118वां शक्ति चेतना जनजागरण शिविर ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ चण्डीगढ़ के परिप्रेक्ष्य में दिनांक 14 फरवरी से 16 फरवरी 2018 तक ‘शक्ति चेतना जनजागरण सद्भावना यात्रा’ मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश होते हुए हरियाणा व पंजाब की राजधानी चण्डीगढ़ पहुंची। तदोपरान्त, अपार जनसमुदाय की उपस्थिति में 17-18 फरवरी को दो दिवसीय शिविर सफलतापूर्वक सम्पन्न किया गया। शिविर में दो हज़ार से भी अधिक लोगों ने गुरुदीक्षा ली और नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् व चेतनावान् जीवन अपनाकर समाज को जगाने का संकल्प लिया।
भगवती मानव कल्याण संगठन के प्रयास से आज समाज के करोड़ों लोग मानसिकहीनता व नशे-मांस से मुक्त होकर शान्ति और सौहार्द के मार्ग पर बढ़ रहे हैं और पृथकता की, अलगाव की जीवनपद्धति धीरे-धीरे मिट रही है। जन-जन को नशामुक्त, मांसाहारमुक्त, चरित्रवान्, चेतनावान् जीवन व मानवता की सेवा, धर्मरक्षा तथा राष्ट्ररक्षा करने के मानवीय कर्त्तव्य का बोध कराने वाले ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के द्वारा क्रमशः मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल, उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर और हरियाणा व पंजाब की संयुक्त राजधानी चण्डीगढ़ में किये गए ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ से अन्यायी-अधर्मी राजनेताओं व नशामाफियाओं के बीच हलचल मच गई है।
दिनांक 14 फरवरी 2018 की प्रातःकालीन बेला। आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की स्तुति के उपरान्त, ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के सान्निध्य में शक्ति चेतना जनजागरण सद्भावना यात्रा जैसे ही हरियाणा व पंजाब की राजधानी चण्डीगढ़ के लिए पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम से प्रस्थित हुई, आश्रमवासियों व भक्तों के जयकारों और शंखध्वनि की गूँज से वातावरण तरंगित हो उठा। परिवर्तन की लहर चल चुकी है और स्वर्णिम समाज की स्थापना होने तक यह प्रयास अनवरत चलता रहेगा।
सबसे आगे दिशानिर्देशक वाहन व पूजनीया माता जी और शक्तिस्वरूपा बहनों के वाहन के मध्य परम पूज्य गुरुवरश्री का वाहन तथा अन्त में अनेक वाहनों में भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ता चल रहे थे।
आश्रमवासियों को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हुये सद्गुरुदेव भगवान् सर्वप्रथम स्वामी जी की समाधिस्थल पर गये, पश्चात् त्रिशक्ति गोशाला पहुंचे, जहां उन्हें नमन् करने के लिये द्वार पर फूलमालाओं से आच्छादित तोरणद्वार सजाए गोसेवक कतारबद्ध जयकारे लगाते व शंखध्वनि करते हुये खड़े थे, इन्हें भी आपश्री ने आशीर्वाद प्रदान किया।
शक्ति चेतना जनजागरण सद्भावना यात्रा शनैः-शनैः आगे बढ़ी। परम पूज्य गुरुवरश्री की यात्रा का आभास पाकर ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में स्थान-स्थान पर शिष्यों-भक्तों द्वारा स्वागतद्वार सजाये गये थे। स्वागतद्वार के दोनों ओर आरती की थाल सजाये खड़े भक्तों की आतुरता देखते ही बनती थी। महिलाओं के हाथों में दीप प्रज्वलित कलश सुशोभित हो रहे थे। खामडांड़ व मऊ ग्राम पंचायत, देवलौंद, बघवार होते हुए छुहिया घाटी की घुमावदार सड़क से होते हुए यात्रा सफलतापूर्वक गोविंदगढ़ पहुंची। मार्ग में गगनचुंबी विन्ध्यपर्वतश्रेणियां और सुनहरी धूप की किरणें ऋषिवर के चरणचुम्बन के लिए आतुर प्रतीत हो रहे थे।
सद्भावना यात्रा बेला होते हुए सतना पहुंचती है, सड़क मार्ग के किनारे ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाकर गुरुभाई-बहनों ने यात्रा का स्वागत किया और गुरुवरश्री को बड़ी ही श्रद्धाभाव से नमन किया। यहां से सद्भावना यात्रा नागौद, करैहया, कालिंजर व नरैनी मार्ग से होते हुए बाँदा (उत्तरप्रदेश) पहुंची। यहाँ गुरुभाई-बहनें व क्षेत्रवासी जयकारे लगाते हुए गुरुदेव भगवान् को नमन करने के लिए खड़े थे और सभी ने वाहन को ही छूकर तृप्ति का अनुभव किया। बाँदा के गुरुभाईयों ने सद्भावना यात्रियों को जलपान कराकर सौहार्दभाव का परिचय दिया।
पपरेंदा थाना क्षेत्रान्तर्गत ग्राम चिल्ला में ग्राम्यजन व गुरुभाई-बहन मार्ग के दोनों ओर कतारबद्ध खड़े ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाने के साथ ही शंखनाद कर रहे थे। महिला भक्तों के हाथ में दीप प्रज्वलित कलश और पुरुषों के हाथ में शक्तिदण्डध्वज। सुसज्जित स्वागतद्वार की अलग ही छटा थी। सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने सभी शिष्यों-भक्तों व नमनभाव से खड़े बच्चों को आशीर्वाद प्रदान किया। पलानी डेरा, टेढ़ा (जनपद क्षेत्र हमीरपुर) में भी सद्भावना यात्रा का स्वागत करते हुए गुरुभाईयों ने जलपान वितरित किया।
सद्भावना यात्रा के साथ परम पूज्य गुरुवरश्री, पूजनीया माता जी व शक्तिस्वरूपा बहनों को देखकर भरुआ सुमेरपुर, हमीरपुर व सजेती के लोगों में उत्साह का पारावार नहीं था। जयकारों व शंखध्वनि से समूचा ग्रामीण व नगरीय क्षेत्र गुरुमय हो उठा था। स्वागतद्वार सजाए सड़क के किनारे शक्तिदण्डध्वज लिए जयकारे लगाते पंक्तिबद्ध खड़े भक्तों ने परम पूज्य गुरुवरश्री को नमन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।
टोलप्लाजा होते हुए यात्रा घाटमपुर पहुंची। यहां सद्गुरुदेव भगवान् की एक झलक पाने के लिए हज़ारों लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। राह में स्वागतद्वार व वन्दनवार सजाए गए थे। भक्तों ने नशामुक्ति सद्भावना यात्रा का स्वागत, मार्ग में पुष्पों को बिखेरकर किया। उनमें माँ-गुरुवर के प्रति भक्तिभाव स्पष्ट रूप से झलक रहा था।
