नशा मानवजीवन का सबसे बड़ा और निकृष्टतम अभिशाप है। अधिकतर अपराधों की जड़ नशा ही है। ठीक ही कहा गया है कि यदि किसी परिवार का सर्वनाश करना हो, तो उसके एक सदस्य को शराब पिलाना सिखा दो। नशे से व्यक्ति, परिवार, समाज और अन्ततः राष्ट्र का नाश अवश्यम्भावी है। यही कारण है कि युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने राष्ट्ररक्षा के लिए नशामुक्ति को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।
श्रद्धेय महाराजश्री ने देश के एक-एक राज्य को क्रमवार नशामुक्त करने का लक्ष्य ठाना है। आपने इसकी शुरूआत सबसे पहले मध्यप्रदेश से की है। इसकी राजधानी भोपाल के जम्बूरी मैदान, बी.एच.ई.एल. में 15 से 19 फरवरी 2015 के मध्य आपके द्वारा नशामुक्ति महाशंखनाद पंचदिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर का वृहद् आयोजन इसी उद्देश्य से किया गया था।
परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के निर्देशानुसार इस बार सभी लोग अपनी-अपनी व्यवस्था से भोपाल पहुंचे। स्वयं महाराजश्री आश्रम से 14 फरवरी को अपराह्न वाहन से प्रस्थान करके रीवा रेलवे स्टेशन पहुंचे। वहां से रेल के द्वारा अगले दिन प्रातः 06 बजे आपका भोपाल आगमन हुआ, जहां पर हज़ारों कार्यकर्ताओं ने रेलवे स्टेशन पर आपका भव्य स्वागत किया। परम पूज्य गुरुवरश्री के सान्निध्य की ललक लिए हुए कई हज़ार लोगों ने भी रीवा से भोपाल तक की रेल यात्रा की व हजारों अलग-अलग स्टेशनों से जुड़ते चले गए।
जम्बूरी मैदान के विशाल प्रांगण में भव्य विशाल शिविर पण्डाल का निर्माण किया गया था। दिनांक 15 फरवरी को प्रातः 07 बजे से ही शिविरार्थियों के पंजीकरण का कार्य प्रारम्भ कर दिया गया था।
इसी दिन सायंकाल 04 से 06 बजे तक शक्तिस्वरूपा बहन पूजा जी, संध्या जी एवं ज्योति योगभारती जी के द्वारा दीप प्रज्वलन के उपरान्त कार्यकर्ता उद्बोधन हुआ तथा उसके बाद दिव्य आरती सम्पन्न की गई।
इस अवसर पर, भगवती मानव कल्याण संगठन की केन्द्रीय अध्यक्ष बहन पूजा योगभारती जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि गुरुवरश्री ने समाज को नशामुक्त करने का लक्ष्य ठाना है। हमें इस लक्ष्य के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित रहना है। हमें हर स्थान पर हर समय पूर्ण अनुशासित, मर्यादित एवं संयमित रहना चाहिए। इस शिविर में अनेक लोग नशामुक्त होने के लिए आए हैं। हमारा कर्तव्य है कि उन्हें सतत प्रेरणा देते रहें और नए लोगों को भी इसकी जानकरी दें।
भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बहन संध्या जी ने कहा कि हम लोग समाज को नशामुक्ति का संदेश देने आए हैं। मैं आपको इस बात के लिए बधाई देती हूँ कि आप लोगों ने एक ऋषि के द्वारा छेड़े गए आन्दोलन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। एक ऋषि के कार्य का प्रभाव विश्वभर में पड़ता है। वर्ष 2011 में दिल्ली में प्रथम शंखनाद हुआ था, तभी से परिवर्तन की लहर शुरू हुई है। इस ऊर्जा को पहचानने की ज़रूरत है कि बिना किसी दवाई के लोग कैसे नशा छोड़ देते हैं? यह ‘माँ’ की साधना की शक्ति है। नशा तो बहुत छोटी सी चीज़ है, इससे बड़ी-बड़ी बीमारियां दूर होजाती हैं। आप अपने आपको समाजसेवा के लिए पूर्ण रूप से समर्पित कर दें। यह समाज और आने वाली पीढ़ियां आपके ऊपर गर्व करेंगी।
किसी समय गुरुवर ने यह यात्रा अकेले प्रारम्भ की थी। आज इसके प्रति लाखों लोगों ने अपना जीवन समर्पित किया है। कल मानवश्रृंखला बनाकर उसके द्वारा हमें समाज को नशामुक्ति का संदेश देना है। इसके लिए लोगों को समझाने का प्रयास करें तथा अपने समय का सदुपयोग सेवा या साधना में करें।
शिविर के दौरान कहीं पर भी अव्यवस्था न होने दें। जो भी व्यवस्था मिले, उसी के अन्तर्गत मर्यादा में रहे। हर जगह सफाई और शुद्धता का ध्यान रखें। यह 108वां शक्ति चेतना जनजागरण शिविर है। मेरी शुभकामना है कि ‘माँ’ आप लोगों को भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति प्रदान करें।
भगवती मानव कल्याण संगठन की केन्द्रीय उपाध्यक्ष बहन ज्योति जी ने कहा कि मानवश्रृंखला बनाते हुए पूर्ण मर्यादित रहें। गुरुवर जी का यह संदेश, नशामुक्त हो सारा देश। अन्त में, आरती क्रम सम्पन्न हुआ और सभी ने गुरुवरश्री की चरणपादुकाओं को प्रणाम करते हुए प्रसाद ग्रहण किया।
द्वितीय दिवस दिनांक 16 फरवरी को प्रातः 10 बजे से मानवश्रृंखला का निर्माण चेतक ब्रिज से जम्बूरी मैदान तक हुआ। इस बीच परम पूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज का प्रवेश हुआ और रैली निकलने के बाद आपश्री ने अपना दिव्य आशीर्वाद प्रदान किया। यह पूरा कार्यक्रम सायं 05ः30 बजे सम्पन्न हुआ।
मानवश्रृंखला में सम्मिलित होने वालों की अभूतपूर्व भीड़ को देखकर पुलिस प्रशासन आश्चर्यचकित था कि इतना भारी जनसैलाब कहां से आ रहा है? यदि कहीं पर कोई अनहोनी घटना घट गई, तो उसे कैसे संभाला जाएगा? किन्तु, मानवश्रृंखला के सभी लोग इतने मर्यादित एवं अनुशासित थे कि कहीं पर भी कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। यह श्रृंखला बनने के बावजूद, सड़क पर चलने वाले लोगों और वाहनों को उससे कोई बाधा नहीं हुई।
इस सम्बन्ध में परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का स्पष्ट निर्देश था कि हम लोग यहां पर कोई हो-हल्ला करने या धरना-प्रदर्शन करने के लिए नहीं आए हैं। अतः हमें कहीं पर भी अमर्यादित नहीं होना है। प्रसन्नता का विषय है कि इस आदेश का सभी ने कड़ाई से पालन किया। फलस्वरूप, जगह-जगह पर लोग शिविरार्थियों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते सुने गए कि इतना बड़ा अनुशासित जनसमूह इस नगर के इतिहास में पहली बार देखने को मिला है। परम पूज्य गुरुवरश्री के दर्शन पाने के लिए सभी भक्त आतुर दिखाई पड़े। भोपाल नगर के नगरवासी भी गुरुवरश्री को नमन करते हुए आनन्दित नज़र आए।
इस मानवश्रृंखला को बनाने के लिए पुरुष, महिलाओं और छोटे-छोटे बच्चों को आठ-आठ, दस-दस किमी. पैदल चलना पड़ा। किन्तु, फिर भी किसी के मुखमण्डल पर थकान के कोई लक्षण नहीं थे।
