युग परिवर्तन का महाशंखनाद- 2

प्रवचन शृंखला क्रमांक -137
शारदीय नवरात्र शिविर, सिद्धाश्रम (म.प्र.) 24.10.2012

माता स्वरूपं माता स्वरूपं, देवी स्वरूपं देवी स्वरूपम्।
प्रकृति स्वरूपं प्रकृति स्वरूपं, प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यम्।।

बोलो माता आदिशक्ति जगज्जननीजगदम्बे मात की जय।

एक बार मैं पुन: अपने समस्त चेतनाअंशों, शिष्यों, ‘माँ’ के भक्तों, श्रद्धालुओं एवं जिज्ञासुओं को और इस शिविर व्यवस्था में लगे हुये समस्त कार्यकर्ताओं को अपने हृदय में धारण करता हुआ माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त करता हुआ, अपना पूर्ण आशीर्वाद आप समस्त लोगों को समर्पित करता हूँ।

इस महत्त्वपूर्ण शक्ति चेतना जनजागरण शिविर की दो दिव्य आरतियों का आप लोगों ने लाभ प्राप्त किया। शान्तचित्त हो करके जिस तरह आप लोगों ने दो दिनों के कार्यक्रमों को ग्रहण किया, दिन भर आप लोग साधनात्मक क्रमों में व्यस्त रहे, उसी तरह आज का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विजयादशमी पर्व, तीसरे चरण की दिव्य महाआरती और दिव्य महाशंखनाद को करने का सौभाग्य भी आप लोगों को पुन: प्राप्त होगा।

भगवती मानव कल्याण संगठन की विचारधारा की बीसों साल पहले जो नींव डाली गयी थी, आज करोड़ों लोग देश के कोने-कोने से, अन्य देशों के भी लोग यदि संगठन से जुड़े हैं और एक लाख से अधिक कार्यकर्ता एक नि:स्वार्थ भाव से आज भगवती मानव कल्याण संगठन में अपनी सेवायें दे रहे हैं, तो इसके पीछे सत्य की ऊर्जा, ‘माँ’ की कृपा छिपी हुयी है। आज लाखों कार्यकर्ता, दिन-रात अपने जीवन की जो नितान्त जिम्मेदारियाँ हैं, उनका निर्वहन करते हुये जनकल्याणकारी कार्यों में सतत लगे हुये हैं। देश के कोने-कोने में आज भगवती मानव कल्याण संगठन लोगों को नशामुक्त कराता हुआ, माँसाहारमुक्त कराता हुआ, ‘माँ’ की आराधना भक्ति का मार्ग बताता हुआ, समाज को अनीति-अन्याय-अधर्म के मार्ग से सत्य और धर्म के पथ पर लाकर खड़ा करता हुआ, आगे की ओर बढ़ रहा है। यह सत्य का, धर्म का विजयरथ तीव्रगति से आगे की ओर बढ़ रहा है। यह एक लम्बे लक्ष्य की पूर्ति का संकल्प ले करके चल रहा है कि मानव के अन्दर मानवीय मूल्यों की स्थापना हो, अनीति-अन्याय-अधर्म समाप्त हो और मनुष्य सुख-शान्ति का जीवन जिये। उसे कोई छल न सके, उसे कोई ठग न सके, उसका कोई शोषण न कर सके और इसके लिये सिर्फ और सिर्फ  धर्मवान्, कर्मवान् और संस्कारवान् बनना होगा। जब तक समाज धर्मवान्, कर्मवान् और संस्कारवान् नहीं बनेगा, तब तक समाज में भयावह वातावरण इसी तरह समाया रहेगा। अत: सत्यपथ पर बढ़ो, धर्मपथ पर बढ़ो, कर्मवान् बनो, परिश्रमी बनो, चरित्रवान् बनो।

यदि समाज चरित्रवान् बन गया, कर्मवान् बन गया, धर्मवान् बन गया, तो उसके विकास के पथ को कोई रोक नहीं सकता, जो कि आज रुका हुआ है। भगवती मानव कल्याण संगठन आज उसी दिशा में सतत् कार्य कर रहा है। आज सत्य की यह विचारधारा जो चल रही है, वह उस समाज को नज़र नहीं आयेगी। चूँकि जब मैंने नींव डाली थी, तभी मैंने कहा था कि जिस तरह अनीति-अन्याय-अधर्म अपना साम्राज्य स्थापित करता चला गया, समाज को पता ही नहीं चला और सत्य कहीं न कहीं लडख़ड़ाता चला गया। परिणामस्वरूप अनीति-अन्याय और अधर्म का साम्राज्य स्थापित हो गया। उसी तरह यह सत्य की जो नींव डाली जा रही है, धर्म की नींव डाली जा रही है, लोगों को साधक बनाया जा रहा है, चरित्रवान् बनाया जा रहा है, नशामुक्त और माँसाहारमुक्त बनाया जा रहा है और यह भी अपनी नींव उसी तरह आगे जमाता हुआ बढ़ता चला जा रहा है कि अनीति-अन्याय-अधर्म करने वालों को पता ही नहीं चल रहा कि उनके नीचे का धरातल खिसकता चला जा रहा है।

वह समय दूर नहीं, जब अनीति-अन्याय-अधर्म करने वालों का धरातल तो खिसकेगा ही और जो निर्भय हो करके, निद्र्वंद्व हो करके अनीति-अन्याय-अधर्म-अत्याचार से पूरे समाज का शोषण कर रहे हैं, उनके हृदय पर कम्पन होगा। उनके अपने आसन डिगते हुये नज़र आयेंगे और जिस तरह वे समाज का शोषण कर रहे हैं, उसका परिणाम उन्हें भोगना अवश्य पड़ेगा। सत्यधर्म सभी काल में रहा है, सत्यधर्म कभी पराजित नहीं हो सकता। आपको केवल सत्य को धारण करना है, धर्म को धारण करना है। ‘माँ’ की धर्मध्वजा जो आपके हाथ में पकड़ाई गई है, यह धर्मध्वजा सामान्य ध्वजा नहीं है। इसके साथ जुड़ी हुई है माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा की कृपा। आपके गुरु ने जो अपना पूरा सर्वस्व जीवन, अपने जीवन की एक-एक पल की जो साधना समर्पित की है, वह आप लोगों को बराबर गति देती चली जा रही है। इस भूतल पर जिस तरह से आप लोग कार्य कर रहे हैं, भगवती मानव कल्याण संगठन कार्य कर रहा है, आज तक किसी ने नहीं किया। किसी भी कार्य की पूर्ति के लिये सब लोगों ने अरबपतियों, खरबपतियों, उद्योगपतियों को पकड़ा, धनकुबेरों को पकड़ा, मगर मैंने समाज के आम मनुष्यों को, गरीब से गरीब व्यक्ति, असमर्र्थ व्यक्ति, जो असहाय थे, अपने आपको निराशावादी जीवन में ढाल चुके थे, अनेकों लोग जो आत्महत्या करने की सोच रहे थे, मैंने उन्हीं के अन्दर चेतना का संचार करके उनके अन्दर वह चैतन्यता भरी है, जो चैतन्यता आज धनकुबेरों के पास नहीं है। खुली आँखों से देख सको, तो देखो कि ऐसी कौन सी ऊर्जा कार्य करती है कि मेरे एक बार आवाहन कर लेने पर, कि तुम्हें चरित्रवान् बनना है, तो लाखों हाथ एक साथ उठ जाते हैं। मेरे एक बार कहने से कि तुम्हें नशामुक्त बनना है, तो लाखों हाथ एक साथ उठ जाते हैं। मेरे एक बार कहने से कि तुम्हें माँसाहारमुक्त बनना है, तो अचानक लाखों हाथ एक साथ उठ जाते हैं। मेरे द्वारा एक बार निर्देशन दे दिया जाता है कि अधर्मियों-अन्यायियों के नशे के कारोबार को रोकना है, तो लाखों-लाख शिष्य एक साथ आगे बढ़ करके सैकड़ों स्थानों पर अवैध व्यवसाय पर रोक लगाने में सफल होजाते हैं।

नास्तिकों! मैं आवाहन करता हूँ कि आओ और इस दिव्य स्थल पर आ करके देखो कि जहाँ इस तरह के भक्त सहजभाव से यहाँ कंकड़ों, पत्थरों पर आराम की नींद लेते हैं, तृप्ति की नींद लेते हैं, आिखर कौन सी ऊर्जा कार्य कर रही है? कौन सा प्रेम कार्य कर रहा है? खुली आँखों से देखो, खुले मनमस्तिष्क से देखो। जो नींद उन धनकुबेरों को नहीं आती होगी, वह नींद इस भूतल पर कंकड़ों और पत्थरों पर लेट करके भी मेरे शिष्य चैतन्यता से लेते हैं। चूँकि वैसा जीवन मैं स्वत: जीता हूँ और जैसा जीवन मैं जीता हूँ कि अगर मैंने संघर्षों का जीवन जिया है, तो मैंने अपने शिष्यों को अपना चेतनाअंश बनाया है। उनके अन्दर सामथ्र्य भरी है कि अभावों के बीच भी चैतन्यता का जीवन जियो, आत्मावानों का जीवन जियो, अभाव तुम्हारा मार्ग रोक नहीं पायेंगे। खुली आँखों से देखें कि आज एक आम व्यक्ति को चार घण्टे, पाँच घण्टे परिश्रम करा दिया जाये, तो वह थका सा और बिल्कुल असहाय सा नज़र आयेगा। महानगरों में रहने वाले जो धनवान् हैं, बहुत अच्छी-अच्छी सी चीजें खाते हैं, हर प्रकार के वैभवशाली वातावरण का उपयोग करते हैं, उन्हें कहो कि चार घण्टे इस तरह के वातावरण में रह करके दिखाएं।

ऐसा कौन सा तेज कार्य कर रहा है कि मेरे इन्हीं शिष्यों के समूहों में जो रक्षाकवच डाले बैठे हैं, तीन दिन से अधिकांश लोग जग रहे हैं, परिश्रम कर रहे हैं, मेहनत कर रहे हैं, आठ-आठ घण्टे खड़े हो रहे हैं, भोजन कराने में हज़ारों-हज़ार कार्यकर्ता बीस-बीस घण्टे लगे हुये हैं? शायद एक या दो घण्टे की नींद ले पाते हैं, फिर भी उनके चेहरे पर एक अलग ही प्रसन्नता होगी, एक अलग चैतन्यता होगी। यह सत्य की ऊर्जा है, सत्य का प्रवाह है। यह प्रवाह सामान्य प्रवाह नहीं है। कुछ लोगों ने कहा कि कैसे यहाँ लोग कंकड़ों, पत्थरों में लेटे हुये हैं? चूँकि उन्हें यह कंकड़ और पत्थर नज़र आते हैं और मेरे भक्तों को ‘माँ’ की गोदी नज़र आती है। उस तरह के लोग आते हैं कि उनको चाहिये ए.सी. कमरे, अच्छे वैभवशाली कमरे। वे आते हैं, तो सबसे पहले अच्छे कमरों की तलाश करते हैं। इसीलिये इस तरह के समाज से मैं नफरत करता हूँ। मैं समाज के उस वर्ग की खोज कर रहा हूँ, जिसको आज मेरी जरूरत है, जिसको मेरी ऊर्जा की जरूरत है।

