शक्ति चेतना जनजागरण शिविर, सिद्धाश्रम
आज इस सिद्धाश्रम पर, इस तपोभूमि पर, इस पवित्र स्थल पर, मैं यहाँ पर उपस्थित समस्त भक्तों को अपने हृदय में धारण करता हुआ माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का पूर्ण आशीर्वाद समर्पित करता हूँ।
सौभाग्य के क्षण हैं जो एक-एक पल की ऊर्जा आप अर्जित करते जा रहे हैं। यह आपकी वह पूँजी है जिसकी तुलना किसी अन्य पूँजी से नहीं की जा सकती। आप स्वतः अनुभव करें कि आपका गुरु उसी पूँजी को लेकर आपके समक्ष उपस्थित होता है। आप वह यात्रा तय कर रहे हैं जिस यात्रा को आपके गुरु ने तय किया है। आपको इस विषय में आंकलन केवल गुरु के विचारों, चिन्तनों और सामर्थ्य से करना है कि आपके गुरु के पास माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा की जो आलौकिक शक्ति है और माँ के नाम की शक्ति है, क्या उससे बढ़कर कोई पूँजी है? माँ और गुरु के नाम पर जो भक्त एक पल में कार्य कर गुजरता है, क्या वह अन्य किसी पूँजी का उपयोग करके किया जा सकता है?
आज की घटना है। सेंगर, जिससे आप पूर्णतया परिचित होंगे, उसका शरीर पूरी तरह अकड़ चुका था और रास्ते में गिरा हुआ पड़ा था। भक्तों ने उसे पहचाना और पूर्णतया अकड़े हुये उसके शरीर को देखकर ये लोग व्याकुल हो गये कि वह बचेगा या नहीं और क्या परिस्थिति होगी और उसे लेकर मेरे कक्ष के पास पहुँचे। उस समय मैं यज्ञस्थली से पूजन करके पहुँचा था और उसकी स्थिति को देखकर मैंने मात्र अपने अंगूठे से उसके आज्ञाचक्र पर स्पर्श किया और एक बार उसका नाम लेकर पुकारा और वह चैतन्य होकर तुरन्त बैठ गया।
मैं आप लोगों को उस दिशा में ले चल रहा हूँ, जिन भक्तों ने महाशक्ति यज्ञों के पूर्व में प्रवेश प्राप्त किया था। आठ महाशक्ति यज्ञों में जो आठवें महाशक्ति यज्ञ में उपस्थित थे, उन्हें मैंने आशीर्वाद दिया था कि जब कभी आपके सामने ऐसी कोई विपरीत घटना घटित हो जाए तो उस समय अगर कोई भक्त उस यज्ञस्थली का चिन्तन करके अपने अंगूठे से किसी के आज्ञाचक्र को स्पर्श करेगा तो माँ का और मेरा आशीर्वाद प्राप्त होगा और उसे चैतन्यता प्राप्त होगी। अनेकों भक्तों ने प्रयास किया और उन्हें पूर्ण सफलता मिली।
इस दिव्यस्थली पर जिस अनुष्ठान के बीच हम और आप पल-पल गुजार रहे हैं, वह ऐसा दिव्य अनुष्ठान है जहाँ माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का श्री दुर्गा चालीसा के रूप में जो अखण्ड पाठ सतत् चल रहा है, यह ब्यौहारी क्षेत्र के लिए सौभाग्य की बात है, भारत देश के लिए सौभाग्य की बात है, पूरे विश्व के लिए सौभाग्य की बात है। चूँकि इस अनुष्ठान से पूरे विश्व की सुख-शान्ति का मेरा चिन्तन है। हर पल माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा के चरणों में निवेदन है कि जिस तरह अभी रामखेलावन शुक्ला जी ने कहा कि जब गरुण को संशय हुआ, तब उन्हें कागभुशुण्ड के पास भेजा गया जहाँ सतत् रामचरितमानस का गुणगान होता रहता है, और उसी प्रकार समाज के जिस वातावरण में आप लोग जी रहे हैं जिस संशय के वातावरण में आप लोग एक-एक पल गुजार रहे हैं, वहाँ पर आप लोगों पर