शक्ति चेतना जनजागरण शिविर, सिद्धाश्रम धाम, ब्यौहारी (मध्यप्रदेश), 1-3 अक्टूबर 2014

एक पुरानी कहावत है- ‘सोए हुए व्यक्ति को जगाना सरल है, किन्तु जगे हुए को जगाना अत्यन्त कठिन है।’ आज के अधिसंख्य लोगों का यही हाल है। वे पूरी तरह से जगे हुए हैं, किन्तु अनीति-अन्याय-अधर्म को सहन करने के आदी हो गए हैं। उदाहरणार्थ, उन्होंने मान लिया है कि बिना घूस दिये आज कोई कार्य नहीं होता। इसलिए, अपना काम कराने के लिए वे खुशी-खुशी घूस देते हैं तथा दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करते हैं। वास्तव में, ऐसे लोगों का आध्यात्मिक जागरण ज़रूरी है।
यही कारण है कि युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज प्रतिवर्ष शक्ति चेतना जनजागरण शिविरों का आयोजन करके जनसामान्य में शक्ति चेतना जाग्रत् कर रहे हैं। इन शिविरों में आपश्री अन्य धर्मगुरुओं की भांति कोई कथा-वार्ताएं नहीं करते, बल्कि अन्यायी-अधर्मियों से त्रस्त जनता की व्यथा का वाचन करते हैं। वे उन्हें बताते हैं कि उनके अन्दर अलौकिक शक्ति है। अतः अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध उठ खड़े होकर संघर्ष करो। साथ ही नशा-मांसाहार त्यागकर ‘माँ’ की आराधना करो और सत्य के मार्ग पर चलो। उनकी विजय निश्चित है। महाराजश्री के द्वारा चलाया जा रहा जनजागरण का यह अभियान तब तक जारी रहेगा, जब तक कलिकाल की यह भयावहता समाप्त होकर सतयुग नहीं आजाता।
इस वर्ष शारदीय नवरात्र के पावन पर्व पर पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में आयोजित शक्ति चेतना जनजागरण शिविर 01-03 अक्टूबर की अवधि में बड़े ही उत्साह एवं उमंग के साथ सम्पन्न हुआ। देश-विदेश से आए लाखों लोगों ने इसमें सम्मिलित होकर परम पूज्य गुरुवरश्री के ओजस्वी चेतनात्मक चिन्तनों को हृदयंगम किया तथा अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध उठ खड़े होकर संघर्ष करने का संकल्प लिया।
शिविर के अन्तिम दिन विजयादशमी को प्रातःकालीन सत्र में लगभग पन्द्रह हज़ार लोगों ने गुरुदीक्षा प्राप्त करके भगवती मानव कल्याण संगठन के परिवार में शामिल हुए। इसी दिन सायंकालीन सत्र में ग्यारह नवयुगलों के विवाह संस्कार योगभारती विवाह पद्धति के अनुसार सम्पन्न हुए। इस अवसर पर पांच सदस्यों को ‘श्रमशक्ति’ पुरस्कार, तीन सदस्यों को ‘सिद्धाश्रमरत्न’ तथा पच्चीस सदस्यों को ‘सिद्धाश्रम उत्कृष्ट साधक’ प्रमाण पत्र प्रदान करके सम्मानित किया गया।
इस विशाल अलौकिक आयोजन में परम पूज्य गुरुवरश्री के द्वारा गठित भगवती मानव कल्याण संगठन के विभिन्न प्रान्तों से आए लाखों सदस्यों के साथ ‘माँ’ के भक्तों, श्रद्धालुओं, जिज्ञासुओं तथा क्षेत्रीय जनता की विशिष्ट उपस्थिति रही।
इस वर्ष बहुत पहले से ही समूचा आश्रम परिसर समतल करा दिया गया था। इससे विभिन्न आवासीय पण्डाल एवं अस्थायी स्टॉल्स दूर-दूर लगाए जाने के कारण भारी भीड़ होने के बावजूद कहीं पर भी अतिसंकुलता की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई।
भक्तों की सुविधा के लिए तीन स्थानों पर स्वच्छ शीतल पेयजल की व्यवस्था की गई थी। भोजन व्यवस्था भी इस वर्ष पूर्व की तुलना में बेहतर रही। इससे भण्डारे में भोजन प्राप्त करने वालों को देर तक लम्बी लाईन में इंतज़ार नहीं करना पड़ा।
सेवा-श्रमदान करने के लिए लालायित अनेक गुरुभाई-बहनें नवरात्र शुरू होने से पहले ही आश्रम पहुंच गए थे। उन्होंने नवरात्र की पूरी अवधि यहां पर रहकर सेवा-साधना में व्यतीत की और जीतोड़ मेहनत करके विभिन्न कार्यों में अमूल्य योगदान दिया।
दूसरी ओर, भगवती मानव कल्याण संगठन के समाजसेवी कार्यकर्ताओं ने लगभग एक महीना पूर्व से अपने-अपने क्षेत्र में शिविर से सम्बन्धित व्यापक प्रचार किया। उनके द्वारा विभिन्न स्थानों पर इस शिविर की बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स लगाई गईं तथा पैम्फ्लेट्स वितरित किये गए।
इस वृहद् आयोजन की विभिन्न व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से संचालित करने में पांच हज़ार से भी अधिक समर्पित कार्यकर्ताओं ने अग्रणी भूमिका निभाई। आश्रम के स्थायी जनसम्पर्क कार्यालय के अतिरिक्त एक अस्थायी कार्यालय भी स्थापित किया गया। इसके द्वारा आगन्तुक शिविरार्थियों को उनके सम्बन्धित आवासीय पण्डाल में तथा वाहनों को पार्किंग में व्यवस्थित किया गया।
भोजनव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में हजारों कार्यकर्ताओं ने प्रशंसनीय योगदान दिया। शिविर पण्डाल में श्रोताओं को पंक्तिबद्ध बैठाने और अन्त में क्रमबद्ध ढंग से प्रणाम कराने एवं प्रसाद वितरण में आद्योपान्त सैकड़ों कार्यकर्ता लगे रहे। मूलध्वज मन्दिर और श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मंदिर के प्रातः एवं सायंकालीन साधनाक्रम व आरती सम्पन्न कराने तथा शिविर पण्डाल में प्रातःकालीन ध्यान-साधना क्रम सम्पन्न कराने में भी हजारों कार्यकर्ताओं ने अपने कर्तव्य का निष्ठापूर्वक पालन किया।
शिविर पण्डाल में प्रतिदिन प्रातः सात से नौ बजे तक मंत्रजाप एवं ध्यान-साधना का क्रम चलता रहा तथा अपराह्न एक से लगभग दो बजे तक भावगीतों का क्रम रहता था। तदुपरान्त, ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाए जाते थे, जिनके बीच परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का शुभागमन होता था। शक्तिस्वरूपा बहनों पूजा, संध्या एवं ज्योति योगभारती जी के द्वारा उनके पदप्रक्षालन एवं वन्दन के उपरान्त भी भावगीतों का क्रम जारी रहता था। अन्त में शक्तिस्वरूपा बहन संध्या एवं ज्योति योगभारती जी के द्वारा पुनः ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगवाने के पश्चात् महाराजश्री सबको अपना आशीर्वाद समर्पित करके अपना उद्बोधन देते थे।

प्रथम दिवस- दिव्य उद्बोधन
वह मानव परम सौभाग्यशाली होता है, जो किसी पवित्र दिव्य धाम पर उपस्थित होता है। इस दिव्य धाम पर हर क्षण दुर्गाचालीसा के रूप में ‘माँ’ का गुणगान चल रहा है। यह ‘माँ’ की कृपा का ही फल है। देश-विदेश में चल रहे आरती एवं चालीसा के क्रमों के फलस्वरूप लोग नशा-मांसाहारमुक्त हो रहे हैं और चरित्रवान् बन रहे हैं। आने वाले समय में भूतल पर यह एक ऐसा विलक्षण स्थल होगा, जहां पर आकर किसी का एक क्षण भी बेकार नहीं जा सकेगा।