 वैभवशाली लोग तो सुख-शान्ति से अपने तरीके से रह रहे हैं, मगर उनका वैभव एक दिन डगमगायेगा अवश्य। एक न एक दिन उनको भगवती मानव कल्याण संगठन की शरण में आना ही पड़ेगा। इसके अलावा शान्ति का और कोई मार्ग है ही नहीं। सत्य की यह ऊर्जा जो मेरे शिष्य ले करके चल रहे हैं, खुले मनमस्तिष्क से कोई देख सके, तो आज देखे कि किस तरह से वे डोर-टू-डोर जा-जा करके, चल करके आगे कार्य करते चले जा रहे हैं। लोगों ने पारसमणि के बारे में सुना था कि जिसके पास पारसमणि होती है, वह पारसमणि लोहे को सोना बना देती है, लेकिन मैंने अपने शिष्यों को पारसमणि से बढ़ करके वह शक्तिमणि दी है। पारसमणि तो लोहे को सोना बना सकती है, मगर यह शक्तिमणि हर एक को अपने समान बनाने में सामथ्र्यवान् है। जो इनके सम्पर्क में आयेगा, वह इनके समान ही बन जाता है। यह कौन सी ऊर्जा कार्य कर रही है? आप लोग तो अपने बच्चों को दिशा नहीं दे पाते, अपने एक-दो बच्चों को सही मार्ग पर नहीं बढ़ा पाते, अपने पड़ोसियों को अपने अनुसार नहीं चला पाते। यह वह समाज है, जिसके पास धनबल नहीं जुड़ा हुआ है। केवल जुड़ी है, तो वह है माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा की कृपा, मेरे शिष्यों की निष्ठा, विश्वास और समर्पण और यही ऊर्जा दिन-प्रतिदिन समाज में एक परिवर्तन करती चली जा रही है।

आज जहाँ छोटे-छोटे संगठन हैं, जिनके पास सौ-सौ, दो-दो सौ सदस्य हैं, वे समाज में हो-हल्ला मचा रहे हैं कि हम ऐसा कर देंगे, हम वैसा कर देंगे और सब अनीति-अन्याय-अधर्म में लिप्त हैं। दिन में राम-राम और रात में पउवा चढ़ता है। मगर मेरे संगठन के कार्यकर्ता जैसा कहते हैं, वैसा जीवन जीते हैं। मैं अपने भगवती मानव कल्याण संगठन के 99 प्रतिशत कार्यकर्ताओं की गारन्टी लेता हूँ कि वे जैसा कहते हैं, वैसा ही जीवन जीते हैं। चूँकि वे मेरे चेतनाअंश हैं। मैं जैसा कहता हूँ, वैसा मैं स्वत: का जीवन जीता हूँ, कर्मवानों का जीवन जीता हूँ। मैं असहाय, असमर्थ हो करके जीवन नहीं जीता। चौबीस घण्टे में सत्रह घण्टे, अट्ठारह घण्टे, उन्नीस घण्टे अपने आपको कार्यों में रत रखता हूँ। बीसों साल की मेरी यात्रा लोग देख सकते हैं और फिर भी मेरे जीवन में, मेरे शरीर में चैतन्यता की कमी कोई पा जाए, तो मुझे एहसास कराए। मैं नित्य प्रात: ढाई-तीन बजे जगता हूँ और दिनभर के कार्य में रत रहता हूँ। अभी यहाँ भी कार्य करा करके सीधे स्नान करने गया हूँ और स्नान करने के बाद केवल ध्यान-साधना के कक्ष में गया हूँ, पश्चात् सीधे यहाँ चला आ रहा हूँ। इसके बाद रात के ग्यारह-बारह बजेंगे। कल भी बारह बजे थे। चूँकि यह मेरी प्रतिदिन की नियमित दिनचर्या है। मनुष्य के अन्दर अलौकिक क्षमता भरी हुयी है। वही क्षमता मैं अपने शिष्यों में भर रहा हूँ और काफी शिष्यों में वह क्षमता भरी हुयी है। अगर अधर्मी-अन्यायी अपनी आँखें खोल करके देख सकें, तो देखें।

मैंने अपने शिष्यों को भगवे वस्त्र नहीं धारण कराये। मात्र एक रक्षाकवच और माथे में कुंकुम का तिलक। भगवती मानव कल्याण संगठन के जो भी कार्यकर्ता हैं, शिष्य हैं, साधक और साधिकायें हैं, उनके अन्दर आज भी उतनी सामथ्र्य भरी हुयी है कि अगर मैं यह कह दूँ, तो बड़े-बड़े मठाधीशों में वह सामथ्र्य नहीं है। उन मठाधीशों का पूरा जीवन ढोंग और पाखण्ड पर है, जबकि मेरे चेतनाअंश, मेरे शिष्य ‘माँ’ के चरणों में शीश झुकाते हैं और वे मठाधीश धनकुबेरों के चरणों में शीश झुकाते हैं, अधर्मी-अन्यायी राजनेताओं के चरणों में शीश झुकाते हैं। वह चाहे जितना बड़ा अधर्मी-अन्यायी हो, अत्याचारी हो, नेता जी पहुँच गये और बस उनका माल्यार्पण होना शुरू होजाता है, उनका स्वागत और सम्मान होना शुरू होजाता है। अगर सम्मान हो, तो राजनीति में भी जो सम्मानित व्यक्ति हों कि अगर वास्तव में वे सदाचारी हैं, वे नशे-माँस से मुक्त हैं, भ्रष्टाचारमुक्त हैं, तो ऐसे लोगों का सम्मान होना चाहिये। अगर समाज यह जानता है कि ये नशा करने वाले हैं, माँसाहारी हैं, भ्रष्टाचारी हैं, तो ऐसे लोगों का सम्मान नहीं, बल्कि ऐसे लोगों का जगह-जगह अपमान होना चाहिये। मगर, आज भ्रष्ट से भ्रष्ट, बेईमान से बेईमान को सम्मानित किया जाता है।

इस अनीति-अन्याय-अधर्म के प्रवाह को भगवती मानव कल्याण संगठन को ही रोकना होगा। आज धर्म का आवरण ओढ़े हुये धर्म के धर्माधिकारी, सफेदपोश भ्रष्ट राजनेता, भ्रष्ट और बेईमान प्रशासनिक अधिकारी और कुछ भ्रष्ट उद्योगपति जो ऐय्याशी में ही लिप्त रहते हैं, बेईमानी में ही लिप्त रहते हैं, भ्रष्टाचार में ही लिप्त रहते हैं, इन चारों का गठजोड़ आज पूरे समाज का शोषण कर रहा है। यह एक ऐसा भयानक गठजोड़ बन चुका है, जो आज के दानवों का पूरा स्वरूप धारण कर चुका है। एक नहीं अनेकों रावणों के रूप में हैं और इनके अस्तित्व को भगवती मानव कल्याण संगठन समाप्त करके रहेगा। पूरे देश को लूट रहे हैं, फिर भी सम्मानित हैं! माँस की पार्टियाँ चल रही हैं, ऐय्याशी की पार्टियाँ चल रही हैं, फिर भी सम्मानित हैं! गरीबों को एनीमल समझते हैं। कोई कह रहा है कि वो तो थर्ड क्लास में चलने वाले एनिमल हैं। कोई कह रहा है कि गाँव में अगर कोई खुले में शौच चला जाए, तो उसे जेल में बन्द कर दो। अरे बेईमानों, उनकी सब चीजों को तो तुमने लूट लिया है और आज़ादी के बाद आज तक अगर मैं कह दूं, तो अंग्रेजों ने हमारे देश को उतना नहीं लूटा, जितना आज़ादी के बाद इन चार प्रकार की चौकड़ी वाले अधर्मियों-अन्यायियों ने लूटा है।

हम धर्म को भी धारण करते हैं और हम धर्म के लिये अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर देंगे। हम अपने साधनात्मक पथ पर भी चलते हैं और अपनी शक्ति के बल पर अनीति-अन्याय-अधर्म के ख़िलाफ़ आवाज़ भी उठाते हैं और यह आवाज़ बराबर उठती रहेगी। हम कर्म करते हैं और कर्म करना सिखाते हैं। यही कारण है कि समाज में परिवर्तन आ रहा है। यही मेरे भगवती मानव कल्याण संगठन का लक्ष्य है, जिसे खुली आँखों से, खुले मनमस्तिष्क से देखें और समझें। यहाँ पर एक ऊर्जा, एक प्रवाह, एक ‘माँ’ की कृपा कार्य कर रही है। अगर उस कृपा को समझ सकें, तो अपनी आँखों को खोल लें और यदि नहीं समझ सकेंगे, तो जिस जनता का शोषण कर रहे हैं, एक न एक दिन उसी जनता के पैरों तले रौंदे अवश्य जायेंगे। हम अहंकार को ले करके नहीं चलते। हम तो ‘माँ’ के चरणों में शीश झुकाने वाले हैं, साधना करने वाले हैं, भक्ति करने वाले हैं। मगर हम अपनी शक्ति पर अभिमान भी करते हैं। अगर हम ‘माँ’ की कृपा पर अभिमान नहीं करेंगे, अपनी इष्ट पर अभिमान नहीं करेंगे, तो हमारे जीवन जीने का कोई अर्थ नहीं है।

प्रकृतिसत्ता ने हमें जो कार्य सौंपा है, उस कार्य को करने के लिये हम अपना सर्वस्व न्यौछावर कर सकते हैं और कर रहे हैं। उसी पथ को लेकर यह भगवती मानव कल्याण संगठन चल रहा है और उसमें इस पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम की ऊर्जा कार्य कर रही है। लोग कह रहे हैं कि किस प्रकार कार्य कर रहा है संगठन? एक माता-पिता के स्नेह में पुत्र अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देता है। उसी तरह अगर कोई सच्चा गुरु है, अगर उसने सच्चाई से अपने शिष्यों से रिश्ता जोड़ा है, तो मेरे शिष्य भी उसी रास्ते पर बढ़ रहे हैं। दिन-दूना, रात-चौगुना गति से भगवती मानव कल्याण संगठन बढ़ रहा है और वह दिन दूर नहीं, जब हम पूरी तरह से अनीति-अन्याय-अधर्म को समाप्त करने में सफल हो जायेंगे। समय लगेगा, अनेकों समस्याएं आयेंगी, परिस्थितियाँ विपरीत आयेंगी, अधर्मी-अन्यायी टकरायेंगे, चूँकि जगह-जगह इन अधर्मियों की जो चौकड़ी बनी हुयी है, ये जगह-जगह अवरोध पैदा करेंगे। मगर, तुम्हारे अन्दर इतनी सामथ्र्य है कि इन अवरोधों को पैर से ठोकर मार करके अपने मार्ग से बाहर कर सकते हो।

आवश्यकता है हर पल ‘माँ’ का स्मरण रखो, हर पल ‘माँ’ का ध्वज अपने मनमस्तिष्क पर छाये रखो। आपको एहसास रहे कि हमने रक्षाकवच, रक्षारुमाल अपने शरीर में धारण कर रखा है, जो हर पल आपको चेतना दे रहे हैं। लाभ-हानि, जीवन-मरण सभी के साथ जुड़ा हुआ है, मगर जब तक जीवन की सांस है, तब तक सत्य की विचारधारा का जीवन जियो। साधना करो, अपने आत्मबल को मजबूत करो और अपने आपको अनीति-अन्याय-अधर्म से दूर करो। अनीति-अन्याय-अधर्म होते हुये न हमें देखना है और न अनीति-अन्याय-अधर्म हमें करना है। चूँकि अनीति-अन्याय-अधर्म को देखने वाले और करने वाले समान रूप से दोषी होते हैं। अत: जाति, धर्म, सम्प्रदाय से ऊपर उठ जाओ। एक बार संकल्प कर लो कि हम मानव हैं और हमें मानवों के अन्दर मानवीय मूल्यों की स्थापना करना है। हम किसी जाति, धर्म, सम्प्रदाय के नहीं हैं। हमें केवल मानवता की रक्षा करना है, मानवता को शोषण से बचाना है और उस दिशा में हम सभी को मिल करके कार्य करना है।

