इस घोर कलिकाल में व्याप्त अनीति-अन्याय-अधर्म की भयावहता को समाप्त करने के लिए धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के द्वारा समाज में शक्ति चेतना जनजागरण शिविरों का आयोजन करके जनसामान्य के अन्दर शक्ति चेतना जाग्रत् की जाती है। उन्हें नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् एवं चेतनावान् जीवन जीने की प्रेरणा देकर प्रकृतिस्वरूपा माता भगवती आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की साधना-आराधना की ओर बढ़ाया जाता है। इसी क्रम में यह आयोजन आपश्री के द्वारा पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में किया गया।
इस त्रिदिवसीय शिविर में देश-विदेश से आए लाखों लोगों ने परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के ओजस्वी चिन्तनों को हृदयंगम किया, ध्यान-साधना एवं योग का अभ्यास किया तथा लगभग ग्यारह हज़ार लोगों ने गुरुदीक्षा प्राप्त करके जीवनपर्यन्त पूर्ण नशा-मांसाहारमुक्त, चरित्रवान् बने रहने का संकल्प लिया। असीम आनन्द का विषय यह भी रहा कि इस अवसर पर परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् की मध्यमा सुपुत्री भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सिद्धाश्रमरत्न शक्तिस्वरूपा बहन आयुष्मती संध्या शुक्ला जी परिणयसूत्र में बंध गईं।
प्रारम्भिक तैयारियां
नवरात्र की पूरी अवधि में सिद्धाश्रम की पावन भूमि पर रहकर सेवा और साधना का लाभ लेने के लिए भगवती मानव कल्याण संगठन से जुड़े अनेक सदस्य नवरात्र प्रारम्भ होने से पहले ही यहां पहुंच गये थे। उन्होंने बड़े मनोयोग से सफाई आदि का कार्य किया। इस वर्ष प्रकृतिस्वरूपा माता भगवती की ऐसी विलक्षण इच्छा रही कि सितम्बर के अन्त तक वर्षा होती रही।
फिर भी सीमित समय में ही कार्यकर्ताओं ने बड़े परिश्रम एवं मुस्तैदी से चिन्तनपण्डाल एवं मंच आदि का निर्माण किया। सन्तोष और आनन्द की बात यह रही कि शिविर के तीनों दिन मौसम के कारण कोई व्यवधान नहीं पड़ा।
भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में इस शिविर से सम्बन्धित होर्डिंग्स लगाकर और पैम्फ्लैट्स वितरित करके खूब प्रचार किया था। बृहद स्तर पर की गई आरतियों, महाआरतियों तथा श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठों के आयोजन के फलस्वरूप भी खूब प्रचार हुआ था।
यही कारण है कि परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के ओजस्वी चिन्तनों को सुनने के लिए इस शिविर में अपार जनसमूह उमड़ा। इनमें से ग्यारह हज़ार से भी अधिक लोगों ने गुरुदीक्षा प्राप्त की। इस बीच भोजन एवं शान्ति सुरक्षा व्यवस्था बड़े सुचारु रूप से चली। ये सभी व्यवस्थाएं संगठन के पांच हज़ार से भी अधिक सक्रिय कार्यकर्ताओं ने पूर्ण कीं।
दैनिक कार्यक्रम
शिविर पण्डाल में प्रथम दो दिवसपर्यन्त 09 और 10 अक्टूबर को प्रातः 07 बजे से 09 बजे तक योगाभ्यास, मंत्रजाप एवं ध्यानसाधना का क्रम सम्पन्न हुआ, जिसे भगवती मानव कल्याण संगठन की केन्द्रीय अध्यक्ष शक्तिस्वरूपा बहन पूजा दीदी जी, भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष शक्तिस्वरूपा बहन संध्या दीदी जी एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम ट्रस्ट की प्रधान न्यासी शक्तिस्वरूपा बहन ज्योति दीदी ने सम्पन्न कराया। तीसरे और अन्तिम दिन 11 अक्टूबर को इसी अवधि में गुरुदीक्षा का कार्यक्रम हुआ। अपराह्न तीनों दिन 02 से 03 बजे तक भावगीतों का कार्यक्रम हुआ, जिसके अन्तर्गत विभिन्न शिष्यों एवं श्रद्धालुओं ने अपने भावसुमन अर्पित किये। इसी क्रम के मध्य में, ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाए जाते थे एवं जयकारों के बीच ही परम पूज्य गुरुवरश्री का आगमन होता था और तीनों शक्तिस्वरूपा बहनों पूजा, संध्या एवं ज्योति जी के द्वारा उनके पदप्रक्षालन एवं वन्दन के उपरान्त कुछ और भावगीतों के प्रस्तुतीकरण तथा बहनों संध्या एवं ज्योति जी के द्वारा जयकारे लगवाए जाने के पश्चात् परम पूज्य गुरुवरश्री की अमृतवाणी सुनने को मिलती थी।
तदुपरान्त, दिव्य आरती होती थी, जिसका नेतृत्व शक्तिस्वरूपा तीनों बहनों के द्वारा किया जाता था। अन्त में, महाराजश्री की चरणपादुकाओं का स्पर्श करके सभी शिविरार्थी प्रसाद ग्रहण करते थे। महाराजश्री मंच पर तब तक विराजमान रहते थे, जब तक सभी शिविरार्थी प्रणाम नहीं कर लेते थे।
प्रथम दिवसः दिव्य उद्बोधन
सरल कार्य तो सभी कर लेते हैं, किन्तु सत्यपथ पर बढ़ना, सत्कर्म करना और अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध संघर्ष करना जैसे कठिन कार्य करना हरेक के बस की बात नहीं है। प्रसन्नता की बात है कि ‘माँ’ ने हम लोगों को इसी के लिए चुना है। आप लोग अच्छा कार्य कर रहे हैं। समाज में धीरे-धीरे परिवर्तन आ रहा है। किन्तु मैं इससे सन्तुष्ट नहीं हूँ। आपको इसे और गति देना है। मेरी साधना निष्फल नहीं जाएगी। इस यात्रा को समझने की ज़रूरत है।
हमारी आने वाली पीढ़ी सुख-शान्ति से जिये, इसके लिए सिर्फ एक ही मार्ग है अपने आपको संवारो। ‘माँ’ की भक्ति सबसे सरल है। हमें उनका सच्चा भक्त बनना है। हमारी भक्ति कामनारहित होनी चाहिए। अपनी सोच को बदलो। ‘माँ’ को अज्ञानी मत समझो, वह सर्वज्ञ हें। उन्हें सब कुछ पता है कि तुम्हें क्या चाहिए और तुम्हारा हित किसमें है? अबोध-अज्ञानी तो तुम स्वयं हो। अपनी छोटी-छोटी कामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना मत करो। केवल भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति मांगो। उनसे प्रार्थना करो कि हे माँ, हमारे अवगुणों को समाप्त कर दो।
अपने कुविचारों को नष्ट करने का प्रयास करो। पात्रता प्राप्त करने के लिए यह ज़रूरी है। सत्य के पथ पर, कल्याण के पथ पर चलो। ‘माँ’ से निवेदन करो कि हे माँ, तू मेरी है, मैं तेरा हूँ। मुझे अपनालो, माँ। मुझे वह ज्ञान दो कि मैं अपने अवगुणों को दूर कर सकूं। भिखारी बनकर आराधना मत करो।
