120वां शक्ति चेतना जनजागरण शिविर, नशामुक्ति महाशंखनाद, जयपुर, राजस्थान, 16-17 फ़रवरी 2019

शक्ति चेतना जनजागरण शिविर ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ भारत देश में ही नहीं, बल्कि विश्वव्यापी चेतना के विकास का द्योतक है। जब लोग नशामुक्त होंगे, मांसाहारमुक्त होंगे, चरित्रवान् और चेतनावान् बनेंगे, तभी तो भय-भूख-भ्रष्टाचारमुक्त समाज के बीच मानवता का सुमधुर संगीत गुंजरित होगा। ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के द्वारा एक के बाद एक मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में, उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में, हरियाणा और पंजाब की संयुक्त राजधानी चण्डीगढ़ में और फिर राजस्थान की राजधानी जयपुर में किये गए ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ के सुयोग में निश्चय ही माता जगदम्बे की अतुलित प्रेरणा है।  

ऋषिवर के द्वारा शिविर के प्रथम व द्वितीय दोनों दिवस, मानवता के कल्याणार्थ दिए गए चिन्तन के उपरान्त, जयपुर के राजस्थान हाऊसिंग बोर्ड मैदान, मानसरोवर में किये गये ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ की प्रतिध्वनि से सम्पूर्ण चर-अचर जगत गुंजायमान हो उठा। 16-17 फरवरी  2019 को आयोजित द्विदिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में देश-देशान्तर से पहुंचे गुरुवरश्री के शिष्यों, माता जगदम्बे के भक्तों व हज़ारों की संख्या में शामिल क्षेत्रीय लोगों ने ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ में शामिल होकर स्वयं में नवीन स्फूर्तिदायक चेतनात्मक शक्ति का अनुभव किया। गुरुवरश्री के सान्निध्य में अपार जनसमुदाय के द्वारा किए गए शंखनाद की ध्वनि से सामाजिक परिवर्तन का संकेत मिलने लगा।  इस अवसर पर सद्गुरुदेव जी महाराज ने कहा कि यदि समय रहते भ्रष्ट राजनेताओं तथा पाखंडी धर्माचार्यों में सुधार नहीं आता, तो उनका पतन निश्चित है।

माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा और ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के प्रति भक्तों की भक्ति का अटूट प्रवाह, राजस्थान हाऊसिंग बोर्ड के विशाल मैदान में उमड़ा पड़ रहा था। नर, नारी, बालक, बालिकाएं, सद्गुुरुदेव भगवान् के शिष्य, ‘माँ’ के भक्त शंख व शक्तिदण्डध्वज लिये भगवती मानव कल्याण संगठन एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम ट्रस्ट के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित द्विदिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर पंडाल की ओर अनुशासनपूर्वक कदम से कदम मिलाते हुये चले जा रहे थे। शिविर पंडाल में नशामुक्त, मांसाहारमुक्त व चरित्रवान् साधक जिस क्रम से पहुंचते, संगठन के  कार्यकर्ताओं के द्वारा दी गई व्यवस्था के अनुरूप पंक्तिबद्ध रूप से बैठते चले गये।

संगठन के कलाकार कार्यकर्ताओं द्वारा पंडाल व मंच का भव्य निर्माण किया गया था। मंच के शीर्ष में शंख और उसके नीचे नीलिमायुक्त आकाशीय मनभावन प्राकृतिक चित्र के साथ सुख-समृद्धि के आगमन का प्रतीक जलमहल। बाईं ओर गोल चक्र में कलश और दाहिनी ओर ‘माँ’ और गुरुवर की संयुक्त ऊर्जात्मक छवि के समक्ष प्रज्वलित अखण्ड ज्योति से निकलती चेतनातरंगें उपस्थित जनसमुदाय को विशेष ऊर्जा प्रदान कर रहीं थीं।

शिविर के प्रथम दिवस 16 फरवरी का द्वितीय सत्र

मंच के समक्ष शिविर पंडाल में अनुशासित ढंग से पंक्तिबद्ध बैठे हुये भक्तों की आतुरता देखते ही बनती थी कि तभी जयकारों के मध्य अपराह्न 2.30 बजे धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के आगमन के साथ ही तालियों की गडग़ड़ाहट से समूचा क्षेत्र गुंजायमान हो गया। 

ऋषिवर के मंचासीन होते ही शक्तिस्वरूपा बहन पूजा, संध्या और ज्योति दीदी जी ने उपस्थित समस्त भक्तों की ओर से पदप्रक्षालन के बाद पुष्प समर्पित किये। चरणवन्दन के पश्चात् गीत-संगीत की प्रतिभा के धनी शिष्यों ने ‘माँ’-गुरुवर के चरणों में भावसुमन प्रस्तुत किये, जिसके कुछ अंश इस प्रकार हैं-

‘इस जिन्दगी की हालत क्या होती, जो गुरुवर न होते-जो गुरुवर न होते’: वीरेन्द्र दीक्षित जी, दतिया (म.प्र.)। राजस्थानी लोकभाषा में राजस्थान की बेटियों अंजली जी और विजेता जी के द्वारा प्रस्तुत भावगीत: ‘गुरुवर पधारो म्हारो देश में, गुरुवर पधारो म्हारो देश में। गुरुवर आयो राजस्थान, बढ़ायो हमारो मान्।’ देश की वर्तमान परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में शक्तिस्वरूपा बहन संध्या दीदी जी ने ओजपूर्ण भावगीत प्रस्तुत करके उपस्थित जनसमुदाय में अभूतपूर्व चेतना का संचार किया: ‘वक्त अब आ गया है, वतन पर मर मिटने का।…।।’ अंत में बाबूलाल विश्वकर्मा जी, दमोह (म.प्र.) की प्रस्तुति हुई: ‘धन्य हुआ जयपुर और धन्य हुआ यह राजस्थान, आए हैं श्री गुरुवर भगवान्।’

भावगीतों का क्रम समाप्त होते ही ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज, जो अज्ञानियों में बुद्धि का संचार करके  उन्हें विवेकवान् बनाना चाहते हैं, उनकी गम्भीरता सभी की अन्तर्भावना में व्याप्त हो रही थी। तभी उनके श्रीमुख से ‘माँ’ की स्तुति प्रवाहित हो उठती है-                     

‘‘माता स्वरूपम् माता स्वरूपम्, देवी स्वरूपम् देवी स्वरूपम्। प्रकृति स्वरूपम् प्रकृति स्वरूपम्, प्रणम्यम्, प्रणम्यम्, प्रणम्यम्, प्रणम्यम्।।’’

दिव्य उद्बोधन

वर्तमान, भूत व भविष्य के दृष्टा ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज अपने चेतनाअंशों, ‘माँ’ के भक्तों और उपस्थित जिज्ञासुओं को आशीर्वाद प्रदान करते हुये कहते हैं- ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ शक्ति चेतना जनजागरण शिविरों की जो यह शृंखला चल रही है, यह क्रम एक क्रमिक गति से बढ़ता हुआ, राजस्थान की इस पवित्र भूमि पर, जो वीरों की भूमि है और यह धरती सबके लिए नमन करने के योग्य है। परन्तु, समय के साथ जिस तरह समाज का पतन हुआ, चूँकि हमारे पूर्वजों ने जो अपने त्याग व बलिदान से कर्तव्य पथ पर चलने का मार्ग प्रदान किया है, यदि हम उनके आदर्शों पर चल रहे होते, तो उनके वंशज कहलाने के अधिकारी होते! हमारे पूर्वजों के त्याग, बलिदान से पूरित यह देश आज किस दिशा में जा रहा है? 

