मध्यप्रदेश से अलग होकर अस्तित्व में आए इस छत्तीसगढ़ राज्य में अधिकांशतः आदिवासी लोग रहते हैं। इनका मुख्य व्यवसाय खेती या मज़दूरी है। शैक्षिक एवं आर्थिक रूप से पिछुड़े होने के कारण, ये लोग प्रायः नशों एवं मांसाहार में लिप्त हैं तथा विभिन्न प्रकार के आडम्बरों, कुरीतियों एवं अन्धविश्वासों से ग्रसित हैं।
किन्तु, इस सबके बावजूद ये लोग हैं बहुत भावनावान्। गत लगभग दो वर्ष के अल्पकाल में ही यहां के लाखों लोग पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम से जुड़ चुके हैं और पूर्ण नशामुक्त एवं मांसाहारमुक्त जीवन जी रहे हैं तथा यह सिलसिला निरन्तर जारी है। इससे प्रसन्न होकर परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने इस राज्य को यह शक्ति चेतना जनजागरण शिविर प्रदान किया था।
15-16 फरवरी को आयोजित होने वाले इस शिविर के लिए महाराजश्री के शिष्यों एवं भक्तों ने सिद्धाश्रम से शक्ति चेतना जनजागरण सद्भावना यात्रा के रूप में प्रस्थान किया। दिनांक 13 फरवरी को प्रातः ठीक 09:00 बजे धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज अखण्ड श्री दुर्गा चालीसा पाठ मन्दिर में नमन करने के उपरान्त अपने पूज्य पिता ब्रह्मलीन दण्डी संन्यासी स्वामी श्री रामप्रसाद आश्रम जी महाराज की समाधि पर पहुंचे। उन्हें प्रणाम करके आपने निकटस्थ त्रिशक्ति गोशाला होते हुए आश्रम के सभी शिष्यों-भक्तों को अपना दिव्य आशीर्वाद देते हुए भिलाई के लिए प्रस्थान किया।
इस अवसर पर परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के आगे बहुत सारे मोटरसाईकिल सवार शक्तिदण्डध्वज लिए जयघोष करते हुए चल रहे थे। आपके वाहन के पीछे भी सैकड़ों चौपहिया वाहन क्रमबद्ध ढंग से चल रहे थे, जिनके दोनों ओर सद्भावना यात्रा वाले फ़्लैक्स लगे थे और आगे शक्तिध्वज फहरा रहे थे। इनमें से प्रचार वाहन पर ‘शक्तिपुत्र जी आए हैं, शक्ति चेतना लाए हैं’ पंक्ति वाला गीत लाउडस्पीकर के द्वारा प्रसारित किया जा रहा था। रैली में सम्मिलित हर व्यक्ति के हृदय में एक अलौकिक हर्ष, उल्लास एवं उत्साह भरा था। इस दृश्य को देखकर लग रहा था, मानों परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के द्वारा गठित भगवती मानव कल्याण संगठन के पूर्ण नशामुक्त-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् रणबांकुरे अपने सेनानायक के नेतृत्व में आज इस घोर कलिकाल को पराजित करने के लिए अपने घर से निकल पड़े हों।
पतितपावनी समधिन नदी पार करके 09:45 बजे यह यात्रा ब्यौहारी पहुंची, जहां पर वहां के विशाल जनसमुदाय ने उसका भव्य स्वागत किया। तत्पश्चात् 11:00 बजे जयसिंहनगर पहुंचने पर वहां के लोगों के द्वारा दो स्थानों पर बैण्ड बाजे के साथ स्वागत किया गया। सड़क के दोनों ओर महिलाएं सिर पर कलश और हाथों में आरती के थाल लिए खड़ी थीं। इससे आगे खन्नौधी में स्वागत के साथ यात्रियों को फल वितरित किए गए। पिपरिया में भी लोगों ने यात्रा का स्वागत किया।
12:15 बजे शहडोल के प्रवेश द्वार पर पहुंचने पर सद्भावना यात्रा का भव्य स्वागत किया गया। शहर के भीतर भी जगह-जगह पर स्वागत हुआ। पूरे शहर में गुरुवरश्री के फ़्लैक्स एवं शक्तिध्वज लगे थे। नगर भ्रमण के पश्चात् यात्रा को मिनरल वाटर के पाऊच एवं नमकरहित तला मूंगफली दाना प्राप्त हुआ। इससे आगे बुढ़ार, धनपुरी, देवहरा (सोहागपुर क्षेत्र), जैतहरी (अनूपपुर) तथा पटना (राजेन्द्रग्राम) आदि स्थानों पर भी लोगों ने यात्रा का सोत्साह स्वागत किया।
02:45 बजे सद्भावना यात्रा राजेन्द्रग्राम नगर में पहुंची, जहां पर अपार जनसमूह स्वागत के लिए मौजूद था। हर कोई परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के दिव्य मुखमण्डल की एक झलक पाने के लिए मार्ग के दोनों ओर उनके वाहन के साथ-साथ दौड़ रहा था। भीड़ इतनी थी कि इस पूरे शहर को पार करने में यात्रा को लगभग आधा घण्टा लगा।
यह सद्भावना रैली आगे ऊंचे-ऊंचे एवं घुमावदार घाटमार्ग को धीरे-धीरे पार करती हुई सायं 04:30 बजे अमरकण्टक पहुंची, जहां प्रवेशद्वार पर भव्य तोरणद्वार बनाया गया था। यहां पर गुरुवरश्री के शिष्यों, भक्तों एवं जनसामान्य ने भव्य स्वागत किया। पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार सद्भावना यात्रियों ने यहां पर तृप्तिपूर्ण भोजन ग्रहण करके गुरुवार व्रत सम्पन्न किया और अधिकांश यात्रियों ने रात्रि में ही पावन सलिला नर्मदा जी के उद्गम मन्दिर जाकर दर्शन और आरती का लाभ लिया। इस प्रकार रात्रि विश्राम के उपरान्त अगले दिन प्रातः भोजन करके ठीक 09:00 बजे भिलाई के लिए पुनः यात्रारम्भ हुआ।
