सागर में उमड़ा मानवता का महासागर
वर्तमान में इस धरती पर चहुंओर अनीति-अन्याय-अधर्म का साम्राज्य व्याप्त है। इसे समाप्त करने के लिए अनेक धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्थाएं तथा विभिन्न कथावाचक अपने-अपने स्तर पर कार्य कर रहे हैं। इनमें से कुछ अच्छा कार्य भी कर रहे हैं, किन्तु अधिसंख्य अपने उद्देश्य से भटके हुए हैं। ये सब अपनी मौज में मस्त हैं। धनअर्जन ही इनका एकमात्र उद्देश्य रह गया है और ये जमकर समाज का शोषण कर रहे हैं। यही कारण है कि इतनी सारी धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थाएं तथा कथावाचक होने के बावजूद अनीति-अन्याय-अधर्म समाप्त होने की बजाय, उत्तरोत्तर बढ़ रहे हैं। शासन-प्रशासन भी इन्हें रोकने में असमर्थ एवं असहाय हैं, क्योंकि अधिकतर प्रशासनिक अधिकारी एवं राजनेता भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबे हैं। युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने इस स्थिति को बदलने का लक्ष्य ठाना है। आपश्री का मानना है कि इसके लिए ज़िम्मेदार लोभी-लम्पट-अज्ञानी धर्मगुरुओं तथा भ्रष्ट एवं बेईमान राजनेताओं को सुधारना होगा और जनता को जगाए बिना यह सब कुछ सम्भव नहीं है।
यही कारण है कि उनके द्वारा वर्ष में तीन शक्ति चेतना जनजागरण शिविरों का आयोजन किया जाता है। सागर (म.प्र.) में आयोजित द्विदिवसीय शिविर इस वर्ष का तीसरा शिविर था। यह एक ऐतिहासिक शिविर रहा, जिसमें रिकॉर्डतोड़ भीड़ रही। लाखों लोगों ने इसमें परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के ओजस्वी चिन्तनों को हृदयंगम किया, ध्यान-साधना एवं योग का अभ्यास किया तथा लगभग ग्यारह हज़ार लोगों ने गुरुदीक्षा प्राप्त करके जीवनपर्यन्त पूर्ण नशा-मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् बने रहने का संकल्प लिया। इनमें समाज के अनेक गण्यमान्य लोग तथा जनप्रतिनिधि आदि भी सम्मिलित थे।
प्रारम्भिक तैयारियां
भगवती मानव कल्याण संगठन के सैकड़ों कार्यकर्ता शिविर प्रारम्भ होने से पन्द्रह-बीस दिन पहले ही धर्मश्री बालाजी प्रांगण में पहुंच गए थे। उन्होंने बड़े मनोयोग से शिविर स्थल की ऊबड़-खाबड़ भूमि को समतल करके उसकी साफ-सफाई की तथा बड़े परिश्रम से चिन्तनपण्डाल, भोजन व आवासीय पण्डालों तथा मंच आदि का निर्माण किया।
उससे पूर्व भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में इस शिविर से सम्बन्धित होर्डिंग्स लगाकर और पैम्फ्लैट्स वितरित करके खूब प्रचार किया था। बृहद स्तर पर की गई आरतियों, महाआरतियों तथा श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठों के आयोजन के फलस्वरूप भी खूब प्रचार हुआ था।
यही कारण है कि परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के ओजस्वी चिन्तनों को सुनने के लिए इस शिविर में अपार जनसमूह उमड़ा। इस बीच भोजन एवं शान्ति-सुरक्षा व्यवस्था बड़े सुचारु रूप से चली। ये सभी व्यवस्थाएं संगठन के पांच हज़ार से भी अधिक सक्रिय कार्यकर्ताओं ने पूर्ण कीं।
सद्भावना यात्रा
गुरुवार दिनांक 24 नवम्बर 2016 की प्रातःकालीन बेला, आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की स्तुति के उपरान्त, सच्चिदानंदस्वरूप सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज जैसे ही मध्यप्रदेश के सागर ज़िले हेतु पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम से प्रस्थित हुये, आश्रमवासियों व भक्तों के द्वारा लगाए जा रहे ‘माँ’-गुरुवर के जयकारों और शंखध्वनि से वायुमंडल प्रतिध्वनित हो उठा। गुरुवरश्री के वाहन के पीछे पूजनीया माता जी और शक्तिस्वरूपा बहनों का वाहन मंदगति से चल रहा था और उनके पीछे कुछ वाहनों में अन्य शिष्यगण चल रहे थे। वाहन से ही आश्रमवासियों को आशीर्वाद प्रदान करते हुये सद्गुरुदेव भगवान् सर्वप्रथम स्वामी जी की समाधिस्थल पर गये। तत्पश्चात त्रिशक्ति गौशाला पहुंचे, जहां फूलों से आच्छादित तोरणद्वार सजाए गए थे और गोसेवक कतारबद्ध जयकारे लगाते व शंखध्वनि करते हुये खड़े थे। सभी ने परम पूज्य गुरुवरश्री का चरणस्पर्श करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।
नशामुक्ति शक्ति चेतना जनजागरण सद्भावना यात्रा ब्यौहारी मार्ग पर आगे बढ़ी। परम पूज्य गुरुवरश्री की यात्रा का आभास पाकर ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में स्थान-स्थान पर शिष्यों-भक्तों के द्वारा फूलों से आच्छादित तोरणद्वार सजाये गये थे। स्वागतद्वार के दोनों ओर खड़े भक्तों की उत्सुकता देखते ही बनती थी। महिलाओं के हाथों में दीप प्रज्वलित थाली एवं सिर पर कलश सुशोभित थे। खामडाड़ पंचायत की सरपंच सहित अन्य ग्रामवासियों ने आरती उतारकर नमन किया। ब्यौहारी में बनसुकली चौराहे पर गुरुवर जी के शिष्यों, व्यापारी बन्धुओं व क्षेत्रीय जनता ने भावविभोर होकर सद्भावना यात्रा की अगवानी की और परम पूज्य गुरुवरश्री को नमन किया। टेटका मोड़ से होते हुए यात्रा गोवर्दे, मानपुर व उमरिया पहुंची। सभी स्थानों पर भगवती मानव कल्याण संगठन के क्षेत्रीय कार्यकर्ता व माता भगवती के भक्त जयकारे लगाते हुए अगवानी के लिए खड़े थे। यहां से आगे-आगे मोटरसाइकिलों की कतार के पीछे सद्भावना यात्रा ग्राम रैपुरा, शहपुरा, चौरई, सुपरवारा होते हुए कुण्डम पहुंची। गुरुवर के प्रेम के वशीभूत शिष्यों व भक्तों के नयनों से अश्रु छलक उठते थे। इन सभी ग्रामों में हज़ारों भक्त मार्ग के दोनों ओर कतारबद्ध खड़े ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाने के साथ ही शंखनाद कर रहे थे। महिला भक्तों एवं बच्चियों के हाथ में आरती की थाल एवं सिर पर कलश और पुरुषों व बच्चों के हाथ में शक्तिदण्डध्वज थे। साथ ही सुसज्जित तोरणस्वागतद्वार अपनी अलग ही छटा विखेर रहे थे। सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने हर जगह अपने सभी शिष्यों-भक्तों को आशीर्वाद प्रदान किया।
ग्राम पड़रिया व आमाखोर (आमानाला) में भक्तों की श्रृंखला दूर-दूर तक दिखाई दे रही थी। सद्गुरुदेव भगवान् की एक झलक पाने के लिए ग्रामवासियों का हुजूम उमड़ पड़ा था। जगह-जगह पर स्वागतद्वार व वन्दनवार सजाए गए थे और समूचे वातावरण में शहनाई व बैण्डबाजे की स्वरलहरियां बिखर रहीं थीं। सदभावना यात्रा ने जैसे ही जबलपुर नगर में प्रवेश किया, स्वागत के लिये आतुर खड़े भक्त गुरुवरश्री के दर्शन का लाभ प्राप्त करके अति आनन्दित हुये। मध्य बाजार में भी सड़क मार्ग के दानों ओर जयघोष करते हुए हज़ारों भक्त खड़े थे। यहां बैण्डबाजे की धुन ने तो समां बांध दिया था। सोना तराई, नुनसर, रोसरा, उड़ना, पाटन और खेरी में ग्रामवासियों व विद्यालय के बच्चों का उमंग-उत्साह दर्शनीय था। मार्ग के किनारे जयकारे लगाते खड़े भक्त मन्दगति से चल रहे परम पूज्य गुरुवरश्री के वाहन को छूकर व पुष्प अर्पित करके तृप्ति का अनुभव कर रहे थे। धनेटा, सासन, खमदेही व घुन्सौर में तो गुरुवरश्री के शिष्यों तथा प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालयों के छात्र-छात्राओं का जयकारे लगाता पंक्तिबद्ध प्रवाह मन को मोह लेने वाला था। शहपुरा, भिटौनी व गोटेगांव में नर-नारियों के साथ ही हज़ारों स्कूली बच्चे पंक्ति में ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाते हुए खड़े थे। उनमें अनुशासनप्रियता देखते ही बनती थी। वे शिक्षक साधुवाद के पात्र हैं, जिन्होंने बच्चों को अच्छे संस्कार से गौरवान्वित किया है।
नशामुक्त शक्ति चेतना जनजागरण सद्भावना यात्रा गोटेगांव से आगे बढ़ी और ज़िला नरसिंहपुर स्थित फूलों व विद्युत् झालरों से सुसज्जित होटल कुसुम वैली के पास रुकी। यहां पर भी हज़ारों गुरुभाई-बहनों, माता जगदम्बे के भक्तों व क्षेत्रीयजनों के द्वारा जयकारे व बैण्डबाजे की स्वरलहरियों के साथ अभूतपूर्व स्वागत, वन्दन, अभिनन्दन किया गया।