‘माँ’ शब्द का उच्चारण कर लेने मात्र से मन में सन्तुलन आजाता है। यदि हमें कोई परिवर्तन लाना है, तो परमसत्ता की भक्ति का मार्ग तय करना ही पड़ेगा। उससे यदि कुछ मांगना ही है, तो भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति मांगो। इसमें कुछ भी असम्भव नहीं है और सब कुछ प्राप्त होजाता है। भक्ति ऐसी चीज है कि इसकी चरम सीमा प्राप्त करने पर भी भक्ति ही शेष रहती है।
आजकल समाज में सब कुछ भटका हुआ है। नवरात्र के ये नौ दिन साधना के दिन हैं, परमसत्ता की कृपा प्राप्त करने के दिन हैं। पात्र बनो और अपने आपको शान्त करो। बिना इसके शक्ति प्राप्त नहीं हो सकती। अभ्यास से सब कुछ सम्भव है। परमसत्ता की कृपा के बिना पत्ता तक नहीं हिलता।
मूर्ति लाकर तो कोई भी स्थापित कर सकता है, किन्तु परमसत्ता का आवाहन करना इतना आसान नहीं है। हमें अपने अस्तित्व को मिटाकर उसकी चेतनातरंगों को खींचने का प्रयास करना होगा। एक बच्चा जैसे ही अपनी माँ के स्तन को स्पर्श करता है, तत्काल दूध स्वतः उतर आता है। अतः एक शिशुवत् भाव रखो।
भक्ति प्राप्त करने के लिए मन को शान्त करना होगा। नाचना-गाना और परमसत्ता से कुछ मांगना सच्ची भक्ति नहीं है। आज लोग परमसत्ता से सब कुछ पाना चाहते हैं, किन्तु अपने जीवन को बदलना नहीं चाहते। जब भी उसकी भक्ति करो, सौदागर बनकर मत करो।
सदैव निष्काम भक्ति करो। वैसे, बिना कामना के कोई भी कार्य नहीं होता। सभी भौतिक कामनाएं सकाम हैं, किन्तु ‘माँ’ से जुड़ना निष्काम है, जो सबकी मूल जननी हैं। सकाम साधना से कभी न कभी रिश्ता टूटेगा अवश्य, किन्तु निष्काम भाव से रिश्ता स्थायी होता है। यहां पर जीवन-मरण और लाभ-हानि की कामना नहीं होती। जीवन में यदि भक्ति है, तो सब कुछ है।
एक बार सच्चा रिश्ता जोड़ लो, तो कभी भी तुम्हारा पतन नहीं होगा। मानवशरीर प्राप्त करके आप सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं। इसीलिए देवता भी इसके लिए तरसते हैं। ‘माँ’ की ममता के सागर का पार न तो आज तक कोई पा सका है और न ही कोई पा सकेगा। किन्तु, उसके किनारे पर जाकर कभी भटक नहीं सकोगे।
सत्य को स्वीकार करो। धर्मग्रन्थों का अध्ययन करके बड़े-बड़े ज्ञानी भटक जाते हैं, किन्तु भक्त कभी नहीं भटक सकता। अपने गुरु के दर्शन प्राप्त करने मात्र से कल्याण नहीं होगा। इसलिए अपनी सोच को बदलो।
ऋषियों के कभी कोई मन्दिर नहीं बनाए गए और न ही उनके ज्ञान को समाज में प्रचारित किया गया। यदि ऐसा किया गया होता, तो समाज का कभी भी पतन न होता।
अपनी इष्ट के गुलाम बनकर, दास बनकर तो देखो। इस भावभूमि पर खड़े होकर देखो। वह हमारी जननी हैं। आत्मचेतना का धन ही सच्चा धन है। साधना के द्वारा आत्मा के ऊपर पड़े आवरणों को हटाना चाहिए। परमसत्ता ने कोई भी मार्ग बन्द नहीं कर रखा है। अपाहिज और लाचार बनकर उससे कुछ भी प्राप्त करने का प्रयास मत करो। नवरात्र पर्व पर इस भाव को जगाने का प्रयास करो।
आदर-सम्मान सभी देवी-देवताओं का करो। सब को नमन करो, किन्तु मुख्य ध्यान ‘माँ’ के चरणों में होना चाहिए। हर पल सन्तुष्ट रहो। नवरात्र पर्व पर कोई परिजन यदि दिवंगत हो जाय, तो लोग इस पर्व को अशुभ समझकर मनाना बन्द कर देते हैं। यह घोर अज्ञान है। वास्तव में दिवंगत आत्मा पर ‘माँ’ की बड़ी कृपा हुई कि उसे परलोक जाने के लिए ये शुभ दिन मिले। इसलिए इस कारण पर्व को मनाना बन्द नहीं करना चाहिए।
साधना-आराधना, स्तुति एवं व्रत आदि आत्मा के आहार हें। कुण्डलिनी के सातों चक्रों को जाग्रत् करना एक लम्बी यात्रा है। पुस्तकें पढ़कर यह कदापि सम्भव नहीं है। इसीलिए मैंने कहा है कि धर्मग्रन्थों को कुछ समय के लिए समेटकर एक तरफ रख दो। उनसे दिशाभ्रमित मत होओ। अपने भावों को बदलो। परमसत्ता आपके भावों को समझती है।
दिव्य आत्मा को लेकर भी आप भयग्रस्त रहते हो। मृत्यु का भय त्यागो। आत्मा अजर-अमर-अविनाशी है। इसलिए शरीर नहीं, आत्मा का जीवन जिओ। तभी तुम भयमुक्त हो पाओगे। रोग होने पर एक सीमा तक उसका इलाज करो, किन्तु ज़मीन-जायदाद बेचकर नहीं। जीवन की बागडोर ‘माँ’ को सौंप दो। भय तुम्हारी कार्यक्षमता को घटाता है। अपने बच्चों को भी सही दिशा दो। अगर तुम स्वयं अशान्त रहते हो, तो तुम्हारे बच्चे भी अशान्त ही होंगे। हर पल, हर क्षण परमसत्ता की उपस्थिति महसूस करो। वह कण-कण में मौजूद है।
वासनाओं को धीरे-धीरे कम करो। अभ्यास से सब कुछ सम्भव है। यहां पर कम से कम तीन दिन तक एक-एक क्षण का सदुपयोग करो। काम-क्रोधादि से परे रहो। अपने जीवन को परोपकारी बनाओ। इस दिव्य धाम को अपने हृदय में बिठाओ।
नशा मनुष्य के पतन का मूल कारण है। आप मुझे कुछ दे सको या नहीं, किन्तु सभी नशों को छोड़ने का संकल्प लेलो। इनके कारण यदि आपके द्वारा कोई अपराध हो गए हों, तो आपका गुरु आपको उनसे मुक्त कर देगा।
आप लोग बहुत कुछ बदल रहे हो और आपमें सुधार आ रहा है, किन्तु मैं उससे सन्तुष्ट नहीं हूँ। अपने आपमें निरन्तर सुधार करते रहो। आपको एक लम्बी यात्रा तय करनी है। अपने आचार-विचार-व्यवहार में परिवर्तन लाओ। आपके पड़ोसी के पास क्या है, इससे व्यथित मत होओ। उनकी नकल मत करो। भगवती मानव कल्याण संगठन की विचारधारा पर चलो। यह कोई सामान्य संगठन नहीं है।
आपके मन में सोते-जागते, उठते-बैठते परमसत्ता का विचार बना रहना चाहिए। मन को एकाग्र करके दिव्य बनाओ। इससे आपका जीवन बदलता चला जाएगा। कम संसाधनों में भी आप तृप्ति का जीवन जिओगे। आपके पास अभावग्रस्त लोगों की तुलना में पचासों गुना है। फिर भी आप अशान्त रहते हो। मैंने भी किसान परिवार में जन्म लिया है और अभाव को देखा है। आज भी मज़दूरों के साथ खड़े होकर कार्य कराता हूँ। कर्म से सब कुछ सम्भव है।
माया ठगिनी नहीं, बल्कि काया ठगिनी है। काया को सदैव दो रूपों में लो। इसे भोजन दो, तो मित्र मानकर दो। किन्तु, शत्रु मानकर इससे काम लो। यदि इसे थकावट हो रही है, तो होने दो। इसे उतना आराम दो, जितना ज़रूरी हो।
कुछ लोग जीने की कला सिखाने का दावा करते हैं। वास्तव में, जीवन बिल्कुल भी कलाकारी नहीं है। जीना एक सत्य का मार्ग है। इसलिए सदैव सत्य पर चलो, भले ही कितनी बाधाएं क्यों न आएं। अधिक से अधिक कार्य में व्यस्त रहो। जीभ के स्वाद के पीछे पागल मत बनो। सदैव शुद्ध-सात्त्विक अल्प आहार लो और धर्ममार्ग पर चलो।