इस अवसर पर, भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बहन संध्या जी ने कहा कि आज का दिन एक ऐतिहासिक दिन है। जो विलक्षण कार्य गुरुवरश्री ने किया, वह आज तक किसी अन्य धर्मगुरु ने नहीं किया है। उन्होंने समाज को पूर्ण नशामुक्त जीवन अपनाने का एक नया संदेश दिया है। छोटे-छोटे बच्चों ने भी 10-11 किमी. की पैदल यात्रा तय की है। वह कौन सी शक्ति है, जिसके बल पर ऐसा हुआ? इस अभियान का पूरे देश और विश्व में प्रभाव पड़ेगा। हम पूरे समाज का आवाहन करते हैं कि वह भी हमारे इस अभियान से जुड़ें। इस अभियान की सफलता का पूरा श्रेय आप सब लोगों को जाता है। आप सभी बधाई के पात्र हें। मेरी ओर से बहुत-बहुत शुभकामनाएं! इस अवसर पर आप लोगों और बच्चों में अपार जोश दिखाई दिया है। विश्व की कोई भी शक्ति हमें झुका नहीं सकती।
अन्त में, सायं 07 बजे आरतीक्रम सम्पन्न किया गया और सबने प्रणाम करते हुए प्रसाद ग्रहण किया।
इस दिन प्रातः 07 से 09 बजे तक मंत्रजाप, ध्यानसाधना एवं योगाभ्यास का क्रम शक्तिस्वरूपा बहन संध्या जी के द्वारा कराया गया। अपराह्न 01 से 02 बजे तक माता के भजन एवं जयकारे हुए तथा 02 से 05 बजे तक परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का चेतनात्मक प्रवचन हुआ। तदुपरान्त, दिव्य आरती, समर्पण स्तुति एवं प्रसाद वितरण हुआ।
प्रथम दिवस- दिव्य उद्बोधन
समाज को ऐसे दिव्य अवसर ‘माँ’ की कृपा से प्राप्त होते हैं। ‘माँ’ समस्त देवों की जननी हैं। वह हर पल कृपा बरसाती हैं। उनकी साधना सबसे सहज एवं सरल है।
आप अनेकों कामनाएं लेकर साधना करते हैं, इसलिए वह फलीभूत नहीं होती। ‘माँ’ से केवल भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति मांगो। इन तीनों शब्दों में दुनिया की समस्त धन-सम्पत्ति समाहित है। आपकी पांच मिनट की साधना घण्टों की साधना से श्रेष्ठ बन जाएगी। सारे धर्मशास्त्र रट लेना निष्फल होजाता है। यदि सूर्य के ताप को प्राप्त करना है, तो खिड़की खोलना ही पड़ेगा। मैं दूसरे धर्मगुरुओं की तरह कहानी-किस्से नहीं सुनाता हूँ। जनता का हित-अहित किस बात में छुपा है, उस पर विचार करना ज़रूरी है।
साधना के अन्तर्गत नाना प्रकार की कामनाएं करके आप उलझ जाते हैं। एकाग्रता लानी होगी। साधकों को संकल्पवान् एवं पुरुषार्थी होना चाहिए। संकल्प भी ऐसा दृढ़ होना चाहिए कि उसमें कोई विकल्प न हो। यदि पुरुषार्थ जग गया, तो हर मनुष्य के अन्दर वह आत्मशक्ति भरी है, जो ‘माँ’ का अंश है। उसके द्वारा सब कुछ प्राप्त करना सम्भव है। उसमें समस्त ज्ञान एवं सुख-शान्ति-वैभव समाहित है। हर पल परमसत्ता की कृपा का अहसास करो।
आप चाहे पूरी गीता-रामायण रट डालिए, आपके हाथ कुछ नहीं लगेगा। उन्हें जीवन में उतारना पड़ेगा। इस समाज का दुर्भाग्य है, जिसे कथावाचकों ने रासरंग में उलझाकर रख दिया है। मनोरंजन का वातावरण बनाना ही समाज के पतन का कारण है। किसी वृक्ष को हराभरा बनाने के लिए उसकी जड़ पर ध्यान रखना पड़ेगा।
स्वयं के द्वारा स्वयं को संवारो और विकास की दिशा में बढ़ो। इस नाशवान् शरीर पर ध्यान मत दो। इसे आत्मा संचालित कर रही है, उस पर ध्यान दो। उसी में हमारा कल्याण छुपा हुआ है। आज धन कमाना तथा वैभव एवं सम्पत्ति जुटाना जीवन का लक्ष्य बन गया है, भले ही किसी भी मार्ग से आए! किन्तु, यह लाखों-करोड़ों की सम्पत्ति कभी भी आपके साथ नहीं जाएगी। इसलिए ऐसा महल खड़ा करने से क्या लाभ? अतः आत्मा का महल खड़ा करो। हमारे ऋषियों ने स्वयं ऐसा करके दिखाया है। उन्हीं की तरह स्वयं के द्वारा स्वयं के आवरणों को हटाना पड़ेगा। तब तुम्हें अपनी दिव्यता का अहसास होगा और ये भौतिक वस्तुएं कंकड़-पत्थर के समान नज़र आएंगी। इसके लिए पुरुषार्थी बनना पड़ेगा। विकारों के रास्तों को संकल्पों से बांधो।
भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा टूट सकती है और कृष्ण का वचन टल सकता है, किन्तु शक्तिपुत्र का संकल्प कभी टल नहीं सकता। सन्तानोत्पत्ति के बाद मैंने पूर्ण ब्रह्मचर्यव्रत धारण करने का संकल्प लिया था। तभी से मैं सपत्नीक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता हूँ। संकल्प हो, तो ऐसा, जिसमें कोई विकल्प न हो। हम काम-क्रोधादि को नष्ट नहीं कर सकते, किन्तु उन पर नियंत्रण अवश्य प्राप्त किया जा सकता है। इस तरह, स्वयं के विजेता बनो। दूसरों पर विजय प्राप्त करने वाला वीर होता है, किन्तु स्वयं को जीतने वाला महावीर होता है। तुम सत्य की ऊर्जा को प्राप्त नहीं करते हो। अबोध शिशु बनकर ‘माँ’ की आराधना करो। इससे कभी भी पतन के मार्ग पर नहीं जा सकोगे। सत्य की चाहत वहीं से शुरू होगी। जब तक अपनी आत्मा के सामने सिर नहीं झुकाओगे, जगह-जगह मत्था टिकाने से कोई लाभ नहीं होगा।
आत्मतत्त्व, गुरुतत्त्व और प्रकृतितत्त्व में कोई भेद नहीं है। अतः अपनी आत्मा को निर्मल एवं पवित्र बनाओ। अपनी आत्मा का अनुसंधान करो। मैंने स्वयं उस मार्ग को तय किया है। आज भी चौबीस घण्टों में ढाई-तीन घण्टे से अधिक विश्राम नहीं करता, किन्तु मेरी साधना कभी भी रुकती नहीं है।
आप लोगों में निश्चित रूप से परिवर्तन आ रहा है, किन्तु स्वयं को और अधिक संवारने की ज़रूरत है। अपने आत्मा रूपी पुष्प को विकसित करो। ज्ञानी हमेशा भटकता है, किन्तु सिद्धसाधक कभी नहीं भटक सकता। मैंने एक ग्रामीण किसान परिवार में जन्म लिया है। किसी समय मैंने यह यात्रा अकेले प्रारम्भ की थी, जब कि आज मेरे दस लाख से अधिक दीक्षाप्राप्त शिष्य हैं और मैंने करोड़ों लोगों को पूर्ण नशामुक्त किया है। मैं जैसा कहता हूँ, वैसा जीवन जीता हूँ।
सत्य को दुनिया की कोई शक्ति रोक नहीं सकती। मेरे आश्रम को आकर देखो। वहां पर आकर लोग किस प्रकार नशामुक्त होकर जाते हैं? मैं ऐसी चेतना तरंगें प्रवाहित करता हूँ। मैं स्वयं नशा-मांसाहार से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीता हूँ। इसीलिए दूसरे लोगों पर उसका प्रभाव पड़ता है।
जिस व्यक्ति के जीवन में कोई नियम नहीं होते, वह पशु के समान होता है। पक्षी भी ब्राह्ममुहूर्त में चहचहाने लगते हैं, किन्तु समाज में अधिकतर लोग दिन चढ़े तक पड़े खुर्रांटे लेते रहते हैं। मैंने तीनों धाराओं का गठन इसीलिए किया है। सबसे पहले अपने आपको बचाना है। हमारा सर्वस्व नष्ट होजाय, किन्तु हम कभी भी अनीति-अन्याय-अधर्म से समझौता नहीं करेंगे।
वर्तमान में, सबसे अधिक पतन धर्मगुरुओं का हुआ है। उनका जीवन आप लोगों से भी घटिया है। उनमें अधिकतर चरित्रहीन हैं। उन्होंने अपने हाथों में रत्नजड़ित अंगूठियां धारण कर रखी हैं, क्योंकि वे सभी भयभीत हैं। उन्हें अपने इष्ट पर विश्वास नहीं है। सभी रत्नों की रचयिता हमारी ‘माँ’ हैं। यदि वह हमारे हृदय में बैठी हैं, तो किस बात का भय?
