119वां शक्ति चेतना जनजागरण शिविर, महाशक्ति सम्मलेन, सिद्धाश्रम धाम- 17, 18, 19 अक्टूबर 2018

एक लाख से अधिक लोगों ने प्राप्त किया बुद्धि, विवेक का मंत्र

युग परिवर्तन का महाशंखनाद और नशामुक्ति शंखनादों के क्रम के संवाहक एक लाख से अधिक शक्तिसाधकों और भक्तों ने शारदीय नवरात्र पर्व पर अष्टमी, नवमी व विजयदशमी (17, 18, 19 अक्टूबर 2018) को पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में आयोजित त्रिदिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर ‘महाशक्ति सम्मेलन’ में एक बार पुन: नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् व चेतनावान् समाज की स्थापना और मानवता की सेवा, धर्मरक्षा व राष्ट्ररक्षा के प्रति कृतसंकल्पित हुए।

इस शिविर के प्रथम दो दिवस, प्रथम सत्र में जहां ऋषिवर सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के शिष्यों व ‘माँ’ के भक्तों ने शक्तिस्वरूपा बहन पूजा और संध्या शुक्ला जी की पावन उपस्थिति में योग-ध्यान-साधना के क्रम को पूर्ण किया, वहीं तीनों दिवसों के द्वितीय सत्र में ऋषिवर के श्रीमुख से प्रवाहित चिन्तनामृत से बुद्धि-विवेक का मन्त्र प्राप्त किया।

‘‘सुख और दु:ख, मनुष्यजीवन की दो अवस्थाएं हैं। इस जगत् में जो आया है, उसे इन दोनों अवस्थाओं से गुज़रना पड़ता है। इस तथ्य का जिन्हें ज्ञान है, वे दु:ख की स्थिति आने पर, बड़ी से बड़ी समस्या आने पर भी विचलित नहीं होते और न ही सुख की अवस्था में उद्वेलित होते हैं, लेकिन ऐसे विवेकी पुरुष कुछ ही देखने में आते हैं। विवेक के अभाव में लोग सामायिक रूप से उत्पन्न दु:ख में ही उलझे रहते हैं और सुख प्राप्ति की आशा में इधर-उधर भटकते रहते हैं, लेकिन न तो दु:ख दूर होता है और न ही सच्चा सुख मिल पाता है। सच्चा सुख तो अन्तर्निहित है। दु:ख को दूर करने के लिए अपनी सोच, अपने कर्म में परिवर्तन लाएं, इसके जन्मदाता तुम स्वयं हो। सच्चा सुख पाने के लिए धर्म-अध्यात्म और कर्मपथ पर बढ़ चलें। भटकाव व निराशा से कुछ भी प्राप्त नहीं होगा, बल्कि प्रकृतिसत्ता की अनमोलकृति इस मानवजीवन को भटकाव में ही नष्ट कर लोगे।’’

शारदीय नवरात्र पर्व में आयोजित शक्ति चेतना जनजागरण शिविर ‘महाशक्ति सम्मेलन’ में देश-विदेश से पहुंचे एक लाख से अधिक ‘माँ’ के भक्त व ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के शिष्यों ने आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करके अविभूत रहे। दिनांक 17, 18, 19 अक्टूबर 2018 (अष्टमी, नवमी, विजयदशमी) को पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में पूर्णरूपेण नशामुक्त व मांसाहारमुक्त शक्तिसाधकों का समूह उमड़ पड़ा। 

शिविर के तीनों दिवसों में सर्वप्रथम ब्रह्ममुहूर्त पर भक्तजन मूलध्वज में आरतीक्रम पूर्ण करने के पश्चात् अखण्ड श्री दुर्गाचालीसा पाठ भवन परिसर में पहुंचकर विगत 21 वर्ष से चल रहे अखण्ड श्री दुर्गाचालीसा पाठ में सम्मिलित हुये, जहां परम पूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज द्वारा प्रात: 06 बजे स्वयं उपस्थित होकर आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा व सहायक शक्तियों की पूजा-अर्चना व ध्यान-साधना नित्यप्रति की तरह करने के पश्चात् मूलध्वज मन्दिर पहुंचकर समस्त विश्व की मानवता के कल्याण की कामना माँ जगदम्बे से की। उक्त साधनात्मक क्रमों के बाद प्रात: 07:30 बजे सभी ‘माँ’ के भक्तों ने शिविर पण्डाल के नीचे बैठकर सम्पूर्ण मनोयोग से अति महत्त्वपूर्ण बीज मंत्र ‘माँ-ॐ’ एवं गुरुमन्त्र ‘ॐ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नम:’ व चेतना मन्त्र ‘ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नम:’ का सस्वर जाप किया। इन महत्त्वपूर्ण मन्त्रों के सम्बन्ध में गुरुवरश्री द्वारा बतलाया गया है कि शक्तिसाधकों द्वारा किये गये सस्वर जाप से आसपास का वातावरण पवित्र होकर सुवासित हो उठता है और दूषित शक्तियां विलोपित होजाती हैं। इन मन्त्रों के निरन्तर जाप से जहां आत्मशक्ति जाग्रत् होती है, वहीं जीवन की दुश्चिंताएं समाप्त होजाती हैं और साधकों का मन शान्ति के उस आयाम तक जा पहुंचता है जहां पहुंच पाना साधु-संन्यासियों के वश की भी बात नहीं। शिविर पंडाल में उपस्थित भक्तों को शक्तिस्वरूपा बहन संध्या शुक्ला जी ने जहां साधनाक्रम की जानकारी दी, वहीं स्वस्थ जीवन की दिशा में एक और क्रम जोड़ते हुये योगाभ्यास कराया। इस अवसर पर शक्तिस्वरूपा बहन पूजा शुक्ला जी की भी पावन उपस्थिति रही।

विदित हो कि भगवती मानव कल्याण संगठन व पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम ट्रस्ट के सदस्यों द्वारा संयुक्त रूप से सिद्धाश्रम के विशाल परिसर में दक्षिण दिशा की ओर दिन-रात अथक परिश्रम करके अत्यन्त ही आकर्षक व भव्य मंच तथा वृहदाकार पंडाल का निर्माण किया गया था, जहां तीन दिवस तक प्रतिदिन निर्धारित समय पर अपराह्न 03 बजे से 05 बजे तक ऋषिवर के श्रीमुख से अमृत कणिकाएं बिखरती रहीं और शिविर में उपस्थित भक्तगण उन्हें समेटते रहे, अपने अन्दर समाहित करते रहे। पश्चात् सभी ने शिविर के तीनों दिवस दिव्य आरतियों से उत्सर्जित अलौकिक ऊर्जा का भी लाभ प्राप्त किया।