यदि ज्ञान सीखने की इच्छा हो, तो प्रकृति के हर जीव-जन्तु और यहां तक कि निर्जीव वस्तुओं से भी सीख सकते हो। परमसत्ता ने हमें सामर्थ्य-शक्ति परोपकार के लिए दी है। अतः उसे अधिक से अधिक परोपकार में लगाओ। अपने पुरुषार्थ पर विश्वास करो, जिससे कमाया गया धन अमृत के समान होता है। अपने कर्तव्य कर्म को पहचानो और पूर्ण करो। परमसत्ता सहज भाव से तुम्हारे लिए सब मार्ग खोल देगी।
लोभ प्रवृत्ति अन्तिम सांस तक भी समाप्त नहीं होती। लोग मरकर चले जाते हैं और सब कुछ यहीं पड़ा रह जाता है। अपने अन्दर अबोध बालक की वृत्ति जगाओ। ‘माँ’ से मिलने की एक भूख, एक तड़प होनी चाहिए। उनका सेवक बनने के लिए भावपक्ष जगाओ। हमारा सुख परमसत्ता से जुड़ा है। हमारे लिए ‘माँ’ की कृपा ही सब कुछ है। तुम्हारे जन्म देने वाले माँ-बाप जैसा रिश्ता माता भगवती से बना लो। अबोध शिशु वाले प्रेम के स्तर को प्राप्त कर लो।
परमसत्ता ने हमें निर्मल, निश्छल, दिव्य चेतना, आत्मा दी थी, किन्तु जन्म दर जन्म उस पर संस्कारों के आवरण पड़ते चले गए। उन्हें हटाते जाओ। साधना से ये आवरण हटेंगे। मन लगे या न लगे, साधना में बैठो अवश्य। सत्कर्म करोगे, तो कभी भी भूखों नहीं मरोगे। सामर्थ्य आपके अन्दर से आती है। आन्तरिक चेतना में बहुत शक्ति होती है। आपके अन्दर सब कुछ समाहित है।
‘माँ’ ही तो हमारी प्राण हें, हमारी शक्ति हें। संकल्प लेलो कि तन पर, मन पर और बुद्धि पर कलियुग को हावी नहीं होने देंगे। कलियुग आपको भागता नज़र आएगा। अपने विकारों को दूर करो और ‘माँ’ की ओर आकर्षित होओ। अबोध शिशु कभी भी अपनी माँ से कुछ नहीं मांगता। वह खाली उसकी ओर आकर्षित होता है और जो उसे चाहिए, वह पा जाता है।
समाज में नारी का सम्मान तभी होगा, जब पुरुष चरित्रवान् बनेगा। कानून कुछ नहीं कर सकेगा। फांसी देने से बलात्कार बन्द नहीं होंगे। इसके लिए महिलाओं और पुरुषों को नैतिकता का पाठ पढ़ाना होगा। फिल्म अभिनेत्रियों का जीवन सबसे निकृष्ट है। उनसे प्रेरणा मत लो और मर्यादित वस्त्र पहनो। किसी बलात्कार की घटना के बाद हो-हल्ला मचाने से कुछ नहीं होगा। उस भीड़ में अनेक लोग ऐसे होंगे, जो दुश्चरित्र होंगे।
इस स्थिति को एक दिन भगवती मानव कल्याण संगठन ठीक करेगा। हमारे लिए हमारे ऋषि-मुनि आदर्श हैं। उनका अनुकरण करो। हमें मात्र अपने विचारों की दिशा बदलना है।

आज धर्म रासरंग में दबकर रह गया है। कथावाचक लोग समाज में परिवर्तन डालने की बात नहीं करते। उनका प्रयोजन खाली धनार्जन है। निन्यानवे प्रतिशत कथावाचक स्वयं भयग्रस्त हैं। इसीलिए वे विभिन्न रत्नों वाली अंगूठियां धारण करते हैं। तब वे आपको कैसे निर्भय बनाएंगे? मन को एकाग्र करके प्रतिदिन ‘माँ’-ऊँ का क्रमिक उच्चारण करें और तदुपरान्त अपने आज्ञाचक्र पर ध्यान केन्द्रित करें। अगले वर्ष 2015 में शारदीय नवरात्र का यह शक्ति चेतना जनजागरण शिविर ध्यान-साधना को समर्पित होगा। यदि आप अपने मन को साध लेते हैं, तो सब कुछ सिद्ध हो जाएगा। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि, ऋद्धि-सिद्धियों को भी ठुकरा दिया करते थे।
महाशक्तियज्ञ सम्पन्न करने की पात्रता मेरे अतिरिक्त किसी में नहीं है। सत्यपरीक्षण की चुनौती मैंने इसीलिए दी थी। यदि कोई व्यक्ति इस यज्ञ को करके दिखा देगा, तो मैं अपना सिर काटकर उसके चरणों में चढ़ा दूंगा। प्रथम आठ महाशक्तियज्ञों को सम्पन्न करके मैंने अपनी पात्रता का प्रमाण दिया था कि मेरे हर महाशक्तियज्ञ में वर्षा अवश्य होगी। और, इनमें से हर यज्ञ में वर्षा अवश्य हुई है, जबकि वे विभिन्न स्थानों पर विभिन्न मौसमों में सम्पन्न किये गए थे। जादूगरी करके तो कोई भी दिखा सकता है, किन्तु प्रकृति को अपने अनुकूल करना बिना ‘माँ’ की कृपा के सम्भव नहीं है।
परिवर्तन का जो प्रवाह चल रहा है, उसे समझने का प्रयास करो। पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम वह स्थली है, जहां से हमारा कल्याण होगा और हमारी समस्याओं का समाधान होगा। जिस प्रकार प्रकाश के द्वारा अन्धकार दूर होजाता है, उसी प्रकार, ज्ञान के द्वारा अज्ञान दूर होता है। आप लोग ज्ञान के पथ पर, सत्य के पथ पर चल पड़ो, अज्ञान स्वतः नष्ट हो जाएगा।
मूल तत्त्व, अपनी आत्मा को समझ लो, उसे पकड़ लो। वह ज्ञान का भण्डार है। ध्यान-साधना के द्वारा उस ज्ञान को प्राप्त किया जा सकता है। आपका गुरु आपको केवल मार्ग बता सकता है, किन्तु कर्म आपको स्वयं करना पड़ेगा। यदि आप घोड़े को पानी के पास लेजाकर खड़ा कर दो और वह पानी न पिये, तो उसके लिए आप नहीं, बल्कि घोड़ा ज़िम्मेदार होगा।
शादी से पहले सभी ब्रह्मचर्य का पालन करें और शादी के बाद एक पति/एक पत्नी धर्म का पालन करें। आज इस समय मैं आावाहन करता हूँ कि सन्तानोत्पत्ति के बाद पति-पत्नी के सम्बन्ध को मर्यादित ढंग से जियें। मैं आपको ब्रह्मचर्य धारण करने के लिए नहीं कहता।
(दोनों हाथ उठवाकर सबको संकल्प दिलाया गया कि इस संकल्प को कभी नहीं तोड़ेंगे। यदि कभी भटकें, तो इन क्षणों का ध्यान कर लेना।)
मेरे जीवन का एक-एक पल समाजकल्याण के लिए समर्पित है और मैं आपको आपकी पात्रता के अनुसार बिना मांगे देता हूँ। विनम्र बनो और सफाई-शुद्धता का ध्यान रखो तथा आश्रम के प्रति सेवाभाव होना चाहिए।
मैं सदैव अपने कर्मबल के द्वारा उपार्जित धन से अपना जीविकोपार्जन करता हूँ। अपनी बच्चियों को भी मैंने यही सिखाया है। आपसे भी मैं यही चाहता हूँ। प्रकृति अपना कार्य करती है, आप अपना कार्य करो। जो भी परिस्थिति हो, उसी में प्रसन्नचित्त रहो। कंकड़ों में लेटकर भी ऐहसास होना चाहिए कि यह ‘माँ’ की गोदी है।
यदि मैं चाहता, तो किसी राजनेता या उद्योगपति को प्रभावित करके प्रस्तावित चालीसा भवन का निर्माण बड़ी आसानी से करा सकता था। किन्तु, मैं चाहता हूँ कि इसके निर्माण में मेरे शिष्यों की ईमानदारी से कमाया हुआ अधिक से अधिक धन लगे, भले ही यह देर से बने।
यदि सत्यपथ की ओर उठ रहे हैं, तो जीवन का हर कदम सार्थक होजाता है। इससे कई बार हमारा जीवन ही बदल जाता है। यदि हम विचार कर लें और परिवर्तन कर लें, तो अनीति-अन्याय-अधर्म करने से बच सकते हैं। इसलिए, जीवन का एक-एक पल अति महत्त्वपूर्ण है।
इस सृष्टि में मानव प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ कृति है। यदि वह सन्मार्ग पर चलने में सफल हो जाय और मूल को पकड़ ले, तो उसकी सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा।
