123वां शक्ति चेतना जनजागरण संकल्प शिविर, सिद्धाश्रम, 19,20,21 फ़रवरी 2021

गुप्त नवरात्र पर्व पर आयोजित शक्ति चेतना जनजागरण ‘संकल्प’ शिविर में भक्तों का प्रवाह उमड़ पड़ा था। ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के शिष्यों, माता जगदम्बे के भक्तों और श्रद्धालुओं ने जहां अन्तर्शक्ति को जाग्रत् करने वाले आपश्री के प्रकृतिमय चिन्तन को आत्मसात किया, वहीं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम के कण-कण में व्याप्त आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा की भक्ति व ऊर्जा से प्रवाहित विशेष चेतनातरंगों से अविभूत भक्ति में लीन रहे।

दिनांक 19, 20, 21 फरवरी (माघ शुक्लपक्ष की सप्तमी, अष्टमी व नवमी तिथि) को पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में पूर्णरूपेण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त व चरित्रवान् लाखों भक्तों का समूह उमड़ पड़ा था। शिविर के तीनों दिवसों में सर्वप्रथम ब्रह्ममुहूर्त पर 4.30 बजे, भक्तजन मूलध्वज साधना मंदिर में आरतीक्रम पूर्ण करने के पश्चात् अखण्ड श्री दुर्गाचालीसा पाठ मंदिर परिसर में पहुंचकर 24 वर्षों से चल रहे श्री दुर्गाचालीसा के अखण्ड पाठ में सम्मिलित हुये। परम पूज्य सदगुरुदेव जी महाराज ने प्रात: 6.00 बजे श्री दुर्गाचालीसा पाठ मंदिर में स्वयं उपस्थित होकर आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा व सहायक शक्तियों की पूजा-अर्चना तथा ध्यान-साधना नित्यप्रति की तरह करने के पश्चात् मूलध्वज साधना मन्दिर पहुंचकर मानवता के कल्याण की कामना माता जगदम्बे से की।

उक्त साधनात्मक क्रमों के पश्चात् प्रात: 7.30 बजे से ‘माँ’ के सभी भक्तों ने शिविर पण्डाल में बैठकर पूरे मनोयोग से अतिमहत्त्वपूर्ण बीज मंत्र ‘माँ-ú’ का सस्वर जाप किया व शक्तिस्वरूपा बहन संध्या शुक्ला जी के सान्निध्य में यौगिक क्रियाओं का लाभ प्राप्त किया। शिविर के तीन दिवसों में प्रथम सत्र के प्रथम दो दिवस लाखों भक्तों ने योग-ध्यान-साधना के क्रम सीखकर उन्हें नित्यप्रति जीवन में उतारने हेतु संकल्पित हुए। इस अवसर पर शक्तिस्वरूपा बहन पूजा जी व ज्योति जी भी विशेष रूप से उपस्थित रहीं।

शिविर के प्रथम दिवस के द्वितीय सत्र की अपराह्न बेला, भगवती मानव कल्याण संगठन के कलाकार कार्यकर्ताओं के द्वारा निर्मित मंच व आसन की भव्यता देखते ही बनती थी। नीलिमायुक्त आकाशीय दृश्य, चहुंओर फैली इन्द्रधनुषी छटा। ऐसे भव्य मंच के एक ओर ‘माँ’ और गुरुवरश्री की संयुक्त छवि व समक्ष प्रज्ज्वलित अखण्ड ज्योति। दूसरी ओर श्रीफल से सुशोभित सुख-समृद्धि का प्रतीक कलश। मंच की अद्वितीय आभा सभी के मन को ऊर्जातरंगों से ओतप्रोत कर रही थी।

मंच के समक्ष प्रवचन पंडाल व विशाल परिसर में अनुशासित ढंग से पंक्तिबद्ध बैठे हुए माता भगवती के लाखों भक्त गुरुवरश्री के आगमन की प्रतीक्षा में जयकारे लगाने में लीन थे कि तभी अपराह्न 2:25 बजे गुरुवरश्री का आगमन हुआ और पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम का समूचा क्षेत्र तालियों की गडग़ड़ाहट और शंखध्वनि से गुंजायमान हो उठा। सद्गुरुदेव भगवान् के मंचासीन होते ही शक्तिस्वरूपा बहनों पूजा जी, संध्या जी और ज्योति जी ने उपस्थित समस्त भक्तों की ओर से गुरुवरश्री का पदप्रक्षालन करके पुष्प समर्पित किये। 