किसी भी धर्मगुरु को समाधि का ज्ञान नहीं है। वे स्वयं जाग्रत् नहीं हैं, तो दूसरों को कैसे जाग्रत् करेंगे। व्यासपीठ पर बैठकर वे झूठ बोलते हैं। पिछले 17-18 सालों से मैं उन्हें चुनौती देता आ रहा हूँ। इस विश्व में मेरी साधनात्मक क्षमता को झुकाने वाला कोई नहीं है।
एक स्थान पर ऐसा सम्मेलन होना चाहिए, जहां पर राजनेता हों, बुद्धिजीवीवर्ग के लोग हों और मीडिया के लोग भी उपस्थित हों। उनकी उपस्थिति में वैज्ञानिक यंत्रों के माध्यम से सभी धर्मगुरुओं का परीक्षण होना चाहिए। इस परीक्षण के अन्तर्गत, यदि कोई धर्मगुरु मेरी साधनात्मक क्षमता को झुका देगा, तो मैं अपना सिर काटकर उसके चरणों में चढ़ा दूंगा। मेरे पास सभी धर्मग्रन्थों का सार ‘माँ’ के रूप में है।
हम लोग बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के अपनी आत्मचेतना के बल पर अनीति-अन्याय-अधर्म को पराजित करेंगे। मैं कभी भी किसी के दरवाज़े पर नहीं जाता हूँ, भले ही कोई करोड़ों रुपया क्यों न समर्पित कर दे। न ही मुझे किसी के स्वागत की कोई आवश्यकता है। मैं कभी भी किसी से अपना माल्यार्पण नहीं कराता। मेरी अपनी पुत्रियां मेरा चरणपूजन करती हैं। दानियों को मैं पैर से ठोकर मारता हूँ। मेरे जनकल्याणकारी कार्यों में सहयोग हो, तो स्वागत है। मैं अपने कर्मबल से उपार्जित धन से अपने तथा अपने परिवार का व्यय वहन करता हूँ।
मैंने ‘माँ’ से पुत्रियों की कामना की थी, पुत्रों की नहीं। और, मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे तीनों पुत्रियां ही प्राप्त हुई हैं। तदुपरान्त, सपत्नीक पूर्ण ब्रह्मचर्य का जीवन जीता हूँ। शादी से पहले पूर्ण ब्रह्मचर्य, शादी के बाद एक पति/पत्नी व्रत और सन्तानोत्पत्ति के बाद पुनः पूर्ण ब्रह्मचर्यव्रत होना चाहिए। यही सच्चा धर्म है, यही सच्ची भक्ति होती है। कुविचारों को दूर भगाओ और अपनी बुद्धि की आवाज़ को सुनो। अपनी अन्तरात्मा की आवाज़ को, गुरु की आवाज़ को समझो और उसकी आज्ञा का पालन करो। इसके फलस्वरूप तुम सच्चे साधक बन जाओगे, तुम्हारे बच्चे सच्चे चरित्रवान् होंगे और वे कभी भी अनीति-अन्याय-अधर्म के सामने घुटने नहीं टेकेंगे।
सत्य है, तो सब कुछ है। इसलिए सत्य को पकड़ो। तुम अपने आपको पात्र बनाओ, तो परमसत्ता बिना मांगे सब कुछ दे देगी। ऋद्धियां-सिद्धियां तुम्हारे पीछे-पीछे दौड़ेंगी। आपका गुरु रेगिस्तान में बैठकर लाखों लोगों को भोजन करा सकता है। आपके घर में अतिथि आता है, तो चाहते हो कि जल्दी चला जाय। तुम लोग अतिथिसत्कार भूल चुके हो।
सबसे बड़ा धर्मयुद्ध आपको राजनेताओं के विरुद्ध लड़ना है। हो-हल्ला करके या धरना-प्रदर्शन करके नहीं, बल्कि समाज को जगाकर। हमारा संगठन किसी तोड़-फोड़ में या साम्प्रदायिकता में नहीं उलझा है। हमने समाज को संवारा है और उसे जगाया है। हमारे संगठन ने इतनी अवैध शराब पकड़कर पुलिस के हवाले की है, जितनी कभी प्रशासन ने नहीं पकड़ी। हमारा संकल्प है कि हमेशा कानून के दायरे में रहकर कार्य करेंगे। किन्तु, अब स्थिति विकट हो गई है, क्योंकि सरकार ही शराबमाफियाओं को प्रश्रय दे रही है।
अंग्रेज़ तो यहां से चले गए, किन्तु उनकी मानसिकता अभी तक चल रही है। राजसत्ता स्वयं प्रजा को शराब का ज़हर पिला रही है। देश में हज़ारों योजनाएं चलाना बिल्कुल बेकार है, यदि देश नशामुक्त नहीं है। सारे अपराधों की जड़ नशा है और इससे लोग मर भी रहे हैं।
बलात्कारियों को फांसी देने से बलात्कार कभी बन्द नहीं होंगे। इसके लिए समाज को सुधारना होगा। जड़ों को खोखला होने से बचाना होगा। समाज को सुधारने का एक ही मार्ग है कि राजनेता देश को नशामुक्त बनाएं, किन्तु राजनेता मानसिक रूप से कमज़ोर हो चुके हैं। आजकल प्रायः हर घर तबाह हो रहा है और बच्चे-बच्चियां बर्बाद हो रहे हैं। बच्चे चीख-चीखकर कह रहे हैं, ‘‘हमारे माता-पिता की शराब छुड़वा दो।’’ यह दर्द राजनेताओं के कानों तक क्यों नहीं पहुंचता?
देश में नशे के ठेकों को बन्द कर दो। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कल आवाहन किया गया है और उन्होंने यहां पर आने की अपनी स्वीकृति भी दे दी है। उनका ‘बेटी बचाओ’ अभियान कभी सफल नहीं होगा, जब तक बेटे को नहीं सुधारा जाएगा। रह गई राजस्व की बात, मझे नशामुक्ति का ठेका दे दो। मैं शराब के ठेकों से अधिक राजस्व शासन को दिला दूंगा। एक-एक सम्भाग मेरे भगवती मानव कल्याण संगठन को सौंप दो और नशामुक्ति टैक्स लगा दो। इससे मैं सरकार को सवाया राजस्व दिला दूंगा। घर-घर जाकर भी मैं मांगने से पीछे नहीं हटूंगा। मेरी त्याग-तपस्या कभी भी व्यर्थ नहीं जाएगी।
मैं इस मंच से शासन-प्रशासन को बताना चाहता हूँ कि हमारा संगठन पूर्ण मर्यादित, अनुशासित एवं सन्तुलित है। हमारे लिए हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई सभी सम्माननीय हैं। हमने आज तक नशा व मांस की दुकानों में न तो कोई तोड़-फोड़ की है और न ही कभी करेंगे।
मेरी एकान्त साधना और आश्रम में चल रहे अखण्ड श्री दुर्गाचालीसा पाठ की ऊर्जा को कोई नकार नहीं सकता। सत्य था, है और आगे भी रहेगा। हम सत्यपथ के राही हैं। हमारा त्याग-तपस्या का जीवन है। ऐसे कठोर जीवन से आज के धर्मगुरुओं की नानी याद आ जाएगी।
योग के नाम पर पूरे देश को लूटा गया और सरकार आंखें बन्द करके बैठी रही। टिकट बेचकर धन बटोरा गया, किन्तु कोई टैक्स नहीं लगाया गया, जब कि सरकारी कर्मचारियों से टैक्स वसूला जाता है। धिक्कार है ऐसी सरकारों पर!