अपने मन को एकाग्र करो। इससे आपकी इच्छाएं स्वयं समाप्त हो जाएंगी और तब तुम्हें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा। इच्छाओं के पीछे भागने से तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा। माया नहीं, तुम्हारी यह काया महाठगिनी है। इस काया के मित्र भी बनो और शत्रु भी। मित्र बनकर इसे खिलाओ-पिलाओ और शत्रु बनकर इससे खूब काम लो। इससे जितना सत्कर्म कर लोगे, वह तुम्हारी पूंजी बन जाएगी। एक बार ठान लो कि तुम्हें अनीति-अन्याय-अधर्म को स्वीकार नहीं करना है। मान-सम्मान से ऊपर उठो। मैंने भी यही पथ अपनाया था।
पुरुषार्थी बनो, परमार्थी बनो। किसी को धोखा न दो, छल न करो। असत्य के पथ पर कभी मत चलो। संघर्षों से मत डरो, उनका सामना करो। सत्य की ऊर्जा को बढ़ाओ। यह आत्मबल की यात्रा है।
अनेकों संस्थाएं हैं, जिनके पास असंख्य कार्यकर्ता हैं और अकूत धन है। किन्तु, फिर भी वे कुछ नहीं कर पाई हैं। और, हमने कम संसाधनों में वह कर दिखाया है, जिसका कोई हिसाब नहीं।
आत्मा की अमरता और कर्म की प्रधानता को स्वीकार करो। इससे तुम निर्भय हो जाओगे। सत्कर्म के पथ पर निर्भीकता के साथ बढ़ो। समाज में परिवर्तन तभी आएगा। ऐसा कोई कार्य न करो कि अपनी निगाहों में गिर जाओ। यदि तुम स्वयं की निगाहों में गिर गए, तो कभी भी ‘माँ’ के भक्त नहीं बन पाओगे। यदि कोई गलती होजाय, तो सच्चे मन से प्रायश्चित करो। ध्यान रहे कि वह गलती फिर से नहीं होनी चाहिए।
अनीति-अन्याय-अधर्म के विद्रोही बनकर रचनात्मक कार्य करो। तुम निर्भय बनो। आज के नेता भयभीत हैं–कहीं कुर्सी न चली जाय। वर्तमान में सारी राजनैतिक पार्टियां अनीति-अन्याय-अधर्म के पथ पर चल रही हैं। धर्माचार्य भी भयभीत हैं। वे भी प्रायः पथभ्रष्ट हें, अज्ञानी हैं और चरित्रहीन हैं। उन्हें जवाब देना सीखो। परमसत्ता की कृपा प्राप्त करके हम उन्हें जवाब दे सकेंगे।
जब भी पूजा में बैठो, तो सन्तुलन होना चाहिए, एकाग्रता होनी चाहिए। ध्यान करने से पहले ‘माँ’-ऊँ का क्रमिक उच्चारण करो। आज्ञाचक्र की शरण में जाओ। सारा खज़ाना आपके अन्दर है, उसकी ओर बढ़ो।
इन तीन दिनों का भरपूर उपयोग करो। मेरे जीवन की यात्रा का यदि स्पर्श कर लोगे, तो कभी भी भटक नहीं सकोगे। तुम लोग अवगुणों और विकारों के बोझ से दबे हो। उनसे मुक्ति पाओ।
मैंने विश्व अध्यात्मजगत् को जो चुनौती दी है, वह किसी गर्व और घमण्ड से नहीं दी है। वह सत्यधर्म की रक्षा के लिए दी है। एक ऐसा विश्वस्तरीय आयोजन होना चाहिए, जिसमें सारे धर्मगुरुओं का सत्यपरीक्षण हो। इससे पता चल सकेगा कि किसकी कुण्डलिनी शक्ति पूर्ण जाग्रत् है, कौन ध्यान-समाधि में जा सकता है और किसने अपने इष्ट के दर्शन किये हैं? इस प्रकार ढोंगी-पाखण्डियों का पर्दाफाश हो जाएगा, जो भावनावान् लोगों का शोषण कर रहे हैं।
मुझे कोई राजनैतिक चुनाव नहीं लड़ना है। मुझे तो रोते-बिलखते लोगों में चेतना भरनी है। मैं अपने पुरुषार्थ के बल पर इस स्थान को चैतन्य बना रहा हूँ। मैं समाज को धर्म और सत्य के पथ पर बढ़ा रहा हूँ। इस प्रकार, मानवता की सेवा के लिए भगवती मानव कल्याण संगठन, धर्म की रक्षा के लिए पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम और राष्ट्ररक्षा के लिए भारतीय शक्ति चेतना पार्टी इन तीनों धाराओं का गठन करके मैंने समाज में परिवर्तन डालने का लक्ष्य ठाना है।
आज के राजनेता प्रायः समाज को इस तरह से लूट रहेहैं कि उनके ऊपर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए। हमें यह व्यवस्था स्वीकार नहीं है और इसे हम बदलकर रहेंगे।
बलिप्रथा से बड़ा पाप और कोई नहीं है। अपने स्वार्थ के लिए निरीह पशु-पक्षियों की जान लेना एक अपराध है। इसके प्रति विद्रोह का भाव होना चाहिए। इसका अर्थ यह नहीं है कि उन मन्दिरों में जाकर तोडफ़ोड़ करो, जहां पर बलि दी जाती है। हमें इसके विरुद्ध जनता को जाग्रत् करना है। उन मन्दिरों के पुजारी जल्लाद हैं, जहां पर बलि दी जाती है। इससे कोई देवी-देवता प्रसन्न नहीं होते, बल्कि उल्टे उन्हें कष्ट होता है।
अब तक मेरे द्वारा किये गए हर महाशक्तियज्ञ में वर्षा हुई है, किन्तु चमत्कार दिखाना मेरा लक्ष्य नहीं है। मैं अपनी चेतनातरंगों के माध्यम से कार्य करता हूँ। मेरी इच्छा के विरुद्ध मेरे शरीर का स्पर्श करने वालों को 440 वोल्ट बिजली का झटका महसूस होता है। मेरे निकट रहने वाले लोगों का ऐसा अनुभव है। यह मेरी पूर्ण कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत् होने के कारण होता है। आज के किसी भी योगाचार्य की कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत् नहीं है। इसकी भूख मैं आपके अन्दर भी पैदा करना चाहता हूँ।
मैं किसी धनबल से नहीं, बल्कि आत्मबल से कार्य करता हूँ। हमारी यात्रा सत्य की यात्रा है। मुझे किसी धन या यश की भूख नहीं है। यदि ऐसा होता, तो अन्य धर्मगुरुओं की तरह मैं भी राजनेताओं के पीछे घूमता। मैंने उन्हें उनके मुंह पर करारा जवाब देना सीखा है।
आलस्य त्यागकर अपनी सामर्थ्य का पूरा उपयोग करो। नित्य सूर्योदय से पहले उठो। ‘माँ’ की भक्ति का मतलब है प्रकृति के नियमों का पालन करना। सूर्योदय से पहले पक्षी भी चहचहाने लगते हैं, किन्तु एक इन्सान है, जो उस समय गधों की तरह पड़ा सोता रहता है। सूर्य उदय होने से पहले कम से कम बिस्तर अवश्य छोड़ दो। तत्पश्चात् स्नानादि करके साधना करो।
अपने जीवन को संवार लो। कम से कम संसाधनों का जीवन जिओ। अपने बच्चों को भी यही शिक्षा दो। सत्य ही एक मार्ग है। आपको साधक बनना पड़ेगा। अवगुणों से मुक्ति इसी से मिलेगी। इसके अलावा और कोई मार्ग है ही नहीं। इसी से ऊर्जा बढ़ेगी। अपने अवगुणों को खोजो और उन्हें समाप्त करने का प्रयास करो। छोटे-छोटे बच्चों को भी इसी मार्ग पर बढ़ाओ।
बेईमानी के पथ पर मत चलो। अनीति-अन्याय-अधर्म के द्वारा आया पैसा तुम्हें पतन के मार्ग पर लेजाएगा। देश में आज एक भी संस्था ऐसी नहीं है, जिसने इतने कम समय में इतने सारे लोगों को नशामुक्त किया हो, जितना मेरे द्वारा गठित भगवती मानव कल्याण संगठन ने किया है। नशाविरोधी जनान्दोलन के अन्तर्गत इसके जितनी अवैध शराब भी किसी ने नहीं पकड़वाई है।