तत्पश्चात् भगवती मानव कल्याण संगठन के सदस्यों एवं कार्यकर्ताओं में से, गीत-संगीत की प्रतिभा के धनी शिष्यों ने भक्तिरस से परिपूर्ण भावगीत प्रस्तुत किये, जिसके कुछ अंश इस प्रकार हैं:- ‘मेरी हर आस हैं गुरुवर, मेरा विश्वास हैं गुरुवर। मेरी हर सांस जपती है, तेरा ही नाम हे गुरुवर।।’- प्रतीक मिश्रा जी, कानपुर। ‘सत्कर्मों की पूँजी से संकल्पों की शक्ति से, आओ हम जग को महकाएं माँ अम्बे की भक्ति से।’- शक्तिस्वरूपा बहन संध्या शुक्ला जी। ‘आए सभी संकल्प शिविर में कृपा तुम्हारी पाने को, गुरुवर तुम्हारे दर्शन कर मन की प्यास बुझाने को।’- बाबूलाल विश्वकर्मा जी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए वीरेन्द्र दीक्षित जी, दतिया ने प्रस्तुति दी- ‘गुरुवर तेरे साथ फिकर फिर क्यों करनी,…।’

 भावगीतों के क्रम के बाद, उपस्थित सभी भक्तों ने ‘माँ’-ú बीजमंत्रों का पाँच-पाँच बार क्रमिक उच्चारण किया। तत्पश्चात् ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने ध्यानावस्थित होकर माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की स्तुति की और सभी शिष्यों, चेतनाअंशों, शिविर व्यवस्था में लगे सभी कार्यकर्ताओं, प्रवचन पंडाल में उपस्थित विशाल जनसमुदाय सहित मानवता की सेवा के प्रति समर्पित विश्व के जनमानस को पूर्ण आशीर्वाद प्रदान करते हुये हृदयस्पर्शी मृदुल मुस्कान के साथ ऋषिवर की वाणी मुखर हो उठती है–

‘‘इस पवित्रस्थल, इस दिव्यधाम का एक-एक पल महत्त्वपूर्ण है। वैसे तो जीवन का हर क्षण महत्त्वपूर्ण होता है, यदि मानव समझ जाए। माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा हर पल मार्ग दिखाती रहती हैं। आवश्यकता है तो केवल हम हर काल-परिस्थितियों को समझकर सत्य का पथ कौन सा है और असत्य का पथ कौन सा है? यह समझ सकें और यह भी समझ सकें कि इस मानवशरीर में कितनी शक्ति समाहित है? अरे, इस शरीर में निखिल ब्रह्मांड समाहित है।

यह मानवजीवन माता जगदम्बे की अनूठी कृति है, जिसे देवदुर्लभ कहा गया है। क्योंकि, मनुष्य के पास मुक्ति के लिए एक से एक पथ खुले रहते हैं। मनुष्य अपने त्याग, तप के बल पर ऋषित्व का जीवन प्राप्त कर सकता है, जिसके लिए देवता भी तरसते हैं। एक ऋषि अलौकिक शक्तियों से परिपूर्ण होता है और जो माता भगवती की कृपा से उस दिव्यधाम सिद्धाश्रम को प्राप्त करता है, जहाँ पर ऋषि शक्तियाँ, साधक शक्तियाँ निवास करती हैं। इस भूतल पर उसी सिद्धाश्रम की एक कड़ी के रूप में पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम का निर्माण किया जा रहा है, जो दुनिया का सर्वश्रेष्ठ तीर्थ होगा और युगों-युगों तक मानवता का पथ प्रशस्त करता रहेगा। इस पवित्रधाम में उसी ‘माँ’ के अवतरण की क्रियाएं चल रही हैं। मन्दिरों, मठों व शक्तितीर्थों के निर्माण तो अनेक होते हैं, किन्तु यहाँ सभी शक्तिपीठों की ऊर्जा समाहित होगी।’’