मूसानगर, भोगनीपुर व सिकन्दरा में स्वागत के लिये आतुर खड़े भक्त गुरुवरश्री के दर्शन का लाभ प्राप्त करके अति आनन्दित हुये। इटावा जनपद मुख्यालय में हॉटल चौधरी पैलेस में सभी ने रात्रि विश्राम किया। पैलेस के एक हिस्से को गुरुआवास का रूप प्रदान किया गया था। हॉटल के मुख्य द्वार से गुरुआवास तक बिछी पुष्पों की पंखुडिय़ां अनुपम छटा बिखेर रहीं थीं।
इटावा में रात्रि विश्राम के बाद दिनांक 15 फरवरी को प्रातःकालीन बेला में, सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज जैसे ही विश्रामस्थल से निकलते हैं, जयकारों से समूचा वायुमंडल गुंजायमान हो उठा। यहां से सद्भावना यात्रा लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे और यमुना एक्सप्रेसवे होते हुए देश की राजधानी दिल्ली के लिए आगे बढ़ी। दिल्ली की सड़कों पर मन्द गति से चल रही रैली का स्वरूप मनमोहक था।
सद्भावना यात्रा नोएडा होते हुए बोटानिकल गार्डन के पास पहुंची, जहां अति व्यस्ततम आवागमन के बीच जगह बनाकर सैकड़ों गुरुभाई-बहनों ने यात्रा की अगवानी की और सद्गुरुदेव भगवान् को नमन किया। रात्रिविश्राम दिल्ली स्थित हॉटल टीवोली ग्राण्ड में किया गया।
दिनांक 16 फरवरी को प्रातःकाल 7.30 बजे जैसे ही परम पूज्य गुरुवरश्री विश्रामस्थल (गुरुआवास) से बाहर निकले, उनके दर्शन के लिए क्रमबद्ध खड़े भक्तों ने तीव्र जयघोष के साथ यात्रा को चण्डीगढ़ के लिए रवाना किया।
सद्भावना यात्रा जैसे ही मुरथल (ज़िला- सोनीपत, हरियाणा) में प्रवेश करती हैं, वहां लम्बी दूरी तक भक्तों को देखकर बरबस ही परम पूज्य गुरुवरश्री का वाहन मन्द गति से चलने लगा। यहां हरियाणवी संस्कृति की मनमोहक झलक देखने को मिली। भव्य तोरणद्वार, हरियाणवी पोशाक धोती-कुरता पहने जयकारे लगाते ग्रामीण व लहंगा-चुनरी पोशाक धारण किए हुए महिलाओं के सिर पर दीप प्रज्वलित कलश। गुरुभाई-बहनों की आतुरता व उत्साह-उमंग सभी कुछ दर्शनीय था।
गुरुभाई-बहनों व क्षेत्रीयजनों ने सद्गुरुदेव भगवान् को प्रणाम करके समृद्धिमय जीवन के लिए आशीर्वाद प्राप्त किया। समालखा, ज़िला-सोनीपत में तो ढोल-नगाड़े की संगीतमयी धुन के साथ यात्रा का स्वागत हुआ। गुरुभाई-बहनों के द्वारा मार्ग में अति सुन्दर ढंग से तोरणद्वार बनाकर फूलमालाओं से सजाया गया था, जो कि सभी के मन को लुभाने वाला था। यात्रा करनाल, पीपली (कुरुक्षेत्र), शाहबाद, अम्बाला होते हुए जेरखपुर से पंजाब प्रदेश क्षेत्र में स्थित गुरुआवास, सेक्टर 69 मोहाली पहुंची। यहां पर भी सुमधुर धुन के बीच गुरुवरश्री का भव्य स्वागत हुआ और गुरुवरश्री ने उपस्थित सभी शिष्यों को दोनों हाथों से अपना आशीर्वाद प्रदान किया।
प्रथम दिवस 17 फरवरी 2018
माता भगवती आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा के भक्तों और ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के शिष्यों का प्रवाह शिविरस्थल में उमड़ पड़ा था।
नर, नारी, बालक, बालिकाएं। सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के शिष्य, ‘माँ’ के भक्त, शंख व शक्तिदण्डध्वज लिये कार्यकर्ता, भगवती मानव कल्याण संगठन एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम ट्रस्ट के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित द्विदिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर हेतु निर्मित भव्य व विशाल पंडाल की ओर अनुशासनपूर्वक कदम से कदम मिलाते हुये चले जा रहे थे। शिविर पंडाल में नशामुक्त, मांसाहारमुक्त व चरित्रवान् साधक जिस क्रम से पहुंचते, संगठन के कार्यकर्ताओं के द्वारा दी गई व्यवस्था के अनुरूप पंक्तिबद्ध रूप से बैठते चले गये।
मंच की भव्यता हरीतिमा का संदेश दे रही थी। मंच के शीर्ष में शंख, उसके नीचे पर्वत शृंखलाओं के मध्य हिलोरें ले रही नदी के जल का वृत्तचित्र। बांयी ओर सुख-समृद्धि का प्रतीक कलश और दाहिनी ओर ‘माँ’ और गुरुवर की संयुक्त ऊर्जात्मक छवि के समक्ष प्रज्वलित अखण्ड ज्योति से निकलती चेतनात्मक तरंगों से अविभूत उपस्थित जनसमुदाय माँ-गुरुवर के जयकारे लगाने में निमग्न था।
मंच के समक्ष शिविर पंडाल में अनुशासित ढंग से पंक्तिबद्ध बैठे हुये भक्तों की आतुरता देखते ही बनती थी, कि तभी अपराह्न 2.30 बजे ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का आगमन भक्तों की बेचैनी को शान्त करता चला गया। गुरुवरश्री के आगमन के साथ ही शंखध्वनि व तालियों की गडग़ड़ाहट से समूचा क्षेत्र गुंजायमान हो उठा।
ऋषिवर के मंचासीन होते ही शक्तिस्वरूपा बहन पूजा जी, संध्या जी और ज्योति दीदी जी ने उपस्थित समस्त भक्तों की ओर से पद-प्रक्षालन के बाद श्रीचरणों में पुष्प समर्पित किया। चरणवन्दन के पश्चात् कुछ शिष्यों ने भावगीत प्रस्तुत किये, जिसके कुछ अंश इस प्रकार हैं-
माँ ने यह संसार बनाया, कण-कण में माँ की माया- वीरेन्द्र दीक्षित जी, दतिया (म.प्र.)। मुझको माँ-गुरुवर का सहारा मिल गया, मेरी नैया को किनारा मिल गया- सोनी योगभारती जी, बाँदा (उ.प्र.), मैया के छैया गुरुवर महिमा तुम्हारी जानूं…- प्रतीक मिश्रा जी, कानपुर (उ.प्र.) और अंत में बाबूलाल विश्वकर्मा जी, दमोह (म.प्र.) ने गुरुवरश्री के चरणों में अपने भावसुमन अर्पित करते हुए कहा कि वात्सल्य, प्रेम, दया और करुणा के निधान, सबके सम्मुख बैठे हैं सच्चिदानंद भगवान।
दिव्य उद्बोधन
ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज अपने चेतनाअंशों, ‘माँ’ के भक्तों और उपस्थित जिज्ञासुओं को आशीर्वाद प्रदान करते हुये कहते हैं कि-
यह शिविरों की शृंखला का 118वां शिविर है। माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की कृपा से परिवर्तन का जो अभियान अनेकों क्रमों से चल रहा है, यह शिविर उन्हीं की एक कड़ी है। निश्चित है मानव का जीवन जिस गति से चल रहा है, चलता चला जा रहा है, किसी में यह विचार नहीं बनता कि वह अच्छा कर रहा है या बुरा कर रहा है? समाज को इसी का ज्ञान प्रदान करने हेतु धर्मयुद्ध की आवश्यकता पड़ती है। आप लोग मानव हो, इन्सान हो!