नरसिंहपुर में रात्रिविश्राम के बाद दिनांक 25 नवम्बर, शुक्रवार को प्रातःकालीन बेला में, ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज जैसे ही कुसुम वैली से निकले, जयकारों से समूचा वायुमंडल गुंजायमान हो उठा। यहां से सद्भावना यात्रा सागर के लिए प्रस्थित हुई। आगे-आगे सैकड़ों की संख्या में दोपहिया वाहनों के पीछे गुरुवरश्री व पूजनीया माताजी और शक्तिस्वरूपा बहनों का वाहन और साथ में कई चारपहिया वाहनों में हज़ारों भक्त चल रहे थे। नरसिंहपुर से सागर तक गुरुभाई-बहनों व क्षेत्रीयजनों ने राह में फूल की पंखुडिय़ां बिछाकर सद्गुरुदेव भगवान् का स्वागत किया। जगह-जगह फूलमालाओं और केला व आम के पत्तों की लडिय़ों से स्वागतद्वार बनाए गए थे। स्वागतद्वारों के दोनों ओर हाथों में दीप प्रज्वलित थाल और सिर पर कलश रखे महिलाएं खड़ी थीं। मध्य में निर्मित रंगोली की शोभा वर्णनातीत थी। हर ग्राम में फूल बिछाकर, तो कहीं फूलों की वर्षा करके, कहीं गुरुदेव भगवान् के स्वागत में ढोल-मजीरे की धुन के साथ झेलमनृत्य प्रस्तुत करके ग्रामीणों ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त की।
राजमार्ग चौराहे पर शक्तिदण्डध्वज लिए गुरुभाई-बहनों व ‘माँ’ के भक्तों की लम्बी श्रृंखला और चोरगवां में नमनभाव लिए जयकारे लगाते हुए बच्चे-बच्चियों में अपूर्व संस्कार झलक रहा था। सिंहपुर तिगड्डा, ग्राम परस, पनारी, महराजपुर, जगतरा व बिजौरा में स्वागत द्वारों की अतुलनीय शोभा के बीच ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाते पंक्तिबद्ध खड़े ग्रामवासियों के चेहरे पर गुरुदर्शन की लालसा में विशेष ओज परिलक्षित था।
शनै-शनैः नशामुक्ति सद्भावना यात्रा देवरी पहुंची। वहां पर सुसज्जित तोरणद्वार के ऊपर मध्य में लहराता शक्तिध्वज और नीचे स्वागतद्वार के दोनों ओर ‘माँ’-गुरुवर की संयुक्त दिव्य छवि के समक्ष स्थापित कलश और हज़ारों की संख्या में हाथ जोड़कर खड़े क्षेत्रीय भक्तों की धर्मपरायणता और सद्गुरु देव भगवान् के प्रति श्रद्धाभाव विशेष रूप से परिलक्षित था।
ग्राम गोपालपुरा, सेमरिया व कोरजामद में ग्राम्य नर-नारी और प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालयों के छात्र-छात्राएं तोरणद्वार के दोनों ओर हाथ जोड़कर खड़े थे। बच्चों की बालसुलभ प्रसन्नता मन को लुभाने वाली थी। गौरझामर में तो अपने आराध्य के दर्शन हेतु पूरा क्षेत्र ही उमड़ पड़ा था। जयकारे लगाते हुए स्कूल के बच्चे-बच्चियां, महिलाओं के हाथ में दीप प्रज्वलित थाल और सिर पर कलश तथा पुरुषों के हाथ में शक्तिदण्डध्वज शोभायमान थे। ग्राम खामखेड़ा, गुरुचोपड़ा, बरकोटी, रानगीर, देहा, उमरारी, सुरखी, गुरैया, 13 मील तिगड्डा (बेलहरा), दशरा, चितौरा, बमौरी तिगड्डा में भी गुरुदेव भगवान् का अभूतपूर्व अभिनन्दन किया गया।
ग्राम सिरौंजा होते हुए सद्भावना यात्रा सागर के मकरोनिया चौराहे पर अपराह्न 3.30 बजे पहुंची। यहां से नशामुक्ति मानवश्रृंखला व विशाल वाहन रैली का शुभारम्भ हुआ। यात्रा के आगे-आगे सैकड़ों मोटरसाइकिलें चल रही थीं, पीछे बैठे गुरुभाइयों के हाथों में शक्तिदण्डध्वज शोभायमान हो रहे थे। हज़ारों-हज़ार लोगों की श्रृंखला में हर तीसरे-चौथे व्यक्ति के हाथ में शक्तिदण्डध्वज व नशामुक्त जीवन के लिए लिखे नारों व संगठन के उद्देश्यों की तख्तियां थींः ‘गुरुवर जी का यह संदेश, नशामुक्त हो सारा देश।’, ‘चाहे जो हो मजबूरी, नशा छोड़ना बहुत ज़रूरी।’, ‘भगवती मानव कल्याण संगठन, सत्यधर्म का रक्षक है।’, ‘जाति-धर्म का भेद मिटा दो, माता का परिवार बना लो।’ रैली का विशालस्वरूप व जगह-जगह मानवश्रृंखला सागरवासियों को नशामुक्त, मांसाहारमुक्त, चरित्रवान् व चेतनावान् जीवन अपनाने का संदेश दे रही थी।
सद्भावना यात्रा मकरोनिया चौराहे से धीरे-धीरे आगे बढ़ी और सिविल लाइन्स, आई.जी. कार्यालय, लाल स्कूल गोपाल गंज, छत्रसाल बसस्टैण्ड, तीन बत्ती, कटरा मस्जिद, राधा तिराहा, भगवानगंज, मेडिकल तिराहा, राहतगढ़ बसस्टैण्ड, ओवर ब्रिज के ऊपर से मोतीनगर चौराहा व तिली चौराहा होते हुए साईं आशीर्वाद होटल (गुरुआवास) पहुंची। चौराहे से गुरुआवास तक यात्रा मार्ग के दोनों ओर जयकारे लगाते व शंखध्वनि करते हज़ारों भक्त कतारबद्ध, अनुशासनपूर्वक खड़े थे। सद्गुरुदेव व माता भगवती के प्रति श्रद्धाभक्ति का यह अनुपम प्रवाह देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह दिन दूर नहीं, जब धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज की विचारधारा से भारत देश का हर कोना प्लावित होगा और एक बार पुनः भारत देश विश्व अध्यात्म का सिरमौर बनेगा।
दैनिक कार्यक्रम
शिविर पण्डाल में पहले दिन प्रातः 07ः00 बजे से 09ः00 बजे तक योगाभ्यास, मंत्रजाप एवं ध्यानसाधना का क्रम सम्पन्न हुआ, जिसे भगवती मानव कल्याण संगठन की केन्द्रीय अध्यक्ष शक्तिस्वरूपा बहन पूजा दीदी जी, भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष शक्तिस्वरूपा बहन संध्या दीदी जी एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम ट्रस्ट की प्रधान न्यासी शक्तिस्वरूपा बहन ज्योति दीदी जी ने सम्पन्न कराया। दूसरे और अन्तिम दिन 27 नवम्बर को इसी अवधि में गुरुदीक्षा का कार्यक्रम हुआ। अपराह्न दोनों दिन 02ः00 बजे से 03ः00 बजे तक भावगीतों का कार्यक्रम हुआ, जिसके अन्तर्गत विभिन्न शिष्यों एवं श्रद्धालुओं ने अपने भावसुमन अर्पित किये। इसी बीच ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाए जाते थे तथा परम पूज्य गुरुवरश्री का शुभागमन होता था तथा शक्तिस्वरूपा तीनों बहनों पूजा, संध्या एवं ज्योति जी के द्वारा चरण पूजन के पश्चात् परम पूज्य गुरुवरश्री की अमृतवाणी सुनने को मिलती थी।
तदुपरान्त, दिव्य आरती होती थी, जिसका नेतृत्व शक्तिस्वरूपा तीनों बहनों के द्वारा किया जाता था। अन्त में, महाराजश्री की चरणपादुकाओं का स्पर्श करके सभी शिविरार्थी प्रसाद ग्रहण करते थे। गुरुवरश्री मंच पर तब तक विराजमान रहते थे, जब तक सभी शिविरार्थी प्रणाम नहीं कर लेते थे।
प्रथम दिवस-दिव्य उद्बोधन
हमारा प्रथम कर्तव्य शक्तिसाधना और दूसरा जनजागरण करना है। आत्मकल्याण और जनकल्याण हमारा मूल लक्ष्य है। समाज में हर जगह से आवाज़ उठती है कि उसमें परिवर्तन होना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले हमें स्वयं में परिवर्तन डालना पड़ेगा। सर्वप्रथम हम स्वयं को सुधारें-सवांरें। उससे वातावरण में स्वतः ही परिवर्तन आता चला जाएगा।
सागर ज़िले के कार्यकर्ता सौभाग्यशाली हैं, जिन्होंने अपनी श्रद्धा और विश्वास के बल पर यह शिविर प्राप्त किया है। उनकी मेहनत के फलस्वरूप उन्हें यह शिविर प्राप्त हुआ है। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि यदि कोई नशे-मांस से मुक्त होकर इस शिविर का लाभ लेगा, तो वह यहां से खाली हाथ नहीं जायेगा।
मैं समाज से कुछ लेने की भावना को लेकर नहीं आता हूँ। मैं तो उसे अपनी चेतनातरंगों के माध्यम से ‘माँ’ की कृपा दिलाने के लिए आता हूँ। आपका गुरु आपसे कोई मान-सम्मान नहीं चाहता। मैं तो उन्हें देखता हूँ, जो पीड़ित हैं, जिनमें तड़प है। मेरे लिए गरीब से गरीब व्यक्ति भी महत्त्वपूर्ण है। मेरी निगाहें उन्हें ही देखती हैं और मैं उन्हें अपने चिन्तन में रखता हूँ। मैं जितना साधना पर चलूंगा, उतना ही लाभ आपको दे सकूंगा। मेरा एकान्त का चिन्तन हर पल आप लोगों के लिए रहता है। मेरे लिए सभी लोग एक समान होते हैं। मुझे अपना माल्यार्पण कराने का शौक नहीं है। मैं अपना चरणपूजन भी कराना पसन्द नहीं करता, यद्यपि अनेक शिष्य ऐसा करने के लिए लालायित रहते हैं। मेरी तीनों पुत्रियां ही मेरा चरणपूजन करती हैं।
