हाँ ! मैं इसी पावन पवित्र विश्व की आत्मा भारत देश में समाज के लिए एक पूर्ण अतीतकालीन ऋषियों-मुनियों के आश्रमों जैसा आधुनिक संसाधनों से परिपूर्ण, तपोमय धर्म की धुरी स्थापित करके एक सिद्धस्थल ’’पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम’’ का निर्माण कर रहा हूँ। वहीं पर सर्वप्रथम माता भगवती की कृपा से अपनी साधनात्मक अन्तरंग योगाग्नि से ‘‘पंचज्योति’’ प्रज्वलित करूँगा। इस ज्योति के दिव्य प्रकाश की किरणों को हृदय में धारण करके देवत्व के लोग असुरत्व को परास्त करेंगे और कलियुग की भयावहता को नष्ट करने में सफलता प्राप्त करेंगे। इसी पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में मेरे द्वारा समाज कल्याण के लिए समर्पित 108 महाशक्तियज्ञों की शृंखला के शेष 100 महाशक्तियज्ञ सम्पन्न किये जायेंगे। साथ ही अनेकों साधनात्मक अनुष्ठान सम्पन्न करके इस स्थान का कण-कण पूर्ण चैतन्य बनाऊंगा। मैं अपने रोम-रोम में समाहित माता भगवती की ऊर्जा व समस्त साधनाओं को यहाँ के कण-कण में समाहित कर दूँगा। साथ ही इस स्थान को साधनात्मक प्रवाह प्रदान करने के लिये अनेक साधक एवं तपस्वी तैयार करके अपने आपको विसर्जित कर दूँगा।
आज कलियुग का भयानक ताण्डव चतुर्दिक हो रहा है। लगभग हर घर में सिर्फ परेशानी एवं उलझन है तथा चारों तरफ लूटमार और हत्यायें हो रहीं हैं। इसका मूल कारण है धर्म की हानि, वैदिक रीति-रिवाजों का हनन, भारतीय गूढ़ विद्याओं, मंत्र, तंत्र, योग, हठयोग, क्रियायोग तथा ज्योतिष शास्त्र आदि पर अविश्वास की भावना आदि। दूसरा महत्त्वपूर्ण कारण है वर्तमान धर्म में आडम्बर का छा जाना एवं धर्माधिकारियों का भोगवादी होना। इसके कारण अधिकांश धार्मिक स्थलों की ऊर्जा नष्ट हो जाने से वहाँ लोगों को कोई अनुभूतियाँ या लाभ नहीं मिल पा रहा है और कलियुग का साम्राज्य फल-फूल रहा है तथा सन्त-पुरुष तड़प रहे हैं।
ऋषि परम्परा के पोषक महर्षि वसिष्ठ और विश्वामित्र जैसे ऋषि, जो नयी सृष्टि रचना करने में पूर्ण सामर्थ्यवान् थे, उन्हीं के वंशज, भारतीय संतान आज कायर, नपुंसक तथा दिग्भ्रमित क्यों हैं ? जिस देश के धर्म का आधार ही शक्तिसम्पन्न हो, जिस माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी के हाथों में आयुधों की भरमार है, जो महिषासुरमर्दिनी कहलाती हों, जो काली बनकर काल पर प्रहार करती हों, सरस्वती के रूप में ज्ञान देती हों एवं लक्ष्मी के रूप में जन-जन का कल्याण करने हेतु समय-समय पर उपस्थित होती रहती हों, उन्हीं माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी के वंशज कायरों का जीवन जी रहे हैं और लाचारों व भिक्षुओं की कतार में खड़े दिखते हैं, जबकि प्रकृतिसत्ता ने हमें मनुष्य रूप में जो शरीर प्रदान किया है, उसमें अपना अंश आत्मा स्थापित की है, जिसकी कीमत आंकी नहीं जा सकती है।
मुगलकाल भारतीय ऋषियों के ज्ञान के पतन का प्रमुख समय रहा है। उस समय सभी भारतीय सुरा और सुन्दरियों में पूर्णतया डूब गये थे, जिस कारण योगियों, साधकों एवं संन्यासियों को समाज से निकलकर हिमालय व गुप्त स्थानों में जाना पड़ा। परिणामतः समाज से मूल ज्ञान, बहुमूल्य धरोहर का पतन होता चला गया। मगर, इस भारत भूमि का सौभाग्य रहा है कि जब-जब धर्म की हानि हुई है, अधर्म बढ़ा है, तब-तब प्रकृति सत्ता ने मानव हित के लिये सिद्धाश्रम से समय-समय पर श्रीराम, श्रीकृष्ण जैसे अवतारी महापुरुषों, आदिशंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, योगावतार जैसे योगियों, साधकों व महापुरुषों को इसी भारत भूमि पर जन्म दिलाया। उन्होंने अधर्म का नाश करके धर्म की स्थापना की है।
