धर्म या अधर्म, एक चिन्तन

शक्ति चेतना जनजागरण शिविर, कानपुर (उ.प्र.), 24.02.2005

बोलो माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बे मातु की जय!
आज यहाँ उपस्थित अपने समस्त शिष्यों, ‘माँ’ के भक्तों, इस शिविर में लगे हुये समस्त कार्यकर्ताओं और उपस्थित जिज्ञासुओं को अपने हृदय में धारण करता हुआ माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त करता हुआ अपना पूर्ण आशीर्वाद आप समस्त लोगों को समर्पित करता हूँ।
आज जहाँ इस कलियुगी भयावह वातावरण में पूरी मानवता तड़प रही है, कराह रही है, वहाँ यदि आप लोग अपने जीवन में धर्मवान् और कर्मवान् बन जायें, तो आपको आपके लक्ष्य तक पहुँचने में दुनिया की कोई ताकत बाधा नहीं बन सकती, दुनिया की कोई ताकत अवरोध नहीं खड़ा कर सकती, चूँकि धर्मवान् और कर्मवान् मानव जो ठान लेता है, वह कर गुजरता है।
यदि आपके साथ धर्म है, यदि आपके साथ सत्य है और यदि आप कर्मवान् हैं, आलसी नहीं हैं, अकर्मण्य नहीं हैं, प्रकृति ने मानवजीवन का जो विधान बनाया है, उस विधान के तहत यदि आप अपने जीवन का निर्वहन करने के लिये कर्मवान् बनकर वह यात्रा तय कर रहे हैं, तो धर्मवान् और कर्मवान् मानव जीवन के किसी भी पहलू में कभी भी असफल नहीं होता। आवश्यकता होती है उस प्रकृतिसत्ता पर पूर्ण विश्वास करने की, जिसे देवाधिदेव भी ‘माँ’ कहकर पुकारते हैं। हर विषम परिस्थिति में जब उन देवाधिदेवों को भी कोई रास्ता नजर नहीं आया, तब उस प्रकृतिसत्ता को उन्होंने ‘माँ’ के रूप में पुकारा, उस प्रकृतिसत्ता से मदद माँगी और हर बार उस प्रकृतिसत्ता ने उन्हें सहायता दी।
आज, उसी प्रकार इस कलिकाल के भयावह वातावरण में हमें और आप सभी को उस प्रकृतिसत्ता को पुकारने की आवश्यकता है। इससे ज्यादा भयावह वातावरण और क्या होगा समाज में? इससे ज्यादा समाज का पतन और क्या होगा? यदि इन क्षणों पर भी हमने उस प्रकृतिसत्ता का सहारा न लिया, यदि इन क्षणों पर भी उस प्रकृतिसत्ता को हमने ‘माँ’ के रूप में न पुकारा, तो फिर उस पतन के मार्ग से हमें दुनिया की कोई ताकत रोक नहीं सकेगी, बचा नहीं सकेगी। कोई काल था, जब खुलेआम राक्षस या इस तरह की कोई चीज नज़र आती थी कि यह कंस है, यह रावण है। उसे लोग पहचानते थे, जानते थे। मगर, आज तो जगह-जगह कंस और रावण हैं, जिन्हें आप पहचान भी नहीं सकते और वे अपना कार्य रावण और कंस के समान कर गुजरते हैं।
युवाशक्ति पतन के मार्ग पर जा रही है। उस युवाशक्ति को अगर रोका न गया, उस युवाशक्ति को अगर पतन के मार्ग से बचाया न गया, तो पूरा हिन्दुस्तान देश, जो सोने की चिडिय़ा कहा जाता था, जिसमें धर्मवान् और कर्मवान् पुरुष हर काल में उपस्थित रहे हैं, वह पतन के ऐसे रसातल में चला जायेगा कि जिसकी कल्पना भी आप लोग नहीं कर सकते। अभी वह समय है, इसे रोका जा सकता है, इसे बचाया जा सकता है, चूँकि समाज का पतन उस बिन्दु पर नहीं गया कि जहाँ पर उसे रोका न जा सके, जहाँ प्रकृति का सहारा लेकर उसे बचाया न जा सके। अतः सब लोग मिलकर प्रयास करो। धर्मवान् बनो, कर्मवान् बनो। जीवन से आलस्य को निकाल फेंको और युवाशक्ति को बचाओ। अपने बच्चों को सन्मार्ग में लगाओ। तुम्हारा धर्म है मानवता के पथ पर बढऩा, मेरा धर्म है तुम्हें मानवता के पथ पर बढ़ाना। मेरे जीवन का लक्ष्य ही यही है कि तुम्हें मानवता के पथ पर बढ़ाऊँ। भटकाव से तुम्हें सन्मार्ग की ओर ले जाऊँ, तुम्हें निर्भीकता से जीवन जीने की कला सिखाऊँ।

चिन्तन प्रदान करते हुए सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज

हम आप सभी जानते हैं कि राम ने वानरों की सहायता लेकर उस रावण का वध कर दिया था, उसकी विशाल सेना का नाश कर दिया था। अरे, तुम तो मानव हो। तुम तो मेरे शिष्य हो। तुम्हारा गुरु तुम्हारे रोम-रोम में समाया हुआ है। उसे जानो, पहचानो और अपने अन्दर की शक्ति को जाग्रत् करो और अनीति-अन्याय-अधर्म के साम्राज्य का नाश कर दो। अपने बच्चों को पतन के मार्ग पर जाने से बचा लो। उस युवाशक्ति को रोक लो, जो विनाश की ओर बढ़ती चली जा रही है, नशे के रूप में अनीति-अन्याय-अधर्म के चंगुल में फंसती जा रही है। उसे रोकना होगा, उसे बचाना होगा। यह हमारा और आपका सभी का धर्म और कर्म है। बुद्धिजीवी समाज का कर्तव्य है, उसे रोकना चाहिये, उसे बचाना चाहिये, अगर हम वास्तव में अपने देश की रक्षा चाहते हैं, अपने धर्म की रक्षा चाहते हैं। कोई भी धर्म हो, मैं हिन्दू धर्म की बात नहीं कह रहा, यह सभी धर्मो का कर्तव्य है कि एक बार उठ खड़े हों, एक बार जाग्रत् हों। जिनके अन्दर जरा सा विवेक है, जिनके अन्दर समाज के लिये कुछ करने की जरा सी भी जिज्ञासा है, उसे खोलकर निकाल डालो। तुम्हारे अन्दर की जो सामर्थ्य है, उसको भी अगर आप लेकर चले गये, तो सब व्यर्थ हो जाएगा, क्योंकि जीवन एक निर्धारित समय के लिये है। तुम्हारे अन्दर की जो सामर्थ्य है, तुम जो कुछ कर गुजर सकते हो, यदि तुमने वह नहीं किया, तो तुम एक अपराध के भागीदार बनोगे।
आज ज्ञान का अनादर हो रहा है। पढ़े-लिखे अधिकारी, क्लास वन अधिकारी, आज के अन्यायी-अधर्मी नेताओं के सामने सिर झुकाकर खड़े रहते हैं, जो अनेकों हत्यायें कर चुके हैं, जो अनेकों डकैतियाँ डलवा चुके हैं, जो भ्रष्टाचार में इतना अधिक लिप्त हैं, उनके सामने कोई सिर उठाकर बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। धिक्कार है तुम्हारे ज्ञान का! धिक्कार है तुम्हारी सामर्थ्य का! धिक्कार है तुम्हारी शिक्षा का! तुम पढ़-लिखकर फिर इस बिन्दु तक आकर क्यों खड़े हुये? इससे अच्छा है कि भिखारी बन जाओ। उन अन्यायी-अधर्मियों के सामने सिर झुकाने की अपेक्षा समाज में भीख माँगकर जीविकोपार्जन कर लेना ज्यादा श्रेष्ठ होगा, अन्यथा इसी प्रकार ज्ञान का अनादर होगा। अंगूठा छाप लोग नेता बनते चले जायेंगे और तुमको उनके सामने सिर झुकाना पड़ेगा।