धन के पीछे नहीं, बल्कि ‘माँ’ की भक्ति के पीछे पागल बनो। यदि तुमने एक बार भी न्यूट्रल अवस्था का स्पर्श कर लिया, तो तुम्हारे लिए दुनिया की कोई भी धन-सम्पत्ति पैर से ठोकर मारने के बराबर होगी। तत्काल कुछ नहीं होता, यह एक क्रमिक पथ है। इसलिए धैर्य के साथ आगे बढ़ो और अपने अवगुणों को मिटाने का प्रयास करो।
आज के अधिकांश कथावाचक विकारों में ग्रसित हैं और धन के पीछे पागल हैं। आप इस नवरात्र में संकल्प लो कि नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् जीवन जियेंगे और मेरे द्वारा प्रदान की गई तीनों धाराओं के प्रति समर्पित रहेंगे।
इस स्थान पर आने वालों की नब्बे प्रतिशत कामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। इस आश्रम की ऊर्जा की तुलना किसी दूसरे स्थान से नहीं की जा सकती।
सन्तानोत्पत्ति के उपरान्त मैंने सपत्नीक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया है। मेरे मन में तब से कभी विकार नहीं आया है। यही मैं आप लोगों से भी अपेक्षा करता हूँ। यदि आप ऐसा नहीं कर सकते, तो सन्तुलित जीवन जियें।
यहां पर लोगों के गैंग के गैंग नशा छोड़ने के लिए आते हैं। उनमें से निन्यानवे प्रतिशत लोग नशामुक्त होकर जाते हैं। आखिर कौन आकर्षित करता है उन्हें इस ओर? निःशुल्क शक्तिजल के अतिरिक्त उन्हें कोई दवाई नहीं दी जाती। इस परिवर्तन को मीडिया आकर देखे। आज से तुम अपने अवगुणों को त्यागने का संकल्प लेलो। नशे-मांस से मुक्त लोग ही मेरा आशीर्वाद लेने के पात्र होते हैं। बड़े-बड़े मठ-मन्दिरों में आपको वह नहीं मिलेगा, जो यहां पर मिल जाएगा। आज जितने भी एक्सीडैण्ट हो रहे हैं, अपराध हो रहे हैं, उनके पीछे नशा एक प्रमुख कारण है।
अनेक संस्थाएं ऐसी हैं, जो अच्छा कार्य कर रही हैं। लेकिन आज के राजनेता समाज में परिवर्तन नहीं डाल पाएंगे। पवित्र आत्माएं आपके घर पर जन्म लेकर आने के लिए आतुर हैं। पात्र तो बनो। दुनिया का कोई भी धर्म अनीति-अन्याय-अधर्म करना नहीं सिखाता। धर्माधिकारी अधर्मी हो सकते हैं। किन्तु, हर धर्म मानवता की रक्षा के लिए स्थापित किया गया है।
आजकल समाज में माता के जागरण हो रहे हैं। ‘माँ’ कभी भी नहीं सोती, जो तुम उसे जगाना चाहते हो! पहले तुम अपने आपको तो जगालो। मैं इसी के लिए जनजागरण शिविरों का आयोजन करता हूँ। मेरे हज़ारों शिष्य घर-घर जाकर निःस्वार्थ भाव से जनजागरण कर रहे हैं। वे सब मेरे आशीर्वाद के पात्र हैं।
आप लोग अष्टांग योग के यम-नियमों का पालन अवश्य करें। ये जीवन का आधार हैं। इनका पालन करने से आपका मूलाधार चक्र सक्रिय हो जाएगा और कुण्डलिनी चैतन्य हो जाएगी। आज के योगाचार्य स्वयं यम-नियमों का पालन नहीं करते। रामदेव योग के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं।
सदैव हिंसा की प्रवृत्ति से बचो। मानसिक हिंसा से भी बचो। दूसरों के अहित की मत सोचो। किसी को दुःख मत दो, सिवाय अधर्मी-अन्यायिों के। यदि कोई तुम्हारी गाल पर तमाचा मारे, उसे चेतावनी देदो और यदि दुबारा हाथ उठाए, तो उसका हाथ तोड़ दो, ताकि वह तमाचा मारने लायक ही न रहे। यदि तुम बन्दर की औलाद हो, तो तीन बन्दरों वाली गांधी जी की विचारधारा का पालन ज़रूर करो। किन्तु, यदि इन्सान की औलाद हो, तो अपनी आंखें खुली रखो, कान खुले रखो और मुंह भी खुला रखो। कहीं पर किसी बहन-बेटी की इज़्ज़त लुट रही हो, तो उसे खुली आंखों से देखो, उसकी चीख-पुकार खुले कानों से सुनो तथा मुंह खोलकर उसके खिलाफ आवाज़ उठाओ और ज़रूरत पड़ने पर हाथ उठाने से भी मत चूको। यही तो ‘माँ’ की भक्ति है। नहीं तो, अनीति-अन्याय-अधर्म इसी तरह बढ़ते जाएंगे।
सदा सत्य का पालन करो। सत्यपथ पर चलने से तुम्हें थोड़ा कष्ट तो ज़रूर होगा, किन्तु उससे आत्मसन्तुष्टि मिलेगी। किसी को भ्रम में न डालें और छल-प्रपंच से दूर रहें।
मन-वचन-कर्म से कभी भी ऐसी चीज़ की इच्छा या उसे प्राप्त करने का प्रयास न करो, जिस पर तुम्हारा अधिकार न हो। किसी का कोई सामान चुराना और छल या बलपूर्वक प्राप्त करना, जिस पर अपना अधिकार न हो, उचित नहीं है।
विषयविकारों से हमेशा दूर रहो। विवाह से पूर्व पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का पालन, विवाह के बाद एक पति/पत्नी का व्रत और सन्तानोत्पत्ति के बाद पुनः ब्रह्मचर्यव्रत का पालन होना चाहिए।
कम से कम संसाधनों में जीवन जिओ। आवश्यकता से अधिक सुखसाधन का संग्रह मत करो। आज के लोग प्रायः चूहों की तरह कई-कई पीढ़ियों के लिए धन-सम्पत्ति जोड़ते रहते हैं। इस प्रकार वे अभावग्रस्त लोगों का हक मारते हैं और हमेशा परेशान रहते हैं। धन कमाना बुरी बात नहीं है, यदि न्यायोचित ढंग से कमाया जाय। पोखर और तालाब भी भर जाने पर उनका पानी बाहर की ओर बहने लगता है। इसी प्रकार से तुम्हें भी आवश्यकता से अधिक धन को अभावग्रस्त लोगों की सहायता में लगाना चाहिए।
सदैव अपने शरीर और मन को शुद्ध और पवित्र रखो। शुद्ध-सात्त्विक भोजन करो और काम-क्रोध एवं राग-द्वेष आदि को त्याग दो।
अपने पुरुषार्थ तथा सत्कर्मों से उपार्जित जो भी धन-संसाधन हों, उनमें सन्तुष्ट रहो। सुख-दुःख, लाभ-हानि, यश-अपयश में सदैव प्रसन्नचित्त रहो।
सदैव तपस्वियों का जीवन जियो। विपरीत परिस्थितियों में भी जप-तप-ध्यान-व्रतादि का दृढ़ता से पालन करो और पुरुषार्थ करो।
प्रतिदिन अच्छी पुस्तकों, महापुरुषों की जीवनियों तथा उनके विचारों का अध्ययन करो। यथासम्भव दूसरे धर्मों के ग्रन्थों का भी अध्ययन करो। इससे तुम्हारे अन्दर दूसरे धर्मों के प्रति भी श्रद्धा उत्पन्न होगी।
आपके अन्दर अपने इष्ट और परमसत्ता के प्रति समर्पण होना चाहिए। सदैव उनका गुणगान, स्मरण और भजन-कीर्तन करें।
बड़े-बड़े ज्ञानी भटक सकते हैं, किन्तु आत्मज्ञानी कभी भी भटक नहीं सकता। इसलिए अपनी आत्मा का अध्ययन करो।
इस देश की आज़ादी के लिए क्रान्तिकारियों ने अपने जीवन का बलिदान किया। क्या उन्होंने इसी समाज के लिए किया, जैसा जीवन वह जी रहा है? पहले हम अंग्रेज़ों के गुलाम थे, आज अपने राजनेताओं के गुलाम हैं। क्रान्तिकारियों के बलिदानों को भूलो नहीं। उन्हें कितनी यातनाएं दी गईं! उन्होंने क्या सोचा था और आज क्या हो रहा है? राजनेताओं को यदि सत्ता से हटाना है, तो उन्हें मुंहतोड़ जवाब देना होगा। तुरन्त कुछ नहीं हो पाएगा। धीरे-धीरे अपनी नींव को मज़बूत करो।