शक्ति चेतना जनजागरण शिविर ‘महाशक्ति सम्मेलन’ के प्रथम दिवस का द्वितीय सत्र, वृहदाकार पंडाल अपार जनसमुदाय से खचाखच भरा हुआ, सभी अनुशासित रूप से पंक्तिबद्ध बैठे हुये। सभी की आखें सद्गुरुदेव भगवान् के आगमन की प्रतीक्षा में बिछी हुई थीं, तभी निर्धारित समय में अपराह्न 02: 30 बजे सद्गुरुदेव महाराज जी के पदार्पण के साथ ही सम्पूर्ण वातावरण उनके जयकारे, शंखध्वनि व तालियों की गडग़ड़ाहट से गुंजायमान हो उठा। उनके मंचासीन होते ही सर्वप्रथम बहन पूजा, संध्या और ज्योति जी के द्वारा समस्त भक्तों की ओर से गुरुवरश्री का पदप्रक्षालन करके पुष्प समर्पित किया गया। तत्पश्चात् भगवती मानव कल्याण संगठन के सदस्यों में से, गीत-संगीत की प्रतिभा के धनी शिष्यों ने भक्तिरस से परिपूर्ण भावगीत प्रस्तुत किये, जिसके कुछ अंश इस प्रकार हैं:-

राष्ट्र की रक्षा में, धर्म की रक्षा में,
इस तड़पती हुई मानवता की सेवा में
अपना जीवन समर्पित करो,
संस्कारों को अर्जित करो।
कर्म का फल है निश्चित इसे जान लो,
ये विधि का विधान है इसे मान लो।।

ओज से परिपूर्ण भावसुमन प्रस्तुत करके बहन संध्या शुक्ला जी ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। इससे पहले प्रतीक मिश्रा जी कानपुर ने आपने भावों की प्रस्तुति दी- देव भी करते, मानव भी करते, अर्चन अम्बे मइया की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए वीरेन्द्र दीक्षित जी दतिया ने अपने भावों की प्रस्तुति दी- मुझे पसन्द आ गया तेरे दर पर सर झुकाना। कण-कण भी बोलता है जहां माँ का तराना।। बाबूलाल जी दमोह ने अपने भावसुमन में कहा- गुरुवर दे दो शक्ति, खुशियां भर दो जीवन में। यही मनाने आए हैं, महाशक्ति सम्मेलन में।।

भावगीतों का क्रम समाप्त होते ही ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने ध्यानावस्थित होकर माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की स्तुति की और सभी शिष्यों, चेतना अंशों तथा शिविर पंडाल में उपस्थित विशाल जनसमुदाय सहित व्यवस्था में लगे सभी कार्यकर्ताओं को पूर्ण आशीर्वाद प्रदान करते हुये मन्द मृदुल मुस्कान के साथ धीर-गम्भीर वाणी में उपस्थित शिष्यों, भक्तों से कहते हैं कि इस पवित्र शक्तिधाम में आप सभी को महत्त्वपूर्ण क्षण प्राप्त हो रहे हैं। माँ जगदम्बे के इस पर्व पर भक्तजन माता आदिशक्ति जगज्जननी श्री दुर्गा जी की आराधना करते हैं, ध्यान-साधना करते हैं और यह भारतभूमि ‘माँ’मय वातावरण से परिपूर्ण रहती है। इस पावन भूमि (पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम) पर जहां हर पल माता जगदम्बे का गुणगान चल रहा है, जहाँ ‘माँ’ का मूलध्वज स्थापित किया गया है और जहाँ ‘माँ’ की कृपा बरसती है, उस पावन स्थान पर आप लोग उपस्थित हैं। इस पवित्र भूमि को एक आध्यात्मिकस्वरूप प्रदान किया जा रहा है। खण्डप्रस्थ भी इन्द्रप्रस्थ बन जाता है। यह क्षेत्र जो कि अंधियारी के नाम से जाना जाता था, जहाँ बड़े-बड़े गड्ढे, कटीली झाडिय़ां थी, जहरीले जीव-जन्तु विचरण करते थे और यहाँ लोग दिन में भी आने से घबराते थे, वह स्थान आज दिव्यधाम के रूप में आपके सामने है। यह इस धरती का अलौकिक भूखंड तो है ही, जहां विगत 21 वर्षों से अनन्तकाल के लिए माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का गुणगान चल रहा है। इसकी तुलना किसी भी अन्य स्थान से नहीं की जा सकती। इस स्थान पर एक-एक नींव सच्चाई, ईमानदारी के साथ डाली जा रही है। वक्त लगेगा, परन्तु धीरे-धीरे यह वटवृक्ष की भांति फैलता, बढ़ता चला जायेगा। यहां से धर्म-अध्यात्म को गति देने के साथ ही राष्ट्ररक्षा व मानवता के प्र्रति भी कार्य को गति दी जा रही है।

आपश्री ने कहा कि आप लोग नाना प्रकार की जिज्ञासाओं, कामनाओं को लेकर यहाँ उपस्थित हुए हैं। मन को एकाग्र करना सीखें, समाज की विडम्बना है कि कोई इन पवित्र क्षणों का उपयोग नहीं कर पाता, जबकि यह वह पवित्र स्थान है, जहां बिन माँगे ही सब कुछ प्राप्त होजाता है। शारदीय नवरात्र का और इस शिविर का यह तीन दिवस आपके लिए अति महत्त्वपूर्ण हैं। यदि ‘माँ’ की कृपा चाहते हैं, तो समय का सदुपयोग करें। कोई क्षण निरर्थक न जाने पाए। विश्राम उतना ही करें, जितना कि जीवन के लिए आवश्यक है। यहाँ की ऊर्जा को प्राप्त करना है, तो ‘माँ’ की भक्ति में रमना होगा, इससे मन को एकाग्रता मिलेगी, शांति मिलेगी। आपके गुरु ने अपने एक क्षण को भी व्यर्थ नहीं गवांया। आप ‘माँ’ को मानते हो, गुरु को मानते हो, लेकिन गुरु जो निर्देशन देता है, उस पर बहुत धीमी गति से चल रहे हो। अपने आपमें साधक प्रवृत्ति लाओ। इन्सान हो, लेकिन इन्सानियत से बहुत दूर हो।

इन्सानियत ही आपको ‘माँ’ का सच्चा भक्त बना सकती है। मैंने बताया है कि माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा ही हमारी मूल इष्ट हैं, जननी हैं। परिवर्तन उन्हीं के जीवन में आ रहा है जो नशे-मांस से मुक्त हैं, चरित्रवान् हैं और जिनमें साधक प्रवृत्ति है। ‘माँ’ के दर पर जाकर छोटी-छोटी चीजें मांगते हो। यह क्यों नहीं सोचते कि क्यों न ‘माँ’ को अपना बना लें! फिर उनसे कुछ मांगने की आवश्यकता नहीं होगी और न ही कभी आपका पतन होगा।

धर्म हमें क्या सिखाता है? विश्वबन्धुत्त्व की भावना, लेकिन मनुष्य ही मनुष्य का दुश्मन बना हुआ है। समाज का बहुत पतन हुआ है और आप लोग पतन के गर्त में पड़े हुए हो। अब गल्ती मत करो। ‘माँ’ और गुरु तुम्हें ऊपर उठाना चाहते हैं। अरे, अब तो अपने ‘मैं’ को जानो। आखिर, कब तक कीड़े-मकोड़ों की तरह जिन्दगी जीते रहोगे? विकारग्रस्त जीवन से ऊपर उठो। आज छोटे- छोटे बच्चे विकारों से ग्रसित होते जा रहे हैं। अपने बच्चों को धर्मवान् बनाओ, संस्कारवान् बनाओ। यदि आपका बच्चा पतन के मार्ग पर कुसंस्कारी हो गया, तो वह जन्म-दर-जन्म गिरता ही चला जायेगा। जबकि संस्कारी व्यक्ति उच्चता की ओर बढ़ता ही चला जाता है। हम ऋषियों-मुनियों की परंपरा के संवाहक हैं, मगर भौतिकतावाद के झंझावातों में फंसकर समाज चेतनाहीनता का जीवन जी रहा है। समाज को चेतनावान् बनाने के लिए, अच्छाईयों की ओर मोडऩे के लिए ही भगवती मानव कल्याण संगठन को गति दी जा रही है।