भ्रष्टाचार को रोकना होगा और यह भ्रष्टाचार नीचे से नहीं रुकेगा। यह अमरबेल के समान है। यह उन राजनेताओं की देन है। जब तक राजनेता सुधरेंगे नहीं, तब तक व्यवस्थाओं में सुधार नहीं आ सकता। एक छोटी से छोटी चपरासी की भर्ती में भी एक लाख, दो लाख देना पड़ता है। हर थाने बिकते हैं, किसी को इन्स्पेक्टर बनना है या होमगार्ड में भर्ती होना है, तो एक-दो लाख रुपये तक देना पड़ता है। अगर लाख-दो लाख रुपये वह देगा, तो निश्चित रूप से वह भ्रष्टाचार करेगा ही, अनीति-अन्याय-अधर्म के रास्ते पर जायेगा ही। अगर इसे रोकना है, तो अपने मत के अधिकार को समझो, चूँकि यह मानवता की रक्षा के लिये आवश्यक है। मूल जड़ यहीं से छिपी हुई है।
अपना मत किसी अन्यायी-अधर्मी-अत्याचारी, किसी ऐसे नेता को मत दो, जो मांसाहारी है, शराबी है, जुआरी है, जो बियर बारों में अपना समय बिताता है। दिन में सफेदपोश बनकर आपके बीच आते हैं, वोट माँगने के समय तो भिखारी बनकर आते हैं, झोली फैलाते हैं और उसके बाद पाँच साल के लिये भूल जाते हैं। उन नेताओं का ही सम्मान करो, जो वास्तव में केवल जनसेवक ही बनकर कार्य करना चाहते हैं। यह प्रजातन्त्र है, राजतन्त्र नहीं। मगर, आज यह अपराधतन्त्र बनता चला जा रहा है, माफियाओं का राज होता चला जा रहा है। इसे रोकना होगा। जब तक इसे रोकेंगे नहीं, तब तक भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा। यदि अच्छे लोग चुनकर जायेंगे, अच्छी विचारधारा के लोग राजसत्ता में बैठेंगे, तो भ्रष्टाचार में कहीं न कहीं अंकुश लगने लगेगा। सत्यपथ पर बढऩे के लिये सबसे प्रमुख नींव वहीं से जाग्रत् होती है। आप राजगद्दी पर किसी ऐसे अनाचारी-अत्याचारी व्यक्ति को बैठा देते हैं, उन्हें रोकना होगा।
आवश्यकता है, प्रयास करो, जो तुम्हारे अन्दर सामर्थ्य है, उसका उपयोग करो और मेरे इस शरीर के अन्दर जो सामर्थ्य है, यह बराबर कर रहा है। आज से चार-पाँच वर्ष पहले मैंने कहा था कि ये राजनेता जो समाज को लड़वा रहे हैं, आने वाले समय में मैं ऐसी परिस्थिति खड़ी करता चला जाऊँगा कि या तो ये राजनेता सुधरेंगे या आपस में ही लड़ते रहेंगे। आपस में ही एक राजनेता दूसरे राजनेता को जेल भेजने की तैयारी करता रहेगा और आज वही हो रहा है। अपने विवेक का उपयोग करो। अपनी आत्मा को किसी का गुलाम मत बनाओ। अनीति-अन्याय-अधर्म के सामने झुको मत। धर्मवान् और कर्मवान् बनो। संगठन के बताये हुये नियमों का पालन करो। तुम्हारे अन्दर आत्मशक्ति जाग्रत् होगी। तुम धर्मवान् और कर्मवान् बनोगे।
नित्य प्रातः ब्राह्ममुहूर्त में समय से उठो। राक्षसी प्रवृत्ति का जीवन नहीं होना चाहिये कि रात को बारह-एक बजे तक टहल रहे हैं, घूम रहे हैं, टी.वी. देख रहे हैं और सुबह नौ बजे, दस बजे तक सो रहे हैं। यह मानव का धर्म नहीं है। मानव का धर्म है सूर्योदय से पहले उठ जाना। आपका गुरु तो नित्यप्रति प्रातः तीन बजे से नित्य की साधना में रत होजाता है और दस-ग्यारह बजे रात तक कार्य करता रहता है। समाज के हित के लिये, कल्याण के लिये यह शरीर जो आपके समक्ष बैठा है, चौबीस घण्टे में मात्र दो या ढाई घण्टे की नींद लेता है। उसी तरह कार्य करता रहता है कि समाज में किसी तरह परिवर्तन आये। प्रकृति तो सब कुछ देने के लिये तैयार है, मगर माध्यम तो हमें बनना ही पड़ेगा, माध्यम तो आपको ही बनना पड़ेगा, चूँकि प्रकृतिसत्ता आपके शरीर से ही कार्य करेगी।
प्रकृति तो कण-कण में मौजूद है और उसका सबसे प्रमुख सशक्त हथियार मानव है, जिसके अन्दर वह चैतन्य आत्मा छिपी बैठी है। अगर आपने उस ओर अपनी निगाहें उठाकर नहीं देखा, अपने आपको आपने जगाया नहीं, अपने आपको आपने सामर्थ्यवान् नहीं बनाया, मानवता के पथ पर आपने चलने का प्रयास नहीं किया, तो इसी तरह अनीति-अन्याय-अधर्म का साम्राज्य फलता-फूलता चला जायेगा। मत समझौता करो अनीति-अन्याय-अधर्म से, अधर्मियों से। मौत का भय त्याग दो। क्या लेकर आये हो और क्या लेकर जाओगे? जो लेकर जाओगे, वे होंगे तुम्हारे सत्कर्म। वह सत्कर्म करो, जिससे प्रकृतिसत्ता प्रसन्न हो। वह सत्कर्म करो, जिसे दुनिया माने न माने, मगर उस प्रकृतिसत्ता की निगाहों में रहो, उस आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की निगाहों में रहो और फिर देखो तुम्हारा कौन बाल बाँका कर सकता है! एक बार प्रण ठानो, एक बार संकल्प लो कि हम मानवता के पथ पर बढ़ेंगे, अनीति-अन्याय-अधर्म के रास्ते पर नहीं।
अगर कोई कहता है कि क्या करूँ, भ्रष्टाचार मेरी मजबूरी है, क्योंकि नेता आते हैं और हमको इतना उनको खिलाना-पिलाना पड़ता है। अगर कोई पुलिस अधिकारी कह दे कि मुझे इतना भाग-दौड़ करना पड़ता है। अगर मैं ईमानदारी में आजाऊँ, तो मैं अपना वेतन भी नहीं बचा सकता। उसमें ही इतना खर्च हो जायेगा। तो मेरा कहना है कि उसे धीरे-धीरे रोको, प्रयास करो, गरीबों को सताना बन्द कर दो। गलत कार्य करना बन्द कर दो। कहते हैं कि दाल में नमक के बराबर तो चल जाता है, मगर नमक में दाल पकाने लगो, तो वह उचित नहीं होता। धीरे-धीरे रोकोगे, तो एक दिन आपके अन्दर विचारशक्ति जाग्रत् होगी और एक दिन आप अनीति-अन्याय-अधर्म के खिलाफ खुलकर खड़े हो जाओगे। मगर, दो चीजों में तो ठोस संकल्प ले लो कि तुम नशामुक्त जीवन जिओगे। किसी विभाग में हो, कोई भी कार्य हो। इसके लिये तो तुम्हें कोई बाध्य नहीं करता। इसके लिये तो तुम्हें कोई प्रेरित नहीं करता। इसके लिये तो तुम्हारे अन्दर ईमानदारी और बेईमानी दोनों प्रकार की सम्पदा भरी पड़ी है कि तुम फल-फूल खा सकते हो। फिर किस चीज के लिये किसी की हत्या करके किसी का माँस भक्षण करते हो? पूर्वकाल में जो गलतियाँ किसी ने कीं, उन्हें क्यों बढ़ावा देते हो?
