124वां शक्ति चेतना जन जागरण प्राण साधना शिविर, सिद्धाश्रम, 13,14,15 अक्टूबर 2021

आज लगभग हर मनुष्य भोग-विलास व सांसारिक वस्तुओं में ही सुख ढूँढनें लगा है तथा अपने अध्यात्म को विस्मृत कर अपनी प्राणशक्ति को खोता जा रहा है और यही दु:खों का मूल कारण है। यदि ऐसा नहीं होता,  तो सभी ऊर्जावान होते और उनका जीवन आनन्दमय होता। इस जगत् की सृष्टा माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा जो आपकी आत्मा की मूल जननी हैं,  उन्होंने तो दया,  प्रेम,  स्नेह,  सन्तोष,  परोपकार,  विनम्रता जैसे पवित्र भावों का प्रादुर्भाव किया है,  अन्तश्चेतना की पवित्रता और निरोगी काया के लिए योग-ध्यान-साधना के क्रम दिए हैं,  लेकिन आप ठीक इनके विपरीत आचरण में लिप्त हैं।

अपने जीवन में परिवर्तन लाने के लिए जीवनदृष्टि में बदलाव लाना होगा। वास्तव में सभी कुछ चित्त से ही दिशा-निर्देशित होता है। अत: हम अपने चित्त में जो दृष्टिपथ अंकित करेंगे,  वही तो भौतिक स्तर पर प्रकट होगा। यदि हम अपने चित्त में ‘माँ’ के द्वारा निर्धारित रीति-नीति को अंकित करके उसके अनुरूप चलेंगे,  तो जीवन सुख-शांति और समृद्धि से भरपूर रहेगा और यदि विपरीत आचरण करेंगे,  तो दु:ख-कष्ट ही आपकी नियति बनेंगे।

शारदीय नवरात्र पर्व पर अध्यात्मिकस्थली पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में अष्टमी, नवमी और विजयादशमी तिथि को शक्ति चेतना जनजागरण ‘प्राण साधना’ शिविर आयोजित हुआ और इस शिविर में देश-देशान्तर से पहुंचे लाखों भक्तों एवं सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के शिष्यों ने अध्यात्मिक ज्ञानामृत का पान करने के साथ ही जीवन में ‘प्राण साधना’ का क्या महत्त्व है? इस बारे में जानकर, इस विधा को नित्यप्रति पूर्ण करने के लिए कृतसंकल्पित हुए।

पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में 13, 14, 15 अक्टूबर 2021 को पूर्णरूपेण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त, चरित्रवान् व चेतनावान् लाखों भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा था। शिविर के तीनों दिवसों में सर्वप्रथम ब्रह्ममुहूर्त पर 4.30 बजे, भक्तजन मूलध्वज मंदिर में आरतीक्रम पूर्ण करने के पश्चात् श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मंदिर पहुंचकर 25 वर्षों से चल रहे श्री दुर्गाचालीसा पाठ में सम्मिलित हुये, जहां परम पूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज ने प्रात: 6.00 बजे स्वयं उपस्थित होकर नित्यप्रति की तरह माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा  व सहायक शक्तियों की पूजा-अर्चना की। तत्पश्चात् मूलध्वज साधना मन्दिर पहुंचकर मानवता के कल्याण की कामना ‘माँ’ जगदम्बे से की।

उक्त साधनात्मक क्रमों के पश्चात् प्रात: सात बजे ‘माँ’ के सभी भक्तों ने प्रवचनस्थल व सम्बद्ध विशाल प्रांगण पर बैठकर पूरे मनोयोग से अतिमहत्त्वपूर्ण बीज मंत्र ‘माँ’-ॐ का सस्वर जाप व शक्तिस्वरूपा बहन पूजा दीदी जी और संध्या दीदी जी की उपस्थिति में योगासन, प्राणायाम व ध्यान की क्रिया को पूर्ण किया। यह क्रम प्रात: साढ़े सात बजे से नौ बजे तक चला। 

शिविर के प्रथम दिवस की अपराह्न बेला, भगवती मानव कल्याण संगठन के कलाप्रेमी सदस्यों के द्वारा गुरुवरश्री के बैठने हेतु निर्मित मंच व आसन की भव्यता अतुलनीय थी। मंच के समक्ष प्रवचन पंडाल व विशाल परिसर में अनुशासित ढंग से पंक्तिबद्ध बैठे हुए माता भगवती के लाखों भक्त गुरुवरश्री के आगमन की प्रतीक्षा में जयकारे लगाने में लीन थे कि तभी अपराह्न 2.15 बजे आपश्री का आगमन भक्तों के हृदय को शीतलता प्रदान करता चला गया। सद्गुरुदेव जी महाराज् के मंचासीन होते ही शक्तिस्वरूपा बहन पूजा जी, संध्या जी और ज्योति जी ने उपस्थित समस्त भक्तों की ओर से गुरुवरश्री का पदप्रक्षालन करके पुष्प समर्पित किये।

तत्पश्चात् भगवती मानव कल्याण संगठन के सदस्यों में से, ऋषिवर के कुछ प्रतिभावान शिष्यों ने भावगीत प्रस्तुत किये, जिसके कुछ अंश इस प्रकार हैं:- ‘परमब्रह्म गुरुचरणों में मेरा कोटि-कोटि प्रणाम, जो दर पर नहिं आ सके प्रभु लाई हूँ पैगाम।’-जाह्नवी एवं भाग्या, कानपुर। ‘इक कदम बढ़ो गुरुपथ पर तुम, गुरुवर दस कदम का फल देंगे। कुछ पल तो लगा दो जनहित में, गुरुवर कृपा पल-पल देंगे।।’-शक्तिस्वरूपा बहन संध्या शुक्ला जी, सिद्धाश्रम। ‘व्यथा मिटेगी मन के भीतर की, बस कहता जा जय गुरुवर की।’-बाबूलाल विश्वकर्मा जी, दमोह। कार्यक्रम का संचालन करते हुए वीरेन्द्र दीक्षित जी, दतिया ने अपने भावसुमन में कहा कि- ‘कर दो माँ मेहरबानी, जीने में हो आसानी।’

भावगीतों की शृंखला के बाद ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ध्यानावस्थित मुद्रा में माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा की स्तुति करने के बाद सभी शिष्यों, चेतनाअंशों तथा शिविरस्थल पर उपस्थित विशाल जनसमुदाय सहित व्यवस्था में लगे सभी कार्यकर्ताओं को पूर्ण आशीर्वाद प्रदान करते हुये धीर-गम्भीर वाणी में कहते हैं कि-

‘‘नवरात्र के ये पावन पवित्र क्षण, जो सहजभाव से हमें माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा से जोड़ देते हैं और इस पर्व का स्मरण करते ही हमारा मन ‘माँ’ की भक्ति में लीन होजाता है। यह पर्व ‘माँ’ की भक्ति का पर्व है, अपने अवगुणों को नाश करने और चेतना को ऊध्र्वगामी बनाने का पर्व है, गुरु और शिष्यों का पर्व है। इस पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम धाम पर जब कोई शिविर आयोजित होता है, तब मेरे शिष्यों की जितनी इच्छा मुझसे मिलने की होती है, उससे भी अधिक मेरी उत्कंठा शिष्यों से मिलने की रहती है।