सत्य को समझकर उसे स्वीकार करना और उसे जीवन में ढालना इस जीवन का लक्ष्य है। हमें समझना चाहिए कि हम शरीर नहीं, बल्कि आत्मा हैं, जो अजर-अमर-अविनाशी है और इसकी जननी ‘माँ’ हैं। हम जितना ‘माँ’ से दूर जाएंगे, उतना ही दुःख और समस्याएं बढ़ेंगी और जितना ‘माँ’ के पास रहेंगे, उतना ही आनन्दित रहेंगे।
आत्मा, गुरु और परमसत्ता में कोई भेद मत मानों। हम गुरु एवं परमसत्ता के अंश हैं तथा वे अंशी हैं। हम अपूर्ण हैं और वे पूर्ण हैं। अपूर्ण तो हम हैं ही, पूर्ण बनना भी नहीं चाहते। पूर्ण बनने का एकमात्र मार्ग है कि अपनी आत्मा को पवित्र और निर्मल बनाओ। इसके लिए ध्यान-साधना के द्वारा उस पर पड़े आवरणों को हटाओ। तभी परमसत्ता से सम्बन्ध बनेगा। माया रूपी जगत् का हमें उपभोग नहीं, बल्कि उपयोग करना है। इसके लिए हर पल सजगता ज़रूरी है।

असत्य के मार्ग की ओर जाएंगे, तो दुःख बढ़ेंगे और पतन निश्चित है। हमारे ऋषि-मुनियों ने सत्य को अंगीकार करके उच्चता प्राप्त की है। ऋषित्व का मार्ग सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। यह मानवजीवन ही मुक्ति का द्वार है। आत्मा पर पड़े आवरण हटने पर उच्चता की सीढ़ियों पर चढ़ते हैं। देवता तो ऋषियों और भक्तों के गुलाम हैं। गुरु के पास अपने शिष्यों को पात्र बनाने की कृपा होती है, जो देवताओं के पास नहीं होती।
आज धर्मगुरुओं का जितना पतन हुआ है, उसकी कोई सीमा नहीं है। उनमें त्याग नहीं है, तपस्या नहीं है। उनमें खाली आडम्बर और पाखण्ड है। वास्तव में धर्मगुरु तो समाज को जगाने के लिए परमसत्ता का प्रतिनिधि होता है। आसाराम बापू का सत्य सामने आ गया है। धीरे-धीरे औरों के भेद भी खुलेंगे। रामदेव शुरू में कहते थे कि वह गुरु नहीं हैं, किन्तु धीरे-धीरे योगगुरु बन गए और धन-सम्पदा इकठ्ठा करके धर्मगुरु कहलाने लगे।
इतने सारे धर्मगुरु और धार्मिक संस्थाएं होने पर भी समाज पतन की ओर जा रहा है। इसलिए, समाज को सत्य एवं असत्य को पहचानने की ज़रूरत है। अपने अन्तःकरण में झांको और विचार करो। विकारों को दूर करो और स्थितप्रज्ञ बनो। जब भी विषयविकार परेशान करें, अपने मन को गुरु के चरणों में लेजाओ। अपनी आत्मा की शरण में जाओ और सोचो कि आप विषय-विकारों से मुक्त हैं। आपके गुरु चेतनावान् हैं और वह आपके समक्ष हैं। आत्मा, परमसत्ता और गुरु, इन तीनों शक्तियों में से किसी का भी ध्यान करो। विकार दूर होते चले जाएंगे। अभ्यास से सब कुछ सम्भव है। ये तीनों शक्तियां कण-कण में व्याप्त हैं। बार-बार इनका स्मरण करो। कोई क्षण खाली न जाये। इससे स्थितप्रज्ञ बन जाओगे।
आपकी लगन और निष्ठा आपकी सहायता करेंगी। यदि आप अपनी आत्मा, गुरु और परमसत्ता- इन तीनों की ओर बढ़ रहे हैं, तो आपके सारे दुःख-तकलीफें दूर होते चल जाएंगे। तीसरा नेत्र और छठी इन्द्रिय भी कार्य करते हैं। आप अपने कर्म को महान् बना लें, तो सब कुछ प्राप्त कर लेंगे। आप लोग पाना तो खूब चाहते हैं, किन्तु कर्म कुछ नहीं करना चाहते। आज आपकी शक्तियां क्षीण होती जा रही हैं, क्योंकि आप उनका उपयोग नहीं करते।
अच्छी तरंगों को अपनी ओर आकर्षित करो और दिव्यता को बढ़ाओ। अपनी आत्मा, गुरु और परमसत्ता पर दृढ़ विश्वास रखो, तो सब कुछ प्राप्त कर लोगे। न तुम परीक्षा देना चाहते हो और न प्रतीक्षा करते हो। हर जगह हर समय उतावलापन रहता है। प्रतीक्षा का पाठ शबरी से सीखो। भगवान् राम की प्रतीक्षा करते-करते वह बूढ़ी हो गई थी, किन्तु उसने आशा नहीं छोड़ी थी। भगवान् राम को विवश होकर उसके यहां आना ही पड़ा था।
अहिल्या की प्रतीक्षा भी अनुकरणीय है। यह बिल्कुल गलत है कि गौतम ऋषि ने अपनी पत्नी को शाप दिया था। शाप देते, तो कुकर्म करने वाले को देते। वह जानते थे कि उस स्थिति में पत्नी को यदि साथ लेकर चलेंगे, तो उनके शिष्य दूर चले जाएंगे। इसलिए उन्होंने अहिल्या के कल्याण के लिए उसे भगवान् राम के अवतरण की जानकारी दी। फलस्वरूप, अहिल्या ने ध्यानस्थ होकर अपने आपको पत्थर बना लिया था और भगवान् राम को स्वयं चलकर उसका उद्धार करने के लिए आना पड़ा था। प्रतीक्षा के लिए आपका भाव भी इसी प्रकार का होना चाहिए।
आप अपने अन्दर शिष्यत्व का भाव जाग्रत् करो। इससे आप अपने गुरु में डूब जाओगे। आपकी आत्मा परमसत्ता से मिलना चाहती है, किन्तु विकारों के आवरण पड़े होने के कारण तुम परमसत्ता से नहीं मिल पाते हो। इसीलिए मैंने कहा है कि तुम दो कदम मेरी ओर चलो तो, मैं तुम्हें दस कदम आगे बढ़ा दूंगा। आपको सत्य स्वीकार करना पड़ेगा। प्रह्लाद ने हमें सिखाया है कि खम्भे में भी भगवान् मौजूद हैं।
यहां पर आश्रम में बिल्कुल भी छुआछूत नहीं है। आप लोग भी इसको नहीं मानते, किन्तु यहां से वापस जाते ही फिर से छुआछूत शुरू कर देते हैं। बाज़ार में और होटलों आदि में भी आप इस पर ध्यान नहीं देते। इस सबसे ऊपर उठो। तुमने कोई ठेका नहीं ले रखा है कि तुम फिर से सवर्ण जाति में ही पैदा होगे। हो सकता है कि अगला जन्म तुम्हारा तथाकथित अछूत जाति में हो। तब तुम्हारे दिल पर क्या गुज़रेगी?
कुआं खोदने वाले प्रायः अछूत ही हुआ करते थे और पहला पानी उनके पैरों को स्पर्श करके निकलता था। वहां पर छुआछूत कहां चली जाती थी? छुआछूत से धर्म कभी भी नष्ट नहीं होता, बल्कि इसको न मानने से परमसत्ता की कृपा प्राप्त होती है और आनन्द मिलता है। वास्तव में, छुआछूत समाज में ज़हर के समान है।
अपने संगठन में पद की ज़िम्मेदारी निभाओ। यदि कोई अपने पद की ज़िम्मेदारी से भागता है, तो उससे बड़ा दुर्भाग्य और कोई नहीं है। आत्मकल्याण और परोपकार के लिए सदैव तत्पर रहो। अपना ज्ञान समाज में बांटो। संगठन की शक्ति अलौकिक होती है। आप अकेले कुछ नहीं कर सकोगे। संगठन का गठन इसीलिए किया गया है। अनीति-अन्याय-अधर्म को केवल और केवल भगवती मानव कल्याण संगठन की विचारधारा ही मिटा सकती है। तीनों धाराओं को खड़ा करने का मेरा उद्देश्य यही है।
सब मिलकर आप लोग बहुत कुछ कर सकते हो। इसीलिए आपका गुरु हर पल साधनारत रहता है। आपके गुरु ने आपसे आत्मा का रिश्ता बनाया है। कई लोग आत्महत्या करने वाले थे, किन्तु मुझसे जुड़ने के बाद अब वे दूसरों को दिशा दे रहे हैं।
छठे महाशक्तियज्ञ को सम्पन्न करने के बाद मैंने समाज को बताया था कि मेरी ग्यारह चेतनाएं अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य करेंगी। इसीलिए परिवर्तन आ रहा है। वे चेतनाएं मेरे मार्गदर्शन में कार्य कर रही हैं, भले ही वे मुझसे सम्पर्कित न हों। परमसत्ता ने वह सामर्थ्य मुझे दे रखी है।