मैं किसी को भी अपने मंच पर स्थान नहीं देता और न ही किसी अन्य के मंच पर जाता हूँ। किन्तु, मेरे मन में सबके लिए सम्मान रहता है। मैं सभी राजनेताओं और धर्मगुरुओं का सम्मान करता हूँ, किन्तु अपनी विचारधारा के साथ समझौता नहीं करता। मैं माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का आराधक हूँ। यदि मैं किसी जाति, धर्म अथवा सम्प्रदाय के लोगों का सम्मान न करूं, तो मैं ‘माँ’ का कैसा आराधक हूँ? हम सभी जगज्जननी के अंश हैं। मुझमें किसी के प्रति नफरत का भाव नहीं है, यहां तक कि अधर्मी-अन्यायियों के प्रति भी नहीं। यदि नफरत करूंगा, तो उनमें परिवर्तन कैसे डालूंगा।
भगवती मानव कल्याण संगठन को गहराई से देखो। उसके द्वारा असहाय लोग सामर्थ्यवान् बन रहे हैं, जो दूसरों को भी सामर्थ्यवान् बना रहे हैं। यदि आत्मा की अमरता और कर्म की प्रधानता– इन दो बातों को स्वीकार कर लें, तो हम निर्भीक हो जाएंगे और सत्कर्म करेंगे। इससे आत्मबल जाग्रत् होगा तथा घर में सुख-शान्ति-समृद्धि आएगी। अपने कर्म का फल हर मनुष्य को भोगना पड़ता है।
कथा-वार्ताएं सुनने मात्र से कल्याण नहीं होगा। कल्याण तब तक नहीं होता, जब तक सुनी गई बातें आचरण में नहीं उतरतीं। आज विडम्बना यह है कि समाज में ज्ञानी हैं, विद्वान् हैं, जो लोगों को अच्छी बातें बताते हैं, किन्तु उनमें से निन्यानवे प्रतिशत ऐसे हैं, जिन्होंने स्वयं उन बातों को अपने आचरण में नहीं उतारा। समाज के पतन का मूल कारण यही है।
रामायण-गीता हमें क्या प्रेरणा दे रही हैं, हमें उस पथ पर चलना होगा। साधक प्रवृत्ति के बिना सफलता प्राप्त नहीं होती। जीवन संस्कारों की दिशा में बढ़ना चाहिए। कोई भी विषम परिस्थिति आजाय, तो धैर्य-धर्म धारण करके और पुरुषार्थी बनकर उससे पार हो जाएंगे। अतः धर्म-धैर्य-पुरुषार्थ इन तीनों बातों को सदैव ध्यान में रखो।
बाहर के संसार को तो तुम जानते हो, किन्तु अपने आपको नहीं जानते। अतः अपने ‘मैं’ की खोज करो और अपनी आत्मा का सान्निध्य प्राप्त करो। मरणोपरान्त, वह आत्मा ही आपके साथ जाती है, संसार यहीं छूट जाता है।
आपका धैर्य न टूटे, इसके लिए अपने गुरु और इष्ट पर विश्वास होना चाहिए। परिस्थितियों को बदलने में अपनी पूरी सामर्थ्य को झोंक दो। मन्दिरों में घुटने टेकने से, भिखारी बनने से कुछ प्राप्त नहीं होगा। मन्दिर-मस्जिदों में ज़रूर जाओ, किन्तु भिखारी बनकर नहीं। वहां पर जाकर उनसे सम्बन्ध स्थापित करो और वहां की ऊर्जा प्राप्त करो। उसी में आपकी समस्याओं का समाधान छुपा हुआ है। मैंने भी उसी यात्रा को तय किया है।
इस कलिकाल में असम्भव कुछ भी नहीं है। हमारा धैर्य और धर्म कहीं डिगने न पायं। एक बार कदम बढ़ाकर तो देखो। हमारी इष्ट कण-कण में व्याप्त हैं। वह हमें लगातार देख रही हैं। जो भावना हमारे अन्तर्मन में, आत्मा में उठ रही है, ‘माँ’ उसे भी देख रही हैं।
अनेक लोग जीवन जीने की कला सिखाते हैं। वास्तव में, जीवन जीने की कोई कला होती ही नहीं है। बस, आप वास्तविकता का, सत्यता का ज्ञान प्राप्त कर लो। अपने इष्ट से केवल भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति मांगो। यदि कोई इच्छा है, तो उसे एक बार ‘माँ’ के चरणों में रख दो और कहो कि यदि उसकी पूर्ति तुम्हारे हित में हो, उससे तुम भटको नहीं, वह तभी पूरी हो। अन्यथा, चाहे आप कितना ही गिड़गिड़ाएं, वह इच्छा कभी पूरी न हो।
‘माँ’ से कहो कि हे माँ, भक्ति के साथ हमें ज्ञान देदो और सद्बुद्धि भी देदो। हमारी अन्तरात्मा की आवाज़ को इतनी प्रबल कर दो कि हम आपकी कृपा के पात्र बन जायं। हमें अपना बना लो, माँ। हमारी आन्तरिक शक्तियों को जगा दो। हमें बाहरी शक्ति नहीं चाहिए। हम शान्ति और सन्तोष से भर जायें। हे माँ, हमें अपने गुण करुणा, ममता और वात्सल्य दे दो। तभी हम अच्छे मानव बनेंगे। तब हम सभी की भलाई करेंगे और समाज का शोषण नहीं करेंगे।
इससे आपके जीवन में आरोग्य, सुख-शान्ति और समृद्धि आएगी। भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति में जीवन का सार जुड़ा है। नित्यप्रति ध्यानसाधना में बैठो तथा सत्यपथ पर चलने की क्रियाएं सीखो। निर्भीकता का जीवन जिओ। इससे आपकी आने वाली पीढ़ी स्वतः ही संस्कारवान् बनेगी।
शबरी को उसके गुरु ने बताया था कि एक दिन भगवान् उसके दरवाज़े पर आएंगे। उसके अन्दर अपने गुरु के प्रति इतनी श्रद्धा-समर्पण और विश्वास था कि उसने अपना पूरा जीवन भगवान् की प्रतीक्षा में गुज़ार दिया। लोगों ने उसका मज़ाक उड़ाया, किन्तु उसने उनकी परवाह नहीं की। और अन्त में, भगवान् उसके दरवाज़े पर आए। आप शबरी और सुदामा बनकर देखो।
जो लोग सुदामा को दरिद्र कहते हैं, उनसे बड़ा अज्ञानी कोई नहीं है। वास्तव में, सुदामा ज्ञान का धनी था तथा धर्मवान् और धैर्यवान् था, किन्तु उसने अपनी विचारधारा से समझौता नहीं किया था। उस समय के राजे-महाराजे उससे अपनी बड़ाई करवाना चाहते थे, जो उसने करना पसन्द नहीं किया। अन्त में, भगवान् श्रीकृष्ण से उसे क्या प्राप्त हुआ, आप सब जानते हैं। इसलिए सच्चे भक्त बनकर देखो।
सुख-शान्ति-समृद्धि केवल धन एकत्र करने से प्राप्त नहीं होती। इसके लिए सत्कर्म करो और अपनी आत्मशक्ति जगाओ। सुख-सुविधाओं की याचना करने वाले को कभी भी ‘माँ’ की सच्ची भक्ति नहीं मिल सकती। आत्मशक्ति से बढ़कर कोई शक्ति नहीं होती। इसके बल पर आप असम्भव से असम्भव कार्य कर सकते हैं।
देवी-देवताओं के अन्दर गुण ही तो भरे हैं। यदि तुम उनकी भक्ति करते हो और तुम्हारे अन्दर अवगुण हैं, तो तुम उनके भक्त नहीं हो। सारे धर्म यही तो सिखाते हैं दूसरों की भलाई करो, किसी का शोषण न करो और अनीति-अन्याय-अधर्म न करो। मैं परमसत्ता का अंश हूँ और सत्कर्म न करूं, फिर कैसे उसका अंश हूँ? मैं अपने अन्दर सतयुग का निर्माण करूंगा।
हम सब कुछ कर सकते हैं। एक बार निर्णय लेलो। संकल्प वे होते हैं कि उनमें कोई विकल्प न हो। एक बार ठान लो कि आपको अपना जीवन संवारना है। यदि इसमें सफल होगए, तो दूसरों को भी अपने जैसा बना लोगे। पारस लोहे को स्पर्श करके सोना बनाता है, किन्तु तुम्हारे सम्पर्क में आने वाले लोग तुम्हारे जैसे ही बन जाएंगे।
अनेक लोग कहते हैं कि वे नवरात्र में नौ दिन तक व्रत रखते हैं और फिर वैष्णव देवी जाते हैं। इस बीच शुद्ध सात्त्विक भोजन लेते हैं। वास्तव में, नौ दिन तक व्रत रहने से और एक दिन की वैष्णव देवी की यात्रा से कुछ नहीं मिलेगा। स्थायी रूप से नशे-मांस आदि का त्याग करो और ईमानदारी का जीवन जिओ। इससे कल्याण होगा तथा आप अपने इष्ट के सामने सम्मान के साथ खड़े हो सकोगे।
एक बार ‘माँ’ के चरणों में सच्चे मन से बैठकर देखो। आलस्य नहीं आएगा। वैसे, आमतौर से लोगों को आलस्य आता है। सारा खेल लोभ और प्रेम का है। एक चोर का लोभ के साथ और एक कामी का कामवासना से इतना घनिष्ट सम्बन्ध होजाता है कि उन्हें आलस्य तो क्या, रातभर नींद नहीं आती। तुम सच्चा प्रेम अपनी जगज्जननी से करके देखो। बहुत शान्ति मिलेगी। अपने अन्दर शिष्य का भाव ले आओ। एक अबोध शिशु अपनी माँ की गोद को छोड़ना नहीं चाहता, भले ही दुनियाभर की सारी चीज़ें लाकर उसके सामने रख दी जायं। इसलिए शिशु बनकर ‘माँ’ की आराधना करो।
छुआछूत एक मानसिक बीमारी है। मैंने कभी छुआछूत को नहीं माना है। इससे मेरा धर्म कभी भी नष्ट नहीं हुआ, बल्कि मुझे ‘माँ’ की और अधिक कृपा मिली है। मेरे द्वारा आठवां महाशक्तियज्ञ किया जा रहा था। सभी जानते हैं कि यज्ञ कितना पवित्र होता है! एक मरणासन्न व्यक्ति आया। उसे मैंने न तो स्पर्श किया और न ही कोई दवाई दी। केवल यज्ञवेदी के सामने बैठाया और वह बिल्कुल रोगमुक्त होकर गया।
यदि आपकी अन्तरात्मा चीख-चीखकर कहे कि आपने मेरी सत्य की यात्रा देखी है, तो मुझसे जुड़ो। केवल मुझसे प्रभावित होकर मत जुड़ो। एक ऋषि व्यक्ति को प्रभावित नहीं, प्रकाशित करता है। आजकल लोग अपने बच्चों को अपने अनुसार नहीं मोड़ पाते। प्रकृति को अपने अनुसार मोड़ लेना सहज नहीं है। आज के प्रायः सभी धर्मगुरु मान-सम्मान के भूखे हैं। वे सदैव कैमरे की ओर देखते हैं। वे हज़ार-हज़ार कुण्डीय यज्ञ करते हैं, किन्तु उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। मेरा एक कुण्डीय यज्ञ होता है, जिसमें बत्तीस किलो सामग्री प्रयोग होती है और ग्यारह दिन तक यज्ञ चलता है। एकासन पर बैठकर और निर्जल-निराहार रहकर यज्ञ किया जाता है। उस यज्ञ की ऊर्जा क्या होती है, यह लोगों ने देखा है। मैंने प्रारम्भ में ही कहा था कि मेरे हर महाशक्तियज्ञ में बारिश होगी और सभी लोग इस बात के साक्षी हैं कि अब तक किये गए प्रत्येक महाशक्तियज्ञ में वर्षा हुई है।