नकारात्मक सोचों से ऊपर उठो और सकारात्मक सोच अपनाओ। आज समाज की जो स्थिति चल रही है, वह नकारात्मक सोच का परिणाम है। जिस दिन आप सकारात्मक सोच की ओर बढ़ जाओगे, समाज में परिवर्तन आता चला जायेगा। निर्णय आपको करना है कि सत्य का धरातल चाहिए या असत्य का। असत्य के धरातल पर चलने से कुछ नहीं मिलेगा, जबकि सत्य के धरातल पर शांति है, समृद्धि है। यदि सोचना ही है, तो सकारात्मक विचारों को अपने मनमस्तिष्क में स्थान दो, क्योंकि नकारात्मक सोच आपको पतन की ओर ले जायेंगे, जबकि सकारात्मक सोच उच्चता की ओर लेजाती है।

परमसत्ता ने त्रिगुणात्मक जगत् का निर्माण किया है। तमोगुण, रजोगुण व सतोगुण। इनका उपयोग किस तरह करना है, इसका ज्ञान हमें दिया है। साधना, पूजा-पाठ एक-दो घण्टे का नहीं, बल्कि साधक 24 घंटे साधना का जीवन जीता है। अभी मैं आप लोगों में आत्मा, गुरु, परमसत्ता किसी के भी प्रति भूख नहीं देख पा रहा हूँ, जो कि देखना चाहता हूँ। एक व्याकुलता होनी चाहिए। ‘माँ’ के सच्चे भक्त बनो, दाण्डिया नृत्य करने से भक्त नहीं बन जाओगे। हमारी इष्ट माता जगदम्बा हैं, ज्ञान की देवी माँ सरस्वती, सुख-सम्पन्नता प्रदान करने वाली देवी माँ महालक्ष्मी, शक्ति की देवी महाकाली, ये सब आप पर कृपा बरसाना चाहती हैं, लेकिन आप उनकी कृपा लेना ही नहीं चाहते और विकारों में पड़े हुए हो। यदि दूरी है, तो सोच की दूरी है, पवित्रभावों का अभाव है। समय के महत्त्व को समझें। हर क्षण विचार करो कि कहीं मेरे मन में विकार तो नहीं उत्पन्न हो रहा है। स्वयं के प्रति सजग प्रहरी बन जाओ।

गुरु किसी के साथ भेदभाव नहीं करता, आपका गुरु आपके कल्याण के लिए आया है। सच्चाई, ईमानदारी से जीना सीखो, जातपॉत, छूआछूत के भेदभाव से ऊपर उठकर जीना सीखो। सत्य के लिए जीकर देखो, भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति से परिपूर्ण हो जाओगे। इसी धरती पर धु्रव व प्रहलाद जैसे बच्चों ने इष्ट की अलौकिक साधना करके उच्चता के शिखर को प्राप्त किया है, जिन्हें आज भी आप लोग याद करते हो, लेकिन उनके पथ पर चलना नहीं चाहते। बच्चे किस ओर जा रहे हैं? इस पर उनके माता-पिता का ध्यान ही नहीं है। वे मानसिक रूप से क्षीण होते जा रहे हैं, जब देखागे तब मोबाइल चेटिंग करते हुए मिलेंगे। अरे, भौतिक संसाधनों का कितना उपयोग करना है, इससे उन्हें सजग करो?

एक न एक दिन तो यह जीवन नष्ट होना ही है, फिर भी सजगता नहीं। सब कुछ देखकर भी कुछ देख नहीं पाते, अन्तर्चक्षु बन्द हैं। साधकों के लिए कलिकाल से अच्छा समय और हो ही नहीं सकता। सतयुग में क्या देखोगे? जब दलदल देखोगे तब न उससे बचने का उपाय करोगे। एक बार निर्णय ले लो कि अब तक मेरा जितना पतन होना था हो चुका, अब नहीं होने दूँगा और अपने अन्दर के सरोवर को प्राप्त करूंगा। इस दिव्यधाम में ‘माँ’ की ममता के सागर में आ करके, धो डालो अपने अन्दर के मैल को।

राम ने लक्ष्मण को रावण के पास क्यों भेजा था? वे तो स्वयं सर्वशक्तिमान थे। इसलिए कि रावण को कालचक्र का ज्ञान था। जिसे जानने के लिए भेजा था कि कहीं रावण की मृत्यु के साथ ही व अगूढ़ ज्ञान भी न चला जाए। राम ने रावण को नहीं मारा, बल्कि स्वयं उसने इस तरह की व्यूह रचना की थी, जिससे उसके साथ ही उसके परिवार का कल्याण हो जाए। उसे इस बात का ज्ञान हो गया था कि परमात्मा का जन्म हो चुका है।

आज मानवता कराह रही है, गुण्डे, मवालियों का, अन्यायी-अधर्मी राजनेताओं का साम्राज्य है। पहले तो एक रावण था, आज जहां देखो वहां रावण ही रावण दिखाई देंगे। 90 प्रतिशत राजनेता अन्यायी-अधर्मी हैं। उनके बेटे-बेटियां भी उन्हीं के नक्शेकदम पर चल रहे हैं। क्या हमारे राजनेताओं को ऐसे ही होने चाहिए? यदि वे सच्चाई, ईमानदारी का जीवन जी रहे होते, तो उन्हें रामपाल, रामहीम के दर पर सिर झुकाने न जाना पड़ता।

जातीयता के फेर में मत पड़ो, अपने वोट को मत बेचो। पार्टी कैसी है? यह जानकर वोट दो। पार्टियां ऐसी हैं, जिन्हें चलाने वाले 75 प्रतिशत लोग देशद्रोही हैं। हमें राष्ट्र को सुरक्षित करना है। यदि हमारा राष्ट्र खतरे में होगा, तो धर्म भी निश्चित रूप से खतरे में आ जायेगा। तीनों धाराओं पर आगे बढ़ते रहो, अन्यायी-अधर्मियों के आगे घुटने मत टेको। अपनी ऊर्जा को इन्सानियत के पक्ष में लगाओ। हमें माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की सृष्टि की रक्षा करनी है, इसके लिए उन्होंने हमें माध्यम बनाया है। हमारा देश अंग्रेजों से तो आज़ाद हो गया, लेकिन उनके खून से आज तक आज़ाद नहीं हो पाया। कहीं उनका खून, तो कहीं उनकी मानसिकता कार्य कर रही है। आत्मा की अमरता और कर्म की प्रधानता को जिस दिन स्वीकार कर लोगे, आगे बढ़ते चले जाओगे। दूसरों के टुकड़ों पर पलने की अपेक्षा स्वयं के कर्म पर विश्वास रखो।