आज तो देवी-देवताओं के नाम पर भी बलि चढ़ाई जाती है। उन मन्दिरों के पुजारी पुजारी नहीं हैं, बल्कि हत्यारे हैं, जिन मन्दिरों में देवी-देवताओं के नाम पर भी बलि दी जाती है। वहाँ कभी देवी-देवताओं की उपस्थिति नहीं रहती। वे जल्लाद हैं, जो पुजारी बनकर कहते हैं कि बलि देने से देवी प्रसन्न होंगी, काली प्रसन्न होंगी। प्रकृतिसत्ता या कोई देवी-देवता किसी की बलि लेकर कभी प्रसन्न हो ही नहीं सकते। जो जीवन देने वाले हैं, वे कभी किसी का जीवन लेकर प्रसन्न नहीं होते। अतः बलि प्रथा से अपने आपको अलग करो। मांसाहार से अपने आपको अलग करो। भारत एक कृषिप्रधान देश है। सब कुछ भरा पड़ा है यहाँ। अच्छे-अच्छे फल-फूल खा सकते हो यहाँ। अच्छा भोजन कर सकते हो। जैसा भोजन करोगे, वैसे ही विचार आपके अन्दर जाग्रत् होंगे। निर्भीकता का जीवन जियो। भय का त्याग कर दो। इन दो चीजों का तो संकल्प ले लो कि हम नशामुक्त जीवन जियेंगे, मांसाहारमुक्त जीवन जियेंगे और फिर देखो कि धीरे-धीरे आपके अन्दर आत्मबल जाग्रत् होता चला जायेगा।
साधनाक्रम के मैंने सरल से सरल मार्ग बताये हैं कि आप कुछ नहीं कर सकते, तो एक श्री दुर्गाचालीसा का पाठ नियमित नित्य कर लीजिये, चूँकि उससे मेरी साधना के क्रम जुड़े हुये हैं। मैंने समाजकल्याण के लिये अपने आश्रम में श्री दुर्गाचालीसा का अखण्ड पाठ 15 अप्रैल 1997 से चला रखा है, जो अनन्तकाल के लिये चल रहा है। वह समाजकल्याण के लिये है। केवल उस दिशाधारा से जोडऩे का कार्य कर लो कि एक नित्य दुर्गाचालीसा का पाठ अपने घर में करो। आपको आपके द्वारा किये श्री दुर्गाचालीसा पाठ का भी फल मिलेगा और आश्रम में उस चल रहे श्री दुर्गाचालीसा पाठ का भी फल मिलेगा। जो दो मन्त्र मैंने दिये हैं– गुरुमन्त्र ‘ऊँ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः’ और चेतनामंत्र ‘ऊँ जगदम्बिके दुर्गायै नमः’, इन दो मन्त्रों को माध्यम बना लो। अपनी साधना का सहारा बना लो। जब समय मिले, शान्त बैठकर जाप कर लो। नहीं समय मिलता, तो मानसिक जाप उठते-बैठते, चलते-फिरते, रात में लेटे हुये या कोई भी कार्य करते हुये मन के अन्दर जाप करो। ये पूर्ण उत्कीलित मन्त्र हैं और फल प्रदान करने के लिये हैं। अपने बच्चों को सही दिशा में बढ़ाने का प्रयास करो। देखो, आज़माकर देखो। चार-छः महीने का इस तरह का जीवन जीकर देखो, तुम्हारे अन्दर आत्मशान्ति पैदा होगी।
एक परिवार में यदि एक शराबी पैदा होजाता है, तो पूरा परिवार अशान्त होजाता है। घर में महिलायें-बच्चे इतना अशान्त जीवन जीते हैं, जिसकी कोई कल्पना नहीं। और, वहीं एक परिवार, जहाँ लोग फल-फूल खा रहे हों, सुख-शान्ति से रह रहे हों, नशामुक्त रहकर अपने घर जा रहे हों, उनके पास जाकर देखें कि घर के लोग कितना अच्छा स्वागत करते हैं? पति-पत्नी के झगड़े होते हैं, आपसी झगड़े होते हैं, भाई-भाई के झगड़े होते हैं। ये सब अपने आप मिटने लगेंगे। विचार करो कि एक पिता और माता का चेहरा उसके पुत्र पर आजाता है। कई लोगों को आप देखेंगे कि उनके पुत्रों को देख लेंगे, तो आप जान जायेंगे कि यह किसका लड़का होगा, अगर आप उसके पिता को पहिचानते होंगे। जब शरीर का बाह्य रूप साकार नज़र आने लगता है, छाया प्रकट होने लगती है कि यह फलां की सन्तान है! तो, आपके विचार पहले कितना अधिक कार्य करते होंगे! तो, जिस तरह के आपके विचार बनेंगे कि दूषित विचार यदि आपके होंगे, अनाचारी-अत्याचारी विचार यदि आपके होंगे, शराबी, मांसाहारी विचार यदि आपके होंगे, तो आपके पुत्रों में भी वही संस्कार पड़ जायेंगे। तो, क्या आप यह चाहेंगे कि आज आप सिर झुकाकर खड़े हो रहे हैं और कल आपके पुत्र भी सिर झुकाकर खड़े हों। उनको चैतन्य होने दो, उनकी आत्मा पर वह आवरण मत पडऩे दो।
प्रयास करो, एक बार तो प्रण ठानो कि इस अनीति-अन्याय-अधर्म के खिलाफ हम एक खुला धर्मयुद्ध लड़ेंगे। तुम्हारा गुरु तुम्हारे साथ है, समाज के साथ है। जो मेरे शिष्य हैं, उनके साथ है और जो शिष्य नहीं हैं, उनके भी साथ है, चूँकि मेरे कार्य सभी क्षेत्रों में चलते रहते हैं। एकान्त की मेरी साधना है। यहाँ अनेकों लोग ऐसे बैठे हैं, जहाँ मैंने जब जो कहा- वहाँ मैं वह कर गुज़रा। मेरे जीवन की सबसे बड़ी शान्ति और सन्तोष यह है कि अगर मैंने किसी चीज़ का प्रण ठानकर और ‘माँ’ के सामने रखकर ‘माँ’ का वह मूल अनुष्ठान जो मेरे जीवन का लक्ष्य है, उसको लेकर अगर मैं किसी कार्य के लिये बैठ गया हूँ कि ‘माँ’ यह कार्य होना है, तो आज तक कभी एक भी कार्य असफल नहीं हुआ। चैतन्य आत्मा किसी आत्मा में प्रवेश करके कोई भी परिवर्तन डाल सकती है, कोई भी कार्य कर सकती है।
अभी कुछ समय पहले का ही प्रमाण था, अजय अवस्थी यहाँ बैठे हुये होंगे। पिछले चुनाव में जब कांग्रेस काफी बहुमत में उभरी, तो सब लोग कहने लगे कि सोनिया गाँधी प्रधानमन्त्री बनेंगी। वह राष्ट्रपति से मिलने भी जा रही थीं। मैंने अजय अवस्थी से कहा, जो दिल्ली के पत्रकार हैं, उनसे जुड़े हुये उनके कुछ मित्रगण भी थे। मैंने कहा सोनिया गाँधी प्रधानमन्त्री नहीं बनेंगी। यह मेरा साधनात्मक वाक्य है। अगर तुम जिसे चाहो, मैं उसे प्रधानमन्त्री बना सकता हूँ, केवल एक बार इसलिए कि मीडिया को एहसास हो। पूरे मीडिया के लोगों को इकठ्ठा करो और तुम जिसे चाहो, मैं उसे इन परिस्थितियों में भी मोड़ दूँगा। मेरे लिये कोई भी रचना करना, कहीं पर कोई भी परिस्थिति मोडऩा कठिन नहीं है। कल भूतपूर्व प्रधानमन्त्री चन्द्रशेखर के पी.ए. यहाँ उपस्थित थे। आप अनेकों लोग उनसे सम्पर्कित हुये होंगे, जानकारी ले सकते थे। मैंने चन्द्रशेखर से भी बात करके बताया था कि अगर तुम चाहो, तो मैं तुम्हें भी प्रधानमन्त्री बना सकता हूँ। केवल सत्य की रक्षा के लिये कि एक बार समाज एहसास कर सके।
एक घटना तो समाज के बीच हो कि जो असम्भव हो, मैं वह कर गुज़र सकता हूँ। मगर, कुछ भय उनके जीवन में था। मैंने अजय से कहा कि नहीं है तो फिर मनमोहन सिंह प्रधानमन्त्री निश्चित बनेंगे, जबकि मनमोहन सिंह की कोई चर्चा नहीं आई थी। कुछ समय बाद सोनिया गाँधी बहुमत का चिठ्ठा लेकर राष्ट्रपति के दरवाज़े पर गईं। अजय अवस्थी का फोन आया कि गुरुजी बस अब तो राष्ट्रपति यह कह देंगे कि अब आपको सरकार गठन करने की अनुमति दी जाती है, आप सरकार बनायें। मैंने कहा कि वह अभी अन्दर गई हैं न, जब बाहर निकलकर आयें, तब सुनना वह क्या कह रही हैं? वह क्या कहेंगी, इसका ज्ञान मुझे है। मैंने कहा कि प्रधानमन्त्री सोनिया गाँधी नहीं बनेंगी, प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह बनेंगे। और फिर क्या हुआ, आप सबको ज्ञात है!