परमसत्ता हमें सब कुछ दे रही है, खुले दिल से लुटा रही है। हमें भी इसी प्रकार परोपकारी बनना चाहिए। अपने आपको ‘माँ’ की इच्छा पर छोड़ दो। अपनी मर्ज़ी का मत चाहो। वह वही करेंगी, जो उनकी इच्छा होगी और तुम्हारे लिए कल्याणकारी होगा।
द्वितीय दिवसः दिव्य उद्बोधन
दृश्यजगत् का हर पल हमारी भावना पर आधारित होता है। इसमें छल-प्रपंच है, जबकि अदृश्य जगत् में कोई छल-प्रपंच नहीं होता। हमारे संस्कार हमें पात्र बनाते हैं। हमें एक-एक पल का उपयोग करना चाहिए। कई लोग ऐसा नहीं कर पाते। उनका यह मूल्यवान् समय टहलने-घूमने में निकल जाता है। सौभाग्यशाली वही है, तो समय का सदुपयोग कर लेता है।
यम-नियमों का पालन करने वाले साधक बनो और अपनी आत्मशक्ति को बढ़ाओ। इससे भौतिक शक्ति स्वयं आ जाएगी और प्रेम, करुणा एवं वात्सल्य सहज भाव से आजाते हैं। सत्यपथ पर चलो, सत्कर्मों की पूंजी बढ़ाओ और अपने जीवन को संवारो-सुधारो। ‘माँ’ के सच्चे भक्त बनो, अपने पतन को रोको और धीरे-धीरे सत्य की पूंजी अर्जित करो। इससे सुख-शान्ति-समृद्धि आएगी।
शरीर छोड़ने पर सारी भौतिक सम्पदा यहीं पड़ी रह जाती है। इसे कमाने के लिए आपने अपने कितने संस्कारों को बिगाड़ा होगा! ‘माँ’ का नाम एक बार लेना भी आपके लिए फलीभूत होता है और वह आगे आपके साथ जाता है।
अपने जीवन में परिवर्तन लाओ। कुछ परिवर्तन आया भी है। इसे बिखरने मत देना, बल्कि और बढ़ाना। नए जीवन में आपको और सुख-सम्पदा प्राप्त होगी, आपका मन पवित्र बन जाएगा तथा आपका आभामण्डल प्रभावक होगा।
नीगेटिव तरंगों के आवरण को समाप्त करो। सामान्यतया देवी-देवता आपको याद नहीं आते, किन्तु भय के समय अनायास ही सब याद आजाते हैं। यह भावना चौबीसों घण्टे बनी रहनी चाहिए। तुम्हारा गुरु भी तुम्हें संकट के समय ही याद आता है। मैं तुम्हारे अनुभवों को अनुभव करता रहता हूँ। समस्याग्रस्त होने पर गुरु याद आते हैं, किन्तु समस्या समाप्त होते ही सब भूल जाते हैं।
अलौकिक शक्तियां आपके अन्दर भरी हें, फिर भी पागल बने हो। अपने गुरु के आदेश को जिस दिन अपना धर्म-कर्म मानने लगोगे, तुम्हारा पतन रुक जाएगा। जो गुरु के महत्त्व को नहीं समझता, वह दो कदम आगे और दो कदम पीछे चलता रहता है। गुरु के हर आदेश में तुम्हारा कल्याण छिपा होता है। जब तक तुम अज्ञानी हो, मेरा प्रयास तुम्हें आगे बढ़ाने का रहेगा।
शिविर के लिए जब मैं आपका आवाहन करता हूँ, तो कई दिन पहले से आपके कल्याण के बारे में चिन्तन करता हूँ, साधना करता हूँ। जब अपने घर से आप यहां के लिए चलते हैं और जब यहां से घर के लिए प्रस्थान करते हैं, तब भी आप लोग मेरे चिनतन में रहते हैं।
थोड़ी देर आत्मचिन्तन करो और अपने चित्त को एकाग्र करो। कलिकाल का यह वातावरण बहुत ही भयावह है। चारों ओर गन्दा वातावरण है। टीवी के माध्यम से बहुत कुछ गन्दा परोसा जा रहा है। इससे बचने के लिए और साधना करनी होगी तथा मन को एकाग्र करना होगा।
मैं समाजकल्याण के लिए आया हूँ। मैं अन्य धर्मगुरुओं की तरह नहीं हूँ। जैसी यात्रा मैं तय कर रहा हूँ, वैसी अन्य कोई नहीं कर रहा है।
जब आश्रम निर्माण की बात आई, तो मुझे कहा गया कि किसी महानगर में बनाओ। किन्तु, मैंने उस स्थान का चयन किया, जो मानवता के लिए हितकारी था। उस समय यहां पर भयावह वातावरण था। संघर्ष करके धीरे-धीरे उसे ठीक किया गया। मुझे अपने पुरुषार्थ पर विश्वास था और अपने इष्ट पर विश्वास था। मैंने उसी स्थान को चुना, जो मैंने ध्यान में देखा था।
यहां पर तीन-चार शिष्यों के साथ झाड़झंखाड़ पार करके मैं एक स्थान पर पहुंचा, जहां पर एक नुकीला पत्थर था। उसके ऊपर एक पैर के बल खड़े होकर मैं लगभग आधे घण्टे तक ध्यानस्थ रहा। ध्यान टूटने के बाद मैंने कहा कि यह वही स्थान है, जहां पर मूलध्वज मन्दिर बनेगा। यह ‘माँ’ के द्वारा निर्देशित था।
अनेक लोगों के द्वारा हमें हतोत्साहित किया गया और मज़ाक उड़ाया गया कि ये कुछ दिन बाद यहां से भाग जाएंगे। किन्तु, हमने हिम्मत नहीं हारी। बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। प्रतिदिन छः-छः, सात-सात घण्टे परिश्रम करना पड़ा और दोपहर का भोजन भी मुझे त्यागना पड़ा। गर्मी-सर्दी और बरसात की परवाह किये बिना परिश्रम करते रहे। मैंने ऐसा जीवन जिया है और प्रसन्नता से जिया है तथा दिन-रात एक किया है। उसी का परिणाम है कि यह अंधियारी आज उजियारी बन गया है। अब यहां पर स्थायी निर्माण भी होगए हैं। तेरह अक्टूबर से नए चालीसा पाठ मन्दिर की छत भी पड़ेगी।
मैं आलस्य और विकारों का जीवन नहीं जीता। सब कुछ त्यागकर मैं आपके कल्याण के लिए साधनापथ पर बढ़ा। आज लाखों लाख लोग ऐसे ही तैयार किये जा रहे हैं। आप सभी मेरे अपने हैं। आप सभी मेरे आदेशों का पालन करें। मैं ऐसे शिष्यों को देखना चाहता हूँ, जो लोभी-लम्पट और आलसी न हों। वे पुरुषार्थी हों, सच्चे, ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ हों। उनमें आत्मकल्याण और जनकल्याण करने की सच्ची तड़प होनी चाहिए। आपका गुरु अपनी पूरी सामर्थ्य झोंक रहा है।
आप लोग सच्चाई-ईमानदारी के बल पर तीनों धाराओं को गति दो। क्या हम अनीति-अन्याय-अधर्म को मिटा नहीं सकते? एक दिन हम दूसरे देशों को भी दिशा-निर्देश देने में सामर्थ्यवान् बनेंगे।
दान नहीं, मैं समर्पण स्वीकार करता हूँ। पैसे की कमी के कारण मेरा काम कभी भी नहीं रुका। ‘माँ’ की कृपा से सब कुछ होता गया। गलत रास्ते का मैं उपयोग नहीं करता। मैंने अपने शिष्यों को कर्तव्यबोध कराया है कि अपने उपार्जित धन का दशांश समर्पित करो, कम-से-कम पांच प्रतिशत तो करो। मैंने अपने आठवें महाशक्तियज्ञ में कहा था कि मैं अपने शिष्यों को पात्र बनाऊंगा। उनके समर्पण से ही यह पावन धाम विश्व की धर्मधुरी बनेगा। मैंने इसके लिए किसी को बाध्य नहीं किया है। यदि शिष्य नहीं भी समर्पित करेंगे, तो मैं दूसरे मार्ग से सब कुछ कर लूंगा। किन्तु, तब तुम लोग वह नहीं बन पाओगे, जो मैं चाहता हूँ। यदि तुम पांच प्रतिशत भी समर्पित नहीं कर सकते, तो तुम मेरे कैसे शिष्य हो?