पंचतत्त्वों-आकाश, वायु, पृथ्वी, अग्रि, जल, इनसे सम्बंध जोड़ो, प्रीति बढ़ाओ। इनके बीच ही रह करके इनसे दूर होते जा रहे हो। जीवन जीने के लिए जीवन का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। वृक्षों के नीचे बैठ करके देखो, लहलहाती फसलों को देखो, आम की बौर की सुगन्ध लेकर देखो, सूर्योदय को देखो, एक अलग ही तृप्ति मिलेगी, नाना प्रकार की बीमारियां दूर होंगी और स्वस्थ रहोगे। सूर्योदय से पहले उठो, स्नान करके पूजा-पाठ, ध्यान-साधना करो। अच्छी राह पर चलो और बच्चों को भी प्रेरित करो।

अपने अन्दर विवेक पैदा करो कि कहाँ से हमें अधिक से अधिक ऊर्जा की प्राप्ति होगी और कहाँ हमारी ऊर्जा नष्ट हो रही है। अपनी ऊर्जा को नष्ट होने से रोको। जब पंचतत्त्वों की ऊर्जा को प्राप्त करने लगोगे, तो इन्हें प्रदान करने वाली जगत् जननी से दूर नहीं हो पाओगे।

आप लोगों को केवल स्वयं का शोधन करना है। केवल सोच को बदलो, सब कुछ बदल जायेगा। एक जीवन मेरे बताए मार्ग पर चलकर देखो, कभी निराशा हाथ नहीं लगेगी। सौभाग्यशाली हैं हम सभी कि एक शक्तिपीठ की स्थापना के प्रारम्भिक काल में जीने का अवसर मिला है।

द्वितीय दिवस का द्वितीय सत्र

मंच का अभूतपूर्व चित्रण, उमड़ते-घुमड़ते बादलों के साथ हरीतिमा का दृश्यांकन मन को मोहित कर लेने वाला था। बायीं ओर सुख-समृद्धि का प्रतीक कलश और दाहिनी ओर ‘माँ’-गुरुवर की संयुक्त दिव्यछवि के समक्ष नवजीवन का संदेश प्रदान करती प्र्रज्ज्वलित अखंड ज्योति और मंच के मध्य में विराजमान ऋषिवर सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज। यह सब देखकर शिविर स्थल पर उपस्थित लाखों भक्त, शक्तिसाधक अति आनन्दित हो रहे थे।

सर्वप्रथम शक्तिस्वरूपा बहन पूजा जी, संध्या जी और ज्योति जी ने गुरुवरश्री का प्रदप्रक्षालन करके पुष्प समर्पित किया, पश्चात् कुछ शिष्यों-भक्तों ने गुरुचरणों में अपने भावसुमन अर्पित किए-

 गुरुवर तेरे नाम एक दिन जीवन कर जायेंगे, तेरे बिन मर जायेंगे- लक्ष्मी प्रसाद योगभारती जी, कानपुर। कब आओगी मेरी माँ कब आओगी…- बलराम सिंह योगभारती जी, सागर।

इस युग परिवर्तन के अभियान में आओ संग चलें, देशभक्ति के तन-मन में भरकर रंग चलें- बहन संध्या शुक्लाजी के इस आवाहन भरे गीत को सुनकर शिविर में उपस्थित सभी भक्त भावविभोर हो उठे। बाबूलाल विश्वकर्मा जी, दमोह ने अपने भावसुमन में कहा- घूम के देख ले दुनिया सारी, छान ले कोना-कोना। कहीं सिद्धाश्रम सा धाम नहीं है और न आगे होगा।

 भावगीतों के उपरान्त, मंचासीन ऋषिवर सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज शिष्यों, भक्तों को कत्र्तव्य पथ पर चलते रहने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि माता जगदम्बे जिस ओर बढ़ा रही हैं, वह परम पुनीत लक्ष्य है। जरूरत है कि आपके कदम न रुकें, सद्विचारों का प्रवाह न रुके। ‘हम बदलेंगे, तब जग बदलेगा।’ स्वयं के प्रति यह विचार करते रहें कि मेरे अन्दर किसी प्रकार के विकार तो नहीं हैं, मुझमें परिवर्तन आ रहा है या नहीं, जातपॉत, छुआछूत की भावना से तो ग्रसित नहीं हूँ। यदि ऐसा है, तो आप माँ जगदम्बे के भक्त हैं ही नहीं। आप लोगों को जातपॉत, छुआछूत, साम्प्रदायिकता में नहीं पडऩा है और यदि कहीं ऐसा है, तो उसे समाप्त करने का प्रयास करना है। आपको गुरु के बताए मार्ग पर चलना है। दुनिया क्या कह रही है, उस पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है, यदि लगता है कि आपके गुरु के द्वारा बताया गया मार्ग आपको सही राह पर लेजा रहा है।

बुद्धि का सदुपयोग करना सीखो, विवेकवान् बनो। एक पल का एक निर्णय आपके जीवन को बदल सकता है। जीवन का एक-एक पल महत्त्वपूर्ण है। यदि गलत निर्णय ले लिया, तो पतन को कोई नहीं रोक पायेगा। अच्छे कर्म करो। बुरे कर्मों से दूरी बनाए रखो और अच्छे कर्मों की तलाश जारी रखो।

आज आस्था और विश्वास टूट रहा है। यदि आस्था, विश्वास, रामपाल, आशाराम, रामरहीम जैसे कथित पाखंडी बाबाओं की ओर ले जाओगे, तो क्या होगा? अभी भी समाज अपना विवेक जाग्रत् नहीं कर पा रहा है। फिर रामपाल बतायेंगे कि कबीर सम्पूर्ण जगत् के रचनाकार हैं! अरे, कबीर एक महान संत थे। उन्होंने भी कभी यह नहीं कहा कि वे सम्पूर्ण सृष्टि के रचनाकार हैं। अभी दो दिन पहले ही रामपाल को आजन्म कारावास की सजा हो गई है। रामरहीम को पहले ही सजा हो चुकी है। यह समयचक्र अधर्मी-अन्यायियों को माफ नहीं करेगा। हमारे ऋषि-मुनियों ने, राम, कृष्ण ने जिनकी आराधना की, उस ‘माँ’ का अपमान! इसकी सजा तो भोगनी ही पड़ेगी।

चाहे धर्मक्षेत्र हो या राजनीति क्षेत्र, सभी ओर भटकाव है। लेकिन, धर्मक्षेत्र पर अधिक सजग रहने की जरूरत है। कहते हैं कि काला पर्स रखो, भर जायेगा, ऐसे धूर्तों से सावधान रहो। जो स्वयं शून्य हैं, वे समाज को क्या देंगे? अनेकों ज्योतिषाचार्य समाज को भटका रहे हैं, दिशाभ्रमित कर रहे हैं।

ऋषिवर ने कहा कि मेरा किसी से विरोध नहीं है, लेकिन जो मानवता के विरुद्ध जा रहा है, उनका मैं सख्त विरोधी हूँ। सुधार के लिए आवाज उठाना ही पड़ेगा। आज घर-घर टीवी लगे हैं, केवल किस्से-कहानियां और फिल्मी गाने ही न देखते, सुनते रहो। एक-दो घण्टे न्यूज चैनल भी खोलकर देख लिया करो, विवेक जाग्रत् हो जायेगा कि कहां क्या घटित हो रहा है?

सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने अपने शिष्यों से कहा कि अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध लौहपिण्ड के समान कठोर बनो कि हम शांति के साधक हैं। हमारी ‘माँ’ भी अन्यायी-अधर्मियों को समाप्त करने के लिए शस्त्र धारण की हुर्इं हैं। मंै आप लोगों को भगवाधारी साधु-सन्त नहीं, बल्कि साधक बना रहा हूँ, उनसे श्रेष्ठ बना रहा हूँ, केवल एक बार अपने गुरु की विचारधारा में अपने आपको समाहित करके देखो।

जहाँ हो, जैसे हो स्वयं में परिवर्तन लाओ और समाज में भी परिवर्तन लाने का प्रयास करो। हर मनुष्य के जीवन में गुरु की आवश्यकता होती है, क्योंकि अनुमान के सहारे नहीं चला जा सकता। गुरु ही मार्गदर्शन दे सकता है। स्वयं को इतना बदलो कि आने वाली पीढ़ी बदले हुए स्वरूप में आए। बच्चों का मार्गदर्शन करो, केवल पैसों की अन्धी दौड़ में न भागते रहो, अन्यथा सब कुछ समाप्त हो जायेगा। तीनों धाराओं से जुडक़र मानवता, धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए तत्पर हो जाओ। ‘‘काल का कोई भी चक्र मुझसे अछूता नहीं है, लेकिन हमें कर्म करते हुए आगे बढऩा है।’’

अमर्यादित जीवन मत जिओ, क्योंकि ऐसे लोगों का सम्मान उनके बच्चे भी नहीं करते। लेकिन, जहाँ मर्यादा है, एक-दूसरे के लिए जान भी दे देते हैं। हर पल नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जिओ। शादी से पहले ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करो और शादी के बाद एक पति/एक पत्नी धर्म का पालन करो। यदि चाहो तो अपने पूरे जीवन को रूपान्तरित कर सकते हो, इस दिशा में आगे बढ़ो तो सही।

आज समाज में चारों तरफ विकार, विकार, विकार। इसके जिम्मेदार हैं हमारे धर्मप्रमुख और राजनेता। आज लोगों का धर्म से, कानून से विश्वास उठता जा रहा है। जिस न्याय व्यवस्था में भ्रष्टाचार व्याप्त होजाए, तो लोगों का विश्वास उठना स्वाभाविक है। लेकिन, हमें कानून की, संविधान की रक्षा करनी है। भ्रष्ट राजनेताओं और भ्रष्ट पार्टियों को नेस्तनाबूद करना है और अच्छे लोगों का समर्थन करना है। जहां गलत हो रहा है, उसके विरुद्ध आवाज उठाने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ होना पड़ेगा।

आज नवमी का महत्त्वपूर्ण पर्व है। अपने विकारों को त्यागने का संकल्प ले लो, अलौकिक ऊर्जा से ओतप्रोत हो जाओगे।

शिविर के तृतीय दिवस का प्रथम सत्र

लगभग 12 हज़ार नए भक्तों ने ली गुरुदीक्षा

शिविर के तृतीय व अन्तिम दिवस का प्रथम सत्र। लगभग 12 हज़ार नए भक्तों ने ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज से दीक्षा लेकर नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीने व धर्म, राष्ट्र की रक्षा और मानवता की सेवा की राह पर चलने का संकल्प लिया।

 दिव्य मंच स्थल पर प्रात: 08:00 बजे से गुरुदीक्षा कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। इस अवसर पर लगभग 12 हज़ार नये भक्तों ने गुरुदीक्षा प्राप्त करके अपने जीवन में परिवर्तन का नया आयाम जोड़ा। दीक्षा प्रदान करने से पूर्व नए भक्तों को शिष्य रूप में हृदय में धारण करके उन्हें गृहस्थ आश्रम में रहते, आध्यात्मिक जीवन जीने की शिक्षा देतेे हुये सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज कहते हैं कि मनुष्य का वास्तविक जीवन तभी शुरू होता है जिस दिन से वह दीक्षा लेता है, क्योंकि यहीं से पतन का मार्ग निरस्त होकर उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। इसी क्षण से आप लोग नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन का संकल्प ले लें। दृढ़ता के साथ इस विचार को धारण कर लें कि हमें अपने जीवन को बदलना है। आपश्री ने कहा कि केवल दीक्षा प्राप्त कर लेने से ही कल्याण नहीं होगा, बल्कि गुरु जो कहे उसका अक्षरश: पालन करना चाहिए। गुरु और शिष्य का सम्बंध अगूढ़ सम्बन्ध है।

इस सम्बन्ध की पवित्रता को बनाए रखना आप सभी का कत्र्तव्य है। गुरु कभी शिष्य का त्याग नहीं करता, शिष्य ही गुरु से अलग हो सकता है। जो शिष्य मेरे आदेश-निर्देश का पालन करता है, वह मुझसे अलग हो ही नहीं सकता।

आप लोग यहां जो संकल्प लें, वह आपके जीवन का आधार होजाना चाहिए। एक शिष्य जब चेतनावान् होजाता है, तो वह हज़ारों लोगों के जीवन में परिवर्तन डाल सकता है। ठीक उसी तरह, जिस तरह कि एक फूल जब सुगन्धित होजाता है, तो वह स्वयं तो तृप्त होता ही है, आसपास के वातावरण को भी तृप्ति प्रदान करता है।

चिन्तन के पश्चात् परम पूज्य गुरुवरश्री ने कहा कि मैं शक्तिपात के माध्यम से सभी को अपनी चेतना से आबद्ध करते हुये जो जिस अवस्था में है, उसे स्वीकार करता हूँ। आपश्री ने सहायक शक्तियों हनुमान जी, भैरव जी एवं गणेश जी के मंत्र के साथ चेतनामंत्र ‘जगदम्बिके दुर्गायै नम:’ एवं गुरुमन्त्र ‘शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नम:’ प्रदान किया। अंत में सभी नये दीक्षा प्राप्त शिष्यों ने सद्गुरुदेव भगवान् को नमन करते हुये नि:शुल्क शक्तिजल व प्रसाद प्राप्त करते हुये गुरुदीक्षा प्रपत्र भरकर प्रवचन स्थल की व्यवस्था में सक्रिय भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं के पास जमा कराया।

शिविर के तृतीय दिवस का द्वितीय सत्र

सर्वप्रथम शक्तिस्वरूपा बहन पूजा जी और संध्या जी ने गुरुवरश्री का प्रदप्रक्षालन करके पुष्प समर्पित किया। पश्चात् कुछ शिष्यों-भक्तों ने गुरुचरणों में नित्यप्रति की तरह भावीगीतों की प्रस्तुति दी। जो अंश रूप में प्रस्तुत हैं-

 करते हैं हम सबसे पहले गुरु की वन्दना…- रमा योगभारती जी, रीवा। तेरा-मेरा प्यार कभी न बदले…- वीरेन्द्र दीक्षित जी, दतिया। एक ज्योति जली सिद्धाश्रम में, सारी दुनिया रोशन करने को- बाबूलाल जी, दमोह।