रिश्वत देना एक अवसर पर आपकी मजबूरी हो सकती है, फिर भी उससे बचने का प्रयास करो। किन्तु, यदि रिश्वत ले रहे हो, तो वह तुम्हारी मजबूरी नहीं है। हराम का पैसा घर में फलीभूत नहीं होता। नमक-रोटी खाकर जीवन जिओ, किन्तु अनीति-अन्याय-अधर्म से कभी समझौता मत करो। बिना रिश्वत लिए यदि किसी गरीब व्यक्ति का काम कर दोगे, तो वह तुम्हें दुआएं देकर जाएगा, जिसका मूल्य लाखों रुपये की रिश्वत से कहीं अधिक होगा। अपने बच्चों को भी संस्कारवान् बनाओ और उन्हें प्यार से समझाओ। डांटने-फटकारने की बजाय, प्रेम से समझाओगे, तो वह निश्चित रूप से प्रभावी होगा।
आज महाशिवरात्रि का दिन है। मैं आपको अपना आशीर्वाद प्रदान करता हूँ। शिवमन्दिरों में जाने से अधिक लाभ तुम्हें यहां पर मिलेगा। शिवभक्ति भी आज एक ढोंग बन गई है। किसने कब शिव को भांग पीते देखा है, जो उसे भांग चढ़ाते हो? धिक्कार है ऐसे पुजारियों को! मेरी चुनौती है उन पुजारियों को भी। एक ओर मैं ‘माँ’ शब्द को लेकर बैठूंगा और दूसरी तरफ वे सारे पुजारी बैठ जायं। धर्मरक्षा के लिए ऐसा एक आयोजन होना चाहिए और परीक्षण होना चाहिए। मेरी साधनात्मक क्षमता को यदि कोई झुका देगा, तो आजीवन मैं उसकी गुलामी करूंगा।
अकेले आसाराम बापू नहीं, ऐसे अनेकों बापू आजकल समाज में भरे पड़े हैं। समय के साथ उनका पर्दाफाश होगा। हरियाणा में रामपाल जैसे और भी पड़े हैं। या तो ऐसे लोग मेरा सामना करेंगे, नहीं तो कोई भी उनके वैभवशाली आश्रमों को देखना तक पसन्द नहीं करेगा।
गांधी जी के तीन बन्दरों का गलत अर्थ लगाए जाने के कारण समाज में बुराई बढ़ रही है। मेरा मानना है कि अगर तुम बन्दर हो या बन्दर की औलाद हो, तो बुराई मत देखो, बुराई मत सुनो और बुराई मत करो। किन्तु, यदि इन्सान हो या इन्सान की औलाद हो, तो बुराई को खुली आंखों से देखो, खुले कानों से सुनो और उसके खिलाफ आवाज़ उठाओ तथा ज़रूरत पड़े, तो हाथ भी उठाओ। अन्यथा, तुम इन्सान की नहीं, बन्दर की औलाद हो।
यदि तुम्हारे एक गाल पर कोई तमाचा मारे, तो उसे चेतावनी दे दो। फिर भी दुबारा हाथ उठाए, तो उसका हाथ तोड़ दो। यह मेरा आदेश है। यदि कोई दिल से क्षमा मांगे, तो उसे क्षमा कर दो। हमेशा कानून के दायरे में रहकर कार्य करो।
कल यहां पर नशामुक्ति का महाशंखनाद होगा, एक ऐसा महाशंखनाद, जिसके साथ सत्य की ऊर्जा जुड़ी होगी। हमारी यात्रा उस बरसात के समान है, जो तत्काल राहत देती है और धीरे-धीरे पौधा हरा-भरा होता है।
मेरे द्वारा निर्मित शक्तिजल के पान करने से 90 प्रतिशत नशेड़ी नशामुक्त होजाते हैं। आजकल सरकार के द्वारा एक ओर नशे की दुकानें चलाई जा रही हैं और दूसरी तरफ नशामुक्ति अभियान चलाया जाता है। शासन-प्रशासन के द्वारा हर साल इस पर लाखों-करोड़ों रुपया खर्च किया जाता है, जबकि मेरी संस्था ने इतने सारे लोगों को निःशुल्क नशामुक्त किया है, जितना किसी भी संस्था ने नहीं किया है।
कल गुरुदीक्षा लेकर नए शिष्य भी नशामुक्ति का महाशंखनाद कर सकते हैं। यह उनके लिए सौभाग्य की बात होगी। मेरा सबसे बड़ा पद यह है कि परमसत्ता मुझे अपना पुत्र मानती है। किसी पद पर रहकर मैं कार्य भी नहीं करना चाहता।
हमारे पास कोई उतावलापन नहीं है। हम समाज को और राजसत्ता को जगा रहे हैं, किन्तु हमारी भी कुछ सीमाएं हैं।
मेरे समक्ष आंखें बन्द करके भी आप बैठेंगे, तो मेरी चेतनातरंगों से खाली नहीं जाएंगे। मेरे द्वारा दी गई दीक्षा निःशुल्क रहती है। जाति-धर्म और गरीब-अमीर का कोई भेदभाव नहीं रहता। दीक्षाशुल्क के रूप में मैं आपसे आपके अवगुण मांगता हूँ। यदि कल आप केवल एक यह संकल्प ले लेंगे कि पूर्ण नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् जीवन जियेंगे, तो मैं आपके अब तक किये गये सारे पापों से मुक्त कर दूंगा। यह मेरा वचन है।
काल का एक चक्र भी मुझसे छुपा नहीं है। छठवें महाशक्तियज्ञ में मैंने कहा था कि मेरे ऐसे हर एक यज्ञ में वर्षा अवश्य होगी, भले ही थोड़ी देर के लिए हो। और, यह वर्षा अवश्य हुई, जब कि वे यज्ञ अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मौसमों में किये गए थे।
अन्त में, सबको दोनों हाथ उठवाकर संकल्प दिलाया गया कि पूर्ण नशा-मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् जीवन जियेंगे और पूरा जीवन मानवता की सेवा, धर्मरक्षा तथा राष्ट्ररक्षा के लिए समर्पित होगा।
द्वितीय दिवस- गुरुदीक्षा क्रम
प्रातः लगभग 07 बजे से ही दीक्षार्थी शिविर पण्डाल में एकत्र होना प्रारम्भ होगए थे। सबको कुंकुम का तिलक लगाकर पंक्तिबद्ध ढंग से बैठा दिया गया। नियत समय पर ‘माँ’-गुरुवर के जयकारों के मध्य परम पूज्य सद्गुरुदेव जी का शुभागमन हुआ। दीक्षा प्रदान करने से पूर्व आपश्री ने दीक्षार्थियों को एक संक्षिप्त उद्बोधन दियाः
जिन क्षणों पर शिष्य एक चेतनावान् गुरु से दीक्षा प्राप्त कर रहे होते हैं, वे बहुत ही सौभाग्यशाली क्षण होते हैं। इस भूतल पर सभी रिश्तों में महत्त्वपूर्ण रिश्ता गुरु और शिष्य का होता है। समाज के सभी रिश्ते शरीर से सम्बन्धित होते हैं, जब कि गुरु का रिश्ता आत्मा से होता है। गुरु से रिश्ता जोड़ने मात्र से शिष्य का कल्याण नहीं हो सकता। उसका कल्याण तभी होगा, जब वह गुरु के मार्गदर्शन में चलता रहेगा। शिष्यों का आत्मकल्याण ही मेरा मूल लक्ष्य है। आज जो भी कष्ट व परेशानियां आप झेल रहे हैं, वे पूर्व जन्मों के दुष्कर्मों के फलस्वरूप हैं। अतः आज से ही सत्कर्म करना शुरू कर दें, जिससे आगे कोई परेशानी खड़ी न हो।
साधना का तात्पर्य केवल सुबह-शाम की आराधना नहीं होता। आपको सत्यपथ का राही बनना है। कल तक आपने किस प्रकार का जीवन जिया, उसे भूल जाइये। इसी क्षण से आपको नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् जीवन जीना है।
शिष्य गुरु के मानसपुत्र होते हैं और यह सम्बन्ध सर्वोच्च सम्बन्ध होता है। पूजन में आप लोग किसी बात की भ्रान्ति न पालें। किस छवि का पूजन पहले करें और किसका बाद में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
आपके पास जो भी संसाधन हों, उसके अनुरूप अपने घर में ‘माँ’ का मन्दिर बनाएं। घर के ऊपर ‘माँ’ का ध्वज लगा लो, जिससे सात्त्विक तरंगें आबद्ध हो जाएंगी। गुरुवार का व्रत रखें। गुरुवार ज्ञान का दिन है। इसमें सारे व्रत समाहित हैं। अतः सभी व्रतों को गुरुवार से जोड़ दो। सभी का फल आपको मिलने लगेगा। गुरुवार व्रत में पीले वस्त्र और पीला भोजन ज़रूरी नहीं है। हल्का फलाहार लें। सायंकाल में शुद्ध-सात्त्विक भोजन करें। यदि सफर में हों, तो ‘माँ’ का चिन्तन-स्मरण करके जो भी शुद्ध-सात्त्विक मिल जाय, भोजन कर लें।