केवची पोस्ट से पटैता चौक पोस्ट पर यह यात्रा दोपहर 11:45 बजे पहुंची, जहां पर अनेक मोटरसाईकिल सवार अगवानी के लिए पहले से प्रतीक्षारत थे। आगे चलकर गोबरी पट्टा में यात्रा का स्वागत हुआ। पधौरा भाटा में लोगों ने बैण्ड बाजे के साथ स्वागत किया और अतिशबाज़ी की। अब रैली कोटा होते हुए बिलासपुर (छ.ग.) के प्रवेशद्वार से लगभग आठ कि.मी. पहले ही भिलाई की ओर मुड़ गई। आगे चलकर सिमगा, बेमेतरा, बेरला, अहिवारा, कुम्हारी आदि स्थानों पर रैली का भव्य स्वागत हुआ। इस बीच विभिन्न स्थानों से चौपहिया एवं दोपहिया वाहन सम्मिलित होते गए तथा इस यात्रा ने एक विशाल रैली का रूप धारण कर लिया।
अन्त में, यात्रा ने 06:00 बजे सायं भिलाई नगर में प्रवेश किया, जहां पर मार्ग के दोनों ओर खड़े शिष्यों, भक्तों और श्रद्धालुओं ने शंखध्वनि करके स्वागत किया। भिलाई निवास के भव्य भवन में महाराजश्री के प्रवास की व्यवस्था की गई थी। वहां पहुंचकर सद्भावना यात्रा सम्पन्न हुई। शेष सभी लोग अपने-अपने ठहरने के स्थान पर व्यवस्थित हुए तथा खिचड़ी प्रसाद ग्रहण करके रात्रि विश्राम किया।
इससे पूर्व भगवती मानव कल्याण संगठन के सैकड़ों कार्यकर्ता हफ्तों पहले से ही भिलाई पहुंच गए थे। वहां पर उन्होंने शिविर स्थल की सफाई करके चिन्तन पण्डाल एवं मंच के निर्माण का कार्य कराया। देश-विदेश से लाखों शिष्य एवं श्रद्धालु सीधे भिलाई पहुंचे।
अनीति-अन्याय-अधर्म के नाश एवं सत्यधर्म की स्थापना के उद्देश्य से जनसामान्य में शक्ति चेतना जाग्रत् करने हेतु होने वाले इस शिविर के लिए भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में पैम्फ्लैट्स वितरित करके महीनों पहले से खूब प्रचार किया था। वृहद् स्तर पर आरतियों, महाआरतियों एवं अखण्ड श्री दुर्गाचालीसा पाठों के आयोजन के माध्यम से भी काफी प्रचार हुआ था। इसके अतिरिक्त, भिलाई की ओर आने वाले मुख्य मार्गों पर बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाए थे। इस प्रकार, इस शिविर का व्यापक प्रचार हुआ था।
इसके फलस्वरूप, परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् श्री शक्तिपुत्र जी महाराज को सुनने के लिए अपार जनसमूह उमड़ा। एक अनुमान के अनुसार, एक लाख के लगभग उपस्थिति रही, जिनमें से लगभग दस हज़ार लोगों ने अगले दिन गुरुदीक्षा ग्रहण की। भोजन व्यवस्था भी बड़े सुचारू रूप से चली तथा संगठन के कार्यकर्ताओं एवं सैकड़ों पुलिसकर्मियों के सहयोग से शान्तिसुरक्षा व्यवस्था चाकचौबन्द रही। कहीं पर भी कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। इस शिविर की सभी व्यवस्थाएं संगठन के पांच हज़ार से भी अधिक सक्रिय कार्यकर्ताओं ने पूर्ण कीं।
शिविर पण्डाल में प्रतिदिन प्रातः 07ः00 से 09ः00 बजे तक मंत्र जाप एवं ध्यानसाधना क्रम होता रहा। अपराह्न 01ः00 से 02ः00 बजे तक भावगीतों का कार्यक्रम होता था। तदुपरान्त ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाए जाते थे। इसी बीच परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का शुभागमन होता था और त्रिशक्तिस्वरूपा तीनों बहनों पूजा, संध्या एवं ज्योति योगभारती जी के द्वारा उनके पदप्रक्षालन व वन्दन के उपरान्त आपश्री की अमृतवाणी सुनने को मिलती थी। तदुपरान्त, दिव्य आरती होती थी, जिसका नेतृत्व त्रिशक्तिस्वरूपा तीनों बहनों के द्वारा किया जाता था। अन्त में, महाराजश्री की चरणपादुकाओं का स्पर्श करके शिविरार्थी प्रसाद प्राप्त करते थे। महाराजश्री मंच पर तब तक विराजमान रहते थे, जब तक सभी उपस्थित जन प्रणाम नहीं कर लेते थे।
वर्तमान समय में समाज की स्थिति अत्यन्त दयनीय है। मानवता पतन की ओर जा रही है। मगर, ऐसे में मनुष्य अपने कर्तव्य से विमुख है। उसे ज्ञान ही नहीं है कि उसकी आत्मा की मूल जननी कौन है? तभी वह अशान्त है।
प्रथम दिवस- दिव्य उद्बोधन
विज्ञान भी स्वीकार करता है कि हमारे शरीर में एक तत्त्व बैठा है, जो अजर-अमर-अविनाशी है। यदि हम यह जान लें, तो हमारे अन्दर शक्ति का असीम भण्डार है। हमारी मूल जननी माता भगवती आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा हें। मनुष्य इसे भूल चुका है। इसीलिए वह भटक रहा है और पतन के मार्ग पर जा रहा है। लोग ‘माँ’ से भी और अन्य देवी-देवताओं से भी वही प्रलोभन का रिश्ता जोड़ते हैं। ‘माँ’ ने आपके अन्दर अलौकिक शक्ति भर रखी है। हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने इसी के बल पर नया स्वर्ग निर्माण किया था, समाजसेवा के रूप में तथा जनकल्याण के रूप में।
आज आप अपार धनसम्पत्ति जोड़ने के चक्कर में पड़े हैं। किन्तु, आपके भीतर जो खज़ाना भरा पड़ा है, उससे अनभिज्ञ हैं। समस्त ब्रह्माण्ड आपके भीतर है। ‘माँ’ से आपको और क्या चाहिए?