आठवें महाशक्तियज्ञ में मैंने एक चुनौती भी रखी थी कि यदि समाज का कोई भी साधक यज्ञाग्नि के सम्मुख जितनी दूरी पर मैं बैठता हूँ, उससे भी अधिक दूरी पर बैठ जाएगा, तो मैं अपना सिर काटकर उसके चरणों में रख दूंगा। अनेक लोगों ने प्रयास किया, किन्तु सफल नहीं हो सके। मैंने ‘माँ’ से मांगा है कि जो संघर्ष उन्होंने किसी को नहीं दिये, वे मुझे दो। ‘माँ’ की कृपा से हम उन्हें पार कर जाएंगे। वे ही तो हमें शक्ति देती हैं। मैंने अपने साधनापथ में कभी किसी से समझौता नहीं किया। एक महाशक्तियज्ञ में यज्ञाग्नि की लपटें मेरे शरीर को स्पर्श कर रही थीं, किन्तु मैं बिल्कुल सुरक्षित रहा।
आठवां महाशक्तियज्ञ होना था, जिसकी तैयारियां चल रही थीं। लगातार भीषण बरसात हो रही थी। दिनेश चक्रवर्ती ने, जो हर शिविर में मंच निर्माण की सेवा निःशुल्क देता है, आकर कहा कि जब तक बारिश रुकेगी नहीं, यज्ञवेदी नहीं बन सकेगी। ऐसी स्थिति में यज्ञ कैसे सम्पन्न होगा? सबने हाथ खड़े कर दिये। मैंने कहा कि यज्ञ तो अपने समय पर होना ही है, तुम अपना काम करो और वहां पर उपस्थित सभी लोगों ने देखा कि तीन दिन तक सौ मीटर की परिधि में बिल्कुल भी वर्षा नहीं हुई, जबकि चारों ओर लगातार बारिश होती रही। यह मैं आपको प्रभावित करने के लिए नहीं, बल्कि इसलिए बता रहा हूँ कि आप लोग भी इसी प्रकार का पथ अपनाकर पूर्णता प्राप्त करो।
एक रक्तबीज था, जिसके रक्त की एक बूंद जहां गिर जाती थी, वहां पर दूसरा रक्तबीज उठकर खड़ा होजाता था। मैंने भी संकल्प लिया था कि इसी तरह से अपने चेतनाअंश तैयार करूंगा, जो अपने कर्म के बल पर अनीति-अन्याय-अधर्म को समूल नष्ट करेंगे। वही असहाय लोग आज दूसरों का सहारा बन रहे हैं। तुम लोग दो कदम चलोगे, तो मैं तुम्हें दस कदम आगे बढ़ा दूंगा। किन्तु, यदि एक कदम भी पीछे हटोगे, तो मैं दस कदम पीछे फेंक दूंगा। कोई मुझसे जुड़े या न जुड़े, मैं सदैव सत्य का मार्ग तय करता रहूंगा। मुझे सत्य से प्रेम है और सच्चे लोगों से प्रेम है।
मैंने अपने आश्रम का चयन भी ऐसे स्थान पर किया, जो अंधियारी कहलाता था। इस समय वहां पर ‘माँ’ का गुणगान चल रहा है। यही इस भूमण्डल पर एकमात्र ऐसा भूखण्ड है। प्रारम्भ में झाड़-झंखाड़ से भरा यह एक ऊबड़-खाबड़ स्थान था। इसे साफ करके समतल बनाने के लिए ग्यारह वर्षों तक मैंने मात्र तीन घण्टे की नींद ली है, एक समय का भोजन त्यागना पड़ा और पानी तक नहीं पीता था। आज तो शिष्य मेरे बैठने के लिए कुर्सी लेकर पहुंच जाते हैं और छाता भी ले आते हैं। अपना लक्ष्य मुझे इतना प्रिय था कि उसे पूर्ण करके ही मैंने सांस लिया।
अभी भी मैं नित्य तीन बजे जग जाता हूँ और रात्रि ग्यारह बजे सोता हूँ। आपका गुरु आपके लिए जगता है, जबकि आप लोग पड़े सोते रहते हैं। शासन-प्रशासन भी उसी दिशा में चला गया है। घोड़े बेचकर गधों के समान सुबह आठ बजे तक पड़े सोते रहते हैं। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय कभी नहीं सोना चाहिए। प्रतिदिन कम से कम सूर्योदय से पहले अवश्य उठ जाओ। इससे आपके अन्दर चेतना आएगी।
आपने अनेक योगाचार्यों को कहते हुए सुना होगा कि उन्होंने शून्य से शिखर की यात्रा तय की है। एक योगी यदि भौतिक सम्पदा को अपनी बड़ी सामर्थ्य माने, तो धिक्कार है ऐसे योगी को! ये लोग कालेधन के भण्डार के ऊपर बैठे हैं तथा उन्होंने फैक्टरियां एवं व्यावसायिक प्रतिष्ठान स्थापित कर लिये हैं।
मैंने एक हज़ार लोगों के लिए बने भोजन को पचास हज़ार लोगों को कराया है। मैंने विश्व अध्यात्मजगत् को चुनौती रखी है– यदि किसी का आध्यात्मिक तपबल मुझसे बढ़कर होगा, तो मैं उसका शिष्य बन जाऊंगा। कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ बोल रहा है, इसे पकड़ने के लिए विज्ञान के पास यंत्र हैं। कौन ध्यान-समाधि में जा सकता है, इसका परीक्षण भी वैज्ञानिक यंत्रों से हो सकता है। हाथ के स्पर्श से कौन बीमारी ठीक कर सकता है, इसे प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। मैंने शंकराचार्यों को भी आमन्त्रित किया है। एक बार विश्वस्तरीय ऐसा एक आयोजन तो हो। ‘माँ’ की कृपा के बल पर मैं असम्भव से असम्भव कार्य को करके दिखा दूंगा। मैंने मूलध्वज मन्दिर में संकल्प लिया है कि मैं ऐसे चमत्कार कभी नहीं दिखाऊंगा। किन्तु, ऐसे आयोजन में एक बार अवश्य दिखाऊंगा।
वर्तमान में सौ में से निन्यानवे धर्मगुरु और कथावाचक अधर्मी-अन्यायी हैं। आम लोगों की तरह क्या मैं भी उनका सम्मान करूं? समाज के पतन का मूल कारण धर्मगुरुओं का पतन ही है। उनके कारण ही राजनेताओं का पतन हुआ है। राजनेता यदि संकल्प कर लें कि उनकी गद्दी बचे या न बचे, इन्सानियत तो बचेगी, तो सुधार हो जाएगा। किन्तु, वे तो प्रायः भ्रष्टाचार में डूबे हैं। चुनाव के समय पैसे के बल पर जनाधार खरीद लेते हैं। आसाराम बापू के बारे में मैंने बहुत पहले कहा था कि उस जैसा चरित्रहीन व्यक्ति कोई भी नहीं है, जबकि तब तक उस पर कोई आरोप नहीं लगा था। मेरा विरोध किसी व्यक्ति से नहीं, बल्कि अनीति-अन्याय-अधर्म से है। यदि हमारे अन्दर उग्रता आगई, तो विनाश अवश्यम्भावी है। विद्रोही बनो, किन्तु तोडफ़ोड़ से दूर रहो और रचनात्मक बनो।
मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव जी यहां पर आए हुए हैं। मैं उनसे कहना चाहूंगा कि मेरे द्वारा गठित भगवती मानव कल्याण संगठन को गहराई से समझें। आप भोपाल में आयोजित ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ शिविर में भी आए थे। उस समय मुख्यमंत्री जी ने नशाबन्दी का वायदा किया था, किन्तु कुछ नहीं हुआ। हर जगह भ्रष्टाचार हो रहा है। हमें इसके विरुद्ध आवाज़ तो उठानी ही पड़ेगी। हमारे संगठन के द्वारा अवैध शराब पकड़ते समय हमें कई पुलिस अधिकारी ऐसे भी मिले, जिन्होंने हमारा सहयोग किया। किन्तु, कुछ ऐसे मिले, जो रोज़ शाम को छः बजे बोतल चढ़ा लेते हैं। नशे का नाजायज़ व्यापार हो रहा है। हम शासन को इसे रोकने के लिए बाध्य करेंगे और समाज को नशा-मांसाहारमुक्त, चरित्रवान् बनाकर रहेंगे। हम सबका सम्मान करते हैं, किन्तु अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध आवाज़़ उठाते रहेंगे।
अखिलेश के राज्य उत्तरप्रदेश में खूब अन्याय चला। उनके पिता जी इनके कार्य से खुश नहीं थे। किन्तु, चुनावों के छः महीने पहले वह भी कहने लगे– ‘हां बेटा, तुम बड़ा अच्छा कार्य कर रहे हो।’
प्रधानमंत्री ने ढाई वर्ष तक गरीबों के लिए कुछ नहीं किया। क्या बुलेट ट्रेन चलाने से और स्मार्ट सिटी बनाने से देश की गरीबी मिट जाएगी? साधारण ट्रेनों में डिब्बों की संख्या बढ़ा देते। आज लोगों को डिब्बों में जानवर की तरह ठूंस दिया जाता है। आखिर, वे भी इन्सान हैं। कानपुर के पास इतना बड़ा ट्रेन ऐक्सीडन्ट हुआ। उसके बाद वहां पर राजनैतिक रैली की गई। धिक्कार है ऐसी राजनीति को! देश की सीमाएं सुरक्षित नहीं हैं और अलगावादियों को महिमामण्डित किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री के द्वारा की गई नोटबन्दी का मैं समर्थक हूँ, किन्तु इसके लिए पहले से कोई तैयारी नहीं की गई। इससे लोगों को कितनी परेशानी हुई, सभी जानते हैं। कालेधन वाले इतने चालाक और सशक्त हैं कि कोई न कोई रास्ता निकाल लेते हैं। निश्चित है बीजेपी कांग्रेस से कुछ अच्छी है। कांग्रेस ने तो देश को लूटने के अलावा कुछ किया ही नहीं है। मैं गलत काम करने वालों को सबको बेनकाब करूंगा। मोदी ने क्या किया? कालेधन वालों के यहां छापे डाले जाने चाहिएं थे। इसके स्थान पर उनसे कालेधन का चालीस प्रतिशत टैक्स लेकर क्लीन चिट देदी गई। अरे, बाकी साठ प्रतिशत कालाधन क्या उनके बाप का है?
