112वां शक्ति चेतना जनजागरण शिविर, नशामुक्ति महाशंखनाद, स्मृति उपवन आशियाना, लखनऊ(उ.प्र.) 20-21 फरवरी 2016

अपने नशामुक्ति अभियान को और अधिक त्वरण देने के लिए, परम पूज्य सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने विभिन्न प्रान्तों की राजधानियों में नशामुक्ति महाशंखनाद शक्ति चेतना जनजागरण शिविर का आयोजन करके समाज के साथ-साथ शासनसत्ता को भी जगाने का लक्ष्य ठाना है। इस प्रकार का पहला महाशंखनाद मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 15-19 फरवरी 2015 को पंचदिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में किया गया था।
इसी कड़ी में यह दूसरा महाशंखनाद उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में 20-21 फरवरी 2016 के दौरान आयोजित द्विदिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में किया गया। यह महाशंखनाद नशे के अवैध कारोबार को रोकने के लिए शासन एवं प्रशासन से एक अनुरोध या आग्रह मात्र था। किन्तु, यदि वे इस पर अनुकूल अनुक्रिया नहीं दर्शाते, तो यह महाशंखनाद एक चेतावनी का रूप धारण करेगा, जिसके माध्यम से उन्हें शराब के वैध ठेके भी बन्द करने के लिए बाध्य किया जाएगा। वास्तव में, कोई भी सरकार देश को नशामुक्त करना ही नहीं चाहती है। वे तो नशे का ज़हर पिलाकर लोगों को मानसिक रूप से विकलांग बना रही हैं और उसी के बल पर वे सत्ता में आती हैं।
इसे चमत्कार ही कहा जाएगा कि मात्र चार दिन पहले ही प्राप्त हो पाये शिविर स्थल स्मृति उपवन की सफाई होगई, शिविर पण्डाल, मंच एवं आवासीय पण्डालों का निर्माण होगया तथा बिजली फिटिंग आदि सब कुछ पूर्ण होगया, जब कि इन समस्त कार्यों में कम से कम दस दिन का समय तो अवश्य ही लगता है। महाराजश्री के द्वारा संकल्पित प्रत्येक कार्य निश्चित रूप से सम्पन्न होता ही है। दुनिया की कोई भी शक्ति उसमें अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकती और वह समय भी दूर नहीं, जब पूरा देश नशामुक्त होगा तथा दुनिया की कोई ताकत उसे रोक नहीं पाएगी।
इस द्विदिवसीय शिविर में देश-विदेश से आए लाखों लोगों ने परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के ओजस्वी चिन्तनों को हृदयंगम किया, ध्यान-साधनाक्रम एवं योगाभ्यास किया तथा लगभग दस हज़ार लोगों ने गुरुदीक्षा प्राप्त करके जीवनपर्यन्त पूर्ण नशा-मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् रहने का संकल्प लिया।

सद्भावना रैली
इस नशामुक्ति जनजागरण सद्भावना रैली में देशभर से हज़ारों गुरुभाई-बहनें सम्मिलित हुए। दिनांक 17 फरवरी दिन बुधवार को प्रातः 08:45 बजे परम पूज्य सद्गुरुदेव महाराज श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मन्दिर तथा मूलध्वज मन्दिर में नमन करने के उपरान्त अपने पूज्य पिता ब्रह्मलीन दण्डी संन्यासी स्वामी रामप्रसाद आश्रम जी महाराज की समाधि पर पहुंचे। उन्हें प्रणाम करके निकटस्थ त्रिशक्ति गोशाला होते हुए सभी आश्रमवासी शिष्यों-शिष्याओं को अपना दिव्य आशीर्वाद प्रदान करके ठीक 09:30 आपने लखनऊ के लिए प्रस्थान किया।
इस अवसर पर अनेक शिष्य मोटरबाइक्स पर सवार होकर शक्तिदण्डध्वज हाथ में लिए और जयघोष करते हुए परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के वाहन के आगे चल रहे थे। आपके वाहन के पीछे शेष चौपहिया वाहन क्रमबद्ध ढंग से चल रहे थे, जिनके दोनों ओर इस सद्भावना यात्रा वाले फ्लैक्स लगे थे और आगे शक्तिध्वज फहरा रहे थे।
सिद्धाश्रम से मऊ, देवलोंद होते हुए यह यात्रा 10:35 बजे बघवार पहुंची, जहां पर अनेक बाईकर्स ने इसकी अगवानी की। तदुपरान्त, 11:45 बजे रीवा पहुंचने पर बस स्टैण्ड के पीछे चौराहे पर स्कूली बच्चों और हज़ारों भक्तों ने यात्रा का स्वागत किया। इसके आगे 12:15 बजे यह यात्रा रायपुर कर्चुलियान पहुंची, जहां पर तोरणद्वार बना था, ढोल बज रहा था और माईक पर जयकारे लगाए जा रहे थे। इस प्रकार वहां पर भव्य स्वागत हुआ। आगे दूर तक महिलाएं सिर पर कलश और हाथों में आरती थाल लिए खड़ी थीं और पुष्प वर्षा हो रही थी।
अब 12:45 बजे यह यात्रा मनगवां पहुंची, जहां पर भव्य तोरणद्वार बना था, अपार भीड़ थी और सड़क के दोनों ओर दूर तक महिलाएं सिर पर कलश लिए खड़ी थीं। यहां पर बैण्ड बज रहा था और शंखध्वनि हो रही थी। साथ-साथ यहां पर फल और पानी के पाऊच भी वितरित किए गए।
आगे चलकर रघुनाथगंज, देवतालाब और मऊगंज में जगह-जगह पर यात्रा का स्वागत हुआ। जगह-जगह पर तोरणद्वार बने थे, बैण्ड बज रहे थे तथा पुष्प वर्षा हो रही थी। पटेहरा में भी भव्य तोरणद्वार बना था, बैण्ड बज रहा था तथा सड़क के दोनों ओर दूर तक महिलाएं सिर पर कलश और हाथों में आरती का थाल लिए खड़ी थीं। साथ ही पुष्प वर्षा भी हो रही थी। यहां पर पैक्ड नाश्ता और जल के पाऊच भी वितरित किये गए। खटखरी में भी तोरणद्वार बनाकर लोगों ने यात्रा का स्वागत किया। दोपहर लगभग 03:00 बजे यात्रा हनुमना पहुंची। यहां पर भी तोरणद्वार बनाकर लोगों ने यात्रा का स्वागत किया तथा नाश्ता और पानी के पाऊच वितरित किये।
ड्रमण्डगंज होते हुए अपराह्न 04:00 बजे यात्रा कोरांव पहुंची। यहां पर लोगों में अपूर्व उत्साह देखने को मिला। तोरणद्वार पर बैण्ड बज रहा था, पुष्प वर्षा हो रही थी और माईक पर ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाए जारहे थे। सड़क के दोनों ओर दर्शकों की भारी भीड़ थी। बीच बाज़ार में भी जगह-जगह पर तोरणद्वार बनाए गए थे, स्कूल के बच्चे बैण्ड बजा रहे थे, महिलाएं सिर पर कलश लिए खड़ी थीं और लोग जयकारे लगा रहे थे। बहुत से स्त्री-पुरुष महाराजश्री के वाहन के साथ-साथ चल रहे थे। इस प्रकार नगर को पार करने में यहां पर लगभग आधा घण्टा लग गया। यहां पर नाश्ता और पानी के पाऊच भी वितरित किये गए।
तदुपरान्त, 05:00 बजे यह यात्रा में जा पहुंची। यहां पर भी तोरणद्वार बनाकर यात्रा का स्वागत किया गया। सड़क के दोनों ओर महिलाएं सिर पर कलश और हाथों में आरती के थाल लिए खड़ी थीं और पुष्प वर्षा हो रही थी। सायं 06:00 बजे यात्रा ने नैनी होते हुए इलाहाबाद में प्रवेश किया, जहां पर जगह-जगह शिष्यों-भक्तों के द्वारा स्वागत किया गया। अन्त में, सायं 07:15 बजे यात्रा सरदार पटेल संस्थान पहुंची। वहां पर सबने भोजनोपरान्त रात्रिविश्राम किया।