जब शक्तिसाधक सत्य के विजयपथ पर बढ़ जाता है, तो…

‘‘मेरा हर कर्म मानवता के लिए समर्पित है और शिविरों का यह क्रम भी ‘माँ’ के आवाहन का क्रम है। मेरा संकल्प है कि इस कलिकाल में जब मनुष्य, मानवता के पथ पर बढऩा नहीं चाहता, तो मैं हर एक के अन्दर वह भूख पैदा कर दूँगा।

अपने पतन के रास्ते को बन्द कर दो और आत्मकल्याण का पथ, मुक्ति का पथ प्रशस्त करो। यही कलिकाल के मुख पर तमाचा होगा और इसके लिए तुम्हें कर्म करना पड़ेगा। सत्य की विजय नहीं होती, बल्कि सत्य को विजयी बनाना पड़ता है और जो सत्य को विजयी बनाते हैं, वे ही सौभाग्यशाली हैं। जब शक्तिसाधक सत्य के विजयपथ पर बढ़ जाता है, तो उसे ‘माँ’ की अतुलित कृपा मिलने लगती है। दुनिया की कोई भी ताकत मेरे संकल्प की सिद्धि में बाधक नहीं बन सकती, क्योंकि यह संकल्प ‘माँ’ की ओर से दिलाया गया संकल्प है।’’

सत्यधर्म की रक्षा के लिए दी है तप-बल की चुनौती

‘‘मैंने विश्वअध्यात्मजगत् को अपने साधनात्मक तप-बल की चुनौती किसी गर्व-घमण्ड से नहीं दी है, बल्कि यह चुनौती सत्यधर्म की रक्षा के लिए दी है। इस भूतल पर मैं सम्मान भोगने नहीं आया हूँ, बल्कि अपना कर्तव्य पूरा करने आया हूँ। सर्वप्रथम मैंने स्वयं को जाना-पहचाना, फिर अपनी हर साधना को मानवता के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया है। अपने आठ महाशक्तियज्ञों के दौरान, जब तक ‘माँ’ की अनुमति थी, मेरे द्वारा असम्भव से असम्भव कार्य करके धर्म की शक्ति के प्रति समाज के सामने प्रमाण प्रस्तुत किये गये और आज उससे हज़ारों गुना अधिक ऊर्जा इस दिव्यधाम से जोड़ी गई है, जिससे यहाँ आने वाले सभी भक्त लाभान्वित हो सकें। सत्य को गहराई से समझने का प्रयास करेंगे, तो सबकुछ समझ में आता चला जायेगा। अभी यहाँ कोई भी मूर्ति स्थापित नहीं की गई है और न ही शेष 100 महाशक्तियज्ञों के लिए यज्ञस्थल का निर्माण किया गया है, फिर भी यहाँ की ऊर्जा चहुँओर फैल गई है।’’

कोई भी परिस्थिति मेरे संकल्प में बाधक नहीं बन सकती

‘‘108 महाशक्तियज्ञों की शृंखला के शेष 100 यज्ञों को पूर्ण करने का संकल्प इसी पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में मूलध्वज पर लिया गया है। कोई भी परिस्थिति मेरे संकल्प में बाधक नहीं बन सकती। विपरीत परिस्थितियाँ तो आयेंगी ही, महामारियाँ तो आयेंगी ही, लेकिन यहाँ के वातावरण को प्रभावित कर सकें, यह संभव नहीं है। आप लोग जिस महामारी से निकलकर आये हैं, निश्चित ही कष्टप्रद थी। करोड़ों लोग काल के ग्रास बन गए और इसकी जानकारी मैंने पच्चीसों वर्ष पहले दे दी थी। मुझे वह दिन याद है जब देवी-देवताओं के मुख पर मास्क लगा दिए गए और मंदिरों पर ताले जड़ दिये गये थे। यही सबसे बड़ी अज्ञानता है। अरे, देवी-देवताओं को कोई महामारी नष्ट कर सकती है? मेरा मानना है कि मंदिरों में ताले नहीं लगने चाहिए थे। राजनेताओं के कार्य चलते रहे, रैलियाँ निकलती रहीं, सभी कार्य चलते रहे! पूरे देश में लॉकडाउन था, मंदिरों में वैसे भी भीड़ न लगती, तो क्या 5-10 लोगों को अनुमति नहीं दी जा सकती थी कि पूजा-पाठ होता रहे और ऊर्जा फैलती रहे। यदि ऐसा होता, तो महामारी से बहुत कम लोग प्रभावित होते। लेकिन ऐसा नहीं किया गया, बल्कि चारों ओर दहशत का वातावरण फैला दिया गया।’’

