनने के बाद वे गरीबों को भूल चुके हैं।
परम पूज्य गुरुवरश्री ने नरेन्द्र मोदी को इंगित करते हुए कहा कि तुम्हारी पार्टी के लोग व नौकरशाह कितने भ्रष्टाचार में डूबे हैं, क्या यह नहीं जानते? टायलेट बनवाए गए हैं, किसी में दरवाजा नहीं, तो किसी की दीवार गिर चुकी है, तो किसी में गड्ढा नहीं है। क्या यही है स्वच्छता अभियान? यदि तुमने देश को नशामुक्त कर दिया होता, तो करोड़ों गरीब परिवारों का कल्याण हो गया होता। लेकिन, तुम्हारा ध्यान तो केवल उद्योगपतियों के कल्याण में टिका हुआ है। नोटबन्दी करना कोई बड़ी बात नहीं है। देश के गरीब लुट रहे हैं, भ्रष्टाचार सुरसा के मुख की तरह बढ़ रहा है, मंहगाई आसमान को छू रही है। प्रधानसेवक, यदि तुम देश को शराबमुक्त नहीं करवा पाते, अपराध व भ्रष्टाचारमुक्त नहीं करवा पाते, तो धिक्कार है तुम पर।
शिविर के द्वितीय दिवस का द्वितीय सत्र
शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में आयोजनस्थल की अद्भुत छटा देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बे ने सिद्धाश्रम में अपनी समस्त ममता उड़ेल दी हो। सद्गुरुदेव भगवान् के श्रीमुख से चेतनात्मक चिन्तन श्रवण करने के प्रति लोगों में अति उत्साह दिखाई दे रहा था। द्वितीय दिवस की अपराह्न बेला, सुसज्जित मंच में विराजमान ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज की मोहक गम्भीरता चहुंओर व्याप्त हो रही थी और तभी मानवजीवन को पूर्णता प्रदान करने वाली आपश्री की अमृतमयी वाणी मुखर हो उठी।
हमें दोनों पक्षों को साथ में लेकर चलना पड़ता है- एक ओर ‘माँ’ की भक्ति, तो दूसरी ओर स्वयं में पात्रता विकसित करना। एक ओर आत्मकल्याण, तो दूसरी ओर परोपकार की ओर बढऩा चाहिए। ये रथ के दो पहिए हैं। यदि एक कमजोर हो गया, तो दूसरा स्वयं रुक जायेगा।
मनुष्य स्वयं में पूर्ण नहीं है। पूर्ण हैं तो केवल आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बे। यदि मनुष्य पूर्ण होता, तो उसे किसी का आश्रय नहीं लेना पड़ता। हमें पंचतत्त्वों के सहारे नहीं चलना पड़ता। आज भगवती मानव कल्याण संगठन के लाखों कार्यकर्ता इस भूतल पर जनजागरण कर रहे हैं। यदि हम चाहते हैं कि वृक्ष हरा-भरा रहे, तो पत्तों पर नहीं जड़ पर ध्यान देना होगा। यदि जड़ में पानी देते रहे, तो पेड़ हरा-भरा रहेगा। संगठन इसी दिशा में कार्य कर रहा है।
समाजसुधार ऊपर से कभी नहीं हो सकता, क्योंकि अन्यायी-अधर्मी जो राक्षस हैं, वे भौतिक जगत् के दृष्टिकोण से ताकतवर हैं। उन्हें धरातल में लाकर सुधारना पड़ेगा। केवल कानून सख्त कर देने से समाजसुधार नहीं हो सकता। इसके लिए एक ही रास्ता है कि नशे-मांस से मुक्त समाज का निर्माण करते हुए लोगों को माता भगवती की भक्ति से जोडऩा। मुझे आपके हृदय को जगाना है, मनमस्तिष्क को चेतनावान् बनाना है।
विश्वअध्यात्मजगत् के गुरुओं को चुनौती देते हुए ऋषिवर सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने कहा कि मेरा पथ शक्ति का पथ है, अग्रि का पथ है। यह पथ मैंने सम्मान पाने के लिए नहीं चुना है। मैं अपने अस्तित्त्व को मिटाने के लिए आया हूँ। किसी के पास इतनी ताकत नहीं कि वह एक ऋषि के कार्य में बाधक बन सके। जब तुम नशे में सो रहे होते हो, तब मेरे शिष्य समाज को जगाने का कार्य कर रहे होते हैं। तुम लोगों ने अभी मेरी यात्रा को देखा कहां है? यदि देख लोगे, तो नाना-नानी याद आ जायेंगे। मेरे इस शरीर में एक दण्डी संन्यासी का खून दौड़ता है, मैंने किसान परिवार में जन्म लिया है, खेतों में परिश्रम किया है, अपने शरीर को तपाया है और आज भी परिश्रम करता हूँ। मैंने कभी किसी का एक बूँद जल भी ऋण नहीं रखा। मैंने तपस्या की तो यही सोचकर कि ‘साधना सिद्ध होगी या यह शरीर नष्ट होगा।’ मैं सात्त्विक विचारधारा वाले नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् व चेतनावान् साधु-संत-संन्यासियों का सम्मान करता हूँ। लेकिन ऐसे कुछ ही हैं, शेष 90 प्रतिशत भ्रष्ट हैं।
मैं विश्वअध्यात्मजगत् को चुनौती देता हूँ। महाशक्तियज्ञ शुरू तो होने दो, यज्ञवेदी में आहुतियां पड़ने तो दो। मैं इस धरती पर सुख भोगने नहीं आया हूँ। मैंने अपनी भूमि-सम्पत्ति को जो पिताजी से प्राप्त हुई थी, उसे भी ट्रस्ट को प्रदान कर दिया है। जो हिन्दुत्त्व की बात करते हैं, मैं उनसे कहता हूँ कि यदि हिन्दुत्त्व की रक्षा करना चाहते हो, तो अपने धर्म के साथ दूसरे के धर्म की भी रक्षा करो। सच्चा हिन्दू वही है, जो अपने धर्म के साथ दूसरों के धर्म की भी रक्षा करता है। हिन्दू परोपकारी होता है, किसी की हत्या नहीं करता। पाकिस्तान ने आतंकवाद को जन्म दिया, आज वही आतंकवाद उसे ही खाये जा रहा है। क्या यही चाहते हो? कथित हिन्दुत्त्ववादी संगठनों ने गोरक्षा के नाम पर हत्या का बाजार गर्म करके रख दिया है और विश्वबन्धुत्त्व की बात करते हैं। यदि हिन्दुत्त्व को बचाना है, तो अन्यायी-अधर्मी-अनाचारियों से धर्मसंस्थानों को बचाओ। यदि धर्मसंस्थानों के प्रमुख ही गंजेड़ी, भंगेड़ी, शराबी व व्यभिचारी होंगे, तो हिन्दुत्त्व की रक्षा कैसे करोगे? यदि ताकत है, तो मेरे आत्मबल का सामना करो। मैं सत्य के, शक्ति के प्रकाशपथ पर बढ़ रहा हूँ। आओ, तुममें त्याग-तपस्या की शक्ति है या मुझमें, तुम सूक्ष्म को जाग्रत् कर सकते हो या मैं, ध्यान-समाधि में तुम जा सकते हो या मैं? आओ, एक बार शक्तिपरीक्षण तो कराओ।
हिन्दुत्त्व की रक्षा राधे मां, रामपाल, रामरहीम, अखंडानंद, पूर्णानन्द जैसे लोगों से नहीं होगी। बड़े से बड़े अपराधों में आज हमारे शंकराचार्य मौन बैठे हैं, इसके बाद भी कोई आवाज न उठाए। यदि कोई नहीं, तो भगवती मानव कल्याण संगठन आवाज उठायेगा। हाल ही में दो शंकराचार्य लड़ पड़े। न्यायालय को कहना पड़ा कि मैं दोनों को शंकराचार्य नहीं मानता। अन्यायी-अधर्मियों, साधुवेश का चोला धारण करके समाज को लूटने वालों, तुम्हें एक न एक दिन मेरे सामने आना पड़ेगा, या किसी बिल में छिप जाओगे, या फिर मेरे पीछे मेरे बताए रास्ते पर चलोगे।
ऋषिवर ने शिविर में उपस्थित विशाल जनसमुदाय से कहा कि प्रधानसेवक रेलवे स्टेशनों पर सुरक्षा नहीं दे पा रहे हैं और बुलेट ट्रेन की बात करते हैं। स्टेशनों में भगदड़ मच जाती है, अनेक निर्दाेष यात्रियों की मौत होजाती है। मुंबई में घटित घटना को ही ले लीजिए, जिसमें 23 यात्रियों की भगदड़ में कुचलकर दर्दनाक मौत हो गई। उनके परिवारों पर क्या बीत रही होगी? यदि ऐसा ही चलता रहा, तो देश का विकास नहीं, अस्तित्त्व समाप्त हो जायेगा। हर शासकीय विभाग में भ्रष्टाचार, पूरे देश में नशे का तांडव, पुलिस थानों में शाम होते ही शराब का दौर चलने लगता है। ऐसे की जा रही है देश की रक्षा, ऐसे किया जा रहा है, देश का विकास!
सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने कहा कि हर मनुष्य के अन्दर अलौकिक शक्तियां विद्यमान हैं। इस शरीर के अन्दर सात चक्र हैं, यदि इनमें से एक भी बाधित होजाए, तो व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता। इन्हें अधिक से अधिक चैतन्य बना लो। माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा ने हमें क्या नहीं दिया? उनके ऋण से कभी मुक्त नहीं हो पाओगे। कुण्डलिनी शक्ति के रूप में सात चक्र दिए हैं, हर चक्र में एक-एक लोक समाहित है। अपने आपको चैतन्य बनाने के लिए सात चक्रों को जाग्रत् करने के अलावा अन्य मार्ग नहीं है। इधर-उधर भटको नहीं, सब कुछ तुम्हारे शरीर के अन्दर विद्यमान है। सभी चक्रों के अलग-अलग स्वभाव हैं।
चक्रों की जागृति मनुष्य के गुण, कर्म व स्वभाव को प्रभावित करती है। मूलाधार चक्र पृथ्वी तत्त्व का प्रतीक है। इस चक्र में वीरता और आनन्दभाव का निवास है। यदि इसमें थोड़ा भी थिरकन देने में सफल हो गए, तो जीवन शौर्य व आनन्द से भर उठेगा। यह चक्र मांसपेशियों और अस्थितन्त्र, रीढ़ की हड्डी, साफ रक्त के निर्माण, अधिवृक्क ग्रन्थियों, शरीर के ऊतक और आन्तरिक अंगों को नियन्त्रित करता है।
स्वाधिष्ठान चक्र की जागृति से मनुष्य अपने में नवशक्ति के संचार का अनुभव करता है। यह जलतत्त्व का प्रतीक है। मणिपूर (नाभि) चक्र से साहस और उत्साह की मात्रा बढ़ जाती है और यह अग्रि तत्त्व का प्रतीक है। इसके जाग्रत् होने से मनोविकार स्वयंमेव घटते हैं और परमार्थ के कार्यों में अधिक रस मिलने लगता है। अनाहत चक्र, यह भाव संस्थान है और वायुतत्त्व का प्रतीक है। कलात्मक उमंगें, सहानुभुति एवं कोमल संवेदनाओं का उत्पादक स्रोत यही है। विवेकशीलता, आत्मीयता, उदारता व सेवा के तत्त्व अनाहत चक्र से ही उद्भव होते हैं।
इसके बाद कण्ठ में विशुद्ध चक्र है और यह आकाश तत्त्व का प्रतीक है। इसके जाग्रत् होने पर वाक्शक्ति आजाती है, दूसरे की भाषा को समझने की क्षमता आजाती है और इसमें बहिरंग स्वच्छता व आंतरिक पवित्रता के तत्त्व रहते हैं। दुर्गुणों के निराकरण की प्रेरणा और विषमता की स्थिति में संघर्ष की क्षमता यहीं से उत्पन्न होती है। इसके बाद आता है आज्ञा चक्र, इसे राजा चक्र भी कहते हैं। यह चक्र अन्य चक्रों को ऊपर की ओर आकर्षित करता है। इसके जाग्रत् होने पर निर्णय लेने की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है। यह वह पक्ष है कि आपका मन एकाग्र होने लगेगा, आप शांतिकुंज में विचरण करने लगेंगे और अन्दर से आनन्द प्रस्फुटित होने लगेगा। सातवां चक्र है सहस्रार, यह आनंदलोक मस्तिष्क के मध्यभाग में है। इसे जाग्रत् करके ब्रह्माण्डीय चेतना से सम्पर्क साधा जा सकता है।
आपश्री ने कहा कि छोटी-छोटी समस्याओं में मत उलझो, इस अतुल दैवीय सम्पदा को प्राप्त करने का प्रयास करो। अपने आपको उस भावभूमि में उतार दो कि बस पतन बहुत हो चुका, अब अपना पतन नहीं होने दूँगा। आपको तीन धाराएं दी गई हैं- भगवती मानव कल्याण संगठन, पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम और भारतीय शक्ति चेतना पार्टी। इनसे जुड़कर आप मानवता की सेवा कर सकते हैं, धर्म की रक्षा एवं राष्ट्ररक्षा के कर्त्तव्य का निर्वहन कर सकते हैं। वर्तमान में 90 प्रतिशत राजनीतिक पार्टियां राष्ट्रद्रोही हैं। समाज को नशा पिलाना, भ्रष्टाचार में रत रहना क्या राष्ट्रद्रोह नहीं है? देशवासियों को शराबी बनाकर विकास करने की बात की जा रही है। शराब बिकवाना क्या राष्ट्रद्रोह नहीं है?