परम पूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज के चिन्तन श्रवण करते हुए भक्तगण

मैंने कहा है कि जहाँ कार्यक्षमता की बात का प्रमाण चाहते हो, तो मध्यप्रदेश के गिरीश गौतम विधायक भी यहां आये हुये हैं। वह भी विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के खिलाफ चुनाव लड़े थे। उस समय के चुनाव में पूरे देश स्तर पर वह एक केन्द्रबिन्दु बन गया था। शेर के मुँह में दाँत गिनने के बराबर था उस विधानसभा में गिरीश गौतम का विजयी होना। सम्भव ही नहीं था, कोई कल्पना ही नहीं कर सकता था कि जिस तरह से जाल बुनकर रखा गया था कि पूरा एक चक्रव्यूह रच रखा गया था कि उसमें कोई उनको पराजित करके आगे नहीं निकल सकता है। मगर ‘माँ’ के आशीर्वाद का फल है कि जो आपके समक्ष बैठे हुये हैं, आप उनसे मिल सकते हैं कि उनको ‘माँ’ की कृपा से विजय मिली है या नहीं? कुछ लोग सही रास्ते पर चलते हैं, वहाँ से चलकर आज यहाँ शिविर का लाभ लेने के लिये उपस्थित हुये हैं।
मेरा किसी पार्टी विशेष से लगाव नहीं है। मैं आज भी कहता हूँ कि सत्ता स्थिर रहनी चाहिये। या तो वे अधर्मी-अन्यायी नेता अपने आपको सुधार लें या तो मैं उन्हें सुधार दूँगा। और, अगर वह सत्ता चाहते हैं, तो वह संकल्प लें, समाजसुधार करने का संकल्प लें। आज उत्तरप्रदेश की सत्ता को देख रहे हैं, अस्थिर है। मगर, मैं चेलैंज करता हूँ, समाजवादी पार्टी हो, बहुजन समाज पार्टी हो, कांग्रेस हो या बी.जे.पी. हो। उनका प्रमुख व्यक्ति आश्रम आये और संकल्प ले कि विजय होने के दूसरे ही दिन प्रदेश को नशामुक्त प्रदेश घोषित कर दूँगा, प्रदेश को माँसाहारमुक्त प्रदेश घोषित कर दूँगा, चूँकि राजा चाहे, तो क्या नहीं कर सकता? भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिये खुद संकल्पबद्ध हो जाऊँगा, अपराध रोकने में मैं अपनी पूरी क्षमता झोंक दूँगा। उस प्रकृतिसत्ता के सामने संकल्प ले लें आकर। मैं कहता हूँ कि दस साल के लिये उनकी सत्ता स्थिर कर दूँगा।
सत्ता से मुझे मोह नहीं है। मैं नहीं कहता कि मेरे शिष्य ही जाकर सत्ता में बैठें। चूँकि मैंने स्वतः कहा है कि कभी कोई शिष्य यह कल्पना न करे कि गुरु जी को कोई चुनाव लडऩा होगा, चूँकि अगर कोई धर्माचार्य चुनाव लड़ता है, तो वह धर्माचार्य है ही नहीं। उसके पास धर्म की सामर्थ्य है ही नहीं, अगर उसके अन्दर राजसुख भोगने की ज़रा सी भी लिप्सा जाग्रत् होजाती है। सत्ता का सुख तुम उपभोग करो, मगर समाज के लिये यदि कार्य करते हो, तो मेरी ऊर्जा तुम्हारा साथ देने के लिये तैयार बैठी है। मगर, जातीयता का ज़हर बोना बन्द कर दो। जब कांशीराम ने यह नारा लगाया था ‘तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार।’ यह वह ज़हर था। मैंने बार-बार कहा है कि मैंने ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया है, मगर बचपन से आज तक एक भी व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि मैंने कभी जातिभेद को माना है या किसी के साथ मैंने कभी छुआछूत का भेद किया है। मेरे लिए सभी लोग एक समान रहते हैं।
मेरी निगाहें उन वर्गों में ज़्यादा रहती हैं, जिनको वास्तविकता में सत्य की ज़रूरत है। समाज के अन्दर ज़हर बोने से समाज का कल्याण नहीं होगा। समाज के अन्दर एकता का बीज बोने से समाज का कल्याण होगा। अपने राजनीतिक लाभ के लिये समाज-समाज में बैर पैदा कर देना एक अनाचार है, अत्याचार है, पाप है। रीवा के महाशक्तियज्ञ की कैसेट होगी, उस समय मैंने कहा था कि कांशीराम सिर पटक देंगे, तब भी कभी प्रधानमन्त्री की गद्दी को नहीं प्राप्त कर पायेंगे, जो उनकी कामना है। और, आज वह कष्ट भोग रहे हैं। मुझे इस बात की तकलीफ है, ऐसा नहीं है कि उनके कष्ट भोगने में मैं प्रसन्न हूँ। यह आप खुली निगाहों से देखें कि कोई भी व्यक्ति हो, चाहे जिस जातीयता का हो, मैंने बार-बार कहा है कि मेरे लिये वह समाज सबसे ज़्यादा प्रिय होता है, जिसका शोषण किया गया हो।
मैं स्वतः कहता हूँ कि ब्राह्मण-क्षत्रिय समाज ने उस समाज का बहुत अधिक शोषण किया है, जो नहीं किया जाना चाहिये था। वे ब्राह्मण पुजारी भले ही मन्दिरों में रहकर धर्म की कामना करते रहे हों और आपको मन्दिरों में चढऩे को नहीं मिला। मगर, मन्दिरों की सीढिय़ों में आपने सिर पटका है, दूर रहकर आपने श्रद्धा से भगवान् को नमन किया है और इसका प्रभाव है कि धीरे-धीरे वह समाज जाग्रत् हो रहा है। मगर, यदि सामर्थ्य हमारे पास आये, तो इसका तात्पर्य यह तो नहीं कि हम भी वही कार्य करने लगें, जो पूर्व के समाज ने हमारे साथ किया है। एक अपराधी था, तो हम भी अपराधी बन जायें, तो हममें और उनमें फर्क क्या रहा? अतः कल यदि कुछ गलतियाँ हुई हैं, तो उन्हें सुधारने का कार्य होना चाहिये। दोनों पक्षों को सुधारना चाहिये। आज पढ़ा-लिखा समाज है, बुद्धिजीवी समाज है, ज्ञानवान् समाज है। इस तरह के ज़हर का बीज बोने वालों से सतर्क रहने की ज़रूरत है, चाहे वे किसी जाति को बढ़ावा देने वाले हों, किसी सम्प्रदाय के हों।
चुनाव के समय आप देखें कि अधिकांश नेता टोपी पहन लेते हैं। टोपी पहन लेने से तुम इस्लामधर्म के रक्षक नहीं बन जाओगे। सत्य तो यह है कि टोपी पहनकर तुम हिन्दू और इस्लामधर्म के बीच एक ज़हर बोते हो। और, जब सत्ता तुम्हारे बहुमत में आजाती है, तो कभी तुम उनकी तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखते हो। न हिन्दुओं को इस्लामधर्म से डरने की ज़रूरत है और न इस्लामधर्म को हिन्दुओं से डरने की ज़रूरत है। अरे, अपने आपको चैतन्य बनाओ। वह नपुन्सक होते हैं, नामर्द होते हैं, जो दूसरों से डरते हैं, भय खाते हैं। हर धर्म में अलौकिक शक्ति छिपी हुई है। हर धर्म यदि अपने धर्म की वास्तविकता पर आजाये, तो किसी समाज से कोई बैर रह ही न जायेगा। अरे, वह पाकिस्तान की टीम हमारे देश में ले आयें और हमारे देश की टीम उनके देश में खेलने जाये, तो किस बात का भय? अगर हम सामर्थ्यवान् हैं, तो सामर्थ्य को कोई पराजित नहीं कर सकता।
जाग्रत् करो अपने हिन्दू समाज को, जाग्रत् करो अपने देश के समाज को, जाग्रत् करो सभी धर्म के धर्माचार्यों को। जाग्रत् करो सभी धर्मों से जुड़ी जनता को। किससे भय खाते हो? पाँच पाण्डवों ने कौरवों को समाप्त कर दिया था। अकेला व्यक्ति बहुत कुछ कर सकता है। अगर तुम यही सोचते रह गये कि हम अकेले क्या कर सकते हैं? तो कभी कोई आगे बढ़ ही नहीं सकता। जितनी सामर्थ्य आपके पास है, उस सामर्थ्य का सदुपयोग करने का प्रयास करो। मेरे पास अनेकों ऐसे शिष्य हैं, जो इस्लामधर्म को मानने वाले मेरे दीक्षित शिष्य हैं। मैं कभी नहीं उनसे कहता कि इस्लामधर्म छोड़ दो। मैं कहता हूँ कि इस्लामधर्म की सत्यता को गहराई से पकड़कर चलो। मगर, अगर तुम्हें हिन्दूधर्म में सत्यता लग रही है, तो श्रद्धा के साथ आओ, मेरे शिष्य बनो और मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। आज भी यहाँ इस्लामधर्म के लोग बैठे हैं, जो मेरे शिष्य हैं, दीक्षाप्राप्त शिष्य हैं। इन क्रमों का भी पालन कर रहे हैं और अपने धर्म का भी पालन कर रहे हैं। अगर शक्ति है, सामर्थ्य है, तो अपनी सामर्थ्य को उस दिशा में लगाओ।
कुछ लोगों ने मेरे पास सूचना भेजी थी कि क्या राममन्दिर बनाना उचित नहीं है? कल मैंने कहा था कि राममन्दिर बनाने से ज़्यादा आवश्यक समाज में वह गरीब जनता है, जो भुखमरी का शिकार है। आज भी अनेकों प्रदेशों में ऐसी जनता भरी है, जो तन पर कपड़े नहीं पहन पाती। राममन्दिर हिन्दूसमाज की आस्था का केन्द्र है, जो आसानी से बन सकता है। मगर, इच्छाशक्ति होनी चाहिये। मैंने कहा था, किसी समय मैंने भविष्यवाणी की थी कि अगर राजनेता इस मुद्दे से हट जायें, धर्मक्षेत्र के लोगों को ही अगर केवल हिन्दूधर्म और इस्लामधर्म के लोग, चाहे वे पच्चीस लोगों की या पचास लोगों की कमेटी बना दें कि यह जो निर्णय कर लेंगे, हमें मान्य होगा। मैं कहता हूँ कि समस्या को छः माह के अन्दर सुलझा दूँगा। मगर, जो राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे, उन मर्यादा पुरुषोत्तम राम के स्थान का निर्माण अनीति-अन्याय-अधर्म वाली राजनीति की रोटियाँ सेंकने से कभी नहीं होगा।