भावगीतों की शृंखला के पश्चात् योगभारती विवाह पद्धति से 30 नवदम्पत्तियों के विवाह का क्रम प्रारम्भ हुआ। इस बीच स्च्चिदानंदस्वरूप सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज, भौतिकतावाद से ग्रसित मनुष्यों, शिष्यों, भक्तों को सत्यपथ पर चलने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहते हैं कि आज विजयदशमी का पर्व है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। इस महत्त्वपूर्ण पर्व पर यह विचार करें कि क्या आप अपनी बुराईयों को समाप्त कर पाए हैं? जो ऐसा करने में सफल हो सके हैं, वास्तव में वे ही इस पर्व को मनाने के अधिकारी हैं।

आपश्री ने कहा कि जिनकी शादियां हो रही हैं, वे एक नवीन जीवन, गृहस्थ जीवन में प्रवेश करेंगे। यदि धर्म, धैर्य, पुरुषार्थ के साथ जिम्मेदारियों का निर्वहन करें, तो गृहस्थ जीवन से अच्छा और कोई जीवन नहीं होता। गृहस्थ में रहकर भी आध्यात्मिक ऊँचाईयों को पा सकते हैं। अनेकों ऋषि-मुनि रहे हैं, जिन्होंने गृहस्थ जीवन में रहते हुए ऊँचाईयों को पाया है।

योगभारती विवाह पद्धति बहुत ही सरल, हिन्दू विवाह पद्धति है और सर्वथा हर प्रकार के विवादों से मुक्त है। इसमें चाहे वरपक्ष हो या कन्यापक्ष, दोनों पक्ष एक-दूसरे को बराबर का सम्मान देते हैं, साथ ही फिजूलखर्ची व आडम्बररहित है।

वैवाहिक कार्यक्रम के दौरान बीच-बीच में सद्गुरुदेव जी महाराज मानवजीवनोपयोगी महत्त्वपूर्ण चिन्तन प्रदान करते रहे। आपश्री ने प्राणायाम के लाभों से अवगत कराते हुए कहा कि सहज प्राणायाम कभी भी किया जा सकता है। धीरे-धीरे गहरी श्वांस लें और फिर धीरे-धीरे छोड़ दें। जब भी समय मिले यह क्रिया बार-बार दोहराते रहें, इससे आपकी प्राणशक्ति बढ़ेगी और कोशिकाएं चैतन्य रहेंगी। ‘माँ’- ॐ अति महत्त्वपूर्ण बीजमंत्र हैं। ‘माँ’- ॐ का उच्चारण करते समय गुंजरण में ध्यान केन्द्रित रहना चाहिए। इनमें दिव्यशक्ति है। ध्यान की पराकाष्ठा पर पहुंचने के लिए बीजमंत्र बहुत सहायक सिद्ध हो सकते हैं। विचारशून्य होजाना ही ध्यान की पराकाष्ठा है।

ऋषिवर ने कहा कि कोई भी निर्णय बहुत सोच-विचार कर लें। स्वप्नचक्र सबसे बड़ा मायावीचक्र है। इस चक्र के प्रभाव से जहां बहुत बड़ी ऊर्जा नष्ट होती है, वहीं मानसिकविकृति के शिकार भी हो सकते हैं। कभी-कभी ऐसे भयानक स्वप्न आते हैं कि मनुष्य पागल तक हो सकता है। इन स्वप्नों के भंवरजाल से बाहर निकलें। स्वप्नचक्र को समझो, इसके व्यूह को भेदना सीखो। जिसने इस चक्रव्यूह का भेदन कर लिया, वही स्वस्थ रह सकता है।

जब कभी भी डरावने व वीभत्स दृश्य दिखाई देते हैं, तो सोकर उठने के बाद उसी के बारे में सोचते रहना बहुत घातक हो सकता है। उस दृश्य का प्रभाव मनमस्तिष्क से मिटाने के लिए अन्य कोई अच्छी बातें सोचने लगो और अपने दैनन्दिन कार्य में व्यस्त होजाओ। उस बारे में बिल्कुल मत सोचो। हाँ यदि अच्छे स्वप्न दिखाई देते हैं, तो एक-दो बार उसके बारे में अवश्य सोचें, इससे आपकी कोशिकाएं प्रभावक होंगी। बुरे स्वप्न न आएं, इसके लिए सोने से पूर्व कुल्ला करके, एक गिलास पानी अवश्य पियें और अच्छी बातों का स्मरण करके सोयें। अपने इस दिव्यधाम का स्मरण कर लें, अपने पूजनस्थल का स्मरण कर लें, निरर्थक स्वप्न नहीं आयेंगे। स्वप्नचक्र की गहराई को समझें। इस बारे में समय मिलने पर मैं कभी विस्तार से चिन्तन दूँगा। ‘जीवन में अच्छाईयों को ग्रहण करना और बुराइयों से दूर रहना, यही साधकप्रवृत्ति है।’

आपश्री ने शिष्यों, भक्तों से कहा कि महत्त्वपूर्ण पर्व विजयदशमी, बुराई पर अच्छाई की जीत का, हमारे जीवन में स्थायित्त्व, धैर्यता, पुरुषार्थ के संकल्प का पर्व है। वर्तमान के कत्र्तव्य को और समय के महत्त्व को समझें।

जो कार्य सामने है उसे करें, अच्छे कर्म करें, बुराइयों से लड़ें, तन-मन-धन का सदुपयोग करें। राम ने तो बाहर के रावण को मारा था, परन्तु आपको अपने अन्दर के रावण को मारने के साथ ही बाहर व्याप्त अनीति-अन्याय-अधर्म को समाप्त करना है। सामान्य लोगों ने अपने पुरुषार्थ के बल पर बड़ा से बड़ा परिवर्तन किया है। आप लोगों को तो भगवती मानव कल्याण संगठन जैसा महत्त्वपूर्ण धरातल मिला है। संगठन में बहुत बड़ी शक्ति होती है। हमारा लक्ष्य रचनात्मक है, लोगों को बुराइयों से दूर करने का लक्ष्य है। यदि आप लोग 10 प्रतिशत समाज को सुधारने में सफल हो गए, तो पूरा समाज सुधरता चला जायेगा। जरूरत है तो संगठित रहने व अपने कत्र्तव्य के प्रति, लक्ष्य की प्राप्ति के प्रति एकनिष्ठता की। संघर्ष तो सभी के जीवन में है। राम, कृष्ण के जीवन में भी संघर्ष रहे हैं, फिर यह कलिकाल तो संघर्षों का ही है। और, जो संघर्षों को पार करते हुए लक्ष्य की ओर बढ़ गया, वही सच्चे मायने में पुरुषार्थी है।