जीवन का एक-एक पल, एक-एक क्षण महत्त्वपूर्ण होता है और जो समय के महत्त्व को समझ लेता है तथा अपने जीवन के महत्त्व का आकलन कर लेता है, वह अपने जीवन को सफल कर लेता है। इस पवित्रस्थल की ऊर्जा का आकलन करना सहज नहीं है, जहाँ 25 वर्षों से अनवरत अनन्तकाल के लिए ‘माँ’ का गुणगान चल रहा है और जिस स्थल का कण-कण मेरे द्वारा ऊर्जावान बनाया जा रहा है। मेरा लक्ष्य, मेरा कर्म सुनिश्चित है और उसका फल भी सुनिश्चित है। इस पावन धाम में पवित्र गोशाला स्थापित है और गायों का दर्शन मन में अलौकिकता भर देता है, समीप ही पूज्य दण्डी संन्यासी स्वामी श्री रामप्रसाद आश्रम जी महाराज का समाधिस्थल है, वहीं पर दानवीर बाबा की गुफा है, जहाँ कुछ देर बैठने मात्र से मन शांति के कुंज में विचरण करने लगता है। स्वामी जी की समाधिस्थल पर ही दिव्यजलस्रोत हैं, जहाँ पर दो हैण्डपम्प स्थापित करके, उस स्थल को सुव्यवस्थित आकार दिया गया है, जिससे आप लोग दिव्यजल प्राप्त करने के साथ ही वहाँ कुछ देर बैठकर शांतिलाभ प्राप्त कर सकें। उस दिव्यस्रोत की दिव्यता क्या है? इस बारे में आने वाले समय में शिष्यों को अवगत कराया जायेगा।

यह पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम वह स्थान है, जहाँ पर ‘माँ’ की स्थापना होगी, जहाँ हर पल ‘माँ’ का गुणगान हो रहा है और यहाँ का कण-कण चैतन्य है, एक-एक कण भक्ति प्रदान करने वाला है, धर्म, राष्ट्र की रक्षा एवं मानवता की सेवा के लिए ऊर्जा प्रदान करने वाला है। नवरात्र जैसा पर्व हो और ऐसे पावन समय में जहाँ शक्तिसाधकों का समागम हो, उस स्थान की तुलना अन्य किसी स्थान से नहीं की जा सकती। इस भूतल पर है ऐसा कोई स्थान, जहाँ अनवरत अनन्तकाल के लिए ‘माँ’ का गुणगान चल रहा हो? आवश्यकता है आपको सजग रहने की और सजग रहते हुए यह विचार करें कि आप यहाँ आए किसलिए हैं? केवल प्राप्त करना चाहते हैं या परमार्थ भी करना चाहते हैं। जिस दिन सजग होकर उस पवित्र प्रवाह को श्रेष्ठ कर्म में परिवर्तित कर लोगे, उसी दिन से श्रेष्ठ बनने का क्रम शुरू हो जायेगा। जिस तरह नदी में नहाने से शरीर का कुछ न कुछ मैल धुल जाता है और यदि अच्छी तरह मलना, रगडऩा जानते हो, तो शरीर पूरी तरह स्वच्छ हो जायेगा, ठीक इसी तरह अध्यात्मिक यात्रा है। श्रेष्ठकर्म केवल जयकारा लगाना नहीं है, यह केवल भाव है। श्रेष्ठकर्म वह है कि आप भक्ति में अपने आपको विलीन कर लो। इस पवित्रस्थल पर आप लोगों के असीमित कर्तव्य हैं, स्वयं को सीमित दायरे में मत समेट लेना। मेरे साथ चलने वाले मेरे शिष्य, यदि जीवन में कुछ और प्राप्त करना चाहते हैं, तो और सजग रहें।

नदी के जल में डुबकी लगा देने के बाद यह एहसास नहीं होता कि हम नदी से बाहर हैं, बल्कि नदी में रहते ठंडे जल के स्पर्श का भान होता रहता है। इसी तरह ‘माँ’ की भक्ति में डूबकर देखो, आत्मिक आनन्द का भान होगा। आपके अन्दर वे क्षमताएं हैं, वे कोशिकाएं हैं, लेकिन आप उन्हें जाग्रत् नहीं करना चाहते। यदि संस्कारवान बन गए, तो आपकी सभी समस्याओं का समाधान होता चला जायेगा, अन्यथा समस्याएं ग्रसित करती ही चली जायेंगी। अत: उस पथ पर चलो, जिसे ऋषियों-मुनियों ने बताया है। अपनी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और विवेक की शक्ति को पहचानो, फिर पहचानो अपनी प्राणशक्ति को। कम से कम प्राण साधना के लिए 15 मिनट तो दो और इसके लिए इसी पल से संकल्पबद्ध होजाओ। इस शिविर से आगामी शिविर तक, आज से 23 जनवरी तक वह रहस्य पा जाओगे कि फिर इसे कभी छोड़ नहीं पाओगे।

वास्तव में यदि उस ‘महाशक्ति शंखनाद’ शिविर का पूर्ण लाभ प्राप्त करना चाहते हो, तो अपना समय निरर्थक मत गंवाओ, समय अमूल्य है। समाज में फैले अनीति-अन्याय-अधर्म को देखो, समझो और यदि आज चूक गए, तो इसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकेगी तथा मानवता का इतना बड़ा अहित होगा, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर पायेगा। हम सभी ‘माँ’ के भक्त हैं और हम सब समाज को एक सशक्त विचारधारा, एक सशक्त पथ दे सकते हैं। ‘माँ’ ने हमें एक कार्य सौंपा है और उसे करने के लिए शक्ति-सामथ्र्य दे रखी है कि उस शक्ति-सामथ्र्य का यदि सदुपयोग किया जाए, तो आने वाला समय तुम्हारा होगा। केवल स्वार्थ की बातें सोचना इन्सान का कर्तव्य नहीं है। हमें स्वयं निर्णय करना है कि हमें धर्म के पथ पर चलना है या अधर्म के पथ पर चलना है, सत्यपथ के राही बनना है या असत्य पथ के राही बनना है, देवत्व को प्राप्त करना है या असुरत्व को प्राप्त करना है। आज समाज पतन की ओर बढ़ता जा रहा है, उसमें सुधार कौन लायेगा? क्या अपने बच्चों को पतन के मार्ग पर झोंकते चले जाओगे? क्या देख नहीं रहे हो कि समाज किस दलदल की ओर, किस सम्प्रदायिकता की ओर, किस नास्तिकता की ओर जाता जा रहा है? ‘माँ’ का यदि आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हो, ‘माँ’ और गुरुसत्ता से अनन्तकाल के लिए रिश्ता जोडऩा चाहते हो, तो अपने कर्तव्य को समझना पड़ेगा। अनीति-अन्याय-अधर्म और विकारी जीवन से परे हटो। निर्णय तुम्हें करना है कि तुम्हारे अन्दर जो शक्ति-सामथ्र्य है, उसका उपयोग करना है या दुरुपयोग करना है।