सभी मनुष्यों के केवल तीन ही कर्तव्य हैं और जो इन तीन क्षेत्रों से जुडक़र चलते हैं, उनका पतन कभी नहीं होता। वे क्षेत्र हैं- धर्म की रक्षा करना, राष्ट्र की रक्षा करना और मानवता की सेवा करना। धर्मशील वह है, जो दूसरों के धर्म का भी सम्मान करते हुए अपने धर्म की रक्षा करने में सतत लगा रहता है। हमारा धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होता, यह केवल एक पक्ष होता है। वास्तव में क्या आप धर्म के अनुकूल चल रहे हैं? क्या आपका आचार, विचार, व्यवहार, त्याग, विनम्रता धर्म के अनुकूल हैं? कोई भी धर्म नशे-मांस का सेवन करना और दुश्चरित्रता नहीं सिखाता। क्षणिक पूजा-पाठ की पद्धतियाँ आपका कल्याण नहीं कर सकतीं। आपका आचरण धर्मानुकूल होना चाहिए।

हम जिस देश में रह रहे हैं, जिस देश का अन्न, जल ग्रहण कर रहे हैं, उस राष्ट्र की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। क्योंकि, जब राष्ट्र सुरक्षित होगा, तभी हम सुरक्षित रहेंगे। यह कर्तव्य केवल सैनिकों का नहीं है, बल्कि हम सबका है। आप सभी लोग, जो जिस क्षेत्र में हैं, क्या सच्चाई, ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं? जो, जहां, जिस स्थान पर है, क्या अपने पारिवारिक व सामाजिक उत्तरदायित्त्व को पूरा कर रहा है? अपने बच्चों को संस्कारवान् बना रहे हो और क्या पड़ोसियों के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बंध हैं? यह सब भी राष्ट्ररक्षा की श्रेणी में आता है।

 वे सभी राजनेता नपुंसक हैं, जो सैनिकों की शहादत पर केवल श्रद्धांजलि देकर अपने कर्तव्य की पूर्ति कर लेते हैं। आज़ादी के बाद से आज तक जितने लोगों ने सत्तासुख भोगा है, वे सब राष्ट्रद्रोही हैं। यदि वे सच्चाई, ईमानदारी से कार्य कर रहे होते, तो देश की ऐसी दशा न होती और सैनिक इस तरह मारे न जाते। आज 90 प्रतिशत राजनेता भ्रष्टाचारी हैं, चरित्रहीन हैं, राष्ट्रद्रोही हैं। आज जहां-जहां थाने हैं, थानों की चौकियाँ हैं, वहां भ्रष्टाचार का बोलबाला है। आखिर, पुलवामा में सैनिकों पर हुए हमले में प्रयुक्त विस्फोटक (आरडीएक्स) पड़ोसी देश से कैसे पहुंचा? केवल भ्रष्ट राजनेताओं को हिस्सा देते रहो! ‘‘आज मेरे अविरल शब्द मौन हो रहे हैं, लेकिन मेरे अन्दर की ज्वाला कुछ न कुछ निर्णय लेने को बाध्य कर रही है।’’ मैं एक सैनिक की तरह स्वयं जीवन जीता हूँ।

आज देश किस ओर जा रहा है? चारों ओर नशे की दुकानें चल रही हैं। क्या यह राष्ट्रद्रोह नहीं है? मेरे जहाँ-जहाँ भी ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ शिविर हुए हैं, वहां पर या तो राजसत्ताएं नशामुक्ति के लिए कार्य करेंगी या फिर सत्ता से जायेंगी। पूर्व के घटनाक्रमों को देख लें। जहाँ देखो वहाँ शराब, गाँजा, भाँग की दुकानें जितनी ठेके की चल रही हैं, उनसे कई गुना अधिक नाज़ायज रूप से चल रही हैं। क्या इस वीरभूमि से आवाज नहीं उठेगी? एक व्यक्ति भी नशेड़ी होजाए, तो देखिये उसके परिवार की कैसी दुर्दशा होती है? क्या नशे का व्यापार धर्म होता है? ऐसे राजनेताओं को धिक्कार है, जो नशे का धंधा चला रहे हैं। मानवता के कल्याण के लिए गठित भगवती मानव कल्याण संगठन के प्रयास से धीरे-धीरे समाज में सुधार हो रहा है। जब पीड़ा सहते-सहते चरम पर पहुंच जायेगी, तब परिवर्तन अवश्य आयेगा।

करोड़ों लोगों को नशामुक्त किया जा चुका है। मेरी एकांत की साधनाएं कभी निष्फल नहीं होतीं। ऊर्जातरंगों का स्वरूप बहुत व्यापक है और एक ऋषि की चेतनातरंगों की कोई सीमा नहीं होती।

सद्गुरुदेव जी महाराज ने कहा कि आज के साधु-संत भी अनाचारी और लुटेरे हो गए हैं। आदिशंकराचार्य ने अपने तपबल से समाज के कल्याण हेतु चार मठों की स्थापना की थी, लेकिन आज के शंकराचार्यों में नाममात्र का भी तपबल नहीं है। ऐसा एक भी नहीं, जिसने अपनी कुण्डलिनीचेतना जाग्रत् की हो। मैं अपने हर शिविर में विश्वअध्यात्मजगत् को एक चुनौती अवश्य देता हूँ कि यदि किसी में तपबल है और उनकी कुण्डलिनीचेतना जाग्रत् है, तो आएं और मेरे तपबल का सामना करें। क्या वे एक स्थान पर बैठकर दूसरे किसी स्थान के बारे में या भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं की जानकारी दे सकते हैं? किसी संक्रामक रोग से ग्रसित व्यक्ति को ठीक करके उसे जीवनदान दे सकते हैं? क्या उन्होंने अपने सूक्ष्मशरीर को जाग्रत् किया है? धर्म की रक्षा के लिए आवश्यक है कि एक बार शक्तिपरीक्षण के लिए धर्मसम्मेलन अवश्य होना चाहिए। सभी साधु-संन्यासी, धर्मप्रमुख, राजनेता, बुद्धिजीवी एक बार अवश्य एकत्रित हों। फिर, आज विज्ञान भी इतनी उन्नति कर चुका है कि मशीनें किसी के भी झूठ और सच को पकड़ सकती हैं। बड़ी-बड़ी उपाधियां अपने नाम के आगे लगा लेने से कोई तपस्वी नहीं होजाता। कुंभ में नाना प्रकार के वेशधारी साधु-संत, नागा एकत्रित होते हैं। कहा जाता है कि उनके स्नान करने से गंगा पवित्र होजाती है और लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। अरे, ढोंगी-पाखंडियों! मैं कहता हूँ कि एक चेतनावान् गुरु की नखों में गंगा का वास होता है।

ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने कहा कि गंगा सूख रही है और जहां देखो, वहां प्रदूषण व्याप्त है। राममंदिर के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेकी जा रही हैं और कुछ नहीं हो पा रहा है। यदि भ्रष्ट राजनेता अपने हाथ ऊपर उठा लें कि उनसे कुछ नहीं हो सकता, तो 24 घंटे के अन्दर बिना किसी विवाद के राममंदिर का निर्माण करवाया जा सकता है। आज बड़े-बड़े धर्माधिकारी तथाकथित भ्रष्ट राजनेताओं के आगे घुटने टेक रहे हैं। समाज के बीच अभी भी न जाने कितने आशाराम, रामरहीम, रामपाल, निर्मल बाबा व योगासन के माध्यम से बीमारी ठीक करवाने वाले व्यापारी अपनी घुसपैठ बनाए हुए हैं। कुंभ मेले में धर्ममहासम्मेलन आयोजित किया जाता है, काश इसमें कुछ सच्चाई होती! आज गावों में गरीबी का बोलबाला है, बच्चे भूखों मर रहे हैं, किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर हैं। आज़ादी के इतने वर्षों के बाद भी देश की यह दुर्दशा! यह देश का आईना है।

व्याप्त अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध कोई आवाज़ उठाए या न उठाए, मेरे द्वारा आवाज़ अवश्य उठाई जायेगी। बस ग्रन्थज्ञानी बन करके अपने आपको पूर्ण मान लिया। अरे, यदि ऐसा होता तो आशाराम, रामपाल जैसे लोगों की यह दशा न होती। नमन उसे किया करो, जो नमन करने योग्य हो। गाँजा-चिलम पीने वाले अपना कल्याण तो कर नहीं सके, आपका क्या कल्याण करेंगे? ऐसे धूर्तों को दान देने की अपेक्षा गरीबों की सहायता करके, उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाकर, अच्छे कपड़े बनवाकर, स्कूल की फीस भरकर कई गुना अधिक फल प्राप्त कर सकते हो। दान देना अच्छी बात है, किन्तु यदि दान देना ही है, तो पात्र व्यक्तियों को दो।

आपश्री ने कहा कि त्याग व संयम मनुष्यजीवन का अपरिहार्य अंग है। इसके लिए योग बहुत जरूरी है। योगासन के नाम पर उछलना-कूदना योग नहीं है, बल्कि यम-नियम का पालन करना, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि का पूर्ण क्रियात्मक ज्ञान ही योग है।

इस तरह मानवीय कत्र्तव्यों का बोध कराते हुए सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज चिन्तन प्रदान करते हैं कि धर्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा से भी अधिक महत्त्वपूर्ण कर्म मानवता की सेवा करना है। आप लोग जिस देवी-देवता का पूजन करते हैं, यह उन्हीं की सृष्टि है, तो क्या पीडि़तों की सेवा करना, उनकी रचना को नष्ट न होने देना हमारा कर्तव्य नहीं है? जब पंचतत्त्व पृथ्वी, जल, अग्रि, वायु, आकाश, ये किसी के साथ भेदभाव नहीं करते, तो फिर तुम्हें किसने यह अधिकार दिया है कि किसी के साथ भेदभाव करो?

वास्तव में शराब से समाज का सबसे अधिक अहित हो रहा है। यदि देश को नशामुक्त कर दिया जाए, तो देश में कितनी खुशहाली आ जायेगी, इस बारे में सोचो, विचार करो।

आपश्री ने बताया कि लखनऊ में आयोजित नशामुक्ति महाशंखनाद शिविर के लिए उत्तरप्रदेश की शासन-सत्ता के द्वारा पुरजोर विरोध किया गया, शिविर के लिए मैदान नहीं दिया जा रहा था और एक विदेशी का कार्यक्रम तय कर दिया गया। सरकार ने पूरी क्षमता लगा दी, लेकिन मेरा कहना था कि शिविर उसी मैदान में होकर रहेगा और अंतत: शिविर वहीं हुआ। और, शिविर में यह मैं कहकर आया था कि वर्तमान सत्ताधारी पार्टी प्रमुख के घर में ऐसी कलह पैदा कर दूँगा ये विखर जायेंगे और एक नहीं हो पायेंगे और वही हुआ। उन्हें सत्ता से बेदखल होना पड़ा। यह हमारा धर्मयुद्ध है। मेरे संगठन के स्वयंसेवी कार्यकर्ता जगह-जगह अखंड श्री दुर्गाचालीसा पाठ नि:शुल्क करवाकर लोगों में चेतना का संचार करके परिवर्तन लाने का प्रयास कर रहे हैं। मैं अपने शिष्यों को साधु-संत-संन्यासी नहीं, बल्कि शक्तिसाधक बना रहा हूँ।

सच्चाई, ईमानदारी का जीवन जिओ और समाजसेवा का संकल्प लो, परोपकार करो। इससे आपका जीवन सुधरेगा। मेरा सहयोग उन राजनेताओं को हमेशा मिलता रहेगा, जो सच्चाई, ईमानदारी के साथ कार्य करते हैं। बच्चों को अच्छे संस्कार, अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी शिक्षा दो। इससे उन्हें सात्विक विचार आयेंगे और सात्विक विचारों से कर्म भी अच्छे बन पड़ेंगे। अच्छा कर्म करो और निष्पाप बनो।

चेतनावान् बनने के लिए विपश्यना साधना करें। इसके माध्यम से आप काम-क्रोध-लोभ-मोह पर नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं, मुक्ति का मार्ग प्राप्त कर सकते हैं। केवल नित्यप्रति स्वयं के द्वारा स्वयं का अनुसंधान करना है। स्वयं का अनुसंधान शुरू कर दो। नित्यप्रति आप विचार करें कि कितना कार्य अच्छा किया है और कितना कार्य गलत। जितने गलत कार्य हुए हैं, उनमें सुधार करो, इससे विचारशक्ति बढ़ेगी और एक दिन ऐसा आयेगा कि आप अपनी अच्छाईयों से दिव्यपुरुषों की श्रेणी में आ जाओगे। हमेशा यह ध्यान रखें कि अच्छे कर्म का फल अच्छा मिलता है और बुरे कर्म का नतीजा बुरा होता है। अपने द्वारा किए गए हर कार्य का नित्यप्रति आकलन करो। साथ ही, आत्मा की अमरता और कर्म की प्रधानता के बारे में सोचो। निर्णय लेने की शक्ति आपके अन्दर आने लगेगी। पापकर्म करके अपनी आत्मा की आवाज को मत दबाओ। आपके शरीर में असंख्य कोशिकाएं हैं और एक-एक कोशिका में अतुलित शक्ति है। जरूरत है तो केवल अपने अच्छे कर्मों से उन्हें जाग्रत् करने की। विपश्यना साधना में बहुत बड़ी शक्ति है। सोचो कि क्या नित्यप्रति सोना, उठना, बैठना और खाना, यही जिन्दगी है?

