समाज में छाए अनीति-अन्याय-अधर्म के साम्राज्य से मुक्ति दिलाने के लिए धर्मसम्राट् योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज जन-जन में आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा माँ की चेतना जाग्रत् कर रहे हैं। यह कार्य शक्ति चेतना जनजागरण शिविरों का आयोजन करके किया जाता है, जिनमें जनमानस को उसके ऊपर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध उठ खड़े होने के लिए प्रेरित किया जाता है। साथ ही पूर्ण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् जीवन जीते हुये, माँ की साधना-आराधना का सरलतम मार्ग बताया जाता है। इसको अपनाकर लोगों में सच्चाई, भलाई, ईमानदारी, लोककल्याण एवं परोपकारिता जैसे मानवीय मूल्यों का विकास हो रहा है और असुरत्व को पराजित करने के लिए वे आत्मशक्ति भी अर्जित कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के सागर नगर में आयोजित इस प्रकार का यह 99वां शिविर था।
इस शिविर की तैयारी में भगवती मानव कल्याण संगठन के स्थानीय कार्यकर्ता महीनों पहले से ही जुट गये थे। बाद में अन्य क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं ने भी उनके साथ मिलकर अपना योगदान दिया। संगठन की विभिन्न शाखाओं में वहाँ के कार्यकर्ताओं के माध्यम से इस शिविर का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ।
परम पूज्य गुरुवरश्री के प्रति लोगों में श्रद्धा तथा उनके चिन्तन सुनने का उत्साह एवं उमंग इतनी थी कि शिविर स्थल पर अपार जनसमूह उमड़ा। नगर के प्रायः सारे होटल, लॉज और धर्मशालायें खचाखच भरे थे। कुछ लोग धर्म श्री बालाजी प्रांगण में बनी धर्मशाला व टेन्ट में भी रुके। शिविर के दोनों दिन शहर से शिविर स्थल तक सुबह से दोपहर तक पैदल जनप्रवाह लगातार चलता रहा। अनेक लोग मोटरबाइक, कारों, बसों एवं टैªक्टरों से भी पहुँचे।
शिविर प्रचार-प्रसार व्यवस्था
शक्ति चेतना जनजागरण शिविर (युग परिवर्तन का शंखनाद) की जानकारी जन-जन तक पहुँचाने के लिए व्यापक व्यवस्था की गयी थी। सागर संभाग के सभी जिलों में प्रचार वाहनों के माध्यम से जनमानस तक ध्वनिविस्तारक यंत्रों एवं पम्प्लेट्स, कार्ड्स के माध्यम से शिविर का व्यापक प्रचार-प्रसार कराया गया। सागर जिले की सभी आठ तहसीलों में अलग-अलग प्रचार वाहनों से घर-घर जाकर पम्प्लेट्स और कार्ड्स के माध्यम से शिविर की सूचनायें जन-जन को प्रदान की गयीं। आकर्षक रथ जिसके चारों ओर होर्डिंग्स लगी थीं, गुरुवरश्री की मनमोहक छवि देखकर एवं प्रचार की कैसेट में भरे मनमोहक गीतों की धुन में लोग झूमने को बाध्य हो जाते थे। जहाँ भी रथ पहुँचता, लोग चारों ओर से रथ को घेर लेते थे। लोग यहाँ तक कहते थे कि हमारा पूरा गाँव शिविर में जरूर आयेगा। सागर संभाग के अतिरिक्त सम्पूर्ण मध्यप्रदेश के सभी जिलों, देशस्तर पर सभी प्रान्तों एवं नेपाल सहित अन्य देशों में भी संगठन कार्यकर्ताओं द्वारा शिविर का प्रचार-प्रसार किया गया। सागर जिले के सिविल लाइन स्थित सिंधी धर्मशाला में 200 कार्यकर्ताओं के ठहरने एवं भोजन की व्यवस्था 11 दिन पूर्व से ही की गई थी। उन कार्यकर्ताओं की टीमों ने सागर जिले के शहरी क्षेत्र का एक भी घर प्रचार-प्रपत्रों को पहुंचाए बिना नहीं छोड़ा। शिविर के दो दिन पूर्व समस्त नगरवासी स्वयं कहने लगे कि वे गुरुवर जी के दर्शन करने एवं प्रवचन सुनने जरूर आयेंगे। ऐसा प्रचार उन लोगों ने इसके पूर्व कभी नहीं देखा था।
गुरुवरश्री की अगवानी में हुआ जगह-जगह भव्य स्वागत-वन्दन एवं दर्शन हेतु उमड़ा जनप्रवाह-
पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम से दिनांक 08 फरवरी 2012 को प्रातः 09 बजे धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज युग परिवर्तन का शंखनाद करने निकल पड़े। इसके पूर्व आपश्री ने सिद्धाश्रम धाम में नित्य की भांति अखण्ड श्री दुर्गा चालीसा पाठ मन्दिर में पहुँचकर आरती क्रम पूर्ण किया तथा मूलध्वज मन्दिर गये। तत्पश्चात्, आश्रम में उपस्थित समस्त शिष्यों, भक्तों को चरण स्पर्श प्रदान करके अपना दिव्य आशीर्वाद प्रदान किया। यात्रा प्रस्थान के समय गुरुवरश्री पूज्य दण्डी स्वामी जी की समाधि स्थल गये। वहाँ से गौशाला होते हुये, समधिन नदी को पार करके ब्यौहारी पहुँचे, जहाँ पर सैकड़ों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालु भक्तों ने गुरवरश्री का भव्य स्वागत-वन्दन किया। इसके उपरान्त रास्तेभर जगह-जगह स्वागत-वन्दन हुआ। उमरिया नगर में तो हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी। वहां पर गुरुवरश्री ने प्रसन्न होकर चरण स्पर्श भी प्रदान किया। शहपुरा, कुण्डम में भी भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा। वहाँ पर भी भक्तों ने गुरुवरश्री का आशीर्वाद प्राप्त किया। सायंकाल 04 बजे जैसे ही गुरुवरश्री जबलपुर पहुँचे, उससे 05 कि.