चाहें, तो हर महीने कृष्णपक्ष की अष्टमी का भी व्रत रख सकते हैं। यह अनिवार्य नहीं है। मैं स्वयं ये दोनों व्रत करता हूँ। यदि किसी कारणवश अष्टमी छूट जाय, तो दूसरे दिन नवमी को व्रत रख लें। और, यदि नवमी भी छूट जाय, तो चतुर्दशी का व्रत कर सकते हैं। इन तीनों का फल एक ही है। इस प्रकार, गृहस्थी में रहकर भी आप एक साधक बन सकते हैं। इससे आपको सन्तोष एवं शान्ति मिलेगी।
संकल्प लो कि नशा-मांसाहार से मुक्त चरित्रवान् जीवन जियेंगे। मैं आप सबको अपने मन-मस्तिष्क पर स्थापित करता हूँ। यदि आपने इस संकल्प पर अमल कर लिया, तो आजीवन आपको कोई भी शक्ति मुझसे दूर नहीं कर सकेगी। आपसे अब तक कितने भी अपराध हो गए हों, कोई बात नहीं। मैं उनके पापों से तुम्हें मुक्त करता हूँ।
मेरा पूर्णत्व का स्वरूप क्या है, यह कोई नहीं जान सकता। जो इसे जान लेगा, वह सौभाग्यशाली होगा। मेरी उस ऊर्जा को कोई पचा नहीं पाता। मेरे शरीर के स्पर्श से बिजली जैसा करैण्ट लग जाता है। मेरे पास रहने वालों को मैंने यह अनुभव कराया है। योगियों के नेत्रों की त्राटक शक्ति से बड़े पर्वत को भी ध्वस्त किया जा सकता है।
तीनों धाराओं के प्रति समर्पित होजाओ। भौतिकता में कुछ नहीं रखा है। उसे छोड़ो और आध्यात्मिकता में प्रवेश करके आनन्द लो। नित्य शक्तिजल का पान करो।
मेरुदण्ड को सीधा करके चेतनता से बैठें और मेरे साथ तीन बार ‘माँ’ और ‘ऊँ’ का उच्चारण करेंगे।
अब सभी को एक संकल्प कराया गया, जिसका सार यह हैः मैं, आज इस साधनात्मक शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में मन-वचन-कर्म से दृश्य एवं अदृश्य की समस्त शक्तियों तथा उपस्थित जनसमुदाय को साक्षी मानकर संकल्प करता हूँ कि मैं ब्रह्मर्षि धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज को अपना गुरु स्वीकार करता हूँ। मैं जीवनपर्यन्त नशा-मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् जीवन जीने के साथ उनके आदेश का पूर्णतया पालन करूंगा। भगवती मानव कल्याण संगठन के निर्देशों और तीनों धाराओं के प्रति समर्पित रहूंगा तथा संगठन के जनकल्याणकारी कार्यों में सहभागी बनूंगा।
यदि इस संकल्प पर अमल किया, तो गुरु-शिष्य का यह सम्बन्ध अटूट रहेगा। अब मेरे साथ मंत्रों का जाप करें। मेरे मुख से निकलकर ये मंत्र उत्कीलित होजाते हैं।
बजरंगबली जी की कृपा प्राप्त करने के लिए-
ऊँ हं हनुमतये नमः, तीन बार
भैरव देव जी की कृपा प्राप्त करने के लिए-
ऊँ भ्रं भैरवाय नमः, तीन बार
गणपति देव जी की कृपा प्राप्त करने के लिए-
ऊँ गं गणपतये नमः, तीन बार
‘माँ’ का चेतनामंत्र ‘माँ’ की कृपा प्राप्त करने के लिए-
ऊँ जगदम्बिके दुर्गायै नमः, तीन बार
गुरुमंत्र गुरु की कृपा प्राप्त करने के लिए-
ऊँ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः, तीन बार
इन मंत्रों को आगे-पीछे करने में कोई फर्क नहीं पड़ता। किन्तु, सामूहिक रूप से करने में एक क्रम का ध्यान रखा जाता है। नित्य कम से कम एक श्री दुर्गाचालीसा का पाठ अवश्य करें।
मानसिक जाप कभी भी कहीं पर भी किया जा सकता है। अशुद्धता की अवस्था में अलग कमरे में पूजन कर सकते हैं। एक दिन भी पूजन रोकने का विधान नहीं है। गमी के समय भी अलग कक्ष में धीमे स्वर में कर सकते हैं। शुद्धता, सात्त्विकता एवं एकाग्रता सदैव बनी रहनी चाहिए।
अन्त में सभी दीक्षाप्राप्त शिष्यों ने गुरुवरश्री की चरणपादुकाओं का स्पर्श करके नमन-प्रणाम किया। सबको एक-एक शीशी शक्तिजल निःशुल्क प्रदान किया गया और दीक्षापत्रक भरकर लौटाने के लिए दिया गया।
महाराजश्री ने कहा कि मेरे द्वारा स्पर्श की गई किसी भी वस्तु में मेरी ऊर्जा रहती है। ये चरणपादुकाएं भी मेरे द्वारा स्पर्श की गई हैं।
‘माँ’ शब्द यद्यपि छोटा सा है, किन्तु जीवन का सम्पूर्ण सार एवं आनन्द इसमें समाहित है। यह प्रकृति का प्रथम शब्द है और दूसरा शब्द ‘ऊँ’ है। इस ‘माँ’ शब्द में ब्रह्माण्ड का सार समाहित है। इसी के माध्यम से हम अपनी कुण्डलिनी चेतना जाग्रत् कर सकते हैं।
वर्तमान में हर मनुष्य का मन दूषित हो चुका है। उसकी मूल नाड़ी बाधित हो रही है। सुलझे हुए रहस्य उलझ रहे हैं। मनुष्य सत्य से और आनन्द से दूर होता जा रहा है। मन-मस्तिष्क और बुद्धि संकुचित हो गए हैं। जीवन रूपी पौधा धीरे-धीरे मुर्झा रहा है। मनुष्य अपनी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए एक से बढ़कर एक अपराध करता जा रहा है।
इस स्थिति को सुधारने के लिए कहीं से शुरूआत करनी होगी। धर्मग्रन्थों को रटकर महान् नहीं बना जा सकता है। उन्हें तो एक शराबी भी रट सकता है, किन्तु उसके विचारों में परिवर्तन नहीं होता। जो धर्मग्रन्थों पर अमल करता है, कल्याण उसी का होता है। वस्तुतः, धर्मग्रन्थों में मूल सार है ही नहीं।
वर्तमान में, धर्म का स्वरूप विकृत हो चुका है। पुजारी लोग भी कुछ मर्यादाओं का पालन किया करते थे, किन्तु अब कोई मर्यादा नहीं रही है। धर्म अब एक व्यवसाय, अर्थात् धनार्जन का माध्यम बन चुका है। कथावाचक भी धन के पीछे पड़े हैं। उनके भीतर परोपकार की भावना है ही नहीं। सब जगह भटकाव है।
इसी भटकाव को दूर करने के लिए मेरे द्वारा एक सहज-सरल मार्ग दिया गया है। ‘माँ’ की कृपा से मुझे समस्त धर्मग्रन्थों का ज्ञान हुआ है। बचपन से ही मेरा झुकाव ‘माँ’ की आराधना की ओर था। मेरा लक्ष्य था परमसत्ता की कृपा की प्राप्ति। परमसत्ता से जुड़ी कड़ी पर ज़ंग न लगने पाए। मेरे परिवार के लोग, बड़े भाई भी यहां पर बैठे हैं, जो मेरे शिष्य बनकर आध्यात्मिक जीवन जी रहे हैं।
मैंने कभी भी जंगल-पहाड़ों में जाकर तपस्या नहीं की है, बल्कि गृहस्थ जीवन जीकर सब कुछ प्राप्त किया है। इसी प्रकार, लोगों के अन्तःकरण का मैंने परिवर्तन किया है। रक्तबीज से प्रेरणा लेकर मैंने लोगों को बदलना प्रारम्भ किया और तपस्या के माध्यम से उपार्जित शक्ति उन्हें प्रदान की तथा अपने रोम-रोम को मानवता के कल्याण को समर्पित किया।
छठे महाशक्तियज्ञ में मैंने अपना परिचय दिया था कि मैं कौन हूँ? किसी असाध्य रोग से पीड़ित रोगी को ठीक करना, गुप्त बातें बताना, किसी भी मौसम में कहीं पर भी वर्षा कराना या धुआंधार होती हुई वर्षा को रोकना–ऐसे सब कार्य मैंने करके दिखाए हैं। अभी भी यदि ऐसा मैं न कर सका, तो आध्यात्मिक जीवन छोड़कर हिमालय में चला जाऊंगा।