यज्ञस्थल के निर्माण में पच्चीस से तीस करोड़ लागत आने की सम्भावना है। कार्यकर्ता बैठक में चिन्तन सुनने के बाद आप सबने दोनों हाथ उठाकर समर्पण का संकल्प लिया था। किन्तु, निन्यानवे प्रतिशत ने एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दिया। एक बार पुनः संकल्प लो। इस बार वही लोग हाथ उठाएं, जो पांच प्रतिशत देने के लिए तैयार हैं।
मैं अपना यह स्थूल शरीर त्यागकर सूक्ष्मरूप से यहीं सिद्धाश्रम पर रहूंगा। तुम भी पुनः यहीं पर आओगे। तुमसे मेरा रिश्ता एक दिन के लिए नहीं है, बल्कि अनन्तकाल के लिए है। यह यात्रा एक जन्म में पूर्ण नहीं हो सकती।
‘माँ’ का आवाहन करना इतना आसान नहीं है। आपका भी पुरुषार्थ होना चाहिए। आपका भी समर्पण होना चाहिए। तब ‘माँ’ को यहां पर आना ही पड़ेगा। जब शेष सौ महाशक्तियज्ञ होंगे, तब उनका लाभ आप सबको भी मिलेगा।
आप लोगों ने दो दिन तक योगासन किये। इससे आपका अंग-अंग अकड़ गया होगा। जब नियमित रूप से रोज़ करोगे, तो ऐसा नहीं होगा। आज मैं आपको प्राणशक्ति के बारे में बताना चाहूंगा। प्राण हमारा सर्वस्व है। इसके निकलते ही यह शरीर सड़ने लगता है। इसी के द्वारा हम प्रकृति से जुड़े हैं। अतः अपनी प्राणशक्ति को जगाओ। यह एक विस्तार का विषय है। इसके विषय में ‘शक्तियोग’ पुस्तक में संक्षिप्त जानकारी दी गई है, उसे पढ़ो। प्राण से बड़ी कोई औषधि नहीं है।
नित्य प्राणायाम करो। इससे पच्चीस प्रतिशत दूषित श्वास बाहर निकल जाएगी। एक महीने तक करके देखो, फिर कभी छोड़ नहीं पाओगे। पूरी गहरी सांस भरो, कुछ देर रोको और फिर धीरे-धीरे बाहर निकाल दो। जब ऐसा करोगे, तो तुम्हें मेरी याद आएगी। अब ‘माँ’-ऊँ का क्रमिक उच्चारण करो। इससे आपको ‘माँ’ की कृपा मिलेगी और तुम मेरे नज़दीक आओगे। अन्त में, अपने आज्ञाचक्र पर ध्यान लगाओ। किसी भी देवी-देवता की छवि का ध्यान न करो, तब भी आप अपनी आत्मा और गुरु के नज़दीक होगे। कुर्सी पर बैठकर ध्यान करो या लेटकर, कोई फर्क नहीं पड़ता। इससे एक अलग शान्ति प्राप्त होगी। धीरे-धीरे अपने शरीर का भान भूल जाओगे। अनेक बीमारियां दूर होंगी और मन एकाग्र होने लगेगा।
इन तीनों क्रियाओं के लिए कम-से-कम पांच-पांच मिनट दो। अपने बच्चों को भी इसके लिए प्रेरित करो। आपके गुरु ने भी यह पथ तय किया है। यदि यह क्रम एक दिन छूट जाय, तो अगले दिन उसकी भरपाई करो। आज के इस नवमी पर्व पर इसका भी संकल्प लो। इसे भी गुरुआज्ञा समझो। आपको लगेगा कि आपका गुरु जो कहता है, वह सत्य है। अन्ततः, जिन रिश्तों के पीछे आप लोग पागल हो रहे हो, वे पैर से ठोकर मारने के बराबर लगेंगे।
यहां पर मैं अवगुणी लोगों का भी स्वागत करता हूँ, बशर्ते कि वे अपने अवगुण मुझे समर्पित करने आएं। यह नशामुक्ति केन्द्र है। कई लोग यहां पर शराब पीकर उसे छोड़ने आते हैं। (दोनों हाथ उठवाकर संकल्प कराया गया कि नशे-मांस से मुक्त रहकर चरित्रवान् जीवन जियेंगे।) यही ‘माँ’ की सच्ची भक्ति है। अपने विकारों को त्याग दो, तो न ‘माँ’ तुमसे दूर हैं और न तुम ‘माँ’ से दूर हो। आपका गुरु हर पल आपका कल्याण चाहता है।
आसमान पर पैर रखने की बात मत सोचो और धरातल पर चलना सीखो। दूब की तरह जीवन जीने की कला ही आपको शीर्ष पर पहुंचाएगी। आप लोगों ने देखा होगा कि बरसात में बड़े-बड़े झाड़-झंखाड़ उग आते हैं और थोड़ी सी धूप लगते ही सूखकर नष्ट होजाते हैं। जबकि दूब धरती से चिपककर रहती है और हमेशा हरी-भरी रहती है। आश्चर्यजनक रूप से उसका विस्तार होता रहता है और वह कभी नहीं सूखती। इसी तरह तुम भी अपने गुरु से चिपके रहोगे, तो तुम्हारा जीवन हरा-भरा हो जाएगा।
नेपाल से आए शिष्यों से भी मैं चाहूंगा कि वे भी इन संकल्पों पर दृढ़ रहें। नेपाल में भी ये ही समस्याएं हैं। चीन चढ़ा आ रहा है। तुम उसके नौकर बनकर रह जाओगे। अपने नेताओं को बाध्य करो कि चीन के सामान की बिक्री न होने दें और अपने उद्योग लगाएं। भविष्य में कभी-न-कभी एक शिविर नेपाल में भी दिया जाएगा।
भारतीयों को भी मैं बताना चाहता हूँ कि चीन जैसा घटिया देश कोई नहीं है। संकल्प लें कि जो खरीद चुके, सो खरीद चुके। आगे से चीन का बना सामान नहीं खरीदेंगे। वहां के सामान का बहिष्कार करो।
आगामी शक्ति चेतना जनजागरण शिविर धर्मश्री बालाजी प्रांगण, सागर (म.प्र.) में 26, 27 नवम्बर 2016 में सम्पन्न होगा। साथ ही, रायपुर (छ.ग.) में नशामुक्ति महाशंखनाद शिविर 11, 12 फरवरी 2017 में होगा। यह शिविर ऐतिहासिक होना चाहिए।
कभी भी पद के पीछे मत दौड़ो। कुछ लोग पद से हटा देने से संगठन को छोड़ने के लिए तैयार होजाते हैं। ऐसे लोग दुर्भाग्यशाली हैं। यहां पर पद नहीं, कार्य महत्त्वपूर्ण है। अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन पूर्ण समर्पण के साथ करो। अपना वर्चस्व मत समझो कि पद मिल गया, तो तुम ही सब कुछ हो। जितना बड़ा पद मिल जाय, अपने आपको उतना ही छोटा मानकर सहयोग करो। आदेशों का उल्लंघन करने पर दण्ड दिया जाएगा, यद्यपि प्रायश्चित करने का विधान भी है।
एक भी सैनिक हमारा यदि शहीद होता है, तो देश कमज़ोर होता है। देश के अन्दर जो भ्रष्टाचारी हैं, उन्हें क्यों नहीं खत्म करते? पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में घुसकर तीस-पैंतीस आतंकवादियों को इसलिए मारा गया, क्योंकि देश में विद्रोह की ज्वाला भड़कने वाली थी। आजकल उद्योगपति पनप रहे हैं और किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
