117वां शक्ति चेतना जनजागरण शिविर, कानपुर देहात (उ.प्र.) 18, 19 नवम्बर 2017

उत्तरप्रदेश के कानपुर देहात ज़िला मुख्यालय से सम्बद्ध क्षेत्र फैक्ट्री भूमि, मद्दीपुरवा (मजरा उमरन), निकट टोल प्लाजा (बारा) में देश-देशान्तर से पहुंचे ऋषिवर के नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् शिष्यों ने योग-ध्यान-साधनाक्रम के साथ ही परम पूज्य सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के चेतनात्मक चिन्तन का लाभ प्राप्त किया। आपश्री ने उपस्थित जनसमुदाय को धर्म, धैर्य एवं पुरुषार्थ धारण करने की विधा का ज्ञान कराने के साथ ही नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् व चेतनावान् जीवन के महत्त्व पर प्रकाश डाला। गुरुवरश्री ने धर्माचार्यों को उनके कर्त्तव्य का बोध कराते हुए कहा है कि अन्दर तक व्याप्त हो चुकी कलुषित भावना और स्वार्थ की प्रवृत्ति को त्यागकर अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करें, जिससे समाज का भटकाव समाप्त हो सके।
धर्माचार्य, शंकराचार्य व योगाचार्यों के ऊपर समाज को जगाने का दायित्त्व है, लेकिन वे भ्रष्ट राजनेताओं और उद्योगपतियों की चापलूसी करते व माल्यार्पण करवाते नजर आते हैं और जनसामान्य को किस्से-कहानियों और नाच-रास-रंग में उलझाकर भटकाव का रास्ता प्रशस्त कर रहे हैं। आपश्री ने विश्वअध्यात्मजगत् को चुनौती देते हुए कहा कि एक बार सभी धर्मगुरु एक साथ एकत्रित हों, एक सम्मेलन हो और अपना शक्तिपरीक्षण कराएं। क्या उनमें कोई शक्ति है? क्या वे सूक्ष्म को जाग्रत् कर सकते हैं, क्या हज़ारों मील दूर घटित घटनाओं के बारे में बता सकते हैं, आज्ञाचक्र को स्पर्श करने मात्र से किसी रोगी को निरोगी बना सकते हैं, क्या ध्यान-समाधि में जाने की पात्रता प्राप्त है, क्या कुण्डलिनीचेतना जाग्रत् है? इस बात का परीक्षण विज्ञान भी कर सकता है।

सद्भावना यात्रा
दिनांक 15 नवम्बर 2017 की प्रातःकालीन बेला, आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की आरती करने व ध्यान-साधना के उपरान्त, ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज जैसे ही ज़िला कानपुर देहात (उत्तरप्रदेश) के लिए पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम से प्रस्थित हुये, आश्रमवासियों व भक्तों के जयकारों और शंखनाद से वातावरण गुंजायमान हो उठा। गुरुवरश्री के वाहन के पीछे शक्तिस्वरूपा बहनों का वाहन चल रहा था और उनके पीछे अनेक वाहनों में शिष्यगण चल रहे थे।
वाहन से ही आश्रमवासियों को आशीर्वाद प्रदान करते हुये सद्गुरुदेव जी महाराज् सर्वप्रथम स्वामी रामप्रसाद आश्रम जी महाराज की समाधिस्थल पर गये, पश्चात् त्रिशक्ति गौशाला पहुंचे, जहां उन्हें नमन् करने के लिये द्वार पर फूलों से आच्छादित तोरणद्वार सजाए गोसेवक कतारबद्ध जयकारे लगाते व शंखध्वनि करते हुये खड़े थे, इन्हें आपश्री ने आशीर्वाद प्रदान किया। शनैः शनैः नशामुक्ति शक्ति चेतना जनजागरण सद्भावना यात्रा रीवा मार्ग पर आगे बढ़ी। परम पूज्य गुरुवरश्री की यात्रा का आभास पाकर ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में स्थान-स्थान पर शिष्यों-भक्तों द्वारा स्वागतद्वार सजाये गये थे। स्वागतद्वारों के दोनों ओर आरती की थाल सजाये खड़े भक्तों की आतुरता देखते ही बनती थी। यात्रा मऊ, देवलौंद होते हुए बघवार पहुंची। यहां हज़ारों की संख्या में गुरुभाई-बहन व क्षेत्रीय जनों ने अति उल्लास-उमंग के साथ हाथ जोड़कर अपने आराध्य को नमन किया। यात्रा मंदगति से आगे बढ़ी। आगे-आगे सैकड़ों दोपहिया वाहनों में बैठे शिष्य। पीछे बैठे हर शिष्य के हाथ में शक्तिदण्डध्वज की शोभा दर्शनीय थी।
सद्भावना यात्रा जैसे ही रीवा पहुंचती है, ‘माँ’-गुरुवर के जयकारों व शंखध्वनि से समूचा क्षेत्र गूंज उठा। मार्ग के दोनों ओर हज़ारों गुरुभाई-बहनों, ‘माँ’ के भक्त व अनुशासनपूर्वक करबद्ध खड़े बच्चों के चेहरों में अपार प्रसन्नता झलक रही थी। गुरुवरश्री ने वाहन से ही मृदुल मुस्कान बिखेरते हुए सभी को आशीर्वाद प्रदान किया। रीवा के बस स्टैण्ड के पास सड़़क मार्ग पर भी भक्तों ने यात्रा का स्वागत किया, गुरुभाई-बहनों के साथ जयकारे लगाते, हाथ जोड़कर यात्रा को नमन करते हुए बच्चों की प्रसन्नता देखकर आभास हो रहा था कि वह दिन दूर नहीं, जब ये बड़े होकर शक्तिसाधकों के रूप में समाज को नई दिशा देंगे। रीवा बस स्टैण्ड के कुछ आगे हज़ारों महिलाओं व बालिकाओं के हाथों में दीप प्रज्जवलित कलश और गुरुदेव भगवान् को नमन करते भक्तों की लम्बी शृंखला देखकर राहगीर आश्चर्यचकित थे। इस दौरान पुलिस प्रशासन की मुस्तैदी सराहनीय रही। तहसील रायपुर कर्चुलियान में गुरुभाई-बहनों की भारी भीड़, सभी ने अनुशासनपूर्वक सड़क मार्ग के दोनों ओर खड़े होकर परम पूज्य गुरुवरश्री का दर्शनलाभ प्राप्त किया। कुछ आगे चलकर बघेल ढाबा के आगे कतारबद्ध हाथ जोड़े खड़े जयकारे लगाते हुए प्राथमिक विद्यालय के बच्चे, बड़ा ही मनोरम दृश्य परिलक्षित था।
यहां से आगे-आगे मोटरसाइकिलों की कतार के पीछे गुरुवरश्री व शक्तिस्वरूपा बहनों तथा गुरुभाई-बहनों के अनेक वाहन, सद्भावना यात्रा ग्राम बेलवा पैकान होते हुए मनगवां पहुंची। यहां पर अपने आराध्य के दर्शनार्थ हज़ारों ग्रामवासी जयकारे लगाते हुए खड़े थे। प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालय के छात्र-छात्राएं जहां अनुशासनपूर्वक हाथ जोड़े हुए खड़े थे, वहीं अनेकों महिलाओं के हाथों में आरती की थाल, यह अनुपम दृश्य मन को मोह लेने वाला था। गंगेव में भव्य स्वागत द्वार, मनमोहक रंगोली और गुरुदेव भगवान् की अगवानी के लिए कतारबद्ध खड़े ग्रामवासी व गुरुभाई-बहन और बच्चे। सम्पूर्ण क्षेत्र गुरुमय हो गया था। गुरुवरश्री ने वाहन से ही सभी को आनन्दमय जीवन के लिए आशीर्वाद प्रदान किया। ग्राम सोहागी, बघेड़ी व चाकघाट पर स्वागतार्थी भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ा था। नारीबारी, नैनी व इलाहाबाद में भी सद्भावना यात्रा का भव्य स्वागत हुआ। सभी स्थानों पर जहां तोरणद्वार सजाए गए थे, वहीं भक्तगण अपने अराध्य के स्वागत में फूलों की वर्षा करके भक्तिभाव प्रदर्शित कर रहे थे। आगे पुरामुफ्ती में परम पूज्य गुरुवरश्री के दर्शनार्थ भक्तों की आतुरता देखते ही बनती थी। रीवा से इलाहाबाद तक जगह-जगह श्रद्धालुभक्तों के द्वारा सद्भावना यात्रियों को मिष्ठान्न, समोसे, नमकीन के पैकेट व मिनरल्स वाटर उपलब्ध करवाए गए।
सायंकाल 04:00 बजे महगांव (कौशाम्बी) में जैसे ही सद्भावना यात्रा का प्रवेश होता है, जयकारों से वायुमंडल गूज उठा। मार्ग के किनारे कतारबद्ध खड़े भक्त ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाने के साथ ही शंखनाद कर रहे थे। महिला भक्तों एवं बच्चियों के हाथ में दीप प्रज्वलित कलश शोभायमान हो रहे थे। सुसज्जित स्वागतद्वारों की अलग ही छटा थी। सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने सभी शिष्यों-भक्तों को आशीर्वाद प्रदान किया।