मैंने समाज को तीनों धाराएं इसीलिए प्रदान की हैं। मेरे द्वारा गठित भारतीय शक्ति चेतना पार्टी तभी सत्ता में आएगी, जब समाज हमें स्वीकार कर लेगा। हमें तो पहले इन पार्टियों के विरुद्ध समाज को जगाना है। धीरे-धीरे एक-एक कड़ी को सुधारने की ज़रूरत है, जो हम कर रहे हैं।
कल प्रातः गुरुदीक्षा है। देर से पहुंचने वाले इससे वंचित हो जाएंगे। उन्हें रायपुर (छ.ग.) में आयोजित होने वाले शिविर में 12 फरवरी 2017 तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी, क्योंकि गुरुदीक्षा शिविर में ही प्रदान की जाती है। मेरे द्वारा दी गई दीक्षा का कोई शुल्क नहीं लिया जाता। आपका गुरु अपने कर्मबल के द्वारा उपार्जित धन से अपना तथा अपने परिवार का व्यय वहन करता है, दान के पैसे से नहीं। वैसे तो मुझे दान शब्द से ही नफरत है। आप लोग अपने गुरु को क्या दान दोगे, जो स्वयं अपने आपको तुम्हारे ऊपर न्यौछावर कर रहा है? मैं कोई शुल्क नहीं, बल्कि समर्पण स्वीकार करता हूँ। मैं आप लोगों का कल्याण चाहता हूँ। मेरे यहां जाति-धर्म आदि का कोई भेद नहीं रहता है। मैं अपने समस्त शिष्यों को सदैव स्वतन्त्र रखता हूँ। यदि आपको लगे कि यहां के अतिरिक्त कहीं और आपका कल्याण हो जाएगा, तो आप वहां जाने के लिए स्वतन्त्र हैं।
मैंने ‘माँ’ के चरणों में प्रार्थना की थी कि मेरे परिवार में केवल पुत्रियों का ही जन्म हो। पुत्रों से मुझे नफरत नहीं है, किन्तु मैंने पुत्रियों की कामना इसलिए की कि तभी तो मैं बेटे-बेटी के भेदभाव को समाप्त कर सकूंगा। सन्तानोत्पत्ति के उपरान्त, मैंने सपत्नीक ब्रह्मचर्यव्रत का पालन किया है। मेरी पत्नी और बेटियां सामने बैठी हैं। तब से आज तक मेरे मन में कभी विकार नहीं आया। मैं चाहूंगा कि आप भी संकल्प लें कि शादी से पहले ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करेंगे और शादी के बाद एक पति/पत्नी व्रत का पालन करेंगे। यदि ऐसा कर लोगे, तो आपका गुरु आपको वचन देता है कि अब तक जो पाप आपसे होगए हैं, उन सभी से आपको मुक्त कर दूंगा।
(दोनों हाथ उठवाकर सबको संकल्प कराया गया– मैं संकल्प करता/करती हूँ कि नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीते हुए, शादी से पहले ब्रह्मचर्यव्रत तथा शादी के बाद एक पति/पत्नी व्रत का पालन करूंगा/करूंगी और तीनों धाराओं के प्रति तन-मन-धन से समर्पित रहूंगा/रहूंगी।) यदि हमें अपने देश को फिर से सोने की चिडिय़ा बनाना है, तो समाज को नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् बनना ही पड़ेगा। केवल फांसी देने से अपराध नहीं रुकते। इतनी फांसियां दी जा रही हैं, फिर भी बलात्कार हो रहे हैं। अपराध रोकने के लिए समाज को जागना पड़ेगा।
यह पण्डाल परिसर आपके लिए मन्दिर के समान है। जो कुछ यहां पर हो रहा है, उससे जुड़ो। दिव्य आरती के समय जब गुरु की आरती हो रही हो, तब जिस गुरु से आप जुड़े हो, उसका ध्यान करें। खड़ाऊं धारण करके मैंने अपने चरणों को कठोरता पर आधारित किया है और घड़ी इसलिए धारण की है, क्योंकि जीवन में समय बहुत महत्त्वपूर्ण है। मानवजीवन के मात्र तीन कर्तव्य हैं–मानवता की सेवा, धर्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा। धर्मरक्षा से तात्पर्य है कि दूसरे धर्मों का भी सम्मान करें।
द्वितीय दिवस-प्रथम सत्र
गुरुदीक्षा
शिविर के अन्तिम दिन सभी दीक्षार्थी शिविर पण्डाल में प्रातः सात बजे पहुंच गए थे। ठीक समय पर परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का शुभागमन हुआ। दीक्षा प्रदान करने से पूर्व आपश्री ने एक संक्षिप्त उद्बोधन दियाः
वे क्षण सबसे महत्त्वपूर्ण होते हैं, जब एक चेतनावान् गुरु से दीक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिलता है। मनुष्य का एक जन्म अपने माता-पिता से होता है तथा दूसरा और वास्तविक जन्म गुरुदीक्षा प्राप्त करने के बाद होता है। गुरु का रिश्ता सब रिश्तों से महान् होता है, क्योंकि गुरु शिष्य को जनकल्याण के मार्ग पर चलाते हुए, उसके आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। वह चाहता है कि जो शान्ति उसे प्राप्त हो रही है, वही उसके शिष्य को भी प्राप्त हो। आप लोग सत्यपथ पर सतत बढ़ें, विकास के पथ पर बढ़ें और आपका कल्याण हो। एक चेतनावान् गुरु सिर्फ और सिर्फ कल्याण करता है।
‘माँ’ की साधना से सहज कोई साधना नहीं है। अज्ञानता से होने वाली गलती से वह कभी रुष्ट नहीं होतीं, किन्तु जान-बूझकर की गई गलती अवश्य ही न्यूनता की श्रेणी में आती है। ‘माँ’ हमारी आत्मा की जननी हें। उनसे सदैव प्रेम का भाव होना चाहिए।
गुरु चाहता है कि उसके शिष्य नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जियें। यदि ऐसा हो गया, तो उनकी समस्याओं का समाधान होता चला जाएगा। विद्यालय में प्रवेश लेने के बाद, यदि कोई पढ़ना ही न चाहे, तो कभी भी सफल नहीं हो सकता। इसी प्रकार दीक्षा लेने के बाद निरन्तर साधना करनी होगी, अन्यथा कुछ भी प्राप्त नहीं होगा।
हम परमसत्ता से बहुत दूर खड़े हैं। हम चाहे जितनी भक्ति करते रहें, ज्ञान प्राप्त करते रहें, वह सदैव कम है। हम उसकी अथाह गहराई प्राप्त नहीं कर सकते। प्रारम्भ की नींव को मज़बूत करना होता है। यदि परमसत्ता से प्रेम कर लिया कि वह आपकी जननी है, तो उतनी ही शान्ति की प्राप्ति होती जाएगी और जन्म-दर-जन्म मनुष्य का उत्थान होता जाएगा। दीक्षा लेने के उपरान्त आप करोड़ों-करोड़ों लोगों के साथ जुड़ जाएंगे और भगवती मानव कल्याण संगठन के सदस्य बन जाएंगे। इस प्रकार, आप एक नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् परिवार से जुड़ रहे हैं।
आपके घर में जैसी भी व्यवस्था हो, अलग से एक साधनाकक्ष बना सकते हैं, ‘माँ’-गुरुवर की संयुक्त छवि को अलमारी में रख सकते हैं या दीवार पर टांग सकते हैं। इस प्रकार, नित्य साधना करें। ‘माँ’ तो आपकी भावना देखती हैं, उन्हें जगह को देखने की आवश्यकता नहीं हैं। देवी-देवताओं में कोई भेद नहीं है। छोटे कमरे में कम और बड़े में अधिक अगरबत्तियां जला सकते हैं। छोटे कमरे में अधिक जलाएंगे, तो धुंआ होगा। वहां पर एक ही अगरबत्ती पर्याप्त है। अगरबत्ती वातावरण को सुगन्धित करने के लिए जलाई जाती है। चाहें तो, उसे बीच में बुझा भी सकते हैं और अगले दिन पुनः जला सकते हैं। बस, आपका मन निर्मल और पवित्र होना चाहिए।
गुरु के द्वारा उच्चारित मंत्र उत्कीलित होजाते हैं। गुरु के रिश्ते को लाभ-हानि से मत तोलें। केवल समर्पण होना चाहिए। हमें क्या चाहिए और क्या नहीं चाहिए, इस बात को ‘माँ’ हमसे ज्यादा जानती हैं। ‘माँ’ के चरणों में आपका गुरु नित्यप्रति साधना करता है कि आपका मन भक्ति में लगे तथा आपको ज्ञान एवं सद्बुद्धि मिले।
अपने घर के ऊपर ‘माँ’ का ध्वज लगाएं और माथे पर कुंकुम का तिलक लगाएं। आपका आज्ञाचक्र सदैव आच्छादित रहना चाहिए। शक्तिजल का नित्य पान करें। अपने बच्चों को भी पिलाएं। प्रत्येक गुरुवार का व्रत रखें और शुद्ध-सात्त्विक भोजन करें। हर महीने की कृष्णाष्टमी का भी व्रत रख सकते हैं। मैं स्वयं इस व्रत को रखता हूँ और यज्ञानुष्ठान करता हूँ। यदि किसी कारणवश कृष्णाष्टमी का व्रत छूट जाय, तो अगले दिन नवमी को या फिर चतुर्दशी को रख सकते हैं। इन तीनों दिनों का एक समान फल होता है। घर में नित्य शंखध्वनि करें। इससे आपका अन्तःकरण तथा घर का वातावरण निर्मल एवं पवित्र बनेगा।
(अब तीन बार शंखध्वनि की गई और मेरुदण्ड सीधी करके तीन-तीन बार ‘माँ’ और ॐ बीजमंत्रों का उच्चारण किया गया। तदुपरान्त, सोऽहं का तीन बार उच्चारण किया गया। अब सभी दीक्षार्थियों को एक संकल्प कराया गया, जिसका सार संक्षेप निम्नवत् हैंः मैं धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज को अपना गुरु स्वीकार करता/करती हूँ। मैं जीवनपर्यन्त नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् जीवन जिऊंगा/जिऊंगी। भगवती मानव कल्याण संगठन एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम के दिशा-निर्देशों का अक्षरशः पालन करूंगा/करूंगी तथा मानवता की सेवा, धर्मरक्षा एवं राष्ट्ररक्षा के लिए प्रदत्त तीनों धाराओं के प्रति तन-मन-धन से पूर्णतया समर्पित रहूंगा/रहूंगी।
यदि आप इस संकल्प पर अडिग रहे, तो कोई भी कभी आपको मुझसे अलग नहीं कर सकेगा। यह संकल्प ही आपका जीवन होना चाहिए। यह कभी भी टूटना नहीं चाहिए। इसे जितना दृढ़ करते जाएंगे, उतनी ही अपने गुरु की कृपा प्राप्त करते जाएंगे।
(अब गुरुवरश्री के द्वारा निम्नलिखित मंत्रों का तीन-तीन बार उच्चारण सभी को कराया गयाः 1. बजरंगबली का मंत्र-ॐ हं हनुमतये नमः, 2. भैरव देव का मंत्र-ॐ भ्रं भैरवाय नमः, 3. गणपति देव का मंत्र-ॐ गं गणपतये नमः, 4. ‘माँ’ का चेतना मंत्र-ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नमः तथा 5. गुरुमंत्र-ॐ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः।)