एक देश केवल अफगानिस्तान को ही देख लो। तालिबानियों ने मात्र एक माह के भीतर वहाँ कब्जा करके पूरे देश को तहस-नहस करके रख दिया। आतंक का ऐसा कहर ढाया कि आवाम चीख उठी और अफगानिस्तान के लोग आज दर-बदर की ठोकरें खा रहे हैं। क्यों? इसलिए कि वहाँ के लोगों ने कभी राष्ट्ररक्षा के प्रति सोचा ही नहीं। नारियों पर अत्याचार होता रहा, लेकिन विश्व के किसी भी देश ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया और मैं तो कहूँगा कि सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष नपुंसक हैं। वे बैठकों पर बैठक करते रहे, लेकिन कुछ नहीं किया। मैं तालिबानियों का विरोध इसलिए करता हूँ, क्योंकि वे मानवता के दुश्मन हैं। अरे नपुंसकों, राष्ट्राध्यक्षों, निर्दयी आतंकवादियों के हाथों में एक पूरे देश को झोंक दिया। भारत ने भी कुछ नहीं किया और भविष्य में इसका परिणाम भारत को भी भोगना पड़ सकता है।

हमें सत्य की रक्षा के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकनी होगी। आज कोई भी राजनीतिक पार्टी हो, चुनाव आते ही कोई मामला सामने आया नहीं कि उस पर गिद्ध की तरह झपट्टा मार देंगे, जैसे कि वे ही मानवता के सच्चे हितैषी हैं, जबकि वास्तव में वे मानवता के दुश्मन हैं और चुनाव के समय को छोडक़र कभी भी मानवता के प्रति आवाज़ नहीं उठाते।

गत दो वर्ष से किसान आन्दोलन चल रहा है और उन तथाकथित किसानों को अन्नदाता कहा जा रहा है! क्या वे किसान हो सकते हैं? अरे, किसान तो अपने खेतों पर काम करता हुआ मिलेगा। वह आन्दोलन अब किसानों का आन्दोलन नहीं रहा, क्योंकि उसमें अब देशद्रोही, टुकड़े-टुकड़े गैंग के लोग, खालिस्तानी मानसिकता के अपराधी किस्म के लोग घुसपैठ बना चुके हैं। एक तरफ न्यायालय में मामला चल रहा है और दूसरी तरफ वे कहते हैं कि आन्दोलन चलता रहेगा। आिखर इन अन्यायियों-अधर्मियों के विरुद्ध आवाज़ कौन उठायेगा? तुम्हें आवाज़ उठानी पड़ेगी, तभी मानवता का कल्याण कर पाओगे।

अखाड़ा परिषद के गिरियों को देख लो, क्या कोई सिद्ध योगी आत्महत्या कर सकता है? लेकिन इन्होंने धार्मिक भावनाओं को नष्ट करके रख दिया। किसी की हत्या करने से बड़ा जघन्य अपराध आत्महत्या को माना जाता है, लेकिन प्रयागराज के नरेन्द्र गिरि ने ऐसा ही किया। सभी अन्दर से खोखले हैं और आप सभी ने देखा होगा कि दो-चार वर्ष के अन्तराल में कई साधु-संतों ने फांसी लगाई है। कहते थे कि मैंने शान से जिया है और अपमानित जीवन नहीं जी सकता। अरे, यदि वास्तव में सिद्ध संत होते, तो कहते कि मैंने त्याग-तपस्या का जीवन जिया है। बड़े-बड़े अखाड़ों और मठों पर बैठकर भी मानवता के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है। वे गलत को गलत नहीं कह सकते और सत्ता पर बैठे राजनेताओं की चाटुकारिता का जीवन जी रहे हैं! नरेन्द्र गिरि को आनन्द गिरि जैसा ऐय्याश शिष्य मिला था, जिसे वे उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे। उन्हें कोई योग्य शिष्य नहीं मिला था। ये सभी भोगी-विलासी लोग हैं, जो मठों पर बैठे हुए हैं।

ध्यान रखें कि हिन्दुत्व ही मानवता की रक्षा कर सकता है और यदि हम आज भी अपनी आवाज़ नहीं उठा पाए, तो हमारा हिन्दुत्व धीरे-धीरे खोखला होता चला जायेगा। अब भी वक्त है। मैंने पच्चीस वर्ष पहले ही तीन धाराओं के गठन का निर्णय ले लिया था। हम इन्हीं धाराओं पर चलकर मानवता की रक्षा कर सकते हैं, अपने धर्म की रक्षा करने के साथ ही दूसरे के धर्म की भी रक्षा कर सकते हैं। समय आ गया है, सजग होजाओ, अन्यथा बड़ी-बड़ी यातनाओं से गुज़रना पड़ेगा। हमारा संकल्प होना चाहिए कि ‘न तो हम गलत करेंगे और न गलत सहेंगे।’ अपने अन्दर तपशक्ति, पुरुषार्थ पैदा करो, साधक बनो, तपस्वी बनो। आप लोगों के जीवन में ढोंग-पाखंड छू भी नहीं जाना चाहिए। एक बार तो हमारे शंकराचार्य विवेकी बन जाएं और सभी अखाड़ाओं व साधु-संत-संन्यासियों को एकत्रित करके एक आयोजन तो कर लें तथा उस आयोजन के माध्यम से परीक्षण होजाए कि किनके पास तपशक्ति है, जो धर्म, राष्ट्र और मानवता की रक्षा कर सकें? अन्यथा, नरेन्द्र गिरि जैसी कहानियाँ, धर्माधिकारियों का खोखलापन उज़ागर होता रहेगा।

आज अपनी तीनों धाराओं को सशक्त बनाने की आवश्यकता है। यदि मेरे साथ चलना चाहते हो, तो तीनों धाराओं के प्रति अपना सर्वस्व समर्पित करो, अन्यथा मेरे चेतनाअंश नहीं बन पाओगे। आपको पवित्र धाराएं दी गईं हैं। भगवती मानव कल्याण संगठन के माध्यम से मानवता की सेवा की पराकाष्ठा, पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम के माध्यम से धर्म की रक्षा और भारतीय शक्ति चेतना पार्र्टी के माध्यम से राष्ट्ररक्षा की प्रचण्ड भावना होनी चाहिए। चुनाव आते ही जातीयता का कीड़ा कुलबुलाने लगता है, लेकिन अब बहुत हो चुका। मेरे शिष्य या तो रक्षाकवच उतारकर रख दें या फिर तीनों धाराओं के प्रति अपना सर्वस्व- तन, मन, धन समर्पण कर दें। सजग होना पड़ेगा, कर्तव्यपथ पर बढऩा पड़ेगा, मानवता के पथ पर चलो और अपनी रक्षात्मक प्रणाली को मज़बूत बनाओ, तभी स्वयं की रक्षा के साथ मानवीय कर्तव्यों का निर्वहन कर सकोगे।

विवेकवान बनो और विवेकवान कब बनोगे? जब साधना, तपस्या करोगे, धार्मिक-साहित्यिक पुस्तकें पढ़ोगे, सत्संग करोगे। अपने बच्चों को मोबाइल के चक्रव्यूह से बाहर निकालो, खुले वातावरण में निकालो और विलासिता की सामग्रियों से दूर रखो। बदल डालो अपने जीवन को, पतन को रोक दो, उन्नति के पथ पर, आनन्द के पथ पर चलो। ऐसे सुख की ओर मत बढ़ो, जिससे तुम शारीरिक और मानसिक रूप से कमज़ोर होते चले जा रहे हो। कोई भी कार्य करो, पूरे श्रद्धा, विश्वास के साथ करो।