खागा (फतेहपुर) में स्वागतद्वार और चमकीली पन्नियों व फूलमालाओं से सुसज्जित मार्ग के दोनों किनारों पर जयकारे लगाते हुए महिला-पुरुष व बालक-बुजुर्ग खड़े हुए थे। जैसे ही ऋषिवर के वाहन को देखा, भावावेश में चरणस्पर्श करने हेतु दौड़ पड़े और तब तक दौड़ लगाते रहे, जब तक कि वाहन को स्पर्श नहीं कर लिया और इतने में ही उनके प्रसन्नता की सीमा नहीं रही, ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कि उन्हें कोई खजाना मिल गया हो। फतेहपुर में यात्रा के स्वागतार्थ फूल मालाओं से सुसज्जित भव्य द्वार बनाया गया था, उसके ऊपर शक्तिदण्डध्वज लगा हुआ था। महिलाओं ने ऋषिवर की आरती उतारकर अगवानी की। मार्ग के किनारे करबद्ध खड़े गुरुभाई-बहन व क्षेत्रवासी सद्गुरुदेव भगवान् से आशीर्वाद प्राप्त करके अति उत्साहित दिखे और पैदल ही जयकारे लगाते हुए कुछ दूर तक सद्भावना यात्रा का साथ दिया। सद्गुरुदेव महाराज जी के स्वागत हेतु फतेहपुर स्थित हॉटल इन (गुरुआवास) परिसर में भक्तों ने फूल की पंखुडिय़ां बिछा रखी थी।
फतेहपुर स्थित गुरुआवास (हॉटल इन) में रात्रि विश्राम के बाद दिनांक 16 नवम्बर को प्रातःकाल 09:00 बजे ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज जैसे ही निकलते हैं, जयकारों व शंखध्वनि से सम्पूर्ण वातावरण तरंगित हो उठा। यहां से सद्भावना यात्रा गुरुजन्मस्थली ग्राम भदबा के लिए प्रस्थित हुई। रास्ते में पडऩे वाले ग्रामों सौरा, मलवा व बेहटा में भक्तों ने राह में पुष्प बिखेरकर ऋषिवर का स्वागत-वन्दन-अभिनन्दन किया। इस दौरान सद्भावना यात्रा में चल रहे शिष्यों को गुरुवरश्री के सान्निध्य में ग्राम बेहटा स्थित बाला जी के मंदिर में दर्शन करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। ज्ञातव्य है कि बेहटा का बाला जी मंदिर बजरंगबली हनुमान जी का पूर्ण ऊर्जात्मक व प्रमाणिक स्थान है। यहाँ की आरती का लाभ परम पूज्य गुरुवरश्री के सान्निध्य में समस्त भक्तों ने प्राप्त किया। आरती के समापन पर गुरुवरश्री ने 11 हज़ार रुपए की समर्पण राशि भेंट की व मुख्य पुजारी जी को वहां के फर्श निर्माण आदि कार्य के लिए इक्यावन हज़ार रुपए शीघ्र उपलब्ध करा देने की बात कही।
बाला जी के दर्शन उपरान्त, यात्रा आगे बढ़ी। कई वर्षों के बाद अपनी जन्मस्थली पहुंच रहे ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के स्वागत में भारतीय संस्कृति के अनुरूप केले व आम के पत्तों से प्रवेश द्वार को सजाया गया था और ग्रामवासियों की उत्सुक दृष्टि आपश्री के आगमन की बाट जोह रहीं थीं। कुवंरपुर से भदबा मोड़ पर नहर के पास से ही ग्राम प्रधान चुन्नू सिंह परिहार जी के प्रतिनिधित्व में सैकड़ों ग्रामवासियों व गणमान्य नागरिकों ने गुरुवरश्री की पूर्ण नमन भाव से अगवानी की। इनमें प्रमुख रूप से राजकरन सिंह परिहार जी, चन्द्रपाल सिंह परिहार जी, रामस्वरूप सिंह परिहार जी, विनोद सिंह चौहान जी, पाण्डे जी आदि गणमान्य नागरिकों के साथ ही संगठन के समस्त पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं, गुरुभाई-बहनों ने भी परम पूज्य गुरुवरश्री को नमन करके दर्शनलाभ प्राप्त किया।
ऋषिवर ने जैसे ही ग्राम भदबा में प्रवेश किया, सभी ग्रामवासी अपने-अपने घरों से बाहर निकलकर द्वार पर खड़े हो गए और उनकी ओर अपलक निहारते रहे। आन्तरिक प्रसन्नता के वशीभूत वे जयकारे लगाना भी भूल चुके थे। पैतृकस्थल (जन्मस्थली) पर हज़ारों की संख्या में भदबा और मोहनखेड़ा के लोगों का समूह एकत्रित था। वहां पहुंचकर परम पूज्य गुरुवरश्री माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की छवि को नमन करने के उपरान्त, मंचासीन होकर उपस्थित जनों को सुख-समृद्धि व साधनामय जीवन के लिए आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहते हैं कि-
मानवता के कल्याण हेतु मेरे कदम अग्रसर हैं। यहां भी मैं आप लोगों के कल्याण के लिए आया हूँ। मैं भदबा (भद्रवास) और मोहनखेड़ा को एक समान मानता हूँ। मेरी इच्छा है कि अन्य विकासशील क्षेत्रों की तरह इन दोनों ग्रामों का भी विकास हो। आप लोग नशे-मांस से मुक्त होकर चरित्रवान् जीवन अपनाएं, आपके बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा और युवाओं को रोजगार मिले। आप लोगों को मालूम है कि बचपन से ही मेरा जीवन साधनात्मक था। आत्मबल में अलौकिक शक्ति होती है, जरूरत है तो केवल नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन की। सबसे बड़ी शक्ति होती हैं- आत्मिक, बौद्धिक व शारीरिक शक्ति। आत्मा अजर-अमर-अविनाशी है, तो क्यों न उस रास्ते पर बढ़ चलें जहां शान्ति है, शक्ति है। अनीति-अन्याय-अधर्म से कोसों दूर रहें। आज से 40 वर्ष पहले मैंने जो संकल्प लिया था, उसमें किंचितमात्र भी अन्तर नहीं आया है, इसी का प्रतिफल है कि आज एक लाख से अधिक शिष्य जनजागरण में लगे हुए हैं और कम से कम दस लाख ऐसे शिष्य हैं जो साधनात्मक जीवन जीते हुए अपने कर्त्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं।
मैं स्वयं के द्वारा उपार्जित धन से अपने व अपने परिवार का जीवकोपार्जन करने के साथ परोपकार के कार्य भी करता हूँ और समाज के द्वारा समर्पित धन को मेरे द्वारा समाजकल्याण में ही लगाया जा रहा है। आप लोग भी ऐसा जीवन अपना सकते हैं। हर पल अपने आपमें सात्विक विचारधारा बनाकर रखो, नकारात्मक विचारों को मन से निकालकर फेंक दो। माता आदिशक्ति जगज्जननी हमारी मूल जननी हैं, जिस दिन यह स्वीकार कर लोगे जीवन की दशा और दिशा बदलती चली जायेगी। माता भगवती की साधना से सहज-सरल कुछ भी नहीं है। उनसे हमारी आत्मा का सीधा सम्बन्ध है। एक विचारधारा, सच्चाई व ईमानदारी का जीवन जिओ। जातपात, छुआछूत, साम्प्रदायिक भावना से ऊपर उठो। हमारा सबसे बड़ा धर्म इन्सानियत का है और सभी धर्म हमें इन्सानियत का ही पाठ पढ़ाते हैं।
आप लोगों के लिए मेरा हृदय हमेशा के लिए खुला है। मैं जानता हूँ इस गांव की धरती में अलौकिक शक्ति है, लेकिन भटकाव के कारण यहां के लोग वंचितों का जीवन जी रहे हैं। गांव में घुसते ही देशी शराब की दुकान है, जिससे युवा पीढ़ी बरबाद हो रही है। जो राजसत्ताएं शराब पिलाएं, उनसे बड़ा अन्यायी-अधर्मी और कोई हो ही नहीं सकता।
ऋषिवर ने कहा कि इस जन्मस्थली में भविष्य में माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का एक भव्य मंदिर का निर्माण कराना मेरे चिन्तन में है। आपके इस भदबा ग्राम में एक सुविधायुक्त भवन बनवाया जा रहा है, जो कि शादी-विवाह व अन्य समारोहों के लिए आप लोगों को निःशुल्क उपलब्ध होगा, लेकिन भवन उन्हें ही उपलब्ध होगा जो नशे-मांस का सेवन नहीं करेंगे। मैं चाहता हूँ कि ग्राम में निर्विवाद पेयजल स्थल का निर्माण कराया जाए, जहां सबको पीने के लिए स्वच्छ पानी मिल सके। एक मंडी का निर्माण हो और यहां के किसान उचित मूल्य पर स्वयं अपना उत्पाद बेंच सकें। इससे आय दुगुनी होगी। बच्चों की शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए छुट्टियों में निःशुल्क कोचिंग की व्यवस्था करवा दी जायेगी। अगले वर्ष से 15 दिन के लिए ग्राम के युवाओं को योग का प्रशिक्षण दिया जायेगा। आगे वे इस क्रम को बनाए रखते हुए स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते हैं। इतना ही नहीं, हर वर्ष भदबा और मोहनखेड़ा ग्राम के दो लोगों को जो सबसे गरीब व्यक्ति होंगे, उन्हें आर्थिक सहयोग के रूप में 51-51 हज़ार रुपए व्यवसाय के लिए दिए जायेंगे। चयन के लिए 11 लोगों की एक कमेटी बना दी जायेगी। निःशुल्क सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र भी खुलवा दिया जायेगा, जिससे बेरोजगार युवक-युवतियां सिलाई का कार्य करके जीवकोपार्जन कर सकें। सभी मेरे अपने हो, एक बार सिद्धाश्रम आओ तो सही, मुझसे निःस्वार्थभाव से जुड़ो तो, दोनों ग्रामों को विकास की ऊंचाईयों पर पहुंचा दूँगा। आओ हम सब मिलकर ग्राम विकास में सहभागी बनें।