अगले दिन 18 फरवरी को गुरुवार व्रत होने के कारण उपवास रखने वालों के लिए प्रातः गाजर का हलुआ परोसा गया, जब कि अन्य लोगों ने सब्जी-पूड़ी ग्रहण किया। तदुपरान्त, 10:00 बजे यह सद्भावना यात्रा आगे बढ़ी। पुरामुफ्ती (कौशाम्बी) में शिष्यों एवं श्रद्धालुओं की लगभग एक किमी लम्बी पंक्ति देखने को मिली, जो यात्रा का स्वागत करने आए थे। शक्तिध्वज लिए हुए ये लोग ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाते हुए पुष्प वर्षा कर रहे थे तथा महिलाएं सिर पर कलश और हाथों में आरती के थाल लिए हुए खड़ी थीं। सैनी में भी ढोल बजाकर और पुष्प वर्षा करके लोगों ने यात्रा का स्वागत किया तथा दूर तक लोग गुरुवरश्री के वाहन के साथ दौड़ते रहे। यहां पर फल वितरित किये गये।
दोपहर 12:30 बजे यात्रा खागा पहुंची, जहां पर भारी भीड़ देखने को मिली। उन्होंने तोरणद्वार बनाकर, पुष्प वर्षा करके और ढोल बजाकर यात्रा का स्वागत किया। यहां पर भी फल वितरित किए गए। इस यात्रा ने 01:20 बजे फतेहपुर नगर में प्रवेश किया, जहां पर तोरणद्वार बनाकर हज़ारों भक्तों ने गुरुवरश्री के दर्शन प्राप्त किये। अनेकों शिष्य शंखध्वनि भी कर रहे थे। यहां पर भी फल वितरण हुआ। इसके बाद, सौंरा, मलवां और गुगौली में ढोल बजाकर लोगों ने यात्रा का स्वागत किया।
यह यात्रा 02:30 बजे अपराह्न चौडगरा पहुंची, जहां पर सड़क के दोनों ओर फूलों की बन्दनवार बनाई गई थी और तोरणद्वार भी था। औंग और बड़ाहार में भी यात्रा का स्वागत हुआ। इससे आगे छिवली नदी स्थल पर यात्रा के स्वागत के लिए तोरणद्वार बना था, पुष्प वर्षा हो रही थी और जयकारे लगाए जा रहे थे। यहाँ पर शाखा-कानपुर के हजारों कार्यकर्ताओं ने यात्रा की अगवानी की। सरसौल में भी लोगों ने तोरणद्वार बनाकर, पुष्प वर्षा करके और ढोल बजाकर यात्रा का स्वागत किया। महाराजपुर का दृश्य तो बहुत ही विलक्षण था। वहां पर भी तोरणद्वार बना था, ढोल बज रहा था, सड़क के दोनों ओर दूर तक महिलाएं सिर पर कलश रखे हुए और हाथों में आरती का थाल लिये खड़ी थीं, पुष्प वर्षा हो रही थी, शंखध्वनि हो रही थी तथा आतिशबाज़ी भी हो रही थी। लोगों में एक अलग ही उल्लास एवं उमंग थी और वे ज़मीन पर लेट-लेटकर प्रणाम कर रहे थे।
रूमा होते हुए इस सद्भावना यात्रा ने अपराह्न 04:00 बजे कानपुर नगर में प्रवेश किया। वहां पर जगह-जगह लोगों में अपूर्व उत्साह और उमंग देखने को मिला। चकेरी ओवरब्रिज से रामादेवी ओवरब्रिज उतरकर कोयलानगर, श्यामनगर चौराहा, सिमरा चौराहा होते हुए यात्रा यशोदानगर चौराहा पहुंची। यशोदानगर चौराहा, नौबस्ता चौराहा, बर्रा बाइपास पर दूर तक महिलाएं सिर पर कलश और हाथों में आरती के थाल लिए हुए खड़ी थीं तथा ढोल बज रहा था। हज़ारों लोग श्रद्धाभाव से गुरुवर को नमन कर रहे थे व जयकारे लगा रहे थे। अन्त में पराग दूध डेयरी से दीप सिनेमा होते हुए 04:45 बजे यह यात्रा सपना पैलेस पहुंची, जहां पर गुरुवरश्री के स्वागत में बैण्ड बज रहा था। शेष सभी लोग ओंकारनाथ चतुर्वेदी धर्मशाला पर व्यवस्थित हुए तथा सबने भोजनोपरान्त रात्रिविश्राम किया।
अगले दिन 19 फरवरी को सबने नाश्ते में सब्ज़ी एवं पूड़ी प्रसाद ग्रहण करके 09:45 बजे लखनऊ के लिए प्रस्थान किया। यह यात्रा हज़ारों दर्शनार्थियों के बीच किदवई नगर थाना, जूही गोशाला चौराहा से दहेली सुजानपुर, हरविन्दर नगर चौराहा, जेके जाजमऊ चौराहा से गंगापुल होते हुए लगभग 11 बजे उन्नाव पहुंची, जहां पर तोरणद्वार बना था, फूलों और गुब्बारों की बन्दनवार बनी थी तथा दूर तक सड़क के दोनों ओर भक्त खड़े थे। महिलाएं सिर पर कलश और हाथों में आरती का थाल लिए हुए खड़ी थीं। ढोल बजने के साथ पुष्प वर्षा हो रही थी। पुलिस चौकी नवाबगंज के पास भी भव्य स्वागत हुआ। अन्त में, यात्रा अपराह्न 01:45 बजे लखनऊ पहुंची, जहां पर चौपहिया वाहन रैली तथा मानवश्रृंखला का निर्माण करके समाज को पूर्ण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् जीवन जीने का सन्देश दिया गया। तदुपरान्त, स्मृति उपवन में आकर सब लोग आवासीय पण्डालों में व्यवस्थित हुए तथा भोजनोपरान्त रात्रि विश्राम किया।

प्रारम्भिक तैयारियां
इससे पूर्व भगवती मानव कल्याण संगठन के हज़ारों कार्यकर्ताओं ने बड़े परिश्रम एवं मुस्तैदी से शिविरस्थल की सफाई करके चिन्तनपण्डाल, मंच एवं आवासीय पण्डालों का निर्माण किया।
भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में इस शिविर से सम्बन्धित होर्डिंग्स लगाकर व पैम्फ्लैट्स वितरित करके खूब प्रचार किया था। वृहद् स्तर पर की गईं आरतियों, महाआरतियों तथा श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठों के आयोजन के फलस्वरूप भी खूब प्रचार हुआ था। इसके अतिरिक्त, लखनऊ की ओर आने वाले मुख्य मार्गों पर बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाए गए थे। इस प्रकार, इस शिविर का व्यापक प्रचार हुआ था।
यही कारण है कि परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के ओजस्वी चिन्तनों को सुनने के लिए लखनऊ के इस शिविर में अपार जनसमूह उमड़ा। इनमें से लगभग दस हज़ार लोगों ने गुरुदीक्षा प्राप्त की। इस बीच, भोजन एवं शान्ति व्यवस्था बड़े सुचारु रूप से चली। ये सारी व्यवस्थाएं संगठन के पांच हज़ार से भी अधिक सक्रिय कार्यकर्ताओं ने पूर्ण कीं।

दैनिक कार्यक्रम