मैंने ‘माँ’ को जाना है, स्वयं को जाना है। आप लोगों व मुझमें अन्तर इतना है कि आपने अपने आपको नहीं जाना। पूरे समाज में अनीति-अन्याय-अधर्म का साम्राज्य है और इसे मिटाने के लिए अनेकों संस्थाएं कार्य कर रही हैं, लेकिन परिवर्तन क्यों नहीं आ रहा है? मैं प्रवचन देने नहीं आया हूँ, रामायण, गीता, किस्से-कहानियाँ सुनाने नहीं आया हूँ, बल्कि सत्य का मार्ग दिखाने आया हूँ। मेरे चिन्तन, मेरे विचार धर्म, राष्ट्र और मानवता से जुड़े होते हैं और मेरा लक्ष्य है आपको जगाते रहना।
यह साधनापथ की यात्रा है। मेरा जीवन अलग ही प्रकार का है- सत्य का जीवन जीता हूँ और सत्य की वाणी बोलता हूँ। पंजाब की धरती जो त्यागियों, बलिदानियों की धरती कही जाती है, जहां गुरुगोविन्द सिंह जैसे गुरु हुए हैं, किन्तु इस धरती के लोग उनके द्वारा बताए गए मार्ग से बहुत दूर होते जा रहे हैं। भले ही बड़े-बड़े भवन दिखाई दें, लेकिन उनमें संवेदनहीन लोग रहते हैं और जिस मनुष्य के अन्दर से संवेदना मर जाती है, वह पतन के मार्ग में बढ़ता चला जाता है। समाज धीरे-धीरे खोखलेपन की ओर बढ़ता चला जा रहा है। इस खोखलेपन को दूर करने के लिए ही शिविरों का आयोजन किया जाता है। करोड़ों लोगों को सत्य की ऊर्जा के प्रभाव से नशामुक्त किया जा चुका है। आपको अपने जीवन में परिवर्तन लाने का एक सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ है। मैं यहाँ केवल आपके अवगुणों को लेने आया हूँ। एक बार विचार अवश्य करना कि ‘नशा’ आपके पतन का मूल कारण है। यह नशा आपके परिवार के विनाश का कारण है। नशा करने वाले व्यक्ति से उसके बच्चे-बच्चियां, पत्नी व परिवार के अन्य सदस्य भयग्रस्त रहते हैं।
‘माँ’ का सच्चा भक्त वही बन सकता है, जो नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् होगा, पुरुषार्थी और तपस्वी होगा तथा विश्वास, समर्पण और श्रद्धा की भावना से युक्त होगा। इन बातों पर जो ध्यान दे देगा, सुख-समृद्धि उसके पीछे-पीछे भागेगी। यह कर्मप्रधान युग है। हरियाणा हो, पंजाब हो या हिमांचल हो, ये प्रदेश बहुत पहले से ‘माँ’ की भक्ति से जुड़े हुए हैं। लेकिन, आज नशे की काली छाया से ग्रसित होकर लोग पतन की गहरी खाई में गिरते चले जा रहे हैं। अरे, भक्त बनो, तपस्वी बनो, साधक बनो। भक्ति, तप, साधना का तात्पर्य व्रत या पूजा-पाठ भर नहीं है। इसके लिए यम-नियमों का पालन करना पड़ेगा।
यदि सुचारु रूप से यम, नियम का पालन किया जाए, तो जीवन में परिवर्तन आते देर नहीं लगेगी। यम एवं नियम को पांच-पांच भागों में विभक्त गया है।
यम- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह।
सत्य- मन, बुद्धि, अन्तःकरण व इन्द्रियों के द्वारा जो सत्य देखा, सुना व समझा जाए, वैसा ही मूलतः व्यक्त करना सत्य कहलाता है। दूसरों को जो भ्रम में न डाले, धोखा न दे, ऐसा ज्ञान व ऐसी वाणी सत्य कहलाती है। कुछ सत्य ऐसे होते हैं, जिसके लिए कटु भी बोलना पड़े, तो बोलने में हिचकना नहीं चाहिए। जैसे हत्यारे को हत्यारा कहना व देशद्रोही को देशद्रोही कहना, पूर्ण सत्य माना जाता है। अहिंसा- मन-वचन-कर्म से कोई ऐसा कार्य न करें, जिससे किसी का अहित हो। अर्थात सभी के प्रति हित व प्रेम की भावना ही अहिंसा है। आत्मरक्षा एवं किसी पीड़ित के लिए उठाया गया कदम भी अहिंसा की श्रेणी में आता है। किसी दूसरे के द्वारा की जा रही हिंसा का विरोध करना भी अहिंसा है। अस्तेय- वही प्राप्त करें, जितनी पात्रता हो, किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए अनाधिकार चेष्टा न करें। कोई ऐसा कार्य न करें, जिससे दृष्टि झुकानी पड़े, अर्थात चोरी न करना ही अस्तेय है। यदि अस्तेय का पालन नहीं करते हो, तो सुषुम्रा नाड़ी संकुचित होती चली जाएगी। ब्रह्मचर्य- ब्रह्मचर्य से तात्पर्य है, विकारों का संयमन करना। शादी से पहले पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और शादी के बाद एक पत्नी/एक पतिधर्म का पालन करते हुए गृहस्थ जीवन को संतुलित व मर्यादित रखें। और, जीवन आगे बढऩे पर पति/पत्नी आपसी सहमति से पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर सकते हैं। अपरिग्रह- जीवन के लिए आवश्यकता से अधिक सुख-साधन का संग्रह न करना ही अपरिग्रह है। जो पात्रता है, उससे कम में जीवन निर्वाह करो और अपने उपार्जित धन का दशांश मानवता की सेवा, धर्मरक्षा एवं राष्ट्ररक्षा के कार्यों में व्यय करें। जो ऐसा नहीं करता, वह अपरिग्रही नहीं है। अपरिग्रही बनने के लिए आप जिस धर्मसंस्थान से जुड़े हैं, अपने उपार्जित धन का पांच प्रतिशत धर्मरक्षार्थ वहां के निर्माण कार्यों के लिए समर्पित करें और शेष पांच प्रतिशत मानवता की सेवा एवं राष्ट्रहित के कार्यों के लिए खर्च करें।
नियम- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्राणिधान।
शौच- शरीर व मन की शुद्धता व पवित्रता को शौच कहा गया है। इसमें नियम से नित्यप्रति शौच क्रिया आदि के लिए जाना, स्नान करना व सत्कर्मों से उपार्जित धन से सात्त्विक भोजन करना सम्मिलित है। राग-द्वेष, ईर्ष्या, काम-क्रोध-लोभ तथा भय का त्याग करने से अन्तःकरण व मन शुद्ध होता है। संतोष- जिसके जीवन में सन्तोष है, उसे कोई भटका नहीं सकता। अपने सत्कर्मों तथा पुरुषार्थ से उपार्जित जो भी धन-संसाधन प्राप्त हो जाए, उससे ही संतुष्ट रहना एवं सुख-दुःख, लाभ-हानि, यश-अपयश, सिद्धि-असिद्धि, अनुकूलता-प्रतिकूलता आदि के प्राप्त होने पर, हर स्थिति-परिस्थिति में हमेशा संतुष्ट व प्रसन्नचित्त रहने का नाम संतोष है। तप- तपस्वी बनो। यदि जीवन में शौच, सन्तोष है, तो तप का जीवन जिओ। तप से तात्पर्य है जो कार्य कर रहे हो, उसे निष्ठा से करो। परमसत्ता की अटूट भक्ति करो। इससे आपकी पात्रता विकसित होगी और कुण्डलिनीचेतना ऊर्ध्वगामी होगी। आपकी सुषुम्रा नाड़ी जितनी चैतन्य होगी, उतनी ही तेजी के साथ आपकी समस्याओं का निदान होगा। जिस दिन से अपनी सुषुम्रा नाड़ी से प्रेम करने लग जाओगे, कोई समस्या उत्पन्न हो ही नहीं सकती। स्वाध्याय- अच्छे साहित्य पढऩा, अच्छी बातें सुनना, सात्त्विक भजन गाना, स्तुति-स्तोत्र पाठ करना आदि स्वाध्याय कहलाता है। ईश्वरप्राणिधान- मन, वाणी, कर्म के द्वारा इष्ट की भक्ति करना, उनके नाम का जप व गुणों का गुणगान, स्मरण, कीर्तन-भजन करना व पूर्ण समर्पण भाव रखना ही सच्चे अर्थों में ईश्वरप्राणिधान है।
आपश्री ने कहा कि मैं किसी देवी-देवता का अवतार नहीं हूँ। मैं ऋषि था, ऋषि हूँ और ऋषि रहूँगा। मैं देवत्व के पदों को ठोकर मारता हूँ। इस मानवजीवन को प्राप्त करने के लिए देवता क्यों तरसते हैं? इसलिए कि इस जीवन को प्राप्त करके ही मुक्ति के पथ पर बढ़ा जा सकता है। इस जीवन को ऋषित्व के पथ पर बढ़ाया जा सकता है। देवता भी ऋषियों के चरण पूजते हैं। मुक्ति का पथ ऋषित्व का पथ होता है, जिसे प्राप्त करके आप अपनी आत्मा की जननी आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा से मिल सकते हैं, दिव्यधाम को प्राप्त कर सकते हैं। ‘माँ’ को इष्ट मान लो, प्रकृति के नियमों का पालन करना शुरू कर दो। फिर पाओगे कि आपके अन्दर निर्भीकता, शौर्य, विनम्रता, प्रेम, दया, ममता, वात्सल्य, करुणा, परोपकार के भाव जाग्रत् होते चले जायेंगे। आज ढोंगी, व्यभिचारी संत, बाबा, तथाकथित धर्माचार्य, जनआस्था के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। बहुप्रचारित धर्मगुरु जिन्हें स्वयं का ज्ञान नहीं है, वह समाज को ज्ञान दे रहे हैं। यही कारण है कि समाज पतन के दलदल में धसता जा रहा है। समाज को जगाने के लिए ही मैं विश्व के धर्माचार्यों को ससम्मान चुनौती देता हूँ कि एक बार तो मेरा सामना करो। हमारी भारतभूमि अभी ऋषियों से खाली नहीं है। मैंने धर्मरक्षा के लिए हर धर्म के धर्मगुरुओं को चुनौती दी है। शंकराचार्य हों, धर्माचार्य हों, सभी से चाहता हूँ कि धर्मसम्मेलन आयोजित किया जाए, जिसमें समाज का बुद्धिजीवी वर्ग, मीडिया और वैज्ञानिक भी उपस्थित हों। सभी के समक्ष यह सिद्ध करें कि सत्यधर्म के प्रति उनमें कितनी क्षमता है, क्या वे अपने आपको ध्यान में जाकर विचारशून्य कर सकते हैं? उनकी कुण्डलिनीशक्ति जाग्रत् है या नहीं? इस बात का परीक्षण विज्ञान भी कर सकता है।
