जबलपुर में उमड़ा मानवता का महासागर
मध्यप्रदेश अथवा भारतवर्ष की ही नहीं, वरन् कदाचित् समूचे विश्व की संस्कारधानी जबलपुर नगरी प्रारम्भ से ही परम पूज्य सद्गुरुदेव योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के चिन्तन में रही है। आपश्री के द्वारा संकल्पित 108 महाशक्तियज्ञों की श्रंखला का श्री गणेश यहीं से हुआ था, जब इसका प्रथम यज्ञ 25 जुलाई 1990 को जबलपुर में सम्पन्न हुआ।
यह इसका परम सौभाग्य है कि अब 09-10 फरवरी 2013 को यहां पर एक द्विदिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर का आयोजन किया गया, जिसके माध्यम से यहां की जनता ने धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के द्वारा अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध छेड़े गए धर्मयुद्ध के सम्बन्ध में आपश्री का ओजस्वी दिव्य उद्बोधन प्राप्त किया।
इस शिविर की घोषणा 12-13 फरवरी 2012 को सागर (मध्यप्रदेश) में आयोजित शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में कर दी गई थी। तदनन्तर, कार्यकर्ता बैठक 2012 में इसकी पुष्टि की गई। अतः 22-24 अक्टूबर 2012 को पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में आयोजित ‘युग परिवर्तन का महाशंखनाद’ शिविर सम्पन्न होने के उपरान्त जबलपुर के कार्यकर्ता इसकी तैयारी में जुट गए थे।
इस शिविर से सम्बन्धित पैम्फ्लैट्स छपवाकर भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं को उनके क्षेत्रों में वितरण हेतु दिए गए थे। जबलपुर के सभी पहुंचमार्गों पर तथा नगर के अन्दर बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाए गए थे तथा समूचा नगर ‘माँ’ शब्द से अंकित तिकोने ध्वजों से बनी बन्दनवारों से पटा पड़ा था। अनेक लोगों ने गुरुवरश्री की दिव्य छवि वाले कैलेण्डर के आकार के पोस्टर्स अपने घरों एवं प्रतिष्ठानों में लगाए।
सबसे बड़ा आकर्षण इस शिविर का यह रहा कि अधिकतर शिष्य एवं श्रद्धालु एक दिन पूर्व आश्रम आए और वहां से रैली के रूप में शिविरस्थल तक गए। परम पूज्य गुरुवरश्री ने 08 फरवरी को प्रातः नित्य की भांति श्री दुर्गा चालीसा अखण्ड पाठ मन्दिर पहुंचकर आरती क्रम पूर्ण किया तथा मूलध्वज मन्दिर गए। तत्पश्चात्, आश्रम में उपस्थित समस्त शिष्यों एवं भक्तों को चरणस्पर्श प्रदान करके अपना दिव्य आशीर्वाद दिया।
प्रातः ठीक 9 बजे यात्रा प्रारम्भ हुई। सबसे आगे महाराजश्री का वाहन था और उसके पीछे अन्य सारे वाहन अपने-अपने क्रम पर चल रहे थे। उनके दोनों ओर यात्रा से सम्बन्धित फ्लैक्स लगे थे। कुल मिलाकर आश्रम से दो सौ से अधिक वाहनों ने प्रस्थान किया। सर्वप्रथम, गुरुवरश्री पूज्य दण्डी संन्यासी जी की समाधि स्थल पर गए। वहां से गोशाला होते हुये समधिन नदी पार करके ग्राम-खामडाड़ पहुंचे, जहाँ भक्तों ने स्वागत-वन्दन किया और गुरुवरश्री के चरणस्पर्श का अवसर प्राप्त किया। उसके पश्चात् ब्यौहारी पहुंची, जहां पर सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु भक्तों ने गुरुवर जी का भव्य स्वागत-वन्दन किया।
उमरिया, शहपुरा क्षेत्र में भी भक्तों ने गुरुवरश्री के दर्शन प्राप्त किये। जबलपुर सीमा में प्रवेश के पश्चात् कुण्डम में तो हजारों की भीड़ थी। वहां पर गुरुवरश्री ने वाहन से बाहर निकलकर भक्तों को आशीर्वाद प्रदान किया। यहां पर भक्तों का सैलाब उमड़ा, जिन्होंने महाराजश्री का आशीर्वाद प्राप्त किया। कई स्थानों पर महिलाएं एवं बच्चे सिर पर कलश और हाथों में आरती का थाल लिए खड़े थे और पुष्प वर्षा कर रहे थे। इस प्रकार, रास्तेभर जगह-जगह पर स्वागत-अभिनन्दन हुआ।
सायंकाल लगभग छः बजे जबलपुर से चार-पांच कि.मी. पहले सैकड़ों दुपहिया वाहनों पर सैकड़ों शिष्य गुरुवरश्री की अगवानी के लिए उनके आगे चल रहे थे। वे बड़े ही उत्साह एवं उमंग के साथ ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगा रहे थे। जिस स्थान पर महाराजश्री के रुकने की व्यवस्था की गई थी, वहां से लगभग एक कि.मी. पहले सड़क के दोनों ओर भक्तों और श्रद्धालुओं की दीवार सी बनी खड़ी थी। ये लोग हाथ में ध्वजदण्ड लिये निरन्तर शंखध्वनि किये जा रहे थे और जयकारे लगा रहे थे। इस प्रकार, लगभग सात बजे सायं रैली का समापन हुआ और गुरुवरश्री ने रात्रिविश्राम किया।
देश के विभिन्न प्रान्तों एवं विदेश से आए शिविरार्थियों के ठहरने के लिए कई धर्मशालाओं एवं बारातघरों को बुक कर लिया गया था। आवश्यक जानकारी प्रदान करने के लिए जनसम्पर्क कार्यालय खोला गया था, जिससे किसी को कोई असुविधा न हो। साधना सामग्री उपलब्ध कराने के लिए, विशाल साधना स्टॉल भी लगाया गया था। एक अलग स्टॉल पर निःशुल्क शक्तिजल वितरित किया जा रहा था।
कई लाख की संख्या में आए भक्तों, श्रद्धालुओं तथा धर्मप्रेमी जनों ने निःशुल्क भण्डारे में स्वादिष्ट खिचड़ी प्राप्त करके दोनों दिन आत्मतृप्ति का ऐहसास किया। इस बड़ी व्यवस्था को हजारों कार्यकर्ताओं ने संभाला।
शिविर पण्डाल में ‘माँ’ भक्तों को पंक्तिबद्ध बैठाने तथा गुरुवरश्री के चेतनात्मक प्रवचन के उपरान्त क्रमबद्ध ढंग से गुरुचरणपादुकाओं को नमन कराने की व्यवस्था भी हजारों कार्यकर्ताओं ने पूर्ण की। आवासीय पण्डाल की व्यवस्था भी कार्यकर्ताओं ने बड़ी मुस्तैदी से निभाई।
हजारों कार्यकर्ताओं ने चारों तरफ शान्ति-सुरक्षा एवं पार्किंग व्यवस्था को उत्तम तरीके से सम्पन्न किया और दिन-रात बड़ी मुस्तैदी से कार्य किया। भोजन परिसर एवं शिविर पण्डाल के चारों ओर पूर्ण साफ-सफाई बनाए रखी गई। एक अनुमान के अनुसार, इस शिविर में कई लाख लोगों की उपस्थिति रही, किन्तु आश्चर्य और अफसोस की बात यह रही कि इसकी व्यवस्था संभालने के लिए पुलिस प्रशासन का एक भी प्रतिनिधि नहीं आया।