कभी-कभी गुरु के प्रति संशय उत्पन्न हो जाता है, उस संशय को काटने के लिए मैंने आप लोगों को एक मार्ग दिया है चूँकि पूर्व तक शक्ति चेतना जनजागरण शिविर चलते रहे, मैंने आप लोगों को चेतना दी, आप लोगों को आत्मचेतना देकर अनेकों भक्तों को अनुभूतियां दीं। आज जो अनुष्ठान आपके बीच चल रहा है, आपकी माँ का गुणगान है, आपके गुरु का गुणगान नहीं है। मगर मैंने कहा है कि यदि तुम माँ की छवि में देखना चाहोगे तो अपने गुरु की छवि पाओगे और अगर गुरु के शरीर में देखना चाहोगे तो माँ की छवि नजर आयेगी, मगर उसके लिए आपको कुछ प्रयास करना होगा।
माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का यह जो दिव्य अनुष्ठान चल रहा है, आप यहाँ पर बैठेंगे, चिन्तन करेंगे तो यह आपके संशयों को अवश्य दूर करता चला जायेगा। जब आप उस वातावरण में बैठेंगे, जिस वातावरण को मैंने अपने चिन्तन से अभिमन्त्रित किया है, अपने चिन्तन में लिया है, तो आपको लाभ प्राप्त होगा। ये चारों तरफ जो माँ के ध्वज फहरा रहे हैं, इस दिव्यस्थली के इस निर्धारित वातावरण को मैंने अपनी चेतना में लिया है अपने चिन्तन में लिया है।
अनेकों भक्त पूछते हैं कि ये ध्वज किसलिए लगे हैं? इन ध्वजों से मैंने आश्रम के इतने क्षेत्रफल को गहराई से अपने चिन्तन में बांधा है कि जो भी इस क्षेत्रफल के अन्दर प्रवेश करे, माँ की कृपा का पात्र बने। आप लोगों को चेतना देने के लिए आपका गुरु किन तकलीफों से अपने शरीर को गुजारता है, ये आप कभी मेरे नजदीक रहने वाले शिष्यों से जानकारी प्राप्त कर लिया करें। मैंने कहा है कि आपका गुरु जब चेतनावान होकर बैठ जाता है, दुनिया की कोई बीमारी, कोई भी तकलीफ उसे विचलित नहीं कर सकती। मगर शिष्यों की सुख-सुविधाओं के लिए, शिष्यों की सुख-शान्ति के लिए, शिष्यों की व्याधियों को हरने के लिए हर उन दुःख-तकलीफों को अपने शरीर से गुजारता हूँ, जिसको आप लोग बर्दाश्त भी नहीं कर सकते। जिस दिन भूमि पूजन के दूसरे दिन आश्रम आया था, कुछ शिष्यों ने देखा था कि मेरे नेत्र अंगारों की तरह लाल हो चुके थे, चूँकि मैंने कहा था कि मैं 24 घन्टे के अन्दर इस स्थान को पूर्ण चैतन्य बनाने का प्रयास कर रहा हूँ। यह स्थान उसी प्रकार चैतन्य हुआ है जिस तरह मैंने कहा कि मैं आप लोगों को अपने हृदय में धारण करता हूँ, उसी तरह मैं इस स्थान को अपने हृदय में धारण करता हूँ। उस हृदय में जिसमें माँ का हर पल वास रहता है और जहाँ माँ का वास रहता है, वह अपवित्र हो ही नहीं सकता। उस स्थान पर कोई आत्मा भटक ही नहीं सकती। इस स्थान पर आने के बाद आप लोगों को अन्य किन्हीं तीर्थ स्थानों में जाने की आवश्यकता भी नहीं है। ऐसा नहीं है कि मैं उन तीर्थ स्थानों को न्यून समझ रहा हूँ, ऐसी कोई बात नहीं है, बल्कि मैं सदैव उनको नमन करता हूँ मगर जिस स्थान पर माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का आवाहन किया जा रहा है, वहाँ पर समस्त तीर्थ स्वतः उपस्थित होने के लिए लालायित रहते हैं। यह दिव्य स्थली तपोभूमि युगों-युगों तक याद की जाती रहेगी।