प्राण हमारा जीवन है और प्राण के साथ छोड़ते ही शरीर निस्पंद होजाता है, जीवन समाप्त होजाता है। प्राण के माध्यम से हम सबकुछ प्राप्त कर सकते हैं, प्राण के बिना कुछ भी नहीं है। धर्म-अध्यात्म, यज्ञ, हवन, तप, त्याग, सभी कुछ प्राण पर ही निर्भर हैं। गहरी श्वास लेना सीखो। प्राणशक्ति आपकी संजीवनीशक्ति है। अत: नित्यप्रति कम से कम 15 मिनट का समय प्राणायाम में अवश्य दें।’’

चिन्तन के उपरान्त, शिविरस्थल पर उपस्थित समस्त शिष्यों-भक्तों ने परम पूूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज के सान्निध्य में 15 मिनट तक प्राणसाधनाक्रम के अन्तर्गत बीजमंत्रों ‘माँ’-ॐ का उच्चारण, सहज प्राणायाम, कपालभाति और शंखनाद किया।

प्राणसाधनाक्रम के पश्चात् शिविरस्थल पर उपस्थित सभी भक्तों ने साधनाक्रम पूर्ण करते हुए शक्तिस्वरूपा बहनों के करकमलों से सम्पन्न दिव्यआरती का लाभ प्राप्त किया और परम पूज्य गुरुवरश्री के चरणकमलों को नमन करके जीवन को धन्य बनाया।

शिविर के द्वितीय दिवस का द्वितीय सत्र

शिविर के द्वितीय दिवस के द्वितीय सत्र पर अपराह्न 02:15 बजे गुरुवरश्री के आगमन के साथ ही जयकारों व शंखध्वनि से समूचा वातावरण सुवासित हो उठा। शिविर में उपस्थित जनसमुदाय को आशीर्वाद प्रदान करके सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज मंचासीन हुए।

परम पूज्य गुरुवरश्री के मंचासीन होते ही शक्तिस्वरूपा बहन पूजा, संध्या और ज्योति दीदी जी ने प्रथम दिवस की तरह ही समस्त भक्तों की ओर से पदप्रक्षालन के बाद पुष्प समर्पित किये। चरणवन्दन के पश्चात् ‘माँ’-गुरुवर के चरणों में भावसुमन प्रस्तुत करने का क्रम प्रारम्भ हुआ, जिसके प्रारम्भिक अंश इस प्रकार हैं–

‘मैं भी गीत सुना सकती हूँ राधारानी मोहन के, …।’-मुक्ता जी। ‘जीवन बीते गुरुचरणों में तमन्ना यही है, …’।-प्रतीक जी। ‘संकल्प करो हम मातृभूमि की आन बचायेंगे, संकल्प करो हम धर्म की रक्षा करके बतायेंगे।’-शक्तिस्वरूपा बहन संध्या शुक्ला जी। ‘फिरते हो दर-दर कहाँ भगवान् पाओगे,…।’-वीरेन्द्र दीक्षित जी। ‘गुरुदर्शन मिले साकार आज हम धन्य हुए,…।’-बाबूलाल विश्वकर्मा जी।

भावगीतों के क्रम के पश्चात् सद्गुरुदेव जी महाराज के आशीर्वचन की धारा प्रवाहित हो उठी-

 ‘‘जीवन का एक-एक पल अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, खासकर वर्तमानकाल में जहाँ मानव नाना प्रकार के झंझावातों के बीच अपनी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक क्षमता को खोता जा रहा है और उसके कदम लडख़ड़ा रहे हैं। इन परिस्थितियों में यदि वह सत्यपथ पर चलने के लिए कदम भी बढ़ाता है, तो लडख़ड़ाते हुए बढ़ पाता है। भौतिकतावाद के झंझावात उसको हर पल अपनी ओर खींचते रहते हैं। साधकों, भक्तों की जो स्थितियाँ हैं, उन सबका आकलन करने के बाद मैंने स्वयं अपने साधनाकाल में बचपन से लेकर आज तक की स्थितियों में अत्यंत कठोरता का जीवन जिया है, कठिन से कठिन व्रतों का पालन किया है, कठिन से कठिन साधनाएं की हैं, लेकिन अपने शिष्यों को ‘साधना संजीवनी’ पुस्तक व चिन्तनों के माध्यम से सहज-सरल साधनाक्रम दिए हैं, जिससे उनको कठिनतम व्रतों, कठिनतम साधनाओं का सामना न करना पड़े तथा वे नाना प्रकार के अन्य साधनाक्रमों में उलझकर अपने कर्तव्यपथ से न हट जाएं।

आज के समाज की साधना, तपस्या करने की सामथ्र्य दबती जा रही है। उस कम होती जा रही सामथ्र्य का आकलन करके, उस सामथ्र्य को बढ़ा करके प्रचण्ड सामथ्र्य जाग्रत् करने हेतु मार्ग दिए गए हैं। भक्तों के हृदय में प्रकाश को पहुँचाने का प्रयास किया गया है, जिससे उनके हृदय में पुन: सत्य का प्रकाश आ सके और वे चेतनावान्, पुरुषार्थी, परोपकारी बन सकें। हर पल समाज को सजग करने का प्रयास किया गया है और मैंने अपने शिष्यों को कभी सीमित दायरे में बाँधकर नहीं रखा। समाज की अच्छाई-बुराई, धर्मपथ पर चलने वालों की परिस्थितियों को खुले रूप में रखा है तथा बचपन से लेकर आज तक के अपने जीवन की हर परिस्थितियों को समाज के सामने स्पष्ट किया है, जिससे इस धर्मयात्रा में शिष्यों को खुलापन प्राप्त हो, लक्ष्य स्पष्ट नज़र आए, कर्तव्य स्पष्ट नज़र आए कि उनके जीवन में भटकाव न आए। यही कारण है कि आज करोड़ों-करोड़ लोगों में परिवर्तन आ रहा है। लाखों-लाख स्वयंसेवी कार्यकर्ता इस कर्मपथ पर बढ़ रहे हैं। उन्हीं परिस्थितियों में रहते हुए जो असमर्थ हो चुके थे, असहाय हो चुके थे, भटकावों में उलझ चुके थे, आज सात्विकता, पवित्रता का जीवन जी रहे हैं, धीरे-धीरे उनके जीवन में परिवर्तन आता जा रहा है, धर्म, राष्ट्र एवं मानवता की सेवा में अपने आपको लगा रहे हैं और स्वयं को पहचानने का प्रयास कर रहे हैं। इसीलिए मैंने बार-बार कहा है कि स्वयं को जानो कि मैं कौन हूँ, मेरा कौन है और मेरा कर्तव्य क्या है? इन तीन बिन्दुओं पर सदैव सजग रहें।

इस पवित्रस्थल पर माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा का गुणगान जन-जन को लाभान्वित कर रहा है, मूलध्वज साधना मंदिर करोड़ों लोगों को दिशा दे रहा है और वे नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन अंगीकार कर चुके हैं। ध्यान रहे कि जीवन में कभी ठहराव नहीं होना चाहिए। यह लम्बी यात्रा है और आज की जो विषम परिस्थितियाँ हैं, समाज को उससे उबारने के लिए शान्ति का, चेतना का मार्ग प्रशस्त करना है। चाटुकारिता की नहीं, शान्ति की और चेतना की पराकाष्ठा हो, क्योंकि ये सिक्के के दो पहलू हैं। अत: हमें शान्ति की गहराई में जाना है, अपने अन्त:करण की गहराई को जानना है।