मुझे बताओ कि क्या तुम मन में बिना विचार लाए क्रोधित हो सकते हो, किसी को एक भी थप्पड़ मार सकते हो? विचार करने पर ही क्रोध उत्पन्न होता है, वासना उत्पन्न होती है, लोभ और मोह की भावना उपजती है। काम-क्रोध-लोभ-मोह, यह सब विचारों का ही खेल है। ‘माँ’ की सच्ची साधना और स्वयं के द्वारा स्वयं का अनुसंधान करना है। अपने अन्तर्मन का द्वार खोलना शुरू करो। आज से और अभी से संकल्प लो कि अब मैं अपने आपको पतन के मार्ग पर नहीं ले जाऊँगा, नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जिऊँगा। सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण पर विजय प्राप्त करो और सतोगुण को अपने अन्दर समाहित कर लो। बाह्य वासना के क्षणिक सुख में कुछ नहीं है, अपनी अन्तर्वासना को जगाओ। इससे वह आनन्द मिलेगा, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज के युवा क्षणिक वासना के वशीभूत होकर अपने माता-पिता के प्यार को भूल जाते हैं और घर से भाग जाते हैं। धिक्कार है तुम्हारे जीवन पर। जब तुम अपने माता-पिता के प्यार को नहीं समझ पा रहे हो, तो परमसत्ता के प्रेम का मोल क्या समझोगे? इस कलिकाल की भयावहता को ‘माँ’ की आराधना से ही नष्ट किया जा सकता है। उस पथ पर चलो, जहां तुम दूसरों के भी सहारे बन सको। 

ऋषिवर ने कहा कि आज इन्सान जानवरों से भी बदतर होता जा रहा है। बच्चियों के साथ आएदिन अमानुषिक बलात्कार की घटनाएं हो रहीं हैं। बलात्कारियों के विरुद्ध फांसी का कानून बना, लेकिन क्या हुआ? पहले से भी अधिक बलात्कार की घटनाएं परिलक्षित हैं। सरकारों के द्वारा ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बढ़ाओ’ का नारा दिया जा रहा है और शराब का व्यापार करके बेटियों की जिन्दगी छीनी जा रही है। शराब के नशे में उनके साथ आएदिन बलात्कार करके उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है। आवाज़ बुलन्द करो, अपने आपको बदल डालो। मृत्यु से न$फरत मत करो, उससे प्रीति करो। ऐसा कर्म करो कि मैंने इतने अच्छे कार्य किए हैं कि मृत्यु मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती। जिस दिन मृत्यु का भय त्याग दोगे, निर्भीक और निडर बन जाओगे। विवेक को जाग्रत् करो, कर्म करो और एक सैनिक के समान पुरुषार्थी बनो। पुलवामा की नृशंष व अमानवीय घटना से बार-बार हृदय में टीस उठ रही है और अश्रु छलक उठने को आतुर हैं।

यह स्थान दो दिनों के लिए मंदिर के समान है, कुछ प्राप्त कर लो। मैं आप लोगों से दान-दक्षिणा नहीं मांग रहा हूँ, जैसा कि आजकल के प्रवचनकर्ता मांगते हैं। बल्कि, संकल्प लो कि मैं नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीते हुए मानवता की सेवा, धर्मरक्षा व राष्ट्ररक्षा के लिए कटिबद्ध रहूँगा/रहूँगी और शादी से पहले ब्रह्मचर्य व्र्रत का पालन और शादी के बाद एक पति/एक पत्नीव्रत का पालन करूंगा/करूंगी।

उपस्थित जनसमुदाय दोनों हाथ उठाकर इस संकल्प को दोहराते हुए अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहा था। दिव्य उद्बोधन के उपरान्त, सभी ने परम पूज्य गुरुवरश्री के साथ तीन मिनट तक लगातार नशामुक्ति के लिए शंखनाद किया। ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ की यह ध्वनि समाज को नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन अपनाने के लिए प्रेरित करती रहेगी। शंखनाद के पश्चात् शक्तिस्वरूपा बहनों ने उपस्थित भक्तों की ओर से ‘माँ’-गुरुवर की दिव्य आरती की।

शिविर के द्वितीय दिवस 17 फरवरी  का प्रथम सत्र

लगभग दो हज़ार नए भक्तों ने प्राप्त की गुरुदीक्षा

शिविर के द्वितीय व अन्तिम दिवस का प्रथम सत्र। लगभग दो हज़ार नए भक्तों ने ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज से दीक्षा प्राप्त करके नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीने व धर्म, राष्ट्र की रक्षा और मानवता की सेवा की राह पर चलने का संकल्प लिया।

 दिव्य मंच स्थल पर प्रात: 07:30 बजे से गुरुदीक्षा का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। इस अवसर पर नये भक्तों ने गुरुदीक्षा प्राप्त करके नवजीवन प्रारम्भ किया। दीक्षा प्रदान करने से पूर्व नए भक्तों को शिष्य रूप में हृदय में धारण करके उन्हें गृहस्थ आश्रम में रहते हुए, आध्यात्मिक जीवन जीने की शिक्षा देतेे हुये सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज कहते हैं कि मनुष्य का वास्तविक जीवन तभी शुरू होता है, जिस दिन से वह दीक्षा लेता है।

आत्मा चैतन्य है, उसे चैतन्य करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन, मनुष्य ने ऐसे कर्म किए हैं कि आत्मा के ऊपर आवरण पड़ते चले गए। अत: उन आवरणों को हटाने के लिए गुरुदीक्षा लेकर गुुरुनिर्देशों पर चलना जरूरी है। इन क्षणों से एक संकल्प होजाए कि हम गलत रास्ते पर नहीं जायेंगे। नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जियेंगे और फिर आपको चेतनावान् बनने से कोई नहीं रोक सकेगा। गुरु और शिष्य का ही ऐसा पवित्र रिश्ता है, जिसके माध्यम से मानवता का कल्याण किया जा सकता है। जो शिष्य गुरु के बताए मार्ग पर चलते हैं, सद्मार्ग पर चलते हैं, उनसे उनका गुरु कभी अलग नहीं हो सकता। आप अपने ज्ञान के अनुसार पूजा-पाठ करें, गुरुवार और कृष्णपक्ष की अष्टमी का व्रत रखें। व्रत में दिन के समय फलाहार कर सकते हैं और शाम को घर में जो सात्विक भोजन बना हो, उसे प्रेमपूर्वक ग्रहण करें। आपको किसी भी प्रकार की परेशानी हो, शक्तिजल का उपयोग करने से वह दूर होगी। जरूरत है, तो केवल नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीने की, लाभ अवश्य प्राप्त होगा। मेरुदण्ड को सीधा करके बैठा करें, इससे आपकी काया निरोगी होगी और चैतन्यता की प्राप्ति होगी।