शिविर पण्डाल में पहले दिन 20 फरवरी को प्रातः 07 से 09 बजे तक योगाभ्यास, मन्त्रजाप एवं ध्यानसाधना का क्रम सम्पन्न हुआ, जिसे भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष शक्तिस्वरूपा बहन संध्या दीदी जी व पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम ट्रस्ट की प्रधान न्यासी ज्योति दीदी जी ने सम्पन्न कराया। दूसरे और अन्तिम दिन इसी अवधि में गुरुदीक्षा का कार्यक्रम हुआ। अपराह्न दोनों दिन 01 से 02 बजे तक भावगीतों का कार्यक्रम हुआ, जिसके अन्तर्गत विभिन्न शिष्यों एवं श्रद्धालुओं के द्वारा उनके भावसुमन अर्पित किये गए। तदुपरान्त, ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाए जाते थे। इसी बीच गुरुवरश्री का शुभागमन होता था और तीनों शक्तिस्वरूपा बहनों पूजा, सन्ध्या एवं ज्योति जी के द्वारा उनके पदप्रक्षालन एवं वन्दन के उपरान्त कुछ और भावगीतों के प्रस्तुतीकरण तथा बहनों सन्ध्या एवं ज्योति जी के द्वारा जयकारे लगवाए जाने के पश्चात् परम पूज्य गुरुवरश्री की अमृतवाणी सुनने को मिलती थी।
तदुपरान्त, दिव्य आरती होती थी, जिसका नेतृत्व शक्तिस्वरूपा तीनों बहनों के द्वारा किया जाता था। अन्त में, महाराजश्री की चरणपादुकाओं का स्पर्श करके सभी शिविरार्थी प्रसाद ग्रहण करते थे। महाराजश्री मंच पर तब तक विराजमान रहते थे, जब तक सभी शिविरार्थी प्रणाम नहीं कर लेते थे।

आशीर्वाद प्रदान करते हुए सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज

प्रथम दिवसः दिव्य उद्बोधन

माता स्वरूपं माता स्वरूपं, देवी स्वरूपं देवी स्वरूपम्।
प्रकृति स्वरूपं प्रकृति स्वरूपं, प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यम्।।

इस शिविर में आए हुए ‘माँ’ के समस्त भक्तों, श्रद्धालुओं, अपने चेतनाअंशों, शिष्यों और शिविर की विभिन्न व्यवस्थाओं में लगे सभी कार्यकर्ताओं को अपने हृदय में धारण करता हुआ, माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का आशीर्वाद प्राप्त करता हुआ, सभी को अपना पूर्ण आशीर्वाद समर्पित करता हूँ।
वर्तमान में पूरा समाज अधर्मी-अन्यायियों से प्रभावित है। इससे यह मनुष्य जीवन नष्ट होता चला जा रहा है। अनीति-अन्याय-अधर्म से बचने के लिए स्वयं को संवारना है, सुधारना है। इसके लिए एक ही मार्ग है नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन। जीवनभर लोग नाना प्रकार की कामनाओं में खोए रहते हैं। यदि आप सुख-शान्ति-समृद्धि चाहते हैं, तो अपने गुरु और ‘माँ’ से सिर्फ भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति मांगो। इससे आप सच्चे इन्सान बन जाएंगे। इस पथ पर चलकर देखो। इसमें सारे वेदों-पुराणों का सार समाहित है। केवल गीता-रामायण सुनने से जीवन में परिवर्तन नहीं आएगा। आपको उनका अनुसरण करना होगा, उस पथ पर चलना होगा। आप लोगों के यहां पर आने को मैं अपने ऊपर ऋण समझता हूँ।
प्रकृतिसत्ता ‘माँ’ से सदैव पात्रता के अनुसार लाभ प्राप्त होता है। यदि आपके जीवन में ज्ञानतत्त्व कार्य कर रहा है, तो आपका जीवन सुखी होगा। अज्ञान के द्वारा प्राप्त समृद्धि आपको एक दिन पतन के मार्ग पर अवश्य लेजाएगी। अपनी आत्मा के ऊपर पड़े आवरणों को दूर करने का एकमात्र मार्ग है– भक्ति। अपनी इन्द्रियों को सदैव नियन्त्रण में रखें। जब ज्ञानपक्ष प्रबल होगा, तो जीवन में सुख-शान्ति आएगी। आपके अन्दर अलौकिक शक्तियां भरी हैं। वे सभी विकसित होती चली जाएंगी।
जो लोग समाज में परिवर्तन लाए हैं, उनमें भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति तीनों पूर्णता से थीं। परमसत्ता का मार्ग सबके लिए खुला है। उस सत्यपथ पर बढ़कर देखो। परमसत्ता आपको दस कदम आगे बढ़ाकर खड़ा कर देंगी। मेरे शिष्य स्वयं अपने आपको बदल रहे हैं और समाज को भी बदल रहे हैं। मैंने भी इसी मार्ग को चुना था। मैं यदि चाहता, तो मैं भी कथा-कहानियां सुनाते रह सकता था, किन्तु मुझे यह स्वीकार नहीं था। न तो मैं किसी साधु-सन्त-संन्यासी को अपने मंच पर बैठाता हूँ और न ही उनके मंच पर बैठता हूँ।
आज हर जगह अनीति-अन्याय-अधर्म का साम्राज्य स्थापित हो चुका है और धर्म भटक चुका है। जिसे देवाधिदेव भी ‘माँ’ कहकर पुकारते हैं, ऐसे में उसे पुकारना पड़ेगा। राजनेताओं का तो और बुरा हाल है। ये 10 प्रतिशत लोग 90 प्रतिशत पर शासन कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में आज हमें क्या करना है, यह आपको सोचना है। यह सृष्टि कर्मप्रधान है। जो भी अच्छा-बुरा हमारे साथ हो रहा है, उसके ज़िम्मेदार हम स्वयं हैं। इसलिए सत्कर्म करना प्रारम्भ करदें, अपने आप परिवर्तन आता चला जाएगा। वास्तव में, अनीति-अन्याय-अधर्म का कोई अस्तित्व नहीं है, जैसे अन्धकार का कोई अस्तित्व नहीं है। प्रकाश का अभाव ही अन्धकार है।
मेरे द्वारा गठित भगवती मानव कल्याण संगठन का संग प्राप्त करो। सत्य का सान्निध्य प्राप्त करना इतना सहज है, कि यदि एक बार प्राप्त कर लिया, तो कभी भी भटक नहीं सकोगे। मेरी अब तक की यात्रा को सबने देखा है। हमारी शक्ति हमारे आत्मबल पर निर्भर करती है। अपनी कमियों को देखकर उन्हें दूर करना शुरू करो। समाज में जो कमियां हैं, मैं उन्हें भी उजागर करता हूँ। मैं किसी देवी-देवता का अवतार नहीं हूँ। मैं एक ऋषि था, ऋषि हूँ और ऋषि ही रहूंगा।
इन दो दिनों की दिव्य आरतियां लेंगे, तो आपका जीवन सफल हो जाएगा। आज एक धर्म दूसरे से टकरा रहा है। इसके लिए हमारे धर्म के ठेकेदार ज़िम्मेदार हैं। हिन्दूधर्म हमें बताता है कि सब धर्मों का सम्मान करो।
आज ढोंगी-पाखण्डी लोग समाज को ठग रहे हैं। सामान्य लोग भगवे वस्त्रों को नमन करते हैं, भले ही उनमें पात्रता हो या न हो। यदि भगवे वस्त्रों से इतनी ही श्रद्धा है, तो अपने घर के किसी एक सदस्य को भगवे वस्त्र पहना दो और उसे नमन कर लिया करो, चाहे वह शराबी हो या नशेड़ी हो। जिसकी अन्तरात्मा चैतन्य नहीं, जिसकी पूर्ण कुण्डलिनी जाग्रत् नहीं, वह कभी भी आपका कल्याण नहीं कर सकता।
आज आवश्यकता है कि एक विश्वस्तर का धर्मसम्मेलन हो। उसमें आकर सारे धर्मगुरु मेरे सत्य का सामना करें। विज्ञान के पास वह सामर्थ्य है कि वह बता सकता है, कौन झूठ बोल रहा है और कौन सच बोल रहा है? कौन ऐसा है, जिसने अपने इष्ट के दर्शन किये हैं? एक पल में अपनी इन्द्रियों को नियन्त्रित करके कौन ध्यान-समाधि में जा सकता है? इस प्रकार पता लगाया जा सकता है कि किसके भीतर समाज का आध्यात्मिक मार्गदर्शन करने की पात्रता है और कौन समाज को बेवकूफ बना रहा है?