गुरुमंत्र, चेतनामंत्र और बीजमंत्रों के माध्यम से हर पल अपने आपका शोधन करना है। बाह्य पवित्रता उतनी मायने नहीं रखती, बल्कि उससे अधिक अन्त:करण की पवित्रता मायने रखती है। अत: काम, क्रोध, लोभ, मोह पर अंकुश रखो तथा इस हेतु हर पल सजग रहो, इन पर लगाम लगाना सीखो। अगर तुम साधक हो, तो ये तुम्हें स्पर्श तो करें, लेकिन स्थायित्व न ले सकें। हर पल विचार करो कि मैं शक्ति साधक हूँ, चेतनावान् गुरु का शिष्य हूँ और अपने हृदय को पवित्र विचारों से आलोकित करते रहो। आपके अन्दर दया, ममता, प्रेम, करुणा, वात्सल्य का भाव होने के साथ ही अपने कर्तव्य का भान हर पल बना रहना चाहिए तथा अनीति-अन्याय-अधर्म को समाप्त करने में अपनी पूरी शक्ति लगा दो। तुम्हें तपस्वियों की भाँति जीवन जीना है, जिससे ‘अनपायनी’ भक्ति प्राप्त हो। साधक तो यही चाहता है कि उसे ‘अनपायनी’ (जिसके पैर नहीं) भक्ति मिले, जो दृढ़ हो, स्थिर हो और एक बार आजाए, तो फिर कभी न जाए।

यदि आपको इस सत्य का ज्ञान होजाए कि हमारी आत्मा की जननी माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा हैं, तो उनके प्रति सर्वस्व समर्पित होना चाहिए। वे जन-जन की जननी हैं। अत: हमें सभी के कल्याण के लिए कार्य करना है। ध्रुव और प्रह्लाद जैसी प्रचण्ड भक्ति करना है, जीवन को यम-नियमों से बाँधना है, भागीरथी प्रयत्न करना है। युगों बीत गए, फिर भी सभी भागीरथ को जानते हैं और तुम्हें उनके समान तपस्वी बनना है, पूरी सामथ्र्य के साथ कार्य करना है।

समाज बहुत कुछ भूलता जा रहा है। भागीरथ व दानवीर कर्ण की चर्चाएं तो होती रहती हैं, लेकिन क्या किसी को उनके आगे-पीछे का ज्ञान है? बताओ, क्या कोई यह जानता है कि भागीरथ के पिता कौन थे? नहीं जानते!  पीढिय़ों से तपस्या चलती रही और भागीरथ के पिता दिलीप थे, दिलीप के पिता आयुष्मान ने हज़ारों वर्ष तपस्या की। आयुष्मान के पिता राजा सगर थे, जिनके 60 हज़ार पुत्र थे और जब ऋषि के श्राप से उनका दहन हो गया, तो सगर उनके उद्धार के लिए कुछ नहीं कर सके, तब पुत्र आयुष्मान ने गंगा के अवतरण के लिए तपस्या की, मगर गंगा अवतरित नहीं हुईं, तब उनके पुत्र दिलीप ने उस तपस्या की बागडोर संभाली और पूरे जीवन प्रचण्ड तपस्या की, पूरा जीवन व्यतीत हो गया, लेकिन गंगा को धरती पर नहीं ला सके, फिर उनके पुत्र भागीरथ ने घोर तपस्या की, शिव को प्रसन्न किया और तब कहीं गंगा का अवतरण हुआ। कठिन से कठिन लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है, केवल प्रयास करते रहने की ज़रूरत है। यदि वे न होते, उनमें पुरुषार्थ न होता, तो मुक्तिदायिनी, जीवनदायिनी गंगा प्राप्त न होती। भूतकाल में एक से एक प्रचण्ड तपस्वी हुए हैं, लेकिन आज लोग पतन की गहरी खाई में गिरते जा रहे हैं और ऐसी स्थिति-परिस्थिति में पतितों को उस खाई से निकालने के लिए, उनकी मुक्ति के लिए प्रचण्ड तप की आवश्यकता है।

एक बार पुन: हिन्दुत्व को, मानवता को जीवंत करना है। हिन्दुत्व की उस जीवनीशक्ति को जगाने की आवश्यकता है, कुछ कर गुज़रने का यही वक्त है और यदि समय चूक गया, तो न स्वयं का, न मानवता का कल्याण कर पाओगे। अत: सजग होकर आपके पास जितनी शक्ति-सामथ्र्य है, उसका उपयोग करना शुरू कर दो। यह शरीर नाशवान है और भोग-विलास से तुम्हें कुछ प्राप्त नहीं होगा। अत: भक्त बनो, तपस्वी बनो, कर्मयोगी बनो, जीवन मुक्तिपथ की ओर बढ़ जायेगा। एक सुनहरा सौभाग्य आपका आवाहन कर रहा है कि आगे बढ़ो। भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए तो अनेक जीवन मिल जायेंगे, लेकिन मेरा सान्निध्य बार-बार प्राप्त नहीं होगा। सुख के पीछे भागने से सुख प्राप्त नहीं होता, सत्कर्म करने से सुख की प्राप्ति होती है और यदि सुख की ओर भागोगे, तो दु:ख प्राप्त होगा।

आप अजर-अमर-अविनाशी शक्ति हो, तथापि अपने आपको जानो, पहचानो और फिर कर्म करो। भागवत सुनने से कुछ प्राप्त नहीं होगा और यदि कुछ प्राप्त करना है, तो परोपकार करो, मानवता की सेवा करो, समाज की परिस्थितियों को अपने मनमस्तिष्क में हर पल बिठाकर रखो और समाजसुधार के लिए दौड़ पड़ो। परमसत्ता जिस काल में परिवर्तन डालना चाहती हैं, हमें तो केवल माध्यम बनना है। अत: उस पथ पर चलो, जिससे हमारी इष्ट प्रसन्न हों और यदि आप अपनी ही प्रसन्नता ढूँढ़ते रहे, तो कभी भी प्रसन्नता प्राप्त नहीं कर पाओगे।

प्रकृति का जो वास्तविक स्वरूप दिखता है, हरी-भरी धरती, झरनें, कल-कल निनादित नदियाँ, पहाड़, मन आनन्द से पुलकित हो उठता है। हमारे देश में अनेक ऐसे प्राकृतिक क्षेत्र हैं, जहाँ पहुँचने मात्र से मन तरंगित हो उठता है। सोचिए, उसकी रचनाओं में जब इतना आनन्द निहित है, तो उसकी भक्ति की तरंगों से जब प्लावित होगे, तो कितना अधिक आनन्द प्राप्त होगा और जिसमें भक्ति नहीं, उसका हृदय हृदय नहीं, बल्कि कालकोठरी है। भौतिक उन्नति उन्नति नहीं है, उन्नति है अध्यात्मिक उन्नति। सजग रहो, भटकाव से दूर रहो और आपको जो मार्ग दिया गया है, उस पर दृढ़ता से आगे बढ़ो, अनीति-अन्याय-अधर्म के सामने घुटने मत टेको, आपके गुरु ने ऐसा ही जीवन जिया है।