यदि आप वर्तमान में असम्भव को विज्ञान के द्वारा संभव मान रहे हैं, तो अपने अतीत के संभव को असंभव क्यों मानते हैं ? आवश्यकता है अपने अतीत में प्रवेश करने की, अतीतकालीन वातावरण निर्माण करने की। विज्ञान हमें सुख दे सकता है, आनन्द नहीं, दवा दे सकता है, जीवन नहीं, अच्छा बिस्तर दे सकता है, नींद नहीं, जबकि आध्यात्मिक साधनाओं के माध्यम से हम जीवन के सही मर्म को समझ सकते हैं। अपनी आन्तरिक शक्ति को जाग्रत् करके सामान्य मानव से ऊपर उठकर देवत्व प्राप्त कर सकते हैं। यह सब साधनाओं के बल पर संभव है और साधनायें इस भौतिकतावाद की दौड़ के वातावरण में नहीं हो सकती हैं।
वर्तमान में जब पूरा वातावरण दूषित है, तो इसमें न हम साधनायें कर सकते हैं, न ही अपनी आंतरिक चेतना को जाग्रत् कर सकते हैं। इसके लिए आवश्यकता है अतीतकालीन ऋषियों-महात्माओं के आश्रमों जैसे वातावरण से परिपूर्ण एक चैतन्य आश्रम की, जहाँ का पूर्ण वातावरण सात्त्विकता से परिपूर्ण हो, जहाँ का कण-कण चैतन्य हो और जो समाज के वर्तमान वातावरण से प्रभावित न हो, जहाँ प्रवेश करते ही मनुष्य के दूषित विचार नष्ट हो जायें, उसे आत्मिक शान्ति मिले और वह प्रकृतिसत्ता की नजदीकता का भान करे, उस स्थान पर बैठकर वह अपनी आन्तरिक चेतना जाग्रत् करके अपने जीवन को संवार सके, असमर्थ से सामर्थ्यवान् बन सके।
पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम का निर्माण मेरे द्वारा उपर्युक्त उद्देश्य की पूर्ति के लिये ही किया जा रहा है। आज जब आश्रम का निर्माण कर रहा हूँ, इसके पहले ही मैं समाज के बीच माता भगवती जगत् जननी की एक निर्धारित चेतना जन-जन में जाग्रत् कर चुका हूँ और इस कार्य में मेरी चेतना कई वर्षों से लगी है। इसी कार्य की पूर्ति के लिये मैं यह तीसरा जीवन व्यतीत कर रहा हूँ। पूर्व में मेरे दो जीवन इसी लक्ष्य की पूर्ति करने की दिशा में व्यतीत हुये हैं और इस जीवन में मैं समाज में जनकल्याणकारी लक्ष्य की पूर्ति माता भगवती जगत् जननी की कृपा से अवश्य पूर्ण करूंगा। माँ के इसी जनजागरण के कार्य में मेरे इसी जीवन में ग्यारह दीक्षित उत्तराधिकारी शिष्य भी लगे हुये हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरे द्वारा निर्मित किया जा रहा पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम भारत ही नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व के साधकों, योगियों, संन्यासियों एवं गृहस्थों के लिए एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में हजारों-हजारों वर्षों तक ज्ञान की ज्योति जलाये रखेगा तथा कलियुग के प्रभाव को नष्ट करके, सतयुग का मार्ग प्रशस्त करेगा। यह आश्रम विश्व का कल्याण तथा जन-जन में माता भगवती जगत् जननी की चेतना जाग्रत् करेगा तथा जातिपांति का भेदभाव मिटाकर सभी धर्मों का आदर करते हुए सभी को एकता व भाईचारे का संदेश देगा। साथ ही विज्ञान को पुनः ज्ञान के सामने घुटने टेकने पर मजबूर करेगा, हिन्दू धर्म (सनातन धर्म) की विजय पताका पुनः लहरायेगा और भारत देश को पुनः विश्व में धर्मगुरु का स्थान दिलायेगा।