किसी भी मंत्र का उच्चारण आगे-पीछे किया जा सकता है। इनमें कोई भेद नहीं है। किन्तु, सामूहिक उच्चारण करते समय एक निश्चित क्रम में किया जाता है। नित्यप्रति की साधना में गुरुमंत्र का उच्चारण शुरु में करें और बाद में भी। मंत्रों का निश्चित क्रम साधना संजीवनी पुस्तक और साधना कार्ड में दिया गया है।
समयाभाव के कारण यदि पूरा साधनाक्रम नहीं कर पाते, तो कम-से-कम ‘माँ’ का एक चालीसा पाठ अवश्य करें। श्री दुर्गाचालीसा का अखण्ड पाठ पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में मानवकल्याण के लिए अनन्तकाल तक के लिए चल रहा है। यदि समय कम है, तो साधना में जल्दीबाज़ी न करें। एकाग्रता होनी चाहिए। साधना तभी फलीभूत होगी।
अन्त में, प्रणाम करते समय सभी दीक्षाप्राप्त लोगों को एक-एक शीशी निःशुल्क शक्तिजल दिया गया। इसके साथ-साथ दीक्षापत्रक भरकर लौटाने के लिए दिया गया।
उल्लेखनीय है कि इस अवसर पर लगभग ग्यारह हज़ार लोगों ने गुरुदीक्षा प्राप्त की। इनमें देवरी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेसी विधायक श्री हर्ष यादव जी तथा सागर की पूर्व महापौर श्रीमती मनोरमा गुप्ता जी भी सम्मिलित थीं।
द्वितीय दिवस-द्वितीय सत्र
दिव्य उद्बोधन
हम बदलेंगे, जग बदलेगा इस बात को हम बहुत दिनों से सुनते आए हैं, किन्तु कुछ नहीं बदला। इसका कारण यह है कि लोगों की कथनी और करनी में अन्तर है। अतः स्वयं से परिवर्तन का शुभारम्भ करें। साधक की प्रवृत्ति जाग्रत् करें। इससे सब कुछ सम्भव है। इसके लिए एक ही मार्ग है–कर्म करें और उपभोग छोड़ें। बिना कर्म के फल की कामना न करें।
लाभ-हानि, जीवन-मरण और यश-अपयश से परे होकर अपने वास्तविक ‘मैं’ को जानो, भौतिक ‘मैं’ को नहीं। इस बात की खोज करो कि आपकी शक्तियां क्या हैं और आपका अपना कौन है? आपके अन्दर अलौकिक शक्तियां हैं। अपने ऋषि-मुनियों और परम्पराओं को याद करो। ऋषित्व के पथ पर चलो, जो सबसे बड़ा पद है। उन्होंने हमें सब कुछ दिया है और समाज में परिवर्तन डाला है। किन्तु, अपनी लोभ प्रवृत्ति के कारण आप साधनापथ से भटककर उपभोग के पथ पर चलने लगे हैं।
‘माँ’ ने हमें संसार में अनीति-अन्याय-अधर्म करने के लिए नहीं भेजा था, किन्तु हम उनमें लिप्त होकर रह गए हैं। जो ज्ञान और सामर्थ्य हमें ‘माँ’ से मिली है, उनका पूर्ण उपयोग करें। वेद-उपनिषदों का सार यही है कि कर्म करें। अपने तन-मन और बुद्धि को निर्मल बनाओ, ब्राह्ममुहूर्त में जगें और अपने आहार-व्यवहार-विचार को संवारें।
हमारा आहार शुद्ध-सात्त्विक होना चाहिए, अनीति-अन्याय-अधर्म के द्वारा कमाया गया नहीं होना चाहिए। अपने जीवन में सक्रियता लाओ। छः घण्टे से अधिक नींद मत लो, हर पल सजग रहो और नियमों का पालन करो। हर पल अपना आकलन करते रहो कि कब कौन सा विचार गलत आया? साधना का अर्थ केवल सुबह-शाम की पूजा-पाठ ही नहीं है। कुविचारों को दूर भगाना और झूठ-फरेब से दूर रहना भी साधना ही है। अपने इष्ट से दूर मत रहो। जीभ के स्वाद के लिए ही अपने जीवन को नष्ट मत करो। आज बाज़ार में नब्बे प्रतिशत मिठाइयां शुद्ध नहीं हैं। मिलावट का तेल-घी और सिन्थैटिक दूध-खोया आदि आ रहे हैं।
यथासम्भव गोवंश का संरक्षण करो। यदि व्यवस्था हो, तो गोपालन करो। इसके लिए शासन-प्रशासन पर निर्भर मत रहो। सब्ज़ियों में इन्जैक्शन लगाए जाते हैं, सावधान रहो। यदि आहार शुद्ध है, तो आपकी बुद्धि निर्मल हो जाएगी। तब कुमार्ग पर न जाकर सत्यपथ पर जाओगे। रात-दिन दूषित विचारों में रहने के कारण रात में विकारात्मक स्वप्न आते हैं। जब तक स्वयं को नहीं सुधारोगे, तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा।
कलिकाल के भयावह वातावरण से मत डरो। तुम केवल शक्तिसाधक बन जाओ। अपने घर को पवित्र बनाओ और किसी को भी नशा करके अपने घर में मत आने दो, भले ही वह आपका दामाद ही क्यों न हो। हर घर को पवित्र करके मन्दिर बनाया जा सकता है।
आपको यह जीवन एक निर्धारित समय तक के लिए मिला है। क्या यह भौतिक सम्पदा एकत्र करने को मिला है? नहीं, अपने अन्दर आध्यात्मिक सम्पदा के लिए ललक पैदा करो। स्वयं के प्रेमी बनो, यानि अपने आपको संवारो। फिर कभी भी तुम्हारा पतन नहीं होगा।
मैं किसी देवी-देवता का अवतार नहीं हूँ। मैं एक ऋषि था, ऋषि हूं और ऋषि ही रहूंगा। जो पद आपको मिला है, उसके अनुसार कर्म करो। अपनी नकारात्मक सोच को सकारात्मक बनाओ। मृत्यु से मत डरो। एक समय मेरे शरीर का आधा भाग बेकार होगया था। मैंने न तो कोई दवाई ली, न विश्राम किया और परिश्रम करके अपने आपको व्यस्त रखा। इसीलिए बिना किसी उपचार के मेरा सारा शरीर सक्रिय होगया।
हर मनुष्य को अपने हर कर्म के फल का अधिकार है। उसे कोई छीन नहीं सकता। कई बार कुसंस्कारों के कारण वह नष्ट होजाता है। इसलिए आशावादी बनो। आज समाज में सज्जन लोगों की भरमार है, किन्तु वे सब निष्क्रिय होने के कारण मिट्टी के ढेले के समान है। बहनों और माताओं के ऊपर गुण्डे लोग भद्दी टीका-टिप्पणी करते रहते हैं और ये सज्जन लोग सिर झुकाकर निकल जाते हैं। धिक्कार है ऐसी सज्जनता को! मैं कहता हूँ, दुनिया के गुण्डे मुझसे टकराकर देखें। यदि ‘माँ’ की कृपा हमारे साथ है, तो अपनी भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति के बल पर हम हर संघर्ष के पार जा सकते हैं। कभी भी अनीति-अन्याय-अधर्म से समझौता मत करो, भले ही तुम्हें भूखों मरना पड़े।
परिवर्तन आपको समाज में डालना ही पड़ेगा। उसे और कोई नहीं लाएगा। आज अधिकतर धर्माधिकारी अय्याशी कर रहे हैं। उनमें से कुछ अच्छा कार्य भी कर रहे हैं। हर प्रदेश में बेईमान राजनेता और पुलिस अफसर समाज को लूट रहे हैं। थानों में अधर्मी-अन्यायियों का स्वागत होता है और गरीब लोगों को माँ-बहन की गालियां दी जाती हैं। अब तक का हर चुनाव आयोग निकम्मा साबित हुआ है। टी.एन. शेषन ने ज़रूर कुछ अच्छा कार्य करने का प्रयास किया था, किन्तु उससे पहले और बाद में किसी ने कुछ नहीं किया।
देश के पचहत्तर प्रतिशत नेता चुनावों में बेईमानी से चुने जाते हैं। धिक्कार है उन्हें, वे किस प्रकार का जीवन जीते हैं! धिक्कार है उन धर्मगुरुओं को, जिनसे वे जुड़े हैं! वे उन्हें शोषण करने से क्यों नहीं रोकते? वे उनके विरुद्ध इसलिए आवाज़ नहीं उठाते, क्योंकि वे उनसे डरते हैं। आखिर, समाज बदलेगा कैसे? इसके विरुद्ध कौन आवाज़ उठाएगा? मैं तो ज़रूर उठाता रहूंगा, क्योंकि मुझे कोई डर नहीं है। हम लोग कष्ट सह लेंगे, किन्तु देश को कष्ट नहीं होने देंगे। हम रचनात्मक कार्य कर रहे हैं और सत्यपथ पर चल रहे हैं। मुझे कोई चुनाव नहीं लड़ना है, केवल राजनीति का मार्गदर्शन करना है।
भारत माता कोई भूखण्ड नहीं है, वह रोती-बिलखती मानवता ही तो है। आज खिलाडिय़ों को महिमाण्डित करके करोड़ों रुपए दिये जाते हैं और देश के सैनिकों को, जो अपनी जान की परवाह न करके देश की रक्षा कर रहे हैं, लाख-दस लाख देकर टाल दिया जाता है। सत्ता रहे या न रहे, पद रहे या न रहे, आप एक बार निर्णय ले लें कि सच्चाई-ईमानदारी पर चलेंगे। अपनी इच्छाशक्ति जगाओ।
मोदी जी ने देश में सुधार लाने के लिए बहुत से आश्वासन दिये थे, किन्तु उन्होंने उद्योगपतियों के लिए हर कार्य किया। गरीब लोगों के स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए कुछ नहीं किया। बुलेट ट्रेन और स्मार्ट सिटी के स्थान पर, विद्यालयों की स्थिति सुधारते। उनकी बिल्डिंग खण्डहर बनी हें, उनकी दुर्दशा है और उनमें अध्यापक नहीं हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र का भी यही हाल है। यदि झोलाछाप डॉक्टरों को बन्द कर दिया जाय, तो पच्चीस प्रतिशत गरीब जनता मौत के गर्त में जाएगी। स्वच्छता के नाम पर पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है, किन्तु बड़े शहरों के पास रेलवे पटरी के दोनों ओर गंदगी का साम्राज्य है। सुलभ शौचालय बनाए गए, किन्तु उनकी हालत देखने योग्य है, टूटे-फूटे पड़े हैं। उन पर लगाया गया सारा पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है। अतः स्वयं संकल्पित होजाओ कि न तो भ्रष्टाचार करेंगे और न होने देंगे।
आज मध्यप्रदेश में शराब के सैकड़ों नाजायज़ ठेके चल रहे हैं। मजबूर होकर हमने इन्हें बन्द करने का लक्ष्य ठाना है। इससे परिवर्तन आ रहा है। पड़ौसी देश नेपाल में भी परिवर्तन आ रहा है। मेरे कार्यकर्ताओं ने केवल मध्यप्रदेश में ही रात-रात जागकर और यातनाएं सहकर छः सौ से अधिक स्थानों पर नाजायज़ शराब की खेप पकड़वाई हैं। शराबमाफियाओं के द्वारा उन पर फर्ज़ी मुकदमें दर्ज कराए गए हैं। पुलिस वाले उनके साथ बैठकर चाय पीते हैं, यद्यपि अनेक पुलिस अफसरों ने सहयोग भी किया और हमारी प्रशंसा की है। स्वतन्त्रता सेनानियों की तरह हम भी सीने पर गोलियां खाएंगे और ‘जय मता की!’ बोलेंगे।