मी. पूर्व से ही जगह-जगह पर हजारों श्रद्धालु शिष्यों-भक्तों का जनप्रवाह उमड़ पड़ा। उनके स्वागत में लोग पलक पांवड़े बिछाये थे और गुरुवर-माँ के जयकारों से जबलपुर महानगर गूंज गया। गुरुवरश्री की एक झलक पाने हेतु चारों तरफ लोग आतुर थे। गुरुवरश्री गाड़ी के बाहर निकलकर अपना पूर्ण आशीर्वाद अपने भक्तों को प्रदान कर रहे थे।
गुरुवरश्री ने रात्रि विश्राम, विशिष्ट अतिथिगृह, भेड़ाघाट, जबलपुर में किया। अतिथिगृह को आकर्षक ढंग से सजाया गया था। पावन सलिला, नर्मदा जी पर भेड़ाघाट का मनोहारी विहंगम दृश्य एवं प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बनता था।
दूसरे दिन 09 फरवरी 2012 को प्रातः 09 बजे जबलपुर के हजारों शिष्यों-भक्तों को अपना आशीर्वाद प्रदान करके सागर नगर पहुँचने हेतु गुरुवरश्री प्रस्थित हुये। गोटेगाँव, नरसिंहपुर में हजारों श्रद्धालु शिष्यों-भक्तों ने अपने आराध्य का भव्य स्वागत-वन्दन किया। सागर जिले की सीमा में प्रवेश पर देवरी, सुरखी, चितौरा, सागर स्टेट, मकरोनिया, सिविल लाइन, बस स्टैण्ड, संजय ड्राइव आदि प्रमुख स्थानों पर स्वागत द्वारों, वन्दनवारों एवं फूल-मालाओं के द्वारा भव्यता से सजाकर स्वागत किया गया। वहां पर भी हजारों का जनसैलाब अपने आराध्य के दर्शनों हेतु लालायित था। माता भगवती एवं गुरुवरश्री के जयकरों से पूरा सागर नगर गुंजायमान हो गया। नर-नारी, बच्चे-बूढ़े, जो जैसे था गुरुवरश्री की अगवानी हेतु दौड़ पड़ा। गुरुवरश्री के वाहन के दोनों ओर इस तरह से लोग दौड़ रहे थे कि आपश्री उनकी नजरों से ओझल न हो जायें। जैसे ही गुरुवरश्री सेन्चुरी गार्डन पहुँचे, दोनों ओर पंक्तिबद्ध ढंग से खड़े शिष्यों-भक्तों ने जयकारे लगाए। गुरुवरश्री के दर्शन पाकर सभी अपने आपको धन्य महसूस कर रहे थे। सेन्चुरी गार्डन लॉज को भव्यता के साथ सजाया गया था। पूरा गार्डन प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण सुशोभित हो रहा था। यहीं पर गुरुवरश्री को ठहराया गया।
भक्तों द्वारा अपने भगवान् का स्वागत-वन्दन करते देख बरबस यह पंक्ति याद आ गयी- पलक पाँवड़े बिछा रहे श्री गुरु को लखि नयनाभिराम।
शक्ति चेतना जनजागरण शिविर हेतु पाँच हजार से भी अधिक सक्रिय कार्यकर्ताओं ने सम्भालीं विभिन्न व्यवस्थाएं
शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के दर्शन करने तथा उनके चेतनात्मक जनकल्याणकारी प्रवचनों को सुनने हेतु विभिन्न प्रान्तों से शिविरार्थी आए। उन्हें ठहराने हेतु सागर नगर की प्रायः सभी धर्मशालाओं को एक माह पूर्व से ही बुक कर लिया गया था। आवासीय व्यवस्था को दो सौ से भी अधिक कार्यकर्ताओं ने पूर्ण किया। धर्म श्री बालाजी प्रांगण में भी एक अस्थायी पण्डाल लगवाया गया था, जिसमें हजारों लोग ठहराये गये। सागर नगर के लोग इतने भावनावान् थे कि उन्होंने श्रद्धालु भक्तों के ठहरने हेतु अपने घर खोल दिये और स्नान करने हेतु पानी की भी व्यवस्था की।
शिविरार्थियों को आवश्यक जानकारी प्रदान करने के लिए जनसम्पर्क कार्यालय का संचालन भी किया गया, जिससे किसी को असुविधा न हो। साधना सामग्री उपलब्ध कराने हेतु विशाल साधना स्टॉल भी लगाया गया था। वहाँ पर दोनों दिन ध्वज, कुंकुम, साधना पुस्तक, रक्षाकवच, लॉकेट आदि खरीदने वालों की भारी भीड़ लगी रही, किन्तु कार्यकर्ताओं ने सुचारू रूप से कार्य करके अव्यवस्था नहीं होने दी।
लाखों की संख्या में आये श्रद्धालु धर्मप्रेमीजनों को निःशुल्क खिचड़ी का भण्डारा दिया गया। स्वादिष्ट खिचड़ी खाकर सभी लोगों ने आत्मतृप्ति महसूस की। भण्डार व्यवस्था को भी तीन भागों आपूर्ति व्यवस्था, भोजन निर्माण व्यवस्था एवं वितरण व्यवस्था में बांटा गया था। इन्हें हजारों कार्यकर्ताओं के सहयोग से पूर्ण कराया गया। शिविर में आने वाले सभी माँ भक्तों के क्रमबद्ध बैठाने की व्यवस्था गुरुभाई एवं गुरुबहन कार्यकर्ताओं द्वारा प्रदान की गयी। इस व्यवस्था में लगभग एक हजार कार्यकर्ताओं में अपनी सक्रिय भूमिका निभायी। गुरुवरश्री के चेतनात्मक चिन्तनों के बाद पंक्तिबद्ध ढंग से शान्तिपूर्वक गुरुचरणपादुकाओं को नमन कराने की व्यवस्था सुव्यस्थित ढंग से पूर्ण करायी गई।