श्री दुर्गा चालीसा पाठ के अखण्ड आयोजन के इस दिव्य अनुष्ठान को प्रारम्भ करने के पहले भी मेरे ऊपर एक घातक प्रयोग एक स्थान से कराया गया, जिसे करना किसी भी साधक के लिए उचित नहीं होता, मगर समाज में कुछ तुच्छ चेतनाएं ऐसी भी होती हैं जिनके पास अघोर पंथ के माध्यम से कुछ साधनाएं प्राप्त हो जाती हैं। उन साधनाओं का उपयोग वो केवल समाज के अहित में करती रहती हैं। वही एक प्रयोग मेरे ऊपर किया गया। चौहान को अवगत है और कुछ शिष्यों ने भी शायद देखा होगा। जिस तरह मैं माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का एक रजकण मात्र हूँ, उनको हर पल नमन करता हूँ तो उनकी समस्त दिव्य चेतनाएं वो किसी रूप में भी हों, उनका स्वागत करता हूँ। वो चाहे मेरा अहित करने के लिए ही क्यों न आ रही हों। उस प्रयोग को मैंने अपने शरीर में लिया। कुछ प्रभाव अवश्य पड़ा। मेरा एक अंग एकपक्षीय पूर्णतया प्रभावित हो चुका था। जितनी तकलीफ में आप दो कदम नहीं चल सकते, उसी तकलीफ को लिए हुये आप लोगों के बीच सतत् आप लोगों की व्यवस्थाओं पर रत रहा हूँ। उस तकलीफ को मेरे नजदीक रहने वाले एक दो शिष्यों ने देखा था। मैं इसलिए नहीं कह रहा कि आप इस विचारधारा से समझें कि आपका गुरु आपके लिए बहुत कुछ कर रहा है, मगर मैं वह कह रहा हूँ जो कुछ किया जा रहा है, यदि उसे समझना है तो आप लोगों को पूर्ण निष्ठावान बनना पड़ेगा।
यदि गुरु की छवि में माँ की छवि आप देखना चाहते हो तो आपको पूर्ण निष्ठावान बनना ही होगा। जब तक आप अपने अंदर के मन के संशय को त्यागोगे नहीं, तब तक आप उस स्वरूप के दर्शन प्राप्त नहीं कर सकते जो कुछ भक्त प्राप्त कर रहे हैं। वह चाहे आजूराम जैसवाल हों, चाहे ज्वाला जी हों या फिर बृजपाल चौहान जो नजदीक रहने वाला अनेकों अनुभूतियों को प्राप्त करता रहता है। अनेकों-अनेकों ऐसे भक्त हैं जिनको मैंने दिव्य चेतना दी है और जिन चिन्तनों को मैंने जहाँ विराम देना चाहा, वहाँ विराम दिया। जब वे उन अनुभूतियों को देखने से घबराने लगते थे तो उनको मैंने सही दिशा दी। यह कोई भी भक्त प्राप्त कर सकता है मगर आवश्यकता है अटूट निष्ठा की। जिस तरह गुरु के अंदर जो सामर्थ्य है, वह माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की सामर्थ्य है और इस सामर्थ्य को आप प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको अपने हृदय में गुरु को बसाना होगा, गुरु को बिठाना होगा। पूर्ण निष्ठा के साथ जब आप बिठा लोगे तो आपके अंदर एक अलौकिक चेतना जाग्रत होने लगेगी। कुण्डलिनी चेतना जाग्रत करने के लिए केवल गुरु की चेतना को अगर अपने हृदय में स्थापित कर लिया जाए तो पूरी कुण्डलिनी झंकृत हो जायेगी, पूरी कुण्डलिनी और सातों चक्रों में झंकार मच जाती है और दिव्य चेतना जाग्रत हो कर अलौकिक अनुभूतियों को देती हुयी अलौकिक कार्यप्रणाली की ओर अग्रसर कर देती है। आवश्यकता है उस चेतना को प्राप्त करने के मार्ग पर बढ़ने की।