इस समय भी नरेन्द्र मोदी के अतिरिक्त प्रायः सभी नेता देश को लूट रहे हैं। अकेले मोदी कुछ नहीं कर पाएंगे। भ्रष्टाचार के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ज़िम्मेदार हैं। वे अधर्मी-अन्यायी, जिन्हें जेल में होना चाहिए था, आज हमारे नेता बने हुए हैं। इसीलिए समाज को जगाने का प्रयास करो।
अभी राजसत्ता की कामना छोड़ो। अभी उसकी आवश्यकता नहीं है। अभी समाजसेवा की ज़रूरत है। मेरी तीनों पुत्रियां तुम्हारा साथ देंगी। जो लोग कभी संगठन का विरोध करते थे, वे ही आज उसके सामने घुटने टेक रहे हैं। सत्ता प्राप्त करने में समय लगेगा। पहले समाज को जोड़ो। जिस दिन समाज जुड़ जाएगा, मेरे आशीर्वाद की भी तुम्हें ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
मैं सभी अन्यायी-अधर्मी राजनेताओं को पैर से ठोकर मारता हूँ। या तो वे स्वयं सुधरेंगे, नहीं तो मैं उन्हें सुधार दूंगा। मेरा तो सिर्फ ‘माँ’ से सम्बन्ध है। आप लोग तीनों धाराओं के प्रति समर्पित रहो।
आजकल देश के निन्यानवे प्रतिशत थाने अपराधियों के अड्डे बने हुए हैं। वे तुम्हारी क्या रक्षा करेंगे? वहां पर गुण्डों, बदमाशों और हत्यारों की खातिर-तवाज़ह होती है तथा भोलेभाले पीड़ित लोगों को पुलिस की गालियां सुनने को मिलती हैं। इसीलिए अपने आपको जगाओ। नैतिकता का पाठ पढ़ना होगा। कलिकाल को बदलने के लिए आध्यात्मिक शक्ति पैदा करनी होगी। अपने अन्दर त्यागी-तपस्वियों का भाव जगाओ। अपने अन्दर मंगल पाण्डे का जोश और लक्ष्मीबाई का त्याग पैदा करो।
न तो हम अनीति-अन्याय-अधर्म करेंगे और न ही सहन करेंगे। दमोह क्षेत्र के कार्यकर्ताओं से सीख लो। वे नशामुक्ति जनान्दोलन के अन्तर्गत अवैध शराब पकड़वाने में भी नम्बर वन हैं। आप लोग अपना कर्तव्य समझो और उसे पूरा करने से पीछे मत हटो। यहां से संकल्प लेकर जाओ कि चुनावों में यदि आपका पिता भी किसी भ्रष्ट पार्टी से खड़ा है, तो भी आपका वोट उसे नहीं मिलेगा।
मेरी बच्चियां पूजा-संध्या-ज्योति जहां पर भी उपस्थित होंगी, वहां पर मेरी उपस्थिति समझो। आपके अन्दर साधक प्रवृत्ति आने पर ही इस कलिकाल को समाप्त किया जा सकता है। आपका गुरु हर पल आपके साथ है। यह विश्वास करके आगे बढ़ो। आप अपने आपको बदलते रहोगे, तो समाज में परिवर्तन स्वतः आता चला जाएगा।
कोई भी भावनाहीन धनवान् मेरी ऊर्जा प्राप्त नहीं कर सकेगा। भावनावान् कोई भी हो, वह मेरी ऊर्जा निश्चित रूप से प्राप्त कर सकता है। चेतनावान् गुरु के चरण के नखों में त्रिवेणी का वास होता है। और, उसकी पात्रता क्या होगी-यह समझने की ज़रूरत है। मैंने अपनी सामर्थ्य के प्रमाण आपको दिये हैं, किन्तु बार-बार ऐसा करना मेरा लक्ष्य नहीं है।
मैं तुम्हारी सामर्थ्य को जगाने आया हूँ। अपने ‘मैं’ को जानो, तभी तुम्हारे अन्दर की अलौकिक सामर्थ्य जागेगी। मेरे परिवार के लोग भी यदि मेरा शिष्यत्व स्वीकार करते हैं, तो मेरे निकट रहेंगे, अन्यथा दूर चले जाएंगे। बढ़कर आओगे, तो मैं दस कदम आगे बढ़कर अपना लूंगा। ध्यान रखो कि लैट्रीन साफ करने के बाद यहां पर गोशाला में सेवा करने को मिलती है।
अपने परिवार के लिए आप लोग उतना ही संचित करें, जितना नितान्त आवश्यक है। शेष परोपकार में लगाओ। अपनी आय का दशांश सदैव परोपकार के लिए समर्पित करो। यहां पर कहीं भी कोई दानपात्र नहीं रखा गया है। समाज के द्वारा दिये गये दान के पैसे का मैं कभी भी उपभोग नहीं करता।
नए चालीसा भवन के निर्माण में लगभग ग्यारह करोड़ की लागत आने का अनुमान है। मैं चाहता हूँ कि इसमें मेरे शिष्यों का ही अधिक से अधिक सहयोग हो। यदि आपके अन्दर पात्रता है, तो आज से दो महीने के अन्दर, अर्थात् वाराणसी के शिविर से पहले अधिक से अधिक समर्पित करें। किन्तु, इसके कारण आपके परिवार में कलह नहीं होनी चाहिए और कर्ज़ लेकर भी कोई समर्पित न करे। जितनी आपकी भावना हो, उतना संकल्प करें और कार्यकर्ताओं को नोट करा दें।
कल से एक लाख ग्यारह हज़ार विशेष समर्पित शिष्यों के चयन का क्रम प्रारम्भ होगा। यद्यपि वर्ष 2015 में इसे शुरू किया जाना था, किन्तु मैंने इसी वर्ष 2014 से ही इस चयन का द्वार खोल दिया है। अपने आपको लगातार सुन्दर बनाते जाओ। यह युग परिवर्तन का समय है।
मैं आप लोगों को बताना चाहता हूँ कि आगामी 16-17 अक्टूबर को पुष्य नक्षत्र पड़ रहा है। इस अवधि में आप पांच घण्टे या चौबीस घण्टे के श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ आयोजित करें। इससे आपको कई गुना लाभ होगा। इस दौरान समाजसेवा एवं परोपकार में भी अधिक से अधिक योगदान दें।
सफाई और शुद्धता का आप लोग सदैव ध्यान रखो। इस पक्ष में सरकार के द्वारा उठाए गए कदम की मैं प्रशंसा करता हूँ और अपना आशीर्वाद प्रदान करता हूँ।
जिस प्रकार आप लोग अवैध शराब पकड़वाने का प्रशंसनीय कार्य कर रहे हैं, उसी तरह से मिलावट करने वालों को भी पकड़वाने का कार्य करो। जगह-जगह पर मिलावट का कार्य हो रहा है। सिंथैटिक दूध और मावे का कार्य फलफूल रहा है। दवाइयां तक नकली बन रही हें। आपको यह सब रोकना है।
भ्रष्टाचार रोकने के लिए भी कार्य करो। घूस देना एक बार आपकी मजबूरी हो सकती है, किन्तु लेना कोई मज़बूरी नहीं है।
आप सब जानते हैं कि वाराणसी का शक्ति चेतना जनजागरण शिविर आगामी 22-23 नवम्बर को है। इसमें रैली नहीं जाएगी। सभी कार्यकर्ता 21 नवम्बर की सुबह तक अपनी-अपनी व्यवस्था के अनुसार वहां पहुंचेंगे। मैं स्वयं यहां से 20 को चलकर 21 नवम्बर को एक-दो बजे के बीच वहां पहुंच जाऊंगा। रास्ते में मिर्ज़ापुर में रात्रिविश्राम करूंगा।
इसके बाद 15-19 फरवरी, 2015 की अवधि में भोपाल का कार्यक्रम है। इसके अन्तर्गत राज्य सरकार को नशामुक्ति, भ्रष्टाचारमुक्ति तथा नारीसम्मान की रक्षा के लिए बाध्य किया जाएगा। हमारा अभियान रचनात्मक होगा, ताकि किसी को भी कोई कष्ट न हो।
सब लोग अपनी-अपनी व्यवस्था से 15 फरवरी की सुबह तक भोपाल अवश्य पहुंचेंगे और वहां पर स्थापित जनसम्पर्क कार्यालय में अपना नाम, पता व मोबाईल नम्बर आदि लिखाएंगे। इसके आधार पर एक बुकलेट तैयार की जाएगी।
अगले दिन 16 फरवरी को कम से कम इक्यावन हज़ार लोगों की मानव श्रृंखला बनाई जाएगी। इनमें से हरेक के पास शक्तिदण्डध्वज और शंख होगा। वैसे, लक्ष्य एक लाख का है। प्रयास करेंगे, तो असम्भव नहीं है। तब उस आवाज़ को कौन दबा सकेगा?