प्रथम दिवस-
इस शिविर में प्रथम दिन प्रातः आठ से नौ बजे तक मंत्रजाप और ध्यानसाधना का क्रम हुआ। अपराह्न दो से तीन बजे तक माता के भजन, भावगीत और जयकारों का कार्यक्रम रहा तथा सायं तीन से छः बजे तक परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के चेतनात्मक प्रवचन के उपरान्त दिव्य आरती, प्रसाद वितरण एवं प्रणाम का क्रम हुआ। आरती का नेतृत्व त्रिशक्तिस्वरूपा तीनों बहनों पूजा, संध्या एवं ज्योति योगभारती जी ने किया।
दूसरे दिन 10 फरवरी को प्रातः आठ बजे इच्छुक भक्तों को महाराजश्री ने निःशुल्क गुरुदीक्षा प्रदान की। लगभग 15 हजार लोगों ने दीक्षा ग्रहण की। दोनों दिन शिविर के कार्यक्रम का जीवन्त प्रसारण 02ः30 से 06ः00 बजे तक साधना चैनल पर किया गया।
वर्तमान समय में, पूरे विश्व की दिशाधारा सत्यधर्म से हटकर अधर्म की ओर बढ़ती जा रही है और अनीति-अन्याय-अधर्म का साम्राज्य उपस्थित होता जा रहा है। इन विपरीत परिस्थितियों में ‘माँ’ की आराधना आवश्यक है, क्योंकि वही आपको सुख-शान्ति प्रदान करने में सक्षम हें। वही हमारी जननी हें और हम उसके अंश हैं। हमारी मूल इष्ट वही हैं। यदि मनमाने ढंग से चलेंगे, तो समस्याएं बढ़ती चली जाएंगी। हर कार्य करने की ऊर्जा हमें उसी से प्राप्त होती है। हमारी मूल इष्ट वही हैं।
मेरा लक्ष्य भटकती हुई मानवता को सत्यधर्म की ओर मोड़कर ‘माँ’ की ओर अग्रसर करना है। हम अन्य देवी-देवताओं की उपेक्षा नहीं करते, किन्तु मूल इष्ट हमारी ‘माँ’ हें। हमारी आत्मा उसी की अंश है। जब तक आप इस तथ्य को नहीं समझेंगे, तब तक हजारों मन्दिर-मस्जिदों में भटकते रहेंगे और कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। परम सत्ता को ‘माँ’ के रूप में स्वीकार करना, जननी के रिश्ते को स्वीकार करना हमारा प्रथम कर्तव्य है।
भौतिक जगत् की माता करोड़ों मील दूर रहकर भी अपने पुत्र के दुःखों को महसूस करती रहती है। उसी प्रकार, प्रकृतिसत्ता को भी हमारा ऐहसास रहता है। वह हर जड़-चेतन में मौजूद है। आप भक्ति तो कर रहे हैं, किन्तु खाली भौतिक कामनाओं की पूर्ति के लिए कर रहे हैं। अपनी आत्मा से स्पर्श करना सीखो।
समाज में आज कुकुरमुत्तों की तरह कथावाचक पैदा हो गए हैं। वे सच्चे साधक नहीं हैं। हर उंगली में रत्नजड़ित अंगूठी पहनते हैं और अधर्मी-अन्यायियों की चौखट पर माथा टेकते हैं। समाज को लूटकर अपना वैभव बढ़ा रहे हैं। उनके हृदय पर न राम बैठे हैं और न कृष्ण। उनके विरुद्ध आवाज उठाने वाला कोई नहीं है। इस संस्कारधानी जबलपुर से इनके विरुद्ध आवाज उठनी चाहिये थी, किन्तु इसका दुर्भाग्य है, जो यहां के लोग कथावाचकों के जाल में फंसे हैं।
जिसके अन्दर साधनात्मक शक्ति नहीं है, उन्हें मैं पैर से ठोकर मारता हूँ। अनेक धनकुबेर मुझे कहते हैं कि हम उनके यहां आकर भोजन कर लें, उन्हें मंच पर बैठा लें, तो वे सारे शिविर का खर्च उठा लेंगे। अरे अन्यायियों, तुम मुझे खरीदना चाहते हो? मैं एक ऋषि था, ऋषि हूँ और ऋषि ही रहूंगा। मैं अपना, अपने परिवार का तथा अपने वाहन का व्यय स्वयं उठाता हूँ।
मेरे शिष्यों में परिवर्तन आ रहा है। यह एक ऐसा तूफान उठा है, जिसे कोई शक्ति रोक नहीं पाएगी। इसमें अधर्मी-अन्यायी धराशायी होते चले जाएंगे, किन्तु साधकों के लिए यह शीतल वायु का एक हल्का झोंका है। इसलिए, सत्यपथ पर चलने के लिए संकल्पित हों।
पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में पिछले सोलह वर्षों से श्री दुर्गा चालीसा का अखण्ड पाठ चल रहा है। उससे देश-विदेश में परिवर्तन आ रहा है। मेरे लाखों सक्रिय कार्यकर्ता शिष्य आज लोगों का दुःख दूर कर रहे हैं।
आपके हृदय से यह आवाज उठनी चाहिये कि हे माँ, आपसे जो मेरी दूरी बढ़ गई है, उसे मिटा दो! छोटा शिशु, अबोध बालक बनना सीखो। अपने सौभाग्य को सराहो कि आप ‘माँ’ की गोद में बैठे हो। आपको असीम आनन्द और शान्ति मिलेगी। किन्तु, इतना ही काफी नहीं है। झूठ बोलना बन्द करो और ईमानदारी का जीवन जियो और नशे-मांस का सेवन छोड़ो, अन्यथा ‘माँ’ की कृपा के पात्र नहीं बन पाओगे।
जबलपुर से मेरा विशेष रिश्ता जुड़ा है। पहला महाशक्तियज्ञ मैंने यहीं पर सम्पन्न किया था और मैंने घोषणा की थी कि मेरे हर महाशक्तियज्ञ में वर्षा होगी। यदि यह बात झूठ निकले, तो मैं अपने आपको साधनापथ से अलग कर लूँगा। आप लोगों में से अनेक इस बात के साक्षी हें कि मेरे द्वारा किए गए आठों महाशक्तियज्ञों में वर्षा हुई है। मैं समाज को लूटता नहीं, बल्कि उसके बीच स्वयं को लुटाता हूँ।
सच्चे गुरु के लिए सबसे बड़ा समर्पण शिष्यों का विश्वास है। यदि तुम्हें मेरा विश्वास है, तो मैं तुम्हें कभी भटकने नहीं दूंगा। मैं अन्य धर्मगुरुओं की तरह अपने शिष्यों को बांधकर नहीं रखता। यदि उन्हें कोई ऐसा गुरु मिल जाय, जिसके पास मुझसे अधिक साधनात्मक तपबल हो, तो बिना मेरी अनुमति के वे वहां पर जाने के लिए स्वतन्त्र हैं।
आजकल प्रयाग का महाकुम्भ चल रहा है। मैं यहां से पुनः आवाज उठाता हूँ कि यदि इस भूतल पर किसी धर्मगुरु के अन्दर कोई शक्ति है, तो मेरे साधनात्मक तपबल का सामना करे। समाज के बीच यह दर्शाएं कि उन्होंने अपने सूक्ष्मशरीर को जाग्रत् करके कारणशरीर को प्राप्त किया है, उनके अन्दर समाधि में जाने की क्षमता है तथा उन्होंने परमसत्ता के दर्शन प्राप्त किये हैं और उनकी पूर्ण कुण्डलिनी चेतना जाग्रत् है।
जिसके अन्दर ध्यान के माध्यम से समाज तक जाने की क्षमता नहीं, तो वह कैसा ब्रह्मर्षि? कैसा योगऋषि? और कैसा परमहंस?