मनुष्य के अन्तःकरण के परिवर्तन के लिए मैंने समाज को ‘माँ’-ऊँ बीजमंत्र दिये हैं। इनसे सुषुम्ना नाड़ी का मंथन होता है और इसी से आत्मकल्याण होगा। इन मंत्रों का प्रयोग अमीर-गरीब कोई भी कर सकता है। इनके द्वारा आप विवेकवान्, धर्मवान्, धैर्यवान् बन जाओगे। प्रारम्भ में यदि मन न लगे, तब भी कुछ देर इस क्रमिक उच्चारण को करो। इस बीच जब ‘माँ’ का उच्चारण करें, तो भावना करें कि हम अन्तःकरण की ऊर्जा को बाहर निकाल रहे हैं। जब ‘ऊँ’ का उच्चारण करें, तो जैसे बाहर की ऊर्जा को भीतर लेजा रहे हैं। इन मंत्रों के क्रमिक उच्चारण से प्राणशक्ति चैतन्य होती है, जाग्रत् होती है और जीवन निरोगी होता है। ग्रन्थों मे जो क्रियाएं दी गई हैं, वे भ्रमित करती हैं। उनसे कुण्डलिनी शक्ति कभी भी जाग्रत् नहीं हो सकती।
इसके बाद कम से कम 15-20 मिनट तक ध्यान करें। आज्ञाचक्र को इसका माध्यम बनाएं। आगामी शारदीय नवरात्र के शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में मैं आपको इसका क्रियात्मक पक्ष दूंगा।
सभी देवी-देवताओं का सम्मान करो। मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और गुरुद्वारे ज़रूर जाएं, किन्तु जो हमारी मूल जननी माँ हें, इष्ट उसे ही मानें। तभी साधना फलीभूत होगी। जितना हम अपनी जननी से दूर होते हैं, उतना ही हमारा पतन होता है और हम अधर्म की ओर बढ़ते हैं। जब हम ‘माँ’ के निकट जाते हैं, तो धर्म होता है, समस्याओं का समाधान होता है और उत्थान होता है।
आपको साधक बनकर जीवन जीना पड़ेगा। नित्य ब्रह्ममुहूर्त में जागो और प्रकृति के निकट रहो तथा धर्मभीरु कभी मत बनो, धर्मवान् बनो। एक अबोध शिशु बनकर ‘माँ’ के प्रति तड़प पैदा करो। चौबीसों घण्टे सतर्क रहो। कुविचार आएं, तो शत्रु मानकर उन्हें भगाओ और सात्त्विक विचारों की ओर ध्यान लेजाओ। इससे धीरे-धीरे मन पवित्र होना शुरू हो जाएगा।
आपका जीवन एक स्फटिक पत्थर की भांति निर्मल होना चाहिए, उसमें एक दिव्यता हो और परोपकार की भावना हो। तब शराबी भी तुम्हें अपना मानेंगे और सभी धर्मों के लोग तुम्हें अपना मानेंगे।
इस कलिकाल के भयावह वातावरण को दूर भगाने का एक ही मार्ग है–नशे-मांस से दूर होकर तुम तपस्वी बन जाओ। यह क्षमता हमारे अन्दर है और उस पर हमारी पकड़ है। इसके फलस्वरूप हम परमसत्ता का सान्निध्य प्राप्त कर सकते हैं।
मैं लोगों का समूह खड़ा करके उन्हें मालामाल करने का लोभ नहीं देता हूँ। यद्यपि आश्रम में इस समय अत्यन्त प्रारम्भिक स्थिति है, किन्तु आप वहां पर बैठकर देखो कि ‘माँ’ की कृपा क्या होती है? जहां पर सत्य होता है, वहां सहज भाव से फल मिलता है। मैंने अपने शिष्यों को पारस के समान साधक बनाया है। उनके सम्पर्क में आकर लोग वैसे ही बन जाते हैं।
(परम पूज्य गुरुवरश्री के चिन्तनों के मध्य मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जी, मंत्री गोपाल भार्गव जी एवं सुधा मलैया जी का आगमन हुआ)
वर्तमान की आवश्यकता है असहायों के दर्द को समझने की। तब तुम्हारे कदम परोपकार की ओर बढ़ते चले जाएंगे। आज मानवता तड़प रही है, कराह रही है। ऐसे में तुम्हें अपने कर्तव्य का निर्वाह करना ही पड़ेगा।
हमारा संगठन नशामुक्ति के लिए संघर्ष कर रहा है। इसमें कुछ स्थानों पर शासन का सहयोग मिलता है, कुछ जगह नहीं मिलता। एक जगह महिलाओं के ऊपर शराबमाफियाओं के द्वारा खौलता हुआ तेल डाला गया। एक युवक को उल्टा टांगकर पीटा गया कि वह नशामुक्ति अभियान में क्यों लगा था? इसके बावजूद संगठन नशामुक्त समाज के निर्माण के लक्ष्य के प्रति दृढ़संकल्पित है।
अपराध के पीछे नशा है। इससे बीमारियां भी हो रही हैं। शराब के ठेके की एक दुकान के पीछे सौ-सौ अवैध दुकानें चल रही हैं। गुण्डे-अपराधियों को प्रशासन के द्वारा संरक्षण दिया जा रहा है। नशे के कारण मानवता का सबसे अधिक पतन हो रहा है।
माननीय मुख्यमंत्री जी के द्वारा हमें आश्वासन दिया गया है कि शराब के नए ठेके नहीं दिए जाएंगे। हमारी आपसे अपेक्षा है कि आप एक बार नशामुक्ति का निर्णय ले लें, भले ही सत्ता चली जाय। मैं आपको आश्वासन देता हूँ कि आपकी सत्ता को कोई छीन नहीं सकेगा। राजस्व के सम्बन्ध में हमारा कहना है कि इसके लिए आप नशामुक्ति टैक्स लगा दें। मैं आश्वासन देता हूँ कि लोग शराब से आने वाले राजस्व से अधिक टैक्स दे देंगे।
(उपस्थित जनसमुदाय के दोनों हाथ उठवाकर आश्वासन दिलाया गया।)
आप थाने में जाएं, तो वहां पर गरीबों की कोई सुनने वाला नहीं है। आज़ादी के बाद कांग्रेस ने जो दिया, वहां पर वही चल रहा है। थानों में पुलिस वाले प्रायः टुन्न पड़े रहते हैं। शाम के समय सभी थानों की चैकिंग होनी चाहिए।
नशामुक्ति का कार्य कठिन ज़रूर है, किन्तु एक बार हिम्मत जुटाकर देखें। एक-एक संभाग का नशामुक्ति का ठेका हमारे संगठन को देदें। कोई जल्दी नहीं है। अपनी कैबिनेट की मीटिंग करके निर्णय लें। एक बार आप अपनी कैबिनेट के साथ सिद्धाश्रम पहुंचें। वहां पर बैठकर आप सही निर्णय लेंगे।
जीवन नष्ट हो जाय, किन्तु हमारा संकल्प न टूटे।
(सबको दोनों हाथ उठवाकर संकल्प कराया गया कि नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जियेंगे और अनीति-अन्याय-अधर्म से कभी भी समझौता नहीं करेंगे।)
मैं आश्रितों का जीवन नहीं जीता। धर्मक्षेत्र आज खोखला हो चुका है। आध्यात्मिक चुनौती मैंने धर्मरक्षा के लिए दी है। यह धर्मरक्षा के लिए ज़रूरी है। हज़ारों धार्मिक संस्थाएं होते हुए भी आज समाज पतन की ओर जा रहा है।
तत्पश्चात् मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जी ने अपने विचार व्यक्त किये और परम पूज्य गुरुवरश्री ने अपना चिन्तन पुनः प्रारम्भ किया-
माननीय मुख्यमंत्री जी को मेरा आशीर्वाद! आप लोगों ने उनके विचार सुने। उनके विचार भी हमारे जैसे ही हैं। इस प्रकार, एक के बाद एक कडिय़ां जुड़ रही हैं।
तत्पश्चात्, लगभग 3 मिनट तक ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ किया गया। परम पूज्य गुरुवरश्री के सान्निध्य में लाखों भक्तों के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी ने भी शंखध्वनि की।
शंखनाद के पश्चात् गुरुवरश्री ने कहा कि यह शंखनाद कभी रुकने न पाए। हर घर में ‘माँ’ की आराधना हो और हर धर्म-सम्प्रदाय का आदर करें। हमें मील का पत्थर बनना है। सफलता-असफलता कुछ भी मिले, हमें आगे बढ़ते रहना है। कार्य करोगे, तो आपमें निखार आएगा। आने वाली पीढ़ी भागीरथ की तरह समाज को नशामुक्त करेगी। एक न एक दिन मानवता की रक्षा ज़रूर होगी। तत्पश्चात्, दिव्य आरती, प्रणाम एवं प्रसाद वितरण का क्रम सम्पन्न हुआ।
तृतीय दिवस- दिव्य उद्बोधन
इस पंचदिवसीय नशामुक्ति महाशंखनाद शक्ति चेतना जनजागरण शिविर का आज अन्तिम दिवस था। आज प्रातः 07 बजे से 09 बजे तक शक्तिस्वरूपा बहन संध्या जी ने शिविरार्थियों को मंत्रजाप, ध्यानसाधना एवं योगाभ्यास कराया।
अपराह्न 2 से 3 बजे तक भजन एवं जयकारों के बाद परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का चेतनात्मक प्रवचन हुआ।