हमारे धर्मगुरु भी आज भटक गए हैं। आज ज़रूरत है नशे-मांसाहार से मुक्त होकर चरित्रवान् बनने की तथा औरों को भी बताने की। यदि इसके लिए आप संकल्पबद्ध होगए, तो आपका पतन कभी भी नहीं हो सकता।
ज्ञान को एकत्र करना महत्त्वपूर्ण नहीं है। आपने बहुत सारा ज्ञान एकत्र कर लिया, किन्तु यदि आपने उसका उपयोग नहीं किया, तो वह सारा ज्ञान बेकार है। आज हमारे यहां अनेक ज्ञानी हैं, किन्तु वे स्वयं भटक रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अपने ज्ञान का उपयोग नहीं किया। अतः आज मानवता को जगाया जाय। उन ज्ञानियों से भी कहो कि मानवता की रक्षा करनी है, तो ‘माँ’ के ध्वज के नीचे आजाओ।
आराधना भी एक पक्ष है, किन्तु इससे आपकी कामनाओं की पूर्ति होगी। प्रकृति की सबसे सुन्दर कृति मानव है, नर-नारी हैं। समाज को त्यागी-तपस्वी और साधक बनाना होगा। यदि विद्या का उपयोग न करें, तो यह भूलने लगती है। यदि वास्तव में सुखी बनना चाहते हो, तो अपनी मानवता को जाग्रत् करो। आपका मन पतन के मार्ग को स्वीकार कर चुका है, उसे पलटना शुरू कर दो। उसे अपनी आत्मा की ओर, इष्ट की ओर मोड़ दो। इससे कभी भी आपका पतन नहीं होगा। यहां से संकल्प लेकर जाना कि नशे-मांस का त्याग करके सदैव चरित्रवान् बने रहेंगे।
कलाकार बनकर जीना चाहते हो? जीवन जीने की कला नहीं है। सत्यपथ पर बढ़ना है, तो अपने सहज स्वरूप की ओर जाना पड़ेगा। इसके लिए सही तरीका है कि इन्सानियत को जगाओ, अपनी चेतना को जगाओ तथा आत्मकल्याण एवं जनकल्याण करो।
पूर्ण मुक्ति कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत् करने से मिलती है। शिविरों के माध्यम से समाज को जगाने का कार्य ही किया जा रहा है। सब मनुष्यों की आत्मा एक समान है। इसी तरह सबका कर्म और धर्म तीन धाराओं में बंटा है। जो इन तीनों कर्तव्यों का पालन कर लेता है, वही सच्चा मानव कहलाता है। ये तीन कर्तव्य हैं- धर्मरक्षा, मानवता की रक्षा और राष्ट्ररक्षा।
धर्म का मतलब आत्मा पर पड़े आवरणों को हटाएं। कथाओं से या तीर्थयात्राओं से यह सम्भव नहीं है। अपने आहार-विचार-व्यवहार में सुधार करके ही ये आवरण हटेंगे। आत्मचेतना पर पड़े आवरणों से हमारी कार्यक्षमता घटती है।
धर्मरक्षा का मतलब किसी दूसरे धर्म की बुराई या विरोध नहीं। समाजसेवा और देश की सेवा सभी धर्म सिखाते हैं। इसलिए साधक बनो। इसी से परिवर्तन आ रहा है। पहले आप प्रातःकाल नौ-दस बजे तक पड़कर सोते थे, किन्तु अब ब्राह्ममुहूर्त में उठने लगे हैं, कुंकुम तिलक लगाकर ‘माँ’ की आराधना करने के साथ-साथ समाजसेवा में लगे हैं। इसी की आवश्यकता है। कर्मवान् बनो, तभी तुम धर्मवान् बनोगे।
धर्मगुरु आज नशों में डूबे हैं। दिन में ‘राम-राम’ और रात में पउवे चढ़ाए जाते हैं। हमारे किसी भी शास्त्र में नहीं लिखा कि नशा करो। धर्मगुरु तपस्या से शून्य होगए हैं और उन्होंने पूरी मानवता को भटकाकर रख दिया है। धर्मगुरुओ, या तो तुम लोग अपने पद की मर्यादा के अनुसार अपना कर्तव्य करो, नहीं तो वह दिन दूर नहीं, जब तुम कुत्तों, कीड़ों और मकोड़ों का जीवन जिओगे। आज धर्मगुरुओं ने विवेक खो दिया है और वे यौनशोषण के मामलों में पकड़े जा रहे हैं। मैंने बहुत पहले कहा था कि ये धर्मगुरु या तो अपने आपको सुधार लें, नहीं तो जेल की सलाखों के पीछे नज़र आएंगे।
आप लोग धर्मग्रन्थों को एक ओर रखकर आत्मग्रन्थ का अध्ययन करो, नहीं तो ये धर्मगुरु आपका शोषण करके अपना भण्डार भरते रहेंगे। सच्चे दिल से ‘माँ’ की भक्ति करना सीखो। भगवती मानव कल्याण संगठन के लोग इसी पथ पर चलकर विश्वकल्याण कर रहे हैं।
मेरा जन्म एक किसान परिवार में हुआ है और सामान्य सा जीवन जीता हूँ, किन्तु ‘माँ’ की भक्ति के बल पर ही मैंने विश्व अध्यात्म जगत् को ससम्मान चुनौती दी है। एक स्थान पर आकर सभी धर्मगुरु इकठ्ठे हों, राजनेता हों और मीडिया के लोग हों। वहां पर रहकर वे दर्शाएं कि किसके पास वह शक्ति-सामर्थ्य है, जो हज़ारों किमी. दूर की घटना की जानकारी दे दे या वर्षा करा दे। अगर कोई ऐसा है, तो मेरे तपबल का सामना करे। मैं ऐसा किसी चमत्कार के लिए नहीं, बल्कि मानवता की रक्षा के लिए कर रहा हूँ।
छत्तीसगढ़ आने से पहले मैंने यहां पर एक प्रवाह डाला है। मैंने यहां पर दसों हज़ार शिष्य तैयार किए हैं। यहां की 75 प्रतिशत जनता के लिए भोजन नहीं, बच्चों के लिए शिक्षा नहीं। और, धर्मगुरुओं के पास उनके दुःख-दर्द देखने का समय नहीं है। किन्तु, मेरे पास पर्याप्त समय है। मैं यहां के जीवन को बदलकर कर रहूंगा।