निर्भीकता और निडरता है ज़रूरी

‘‘एक साधक का हृदय जहाँ पाषाण की तरह कठोर होता है, वहीं गुलाब की पंखुडिय़ों की तरह कोमल भी होता है। मानवता का आर्तनाद सुनकर मेरी आत्मा एक नहीं हज़ारों बार रोई है। कोरोना महामारी से इतने लोग कतई नहीं मारे जा सकते थे। महामारी से लड़ा जा सकता था। बीमारों को कोठरियों में डाल दिया गया और दहशत फैला दी गई कि कोई किसी को छुए तक नहीं, उन्हें समय पर इलाज़ नहीं मिल पाया और लोग मौत के मुँह में समाते चले गए। जिन डॉक्टरों की हम स्तुति करते रहे, उनके सम्मान में घंटियाँ बजाते रहे, दीप जलाते रहे, उनमें से दस प्रतिशत डॉक्टर ऐसे निकले, जिन्होंने अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया और लोग तड़पते रहे, मरते रहे। यह विचारणीय प्रश्न है।

बीमारी किसी को भी आ सकती है, लेकिन यदि आपके अन्दर की रक्षात्मक प्रणाली मज़बूत है, तो कोई भी बीमारी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। इसके लिए निर्भीकता व निडरता भी ज़रूरी है, क्योंकि जो डर गया, वह मर गया। बीमारी होने पर निर्भीकता से इलाज़ कराओगे, तो जल्दी ठीक होगे और भयग्रस्त हो गए कि बचूँगा या नहीं, तो चाहे कितना भी इलाज़ कराओ, मौत आलिंगन कर लेगी।’’

ऋषियों-मुनियों ने कभी जातीयता को नहीं दिया महत्त्व

‘‘माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा आपकी आत्मा की मूल जननी हैं। निष्ठा, विश्वास से उनकी भक्ति करो, भक्ति की पराकाष्ठा को पार कर जाओ। तुम उन ऋषियों-मुनियों के संवाहक हो, जिनमें अलौकिक शक्तियाँ थीं, तुम उन्हीं के वंशज हो। आज़ादी के कालखण्ड को देखो। आपके पूर्वज, वीर सेनानियों ने देश व समाज की रक्षा के लिए हँसते-हँसते अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। आज क्या हो रहा है? जातीय दंगे हो रहे हैं।

 प्राचीन इतिहास को पढ़ो, ऋषियों-मुनियों ने कभी जातीयता को महत्त्व नहीं दिया। वे सभी जाति, धर्म, सम्प्रदाय के लोगों को समान शिक्षा प्रदान करते थे। देश आज़ाद तो हुआ, लेकिन लोगों को अर्धआज़ादी मिली। आज भी चहुँओर अनीति-अन्याय-अधर्म का बोलबाला है और आज भी गुलाम मानसिकता का जीवन जी रहे हो।’’

जब राष्ट्र सुरक्षित रहेगा, तभी तो तुम सुरक्षित रहोगे

‘‘गाँधी, नेहरू ने हमें आज़ादी नहीं दिलाई! यद्यपि इस दिशा में जो कदम गांधी जी के द्वारा उठाए गए, उसके लिए वे सम्माननीय हैं, लेकिन देश को सही मायने में आज़ादी दिलाने वाले सुभाषचन्द्र बोस और चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे वीर सेनानी हैं, जिनका खौफ अँग्रेज़ों में समा गया था, अपितु भारत देश को छोडऩे में ही उन्होंने अपनी भलाई समझी।