दीक्षा प्राप्त करने से पूर्व सभी नए भक्तों ने तीन-तीन बार शंखध्वनि की। इसके पश्चात् ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने शक्तिपात के माध्यम से गुरुदीक्षा प्रदान की। परम पूज्य गुरुवरश्री ने कहा कि मैं शक्तिपात के माध्यम से सभी को अपनी चेतना से आबद्ध करते हुये जो जिस अवस्था मेें है, उसे स्वीकार करता हूँ। आपश्री ने सहायक शक्तियों हनुमान जी, भैरव जी एवं गणेश जी के मंत्र के साथ चेतनामंत्र ‘ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नम:’ एवं गुरुमन्त्र ‘ॐ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नम:’ प्रदान किया। अंत में सभी नये दीक्षाप्राप्त शिष्यों ने सद्गुरुदेव जी महाराज को नमन करते हुये नि:शुल्क शक्तिजल प्राप्त किया और गुरुदीक्षा प्रपत्र भरकर प्रवचन स्थल की व्यवस्था में सक्रिय भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं के पास जमा कराया।

शिविर के द्वितीय दिवस 17 फरवरी  का द्वितीय सत्र

‘‘अज्ञानी व्यक्तियों के द्वारा अपमानित किए जाने पर आप विचलित न हों, बल्कि शांतभाव से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करके अपने कार्य में लग जाएं। यदि इसके बाद भी मन शांत नहीं होता, तो कुछ क्षणों के लिए ध्यानभाव में जाकर परमसत्ता और गुरुसत्ता की शक्ति, सहृदयता और महानता का स्मरण करें। इससे आपके साथ पूर्व में घटित घटना आपको मिथ्या प्रतीत होने लगेगी।’’

जयकारों के मध्य सद्गुरुदेव महाराज जी का आगमन होता है और आपश्री के मंचासीन होते ही शक्तिस्वरूपा बहनों ने पदप्रक्षालन और श्रीचरणों में पुष्पसमर्पण का क्रम पूर्ण किया। इसके पश्चात् कुछ शिष्यों-भक्तों ने भावगीत प्रस्तुत करके वातावरण को भक्तिमय बनाया। प्रस्तुत भावगीतों के प्रारंभिक अंश इस प्रकार हैं-

बदलने चले हैं जमाने को सारे, ये गुरुवर हमारे-ये गुरुवर हमारे: वीरेन्द्र दीक्षित जी, दतिया (म.प्र.)। गुरुजी बस गए मेरे तन-मन में: प्रतीक मिश्रा जी, कानपुर (उ.प्र.)। प्रभु हम भी शरणागत हैं, स्वीकार करो हम आए हैं: सौरभ जी, प्रयागराज (उ.प्र.)। नहीं रुकना है, चलते ही जाना है, गुरुवर हैं साथ साथ हैं सदा: बाबूलाल जी, दमोह।

दिव्य उद्बोधन

  ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज आशीर्वाद प्रदान करते हुये मन्द मृदुल मुस्कान के साथ धीर-गम्भीर वाणी में कहते हैं कि सत्य की विचारधारा का समागम अनूठा होता है। ऐसे लोग जो नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् हैं और भगवती मानव कल्याण संगठन से जुडक़र सत्यपथ के पथिक बने हुए हैं, उनके द्वारा किए जा रहे जनजागरण से धीरे-धीरे समाज प्रकाशित हो रहा है। परिवर्तन आ रहा है और इस परिवर्तन को कोई रोक नहीं पायेगा। यही तो सत्य का संग है। अन्य अनेक संगठनों के लोग, जो चोला ओढक़र चलते हैं, उनसे कई गुना अधिक जनजागरण के क्षेत्र में कार्य किया जा रहा है। हमें धूर्तों के विरुद्ध आवाज़ उठानी ही पड़ेगी, अन्यथा वे सुधर नहीं पायेंगे। यदि समाज का पतन रोकना है, तो हमें सत्यपथ का राही बनना ही होगा। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, लेकिन वह सामाजिक प्राणी तभी है, जब उसके कदम समाजहित के लिए उठ रहे हों।

आजकल कई संगठन तोडफ़ोड़ व चकाजाम की राजनीति करके अपनी मांग मनवाना चाहते हैं। हम तो ममतामयी माँ के उपासक हैं। भगवती मानव कल्याण संगठन माता जगदम्बे की उपासना करते हुए जनजागरण में लगा रहता है। हमारा कोई भी कदम ऐसा नहीं उठता, जिससे कहीं किसी प्रकार की क्षति हो, पंचतत्त्वों को क्षति पहुंचे। जो जिस धर्म को मानने वाले हैं, अपने धर्म का पालन करते हुए, उन्हें रचनात्मक कार्य की ओर बढऩा चाहिए। धर्म को राजनीति से जोडऩा होगा, तभी राजनीति पतित अवस्था से ऊपर उठ पायेगी। परमसत्ता ने हमें दिव्य आत्मा दे रखी है, उसके साथ तो न्याय करो। हर व्यक्ति अपने जीवन में सुख-शांति चाहता है। मैं तो ‘माँ’ से हर पल यही कामना करता हँू कि जो संकट किसी के जीवन में न डाला हो, वह मेरे जीवन में डाल दें। क्योंकि, जब संकट आयेगा, तभी तो उसके निदान हेतु संघर्ष करने की शक्ति प्राप्त होगी। हर संकट का सामना करना सीखें और किसी भी परिस्थिति में धर्म, धैर्य और पुरुषार्थ का त्याग न करें। जिसमें ये तीनों गुण समाहित हैं, वह किसी भी परिस्थिति का सामना कर सकता है और बड़ा से बड़ा कार्य कर सकता है।

प्राय: यह देखने में आता है कि छोटी-छोटी समस्याएं आने पर आपका धर्म और पूजा-पाठ से मन उचाट होजाता है। किसी तिथि-त्यौहार पर परिजनों की मृत्यु होजाने पर आप उस त्यौहार को मनाना बन्द कर देते हैं, जबकि उस त्यौहार को और प्रसन्नता से मनाना चाहिए कि शुभ अवसर पर परिजन की मृत्यु हुई है और मुक्ति के द्वार खुल गए हैं।

हम सैनिकों का सम्मान क्यों करते हैं? क्योंकि वे देश के लिए शहीद होते हंै। अनेकों लोग होते हैं, जिनका धैर्य टूट जाता है। धैर्य को अन्तिम क्षण तक नहीं खोना चाहिए। कुछ लोग छोटी-छोटी समस्याओं पर आत्महत्या जैसा पाप करते हैं, जबकि कुछ लोग समस्याओं के निदान के लिए संघर्ष करके उस पर विजय प्राप्त करते हैं। पुरुषार्थी बनें, ईश्वर ने जितनी पात्रता दी है, उतना तो संघर्ष करो। किसी के आगे गिड़गिड़ाओ नहीं और यदि अनीति-अन्याय-अधर्म से पीडि़त हो, तो उसे रोकने के लिए आगे बढ़ो। लेकिन, जिनके पास पात्रता है, वे भी आवाज उठाना नहीं चाहते, बल्कि अन्यायी-अधर्मियों की चाटुकारिता में लगे रहते हैं। यदि आवाज उठाई जा रही होती, तो समाज में बहुत बड़ा परिवर्तन दिखाई पड़ता। यदि समाजहित में कार्य नहीं कर सकते, तो समाज में रहने का अधिकार नहीं है, बल्कि उन्हें हिमालय की गुफा-कन्दराओं में चले जाना चाहिए।