प्रयाग में जाकर देखो। धर्मगुरुओं के कार्यक्रमों को टी.वी. के माध्यम से देखो। मैं तो ध्यानसाधना के माध्यम से बराबर देखता रहता हूँ। वे कहते हैं कि उन्होंने शून्य से शिखर की यात्रा तय की है। यदि उनमें हिम्मत है, तो जनता को शून्य से शिखर तक लेजाकर दिखाएं। पूरे महाकुम्भ में किसी भी धर्मगुरु ने साधारण जनता के विषय में नहीं सोचा कि गरीब लोगों का कल्याण कैसे होगा?
भ्रष्ट राजनेताओं ने देश को लूटकर अकूत धन-सम्पत्ति एकत्र कर ली है। नव्वे प्रतिशत नेता अन्यायी-लुटेरे हैं। मानवता तड़प रही है। लोग एक-एक दिन की व्यवस्था नहीं कर पाते। उनके पास मकान नहीं, कपड़ा नहीं और शिक्षा नहीं। आप लोग समाज की दुर्दशा को खुली आंखों से देखो और उसे मिटाने की सोचो। जहर खुद पिओ और समाज को अमृत पिलाओ।
बीज मंत्र बेचने वालों और तीसरी आंख वाले बाबाओं से तो डकैत अच्छे हैं। वे कहते तो हैं कि वे डकैत हैं, किन्तु ये अपने अपको ब्रह्मर्षि और परमहंस कहकर समाज को लूट रहे हैं। आखिर, इन्होंने समाज और मानवता के लिए क्या किया?
शराबियों से मेरा विरोध नहीं है। उन्हें सुधारना मेरा लक्ष्य है। मेरा विरोध तो उनसे है, जो समाज में शराब का जहर बांट रहे हैं। भगवती मानव कल्याण संगठन उनकी नाक में नकेल अवश्य डालेगा।
‘माँ’ की भक्ति से काम-क्रोधादि स्वतः मिटते चले जाते हैं। एक बार निर्णय कर लो कि सबसे पहले हमें अपने आपसे लड़ना है और अपने आपको जीतना है।
नारी को आज उपभोग की वस्तु समझा जाता है। विज्ञापनों में उससे अंग प्रदर्शन कराया जाता है। तथ्य यह है कि नारी पुरुष की शक्ति है। माता भगवती सीता जी ने श्री राम के अन्दर शक्ति पैदा करके रावण को मरवाया था। वह यदि लक्ष्मण रेखा न लांघतीं, तो आज रामचरितमानस से हमें कुछ शिक्षा न मिलती। धिक्कार है इस मनुष्य समाज को, जो हमेशा से नारी समाज का अनादर करता रहा है। जब तक नारी का सम्मान नहीं होगा, तब तक देश का उद्धार नहीं होगा।
लड़कियां जीन्स न पहनें, इसके लिए जीन्स की होली जलाई गई। ऐसा लड़कों के लिए क्यों नहीं? लड़के-लड़की में भेद बन्द करो। मैंने ‘माँ’ से मांग की थी कि मेरे यहां जब भी सन्तान का योग हो, केवल पुत्रियों का ही जन्म हो। और, मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मेरे यहां तीन पुत्रीरत्न ही हैं।
मैं इस मंच से मध्यप्रदेश सरकार से अपील करता हूँ कि पूरे प्रदेश को नशामुक्त कर दो। आने वाले चुनावों में एक पैसा भी खर्च किये बिना उनकी सरकार स्थायी हो जाएगी। यही अपील मेरी विपक्षी दलों से भी है कि यदि उनमें से कोई ऐसा कर देगा, तो उसकी स्थायी सरकार बनेगी। यदि ऐसा नहीं करते, तो मैं सारी पार्टियों को खोखला करता चला जाऊंगा।
हमारे भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं ने पिछले छः महीनों में अवैध शराब बिक्री के डेढ़ सौ से अधिक प्रकरण पकड़वाए हैं। अन्त में हम शराब के मान्यताप्राप्त ठेके भी बन्द कराएंगे और यदि सरकार उन्हें बन्द नहीं करती, तो उसे धूल चटाएंगे।
(तदुपरान्त, सबको हाथ उठाकर पूर्ण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त, चरित्रवान् एवं भ्रष्टाचारमुक्त जीवन जीने का संकल्प दिलाया गया।)
आपका गुरु भी वैसा जीवन जीता है। सन्तानोत्पत्ति के उपरान्त, मैं सपत्नीक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता हूँ। अपने आपको ब्रह्मचारी कहने वाले आज अपने दिल में झांककर देखें कि वे कैसे ब्रह्मचारी हैं? मैंने विज्ञान को भी चुनौती दी है। उसके पास वे उपकरण हैं, जिनसे इस बात का परीक्षण किया जा सकता है। वैज्ञानिक आएं और सारे धर्मगुरुओं का परीक्षण करें। उसके लिए मैं सबसे पहले आगे आने को तत्पर हूँ।
मैं आज ऐसे धर्मयोद्धा तैयार कर रहा हूँ, जिनमें से हरेक हजारों अन्यायियों पर भारी पड़ेगा। मेरे 99 प्रतिशत शिष्य भटक नहीं सकते। मैं आया हूँ, तो समाज में परिवर्तन डालकर जाऊँगा। इस काल में जो व्यक्ति ‘माँ’ की भक्ति नहीं करेगा, वह पतन के मार्ग पर अवश्य जाएगा।
मैं जनता को ‘माँ’ से जोड़ने आया हूँ। मन्दिरों में भौतिक वस्तुओं के लिए क्यों गिड़गिड़ाते हो? ‘माँ’ से भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति मांगो। प्रार्थना करो कि हे माँ, मेरे लिए जो हितकारी हो, वही देना।
मैं एक सामान्य से कक्ष में रहता हूँ। मेरा एक लक्ष्य है कि ‘माँ’ से जो कड़ी जुड़ी है, उसमें कभी जंग न लगे। ‘माँ’ की ऐसी कृपा चाहता हूँ। मैंने आपको एक अत्यन्त सहज एवं सरल मार्ग प्रदान किया है। ‘माँ’ की साधना से सच्ची और कोई साधना नहीं है। अपने घर को ‘माँ’ का मन्दिर बना लो। एक तड़प ‘माँ’ के प्रति पैदा करो। अबोध बालक बनो। आपका जीवन सतोगुणी होता चला जाएगा।
समाज की दशा आज बड़ी विचित्र है। पुत्र यदि बलात्कार करके जेल चला जाय, तो उसे छुड़ाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देगें और पानी की तरह पैसा बहाएंगे। किन्तु, यदि पुत्री के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध ऐसा हो जाय, तो उसे हेय दृष्टि से देखा जाता है। अरे, दोषी पुत्र को हेय दृष्टि से क्यों नहीं देखते?