मानवता की रक्षा के लिये अगर सत्य की आवाज़ सत्य तक पहुँचेगी, अगर कोई समाज भटका हुआ है, अगर कोई समाज गलतफहमी का शिकार है, तो उसे सत्य के रास्ते पर लाया जा सकता है, समझाया जा सकता है। मगर, यदि राजनीति की रोटियाँ सेंकी जायेंगी, तो वह कोई पार्टी हो, किसी को भी राममन्दिर का निर्माण करा पाना असम्भव हो जायेगा, कठिन हो जायेगा। या तो न्यायपालिका पर छोड़ देना चाहिये या तो कुछ चन्द लोगों में उस विचारधारा का निर्णय लेकर छोड़ देना चाहिये। मैं कह रहा हूँ कि कम से कम समय में वह समस्या हल हो जायेगी। लोग इस्लामधर्म से डरते हैं। मगर, जब देश के राष्ट्रपति अब्दुल कलाम बने थे, तब मैंने कहा था कि आज़ादी के बाद पहली बार एक योग्य राष्ट्रपति सत्ता में पहुँचा है। मैंने बार-बार कहा है कि मेरे विचार उन सभी बिन्दुओं पर होते हैं, जिनसे निकलकर आप सन्मार्ग पर जा सकते हैं।
अनीति-अन्याय-अधर्म के सामने घुटने मत टेको। बहुत से साधु-सन्त-संन्यासी आपके बीच आते हैं। वे बड़ी-बड़ी आखें काढ़ेंगे, बड़ा सा मुण्डमाला पहने होंगे, कोई किसी चीज की हड्डियों की माला पहने होगा, आपको डरायेंगे, धमकायेंगे, त्रिशूल रखे रहेंगे और आपके द्वार पर जायेंगे, तो कहेंगे कि हमको इतना दान दे दो, नहीं तो मैं तुम्हारे घर का सर्वनाश कर दूँगा। एकान्त घर में कभी आयेंगे और महिलाओं से कहेंगे कि आपके पति की हत्या होने वाली है। आप ऐसा धन दे दो, तो बच जायेगा। लेकिन, अगर पति से बता दोगी, तो पति की हत्या निश्चित हो जायेगी या उसका एक्सीडेण्ट हो जायेगा। ऐसे पाखण्डियों से तुम्हें भयभीत होने की जरूरत नहीं है, उनसे भयभीत मत हों। वे, जो दरवाजे-दरवाजे तक नंग-धड़ंग भेष बनाकर टहलने वाले अत्याचारी-अनाचारी हैं, उन्हें मुँहतोड़ जवाब दो।
आपका गुरु कहता है कि अपने घर पर केवल ‘माँ’ का एक ध्वज लगा लो और देखो कि एक बड़ा से बड़ा तान्त्रिक भी आपके घर का कुछ बाल-बाँका नहीं कर सकेगा। नित्य शक्तिजल का पान करो। मैं समाज में अपनी पहचान नहीं बनाना चाहता। मैं चाहता हूँ समाज में तुम्हारी पहचान हो। मैं समाज में अपना स्वागत नहीं कराना चाहता। मैं चाहता हूँ समाज में भगवती मानव कल्याण संगठन के सदस्यों का स्वागत हो। किसी से भयभीत मत होओ। बड़े-बड़े गैंग कार्य कर रहे हैं। कोई आपके धन को दुगुना कर देने का लालच देगा, तो कोई कहेगा कि आपके घर में खजाना गड़ा हुआ है, हम उखाड़ देंगे। और, आपके घर में जो बाहर धन रहता है, उसे भी लूट ले जायेंगे। उनसे सावधान रहो, कभी भ्रमित मत होओ। जमीन में गड़े हुये धन को उखाडऩे के लिये प्रयास मत करो। अलौकिक धन जो आपकी चेतना के रूप में आपके शरीर में छिपा है, उसे जाग्रत् करो। आपका गुरु उसे निकालने का मार्ग बताता है। उससे आपका कल्याण होगा।
वे अनाचारी-अत्याचारी, जो कहते हैं कि धन गड़ा हुआ है, उनसे कह दो कि हमें एक रुपये की जरूरत नहीं है। धन दुगुना करना जानते हो, तो अपना ही धन दुगुना कर लो। समाज के बीच एक भी ऐसा साधु-सन्त-संन्यासी नहीं है, जो आपके धन को दुगुना कर सके, जो आपके गड़े हुये धन को निकाल सके। उनसे भ्रमित मत होओ। अनेकों साधु-सन्त-संन्यासियों की टोलियाँ की टोलियाँ होती हैं। जब आपका घर बन रहा होता है, जब आपकी नींव पड़ चुकी होगी तो नींव पड़ चुकने के बाद सबको पता चल जाता है कि कितने कमरे बन रहे हैं और किस कमरे का द्वार किस ओर को है। वे कोई हड्डियाँ या दो-चार सिक्के आकर वहाँ गाड़ जायेंगे और दस-पाँच साल बाद आयेंगे और आपको बतायेंगे कि आपके फला कमरे की फलां दीवाल के पास धन गड़ा हुआ है। एक-दो सिक्के भी उखाड़कर दिखा देंगे और कहेंगे कि वह तो आपने श्मशान में मकान बना लिया है, आपके घर के अन्दर हड्डी छिपी हुई है। ये गैंग के गैंग कार्य करते हैं। अपनी डायरियाँ कम्प्लीट कर रहे हैं। आज कार्य कर रहे हैं और दस साल-बीस साल आगे की तैयारियाँ भी कर रहे हैं। उनसे सतर्क रहो, सावधान रहो।
वे अनाचारी-अत्याचारी, जो गाँजा, चिलम और शराब चढ़ाते हैं, उनके पास कोई साधनात्मक क्षमता नहीं होती है। प्रयाग के कुम्भ मेले में जाकर देखो, पूरा प्रशासन उनकी सेवा में लग जाता है। अरे, जिन अन्यायियों-अधर्मियों को वहाँ से खदेड़कर भगा देना चाहिये, उनको कह रहे हैं कि शाही सवारी जा रही है। पूरा प्रशासन उनकी सेवा में लगा रहता है। अरे, जो गाँजा चढ़ाते हैं, चिलम चढ़ाते हैं, वे समाज को क्या सन्मार्ग देंगे? अरे, वे तो उन पवित्र स्थानों को और अपवित्र कर देते हैं। मैंने कहा है कि अगर उनके अन्दर सामर्थ्य है, तो मैंने पूरे विश्व अध्यात्म जगत् को अपने साधनात्मक तपबल की चुनौती दी है कि आयें और मेरे सत्य का सामना करें। मेरा सामना करें और पराजित करके दिखायें। अन्यथा, या तो वे समाज का त्याग कर दें या अगर अपने लिये साधना कर रहे हैं, तो हिमालय की गुफाओं में या जंगलों-पहाड़ों में चले जायें। और, अगर समाज के लिये कार्य कर रहे हैं, तो समाज की मर्यादाओं में रहकर समाज का सहयोग करें। जो शराबी होगा, जो नशेड़ी होगा, जो गाँजा और चिलम चढ़ा रहा होगा, वह समाज का क्या कल्याण करेगा? समाज के बच्चे भागकर उन आश्रमों में जाते हैं और वहाँ जाकर वे भी गाँजा, चिलम चढ़ाने लगते हैं। मेरे आश्रम में भी अनेकों लोग जाते हैं। कोई चार दिन में दाढ़ी रखाने लगता है, कोई कुछ कहने लगता है। मैंने सैकड़ों लोगों की दाढिय़ाँ बनवा दी हैं। मैंने कहा है कि मैं साधु-सन्त-संन्यासी बनाने नहीं आया। मैं पहले तुम्हें मानव बनाने आया हूँ। मानव बनो, साधक बनो और सामर्थ्यवान् बन जाओ, तो मैं तुम्हें अपना भी पद दे दूँगा। मेरा जीवन तो एकान्त साधना से जुड़ा हुआ है।
यहाँ हरियाणा के रेन्जर रणधीर सिंह चौधरी बैठे हुये हैं। उन जैसे कुछ बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों को उस क्षेत्र में इकठ्ठा किया था, उस समय जब मैं सामान्य सा जीवन जीता था। मैंने कई लोगों को बताया कि मेरे पास यह सामर्थ्य है कि मैं कुछ भी कर सकता हूँ, मगर मैं समाज में अपनी पहचान नहीं चाहता। मैं चाहता हूँ कि एकान्त किसी झोपड़ी में बैठकर केवल ‘माँ’ की साधना करता रहूँ और जो मैं कहूँ, समाज में उस तरह की कमेटी बनाकर आप लोग कार्य करते रहें। वह कार्य मैं करता रहूँगा, जो आप लोग समाज के बीच कह देंगे। मेरे लिये तकलीफ होती है। जिस तरह आप लोगों के बीच बैठना मेरे कार्य के अन्तर्गत नहीं आता है। इस तरह चीखना, चिल्लाना, बोलना मेरे धर्म के अन्तर्गत नहीं आता। कुण्डलिनी चेतना तो पूरी शान्ति चाहती है, केवल तरंगों के माध्यम से कार्य करना चाहती है। मगर, यह जड़ समाज है, जब तक बोलोगे नहीं, बताओगे नहीं, तब तक समझ नहीं सकेगा।
मैंने कहा था कि कुछ लोगों को तैयार करो और वे मेरे विचार जन-जन तक पहुँचायें। मगर, दो-चार साल निकल गये। कई लोग आये और बोले गुरु जी ऐसा कार्य कर दो। रणधीर सिंह से पूछिये, इन्होंने भी अपने क्षेत्र के दो-चार कार्य कहे कि गुरु जी यह अपाहिज पड़ा है। अगर यह थोड़ा सा चलने-फिरने लगे, तो हम अपने पूरे क्षेत्र में परिवर्तन डाल देंगे। मैं तो एक उदाहरण दे रहा हूँ और वह यहाँ मौजूद हैं, सैकड़ों इस तरह के उदाहरण हैं। चार-पाँच साल मेरी साधनाओं का दुरुपयोग किया गया। किसी ने किसी लाभ की कामना की, कि गुरु जी आप हमारा ऐसा काम करा दें, तो हम समाजसेवा के कार्य में लग जायेंगे, मगर वे नहीं कर सके। बाध्य होकर, मजबूर होकर मैं अपने आपको रोक नहीं पाया। चूँकि मैंने 108 महाशक्तियज्ञों का संकल्प समाज के लिये लिया था और छठवें महाशक्तियज्ञ में मुझे अपना परिचय देना पड़ा कि मैं कौन हूँ और क्या हूँ?