मेरे शरीर को स्पर्श करने वाला व्यक्ति 440 वोल्ट बिजली का झटका महसूस करता है और वैसी ही आवाज़ आती है। नास्तिक से नास्तिक व्यक्ति आकर देखें। कुछ गिनेचुने धर्मगुरु हैं, जो सत्यपथ पर चल रहे हैं, अन्यथा अधिकतर समाज को धोखा दे रहे हैं और विलासिता का जीवन जी रहे हैं। आज शक्तिपात और कुण्डलिनी जागरण के बड़े-बड़े शिविर लगाए जा रहे हैं। यह सब धोखा है। उनकी स्वयं की कुण्डलिनी जाग्रत् नहीं है। मेरी पूर्ण कुण्डलिनी जाग्रत् है। यह कहने में मुझे कोई गर्व या घमण्ड नहीं है।
मैं अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा हूँ। मुझे किसी मान-सम्मान की ज़रूरत नहीं है। हज़ार तहखानों के अन्दर भी यदि मुझे डाल दिया जाय, तो वहां से भी मेरी चेतनातरंगें कार्य करती रहेंगी। मुझसे समाज के 99 प्रतिशत ऐसे लोग जुड़े हैं, जो दीन-हीन और अभावग्रस्त थे। आज वे समाज को जगाने का कार्य कर रहे हैं। मेरा एक भी क्षण बिकाऊ नहीं है। आप अपने धर्म, धैर्य और सत्य का त्याग कभी मत करो। अपने विकारों को दूर करो। एक जन्म सत्य के पथ पर चलकर तो देखो। दुनिया की कोई भी ताकत आपको रोक नहीं पाएगी।
भले ही तुम नशेड़ी हो, दुराचारी हो, इस पथ पर बढ़ना शुरू कर दो। आपकी आत्मा पर पड़े आवरण दूर होते चले जाएंगे। इससे आपका कल्याण होगा और आपकी आने वाली पीढ़ियां भी कल्याण के मार्ग पर जाएंगी।
अपने आपको सदैव पांच महामारियों से बचाओ। ये हैं नशा, मांस, भ्रष्टाचार, नास्तिकता और साम्प्रदायिकता। नशामुक्त जीवन जीने का संकल्प लो। नशे से सुषुम्ना नाड़ी बाधित होती है। अपने अन्तःकरण को पवित्र बनाओ। स्वयं के द्वारा स्वयं को सुधारना है। मेरे आश्रम में आने वाले 99 प्रतिशत लोग नशामुक्त होकर जाते हैं। मैं कोई दवा नहीं देता, ‘माँ’ की कृपा दिलाता हूँ। मैं गर्व से कहता हूँ कि 1000 में से 999 मेरे शिष्य पूर्ण नशामुक्त हैं।
मेरे आश्रम में 15 अप्रैल 1997 से अनन्तकाल के लिए श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ चल रहा है। उससे अपने आपको जोड़कर देखो। समाज में आज आस्था और विश्वास मर चुके हैं। मैंने सत्य का चयन किया है और वही तुम्हें दे रहा हूँ। मैं आपको धन का कोई लोभ नहीं देता। धन के पीछे भागने से अधर्म बढ़ेगा और सत्य के मार्ग पर चलने से धर्म बढ़ेगा। इसीलिए आज से कल तक सोचो कि आपको सत्य के मार्ग पर, धर्म के मार्ग पर जाना है या असत्य और अधर्म के मार्ग पर?
‘माँ’ की भक्ति से सरल कोई भक्ति नहीं है। अज्ञानता से हुई गलती को ‘माँ’ माफ कर देती हैं। ‘माँ’ को जानने का प्रयास करो। धर्म के पथ पर एक कदम बढ़ाने से उसका फल मिलेगा। भौतिकता से मुझे कभी भी कोई आकर्षण नहीं हुआ।
मेरा जन्म फतेहपुर ज़िले (उत्तरप्रदेश) के भदवा गांव में हुआ है। मेरे परिजन और गांव के सैकड़ों लोग भी इस समय यहां पर बैठे हैं। वहां पर साधुओं की टोलियां आया करती थीं। पढ़ाई के बाद रोज़ाना खेल का घण्टा हुआ करता था। उसे छोड़कर मैं कुटिया में चला जाता और साधुओं की बातें बड़े ध्यान से सुनता था। उस पर पिता जी ने मुझे दण्डित किया। उस दिन मैं बहुत रोया था कि हे माँ, जो तड़प आपसे मिलने की मुझमें है, वह इनमें क्यों नहीं है? इसका प्रभाव यह हुआ कि छः महीने के अन्दर ही पिता जी घर त्यागकर दण्डी संन्यासी बन गए और अपने जीवन के अन्तिम समय से छः महीने पहले आश्रम आने को मजबूर हुए। उनका कहना था कि उन्होंने देश के अनेक मठों और आश्रमों का भ्रमण किया है, लेकिन जो शान्ति यहां सिद्धाश्रम में आकर मिली, वह कहीं पर भी नहीं मिली।
सत्य बताना मेरा धर्म है। इस यात्रा को आप लोग भी तय करें। अपने बच्चों को संस्कारवान् बनाएं। मैं भी पिता जी की तरह घर त्यागने को तैयार था। घर के सभी सदस्यों से मिलने के बाद जैसे ही माता जी के पास पहुंचा, तो मेरे अन्तःकरण से विपरीत आवाज़ आई और मैंने तत्काल उस विचार को त्याग दिया। तब मेरे मन में आया कि जब भौतिक जगत् की माँ से इतना आकर्षण है, तो उस जगज्जननी में कितना आकर्षण होगा! फलस्वरूप, मैंने संकल्प किया कि मैं ‘माँ’ के दर्शन करके ही मानूंगा। वह कितना प्रेम करती हें!
बचपन की कुछ घटनाएं हैं। मैं ज़मीन पर लेटा हुआ था और एक सर्प मेरे सिर पर फन फैलाए बैठा था। ऐसा प्रतिदिन हुआ करता था। परमसत्ता आपकी रक्षा करती हें। वह हमारी आत्मा की जननी हैं। अपने विचारों को दृढ़ करो और अभी से अपने आपको सुधारना शुरू कर दो।
अब तक मैंने आठ महाशक्तियज्ञ सम्पन्न किये हैं। मैंने कहा था कि यदि मेरे किसी भी महाशक्तियज्ञ में वर्षा न हो, तो समझ लेना कि मुझमें कोई तपबल नहीं है और मैं आध्यात्मिक जीवन त्यागकर वन में चला जाऊंगा। अनेक लोग यहां पर इस बात के साक्षीभूत बैठे हें, जिन्होंने देखा है कि मेरे हर महाशक्तियज्ञ में वर्षा हुई, भले ही थोड़ी देर के लिए हुई हो।
हमारे नशामुक्ति महाशंखनाद का लक्ष्य है नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् जीवन जीना। प्रत्येक मनुष्य के मुख्य रूप से तीन कर्त्तव्य हैं–मानवता की सेवा, धर्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा करना। इनमें मानवजीवन की पूर्णता समाहित है। आज धर्मगुरु भटक गए हैं। वे कथा-भागवत में रासरंग और अश्लील नृत्य कराते हैं। उनको कथाएं कहते हुए इतने दिन हो गए,जब स्वयं उनका उद्धार नहीं हुआ, तो वे तुम्हारा कल्याण क्या करेंगे? वे रत्नों के गुलाम हैं, जो पांचों उंगलियों में रत्नजड़ित अगूंठियाँ धारण करते हैं। अरे, जिसके हृदय में उनका इष्ट विराजमान हो, सारे ग्रह उसके गुलाम होजाते हैं। आज चार मठों में पैंसठ शंकराचार्य बैठे हैं और बनारस में तो गली-गली में शंकराचार्य हैं। ये लोग गरीबों से मिलते तक नहीं हैं और न ही उन्हें उनके चरणस्पर्श की अनुमति है। धिक्कार है ऐसे शंकराचार्यों को, जिनका धर्म गरीबों और छोटी जाति के लोगों के चरणस्पर्श करने से बाधित होता है! मैंने कभी भी जातपांत को नहीं माना है। हर धर्म और जाति के लोग मेरे चरणस्पर्श करते हें। इससे मेरा धर्म कभी भी बाधित नहीं हुआ है। मैं सभी का छुआ भोजन कर लेता हूँ। केवल शुद्धता और पवित्रता का ध्यान रखता हूँ, जो ज़रूरी है।