परम पूज्य सद्गुरुदेव महाराज जी ने नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् व चेतनावान् समाज के निर्माण में लगे भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं को समाजकल्याण की दिशा में दो कदम और आगे बढ़ाने का निर्देश दिया है। आपने कहा कि जिनके पास अच्छे, उपयोगी पुराने कपड़े हैं और जिनका उपयोग आप नहीं कर रहे हो, 23 जनवरी तक आश्रम में लाकर जमा करवा सकते हैं। उन कपड़ों को गरीबों में देने की व्यवस्था की जायेगी। इस प्रक्रिया में नए कपड़े भी लाकर दोगे, तो उन्हें भी निःशुल्क वितरित कराया जायेगा।
गुरुवरश्री ने कार्यकर्ताओं को दूसरा दायित्त्व सौंपते हुए कहा कि जिन जिलों में शाखाएं चल रही हैं, संगठन में हज़ारों कार्यकर्ता हैं, वे 10 रुपए महीने जनकल्याण के लिए समर्पित करना शुरू कर दें। 11 लोगों की एक समिति बना दी जायेगी। उस फंड का उपयोग किन-किन गरीब बच्चों की स्कूल फीस जमा कराने के लिए किया जाए, गरीब बीमारों के इलाज के लिये कितना और कहां खर्च किया जाए, विशेष स्थिति और प्राकृतिक आपदा के समय पीड़ितों की सहायता करना आदि निर्णय समिति के द्वारा बहुमत के आधार पर लिया जायेगा। यह कार्य नए वर्ष 2018 के जनवरी माह से प्रारम्भ कर देना है। गरीबों के लिए स्थापित होने वाले कोष से अनेक जरूरतमन्दों की सहायता की जा सकती है।
10 हज़ार से अधिक नए भक्तों ने ली गुरुदीक्षा
शिविर के तृतीय व अन्तिम दिवस का प्रथम सत्र। दिव्य मंचस्थल पर प्रातः 07ः30 बजे से गुरुदीक्षा कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। इस अवसर पर 10 हज़ार से अधिक नये भक्तों ने गुरुदीक्षा प्राप्त करके अपने जीवन में परिवर्तन का नया आयाम जोड़ा। दीक्षा प्रदान करने से पूर्व भौतिकतावाद से ग्रसित मनुष्यों को आध्यात्मिक राह पर अग्रसर करने के लिये शिष्य रूप में हृदय में धारण करके उन्हें आध्यात्मिक ज्ञानामृत का पान कराते हुये ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज कहते हैं कि-
विजयादशमी पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व है। इन क्षणों में आप संकल्प लेकर आजीवन अच्छाई के पथ पर चल सकते हैं। सौभाग्यशाली हैं वे शिष्य जो विजयादशमी के पावन पर्व पर दीक्षा प्राप्त करने जा रहे हैं। गुरु और शिष्य का रिश्ता अटूट होता है। परमसत्ता की कृपा से इस पर्व पर आपको संस्कार प्राप्त हो रहे हैं, अब आप मेरे होने जा रहे हैं, गुरु की विचारधारा को अपनाने जा रहे हैं।
दीक्षा प्राप्त कर लेना ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि गुरु की विचारधारा को अपनाकर उसके अनुरूप चलना महत्त्वपूर्ण होता है। गुरु की विचारधारा पर चलने से आपका पतन कभी नहीं होगा। जिन क्षणों में मनुष्य दीक्षा लेता है, उन्हीं क्षणों से उसे नवीनजीवन प्राप्त होता है। आप लोगों को सजग होजाना है कि अब आप नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जियेंगे। आपकी यही सबसे बड़ी साधना होगी। जो बीत गया उसे भूल जाओ, वर्तमान आपके सामने है इसे अपना लो, भटकाव रुक जायेगा।
ऋषिवर ने कहा कि हमारा आज्ञा चक्र दूषिततरंगों को रोकने व सात्त्विकतरंगों को ग्रहण करने का केन्द्र होता है, अतः इस पर कुंकुम का तिलक लगाकर रखें, सप्ताह में गुरुवार का व्रत उत्तम रहेगा, इन्छानुरूप कृष्णपक्ष की अष्टमी का भी व्रत रख सकते हैं। व्रत दिवस पर दिन में हल्का फलाहार करें व शाम को सात्त्विक भोजन ग्रहण कर सकते हैं। जिन्हें शुगर आदि की बीमारी है, वे क्षमतानुरूप र्व्रत रखें। महत्त्वपूर्ण है आत्मकल्याण और परोपकार की भावना।