धर्माचार्य यदि चाहें, तो बड़ी जल्दी परिवर्तन आ सकता है। उन्हें कम से कम एक-एक ईमानदार शिष्य को चुनाव जिताकर संसद में भेजना चाहिये, किन्तु वे इस दिशा में कुछ सोचते ही नहीं। शेर की खाल पहनकर ऐसे सैकड़ों सियार टहल रहे हैं। या तो शेरदिल बनो, नहीं तो शेर की खाल उतारकर फेंको और कहो कि हम सियार हैं।
भविष्य की चिन्ता छोड़ो। वर्तमान की चिन्ता करो और उसे संवारो। सत्कर्म करोगे, सन्मार्ग पर चलोगे, तो भविष्य तुम्हारा गुलाम होगा। सत्कर्म का फल तुम्हें ही मिलेगा। उसे कोई छीन नहीं सकता।
आप लोग आश्रम में आएं और योग सीखें। वहां पर निःशुल्क योग सिखाया जाता है। भोजन और आवास व्यवस्था भी सदैव निःशुल्क रहती है। मैं स्वयं एक योगी हूँ। मेरे बीस घण्टे प्रतिदिन समाज को समर्पित रहते हैं, मामूली सा भोजन करता हूँ और मात्र 3-4 घण्टे की नींद लेता हूँ। रात्रि में एक कम्बल का उपयोग करता हूँ और हर मौसम में ये ही वस्त्र धारण करता हूँ, जो इस समय पहने हुए हूँ। नींद या आलस्य मुझे कभी घेर नहीं सकते। मेरे लिए सभी जाति-धर्मों के अमीर-गरीब लोग समान हैं।
‘माँ’ की कृपा निरन्तर बरस रही है। सत्य की चेतना तरंगों के फलस्वरूप, मेरे शिष्यों में सुधार का क्रम जारी है। आपका आभामण्डल प्रभावक हो रहा है। अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध उठ खड़े हों। यही ‘माँ’ की भक्ति है। जागो और ‘माँ’ की भक्ति करो। आपके द्वारा की गई एक भी स्तुति अथवा मंत्र कभी व्यर्थ नहीं जाएगा। कर्मवान् बनो और रोज बैठकर समीक्षा करो। यदि कोई पापकर्म हो गया है, तो हृदय से प्रायश्चित करो। ‘माँ’ क्षमा कर देंगी। जो लोग यहां बैठकर नशा छोड़ने की प्रतिज्ञा कर लेंगे और आगे नशा नहीं करेंगे, उनके द्वारा अब तक किये गए नशे के पाप से मैं उन्हें पूर्णतया मुक्त कर दूंगा।
दानी बनकर किसी चेतनावान् गुरु या मंदिर को दान मत दो। वहां तो समर्पण होता है। कोई भी इन्हें दान नहीं दे सकता। एक ऋषि को तुम क्या दोगे? दान तो अपने से गरीब को दिया जाता है। उन्हें अवश्य दो। उससे तुम्हारा कल्याण हो जाएगा।
आजकल मन्दिरों के पुजारी चोरों की तरह धन को छुपाते फिरते हैं, जबकि लोग भूखों मर रहे हैं। इन पर छापे पड़ने चाहियें और बरामद किये गए धन को जब्त करके समाजकल्याण के लिए खर्च किया जाना चाहिये। धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थाओं की आय पर भी टैक्स लगाया जाना चाहिये।
अफजल गुरु को आज फांसी दी गई है। उसे एक लम्बे समय तक मेहमान बनाकर दामाद की तरह रखा गया। इसी प्रकार, कसाब के ऊपर करोड़ों रुपया खर्चा किया गया और उसे चोरों की तरह फांसी दी गई। धिक्कार है कि हमारे राजनेता इतनी भी सुरक्षा व्यवस्था नहीं बना सके कि मीडिया को बुलाकर उसे खुले आम फांसी देते।
कोई भी धर्म अनीति-अन्याय-अधर्म करना नहीं सिखाता। आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता। अब तो हिन्दू धर्म को भी आतंकवादी कहा जाने लगा है! अरे, कोई हिन्दू आतंकवादी नहीं हो सकता। दो-चार हिन्दू यदि भटक गए, तो उन्हें दण्डित करो।
मैं अन्ना हजारे के उपवास को पसन्द नहीं करता। इससे सुधार नहीं आ सकता। गधों के सामने बीन बजाने से वे नाचेंगे नहीं। उन्हें तो धूल चटाना ही पड़ेगा। युवा लोग संकल्प लें कि वे सन्मार्ग पर चलेंगे और आने वाले चुनावों में किसी भी भ्रष्टाचारी, दुराचारी, बेईमान या नशेड़ी को अपना वोट नहीं देंगे। मैं इस मंच से घोषणा करता हूँ कि एक दिन मेरा शक्तिसाधक शिष्य लाल किले पर तिरंगा फहराएगा और संविधान की रक्षा करेगा। वह सच्चरित्र होगा और कभी भी नशे-मांस का सेवन नहीं करेगा।
प्रकृति का मूल शब्द ‘माँ’ है और दूसरा ‘ॐ’ है। इनका क्रमिक उच्चारण करो और कुछ देर बाद ध्यान में बैठो। अपने आज्ञाचक्र पर ध्यान लगाओ और शून्य में जाने का प्रयास करो। सुषुम्ना नाड़ी पर पड़े आवरण हटते चले जाएंगे।
एक बार ऐसा धर्मसम्मेलन होना चाहिये, जिसमें समस्त धर्मगुरुओं का सत्यपरीक्षण हो कि कौन ध्यान के द्वारा समाधि में जा सकता है? किसने अपने सूक्ष्मशरीर को जाग्रत् करके कारणशरीर को प्राप्त किया है? किसकी कुण्डलिनी पूर्ण जाग्रत् है? किसने परमसत्ता के दर्शन प्राप्त किये हैं? और कौन अपने साधनात्मक तपबल से असम्भव से असम्भव कार्य करने की क्षमता रखता है? इससे वास्तविक धर्मगुरु निकलकर सामने आएगा। फलस्वरूप, ढोंगी-पाखण्डियों के द्वारा समाज का शोषण नहीं हो सकेगा तथा सत्यधर्म की स्थापना हो सकेगी।
वह ज्ञान किस काम का, जिसके द्वारा समाजकल्याण न हो। ‘माँ’ की एक आरती आपकी समस्या को दूर कर देगी। जो आपको बड़ी-बड़ी साधनाओं से प्राप्त नहीं होता, वह यहां पर दिव्य आरती से प्राप्त हो जाएगा। मन-मस्तिष्क को एकाग्र करके चेतन होकर आरती करोगे, तभी लाभ होगा।
मध्यप्रदेश में जितनी आत्महत्यायें होती हैं, उनमें जबलपुर जिला सबसे अग्रणी है। मेरे कई ऐसे शिष्य हैं, जो मुझसे जुड़ने से पहले आत्महत्या करने का निर्णय ले चुके थे, किन्तु मुझसे जुड़कर उन्होंने निर्णय बदला और अब जनकल्याण में लगे हैं। अब जबलपुर में भी कम आत्महत्याएं होंगी।
पारस तो मात्र लोहे को सोना बनाता है, किन्तु मैं अपने शिष्यों को ऐसे धर्मयोद्धा के रूप में तैयार कर रहा हूँ, जो अपने सम्पर्क में आने वालों को भी धर्मयोद्धा बनाएंगे। रक्तबीज ने अपने समान राक्षस तैयार किये थे, तब मैं अपने समान ऐसे शिष्य क्यों नहीं पैदा कर सकता?