निश्चित है कि मेरे शिष्य अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध पुरजोर आवाज़ उठा रहे हैं, नशे के विरुद्ध अभियान छेड़ दिया है और इस अभियान में मध्यप्रदेश के सागर संभाग के कार्यकर्ता, विशेषकर सागर और दमोह जि़ले के कार्यकर्ताओं का कार्य अतिप्रशंसनीय है। उनके सामने अनेक संघर्ष आए, झूठे मुकदमों का सामना करना पड़ा, शराबमािफयाओं के हाथों प्रताडि़त होना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और जनकल्याणकारी कर्तव्यपथ पर बढ़ते ही जा रहे हैं। भगवती मानव कल्याण संगठन एवं भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की शाखा सागर संभाग के कार्यकर्ताओं ने अनेक संघर्षपूर्ण स्थितियों में भी अन्यायियों-अधर्मियों के सामने घुटने नहीं टेके।

 निर्भीकता, निडरता के साथ कर्म करो। मैं केवल सत्य का समर्थक हूँ और इस मंच से कहता हूँ कि सुख भोगने वाली जितनी भी भ्रष्ट राजनीतिक पार्टियाँ हैं या तो वे सुधर जाएं, अन्यथा मैं उनको सुधार कर रहूँगा और यदि उनमें अधिक शक्तियाँ हैं, तो मेरा मार्ग रोककर देखें? मैं मानवता की रक्षा के लिए आया हूँ और अपने कर्तव्य को पूरा करके रहूँगा। चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी, इनमें  ज़्यादा अन्तर नहीं है। जितने भी टुकड़े-टुकड़े गैंग के लोग हैं, आतंकवादी मानसिकता के लोग हैं, कांग्रेस उनके साथ खड़ी रहती है और देश में जितने भी बड़े भ्रष्टाचारी हैं, बीजेपी उनकी शरणगाह है। चारोंओर भ्रष्टाचार व्याप्त है। क्या इससे देश का कल्याण होगा कि एक-एक चुनाव में करोड़ों-करोड़ रुपए फूँक दिए जाते हैं? क्या नरेन्द्र मोदी बतायेंगे कि ये रुपए आते कहाँ से हैं? एक आतंकी मरता है, तो कांग्रेसी चीखने-चिल्लाने लगते हैं। क्या बीजेपी ने आज तक भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास किया? तहसील, थानों से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक भ्रष्टाचार व्याप्त है। नरेन्द्र मोदी यदि अपने आपको राष्ट्ररक्षक मानते हैं, तो बताएं कि उनकी रैलियाँ किनके पैसों के बल पर आयोजित होती हैं? उन्हीं भ्रष्टाचारियों के बल पर, जिन्हें बीजेपी ने शरण दे रखी है। मेरे लिए कांग्रेस भी और बीजेपी भी, दोनों राष्ट्रद्रोही पार्टियाँ हैं और हम इसके लिए आवाज़ उठाते रहेंगे। हम आन्दोलन नहीं करते, लेकिन हममें आवाज़ उठाने की शक्ति है और हम भ्रष्टाचारियों को बदलकर रहेंगे।

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल, जिनका विज्ञापन आता है कि मैंने दिल्ली के स्कूलों में देशभक्ति का पाठ्यक्रम शुरू करवा दिया है, जिसे बच्चे देशभक्त बन सकें। अरे, केजरीवाल कब से राष्ट्रभक्त बन गए? वह तो टुकड़े-टुकड़े गैंग के लोगों के साथ बैठते हैं, उनका पक्ष लेते हैं। ऐसे लोगों से हमें सजग रहना पड़ेगा और देश के गद्दारों को मुँहतोड़ जवाब देना होगा। आज राजनीति का खेला हो रहा है, खेला को राजनीति बना दिया गया है। देश को स्वतंत्र कराने के लिए हमारे वीर जवानों ने इस खेला के लिए अपना बलिदान नहीं दिया है और यदि यह खेला चलता रहा, तो आज दूसरे प्रताडि़त हो रहे हैं, कल तुम भी प्रताडि़त होगे।

राजनीति का क्षेत्र हो या धर्मक्षेत्र हो, भ्रष्टाचार, अनीति-अन्याय-अधर्म बढ़ता ही जा रहा है और हमारे शंकराचार्य नपुंसक हो चुके हैं। ममता बनर्जी को दुर्गादेवी का स्वरूप दिया जाता है। देवी-देवताओं को अपमानित मत करो, अन्यथा मैं तुम्हारे अस्तित्व को समाप्त करके रहूँगा। देवी-देवताओं का अपमान हम और बर्दाश्त नहीं कर सकते। हाँ पाकिस्तान, बांग्लादेश में ऐसा हो सकता है और हाल ही की घटना वायरल हो रही है कि बांग्लादेश में दुर्गा पण्डालों को तहस-नहस करके रख दिया गया। ये सभी शंकराचार्य नरेन्द्र गिरि जैसे ही हैं, सभी अन्दर से खोखले हैं। धिक्कार है नरेन्द्र मोदी को, धिक्कार है बीजेपी को और धिक्कार है आरएसएस जैसी संस्था को कि धर्मविरोधी कार्य हो रहे हैं और वे कुछ नहीं कर पा रहे हैं। इतना अवश्य है कि सभी धर्मों का सम्मान होना चाहिए, लेकिन जहाँ गलत है, उसका विरोध होना चाहिए। चाहे मुल्ला-मौलवी हों या ईसाई, धर्म परिवर्तन की बयार चला रहे हैं। अरे, ईसा जो आततायियों से स्वयं को बचा नहीं सके, औरों को क्या बचायेंगे? धिक्कार है उस हिन्दूसमाज को, जो पैसों की लालच में आकरके अपना धर्मपरिवर्तन करवा रहे हैं!

वर्तमानकाल शक्ति का काल है। यद्यपि संघर्ष है, लेकिन इस काल में जो संघर्ष करेगा, उसकी ही विजय होगी। हमारे हिन्दुत्व धर्म में जो समाहित है, हमारे यहाँ अनन्त शक्तियाँ हैं, हमारे ऋषियों-मुनियों के पास अनन्त शक्तियाँ थीं और उन्होंने ही ज्ञान का प्रसार किया। मैं यह नहीं कहता कि हमारे हिन्दूधर्म में कुछ गलत नहीं है। हमारे कथावाचक भी मनगढ़न्त किस्से-कहानियाँ सुना-सुनाकरके अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं। रामपाल जैसा धूर्त, जिसने गीता पर ही हाथ डाल दिया, उसे ही बदलकर एक अलग गीता बना दी। उसने हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान किया है और अपनी करनी का फल जेल की सलाखों के पीछे भोग रहा है। आशाराम, रामरहीम जैसे धूर्त लोगों के ख़्िालाफ मैं नहीं बोलूँगा, तो और कौन बोलेगा?’’