हजारों कार्यकर्ताओं ने चारों तरफ घेरा बनाकर सुरक्षा व्यवस्था, शान्ति व्यवस्था एवं पार्किंग व्यवस्था को बड़े ही व्यवस्थित ढंग से पूर्ण कराया। भोजन परिसर एवं पण्डाल के चारों ओर पूर्ण साफ-सफाई बनाये रखी गई। शान्ति-सुरक्षा व्यवस्था में लगे कार्यकर्ताओं ने दिन-रात मुस्तैदी के साथ कार्य किया। अनेकों कार्यकताओं ने प्याऊ की व्यवस्था सम्भाल रखी थी, जो बड़े ही आदर से लोगों को पानी पिलाते रहे। समस्त व्यवस्थाओं को सुचारू ढंग से पूर्ण किया गया।
गुरुवरश्री का जनकल्याणकारी चेतनात्मक उद्बोधन (प्रथम दिवस)
सागर (मध्यप्रदेश) के धर्म श्री बालाजी प्रांगण में आयोजित इस द्विदिवसीय शिविर में सभी जाति-धर्म-सम्प्रदाय की धर्मप्रेमी जनता को सपरिवार एवं इष्ट मित्रों सहित उपस्थित होने के लिए आमन्त्रित किया गया था। इसमें नित्यप्रति प्रातः सात से नौ बजे तक मंत्र जाप और ध्यान साधना का क्रम सिखाया जाता था। अपराह्न दो से तीन बजे तक माता के भजन, भावगीत एवं जयकारे होते थे तथा तीन से पांच बजे तक परम पूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज का चेतनात्मक प्रवचन होता था और अन्त में दिव्य आरती के उपरान्त प्रसाद वितरण होता था।
प्रथम दिवस 11 फरवरी को माँ-गुरुवर के जयकारों के बीच परम पूज्य महाराजश्री का पण्डाल में शुभागमन हुआ। विशेष रूप से निर्मित भव्य मंच पर मंचासीन होने के उपरान्त त्रिशक्तिस्वरूपा तीनों बहनों पूजा, संध्या, ज्योति योगभारती ने उनके चरणकमलों का प्रक्षालन एवं वन्दन किया। तदुपरान्त, आपश्री के चिन्तन से पूर्व इन तीनों बहनों ने अपने संक्षिप्त चिन्तन दिये।
अब परम पूज्य महाराजश्री का उद्बोधन प्रारम्भ हुआ। आपश्री ने कहा-
वर्तमान समय में मानवता भय-भूख-भ्रष्टाचार से कराह रही है। इन्हें मिटाने के लिए सर्वप्रथम अपने आपका शोधन करना होगा, स्वयं को सुधारना होगा। स्वयं को बदलेंगे, तो समाज धीरे-धीरे बदलता चला जायेगा। समाज ने बहुत सी कथायें-कहानियाँ सुनी हैं, किन्तु उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया और न ही उनसे किसी परिवर्तन की आशा की जा सकती है। उल्टे, समाज मानसिक रूप से विकलांग हो रहा है।
हजारों साधु-सन्तों में कोई एकाध मिलेगा, जिसके पास सत्य हो, अन्यथा सबके सब समाज को भ्रमित करके ठग रहे हैं। मैं एक साधक का जीवन जीता हूँ और आपको मूल आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा माँ से जोड़ने आया हूँ। वे देवाधिदेवों की भी जननी हें और सभी की इष्ट हें। उन्हें छोड़कर आप विभिन्न देवी-देवताओं की आराधना में भटकते रहते हैं। मैं दूसरे देवी-देवताओं की आराधना के लिए मना नहीं करता। आप माँ से दूर होते जा रहे हैं। यही आपकी समस्याओं का मूल कारण है। यदि भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति की कामना के साथ उनकी आराधना करो, तो तुम्हारी कश्ती डूबने नहीं पाएगी। दृढ़ विश्वास होना चाहिये कि उनसे रिश्ते की यह डोर कभी न टूटे। विषयविकारों के आवरणों को हटाते जाना है। तब आपको ऊपर उठने से कोई रोक नहीं पाएगा।
कुण्डलिनी शक्ति के सातों चक्रों को खोल लो, तो तुम सर्वशक्तिमान् बन जाओगे। किन्तु, लोग विभिन्न देवी-देवताओं की आराधना व्यापार की भावना से करते हैं। सोचते हैं कि भ्रष्टाचार करते जाओ, महल-दुमहले बनाओ और आराधना भी करते जाओ। यह सब व्यर्थ है और समय की बर्बादी है। भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति मांगकर माँ की आराधना करके तो देखो।
मैं समाज का एक भी पल ऋण के रूप में नहीं लेता। यदि आप यहां पर आते हैं, तो मेरी चेतना तरंगें प्राप्त करते हैं। आप मेरे चेतना अंश हो। मैं एक-एक पल आपके लिए ही जीता हूँ। इसी प्रकार, तुम भी एक-एक पल समाज के लिए जिओ।
इस धरती पर आज मेरे सिवाय एक भी ऐसा साधु-सन्त नहीं है, जिसकी कुण्डलिनी शक्ति पूर्ण जाग्रत् हो। यदि मैं अपने लिए ऐसा कहता हूँ, तो सत्य परीक्षण के लिए सदैव तत्पर रहता हूँ। विश्व अध्यात्म जगत् को मैंने इसीलिए चुनौती दी है कि आकर मेरे साधनात्मक तपबल का सामना करो। अन्धे को अन्धा कहना बुरा लगता है। सूरदास कह दो तो अच्छा है। भगवती मानव कल्याण संगठन को चाहिये कि विभिन्न धर्मगुरुओं से ससम्मान सत्यपरीक्षण हेतु आवाहन करें।