मैं उन ऋषियों में हँू, जो शांति की गहराई और सत्य की पराकाष्ठा लिए हुए बैठा है और त्रिभुवन में ऐसा कोई कार्य नहीं, जो मैं न कर सकूँ। ‘यदि सत्य की रक्षा में आपको कोई एक तमाचा मारे, तो उसे समझाओ और इसके बाद भी यदि वह दूसरा तमाचा मारने का प्रयास करे, तो उसका हाथ तोड़ दो।’ पुरुषार्थी मनुष्य कभी पराजित नहीं होता। अपने बच्चों को पुरुषार्थी बनाओ। हर माता-पिता के बच्चों के प्रति तीन कर्तव्य होते हैं, उन्हें पूरा करो। बच्चों को अच्छी शिक्षा दो, उनके स्वास्थ्य की रक्षा करो और धर्म के प्रति आस्था का सृजन करो। यदि ये तीन चीजें उनके पास हैं, तो वे स्वयं आगे बढ़ते चले जायेंगे।

वर्तमान समय में पूरा समाज अनीति-अन्याय-अधर्म से पीडि़त है, प्रभावित है। मनुष्य अपनी जीवनीशक्ति को, पुरुषार्थ को सतत नष्ट करता जा रहा है। इस विषम परिस्थिति में यदि मनुष्य को, स्वयं के साथ समाज को जीवंत बनाना है, तो इसका एकमात्र उपाय है नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन। ‘माँ’ से कुछ मांगना है तो भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति माँगो। नाना प्रकार की कामनाओं में न भटकें। इन तीनों शब्दों में जीवन का सार समाहित है। आप चाहे जिस इष्ट को, जिस गुरु को मानते हो, उनसे केवल भक्ति, ज्ञान, आत्मशक्ति मांगो और जिस मनुष्य में ये गुण आजाते हैं, वही सच्चा पुरुष कहलाता है। अपने धर्म का पालन करो। ‘‘मनुष्य के द्वारा किया जाने वाला हर वह कर्म धर्म है, जिससे परमसत्ता से नजदीकियां बढ़ती हैं और हर वह कर्म अधर्म है, जिससे परमसत्ता से दूरियाँ बढ़ती हैं।’’ अपनी आत्मा के ऊपर पड़े आवरण को पुरुषार्थी, परोपकारी बनकर हटा सकते हो। एक पल यह ठान लो कि जो बीत गया सो बीत गया, अब कभी मेरे कदम पतन के मार्ग पर नहीं जायेंगे, तब आप सत्यपथ के राही बन जायेंगे।

मन की एकाग्रता में बहुत बड़ी शक्ति है। ‘माँ’-ॐ बीजमंत्र का क्रमिक उच्चारण करो, जितना करोगे, उतनी ही अधिक एकाग्रता आयेगी। मौन साधना को प्राथमिकता दो। मौन से तात्पर्य मूक होना नहीं है, बल्कि अपने विचारों को शांत रखो और जितना आवश्यक हो, उतना ही बोलो। इससे आपकी वाणी की शक्ति बढ़ेगी। एकाग्रता से आपकी बुद्धि परिष्कृत होगी। आज्ञाचक्र को राजाचक्र कहा गया है। कुण्डलिनी के सातों चक्रों में प्रमुखत: ध्यान आज्ञाचक्र में लगाना है और यदि इस चक्र में पकड़ हो जायेगी, तो अन्य सभी चक्र स्वमेव वश में हो जायेंगे। आज्ञाचक्र मेंं शांतचित्त होकर ध्यान लगाकर बैठो, इसकी शक्ति बढ़ती चली जायेगी। एक मिनट भी यदि आप ध्यान लगा लेते हैं, तो वह शक्ति, वह ऊर्जा आपसे जुड़ जाती है।

ऋषिवर ने बताया कि पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में 6, 7, 8 अक्टूबर को अगला शिविर जो होना है, वह महाशक्ति साधना योग-ध्यान कुण्डलिनी जागरण शिविर होगा, जिसमें आपको कुण्डलिनी के बारे में ज्ञान प्रदान किया जायेगा।

शिविर पंडाल और उसके बाहर उपस्थित जनसमुदाय ने सद्गुरुदेव भगवान् के सान्निध्य में  ‘माँ’-ॐ का क्रमिक उच्चारण किया। इस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे सम्पूर्ण वातावरण में विशेष ऊर्जा प्रवाहित हो रही हो। बीजमंत्र के उच्चारण के पश्चात् सभी ने दो मिनट तक शांतचित्त होकर ध्यान लगाया और इसके उपरान्त, सहज प्राणायाम के बारे में क्रियात्मक ज्ञान प्राप्त किया।

बीजमंत्र ‘माँ’-ॐ के क्रमिक उच्चारण, ध्यान-साधना और सहज प्राणायाम का मानवजीवन में कितना अधिक महत्त्व है?  इस बारे में चिन्तन प्रदान करते हुए सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने कहा कि नित्यप्रति इन क्रियाओं को करने से आपकी बीमारियाँ ठीक होंगी, आलस्य, अकर्मण्यता का क्षय होगा और कार्यक्षमता में विशेष वृद्धि होगी।

अपनी रचनात्मक शक्ति को बढ़ाओ, अन्यायी-अधर्मियों का धरातल खिसकता चला जायेगा। धर्मक्षेत्र में भी अन्यायी-अधर्मी घुसे हुए हैं, जिनसे हमें समाज को बचाना है। आज देश में जो कुछ हो रहा है, आँख मँूदकर नहीं बैठ जाना है। अन्यायी-अधर्मियों के विरुद्ध आवाज़ उठाना है। इसीलिए मानवता की सेवा के लिए भगवती मानव कल्याण संगठन का गठन किया गया है, जिसके कार्यकत्र्ता सतत रूप से अपने कर्तव्य के निर्वहन में लगे हुए हैं और नशामुक्त समाज का निर्माण किया जा रहा है। हमारे धर्म की रक्षा हो सके, विश्व बन्धुत्त्व की स्थापना हो सके, इसके लिए पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम की स्थापना की गई है, जहां विगत 22 वर्षों से ‘माँ’ का गुणगान चल रहा है। राष्ट्रधर्म के कर्तव्य के पालनार्थ भारतीय शक्ति चेतना पार्टी का गठन किया गया है। इसके सदस्यों को नि:स्वार्थभाव से राष्ट्र की सेवा करना है। राष्ट्र की सेवा सत्ता पर बैठने से नहीं, बल्कि धरातल पर कार्य करने से होगी।