अपने कार्यकर्ताओं को मेरा निर्देश है कि इस कार्य में अपनी पूरी ताकत झोंक दो। हम वह स्थिति ला देंगे कि अन्यायी-अधर्मी अपनी कुर्सी पर बैठने लायक भी नहीं बचेंगे। विश्व अध्यात्मजगत् को दी गई मेरी चुनौती को स्वीकार करके धर्मगुरुओं के विश्वस्तरीय सम्मेलन का आयोजन कराओ। इसके फलस्वरूप धर्मगुरु सुधर जाएंगे, तो समाज में सुधार आजाएगा।
मोदी जी के द्वारा की गई नोटबन्दी का मैं समर्थक हूँ, किन्तु उसके लिए समुचित तैयारी नहीं की गई थी। नोटबन्दी से पहले ही पर्याप्त करैंसी बाज़ार में पहुंच जानी चाहिए थी। मैं और मेरा पूरा संगठन नोटबन्दी का समर्थन करते हैं।
नीतीश कुमार ने बिहार को नशामुक्त प्रदेश घोषित किया। मैं उनकी प्रशंसा करता हूँ। दूसरे प्रदेशों को भी ऐसा करना चाहिए। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने भोपाल में मुझे प्रदेश में नशाबन्दी का आश्वासन दिया था, किन्तु वह भूल गए। मैंने उनसे कहा था कि बस एक छोटा सा काम कर दीजिए– प्रदेश को नशामुक्त घोषित कर दीजिए। मेरा संगठन आपके साथ खड़ा नज़र आएगा।
मेरे यहां दस-दस, पच्चीस-पच्चीस लोगों की टोलियां आती हैं और कहते हैं कि नशा छोड़ने आए हैं। उनमें से निन्यानवे प्रतिशत नशामुक्त होकर जाते हैं। कौन सी ऊर्जा उन्हें इस ओर आकर्षित कर रही है।
विद्रोही बनकर हमें रचनात्मक पथ पर बढ़ना है, सबके साथ प्रेम से कार्य करना है। जब मैं चला था, तो अकेला था। आज करोड़ों लोग मुझसे जुड़ गए हैं, क्योंकि मैं दीन-हीन-असहाय लोगों के दुःख-दर्द मिटा रहा हूँ। मैं इस मंच से सांसदों, विधायकों और सरपंचों से कहना चाहता हूँ कि वे उन मज़दूरों की ओर देखें, जो भूखे-प्यासे कमरतोड़ मेहनत करते हैं। उनके कल्याण के लिए कुछ काम करें। उन्हें उनकी दुआएं मिलेंगी।
बुन्देलखण्ड राज्य की मांग लम्बे समय से चल रही है। यदि यह राज्य बन जाय, तो जल्दी विकास होगा। अच्छे काम का हम समर्थन करते हैं, चाहे वह कोई भी पार्टी करे, किन्तु वहीं गलत काम का हम प्रखर विरोध करते हैं।
मोदी जी कहते हैं कि उन्होंने एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली। क्या ज़रूरत है उन्हें छुट्टी की? हवाई जहाज़ और हैलिकॉप्टर में घूमते हैं और फाईवस्टार होटल में विश्राम करते हैं। वह कहते हैं कि देश की रक्षा के लिए उन्होंने घर-परिवार भी त्याग दिया है। जो व्यक्ति अपनी पत्नी को छोड़ दे और कहे कि वह उसके कार्य में बाधक थी, उससे बड़ा अज्ञानी कोई नहीं है। मेरी पत्नी मेरे कार्य में कभी बाधक नहीं बनी। इस धरती पर सबसे खुशहाल परिवार मेरा है। नारी का सम्मान करना सीखो। यह कहने मात्र से नहीं, करने से होगा।
बेटे के मुखाग्नि देने से ज़रूरी नहीं कि मुक्ति होजाय, किन्तु यदि बेटी मुखाग्नि दे देगी, तो निश्चित रूप से मुक्ति हो जाएगी। सांसद प्रह्लाद सिंह पटेल जी दमोह से आए हैं। उनसे मेरा आवाह्न है कि आओ, मिलकर नशामुक्ति के लिए कार्य करें और नये भारत का निर्माण करें। या तो लोग मेरे बन जाते हैं, या मुझसे दूर भाग जाते हैं। इस अवसर पर मैं चाहूंगा कि गोपाल भार्गव जी और प्रहलाद पटेल जी अपनी विचारधारा रखें।
गुरुवरश्री ने पुनः चिन्तन प्रदान किया कि हम इस कार्य में आप सभी का सहयोग चाहते हैं। हमारा संगठन रात-दिन इसमें लगा हुआ है। सुधार की कोई सीमा नहीं होती। हमारा प्रयास हर पल सुधार का होना चाहिए। ‘माँ’ की ऊर्जा कभी भी पराजित नहीं होगी। हमारी निष्ठा एवं विश्वास परमसत्ता पर होना चाहिए।
अगला नशामुक्ति महाशंखनाद शक्ति चेतना जनजागरण शिविर 11-12 फरवरी 2017 को रायपुर (छ.ग.) में रखा गया है। वहां इस अवसर पर दिनांक 10 फरवरी को मानवश्रृंखला बनेगी। वहां मध्यप्रदेश से अधिक एक बड़ा परिवर्तन आ रहा है, जबकि यह अभियान वहां देर से शुरू हुआ था। वहां पर भी हम शासन का आवाहन करेंगे कि यथाशीघ्र मद्यनिषेध लागू हो। आन्दोलन हमारा मार्ग नहीं है। हम रचनात्मक कार्य करते हैं। हम विद्रोही हैं, किन्तु रचनात्मक! उग्रवाद को कोई स्थान नहीं है। यदि यह पनप गया, तो पतन अवश्यम्भावी है। जातीयता और साम्प्रदायिकता से सदैव दूर रहो और सभी धर्मों का सम्मान करो। कांग्रेसमुक्त नारे को मैं सही नहीं मानता। उससे अच्छा कार्य करो।
रायपुर (छ.ग.) शिविर के लिए मैं 09 फरवरी को सिद्धाश्रम से प्रस्थान करूंगा। बिलासपुर में रात्रिविश्राम होगा और 10 फरवरी को रायपुर पहुंचूंगा।
इस प्रकार, दो दिवसपर्यन्त चला यह शक्ति चेतना जनजागरण शिविर ‘माँ’ की कृपा एवं परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के दिव्य आशीर्वाद से पूर्णतया निर्विघ्न सम्पन्न हुआ। यह शिविर, वास्तव में, ऐतिहासिक रहा, जिसने अब तक के समस्त रेकॉर्ड तोड़ दिये। सागर में मानवता का महासागर उमड़ा, जिसमें लगभग ग्यारह हज़ार लोगों ने गुरुदीक्षा लेकर जीवनपर्यन्त पूर्ण नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् जीवन जीने का संकल्प लिया।
पत्रकार वार्ता
मध्यप्रदेश के ज़िला मुख्यालय सागर में 26-27 नवम्बर को आयोजित दो दिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर के सफलतापूर्वक सम्पन्न होने के उपरान्त, दिनांक 28 नवम्बर को गुरुआवास (साईं आशीर्वाद होटल) में आयोजित पत्रकार वार्ता में पत्रकारों के द्वारा नमनभाव से पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते हुए धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने कहा कि जब तक देश नशामुक्त नहीं होगा, तब तक बलात्कार जैसी जघन्य घटनाएं नहीं रुकेंगी और न ही देश अपराधमुक्त होगा।
आपश्री ने कहा, ‘‘हमें प्रदेश के साथ ही पूरे देश को नशामुक्त करना है। जब परिवार का एक भी व्यक्ति नशा करता है, तो पूरे परिवार को असीम दुःख उठाना पड़ता है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूरे प्रदेश में शराबबन्दी लागू करके सराहनीय कार्य किया है। भोपाल शिविर में शिवराज सिंह चौहान ने इसके लिए आश्वासन दिया था, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ। किसी बलात्कारी को फांसी की सज़ा देने का कानून बनाने से कुछ नहीं होगा। इससे बलात्कार जैसी जघन्य घटनाएं नहीं रुकेंगी। नब्बे प्रतिशत लोग शराब के नशे में अपना विवेक खो बैठते हैं।’’
परम पूज्य गुरुवर ने कहा, ‘‘कोई भी ऐसा धर्म नहीं है, जो सही रास्ता न दिखाता हो। हमें सभी धर्मों को मानना चाहिए। यदि सभी लोग अपने-अपने धर्मानुरूप चलनें लगें, तो पूरा समाज सुधर सकता है।’’
प्रधानमंत्री के नोटबन्दी के निर्णय पर गुरुवरश्री ने कहा, ‘‘इससे पांच से दस प्रतिशत लाभ अवश्य पहुंचेगा, लेकिन भ्रष्टाचारियों का साम्राज्य इतना गहरा है कि केवल नोटबन्दी से सुधार नहीं आ सकता। शासन-प्रशासन को मालूम रहता है कि कहां, किस ज़िले में कौन-कौन बेईमान है। यदि युद्धस्तर पर छापामार कार्यवाही होती रहे, तो बहुत कुछ सुधार आ सकता है। आज़ादी के बाद से लेकर आज तक जितना गलत हुआ है, थोड़ा कुछ करने से क्या सुधार आ जाएगा? बुलेट ट्रेन और स्मार्ट सिटी से गरीबों का हित नहीं होने वाला। पहले शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान देना होगा। उनका स्वच्छता अभियान भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है। देश के प्रधानमंत्री एक ऐक्टर ज़रूर हैं। कहते हैं देश के लिए परिवार को त्याग दिया। क्या देश की सीमा पर गोली खा रहे जवानों ने परिवार छोड़ दिया है? मेरी दृष्टि में नारी का सम्मान न करने वाला धार्मिक नहीं है।’’
आपश्री ने कहा, ‘‘देश को नशामुक्त करना बहुत ज़रूरी हो गया है। आज देश के भविष्य कहे जाने वाले, पढ़ने वाले बच्चे शराब का नशा कर रहे हैं। मेडिकल स्टोर्स में नशे की गोलियां व इंजैक्शन खुलेआम बिक रहे हें और सरकार अनजान बनी हुई है। यदि मीडिया का सहयोग रहा, तो देश-प्रदेश को नशामुक्त कराने में बहुत कुछ सफलता प्राप्त हो सकती है।’’
पत्रकारों ने पूछा कि यदि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शराबबन्दी की घोषणा करती है, तो आप समर्थन करेंगे। इस पर गुरुवरश्री ने कहा, ‘‘मैं भाजपा के राजनेताओं के आश्वासन पर विश्वास नहीं करता, क्योंकि भोपाल शिविर में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने आश्वासन देकर कुछ नहीं किया। हाँ, यदि देश-प्रदेश को नशामुक्त बनाने की घोषणा कर क्रियान्वित कर दिया जाए, तो भगवती मानव कल्याण संगठन के लाखों सदस्यों का आने वाले चुनाव में पूरा समर्थन रहेगा। लेकिन, भारतीय शक्ति चेतना पार्टी गुलाम नहीं बनेगी। नशामुक्ति अभियान के चरितार्थ होने के बाद समाजहित में अन्य कार्य किए जाएंगे। साथ ही परम पूज्य गुरुवरश्री ने कहा कि जहां भी पार्टी के 500 कार्यकर्ता भी होंगे, पार्टी वहां चुनाव लड़ेगी, क्योंकि हमारा लक्ष्य सत्ता प्राप्त करना नहीं, बल्कि समाजकल्याण है।’’