स्वच्छता अभियान चलाया गया। अपनी पार्टी के लोगों से पूछो कि इसके अन्तर्गत बनाये गये शौचालयों की कितनी दीवारें गिरी हैं? इसमें जमकर भ्रष्टाचार हुआ है। नीचे से लेकर ऊपर मंत्रियों तक पैसा गया है। कितना अच्छा होता कि स्मार्ट सिटी और बुलेट ट्रेन की बजाय, ग्रामीण क्षेत्र को संवारते तथा पैसेन्जर ट्रेनों की संख्या और बढ़ा देते।
चुनाव के समय नाना प्रकार के लालच देते हो, बेटियों के मामा बन जाते हो। अरे, तुम तो कंस मामा हो। जनता तुम्हें सबक सिखाएगी। नीतीश कुमार ने बिहार में विकास किया या नहीं किया, किन्तु नशाबन्दी करके बहुत बड़ा कार्य किया है। मेरा उसे पूर्ण आशीर्वाद है। नरेन्द्र मोदी ने एक भी कार्य गरीबों के हित में नहीं किया है।
उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव बिल्कुल विफल रहे हैं। उन्हें सबक सिखाना है। धीरे-धीरे अपनी नींव मज़बूत करो। या तो ये लोग सुधरेंगे, नहीं तो हम इन्हें सुधारेंगे। हमें इन भ्रष्टाचारियों को कभी भी वोट नहीं देना है। भारतीय शक्ति चेतना पार्टी का गठन मैंने इन्हें सुधारने के लिए ही किया है। अगले वर्ष चुनाव हैं। उत्तरप्रदेश से आए लोग हाथ उठाकर कहें कि भारतीय शक्ति चेतना पार्टी को वोट देंगे और सपोर्ट भी करेंगे। यदि तुम लोग ऐसा करोगे, तो तुम्हें मेरा आशीर्वाद रहेगा। आज हम अकेले हैं, कल हज़ारों लोग हमारे साथ खड़े नज़र आएंगे।
तृतीय दिवस- प्रथम सत्र
गुरुदीक्षा
शिविर के अन्तिम दिन सभी दीक्षार्थी शिविर पण्डाल में प्रातः सात बजे तक पहुंच गए थे। ठीक समय पर परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का शुभागमन हुआ। दीक्षा प्रदान करने से पूर्व आपश्री ने एक संक्षिप्त उद्बोधन दियाः
गुरु और शिष्य का रिश्ता सब रिश्तों में सबसे पवित्र, स्थायी और महत्त्वपूर्ण होता है। गुरु हमें पतन के मार्ग पर जाने से बचाते हैं। अब तक आपसे जो भी गलतियां हो गई हैं, सो हो गईं, किन्तु अब आगे से सत्यपथ पर चलना है। गुरु हर व्यक्ति को शिष्य के रूप में स्वीकार करता है। शिष्य भले ही तोड़ दे, किन्तु गुरु इस रिश्ते को कभी नहीं तोड़ता है।
दीक्षा के समय मैं अपना चरणपूजन नहीं कराता हूँ। मैं आपको अपने हृदय में बैठाता हूँ। इस समय शिष्य गुरु के लिए पूज्य होजाते हैं। आप लोग जैसे भी हैं, मैं सबको समान भाव से स्वीकार करता हूँ। यदि कोई बच्चा स्कूल में नाम लिखाकर पढ़े नहीं, तो वह सफल नहीं हो सकता। इसी प्रकार, खाली दीक्षा प्राप्त कर लेना पर्याप्त नहीं है। आध्यात्मिक उन्नति के लिए नियमित साधना करना ज़रूरी है।
आपके घर में जैसी व्यवस्था हो, अलग से एक साधनाकक्ष बना सकते हैं, ‘माँ’-गुरुवर की संयुक्त छवि को अलमारी में रख सकते हैं या दीवार पर टांग सकते हैं। इस प्रकार नित्यसाधना करें। अपने घर के ऊपर ‘माँ’ का ध्वज लगायें। माथे पर कुंकुम का तिलक लगाएं। आपका आज्ञाचक्र सदैव आच्छादित होना चाहिए। शक्तिजल का नित्यपान करें। अपने बच्चों को भी पिलाएं। प्रत्येक गुरुवार का व्रत रखें। सात्त्विक भोजन करें। हर महीने की कृष्णाष्टमी का भी व्रत रख सकते हैं। मैं स्वयं इस व्रत को रखता हूँ और अनुष्ठान करता हूँ। यदि किसी कारणवश यह छूट जाए, तो अगले दिन नवमी को या फिर चतुर्दशी को रख सकते हैं। तीनों दिनों का एक समान फल रहता है।
अज्ञानता में हो गई गलती के लिए ‘माँ’ की साधना में कोई दण्ड नहीं होता। जान-बूझकर गलती करेंगे, तो दण्ड अवश्य मिलेगा। गुरु और ‘माँ’ से बड़ा कोई क्षमाशील नहीं है।
(अब तीन बार शंखध्वनि की गई तथा मेरुदण्ड सीधी करके तीन-तीन बार ‘माँ’-ऊँ का उच्चारण किया गया। तदुपरान्त, सभी दीक्षार्थियों को एक संकल्प कराया गया, जिसका सार संक्षेप निम्नवत् हैः मैं धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज को अपना गुरु स्वीकार करता/करती हूँ, जीवनपर्यन्त नशा-मांसाहारमुक्त, चरित्रवान् जीवन जिऊंगा/जिऊंगी, भगवती मानव कल्याण संगठन एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम के दिशा-निर्देशों का पालन करूंगा/करूंगी तथा मानवता की सेवा, धर्मरक्षा एवं राष्ट्ररक्षा के लिए प्रदत्त तीनों धाराओं के प्रति तन-मन-धन से पूर्णतया समर्पित रहूँगा/रहूँगी।)
यदि आप इस संकल्प पर अडिग रहे, तो कोई भी कभी आपको मुझसे दूर नहीं कर सकेगा। यह संकल्प आपके जीवन का आधार बन जाना चाहिए। गुरु जब किसी मंत्र को उच्चारित करता है, तो वह उत्कीलित होजाता है।
(अब गुरुवरश्री के द्वारा निम्नलिखित मंत्रों का तीन-तीन बार उच्चारण कराया गयाः
बजरंगबली भगवान् की कृपा प्राप्त करने के लिए- ॐ हं हनुमतये नमः, 2. भैरवदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए-ॐ भ्रं भैरवाय नमः, 3. गणपतिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए- ॐ गं गणपतये नमः, 4. प्रकृतिसत्ता के द्वारा उच्चारित गुरुमंत्र- ॐ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः तथा 5. ‘माँ’ का चेतनामंत्र-ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नमः।)
किसी भी मंत्र में कोई भेद नहीं है। किसी का भी उच्चारण आगे-पीछे किया जा सकता है। किन्तु, सामूहिक रूप से करने के लिए उपर्युक्त क्रम अपनाते हैं। इसी प्रकार, किसी भी छवि को पहले या बाद में स्नान या तिलक आदि कर सकते हैं। भय की ज़रूरत नहीं है। चिन्ता और भय से मुक्त होकर मन की एकाग्रता के साथ साधना करें। यदि मन न भी लग रहा हो, तो भी साधना अवश्य करें। धीरे-धीरे मन लगने लगेगा। यदि तुम्हारे द्वारा किये गये मंत्र का उच्चारण तुम सुन रहे हो, तो ‘माँ’ और गुरु दोनों सुन रहे हैं, क्योंकि तुम्हारे शरीर में गुरुग्रन्थि और ‘माँ’ की ग्रन्थि दोनों स्थापित हैं।