काँग्रेस पार्टी को चेतावनी के साथ समझाता हूँ कि चाहे तो देशहित में बहुत कुछ कर सकती है। जो देश के टुकड़े करना चाहते हैं, उस विचारधारा से अपने को अलग कर लो और राष्ट्रवादी बन जाओ। राष्ट्रवाद ही हमारी ताकत है। 40-40, 50-50 जवान मार दिए जाते हैं। सुधर जाओ। 135 करोड़ में 125 करोड़ देशवासी रो रहे हैं, उनके आँसुओं को पोछने का कार्य करो। जिस मार्ग से प्रधानमंत्री निकलते हंै, सारे रास्ते बन्द कर दिए जाते हैं, क्या यह सैनिकों के लिए नहीं किया जा सकता कि जब उनका काफिला चले, तो अन्य आवागमन को रोक दिया जाए? लेकिन नहीं! नरेन्द्र मोदी ने केवल जुमले दिए हैं, जिनसे देशवासियों की आशाएं जगी हैं। हाँ इतना जरूर है कि उन्होंने देश के लिए कुछ किया है।

 एक बार बलूचिस्तान को बचाना आवश्यक है। यदि गीदड़ों का सीना नहीं है, तो एक सिर के बदले 10 सिर लाना होगा। सेना को खुली छूट दो और पाक पर हमला करो, अन्यथा सिद्धू जैसे विकृत मानसिकता के लोग पनपते रहेंगे। कांग्रेस में सैकड़ों ऐसे लोग हैं, जिन्हें सुधारने की जरूरत है। अलगाववादियों पर प्रहार करो, उनकी सुरक्षा व्यवस्था को पूरी तरह हटा लिया जाए। पत्थरबाज़ों और अलगाववादियों को सीधे गोली मार दी जानी चाहिए। सैनिकों का सम्मान अपने इष्ट, अपने गुरु के समान करो, उन्हें नमन् करो।

चिन्तन के उपरान्त, शिविरस्थल पर उपस्थित गुरुवरश्री के शिष्यों, ‘माँ’ के भक्तों व समस्त जनसमुदाय ने दोनों हाथ उठाकर एक बार पुन: नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीने तथा धर्मरक्षा, राष्ट्ररक्षा व मानवता की सेवा करने का संकल्प लेने के पश्चात् सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के सान्निध्य में नशामुक्ति के लिए 05 मिनट तक महाशंखनाद किया।

महाशंखनाद के उपरान्त, उपस्थित सभी भक्तों की ओर से शक्तिस्वरूपा बहनों ने ‘माँ’-गुरुवर की दिव्य आरती की और शिविरार्थियों के द्वारा गुरुवरश्री को नमन् किया गया एवं प्रसाद वितरण के साथ पाँचवें नशामुक्ति महाशंखनाद शिविर का समापन किया गया।

संगठन के हज़ारों कार्यकर्ताओं ने कुशलतापूर्वक संभाली शिविर व्यवस्था

  शिविर के विशाल आयोजन को सम्पन्न कराने में भगवती मानव कल्याण संगठन के लगभग पाँच हज़ार कार्यकत्ताओं ने दिन-रात अथक परिश्रम करके सभी व्यवस्थाओं को भव्य व संतुलित स्वरूप प्रदान किया। कार्यकत्र्ताओं ने श्रद्धालुओं को ठहरने हेतु जहां आवासीय पण्डाल व्यवस्था प्रदान की, वहीं शिविर के दोनों दिवस सुबह-शाम शिविरार्थियों को नि:शुल्क भोजन कराया। मंच व पंडाल की व्यवस्था, जनसम्पर्क कार्यालय, शांति-सुरक्षा व्यवस्था, स्टॉल व नि:शुल्क प्राथमिक चिकित्सा व्यवस्था और पेयजल व्यवस्था के साथ ही प्रसाद वितरण के कार्य को सफलतापूर्वक पूर्ण किया गया।

ऋषिवर ने किया नशामुक्ति का महाशंखनाद, मची हलचल

प्रथम व द्वितीय दोनों दिवस के चिन्तन के उपरान्त, ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के सान्निध्य में सभी भक्तों ने सामूहिक रूप से शंखनाद किया। इसके पश्चात् दोनों हाथ उठाकर नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीने, शादी से पहले ब्रह्मचर्य व्रत का पालन व शादी के बाद एक पति/एक पत्नीव्रत रखने तथा मानवता की सेवा, धर्मरक्षा व राष्ट्ररक्षा करने का संकल्प लिया गया। इसी प्रकार द्वितीय व अन्तिम दिवस भी नशामुक्ति महाशंखनाद की प्रतिध्वनि से जयपुर का वायुमंडल गुंजायमान रहा, इससे अन्यायी-अधर्मियों, नशामािफयाओं के हृदय कंपित हो उठे।

सिद्धाश्रम से जयपुर तक सद्भावना जनजागरण यात्रा

120वां शक्ति चेतना जनजागरण शिविर ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ जयपुर के परिप्रेक्ष्य में दिनांक 14 फरवरी  से 15 फरवरी  2019 तक ‘सद्भावना जनजागरण यात्रा’ मध्यप्रदेश के विभिन्न जि़लों व उत्तरप्रदेश के झांसी से होते हुए राजस्थान की राजधानी जयपुर पहुंची। तदोपरान्त, अपार जनसमुदाय की उपस्थिति में 16-17 फरवरी  को द्विदिवसीय शिविर सफलतापूर्वक सम्पन्न किया गया।

दिनांक 14 फरवरी, दिन गुरुवार की प्रात:कालीन बेला, आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की स्तुति के उपरान्त, ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज जैसे ही राजस्थान की राजधानी जयपुर के लिए पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम से प्रस्थित हुये, आश्रमवासियों व भक्तों के जयकारों और शंखध्वनि से वातावरण गुंजायमान हो उठा। गुरुवरश्री के वाहन के पीछे पूजनीया माता जी और शक्तिस्वरूपा बहनों का वाहन चल रहा था और उनके पीछे अन्य वाहनों में शिष्यगण चल रहे थे।

वाहन से ही आश्रमवासियों को आशीर्वाद प्रदान करते हुये सद्गुरुदेव जी महाराज सर्वप्रथम मूलध्वज मंदिर व श्री दुर्गाचालीसा पाठ मंदिर गए। यहां पर नमन करने के पश्चात् स्वामी जी की समाधिस्थल पर गये, पश्चात् त्रिशक्ति गौशाला पहुंचे, जहां उन्हें नमन् करने के लिये द्वार पर फूलों से आच्छादित तोरणद्वार सजाए गोसेवक कतारबद्ध जयकारे लगाते व शंखध्वनि करते हुये खड़े थे, इन्हें भी आपश्री ने आशीर्वाद प्रदान किया।