अपने आहार, विचार और संगत का सदैव ध्यान रखना चाहिये। आहार सात्त्विक व सादा होना चाहिये। इससे सतोगुणी कोशिकाएं जाग्रत् होती हैं और चेतना शक्ति प्रबल होती है। जैसा आहार, वैसे ही विचार होते हैं। विचारों को नियंत्रित करो। अभ्यास के द्वारा मन को विषय-विकारों से रोको। संगत का मनुष्य के ऊपर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। इसलिए सात्त्विक पुस्तकें पढ़ो और अश्लील फिल्में मत देखो।
यहाँ पर सागर में यह दूसरा शंखनाद है। तीसरा महाशंखनाद सिद्धाश्रम में होगा। समाज, वास्तव में बदल रहा है। आश्रम में आकर लोग कहते हैं, ‘गुरुजी हम शराब छोड़ना चाहते हैं।’ समाज में सतत् परिवर्तन आ रहा है।
मैं इस मंच से राजनेताओं को चुनौती देता हूँ कि पाँच साल के अन्दर मध्यप्रदेश को नशामुक्त कर दो। यदि उन्होंने ऐसा कर दिया, तो आगामी पचास साल के लिए उनकी सत्ता को स्थायी कर दूँगा, नहीं तो शक्तिपुत्र की यह चुनौती है कि भगवती मानव कल्याण संगठन का एक-एक सदस्य उन्हें टक्कर देगा। कोई पार्टी कितनी ही कोशिश कर ले, होगा वही जो सिद्धाश्रम धाम चाहेगा।
आज हर क्षेत्र में हर स्तर पर एक भ्रष्टाचारी बैठा हुआ है। इसका मतलब साफ है कि हमारा देश भ्रष्टाचारियों के कारण आज बर्बादी की कगार पर खड़ा है। ज्ञान का प्रकाश फैलाकर हमें इन उल्लुओं को खदेड़ना है जो हर शाख पर बैठे हैं और निश्चित ही हम इन्हें खदेड़कर ही मानेंगे।
भोजन-भजन-ध्यान-ज्ञान-सेवा, इन पांचों पर हमें सदैव विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। ये पांचों अच्छे-बुरे दोनों हो सकते हैं। भोजन सात्त्विक भी हो सकता है, तामसिक भी। भजन भी श्लील-अश्लील दोनों हो सकते हैं। अन्तर्मुखी होकर माँ-गुरुवर का ध्यान किया जा सकता है और बहिर्मुखी होकर भौतिक जगत् का ध्यान भी किया जा सकता है। इसी प्रकार, ज्ञान आध्यात्मिक भी हो सकता है और भौतिक भी तथा सेवा अपनी व अपने परिवार की हो सकती है और समाज की भी। आप लोग प्रायः तामसिक भोजन करते हैं, अश्लील गीत सुनते हैं, भौतिकता का ध्यान करते हैं। आपको अपनी आत्मा का ज्ञान नहीं है और दूसरों के दुःख-दर्द से भी कोई मतलब नहीं है। इसीलिए अशान्ति और पतन है।
हमें चाहिये कि हम सात्त्विक भोजन करें, माता भगवती का गुणगान करें, प्रतिदिन ध्यान में बैठें, वह ज्ञान अर्जित करें, जिससे सत्कर्म ही हों और स्व का त्याग करके पर-सेवा में तत्पर हो जायं। तभी हम आत्मकल्याण की आशा कर सकते हैं।
आज नब्बे प्रतिशत राजनेता बेईमान हैं। समाज भी कम बेईमान नहीं है। आप लोग चुनाव के समय पैसा लेकर बेईमानों को वोट देते हो और उनके गुलाम बन जाते हो, बिक जाते हो। एक बार ठोस निर्णय ले लो कि तुम्हारे सामने करोड़ों की सम्पत्ति भी डाल दी जाय, फिर भी किसी अधर्मी-अन्यायी व नशेड़ी को वोट नहीं देंगे।
खुले आम बीजमन्त्र बिक रहे हैं, योग बिक रहा है और पढ़े-लिखे लोग उनके दरबार में पंक्तिबद्ध होकर अपनी बारी का इन्तजार कर रहे हैं। ये सब ज्ञानशून्य हैं। मैंने इसीलिए चुनौती दी है कि इस तरह के पाखण्डी बाबा, आकर मेरे तपबल का सामना करें। वे विदेशों से कालाधन लाने का सब्जबाग दिखाते हैं और खुद कालेधन के पहाड़ पर बैठे हैं। योग, जिन्होंने सिखाया, उसका मैं सम्मान करता हूँ, किन्तु इससे गरीबों की किस समस्या का समाधान हुआ? उल्टे उनके स्वयं के उद्योग बढ़ते चले गए, बस!
समाधि जीवन की शून्यता है, पूर्णता नहीं। ध्यान में आपने यदि उस दिव्य ज्योति की एक झलक भी प्राप्त कर ली, तो फिर भटक नहीं पाओगे। इसमें कोई धन-दौलत नहीं लगती। आपको केवल तप ही तो करना है। परमसत्ता तो केवल भावना की भूखी है। यदि आपके पास ज्योति जलाने के लिए घी नहीं है, धूप बत्ती नहीं है, तो कोई बात नहीं। बिना इनके परमसत्ता का ध्यान तो किया ही जा सकता है। सहज प्राणायाम के द्वारा प्राणशक्ति को बढ़ाओ। इससे सात्त्विक कोशिकाएं प्रबल होती हैं।
मैं चाहता हूँ कि समाज में आप लोगों की पहचान समाजसेवक, साधक और चरित्रवानों के नाम से हो। प्रतिदिन भोजन करने से पहले असमर्थ-असहायों को याद करो। मैं स्वयं भोजन का पहला कौर मुख में रखने से पहले गरीब जनता का ध्यान करता हूँ। हमेशा गरीबों का सहारा बनो। तुम लोग खुद तो परमसत्ता का सहारा चाहते हो, किन्तु परमसत्ता ने जो तुम्हें दिया है, उसके द्वारा तुम असहायों का सहारा नहीं बनते।
क्रिकेटर युवराज को, जिसके पास पर्याप्त धन-सम्पत्ति है, कैंसर की आशंका मात्र हुई, तो सारे नेता-अभिनेता और उद्योगपति धन से उसकी सहायता करने के लिए आगे आने लगे। अरे बेईमानों, तुम्हारे आसपास गली-कूचे में कितने असहाय हैं! उनके लिए क्यों नहीं उठ खड़े होते?