परम पूज्य गुरुवरश्री ने कहा कि 26 अक्टूबर को, जिस दिन आप लोगों में चेतनाशक्ति भरने वाले श्री रामखेलावन शुक्ल जी की पुण्यतिथि मनाई जाती है, उनकी स्मृति में हर वर्ष 16 वर्ष से 40 वर्ष तक के युवक-युवतियों व पुरुष-महिलाओं की 500 मीटर की दौड़ प्रतियोगिता रखी जायेगी। इसमें अलग-अलग 21 हज़ार, 11 हज़ार व 05 हज़ार रुपए के रूप में प्रथम, द्वितीय व तृतीय पुरस्कार दिए जायेेंगे।
सबसे बड़ा मंदिर हमारा हृदय है। मैं चाहता हूँ कि यहां (जन्मस्थली) पर ‘माँ’ का भव्य मंदिर बने और सभी के हृदय में ‘माँ’ का वास हो। इससे सभी के अन्दर के विकार समाप्त होंगे और विकास का पथ प्रशस्त होगा। ग्रामवासियों को आत्मज्ञान प्रदान करने व आशीर्वाद की झड़ी लगाने के उपरान्त, ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने भदबा व मोहनखेड़ा ग्राम के 45 गरीब व जरूरतमन्द लोगों को अपने करकमलों से एक-एक कम्बल व पांच-पांच सौ रुपए प्रदान किये। अंत में उपस्थित सभी ग्रामवासियों ने चरणस्पर्श करके ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज से सुख-शांति व समृद्धिमय जीवन का आशीर्वाद प्राप्त करके कृतज्ञ हुए। इसके बाद आपश्री ने ग्राम के कुछ बुद्धिजीवियों से मुलाकात करके ग्रामविकास हेतु चर्चा की। तत्पश्चात् जनकल्याण हेतु निर्माणाधीन भवन व बचपन में जिस स्थान पर आपश्री ध्यान-साधना करते थे, वहां के निर्माण कार्य का अवलोकन किया और कारीगरों को निर्माण सम्बंधी आवश्यक सुझाव दिए। तत्पश्चात् सायंकाल 05 बजे सद्भावना यात्रा वापिस फतेहपुर के लिए रवाना हुई।
गुरुआवास (हॉटल इन) में रात्रि विश्राम के बाद दिनांक 17 नवम्बर को प्रातःकाल 08:30 बजे परम पूज्य गुरुवरश्री के सान्निध्य में हज़ारों गुरुभाई-बहनों के साथ जयघोष व शंखध्वनि के बीच सद्भावना यात्रा ज़िला कानपुर देहात के लिए प्रस्थित हुई। आगे-आगे सैकड़ों की संख्या में दोपहिया वाहनों के पीछे गुरुवरश्री व शक्तिस्वरूपा बहनों का वाहन, साथ में अनेकों चारपहिया वाहनों में चल रहे हजारों भक्त। जनजागरण रैली का विशाल स्वरूप अत्यन्त ही मनमोहक था।
सद्भावना यात्रा कुवंरपुर, दरवेशाबाद होते हुए कोरईयां मोड़ से बिंदकी पहुंची। सभी स्थानों में स्वागत द्वार सजाए गए थे और हज़ारों भक्त व क्षेत्रीय जन जयकारे लगाते व शंखध्वनि करते हुए सद्गुरुदेव भगवान् का दर्शन करके अति आनन्दित हुए। कोरईयां में भक्तों ने पूर्ण समर्पण से यात्रा का स्वागत किया और स्वल्पाहार भी वितरित किया। बिंदकी में भक्तों का तो सैलाब उमड़ पड़ा था और यहां सद्भावना यात्रा में चल रहे गुरुभाई-बहनों को मिष्ठान्न, मूंगफली व जल आदि सामग्री प्रदान कर उन्होंने श्रद्धाभाव का परिचय दिया। चौडगरा (कानपुर नगर मार्ग) ग्राम के पास किसी विशाल समारोह होने जैसा दृश्य उपस्थित था।
यहां मार्ग में गुरुभाई-बहनों ने लाल, पीले, सफेद रंग के फूलों की पंखुडिय़ां विखेरकर स्वागत किया। छिवली नदी से सद्भावना यात्रा ने विशाल वाहन रैली का रूप ले लिया। सैकड़ों वाहन क्रमबद्ध रूप से चल रहे थे। हज़ारों लोगों ने ज़िला कानपुर नगर के कई स्थानों पर जयकारे लगाते हुए शृंखलाबद्ध रूप से खड़े होकर सद्गुरुदेव भगवान् की अगवानी की और दर्शनलाभ प्राप्त करके अपने-अपने भाग्य को सराहा। यात्रा आगे बढ़ती रही और भक्तगण फूलों की वर्षा करते रहे। सरसौल, महाराजपुर, रामादेवी, कोयलानगर, में ऋषिवर के दर्शनार्थ विशाल जनसमूह उमड़ पड़ा था। हज़ारों गुरुभाई-बहन जहां जयकारे लगाने में लीन थे, वहीं अनेकों श्रद्धालु महिलाओं ने आरती उतारकर गुरुवरश्री की अगवानी की। श्यामनगर, यशोदा नगर, नौबस्ता से लेकर बर्रा-8 तक, रंग-बिरंगे परिधानों से सुसज्जित 25 हज़ार से अधिक गुरुबहनों व दसियों हज़ार गुरुभाई राह में गुरुवरश्री के दर्शन प्राप्त करने हेतु पलकपांवड़े बिछाए हुए थे। युवकों की टोलियां हाईवे के ऊपर से फूल बरसाते हुए आगे बढ़ती रहीं और यह क्रम लगभग 30 किलोमीटर तक चलता रहा। हाईवे से नीचे चल रही सद्भावना यात्रा का दृश्य अत्यन्त ही मनोरम हो उठा था, आकाश में बदली छा रही थी और प्रत्यक्षदर्शियों को ऐसा प्रतीत रहा था जैसे कि आसमान से पानी की जगह फूलों की वर्षा हो रही है। साथ ही बैण्ड बाजे की धुन ने समा बांध दिया था। गुजैनी, पनकी व भौती में सड़क मार्ग के किनारे जयकारे लगाते हुए करबद्ध हज़ारों शिष्यों-भक्तों ने गुरुदेव जी को नमन किया और आशीर्वाद प्राप्त करके अति आनन्दित हुए।
सचेण्डी, किसाननगर व रायपुर होते हुए सद्भावना यात्रा रनिया (कानपुर देहात) पहुंची। पूरे रास्ते में हर स्थान पर बैण्ड बाजा व शहनाई की स्वरलहरियां बिखरती रहीं। रनियां बाजार में गुरुदेव भगवान् जी का हज़ारों भक्तों ने अभूतपूर्व स्वागत-वन्दन-अभिनन्दन किया। जयकारे लगाते हुए हज़ारों भक्तों के हाथों में शक्तिदण्डध्वज अलग ही शोभायमान हो रहे थे। महिलाओं के हाथों में दीपप्रज्जवलित कलश और आरती की थाल अपनी अलग ही छटा बिखेर रहे थे। शक्ति चेतना जनजागरण सद्भावना यात्रा का समापन रनिया में स्थित गुरुआवास (प्रेसीडेण्ट हॉटल) के समक्ष सायंकाल 05:00 बजे हुआ। गुरुआवास का प्रवेश द्वार जहां फूलमालाओं से आच्छादित था, वहीं पूरा क्षेत्र माँ-गुरुवर के जयकारों व शंखध्वनि की ऊर्जा से सुवासित हो उठा था।

प्रथम दिवस: दिव्य उद्बोधन
18 नवम्बर, आयोजनस्थल पर पूर्णरूपेण नशामुक्त व मांसाहारमुक्त, चरित्रवान्, गुरुवरश्री के शिष्यों के साथ ही उत्तरप्रदेश के विभिन्न ज़िलों व कानपुर देहात व कानपुर नगर ज़िले के सैकड़ों ग्रामों व शहरी क्षेत्रों से पहुंचे ‘माँ’ के लाखों भक्त शिविर स्थल पर एकत्रित हो चुके थे और जनप्रवाह लगातार बढ़ता ही जा रहा था। सभी ऋषिवर के अमृतवचनों की प्रतीक्षा में ‘माँ’ और गुरुवरश्री के जयकारे लगाने में लीन थे, तभी अपराह्न 2.30 बजे धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का आगमन हुआ और उनके मंचासीन होते ही शंखध्वनि के साथ ही तालियों की गडग़ड़ाहट से समूचा क्षेत्र गुंजायमान हो उठा। ऋषिवर के मंचासीन होते ही सर्वप्रथम बहन पूजा, संध्या व ज्योति दीदी जी के द्वारा समस्त उपस्थित भक्तों, शिष्यों की ओर से गुरुवरश्री का पद प्रक्षालन करके पुष्प समर्पित किये गये। तत्पश्चात् भगवती मानव कल्याण संगठन के कुछ सदस्यों ने भावसुमन अर्पित किये, जिसके कुछ अंश इस प्रकार हैंः-