आज भी देश में गद्दारों की फौज खड़ी है। तथाकथित राजनेताओं ने जातीयता और सम्प्रदायिकता का बीज बोकर देश को पहले भी लूटा और आज भी लूटने का कार्य कर रहे हैं। सभी धर्मपथ पर चलने वालों के लिए तीन कर्तव्य हैं- धर्म व राष्ट्र की रक्षा और मानवता की सेवा करना। इनमें प्रमुख कर्तव्य है राष्ट्र की रक्षा करना, क्योंकि जब राष्ट्र सुरक्षित रहेगा, तभी तो तुम सुरक्षित रहोगे। मैं उन राजसत्ताओं को, उन राजनेताओं को राष्ट्रद्रोही मानता हूँ, जो नशे के ठेके चलवा रहे हैं, शराब बिकवा रहे हैं। अरे, ये तो अंग्रेज़ों से भी बड़े गद्दार हैं। मंच से चेतावनी देता हूँ कि यदि ऐसा ही चलता रहा, तो मैं ऐसी राजसत्ताओं को धूल में मिला दूँगा। मैंने लाखों शक्तिसाधक तैयार किए हैं और मैंने उन बेटियों को जन्म दिया है, जो एक आवाज़ पर समाज को दिशाधारा देने के लिए तत्पर हैं।

हमें कानून का, संविधान का रक्षक बनना है। आक्रोश हो, पर उग्रता नहीं! संविधान में अनेक शक्तियाँ हैं, जिसके साथ अपनी शक्ति को जोडऩा है। वर्तमान राजसत्ताओं के द्वारा, तथाकथित राजनेताओं के द्वारा संविधान की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं, उसका गलत उपयोग किया जा रहा है।’’

असली बलात्कारी वे हैं, जो शराब के ठेके चलवाते हैं

‘‘संविधान और देश के विरुद्ध कार्य करने वालों के विरुद्ध जो आवाज़ नहीं उठाता, वह आज़ाद कहलाने का अधिकारी नहीं है। उन वीर सेनानियों को, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने परिवारों तक की परवाह नहीं की और देश के लिए बलिदान हो गए, उनको केवल 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन याद कर लेना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनमें जो देशभक्ति का जज्बा था, वही जज्बा आपके अन्दर होना चाहिए। अपने कर्तव्यपथ पर चलो। यदि सत्यधर्म के पथ पर चलने वाले लोग आवाज़ नहीं उठायेंगे, तो कौन उठायेगा? अरे, सभी जाति, धर्म, सम्प्रदाय के लोग संगठित होजाओ, आपस में मत लड़ो। लडऩा है, तो अनीति-अन्याय-अधर्म से लड़ो, इनके पोषकतत्त्वों के विरुद्ध आवाज़ उठाओ। असली बलात्कारी तो वे हैं, जो शराब के ठेके चलवाते हैं और अब तो शराब की होमडिलेवरी की बात की जा रही है। अरे शिवराज, तुम्हारा यह आत्मघाती निर्णय होगा! भारतीय जनता पार्टी के लिए घातक होगा!

वे राजसत्ताएं संभल जायें, जो शराब के ठेके चलवा रही हैं। मेडिकल स्टोर्स से भी नशीली दवाईयाँ, सिरप बेचे जाते हैं। मेडिकल स्टोर्स चलाने वाले भी संभल जाएं, अन्यथा ऐसे सभी लोगों का जीवन नर्कतुल्य बन जायेगा। नशे का धंधा करने वालों को देशद्रोही कहकर पुकारना होगा।’’