इस विजयादशमी पर्व पर हम सभी लोगों को मिल करके यह संकल्प लेना है कि हमने अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध जो शंखनाद किया है, जीवन की अन्तिम साँस तक हमारा कर्म भी उसी तरह रहेगा। हम किसी अस्त्र, शस्त्र का उपयोग नहीं कर रहे, हम किसी अधर्मी-अन्यायी की हत्या नहीं कर रहे और मैं हत्या को सबसे बड़ा महापाप मानता हूँ। तो, प्रथम हमारा लक्ष्य है कि उनके अन्दर जो अनीति-अन्याय-अधर्म भरा हुआ है, हम अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा के बल पर उसको समाप्त करने के लिये प्रयास करते हैं। मगर कुछ अधर्मी-अन्यायी ऐसे होते हैं, जैसे कुत्ते की पूँछ टेढ़ी की टेढ़ी ही रहती है, उसको चाहे कितने ही साल पुंगड़ी में डालकर रखो। जब भी उसे निकालोगे, टेढ़ी की टेढ़ी ही निकलेगी। तो, कुछ बेईमान भ्रष्ट ऐसे हैं, जो कभी नहीं सुधरेंगे। उनके लिए दण्ड का ही एक रास्ता रहता है कि उनके धरातल को खिसका दो। उसी से उनकी मृत्यु हो जानी है। हर काल में ऐसा हुआ है, अन्यथा माता भगवती को महिषमर्दिनी के रूप में न जाना जाता। हमारे किन्हीं देवी-देवताओं को अपने हाथों में अस्त्र-शस्त्र न लेना पड़ता। राम को रावण का वध करने की ज़रूरत नहीं पड़ती, कृष्ण को कंस का वध करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। तो, कुछ अधर्मी-अन्यायी दण्ड के भागीदार होते हैं। मगर, हमें किसी का वध नहीं करना है।

 भ्रष्टाचारियों की जान कहाँ बसती है? धन पर, उस कुर्सी पर, तो हमें उनके इसी धरातल को खिसका देना है। वे जातीयता का बीज बो रहे हैं, साम्प्रदायिकता का जहर बो रहे हैं। हमें अपने आध्यात्मिक बल से, अपने साधनात्मक बल से उस ज़हर को पी लेना है। समाज के बीच उनके द्वारा फैलाये हुये ज़हर को निकालना है। समाज के लोगों को जाति-धर्म-सम्प्रदाय के धरातल से ऊपर ला करके खड़ा करना है कि तुम किस जाति के हो, किस धर्म के हो? इस जन्म में तुम किसी जाति के हो, मगर अगला जन्म तुम किसी अन्य जाति में जा करके ले लोगे। तो, जाति के लिये क्यों लड़ रहे हो? जातीयता के लिये क्यों संगठित हो रहे हो? अपने लिये खाई मत खोदो। मैं भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं को हर पल चिन्तन देता हूँ कि जो छोटी-मोटी कमियाँ आपके अन्दर हैं, उन्हें निकाल फेंको और एक बार संकल्पित हो जाओ। यहाँ की जो तीन धारायें प्रवाहित हैं-भगवती मानव कल्याण संगठन, पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम, भारतीय शक्ति चेतना पार्टी, इन तीनों पर अपने जीवन को, अपनी पूरी ऊर्जा को लगा करके, अनीति-अन्याय-अधर्म को समाप्त करके समाज को सुख, शान्ति और समृद्धिमय बनाना है। इस हेतु जहाँ मुझे एक लाख ग्यारह हज़ार शिष्यों की, चेतनाअंशों की तलाश है, वहीं शेष सभी मेरे शिष्य कार्य कर रहे हैं। पूरे समाज के लिये मेरी साधनायें समभाव से चलती रहती हैं।

‘माँ’ के चरणों में मेरी जो प्रार्थना, साधना चल रही है, वह अपनी गति से चल रही है। मगर, जिस तरह मैंने आप लोगों को रक्षाकवच धारण कराया है, इस शंखनाद में मैंने आप लोगों को शंख धारण कराया है और आज के बाद से आप लोग जब अपने घरों में जायेंगे, तो एक-एक समझावनदेव भी धारण करेंगे। एक हाथ में शंख, तो दूसरे हाथ में दण्ड। यह आपका स्वरूप है। माथे पर कुंकुम का तिलक, गले में रक्षाकवच, रक्षारुमाल, शंख और दण्ड, यह मेरे धर्मयोद्धाओं का सहजस्वरूप है। यहाँ से जाने के बाद इस स्वरूप में आप लोग अपने आपको सुसज्जित करोगे। जहाँ ज़रूरत पड़े, अपने पूरे स्वरूप से जाओ। जहाँ जितने स्वरूप की ज़रूरत पड़े, वहाँ उतने स्वरूप का उपयोग करो। चैतन्यता का जीवन जियो, किसी से भयभीत नहीं होना है और हमें कानून का सम्मान करना है।

नित्य अपने साधनात्मक क्रम में जब बैठो, तो सब कुछ भुला दो। केवल आपका गुरु और आपकी ‘माँ’ आपके समक्ष होनी चाहिएं। हर पल जब हम ध्यान-साधना में बैठें, तो मन को बिल्कुल शान्ति में ले जायें और जब कर्मसाधना में हों, तो हम इसीलिये तो ‘माँ’ से ऊर्जा माँगते हैं, इसीलिये तो ‘माँ’ से चैतन्यता माँगते हैं और उस चैतन्यता का भरपूर उपयोग करो। चाहे कहीं चालीसा पाठ कराने में हो, चाहे कहीं नशामुक्ति अभियान में हो, चाहे कहीं अनीति-अन्याय-अधर्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने में हो, उसके लिये सशक्त रूप से खड़े हो जाओ। समस्त जाति-धर्म-सम्प्रदाय की धर्मप्रेमी जनता से, महिलाओं और पुरुषों से, बच्चे और बच्चियों से मैं हर पल आवाहन करता हूँ कि यह जीवन जो आपको मिला है, उसे इस धर्मयुद्ध में झोंक दो। विजय तुम्हारी होगी, तुम्हें सम्मान मिलेगा। तुम समाज के बीच रह करके कार्य करना चाहते हो, तो समाज के बीच रह करके कार्य करो, जीवनदानी शिष्य-शिष्याओं के रूप में सिद्धाश्रम में रह करके कार्य करना चाहते हो, तो सिद्धाश्रम में रह करके कार्य कर सकते हो। जिसके अन्दर जितनी सामथ्र्य हो और जितने कदम उस धर्मपथ पर आगे बढ़ सके, सभी का खुले मंच से आवाहन है। आगे आओ और समाजकल्याण के कार्यों में, अनीति-अन्याय-अधर्म की समाप्ति के लिये इस महाशंखनाद को सार्थक करो।

यह शंखनाद नींव है। इस शंखनाद का महत्त्व दूसरा कोई शंखनाद नहीं ले सकेगा। मगर आने वाले समय में भगवती मानव कल्याण संगठन हर नींव को इस रूप से रखता चला जायेगा कि जिस तरह जनजागरण का प्रवाह चल रहा है, आध्यात्मिकता का प्रवाह चल रहा है, ‘माँ’ के गुणगान का प्रवाह चल रहा है, यह गुणगान दिन-दूना, रात-चौगुना गति से बढ़ता चला जायेगा। साधक अपने अन्दर जो आचार, विचार, व्यवहार में परिवर्तन ला रहे हैं, वही परिवर्तन समाज में आता चला जायेगा। उसी तरह जो यह शंखनाद किया गया है, आप ‘माँ’ और ‘ॐ’ की ध्वनि करते हैं, नित्यप्रति उस ऊर्जा के माध्यम से समाज के अनीति-अन्याय-अधर्म को हम समाप्त कर रहे हैं। उसी तरह शंखनाद की यह ध्वनि गूँजती ही रहेगी, इस तरह के शंखनाद लाखों-लाखों लोगों की उपस्थिति में अनेकों स्थानों पर, आगे आने वाले समय में होते रहेंगे, मगर उन सबका माध्यम भगवती मानव कल्याण संगठन रहेगा।

शंखनाद की यह जो नींव डाली गयी है, आगे से हर जगह शुभ कार्यों में, नित्य अपने पूजन में, सामूहिक कार्यक्रमों में इस शंखनाद को और गति देते चले जाओ। आपके घर में जितने बच्चे हैं, उनके लिये एक-एक शंख की व्यवस्था करो। समय के साथ कि आज एक शंख है, तो एक शंख का उपयोग करो और परिवार में जितने सदस्य हैं, आने वाले समय में साल भर में, छ: महीने में, दो साल में, जब भी आपके पास व्यवस्था हो जाये, तो परिवार के हर सदस्य के नाम पर एक शंख रखो। नित्य शंखध्वनि करो, शंखध्वनि से वातावरण निर्मल और पवित्र होजाता है। आपका अन्त:करण निर्मल हो जायेगा, बाहरी वातावरण पवित्र हो जायेगा। आपके घर-परिवार में जो ग्रहदोष हैं, उसके लिये केवल ‘माँ’ का ध्वज लगा दो और अगर घर में ‘माँ’ की साधना-आराधना कर रहे हो, तो सभी प्रकार के ग्रहदोष स्वत: दूर होजाते हैं। जिस घर में शंखनाद हो रहा हो, जिस घर में ‘माँ’ की आरती हो रही हो, उसे ग्रहदोष दूर करने के लिये और किन्हीं दूसरे उपायों को करने की ज़रूरत नहीं और ऐसा जीवन जीने वाले धर्मयोद्धा हर काल में मुक्त रहेंगे।

समाज में लोग कहते हैं कि किसी घर में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गई है, तो वह उसको दिखाई दे रहा है या उसको परेशान कर रहा है, मगर मेरा कोई धर्मयोद्धा जो मेरे बताये हुये मार्ग पर चल रहा है, उसे कभी एक दिन के लिये भी प्रेतयोनि में नहीं जाना पड़ेगा। सत्य की यात्रा पर चलो, अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध आवाज़ उठाओ और संगठित विचारधारा का जीवन जियो। समाज में जितना अनीति-अन्याय-अधर्म फैला है, अगर उसको देखने लग जाओ, तो खाने का एक कौर भी शरीर के अन्दर नहीं जाता। इसलिये मैंने कहा है कि जब भोजन करो, तो मुझे भोग लगाओ या न लगाओ, ‘माँ’ को भोग लगाओ या न लगाओ, मगर जब भोजन का पहला टुकड़ा अन्दर जाये, तो एक बार समाज के उन गरीबों को ज़रूर स्मरण कर लिया करो, जो एक समय का भोजन नहीं कर पाते, अपने बच्चों को भोजन नहीं करा पाते। उनको सोचना पड़ता है कि सुबह का भोजन बन गया, मगर शाम का भोजन हम क्या बनायेंगे? इस तरह का करोड़ों-करोड़ों समाज हमारी इसी भारतभूमि में है और इस तरह हर देश का यही हाल है। जब नित्य सोचोगे, तो उनके प्रति कर्तव्य भी तुम्हारे अन्दर से जाग्रत् होने लगेगा। यह भी समाजसेवा के लिये एक साधना है। मैं भी वैसा ही जीवन जीता हूँ। मैं ‘माँ’ की आराधना करता हूँ, मगर जब मैं भोजन करता हूँ, तो उसी समाज का सबसे पहले स्मरण करता हूँ।