किसी भी शंकराचार्य ने आज तक भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाई है और न ही नशे-मांस के खिलाफ आवाज़ उठाई है। एक भी राजनेता ने अपने राष्ट्रधर्म का पालन नहीं किया है। नब्बे प्रतिशत गरीब ज्यों के त्यों बने हुए हैं। मैं सभी राजनेताओं से कहता हूँ कि अभी भी सँभल जाओ। तुम समाजसेवक हो, हम तुम्हारा सम्मान करते हैं। यदि देश को लूटोगे, तो हम तुम्हें सत्ता से बाहर कर देंगे। यदि राजनेताओं ने ईमानदारी से काम किया होता, तो आज देश की तस्वीर कुछ और ही होती। गांव-गांव में स्कूल होते, अस्पताल होते और हर घर के सामने सड़क होती। चुनावों के समय वायदे ज़रूर करते हैं, किन्तु आज तक किसी ने एक भी वायदा पूरा नहीं किया है और भोलीभाली जनता बेवकूफ बनती रहती है।
सारे राजनेता आतंकवादी हैं, जो कहते हैं कि यदि कोई हमारे धर्म की एक लड़की को भगाएगा, तो हम उनके धर्म की दस लड़कियों को भगाएंगे! यदि अपने समाज को आतंकवादी बनाओगे, तो उसका विनाश सुनिश्चित है। मेरे संगठन के लोगों ने आज तक भी कभी कोई चक्का जाम नहीं किया और न ही कभी साम्प्रदायिकता में भाग लिया। हम अपनी शक्ति का दुरुपयोग इस प्रकार की गतिविधियों में नहीं करते। हम अपनी शक्ति का उपयोग पर-हित के लिए करते हैं। मैं सभी धर्मगुरुओं का आवाहन करता हूँ कि वे समाजसुधार का कार्य करें। यदि कोई राजनेता भी नशे को समाप्त करने का कार्य करेगा, तो हम उसका समर्थन करेंगे। नशे से मनुष्य में विकार उत्पन्न होते हैं, दुघर्टनाएं होती हैं और व्यभिचार होता है। सौ बलात्कारियों को फाँसी देने से भी बलात्कार कभी नहीं रुकेंगे। लोगों को चरित्रवान् बनाना होगा। यदि नशामुक्त समाज का निर्माण होगया, तो अनेक समस्याएं दूर हो जाएंगी और देश विकास की ओर जाएगा।
जो राजनेता यह सोचकर शराब के ठेके उठाते हैं कि उससे और अधिक राजस्व मिल जाएगा, तो उनका दिमाग घुटनों में चला गया है। यदि एक दिन में सारे ठेके बन्द कर दिये जाएं, तो समाजसुधार हो जाएगा। महिलाएं और बच्चे बहुत दुःखी हैं। आज छठी-सातवीं कक्षा के बच्चे नशे में लिप्त होते जा रहे हैं।
मैं देश के प्रधानमन्त्री से भी अपील करता हूँ कि चन्द उद्योगपतियों के लिए ही कार्य मत करो। गरीबों की ओर भी देखो। उनके बच्चे भूखे सोते हैं और स्कूल नहीं जापाते हैं। आखिर उनकी आवाज़ कौन उठाएगा? न तो गंगा की सफाई हुई और न ही कालाधन वापस आया! अब समाज को जागना होगा। मैं परिवर्तन लाकर ही रहूंगा। मुझे कोई किसी भी प्रकार की कामना नहीं है। आओ और काम करो! भगवती मानव कल्याण संगठन आपको समर्थन देने के लिए तैयार बैठा है।
अपनी सतोगुणी ऊर्जा को जगाओ। सच्चे मन से दुर्गाचालीसा का पाठ करो। क्या लेकर आए थे और क्या लेकर जाओगे? बच्चों को देने के लिए सबसे बड़ी सम्पदा अच्छे संस्कार हैं। यदि आपने उन्हें धन न भी दिया, तो संस्कारों के बल पर वे स्वयं धन अर्जित कर लेंगे।
लोगों ने ‘माँ’ को क्या समझ रखा है! वर्ष में एक बार वैष्णव देवी जाते हैं। नौ दिन तक नशा-मांसाहार नहीं करते और फिर उसके बाद रोज़ करते हैं। यह बिल्कुल समझ से परे है। तुम इस बार यहां से नशे-मांस से मुक्त रहने का संकल्प लेकर जाओ और हमेशा सादा जीवन, उच्च विचार रखो। वर्तमान में लोगों की सामर्थ्य घटती जा रही है। पचास साल पहले आपके माता-पिता की क्या सामर्थ्य थी? वे एक-एक क्विण्टल की बोरी उठा लेते थे और पचास-पचास किमी पैदल चल लेते थे। आज पचास-पचास किलो की कट्टियां बनकर रह गईं हैं। उन्हें उठाने में भी नानी याद आती है। अनुभव करो कि ‘माँ’ मेरी हैं और मैं ‘माँ’ का हूँ। हे ‘माँ’, मुझे और ज्ञान दो। मैं और शक्ति प्राप्त करना चाहता हूँ। अपने अन्दर की इन्सानियत को जगाकर देखो।
आजकल बच्चे भी तनाव से ग्रसित होते जा रहे हैं। यदि उनमें कोई परिवर्तन नहीं आ रहा है, तो उन्हें पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में लाओ। वहां पर अक्सर दस-दस, बीस-बीस, पचास-पचास लोगों के ग्रुप आते हैं। उनसे जब पूछते हैं, ‘‘क्यों आए?’’ तो वे कहते हैं, ‘‘नशा छोड़ने आए हैं।’’ वहां पर कोई दवाई नहीं दी जाती, किन्तु 99 प्रतिशत लोग नशा छोड़कर जाते हैं। वहां आकर अब तक लाखों लोग नशामुक्त हुए हैं और अब दूसरों का नशा छुड़वा रहे हैं। यह धरती तुम्हें पुकार रही है। आओ, मैं हाथ बढ़ाकर तुम्हारा आवाहन करता हूँ।
मेरे लिए पूरा विश्व एक परिवार है। जहां भी गलत हो रहा है, उसका विरोध करना मेरा धर्म है। एक बार वहां आश्रम में आकर देखो। तुम्हारी अन्तरात्मा चीख-चीख़कर कहेगी कि बहुत देर कर दी यहां आने में। बहुत पहले आजाना चाहिए था।
कल गुरुदीक्षा होगी। इसका कोई शुल्क नहीं रहता। यह दीक्षा सामूहिक होती है और केवल शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में ही होती है। उसके पहले या बाद में कोई यदि करोड़ रुपये भी दे, तो दीक्षा नहीं मिलती। कल नशामुक्ति का महाशंखनाद भी होगा। इसके माध्यम से हम राजसत्ता से आग्रह करने आए हैं। आओ और नशामुक्त समाज का निर्माण करने का संकल्प लो। ये निवेदन, अनुरोध और आग्रह की कडिय़ां हैं। किन्तु, जिस दिन चेतावनी दूंगा, उस दिन तुम्हारी सत्ता तुमसे दूर होती चली जाएगी। मैं इस मंच से कहना चाहता हूँ कि यदि कोई भी राजनैतिक पार्टी ऐसा नहीं करती, तो मैं उन्हें पैर से ठोकर मारने को तैयार हूँ। यह अभियान दिल्ली तक भी जाएगा। सुधर जाओ, नहीं तो वह दिन दूर नहीं, जब कोई शक्तिसाधक या शक्तिसाधिका ही केन्द्र की सत्ता संभालेंगे।
किसी भी साम्प्रदायिक दंगे में शरीक होते ही तुम मेरे शिष्य नहीं रहोगे। आपकी शक्ति रक्षात्मक होनी चाहिए। उसका कभी भी दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। यदि तुम्हें कोई एक तमाचा मारे, तो उसे चेतावनी देदो। यदि फिर भी मारने के लिए हाथ उठाए, तो उसका हाथ तोड़ दो। अन्यथा, अनीति-अन्याय-अधर्म इसी तरह बढ़ता चला जाएगा। आज हाल यह है कि चौराहे पर एक अधर्मी-अन्यायी खड़ा है और दस शरीफ लोग सिर झुकाकर निकल जाते हैं कि कौन इससे टकराए! मैं वह दिन देखना चाहता हूँ कि चौराहे पर एक शक्तिसाधक खड़ा हो, तो दस अधर्मी-अन्यायी सिर झुकाकर निकलें। आज का कानून अधर्मी-अन्यायियों का गुलाम है। उसके सहारे मत रहो। पुलिस थानों में गरीबों को गालियां खानी पड़ती हैं और गुण्डों की खातिर-तवाज़ह होती है, जैसे वे उनके दामाद हों। स्वयं अपने अन्दर ऐसी शक्ति पैदा करो कि लड़कियां उनकी आँखें फोड़ सकें।