आहार, विचार एवं व्यवहार पर सदैव सजग रहो

‘‘साधक बनो, ‘माँ’ के भक्त बनो और पुरुषार्थी बनो। इसके लिए आपका आहार, विचार व व्यवहार सात्विक होना चाहिए, इन पर सदैव सजग रहो। सर्वप्रथम आहार पर ध्यान देना चाहिए। आहार सन्तुलित और सात्त्विक होना चाहिए। सन्तोषप्रद ढंग से किया गया भोजन पौष्टिकता प्रदान करने के साथ ही मनमस्तिष्क को परिपक्व बनाता है और इससे सोचने, समझने की शक्ति व कर्यक्षमता बढ़ती है। जबकि, असात्त्विक व अनीति-अन्याय-अधर्म से अर्जित धन से किए गए भोजन से दुर्बुद्धि हावी होती है और मनुष्य पतन की गहरी खाई में गिरता चला जाता है। विचारवान बन जाने पर विवेक जाग्रत् होजाता है कि किस चीज को कितनी मात्रा में लेना चाहिए। अपवित्र व ज़्यादा मिर्च-मसाला और तली हुई भोज्य सामग्री लेने से नाना प्रकार की बीमारियां तो शरीर में अपना स्थान बनाकर जीवन को कष्टप्रद बनायेंगी ही, मन भी रुग्ण होजाता है और दूषित विचारों की ओर भटकने लगता है। आँखों से, विचारों से, स्पर्श से और ध्वनि से भी आप आहार ग्रहण करते हैं।

आहार केवल भोजन करने को ही नहीं कहते, बल्कि आप आँखों से, विचारों से, स्पर्श से और ध्वनि से भी आहार ग्रहण करते हैं। अत: अच्छा देखो, अच्छा सोचो, किसी पर कुदृष्टि मत डालो, मन में गलत विचार उत्पन्न हों, तो उसकी दिशा मोडक़र अच्छी बातें सोचने लगो। किसी को गलत विचारों से स्पर्श मत करो, कानों से अच्छी बातें सुनो। आहार व विचार पर सजग रहो। जितना सात्विक विचार होगा, आपकी कार्यक्षमता उतनी ही बढ़ती चली जायेगी। सात्विक विचार आपको गलत रास्ते पर जाने से रोकेंगे, जिससे आने वाली विपत्ति से बचाव होगा। अत: अपने मन में सात्विक विचार रखें और जैसे ही गलत विचार हावी हों, उन्हें झटक देें तथा धर्म, राष्ट्र व मानवता के बारे में सोचने लगें। दूसरों के साथ विनम्रता से पेश आओ। आपका व्यवहार ऐसा हो कि लोग आपसे दूर न भागें, बल्कि आपके बन जायें।’’

जातीयता, छुआछूत व सम्प्रदायिक भावना से दूर रहो

‘‘जातीयता, छुआछूत व सम्प्रदायिक भावना से दूर रहो। मैं संगठन के लोगों से भी कहना चाहता हूँ कि भले ही परिवार के लोग साथ छोड़ दें, लेकिन जातीय भेदभाव से दूर रहें। सब मिल करके एकरूपता से कार्य करें। कोई बड़ा या छोटा नहीं है। यदि बड़ा बनना है, तो सत्कर्म करके बड़ा बनो। अपने धर्म के साथ दूसरे के धर्म की भी रक्षा करो।

नित्यप्रति अपने अन्दर की बुराइयों को ढूँढ़ो और उन्हें दूर करने के लिए हरसम्भव प्रयत्न करो। इसी को साधना कहते हैं। भले ही अपमान का घूँट पीना पड़े, अपने कर्मपथ से विचलित मत होना। माँ-और गुरु तुम्हारे साथ हैं, उनकी कृपा और आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। आपमें एक दृढ़ता, एक निश्चय होना चहिए कि हमें धर्म, राष्ट्र और मानवता के प्रति एकनिष्ठ रहना है। तुम पूर्ण हो, पूर्ण बनो, तुम अमर हो, अमरता की ओर बढ़ो, नित्यप्रति माता भगवती की आराधना करो और अपने जीवन में परिवर्तन लाओ। मेरे शिष्य हों या शिष्याएं, सभी आलस्य व अकर्मण्यता का त्याग कर दो और अपनी शक्ति को जगाओ। तुम्हारे पास अध्यात्मिक ताकत है और उसी ताकत से तुम्हें समाजसुधार का कार्य करना है। एक फूल जब खिलता है, तो उसकी सुगन्ध चारों ओर फैलती है, फिर वह चाहे मित्र हो या शत्रु, समर्थक हो या विरोधी, उस फूल की सुगन्ध सभी के पास पहुँचती है और वही पुष्प आपको बनना है कि आपके सदकर्मों से पूरा समाज महक उठे। यह पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम विश्व की धर्मधुरी बनेगा, साथ ही एक ऐसा तीर्थ बनेगा, जिसकी ऊर्जा की समानता विश्व का कोई भी तीर्थ नहीं कर सकेगा।’’