चिन्तन के पश्चात् परम पूज्य गुरुवरश्री ने कहा कि मैं शक्तिपात के माध्यम से सभी को अपनी चेतना से आबद्ध करते हुये जो जिस अवस्था में है, उसे स्वीकार करता हूँ। आपश्री ने सहायक शक्तियों हनुमान जी, भैरव जी एवं गणेश जी के मंत्र के साथ चेतनामंत्र ‘ऊँ जगदम्बिके दुर्गायै नमः’ एवं गुरुमन्त्र ‘ऊँ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः’ प्रदान किया। अंत में सभी नये दीक्षाप्राप्त शिष्यों ने सद्गुरुदेव भगवान् को नमन करते हुये निःशुल्क शक्तिजल प्राप्त करते हुये गुरुदीक्षा प्रपत्र भरकर प्रवचनस्थल व्यवस्था में लगे भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं के पास जमा कराया।
शिविर के तृतीय व अंतिम दिवस का द्वितीय सत्र
सभी की अन्तर्भावना को जानने वाले ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज अपने चेतनाअंशों, ‘माँ’ के भक्तों और उपस्थित जिज्ञासुओं को आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहते हैं कि-
यह जो यात्रा चल रही है, अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध, पतन के विरुद्ध है। आज तक हर युद्ध अस्त्र-शस्त्र से लड़े गए हैं, लेकिन अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध पहला युद्ध ऐसा लड़ा जा रहा है, जिसमें किसी भी अस्त्र-शस्त्र को उपयोग में नहीं लिया गया है। हमारे अस्त्र-शस्त्र हैं- माता भगवती की कृपा, कुंकुम का तिलक, रक्षाकवच, रक्षारुमाल, शक्तिदण्डध्वज, शंख और नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् व चेतनवान् जीवन। इन्हीं से अन्यायी-अधर्मियों को हम धूल चटाने में सफल रहेंगे। मेरे शिष्य आध्यात्मिक शक्ति, पवित्र विचार, माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की कृपा और गुरु के आशीर्वाद के बल पर नशेडिय़ों, अधर्मियों में बदलाव ला रहे हैं। आज भगवती मानव कल्याण संगठन जातीयता, साम्प्रदायिकता, छुआछूत व अन्य सभी सामाजिक कुरीतियों से काफी ऊपर उठ चुका है। जबकि आज तक कोई भी संस्था इस दिशा में सारगर्भित कार्य नहीं कर सकी है।
देश के प्रधान सेवक कहते हैं कि मुझे माँ गंगा ने बुलाया है, जैसे कि कोई दूसरा भागीरथी आ गया हो। अरबों खर्चने के बाद भी एक इंच गंगा की सफाई नहीं हुई। इस कार्य के लिए मंत्री उमाभारती जी को लगाया गया था, उन्हें भी बदल दिया गया। आखिर, तीन साल में क्या हुआ, प्रधानसेवक ने क्या किया?
जिस दिन अपराधों में कमी आ जायेगी, गरीब वर्ग टैक्स की मार से दूर हो जायेगा, मंहगाई का स्तर नीचे हो जायेगा और रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार पर विराम् लगना शुरू हो जाएगा, तब मानना कि अब शोषक नहीं पोषक सरकार आ गई है और किसी भी प्रकार की चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। लेकिन भ्रष्टाचारियों व मिलावटखोरों को बराबर संरक्षण दिया जा रहा है। हज़ारों-हज़ार क्विंटल, लाखों क्विंटल शुद्ध देशी घी बेचा जा रहा है। कहां से आ रहा है? जिन्हें जेल की सीखचों के पीछे होना चाहिए, वे खुलेआम मिलावट का धंधा चला रहे हैं। ‘कच्ची घानी का तेल’ अच्छे-अच्छे फेस क्रीम, सब कुछ चल रहा है, कोई कुछ बोलने वाला नहीं। कालेधन के अंबार पर खड़े हैं और कहते हैं 100 प्रतिशत चेरिटी में जा रहा है। चारों तरफ अनीति-अन्याय-अधर्म का बाजार गर्म है। गोरक्षा के नाम पर इन्सानों की हत्या, बलात्कार और नशे का तांडव। कोई भी सच्चा गोसेवक किसी की हत्या कर ही नहीं सकता। धर्म के नाम पर, गोसेवा के नाम पर हत्याएं, इससे बड़ा जघन्य अपराध और कुछ हो ही नहीं सकता।