तत्पश्चात्, 17 फरवरी (महाशिवरात्रि) से 19 फरवरी तक त्रिदिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर होगा। इसके अन्तर्गत विशिष्ट शंखनाद करना है। इससे पूर्व 14 जनवरी (मकर संक्रान्ति) से 14 फरवरी 2015 तक भोपाल नगर और आसपास के गांवों सहित पूरे प्रदेश में सघन जनजागरण अभियान चलाया जाएगा। डोर-टु-डोर जाकर समाज के लोगों को अपनी आवाज़ उठाने का आवाहन किया जाएगा। जो शिष्य स्वेच्छा से इसमें सहयोग दे सकें, अवश्य दें। इस बीच जिनके अन्दर पात्रता हो, वे नशा-मांसाहारमुक्ति, भ्रष्टाचारमुक्ति, चरित्रवान् जीवन, नारीसम्मान तथा युवाशक्ति का दुरुपयोग न हो, इन विषयों से सम्बन्धित लेख एवं कोटेशन तैयार करें।
आप लोग दहेजप्रथा को समाप्त करने में भी सहायक बनें। यह एक बड़ा अभिशाप हो गया है। दहेज में आया धन कभी भी फलीभूत नहीं होता। हो सकता है आपके माता-पिता दहेज के लोभी हों, किन्तु आप लोभी मत बनो। तभी यह कुरीति समाप्त होगी।
दहेज की व्यवस्था न कर पाने के कारण आज बेचारे माँ-बाप अपनी बच्चियों की शादी नहीं कर पा रहे हैं। इसके फलस्वरूप कुछ बच्चियां आत्महत्या कर लेती हैं। इसीलिए इस कुरीति को समाप्त करो। तभी तुम ‘माँ’ के सच्चे भक्त बन पाओगे। परमसत्ता से प्रेम का रिश्ता जोड़ो। किसी से कुछ पाने का नहीं, बल्कि देने का भाव बनाओ। तभी तुम सच्चे इन्सान बन सकोगे।
देश के भीतर अन्य धार्मिक संस्थाओं में आज जो गलत हो रहा है, वह किसी कीमत पर भी यहां नहीं हो पाएगा, क्योंकि यहां से देश और दुनिया को सन्मार्ग पर चलने का सन्देश दिया जा रहा है, ताकि हर क्षेत्र में व्याप्त अनीति-अन्याय-अधर्म को समूल नष्ट किया जा सके।
हमारा प्रयास होगा कि अगले वर्ष शारदीय नवरात्र में आयोजित होने वाले शक्ति चेतना जनजागरण शिविर तक कम से कम एक लाख शिविरार्थियों के लिए प्रसाधन व्यवस्था उपलब्ध हो, जिससे किसी को इस सम्बन्ध में असुविधा न हो। हर घर मन्दिर हो, हर मन मन्दिर हो–यही मेरा लक्ष्य है।
अन्त में, निर्माणाधीन नए श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ भवन के लिए धनराशि समर्पण करने वाले संकल्पित सदस्यों के नामों की घोषणा की गई और गुरुवरश्री ने उन्हें अपना आशीर्वाद प्रदान किया।
मानवजीवन में वे क्षण सबसे महत्त्वपूर्ण होते हैं, जब उसे किसी चेतनावान् सद्गुरु से दीक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
इस संसार में गुरु-शिष्य का रिश्ता सर्वोपरि होता है। भौतिक जगत् के अन्य सभी रिश्ते किसी न किसी स्वार्थ से जुड़े होते हैं। जैसे ही स्वार्थ हटता है, इन रिश्तों में दूरी आने लगती है। किन्तु, गुरु का रिश्ता अपने शिष्य के आत्मकल्याण से जुड़ा होता है, जो लगातार प्रगाढ़ होता जाता है।
वैसे, गुरु की अनेक श्रेणियां हैं। माँ-बाप, साधु-संन्यासी और शिक्षक आदि, जिनसे हम कुछ भी सीखते है, सभी गुरु की श्रेणी में आते हैं। किन्तु, एक चेतनावान् गुरु ही, जिसके सातों चक्र जाग्रत् हों, अपने शिष्यों के चक्र जाग्रत् कर सकता है। वह उनसे करोड़ों मील दूर रहकर भी उनका कल्याण कर सकता है।
मैंने आठों महाशक्तियज्ञ अपने तपबल को प्रमाणित करने के लिए सम्पन्न किये थे, जो विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग मौसमों में किये गए थे। उस समय मैंने कहा था कि यदि इनमें से किसी यज्ञ में वर्षा न हो, तो समझ लेना कि मुझमें महाशक्तियज्ञ करने की पात्रता नहीं है और मैं पुनः एकान्त वास में साधना हेतु चला जाऊंगा। और, यहां पर बहुत से लोग इस समय बैठे हैं, जिन्होंने स्वयं देखा था कि उन आठों यज्ञों में वर्षा हुई थी। मैं अपने शिष्यों के कल्याण के लिए सदैव साधनारत रहता हूँ।
दूसरे धर्मगुरु दीक्षा देने से पहले दीक्षार्थियों से अपना पूजन करवाते हैं। मैं कभी भी अपना पूजन नहीं करवाता। जो दीक्षार्थी जैसी अवस्था में आगए हैं, उन्हें मैं उसी अवस्था में स्वीकार करता हूँ। आपका एक जन्म अपनी माँ के गर्भ से हुआ है और दूसरा अब इस गुरुदीक्षा के द्वारा होने जा रहा है।
मेरे यहां दीक्षा का कोई शुल्क नहीं रहता। यदि कुछ देना है, तो अपने अवगुणों को समर्पित कर दो। आपका गुरु आपसे यही लेने आया है। आज से यह संकल्प लेलो कि नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जियेंगे। मेरे द्वारा लौंग, इलायची, सौंफ, मुलैठी और कालीमिर्च के लिए छूट दी गई है, क्योंकि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं हें। किन्तु, पान, पानमसाला, सुपारी, गुटखा, बीड़ी, सिगरेट और तम्बाकू आदि का निषेध है, क्योंकि ये नशे की श्रेणी में आते हैं और हानिकारक हैं।
यदि तुम वास्तविक सत्य को स्वीकार कर लोगे, तो तुम्हारा जीवन परिवर्तित होता चला जाएगा। राष्ट्ररक्षा, धर्मरक्षा और मानवता की रक्षा– इस त्रिधारा से जुड़ी यह युग परिवर्तन की यात्रा है। इसीलिए सच्चाई-ईमानदारी का जीवन जिओ और छल-कपट एवं प्रपंच से सदैव दूर रहो। अधिक से अधिक समाजसेवा करो। इससे जो तृप्ति मिलती है, वह कहीं और नहीं मिलेगी। सत्कर्म ही तुम्हारी एकमात्र पूंजी है। इसलिए अधिक से अधिक सत्कर्म करो।
‘माँ’ की आराधना से सहज और सरल और कोई आराधना नहीं है। इसमें भूल से यदि कोई न्यूनता हो जाये, तो वह क्षम्य है, किन्तु जान-बूझकर की गई गलती का दण्ड अवश्य मिलता है, क्योंकि वह हमारे कर्म से जुड़ जाती है।
इस आराधना में भ्रान्तियों और भय से सदैव दूर रहो। किसी भी देवी या देवता को पहले या बाद में स्नान करा दीजिए या तिलक कर दीजिए, पुष्प समर्पित कर दीजिए, कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
गुरु के द्वारा उच्चारित मंत्र आपके लिए उत्कीलित होजाते हैं। हर मंत्र में उसके इष्ट की शक्ति छिपी होती है। मंत्रजाप सदैव धैर्य, सन्तुलन एवं एकाग्रता के साथ करना चाहिए।
(अब तीन बार शंखध्वनि करके, सभी दीक्षार्थियों को एक संकल्प कराया गया। इसका सारसंक्षेप यह है कि मैं परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज को अपना गुरु स्वीकार करता हूँ, जीवनपर्यन्त नशा-मांसाहारमुक्त, चरित्रवान् जीवन जिऊंगा, भगवती मानव कल्याण संगठन एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम के दिशा-निर्देशों का पालन करूंगा तथा भारतीय शक्ति चेतना पार्टी के प्रति पूर्ण समर्पित रहूंगा।)
यह संकल्प आपके शिष्यत्व का धरातल है। यदि इस पर कायम रहे, तो आपका गुरु आपके लिए पूर्णत्व का द्वार खोल देगा।
अब ‘माँ’ एवं ऊँ मूल बीजमंत्रों का तीन-तीन बार उच्चारण कराया गया और बताया गया कि ‘माँ’ शब्द का उच्चारण करते समय भावना करते हैं कि चेतनातरंगें अन्दर से बाहर को तथा ऊँ का उच्चारण करने से बाहर से अन्दर को प्रवाहित हो रही हैं।
तत्पश्चात्, निम्नलिखित मंत्रों का भी तीन-तीन बार उच्चारण कराया गयाः

बजरंगबली की कृपा पाने के लिए- ऊँ हं हनुमतये नमः, 2. भैरव देव की कृपा पाने के लिए- ऊँ भ्रं भैरवाय नमः, 3. गणपति देव की कृपा पाने के लिए- ऊँ गं गणपतये नमः, 4. गुरु मंत्र- ऊँ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः तथा 5. ‘माँ’ का चेतना मंत्र- ऊँ जगदम्बिके दुर्गायै नमः।