नशा करना है, तो भक्ति, ज्ञान और पुरुषार्थ का नशा करो

‘‘एक बार विचार कर लेना कि नशे से क्या कभी किसी का भला हुआ है? नशा करके लोग अपना विवेक खो देते हैं और उनका पूरा परिवार अशान्त होजाता है। विचार करो कि नशा करना हितकर है या नशा छोडऩा हितकर है! इस शिविर में मेरे आवाहन पर आए हो, अपितु इस पवित्रस्थल पर नशा छोडक़र जाओगे, तो मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ रहेगा। जिस नशे को छोडऩे में कठिनाई हो, तो यहाँ से नि:शुल्क शक्तिजल मिलता है, उसे लेजाएं और जब भी नशे की तलब लगे, दो-तीन बूँद शक्तिजल एक गिलास पानी में डालकर पी लें। सिद्धाश्रम में ही दंडी संन्यासी स्वामी जी की समाधि के पास दिव्यजलस्रोत पर एक हैण्डपम्प लगा दिया गया है। उस दिव्यजल को लेजाएं और उसे शक्तिजल में मिलाकर बढ़ा लें। मैं आपका हूँ और आप सभी मेरे हो तथा जो भी समस्या हो ‘माँ’ के चरणों पर रखकर निवेदन कर लेना, पात्रता के अनुरूप लाभ अवश्य मिलेगा।’’

  चेतनात्मक चिन्तन के उपरान्त, शिविरस्थल पर लाखों की संख्या में उपस्थित सभी भक्तों ने साधनाक्रम पूर्ण करते हुए शक्तिस्वरूपा बहनों के करकमलों से सम्पन्न दिव्यआरती का लाभ प्राप्त किया। तदोपरान्त, परम पूज्य गुरुवरश्री की चरणपादुकाओं को स्पर्श करके सभी अतिआनन्दित हुए।

शिविर के द्वितीय दिवस (20 फरवरी) का द्वितीय सत्र

‘‘ऋषिवर, आप तो हृदय के अज्ञानरूपी अंधकार के नाशकर्ता हो। आपके प्रकाशरूप पवित्र वचनों को आत्मसात् करके उस अनुरूप चलने वाले शिष्यों का जीवन धन्य होजाता है। जिस तरह सूर्य के उदय होते ही अन्धकार गायब होजाता है, उसी तरह अपके दर्शनमात्र से मन में प्रकाश का अभ्युदय होता है और आपके वचनरूपी पुष्प सदैव निर्मल आनन्द प्रदान करने वाले हैं।’’

 जयकारों के मध्य अपराह्न 2:15 बजे अज्ञानान्धकार के नाशकर्ता परम पूज्य गुरुवरश्री के आगमन के साथ ही उपस्थित भक्तों की तालियों की गडग़ड़ाहट और शंखध्वनि से समूचा सिद्धाश्रम क्षेत्र गुंजायमान हो उठा। सद्गुरुदेव भगवान् के मंचासीन होते ही शक्तिस्वरूपा बहनों पूजा जी, संध्या जी और ज्योति जी ने उपस्थित समस्त भक्तों की ओर से गुरुवरश्री का पदप्रक्षालन करके पुष्प समर्पित किये। तत्पश्चात् कुछ भक्तों ने भक्तिरस से परिपूर्ण भावगीत प्रस्तुत किये, जिसके प्रारम्भिक अंश इस प्रकार हैं:-

  ‘मेरे गुरुवर कृपा कीजिए, चरणों में जगह दीजिए।’- अंजली और विजेता, जयपुर। ‘युग है ये माँ का, जय माता की बोलो।’- शक्तिस्वरूपा बहन संध्या शुक्ला जी। ‘गुरुवर से चोरी करके जाओगे किस तरह,…।’- वीरेन्द्र दीक्षित जी, दतिया। ‘दुनिया में क्या कर रहा कौन, माँ को सबकी खबर।’- बाबूलाल जी, दमोह।