एक बार ‘इण्डिया इज शाइनिंग’ का भ्रम फैलाया, तो गद्दी चली गई। अब विकास यात्रा कैसी? सारे गांव-गलियां वैसे ही टूटे-फूटे पड़े हैं। इस प्रकार के नारे देने से कभी विकास नहीं होगा। यदि भ्रष्टाचार को रोकने का संकल्प ले लो, तो यही जनता तुम्हें दस गुना वोटों से जिता देगी, नहीं तो जितनी सीटें तुम्हें मिली हैं, वे भी चली जाएंगी।
समाज के बीच मैं उसके कल्याण के लिए आया हूँ, नहीं तो अन्य योगियों की भांति कहीं पर हिमालय की कन्दराओं में बैठा होता। मेरा कर्त्तव्य है तुम्हें जगाने और भ्रष्टाचार मिटाने का। इसके लिए मैं तुम्हें माँ की आराधना में लगाने आया हूँ। माँ की भक्ति में तुम्हें नींद आने लगती है। स्पष्ट है आपके अन्दर तड़प और भूख की कमी है। चोर चोरी करने जाता है, तो उसे नींद नहीं आती। प्रेमी-प्रमिका को भी रातभर नींद नहीं आती। मुझे तो माँ की आराधना में आलस तक नहीं आता। इसलिए भक्ति के लिए तड़प पैदा करो।
गुरुदीक्षा प्राप्त करके ग्रहण किया शिष्यत्व
परम पूज्य सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का प्रथम दिवस 11 फरवरी का चेतनात्मक प्रवचन सुनकर लोगों की सोयी चेतना जाग्रत् हो उठी और उन्होंने गुरुवरश्री से गुरुदीक्षा लेने का मन बना लिया। दिनांक 12 फरवरी को प्रातः 05 बजे से ही भक्तों की भीड़ आना शुरू हो गयी। साधना पण्डाल देखते ही देखते भरना शुरू हो गया। ठीक 08 बजे गुरुवरश्री का आगमन हुआ, और वे मंचासीन हुये। सभी उपस्थित भक्त समुदाय को आपने अपना आशीर्वाद प्रदान करते हुये कहा कि-
गुरु और शिष्य का रिश्ता आत्मीयता का होता है। आप लोग अब भी सोच लें। शिष्य बनने से पूर्व आपको दृढ़ निर्णय करना है कि आप पूर्ण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त व चरित्रवान् जीवन जीने के लिए पूरे मनोयोग से तैयार हैं। आप लोगों को सदैव गुरु निर्देशन पर चलना होगा। भगवती मानव कल्याण संगठन की विचारधारा को आत्मसात् करना होगा। यदि आप लोग मजबूती से मेरे बताये साधनाक्रमों का पालन करेंगे, तो हजारों मील दूर भी आपके साथ मेरा आशीर्वाद बना रहेगा।
तदुपरान्त, सभी उपस्थित लोगों को नशामुक्त, मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् जीवन जीने हेतु संकल्पित कराया गया। उसके बाद गुरुवरश्री ने सभी को, गणेश जी, हनुमान जी, भैरव जी का मंत्र उच्चारण कराया और उसके बाद चेतना मंत्र ‘ऊँ जगदम्बिके दुर्गायै नमः’ एवं गुरुमंत्र ‘ऊँ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः’ भी प्रदान किया गया।
इस प्रकार लगभग ग्यारह हजार से भी अधिक लोगों ने गुरुवरश्री की चरणपादुकाओं को नमन करते हुये अपना नाम, पता आदि का पत्रक भरकर निःशुल्क शक्तिजल की शीशी प्राप्त की और संकल्पित जीवन जीने का सौभाग्य प्राप्त किया।
एक बार में ग्यारह हजार लोगों के जीवन में परिर्वतन डालने की क्षमता केवल योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी सद्गुरुदेव भगवान् में ही है। अन्य किसी में यह पात्रता कहां! इसी तरह आयेगा लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन में परिवर्तन और तब होगा वास्तविक युग परिर्वतन। धन्य है उनका जीवन, जिन्होंने प्राप्त किया युग चेतना पुरुष का शिष्यत्व, सान्निध्य एवं कृपा।
द्वितीय दिवस-
दूसरे दिन, 12 फरवरी को नियत समय पर परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज चिन्तन पण्डाल में पधारे। सबको पूर्ण आशीर्वाद समर्पित करने के बाद आपश्री ने कहा-
भक्ति-ज्ञान-आत्मशक्ति में सब कुछ समाहित है। हम परमसत्ता के अंश है। वह हमारे निकटतम है। हम उससे कभी भी साक्षात्कार कर सकते हैं। सर्वप्रथम अपने आप पर विश्वास करें। मैं कौन हूँ- यह जानने का प्रयास करें। अपने अन्तर्मन को टटोलो। बाहर-बाहर मत भागो। ध्यान-चिन्तन में बैठो।
धर्मगुरुओं का जो पतन आज हुआ है, इतना किसी भी काल में नहीं हुआ। वे मंत्रियों की चाटुकारिता करके धर्म का अनादर कर रहे हैं। वे उनके दास बने बैठे हैं। उनकी अन्तरात्मा मर चुकी है। उन्हें गरीबों का कभी भी ख्याल नहीं आता। बस, नेताओं के तलुए चाटते रहते हैं।
पूर्व में पुजारी, मुनीम, जमींदार और दारोगा आदि की चाण्डाल चौकड़ी समाज का शोषण करती थी। आज इसका स्वरूप बदल गया है। आज धर्मगुरु, राजनेता, अधिकारी एवं बाहुबलियों की चाण्डाल चौकड़ी समाज को लूट रही है।
अंग्रेज तो चले गये, किन्तु उनकी औलादें यहाँ पर रह गई हैं। उन्हें खदेड़ने के लिए हमें एक धर्मयुद्ध लड़ना होगा। इसे हम अस्त्र-शस्त्र से नहीं, अपितु अपनी चेतना के बल पर, माँ की कृपा के बल पर जीतेंगे और उन्हें जरूर खदेड़ेंगे।
आज भी नब्बे प्रतिशत लोग ईमानदारी से काम करना चाहते हैं, किन्तु उन्हें भ्रष्टाचार के लिए मजबूर किया जाता है। मंत्री अफसरों से डिमाण्ड करते हैं और अफसर कर्मचारियों को पैसा एकत्र करने के लिए कहते हैं। इसलिए हमें जड़ राजनीति को ठीक करना है।
समाज में अपने क्षेत्र के दस प्रतिशत लोगों को अपने साथ जोड़ लो, तो उस क्षेत्र में परिवर्तन आने लगेगा। जातीयता और छुआछूत से स्वयं को मुक्त रखो। ऐसा नहीं करोगे, तो माँ की कृपा नहीं मिल पायेगी। कितनी शर्म की बात है कि जो मजदूर कुआँ खोदता है, जिसके चरणों से स्पर्श करके पानी बाहर आता है, बाद में वही उस कुएं पर नहीं चढ़ पाता!