परम पूज्य गुरुवरश्री ने देश की दुर्दशा को लेकर व्यथित स्वर में चिन्तन दिया, आज़ादी के बाद से लेकर आज तक देश को, देशवासियों को कितना ठगा गया, मूर्ख बनाया गया यह किसी से छिपा नहीं है! जो राजनीतिक पार्टी अपने वादे को पूरा नहीं करती, चुनाव आयोग को ऐसी धोखेबाज पार्टियों की सदस्यता रद्द कर देनी चाहिए। क्योंकि उन्हीं वादों के कारण वह पार्टी, जनता से वोट लेकर सत्तासीन होती है। राजनेता ही लुटेरे बने हुए हैं। हम कहां आज़ाद हुए हैं? देश की स्वतंत्रता के लिए मर मिटने वाले स्वतंत्रतासेनानियों ने क्या यही चाहा था? नहीं। जब प्रताडऩा, भेदभाव, भ्रष्टाचार, भूख, गरीबी आदि, घटने की बजाय बढ़े ही हंै, तब इससे अच्छा तो अंग्रेजों का शासनकाल ही था! अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध हमें आवाज उठानी ही पड़ेगी, समाज को जगाना ही पड़ेगा। आप लोगों ने जिस तरह नशामुक्त अभियान चलाया है, उसी तरह भ्रष्टाचारमुक्त अभियान चलाना है। 90 प्रतिशत राजनेता और नौकरशाह भ्रष्टाचारी हैं। उनके विरुद्ध आपको कार्य करना है। कुछ प्रदेशों में विधानसभा चुनाव होना है। आप लोगों की निष्ठा तीसरी धारा के साथ होना चाहिए।

राममंदिर का ही मुद्दा ले लीजिए। साढ़े चार साल हो गए, जिस मुद्दे के बल पर सत्ता पर बैठे हैं, उसे हल नहीं कर पाए। छोटे-छोटे मुद्दों पर कानून बन जाता है, लेकिन राममंदिर जैसे महत्त्वपूर्ण और बड़े मुद्दे पर नहीं। आखिर क्यों? जबकि इसमें दो-दो सम्प्रदाय जल रहे हैं। मेरा मानना है कि राममंदिर रामजन्मभूमि में ही बनना चाहिए। यदि वादा करने वाले यह कार्य नहीं कर पाए, तो भगवती मानव कल्याण संगठन अवश्य करेगा। संगठन विध्वंसात्मक नहीं, बल्कि रचनात्मक कार्यों में विश्वास करता है। अरे, देश में कानून एक होना चाहिए, वह भी नहीं बना पा रहे हो। एक देश, एक कानून होना चाहिए।

सैनिकों का सम्मान मत गिरने दो। काश्मीर मामले में सैनिकों को पूरी छूट मिलनी चाहिए। यदि कोई पाक के गीत गाता है, आईएसआई के झंडे फहरायेगा, तो सैनिकों को गोली मारने का आदेश होना चाहिए। कश्मीरी पंडितों को बसाने की बात कही गई थी, लेकिन साढ़े चार साल हो गए, एक को भी नहीं बसाया जा सका। मोदी भी केवल अपना सम्मान चाहते हैं, देश का सम्मान नहीं! आज तक चाहे वह कश्मीर समस्या हो या अयोध्या समस्या अथवा भ्रष्टाचार हो या मंहगाई की समस्या, किसी भी गम्भीर समस्या का समाधान नहीं किया जा सका। मेरे नेत्रोंं के समक्ष भविष्य दृष्टिगत है, एक न एक दिन मेरी तीसरी धारा दिल्ली के लालकिले पर राष्ट्रध्वज अवश्य फहरायेगी। धीरे-धीरे नींव को, धरातल को मजबूत करते हुए चलना है। उत्तरप्रदेश में योगी की सरकार आई, लोगों को लगा कि प्रदेश से अपराध व भ्रष्टाचार कम होंगे, अच्छी सडक़ें बनेंगी, लेकिन क्या हुआ। सडक़ों में और बड़े-बड़े गड्ढे हो गए, अपराध बढ़तेक्रम में है। मध्यप्रदेश में भी भ्रष्टाचार चरमसीमा पर है। निर्णय आप लोगों को लेना है।

योगभारती विवाह पद्धति से 30 नवयुगल परिणयसूत्र में बंधे

शक्ति चेतना जनजागरण शिविर के तृतीय व अन्तिम दिवस के द्वितीय सत्र में शारदीय नवरात्र की पावन तिथि विजयादशमी पर अपराह्न 2:30 बजे ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज की उपस्थिति में योगभारती विवाह पद्धति से 30 नवयुगलों का विवाह सम्पन्न कराया गया। सभी नवयुगलों ने सर्वप्रथम दाहिने हाथ में संकल्प सामग्री लेेकर माता भगवती, परम पूज्य गुरुवर, उपस्थित जनसमुदाय एवं पंचतत्त्वों तथा दृश्य-अदृश्य शक्तियों को साक्षी मानकर एक-दूसरे को पति-पत्नी के रूप में वरण किया। पश्चात् एक दूसरे को माल्यार्पण करते हुये सभी ने जयमाला, गठबन्धन, सिन्दूर समर्पण रस्म एवं मंगलसूत्र धारण करने का क्रम पूर्ण किया। तदुपरान्त नवयुगलों ने पृथ्वी, जल, अग्रि, आकाश व वायुतत्त्व एवं दृश्य तथा अदृश्य जगत् की समस्त स्थापित शक्तियों को साक्षी मानकर सात फेरे लगाये। अत्यन्त ही उत्साहवर्धक एवं अलौकिक क्षण थे जब सच्चिदानंदस्वरूप सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज की उपस्थिति में विवाह सम्पन्न हो रहा था। कितने सौभाग्यशाली हैं वे युगल, जिन्होंने सदगुरुदेव जी की छत्रछाया व आशीर्वाद तले दाम्पत्य जीवन में कदम रखा।

योगभारती पद्धति से विवाह बन्धन में बंधे नवयुगलों के नाम इस प्रकार हैं- बहन ज्योति शुक्ला संग रजत मिश्रा, भवसागर दीक्षित संग कोमल पाठक, गौरव मिश्रा संग महिमा पाण्डेय, मोहन सिंह संग शिवानी लोधी, अजय रावत संग अनीता रावत, मोरध्वज साहू संग सुनीता साहू, राजा कुशवाहा संग संगीता कुशवाहा, दशरथ कुशवाहा संग रोशनी मौर्या, शशांक गुप्ता संग नेहा गुप्ता, कमल किशोर संग पूजा पटेल, अशोक निषाद संग नीलम कश्यप, शिवम दीक्षित संग नेहा वाजपेयी, सर्वेश गुप्ता संग प्रियंका गुप्ता, संजीव बेहरा संग शैलेन्द्र सारथी, जितेन्द्र प्रताप संग रिंकी निषाद, सीताशरण पाल संग देवकुमारी पाल, बुधलाल पाल संग शिवानी पाल, प्रशान्त यादव संग खुशबू सिंह, संदीप कुशवाहा संग पूजा कुशवाहा, दिगम्बर सिंह मार्को संग कृष्णा परस्ते, अरुण साकेत संग अजनबी (रोशनी), सूरज पाल संग प्रमिला कुमारी पाल, सत्यनारायण संग नर्मदा साहू, अनिल पाल संग चन्दना पाल, मोहन सिंह संग मनीषा बाई, नीरज गुप्ता संग ज्योति गुप्ता, सर्वेश गुप्ता संग जया (सन्तोषी) गुप्ता, मनीश पाल संग दशोदा पाल, अजय निषाद संग रामकिशोरी एवं सन्तोष दुबे संग जानकी दुलेन्द्र।

दिव्य आरती

शक्तिस्वरूपा बहन पूजा जी, संध्या जी, ज्योति जी के द्वारा शिविर के तीनों दिवस उपस्थित समस्त भक्तों की ओर से सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज एवं माता भगवती की दिव्यआरती सम्पन्न की गयी। तृतीय दिवस की दिव्य आरती करने का सौभाग्य रजत मिश्रा जी को भी प्राप्त हुआ।