शक्तिजल को सदैव निःशुल्क वितरित करें। नशे-मांस में लिप्त व्यक्ति को इसके सेवन से कोई लाभ नहीं होता, किन्तु हानि भी नहीं करेगा। उसके लिए यह सामान्य जल की भांति कार्य करेगा। यहां से जाकर मूलध्वज की एक परिक्रमा करें और श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मन्दिर में कम-से-कम एक पाठ व नमन करें।
अन्त में प्रणाम करते समय सभी दीक्षाप्राप्त लोगों को एक-एक शीशी निःशुल्क शक्तिजल दिया गया। साथ-साथ दीक्षापत्रक भरकर लौटाने के लिए दिया गया।
तृतीय दिवस-द्वितीय सत्र
सामूहिक विवाह क्रम
इस सत्र में इकतीस नवयुगलों के विवाहसंस्कार योगभारती विवाह पद्धति के अनुसार सम्पन्न हुए। इससे पूर्व परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् ने एक संक्षिप्त उद्बोधन दियाः
आज के समाज में विवाह के समय आध्यात्मिकता दूर-दूर तक नहीं होती। सिगरेट-बीड़ी, गुटखा-पानमसाला और शराब जैसे नशे पेश किये जाते हैं। डीजे के शोर से वातावरण अशान्त रहता है। मैंने निर्णय लिया था कि जीवन के इस सबसे महत्त्वपूर्ण बन्धन के अवसर पर सात्त्विकता रहनी चाहिए। इस अवसर पर ‘माँ’ के ध्वज पर वर-कन्या दोनों के हाथ की छाप लगाकर संकल्प कराया जाता है कि दोनों जीवनपर्यन्त इस सम्बन्ध को निभाएंगे। इस पद्धति के अनुसार किये गए विवाहसंस्कार में काफी बड़ा खर्च बचता है तथा बेकार के आडम्बर नहीं होते। विवाह सम्पन्न होने के लगभग एक महीने के अन्तराल में वर-वधू सिद्धाश्रम में आकर एक दिन लैट्रीन्स की सफाई, एक दिन गौशाला में गोसेवा और एक दिन माँ अन्नपूर्णा के भण्डारे में सभी लोगों को भोजन कराते हैं। इस प्रकार ‘माँ’ का आशीर्वाद तभी प्राप्त होता है, जब लोग सेवाकार्य करते हैं।
यह व्यवस्था गरीब लोगों के लिए है। अमीर लोग भी यदि इसे अपना लें, तो निरर्थक खर्च किये जाने वाले पैसे की बचत होगी। उसे यदि गरीब लड़कियों की शादी में लगाया जाय, तो आपको शान्ति एवं सन्तोष मिलेगा।
अब तीन बार शंखध्वनि करके इस कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। सबसे पहले वर-कन्या के हाथों में अक्षत, पुष्प, द्रव्य, तुलसीपत्र, सुपाड़ी और जल रखकर संकल्प कराया गया कि वे एक-दूसरे को पति/पत्नी के रूप में स्वीकार करते हैं। संकल्प की सामग्री को फेंका नहीं जाता, बल्कि हाथों की छाप लगे ध्वज में बांधकर जीवनपर्यन्त सुरक्षित रखा जाता है। अब वर-कन्या ने एक दूसरे का माल्यार्पण किया। तत्पश्चात्, वर के रक्षाकवच और कन्या की चुनरी में मौली के द्वारा गांठ लगाकर गठबन्धन किया गया। इसे कभी खोला नहीं जाता और जीवनपर्यन्त घर में रखा जाता है। अब वर ने कन्या की मांग में सिन्दूर भरा और उसके गले में मंगलसूत्र धारण कराया।
तत्पश्चात्, फेरों का क्रम प्रारम्भ हुआ। इस अवसर पर वर-कन्या आगे-पीछे नहीं, बल्कि बराबर-बराबर चले। उन्होंने अपने हाथ में पुष्प लेकर मंच का एक फेरा पूर्ण किया तथा मंच पर समर्पित करते हुए नमन किया और अगले फेरे के लिए पुनः पुष्प लेकर चले। इस बीच ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे चलते रहे। ये सातों फेरे क्रमशः पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश, वायु तत्त्वों तथा दृश्य एवं अदृश्य जगत् की स्थापित शक्तियों को साक्षी मानकर लगाए गए।
सातों फेरे पूर्ण करके वर-कन्याओं ने मूलध्वज मन्दिर में एक-एक परिक्रमा की और श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मन्दिर में नमन किया। जिन इकतीस नवयुगलों के विवाहसंस्कार सम्पन्न हुए, उनके नाम निम्नवत् हैंः
1 शक्तिस्वरूपा बहन संध्या शुक्ला संग सौरभ द्विवेदी, 2. ज्योति सिंह संग बृजेन्द्र सिंह, 3. ऊषा रैकवार संग बलिराम रैकवार, 4. रसना देवी संग मनीष कुमार, 5. अर्चना वर्मा संग मनीष वर्मा, 6. सावित्री देवी संग केवला प्रसाद, 7. अल्पना कुशवाहा संग मोहित कुशवाहा, 8. मोहिनी देवी संग विकास वर्मा, 9. शिल्पा सिंह संग अनुराग सिंह, 10. रश्मि सिंह संग चतुर सिंह, 11. ऊषा देवी संग राजकुमार कुशवाहा, 12. निरंजनी राजपूत संग महेश राजपूत, 13. स्वाति सिंह संग दीपक परमार, 14. पिंकी उमराव संग सरजू पटेल, 15. सीमा राजपूत संग पुष्पेन्द्र राजपूत, 16. रानू देवी संग रोहित कुमार, 17. सपना देवी संग बालकिशन, 18. कमली बाई संग संदीप सिंह, 19. जयन्ती सन्त संग जितेन्द्र कुमार, 20. गायत्री देवी संग ज्ञान सिंह, 21. ऋषि राजपूत संग रजनीश राजपूत, 22. सपना पाठकर संग पंकज पाठकर, 23. रिंकी देवी संग बलराम चन्द्रवंशी, 24. रुचि शर्मा संग अजय शर्मा, 25. डॉ. नैन्सी सिसोदिया संग अमित चौहान, 26. पूनम देवनाथ संग रवि दोहानी, 27. सोमवती चन्द्रवंशी संग ज्ञान प्रसाद, 28. जानकी कोल संग कृष्ण कुमार कोल, 29. लक्ष्मी देवी संग बृजमोहन, 30. अन्नू वर्मा संग मनीष वर्मा, 31. लक्ष्मी देवी संग सियाराम। तदुपरान्त, पुरस्कार वितरण समारोह हुआ। इसके अन्तर्गत सर्वाधिक जनजागरण करने वाले तीन टीम प्रमुखों को उनके इस सराहनीय कार्य के लिए भगवती मानव कल्याण संगठन की केन्द्रीय अध्यक्ष शक्तिस्वरूपा बहन पूजा योगभारती जी के द्वारा पुरस्कृत किया गया। इनमें प्रथम रहीं ज़िला-बांदा (उ.प्र.) की कु. सोनी सिंह जी, जिन्होंने 24 घण्टे के 72 चालीसा पाठ, 05 घण्टे के 82 चालीसा पाठ और 69 आरतीक्रम कराए। द्वितीय स्थान पर रहे खागा, ज़िला-फतेहपुर (उ.प्र.) निवासी श्री राजेश त्रिपाठी जी, जिन्होंने 24 घण्टे के 62 चालीसा पाठ, 05 घण्टे के 04 चालीसा पाठ और 07 आरतीक्रम कराए। और, तृतीय स्थान पर रहीं ज़िला-बांदा (उ.प्र.) की श्रीमती रानी गुप्ता जी, जिन्होंने 24 घण्टे के 29 चालीसा पाठ, 05 घण्टे के 83 चालीसा पाठ और 31 आरतीक्रम कराए। इन्हें क्रमशः इक्कीस हज़ार, ग्यारह हज़ार तथा पांच हज़ार रुपए नकद और संगठन का एक-एक बैग, शंख तथा ड्रैस के लिए कपड़े दिये गए।