प्रत्येक माता-पिता का कर्त्तव्य है कि वे अपने बच्चों को अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी शिक्षा दें तथा धर्ममार्ग में बढ़ायें। किन्तु, आज इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। करोड़ों रुपये और अकूत सम्पत्ति बच्चों के नाम कर देते हैं। यदि बच्चा धर्ममार्ग में नहीं है, तो इस सबका नाश करेगा और अनीति-अन्याय-अधर्म के मार्ग में जाएगा।
प्रकृति ने हमें सुख अधिक और दुःख बहुत कम दिये हैं, किन्तु हम सुखों को भूलकर दुःखों का ध्यान किये जाते हैं और दुःखी होते रहते हैं। इस प्रकार दुःख हम पर हावी हो चुका है। और अधिक सुख पाने की ललक ही दुःख का कारण है।
आज पूरा सागर संभाग बीड़ी उद्योग से ग्रस्त है। यहाँ पर छोटे-छोटे बच्चे बीड़ी बनाते हैं और पीते भी है। यह उद्योग बाल्यवस्था पर अभिशाप है। किन्तु, पंगु मध्यप्रदेश सरकार इस ओर देखना ही नहीं चाहती। जगह-जगह पर शराब के ठेके बिक रहे हैं। यह हमारी सभ्यता नहीं है।
हाथ उठाकर चरित्रवान् बनने का संकल्प लो और उसे सदैव ध्यान में रखना है। संकल्प यह है कि विवाह से पूर्व कभी कहीं पर भी शारीरिक सम्बन्ध स्थापित नहीं करेंगे तथा शादी के बाद एक पति/पत्नी व्रत का पालन करेंगे।
मैं वर्तमान को जानता हूँ, भूत को जानता हूँ और भविष्य को भी देख रहा हूँ। मेरे शिष्यों का सैलाब उत्तरोत्तर बढ़ता जाएगा और धरती पर सत्य का साम्राज्य अवश्य ही स्थापित होगा।
यदि तुम भटक गए, तो समाज भटक जाएगा। तुम सुधर गए, तो समाज सुधर जाएगा। मैं युवाओं का आवाहन करता हूँ कि आओ और भारत के नवनिर्माण में अपना योगदान दो।
आज धर्मगुरु भ्रमजाल फैलाकर समाज को लूट रहे हैं और शासन-प्रशासन मौन हैं। डॉक्टरों पर, जो दूसरों की बीमारियां दूर करते हैं, टैक्स लगाया जाता है। किन्तु, धर्मगुरुओं पर कोई टैक्स नहीं है। धार्मिक संस्थाओं पर भी टैक्स लगने चाहियें, चाहे वह मेरी ही संस्था क्यों न हो। धार्मिक संस्थाओं पर छापे भी पड़ने चाहियें। धर्मगुरुओं के शयन कक्ष से भारी मात्रा में सोना-चांदी निकलता है। आप तनिक सोचिये, वे कैसे सिद्ध योगी रहे होंगे?
धार्मिक संस्थाओं को सख्त से सख्त कानून के दायरे में लाया जाना चाहिये। यह सब उन्हें बुरा लगता है। अरे बेईमानों, क्या तुम्हें लूट मचाने के लिए छूट दे दी जाय? धार्मिक संस्थाओं के यहाँ छुपा काला धन और सम्पत्ति यदि बाहर आ जाय, तो देश की गरीबी मिट जाएगी।
आज किसी भी साधु-सन्त-संन्यासी के अन्दर वह पात्रता नहीं है कि वह मन्दिर में स्थापित मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा कर सके। जिसके स्वयं के प्राण जाग्रत् न हों, वह मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा नहीं कर सकता। आज के साधु विभिन्न रत्न धारण किये रहते हैं। वास्तव में, वे भयग्रस्त हैं। उन्हें पता ही नहीं कि उनके अन्दर आत्मारूपी रत्न बैठा है। वे उससे सर्वथा अनभिज्ञ हें।
नशे-मांस का कभी भी सेवन नहीं करना है। जो ऐसा करता है, वह मानव से दानव बन जाता है। चरित्रवान् जीवन जिओ। साधक बनने के लिए चरित्र उज्ज्वल होना ही चाहिये।
जहाँ भोग है, वहाँ पतन है। जहाँ योग है, वहां चेतना है और उत्थान है। मैंने स्वयं संकल्प लिया था कि जब भी मेरे यहाँ सन्तान का योग हो, तो पुत्रियाँ ही आयें। उन्हें प्राप्त करने के बाद, गृहस्थी में रहकर मैं सपत्नीक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता हूँ।
अपने घर और प्रतिष्ठानों पर शक्तिध्वज स्थापित करो। उससे वास्तु आदि के सारे दोष दूर होते हैं। उससे मेरा आशीर्वाद जुड़ा है और माँ का आशीर्वाद जुड़ा है। अपने आज्ञाचक्र को सदैव कुंकुम तिलक से आच्छादित रखो तथा सम्मान एवं गर्व के साथ गले में रक्षाकवच डालो। यह हरपल आपकी रक्षा करेगा। साथ ही यह आपके साधक होने का एहसास दिलाता है। नित्य शक्तिजल का पान करो। इससे चेतना शक्ति विकसित होती हैं और बुद्धि प्रबल होती है। रोजाना श्रीदुर्गा चालीसा का कम से कम एक पाठ अवश्य करो। इससे स्वतः ही आप यहां आश्रम में चल रहे अखण्ड पाठ का फल प्राप्त करने के अधिकारी बन जाते हो।