मैं अपने परम सिद्धाश्रम धाम वापस नहीं जाऊँगा, बल्कि जब तक यहां पर ‘माँ’ की ज्योति जलेगी, मैं युग-युगान्तर तक यहीं पर पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में रहूँगा।
मैं सभी साधु-सन्तों का सम्मान करता हूँ, किन्तु इनमें जो बेईमान-लुटेरे हैं, उन्हें पैर से ठोकर मारता हूँ। प्रयाग महाकुम्भ में मैं इसलिए नहीं जाता, क्योंकि वहां पर कोई कथित योगी अपना हाथ ऊपर किये खड़ा है, तो कोई कांटों के ऊपर लेटा है, कुछ को एक लंगोटी लगाने में भी शर्म आती है। यदि इन नागाओं का परीक्षण कराया जाय, तो इनमें 99 प्रतिशत आडम्बरी, लोभी-लम्पट और क्रोधी-व्यभिचारी निकलेंगे।
कल गुरुदीक्षा होगी। दीक्षा का कोई शुल्क नहीं होगा। दीक्षा वे ही लोग लेंगे, जो पूर्ण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् जीवन जीने का संकल्प लेंगे।
अब तीन बार शंखध्वनि की गई। तदुपरान्त, दिव्य आरती सम्पन्न हुई, जिसका नेतृत्व त्रिशक्तिस्वरूपा तीनों बहनों पूजा, संध्या तथा ज्योति योगभारती जी के द्वारा किया गया। पुनः तीन बार शंखनाद के उपरान्त सबने गुरुचरणपादुकाओं को नमन करके प्रसाद ग्रहण किया।
द्वितीय दिवस-प्रथम सत्र (गुरुदीक्षा):-
अगले दिन 10 फरवरी को प्रातः आठ बजे से पूर्व ही सभी दीक्षार्थी शिविर पण्डाल में अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे। नियत समय पर जयकारों एवं शंखध्वनि के बीच परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का शुभागमन हुआ। सर्वप्रथम, आपश्री ने अपना पूर्ण आशीर्वाद समर्पित करके एक संक्षिप्त चिन्तन दिया-
मानव जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण क्षणों में से वे क्षण होते हैं, जब कोई व्यक्ति किसी चेतनावान् गुरु से दीक्षा प्राप्त करता है। इस मानव जीवन का जन्म ही, वास्तव में, यहीं से होता है। सच्चा जीवन यहीं से प्रारम्भ होता है। आज से आपको अपने अन्दर सतयुग की स्थापना करनी है। एक संकल्प लेने की जरूरत है।
गुरु-शिष्य का रिश्ता सबसे महत्त्वपूर्ण है। माता-पिता दूसरे नम्बर पर आते हैं। इस धरती पर गुरु से बड़ा हितैषी कोई नहीं है। माता-पिता को तो अपेक्षा रहती है कि पुत्र बड़ा होकर उन्हें संभालेगा, किन्तु गुरु को कोई अपेक्षा नहीं रहती।
गुरु शिष्य को, गरीब-अमीर अथवा ऊंच-नीच का ध्यान न देकर, पूर्णत्व से स्वीकार करता है। अब शिष्य को सोचना है कि वह गुरु को किस प्रकार स्वीकार करता है? उसे सन्मार्ग पर सतत चलने की जरूरत है। इससे जन्म-दर-जन्म परिवर्तन आता चला जाएगा।
इन क्षणों को जीवनपर्यन्त सदैव याद रखना। यहां पर कोई दक्षिणा नहीं है। सबसे बड़ी दक्षिणा यही है कि आप लोग पूर्ण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् जीवन जियें और विश्वासघात न करें। अपने गुरु को कभी धोखा न दें, झूठ न बोलें। गुरु पूर्ण समर्पण चाहता है। अपने निर्मल पवित्र हृदय का पूर्ण साम्राज्य दे दें। यदि ऐसा कर देंगे, तो मैं आपके हृदय में ‘माँ’ की स्थापना कर दूंगा।
स्वयं मैंने भी यही यात्रा तय की है। इस रिश्ते पर कभी दाग न लगे। यदि आपने भी ऐसा कर लिया, तो आपका कभी भी पतन नहीं होगा। सतत उत्थान होता चला जाएगा। जितनी आपको मेरी आवश्यकता है, उससे हजार गुनी मुझे आपकी आवश्यकता है, अपने लिए नहीं, बल्कि समाजकल्याण के लिए।
जिस यात्रा का लक्ष्य मैंने ठाना है, वही लक्ष्य आपका भी होना चाहिए। हर समय ध्यान में यही लक्ष्य रहना चाहिये। आपकी आने वाली पीढ़ियां यह जानकर गर्वान्वित होंगी कि आपने कभी मुझसे दीक्षा ली थी।
अपने आपको पहचानो। आप सभी अलौकिक हो, दिव्य हो। आप सभी उस परमसत्ता के अंश हो, जो एक क्षण में सृजन एवं विनाश कर सकती है। अटूट आत्मशक्ति प्राप्त कर लो। ऐसी संकल्पशक्ति प्राप्त करो, जिसमें कोई विकल्प न हो।
अपने आहार-व्यवहार में परिवर्तन करते चले जाओ। खजूर नहीं, अपने आपको वटवृक्ष बनाओ। खजूर तो खाली ऊंचाई की ओर बढ़ता है, किन्तु वटवृक्ष हर क्षण अपनी जटाएं जमीन में छोड़कर नए वटवृक्ष तैयार करता है और इस प्रकार चारों तरफ फैलकर शीतल छाया प्रदान करता है।
मैं अपने शिष्यों को अपने हृदय में धारण कर लेता हूँ और जिस प्रकार आप टी.वी. खोलकर देखते हैं, उसी प्रकार मैं जब चाहूँ, अपने शिष्यों के बारे में कोई भी जानकारी प्राप्त कर सकता हूँ।
जब गुरु मंत्रों का उच्चारण करता है, तो वे उत्कीलित हो जाते हैं। (अब धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज को अपना धर्मगुरु स्वीकार करने तथा जीवनभर पूर्ण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् जीवन जीते हुये भगवती मानव कल्याण संगठन के आदेशों-निर्देशों के पालन करने का संकल्प दिलाया गया।)
अब तीन-तीन बार ‘माँ’– ‘ॐ’ बीजमंत्रों का उच्चारण कराया गया। ये दोनों अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बीजमंत्र हैं। इनमें पूरी प्रकृति समाहित है। इनका उच्चारण करने से बाहर का वातावरण शान्त होता चला जाता है।