आज गुरुवार का दिन है। इसे ज्ञान का दिन कहा जाता है। यह सभी व्रतों में सर्वश्रेष्ठ व्रत होता है। इस व्रत को रखने से अन्य किसी व्रत को रखने की आवश्यकता ही नहीं है। यह ‘माँ’ का दिन है और मैं स्वयं यह व्रत रखता हूँ। आप लोग नाना प्रकार के व्रत-त्योहारों में मत भटको। केवल इसे ही पकड़ लो, तो आपका अन्तःकरण शान्त हो जाएगा।
गुरुवार के व्रत में किसी भी प्रकार की भ्रान्ति में पड़ने की ज़रूरत नहीं है। न तो पीले वस्त्र धारण करना ज़रूरी है और न पीला भोजन करना। दिन में थोड़ा फलाहार लेलें और सायंकाल में शुद्ध-सात्त्विक भोजन कर लें। यात्रा के दौरान भी शाम को परमसत्ता का ध्यान-चिन्तन करने के बाद, जो कुछ भी शुद्ध-सात्त्विक मिले, उसे ग्रहण कर लें।
‘माँ’ की साधना से सरल अन्य कोई साधना नहीं है। ‘माँ’ के सम्बोधन में अपनेपन का अहसास होता है। हर व्यक्ति अपनी माँ से मिलने की इच्छा रखता है। यदि नहीं रखता, तो इसका कारण यह है कि आवरण पड़े हुए हैं। यदि ध्यान-साधना करने लगें, तो ‘माँ’ की ओर आकर्षण बढ़ने लगेगा। इससे जड़ता दूर होने लगेगी, क्योंकि यह एक सहज रिश्ता है, जो बनाना नहीं पड़ता। शेष सभी रिश्ते बनाए जाते हैं। दुनिया का ऐसा कोई कार्य नहीं, जो ‘माँ’ की आराधना से पूरा न किया जा सके।
अपने ‘मैं’ को जानने वाला सहज ही ‘माँ’ को जान लेता है। यदि इस कलिकाल के भयावह वातावरण को हटाना है, तो अपने ‘मैं’ को जानना ही होगा। मैं वास्तव में कौन हूँ? मैं किसका अंश हूँ? इसके लिए अपने अन्तःकरण को निर्मल बनाने की आवश्यकता है। जीवन में सब कुछ विचारों का खेल है। जैसे आपके विचार होंगे, वैसे ही बन जाओगे। क्रोध का विचार नहीं होगा, तो किसी को एक तमाचा नहीं मार सकते। इसी प्रकार, जब तक लोभ का विचार नहीं होगा, तो करोड़ों की सम्पत्ति भी मिट्टी के समान लगेगी।
इसलिए, अपने विचारों पर पकड़ हासिल करो। इससे सब कुछ हासिल हो जाएगा। विचार करो कि ‘माँ’ आपके अन्दर हैं। उससे कभी विलग नहीं होओगे। कुविचारों से ‘माँ’ की दूरी बढ़ती है। इसलिए उन्हें दूर भगाओ। सात्त्विक विचारों को सोचो। इससे साधना सिद्ध हो जाएगी और पकड़ हाथ में आ जाएगी। अपने अन्तर्मन को निर्मल बनाओ, तो ‘माँ’ तुम्हारी रक्षा करेंगी। ‘माँ’ हर पल हमारी सहायता करने के लिए व्याकुल हैं। इसलिए सदैव ‘माँ’ के सान्निध्य में रहो। आपका अपनी आत्मा के प्रति समर्पण बढ़ने लगेगा।
‘माँ’ की आराधना का अर्थ है केवल सत्य को पहचानना। इसमें और गति लाओ। प्राणों में सब कुछ सार समाहित है। अतः नित्य नियमित प्राणायाम करो।
अपने परिवार की ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए ‘माँ’ की आराधना करो। इससे तुम अपने बच्चों को भी चेतनावान् बना लोगे। बच्चे की प्रथम पाठशाला उसका घर होता है। इसलिए अपने घर को पावन-पवित्र मन्दिर बनाओ।
अपने घर के ऊपर ‘माँ’ का ध्वज टंगा लो। इससे सात्त्विक तरंगें आकर्षित होंगी और समस्त वास्तुदोष समाप्त हो जाएंगे। घर में नारी को पूरा सम्मान दो, उसे खुला वातावरण दो, ताकि वह भयभीत एवं तनावपूर्ण न रहे। ध्यान रखो कि घर में कभी भी लड़ाई-झगड़े का वातावरण न बने।
अपने माथे पर कुंकुम तिलक लगाओ। यह आज्ञाचक्र है। इसे सदैव आच्छादित रखो। इससे असात्त्विक तरंगें दूर रहेंगी और दूषित तरंगें प्रवेश नहीं कर पाएंगी। यदि श्मशान में भी घूमते रहोगे, तो अप्रभावित रहोगे। यह अपनी समस्याओं के समाधान के लिए बहुत सहज-सरल मार्ग है।
काम-क्रोधादि के कुविचारों से सदैव सजग रहो। सोचने लगो कि आत्मा को निखारना है। हमेशा निष्काम साधना करो। वैसे निष्काम कर्म कोई होता ही नहीं है। हर कार्य के पीछे कोई न कोई कामना होती है। किन्तु, सतोगुणी कर्म निष्काम होते हैं।
छुआछूत से अपने आपको दूर रखो। जगज्जननी माँ की सन्तानों में छुआछूत का क्या मतलब है? मानवता से प्रेम करो। यही तो ‘माँ’ की आराधना हैं। किन्तु, सफाई-शुद्धता का ध्यान हमेशा रखो। मैं सभी का छुआ भोजन कर लेता हूँ। मेरा धर्म कभी भी बाधित नहीं हुआ। इन्सानियत का पाठ पढ़ो, तभी तो ‘माँ’ के सच्चे भक्त बनोगे। धनवान् नहीं, धर्मवान् बनो। सुसंस्कार ही तुम्हारा सच्चा धर्म है। मानवधर्म का पालन करो। इसी के लिए मैंने तीन धाराएं दी हैं। मानवता की सेवा ही परम धर्म है। यह राष्ट्र से भी श्रेष्ठ है। घायल व्यक्ति किसी भी जाति, धर्म या देश का हो, उसकी सेवा-सहायता करना हमारा धर्म है।
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई सभी अपने-अपने धर्म को गहराई से समझें। मानवता की सेवा के लिए मैंने भगवती मानव कल्याण संगठन का गठन किया है। धर्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा के लिए क्रमशः पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम और भारतीय शक्ति चेतना पार्टी का गठन किया है।
राजनीति हम सत्ता सुख के लिए नहीं, बल्कि समाजसेवा के लिए कर रहे हैं। तब जन-जन आपको अपनाएगा और सत्ता तक पहुंचाएगा। मेरा पूरा जीवन समाजसेवा से जुड़ा है। मेरी तीनों बेटियां पूजा, संध्या और ज्योति क्रमशः भगवती मानव कल्याण संगठन, भारतीय शक्ति चेतना पार्टी और पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम का नेतृत्व कर रही हैं। इसके लिए मैंने उन्हें ऊर्जा और संस्कार दिये हैं। मेरा पूरा जीवन इन तीनों धाराओं के प्रति समर्पित रहेगा।
भारतीय शक्ति चेतना पार्टी का कोई सदस्य एक दिन दिल्ली के लालकिले पर राष्ट्रध्वज अवश्य फहराएगा, भगवती मानव कल्याण संगठन जैसा कोई संगठन विश्वभर में नहीं होगा और पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम एक दिन विश्व की धर्मधुरी बनेगा। मेरे सामने सारा चित्र स्पष्ट है। उसे कोई रोक नहीं पाएगा।
मैं सभी बच्चों, बूढ़ों और युवाओं का आवाहन करता हूँ कि ‘माँ’ के ध्वज के नीचे आओ और लोगों के दुःख-दर्द मिटाने के लिए एकजुट होजाओ। तुम्हारा गुरु तुम्हारे नज़दीक खड़ा नज़र आएगा। दूसरा और कोई इस कार्य को नहीं कर पाएगा। यह कलियुग नहीं, कर्मयुग है। तुम्हें जागना होगा, उठ खड़े होना होगा और कर्म करना पड़ेगा। तुम्हारे भावों को छीनने की क्षमता इस कलिकाल में नहीं है।
मैं तुम्हारे अन्दर चेतना का संचार कर रहा हूँ। चूहों का जीवन मत जिओ। जिस तरह वह एक-एक दाना अनाज एकत्र करता है, उस तरह धन एकत्र मत करो। जो भी धन तुम्हारे घर में आए, वह ईमानदारी और पुरुषार्थ से आए। यदि आवश्यकता से अधिक धन आए, तो वह मानवता की सेवा में लगना चाहिए।
धनवान् हर कोई नहीं बन सकता, किन्तु धर्मवान् सब बन सकते हैं। परस्पर प्रतिस्पर्धा भौतिकता के लिए नहीं, बल्कि आध्यात्मिकता के लिए करो। आपके लिए सत्यपथ के अलावा और कोई मार्ग नहीं है।