आपका गुरु इस स्थान पर अपनी चेतना को पहले स्थापित कर चुका है तब माँ की चेतना का आवाहन करेगा। अतः आपको इस दिव्य स्थली का, मूल ध्वज का सदैव स्मरण करना होगा। जब भी आप गुरु का स्मरण करना चाहें तो इस दिव्य स्थली का एक बार स्मरण अवश्य करें, आपको गुरु का स्मरण करने में सहयोग मिलेगा। आपका गुरु इस दिव्य स्थली के चिन्तन से जुड़ा है तथा यह जो दिव्य अनुष्ठान प्रारम्भ हुआ है आप जब चाहें, आपके पास जब समय हो, यहाँ आकर इसमें अधिक से अधिक बैठकर पाठ करें। आपके अन्दर स्वाभाविक चेतना जाग्रत होती चली जायेगी। कोई आवश्यक नहीं कि मैं आप लोगों के पास बैठकर आपको क्रियायें सिखाऊँ, मेरी सहयोगी चेतनाएं सतत् अपना कार्य करती रहती हैं। आप लोग भी उन्हीं दिव्य अनुभूतियों को प्राप्त कर सकते हैं।
यह जो दिव्य अनुष्ठान प्रारम्भ हुआ है, हो सकता है इसमें उतार-चढ़ाव आये समय और परिस्थितियों के आधार पर, मगर यह सतत् अखण्ड चलता रहेगा। आज जो क्षण आप प्राप्त कर सकते हैं, हो सकता है आने वाले भविष्य में वर्षों पहले एक-एक पाठ करने के लिए अनुमति प्राप्त करना पड़े, चूँकि ये परिस्थितियाँ आयेंगी, क्योंकि मैं देख रहा हूँ भविष्य के उन क्षणों को जिन्हें कभी आप स्वतः देखेंगे कि आने वाले समय में यही एक श्री दुर्गा चालीसा पाठ का अखण्ड अनुष्ठान विश्व के चिन्तन को खींचेगा, आकर्षित करेगा और हर मनुष्य लालायित होगा कि इस सिद्धाश्रम की दिव्य स्थली पर बैठकर माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का एक श्री दुर्गा चालीसा पाठ करने का सौभाग्य प्राप्त हो।
आपका गुरु आपके सम्मुख अनेक वर्षों से जो कहता चला आया है, आपके सामने वही घटता चला आया है। पूर्व के वर्षों को देखें, समझें और आज जो कहा जा रहा है, इस पर भक्त अमल नहीं करेंगे तो मेरे जीवन के स्थूल शरीर की यात्रा तो सतत् तय हो रही है, इसका लाभ आप कितना प्राप्त कर सकते हैं, यह आपके ऊपर है? मानव जीवन जो देवताओं के लिए दुर्लभ है। देवताओं को वह दुर्लभ क्यों है? मात्र इसलिए क्योंकि केवल मनुष्य योनि ही एक ऐसी योनि है जिस योनि को प्राप्त करके मनुष्य मुक्ति का मार्ग प्राप्त कर सकता है, अपनी आत्मा को परमात्मा से मिला सकता है, जबकि अन्य किसी योनि में यह संभव नहीं। अनेकों लोग कहते हैं कि केवल मनुष्य में ही बुद्धि होती है, मनुष्य में ही विचारशक्ति होती है। विचार, वासना, तृष्णा, मोह, ममता, घृणा सभी में होती है। उस सामर्थ्य को आपको समझना है। केवल एक यही योनि है जिस योनि में आप अपनी आत्मा को परमात्मा से मिला सकते हैं, आप उस सिद्धाश्रम की दिव्य स्थली को प्राप्त कर सकते हैं जिसको प्राप्त करने के लिए देवता भी तरसते हैं। जिसे आप लोगों ने पढ़ा होगा। भगवान श्रीकृष्ण ने अनेकों बार कहा है कि मैं तुमको अपने परमधाम भेज रहा हूँ। श्रीराम ने अनेकों बार मृत्यु के अन्तिम क्षणों पर पात्र लोगों को कहा है कि मैं तुम्हें अपने दिव्य धाम भेज रहा हूँ। वह दिव्यस्थली परमधाम सिद्धाश्रम है और उसी सिद्धाश्रम को प्राप्त करने के लिए समाज को मैंने एक मार्ग दिया है। उसकी एक झलक, वहाँ का एक कण, इस दिव्य स्थली में स्थापित करने का प्रयास किया है और यदि इस काल में आने वाले हजारों-हजारों वर्षों में यदि कोई मानव जीव उस सिद्धाश्रम को प्राप्त करेगा तो उसे एक बार इस धरती पर माथा रगड़ने आना ही होगा। ?