महिला हों या पुरुष, सभी में एक समान आत्मा बैठी हुई है। अधर्मी-अन्यायी कहते हैं कि महिलाएं धर्मग्रन्थ का अध्ययन नहीं कर सकतीं। अरे मूर्खों, धर्म यदि टिका हुआ है, तो नारियों के कारण। नारियों को सम्मान दो, विकारों से दूर हटो। मैं एक बार फिर विश्वअध्यात्मजगत् को ससम्मान चुनौती देता हूँ कि एक बार आकर मेरे तपबल का सामना करो। हाँ, मैंने माता भगवती के दर्शन प्राप्त किए हैं, अपने सूक्ष्म शरीर को जाग्रत् किया है, ध्यान-समाधि की अवस्था को प्राप्त कर चुका हूँ। शंकराचार्य यदि वास्तव में धर्म की रक्षा करना चाहते हैं, तो एक बार समस्त धर्मगुरुओं, प्रवचनकर्ताओं, योगाचार्यों को एकत्रित किया जाए, उस महासम्मेलन में वैज्ञानिक, पत्रकार, वकील व बुद्धिजीवी आदि भी उपस्थित हों, जिससे सत्यता का आकलन हो सके। एक ओर सभी धर्मप्रमुख हो जाएं और एक ओर मुझे कर दिया जाए और कोई दो कार्य दे दिये जाएं। फिर देखिए कि वे कार्य सभी मिलकर कर पाते हैं या फिर अकेले मैं। आज कुकरमुत्ते की तरह वेशधारी साधु-संत-संन्यासी, मठाधीश, महामंडलेश्वर फैले हुए हैं, जो कि धर्म को नष्ट कर रहे हैं। नशेड़ी, गंजेड़ी, शराबी, व्यभिचारी, ये हमारे धर्म की रक्षा क्या खा$क करेंगे। फिर भी ये पूजे जाते हैं, इसे रोकना होगा। समाज को वास्तविक स्थिति का पता तब तक नहीं चल सकेगा, जब तक कि सभी का शक्ति परीक्षण नहीं होगा। साधक को ही सिद्धियां प्राप्त होती हैं, पात्र को ही फल प्राप्त होता है।
योगभारती विवाह पद्धति से परिणय सूत्र में बंधे 25 नवयुगल
शिविर के तृतीय व अन्तिम दिवस के द्वितीय सत्र में विजयादशमी को अपराह्न 2ः30 बजे युग चेतना पुरुष सदगुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज की पावन उपस्थिति में योगभारती विवाह पद्धति से 25 नवयुगलों का विवाह सम्पन्न कराया गया। सभी नवयुगलों ने सर्वप्रथम दाहिने हाथ में संकल्प सामग्री लेकर माता भगवती, परम पूज्य गुरुवर, उपस्थित जनसमुदाय एवं पंचतत्त्वों तथा दृश्य-अदृश्य जगत् की शक्तियों को साक्षी मानकर एक-दूसरे को पति-पत्नी के रूप में वरण किया। पश्चात् एक दूसरे को माल्यार्पण करते हुये सभी ने गठबन्धन, सिन्दूर समर्पण रस्म एवं मंगलसूत्र धारण करने का क्रम पूर्ण किया। तदोपरान्त, नवयुगलों ने पृथ्वी, जल, अग्रि, आकाश व वायुतत्त्व एवं दृश्य तथा अदृश्य जगत् की समस्त स्थापित शक्तियों को साक्षी मानकर सात फेरे लगाये। अत्यन्त ही मनोरम क्षण थे जब स्वामी सच्चिदानंदस्वरूप सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज की उपस्थिति में विवाह सम्पन्न हो रहा था। कितने सौभाग्यशाली हैं वे युगल, जिन्होंने युग चेतना पुरुष की छत्रछाया व आशीर्वाद तले दाम्पत्य जीवन में कदम रखा।