गुरुवरश्री ने कहा कि मैं किसी भी धर्मगुरु या शंकराचार्यों का विरोध नहीं कर रहा, लेकिन वे भौतिकता के फेर में उलझकर अपनी शक्तियों को नष्ट कर चुके हैं, जिसे समाजहित में जाग्रत् करना आवश्यक है। यदि वास्तव में उनके अन्दर की शक्तियां जाग्रत् हैं, तो जनआस्था के लिए एक बार शक्तिपरीक्षण अवश्य कराएं। एक बार मैं केवल उन्हें मानवधर्म के प्रति सचेत करना चाहता हूँ। एक बार परीक्षण होना चाहिए कि नहीं? माँग मेरी है, बढ़कर उनको आगे आना होगा। यदि कोई भी मेरे साधनात्मक तपबल की चुनौती को स्वीकार करके अपने आपको सिद्ध साबित कर देगा, तो मैं उसकी दासता स्वीकार कर लूँगा। मैं कहता हूँ कि सभी धर्मगुरु एक पलड़े पर खड़े होजाएं और मैं एक पलड़े पर। ‘माँ’ की शक्ति से मैं असम्भव से असम्भव कार्य को भी सम्भव कर दिखाऊँगा।
रामरहीम, आशाराम, रामपाल जैसे लोग आस्था के साथ खिलवाड़ करते रहते हैं। मैं पिछले 20 वर्षों से इन भ्रष्ट धर्मगुरुओं के प्रति आवाज उठाता चला आ रहा हूँ। जो दूसरों के दुःख से दुःखी न हो, दूसरे के हितार्थ जिसके हाथ आगे न बढ़ें, वह धर्मगुरु हो ही नहीं सकता। रामदेव बाबा कहते हैं कि मैंने ऐश्वर्य प्राप्त कर लिया है। अपने आपको सबसे बड़ा योगाचार्य कहते हो। बताओ कि तुमने ऐश्वर्य अपनी सामर्थ्य से प्राप्त किया है या इन्टरनेशनल भिखारी बनकर? योग की शक्ति और सामर्थ्य क्या है? रामदेव को चुनौती देता हूँ कि क्या तुमने ध्यान-समाधि की स्थिति को प्राप्त किया है? यदि असली ऐश्वर्य को देखना चाहते हो, तो मेरे पास आओ। समाज में तीन प्रकार के लोग होते हैं- कुछ लोग प्रताड़ित करने का कार्य करते हैं, तो कुछ प्रभावित करके आकर्षित करते हैं, जबकि मैं प्रकाशित करने का कार्य कर रहा हूँ।
ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने राजनेताओं, यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के क्रियाकलापों का उल्लेख करते हुए कहा कि जो अपनी जनता को शराब पिला रहे हैं और युवा भारत की बात करते हैं, दरअसल वे नशेड़ी युवाओं का भारत बनाना चाहते हैं, धिक्कार है ऐसी राजसत्ताओं पर। दिन-प्रतिदिन भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है। अब भी समय है सुधर जाओ, संभल जाओ, अन्यथा भगवती मानव कल्याण संगठन का अभियान तुम्हें रसातल में मिला देगा। ये राजनेता चारों ओर से लूट रहे हैं। पहले शराब पिलाते हैं, फिर नशामुक्ति अभियान चलाते हैं और पीने वालों पर जुर्माना लगाते हैं। धिक्कार है!
देश की जनता को जगाते हुए आपश्री ने कहा कि भ्रष्टाचारियों को अपना वोट मत दो, शराब की बोतल में मत बिको, अन्यथा गुलामी के जीवन से छुटकारा कभी नहीं मिलेगा। गलत रास्ते से हट जाओ, अनीति-अन्याय-अधर्म से दूर होजाओ, सत्य की राह पर चलने लगो, यही तो ‘माँ’ चाहती हैं। अपने मन में सद्विचारों का कारवां तो बना लो। कौन कहता है कि कलिकाल को बदला नहीं जा सकता। आज आप लोगों की शारीरिक व मानसिक क्षमता कमजोर हो चुकी है, क्योंकि विचारों की दिशा बदल गई है। गलत बातें सोचते हो, गलत भोजन लेते हो, सात्विक भोजन अच्छा नहीं लगता।
मोदी जैसा जुमलेबाज शायद ही और कोई हो। मैं हर मंच से मोदी का समर्थन करता रहा हूँ, लेकिन चार सालों में उनके कार्यों से निराशा ही हाथ लगी है। क्या लाभ देश के ऐसे प्रधानमंत्री का, जो अपने मन की बात सुनाता रहे, दूसरों की न सुने। नीतीश कुमार की सराहना की, स्वयं क्या किया? क्या अपने किसी मुख्यमंत्री से शराबबन्दी के लिए कहा? इनसे अच्छी ईमानदारी तो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह में थी। मैं कहता हूँ कि मोदी अन्यों से श्रेष्ठ हैं, लेकिन हम उनकी श्रेष्ठता को लेकर क्या करेंगे? भ्रष्टाचारियों ने गंगा तक को नहीं छोड़ा, सफाई के नाम पर खूब लूटा जा रहा है। कहा था कि माँ गंगा ने मुझे बुलाया है, लेकिन किया क्या? इनकी पार्टी के सभी मुख्यमंत्री भ्रष्ट हैं, बड़े-बड़े घोटाले हो रहे हैं और घोटालेबाज निर्दाेष साबित हो रहे हैं, क्यों?