तीनों दिवस दिव्य आरती के समय का वातावरण अत्यंत ही मनोरम व भक्तिमय, गुरुवरश्री की ध्यानावस्थित मुद्रा और प्रवाहित चेतनातरंगों की अनुभूति की अलौकिकता उपस्थित लाखों भक्तों को रोमांचित करने वाली थी। शिविर में दिव्यआरती का लाभ उपस्थित अपार जनसमुदाय ने प्राप्त किया।

जनजागरण में अग्रणी रहे तीन टीम प्रमुख हुए सम्मानित

भगवती मानव कल्याण संगठन एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम ट्रस्ट के संयुक्त तत्त्वावधान में देशस्तर पर चल रहे जनजागरण कार्यक्रम में वर्ष 2017 के अग्रणी तीन टीम प्रमुखों को क्रमश: 21 हज़ार, 11 हज़ार व 05 हज़ार रुपए के साथ संगठन का बैग, संगठन की ड्रेस का कपड़ा व शंख देकर शक्तिस्वरूपा बहन पूजा व संध्या दीदी जी ने सम्मानित किया। सम्मानित होने वालों में प्रथम- श्रीमती सोनी सिंह जी, निवासी ग्राम-कुशरा, तहसील व जि़ला-हमीरपुर (उ.प्र.), द्वितीय- राजेश कुमार त्रिपाठी जी, निवासी ग्राम-सैदपुर भुरही, पो.-जयरामपुर, तहसील-खागा, जि़ला- फतेहपुर (उ.प्र.), तृतीय- श्रीमती रेखा कुशवाहा जी, निवासी बजरिया, स्टेशन के पास, जि़ला- महोबा (उ.प्र.) का नाम शामिल है। सोनी सिंह जी ने वर्षभर में 24 घंटे के 83 व 05 घण्टे के 72 श्री दुर्गाचालीसा पाठ तथा 28 आरतीक्रम करवाए। राजेश त्रिपाठी जी ने वर्षभर में 24 घण्टे के 98 व 05 घण्टे के 14 श्री दुर्गाचालीसा पाठ तथा 56 आरतीक्रम करवाए। श्रीमती रेखा कुशवाहा जी ने वर्षभर में 24 घण्टे के 56 व 05 घण्टे के 77 श्री दुर्गाचालीसा पाठ तथा 11 आरतीक्रम करवाए।

श्रमशक्ति पुरस्कार प्राप्त करके हुए गौरवान्वित

विजयादशमी के पावन पर्व पर हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी परिश्रमी कार्यकर्ताओं को शिविरस्थल पर परम पूज्य गुरुवरश्री के समक्ष शक्तिस्वरूपा बहन पूजा व संध्या दीदी जी ने प्रमाण पत्र, 11 हज़ार रुपये, एक शाल व संगठन का बैग प्रदान करके सम्मानित किया। भुमेेश्वर प्रसाद, निवासी ग्राम-पटना (हर्षवाह),पो.-शिवरी चन्दास, तह.-पुष्पराजगढ़, जि़ला-अनुपपुर (मध्यप्रदेश) मुन्नेलाल पनिका, निवासी ग्राम-डोंगरी टोला, टांघर, भोलेहरा, तह.-ब्यौहारी जिला-शहडोल (मध्यप्रदेश) और द्वारका काछी, निवासी ग्राम-रोन्डा, भरतला, तह.-पटेरा, जि़ला-दमोह (मध्यप्रदेश) को श्रमशक्ति पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त हुआ।

संगठन के कार्यकर्ताओं ने किया अथक परिश्रम

महाशक्ति सम्मेलन को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में भगवती मानव कल्याण संगठन के हज़ारों सक्रिय समर्पित कार्यकर्ताओं व सिद्धाश्रमवासियों ने अथक परिश्रम किया। नवरात्र पर्व के एक सप्ताह पूर्व से संगठन के कार्यकर्ताओं ने पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम पहुंचकर लाखों श्रद्धालुओं के ठहरने हेतु दिन-रात अथक परिश्रम कर आवासीय व्यवस्था प्रदान की व शिविर में शांति व्यवस्था कायमी के लिये सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने अग्रणी भूमिका निभाई। भोजन व्यवस्था, प्रवचन स्थल व्यवस्था, जनसम्पर्क कार्यालय, खोया पाया विभाग, नि:शुल्क चिकित्सा केन्द्र, स्टॉल व्यवस्था, पेयजल व्यवस्था, प्रसाद वितरण, लाईट, साउण्ड, माईक, कैमरा व्यवस्था तथा मूलध्वज व अखण्ड श्री दुर्गाचालीसा पाठ भवन में प्रात:कालीन व सायंकालीन साधनाक्रम व आरती सम्पन्न कराने हेतु हज़ारों कार्यकर्ता अनुशासित ढंग़ से लगे रहे। इस तरह प्रकृतिसत्ता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा व परम पूज्य गुरुवरश्री की कृपा से जन-जन में चेतना का संचार करने व विश्वशांति के लिये आयोजित यह वृहद कार्यक्रम धार्मिक व आध्यात्मिक वातावरण में शालीनतापूर्वक सम्पन्न हुआ। व्यवस्था कार्य में नेपाल से आये संगठन के कार्यकर्ताओं का भी सराहनीय योगदान रहा।

अन्नपूर्णा भंडारे में लाखों भक्तों ने तृप्तिपूर्वक ग्रहण किया खिचड़ी प्रसाद

आयोजित महाशक्ति सम्मेलन में सिद्धाश्रम पहुंचने वाले लाखोंं भक्तों के लिये सुबह-शाम खिचड़ी प्रसाद की विशेष व्यवस्था रही। गुरुवरश्री के आशीर्वाद से विशाल परिसर में भण्डारे की व्यवस्था की गई थी। सभी ‘माँ’-भक्तों और सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के शिष्यों ने सुबह-शाम दोनों समय भोजनालय परिसर में पंक्तिबद्ध रूप से बैठकर तृप्तिपूर्ण भोजन प्रसाद ग्रहण किया।

ज्ञातव्य है कि आश्रम में संचालित अन्नपूर्णा भंडारा की महिमा अपरम्पार है, चाहे कितने ही भक्त पहुंच जायें, समयानुकूल प्रात: 08 से दोपहर 01 बजे तक और सायंकाल 06 से रात्रि 09 बजे तक भोजन प्रसाद का वितरण अनवरत चलता रहता है।

समाधिस्थल और गोशाला भी पहुंचे भक्तगण

महाशक्ति सम्मेलन में पहुंचे भक्तों ने क्रमबद्धरूप से पूज्य दण्डी संन्यासी स्वामी रामप्रसाद आश्रम जी महाराज की समाधिस्थल पर पहुंचे और परिक्रमा करके अपूर्व शान्ति का अनुभव किया। भक्तगण समाधिस्थल के पास ही संचालित त्रिशक्ति गोशाला जाना भी नहीं भूले और गोसेवा व गोदर्शन का लाभ प्राप्त किया। इतना ही नहीं, शिविर के तीनों दिवस पुण्य सलिला समधिन में स्नान करके जीवन को कृतार्थ किया।

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