फिल्म इण्डस्ट्री पर कुठाराघात करते हुए परम पूज्य गुरुवरश्री ने कहा कि ‘‘तुम लोग हीरो-हिरोइनों को अपना आदर्श मानते हो और इनका कितना अधिक पतन हुआ है, आज तुम्हारे सामने है! आएदिन ऐय्याशी, मर्डर और ड्रग्स के मामले सामने आ रहे हैं। तीन दिन का यह शिविर यहाँ आपको चेतना प्रदान करने के लिए रखा जाता है, अत: अपने आपको निर्मल बनाओ। नवरात्र पर्व इसीलिए तो होता है। विजयदशमी पर्व तो असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है। गति के बिना शक्ति प्राप्त नहीं होती, भागीरथी प्रयत्न करना पड़ेगा। परमसत्ता ने आपको निखिल ब्रह्मांड का मालिक बनाया है, फिर भी तुम निरीहता का जीवन जी रहे हो। कर्म वह करो, जिससे परमसत्ता प्रसन्न हों। जितना बन सके, उनके कार्यों में लग जाएं और यही आपकी सबसे बड़ी भक्ति होगी।’’

सद्गुरुदेव जी महाराज के अमृततुल्य चिन्तन के उपरान्त, शिविर में उपस्थित लाखों भक्तों ने संकल्प लिया– ‘‘मैं नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीते हुए शादी से पहले ब्रह्मचर्य व्रत का पालन और शादी के बाद एक पत्नी/एक पतिधर्म का पालन करूँगा/ करूँगी तथा धर्मरक्षा, राष्ट्ररक्षा एवं मानवता की सेवा के प्रति आजीवन समर्पित रहूँगा/रहूँगी।’’

अंत में शिविरस्थल पर उपस्थित सभी भक्तों ने शंखध्वनि के साथ साधनाक्रम पूर्ण करते हुए शक्तिस्वरूपा बहनों के करकमलों से सम्पन्न दिव्यआरती का लाभ प्राप्त किया और परम पूज्य गुरुवरश्री के चरणकमलों को नमन करते हुए प्रसाद प्राप्त करके जीवन को धन्य बनाया।

शिविर के तृतीय दिवस का द्वितीय सत्र

शक्ति चेतना जनजागरण ‘प्राण साधना’ शिविर में आयोजनस्थल की अद्भुत छटा देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बे ने सिद्धाश्रम में अपनी समस्त ममता उड़ेल दी हो। शिविर के तृतीय व अन्तिम दिवस की अपराह्न बेला पर 02:00 बजे, जयघोष व शंखध्वनि के मध्य ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का आगमन हुआ और उनके मंचासीन होते ही शक्तिस्वरूपा बहनों ने चरणपूजन का क्रम पूर्ण किया। तत्पश्चात् उपस्थित भक्तों की ओर से काव्यपाठी शिष्यों ने ‘माँ’-गुरुवर के चरणों में भावसुमन अर्पित किए, जिनके कुछ अंश प्रस्तुत हैं– ‘महिमा है जग से निराली, मेरी मइया हैं शेरावाली।’-आरती त्रिपाठी जी, सिद्धाश्रम। ‘जोत मइया की पावन जलाले, तेरे घर में भी होंगे उजाले।’-बाबूलाल विश्वकर्मा जी, दमोह।

सुसज्जित मंच पर विराजमान ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज की मोहक गम्भीरता चहुंओर व्याप्त हो रही थी। भावगीतों का क्रम समाप्त होते ही मानवजीवन को पूर्णता प्रदान करने वाली आपश्री की अमृतमयी वाणी मुखर हो उठी–

‘‘विजयदशमी का महत्त्वपूर्ण पर्व और सिद्धाश्रम जैसा पवित्रस्थल, जहाँ हर पल माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा का गुणगान हो रहा है और नित्यप्रति की मेरी साधनाएं वातावरण को चैतन्यता प्रदान कर रहीं हैं। किसी भी शक्तिपीठ को चैतन्य करना सहज नहीं है, इसके लिए निष्ठा व त्याग-तपस्या की पराकाष्ठा होनी चाहिए। यह शक्तिपीठ, जिसे परोपकार के लिए तैयार किया जा रहा है, करोड़ों लोग यहाँ से लाभान्वित हो चुके हैं। देखने वालों के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। सबसे बड़ा चमत्कार तो यही है कि जब मनुष्य असुरत्व के पथ को छोडक़र देवत्व के पथ को पकड़ रहा होता है। यहाँ से यही परिवर्तन तो हो रहा है। इसी को चैतन्यता के साथ सतत गति देते रहना है। माता भगवती की आराधना को गति देने के साथ ही मेरा कर्तव्य है कि तीनों धाराओं से आपको जोडक़र रखूँ। इसीलिए धर्मरक्षा, राष्ट्ररक्षा और मानवता की सेवा के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

सच्चाई, ईमानदारी, तप, त्याग के पथ पर चलना ही साधक का स्वरूप है। आज जो ज्ञानी बने हुए हैं, संत बने हुए हैं, वही समाज को भटका रहे हैं, शान्ति का पाठ पढ़ाते हैं, जबकि शान्ति का तात्पर्य निष्क्रिय रहकर राख होजाना नहीं है। आज चारों ओर अनीति-अन्याय-अधर्म व्याप्त है, बहन-बेटियों की इज्जत सुरक्षित नहीं है, इसके लिए आवाज़ नहीं उठायेंगे, बल्कि उन्हें तो आपकी धन-सम्पदा चाहिए। यह संत का स्वरूप नहीं है। समाज में अनीति-अन्याय-अधर्म सहते हुए जीवन नहीं जिया जा सकता। इतिहास साक्षी है कि हमारे ऋषियों-मुनियों ने असुरों के संहार के लिए अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। राक्षसों के विनाश के लिए विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को ज्ञान  दिया, मार्ग दिया।

यदि असुरत्व बढ़ता गया, तो मानवता पूरी तरह समाप्त हो जायेगी। शान्ति हमारे अन्दर हो, तो शक्ति बाहर होनी चाहिए। शान्ति से शक्ति की उत्पत्ति होती है। हमें शान्ति राख का ढेर बनने के लिए नहीं चाहिए, बल्कि अपनी ऊर्जा को बढ़ाने के लिए चाहिए।

आज दुर्भाग्यजनक स्थिति यह है कि यदि कहीं एक अधर्मी-अन्यायी खड़ा रहता है, तो उसके सामने से सौ ईमानदार लोग सिर झुकाकर निकल जाते हैं, जबकि होना यह चाहिए कि कहीं पर यदि एक ज्ञानी, एक संत खड़ा हो, तो सौ अन्यायी-अधर्मियों को सिर झुकाकर निकलना चाहिए। आज नारियों की इज्जत सुरक्षित नहीं है, वे सिर उठाकर चल नहीं सकतीं! सत्य यही है कि हिन्दूधर्म युगों से नारियों को सम्मान देता आ रहा है। राम से पहले सीता का नाम जोडक़र सीताराम कहा जाता है, कृष्ण से पहले राधा का नाम जोडक़र राधेकृष्ण कहा जाता है। जहाँ से नारी का सम्मान शुरू होता है, वहीं से धर्म शुरू होता है। फिर यह युग तो शक्ति का युग है। नारियों ने तो एक से एक महत्त्वपूर्ण कार्यों में अपना स्थान बनाया है और आज तो सेना में भी नारियों को स्थान दिया जा रहा है।