आप स्वतः देखेंगे कि इस दिव्य स्थली पर अनेकों साधु-संत-सन्यासी, अनेकों ऋषि भ्रमण करते हुये नजर आयेंगे। आपने काशी, मथुरा को देखा होगा। आपका गुरु काशी, मथुरा इस ब्यौहारी क्षेत्र में बनाकर रहेगा और आने वाले समय में आप देखते चले जायेंगे, चूँकि जब माँ की ममता का सागर लहराता है तो सबको बहाकर अपनी गोद में समेट लेता है और इस स्थान पर माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का सतत् आवाहन, चिन्तन किया जा रहा है।
मैंने कहा है कि प्राण-प्रतिष्ठा करना कोई हंसी का खेल नहीं है कि देवी की मूर्ति रखी, दस मंत्रों का उच्चारण कराया और देवी का आवाहन हो गया। धनवान लाखों मन्दिरों को बनवा लें, मगर कभी सत्य की स्थापना नहीं कर सकते। स्थापना किस प्रकार होती है, आप इस जीवन की इस सिद्धाश्रम की यात्रा में देखें? माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का आवाहन करने के लिए माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का यह रजकण हर पल उनसे निवेदन और चिन्तन करता हुआ अपने इस जीवन का रोम-रोम जलाने के लिए हर पल तत्पर रहता है। इसलिए कि सौ महाशक्ति यज्ञों में माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का आवाहन हो सके, जिन यज्ञों को इस दिव्य स्थली में करने का निर्णय लिया गया है और यह जो दिव्य अनुष्ठान प्रारम्भ है, इसके पीछे भी यही मूल चिन्तन है कि माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का आवाहन किया जा सके, उनकी स्थापना की जा सके। इस दिव्य स्थली पर जिन क्षणों पर जितनी कृपा माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की प्राप्त होती चली जायेगी, विश्व की ही नहीं, इस निखिल ब्रह्मण्ड की ही नहीं, अनन्त लोकों की शक्तियाँ भी इस स्थल की ओर आकर्षित होंगी। उनकी निगाहें भी इस स्थल की ओर पड़ गयीं, तो आप स्वतः देखेंगे कि यह दिव्य स्थली पवित्र भूमि किस तरह से चैतन्य और जाग्रत हो जायेगी।
आप लोग मानव जीवन जी रहे हें। आप चाहें तो आपका एक ही जीवन पर्याप्त है इस भवसागर से तरने के लिए, मगर आवश्यकता है अपने जीवन को कुछ तो गुरु के कहने पर बढ़ाकर देखो। जिन मंत्रों को दिया जाता है उन मंत्रों का जाप करें, गुरुवार व्रत रहें। बड़ी सरल-सुगम विधि बतायी गयी है। गुरुवार व्रत में आप सायंकाल सात्विक भोजन कर सकते हैं। शुद्धता और सात्विकता के साथ माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का चालीसा पाठ करें। यह अनुष्ठान इतना सरल और सुगम दिया जा रहा है जिससे सरल और कोई साधना नहीं हो सकती। यही एक ऐसी साधना है जिसे एक सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी कर सकता है और एक योगी ऋषि मुनि भी कर सकते हैं। उससे तृप्ति एक ऋषि भी प्राप्त कर करता है और एक सामान्य मानव भी प्राप्त कर सकता है। वह दिव्य अनुष्ठान इस तपोभूमि पर प्रारम्भ है। आप लोग उसका सतत् लाभ लेते रहें।
माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की क्रियायें अलौकिक होती हें। माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की प्रेरणा से गुरु संचालित होता है। उनकी प्रेरणा के विपरीत एक कदम नहीं चल सकता। हो सकता है आप चाहते हों कि गुरु आपके विचारों के आधार पर चले, मगर यह सम्भव नहीं है। आपको गुरु के विचारों के आधार पर चलना पड़ेगा, जिस तरह गुरु माँ के विचारों के आधार पर चलता है। आपका कल्याण कभी कहानियाँ-किस्से सुनकर नहीं हो सकता। आपको जिस मार्ग पर बढ़ाया जा रहा है, इस मार्ग पर आप कुछ ही पल देंगे, आपका कल्याण अवश्य होगा। मगर विचारों की एकाग्रता नितान्त आवश्यक है।
एक बार पूर्ण निष्ठावान बनकर देखो कि आपको अनुभूतियाँ मिलती हैं कि नहीं, आपकी चेतना जाग्रत होती है कि नहीं और मैंने कहा है कि यदि कोई मनुष्य कुण्डलिनी चेतना जाग्रत करना चाहता है तो मात्र 7 वर्ष मुझे दे दे साधनात्मक जीवन जीने के लिए, मैं जड़ से जड़ मनुष्य की कुण्डलिनी चेतना जाग्रत करके उसके सूक्ष्म शरीर को निकालकर उसको सूक्ष्म की शक्तियों से परिचित करा दूँगा। मगर उसे पूर्ण साधनात्मक जीवन जीना पड़ेगा, अपने इस स्थूल शरीर से मोह त्याग कर उस सूक्ष्म शरीर से मोह जाग्रत करना पड़ेगा और अखण्ड साधनाओं में बैठना होगा। यदि कर सके तो समाज का कोई भी मनुष्य उस यात्रा को तय कर सकता है। चूँकि जब तक मैं मात्र शक्ति चेतना जनजागरण शिविर करता था, मैंने इस स्थल का चयन और माता आदिशक्ति जगज्जननी का आवाहन नहीं किया था। किन्तु, आज मेरे पास स्थान है और जो भी व्यवस्थाएं हैं, समाज को उपलब्ध करा सकता हूँ, समाज चाहे तो उनका लाभ ले सकता है।
मानव जीवन देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, यह बात हजारों साधु, संत, सन्यासी आपको बता चुके हैं। प्रत्येक काल में अनेकों-अनेकों जन्मों के संस्कारों से सौभाग्यशाली आत्माएं युगपुरुष से दीक्षा प्राप्त कर पाती हैं, आत्मीय सम्बन्ध जोड़ पाती हें और यदि वह आत्मीय सम्बन्ध जोड़कर उनके निर्देशन में अपना जीवन गुजार दें तो उस सिद्धाश्रम को अवश्य प्राप्त कर लेते हैं।
कल गुरुवार का दिन है। जहाँ मैंने कहा था कि कल के दिन को भी संकल्प दिवस के रूप में मानो और आज के दिन भी चाहूंगा कि आज के दिन को भी संकल्प के रूप में लें। आप आज दिव्य स्थली में हैं, इस अनुष्ठान में भाग ले रहे हैं और इसी अनुष्ठान के एक और आशीर्वाद को पूर्णता से प्राप्त करना है तो आप लोग एक संकल्प आज लें कि अपने जीवन का कोई न कोई जो सबसे बड़ा अवगुण हो, उसे छोड़ने का संकल्प लें। प्रथम आप नशामुक्त जीवन जिएं। यदि किसी भी प्रकार का नशा आप करते हों, तो आज आप रात्रि के 12 बजे के पहले संकल्प ले लेंगे कि आने वाले शेष जीवन में नशा नहीं करेंगे, तो इस सिद्धाश्रम में आपका गुरु वचन देता है कि अब तक जो भी नशे से दुष्कर्म हुए होंगे, उन समस्त पापों को आपका गुरु स्वीकार करता है और अपनी साधनाएं उन संकल्पित शिष्यों को समर्पित करता है कि वह निष्पाप जीवन जीकर आगे की यात्रा तय कर सकें। यात्रा आपके हाथ में हैं।
माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा हर पल कुछ न कुछ लुटा रही हें, आवश्यकता है उस कृपा को प्राप्त करने की। जिस प्रकार आपके गुरु ने भी कभी इसी प्रकार की यात्रा तय की है और आज अगर इस स्थान पर बैठा है तो कहीं न कहीं आपका गुरु तड़प-तड़प कर, रो-रोकर अखण्ड साधनाएं करके, माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा का गुणगान कर इस स्थान तक पहुँचा है। माता के उस ममता के सागर में कोई भी हिलोरें ले सकता है, केवल उस किनारे पर आकर खड़े होकर तो देखे, उस किनारे का स्पर्श करके तो देखे और उस किनारे का स्पर्श होगा निष्ठावान बनने से। जब तक आप निष्ठावान नहीं बनेंगे, उस किनारे का स्पर्श भी नहीं पा सकेंगे। मेरे अनेकों शिष्य हें जो अनेकों दिव्य अनुभूतियों को प्राप्त करते रहते हैं। मैं आज भी कहता हूँ कि मैंने अपने शिष्यों को अभी तक पूर्णत्व का आध्यात्मिक चिन्तन नहीं दिया, फिर भी मेरे पास आज ऐसे कुछ शिष्य हें, जो समाज के किसी भी साधु-सन्त की अपेक्षा आध्यात्म क्षेत्र का सामना कर सकने की अधिक सामर्थ्य रखते हैं। वह भी सामान्य जीवन जी रहे हैं, गृहस्थ का जीवन जी रहे हैं। गृहस्थ जीवन कोई बाधक नहीं होता है। अपने जीवन के विचारों को बदल करके देखें, अपनी दिशा को बदल करके देखें, आपको आलौकिक तृप्ति प्राप्त होगी।
आज की आरती, आज की समर्पण स्तुति का लाभ अवश्य प्राप्त करें, क्योंकि तीनों दिनों की यह आरती और समर्पण स्तुति आपके अनेकों कुसंस्कारों को नष्ट करने वाली है। दिव्य स्थली पर जब आरती के क्षण चल रहे हों, तब बिना आरती लिए बड़ी से बड़ी आवश्यक स्थिति आने पर भी नहीं जाना चाहिए। यह सौभाग्य और दुर्भाग्य को बदलने में बहुत कुछ सक्षम है। आपके लिए आरती नितान्त आवश्यक है। मेरे चिन्तन आप लोग सतत् प्राप्त कर सकते हैं। यदि आध्यात्मिक चिन्तन प्राप्त करना चाहते हैं तो मैं लोगों को बराबर समय देता रहूंगा। बारम्बार आप लोगों को उस अनुष्ठान की ओर चिन्तन से खीचूंगा। जो क्षण आप आज प्राप्त कर सकते हैं, उन क्षणों को आने वाले समय में प्राप्त नहीं कर सकते। आगे आने वाले क्षणों में अनेक लोग लालायित होंगे और आप लोग प्रयत्न करेंगे कि उस अनुष्ठान में बैठने के लिए हमारा अवसर कब आयेगा!
अतः आप लोगों को जो क्षण मिल रहे हैं, वे क्षण नष्ट न होने पायें। उतना ही विश्राम करें, जितना आवश्यक हो। शेष समय, माँ के उस अनुष्ठान पर बैठें, उसका लाभ लें। इन क्षणों पर जो आप प्राप्त कर लेंगे, वे आपके कुसंस्कारों को बदलने में सहायक होंगे। इन्हीं शब्दों के साथ आज के अपने चिन्तनों को विराम देते हुये माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की आरती के लिए आप लोगों को चिन्तन दूंगा। पूर्ण तन्मयता, एकाग्रता से माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की आरती के लिए अपने आप को तैयार करें।