समाज के लिये अगर मैंने अपना जीवन समर्पित किया है, तो हर पल उनका एहसास मुझे बना रहे कि समाज के लिये मुझे क्या करना है? इसीलिये जब मैं साधनाओं में बैठता हूँ, तो तृप्ति से बैठता हूँ, आनन्द से बैठता हूँ, तो लगता है कि समाज के लिये अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दूँ। इसीलिये जब मैं अपने लिये साधना करता था, तो उसी लगन से करता था। आज समाज के लिये करता हूँ, तो उसी दृढ़ता के साथ करता हूँ। आपसे भी चाहता हूँ कि नित्य प्रात: सूर्योदय से पहले जगें। सूर्योदय के समय कभी सोयें नहीं। अपनी साधनात्मक क्षमता को बढ़ाओ, साधनात्मक ऊर्जा को बढ़ाओ। तपबल को दुनिया की कोई ताकत नष्ट नहीं कर सकती। अच्छे कार्य करो और बुरे कार्यों से अपने आपको दूर रखो। अगर कोई गलती हो जाये, तो प्रायश्चित करो कि आज तो हमसे यह गलती हो गयी है, मगर दुबारा भविष्य में हम ऐसी गलती नहीं करेंगे। आपका जीवन संवरता चला जायेगा।

अपने बच्चों को संस्कारवान् बनाओ। बचपन से उन्हें सही दिशा दो। तुम संस्कारवान् बनोगे, तो तुम्हारे बच्चे भी संस्कारवान् बनेंगे। लुटेरे होने की मानसिकता अपने दिमाग से निकालो, नहीं तो अपने बच्चों को भी वैसे ही संस्कार दोगे। बच्चों को बेईमानी के मार्ग पर मत बढ़ाओ, अन्यथा वे कुसंस्कारी बनेंगे, जैसा कि वर्तमान में हो रहा है। बेईमानी और भ्रष्टाचार करके घर में पैसा इकट्ठा कर रहे हैं और उन्हीं बेईमानों के भ्रष्ट लड़के आज एक-एक पार्टी में करोड़ों-करोड़ों रुपये लुटाते हैं। कहीं कोई जेल जाता है, कहीं कोई ऐय्यासी करते पकड़ा जाता है। रोज न्यूज़ में देखो। कहीं इतनी बार बालायें पकड़ी गयीं, कहीं आज इतने गैंग पकड़े गये। ये सब समाज में हो रहा है। आपका पैसा लूटते हैं और ऐय्यासी करते हैं। अभी आपने देखा कि क्रिकेट जैसा खेल, जो कितना पवित्र माना जाता था और देश की अधिकांश जनता अन्य सभी खेलों की अपेक्षा इस खेल को सबसे अधिक प्रिय समझती थी। मगर ट्वेन्टी-ट्वेन्टी का खेल बेईमानों के हाथों में गया, धनकुबेरों के हाथों में गया और चियरलीडर्स आ गयीं। यह तो भला मानो कि भारत के कुछ लोगों से उनको खौफ आ गया, नहीं तो उनको बिल्कुल न्यूड करा करके नृत्य कराते कि लोग देखें कि चौका लगा या छक्का लगा! उनको इससे मतलब नहीं है कि देश जीत रहा है या नहीं! चौका लगा तो चौका बाउण्ड्री तक गया कि नहीं, बस निगाह जाती है तो इस पर कि चियरलीडर्स क्या कर रही हैं?

वासना, अरे इसे निकाल फेंको। वासना से ऊपर उठकर साधना के पथ पर बढ़ो। ऐसे लोगों को सम्मान की दृष्टि से मत देखो, बल्कि हेयदृष्टि से देखो, जो इस अधर्म के मार्ग में लगे हैं, जो इस मार्ग में सहयोग कर रहे हैं। ऐसे लोगों को हेयदृष्टि से देखो। इनका पतन सुनिश्चित है। ये अधर्मी-अन्यायी इसी प्रकार आपस में टकरा-टकरा करके मरते रहेंगे और अगर नहीं मरेंगे, तो फिर भगवती मानव कल्याण संगठन जिन्दाबाद, वह अपना कार्य करेगा ही। चूँकि इनकी शक्ति कहाँ छिपी है, इनकी जान कहाँ छिपी है? उस जान को मरोड़ना भगवती मानव कल्याण संगठन जानता है। अत: उस दिशा में दृढ़ता, विश्वास ले करके निष्ठा के साथ कार्य करना है। हमें इन्तजार नहीं करना है कि दूसरा कोई आयेगा और यह सब बदलेगा। यह सब हमें बदलना है और हम इस युग को बदलेंगे। हम इस अनीति-अन्याय-अधर्म को समाप्त करके रहेंगे। अगर हमने अपने आपको बदला है, हम अपने आपको बदलने में सामथ्र्यवान् हैं, तो हम दूसरे को भी बदलने में सामथ्र्यवान् हैं।

 आज छोटे-छोटे बच्चों में जो प्रवाह दिख रहा है, जिस तन्मयता से वे आते हैं, वे भाव मेरे प्रति बड़े-बड़े नहीं रख पाते, जो भाव उनके अन्दर दिखता है। ज़रा दस-पाँच साल का और इन्तज़ार करो। जो नई पीढ़ी आ रही है, जो मेरा स्पर्श पा रही है, जिस समय वह अपनी युवावस्था में उभर करके आयेगी, उसके प्रवाह को कोई रोक नहीं पायेगा। चूँकि वे वासनात्मक पथ पर नहीं, बल्कि साधनात्मक पथ पर होंगे।

हमारी तीनों धारायें केवल समाजहित के लिये हैं। न धर्माधिकारी बन करके हम कोई सुख भोगना चाहते हैं, न कोई राजनेता बन करके सुख भोगना चाहते हैं और न समाजसेवक बन करके कोई सुख भोगना चाहते हैं। मेरे द्वारा पहले भी कहा जा चुका है कि मुझे कभी भी कोई राजनीतिक चुनाव नहीं लडऩा है, मगर मैं अपने शिष्यों को उस दिशा में बढ़ाऊँगा अवश्य। उन अधर्मियों-अन्यायियों से मैं सत्ता अवश्य छीन लूँगा। या तो वे सुधर जायेंगे, या तो उन्हें सुधार दिया जायेगा। लुटेरों को हम बर्दाश्त नहीं कर सकते। वे देशद्रोही हैं, जो अपने ही देश की सम्पदा को लूट रहे हैं। जो धर्म के ठेकेदार बन करके बड़े-बड़े मठों में बैठते हैं और अरबों-खरबों की सम्पत्ति उनकी तिजोरियों में भरी हुयी है, जबकि वहीं एक बहुत बड़ा समाज भूखों मर रहा है। देश को कानून बनाने के लिये बाध्य कर दिया जायेगा कि ऐसी तिजोरियों के ताले तोड़वा करके वह पैसा जनकल्याणकारी कार्यों में लगाया जाए।

हमें वक्त लगेगा और चाहे जितना समय लगे, मगर हम जिस लक्ष्य को लेकर चल रहे हैं, वह पूरा होकर रहेगा। यदि हमारी नींव मज़बूत है, तो उसमें चाहे जितना बड़ा महल खड़ा किया जाये, हमारी नींव डगमगायेगी नहीं। चूँकि नींव के पत्थर हम स्वयं बन रहे हैं। हम महल का सुख नहीं भोगना चाहते। हम नींव का पत्थर बन रहे हैं और नींव का पत्थर बन करके ही अपना पूरा जीवन गुज़ारेंगे। आने वाली पीढिय़ां हमारे ऊपर चाहे जितना बड़ा महल खड़ा करना चाहें, खड़ा करती रहें, हम कभी डिगेंगे नहीं, कभी थकेंगे नहीं, कभी रुकेंगे नहीं, कभी टूटेंगे नहीं, कभी बिखरेंगे नहीं। इसलिये मैंने अपने पूरे जीवन का संकल्प लिया है कि जब तक इस लक्ष्य की पूर्ति नहीं होगी, तब तक सदा-सदा के लिये मेरी ऊर्जा इस आश्रम में कार्य करेगी। उसी दिशा और उसी विचारधारा को ले करके हम प्रकृतिसत्ता की आराधना करते हैं। प्रकृतिसत्ता ने आपको जो सामथ्र्य दी है, जब उस सामथ्र्य का उपयोग नहीं करोगे, तो प्रकृतिसत्ता से तुम्हें और कुछ माँगने का अधिकार भी नहीं है। चूँकि प्रकृतिसत्ता ने जो तुम्हें दे रखा है, उसका तुम उपयोग नहीं कर पा रहे हो, उसको अनीति-अन्याय-अधर्म में लगा रहे हो।

प्रकृतिसत्ता के द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करना सीखो और फिर देखो, दुनिया का पूरा वैभव तुम्हारे आस-पास नाचता नज़र आयेगा। आपका गुरु भी वैसा ही जीवन जीता है। अपने साधनात्मक क्रम से भी जहाँ मैंने विश्वअध्यात्मजगत् को अपने तपबल की चुनौती दी है, तो गर्व और अहंकार से नहीं, ‘माँ’ की शक्ति की कृपा को ले करके दी है और समाजसेवा के कार्य में भी अगर संगठन बढ़ रहा है, तो इसके पीछे त्याग, तपस्या, मेरे कार्यकर्ताओं का सेवाकार्य और दिन-रात की एक भावना छिपी हुई है। उसी तरह पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में मेरी साधनायें, ‘माँ’ की कृपा, ‘माँ’ के दुर्गाचालीसा का अखण्ड अनुष्ठान, यह सब सामान्य यात्रा नहीं है। इस यात्रा को समाज अभी नहीं समझ पायेगा। समझना है तो उन भविष्यवक्ताओं की पुस्तकों को तलाशो, जिन भविष्यवक्ताओं की पुस्तकों को आज अनेकों अधर्मी, अन्यायी अपने नाम से उपयोग कर रहे हैं और यदि उसमें गहराई से शोध करोगे, तो उसमें लिखी हुयी एक-एक बात इस भगवती मानव कल्याण संगठन पर सार्थक होगी। उनमें दिया हुआ है कि मेरा जन्म कब और कहाँ होना है? मेरा नाम क्या होगा? मेरे हाथों में क्या योग पड़े हुये होंगे? उन सबको तलाशो, यदि पुरानी सभी पुस्तकों को तलाश सको।

यह यात्रा व्यवस्थित है। समाज के लाखों-लाख लोग लाभान्वित हो रहे हैं। आज करोड़ों लोग एक विचारधारा से जुड़े हुये हैं। इतने कम से कम समय में लाखों सक्रिय जीवनदानी कार्यकर्ता इस प्रवाह से जुड़े हुए हैं, और संगठित हो करके तो यह प्रवाह दिन-दूना रात चौगुना गति से बढ़ता चला जायेगा। हमें किसी भी पल केवल अपनी शान्ति को नष्ट नहीं होने देना है। न शान्ति नष्ट हो और न हमारी शक्ति नष्ट हो। हमें अपनी शान्ति और शक्ति को अपने आत्मकल्याण व जनकल्याण में उपयोग करना है तथा अनीति-अन्याय-अधर्म की समाप्ति में उपयोग करना है। समाज को पूरी तरह से नशे-माँस से मुक्त कराना है।