प्रथम दिवस के चिन्तन के उपरान्त, कार्यक्रम स्थल पर उपस्थित जनसमुदाय ने दोनों हाथ उठाकर संकल्प लिया कि वे नशे-मांस से मुक्त जीवन जीते हुए शादी से पहले ब्रह्मचर्य व्रत व शादी के बाद एक पत्नी/एक पति व्रतधर्म का पालन करते हुए धर्म, राष्ट्र व मानवता की रक्षा के लिए सतत प्रयत्नशील रहेंगे।
संकल्प के पश्चात् मानवता के कल्याणार्थ नशामुक्ति समाज की स्थापना के लिए सभी ने परम पूज्य गुरुवरश्री के सान्निध्य में पाँच मिनट तक नशामुक्ति का महाशंखनाद किया। तदोपरान्त, साधनाक्रम पूर्ण किया गया और उपस्थित भक्तों की ओर से शक्तिस्वरूपा बहनों ने माँ-गुरुवर की दिव्य आरती की। अंत में चरणपादुकाओं को स्पर्श करते हुए सभी ने प्रसाद प्राप्त किया।
द्वितीय दिवस-प्रथम सत्र 18 फरवरी 2018
गुरुदीक्षा क्रम
शिविर के द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र में सुबह 08.00 बजे से गुरुदीक्षा का क्रम प्रारम्भ हुआ। सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने दो हज़ार से भी अधिक नए भक्तों को दीक्षा प्रदान करने से पूर्व चिन्तन दिया कि-
किसी चेतनावान् गुरु से दीक्षा प्राप्त करना सबसे बड़ा सौभाग्यशाली क्षण होता है। इन क्षणों की तुलना अन्य क्षणों से नहीं की जा सकती। जब किसी चेतनावान् गुरु से दीक्षा प्राप्त की जा रही होती है, तो सद्मार्ग की दिशा प्राप्त होती है। आपश्री ने कहा कि केवल गुरुदीक्षा प्राप्त कर लेने से ही जीवन की पूर्णता नहीं होती, इस सत्य को समझना और भी आवश्यक है। केवल गुरु-शिष्य का रिश्ता जोड़ लेना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि गुरुनिर्देशों के अनुरूप गुरुआज्ञा का पालन करते हुए कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ें। गुरु के समक्ष जो संकल्प लेते हैं, जीवन के अन्तिम श्वांस तक वह संकल्प बना रहे।
यह गुरु आया ही है आपके कल्याण के लिए, अपनी साधनाओं को लुटाने के लिए। शिष्यों के कल्याण के लिए मेरी नित्य की साधनाएं समर्पित रहती हैं। आपको केवल नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीना है। धर्म, राष्ट्र, मानवता के प्रति कदम आगे बढ़ाते रहना है। गुरु अपने शिष्य से सम्बंध तब तक नहीं तोड़ता, जब तक कि शिष्य स्वयं सम्बंध नहीं तोड़ लेता। जब तक इस यात्रा को एकनिष्ठता के साथ तय करते रहोगे, गुरु की कृपा आपके ऊपर बनी रहेगी।
गुरुवरश्री ने नित्य साधना के मंत्रों के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भले ही इन मन्त्रों को आपने कई बार सुना है, लेकिन जब गुरु द्वारा मन्त्र प्रदान किये जाते हैं, तो वे मन्त्र उत्कीलित हो जाते हैं।
आप लोगों को नित्य शुद्धता का ध्यान रखना है। एक बात का विशेष ध्यान रखें कि पूजन करते समय किसी भी छवि को पहले गीले कपड़े से पोछकर कुंकुम का तिलक लगा सकते हैं। भ्रान्ति से ऊपर उठें और यह न सोचें कि पहले किस छवि को तिलक लगाएं, कहीं कोई नाराज़ न हो जाए। देवी-देवताओं में कोई भेदभाव नहीं होता, सभी सूक्ष्म शक्तियां हैं।
चिन्तन के पश्चात् सद्गुरुदेव जी महाराज ने सहायक शक्तियों हनुमान जी का मंत्र- ॐ हं हनुमतये नमः, भैरव जी का मंत्र- ॐ भ्रं भैरवाय नमः एवं गणेश जी का मन्त्र- ॐ गं गणपतये नमः के साथ चेतनामन्त्र- ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नमः और गुरुमन्त्र- ॐ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः प्रदान करते हुये कहा कि मैं आप सभी को मन, वचन, कर्म से शिष्य रूप में स्वीकार करता हूँ।
दीक्षा ग्रहण करने के पूर्व, शिष्यों ने संकल्प लिया कि ‘मैं आज इस साधनात्मक शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में मन-वचन-कर्म से दृश्य एवं अदृश्य जगत् की समस्त शक्तियों, दसों दिशाओं, पंचतत्त्वों तथा उपस्थित जनसमुदाय को साक्षी मानते हुए संकल्प करता/करती हूँ कि मैं बह्मर्षि धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज को अपना धर्मगुरु स्वीकार करता/करती हूँ। परम पूज्य सद्गुरुदेव जी को साक्षी मानकर संकल्प करता/करती हूँ कि मैं जीवनपर्यन्त नशा-मांसाहारमुक्त व चरित्रवान् जीवन जीने के साथ ही परम पूज्य सद्गुरुदेव जी के हर आदेश का पूर्णतया पालन करूंगा/करूंगी तथा गुरुदेव जी के द्वारा मानवता की सेवा, धर्मरक्षा एवं राष्ट्ररक्षा के लिए प्रदत्त तीनों धाराओं के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित रहते हुए तीनों धाराओं से मिलने वाले हर आदेश का पालन करूंगा/करूंगी। मैं भगवती मानव कल्याण संगठन के नियमों-निर्देशों का पालन करने के साथ ही भगवती मानव कल्याण संगठन एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम के प्रति तन-मन-धन से पूर्णतया समर्पित रहूँगा/रहूँगी एवं संगठन के जनकल्याणकारी कार्यों में अपनी पूर्ण क्षमता के साथ सहभागी बनूँगा/बनूँगी।’
अन्त में सभी नये शिष्यों ने सद्गुरुदेव भगवान् की चरणपादुकाओं को श्रद्धाभाव से नमन करते हुये विघ्रविनाशक शक्तिजल निःशुल्क प्राप्त किया और व्यवस्था में लगे कार्यकर्ताओं के पास गुरुदीक्षापत्रक जमा करके भगवती मानव कल्याण संगठन के द्वारा संचालित माँ अन्नपूर्णा भंडारे की ओर भोजन के लिए प्रस्थित हुए और वहाँ पहुंचकर तृप्तिपूर्वक खिचड़ी प्रसाद ग्रहण किया।