यहां के लोगों को सरकार ने बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं कराई हैं। वे दूसरे प्रदेशों में जाकर शोषित हो रहे हैं। इसीलिए यहां पर नक्सलवाद पनपा है। हमें भी धमकी दी गई है। किन्तु, हमारा कार्य है उन्हें मानवता का पाठ पढ़ाना, ताकि वे कर्मवान् बनें। हथियार उठाना किसी भी समस्या का हल नहीं है। यदि अधर्मी-अन्यायी राजनेता नहीं सुधरते, तो उन्हें गद्दी से उतार फेंको। अरे अधर्मी-अन्यायी राजनेताओ, या तो सुधर जाओ, नहीं तो भगवती मानव कल्याण संगठन तुम्हें सुधारेगा। हमें किसी अस्त्र-शस्त्र की ज़रूरत नहीं। मेरे शिष्य दूसरों को अपने समान बना सकते हैं। आप लोग गली-गली में जाकर लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाओ। नक्सलवाद स्वयं खत्म हो जाएगा।
सब जगह पतन है। सरकार के द्वारा नशे के ठेके उठाए जाते हैं, जब कि राजा का दर्जा पिता के समान होता है। किन्तु, सरकार लोगों को नशा पिलाती है, भले ही उनके बच्चे भूखों मर जायं। उसके बाद नशामुक्ति आन्दोलन चलाया जाता है। इस तरह लोगों पर दुहरी मार पड़ती है। लगता है राजनेताओं का दिमाग घुटनों में जा चुका है। इसलिए अपने आपको भगवती मानव कल्याण संगठन की ऊर्जा से जोड़ो। दूसरा कोई सहारा नहीं देगा। न तो अनीति-अन्याय-अधर्म करो और न इन्हें स्वीकार करो। शिविर के बाद व्यापक परिवर्तन आता है। मैं सदैव एकान्त साधना में रत रहता हूँ। मेरी साधनाएं कभी भी निष्फल नहीं जाएंगी।
नशा, मांसाहार और चरित्रहीनता समाज के ज़हर है। हमें इन्हें खत्म करना पड़ेगा। छत्तीसगढ़ के लोगों का मैं आवाहन करता हूँ। जहां पर नक्सलवाद अधिक है, वहां जाकर तुम उन्हें समझाओ कि हथियार उठाकर कल्याण नहीं होगा। कर्मवान् बनना पड़ेगा। चुनावों में ऐसे नेताओं को जिताओ, जो मर्यादित जीवन जीते हों। आज विधायक और सांसद सदन में इस तरह लड़ते हैं, जिससे कुत्ते भी शर्माते हैं।
आशुतोष महाराज का प्राणान्त हो गया। कहा जा रहा है कि वह अखण्ड समाधि में चले गए हैं। न तो गुरु को ज्ञान है और न शिष्यों को। समाधि में शरीर सड़ता नहीं है। किन्तु, सड़ने के भय से उनका शरीर फ्रीज़र में डाल दिया गया है। समाधिस्थ होने का मार्ग अलग है, जिसका किसी को ज्ञान नहीं है। इसलिए समाज लुटता-पिटता रहेगा।
मैंने अपनी तीनों पुत्रियों का जीवन समाजसेवा के लिए समर्पित किया है। मेरी पत्नी और तीनों कन्याएं आपके बीच बैठी हैं। मैंने ‘माँ’ के चरणों में प्रार्थना की थी कि मेरे यहां जब भी सन्तान का योग हो, कन्याएं ही आएं। मैं समाज को बताना चाहता था कि पुत्रों की अपेक्षा पुत्रियां अधिक सेवाकारी होती हैं। जितना सुव्यवस्थित मेरा परिवार है, उतना और कोई नहीं है। मैं सपत्नीक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता हूँ, ताकि साधना के द्वारा अपनी सात्त्विक चेतना तरंगें प्रदान करके समाज को लाभ दे सकूँ। मैं इस धरती पर धन लुटाने और धर्म देने आया हूँ।
अब दोनों हाथ उठवाकर सबको संकल्प दिलाया गया कि पूर्ण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् जीवन जियेंगे और सदैव धर्मवान् एवं कर्मवान् बने रहेंगे।
अगले दिन प्रथम सत्र में प्रातः 08 बजे से गुरुदीक्षा का कार्यक्रम था, किन्तु रात्रि में धुआंधार वर्षा होने के कारण कुछ अव्यवस्थाएं हो गईं थीं। इसे व्यवस्थित करने में डेढ़-दो घण्टे का समय लगा और यह कार्यक्रम 09 बजे प्रारम्भ हुआ। लगभग दस हज़ार लोगों ने गुरुदीक्षा प्राप्त की। इस अवसर पर परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में कहा-
दीक्षाएं अनेक प्रकार की होती हैं, किन्तु आध्यात्मिक दीक्षा का स्थान सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। इसी प्रकार, भौतिक जगत् में बहुत से रिश्ते होते हैं, किन्तु गुरु-शिष्य का रिश्ता सबसे बड़ा होता है। एक चेतनावान् गुरु अपने शिष्यों का निष्काम भाव से कल्याण चाहता है। अतः गुरु-शिष्य का रिश्ता आत्मीयता का है, जो सर्वोपरि होता है। माँ-बाप के रिश्ते से उसकी कोई तुलना नहीं है।
एक शिष्य को गुरु की विचारधारा से जुड़ने का प्रयास करना चाहिए, उसे समाहित करना चाहिए, ताकि उसके अन्दर मानवीय मूल्य स्थापित हो सकें, उसका पतन रुक सके और वह विकासपथ पर बढ़ सके।
कक्षा में प्रवेश लेना मात्र ही पर्याप्त नहीं है। यदि विद्यालय जाकर अध्ययन न करें, तो प्रवेश लेना व्यर्थ है। इसी प्रकार, दीक्षा लेना भी तभी सार्थक होता है, जब गुरुनिर्देशन में सतत साधना की जाय। गुरु आपको सत्यपथ पर बढ़ाता है। आपको उस पर चलने की ज़रूरत है।