मंच विराजे गुरुवर मेरे सिद्धाश्रम सरकार, करें हम स्वागत बारम्बार…-सोनी योगभारती जी, बाँदा। लिया कृपा से जिसे निहार आपने सिद्धाश्रम सरकार, वह जीवन संवर गया, वह जीवन संवर गया- बाबूलाल विश्वकर्मा जी, दमोह। मिलती है जिन्दगी तेरे हिसाब से…-वीरेन्द्र दीक्षित जी, दतिया।
त्याग-तपस्या और भक्ति के आलोक से आलोकित ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के आभामंडल को अपलक देखते हुये भक्तगण मुग्ध हो रहे थे, तभी गुरुवरश्री की अमृतमयी वाणी मुखर हो उठी। शिविरस्थल में उपस्थित अपार जनसमुदाय को अपना दिव्य आशीर्वाद प्रदान करते हुए आपश्री ने कहा कि-
आपका गुरु किसी मान-सम्मान का आकांक्षी नहीं है। मानवता के पथ पर चलकर जिस प्रकार मैं आनन्दानुभूति प्राप्त करता हूँ, उसी प्रकार समाज को भी चलाने का प्रयास करता हूं। जिस प्रकार मनुष्य भौतिकता की अन्धी दौड़ में दौड़ रहा है, मानवता समाप्त होती जा रही है। पहले सभी में परोपकारीभाव थे, लेकिन 25-30 वर्षों से इतना पतन हुआ है कि मनुष्य का विवेक मर चुका है और जब व्यक्ति विवेकहीन होजाता है, तो उसके सोचने-समझने की शक्ति नष्ट होजाती है। किसी पागल के क्रियाकलापों को देखकर आप उसके पास जाना भी पसन्द नहीं करते। क्या कभी यह सोचा है कि उसी के समकक्ष आप भी पहुंचते जा रहे हैं? लोग बुद्धिहीन, विवेकहीन होते जा रहे हैं।
मेरे विचार धर्म, धैर्य और मानवता के क्षेत्र में होते हैं। मैं कथा सुनाने नहीं आता हूँ। कथावाचकों की कथा भी ऐसी हो कि समाज को मानवता के रास्ते पर बढ़ाया जाये, नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् बनाने की दिशा में उत्प्रेरक हों। लेकिन, आज के कथावाचक इस दिशा में समाज को नहीं बढ़ा रहे हैं। चमत्कार और वैभव दिखाकर केवल अपना उल्लू सीधा करने का कार्य किया जा रहा हैं। मैं हूं या आप हों, सभी को चलाने वाली माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा हैं। आप लोगों से मेरा रिश्ता निश्छल रहता है। मैं सिद्धाश्रम से बाहर केवल दो शिविर देता हूँ, समाज को जगाने के लिए।
ऋषिवर ने कहा कि मेरे लिए बेटे-बेटियां एक समान हैं, मेरा चरणपूजन मेरी बेटियां करती हैं। यदि मैं समाज के किसी व्यक्ति से चरणपूजन करवा लूँ, तो लोगों की यही सोच बनेगी कि लाख-दो लाख ले लिए होंगे। समाज में आज यही हो रहा है। अनेकों साधु-संन्यासी धन्नासेठों, नेताओं से माल्यार्पण कराते हैं और वे भी करते हैं और भारी चढ़ोत्री लेकर तिजोरी भरते हैं।
मेरे द्वारा तीन बिन्दु दिए गए हैं- ‘भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति।’ इनमें दुनिया का सार समाहित है। यदि आप लोगों ने यह प्राप्त कर लिया, तो तुम्हारी समस्याओं का समाधान तो होगा ही, दूसरों का भी भला कर सकते हो। ‘माँ’ की भक्ति करने वाला दूसरों को भी शरण देने वाला होजाता है। परमसत्ता ने सम्पूर्ण खजाना तो आपके अन्दर भर दिया है। क्या उस खजाने को कभी ढूँढऩे का प्रयास किया? लोग भौतिकता की अन्धी दौड़ में दौड़ते जा रहे हैं। इससे क्या मिल रहा है? ‘विकारग्रस्त जीवन।’ तुम्हारी अजर-अमर-अविनाशी आत्मा की जननी माता आदिशक्ति जगज्जननी हैं। वह ब्रह्मा, बिष्णु, महेश की भी जननी हैं। इस दिशा में कोई सोचना ही नहीं चाहता!
एक शंकराचार्य ने 32 वर्ष की अवस्था में चार-चार मठों की स्थापना कर दी थी, लेकिन आज अनेकों शंकराचार्य हैं, इसके बाद भी समाज पतन की ओर जा रहा है, क्योंकि वे चेतनावान् नहीं हैं। लेकिन, मेरा जन्म इसी कार्य के लिए हुआ है कि समाज को सुधारूं और तथाकथित शंकराचार्यों, धर्माचार्यों, योगाचार्यों को चेतावनी दूँ। सभी धर्माचार्य किसी न किसी राजनेता के तलुए चाटते नजर आयेंगे। कहते हैं कि विश्व का कल्याण हो, लेकिन हमारे भारत देश में करोड़ों लोग भूखों मर रहे हैं, जबकि देश में अपार सम्पदा है।
सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने शिष्यों-भक्तों व उपस्थित जनसमुदाय से कहा कि कलिकाल की भयावहता को नष्ट करने के लिए तीन बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है- परोपकार, पुरुषार्थ और आत्मकल्याण। इन तीनों पथों को अपनाकर चलना होगा। जो इन पथों को अंगीकार करेगा, उसे कलिकाल भी प्रभावित नहीं कर सकता। जब तक आप अपनी आत्मा पर पड़े आवरण को नहीं हटाओगे, ‘माँ’ की कृपा के पात्र नहीं बन सकते।
क्या आपके अन्दर दया, करुणा, ममता, वात्सल्य का भाव है? क्या कभी दूसरों के दुःख से दुःखी होते हो? यदि आपके अन्दर दया, करुणा, ममता, वात्सल्य का भाव नहीं है, तो इन्हें समाहित कर लो, जीवन सुधर जायेगा। शत्रु बाहर नहीं, बल्कि विकारों के रूप में आपके अन्दर है। जब तक अपने अन्दर के शत्रु को नहीं मारोगे, बाहर के शत्रुओं से मुकाबला नहीं कर सकते। जिस दिन स्वयं सुधर जाओगे, समाज को सुधारने की पात्रता हासिल हो जायेगी।
कर्म ही नहीं, तुम्हारे विचारों का भी लेखा-जोखा ‘माँ’ के पास है। आज जो धन गलत रास्ते से आ रहा होगा, तो उसका उपभोग करके एक न एक दिन आपके बच्चे पतन के रास्ते पर अवश्य जायेंगे। आत्मा की अमरता और कर्म की प्रधानता पर विश्वास करो। यदि ये दो बातें आपके मनमस्तिष्क में बैठ जाएं, तो कर्मपथ पर चलते हुए भयमुक्त जीवन जिओगे। ‘माँ’ का यदि सच्चा भक्त बनना है, तो एक बार संकल्प ले लो कि अनीति-अन्याय-अधर्म से समझौता नहीं करेंगे, नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जियेंगे। फिर देखिये, आपका जीवन बदलता चला जायेगा।
मेरे द्वारा बार-बार नाम ले-लेकरके कहा जाता रहा है कि ये अधर्मी हैं, व्यभिचारी हैं, लेकिन मेरी बात की उपेक्षा होती रही और आज वही आसाराम, रामपाल, रामरहीम जैसे पच्चीसों जेल की सलाखों के पीछे हैं।
100 में से 99 साधु-संत-संन्यासी नशेड़ी हैं, व्यभिचारी हैं। बड़ी-बड़ी संस्था खड़ी कर लेने से कोई साधु-संत-संन्यासी नहीं बन जाता। जो धर्म की पीठ पर, व्यास गद्दी पर बैठकर सच्चाई, ईमानदारी का जीवन नहीं जीता, वह समाज को क्या सुधारेगा? एक सम्मेलन हो, वास्तविकता उजागर हो सकती है। क्या उनमें कोई शक्ति है? क्या वे सूक्ष्म को जाग्रत् कर सकते हैं, क्या हज़ारों मील दूर घटित घटनाओं के बारे में बता सकते हैं, आज्ञाचक्र को स्पर्श करने मात्र से किसी रोगी को निरोगी बना सकते हैं, क्या ध्यान-समाधि में जाने की पात्रता प्राप्त है, क्या कुण्डलिनी चेतना जाग्रत् है? मेरी आवाज यदि उन तक पहुंच रही है, तो उन्हें ससम्मान चुनौती देता हूँ कि एक बार मेरी शक्तिसामर्थ्य का सामना करें। अन्यथा तुम चोर हो, लुटेरे हो, व्यभिचारी हो और तुममें कोई शक्ति नहीं है। केवल एक सम्मेलन समाज को जगा सकता है, समाज का गौरव बढ़ा सकता है।
ऋषिवर ने शिविर में उपस्थित जनसमुदाय को सम्बोधित करते हुए कहा कि एक पल अपने अवगुणों पर विचार करो कि कोई अवगुण आपको स्पर्श तो नहीं कर रहा है और निश्चय करो कि मैं एक भी अवगुण को अपने अन्दर प्रवेश नहीं करने दूँगा। एक बार सोचो कि मुझे ‘माँ’ का सच्चा भक्त बनना है। मन को निर्मल बनाकर रखो, विकारों को हटाकर देखो, प्रकाशित हो उठोगे। पुत्र और पुत्रियों में भेद करना बन्द कर दो। तुम समाज की सेवा क्या करोगे, जब अपनी ही सन्तान में भेद करते हो। ऐसे में ‘माँ’ की कृपा के पात्र कैसे बनोगे?