गुरुमंत्र पहले जपने से गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वैसे, इनमें कोई भेद नहीं है। किसी को भी पहले या बाद में जप सकते हैं। किन्तु, जब सामूहिक रूप से करते हैं, तो एक निश्चित क्रम अपनाया जाता है।
मेरुदण्ड को सदैव सीधा करके बैठें। इससे सुषुम्ना नाड़ी चैतन्य होना शुरू होजाती है और पचास प्रतिशत रोग स्वतः ठीक होजाते हैं। आवश्यक नहीं है कि एकासन पर बैठा जाय। यदि पैर दर्द करने लगें, तो आसन बदल सकते हैं।
साधना प्रसन्नचित्त होकर एकाग्रता के साथ करें। भावनावान् बनो। शिष्यत्व की चरमसीमा क्या होती है, इसे आज तक कोई नहीं नाप सका है। आपके अन्दर ‘माँ’ से मिलने की व्याकुलता, तड़प और भूख होनी चाहिए।
‘माँ’ से भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति के अतिरिक्त कुछ मत मांगो। इनमें जीवन की हर चीज़ समाहित है। यदि कोई समस्या हो, तो केवल एक बार निवेदन कर दो कि यदि वह हमारे लिए हितकारी हो, तो उसका समाधान हो जाय, अन्यथा नहीं। ‘माँ’ की कृपा मांगो। आपके अन्दर भावपक्ष होना चाहिए, भावुकता नहीं।
रात में सोने से पहले और प्रातः उठते समय ‘माँ’ का स्मरण करो। आप लोग अपना कार्य करते हुए भी साधना कर सकते हो। तब यह जीवन साधनामय बन जाएगा।
मानसिक जाप गन्दी से गन्दी जगह पर बैठकर भी किया जा सकता है। यह निश्चित रूप से फलीभूत होगा। किन्तु, सस्वर जाप सदैव स्वच्छ एवं शुद्ध वातावरण में ही होना चाहिए। अशुद्धता की स्थिति में महिलाएं छवियों को स्पर्श न करें। दूर बैठकर बच्चों के द्वारा उन्हें स्नान एवं तिलक आदि करा सकती हैं। घर में यदि सूतक-पातक आदि हो गया हो, तो पूजन कदापि न रोकें। नहा-धोकर स्वच्छ कपड़े पहनकर कर सकते हैं।
आज से आप लोग सिद्धाश्रम परिवार, भगवती मानव कल्याण संगठन एवं भारतीय शक्ति चेतना पार्टी के सदस्य बन गए हो। अपने घर को ‘माँ’ के मन्दिर के समान बनाओ। अपने गले में रक्षाकवच तथा मस्तक पर कुंकुम का तिलक धारण करें और नित्य शक्तिजल का पान करें। इसमें मेरी चेतना तरंगें और ‘माँ’ का चरणोदक समाहित है।
अपनी आध्यात्मिक यात्रा को कभी भी अपने पारिवारिक सम्बन्धों से जोड़कर न चलें। इससे आशातीत सफलता मिलेगी। यह विशुद्ध रूप से ‘माँ’ और गुरु के सम्बन्ध की यात्रा है।
आज के बाद, जब भी चाहें आप अपनी सुविधा के अनुसार कभी भी आश्रम आ सकते हैं। मैं सबसे बिना किसी भेदभाव के मिलता हूँ और मिलने का कोई शुल्क नहीं रहता। इसके बाद अब आप जाकर मूलध्वज की कम से कम एक परिक्रमा करें और चालीसा भवन में एक पाठ दुर्गाचालीसा का करें।
अन्त में, तीन बार शंखध्वनि करने के पश्चात् दीक्षार्थियों के द्वारा गुरुवरश्री की चरणपादुकाओं का स्पर्श किया गया। प्रणाम के साथ सबने एक-एक शीशी शक्तिजल प्राप्त किया। उन्हें एक-एक दीक्षाप्राप्ति पत्रक भरकर लौटाने के लिए दिया गया।
इस सत्र में ग्यारह नवयुगलों के विवाह संस्कार योगभारती विवाह पद्धति के अनुसार होने के कारण परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् शिविर पण्डाल में दो बजे ही आकर मंचासीन हो गए थे। विवाह संस्कार सम्पन्न होने से पूर्व आपश्री ने एक संक्षिप्त उद्बोधन दिया-
शादी का सम्बन्ध दो आत्माओं के मिलन का सम्बन्ध है। इसको बहुत शान्ति और सन्तोष के साथ होना चाहिए। किन्तु, आज उनके अभाव में पूरा समाज त्रस्त है। वर का पिता अपने आपको शहंशाह समझता है। दहेज लेने के लिए अपने पुत्र की बड़ाई करता है। नौकरी करने वाले वर की तो कीमत और बढ़ जाती है। बेईमानी के पैसे के बल पर कोई डॉक्टर या इन्जीनियर बन गया, तो उसके क्या कहने! बाद में भी वह बेईमानी से ही पैसा इकठ्ठा करता है।
वरपक्ष विवाह में बिल्कुल भी पैसा खर्च नहीं करना चाहता और कन्यापक्ष के सामने तरह-तरह की फरमाइशें रखता है। लड़की का बाप बेचारा भयग्रस्त रहता है कि पता नहीं वरपक्ष की ओर से कौन कहां पर नाराज़ होजाय!
देखा जाय, तो दोनों परिवारों को एक समान होना चाहिए। बल्कि, लड़के वालों को लड़की वाले का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि वह उन्हें अपनी लड़की दे रहा है। और, आने वाले समय में वह स्थिति आएगी। योगभारती विवाह पद्धति मेरे द्वारा समाज को इसीलिए प्रदान की गई है।
समाज में विवाह की रस्म की शुरूआत प्रायः गालियों से होती है। यहां पर यह क्रम पवित्रतापूर्वक होता है। गालियों के स्थान पर ‘माँ’ के जयकारे होते हैं। किसी प्रकार का कोई लेने-देन नहीं होता। न कोई आडम्बर है, न कोई दिखावा। पवित्र मंच के फेरे लगाए जाते हैं, जिस पर मैं परमसत्ता के साथ उपस्थित रहता हूँ। तेईस जनवरी के अवसर पर होने वाले विवाहों में मूलध्वज की परिक्रमा होती है।
प्रायः लोग सोचते हैं कि यदि बिना दहेज के शादी करेंगे, तो वह उनकी कमज़ोरी मानी जाएगी। यह बात माँ-बाप ने अपने बेटों के दिमाग में भर दी है। इस पद्धति में ‘माँ’ को सर्वोपरि माना गया है। उन्हीं को साक्षी मानकर सब कुछ किया जाता है। शक्तिध्वज के एक ओर वर का और दूसरी ओर कन्या का हत्था लगवाया जाता है। यह संकल्प यदि टूटता है, तो यह एक अपराध है। इस पद्धति में समय कम लगता है, सन्तुलन रहता है तथा नाई-ब्राह्मण की ज़रूरत नहीं पड़ती। सारे कार्य गुरुभाई-बहनों के द्वारा किये जाते हैं।
अब दो मिनट ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाए गए। तदुपरान्त, कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ।
सबसे पहले वर-कन्या के हाथ में अक्षत-पुष्पादि रखकर संकल्प कराया गया कि वे एक-दूसरे को पति-पत्नी के रूप में स्वीकार करते हैं। संकल्प की सामग्री को ध्वज में बांधकर सुरक्षित रखते हैं। अब वर-कन्या ने एक-दूसरे का माल्यार्पण किया। उसके बाद गठबन्धन हुआ। इसके अन्तर्गत वर के रक्षाकवच तथा कन्या की चुनरी में मौली के द्वारा गांठ लगाई गई। यह रस्म शक्तिस्वरूपा बहनों के द्वारा की गई। अब वर ने कन्या की मांग में सिन्दूर भरा और उसे मंगलसूत्र धारण कराया।

अब फेरों का क्रम प्रारम्भ हुआ। इसमें वर-कन्या आगे-पीछे नहीं, बल्कि बराबर-बराबर चले। वर-कन्या ने हाथ में पुष्प लेकर एक फेरा पूर्ण करके पुष्प मंच पर समर्पित करते हुए नमन किया और अगले फेरे के लिए पुनः पुष्प लेकर चले। इस बीच ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे चलते रहे। सातों फेरे क्रमशः पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश, वायु तत्त्वों तथा दृश्य एवं अदृश्य जगत् की समस्त स्थापित शक्तियों को साक्षी मानकर लगाए गए।
सातों फेरे पूर्ण करके वर-कन्याओं ने अपने-अपने स्थान पर बैठकर आगे का कार्यक्रम देखा तथा महाराजश्री का दिव्य उद्बोधन सुना। बाद में इन्होंने मूलध्वज मन्दिर में जाकर एक-एक परिक्रमा की और चालीसा भवन में एक-एक श्री दुर्गाचालीसा का पाठ किया।
जिन ग्यारह नवयुगलों के विवाह संस्कार योगभारती विवाह पद्धति से सम्पन्न हुए, उनके नाम इस प्रकार हैंः

1. नन्हेंभाई संग सीता देवी, 2. मातादीन संग संध्या देवी, 3. हर्षित कुशवाहा संग अर्चना देवी, 4. संतोष विश्वकर्मा संग राखी देवी, 5. मुकेश योगभारती संग राममूर्ति योगभारती, 6. रामकुमार पाल संग रूपा देवी, 7. बनवारी लाल पाल संग सुषमा देवी, 8. ठाकेश नारायण संग ममता, 9. विनोद जायसवाल संग संध्या जायसवाल, 10. परवीन राठौर संग तुलसी चौहान, 11. पंकज शर्मा संग किरन देवी।