शक्ति चेतना जनजागरण सद्भावना यात्रा शनै:-शनै: रीवा-सतना मार्ग पर आगे बढ़ी। परम पूज्य गुरुवरश्री की यात्रा का आभास पाकर ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में स्थान-स्थान पर शिष्य व भक्तगण आपश्री को नमन् करने व दर्शन की अभिलाषा में कतारबद्ध खड़े मिले। देवलोंद, बघवार होते हुए छुहिया घाटी की दुर्गम व घुमावदार सडक़ से होते हुए यात्रा गोविंदगढ़ होकर बेला मोड़ पर पहुंची। यहां पर रीवा क्षेत्र के शिष्य व दर्शनाभिलाषी जयकारे लगाते हुए कतारबद्ध खड़े थे। सभी को परम पूज्य गुरुवरश्री ने वाहन से ही आशीर्वाद प्रदान किया।

रामपुर बघेलान होते हुए सद्भावना यात्रा जैसे ही सतना पहुंचती है ‘माँ’-गुरुवर के जयकारों व शंखध्वनि से वायुमंडल गूँज उठा। मार्ग के किनारे खड़े गुरुभाई-बहनों, ‘माँ’ के भक्तों के चेहरों में अपार प्रसन्नता झलक रही थी। यहां भक्तों की ओर से सद्भावना यात्रियों को फलाहार व पेयजल उपलब्ध कराया गया।

 यात्रा विभिन्न नगरों व ग्रामों को पार करके नागौद, पन्ना, छतरपुर, मौरानीपुर, दतिया होते हुए उत्तरप्रदेश स्थित जि़ला झांसी पहुंची, जहां गुरुआवास (हाँटल एम्बिएन्स) के सुसज्जित द्वार के समक्ष कतारबद्ध खड़े शिष्यों-भक्तों को परम पूज्य गुरुवरश्री ने आशीर्वाद प्रदान किया। सद्भावना यात्रियों के लिए भगवती मानव कल्याण संगठन के सदस्योंं के द्वारा भोजन प्रसाद की उत्तम व्यवस्था की गई थी।

झांसी में रात्रि विश्राम के बाद दिनांक 15 फरवरी  को प्रात: 07:30 बजे सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज जैसे ही विश्रामस्थल से निकलते हैं, जयकारों से पूरा क्षेत्र सुवासित हो गया। यहां से सद्भावना यात्रा जयपुर के लिए प्रस्थित हुई। आगे-आगे दिशा-निर्देशक वाहन और उसके पीछे गुरुवरश्री व पूजनीया माताजी और शक्तिस्वरूपा बहनों का वाहन और साथ में शिष्यगण अन्य चारपहिया वाहनों में चल रहे थे।

जयपुर से लगभग 275 किलोमीटर पहले धौलपुर में हज़ारों भक्तों ने जयकारों व शंखध्वनि के साथ यात्रा का स्वागत किया। गुरुभाइयों-बहनों व क्षेत्रीयजनों ने वाहन को छूकर ऋषिवर को नमन् किया। सद्भावना यात्रा अपनी गति के साथ आगे बढ़ते हुए करौली पहुंची। यहां भी करौलीवासियों ने करबद्ध होकर गुरुदेव भगवान् को नमन किया।

आरक्षण को लेकर चल रहे गुर्जर आन्दोलन के कारण यात्रा का मार्ग परिवर्तित करके ग्रामीण क्षेत्रों से निकलना पड़ा। और, जैसे ही ग्रामीणों को जानकारी मिलती कि सद्गुरुदेव भगवान् उनके गांव से निकल रहे हैं, वे अपने-अपने घरों से दर्शनों हेतु निकल पड़ते। जंगल के मध्य बसे ग्राम बंजरी में तो परम्परागत राजस्थानी पोशाक में महिलाएं व पुरुष राह पर कतारबद्ध खड़े मिले। भक्तों की भक्ति के वशीभूत सद्गुरुदेव भगवान् ने अपने वाहन को मन्द करवाया और सभी को सुखी व समृद्धिमयी जीवन का आशीर्वाद प्रदान किया। इस तरह विभिन्न ग्रामों से होकर यात्रा सफलतापूर्वक राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहुंचकर तीव्र्रगति से आगे बढ़ी। जयपुर में यात्रा का भव्य स्वागत किया गया। यहां के गुरुभाई-बहनों के द्वारा गुरुआवास को भव्यतम रूप प्रदान किया गया था।

ऋषिवर ने मिलने हेतु दिया समय

दिनांक 16-17 फरवरी  को शक्ति चेतना जनजागरण शिविर ‘नशामुक्ति महाशंखनाद’ सफलतापूर्वक सम्पन्न होने के बाद, दिनांक 18 फरवरी  को प्रात: 10 से 11 बजे तक ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने शिविर व्यवस्था में सक्रिय भूमिका निभाने वाले स्थानीय शिष्यों, उनके परिजनों, कुछ गणमान्य नागरिकों, जनप्रतिनिधियों व पत्रकारों से मुलाकात की। सभी ने क्रमबद्ध रूप से गुरुवरश्री को नमन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।

वापिसी सद्भावना यात्रा: जयपुर से सिद्धाश्रम तक

दिनांक 19 फरवरी , दिन मंगलवार को प्रात:काल 07:30 बजे ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज जैसे ही गुरुआवास से बाहर निकलते हैं, शिष्यों व ‘माँ’ भक्तों के मुखारविन्दों से उच्चारित जयकारों की प्रतिध्वनि से समूचा क्षेत्र गूंज उठा। शिष्यों-भक्तों ने सद्भावना यात्रा को भावभीनी विदाई दी।

सद्भावना यात्रा तीव्र्र गति के साथ राष्ट्रीय राजमार्ग से झांसी पहुंची। यहाँ पुन: एक बार गुरुभाई-बहनों व झांसी के श्रद्धालुजनों ने अतीव प्रसन्नता के साथ यात्रा का अभूतपूर्व स्वागत किया।

झांसी में रात्रि विश्राम के बाद दिनांक 20 फरवरी , दिन गुरुवार को प्रात: 07:00 बजे परम पूज्य गुरुवरश्री, पूजनीया माताश्री और शक्तिस्वरूपा बहनों के सान्निध्य में सद्भावना यात्रा आगे बढ़ी।

छतरपुर, पन्ना, नागौद होते हुए यात्रा अपराह्नकाल 3:30 बजे सतना पहुंची। परम पूज्य गुरुवरश्री के अनेकों शिष्य जहां जयकारे लगाने में लीन थे, वहीं महिला श्रद्धालु सिर में कलश रखकर गुरुवरश्री के स्वागतार्थ खड़ीं थीं। यहां श्रद्धालुओं ने जलपान वितरित करके मानवीय कर्तव्य का परिचय दिया। रामपुर बघेलान, बेला मोड़ होते हुए सद्भावना यात्रा का कािफला बघवार टोल नाका पर पहुंची। यहां सीधी जि़ले के रामपुर नैकिन व चुरहट तहसील के शिष्यों-भक्तों ने गुरुवरश्री के दर्शनों का लाभ प्राप्त किया। इसके उपरान्त, देवलोंद होते हुए सिद्धाश्रम पहुंचकर सद्भावना यात्रा का समापन हुआ।

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