प्रकृति अपना कार्य करती है। सर्दी, गर्मी और बारिश होती है, किन्तु हमें अपना कार्य करते रहना है। मनुष्य ने जिस प्रकार प्रकृति का दोहन किया गया है, उससे उसमें असन्तुलन पैदा हुआ है तथा मौसमों का क्रम बिगड़ा है।
जाति-धर्म-सम्प्रदाय तथा ऊंच-नीच पर विचार न करके मैं सभी को समान भाव से स्वीकार करता हूँ। कल तक आप क्या थे, इस पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता। मेरे द्वारा दीक्षा पूर्णतया निःशुल्क होती है। यदि कुछ देना चाहते हो, तो अपने अवगुण समर्पित कर दो। मात्र निष्ठा, विश्वास और समर्पण की आवश्यकता है। गुरु के मुख से जब मन्त्र उच्चारित होते हैं, तो वे उत्कीलित हो जाते हैं। यदि आप नशा-मांस से मुक्त जीवन जियेंगे, तो ये मंत्र फलीभूत होंगे।
(अब तीन-तीन बार ‘माँ’ और ऊँ का उच्चारण कराने के बाद संकल्प कराया गया)
यदि इस संकल्प को आप जीवन में ढालकर रखोगे, तो कभी भी मुझसे दूर नहीं रहोगे और सदैव मेरी कृपा मिलती रहेगी। एक बार पुनः‘माँ’-ॐ का उच्चारण कराने के उपरान्त निम्नलिखित मंत्रों का तीन-तीन बार उच्चारण कराया गयाः
- ॐ हं हनुमतये नमः (बजरंग बली), 2. ॐ भ्रं भैरवाय नमः (भैरव जी), 3. ॐ गं गणपतये नमः (गणपति जी), 4. ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नमः (‘माँ’ का चेतनामंत्र), 5. ॐ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः (गुरु का चेतनामंत्र)।
साधनाक्रम में सर्वप्रथम गुरु के चेतनामंत्र का उच्चारण करें, ताकि गुरु की ऊर्जा मिले। अन्त में भी करें, ताकि साधना फलीभूत हो। क्रम का कोई महत्त्व नहीं, किन्तु जब सामूहिक रूप से करें, तो निर्धारित क्रम अपनाएं। चैतन्य शक्तियों में कोई भेद नहीं। भ्रान्तियों से बचें। मंत्रों में सब कुछ सार छुपा है। विषम परिस्थितियों में इन क्षणों का स्मरण करें, अवश्य सहायता मिलेगी।
अपने घर पर ‘माँ’ का शक्तिध्वज लगाएं और अपने घर में ‘माँ’ का छोटा सा मन्दिर बनाएं। रक्षाकवच धारण करें। यह ड्रैसकोड नहीं है, बल्कि इससे मेरे चिन्तन जुड़े हैं। भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्य से जुड़ें तथा धर्मरक्षक बनकर समाजसेवा करें। साधना को अपने जीवन का अंग बनाएं। छः महीने के अन्दर एक बार पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम अवश्य आएं। उसके बाद जब चाहें, आ सकते हैं। आश्रम आपका है।
अन्त में, प्रणाम का कार्यक्रम हुआ। इस बीच सभी दीक्षा प्राप्त लोगों को एक-एक शीशी निःशुल्क शक्तिजल वितरित किया गया तथा दीक्षापत्रक भरकर लौटाने हेतु दिया गया।
वर्तमान समाज को जाग्रत् करना ज़रूरी है। हमारा कार्य ‘माँ’ से जुड़ा है। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई सबकी मूल जननी वही हैं। क्या हमारा निर्माण इसीलिए किया गया था, जो आज चल रहा है? हम अपने ऋषि-मुनियों को भूल चुके हैं। इसका कारण है हमारी लोभप्रवृत्ति। हम अपने मूल को सवांरने की बजाय, स्थूल शरीर को सवांरने में लग गए। माया ठगिनी नहीं, बल्कि काया महाठगिनी है। आज के साधु-सन्त माया में खोए हैं। इसीलिए समाज भटक गया है। अपने शरीर से सजग होजाओ। इसे अपना शत्रु समझो। इसको भोजन भी कराओ, तो इस भावना से कि इसे समाजसेवा में लगाना है। यदि इस शरीर से सजग हो गए, तो माया तो तुम्हारी सहायता करेगी।
आज मानव अपने सत्य स्वरूप को भूल गया है। लोग अनीति-अन्याय-अधर्म के सामने घुटने टेक रहे हैं। मानव पतन के मार्ग पर जा रहा है। उसे बचालो। ‘माँ’ की आराधना में रत हो जाओ। हर मनुष्य का कार्य एक समान है- धर्मरक्षा, मानवता की रक्षा और राष्ट्ररक्षा करना।
अपने जीवन की आराधना में ‘माँ’ से यदि मांगना है, तो भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति मांगो। यदि आपको ये प्राप्त होगए, तो मान लो कि सब कुछ प्राप्त हो गया, अन्यथा शून्य ही रहोगे। सब कुछ अपने आराध्य को सौंप दो। जो आपको चाहिए होगा, वह उसे देगी। उससे अटूट रिश्ता कायम करो और भक्ति की गहराई में डूबकर देखो।
सच्चा ज्ञान प्राप्त करो। आज जो पतन हो रहा है, वह अज्ञानता के कारण हो रहा है। ज्ञान परमसत्ता का प्राप्त करो और परोपकार का प्राप्त करो।
आत्मशक्ति के बिना आप कुछ भी नहीं कर सकोगे। आत्मशक्ति के बल पर हम असम्भव को सम्भव कर सकते हैं। इसी के बल पर हमारे ऋषि-मुनियों ने नए स्वर्ग की रचना की थी और स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था। इससे भय पूरी तरह समाप्त होजाता है। मेरे द्वारा आपको इसी पक्ष की ओर बढ़ाया जा रहा है।