इस अवसर पर, राष्ट्ररक्षा, धर्मरक्षा एवं मानवता की सेवा के प्रति समर्पित तीन जीवनदानी शिष्यों, श्री अजय योगभारती जी, श्री रमेश प्रसाद शुक्ला उर्फ ‘ज्वाला जी’ एवं सुश्री सुनीता सिंह चौहान जी को परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के करकमलों के द्वारा ‘सिद्धाश्रम रत्न’ प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।
तदुपरान्त, पुरस्कार वितरण समारोह हुआ। इसके अन्तर्गत पांच कर्मठ सदस्यों को उनके सराहनीय कार्य के लिए शक्तिस्वरूपा बहनों, पूजा, संध्या एवं ज्योति योगभारती जी के द्वारा क्रमशः एक प्रमाण पत्र, एक शॉल एवं ग्यारह हज़ार रुपये प्रदान करके सम्मानित किया गया। यह श्रमशक्ति पुरस्कार आश्रम निवासी राजेश योगभारती जी, तथा निकटस्थ टांघर ग्राम निवासी श्रीमती लोली सिंह जी, अंजू सिंह जी, नानबाई जी एवं दीपा सिंह जी को प्राप्त हुआ।
अन्त में, जिन एक लाख ग्यारह हज़ार विशिष्ट शिष्यों की महाराजश्री को एक लम्बे समय से तलाश थी, उनमें से प्रथम पच्चीस को चुनकर उन्हें ‘सिद्धाश्रम उत्कृष्ट साधक’ का प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। इस अवसर पर परम पूज्य गुरुवरश्री ने कहा कि वे शरीर देखकर नहीं, बल्कि आत्मा देखकर चयन करते हैं। इस पुरस्कार को प्राप्त करने वालों के नाम निम्नवत् हैंः
सर्वश्री वीरेन्द्र दीक्षित जी, सन्तोष मिश्रा जी, शैलेन्द्र त्रिपाठी उर्फ शीलू जी, नरेन्द्र त्रिपाठी उर्फ नीलू जी, श्रीमती पुष्पा द्विवेदी जी, श्रीमती सुधा सिंह चौहान जी, पंकज शुक्ला जी, श्रीमती छाया पाठक जी, रमैया सिंह उर्फ डमरू जी, रमेशचन्द्र मिश्रा जी, सुरेन्द्र नाथ दुबे जी, कमलेश गुप्ता जी, सोनम गुप्ता जी, भुज्जीलाल सेन जी, अनिल तिवारी जी, अशोक आहूजा जी (हरियाणा), प्रदीप कलेसर जी, राजेन्द्र मेहता जी, रणधीर सिंह जी, अशोक आहूजा जी (छत्तीसगढ़), कृष्णमणि मिश्रा जी, यज्ञपाल सिंह हाड़ा जी, श्रीमती शशिकला मिश्रा जी, सुन्दर सिंह जी तथा रामगोपाल सिंह जी।
तत्पश्चात्, बहन संध्या एवं ज्योति योगभारती जी के द्वारा ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाए गए और महाराजश्री का नियमित दिव्य उद्बोधन हुआ-
यदि आप सत्य को ग्रहण करके सत्यपथ पर चलना प्रारम्भ कर दें, तो वही जीवन की सफलता होती है। जीवन रूपी रथ के दो पहिए हैं, भक्ति और तप। एक भक्त जब तक तपस्वी नहीं होगा, तब तक पूर्णता नहीं प्राप्त कर सकेगा। अपने अवगुणों को दूर करने के लिए भक्ति और तप साथ-साथ करना होता है।
आप लोग आलस्य त्यागकर नित्य सूर्योदय से पूर्व उठें और नित्य साधना करें। सौदागर बनकर भक्ति न करें। नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जियें। राष्ट्ररक्षा, धर्मरक्षा एवं मानवता की रक्षा रूपी तीनों धाराओं के प्रति समर्पित रहें। आने वाले समय के लिए मैं इन तीनों धाराओं को और सशक्त बना रहा हूँ। आज समाज पतन की चरमसीमा पर है। जगह-जगह रावण बैठे हैं।
समाजसेवी संस्थाएं तो बहुत हैं, किन्तु उनमें समाजसेवा नाम की कोई चीज़ नहीं है। खाली आडम्बर और दिखावा है। इस बहाने वे सरकार से मिले अनुदान को डकार जाते हैं और क्रियात्मक रूप से कुछ नहीं करते। हमें सशक्त समाज का निर्माण करना है।
मैं ऐसे साधक तैयार कर रहा हूँ, जिनका आभामण्डल प्रभावक होगा। आप लोग परिवर्तन के लिए हर पल तैयार रहो। यह धर्मयुद्ध एक लम्बे समय तक चलेगा। संघर्ष आएंगे, उनसे डरना नहीं है। अपने शरीर को तपाओ, जिससे तुममें धैर्य, शालीनता, विनम्रता, दया, ममता और परोपकार की भावना आजाय।
परमसत्ता से छोटी-छोटी चीज़ें मत मांगो। वह आपको बहुत कुछ देना चाहती हैं। आपके अन्दर अपनी आत्मा से मिलने की भूख होनी चाहिए। अधिक से अधिक सत्कर्म करो। उनके फल को आपसे कोई छीन नहीं सकता। अपने बच्चों को संस्कारवान्, त्यागी-तपस्वी, चरित्रवान् और परोपकारी बनाओ। तब वह जहां भी जाएगा, ईमानदारी से कार्य करेगा। तोड़ दो उन बंधनों को, जो तुम्हारे सत्यपथ पर बढ़ने में बाधक हैं।
साम्प्रदायिकता की आग मत जलाओ। कोई भी धर्म अनीति-अन्याय-अधर्म करना नहीं सिखाता। भारतीय जनता पार्टी के सांसद स्वामी आदित्यनाथ जैसे लोगों के भड़काने में मत आओ, जिनके एक हाथ में माला और दूसरे में त्रिशूल रहता है और जो कहते हैं कि जो हमारी एक बेटी को लेजाता है, हम उनकी सौ बेटियों को ले जाएंगे। अपनी बेटियों को चरित्रवान् बनाओ।
नरेन्द्र मोदी कितने भी ईमानदार क्यों न हों, उनके चारों ओर अधर्मी-अन्यायियों की भरमार है। वह अकेले कुछ नहीं कर पाएंगे। नंगे-लफंगे-लुच्चे लोग कभी भी समाज का कल्याण नहीं कर सकेंगे। इसलिए अपने ऋषि-मुनियों को आदर्श मानकर अपनी यात्रा तय करो। युवा लोग हर पल मेरी निगाहों में रहते हैं। उपयुक्त समय आने पर मैं उनका सदुपयोग करूंगा।
इस सिद्धाश्रम स्थल का कोई भी ऐसा स्थान नहीं है, जहां पर मेरे कदम न पड़े हों। मैं यहां के एक-एक कण को ऊर्जावान् बना रहा हूँ और इसे चेतन कर रहा हूँ। आप लोग धैर्यवान्, धर्मवान् और कर्मवान् बनें। शिष्यत्व की गहराई में लगातार डूबते जाओ। छोटे-छोटे बच्चों में मेरे प्रति समर्पण है।
जीवन में परीक्षा और प्रतीक्षा के लिए हर पल तैयार रहो। परीक्षा का आदर्श सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र से सीखो, जिन्होंने अपना सर्वस्व त्यागकर भी सन्मार्ग को नहीं छोड़ा। प्रतीक्षा का पाठ शबरी के जीवन से सीखो, जो भगवान् राम के आगमन की राह देखते-देखते बूढ़ी हो गई, किन्तु उसने धैर्य एवं आशा नहीं छोड़ी।
आप लोगों को चाहिए कि पांच वर्ष के अपने बच्चे को भी शक्तिदण्डध्वज थमा दो। इससे उनमें शुरू से ही अच्छे संस्कार बनेंगे। नित्य साधना तथा आरती एवं चालीसा में भी उन्हें सम्मिलित कराओ।
जनजागरण के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ राज्य तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। नेपाल के कार्यकर्ता भी अच्छा कार्य कर रहे हैं। आगामी वर्ष में वहां पर भी एक शक्ति चेतना जनजागरण शिविर का आयोजन होगा। हम वहां पर उनके सहयोग के लिए जा रहे हैं। हम चाहते हैं कि उनकी सामर्थ्य बढ़े। टॉयलेट साफ करने से लेकर ‘माँ’ की आराधना तक आपको सभी कार्य करना आने चाहिएं। तभी आप सच्चे साधक बनेंगे। यहां पर आश्रम में कोई भी सफाई कर्मचारी नहीं रखा गया है। सभी लोग मिलजुलकर यह कार्य करते हैं। किसी जातिविशेष का यह कार्य नहीं है कि वह टॉयलेट साफ करेगा। ऐसा सोचना और कराना एक अपराध है। वास्तव में, हर व्यक्ति जन्म से शूद्र है, भले ही वह किसी भी जाति का हो। किसी समय कर्म के आधार पर यह व्यवस्था दी गई थी, जिससे समाज सुचारू रूप से चले। किन्तु, बाद में धीरे-धीरे यह जाति में बदल गई। इसे समाप्त होना चाहिए।
इस प्रकार, तीन दिवसपर्यन्त चला यह शक्ति चेतना जनजागरण शिविर ममतामयी माता की कृपा एवं परम कृपालु सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के दिव्य आशीर्वाद से निर्विघ्न सम्पन्न हो गया। अपार भीड़ के बावजूद न तो कहीं पर कोई अव्यवस्था हुई और न ही कोई अप्रत्याशित घटना घटी। सब ओर आनन्द ही आनन्द रहा।

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