द्वितीय दिवस-द्वितीय सत्र
जयकारों व शंखध्वनि के मध्य परम पूज्य गुरुवरश्री का कार्यक्रमस्थल पर आगमन होता है। उपस्थित समस्त शिष्यों, भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हुए आपश्री मंचासीन होते हैं और प्रथम दिवस की भांति ही शक्तिस्वरूपा बहनों ने पदप्रक्षालन करके श्रीचरणों में पुष्प समर्पित किये। इस क्रम के उपरान्त, कुछ शिष्यों-भक्तों ने भावसुमन प्रस्तुत किये, जिनके अंश प्रस्तुत हैंः-
देने आया हूँ मैं तुमको प्यार भरा पैगाम, आईये कभी सिद्धाश्रम धाम…- वीरेन्द्र दीक्षित जी, दतिया। तेरी महिमा कैसे गाऊँ, तेरा दर्शन कैसे पाऊँ सच्चिदानंद अवतार, युग चेतन करतार-जगमोहन जी, हिमांचलप्रदेश। नशामुक्त करेंगे भारत गुरुवर ने यह प्रण ठाना, महाशंखनाद से गूँजा चण्डीगढ़ शहर सुहाना-प्रतीक मिश्रा जी, कानपुर। मन भक्ति में लगा रहे, गुरुवर इतनी कृपा रहे-बाबूलाल जी, दमोह।
दिव्य उद्बोधन
परम पूज्य गुरुवरश्री उपस्थित जनसमुदाय को एक बार पुनः अपना आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहते हैं कि-
आज दो हज़ार से कुछ अधिक नए भक्तों ने दीक्षा प्राप्त की और नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीने तथा धर्म, राष्ट्र व मानवता की रक्षा करने का संकल्प लिया। जो मुझसे जुड़ गए हैं, उनमें से 99 प्रतिशत लोगों में तो भटकाव आता ही नहीं, इस बात की गारण्टी है। भगवती मानव कल्याण संगठन जो कुछ लोगों से शुरू हुआ था, आज करोड़ों की संख्या में पहुंच चुका है और लाखों कार्यकर्ता जनजागरण में लगे हुए हैं। श्री दुर्गाचालीसा पाठ के रूप में सतत अनुष्ठान, पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में 15 अप्रैल 1997 से मानवता के कल्याण हेतु अनन्तकाल के लिए चल रहा है और वहाँ से करोड़ों-करोड़ लोग लाभान्वित हो चुके हैं। समाज के लोगों को साधनापथ पर बढ़ाने के लिए यह अनुष्ठान शुरू किया गया है। सिद्धाश्रम में जब भी आएं, कामनापूर्ति के लिए नहीं, बल्कि साधक बनने हेतु पात्र बनने के लिए आएं। क्योंकि, मांगने से हीनप्रवृत्ति उदय होती है। कर्म के फल पर हमारा पूर्ण अधिकार है। यह माता जगदम्बे का व्यवस्थित विधान है। अच्छाईयों का फल अच्छा होता है और बुराईयों का फल बुरा होता है।
सच्चा भक्त वही बन सकता है, जो आत्मा की अमरता और कर्म की प्रधानता पर विश्वास करता है। वैष्णो देवी माता के दर्शन करने जा रहे हो और इस दौरान यदि किसी के बेटे की मौत होजाए, तो कहा जाता है कि हम माता के दर्शन करने जा रहे थे और इतनी बड़ी अनहोनी हो गई। और, उसी पल से आपके मन में अनास्था उत्पन्न होजाती है। यह क्यों नहीं सोचते कि माँ के दरबार में परमधाम की प्राप्ति हुई, मुक्ति प्राप्त हुई। अरे, उसे तो जाना ही था, क्योंकि परमसत्ता के विधान को टाला नहीं जा सकता। अपने आपको सुधारो, विचारों में परिवर्तन लाओ और सच्चे भक्त बनो।
सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने कहा कि हर माता-पिता के अपनी सन्तानों के प्रति तीन कर्त्तव्य होते हैं- स्वास्थ्य, अच्छी शिक्षा और धर्माचरण। बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सात्विक व उत्तम आहार पर ध्यान रखें। अपनी सामर्थ्य के अनुकूल उनकी अच्छी शिक्षा का प्रबन्ध करें और उन्हें अध्यात्मपथ से जोड़कर रखें। चाहे आप किसी भी धर्म के मानने वाले हों। बच्चों को यह शिक्षा मत दो कि दूसरों का धर्म खराब है। उन्हें यह सिखाओ कि अपने धर्म के समान ही सभी धर्म मानवता की सीख देते हैं, अतः अपने साथ सभी धर्मों का सम्मान करें। अच्छे संस्कार न देने के कारण ही दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। जब तक युवाओं की मानसिकता में परिवर्तन नहीं लाओगे, तब तक बलात्कार की घटनाओं में विराम लग ही नहीं सकता। उन्हें नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् बनाना ही होगा। इसके लिए अध्यात्मपथ, गुरुवाणी और संस्कार देने की जरूरत है।
आज कथा, भागवत में भी नाच-रास-रंग परोसा जा रहा है। मैं कथा और भागवत का विरोधी नहीं हूँ, केवल वहां अश्लीलता न परोसी जाए। धर्म-आध्यात्म को मनोरंजन का साधन न बनाया जाए। आप कथा सुनें, रामायण-भागवत सुनें और सुनाएं, लेकिन धार्मिक कार्यक्रमों में बारबालाओं का डांस न कराएं। गीत-संगीत हो, तो आध्यात्मिक और भक्तिरस से परिपूर्ण हो, जिससे सुनने वालों का मनमस्तिष्क एकाग्र होजाए। भक्तिरस के गीतों को सुनकर थिरकें, नाचें नहीं, बल्कि उनका आनन्द अन्दर ही अन्दर लें। कुमारस्वामी, निर्मल बाबा को देख लीजिए। रसगुल्ला, समोसा, आलूबण्डा खिलाकर कल्याण करना चाहते हैं। कहते हैं कि रसगुल्ला खा लो, कल्याण हो जायेगा। कितनी बड़ी विडम्बना है कि समाज उनके फैलाए जाल में फंसता ही चला जा रहा है।
आपश्री ने कहा कि मेरी यात्रा सामान्य यात्रा नहीं है। मैं समाज को जगाने आया हूँ, समाज की जड़ता को दूर करने आया हूँ। मैं ऋषियों की कड़ी सच्चिदानंद का अवतार हूँ। जब वास्तविकता से अवगत होंगे, तो जो यहाँ नहीं आए, पछतायेंगे। मैं चेतावनी ऐसे ही नहीं दे रहा हूँ, बल्कि 65-65 शंकराचार्य हैं, फिर भी मनुष्य पतन की ओर जा रहा है। अनेकों शंकराचार्यों ने भ्रान्ति पैदा कर दी है कि नारियों को वेदपाठ नहीं करना चाहिए। मैं कहता हूँ कि पहले नारियों को ही वेदपाठ करना चाहिए।