तत्पश्चात् विशिष्ट मंत्रों का उच्चारण कराया गया-
ॐ हं हनुमतये नमः
ॐ भ्रं भैरवाय नमः
ॐ गं गणपतये नमः
ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नमः
ॐ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः
अज्ञानता में हुई कोई भी गलती क्षम्य होती है, किन्तु जानबूझकर की गई गलती के लिए दण्ड मिलता है। ‘माँ’ कभी भी किसी का कोई अहित नहीं करतीं।
एक साधक सारे साधु-सन्तों से श्रेष्ठ होता है और गृहस्थ साधक की तो किसी से कोई तुलना ही नहीं है। आपके घर में हिन्दुत्व की विचारधारा का जीवन होना चाहिये। यदि कोई व्यक्ति नशे-मांस का सेवन करके आए, तो उसे घर में प्रवेश न करने दें, भले ही वह आपका दामाद हो।
सद्गुरुदेव महाराज ने पुनः अपना पूर्ण आशीर्वाद समर्पित किया। तत्पश्चात्, चरणपादुकाओं का नमन-वन्दन हुआ और सभी दीक्षित शिष्यों को निःशुल्क शक्तिजल वितरित किया गया तथा दीक्षा से सम्बन्धित एक पत्रक भरकर लौटाने के लिए दिया गया।
इस अवसर पर शक्तिस्वरूपा बहन पूजा योगभारती जी ने कहा कि आप लोग बैठकर मंत्र जाप करते रहें तथा गुरुवरश्री की छवि को निहारते रहें। पता नहीं यह सौभाग्य फिर कभी मिलेगा या नहीं। जितना मंत्र जाप करेंगे और गुरुवर की छवि को मन-मस्तिष्क में बैठाएंगे, उतना ही आशीर्वाद एवं ऊर्जा मिलेगी। मर्यादित जीवन जियें और अपने आपको आत्मकल्याण एवं समाजकल्याण के लिए समर्पित कर दें। सायंकाल की दिव्य आरती को अवश्य लें।
द्वितीय दिवस-द्वितीय सत्र
आज मौनी अमावस्या का महत्त्वपूर्ण दिन है। आप सभी को आशीर्वादस्वरूप इसी स्थल पर प्रयाग महाकुम्भ और नर्मदा में स्नान का पुण्य मिलेगा। यहां पर ‘माँ’ के आशीर्वाद से समस्त तीर्थों का फल प्राप्त हो जाता है। हमें सजगता के साथ सत्यपथ पर चलते हुए अपने अन्दर परिवर्तन लाना है।
मानव जीवन देवदुर्लभ है, क्योंकि इसी में जीवन्मुक्ति के पथ पर बढ़ सकते हैं। इसमें समस्त ब्रह्माण्ड समाहित है। महिषमर्दिनी की भक्ति सबसे अधिक फलदायी है। देवाधिदेव भी उसे ‘माँ’ कहकर पुकारते हैं। ‘माँ’ कहीं पर भी कभी भी कोई भी स्वरूप धारण कर सकती हैं। यह बहुत बड़ी भ्रान्ति है कि वह त्रिदेव से उत्पन्न हुई हैं। आप इस सोच को बदलें।
इस कलिकाल में अत्यन्त विषम परिस्थिति है। अपने आपको जगाओ। संकल्प करो कि युग परिवर्तन लाकर रहेंगे। महिषमर्दिनी को ‘माँ’ के रूप में मानो। उसमें ‘माँ’ की ममतामयी झांकी देखो। मन-मस्तिष्क पर सदैव उसका स्मरण बनाए रखें। साधनाक्रम को कम से कम एक बार नित्य अवश्य करें। इससे आपके घर में सुख-शान्ति-समृद्धि आएगी। आप सत्यपथ पर चलेंगे, तो बच्चे भी संस्कारवान् बनेंगे।
मूर्ति पूजा का विरोध करने वाले घोर अज्ञानी हैं। अरे, इससे सशक्त और कोई माध्यम नहीं है। मूर्ति को जीवन्त किया जा सकता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने मूर्ति पूजा करके सब कुछ प्राप्त किया और समाज को दिशा दी। अटूट निष्ठा और विश्वास होना चाहिये। बिना इसके सत्यपथ पर नहीं बढ़ सकते।
अपने बच्चों को भ्रान्तियों से बचाओ। लोग ज्वारों पर अण्डा-शराब चढ़ाते हैं। यह परम्परा से चला आ रहा है। इसे बन्द करो। इससे कोई अनिष्ट नहीं होगा। प्रसाद सदैव सात्त्विक होना चाहिए। उन मन्दिरों के पुजारी जल्लाद हैं, जहां पर बलि दी जाती है। ये तो सात्त्विक देवियां हैं। भगवान् शिव ने समाज रक्षा के लिए हलाहल पिया और उसे कण्ठ से नीचे नहीं जाने दिया। लोग शिव पर गांजा-धतूरा चढ़ाते हैं! कोई भी देवी-देवता मांस और शराब सेवन नहीं करते। लोगों को समझाओ और इसे बन्द कराओ।
आज कथावाचकों के द्वारा धर्मग्रन्थों के उथलेपन का ज्ञान दिया जा रहा है। सही ज्ञान दिया गया होता, तो समाज की यह दुर्दशा न होती। कभी भारतीय परिवार सर्वश्रेष्ठ होते थे, किन्तु आज की एक बैडरूम की संस्कृति ने बड़ा भारी पतन किया है। दाई-आया को बच्चा सौंप दिया जाता है और माता-पिता स्वयं मौज-मस्ती करते हैं। यह बहुत ही गलत है। कम से कम 13-14 साल की उम्र तक बच्चे को माँ-बाप में से एक के पास लेटाया जाना चाहिये।
पति-पत्नी का रातभर एक बिस्तर पर लेटना अधर्म है। बच्चों को यदि आप दूसरे कमरे में लेटाते हो, तो बड़े होकर वे तुम्हें वृद्धाश्रम भेजते हैं, तो क्या गलत है? पहले खुद को, अपने घर को सुधारो। मैं स्वयं ऐसा जीवन जीता हूँ। इस संसार में यदि सबसे सुखी जीवन है, तो मेरा जीवन है। वासना में इतना मत डूब जाओ कि पतन हो जाय। धीरे-धीरे अभ्यास करो।
एक राजनेता कहता है कि कोई भी व्यक्ति ब्रह्मचर्य रख ही नहीं सकता। अरे, ये भ्रष्ट विकारी अज्ञानी नेता ऐसा ही कहते रहेंगे। उन्हें नहीं मालूम कि भीष्म पितामह इसी देश में पैदा हुए थे, जो आजीवन अखण्ड ब्रह्मचारी रहे।
अपने बच्चों को सदैव धर्ममार्ग में बढ़ाओ। यह आपकी पूजा-पाठ से भी अधिक आवश्यक है। अपने भारतीय पहनावे पर इतना गर्व करो कि विदेशी लोग भी हमारे कपड़े पहनने को ललचाएं। अपनी गृहस्थी को संवारो। आज 90 प्रतिशत बच्चों में शिक्षा के प्रति अरुचि बढ़ रही है। यह माता-पिता के खानपान और आचार-व्यवहार में गिरावट के कारण हो रहा है। आहार-व्यवहार को सुधारो। इसके लिए मन पर अंकुश जरूरी है। उसे स्वतंत्र मत छोड़ो।