एक बच्चा जब जन्म लेता है, तो उसके मुख से ‘माँ’ शब्द की ध्वनि निकलती है। इसीलिए मैंने ‘माँ’-ऊँ का बीजमंत्र दिया है। इनका नित्यप्रति उच्चारण तो करो, समस्त विकार दूर होते चले जायेंगे। आहार, विचार, व्यवहार के प्रति सजग रहो। इन तीनों को साध लो। आहार को शुद्ध, सात्विक बना लो। क्या अच्छा है और क्या बुरा है, इस पर ध्यान दो। पहले लोग शरीर को पुष्ट बनाने के लिए भोजन करते थे, लेकिन आज जीभ के स्वाद के लिए भोजन किया जाता है। विचार भी सात्विक होने चाहिए। जातपात, छुआछूत, साम्प्रदायिकता के विचारों को दूर कर दो।
हिन्दू कभी उग्र नहीं होता, बल्कि दूसरों की रक्षा करता है। हिन्दू वह है जो ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की आराधना करता है। वह स्वयं के धर्म का सम्मान करता है और दूसरों के धर्म को सम्मान देता है। यदि हिन्दू हो, तो हिन्दुत्त्व की परिभाषा को समझो। जो साम्प्रदायिक हैं, वे हिन्दू हो ही नहीं सकते। अपने बच्चों को उग्र मानसिकता वाला न बनाएं। आपके विचारों में सत्यता हो, ओज हो, चैतन्यता हो।
नशा जीवन को नष्ट कर देता है। भारत में एक भी संस्था ऐसी नहीं है, जितना भगवती मानव कल्याण संगठन ने लोगों को नशामुक्त किया है। 900 से अधिक शराब की अवैध खेपें पकड़ाई हैं, लेकिन कभी कोई तोड़-फोड़ नहीं की। कार्यकर्ताओं को भले ही नशामाफियाओं व पुलिस की प्रताडऩा का शिकार होना पड़ा हो। आतंकवादी वे ही नहीं हैं, जो केवल गोली चलाते हैं, बल्कि वे भी हैं जो नशे के ठेके चलाते हैं।
मैं देश के प्रधानसेवक से कहता हूँ, क्या कर रहे हो? नारा लगाते हो बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और उनके पिता और पति को शराबी बना रहे हो। अरे, नशामुक्ति का टैक्स लगा दो, लेकिन देश को नशामुक्त कर दो। 50 प्रतिशत अपराध कम हो जायेंगे और विकास की गति दुगुनी हो जायेगी। राममंदिर से ज्य़ादा जरूरी देश को नशामुक्त करना है। मोदी-मोदी के नारे लगवाने से देश के गरीबों का पेट नहीं भरेगा। विकलांग को दिव्यांग कह देने से वह चेतनावान् नहीं बन जायेंगे। केवल लच्छेदार बातों में माहिर हो, देशवासियों के हित में कुछ करोगे भी या नहीं? चुनाव के समय प्रधानमंत्री ने कहा था, ‘‘यहाँ भी खुदा, वहां भी खुदा, जहाँ नहीं खुदा वहां खुदने वाला है।’’ मैं कहता हूँ, ‘‘यहाँ भी खुदा, वहां भी खुदा और जहाँ नहीं खुदा था, वहां बीजेपी ने खोद डाला है।’’ गंदगी कहाँ समाप्त हुई? सबसे अधिक गन्दगी शासकीय कार्यालयों और रेलवे स्टेशनों में है।
परम पूज्य गुरुवरश्री ने कहा कि आज का युवा पूरी तरह भटकाव के मार्ग पर है। युवाओं के लिए तीन चीजें जरूरी हैं- मोबाइल, मोटरसाइकिल और टी.वी.। चाहे इसके लिए उन्हें चोरी ही क्यों न करनी पड़े! केन्द्र में बीजेपी की सरकार है, कई प्रदेशों में भी बीजेपी की सरकार है, लेकिन क्या देश के प्रधानसेवक ने अपनी ही पार्टी के किसी मुख्यमंत्री को यह आदेश दिया कि शराबबन्दी लागू कर दो, अन्यथा पद से हटा दिए जाओगे? राजस्थान में वसुन्धरा राजे की सरकार है। सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार की खुली छूट दे दी गई है। उत्तरप्रदेश में योगी सरकार है। अरे, चाहे हज़ार योगी आ जाएं, हत्या, बलात्कार बन्द नहीं करा पायेंगे। बीजेपी वाले धर्म के बड़े ठेकेदार बनते हो, तो दो काम कर दो- प्रदेश को नशामुक्त और अपराधमुक्त कर दो।
सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने कहा कि मेरे द्वारा हमेशा यही कहा जाता है कि हमारे देश को जितना अंग्रेजों ने नहीं लूटा, उतना सत्ता सुख भोगने वाले राजनेताओं ने लूटा है। भ्रष्ट राजनेताओं ने देश को कंगाल बना डाला है। बच्चों की मौतें हो रही हैं और राजनेता कहते हैं कि एक ही बड़ा अस्पताल है। अरे, सैकड़ों अस्पताल क्यों नहीं हैं? यदि राजसत्ताएं चाहतीं तो देश के हर ज़िले, हर कस्बे में एम्स जैसे अस्पताल होते। ये बेईमान राजनेता, जब वेतन बढ़ाने की बात आती है, तो एक भी विरोध नहीं होता और पांच साल में ही पेंशन के अधिकारी होजाते हैं। पहले भी सुख भोगा और बाद में भी सुख भोग रहे हैं, जबकि जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। मैं भगवती मानव कल्याण संगठन के सदस्यों से कहना चाहता हूँ कि 10 अमीर भले ही छूट जाएं, लेकिन एक गरीब, जो संगठन से जुडऩा चाहता हो, उसे अवश्य जोड़ें।
गुरुवरश्री के अमूल्य चिन्तन को श्रवण करने के उपरान्त उपस्थित जनसमुदाय ने दोनों हाथ उठाकर संकल्प लिया कि हम नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीते हुए शादी से पहले ब्रह्मचर्य व्रत का पालन व शादी के बाद एक पत्नी/एक पतिव्रत धर्म का पालन करेंगे और मानवता की सेवा, धर्म की रक्षा व राष्ट्ररक्षा करना ही हमारे जीवन का लक्ष्य होगा।

द्वितीय दिवस-प्रथम सत्र
गुरुदीक्षा
शिविर के द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र में 08.00 बजे से गुरुदीक्षा का क्रम प्रारम्भ हुआ। ऋषिवर परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने लगभग 11 हज़ार नए भक्तों को दीक्षा प्रदान करने से पूर्व कहा कि-
मेरे चिन्तन हमेशा आप लोगों के कल्याण के लिए और समाज में परिवर्तन के लिए ही होते हैं। किसी चेतनावान् गुरु से दीक्षा प्राप्त करना जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य है। मनुष्य का वास्तविक जन्म, जब हम किसी चेतनावान् गुरु से दीक्षा प्राप्त करते हैं, तभी होता है। दीक्षा प्राप्त करने के बाद जब आप गुरु की विचारधारा पर चलते हुए सात्विक जीवन जीने लगते हैं, तब जाकर आपका जीवन सही दिशा में अग्रसर होता है। मेरे द्वारा दिलाया गया संकल्प इतना ही होता है कि उसमें विकल्प नाम की कोई जगह नहीं होती। आप अनेकों बार मन्त्रों को सुनते हैं, उच्चारण करते हैं, लेकिन जब वही मंत्र एक गुरु के द्वारा प्रदान किए जाते हैं, तो वही मंत्र फलीभूत होने लगते हैं। आप मात्र नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् हों। घर में एक शक्तिध्वज टांग दें, जिससे आपका घर मंदिर का स्वरूप प्राप्त कर सके। इससे नकारात्मक तरंगें दूर रहती हैं और सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करने लगती है। आज्ञाचक्र पर कुंकुम का तिलक लगाना है, बच्चे और महिलाएं भी तिलक लगा सकते हैं।
आज्ञाचक्र राजाचक्र है। इसे आच्छादित करके रखना चाहिए, जिससे आपके अन्दर दूषिततरंगें प्रवेश न कर सकें। गले में रक्षाकवच डालकर रखें, महिलाएं रक्षारुमाल रख सकती हैं। मैं आपको साधु-संत-संन्यासी नहीं, बल्कि साधक बनाना चाहता हूँ। यह रक्षाकवच उनके गेरुए वस्त्रों से अधिक प्रभावी होते हैं, केवल आपको किसी गलत कार्य को नहीं करना है। यह रक्षाकवच बड़ी से बड़ी दुर्घटनाओं में रक्षा करता है, लेकिन प्रकृति का विधान ही ऐसा हो, तो कुछ कहा नहीं जा सकता।
गुरुवार का व्रत रखें। इस व्रत को रखने वालों को किसी अन्य व्रत को रखने की आवश्यकता नहीं है। और, यदि आप चाहें तो कृष्णपक्ष की अष्टमी का व्रत रख सकते हैं। यह व्रत किसी कारण से छूट जाए तो उद्वेलित मत हों, इसकी जगह नवमी या चतुर्दशी का र्व्रत रख लें। इन तीनों दिवस के व्रत का फल एक समान प्राप्त होता है। पूजन करते समय आप किसी भी देवी-देवता को पहले तिलक लगा सकते हैं। शक्तिजल मेरे विशिष्ट यज्ञों का फल है, जो दीक्षा के बाद यहां से निःशुल्क प्राप्त होगा। सिद्धाश्रम में जाकर इसे कभी भी निःशुल्क प्राप्त कर सकते हैं। यह माता आदिशक्ति जगज्जननी का दिव्य प्रसाद है। इसे गंगा नदी या नर्मदा नदी का जल मिलाकर बढ़ा सकते हैं। यह जल हर किसी के लिए फलीभूत रहता है, केवल नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् होना जरूरी है।