जगह-जगह जीवों की हत्या हो रही है। गौ-हत्या हो रही है। गौ-हत्या के नाम पर बड़े-बड़े भाषण दिये जाते हैं, मगर वही बेईमान-अधर्मी-अन्यायी सत्ता पर बैठे हुये हैं। गौ-हत्या के लिये वही बार-बार बात करते हैं, मगर कानून बनाकर उसको अमल में नहीं ला सकते। किस दर्दनाक तरीके से गायों को मार-मार करके लोग माँस खा रहे हैं। कुसिर्यों पर जितने बेईमान बैठे हैं, उनमें नब्बे प्रतिशत खुद माँसाहारी हैं। अधिकांश लोगों को मैं जानता हूँ कि चाहे किसी प्रकार का माँस आ जाये, वे देखते नहीं हैं, बस माँस सामने आ जाये, तो उसे खाना शुरू कर देते हैं। हमें आवाज़ उठानी है। हमें केवल गौ-रक्षा ही नहीं करना, बल्कि सभी जीवों की रक्षा करना है, जिनको ये बेईमान अपना भोज्य बनाकर उनकी हत्या कर रहे हैं। मानव का भोजन माँस नहीं है। मानव को केवल शाकाहारी होना चाहिये। यदि वह माँसाहारी हो जायेगा, तो सत्य के विरुद्ध कार्य करेगा। कोई काल परिस्थितियाँ थीं, मजबूरी थी, मगर आज लोगों के पास सभी प्रकार की धन-सम्पदाएं व व्यवस्थाएं हैं। सब शाकाहारी भोजन कर सकते हैं, मगर फिर भी उनका माँस खाना बन्द नहीं हुआ। अत: समाज को नशे-माँस से मुक्त करना है।

जातीयता से समाज को ऊपर उठाना है। केवल निन्यान्यवे के चक्कर में मत उलझ जाओ। अपने धन का सदुपयोग करो। कब किसके साथ कुछ होजाये, यह किसी को ज्ञात नहीं? अत: एक-एक दिन का उपयोग करो, अपने धन का भी उपयोग करो, अपने बल का भी उपयोग करो। अपने आपको संवारो, अपने बच्चों को सही दिशा दो और समाज को भी सुधारो। मित्र और शत्रु में फर्क करना सीखो। सत्य और असत्य की आवाज़ को समझना सीखो। अपने आप आपके पग सत्य की ओर बढ़ते चले जायेंगे। आज अनेकों बच्चों में एक जो परिवर्तन आता चला जा रहा है, सुधार आ रहा है, एक नमनभाव है और जो छोटे-छोटे बच्चे बचपन से ‘माँ’ की आराधना कर रहे हैं, तो यह ऊर्जा बेकार नहीं जायेगी। 

 किसान परिवार में मेरा जन्म हुआ है। बचपन से मैंने अपने पिता के साथ कृषिकार्यों में अपना सहयोग दिया है। ग्रामीण जीवन किस प्रकार का होता है, संघर्ष किस प्रकार का होता है, वहाँ की मिट्टी में सोने का आनन्द किस प्रकार का होता है, थकावट क्या होती है, परिश्रम क्या होता है? इन सबका अनुभव हर पल मेरे मनमस्तिष्क में है। चूँकि मैंने उनको भोगा है। अत: यही अगर देख सकें और जिन्हें देखना है, तो मेरे शिष्यों के चेहरों को देखा करें कि एक अलग प्रसन्नता होगी, एक अलग चैतन्यता होगी। अगर अपने परिवेश में हज़ारों के बीच खड़े होंगे, तो भी वे अलग नज़र आयेंगे। विज्ञान परीक्षण करा सके, तो उन धनकुबेरों के आभामण्डल का परीक्षण करा करके देखे और मेरे चेतनावान् शिष्यों का परीक्षण करा करके देखे कि इनकी चेतनातरंगों में अलग प्रवाह होगा। मेरे शिष्यों का आभामण्डल बड़ा होगा, व्यापक होगा और सात्विकतरंगों से परिपूर्ण होगा।

यह सत्यधर्म की यात्रा है। यह किसी एक व्यक्ति विशेष की यात्रा नहीं है। यह यात्रा माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा की कृपा से चल रही है। अत: हर पल हमें इस विचारधारा से आगे बढ़ते रहना है कि हमें अपने आपको सुधारना है और समाज को भी सुधारना है। उसके लिये अपने बच्चों को संस्कारवान् बनाओ। नींव वहीं से पड़ती है। मूल इष्ट माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा हैं, जिन्हें देवाधिदेव भी ‘माँ’ कह करके पुकारते हैं। माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा को अपने इष्ट के रूप में हर पल एहसास करो, स्वीकार करो और उनके चरणों में नतमस्तक होना सीखो, साथ ही अपने बच्चों को भी नतमस्तक होना सिखाओ। केवल स्वार्थ के लिये नहीं, केवल प्रलोभनों के लिये नहीं, केवल समस्याओं के समाधान के लिये नहीं। वह हमारी आत्मा की जननी हैं। उनसे हमें सदैव रिश्ता जोड़ना है। जब सच्चा रिश्ता जुड़ जायेगा, तो आपके अन्दर एक अलग सामथ्र्य आ जायेगी।

हमें ऐसी जगहों को तलाश-तलाश करके कार्य करना है, जहाँ कोई न जाता हो, कोई सहयोग न देता हो। जहाँ सबसे ज्यादा लोग भटकाव के मार्ग में हों, नशे-माँस में भटके हुये हों, विषय-विकारों में भटके हुये हों, वहाँ जा-जा करके उनको सुधारना है। अधिकांश को तो हम केवल अपने साधनात्मक क्रमों से ही जीत लेंगे और जो थोड़ी बहुत बुराई बचेगी, उसके लिये हमारा दण्ड पर्याप्त है। अत: हमें अपने आपको संगठित करना है। अब हम और प्रतीक्षा किसी दूसरे की नहीं करेंगे कि कोई दूसरा आयेगा, कोई बहुत बड़ी शक्ति आ जायेगी, संगठन इतना बड़ा खड़ा हो जायेगा, तब हम इसका विरोध करेंगे। धीरे-धीरे उन अधर्मियों-अन्यायियों की सभी जानकारी इकट्ठा करो कि तुम्हारे आस-पास कौन ऐसा है जो भ्रष्टाचार कर रहा हो, चोरी करता हो, अपराधिक प्रवृत्ति में लिप्त हो, अवैध असलहे बेंचता या बनाता हो, नशे का व्यापार करता हो, आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त हो? इसमें शासन-प्रशासन तुम्हारी मदद नहीं करेगा। तुम खोजी प्रवृत्ति रखो और उन्हें खींच करके कानून के दायरे में लाओ, पकड़ाओ। उनके विरुद्ध कार्यवाही करने के लिये शासन बाध्य हो जायेगा। 

आप लोगों ने समाज में जो अभियान उठाया है, उसमें शासन कार्यवाही के लिए बाध्य होजाता है। वही थाना प्रभारी, वही एस.पी., नशे का अवैध व्यापार करने वालों से कमीशन खाते हैं, मगर फिर भी उनको जेल के अन्दर भेजने के लिये बाध्य हो जाते हैं, क्योंकि सामने उन्हें संगठन की शक्ति नज़र आती है। और, जो सच्चे व ईमानदार अधिकारी हैं, उनका भरपूर सहयोग संगठन को मिल रहा है। अनेकों ऐसे अधिकारी हैं, जो तत्काल कहते हैं कि संगठन बहुत अच्छा कार्य कर रहा है और जहाँ ज़रूरत पड़े हमें फोन करो, हम तत्काल सहयोग करेंगे।

दमोह के ही पहले एक एस.पी. थे, जिन्होंने संगठन के कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ नाज़ायज़ व फर्जी मुकदमें दायर करना शुरू कर दिया था। संगठन के कार्यकर्ताओं को बुलाकर धमकाया कि शराबमाफियाओं के विरुद्ध तुम आवाज़ उठाओगे, तो हम आप लोगों को इस तरह के मुकदमें लगवा करके जेल के अन्दर भेज देंगे। यह एक एस.पी. की धमकी थी! मगर, ‘माँ’ की कृपा से वह कुछ समय में ही वहाँ से हट करके चले गये और दूसरे एस.पी. ऐसे आये, जिन्होंने कहा कि समाजसेवा का ऐसा कार्य करने में कहीं बाधा आ रही हो, किसी थाने में आपका कार्य न किया जा रहा हो, आपके एक फोन पर कार्य न हो, तो आप मुझको फोन करो। ऐसे होते हैं सच्चे प्रशासनिक अधिकारी और जिनके अन्दर सत्य है, वे तुम्हारे सहयोगी सहजभाव से बन जायेंगे। ऐसा नहीं है कि वह मुझसे कहीं जुड़े हों या मुझसे कहीं मुलाकात हुयी हो, मगर जब सत्य की ऊर्जा को ले करके आप चलोगे, तो समाज सत्य से परे नहीं है।

अनेकों प्रशासनिक अधिकारी हैं, जो सत्यपथ पर चलना चाहते हैं, मगर बेईमानों की वजह से नहीं चल पाते। वह सही करना चाहते हैं, मगर कर नहीं पा रहे हैं। कुछ अधिकारी आज भी ऐसे हैं, जो कहते हैं कि नौकरी रहे या चली जाये, मगर हमें वही करना है जो सही है। तो, उस तरह के लोगों का भी आपको सहयोग मिलेगा। निर्भीकता से नशामुक्ति के इस महाअभियान में अपनी पूरी क्षमता लगा दो। पहले संकल्प करो कि हम अपने सामने नशे का अवैध व्यवसाय नहीं चलने देंगे, उसमें अपनी पूरी क्षमता लगा दो और उसके बाद जो ज़ायज़ नशे के व्यवसाय चल रहे हैं, इसके लिये भी हम संगठित हो करके कार्य करेंगे और उसे भी बन्द करने के लिए शासन को बाध्य कर देंगे।

अगर शासन देश को शराबी बनाना चाहता है, नशेड़ी बनाना चाहता है, तो यह देशप्रेम नहीं देशद्रोह है। हम ऐसा देशद्रोह अपने हिन्दुस्तान में नहीं होने देंगे कि जगह-जगह नशे की दुकानें लगाई जायें और हमारे बच्चों को नशेड़ी बनाया जाये। हमारा देश सामथ्र्यवान है। अरे बेईमानों, इस देश को लूटना बन्द कर दो।

एक-एक जि़ले से साठ-साठ, सत्तर-सत्तर करोड़ का शराब का ठेका हो रहा है। इसके विरुद्ध हमें अपनी आध्यात्मिक शक्ति के बल को ले करके, अपने जनबल को ले करके और अपने संगठन के बल को ले करके मुखर आवाज़ उठानी होगी। मगर, हर पल ‘माँ’ की कृपा का एहसास करते हुये। एक दिन सफलता तुम्हारे कदमों को चूमेगी। इस विजयादशमी पर्व पर भी मैं पुन: कह रहा हूँ कि एक दिन वह आयेगा कि जिस दिन किसी साधिका या साधक के द्वारा ही लाल किले पर राष्ट्रध्वज फहराया जायेगा। तब बनेंगे वे कानून, जो देश को सुख और शान्ति दे सकेंगे। अनीति-अन्याय-अधर्म तभी समाप्त होगा।