आज कुछ लोग पशुबलि देते हैं, जब कि कोई भी देवी-देवता बलि स्वीकार नहीं करते। इससे बड़ा कोई अपराध नहीं है। मांस-मदिरा का सेवन करने वालों ने इसे शुरू किया था। सत्य को समझो और इन परम्पराओं को तोड़ो। गलतियों को सुधारो। बलिप्रथा बन्द करके आपको कई गुना सुख-शान्ति मिलेगी। आज संकल्प लो कि अब बलि नहीं चढ़ाएंगे।
कोई भी देवी-देवता कभी किसी के सिर नहीं आते। मैं चुनौती देता हूँ। यदि कोई देवी आने का ढोंग करता है, तो उसे तमाचा मार दो। तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। ऐसे ढोंग-पाखण्ड से ऊपर उठो। इस प्रकार के लोग शून्य हैं और उनके पास कोई ज्ञान नहीं है। ऐसे हज़ारों लोग समाज को ठग रहे हैं। आप लोग ‘माँ’ की आराधना करो। सुधार अवश्य आएगा। भूत-प्रेत भी एक सत्य योनि है, जो मनुष्य के सबसे नज़दीक है। इस सत्य को स्वीकार करो। वे किसी को हानि नहीं करते। जो लोग मांस-मदिरा का सेवन करते हैं, उन्हें अवश्य ही हानि करते हैं।
समाज में छल-प्रपंच करने वालों की कमी नहीं है। कुछ लोग धन दुगुना करने का दावा करते हैं। तुम लोग प्रायः उनसे लुटते रहते हो। दूसरे लोग मकानों से गड़ी हड्डियां निकालते हैं और उसके बदले भारी रकम ऐंठ लेजाते हैं। ये लोग बड़े योजनाबद्ध ढंग से काम करते हैं। निर्माणाधीन भवन में चोरी-चोरी आकर ये हड्डियां गाड़ जाते हैं और अपनी डायरी में नोट कर लेते हैं कि कहां गड़ी हैं। कुछ दिन बाद आकर बताते हैं कि आपके घर में हड्डियां गड़ी हैं और बहुत बड़ा अनिष्ट होने वाला है। आपसे बहुत बड़ी धनराशि लेकर उन्हें निकाल देते है और आपको विश्वास हो जाता है। इस तरह से बेवकूफ मत बनो। अपने भीतर भक्ति जगाओ, परोपकार में जुट जाओ और रोज़ श्री दुर्गाचालीसा का पाठ करो। इससे आपको लाभ मिलेगा।
आश्रम का निर्माण और भगवती मानव कल्याण संगठन का गठन मैंने इसीलिए किया है। साथ ही एक राजनैतिक दल भारतीय शक्ति चेतना पार्टी का गठन भी मेरे द्वारा किया गया है। मेरे संकल्प में कोई विकल्प नहीं रहता। स्वयं मुझे कभी भी कोई चुनाव नहीं लड़ना है। मैंने युग को बदलने का लक्ष्य ठाना है। अपने शिष्यों को मैंने तीन धाराएं प्रदान की हें। मेरी तीनों बच्चियां इन्हें संभालेंगी। उनकी रगों में मेरा खून दौड़ रहा है। ऐसा ही तुम भी अपने बच्चों के लिए करो। एक दिन समाज निश्चित रूप से बदल जाएगा। राजसत्ता तक पहुंचने की मुझे कोई ज़रूरत नहीं है।
तुम लोग अन्यायी-अधर्मी लोगों को वोट देते हो। इसलिए तुमसे बड़ा अपराधी कोई नहीं है। मैं आज के अधर्मी-अन्यायी नेताओं को पैर से ठोकर मारता हूँ। उद्योगपति राजनेताओं से मिलकर तुम्हें लूट रहे हैं। इनके खिलाफ आवाज़ उठाओ। जो सही हैं, उनका सहयोग करो, किन्तु अपनी विचारधारा के अनुसार। भगवती मानव कल्याण संगठन के लाखों योद्धा सन् 2015 के बाद जब उठ खड़े होंगे, तो परिवर्तन आएगा। हर पार्टी में आज 90 प्रतिशत लोग अपराधी, चोर और लुटेरे हैं। मानवता तड़प रही है, कराह रही है, किन्तु उन्हें कोई परवाह नहीं है।
घर में बैठकर आज केवल पूजा-पाठ आदि करने से कुछ नहीं होगा। घर से बाहर निकलकर मानवता की सेवा वाली पूजा और राष्ट्ररक्षा वाली पूजा भी करनी होगी। मुझे यदि हज़ार तहखानों में भी डाल दिया जाय, तो मैं अपनी चेतना तरंगों से परिवर्तन डाल सकता हूँ।
हमें नशे के नाजायज़ व्यापार को बन्द कराना है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में सन् 2015 में तीन दिन का आन्दोलन किया जाएगा। उस अवसर पर मुझे ग्यारह दिन समर्पित करके देखो। अन्यायी-अधर्मी कांप उठेंगे। आपको रैली में सम्मिलित होना है। अपने कर्तव्य को पहचानो। गांव के लोगों की हालत देखकर तुम्हारी अन्तरात्मा कांप उठेगी। भोजन करने से पहले मुझे भोग लगाओ या न लगाओ, किन्तु अपने मुख में पहला कौर रखने से पहले उनके बारे में अवश्य सोचो। तुम्हारा धर्म तुम्हें पुकार रहा है।
आज चारों तरफ रासरंग और वासनाओं का खुला नृत्य हो रहा है। उद्योगपति और राजनेता चोर-चोर मौसेरे भाई हैं। नग्नता को भारतीय संस्कृति से नहीं जोड़ा जा सकता। इसे रोकना होगा। इसकी छूट नहीं दी जा सकेगी। इसकी कोई सीमा होनी चाहिए और जीवन मर्यादित होना चाहिए। आज हर विज्ञापन में नारी का अंग प्रदर्शन हो रहा है। ऐसी हज़ार-पांच सौ पागल नारियों का अनुसरण नहीं होना चाहिए।
पांच-पांच साल की बच्चियों के साथ बलात्कार हो रहा है। लोग पशुओं के साथ सम्भोग कर रहे हैं। अश्लील सिनेमा चित्रों को रोकना होगा। हमारा गौरवशाली देश है। अपने बच्चों को शिक्षित करो। उनका जीवन बहुत घटिया है। हमारी नारियां ऐसा जीवन कभी नहीं चाहतीं। इसे कहीं न कहीं विराम लगाना ही होगा।