इस अवसर पर महाराजश्री ने कहा कि इन लोगों ने रात-दिन कार्य करके यह स्थान प्राप्त किया है। इनके लिए मेरा विशेष आशीर्वाद है।
तत्पश्चात्, दो कर्मठ श्रमिकों को ‘श्रमशक्ति पुरस्कार’ प्रदान किया गया। ये हैं श्री अशोक कुमार शाह जी, पुत्र श्री लक्ष्मण शाह जी, ग्रा. सावन बहार, ज़िला-रोहतास (बिहार) तथा श्री अर्जुन सिंह गौड़ जी, पुत्र श्री चन्दन सिंह गौड़, ग्राम-डोकर सता, झलौन, तह.-तेन्दूखेड़ा, ज़िला-दमोह (म.प्र.)। इन दोनों को ग्यारह-ग्यारह हज़ार रुपए नकद तथा संगठन का एक-एक बैग, शॉल और प्रमाणपत्र प्रदान किया गया।
इस अवसर पर परम पूज्य गुरुवरश्री ने कहा कि वास्तव में ये विशिष्ट कार्यकर्ता महान् हैं। नियमित कार्य के अतिरिक्त भी इन्हें जब भी किसी कार्य के लिए बुलाया गया, ये दौड़े चले आए और कार्य को समाप्त करके ही गए। ऐसे लोग मेरे ध्यान में असंख्य बार आते हैं।
अब परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का नियमित दिव्य उद्बोधन हुआः
असुरत्व के पथ पर जाने वालों की क्या दशा होती है? रावण का क्या हाल हुआ? विजयादशमी के पावन पर्व पर आपको यह विचार करने की ज़रूरत है। इसलिए सत्य का, जगज्जननी जगदम्बा का सहारा लो। यदि स्वयं पर विजय पाने में सफल हो गए, तो आप सच्चे विजेता कहलाएंगे।
आपको तड़पती मानवता का सहारा बनना है। ‘माँ’ ने आपका चयन किया है कि आप एक मील का पत्थर बन सकें। यह सत्य की यात्रा है। हम धर्मपथ पर चल रहे हैं। अपनी शक्तियों को समझो और साधनापथ पर चलो। वे शक्तियां जाग्रत् होती चली जाएंगी।
संगठन में बहुत बड़ी शक्ति है और जिस पर ‘माँ’ की कृपा हो, उसका तो कहना ही क्या! इस संगठन से जुड़े असहाय लोगों के चेहरे पर अब ओज है, तेज है और वे दूसरों का सहारा बन रहे हैं। वे तीनों धाराओं के प्रति समर्पित हैं। उन्हें मेरा पूर्ण आशीर्वाद रहेगा।
रक्तबीज के रक्त की एक बूंद धरती पर गिरते ही उसके समान रक्तबीज उत्पन्न होजाता था। उसी की भांति मैंने तुम्हें अपना चेतनाअंश बनाया है, जिससे तुममें भी वे गुण पैदा हो जायं, जो मुझमें हैं। अन्यायी-अधर्मियों को अब हमारे संगठन से खौफ आने लगा है। उन्हें आपका रक्षाकवच ज़रूर याद आता होगा।
आप लोग बहुत अच्छा जनजागरण कर रहे हैं, किन्तु और प्रयास करने की ज़रूरत है। दूसरे लोग क्या कहते हैं हमें उस पर ध्यान नहीं देना है। ‘माँ’ का ध्यान सदैव बने रहना चाहिए।
आज हर जगह पर, धर्म में, राजनीति में रावण खड़े हैं। उनका अन्त कैसे होगा? उन्होंने देश को लूटा है। गरीब लोगों का उन्हें कोई ख्य़ाल नहीं है। संगठित होकर लोगों को जाग्रत् करके ही उन्हें समाप्त किया जा सकता है। इसके लिए तुम्हें यहां की ऊर्जा मिलती रहेगी।
शिविर व्यवस्था में लगे रहे हजारों कार्यकर्ता
योग-ध्यान-साधना शिविर के बृहद कार्यक्रम को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में भगवती मानव कल्याण संगठन के पांच हजार से भी अधिक सक्रिय समर्पित कार्यकर्ताओं ने अथक परिश्रम किया। नवरात्र पर्व के एक सप्ताह पूर्व से संगठन के कार्यकर्ताओं ने पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम पहुंचकर लाखों श्रद्धालुओं के ठहरने हेतु दिन-रात अथक परिश्रम करके आवासीय व्यवस्था प्रदान की व शिविर में शांति सुरक्षा व्यवस्था बनाये रखने के लिये सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने अग्रणी भूमिका निभाई। भोजन व्यवस्था, प्रवचनस्थल व्यवस्था, जनसम्पर्क कार्यालय, स्टॉल व्यवस्था, पेयजल व्यवस्था, प्रसाद वितरण, लाईट, साउण्ड, माईक, कैमरा व्यवस्था तथा मूलध्वज व श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मन्दिर में प्रातःकालीन व सायंकालीन साधनाक्रम व आरती सम्पन्न कराने हेतु हज़ारों कार्यकर्ता अनुशासित ढंग से लगे रहे। इस तरह परमसत्ता व गुरुवरश्री की कृपा से जन-जन में चेतना का संचार करने व विश्व शांति के लिये आयोजित यह बृहद कार्यक्रम धार्मिक वातावरण में शालीनतापूर्वक सम्पन्न हुआ। व्यवस्था कार्य में नेपाल से आये संगठन के कार्यकर्ताओं का भी सराहनीय योगदान रहा।
समाधिस्थल व गोशाला पहुंचे भक्तगण और समधिन में किया पुण्यस्नान
शिविर में पहुंचे भक्त क्रमबद्धरूप से परम पूज्य गुरुवरश्री के पिताश्री स्वामी रामप्रसाद आश्रम जी महाराज की समाधिस्थल पर पहुंचे और परिक्रमा करके अपूर्व शान्ति का अनुभव किया। भक्तगण समाधिस्थल के पास ही संचालित त्रिशक्ति गोशाला जाना नहीं भूले और गोसेवा व गोदर्शन का लाभ प्राप्त किया। इतना ही नहीं, अनेकों भक्तों ने शिविर के तीनों दिवस पुण्य सलिला समधिन में स्नान करके उन्होंने अपने अमूल्य जीवन को कृतार्थ किया।
इस प्रकार, तीन दिवसपर्यन्त चला यह शक्ति चेतना जनजागरण शिविर ममतामयी ‘माँ’ की कृपा एवं परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के दिव्य आशीर्वाद से पूर्णतया निर्विघ्न सम्पन्न हुआ। अपार जनसमूह के बावजूद न तो कहीं पर कोई अव्यवस्था हुई और न ही कोई अप्रत्याशित घटना घटी। चहुं ओर आनन्द ही आनन्द रहा।