देवी-देवताओं के नाम पर बलि देना सबसे जघन्य अपराध है। जहां पर ऐसा होता है, वहां मंदिर के पुजारी जल्लाद हैं। अपने सुख के लिए दूसरे जीवों की हत्या करना दुर्भाग्य है। समाज को समझाना हमारा काम है।
मैं तुम्हें साधु-सन्त बनाने नहीं, साधक बनाने आया हूँ। इससे तुममें दूसरे साधु-सन्तों से अधिक पात्रता आ जाएगी। निर्मल बाबा के जैसा ठग और लुटेरा कोई दूसरा नहीं है। हरियाणा के रामपाल और आसाराम बापू का अंजाम तुमने देखा है। लाखों-लाख लोग उनसे जुड़े थे। डेरा सच्चा सौदा सन्त बनते-बनते फिल्म ऐक्टर बन गए। नंगे-लुच्चे-लफंगे लोग, आमिर खान हों या कोई और, विदेश का गुणगान करते हैं और स्वदेश को हीन बताते हैं। मीडिया भी लोभ-लालच में गिर चुका है। अश्लील विज्ञापन आ रहे हैं। इन्हें कोई रोकने वाला नहीं है। सरकार का दिमाग तो घुटनों में जा चुका है। कम से कम तुम जाग जाओ। हमारे युवा भटक रहे हैं और फिल्मी ऐक्टरों का अनुसरण कर रहे हैं।
हमारे देश की अनेकों नारियों ने आदर्श प्रस्तुत किये हैं। उनका अनुसरण करो। यदि ऐसा करते, तो शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द को साईं बाबा का भय न सताता। विश्वामित्र और वसिष्ठ जैसे ऋषियों की आराधना करते, तो सब कुछ सम्भव था।
हमारे शंकराचार्यों को धनाढ्य लोग पसन्द हैं। गरीब लोग तो उनके पास भी नहीं जा सकते। वे उनके चरण भी स्पर्श नहीं कर सकते। इस कलिकाल से तुम्हें ‘माँ’ ही निकाल सकती हैं। अतः उनकी शरण में जाओ।
अहंकार और स्वार्थ से सदैव दूर रहो। यह हर कार्यकर्ता को मेरा आदेश है। आने वाली पीढ़ी भी तुमसे आगे खड़ी नज़र आएगी। हमेशा समता का भाव रखो। यदि तुम अपने से कनिष्ठ कार्यकर्ताओं से अपनी सेवा करवाओगे, तो मुझसे दूर होते चले जाओगे। तुम्हारा स्वयं का धर्म है कि खुद अपना काम करो। सदैव सच्चाई-ईमानदारी का जीवन जिओ। कार्यकर्ताओं में बहुत सुधार हुआ है, किन्तु न्यूनताएं भी कुछ कम नहीं हैं। दूसरों की निगाहों में गिर जाना बहुत बड़ी बात नहीं है, किन्तु अपनी निगाहों में गिरना बहुत बड़ी बात है। इसलिए कभी भी अपनी निगाहों में मत गिरो।
देश के युवाओं का मैं आवाहन करता हूँ कि यदि वे संवर गए, तो आने वाला समय उनका होगा। और, यदि वे भटक गए, तो यह देश बहुत पीछे चला जाएगा।
सन्तोष और धैर्यता में जीवन का समस्त सुख और शान्ति समाहित हैं। हर पल हमारे सामने ‘माँ’ नज़र आनी चाहिएं। इसलिए जनजागरण करो, परिवर्तन आता चला जाएगा। आप लोगों में भी तो इसी तरह परिवर्तन आया है। आपके कदम निरन्तर सत्यपथ की ओर बढ़ते रहने चाहिएं। हमारा आत्मबल, ‘माँ’ की आराधना, शक्तिध्वज, कुंकुम तिलक, रक्षाकवच और शक्तिजल आदि हमारे सबसे बड़े अस्त्र-शस्त्र हैं। इन्हीं के बल पर हम बिना किसी तीर-तलवार के धर्मयुद्ध जीतकर दिखाएंगे। यदि तुमने एक शराबी की शराब की लत छुड़वा दी, तो समझ लो तुमने एक धर्मयुद्ध जीत लिया। मैंने स्वयं ऐसा किया है। ‘माँ’ की आराधना के लिए आज भी मैं व्याकुल रहता हूँ, मगर समाजकल्याण के लिए।
नित्य कम से कम सूर्योदय से पहले ज़रूर जग जाओ। यह देवत्व का मार्ग है। स्नान करके ‘माँ’ की आराधना करो, तो और भी अच्छा होगा। इससे आपके घर में सात्त्विक परिवर्तन आएगा।
आज राक्षसों के स्वरूप बदल गए हैं। आतंकवादी, बेईमान व्यवसायी और भ्रष्ट सत्ताधारी, ये सब राक्षस ही तो हैं। इनसे सब लोग भयग्रस्त हैं। आज हमारी सेनाओं में भी भ्रष्टाचार व्याप्त हो गया है। उसी की वजह से आतंकवादी सीमा पार से देश में घुसे चले आ रहे हैं। अतः स्वयं सच्चे और ईमानदार बन जाओ।
अपने बच्चों को आतंकवादी मत बनाओ। हिन्दुओं की रक्षा के लिए कई छोटे-छोटे संगठन बने हैं, जो धार्मिक घृणा फैला रहे हैं। वे हफ्तावसूली करते हैं और लोगों को परेशान करते हैं। गोरक्षा करने वाले कथित संगठन रिश्वत लेकर पकड़े हुए ट्रक छोड़ देते हैं। आज इन्सानियत मर चुकी है। उसे ज़िन्दा करना होगा।
माननीय मुख्यमंत्री जी ने कल भगवती मानव कल्याण संगठन को उसके नशामुक्ति अभियान में अपना सहयोग एवं संरक्षण देने का आश्वासन दिया है। उनका रुख सकारात्मक था।
इस वर्ष मैं चार अन्य शिविरों की घोषणा कर रहा हूँ। दमोह (म.प्र.) में 18-19 अप्रैल को, आश्रम में 20, 21, 22 अक्टूबर को, लखनऊ (उ.प्र.) में 20, 21, 22 नवम्बर को और धमतरी (छ.ग.) में 26, 27 दिसम्बर को शक्ति चेतना जनजागरण शिविर आयोजित किए जाएंगे।
आप लोगों से मेरी अपेक्षा है कि यह शंखध्वनि कभी भी रुकने न पाए। आज एक संकल्प और लेंगे कि अपने मोबाइल फोन की डायलटोन व रिंगटोन में फिल्मी गीत न हों और न ही उसमें फिल्मी हीरो-हीरोइनों के चित्र हों।
राजसत्ता से अधिक आज हमें धर्मसत्ता लूट रही है। इसके लिए तुम्हें समाज को जगाना है। अगर कोई धर्मगुरु या उसके शिष्य तुमसे टकराते हें, तो उनसे कहो कि हमारे गुरु जी का सामना करो। इन ढोंगियों-पाखण्डियों के विरुद्ध भी समाज को जगाना है।
जीवन चला जाय, किन्तु भ्रष्टाचार न हो। यह सर्वश्रेष्ठ होगा। जीवन बचाने के लिए भ्रष्टाचार करना सबसे बड़ा पाप है। जिसके पास गलत रास्ते से धन आता है, वह उल्लू बन जाता है। उसका विवेक मर जाता है और उसे दिखना बन्द हो जाता है। यदि धर्मसत्ता राजसत्ता के आगे घुटने टेके, तो यह पतन है। वास्तविक धर्मसत्ता वह है, जिसके आगे राजसत्ता घुटने टेके।
भीष्म की प्रतिज्ञा टूट सकती है, विश्वामित्र की तपस्या भंग हो सकती है और भगवान् श्रीकृष्ण के वचन झूठे हो सकते हैं, किन्तु शक्तिपुत्र महाराज का संकल्प कभी टूट नहीं सकता।
अन्त में, दोनों हाथ उठवाकर सबको पुनः संकल्प दिलाया गया– मैं पूर्ण नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् जीवन जीते हुए मानवता की सेवा, धर्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा के लिए आजीवन पूर्ण समर्पित रहूंगा।
इस प्रकार, मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में पांच दिवसपर्यन्त चला यह नशामुक्ति महाशंखनाद शक्ति चेतना जनजागरण शिविर पूरे जोश-ओ-खरोश के साथ सम्पन्न हुआ। इस शिविर की सबसे बड़ी सफलता यह रही कि इसके द्वारा शासन-प्रशासन के अलावा जनसामान्य का भी ध्यान बरबस नशे की बुराई की ओर खिंचा। और, वे कहने के लिए मजबूर हुए कि वास्तव में नशा नाश की जड़ है। इससे देश को मुक्त होना ही चाहिए।
परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् की वह दिव्य वाणी अब स्पष्टतः सत्य होती नज़र आ रही है कि वर्ष 2015 से युग परिवर्तन का चक्र तीव्र गति पकड़ेगा।
सभी आतुर हैं, अगले शक्ति चेतना जनजागरण शिविर के लिए। अतः अब मिलते हैं दमोह (म.प्र.) में 18-19 अप्रैल के मध्य!