विकारों में बढ़ना एक बुराई है। आज वैलेण्टाईन डे पर यही हो रहा है। युवावर्ग भटक रहा है। इसे रोकने की ज़रूरत है। प्रेम करना बुराई नहीं है, किन्तु घर से भागकर शादी करने का मैं सख़्त विरोधी हूँ।

(अन्त में, दोनों हाथ उठवाकर सबको एक संकल्प दिलाया गयाः
‘‘मैं संकल्प करता/करती हूँ कि नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीते हुए आजीवन मानवता की सेवा, धर्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा के लिए समर्पित रहूँगा/रहूँगी तथा शादी से पूर्व ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करूँगा/करूँगी और शादी के बाद एक पति/एक पत्नी व्रत का पालन करूँगा/करूँगी।)’’
यदि आप लोग इस संकल्प पर दृढ़ रहे, तो आज तक किये गए आपके पापों को मैं अपने ऊपर लेलूँगा।

द्वितीय दिवस-प्रथम सत्र
गुरुदीक्षा
शिविर के अन्तिम दिन सभी दीक्षार्थी शिविर पण्डाल में प्रातः 07ः00 बजे से पहले ही पहुंच गए थे। ठीक समय पर परम पूज्य गुरुवरश्री का शुभागमन हुआ। दीक्षा प्रदान करने से पूर्व आपश्री ने एक संक्षिप्त उद्बोधन दियाः
जीवन का हरपल महत्त्वपूर्ण होता है। जब हम एक चेतनावान् गुरु से दीक्षा प्राप्त करते हैं, तो वह क्षण सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। हमारा एक जन्म तो माता से होता है, किन्तु दीक्षा लेने के बाद हमारे एक नए जीवन का प्रारम्भ होता है।
जो शिष्य अपने गुरु के प्रति निष्ठा-विश्वास बढ़ाते रहते हैं, उनका कभी भी पतन नहीं होता। दीक्षा लेना विद्यालय में प्रवेश लेने के समान है। जो व्यक्ति प्रवेश लेने के बाद निरन्तर पढ़ता रहता है, वह आगे बढ़ता चला जाता है। किन्तु, जो प्रवेश लेकर बैठ जाता है, पढ़ता नहीं है, वह वहीं खड़ा रह जाता है।
यदि आप पढ़े-लिखे नहीं हैं, किन्तु नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जी रहे हैं, तो आपका गुरु आपको निरन्तर आगे बढ़ाता चला जाएगा। जो लोग मानवता की सेवा, धर्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा में रत रहते हैं, वे करोड़ों मील दूर रहकर भी मेरे निकट रहते हैं।
‘माँ’ की साधना अत्यन्त सरल है। तुम्हारी आत्मा ‘माँ’ का अंश है। इसलिए जो तुम सुन रहे हो, वह ‘माँ’ सुन रही है। किन्तु, विकारों में ग्रसित रहकर आप ‘माँ’ से दूर होते चले जाते हैं। अपनी अन्तरात्मा के कहने पर चलो और नकारात्मक कार्यों से सदैव अपने आपको बचाओ।
अपने घर में ‘माँ’ का एक छोटा सा मन्दिर बनालें। यदि अलग कक्ष की व्यवस्था नहीं है, तो किसी अल्मारी या आले में ‘माँ’-गुरुवर की संयुक्त छवि रख लें या दीवार पर भी छवि टांग सकते हैं। कोई-न-कोई आसन बिछाकर उसपर बैठें। आपको एक समान लाभ प्राप्त होगा। यह आपके निष्ठा-विश्वास-समर्पण पर आधारित है।
शेष अन्य छवियों में से किसी को भी पहले स्नान-तिलकादि कर सकते हैं और पुष्प चढ़ा सकते हैं। दैवी शक्तियों में परस्पर कोई भेदभाव नहीं होता। अपनी पात्रता के अनुसार आप कोई भी ज्योति जला सकते हैं। घी नहीं है, तो तेल की ज्योति जला सकते हैं। यदि यह भी नहीं है, तो अगरबत्ती लगा सकते हैं। और, इसके अभाव में भी आप मन से वैसे ही स्तुति कर सकते हैं। अगरबत्ती उतनी ही जलाएं, जिससे वातावरण शुद्ध बना रहे।
दीक्षा के उपरान्त आपको निःशुल्क शक्तिजल प्राप्त होगा। यह असाध्य से असाध्य रोगों में भी लाभ देता है और इससे मन की एकाग्रता आती है। इसके पान करने से मन की उलझन समाप्त होती है। ख़त्म होने से पहले इसे गंगाजल या नर्मदाजल से बढ़ाते रहें। आप इसे दूसरे लोगों को भी दे सकते हैं, किन्तु निःशुल्क। जो भी नशा-मांसाहारमुक्त, चरित्रवान् जीवन जियेगा, यह उसे ही लाभान्वित करेगा। नशा करने वाले व्यक्ति को भी इसका पान करा सकते हें। धीरे-धीरे उसका नशा छूट जाएगा।
(अब तीन बार शंखध्वनि करने और तीन-तीन बार ‘माँ’-ॐ बीजमन्त्रों का उच्चारण करने के बाद एक संकल्प कराया गया, जिसका सार यह है कि ‘मैं धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज को अपना गुरु स्वीकार करता/करती हूँ। मैं जीवनपर्यन्त नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् जीवन जीने के साथ ही गुरुवर जी के हर आदेश का पूर्णतया पालन करूँगा/करूँगी। इसके साथ-साथ भगवती मानव कल्याण संगठन एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम की विचारधारा पर चलूँगा/चलूँगी और परम पूज्य गुरुवरश्री के द्वारा प्रदत्त त्रिधाराओं के प्रति पूर्ण निष्ठा से समर्पित रहूँगा/रहूँगी।’’)
यदि आप स्वयं को इस संकल्प से बांधकर रखेंगे, तो आपका जीवन निरन्तर सुधरता चला जाएगा। मैं आपसे किसी दान-दक्षिणा की अपेक्षा नहीं करता। किन्तु, आपको कर्त्तव्यबोध कराना मेरा धर्म है। आप अपने तन-मन-धन का 10 प्रतिशत उस धर्मस्थान को समर्पित करें, जिससे आप जुड़े हैं। तन से मानवता की सेवा करें तथा चालीसा पाठ में बैठें। अपने 10 प्रतिशत धन का निजी जीवन में कभी भी उपयोग न करें। शिष्यों के द्वारा दिये गए धन का मैं अपने परिवार के लिए उपयोग नहीं करता, बल्कि अपने कर्मबल से उपार्जित धन से अपना तथा अपने परिवार का सारा व्यय वहन करता हूँ।
समय निकालकर कभी सिद्धाश्रम में आएं। आपको अपनी समस्याओं का समाधान मिलेगा। वहां पर रहने और भोजन की व्यवस्था सदैव निःशुल्क रहती है।
(अब निम्नलिखित मन्त्रों का तीन-तीन बार उच्चारण कराया गयाः

बजरंग बली जी का मन्त्र- ॐ हं हनुमतये नमः, 2. भैरव जी का मन्त्र- ॐ भ्रं भैरवाय नमः, 3. गणपति देव जी का मन्त्र- ॐ गं गणपतये नमः, 4. ‘माँ’ का चेतना मन्त्र- ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नमः और 5. गुरुमन्त्र- ॐ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः।)
पूजन के बाद में भी गुरुमन्त्र का जाप करना चाहिए। इससे सब मन्त्र फलीभूत होते हैं और त्रुटियों से क्षमादान मिलता है।
अन्त में, तीन बार शंखध्वनि की गई तथा गुरुवरश्री की चरणपादुकाओं को नमन करते समय सभी दीक्षाप्राप्त करने वाले शिष्यों को निःशुल्क शक्तिजल प्रदान किया गया। इसके साथ ही सबने दीक्षापत्रक भरकर जमा किया।

द्वितीय दिवस- द्वितीय सत्र