यही हाल धर्मक्षेत्र का भी है। वहां पर 1000 में से 999 पाखण्डी हैं और आधे से अधिक नशों में डूबे हैं। ये ज्ञानशून्य लोग भौतिकता को ही शिखर मान बैठे हैं। कहते हैं कि उन्होंने शून्य से शिखर की यात्रा तय की है। गरीबों के ऊपर पैर रखकर कोई भी ऊपर उठ सकता है। कहने के लिए उन्होंने परिवार छोड़ दिया है, किन्तु उनसे जुड़कर उनके भाई-बन्धु रातोंरात अरबपति बन गए हैं। कांग्रेस के साथ दाल नहीं गली, तो अब मोदी के आगे सर झुका दिए। थूककर चाटने वाले लोग कभी भी समाजसुधारक नहीं हो सकते। पुलिस की मार से डरकर महिलाओं के वस्त्र पहनकर भागे, तो कैसे योगी? ऐसे लोग मेरे सामने आकर देखें।
इस प्रकार की पचासों संस्थाएं हैं, जो धर्म का चोला पहनकर समाज को छल रही हैं और लूट रही हैं। मैं उन्हें बेनकाब करूंगा। आसाराम के बारे में मैंने दसों साल पहले कह रखा था कि एक दिन वह जेल की सलाखों के पीछे होगा और वही हुआ। आज समाज विकारयुक्त हो चुका है। उसे सत्य पथ पर और साधना की ओर बढ़ाओ। विकार स्वतः मिट जाएंगे।
ध्यान रहे, पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में आगामी शारदीय नवरात्र के दौरान 1-2-3 अक्टूबर को तीन दिन का विशाल शक्ति चेतना जनजागरण शिविर होगा। उसके बाद 22-23 नवम्बर 2014 को वाराणसी (उ.प्र.) में शिविर होगा और शीघ्र ही नेपाल में भी एक शिविर प्रदान किया जाएगा। साथ ही फरवरी 2015 में चलाए जाने वाले अभियान की तैयारी भी करनी है।
अपने स्वाभिमान को जगाओ। तब आपके बच्चे आप पर गर्व करेंगे, अन्यथा वे भी आपकी ही तरह बनेंगे। अपने आसपास के अन्य लोगों को भी जगाओ। जनजागरण होने के बाद छोटे बच्चों के मुख में फिल्मी गाने नहीं, श्री दुर्गाचालीसा का पाठ होगा। घर-घर में शंखध्वनि होनी चाहिए। यह दूषित तरंगों का नाश करेगी और विकारों को दूर करेगी। शंखनाद कभी व्यर्थ नहीं जाएगा। निश्छल जीवन जिओ। परिवर्तन अवश्य आएगा।
समाज में 1000 कुण्डी यज्ञ हो रहे हैं, किन्तु कोई परिवर्तन नहीं। मैंने शंकराचार्यों को चुनौती भेजी थी कि मेरे यज्ञ की अग्नि के सामने दो घण्टे तक बैठकर दिखा दो। कोई आधा घण्टा भी नहीं बैठ सका। मैंने अपने यज्ञ के बारे में भी बताया था कि हरेक में वर्षा हुई है। यदि नहीं होती है, तो मैं आध्यात्मिक जीवन छोड़ दूंगा। डॉक्टरों को भी मैंने दिखाया था कि जिस व्यक्ति को उन्होंने कह दिया था नहीं बचेगा, उसे पूर्ण स्वस्थ किया और वह अपने पैरों से चलकर गया।
मूर्तियों की पूजा करने का विरोध करने वालों को मैंने मूर्ति को जीवन्त करके दिखाया है। ‘माँ’ की प्रतिमा में मैंने अपना स्वरूप दिखाया है और अपने भीतर ‘माँ’ के दर्शन कराए हैं। सत्य के यज्ञों का प्रभाव होता है। मेरे द्वारा सम्पन्न किए गए आठ महाशक्तियज्ञों में मैंने अनेकों प्रमाण दिए हैं। अब शेष सौ महाशक्तियज्ञ पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में सम्पन्न किये जाएंगे।
साधना सिद्ध होगी, या यह शरीर नष्ट होगा- सदैव मेरा यह संकल्प रहा है और हमेशा मेरी साधना सिद्ध हुई है। सत्य हर काल में विद्यमान रहता है। आज भी अनेक सच्चे साधु-सन्त हैं, किन्तु समाज में उन्हें सम्मान नहीं मिलता, जब कि अधर्मी-अन्यायी पूजे जा रहे हैं। आप लोग जब भी साधना में बैठें, ‘माँ’ से प्रार्थना किया करो कि ये अधर्मी-अन्यायी दुर्घटना के शिकार हों, कैंसर से पीड़ित हों और आतंकवादियों की गोली के शिकार हों। आप इन्हें मार नहीं सकते, कम से कम ‘माँ’ से प्रार्थना तो करो।
आप लोग जिस पद पर बैठें, उसकी मर्यादा का पालन करें। धैर्य और धर्म का त्याग न करें। परमसत्ता अवश्य सहारा देगी। मुझे मात्र एक लाख ग्यारह हज़ार समर्पित शिष्यों की तलाश है, उनमें भी ग्यारह हज़ार पूर्ण समर्पित हों। मेरा समय यज्ञों में ही बीतना है, जो मात्र समाजकल्याण के लिए होंगे।
आप लोग अपनी डायरियों में नोट करके रख लेना कि आपने कभी मुझ सच्चिदानन्द स्वरूप के सामने बैठकर मेरा चिन्तन सुना था। आपकी आने वाली पीढ़ियां उसे पढ़कर आप पर गर्व करेंगी कि उनके दादा-दादी या नाना-नानी कितने सौभाग्यशाली थे! मैं किसी देवी-देवता का अवतार नहीं, बल्कि उस परम सिद्धाश्रम धाम सिरमौर स्वामी सच्चिदानन्द का अवतार हूँ, जिसके सामने देवाधिदेव भी नतमस्तक होने के लिए लालायित रहते हैं। मैं आपको कुछ देने आया हूँ और बिना मांगे देता हूँ। यदि आपको यहां पर कहीं सत्य नज़र आता है, तो मेरी इस यात्रा से जुड़ो। लोग पुत्र प्राप्ति के लिए परेशान रहते हैं। इसके लिए कई कन्याओं की गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है, क्योंकि उन्हें वे भारस्वरूप लगती हैं? पुत्र के मुखाग्नि देने से मुक्ति नहीं होती। अपनी मुक्ति के माध्यम स्वयं बनो। तुम्हारे लिए यदि बच्चियां बोझ हैं, तो वे मेरे लिए ‘माँ’ का आशीर्वाद हैं। गर्भपात मत कराओ, बल्कि उन बच्चियों को मुझे सौंप दो। मैं उनका पालन-पोषण करूंगा, पढ़ाऊं-लिखाऊंगा और उन्हें अच्छे संस्कार दूंगा। तुम्हें कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है। पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम यह सब कुछ करने के लिए पूर्ण समर्थ है।