इस पावन बेला में सद्गुरुदेव महाराज जी ने कहा कि विजयादशमी पर्व अति महत्त्वपूर्ण पर्व होता है। इस दिवस का जितना महत्त्व है, उतना किसी का नहीं, क्योंकि इसमें नवरात्र के नौ दिनों की ऊर्जा जुड़ी होती है। इस पर्व पर योगभारती विवाह पद्धति से जिन जोड़ों का विवाह हो रहा है, वे अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं। योगभारती विवाह पद्धति से यह विवाह कार्यक्रम समाज की कुरीतियों को दूर करने के लिए सम्पन्न कराने का निर्णय लिया गया है। आज की विकृत मानसिकता और दहेजप्रथा के कारण बेटे-बेटियों की शादियां दुष्कर हो गई हैं। बराती अपने आपको भगवान् की तरह पुजवाना चाहते हैं और लड़की पक्ष को दासतुल्य समझा जाता है। अशखीन गानें, कानफोड़ संगीत, फूहड़ डांस, छोटी-छोटी बातों पर झगड़े, नाना प्रकार की गलत परम्पराओं को देखते हुए इस विवाह पद्धति का सृजन किया गया है।
आपश्री ने कहा कि शादियां इतनी खर्चीली हो गई हैं कि ऐसी स्थिति में समाज के लिए योगभारती विवाह पद्धति अत्यन्त उपयोगी है।
योगभारती पद्धति से विवाह बन्धन में बंधे नवयुगलों के नाम इस प्रकार हैं- भरत दुबे संग चेतना (अंजली) मिश्रा, विश्वजीत सिंह संग प्राची सिंह, कृष्णा तिवारी संग नेहा अवस्थी, विक्रम त्रिपाठी संग आकांक्षा त्रिपाठी, रामजी मिश्रा संग प्रिन्शी (शानू), लोकेन्द्र सिंह संग शारदा सिंह, बृजेश गुप्ता संग नीलम गुप्ता, सन्दीप विश्वकर्मा संग सुनीता विश्वकर्मा, सुनील आर्य संग पूनम देवी, अशोक कुमार राजपूत संग सुनीता राजपूत, प्रवीण कुमार मोगरे संग ममता पनिका, सुनील कुमार पटेल संग प्रिया पटेल, उपेन्द्र शाह संग उर्वशी साहू, प्रकाश सींग संग लक्ष्मीबाई, भगवत यादव संग वैजन्ती यादव, अंकित कुमार कुशवाहा संग अलका मौर्या, राकेश पाल संग नैशू मौर्या, रत्नेश राय संग सन्तोषी राय, पंकज विश्वकर्मा संग कोमल विश्वकर्मा, मनमोहन कुशवाहा संग रामबाई कुशवाहा, दीपक भंडारी संग रेशमा, शिवम शुक्ला संग शक्ति सिंह, खुमेश्वर साहू संग नीलम साहू, जाहर पाल संग सुनीता पाल व कृष्ण कुमार संग सुषमा।
सिद्धाश्रमरत्न प्रमाणपत्र
जनजागरण में अग्रणी व पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में सेवारत जीवनदानी व परिश्रमी पांच शिष्यों को सद्गुरुदेव जी महाराज ने अपने करकमलों से सिद्धाश्रमरत्न प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया। सम्मानित होने का सौभाग्य सिद्धाश्रम निवासी- सौरभ द्विवेदी जी, सन्तोष मिश्र जी, शैलेन्द्र त्रिपाठी जी, नारेन्द्र कुमार त्रिपाठी जी और रमइया सिंह जी को प्राप्त हुआ। इनसे पहले शक्तिस्वरूपा बहन पूजा दीदी जी, सन्ध्या दीदी जी, ज्योति दीदी जी सहित आशीष शुक्ला जी, बृजपाल सिंह चौहान जी, प्रमोद तिवारी जी, इन्द्रपाल आहूजा जी, अजय योगभारती जी, रमेश प्रसाद शुक्ला जी व सुनीता सिंह चौहान जी को सिद्धाश्रमरत्न प्रमाणपत्र सद्गुरुदेव जी महाराज के द्वारा प्रदान किया जा चुका है।
श्रमशक्ति पुरस्कार
परम पूज्य गुरुवरश्री के समक्ष शक्तिस्वरूपा बहनों ने परिश्रमी श्रमिक कार्यकर्ताओं को 11-11 हज़ार रुपए के चेक, एक-एक शाल, बैग व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। सम्मानित होने का सौभाग्य सागर ज़िले के ग्राम दौलतपुर निवासी- गौरव विश्वकर्मा जी, सिद्धाश्रम निवासी-शिवलाल रैकवार जी व भूपेन्द्र कुशवाहा जी को प्राप्त हुआ।
तीन टीमप्रमुख हुए पुरस्कृत
देशस्तर पर दिव्य अनुष्ठानों के माध्यम से जन-जन में चेतना का संचार करने में अग्रणी रहे तीन टीम प्रमुखों को शक्तिस्वरूपा बहनों ने क्रमशः 21 हज़ार रुपए, 11 हज़ार रुपए, 05 हज़ार रुपए के चेक व एक-एक बैग, शंख और वस्त्र देकर सम्मानित किया। सम्मानित होने का सौभाग्य राजेश त्रिपाठी जी, निवासी- ग्राम सैदपुर, तहसील-खागा, ज़िला-फतेहपुर (उ.प्र.), कु. सोनी सिंह जी, निवासी- ग्राम व पोस्ट-शिव, तहसील-बबेरू, ज़िला-बाँदा (उ.प्र.) व कु. संगीता कुशवाहा जी, निवासी- ग्राम व पोस्ट-कबरई, ज़िला-महोबा (उ.प्र.) को प्राप्त हुआ।