पुस्तकें पढ़कर कुण्डलिनी जाग्रत् नहीं की जा सकती। मूलाधार चक्र पर ध्यान लगाना जरूरी नहीं। आज्ञाचक्र राजाचक्र है। उसे आधार बनाना पड़ेगा। यदि उस पर पकड़ हो जाय, तो अन्य चक्रों में स्वतः थिरकन होने लगेगी। मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्रों पर जाते ही वासना प्रबल होने लगती है। उससे भटकें नहीं। उस समय अपने गुुरु का स्मरण करने की जरूरत है। ‘माँ’ और अन्य शक्तियों को याद करें, अपने मन को एकाग्र करें तथा विकारयुक्त विचारों को बन्द करके दिशा बदलें।
परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं। दीन-दुखियों की सहायता करो। ज्ञान को भरपूर बांटो। वह बांटने से कम नहीं होता। छुआछूत को मानना सबसे बड़ा अपराध है। इससे ऊपर उठो। ऐसी खाइयों को पाटो। कल वहां पर आपका जन्म होगा, तो आपको वैसा व्यवहार मिलेगा। मैंने कभी भी छुआछूत को नहीं माना। मेरा धर्म नष्ट नहीं हुआ और न ही मेरी साधना नष्ट हुई, बल्कि मुझे ‘माँ’ की और अधिक कृपा प्राप्त हुई है।
आज अधिकारी लोग भ्रष्टाचार की चरम सीमा पर हैं। इस शिविर पण्डाल के पीछे अनाज के कितने बोरे सड़ रहे हैं। और, लोग भूखों मर रहे हैं। क्या कोई भी राजनेता इसे देखने के लिए नहीं है? सब समाज को नोचकर खा रहे हैं। मीडिया भी ध्यान नहीं देता। हमें सिखाया जाता था कि खाने की थाली में अन्न का एक दाना छोड़ना भी पाप है। जबलपुर के कार्यकर्ताओं को मेरा आदेश है कि इस सड़ रहे अनाज की शिकायत ऊपरी स्तर पर करें और अपराधियों को कटघरे में खड़ा कराएं।
पुलिस प्रशासन गिरावट के निम्नतम स्तर पर पहुंच चुका है। गरीब व्यक्ति को देखकर उसे माँ-बहन-बेटी की गाली सुनाता है, जब कि उन्हीं के द्वारा भ्रष्ट नेताओं और बेईमान लोगों को सम्मान के साथ बैठाया जाता है। आप अपने बच्चों को बताओ कि यदि कभी वे उस पद पर जाएं, तो कभी भी ऐसा न करें।
यदि जनता को नशामुक्त कर दिया जाय और भ्रष्टाचार बन्द कर दिया जाय, तो यह देश पुनः सोने की चिड़िया बन जाएगा, भले ही विदेश से काला धन वापस आए या नहीं। किन्तु, आज अधिकारी प्रायः नशे में धुत्त रहते हैं, शाम होते ही पैक चढ़ाते हैं और होटलों में रंगरेलियां होती हैं।
सारे अधिकारियों और बेईमानों की मिलीभगत है। यह कलियुग का प्रभाव है। इसे दूर करने के लिए ‘माँ’ को पुकारना होगा। इसके लिए मैंने तीन धाराएं प्रदान की हैं- ‘माँ’ की ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम, समाज सुधार के लिए भगवती मानव कल्याण संगठन और राजनैतिक सुधार के लिए राजनैतिक दल भारतीय शक्ति चेतना पार्टी। मेरा बार-बार कहना है कि स्वयं मुझे कभी भी कोई चुनाव नहीं लड़ना है।
जनजागरण का यह प्रवाह अब बढ़ता जाएगा। हमें कभी भी कोई गर्व या अहंकार नहीं करना है। सदैव तनावरहित रहो। तनाव तो अब उन भ्रष्ट राजनेताओं और अधिकारियों को आना है, जिन्हें कालकोठरियों में जाना पड़ेगा।
हमें अपनी चेतना के बल पर अनीति-अन्याय-अधर्म को समाप्त करना है। आपको ध्वजदण्ड इसीलिए दिया गया है। अपनी रक्षा खुद करना सीखो। पुलिस प्रशासन का कार्य भी तुम्हें ही संभालना है। इस अपार जनसमुदाय के बीच पुलिस का एक कुत्ता भी नजर नहीं आता। क्या इस समय पुलिस की कोई जिम्मेदारी नहीं है? मैंने अपने मंच पर किसी बेईमान को स्थान नहीं दिया है। यदि यहां पर नाच-गाना होता, कोई फिल्मी अभिनेत्री आई होती या कोई बेईमान राजनेता आता, तो पुलिस वाले उनके पीछे दुम हिलाते घूम रहे होते।
भ्रष्ट राजनेता को कभी वोट मत दो, चाहे वह आपका बाप ही क्यों न हो। हम दुःख सह लेंगे, किन्तु आने वाली पीढ़ी को नहीं सहने देंगे। यदि आपने एक जीवन ऐसा जी लिया, तो कभी भी तुम्हारा पतन नहीं होगा।
यदि किसी की आत्महत्या करने की स्थिति आ जाय, तो एक बार मेरे आश्रम आजाओ। तुम्हारे भीतर निश्चित रूप से परिवर्तन आएगा।
धर्मगुुरु और मंत्री यदि चाटुकारिता की भाषा बोलने लगें, तो वहीं से पतन शुरू हो जाता है।
आजकल हर क्षेत्र में घोटाले हो रहे हैं। यदि यही चलता रहा, तो समाज कीड़े-मकोड़ों का जीवन जियेगा। भारत भूमि हमेशा से धर्मधुरी रही है। यह हमारा परम सौभाग्य है कि हमने यहां पर जन्म लिया है। ‘माँ’ को निरन्तर याद करते रहो। इसी से आपको आपकी समस्याओं का समाधान मिलेगा। अनीति-अन्याय-अधर्म के धन से मालपुआ खाना पाप है। इससे अच्छा तो नमक-रोटी खाना है या भूखों मर जाना बेहतर है। जो कुछ ‘माँ’ ने दिया है, उसे ही सौभाग्य समझो और सन्तोष का जीवन जिओ। यही ‘माँ’ की भक्ति है। ‘माँ’ की भक्ति से ही फिर कबीर, तुलसी और रैदास यहां पर उत्पन्न होंगे।
बड़ी वेदना होती है, जब छोटे-छोटे बच्चे मेरे पास आश्रम में आकर गिड़गिड़ाते हैं कि गुरु जी, हमारे माँ-बाप का नशा छुड़वा दो।