आश्रम की विशेषताएँ
- माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी की ममतामयी कृपा व आशीर्वाद से इस आश्रम की स्थापना मैंने दिनांक 23-01-1997 दिन गुरुवार को की है। इस दिन महत्त्वपूर्ण प्रभावक योगों व क्षणों में मैंने स्वतः भूमि पूजन किया और माँ का मूलध्वज उसके विशिष्ट मंत्रों से अभिमंत्रित करके आश्रम के मूल स्थल पर स्थापित किया है। उसके बाद लगातार आश्रम निर्माण कार्य के साथ ही आश्रम के कण-कण को चैतन्य करने हेतु मेरी सतत साधनायें व क्रियायें चल रही हैं। विश्वशांति की स्थापना एवं जनकल्याण के कार्य करने व जन-जन में माँ की चेतना जाग्रत् करने के लिए आश्रम में दिनांक 15-04-1997 दिन मंगलवार 11 बजे सुबह शुभ मुहूर्त में ‘‘श्री दुर्गा चालीसा’’ का अखण्ड पाठ अनन्तकाल के लिए प्रारम्भ कराया गया है, जो सतत चल रहा है।
- आश्रम निर्माण लगभग 100 एकड़ के क्षेत्रफल में हो रहा है।
- आश्रम स्थल वर्तमान के दूषित वातावरण के प्रभाव से मुक्त है एवं अनेकों दिव्य पहाड़ियों से घिरा हुआ नदी के तट पर स्थित है।
- समय के साथ शेष सौ महाशक्तियज्ञ एवं सैकड़ों दुर्लभ साधनाएं सम्पन्न करके आश्रम को पूर्ण चैतन्य तपस्थली में परिवर्तित किया जायेगा।
- यहां पर विभिन्न प्रकार के फलदार वृक्ष लगाये जा रहे हैं।
- आश्रम में 1000 लोगों के एक साथ योग साधना करने हेतु पूर्ण सुविधायुक्त ‘‘योग साधना भवन’’ का निर्माण किया जायेगा।
- आश्रम के मध्य में अखण्ड साधना के माध्यम से योगाग्नि से प्रज्वलित पंचज्योति स्थापित की जायेगी, जिसका सुरक्षित भव्य ‘‘पंचज्योति’’ मंदिर होगा।
- पंचज्योति मंदिर व शक्ति मंदिर के चारों तरफ दस महाविद्याओं के मंदिर होंगे तथा अन्य सभी देवी-देवताओं के मंदिर स्थापित होंगे।
- भगवान् शंकर का विशिष्ट मंदिर भी निर्मित होगा, जिसमें “पारद शिवलिंग’’ की स्थापना की जाएगी।
- पूर्ण विधि-विधान के साथ अनेक महामंत्रों का शिलालेख होगा।
- महाशक्तियज्ञ स्थल के चारों तरफ एक शक्ति सरोवर का निर्माण किया जाएगा, जिस पर बाहर से मंदिर में जाने हेतु पुल निर्मित होगा।
- सरोवर के चारों तरफ पर्याप्त मैदान होगा।
- एक सिद्ध बगीचा होगा, जिसमें साधना सिद्धि हेतु सहायक फलदार वृक्ष होंगे।
- इस सिद्ध बगीचे से पंचज्योति मंदिर तक सुरंग मार्ग बनाया जायेगा।
- सिद्ध बगीचे में पाँच अलौकिक गुफाएं होंगी, जिनमें बैठकर साधक दिव्य साधनाएं सम्पन्न कर सकेंगे।
- लोगों के साधना करने के लिए सैकड़ों पूर्ण सुविधायुक्त साधनाकक्ष बनाए जायेंगे।
- बाहर से पहुँचने वाले लाखों भक्तों के ठहरने का एकान्त स्थान बनाया जायेगा, जिस क्रम में कुछ भक्तों के ठहरने हेतु निर्माण कार्य कराया जा चुका है।
- एक जड़ी-बूटियों का उद्यान भी होगा।
- एक बड़े स्तर की पवित्र गौशाला की स्थापना की जा चुकी है।
- भारतीय गूढ़ विद्याओं का संग्रहालय होगा।
- एक ज्ञानदीप विद्यालय होगा।
- एक पूर्ण सुविधायुक्त अस्पताल होगा।
- एक 108 कुण्डीय यज्ञशाला निर्मित होगी।
- आश्रम में शक्ति सरोवर के चारों तरफ सभी शक्तियों के सैकड़ों मंदिरों की स्थापना की जाएगी तथा एक विशाल “शक्ति मंदिर’’ का निर्माण कराया जायेगा, जहाँ पर ध्यानयोग के माध्यम से प्राणप्रतिष्ठा करके माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी के मूल स्वरूप की स्थापना होगी। यह विश्व की एकमात्र पूर्ण चैतन्य जाग्रत् मूर्ति होगी।