माँ-बाप के मुख्य रूप से तीन कर्तव्य हैं- बच्चों को अच्छा स्वास्थ्य देना, अच्छी शिक्षा देना और अच्छे संस्कार देना। यदि आपने यह सब उन्हें दे दिया, तो फिर उनके लिए कोई धन-सम्पदा जोड़ने की ज़रूरत नहीं है।
मेरी ओर से युग परिवर्तन की इस यात्रा में सबका आवाहन है। गुरु-शिष्य के रिश्ते में कोई छल-प्रपंच नहीं होना चाहिए। यदि तुम गुरु को अपने हृदय में बैठा लोगे, तो तुम्हारे घर में ‘माँ’ की स्थापना हो जाएगी।
इस प्रकार, दो दिन तक चला यह विशाल शिविर ‘माँ’-गुरुवर की कृपा से सानन्द एवं सकुशल सम्पन्न हो गया और कहीं पर भी कोई अप्रिय घटना नहीं घटी।
शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में परम पूज्य सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के दिव्य चेतनात्मक चिन्तन सुनने के बाद समाज के हर वर्ग में ऐसा परिवर्तन आया कि दिनांक 17 फरवरी को समाज के प्रतिष्ठित जन, प्रशासनिक अधिकारी एवं मीडिया क्षेत्र के लोगों में गुरुवरश्री से मिलकर आशीर्वाद प्राप्त करने की जिज्ञासा थी। प्रातः 10 बजे से सभी लोग उपस्थित थे। गुरुवर जी ने सभी से बारी-बारी मिलकर उनकी जिज्ञासाओं को शान्त किया और अपना दिव्य आशीर्वाद प्रदान किया। सभी की जिज्ञासाओं का सटीक उत्तर देते हुए गुरुवर जी ने कहा –
धर्मक्षेत्र में विकृति का कारण लोगों का मानवीय संस्कारों से विहीन होना है। जब समाज के पथप्रदर्शक ही भटक गए, तो समाज भटकेगा ही। धर्माचार्यों, शंकराचार्यों, योगाचार्यों एवं कथावाचकों का लक्ष्य केवल धन अर्जन हो गया है, तो वे समाज को धर्मपथ पर कैसे आगे बढ़ा सकते हैं? आसाराम बापू व नारायण साईं, शोभन सरकार, आशुतोष महाराज जैसे लोगों के कारण धर्मक्षेत्र बदनाम हुआ है। एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है। मुझे कहने में कोई संकोच नहीं कि एक हज़ार में नौ सो निन्यानवे लोग चेतना से शून्य हैं। बीजमंत्र, तंत्र-मंत्र और टोना-टोटके, कृपावर्षा करने वाले लोग केवल ठग और लुटेरे हैं। योगगुरु बाबा रामदेव का अन्तःकरण स्वच्छ नहीं है, वे धर्मक्षेत्र में स्वच्छता कैसे ला सकते हैं? योग के नाम पर शुरू किया गया व्यवसाय अब व्यापारिक विज्ञापन का रूप लेता जा रहा है। वे पूर्णतया व्यवसायिक हैं। मेरा मानना है कि यदि किसी भी धर्मसंस्था द्वारा अर्जित की गई अकूत सम्पत्ति का जनकल्याण और मानवता की रक्षा में सदुपयोग नहीं हो रहा, तो ऐसी सम्पत्ति सरकार को ज़ब्त कर लेनी चाहिए। धार्मिक संस्थाओं से भी टैक्स लेना चाहिए।
गुरुवरजी ने कहा कि मेरी गुरुदीक्षा का कोई शुल्क नहीं है। पिछले 19 वर्षों से पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम धाम में ‘माँ’ का गुणगान अखण्ड श्री दुर्गाचालीसा पाठ जनकल्याण के लिए चल रहा है। आश्रम पहुंचने वालों के लिए ठहरने एवं भोजन की निःशुल्क व्यवस्था सदैव रहती है। संगठन के दस हज़ार से अधिक सक्रिय कार्यकर्ता अखण्ड श्री दुर्गाचालीसा पाठ एवं सामूहिक आरती के क्रम समाज के बीच सम्पन्न कराकर लोगों को नशामुक्त, मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् जीवन जीने हेतु जाग्रत् कर रहे हैं।
राजनीति क्षेत्र के विषय में गुरुवर जी ने कहा कि राजनीति पतन की अन्तिम सीमा तक पहुंच चुकी है, परन्तु अब धीरे-धीरे लोगों में जागृति आने लगी है। दिल्ली का परिवर्तन इसी बात का संकेत है। आम आदमी पार्टी में अरविन्द केजरीवाल ईमानदार हैं, कुछ और लोग ईमानदार हें, परन्तु उनका तरीका गलत है। पूंजीपतियों को टिकट देकर आम आदमी को ठुकराना केजरीवाल को असफलता की ओर ले जायेगा। तुलनात्मक क्रम में देश का प्रधानमंत्री बनने की पात्रता नरेन्द्र मोदी में है। वे औरों से ठीक हैं। देश की न्याय प्रक्रिया के सम्बन्ध में गुरुवर जी ने कहा कि न्याय प्रक्रिया समय से हल होनी चाहिए। न्याय जल्दी समय सीमा पर मिलना चाहिए। गरीब-अमीर सभी के लिए न्याय व्यवस्था समान होनी चाहिए।
छत्तीसगढ़ की धरती पर सम्पन्न हुआ यह शिविर निश्चित रूप से इस प्रदेश की दिशा और दशा को बदलने में अवश्य सहायक सिद्ध होगा।