हमें तीन धाराओं के माध्यम से कार्य करना है। संकल्पित हो करके जाओ, एक विचारधारा को ले करके जाओ कि हमारे जीवन का समय नष्ट न होने पाये। प्रकृतिसत्ता ने जो शक्ति और सामथ्र्य दी है, उस सामथ्र्य का हमें भरपूर उपयोग करना है। यही हमारे सत्कर्म हैं और हमारे सत्कर्मों के फल को दुनिया की कोई ताकत नष्ट नहीं कर सकती। धर्मपथ पर चलो और जिस दिन से धर्मपथ पर चलने लगोगे, ‘माँ’ की कृपा चारों ओर बरसती हुयी नज़र आयेगी। जिस दिशा में बढ़ जाओगे, उस दिशा में तुम्हें सफलता मिलती चली जायेगी। अत: निष्ठा और विश्वास से उस दिशा में बढ़ो, मगर कभी आध्यात्मिकता से विमुख मत होना, अपने धर्म और सत्य से कभी विमुख मत होना।

‘माँ’ के चरणों में जब बैठो, तो एकदम शिशु बन जाओ। अबोध शिशु बन करके ‘माँ’ की आराधना करो। जिस प्रकार एक अबोध शिशु अपनी माँ से प्रेम करता है, माँ की गोदी से दूर नहीं होना चाहता है, वैसे भाव ले करके साधना में बैठा करो, तो न तुम्हें नींद आयेगी न आलस्य आयेगा, बल्कि चैतन्यता आयेगी। अत: उस दिशा में बढ़ो। बच्चों में दिन-प्रतिदिन सामथ्र्य आ रही है, मगर मानसिक रूप से जो समाज कमजोर होता जा रहा है, हमें उनके अन्दर कहीं न कहीं आध्यात्मिक संस्कार भर करके उस सामथ्र्य को बचाना है, अन्यथा समाज धीरे-धीरे खोखला होता जायेगा।

धर्म और सत्य खुली आँखों से नहीं दिखाई देता। कुत्सित और विकृत मानसिकता के लोगों को यहाँ कंकड़ और पत्थर नज़र आते हैं! अत: अपनी भावनाओं को सही दिशा दो। उन्हें भी कहता हूँ कि इस तरह के वातावरण को देखो, यहाँ यह जो स्वर्ग सा नज़ारा है, यहाँ जो पहले यह अंधियारी थी और लोग दिन में भी आने में ख़्ाौफ खाते थे, चारों तरफ  झाड़-झंखाड़ थे, बड़े-बड़े नाले थे, यहाँ की ऊर्जा से आज यह उजियारी के रूप में परिवर्तित है, एक शक्तिस्थल के रूप में परिवर्तित है, धर्मकेन्द्र के रूप में परिवर्तित है। अब तक करोड़ों लोग इस स्थान पर आ करके नमन करके ‘माँ’ की आराधना तथा भक्ति के मार्ग पर बढ़ रहे हैं और कितने ऐसे स्थान होंगे जो कि इतने कम से कम समय में चैतन्य स्थली बन गये होंगे, जबकि यहाँ अभी किसी भी मन्दिर की स्थायी स्थापना नहीं की गयी? सब कुछ अस्थायी है और इस शंखनाद के बाद ही आगे के स्थायी निर्माणों को होना है। उसके बावजूद समाज में इतना बड़ा परिवर्तन हो रहा है। भूतल पर कोई बतला दे कि ऐसा कोई संगठन हो, ऐसा कोई स्थान हो, जहाँ पर किसी मूल की स्थापना न की गयी हो और करोड़ों-करोड़ों लोग इतनी ऊर्जा, इतना समर्पण, इतनी चैतन्यता लिये तथा अपना सर्वस्व न्यौछावर करने का भाव रखने वाला इस तरह का समूह कहीं नज़र आया हो? अनेकों लोगों की पीढिय़ाँ दर पीढिय़ाँ गुजर गयीं, मगर यह वातावरण नहीं मिलेगा और यह वातावरण अपने आप प्रगति करता चला जायेगा।

सत्य अगर है, तो सत्य को किसी दूसरे के माध्यम की ज़रूरत नहीं, दूसरे की वैशाखियों के सहारे चलने की ज़रूरत नहीं। सत्य तो दूसरों को सहारा देता है। हम अपने आत्मबल के साथ चल रहे हैं, अपनी सामथ्र्य के बल पर चल रहे हैं और समाज को सामथ्र्य देने में एक न एक दिन सफल अवश्य होंगे। उस विचारधारा को ले करके चलो। हर तरफ अपने अन्दर चैतन्यता रखो और जो मैंने कहा है कि काया महाठगिनि मैं जानी। माया उतनी बड़ी ठगिनी नहीं है, जितनी बड़ी काया ठगिनी है। जो काया से सजग हो गया, वही सच्चा साधक और साधिका है। इस काया को खुद ठग डालो। यह तो आलस्य चाहेगी ही, वह तो विकारी है ही। इसे आलस्य, अकर्मण्यता से दूर रखो। इसे जितना थका सको, जितना चूर कर सको, उतना इसको थकाओ। इसे भोजन दो, स्वस्थ करो और स्वस्थ करके अगर ताकत आये, तो उसका भरपूर उपयोग करो। एक न एक दिन ऐसा आयेगा कि आपकी काया भी आपकी गुलाम बन जायेगी, आपके विचारों की, आपके मस्तिष्क की गुलाम बन जायेगी। आप चाहे जितनी थकावट के बाद रात्रि में लेटोगे और अगर इसे निर्देश दोगे कि मुझे प्रात: 04 बजे जगना है, प्रात: 03 बजे जगना है, तो आपकी चेतना आपको उसी समय जगा देगी। इस शरीर को अपनी चेतना के वशीभूत करो।

आलसियों की तरह सूर्योदय तक पड़े मत रहो। आज वही सब समाज उसी राक्षसीप्रवृत्ति की ओर जा रहा है। सुबह ग्यारह-ग्यारह, बारह-बारह बजे तक चद्दर तानकर सोते हैं और रात को एक-एक बजे, दो-दो बजे तक पार्टियाँ चलती रहती हैं। अगर रात को जगो, तो केवल धार्मिक कार्यों के लिये। रात को चाहे जितने समय तक जगो, मगर सुबह ब्रह्ममुहूर्त में सूर्योदय से पहले ज़रूर जगो। आपका गुरु भी वैसा ही जीवन जीता है और वैसा ही मैं अपनी बच्चियों को भी जीवन जिला रहा हूँं। अगर मैं कहता हूँ, तो अपनी बच्चियों को भी वैसा ही जीवन जिलाता हूँ और मुझे पूजा, संध्या, ज्योति को जिन-जिन क्षेत्रों में बढ़ाना है, चूँकि तीनों को एक-दूसरे की सहायता करते हुये आगे बढ़ना है, वैसे ही मैंने इनके अन्दर संस्कार भरे हैं, सामथ्र्य भरी है। अगर कलिकाल में यह भी देखना है, तो लोग नज़दीक आ करके देखें, समझें कि जिनको जिस दिशा में बढ़ाना है, वैसा ही इनके अन्दर का कम्प्यूटर कार्य कर रहा है, वैसी ही इनके अन्दर सामथ्र्य आ रही है। ये तीनों एक-दूसरे की सहयोगी हो करके तीनों धाराओं में कार्य करके, इनका पूरा जीवन मैंने समाज के लिये समर्पित किया है, कि जहाँ मेरा जीवन समर्पित है, मेरी बच्चियों का भी जीवन समाजकल्याण के लिये समर्पित रहे और जो मेरे चेतनाअंश हैं, उनका भी जीवन समाजकल्याण के लिये समर्पित है।

ज्योति छोटी थी, जब मैं आश्रम आया था। मुझे तो बचपन से ही सभी गुरुजी कहकर ही सम्बोधित करते थे। चाहे बच्चे हों, परिजन हों या कोई हों। जब आश्रम आया था, तब कार्य बहुत था।  ज्योति मुझे मज़दूरों के साथ कार्य करता हुआ देखा करती थी, तो जहाँ सही तरीके से चल भी नहीं पाती थी, वहां आकर उनके साथ काम करने लग जाती थी। शिष्य लोग टोक देते थे। मेरे द्वारा भी दो-चार बार टोक दिया गया कि बेटा छोड़ो, तुम यहाँ मत रहो और वहाँ जा करके खेलो। एक दिन अचानक मेरे पास आ करके खड़ी हो गयी। वहां काम चल रहा था। मैंने कहा क्या है बेटा? बोली आप हमको इनके साथ काम करने दो। मैंने कहा कि अगर न करने दूँगा, तो? तो बोली, तो फिर हम आपको पापा कहेंगे। किसी तरह से उसके दिमाग में आ गया होगा, चूँकि ऐसा तो किसी ने सिखाया ही नहीं था। चूँकि मेरा पहला रिश्ता गुरु और शिष्य का है, चाहे मेरी बच्चियाँ हों या और कोई हो। तब मैंने कहा कि तुम्हारा जितना जी चाहे, उतना काम करो। उस दिन से वह उन्हीं मज़दूरों के साथ कई बार काम में लग जाती थी और उन्हीं के साथ कई बार खाना भी खाने लग जाती थी। इसीलिए मैंने कहा कि मैं अपने बच्चों को भी उसी दिशा में बढ़ाता हूँ। मैं स्वत: आज भी मज़दूरों के साथ सात-सात, आठ-आठ घण्टे खड़ा होता हूँ और उसी तरह अपनी साधनाओं को भी गति देता हूँ। अत: कर्मवान् बनो, धर्मवान् बनो।

केवल शंखनाद कर लेने से ही काम पूरा नहीं होगा। शंखनाद के साथ हमारी पूरी संकल्पशक्ति जुड़ी है। दृढ़ इच्छाशक्ति जो छिपी हुई है, उसे क्रियान्वित करना है। एक भी समय हमारा नष्ट न होने पाये। तन्मयता से उस दिशा में लग जाना है। अपने बच्चों को दिशा दो और संस्कारवान् बनाओ। वैसे आजकल बच्चे बड़े चालाक होते हैं, समझदार होते हैं और जब युवावस्था तक आ जाते हैं, तो वे भौतिकतावाद के झंझावातों में उलझ जाते हैं, जिस तरह उनके माता-पिता उलझे हुये हैं, समाज उलझा हुआ है।

कल यहाँ कुछ बच्चे बैठे थे, जो खो गये थे, अपने माता-पिता से बिछुड़ गये थे। कार्यकर्ता थोड़ी-थोड़ी देर में प्रसाद ला करके उन्हें खिला रहे थे। एक बच्ची ने कहा कि आपने हमको चार बार तो प्रसाद खिला दिया, एक बार एनाउन्स भी कर दो, हमारे मम्मी-पापा अपने आप ही आ जायेंगे। दूसरे ने कहा कि मेरे पापा कार्यकर्ता बन करके कार्य कर रहे हैं, मेरी मम्मी भी कार्यकर्ता हैं और वह छोटे भाई को ले करके पाण्डाल चली गयी हैं, अब आप मुझको मैनेज करो! तो बच्चों के पास बड़ी चालाकी, सामथ्र्य और बुद्धि भरी हुई है कि कहाँ पर हमें क्या और कब बोलना है? बस आवश्यकता है उन्हें सही दिशा देने की, उन्हें कर्मवान् बनाने की, उनको संस्कारवान् व परिश्रमी बनाने की, ताकि वे अनीति-अन्याय-अधर्म की ओर न जा सकें, अवगुणों की ओर न जा सकें, विकारों की ओर न जा सकें।