सच्चाई का रास्ता लोगों को भाता नहीं है। आज ब्राह्मण नीचतम कार्य कर रहे हैं और छोटी जाति के लोग ब्राह्मणों से बेहतर हैं। हिन्दुत्व पूर्णता एवं मानवता का प्रतीक है। किन्तु, आज की उथली राजनीति ने उसे साम्प्रदायिक और आंतकवादी मान लिया है।
आज के लोग ब्रह्ममुहूर्त को समझते ही नहीं हैं और आलसी बनकर दिन चढ़े तक बिस्तर में लेटे रहते हैं। इससे समाज आलसी और जड़ होता जा रहा है। यह राक्षसों का बदला हुआ रूप है। पहले के राक्षसों के दांत लम्बे होते थे। वे भयानक लगते थे, किन्तु आज वे सुन्दर दिखते हैं। देर रात तक पार्टियां करके भोर में सोते हैं। युवावर्ग फिल्मी तारिकाओं और फिल्म स्टार्स से प्रभावित है, जिनके पति-पत्नियां प्रतिदिन बदलते रहते हैं।
दहेज के लोभी मत बनो। योगभारती विवाह पद्धति मेरे द्वारा इसीलिए प्रदान की गई है। आश्रम के स्थापना दिवस 23 जनवरी को तथा विजयादशमी के दिन इसके अनुसार सामूहिक विवाह बिना किसी आडम्बर और दान-दहेज के सम्पन्न होते हैं। यदि भगवती मानव कल्याण संगठन से जुड़े परिवारों के बीच ही शादियां हों, तो आपके बच्चे सुखी रहेंगे।
इस काल में चरित्र का बहुत पतन हुआ है। पच्चीस प्रतिशत युवक-युवतियां विवाहपूर्व ही शारीरिक सम्बन्ध बना लेते हैं और विवाहोपरान्त पचास प्रतिशत लोग अवैध सम्बन्ध बनाए रखते हैं। यह समाज के पतन का लक्षण है। नर और नारी का शरीर हमें सृष्टि चलाने के लिए दिया गया है, विषयवासना की पूर्ति के लिए नहीं। अतः सन्तानोत्पत्ति के उपरान्त मेरी तरह ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करो।
सबको समान भाव से साथ लेकर चलो। चाटुकारिता का जीवन मत जिओ। यदि कोई सरकारी अधिकारी और राजनेता समाजसेवा का कार्य करते हैं, तो उनका सम्मान करो।
कुछ समय के उपरान्त भगवती मानव कल्याण संगठन की विचारधारा को लेकर मैं पूरे सात दिन तक दमोह (म.प्र.) में रहूँगा। वहां पर जनयात्रा जनजागरण के लिए होगी। इसकी रूपरेखा कार्यकर्ता बैठक में सूचित की जाएगी।
अब पांच मिनट का शंखनाद किया गया और बताया गया कि यह शंखनाद कभी भी रुकने न पाए। प्रतिदिन घर में शंखनाद करें। यह पर-पीड़ा हरने का, अनीति-अन्याय-अधर्म को मिटाने का और घर में सुख-शान्ति लाने का शंखनाद है।
गुरुवरश्री के चिन्तन के बाद ग्यारह हजार से भी अधिक लोगों ने अपने-अपने हाथों में शंख लेकर, आपश्री के साथ युग परिवर्तन का शंखनाद किया एवं गुरुवरश्री की तीनों पुत्रियों बहन पूजा, संध्या एवं ज्योति योगभारती ने सभी उपस्थित जनसमुदाय के प्रतिनिधिस्वरूप दिव्य आरती क्रम पूर्ण किया।
इसके उपरान्त सभी लोगों ने पंक्तिबद्ध ढंग से गुरुवरश्री की चरणपादुकाओं को नमन करके आरती एवं प्रसाद ग्रहण किया।
प्रेसवार्ता से प्रभावित मीडियाकर्मियों ने प्राप्त किया गुरुवरश्री का दिव्य आशीर्वाद
दिनांक 13 फरवरी 2012 को गुरुवरश्री ने सायंकाल 03 बजे से प्रेसवार्ता हेतु अनुमति प्रदान कर दी थी, जिसकी सूचना पाकर विभिन्न समाचार पत्रों व चैनलों के मीडियाकर्मी प्रेसवार्ता में सम्मिलित हुये। सभी ब्यूरो प्रमुखों, पत्रकारों एवं रिपोर्टरों ने बारी-बारी से अपनी जिज्ञासायें गुरुवरश्री के चरणों में रखीं। आपश्री ने कहा कि अधिकांश धर्माचार्यों और योगाचार्यों के पास वह साधनात्मक क्षमता ही नहीं है कि वे समाज का मार्गदर्शन कर सकें। उनका लक्ष्य तो केवल धन अर्जन है। अध्यात्म को उन्होंने व्यवसाय बना दिया है। समाज के पतन का यही कारण है। सभी राजनैतिक पार्टियां भ्रष्ट हैं और अधिकांश राजनेता भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। तब समाज का हित कैसे सम्भव है?