चिन्तन के पश्चात् सद्गुरुदेव जी ने सहायक शक्तियों हनुमान जी का मंत्र-ॐ हं हनुमतये नमः, भैरव जी का मंत्र-ॐ भ्रं भैरवाय नमः एवं गणेश जी का मन्त्र-ॐ गं गणपतये नमः के साथ चेतना मन्त्र-ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नमः और गुरुमन्त्र-ॐ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः प्रदान करते हुये कहा कि मैं सभी को मन, वचन, कर्म से शिष्य रूप में स्वीकार करता हूँ। दीक्षा प्राप्त करने के बाद सभी नये शिष्यों ने सद्गुरुदेव भगवान् को श्रद्धाभाव से नमन करते हुये विघ्रविनाशक शक्तिजल निःशुल्क प्राप्त किया।

द्वितीय दिवस-द्वितीय सत्र
दिव्य उद्बोधन
शिविर के द्वितीय दिवस की अपराह्न बेला, जयघोष व शंखध्वनि के मध्य ऋषिवर सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का आगमन, उनके मंचासीन होते ही शक्तिस्वरूपा बहनों ने प्रथम दिवस की तरह चरणपूजन का क्रम पूर्ण किया। तत्पश्चात् उपस्थित भक्तों की ओर से गीत-संगीत के धनी शिष्यों ने ‘माँ’-गुरुवर के चरणों में भावसुमन अर्पित किए, जिनके कुछ अंश प्रस्तुत हैं-
उर खोल चले जय बोल चले करने को सम्मान, आपका स्वागत गुरु भगवान्-आपका स्वागत गुरु भगवान्- प्रतीक मिश्रा जी, कानपुर। ‘माँ’ का सदा गुणगान है गुरुवर तुम्हारे द्वार पर…- बाबूलाल जी, दमोह। मैंने भी तो अर्जी लगा दी है ‘माँ’ तरे दरबार में…- वीरेन्द्र दीक्षित जी, दतिया।
उपस्थित जनसमुदाय को आशीर्वाद प्रदान करते हुए ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज कहते हैं-
बुद्धि का सही उपयोग न करने के कारण मनुष्य अशान्त है। यदि आध्यात्म क्षेत्र में अपनी बुद्धि का सदुपयोग करेंगे, तभी विवेक जाग्रत् होगा और अपने विवेक का उपयोग सही ढंग से कर पायेंगे।
जिसने आत्मतत्त्व का ज्ञान प्राप्त कर लिया है, उसका शीश कभी भी भौतिकतावाद से ग्रसित लोगों के सामने नहीं झुकता और न ही भविष्य में झुकेगा। अतः किसी की बात पर सहसा विश्वास करके गलत निर्णय न लें, बल्कि सर्वप्रथम अपने बुद्धि-विवेक को अच्छाई-बुराई के पलड़े पर तौलकर परखें, फिर कोई निर्णय लें।
चारों तरफ माता के जगराते होते हैं। ‘माँ’ को जगाने की जरूरत नहीं है, वे हर समय जागती रहती हैं। मेरा लक्ष्य समाज को जगाना है, क्योंकि जब तक समाज जाग्रत् नहीं होगा, परिवर्तन नहीं आयेगा। समाज का यदि कल्याण करना है, तो कथा-कहानियां सुनाकर नहीं किया जा सकता। मैंने स्वयं विचार किया कि ऐसा कौन सा मार्ग चयन करूं? इस भूतल पर आज तक जो निर्णय किसी ऋषि ने नहीं लिया, तो मैंने अपनी निज ऊर्जा को जन-जन में बाँटकर मानवता के कल्याण करने का निर्णय लिया। मैं किसी देवी-देवता का अवतार नहीं हूँ। ऋषि था, ऋषि हूँ और ऋषि रहूँगा। में सच्चिदानंद का अवतार हूँ।
आपश्री ने कहा कि मुक्ति का पथ केवल ऋषित्व का पथ है। इसके लिए देवता भी तरसते हैं। देवलोक में रहकर भी वे मनुष्यजीवन पाना चाहते हैं, इसलिए कि वह देवत्व पद पर रहते हुए ऋषित्व का पद नहीं प्राप्त कर सकते। मानवजीवन पाकर भी यदि मुक्ति के पथ पर नहीं बढ़ सके, तो धिक्कार है।
समाज में व्याप्त अनीति-अन्याय-अधर्म को समाप्त कैसे किया जा सकता है? तो, मुझे लगा कि ऐसा क्या करूं, क्या दान करूं, जिससे समाज का कल्याण हो सके? तब मैंने अपनी तपस्या को दान कर दिया। शरीर का दान तो दधीच जैसे कोई भी कर सकता है, किन्तु साधना के लिए बहुत तपस्या करनी पड़ती है। फिर भी मैंने निर्णय लिया कि अपनी तपस्या को शिष्यों में बांटकर उन्हें विवेकवान् बनाऊंगा। अपने बुद्धि-विवेक का उपयोग बहुत सोच-समझकर करना चाहिए। मानवता देखने में जग रही है, जबकि वह हर पल सो रही है। मेरे विचार, मेरी चेतनातरंगें आपके अन्दर बुद्धि-विवेक अवश्य पैदा करेंगी।
अब बहुत पतन हो चुका, कितना इसके पीछे जाओगे? अब भी वक्त है सजग होजाओ और पतन को यहीं पर रोक दो। केवल एक बार निर्णय लेना होगा कि बस अब अपने आपको पतन के मार्ग पर नहीं जाने दूँगा। यदि समाज को बदलना है, तो पहले स्वयं को बदलना होगा। मेरी निगाह आप पर नहीं, बल्कि आपकी आगे आने वाली पीढ़ी पर है। अपने तन-मन को पवित्र बनाओ और यह तभी होगा, जब इष्ट के प्रति, गुरु के प्रति श्रद्धा हो। लेकिन, वह गुरु आशाराम, रामपाल, रामरहीम जैसे न हों। धीरे-धीरे व्यभिचारी, लुटेरे, अधर्मी साधु-संत-संन्यासियों का पर्दाफास होता जा रहा है। पिछले 05-10 वर्षों में जितने व्यभिचारी साधु-संत पकड़े गए हैं, उतने कभी नहीं पकड़े गए। एक जैनमुनि का 20 वर्षीय युवती के साथ व्यभिचार करने के मामले में पकड़ा जाना, यह भी समाज के लिए आइना है! जबकि जैनमुनि बनने के लिए अथक त्याग-तपस्या की जरूरत पड़ती है, लेकिन अब गंदे लोग भी साधु-संत व मुनियों का चोला धारण करने लगे हैं। मैं जानता हूँ कि अधिकांश साधु-संत-संन्यासी व्यभिचारी हैं, जो अपने आपको सिद्धसाधक, योगाचार्य, ब्रह्मऋषि कहते हैं।
राजसत्ताएं भी आमजनता का शोषण कर रही हैं। पहले नशा पिलाया जाता है, फिर नशामुक्ति केन्द्र खोलकर व नशामुक्त अभियान चलाकर, हर तरह से लूटा जा रहा है। आज गुण्डा, मवाली बनकर राजनेता बनना चाहते हैं, जबकि धर्मात्मा, समाजसेवक बनकर राजनीति में प्रवेश करना चाहिए। क्या मिल जायेगा विकारों से? इससे मुक्त होकर अपनी आत्मा की जननी आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की कृपा प्राप्त कर सकते हो। परोपकारी बनो, इस पर विचार करते रहो, एक न एक दिन आपके कदम निर्धन, असहायों व उनके बच्चों की सहायता करने के लिए बढ़ जायेंगे। सात्विक विचारों को क्रियान्वित करो और दुर्विचारों को मन से झटक दो। बुरे विचारों के प्रति अन्तरात्मा अवश्य सजग करती है, जिसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। अन्यथा, पाप का दलदल आपको अपनी ओर खींचता चला जायेगा।
वे राजसत्ताएं राष्ट्रद्रोही हैं, जो शराब का धंधा करवाती हैं। पता नहीं कहां दिमाग है उनका, किस विकास की बात करते हैं? राजनेता मगरमच्छ बन गए हैं और देश की आमजनता को कुत्ता समझते हैं। यह आप लोगों को समझना है कि कुत्ते तुम हो या वे हैं जो तुम्हारा छीन-छीन करके खा रहे हैं। चुनाव आयोग मूकदर्शक बनकर बैठा है और अकूत पैसा लूटकर ये राजनेता उसी के बल पर पुनः चुनाव जीत जाते हैं।