मैं अपने शिष्यों को साधक बना रहा हूँ। साधक बनो, साधक ही समाज में परिवर्तन ला सकता है। विचारों के प्रति सतर्क रहो, जो विचारों को साध ले, वही सच्चा साधक है। आप सद्कर्म करने लगोगे, तो गीता, वेदपाठियों से भी अधिक चेतनावान् बन पाओगे। सद्कर्म करो, मन को, विचारों को साध लो। लोग कहते हैं कि मन दूषित है। अरे, मन से पवित्र और कुछ है ही नहीं, इसे अपवित्र बनाया है आपके दूषित विचारों ने।
इस शरीर की आन्तरिक व बाह्यशक्तियों का हमेशा सदुपयोग करना चाहिए, दुरुपयोग से ये सभी शक्तियां नष्ट होने लगती हैं। आन्तरिक शक्तियां- प्राणशक्ति, मनशक्ति और बुद्धिशक्ति हैं और बाह्य शक्तियां- तन की शक्ति, धन की शक्ति और जन की शक्ति हैं। जिस दिन ये सभी छह शक्तियां व्यवस्थित हो गईं, आपका पतन रुक जायेगा। अपने आपको पात्र बनाओ, जब तक पात्र नहीं बनोगे, आपका किया धरा सब कुछ व्यर्थ चला जायेगा। गले में रक्षाकवच डालकर रखो, यह हर पल एहसास करायेगा कि हमें बुरा कर्म नहीं करना है। आज्ञाचक्र को तिलक से आच्छादित करके रखो, फिर देखो आपका जीवन कैसे सुधरता है। याचक मत बनो, पात्र बन जाओ, परमसत्ता स्वयं सब कुछ देने के लिए बाध्य होंगी। हमें अपनी इष्ट से ऊर्जा मांगना है- पुरुषार्थ के लिए, भोग के लिए नहीं। पुत्र-पुत्रियों में भेद मत करो! बलिप्रथा से दूर रहो। जिस मंदिर में बलि चढ़ाई जाती है, वह मंदिर नहीं कसाईघर है और बलि चढ़ाने वाला पुजारी, पुजारी नहीं जल्लाद है। देवी-देवता तो जीवों की रक्षा करते हैं, वे बलि से प्रसन्न हो ही नहीं सकते। मानवता की सेवा, परोपकार को अपना धर्म और कर्म मानो।
सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने अमृततुल्य चिन्तन के उपरान्त, कुछ महत्त्वपूर्ण घोषणाएं कीं, जो इस प्रकार हैं- नशामुक्ति सद्भावना जनजागरण परिवर्तन यात्रा ‘द्वितीय चरण’ 16 से 20 मई तक शहडोल संभाग व तृतीय चरण की यात्रा 05 से 09 सितम्बर तक सागर संभाग में निकाली जायेगी। और, महाशक्ति सम्मेलन के रूप में 17, 18, 19 अक्टूबर को पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में योग-ध्यान-साधना शिविर तथा 15-16 दिसम्बर 2018 को सिंगरौली में शिविर का विशाल आयोजन सुनिश्चित किया गया है। साथ ही, 09-10 फरवरी 2019 को राजस्थान की राजधानी जयपुर में अगला ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ शिविर का विशाल आयोजन सम्पन्न होगा।
शिविर के द्वितीय दिवस भी दिव्य आरती से पूर्व ऋषिवर के सान्निध्य में नशामुक्ति का महाशंखनाद किया गया। पांच मिनट तक चले शंखनाद से चर-अचर जगत् गुंजायमान हो उठा। निश्चय ही यह क्रम लोगों के हृदय में परिवर्तन लाएगा और अन्यायी-अधर्मी या तो अपना रास्ता बदल लेंगे या फिर किसी बिल में छिपते नज़र आएंगे। नशामुक्ति महाशंखनाद के पश्चात् दिव्य आरती का क्रम सम्पन्न किया गया। अन्त में सभी भक्तों ने सद्गुरुदेव भगवान् की चरणपादुकाओं को नमन करते हुए प्रसाद प्राप्त किया।
पंचकूला में मनसा देवी की उतारी आरती
दिनांक 19 फरवरी को प्रातः 08:30 बजे ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने गुरुआवास से पंचकुला स्थित मनसा देवी माता के ऐतिहासिक मंदिर की ओर प्रस्थान किया। आपश्री, पूजनीया माता जी व शक्तिस्वरूपा बहनों के वाहनों के पीछे-पीछे हज़ारों की संख्या में गुरुभाई-बहन भी मंदिर पहुंच गए थे और सभी ने माँ के दिव्यरूप का दर्शन प्राप्त करके जीवन को धन्य बनाया।
गुरुवरश्री ने माता मनसा देवी की आरती करते हुए नशामुक्त और खुशहाल भारत के स्थापना की कामना की।
सद्भावना यात्रा चण्डीगढ़ से सिद्धाश्रम तक
दिनांक 20 फरवरी को प्रातःकाल 07ः30 बजे सद्गुरुदेव जी महाराज जैसे ही गुरुआवास से बाहर निकलते हैं, शिष्यों व ‘माँ’ भक्तों के मुखारविन्दों से उच्चारित जयकारों की प्रतिध्वनि से समूचा क्षेत्र गूंज उठा। इस विदाई बेला में अनेक शिष्यों-भक्तों की आंखें नम हो उठीं।
शक्ति चेतना जनजागरण सद्भावना यात्रा पंजाब राज्य के सेक्टर-69 मोहाली से अम्बाला-चण्डीगढ़ एस्सप्रेसवे होते हुए अम्बाला-पिपली सीमा तक पहुंची। यहां पर चण्डीगढ़ के गुरुभाई-बहनों ने परम पूज्य गुरुवरश्री को प्रणाम करते हुए यात्रा को भावभीनी विदाई दी। पिपली में हरियाणा के गुरुभाई-बहनों ने भव्य स्वागत किया। नशामुक्ति शक्ति चेतना जनजागरण सद्भावना यात्रा हाईवे पर तीव्रगति से आगे बढ़ी और करनाल में कुछ देर रुकी रही, इस दौरान शिष्यों ने सद्गुरुदेव भगवान् के वाहन के समीप पहुंचकर चरणस्पर्श करने का सौभाग्य प्राप्त किया।
चरणस्पर्श के क्रम के पश्चात् सभी यात्रियों ने चन्न हवेली ढाबा, करनाल में जलपान किया। पश्चात् सद्भावना यात्रा जालंधर टोलवे से टोल प्लाजा पानीपत होते हुए दिल्ली हाइवे में तेजगति से आगे बढ़ी। कश्मीरी गेट दिल्ली के प्रवेश मार्ग पर साथ चल रहे हरियाणा के गुरुभाई-बहनों ने परम पूज्य गुरुवरश्री को नमन करते हुए यात्रा को भावभीनी विदाई दी।
परम पूज्य ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज को संगठनात्मक कार्यों से कुछ दिनों के लिए दिल्ली में रुकना पड़ा और उसके बाद दिनांक 27 फरवरी को झांसी विश्राम करते हुए 28 फरवरी को सिद्धाश्रम पहुंचकर यात्रा का समापन हुआ।