मेरे जन्म के विषय में आज से चार-पाँच सौ वर्ष पूर्व के, हज़ार वर्ष पूर्व के भविष्यवक्ताओं ने पहले से ही लिख रखा है कि कब, किस समय, किस समाज के बीच, किस व्यक्ति का जन्म होगा? उसका कार्यक्षेत्र क्या होगा? उसका लक्ष्य क्या होगा? आज हो सकता है कि मैं झूठ बोल सकता हूँ, मेरे शिष्य झूठ बोल सकते हैं, मगर वे चार-पाँच सौ वर्ष पूर्व के भविष्यवक्ताओं की पुस्तकें झूठ नहीं बोल सकतीं। नास्त्रेदमस, कीरो, जीन डिक्सन की पुस्तकों को पढ़ो। मैंने छठवें यज्ञ में अपना परिचय दिया था कि मैं वह युग चेतना पुरुष हूँ, जिसका वर्णन आज से चार-पाँच सौ वर्ष पूर्व के भविष्यवक्ताओं की पुस्तकों में लिखा पड़ा है। मेरा कार्य है मानवता की रक्षा करना, समाज को एक सही दिशाधारा देना, युवावर्ग को पतन के मार्ग से बचाना और इस कार्य के लिये मैंने कहा है कि रक्षाकवच गले में डालो। इससे मेरी चेतना जुड़ी हुई है।
तुम्हें भगवे वस्त्र धारण करने की जरूरत नहीं है, सादगी के वस्त्र धारण करो। मैंने कुर्ता-पैजामा बताया है। आप पैण्ट-शर्ट भी पहन सकते हैं। यही नहीं, आपको फैशन के कुछ और कपड़े अच्छे लगते हैं, उन्हें भी पहन सकते हैं, मगर भारतीय मर्यादाओं में रहकर। आज तो जितना बड़ा क्रैक व्यक्ति हो, वह उतना ही बड़ा फैशन डिजाइनर बन जाता है। जो जितना ही ज्यादा कपड़ों का सत्यानाश कर सके, वही सबसे बड़ा फैशन डिजायनर है। टी.वी. विज्ञापनों में आप देखते होंगे कि कपड़े नजर ही नहीं आते कि कपड़े हैं या क्या हैं? जितना अधिक कुतर सके, काट सके, जितना सत्यानाश कर सके, वह उतना ही बड़ा फैशन डिजाइनर बन जाता है। आप लोग कुछ फैशन डिजाइनरों के बनाये हुये कपड़े पहन सकते हैं, लेकिन भारतीय मर्यादाओं में हों, आप उन्हें पहनें, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। समय के साथ आगे चलना चाहिये। मगर, मैंने कहा है कि भोगवादी जीवन नहीं होना चाहिये, उपयोगवादी जीवन जियें।
उस पतन के मार्ग में मत जाओ। कुछ लोग तो पैसा कमाने के लिये नग्रता का प्रदर्शन करते हैं। उनसे अपने बच्चों को सचेत करो। टी.वी. में अनेकों कार्यक्रम आते रहते हैं कि बियर की पार्टियाँ चल रही हैं, नाच चल रहा है, नृत्य कर रहे हैं और उनका बखान किया जा रहा है कि सब आनन्द उठा रहे हैं, खुश हो रहे हैं, मग्र हो रहे हैं। अरे, उनका व्यक्तिगत जीवन कैसा है? वे तो वेश्याओं से भी बदतर हैं। कलिकाल में राक्षसी प्रवृत्ति के हैं। उनके जीवन से तुम तालमेल मत रखो। वे तृप्त नहीं हैं। वे बियर पीकर ही कुछ शान्ति पा पाते हैं, अन्यथा उनका जीवन ज्यादा अशान्त है, ज्यादा तनावग्रस्त है। वे शान्ति नहीं प्राप्त कर रहे। युवावर्ग भटक जाता है कि शायद उनको ज्यादा स्वतन्त्रता मिली हुई है। हमारे माँ-बाप रोक लगा रहे हैं। उनसे सचेत होने की जरूरत है। वह समाज पतन के मार्ग पर जा रहा है, तुम्हें पतन के मार्ग पर नहीं जाना है। अपने आपको रोकना है। वह तृप्ति का जीवन नहीं है। तृप्ति का जीवन है कि सादगी से रहो।
नित्य सदाचारपूर्ण जीवन जिओ। नित्य प्रातः सूर्योदय से पहले उठो और यदि मैं समाज के लिये कहता हूँ, तो यह मेरे जीवन में पहले से ही अमल में रहता है। समाज को कह रहा हूँ कि एक श्री दुर्गाचालीसा का पाठ करो, तो मेरे आश्रम में अखण्ड श्री दुर्गाचालीसा का पाठ अनवरत चल रहा है। तुम्हें सूर्योदय से पहले उठने की बात कह रहा हूँ, तो मैं ब्राह्ममुहूर्त में तीन बजे से उठकर आप लोगों के लिये साधना करता हूँ। पहले के समय में शिष्य पहले उठते थे, गुरुओं को बाद में जगाते थे और उनकी सेवा में लगते थे। मगर, आज गुरु को पहले उठना पड़ता है। यह कलिकाल है कि शिष्यों को जगाना पड़ता है। मुझसे भी कई बार मेरे शिष्य आश्रम में कहते हैं कि गुरु जी क्या दो घण्टे लेट नहीं किया जा सकता? सुबह बहुत जल्दी उठना पड़ता है। आप चाहें तो कुछ भी कर सकते हैं, दो घण्टे बाद का क्रम अपनालें। आप सुबह जल्दी उठ जाते हैं, तो हमें मजबूरी में उठना पड़ता है। तो, आलस्य सबको प्यारा होता है, मगर मैंने बार-बार कहा है कि उससे सजग रहो। यही तो कलिकाल है। आप एक घण्टे लेटे हैं, तो आपको लगता है कि एक घण्टे और लेट लें, तो हमको और तृप्ति मिल जायेगी। आदत डालो, सूर्योदय से पहले उठ जाओ। जितनी तकलीफ आपको सूर्योदय से पहले उठने में होगी, उतनी ही तकलीफ आपको आठ बजे उठने में होगी। किन्तु, ब्राह्ममुहूर्त में उठने से आपका जीवन स्वस्थ रहेगा, चैतन्य रहेगा। अतः ब्राह्ममुहुर्त में उठने की आदत डालो।
श्री दुर्गाचालीसा का पाठ करो। मैंने जो चेतनामन्त्र दिया है, उन मन्त्रों का कुछ न कुछ जाप करो। जगह-जगह पर आरतियों के क्रम कराये जाते हैं। जहाँ-जहाँ संगठन का गठन हो गया है, वहाँ महाआरतियाँ कराई जाती हैं। मैंने कहा है कि जो श्री दुर्गाचालीसा का अखण्ड पाठ आश्रम में चल रहा है, उसी क्रम से जोड़कर समाज में चौबीस-चौबीस घण्टे के अलग-अलग स्थानों पर श्री दुर्गाचालीसा के पाठ लगातार कराये जा रहे हैं। उसके लिये मेरे शिष्य, मेरे कार्यकर्ता, संगठन के सदस्य घर-घर जाकर निःशुल्क रूप से चालीसा पाठ सम्पन्न कराते हैं। आप चालीसा पाठ करायें, यदि अपने घर में चैतन्यता चाहते हो। आप एक छोटी पार्टी भी देते हैं, तो बड़ी चैतन्यता से करते हैं। मगर, जब श्री दुर्गाचालीसा की बात आती है तो ठीक है, एक छोटी सी तस्वीर रख लीजिये। वही पूजा वाली सुपारी का भाव कि पूजा वाली सुपारी ले आना। खाने के लिये तो अच्छी बड़ी सुपारी लाना, अच्छी देखकर लाना। मगर जब पूजा की बात आती है, तो पूजा वाली सुपारी ले आना। वैसे तो मैं मना ही करता हूँ कि पूजा में कभी सुपारी वगैरह का प्रयोग होता ही नहीं। यह भ्रान्ति है उन पण्डितों की, जो पान खाते थे, सुपारी खाते थे। भगवान् के नाम पर इसी बहाने पान-सुपारी चढ़ा दोगे, तो पान-सुपारी भगवान् तो खायेंगे नहीं। बाद में हम ले जायेंगे और हम खायेंगे! अतः इन क्रमों में अच्छा भोग लगाओ, अच्छा प्रसाद चढ़ाओ।