अभिनेत्रियां अंग प्रदर्शन करके नारी समाज को अपमानित कर रही हैं। समाज को जो परोसा जायेगा, उसी का प्रभाव तो समाज में व्याप्त होगा। समाज को सतोगुणी प्रवृत्ति की ओर बढ़ना चाहिये। अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दो, अच्छी शिक्षा दो एवं उनके स्वास्थ्य की देखभाल करो। आने वाले समय में परिवर्तन अवश्य आयेगा, क्योंकि लोगों के अन्दर आध्यात्मिक वातावरण निर्मित हो रहा है।
हमारे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों ने देश को आजाद कराने के लिए अपने आपको कुर्बान कर दिया था, क्योंकि उनके अन्दर स्वार्थपरता नहीं थी, उनके अन्दर थी देश की सच्ची भक्ति।
पत्रकारों की जिज्ञासा को शान्त करते हुये, गुरुवरश्री ने कहा कि समाज में सबसे खतरनाक बुराइयां नशा, मांसाहार व भ्रष्टाचार हैं। इन तीनों बुराइयों से अपने आपको दूर रखने की आवश्यकता है, क्योंकि जब हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा। यदि भ्रष्टाचार मिट जाये, तो पाँच वर्षों में भारत ऋणमुक्त हो जायेगा। हमारा देश सुखमय एवं समृद्धिशाली देश बन जायेगा। यदि हम अपने बच्चों को बचपन से ही धर्ममार्ग पर चलायेंगे, तो बड़े होकर उनके जीवन में भटकाव नहीं आयेगा।
पूज्य गुरुवरश्री ने सभी मीडियाकर्मियों को निर्देशित करते हुये कहा कि आप लोग अपने अन्दर और सक्रियता लाएं। भगवती मानव कल्याण संगठन के जनकल्याणकारी उद्देश्यों को जन-जन तक पहुँचाने में सहयोगी बनें। मीडिया आज भी चाहे तो समाज में बहुत शीघ्र परिवर्तन आ सकता है, क्योंकि बड़े-बड़े भ्रष्टाचार उजागर करने में मीडिया ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। सभी उपस्थित सदस्यों को गुरुवरश्री ने अपना पूर्ण आशीर्वाद प्रदान किया। बैठक समापन के बाद सभी लोगों ने क्रम से गुरुवरश्री के चरणों में नमन किया।
उल्लेखनीय है कि एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र के सम्पादक व्यक्तिगत रूप से गुरुवरश्री से मिलने आये, जिनकी समस्त जिज्ञासाओं को गुरुवरश्री ने अपने सारगर्भित चिन्तन से शान्त कर दिया। गुरुवरश्री के चरणों में नमन करते हुये उन्होंने कहा कि हे गुरुवर, आपके मार्गदर्शन में यदि समाज चलेगा, तो सुधारात्मक परिवर्तन अवश्य आयेगा। सागर नगर के कई सम्भ्रान्त नागरिक तथा प्रशासनिक अधिकारी गुरुवरश्री का आशीर्वाद ग्रहण करने आये और पूर्ण संतुष्ट एवं प्रसन्न नजर आये।
ज्ञातव्य है कि सभी समाचार पत्रों ने गुरुवरश्री के चिन्तन को जन-जन तक पहुँचाने में महती भूमिका निभायी है। उन्होंने विस्तार से समाचार पत्रों में प्रकाशन किया और गुरुवरश्री के आशीर्वाद के पात्र बने।
भक्तों के नेत्रों से बही अश्रुधारा
युग परितर्वन का शंखनाद हुआ। शिविर समापन के बाद वे पल भी आये, जब दिनांक 14 फरवरी को प्रातः 08 बजे गुरुवरश्री सिद्धाश्रम वापस आने के लिए सेन्चुरी गार्डन से बाहर निकले। प्रातःकाल 06 बजे से ही शिष्यों-भक्तों का जमावड़ा सेन्चुरी गार्डन से बाहर लगने लगा। गुरुवरश्री के जयकारों से वातावरण गूंज उठा। भक्तों के नेत्रों में अश्रुजल देखकर प्रतीत होता था जैसे सभी अपने अश्रुपूरित नेत्रों के द्वारा कह रहे थे कि हे गुरुवर! मेरी नजरों से कभी ओझल मत होना, अपने दर्शन, अपना आशीर्वाद हमें सदैव प्रदान करते रहना। गुरुवरश्री ने हाथ उठाकर सभी को अपना पूर्णत्व का आशीर्वाद प्रदान किया। यह दृश्य अत्यन्त मार्मिक था, सभी सड़क पर लेटकर गुरुवरश्री को नमन कर रहे थे। कोई नहीं चाहता था कि गुरुवरश्री वापस जायें, लेकिन गुरुवर ने सभी को कर्मवान् बनाने का सन्देश दिया है। इसलिए सभी किंकर्तव्यविभूढ़ थे, कुछ कह नहीं सकते थे। उनके नेत्रों से निकल रही अश्रुधारा ही उनके अन्तर्मन के भावों को प्रस्फटित कर रही थी।
गुरुवरश्री की यात्रा सेन्चुरी गार्डन से तिली, सनराइज कॉलोनी, सिविल लाइन, यूनिवर्सिटी होते हुये चितौरा पहुँची, जहाँ पर हजारों की भीड़ गुरुवरश्री को अश्रुपूरित विदाई देने के लिए तैयार खड़ी थी। जयकारों के मध्य गुरुवरश्री ने गाड़ी से बाहर निकलकर अपना आशीर्वाद प्रदान किया। चितौरा से नरसिंहपुर, गोटेगांव होते हुये महाराजश्री जबलपुर पहुंचे, जहां पर हजारों की भीड़ ने उन्हें जगह-जगह पर भावभीनी विदाई दी। जबलपुर से शहपुरा पहुँचकर अतिथिगृह में थोड़ी देर गुरुवरश्री ने विश्राम किया एवं उपस्थित भक्तसमुदाय को अपने चरण स्पर्श प्रदान करते हुये आशीर्वाद प्रदान किया। शहपुरा से उमरिया पहुंचकर गुरुवरश्री ने सभी उपस्थित लोगों को नमन-वन्दन का सुअवसर देकर सभी को धन्य कर दिया। उमरिया से बांधवगढ़ होते हुये जैसे ही गुरुवरश्री की गाड़ी ब्यौहारी पहुँची। वहाँ से पाँच कि.मी. पूर्व ही दोपहिया एवं चार पहिया वाहनों ने गुरुवरश्री की अगवानी की और शिष्यगण पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम तक उनके साथ आए। सभी ने गुरुवरश्री के चरणों में नमन करते हुये, आरती एवं चरणोदक प्राप्त किया और अपने जीवन को सौभाग्यशाली बनाया।
माता भगवती एवं गुरुवरश्री के चरणों में हमारी यही प्रार्थना है कि संसार में कोई दुःखी न रहे, सभी निरोग हों, सभी का कल्याण हो और सभी गुरुवरश्री के मार्गदर्शन में चलकर माता भगवती एवं गुरुवरश्री के चरणों की कृपा प्राप्त करें और आत्मकल्याण एवं जनकल्याण करें।