केवल कानून बना देने से कुछ नहीं होगा। बड़े-बड़े कानून बना दो कि चोरी करने वालों को यह सजा दे देंगे, किसी के साथ बलात्कार करने वालों को फाँसी में टाँग देंगे। हज़ारों को फाँसी में टाँग दो, मगर यदि लोगों को पहले से संस्कारवान् नहीं बना सके, तो हज़ार को फाँसी में टाँगोगे, तो दस हज़ार उसी तरह के और आगे बढ़ करके आ जायेंगे। इस अपराधिक प्रवृत्ति के पीछे भी एक जो ऊपर-नीचे की खाई खड़ी हो गयी है कि पढ़ा-लिखा आम समाज, जो बेरोजगार होता है और जब वह दूसरों को देखता है कि देखो किस तरह वे करोड़ों-अरबों की सम्पदा पर खेल रहे हैं, दूसरों को देखते हैं कि लोग किस तरह बड़ी-बड़ी पार्टियाँ अटेण्ड करते हैं, बड़े-बड़े होटलों में जाते हैं, तो उनके अन्दर भी इच्छा उत्पन्न होती है कि चलो गलत रास्ते से हम पैसा कमायें। हम भी उसी तरह के होटलों में जायेंगे, बियर पियेंगे।

जिस तरह की अश्लीलता आज मीडिया में परोसी जा रही है, तो यह सौभाग्य मानें कि जब परिवर्तन आता है, तो बहुत कुछ बदलता चला जाता है। जहाँ एक तरफ अश्लीलता परोसी जा रही है, वहीं इन्हीं पाँच-दस वर्षों के अन्दर इतने आध्यात्मिक चैनल हो गये हैं कि कहीं न कहीं उनमें इतनी आध्यात्मिक बातें हो रही हैं कि उनमें सात्विक चीजें दिखा-दिखा करके कहीं न कहीं समाज को सही दिशा दी जा रही है। अन्यथा तो पैसा दे दो और चाहे जिस तरह के विज्ञापन प्रसारित करा लो, अच्छे-अच्छे न्यूज़ चैनल जो अपने आपको बहुत बड़ा समाजसुधारक कहते हों कि हम इस तरह की आवाज़ उठा रहे हैं कि हम ऐसा कर रहे हैं, वही चैनल पैसे में नग्नता के चाहे जितने विज्ञापन दिखा देंगे! कहीं कोई रोक लगाने वाला नहीं है, बस पैसा मिल रहा हो। आजकल आप चाहे कोई भी न्यूज़ चैनल लगा लें, जिसमें विज्ञापन दिये जाते हों, परिवार के साथ बैठ करके आप विज्ञापन भी नहीं देख सकते। नारी जो हमारी श्रद्धेय है, हमारी जननी है, कोई हमारी भगनी है, कोई हमारी बेटी है, उसको उपभोग की वस्तु समझा जा रहा है। वह चाहे जूते पालिश का विज्ञापन हो, बनियाइन का विज्ञापन हो या किसी चीज का विज्ञापन हो, किस तरह से नारी का अंग प्रदर्शन किया जा रहा है? विभाग सब बने हुये हैं, मन्त्री सब बने हुये हैं, हो सकता है कि ऐसे विभागों का संचालन करने के लिये कोई महिला ही बैठी हो, मगर किसी की आँखें नहीं खुलतीं कि अगर इस तरह की अश्लीलता हम परोसेंगे, नग्नता दिखायेंगे, तो बच्चे तो विकारी बनेंगे ही। उनमें कोई रोक नहीं लगायेगा, इसलिये कि वे बेईमान उसमें खुद लिप्त पड़े हैं।

मैं जब इनको ध्यान चिन्तन में देखता हूँ, तो जो आज ईमानदारी का चोला पहने हुये जितने बड़े-बड़े बलात्कारी हैं, न जाने वे कितनी हत्यायें करा चुके, पता ही नहीं चलता? यह तो कहो कि मीडिया इतना कुछ जाग्रत् है कि छोटी-छोटी बातों को उठा देता है। अन्यथा जो भी कहीं कोई सत्य की आवाज़ उठाये, तो ये उनको मरवा करके कहाँ किस कोने में फेंकवा दें, पता ही नहीं चलेगा? न जाने कितनी भंवरी देवी काल की गर्त में समा गयीं! ये तो मीडिया से कुछ जगहों की आवाज़ें उठ जाती हैं। न जाने कितने निठारी काण्ड हो जायेंगे और न मालूम कितने अमरमणि पैदा होते चले जायेंगे। घोटाले पर घोटाले करेंगे और ऐशोआराम का जीवन जियेंगे। हर पार्टी वर्तमान में भ्रष्टाचार की चरमसीमा की गर्त में डूबी हुयी है। हर जगह लुट रहा है देश, फिर भी सब ईमानदार हैं! अरे हमें संघर्ष करना है, हमें अपने अस्तित्व को मिटाना है। न हमें कोई मार सकता है, न मार सकेगा। इसलिये कि हम आत्मावानों का जीवन जीते हैं। एक बार हमें इस धर्मयुद्ध की ओर बढ़ना ही है और इस धर्मयुद्ध में हम विजयी होंगे। चूँकि हमारे पास सत्य है, हमारे पास धर्म है, हमारे पास माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा की कृपा है। अत: उसी विचारधारा को ले करके सबसे पहले आज विजयदशमी में आप यह संकल्प ज़रूर लेंगे कि आप अनीति-अन्याय-अधर्म के रास्ते पर खुद नहीं चलेंगे, नशे-माँस से मुक्त होंगे, चरित्रवानों का जीवन जियेंगे, अपने अन्दर के असुरत्व को नष्ट करेंगे और समाज के भी असुरत्व को नष्ट करने में अपनी पूरी क्षमता लगायेंगे। साथ ही, जाति-धर्म-सम्प्रदाय से ऊपर उठेंगे, कुत्सित मानसिकता से ऊपर उठेंगे, देवी-देवताओं के नाम पर बलि नहीं देंगे, माँस नहीं चढ़ायेंगे, शराब नहीं चढ़ायेंगे और बेटे-बेटियों में फर्क नहीं करेंगे! बेटे हों या बेटियाँ, सब एक समान हैं।

मुक्ति के लिए तुम्हें किसकी आवश्यकता है? तुम हर पल और हर काल में मुक्त हो। अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हारा बेटा तुम्हें मुखाग्नि दे देगा, छोटा सा धर्म-कर्म का कार्य कर देगा, तो उससे ज़्यादा कार्य अपने जीते जी कर लो कि मुक्ति के लिये तुम्हें अपने बेटे-बेटियों की आवश्यकता ही न पड़े और बेटे-बेटियों को एक समान मानकर चलो। मानसिक स्थिति जिस प्रकार की बन जाती है, वैसे ही तुम्हारे विचार पैदा होने लगते हैं और वैसा ही तुम भटकते चले जाते हो। सोचने लगते हो कि बेटे नहीं होंगे, तो हमारा कुल नष्ट हो जायेगा! अरे, किसके कुल की रक्षा कर रहे हो? चार पीढिय़ों के पीछे का पूछ लिया जाये कि तुम्हारे बाबा के बाबा कौन हैं? तो तुम्हारी नानी याद आ जायेगी, बता नहीं पाओगे और उस कुल के लिये मरे पिटे जा रहे हो! वृद्धावस्था में पहुँच गये होंगे, दस-बीस साल बाद काल के गाल में चले जाओगे। बेटा तुम्हारा क्या करेगा, क्या नहीं करेगा? मगर बेटे के लिये पागल हो। अत: इस मानसिकता से ऊपर उठो। बेटे-बेटियों को एक समान मानो।

यदि तुम्हारे सन्तान नहीं हो रही है, तो तुम वर्तमान काल में सबसे सुखी व्यक्ति हो। अगर तुम मान लो कि समाज में इतने बेटे-बेटियाँ हैं तथा सबको एक समान भाव से ले करके समाजसेवा के कार्य में बढ़ चलो और अगर ज़रूरत है, तो समाज के किसी ऐसे बच्चे को गोद ले लो, जिसका कोई सहारा नहीं है। उसका भी कल्याण होगा और आपको भी बच्चे का सुख प्राप्त हो जायेगा। जिसके सन्तान उत्पत्ति के योग बनते हैं, तो इस आश्रम में आने वाले यहाँ भी बैठे हुये हैं और मैंने कहा है कि अगर इसके लाभ का परीक्षण करना हो, तो आज की ही डेट में यहाँ एक हज़ार से ज़्यादा ऐसे व्यक्ति बैठे हुये हैं, जिन्हें ‘माँ’ की कृपा से पुत्र-पुत्रियों का लाभ प्राप्त हुआ है, जिन्हें डॉक्टरों ने भी मना कर रखा था। इसलिये सभी क्षेत्रों से हमेशा कहता हूँ कि जिस तरह का परीक्षण करना हो, करायें। मैं चमत्कारों में पड़कर आगे नहीं बढ़ता, चूँकि मैं जिस तरह के क्रम करूँगा, लोग उसी तरह के भाव से लाभ लेने का प्रयास करेंगे। मगर यदि देखना हो, तो यहाँ आने वाले नब्बे प्रतिशत नि:सन्तान, सन्तान का लाभ अवश्य प्राप्त करते हैं। दस प्रतिशत वही लाभ नहीं ले पाते, जिसकी हो सकता है कि उम्र अधिक हो गयी हो या बच्चेदानी ही नहीं है, गर्भधारण करने की क्षमता नहीं है या फिर किसी के ऐसे योग हैं, जो बहुत ज़्यादा बाधक होते हैं। मगर मेरे सामने सौ व्यक्ति ला करके खड़े कर दिये जायें और मैं कह रहा हूँ कि वे साल दो साल मेरे भगवती मानव कल्याण संगठन की विचारधारा पर केवल अमल कर लें, तो नब्बे प्रतिशत नि:सन्तान लोग, नि:सन्तान नहीं रह सकते, उन्हें लाभ प्राप्त होगा। इसी तरह सभी क्षेत्रों में लोग लाभ प्राप्त कर रहे हैं।

जिन्हें डॉक्टरों ने कह रखा था कि ये बचेंगे नहीं, उन्हें जीवनदान दिया गया है और उसके प्रमाण समाज में हैं। एक स्थान पर रह करके, देश में रह करके, विदेश में कहाँ क्या हो रहा है? इसकी जानकारी दी गयी है और यह सब प्रमाण समाज के बीच पड़े हैं। जब भी किसी को कोई जिज्ञासा हो, तो नाम और पते बता दिये जायेंगे, उसकी जानकारी ले लें। हर पल यहाँ जो हो रहा है, सब ‘माँ’ की कृपा से हो रहा है। ‘माँ’ की उस कृपा में केवल अपने आपको डुबाना सीखो। ‘माँ’ की ममता के सागर में अपने आपको डुबा दो। ऐसा जीवन बार-बार नहीं प्राप्त हो सकेगा। एक जीवन अपने आपको उस परमसत्ता के चरणों में समर्पित कर दो। अनीति की तरफ तुम्हारे जो कदम बढ़ रहे हैं, उनको विराम दे दो कि हम मर जायेंगे, हमारा अस्तित्व नष्ट हो जाये, मगर हम अनीति-अन्याय-अधर्म के रास्ते पर नहीं जायेंगे और अगर विराम देने में सफल हो गये, तो सत्यपथ की ओर तुम्हारे कदम धीरे-धीरे बढ़ते चले जायेंगे। अत: वह निर्णय ले करके चलो।