इस अवसर पर समाचार पत्र दैनिक भास्कर से संदीप तिवारी जी, पत्रिका से रेशू जैन जी, हिंदी मेल से वंदना तोमर जी, नया इंडिया से दीनदयाल बडग़ैया जी, देशबन्धु से आशीष सोनी जी व दुर्गेशदत्त तिवारी जी, बंसल न्यूज से पंकज सोनी जी, आई.बी.सी. 24 से उमेश यादव जी, आचरण से सुदेश तिवारी जी, सहारा न्यूज़ से मनीष तिवारी जी, श्री प्रेस से वाहिद जी, नवदुनिया से शत्रुध्न केशरवानी जी, इवनिंग मिरर से अमित श्रीवास्तव जी, दबंग दुनिया से दिलीप सिंह जी, पीपुल्स से विशाल जी व प्रभात दुबे जी, एल.टी.वी. से ऋषि वर्मा जी, राष्ट्रीय साप्ताहिक समाचारपत्र संकल्प शक्ति से अलोपी शुक्ला जी सहित अनेक पत्रकारों ने परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का सान्निध्य पाने के साथ नवसृजन हेतु चरणस्पर्श करके आशीर्वाद प्राप्त किया।
सागर से दमोह होते हुए सिद्धाश्रम तक मनभावन दृश्य
दिनांक 29 नवम्बर मंगलवार को प्रातःकाल 07 बजे ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज जैसे ही गुरुआवास से बाहर निकले, शिष्यों व ‘माँ’ भक्तों के मुखारविन्द से उच्चारित जयकारों की ध्वनि से समूचा क्षेत्र गूंज उठा। सागर से दमोह होते हुए शहडोल जिले के ब्यौहारी अनुविभाग क्षेत्र में स्थापित पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम तक वापसी नशामुक्त सद्भावना यात्रा के दौरान सड़क मार्ग पर पड़ने वाले हर नगर व ग्रामों में परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के दर्शन हेतु उमड़े भक्तों के सैलाब की आतुरता वर्णानातीत थी। दमोह ज़िला मुख्यालय से लेकर जबेरा तक सद्भावना यात्रा के दौरान ग्राम बलारपुर में वित्तमंत्री जयंत मलैया जी सहित हज़ारों लोगों ने महाराजश्री की अगवानी की व आशीर्वाद प्राप्त किया। जबेरा विधायक प्रताप सिंह जी ने जबेरा ब्लॉक की सीमा तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और गुरुवरश्री को नमन किया।
सागर ज़िला मुख्यालय की सीमा पर मार्ग के दोनों ओर खड़े क्षेत्रीय भक्तों, गुरुभाई-बहनों व नगरवासियों के नयनों में प्रेमाश्रु छलक उठे। यात्रा सागर से समनापुर कलां पहुंची, जहां ग्रामवासी गुरुवरश्री के दर्शन हेतु पंक्तिबद्ध खड़े थे। ऐसा लग रहा था कि वे गुरुवर से धन-दौलत नहीं, बल्कि भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति मांग रहे थे। गुरुवर ने भी उनके भावों को जानकर अपना वाहन कुछ समय के लिए रोककर अपना आशीर्वाद प्रदान किया। आगे जामघाट, पटना बुज़ुर्ग, रमखिलिया व रहली में छोटी-छोटी बच्चियां सिर पर कलश रखे हुए जयकारे लगा रही थीं।
ग्रामवासियों के द्वारा आम व केले के पत्तों से स्वागतद्वार का निर्माण किया गया था। गुरुदेव भगवान् जैसे ही वहां पहुंचे, जयकारों के बीच महिलाओं ने आरती उतारकर उनकी अगवानी की। सभी लोग आशीर्वाद की आकांक्षा में गुरुवरश्री के वाहन को छूकर ही तृप्त हो रहे थे। सिर पर कलश रखे बच्चियों का श्रद्धाभाव देखकर प्रतीत हो रहा था कि नारीशक्ति का अभ्युदय हो रहा है और शीघ्र ही देश में परम पूज्य गुरुवर की विचारधारा के अनुरूप क्रान्तिकारी परिवर्तन होगा। रहली ग्राम में तो सद्भावना यात्रा की अगवानी में युवकों ने झेलम नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति दी।
ग्राम लुहागर, हरदोट, चौरई व रनगुवां होते हुए यात्रा गढ़ाकोटा पहुंची। इन सभी स्थानों पर स्वागतद्वार बनाकर फूलों व सप्तरंगों से रंगोली बनाई गई थी। मार्ग में फूलों की पंखुडिय़ां बिखेरकर गुरुदेव भगवान् का स्वागत किया गया। गढ़ाकोटा में जगह-जगह रैली का भव्य स्वागत किया गया। गढ़ाकोटा के मध्य में स्थापित महर्षि महेश विद्या मंदिर की छात्र-छात्राएं अपने गणवेश में अनुशासनपूर्वक पंक्तिबद्ध खड़े थे और जैसे ही गुरुवरश्री का वाहन उनके पास पहुंचा, सभी ने वेदमंत्र का उच्चारण करते हुए झुककर नमन किया। ग्राम तेवर, बरसौलिया, तरावली होते हुए यात्रा दमोह ज़िले के पथरिया ब्लॉक क्षेत्र पहुंची। स्वागत में खड़े ग्रामवासी अपने आराध्य का आशीर्वाद प्राप्त करके धन्य हुए। तत्पश्चात्, यात्रा ग्राम देवरान, बाँसा, बरमासा और हिरदेपुर होते हुए जैसे ही दमोह ज़िला मुख्यालय पहुंची, बैण्ड बाजा, शहनाई व बैन्जो की स्वर लहरियां उत्पन्न होने लगीं। जगह-जगह भव्य स्वागतद्वार बने थे और जयकारों से समूचा क्षेत्र गुंजायमान हो रहा था। मुख्य बाज़ार, स्टेशन चौराहा, गांधी चौराहा व सांई चौराहे पर हज़ारों हज़ार लोगों ने गुरुदर्शन प्राप्त करके अपने जीवन को सौभाग्यशाली बनाया। दमोह स्थित तीन भाई कयामगाह के सामने मुस्लिम समाज की ओर से योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का भव्य स्वागत किया गया। इस अवसर पर ईद मिलादुन्नवी शहर कमेटी के अध्यक्ष अनवार उस्ताद, हाजी कय्यूम बाबू, हाजी बाबू जी, शाहिद नूर, मुहम्मद शहजाद, अब्दुल जलील, अब्दुल मतीन, शाहिद मजीद, डॉ. नाज़िर, साजिद रिज़वी, ज़ियाउल हक व राजा टेलर सहित मुस्लिम समाज के सैकड़ों लोगों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
दमोह नगर से बाहर निकलते ही रैली ने विशाल रूप ले लिया। सैकड़ों दोपहिया वाहनों पर सवार भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ता सद्भावना यात्रा के आगे-आगे व अनेकों वाहन सद्गुरुदेव भगवान् के पीछे-पीछे मंद गति से चल रहे थे।
परम पूज्य गुरुवरश्री ने समन्ना तिगड्डा, ग्राम आनू व बांदकपुर में शिष्यों व ग्रामवासियों को आशीर्वाद प्रदान किया। बांदकपुर ग्राम को नौ तोरणद्वारों से सुसज्जित किया गया था। हर द्वार के दोनों ओर सुख-समृद्धि के प्रतीक कलश को स्थापित किया गया था और द्वार के मध्य में शक्तिध्वज लहरा रहा था। बच्चों, महिलाओं व पुरुषों की भीड़ को व्यवस्थित करने में भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं की भूमिका सराहनीय रही। ग्राम पिपरिया, टिकरी व खड़ेरा में भी ग्रामवासियों ने शंखध्वनि व जयकारे लगाकर यात्रा का भव्य स्वागत किया।
दमोह ज़िले के ग्राम बलारपुर में वित्तमंत्री जयंत मलैया (म.प्र. शासन) ने ग्रामीणों के साथ गुरुवरश्री का आत्मीय स्वागत करते हुए आशीर्वाद प्राप्त किया।
जबेरा ब्लॉक में प्रवेश करते ही ग्राम बनवार में भक्तिभाव से आह्लादित नर-नारियों और स्कूल के बच्चों का भारी समूह उमड़ पड़ा था। यहां पर कई हज़ार दर्शनार्थी जयकारे लगाते हुए पंक्तिबद्ध खड़े थे। ग्राम लरगुवां के नर-नारी व बच्चे भावविह्वल हुए सड़क पर साष्टांग लेटकर अपने आराध्य को दण्डवत् प्रणाम कर रहे थे। सद्गुरुदेव भगवान् के दर्शन प्राप्त करके प्रसन्नता से अनेक लोगों की आंखें भर आईं। परस्वाहा, खमरिया, पटना मानगढ़, छपरवाहा, रौंड, नवल पिपरिया, मड़ागुवां, बम्हौरी, सिमरी जालम, डूमर, चोपरा चण्डी, पौड़ी महराज सिंह, जमुनिया सुल्तान सिंह, घाना, कलेरा व तांवरी, इन सभी ग्रामों में गुरुवरश्री के दर्शन पाने हेतु अपार जनसमूह उमड़ पड़ा था। हर ग्राम में हज़ारों की संख्या में नर-नारी व प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालयों के छात्र-छात्राओं की आंखें सद्गुरुदेव भगवान् की प्रतीक्षा में बिछी हुईं थीं।
जबेरा ब्लॉक मुख्यालय पर तो गुरुभाई-बहनों, नगरवासियों व गुरुवरश्री के दर्शन हेतु आसपास के हज़ारों ग्रामीण सड़क मार्ग के दोनों ओर पंक्तिबद्ध होकर जयकारे लगा रहे थे। भक्तों की पंक्ति नगर के बीचोंबीच लगभग दो किलोमीटर तक थी। भीड़ इतनी थी कि मार्ग के दोनों ओर पांच-पांच, छह-छह पंक्तियां लगी हुई थीं। व्यवस्था बनाने में संगठन के कार्यकर्ताओं के साथ ही पुलिस का सहयोग सराहनीय रहा। गौरतलब है कि दमोह ज़िला मुख्यालय से जबेरा ब्लॉक तक सद्भावना यात्रा को लगभग 08 घण्टे का समय लगा।
सद्भावना यात्रा पूरनहाऊ, सिंग्रामपुर, गुबरा होते हुए मझौली पहुंची। इन ग्रामों में भी सद्गुरुदेव भगवान् जी का अभूतपूर्व स्वागत किया गया। पौड़ी, सिहोरा, कटनी व मड़ई में सड़क मार्ग के किनारे जयकारे लगाते हुए अनेक भक्त खड़े थे। जैसे ही वहां यात्रा पहुंची, सभी ने क्रमबद्ध रूप से गुरुवरश्री के वाहन को स्पर्श करके नमन किया। इस तरह बरही, बांधवगढ़ व मानपुर होते हुए रात्रि लगभग 11 बजे यह नशामुक्ति सद्भावना यात्रा पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम पहुंचकर सम्पन्न हुई।