गुरुवार का व्रत रहो। आपको अन्य किन्हीं व्रतों को रहने की जरूरत नहीं है, यदि आप गुरुवार के व्रत को रहते हैं। सुबह से शाम तक व्रत रहो और उसमें भी किसी आडम्बर में पडऩे की जरूरत नहीं है। दिन में थोड़ा-बहुत आप चाहें तो फलाहार कर सकते हैं। शाम को सात्त्विक भोजन दाल, चावल, नमक, रोटी जो भी हो शुद्ध और सात्त्विक हो, घर में भोजन कर लीजिये। सफर में पड़ जाते हैं, तो सूर्यास्त के बाद जो शुद्ध भोजन मिले, आप भोजन कर लीजिये। श्री दुर्गाचालीसा का पाठ आप लोग घर में अनुष्ठान के रूप में करायें। जातिभेद को मिटा दें, आपका विवेक जाग्रत् होगा। आप कर्मवान् और धर्मवान् बनेंगे। आपके अन्दर कार्य करने की क्षमता पैदा होगी। मैंने कहा है कि मेरे शिष्य धन से गरीब और तन से निर्बल हो सकते हैं, मगर मन से चेतनावान् होंगे, आत्मा से चेतनावान् होंगे। अतः अन्य समाज के लिये भी मेरा चिन्तन है कि नित्य शक्तिजल का पान करो।
इस शरीर ने भी एक किसान परिवार में जन्म लिया है, ग्रामीण जीवन के बीच जन्म लिया है। मैंने अनीति-अन्याय-अधर्म से कभी समझौता नहीं किया है। मेरा प्रण रहा है कि मौत को स्वीकार कर लेना श्रेयस्कर रहेगा, मगर अनीति-अन्याय-अधर्म के सामने घुटने टेकना उचित नहीं। धर्म का लुटेरा बनकर जीवन नहीं जिऊंगा। एक भिखारी का जीवन जीना मैं श्रेष्ठ समझूँगा। लेकिन, आज के जितने धर्माचार्य हैं, उन्हें तो मैं कहूँगा कि उनसे तो डकैत ज्यादा श्रेष्ठ हैं। वे कम से कम खुलेआम राइफल लेकर टहलते हैं और कहते तो हैं कि हम डकैत हैं। आज अगर दो क्षेत्र चाह लें, धर्मक्षेत्र और राजनीतिक्षेत्र, तो बहुत कुछ कर सकते हैं। मगर इनसे ज्यादा अपेक्षा मात्र दो क्षेत्रों से की जा सकती है कि यदि न्यायपालिका और प्रचार मीडियावर्ग, प्रिण्ट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया अगर चाह लें, तो समाज में परिवर्तन करना बहुत कठिन बात नहीं है। लेकिन ये गुलामी का जीवन जीना बन्द कर दें। समाज की ओर, मानवता की ओर आँख उठाकर देखें। अरे, तुम्हें मान मिला है, सम्मान मिला है, पद मिला है, प्रतिष्ठा मिली है। क्यों बेचते हो अपना ईमान?
सब जगह भ्रष्टाचार फैल चुका है और यह न्यायपालिका को भी अपने चंगुल में ले चुका है। अपने आपको कम से कम नब्बे प्रतिशत तो सत्यता पर ले आओ। मैं नहीं कहता कि तुम एक सौ एक प्रतिशत सत्यता पर खड़े हो जाओ। हो सकता है न हो पाओ। समाज के साथ ऐडजस्ट करना कठिन हो जायेगा। मगर, नब्बे प्रतिशत तो सत्यता की आवाज को उभारो, समाज की आवाज को उभारो, गरीबों के दुःख-दर्द को उभारो। जो राजनेता अन्याय-अत्याचार कर रहे हैं, उसको तो उभारो। उनके रहस्यों को उभारकर समाज के सामने तो रखो। उनको कानून के दायरे में लाओ। इसके लिये प्रचार मीडिया और न्यायपालिका बहुत कुछ कर सकते हैं। धर्मक्षेत्र के बाद अगर कोई दूसरा महत्त्वपूर्ण क्षेत्र आता है, तो वह है न्यायपालिका। उस पद पर बैठकर कम से कम नब्बे प्रतिशत तो सही कर लो। समाज का कल्याण हो जायेगा। समाज में बहुत कुछ सुधार हो जायेगा।
आज न्याय बिक रहा है। गरीबों के लिये अलग न्याय है, अमीरों के लिये अलग न्याय है। कोई भी अधर्मी-अत्याचारी नेता सजा नहीं पाता। आज राजनीतिक्षेत्र में जो भी पार्टी सत्ता में आई नहीं कि चाहे करोड़ों-अरबों का भ्रष्टाचार हो, सी.बी.आई. से सब बरी। गवाह पलट गये, जज का निर्णय पलट गया। बेचारे दुःख-दर्द के मारे हुये भिखारी या भिखारियों जैसा जीवन जीने वाले लोग जो न्यायपालिका को अपने धनबल से प्रभावित नहीं कर सकते, कोई बड़ा वकील नहीं लगा सकते, वे दिल मसोसकर रह जाते हैं। अतः अगर न्यायपालिका और मीडियावर्ग वास्तव में समझते हैं कि उनका कर्तव्य है कुछ समाज के प्रति, कुछ दायित्व है, तो अनीति-अन्याय-अधर्म के खिलाफ खुली जंग छेड़ें। भय का त्याग कर दें। और देखें, मैं कह रहा हूँ कि उनको चार गुना ज्यादा सफलता मिलेगी। उनके समाचारपत्रों का ज्यादा विस्तार होगा। सुधारो तो अपने आपको। जाग्रत् तो करो अपने आपको। मैं नहीं कहता कि तुम मेरे शिष्य बन जाओ। मैं नहीं कहता तुम मेरा मान-सम्मान करो। तुम किसी के भी शिष्य बने रहो, मगर कार्य तो धर्म का करो, कार्य तो मानवता का करो। अगर नहीं करोगे, तो इस समाज में कर्म के अनुसार ही मनुष्य को जन्म मिलता है। कहीं बाहर से किसी को कुछ भोगकर नहीं आना। एक भिखारी के यहाँ जन्म लेने वाला बच्चा जन्म लेते ही भिखारी बन जाता है। एक राजघराने में जन्म लेने वाला बच्चा जन्म लेते ही राजकुमार बन जाता है। कहीं न कहीं यह शरीर या आप यदि गलत कार्य करेंगे, तो उसके फल को भोगना अवश्य पड़ेगा, उससे कोई बच नहीं सकता।
प्रकृति के विधान में रंचमात्र भी गुंजाइश नहीं है। आप अपने आपको अपने कर्म को करते हुये ऋषितुल्य बना सकते हैं और कर्म के पतन के मार्ग में जाकर रावण के समान राक्षसी प्रवृति के भी बना सकते हैं। निर्णय आपको लेना है कि आप धर्म का साथ देना चाहते हैं या इस कलिकाल में अधर्म का साथ देना चाहते हैं। आप सत्य के पलड़े पर खड़े होना चाहते हैं या असत्य के पलड़े पर खड़े होना चाहते हैं। निर्णय आपको लेना है। सामर्थ्य देने के लिये मैं तैयार बैठा हूँ। कोई समाचारपत्र उभरकर आगे आये। आज जो उसके पास धनबल हो, मैं उसकी सामर्थ्य को चार गुना बढ़ा दूँगा। उसके बाद तो कुछ करो। अरे, धन उतना बटोरो, जिससे तुम्हारा जीवकोपार्जन हो जाये, बच्चों को उचित शिक्षा दे सको। इसके बाद अगर और जरूरत है, तो कम से कम एक पीढ़ी के लिये तिजोरियाँ भर लो। उसके बाद तो रुक जाओ। और यदि उससे ज्यादा हो, तो समाज की ओर आँखें उठा लो, जिस समाज को आवश्यकता है, जिस समाज को जरूरत है। उस मानवता की रक्षा के लिये खड़े हो जाओ। तुम गरीब हो, अमीर हो, जहाँ भी हो, तुम चाहो, तो सब कुछ कर सकते हो।
जातिप्रथा के भेद को मिटा डालो। छुआछूत के भेद को मिटा डालो। जाति के नाम पर राजनीति करने वालों को या तो सुधार दो या कालकोठरियों में भेजने के रास्ते तैयार कर दो। तभी होगा तुम्हारा कल्याण। तभी होगी धर्म की रक्षा। तभी होगी हिन्दूधर्म की रक्षा। तभी होगी इस्लाम धर्म की रक्षा। तभी होगी सिक्खसमाज की रक्षा। तभी होगी ईसाईसमाज की रक्षा। कोई भी धर्म आडम्बर में जाकर अपने धर्म की स्थापना नहीं कर सकता। अनेकों धर्म हैं, जहाँ आडम्बर रच-रचकर समाज के विस्तार करने की बात कही जा रही है। धर्म की लोलुपता से समाज के लोगों को खरीदा जा रहा है। मैं कभी किसी समाज को बाध्य नहीं करता कि तुम मेरे विचार को मानो। धर्म स्वतन्त्रता से धारण करने की चीज है। अगर धर्म को भी धनबल के माध्यम से धारण कराया गया, दबाव के माध्यम से धारण कराया गया, तो वह धर्म कभी नहीं होता। धारण करने वाला भी अपराधी है और धारण कराने वाला भी अपराधी है। अगर अपने-अपने समाज की रक्षा करनी है, तो सामर्थ्यवान् बनो, आत्मावान् बनो। जनसंख्या बढ़ाने से समाज की रक्षा नहीं होगी। जनसंख्या को सीमित करो। सीमित परिवार, सुखी परिवार और सामर्थ्यवान् परिवार होगा। सौ से एक भले। अगर एक सामर्थ्यवान् है, तो सौ के ऊपर भारी पड़ेगा और यदि चेतनावान् है, तो उसे कोई पराजित नहीं कर सकेगा।