इसीलिए मैंने तीन धाराओं का सृजन किया है- मानवता की सेवा के लिए भगवती मानव कल्याण संगठन, धर्म की रक्षा के लिए पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम और राष्ट्र की रक्षा के लिए भारतीय शक्ति चेतना पार्टी। मेरा विरोध किसी पार्टी से नहीं है, लेकिन ध्यान से देखता हूँ, तो वे राष्ट्रद्रोही नजर आते हैं। टूटी-फूटी सड़कें, अच्छी शिक्षा, चिकित्सा व्यवस्था का अभाव, गरीबी, भुखमरी, कुपोषण। अपने आपको देश का प्रधानसेवक कहने वाले नरेन्द्र मोदी पता नहीं किस स्वप्नलोक में विचरण कर रहे हैं। भाजपा ने चाय वाले को नहीं, एक कट्टर हिन्दू को प्रधानमंत्री बनाया है। देश का कल्याण कैसे होगा? एक विधायक, एक सांसद को जिताने के लिए करोड़ों-करोड़ों रुपया खर्च किया जाता है। क्या किसी भाजपाई मुख्यमंत्री या भाजपाई उद्योगपति के खिलाफ कोई कार्यवाही की गई? उत्तरप्रदेश में योगी सरकार आई, ईमानदारी से बता दें कि उन्होंने पूर्व की भ्रष्ट सरकारों के मुख्यमंत्रियों के खिलाफ कार्यवाही की? क्या उन्होंने भ्रष्टाचार नहीं किया? केवल उजागर किया जाता है, वह भी ब्लैकमेलिंग के लिए। सभी चोर मौसेरे भाई हैं। मेरी भविष्यवाणी है कि आने वाले समय में समाज व देशहित में सतत संलग्न भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की सत्ता अनेकों प्रदेशों में होगी और दिल्ली के लालकिले में इस पार्टी का कोई न कोई शक्तिसाधक या शक्तिसाधिका के हाथों राष्ट्रीय ध्वज फहराया जायेगा।
परम पूज्य गुरुवरश्री ने भगवती मानव कल्याण संगठन के सदस्यों को निर्देशित किया कि गरीबों, असहायों की सहायता के लिए एक कोष तैयार किया जाए। जिनके पास उपयोग से अधिक वस्त्र हैं, उन्हें आलमारियों में रखने की बजाय सिद्धाश्रम पहुंचा दें, उन वस्त्रों को जरूरतमन्दों तक पहुंचा दिया जायेगा।
फतेहपुर (उत्तरप्रदेश) के संगठन के कार्यकर्ता 15 दिसम्बर को कुंवरपुर से भदबा तक सरकण्डे व कचड़े की अच्छी तरह सफाई कार्य करके अपने सेवाभावी जीवन का परिचय दें। बाद में अन्य क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाएगा।
गुरुवरश्री ने बताया कि 17-18 फरवरी 2018 को हरियाणा, पंजाब की राजधानी चण्डीगढ़ में ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ शक्ति चेतना जनजागरण शिविर कार्यक्रम सुनिश्चित किया गया है। इसके लिए विभिन्न व्यवस्थाएं अभी से प्रारम्भ कर दी जाएं।
मध्यप्रदेश के दमोह ज़िले में 28 जनवरी से 05 फरवरी तक ‘नशामुक्ति सद्भावना जनजागरण परिवर्तन यात्रा’ निकाली जायेगी। इस अभियान का उद्देश्य समाज को पूर्णरूपेण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त व चरित्रवान् जीवन अपनाने की प्रेरणा देना है।
गुरुवरश्री के चिन्तन, निर्देशन के उपरान्त एक बार पुनः शिविरस्थल पर लाखों की संख्या में उपस्थित जनमानस ने नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीने और मानवीय कर्त्तव्यों के निर्वहन का संकल्प लिया।

शिविर व्यवस्था में संगठन के पांच हज़ार से भी अधिक कार्यकर्त्ताओं का रहा योगदान
शक्ति चेतना जनजागरण शिविर के विशाल आयोजन को सम्पन्न कराने में देश-देशान्तर से पहुंचे भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं में से हज़ारों कार्यकर्त्ता एक सप्ताह पूर्व से दिन-रात जुटे रहे। उनकी सक्रियता और सतर्कता के फलस्वरूप शिविर सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। कार्यकर्त्ताओं ने श्रद्धालुओं को ठहरने हेतु जहां आवासीय व प्रवचन स्थल की व्यवस्था प्रदान की, वहीं शिविर के दोनों दिवस सुबह-शाम लाखों भक्तों को निःशुल्क भोजन कराया। पंडाल की व्यवस्था, जनसम्पर्क कार्यालय, खोया पाया विभाग जनसम्पर्क कार्यालय, स्टॉल व्यवस्था, निःशुल्क प्राथमिक उपचार केन्द्र व पेयजल व्यवस्था के साथ प्रसाद व शक्तिजल वितरण के कार्य को सफलतापूर्वक पूर्ण किया गया। इसके लिये संगठन के कार्यकर्त्ताओं की चाहे जितनी भी प्रशंसा की जाये, कम होगी।

शिष्यों, भक्तों ने ली योग-ध्यान-साधना की शिक्षा
शिविर के प्रथम दिवस का प्रथम सत्र- वृहदाकार पंडाल ही नहीं, वरन् कार्यक्रमस्थल का विशाल प्रांगण अपार जनसमुदाय से भरा हुआ था। शक्तिस्वरूपा बहन पूजा दीदी, संध्या दीदी व ज्योति दीदी जी के सान्निध्य में सभी ने सर्वप्रथम बीज मंत्र ‘माँ’ और ऊँ तथा चेतनामन्त्र ‘ऊँ जगदम्बिके दुर्गायै नमः’ एवं गुरुमन्त्र ‘ऊँ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः’ का जाप मेरुदण्ड सीधा करते हुये आसन लगाकर मनोयोगपूर्वक किया। पश्चात् योग-ध्यान-साधना के क्रम को सीखा।
इसके उपरान्त, योग के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए शक्तिस्वरूपा बहन संध्या दीदी जी ने कहा कि नित्यप्रति योगासन करने से शरीर व मन-मस्तिष्क स्वस्थ रहता है और स्वस्थ मनुष्य ही दृढ़तापूर्वक अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन कर सकता है। योगपथ पर चलने के लिए योग के प्रति पूर्ण निष्ठा, विश्वास और समर्पण की आवश्यकता होती है। यदि शरीर में चैतन्यता नहीं है, तो कार्यक्षमता प्रभावित होती है और छोटी-छोटी बातों में तनाव आ जाता है। इससे बचने के लिए योग-ध्यान-साधना के क्रमों को अपनाना अति आवश्यक है।

पत्रकार वार्ता
उत्तरप्रदेश के ज़िला कानपुर देहात में 18-19 नवम्बर को आयोजित दो दिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर के सफलतापूर्वक सम्पन्न होने के उपरान्त, दिनांक 20 नवम्बर को गुरुआवास परिसर (प्रेसीडेण्ट हॉटल) में आयोजित पत्रकार वार्ता में पत्रकारों द्वारा नमन्भाव से पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते हुए ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने कहा कि-
यह नशामुक्ति का अभियान है जो पूरे देश में चल रहा है। यह 117वां शिविर था। आज यदि समाज को सुधारना है, तो द्वार-द्वार जाकर जन-जन को आध्यात्मिक विचारधारा से जोड़कर उन्हें चेतनावान् बनाना होगा। जिस दिन समाज यह समझ लेगा कि नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन से ही उत्थान हो सकता है, तो परिवर्तन आते देर नहीं लगेगी। अभी तक करोड़ों लोगों को नशामुक्त बनाया जा चुका है और यह प्रयास सतत जारी है। यह पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में गत 20 वर्षों से अनन्तकाल तक के लिए चल रहे श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ की ऊर्जा का परिणाम है। भगवती मानव कल्याण संगठन के द्वारा नशामुक्ति जनान्दोलन चलाकर मात्र कुछ वर्षों में 900 से अधिक अवैध शराब की खेपें पकड़ाई जा चुकी हैं। इस आन्दोलन को इस स्तर तक ले जाया जायेगा कि एक न एक दिन राजसत्ताओं को पूर्णरूपेण नशाबन्दी का निर्णय लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। तत्पश्चात्, कुछ पत्रकारों की जिज्ञासाओं के समाधान किए गए।
पत्रकार- साधु-सन्त ही सनातन धर्म को बदनाम कर रहे हैं?
ऋषिवर- यदि 20 वर्षों का रिकार्ड देखा जाए, तो विदित होगा कि मेरे द्वारा नाम ले-लेकरके समाज व सरकारों को आगाह किया जाता रहा है, लेकिन उनसे राजनेता जुड़े हुए थे और इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। 100 में से 99 साधु-संत-संन्यासी चरित्रहीन हैं। आज शंकराचार्यों का जमावड़ा है, 65 शंकराचार्य हैं, लेकिन लोगों का पतन चरमसीमा पार करता जा रहा है। आखिर क्यों? इसलिए कि उनमें साधनात्मक क्षमता नहीं है, वे केवल नाम के शंकराचार्य हैं। शास्त्रों को रट लेने से कोई आत्मज्ञानी नहीं बन सकता। शराबी, जुआरी भी शास्त्र पढ़ सकते हैं। शक्तिपरीक्षण के लिए एक आयोजन होना चाहिए कि किनमें तप-बल की शक्ति है और किनमें नहीं? उस आयोजन में पत्रकार, बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक भी उपस्थित हों। इस बात का परीक्षण विज्ञान भी कर सकता है। शक्ति परीक्षण के निष्कर्ष से ही समाज की आखें खुलेंगी।
पत्रकार- आपको राजनीतिक क्षेत्र में आने की क्या आवश्यकता पड़ी?