दिव्य उद्बोधन
आज शिविर के द्वितीय दिवस पर दसों हज़ार नए भक्तों ने गुरुदीक्षा ली है। यह यात्रा एक-एक कदम आगे बढ़ रही है। मैं कौन हूँ? मेरी जननी कौन हैं? इन दो बिन्दुओं पर यदि विचार करते रहें, तो जीवन में कभी भी भटकाव नहीं आएगा। यदि मैं अजर-अमर-अविनाशी आत्मा हूँ, तो मेरी शक्तियाँ क्या हैं? और, मेरी जननी की शक्ति-सामर्थ्य क्या होगी? हरपल यह सोच होनी चाहिए। इसको गरीब से गरीब व्यक्ति भी प्राप्त कर सकता है।
अपने अन्तःकरण को शुद्ध रखने के लिए शुद्ध-सात्त्विक आहार लें। अपने आचार-विचार को शुद्ध रखें और विषयविकारों से सदैव दूर रहें। जन्म-जन्मान्तर से आत्मा पर आवरण पड़े आ रहे हैं। उन आवरणों को ‘माँ’ की भक्ति के द्वारा हटाया जा सकता है। इसलिए उसी में खो जाओ और सतत सत्यपथ पर बढ़ते जाओ। इस संसार में हमारा जीवन कमल के पत्ते के समान होना चाहिए, जिसे पानी भिगो नहीं पाता। इसी तरह हमें भी निर्लिप्त होना चाहिए। इन्द्रियों का संयम रखें और सत्य, अहिंसा, अस्तेय एवं अपरिग्रह को धारण करें। गृहस्थ से सुन्दर दूसरा कोई जीवन नहीं है। कर्म को कर्त्तव्य समझकर करें और अपनी आवश्यकताओं को कम करें। बाह्य जीवन को संचालित करने के लिए यह ज़रूरी है।
अपने बच्चों को संस्कारवान्, चेतनावान् और कर्मवान् बनाएं। उनके लिए यही सबसे बड़ी पूंजी होगी। हमारे अन्दर परमसत्ता के सहज गुण सत्य, प्रेम एवं करुणा मौजूद हैं। अनेक ज्ञानी भटकते रहे हैं और भटकते रहेंगे। ज्ञानी भटक सकता है, किन्तु आत्मज्ञानी कभी नहीं भटक सकता। इसलिए सारे ग्रन्थों को कुछ समय के लिए समेटकर एक ओर रख दो और अपने आत्मग्रन्थ का अध्ययन करो। बहुत सरल प्रक्रिया है। बस, परमसत्ता से मिलने के लिए एक तड़प होनी चाहिए। एक अलग प्रवाह होने लगेगा। ‘माँ’ की भक्ति को अपना सौभाग्य मानो और आलस्य को त्याग दो।
एक चोर चोरी करने के लिए रातभर जागता है। उसे नींद नहीं आती। प्रेमी-प्रेमिका विषयविकारों में रहकर रातभर जागते हैं। इसी प्रकार, ‘माँ’ से मिलने की भावभूमि पर खड़े होकर और विषयविकारों से दूर रहकर सच्चे मन से उन्हें पुकारो। तब देखो, जीवन में कितना परिवर्तन आता है! आपका गुरु ऐसा ही जीवन जीता है। सन्तानोत्पत्ति के बाद मैं पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का जीवन जीता हूँ। मुझे गर्व है कि मेरे यहां पुत्रियों का ही जन्म हुआ है। मेरे परिवार से सुखी इस धरती पर कोई दूसरा परिवार नहीं है। पुत्र के मुखाग्नि देने से मुक्ति नहीं मिलेगी। अपने जीते जी स्वयं उतना पूजा-पाठ क्यों नहीं कर लेते कि पुत्र के क्रियाकर्म करने की ज़रूरत ही न रहे? उसके बाद फिर मृत शरीर को चाहे जला दो, गाड़ दो या कहीं फेंक दो। कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
आज के धर्मगुरु कहते हैं– ‘माया महाठगिनी मैं जानी।’ किन्तु, स्वयं माया में लिप्त रहते हैं। मैं कहता हूँ कि यह काया महाठगिनी है, जो हर पल हमें गलत मार्ग पर लेजा रही है। इसे सबसे बड़ा शत्रु और मित्र मानो। कार्य कराओ, तो शत्रु मानो। उससे खूब कार्य कराओ और खूब थकाओ। जब उसे नहलाओ-धुलाओ और खाना खिलाओ, तो मित्र मानो, ताकि वह स्वस्थ रहे, क्योंकि उससे कार्य कराना है।
अपने विचारों को एक दर्पण का स्वरूप दो। दर्पण के टूटकर यदि हज़ार टुकड़े होजाएं, तो उसका हर टुकड़ा उसी दर्पण की भाँति व्यवहार करने लग जाता है। वैसा ही व्यवहार तुम करो। अपनी इच्छाशक्ति को जगाओ। इससे ‘माँ’ की भक्ति में चेतना आएगी। आपके विचारों पर आपका व्यवहार निर्भर होता है। चौबीस घण्टे सजग रहो। गलत विचारों को दूर भगाओ और सात्त्विक बातें सोचने लगो। अभ्यास के द्वारा सब कुछ सम्भव है।
हमारे अन्दर सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी तीनों प्रकार की कोशिकाएं मौजूद हैं। उन्हें सतोगुण के अधीन करो। अपने अन्दर दृढ़ता लाओ। इसके लिए सबसे पहले नशामुक्त जीवन जीना पड़ेगा, क्योंकि एक नशेड़ी कभी भी सतोगुणी हो ही नहीं सकता।
भगवती मानव कल्याण संगठन के लाखों लोग नशा छोड़कर अब दूसरों के नशे छुड़वा रहे हैं। मैंने संकल्प लिया है कि एक धर्मयुद्ध छेड़ूंगा और नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् समाज का निर्माण करूंगा। किसी अस्त्र-शस्त्र से नहीं, बल्कि आत्मबल से यह युद्ध जीतकर दिखाऊंगा। पारस तो लोहे को सोना बनाता है, किन्तु मेरे शिष्य दूसरों को अपने समान बना रहे हैं।
हर राजनैतिक पार्टी देश का शोषण कर रही है, उसे लूट रही है और साम्प्रदायिकता एवं जातीयता की आग फैला रही है। यह सब अज्ञान के कारण है। मेरा संगठन कभी भी साम्प्रदायिकता की ओर नहीं बढ़ा है। राजनेताओं ने राजसत्ता का सुख भोगा है और देश को लूटा है। कोई भी गरीबों की ओर देखने का प्रयास नहीं करता। लोग रोटी, कपड़ा और मकान के लिए तरस रहे हैं और किसान आत्महत्या कर रहे हैं। सारे राजनेता अधर्मी और अन्यायी हैं और उन्हीं को प्रश्रय दे रहे हैं।
राजनेता बेईमानी करके चुनाव जीतते हैं। उत्तरप्रदेश पूरी तरह गुण्डे-माफियाओं के हाथ में है। अखिलेश से बहुत उम्मीद थीं, किन्तु वह सबसे असफल मुख्यमन्त्री साबित हुआ है। इस शिविर के आयोजन में समाजवादी पार्टी ने कोई सहयोग नहीं किया, बल्कि इसके आयोजित न किये जाने का पूरा प्रयास किया गया। कोई भी अधर्मी-अन्यायी हमारी यात्रा को रोक नहीं सकता।
ऋषि-मुनियों की परम्परा आज कहां चली गई? विज्ञान को मेरी चुनौती है, यह देखने के लिए कि तप की ऊर्जा क्या होती है? आज के 99 प्रतिशत धर्मगुरु ढोंगी-पाखण्डियों का जीवन जी रहे हैं। मैं अपने शरीर को तपा रहा हूँ। अग्नि के समक्ष ही मेरा जीवन गुज़रना है, किन्तु मैं अपने शिष्यों को वह सामर्थ्य दूँगा कि वे नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् समाज का निर्माण करेंगे।
राजनेताओं को मेरी चेतावनी है कि अब भी सुधर जाओ, नहीं तो मैं सुधारकर रहूंगा। तुम जल्दी से देश को नशामुक्त करो, वरना मेरा संगठन करेगा। हम अपनी विचारधारा और परमसत्ता के गुलाम हैं। न तो हम गलत करेंगे और न ही गलत सहेंगे।