जातीय दंगों में मत पड़ो। अगर कोई गलत करता है, तो उसको दण्ड दो। मैं नहीं कहता कि गलत करने वाले को माफ कर दो। किसी काल में कोई विचारधारा थी, मगर हर काल में अलग-अलग विचारधारा की आवश्यकता होती है। गाँधी जी ने किसी समय विचारधारा दी थी कि अगर कोई आपके एक गाल पर तमाचा मारे, तो अपना दूसरा गाल भी उसकी तरफ कर दो। मगर, इस कलिकाल में यह नहीं चल सकता। अगर तुम्हारे गाल पर कोई तमाचा मारता है, तो उसे चेतावनी दे दो और यदि दूसरा मारता है, तो उसका हाथ तोड़ दो। मैं उन गुरुओं में हूँ। मगर, अपनी शक्ति का कभी दुरुपयोग मत करो। तुम्हारी शक्ति के प्रभाव से एक भी व्यक्ति ऐसा जो निरपराध हो, वह प्रताड़ित नहीं होना चाहिये। कई बार ऐसे दंगे भड़कते हैं कि लोगों को आग में भून दिया जाता है, किसी को कहीं जला दिया जाता है। इससे बचो। छोटे-छोटे बच्चे किस तरह तड़पते होंगे? किस तरह जलते होंगे? यदि वे हमारे बच्चे हों, हमारा अपना भाई हो, हमारी अपनी पत्नी हो, तो हमें कैसा दर्द होगा? उस तरह के अपराधों से बचो।
तुम्हारे पास सामर्थ्य है, सत्ता है, शक्ति है। अगर कोई अपराधी अपराध करता है, तो उसे ढ़ूँढो, तलाशो और उसे उस अपराध का दण्ड दो। तुम दिला सकते हो, सत्ता है, विधान है। उन विधानों का उपयोग करो। सब कुछ सम्भव है। तत्काल जल्दबाजी में अपने आपको उग्रवाद में मत लेजाओ। यदि कोई भी समाज उग्रवाद की ओर बढ़ गया, तो वह समाज पतन की ओर निश्चित रूप से चला जायेगा। मैं दूसरे समाज को नहीं कह सकता, तो कम से कम हिन्दूसमाज को जरूर चेतावनी देना चाहूँगा कि अगर तुम हिन्दूसमाज के रक्षक बनना चाहते हो, हिन्दूसमाज को बचाना चाहते हो, तो उसमें कभी उग्रवाद को पनपने मत दो। यदि उग्रवाद पनप गया, तो उसका पतन निश्चित है। उसको कोई बचा नहीं सकेगा, चूँकि यदि हमारा अन्तर्मन ही अशान्त हो गया, अगर हम तमोगुणी हो गये, तो हमारा रजोगुण और सतोगुण तो दबकर रह जायेगा। हम कभी उभर नहीं पायेंगे। सत्य के बल पर ही असत्य को पराजित किया जा सकता है। उठो तो, जाग्रत् तो होओ। मौत का भय त्याग दो। बढ़ चलो उस तरफ उस प्रकृतिसत्ता का चिन्तन लेकर, उस प्रकृतिसत्ता की आराधना करके।
मैंने सरलतम मार्ग बताये हैं– श्री दुर्गाचालीसा का पाठ, चेतनामन्त्र का जाप, सूर्योदय से पहले उठने का क्रम और अपने घर में ‘माँ’ का ध्वज लगा दो। देखो कौन तुम्हारा अहित कर सकता है? गले में रक्षाकवच डालो। अगर कोई ऐसा विधान है, परिस्थिति है कि आप खुले में रक्षाकवच नहीं डाल सकते हो, तो गले के अन्दर डाल लो, जेब में रख लो। एक न एक दिन तुम्हारे अन्दर आत्मबल जाग्रत् होगा कि तुम खुलकर तिलक लगाने लगोगे, रक्षाकवच डालने लगोगे। आज नहीं तो कल, वह दिन आयेगा कि जहाँ कहीं तुम्हें बाध्य नहीं किया जायेगा कि आप यहाँ रक्षाकवच डालकर नहीं आ सकते। आप किसी जाति के हों, किसी धर्म के हों, किसी सम्प्रदाय के हों, आज्ञाचक्र कभी खुला नहीं होना चाहिये। इस कलिकाल में यदि किसी के आज्ञाचक्र पर कुंकुम का तिलक लगा हो या किसी लाल रंग का तिलक लगा हुआ हो, तो आज्ञाचक्र पर किन्हीं भी दूषित शक्तियों का प्रभाव नहीं पड़ पाता। चूँकि किसी की नजर लगना या हमारे ऊपर किसी की जो सतोगुणी तरंगें आती हैं, तो हमारे शरीर में वे भी आज्ञाचक्र के माध्यम से प्रवेश पाती हैं। मैंने भी आज जो गुरुदीक्षा प्रदान की है, उसमें भी आज्ञाचक्र को स्पर्श किया है। उस आज्ञाचक्र को सदैव ढककर रखना चाहिये। आपको अगर तिलक लगाने में परहेज हो, क्योंकि किसी-किसी को एलर्जी होजाती है, सूट नहीं करता, तो वह चन्दन लगा सकता है। मगर, कम से कम आज्ञाचक्र खुला न रखो, हो सके तो उसे ढककर रखो। कोई ऐसी परिस्थितियाँ हैं, कोई ऐसे जॉब हैं या कोई ऐसे कार्य हैं, तो उन कार्यों से हटकर शेष समय में प्रयास करो और धीरे-धीरे करके आदत डालो। आदत पड़ जायेगी, तो कुंकुम का तिलक लगा लिया, चन्दन का तिलक लगा लिया या और कोई तिलक लगाने से कोई परहेज नहीं होगा।
उन तान्त्रिकों-मान्त्रिकों का भय त्याग दो। एक बार शक्तिजल का पान करो और चेलैन्ज करके किसी तान्त्रिक के सामने खड़े होजाओ, भला तुम्हारा कोई बाल भी बाँका कर सके! शक्तिजल निःशुल्क समाज को देता हूँ। घट जाये, तो यह कहता हूँ कि बार-बार मेरे दर पर भी आने की जरूरत नहीं है। घटने के पहले उसमें गंगाजल या नर्मदाजल मिला लो, वह उसी तरह चैतन्य हो जायेगा। श्रद्धा के साथ रखो और श्रद्धा के साथ उसका उपयोग करो। अचानक यदि किसी को कोई ऐसी समस्या पड़ जाये, जहाँ कोई मेडिकल सुविधा उपलब्ध न हो, तो आप ‘माँ’ का ध्यान करके एक-दो बार उसे पिलाकर तो देखो। देर-सबेर एक बार उसे होश आयेगा अवश्य। उसे इतना समय जरूर मिलेगा कि वह मेडिकल सुविधाओं तक जा सके। आपकी नाना प्रकार की बीमारियाँ उस शक्तिजल से ठीक हो सकती हैं। मगर, ऐसा नहीं कि आप शक्तिजल लेने के बाद कह दें कि हम इलाज कराने जायेंगे ही नहीं। आजकल मेडिकल में सारी सुविधायें दी गई हैं। जो संसाधन हैं, उनका भी उपयोग करें। जो दवाइयाँ आपको लाभ नहीं दे रही हैं, फायदा न कर रही होंगी, ‘माँ’ के आशीर्वाद का सहारा लेकर शक्तिजल का सेवन करने लगेंगे, तो वही दवाइयाँ आपको फायदा देने लगेंगी। उस शक्तिजल का उपयोग करें और चेतनामन्त्र का जाप करें।
अनीति-अन्याय-अधर्म के सामने घुटने मत टेकें। सामर्थ्यवान् बनें, चेतनावान् बनें। ‘माँ’ की आरती आदि, साधना संजीवनी पुस्तक में मैंने सभी सरलतम क्रम दिये हैं। जिस समय आप मेरा भी गुणगान कर रहे होते हैं, उस समय भी मेरी वह भावना तरंगें उस परम गुरु माता भगवती के चरणों में जा रही होती हैं। जिस समय आप ‘माँ’ की आरती कर रहे होते हैं, उस समय भी वह ध्वनि तरंगें उस प्रकृतिसत्ता के चरणों में पहुँचाने का कार्य हो रहा होता है। प्रकृतिसत्ता कण-कण में मौजूद है। उसे पुकारने के लिये कोई भी भाषा हो, किसी भी भाषा का उपयोग किया जा सकता है। बस वह भाषा आपकी भावना से परिपूर्ण हो, चेतना से परिपूर्ण हो। अतः अब हम आप सब लोग इस दिव्यता की आरती की ओर बढ़ेंगे।
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