(हाथ उठवाकर संकल्प कराया गया कि विवाहपूर्व ब्रह्मचर्य, विवाहोपरान्त एक पति/एक पत्नी व्रत, नशा-मांसाहारमुक्त और भ्रष्टाचारमुक्त जीवन जियेंगे।)
इस अवसर पर कुछ आगामी शक्ति चेतना जनजागरण शिविरों की घोषणा भी की गई, जो निम्नवत् हैः
शारदीय नवरात्र में पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में त्रिदिवसीय शिविर- दिनांक 12,13,14 अक्टूबर 2013, बांदा (उ.प्र.) में द्विदिवसीय शिविर- दिनांक 07-08 दिसम्बर 2013, छत्तीसगढ़ में द्विदिवसीय शिविर- दिनांक 15-16 फरवरी 2014, फरवरी 2015 में महाशंखनाद जनचेतना रैली पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम से दिल्ली जाएगी, जो निर्णायक होगी।
मध्यप्रदेश में 2013 के चुनावों में भारतीय शक्ति चेतना पार्टी अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारेगी। यदि सत्ताधारी पार्टी प्रदेश को नशामुक्त करने की घोषणा करे, तो उसके द्वारा कोई उम्मीदवार नहीं उतारा जाएगा। विपक्ष का भी आवाहन है कि यदि वे यह संकल्प ले लें कि सत्ता में आने के तीन महीने के भीतर प्रदेश को नशामुक्त घोषित कर देंगे, तो उनकी गद्दी सुनिश्चित कर दी जाएगी।
वह दिन अवश्य आएगा, जब प्रदेश और केन्द्र पर शक्ति साधक सत्ता संभालेंगे। तब लोग देखेंगे कि सत्ता कैसे चलाई जाती है।
आज गोशाला के नाम पर भी पैसा खाया जाता है। लोग गोमाता के मुंह से चारा छीनकर खाते हैं। गोशाला हेतु सरकार से अनुदान लेने के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है। इसके लिए कागजात मुझे भी भेजे गए थे और कहा गया कि डी.एम. को दस हजार रुपये देने पड़ेंगे। मैंने कहा कि ऐसे डी.एम. को मैं दस जूते मारूंगा और मैंने तैयार किए गए कागज उठाकर फाड़ दिए।
गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले एक कथित योगगुरु के अनुयायियों का मेरे एक शिष्य के पास फोन आया कि वे उस योगगुुरु के आदमी हैं। अरे, जब उस योगगुरु ने जनाने कपड़े पहन लिए, तो स्वाभाविक ही अनुयायी उसके आदमी हो गए। वहीं मेरे शिष्य कहते हैं कि वे योगिराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के शिष्य हैं।
उस योगऋषि का गुरु खो गया, तो कितने शिष्यों को उसने निर्देश दिया कि उन्हें खोजो? अखबार में एक दिन केवल एक हल्का सा समाचार आया और उसके बाद बात दब गई। जो योग के नाम पर लोगों के रोग ठीक करता हो, वह अपने गुरु के रोग को क्यों नहीं ठीक कर सका? वह कभी गंगा को शुद्ध करने की बात करते हैं। अरे, पहले अपने हृदय को तो निर्मल कर लो।
उसके द्वारा योगशिविर लगाए गए और टिकट बेचे गए। अमीरों को आगे बैठाया गया और गरीब बेचारे पीछे रहे। जिनके पास पैसे नहीं थे, उन्हें प्रवेश ही नहीं मिला। इस प्रकार, योग के नाम पर समाज को जमकर लूटा गया, बेहिसाब पैसा इकठ्ठा किया गया और फिर भी कोई टैक्स नहीं। एक व्यक्ति लाखों रुपये खर्च करके और रात-दिन पढ़ाई करके डॉक्टर बनता है। उस पर टैक्स लगाया जाता है। तब ऐसे योगऋषि पर टैक्स क्यों नहीं?
ये योगऋषि स्वयं काले धन पर बैठे हैं और कालाधन विदेश से वापस लाने की बात करते हैं। इन्हें स्वयं को राष्ट्रनायक कहलवाते शर्म नहीं आती। इन्होंने भ्रष्ट राजनेताओं और बेईमानों का अपने मंच पर इतना सम्मान किया, जितना कभी अपने बाप का भी नहीं किया होगा। ऐसे भ्रष्ट धर्मगुरुओं के विरुद्ध आवाज बुलन्द करो।
तलैया भी जब बरसात में भर जाती है, तो बाहर फैलने लगती है। इसी तरह तुम भी पैसे को समाजसेवा में लगाओ। अस्पतालों में जाकर गरीब लोगों की सहायता करो। उनके दुःख-दर्द मिटाने में भागी बनो। मठाधीशों में यह कार्य करने की सामर्थ्य नहीं है, क्योंकि उन्हें तो पैसा लूटने और बेईमान नेताओं के सामने माथा टेकने से ही फुर्सत नहीं है।
जो लोग दिन चढ़े नौ-दस बजे तक गधों की तरह पड़कर सोते हैं, उनके बच्चे राक्षस नहीं बनेंगे तो क्या बनेंगे? ये राक्षसों के लक्षण हैं। उनका अनुसरण आप मत करो। टी.वी. आज टी.बी बन गया है। इसके अन्दर न्यूज तक में ऐसे विज्ञापन दिखाए जाते हैं, जिन्हें आप परिवार के साथ देख नहीं सकते और चैनल बदलना पड़ता है। इससे युवावर्ग भटक रहा है।
जिस घर में पुत्री नहीं, वह घर ऊसर भूमि के समान है। समाज ने लड़कियों के आगे लक्ष्मण रेखा खींच रखी है, तो लड़कों के लिए भी तो खींचो। लड़का कमरा बन्द करके किसी को फोन करता है, तो किसी को कोई आपत्ति नहीं। और, यदि लड़की एक कॉल कर लेती है, तो घर में हड़कम्प मच जाता है।
जबलपुर में जनजागरण का प्रवाह अब चल पड़ा है और यह लगातार बढ़ता जाएगा। यह नगर अब वास्तविक संस्कारधानी बनेगा।
इसके बाद, सद्गुरुदेव भगवान् ने इस शिविर की विभिन्न व्यवस्थाओं में लगे कार्यकर्ताओं और शिविरार्थियों को अपना दिव्य आशीर्वाद प्रदान किया। तत्पश्चात् दिव्य आरती क्रम सम्पन्न हुआ एवं गुरुवरश्री की चरणपादुकाओं को नमन-वन्दन के साथ प्रसाद वितरित किया गया।
इस प्रकार, दो दिन तक चला यह शक्ति चेतना जनजागरण शिविर ‘माँ’-गुरुवर की कृपा से सोल्लास निर्विघ्न सम्पन्न हो गया।