भारतीय शक्ति चेतना पार्टी का गठन भी मैंने समाजसेवा के लिए किया है। पूरा समाज धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। सारे शंकराचार्य छुआछूत को मानते हैं। मैंने कभी भी जातपांत और छुआछूत को नहीं माना है। इसीलिए हमें ‘माँ’ की कृपा मिल रही है। छुआछूत मानने वालों को कभी भी ‘माँ’ की कृपा नहीं मिलती।
राजनेता आज नारीसम्मान की बात करते हैं, किन्तु उन्हीं के घर में पुत्र और पुत्रियों में भेदभाव होता है। अनेक मन्दिर हैं, जहां नारी के लिए प्रवेश निषेध है। सारे धर्मगुरु चुपचाप बैठे रहते हैं। वे सब अज्ञानी एवं धूर्त हैं। उसी नारी के गर्भ से जन्म लिया और उसी के लिए मन्दिर में प्रवेश निषिद्ध करते हैं। इसीलिए मैंने उन्हें चुनौती दी है। अगर तुम कायर नहीं हो, पाखण्डी नहीं हो, तो आओ और मेरे तपबल का सामना करो। आज शराबी और नशेड़ी लोग महामण्डलेश्वर बने बैठे हैं। साधक का धन होता है उसका तपबल, किन्तु आज के धर्मगुरु कालेधन के भण्डार पर बैठे हैं।
शान्तचित्त होकर ‘माँ’-ऊँ बीजमन्त्रों का उच्चारण पन्द्रह-बीस मिनट तक करो। इससे सुषुम्ना नाड़ी का मन्थन होगा। हर व्यक्ति कुण्डलिनी शक्ति का जीवन जी रहा है। आपको दिव्य आनन्द की प्राप्ति होगी। उसके बाद ध्यान में बैठो और शून्य में जाने का प्रयास करो। उस बिन्दु की खोज करो, जहां से विचार उठ रहे हैं। आपका मन विचारशून्य हो जाएगा। एक क्षण के लिए भी यदि ध्यान लग जाएगा, तो आपको आनन्द आएगा।
‘माँ’ की भक्ति श्रद्धा-विश्वास के साथ करो। कोई गलत कार्य होजाय, तो उसके लिए प्रायश्चित करो और अपने जीवन को सुधारो, संवारो। दुर्गाचालीसा का कम से कम एक पाठ रोज़ करो। इससे बहुत लाभ मिलेगा। अपने घर में संगठन के कार्यकर्ताओं से पांच घण्टे या चौबीस घण्टे का निःशुल्क अखण्ड पाठ कराओ।
सारे व्रतों को छोड़कर हर गुरुवार का उपवास करो। सारी भ्रान्तियां छोड़कर करो। यह बहुत सरल है। महीने में कृष्णाष्टमी का भी उपवास करो। यदि भूलवश छूट जाए, तो नवमी या चतुर्दशी का कर लो। साधना संजीवनी पुस्तक में सब कुछ दिया है। नशे-मांस से मुक्त रहो। अपने घर को ‘माँ’ का मन्दिर बना लो और उसके ऊपर शक्तिध्वज टांग लो। इससे सारे ग्रहदोष और वास्तुदोष समाप्त हो जाएंगे। घर से बाहर जाते समय और बाहर से अन्दर आते समय शक्तिध्वज को देखकर उसे प्रणाम करो। इससे आपके घर में शान्ति आएगी।
‘माँ’ की भक्ति करते समय कामनाओं से ऊपर उठो और ‘माँ’ से सौदेबाज़ी मत करो। उनसे केवल भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति मांगो। फिर भी यदि कोई कामना हो, तो यह कहकर मांगो कि यदि यह मेरे हित में हो, तो पूरी हो, नहीं तो बिल्कुल पूरी न हो। परमसत्ता यदि हमारे पुत्र को छीन ले, तब भी ‘माँ’ के प्रति हमारी आस्था-विश्वास कम न हो।
मन्दिर जाते समय कोई परिजन यदि ख़त्म होजाता है, तो लोग मन्दिर जाना बन्द कर देते हैं। किसी त्यौहार के दिन यदि किसी का निधन होजाए, तो उस त्यौहार को मनाना बन्द कर देते हैं। यह अज्ञान है। उस त्यौहार को और उत्साह से मनाना चाहिए कि हमारे परिजन को मृत्यु के लिए एक शुभ दिन प्राप्त हुआ है।
मेरा शरीर आप सबसे ज्य़ादा चैतन्य है। मैं आपसे कम भोजन करता हूँ और विश्राम भी कम करता हूँ। मुझे अपने लिए ‘माँ’ से कोई प्रार्थना करने की कोई आवश्यकता नहीं है। मेरे हृदय में ‘माँ’ बैठी हें। यदि मेरे कार्यों से हज़ारों-करोड़ों के मुख पर मुस्कान आएगी, तो मैं अपने आपको धन्य समझूंगा। मैं बड़े से बड़े संघर्षों को आमन्त्रित करता हूँ। मेरे अन्दर शक्ति है। मैंने बड़े से बड़े गुण्डों को सुधार दिया है।
जोड़-तोड़ की राजनीति राष्ट्रविरोधी है। इसके चक्कर में मत पड़ो। दमोह के कार्यकर्ताओं ने इतनी अवैध शराब पकड़वाई है, जितनी किसी भी सरकार के द्वारा नहीं पकड़ी गई। शासनसत्ता तो समाज को शराबी बना रही है। ऐसे नेताओं को कभी भी वोट मत दो। एक दिन हम सरकारी शराब के ठेकों को भी बन्द कर देंगे, जो सरकार उठाती है।
(दोनों हाथ उठवाकर संकल्प दिलाया गयाः मैं संकल्प करता/करती हूँ कि मैं आजीवन नशे-मांस से मुक्त रहकर चरित्रवान् जीवन जीते हुए मानवता की सेवा, धर्मरक्षा एवं राष्ट्ररक्षा के लिए पूर्ण समर्पित रहूँगा/रहूँगी।)
रामदेव अपने आपको योगऋषि कहते हैं। मैं उन्हें योगऋषि मानता ही नहीं। वे कहते हैं कि उन्होंने शून्य से शिखर की यात्रा की है। यह सच है कि वह इस समय भौतिकता के शिखर पर हैं, कालेधन के भण्डार पर बैठे हैं। किन्तु, मैंने शिखर से शून्य की यात्रा तय की है, ताकि शून्य पर खड़े लोगों को शिखर पर लेजा सकूँ।
मैं मानता हूँ कि शंकराचार्यों का स्थान पूजनीय है, किन्तु उनमें से किसी की भी कुण्डलिनी जाग्रत् नहीं है और न ही उन्हें समाधि का ज्ञान है। इसीलिए समाज में हर जगह पतन है। गंगा की सफाई के लिए सरकार पर निर्भर मत रहो। खुद भी कुछ करो। मठ-मन्दिरों के पास इतनी धन-सम्पत्ति है कि वे स्वयं इस अभियान को पूर्ण कर सकते हैं। मोदी के लिए भी मेरा आवाहन है कि यदि सफाई करना है, तो सबसे पहले विभागों की सफाई करें। सबसे गन्दा रेलवे विभाग है। महानगरों में रेलवे लाईन के पास इतनी गन्दगी रहती है कि वहां पर सांस लेना भी मुश्किल होता है।
यह कुछ कर गुज़रने का समय है। इसलिए हरपल सजग रहो। लखनऊ सहित पूरे उत्तरप्रदेश के कल्याण के लिए भी मेरा आशीर्वाद है कि वह नशामुक्त हो। अधिकारियों और नेताओं को सद्बुद्धि आय। वे लोगों को मिलने का समय दें और उनकी समस्याओं को हल करें। मैं सभी को अपना आशीर्वाद प्रदान करता हूँ।
इसके बाद, आगामी शारदीय नवरात्र की अष्टमी, नवमी और विजयादशमी (9, 10, 11 अक्टूबर) को आश्रम में त्रिदिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर का आयोजन होगा। तदुपरान्त, 26-27 नवम्बर को सागर (म.प्र.) में होगा। अन्त में तीन मिनट तक नशामुक्ति महाशंखनाद किया गया और दिव्य आरती सम्पन्न की गई।
इस प्रकार, दो दिवसपर्यन्त चला यह विशाल शक्ति चेतना जनजागरण शिविर माता भगवती आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की अहैतुकी कृपा एवं परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के दिव्य आशीर्वाद के फलस्वरूप निर्विघ्न सम्पन्न होगया। कहीं पर भी कोई अप्रिय घटना नहीं घटी तथा चहुंओर आनन्द ही आनन्द रहा।

जय माता की - जय गुरुवर की

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