चाहे महिला हों या पुरुष हों, सभी को मर्यादा का पालन करना अनिवार्य है। हिन्दुत्व में मर्यादा के बिना मानवता की रक्षा नहीं हो सकती। अत: हर पल हमें मर्यादा को पकडक़र रखना चाहिए। हर व्यक्ति मर्यादाओं के अनुकूल जीवन जिए और विकास के पथ पर बढ़े। हमें ऐसी किसी भी संस्कृति का अनुकरण नहीं करना चाहिए, जो हमें विलासिता और पतन की ओर लेजाती हो। आज पश्चिमी सभ्यता हावी होती जा रही है और यही हिन्दुत्व के पतन का कारण है। आपको स्वयं विचार करना है कि किस पथ पर चलकर कल्याण हो सकता है? मर्यादाओं का पालन करने पर ही कल्याण हो सकता है।

बच्चों को बचपन से ही संस्कार देना शुरू कर देना चाहिए। हर पल आने वाली पीढिय़ों के लिए सदाचारी जीवन जिएं, क्योंकि बच्चे जो देखते हैं, उसी का अनुकरण करते हैं। अत: यदि सामथ्र्यवान समाज का निर्माण करना है, तो माता-पिता को सुधरना होगा। क्योंकि, एकाएक समाज को नहीं बदला जा सकता, धीरे-धीरे ही बदला जा सकता है। सूर्य जब उदय होता है, तो शुरू में ही उसमें तेजस्विता नहीं रहती, वह धीरे-धीरे प्रखर होता है। उसी तरह हमें बच्चों को धीरे-धीरे तेजस्विता की ओर बढ़ाना है। मंदिर तो कभी-कभी जाते हो। अपने घर को मंदिर का स्वरूप दो, घर में एक पूजन का स्थान हो, शक्तिध्वज लगा हो, नशे-मांस का सेवन न करें और न ही किसी नशेड़ी व्यक्ति को घर में प्रवेश दें, भले ही वह व्यक्ति आपका दामाद हो। यदि बहुत ही ज़रूरी लगे, तो अच्छी तरह हाथ-मुँह धुलाकर घर के अन्दर लेजाओ। घर को पवित्र बनाओ, इससे दूषित शक्तियाँ आपके घर में प्रवेश नहीं करेंगी।

बेटियों को बोझ मत समझो, बेटे-बेटियों में भेद मत करो, बेटियों को बेटों से कम मत आँको। उन्हें संस्कारवान बनाओ, सत्यपथ पर चलना सिखाओ, निर्भीक बनाओ। बेटियों से भी मेरा कहना है कि शक्तिसाधिका बनकर जिओ, सत्यपथ पर चलो, चेतनापथ पर चलो, गलत रास्ते का चयन मत करो, विकारी मत बनो, वासनात्मक जीवन मत जियो और अपने आपको पवित्र बनाओ। माता-पिता को भी चाहिए कि बेटों-बेटियों से पूछे बिना उनकी शादी न करें, लेकिन यह भी देखें कि वे जहाँ शादी करना चाहते हैं, वे विकारी व नशेड़ी तो नहीं हैं और यदि ऐसा लगे, तो बच्चों को समझाओ और गलत मत होने दो। धर्म, राष्ट्र की रक्षा एवं मानवता की सेवा के लिए अपनी शक्ति-सामथ्र्य का उपयोग करो। समय नष्ट मत करो। यह समय मनोरंजन का नहीं है, बल्कि कुछ कर गुज़रने का है। यह वक्त सजगता का है, अत: जीवन में गम्भीरता धारण करो। यह शक्ति का काल है, शक्ति की शरण में आजाओ, जीवन स्वर्णिम हो जायेगा। मर्यादित रहो, मर्यादा ही तुम्हें उच्चता की ओर ले जायेगी।

भगवती मानव कल्याण संगठन अनेक क्षेत्रों में सराहनीय कार्य कर रहा है और यही कारण है कि कई क्षेत्रों में तेजी के साथ परिवर्तन परिलक्षित है। भ्रष्टाचार अपनी जड़ें जमा चुका है और जहाँ देखो, वहाँ अनीति-अन्याय-अधर्म का साम्राज्य है, जिसे उखाड़ फेंकना है। अवैध शराब, अन्य नशीले पदार्थों तथा मिलावट का बाज़ार गर्म है। संगठन को अवैध शराब की तरह मिलावटखोरी के विरुद्ध भी कार्य करना है। जहाँ भी मिलावटी खाद्यसामग्री बेची जा रही हो, शासन-प्रशासन को सूचना देकर छापे डलवाओ, मिलावटखोरों के विरुद्ध आवाज़ उठाओ।

हर क्षेत्र में चाहे मध्यप्रदेश हो, छत्तीसगढ़ हो या हरियाणा हो, सभी प्रदेशों में सराहनीय कार्य हो रहा है, लेकिन उत्तरप्रदेश के कार्यकर्ताओं को चेतावनी अवश्य दूँगा। उत्तरप्रदेश, जो चेतनावानों का प्रदेश माना जाता था, आज वह कायरों का प्रदेश बनता जा रहा है। जो धरती चेतनावानों की रही है, आज वहाँ के लोग अधर्मी-अन्यायियों से डरते हैं। निडरता का जीवन जियो, चाटुकारिता का जीवन छोड़ दो और एक बार पुन: आदर्श स्थापित करो। उत्तरप्रदेश में भी अवैध नशे का कारोबार चरम पर है, मिलावटखोरी जोरों पर है, लेकिन नशे और मिलावट के विरुद्ध कार्य क्यों नहीं कर पा रहे हो? जो प्रदेश अनेक ऋषियों-मुनियों की जन्मस्थली रहा हो और जहाँ गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियाँ प्रवाहित हैं, वहाँ ऐसी निरीहता का जीवन धिक्कार है! उत्तरप्रदेश से भी ऐसी आवाज़ उठनी चाहिए कि अन्यायी-अधर्मियों के कलेजे काँप उठे।

देश में गरीबी अभिशाप बन चुकी है। इस धरती का सबसे बड़ा अभिशाप गरीबी है। अनेक क्षेत्रों में गरीब वर्ग दोनों समय का भोजन नहीं जुटा पाता है और यदि आंधी, पानी में छप्पर उड़ जाए, तो उसे बनाने के लिए उसके पास पैसे नहीं होते। उन गरीबों की ओर देखो, उनकी हरसम्भव सहायता करो और उन्हें चेतनावान् बनाओ। आने वाले समय में भगवती मानव कल्याण संगठन और भारतीय शक्ति चेतना पार्टी के द्वारा इस पर भी आवाज़ उठाई जानी चाहिए। सरकार को चाहिए कि जातपात को श्रेणियों में न बाँटकर लोगों को गरीब, मध्यम और उच्चवर्ग में बाँटें। करोड़ों लोगों के पास एक एकड़ भूमि तक नहीं है। आगे चलकर भूमिहीनों को भूमि दिलाने का कार्य भी किया जायेगा।

सद्गुरुदेव जी महाराज के चेतनाप्रद चिन्तन के उपरान्त, शिविरस्थल पर उपस्थित जनससमुदाय ने शंखध्वनि के साथ साधनाक्रम पूर्ण करते हुए शक्तिस्वरूपा बहनों के करकमलों से सम्पन्न दिव्यआरती का लाभ प्राप्त किया और परम पूज्य गुरुवरश्री के चरणकमलों को नमन करते हुए प्रसाद प्राप्त करके सभी अतिआनन्दित हुए।

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