राजेश त्रिपाठी जी, सोनी सिंह जी व संगीता कुशवाहा जी के द्वारा वर्ष-2016 में क्रमशः 24 घंटे व 05 घंटे के श्री दुर्गाचालीसा पाठ व आरतीक्रम 84, 54, 42: 10, 79, 85: 50, 45, 54 करवाए गए।
शिविर व्यवस्था में लगे रहे हजारों कार्यकर्ता
‘योग-ध्यान-साधना’ शिविर के वृहद कार्यक्रम को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में भगवती मानव कल्याण संगठन के पांच हज़ार से भी अधिक सक्रिय समर्पित कार्यकर्ताओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। संगठन के सदस्यों ने एक महीने पूर्व से अपने-अपने क्षेत्रों में व्यापक प्रचार-प्रसार किया। पश्चात् उन्होंने नवरात्र पर्व के एक सप्ताह पूर्व से पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम पहुंचकर लाखों श्रद्धालुओं के ठहरने हेतु दिन-रात अथक परिश्रम करके आवासीय व्यवस्था प्रदान की व शिविर में शांति व्यवस्था कायमी के लिये सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने अग्रणी भूमिका निभाई। भण्डारा व्यवस्था, प्रवचन स्थल व्यवस्था, निःशुल्क शक्तिजल वितरण स्टॉल, जनसम्पर्क कार्यालय, खोया-पाया विभाग कार्यालय, निःशुल्क प्राथमिक चिकित्सा, प्रसाद वितरण कार्य, मूलध्वज व अखण्ड श्री दुर्गाचालीसा पाठ भवन तथा शिविर पण्डाल में प्रातःकालीन व सायंकालीन साधनाक्रम व आरती सम्पन्न कराने हेतु हज़ारों कार्यकर्ता अनुशासित ढंग़ से लगे रहे। इस तरह परमसत्ता व गुरुवरश्री की कृपा से जन-जन में चेतना का संचार करने व विश्वशांति के लिये आयोजित यह वृहद कार्यक्रम शालीनतापूर्वक सम्पन्न हुआ। व्यवस्था कार्य में नेपाल से आये संगठन के सैकड़ों कार्यकर्ताओं का भी सराहनीय योगदान रहा।
लाखों भक्तों ने ‘माँ’ अन्नपूर्णा भण्डारे में ग्रहण किया खिचड़ी (भोजन) प्रसाद
शारदीय नवरात्र पर्व पर आयोजित शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम पहुंचने वाले लाखों भक्तों के लिये सुबह-शाम निःशुल्क भोजन प्रसाद की विशेष व्यवस्था माँ अन्नपूर्णा भण्डारे में रही। गुरुवरश्री के आशीर्वाद से विशाल परिसर में भण्डारे की व्यवस्था की गई थी। सभी माँ-भक्तों ने सुबह-शाम दोनों समय भोजनालय परिसर में पंक्तिबद्ध रूप से बैठकर तृप्तिपूर्ण खिचड़ी (भोजन) प्रसाद ग्रहण किया। ज्ञातव्य है कि आश्रम में संचालित निःशुल्क अन्नपूर्णा भोजनालय की महिमा अपरम्पार है, चाहे कितने ही भक्त पहुंच जायें, भोजन प्रसाद घटने का नाम नहीं लेता। इस वृहद व अति महत्त्वपूर्ण व्यवस्था की जिम्मेदारी का निर्वहन भगवती मानव कल्याण संगठन के हज़ारों परिश्रमी समर्पित कार्यकर्ताओं के द्वारा दिन-रात अथक परिश्रम से पूर्ण किया गया।
स्वामी जी की समाधि पर पहुंचे श्रद्धालुजन
इस पावन अवसर पर पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम पहुंचने वाले सभी श्रद्धालुजन समधिन नदी के तट पर स्थित गुरुवरश्री के पिताश्री पूज्य दण्डी संन्यासी स्वामी रामप्रसाद आश्रम जी महाराज की समाधि स्थल पर जाना नहीं भूले और सभी ने वहां क्रमबद्ध रूप से पहुंचकर स्वामी जी की समाधि को नमन कर परिक्रमा की।