ऋषिवर- मुझे नहीं समाज को आवश्यकता है। हर मनुष्य के तीन मुख्य कर्त्तव्य हैं- मानवता की सेवा, धर्मरक्षा और राष्ट्र की रक्षा करना। समाज को कर्त्तव्य का ज्ञान कराने के लिए ही मानवता की सेवा के लिए भगवती मानव कल्याण संगठन, धर्मरक्षा के लिए पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम और राष्ट्ररक्षा के लिए भारतीय शक्ति चेतना पार्टी का सृजन किया गया है। आज तक किसी पार्टी का कोई नेता नजर नहीं आया, जो सच्चाई-ईमानदारी से देशहित में कार्य कर रहा हो। आप लोग बताइए कि भ्रष्टाचार कहां नहीं है? अपितु समाज को जगाने व स्वच्छ राजनीति के लिए मुझे राजनीतिक पार्टी का गठन करना पड़ा। इस पार्टी को जिस दिन समाज स्वीकार कर लेगा, परिवर्तन आते देर नहीं लगेगी।
पत्रकार- रामजन्मभूमि में मन्दिर निर्माण के बारे में आपका क्या कहना है?
ऋषिवर- मेरा मानना है कि बातचीत से कोई रास्ता नहीं निकलेगा। इसके लिए दो ही रास्ते हैं- कानून बनाकर या फिर न्यायालय फैसला करे। और, न्यायालय सही फैसला तभी दे सकता है, जब सही साक्ष्य प्रस्तुत किए जाएं, क्योंकि न्यायालय साक्ष्य पर ही फैसला देता है। न्यायालय का फैसला ही उचित होगा।
पत्रकार- सन्त किसे कहते हैं?
ऋषिवर- सन्त वह है जो अपने आपको शान्त करने का प्रयास करता है। वह धर्मगुरु नहीं बन सकता। सन्त कभी समाज के बीच जाकर किस्से-कहानियां नहीं सुनाते। हाँ, इनके पास जाओ, तो शान्ति प्राप्त करने के लिए अपने विवेक को जाग्रत् करने के लिए।
पत्रकार- आप सन्त होकर सन्तों के विरुद्ध क्यों हैं?
ऋषिवर- पहले तो यह जान लो कि मैं सन्त नहीं, ऋषि हूँ और एक ऋषि का दायित्त्व है कमियों को उजागर करना और मैं वही कर रहा हूँ, जिससे समाज तथाकथित चरित्रहीन साधु-संत-संन्यासियों व भ्रष्ट राजनेताओं से सजग हो सके।
ऋषिवर ने कहा कि धर्माचार्य, शंकराचार्य व राजसत्ताएं अपने विवेक को जाग्रत् करके यदि चाह लें, तो समाज के लिए बहुत कुछ अच्छा कर सकते हैं। हम पुरुषार्थ करें, मेहनत करें, परिश्रम करें, तो निश्चित ही बहुत बड़ा परिवर्तन देखने को मिलेगा।
इस अवसर पर प्रिंट व इलेक्ट्रनिक मीडिया से रमाकान्त गुप्ता जी, अशोक सिंह जी, विवेक कुमार त्रिवेदी जी, शुक्ला जी, रोहित जी, उपेन्द्र अरोरा जी, अजय तिवारी जी, राममिलन शर्मा जी, अभिषेक कुमार जी, रोहित त्रिपाठी जी, पियूष दीक्षित जी, लखन पाण्डे जी, सुबोध मिश्रा जी, शिखा सिंह तोमर जी और अलोपी शुक्ला जी सहित अनेक पत्रकार शामिल रहे।

सद्गुरुदेव भगवान् की विदाई बेला में शिष्यों-भक्तों की आखों से छलक उठे प्रेमाश्रु
दिनांक 21 नवम्बर, दिन मंगलवार को प्रातःकाल 07ः30 बजे ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज जैसे ही गुरुआवास से बाहर निकलते हैं, शिष्यों व ‘माँ’ भक्तों के मुखारविन्दों से उच्चारित जयकारों की प्रतिध्वनि से समूचा क्षेत्र गूंज उठा।
इस विदाई बेला में भावुकता के वशीभूत अनेक शिष्यों-भक्तों की आखों से प्रेमाश्रु छलक उठे।
शक्ति चेतना जनजागरण सद्भावना यात्रा रनिया से गुजैनी, बर्रा, नौबस्ता होते हुए बारादेवी चौराहे पर पहुंची। सुबह का समय, सड़क मार्ग एक ओर बड़े वाहनों से जाम था और दूसरी ओर से छोटे वाहनों व राहगीरों का आवागमन बना हुआ था। इसके बाद भी सद्गुरुदेव जी महाराज के शिष्य अपने आराध्य के पुनर्दर्शन का लोभ संवरण नहीं कर पाए और मार्ग पर क्रमबद्ध रूप से खड़े रहे। हमीरपुर रोड, गल्लामंडी, रमईपुर व विधनू में अनुशासनपूर्वक क्षेत्रवासी व गुरुवरश्री के शिष्य हाथ जोड़कर खड़े थे और दर्शन प्राप्त करके अपने भाग्य को सराह रहे थे। हड़हा में ग्रामवासियों की श्रद्धा का कोई जवाब नहीं था। निकासी मार्ग में जहां तोरणद्वार का निर्माण किया गया था, वहीं सड़क मार्ग के किनारे बल्लियां गाड़कर फूलमालाओं से पिरो दिया गया था। इतना ही नहीं बैण्डबाजे के धुन से सम्पूर्ण वातावरण गुंजायमान था। हड़वा ग्रामवासियों ने सद्भावना यात्रियों के लिए जलपान की भी व्यवस्था कर रखी थी, जिसे दौड़कर यात्रावाहनों में पहुंचाया। घाटमपुर में मार्ग के दोनों ओर खड़े क्षेत्रीय भक्तों, गुरुभाई-बहनों व नगरवासियों ने परम पूज्य गुरुवरश्री को नमन् करते हुए सद्भावना यात्रा को भावभीनी विदाई दी। यात्रा डुहरू होते हुए हमीरपुर पहुंची। यहां गुरुवरश्री के दर्शन हेतु नगरवासी पंक्तिबद्ध खड़े थे। गुरुवरश्री ने अपना वाहन धीमा करवाते हुए सभी को आशीर्वाद प्रदान किया।
भरुआ सुमेरपुर में ग्रामवासियों ने बैण्ड बाजे के साथ यात्रा का स्वागत किया। पिपरौंधा, बरमौली, खिरुही, बरबई में भी गुरुदर्शन हेतु राह में हज़ारों शिष्यों की आखें बिछी हुईं थीं। कुनेहटा में अत्यन्त ही भावविह्वल दृश्य। एक लम्बी प्रतीक्षा के बाद गुरुदर्शन प्राप्त होते ही ग्रामवासियों की आखें नम हो गईं थी और अश्रु छलक उठने को आतुर थे। कबरई में तो स्वागत हेतु खड़े हज़ारों शिष्यों ने गुरुदेव जी का वाहन आगे बढ़ते ही दौड़ लगा दी, ऐसा लग रहा था कि वे अपने भगवान् को अपनी आखों से ओझल ही नहीं होने देना चाहते। कबरई में ही एक किलोमीटर आगे स्व. बद्री सिंह बालिका इण्टर कॉलेज की छात्रायें व शिक्षिकाएं ऋषिवर को नमन्-वन्दन करने हेतु पंक्तिबद्ध खड़ी थीं और दर्शन प्राप्त होते ही सभी ने एक साथ झुककर नमन किया। यहा भी मिष्ठान्न व नमकीन आदि वितरित किया गया।
यात्रा रेवई ग्राम होते हुए बाँदा पहुंची। जयकारों के बीच महिलाओं ने आरती उतारकर गुरुदेव जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। हज़ारों लोग आशीर्वाद की आकांक्षा में वाहन को छूकर ही तृप्ति प्राप्त कर रहे थे। यहां सद्भावना यात्रियों को सिंघाड़ा और मोतीचूर के लड्डू डिब्बों में रखकर दिया गया, जिसे सभी ने बड़े चाव से खाया। अतर्रा में श्रद्धालुओं का श्रद्धाभाव देखकर प्रतीत हो रहा था कि अध्यात्म की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है। आसपास के ग्राम के लोग भी भारी संख्या में गुरुदर्शन हेतु एकत्रित थे। चित्रकूट में भी गुरुदर्शन हेतु सैकड़ों लोग मार्ग में खड़े थे।
यात्रा सायंकाल 06ः00 बजे सतना पहुंची, सुरमई अंधेरा छा चुका था। अनेकों शिष्य जहां जयकारें लगाने में लीन थे, वहीं सैकड़ों महिला श्रद्धालु सिर में कलश रखकर गुरुवरश्री के स्वागतार्थ खड़ी थीं और कलश में जलते दीपक रोशनी बिखेर रहे थे। रामपुर बघेलान, बेला, गोविन्दनगर होते हुए सद्भावना यात्रा का काफिला बघवार टोल नाका पर पहुंची। यहां सीधी ज़िले के रामपुर नैकिन व चुरहट तहसील के शिष्यों-भक्तों ने गुरुवरश्री के दर्शनों का लाभ प्राप्त किया। इसके उपरान्त, देवलौंद होते हुए सिद्धाश्रम पहुंचकर सद्भावना यात्रा का समापन हुआ।
उत्तरप्रदेश के ज़िला कानपुर देहात से ब्यौहारी अनुविभाग क्षेत्र में स्थापित पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम तक वापिसी सद्भावना यात्रा के दौरान सड़क मार्ग पर पडऩे वाले नगरीय व ग्रामीण क्षेत्रों में परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के दर्शन हेतु उमड़े भक्तों की आतुरता का वर्णन करना सहज नहीं है।

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