समय का सदुपयोग करो और जीवन को चैतन्यता के साथ जियो। अन्नमयकोष के साथ आपके शरीर में प्राणमयकोष भी होता है। जब अन्नमयकोष कमजोर होता है, तो प्राणमयकोष जाग्रत् होता चला जाता है। अन्नमयकोष, प्राणमयकोष, मनोमयकोष तथा अन्य अनेकों कोष आपके शरीर के अन्दर मौजूद हैं। मगर सबसे पहले अन्नमयकोष और प्राणमयकोष का जीवन जीना सीखो। अगर उसका उपयोग करना सीख जाओगे, तो तुम्हें कम भोजन मिल रहा है या क्या मिल रहा है, क्या नहीं मिल रहा है तथा आपके अन्दर ज्यों-ज्यों भोजन की कमी आयेगी, त्यों-त्यों आपके अन्दर की एनर्जी और कार्य करना शुरू कर देगी। अत: चैतन्यता का जीवन जियो। सादा जीवन और उच्च विचार का जीवन जियो। दूसरा दूध मलाई खा रहा है, मिष्ठान पकवान खा रहा है, उसे मत देखो। तुम्हारा काम नमक और रोटी से चल रहा है, तो नमक और रोटी से चलाओ। तुम्हारे पास प्रकृतिसत्ता ने जो दे रखा है, उसमें सन्तोष का जीवन जियो और आगे कर्म करो। मैं निराशावादी जीवन की बात नहीं कर रहा हूँ, मगर आपका कर्म अनीति-अन्याय-अधर्म से युक्त न हो कि बस पैसा आना चाहिये, चाहे बेईमानी के जिस रास्ते का हो!

बेईमानी के लिये गुरु के सामने भी झूठ बोलने में शर्म नहीं करते, गुरु से भी छल करने में संकोच नहीं करते! समाज में इस तरह के अनेकों शिष्य होते हैं। अत: सच्चाई और ईमानदारी से धन कमाओ। अपने इष्ट और अपने गुरु से सच्चा रिश्ता जोड़ो और फिर देखो कि तुम्हें कैसा आनन्द मिलता है, कैसी तृप्ति मिलती है? हमारे पूर्वज रूखा-सूखा खा करके, हमसे भी कम भोजन करके, सादा भोजन करके, नमक, दाल, चावल, रोटी ही खा करके भी हम-आप लोगों से ज़्यादा स्वस्थ थे। पहले एक-एक व्यक्ति, एक क्विंटल का बोरा एक-एक हाथ से उठा करके अपनी पीठ पर लाद लेता था और आज पहले बोरे का अद्धा हुआ, फिर कट्टी हुआ और अब आगे क्या होगा?

आज किसी की पीठ में एक बोरा लाद दिया जाये, तो वह आगे की ओर धड़ाम से गिर जायेगा। आज कानून बनाया जा रहा है कि पल्लेदारों को ज़्यादा भार उठाना पड़ रहा है, इसलिये पचास किलो से ज़्यादा वजन की भर्ती नहीं होनी चाहिये। अरे बेईमानों, पहले समाज को नशे-माँस से मुक्त कर दो। उनको वे संसाधन दे दो, जिससे उनके अन्दर सामथ्र्य भरती चली जाये। बचपन से ही कमजोरी आने लगती है, क्योंकि मिलावट का भोजन खा रहे हैं। सबको मालूम है, मीडिया बार-बार दिखा रही है कि यहाँ दूध में इतनी मिलावट की जा रही है, घी में इतनी मिलावट की जा रही है, मसालों में मिलावट की जा रही है, दाल में मिलावट की जा रही है, सब चीजों में मिलावट की जा रही है। लेकिन, सत्ता में बेईमान बैठे हैं। मिलावट करने वाले जितने बड़े अपराधी हैं, उतने ही बड़े अपराधी सत्ता में बैठे हुए लोग भी हैं। क्योंकि, अगर वे चाह लें, तो एक दिन के अन्दर सभी मिलावटखोरों को जेल के अन्दर डाल सकते हैं। मगर उन बेईमानों के वही तो उनके रिश्तेदार होंगे या तो उनके पास उठते-बैठते होंगे या फिर उनके चन्दे के पैसे से चुनाव लड़ते होंगे, तो उनके विरुद्ध कार्यवाही क्या करेंगे? आज इसी सांठ-गांठ से पूरा देश लुट रहा है।

बच्चों को यूरिया पीने के लिये बाध्य होना पड़ रहा है, तो छोटे-छोटे बच्चों की आँखों में चश्मे तो लगेंगे ही! एक बार सोचो, एक बार विचार करो कि कब तक इसको पीते रहोगे, कब तक अपने शरीर को क्षीण करते रहोगे? तुम्हारे बीच कोई कैंसर का शिकार हो रहा है, किसी का लीवर खराब हो रहा है, किसी की किडनी खराब हो रही है, कोई आँखों से अन्धा हो रहा है, तो कोई जन्म लेते ही अपाहिज हो रहा है। इसे रोकना ही होगा। अगर इन अन्यायी-अधर्मियों को नहीं रोका गया, तो कलिकाल का जो अन्तिम चरण होता है कि आम मनुष्य कीड़े-मकोड़ों जैसा जीवन जीने के लिये बाध्य हो जायेगा और वैसी परिस्थिति आज इन बेईमानों ने ला करके खड़ी कर दी है। अपने आस-पास ऐसे लोगों को तलाशो और संगठित हो करके उनके विरुद्ध आवाज़ उठाओ, अन्यथा यह मिलावटखोरी समाज का अस्तित्व नष्ट करती चली जा रही है।

कानून बने हैं, मगर उन पर कोई अमल नहीं होता। इसलिये कि उन बेईमानों को फुर्सत ही नहीं है पैसा घसीटने में, धन इकट्ठा करने में, अपनी बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियाँ चलाने में और जो पैसा यहाँ न रख पायें, तो उसको विदेशों में ले जा करके जमा करने में। अत: तुम्हें सजग होना पड़ेगा। आम मानव की जब आवाज़ उठेगी और केवल आवाज़ ही नहीं उठेगी, उस दिशा में कर्म भी करेंगे, तभी आगे सफलता प्राप्त होगी। अन्यथा, इस तरह मीडिया में हो-हल्ला मचाने वाले अनेकों मिलेंगे। देश को अच्छा करने वाले अनेकों योगाचार्य मिलेंगे, कि खूब देश को लूट रहे होंगे और कहेंगे कि हम देश का कालाधन देश में लाना चाहते हैं। अरे, पहले अपने आपको सुधार लो कि तुमने किन-किन रास्तों से समाज का कितना शोषण किया है? किन-किन बेईमान राजनेताओं का माल्यार्पण किया है, कितने बेईमान राजनेताओं को अपने मंचों में सम्मानित किया है? जब तक तुमको वह वैभव घसीटना था, तब तक तुमने आवाज़ नहीं उठाई और अब वह वैभव जाता दिख रहा है, तो सोच रहे हो कि आम जनमानस ही तुम्हारी रक्षा कर सकता है। तो, लोगों की भावनाओं को खींचकर संगठित करने का प्रयास कर रहे हो! दुनिया भर के वैभव दिखाते फिरेंगे, छोटी-छोटी बात पर मीडिया में जा करके खड़े हो जायेंगे और दिन-रात चीखेंगे!

यदि किसी के माता-पिता खो जायें, तो सामथ्र्यवान् होकर भी क्या वह शान्त बैठेगा? मैं खो जाऊँ, तो मेरे शिष्य दिन-रात एक कर देंगे। वहीं किसी का गुरु खो जाये और उस बात को इस तरह दबा दिया जाये कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं! कैसी मानसिकता होगी? इसीलिये ऐसे योगाचार्यों को मैंने खुले मंचों से चुनौती दी है कि आओ, एक बार मेरी साधनात्मक क्षमता का सामना करो कि क्या तुमने ध्यान के प्रथम चरण को प्राप्त किया है कि नहीं? या ऐसे ही कह रहे हो कि दृश्य से अदृश्य शक्तियाँ सहायता करने लगती हैं, व्यक्ति योग करते-करते विराट बन जाता है, मानव से महामानव बन जाता है, मैंने शून्य से शिखर की यात्रा तय की है! अरे, लोगों की आस्थाओं के सहारों के कन्धों पर पैर रखते हुये तो कोई भी अधर्मी-अन्यायी शिखर पर पहुँच सकता है। कई शिखरों तक पहुँचे पड़े हैं अनेकों राजनेता, अनेकों बेईमान और भ्रष्ट उद्योगपति। अरे, मानवता के रक्षक तो शिखर से शून्य पर आते हैं और शून्य पर खड़े हुये लोगों को शिखर पर बढ़ाते है, न कि उनके कन्धों पर पैर रखते हुए खुद शिखर पर चढ़ते हैं! आपका गुरु कहता है कि मैंने शिखर से शून्य की यात्रा तय की है और शून्य पर अपने अस्तित्व को मिटाकर इस मानवता को शिखर पर ले जाना चाहता हूँ।

हमारा जीवन समाज को समर्पित है। प्रकृतिसत्ता हमें जो एक-एक पल दे रही है, उसका सदुपयोग करना है। यहाँ की ऊर्जा, इस महाशंखनाद की ऊर्जा जितनी अधिक से अधिक आप लोग प्राप्त कर सकें, मेरा यही चिन्तन है। हमें हर पल का सदुपयोग करना है। जीवन का हमारा एक भी पल नष्ट न होने पाये, उस विचारधारा को लेकर चलना है और यह जो शंखध्वनि दिल्ली से की गयी, सागर से की गयी और यह जो ध्वनि अब आश्रम में हो रही है, यह ध्वनि सदा-सदा के लिये मेरी शंखध्वनि के साथ समाहित हो करके इस ब्रह्माण्ड में गूँजती रहेगी और अपना कार्य करती रहेगी। शेष आने वाले सभी शिविरों में भी यह शंखध्वनि होती रहेगी।

शंखध्वनि की नींव इसीलिये डाली जा रही है कि यह शंखध्वनि अनन्त गुना बढ़ती रहे और इसी शंखध्वनि के साथ जुड़ती हुयी अपना विराटस्वरूप लेती चली जाये। ब्रह्माण्ड में एक ऐसी शंखध्वनि गूँजे कि यह शंखध्वनि सभी नकारात्मक तरंगों को नष्ट करती चली जाये। इसी भाव को लेते हुये पुन: शंखध्वनि की ओर बढेंग़े। सभी लोग अपने-अपने हाथों में शंख ले लेंगे। पाँच मिनट तक शंखध्वनि होगी। मन की पूर्ण एकाग्रता के साथ हर पल ‘माँ’ का स्मरण चिन्तन करते हुये यह शंखध्वनि पूर्ण करेंगे।

जगदम्बे मात की जय।

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