 भावगीतों का क्रम समाप्त होते ही आशीर्वचन के उपरान्त, मानवजीवन को पूर्णता प्रदान करने वाली आपश्री की अमृतमयी वाणी प्रवाहित होने लगी–

 ‘‘कर्ता, क्रिया और कर्म में एकरूपता होनी चाहिए, तभी आप जीवन में सफलता की ऊँचाईयों को प्राप्त कर सकते हैं। इस दिव्यधाम में कोई भी व्यक्ति अशान्त से अशान्त वातावरण से आकर कुछ समय सहजभाव से व्यतीत करे, तो अवश्य ही उसे शान्तिलाभ प्राप्त होगा। मेरे लाखों शिष्य शान्तिलाभ प्राप्त करके आज समाज के बीच जाकर लोगों में चेतनाशक्ति का संचार कर रहे हैं।

इस भूतल पर माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा की साधना सबसे सहज और सरल है। देवी-देवता तो समय, काल, परिस्थितियों के अनुरूप अवतरित होते हैं और चले जाते हैं, वे भगवान् हैं। जबकि, ‘माँ’ से हमारा रिश्ता तो माँ और पुत्र का है और इससे बड़ा रिश्ता तो और कुछ हो ही नहीं सकता! उन्होंने तुम्हें मानव बनाया है, अत: मानवता के पथ पर चलो, नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जिओ। ‘माँ’ तो अनन्त लोकों की जननी हैं और उनसे हमारा कोई मेल नहीं है, इसके बाद भी वे अपनी हैं। जब, इस जगत् का एक-एक कण ‘माँ’ ने बनाया है और वे कण-कण में व्याप्त हैं, तो हमें भी ‘माँ’ ने बनाया है। वे निखिल ब्रह्मांड की जननी हैं। ‘माँ’ अनन्त हैं, विराट हैं, लेकिन ममता का सागर हमारे ऊपर उड़ेलती हैं।

ज्यों-ज्यों हमारी साधना, अराधना, भक्ति और पुरुषार्थ बढ़ते जाते हैं ‘माँ’ की शक्तियाँ हमारे अन्दर समाहित होती चली जाती हैं। आप मानव से महामानव बन सकते हैं, केवल इस दिशा में निष्ठा की पराकाष्ठा हासिल करें। केवल भक्ति, ज्ञान, आत्मशक्ति की कामना लेकरके अराधना करो, तृप्ति मिलेगी, क्योंकि इनमें सर्वस्व समाहित है। जीवन में चाहे जैसी भी परिस्थिति आजाए, धर्म, धैर्य, पुरुषार्थ का त्याग कभी मत करो। यदि इनका त्याग नहीं करोगे, तो आपका अन्तिम क्षण भी स्वर्णिम बन जायेगा, आपको पराजित नहीं होने देंगे। उस परमसत्ता से बड़ी शक्ति और कोई शक्ति नहीं है। उनका आत्मांश तुम्हारे अन्दर है, जो कि अजर-अमर-अविनाशी है। निखिल ब्रह्मांड में अनेक राम हैं, अनेक कृष्ण हैं, अनके देवी-देवता हैं, लेकिन माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा एक हैं और जो सर्वोपरि हैं।

आज का मानव नाना प्रकार के तनाव से ग्रसित है और विवेकहीन होता जा रहा है, तथापि वह अपनी शक्ति को नहीं पहचान पा रहा है। जो कर्म नहीं करना चाहिए, वह कर्म कर रहा है और जो कर्म करना चाहिए, उससे दूर भाग रहा है। अरे, तुम क्या लेकर आए हो और क्या लेकर जाओगे? हमारे ऋषि-मुनियों ने ‘आत्मा की अमरता और कर्म की प्रधानता’ पर बल दिया है। आप जो कुछ भी विचार करते हो, उस विचारमात्र का प्रभाव जीवन पर पड़ता है, फिर भी पतन की ओर बढ़ते जा रहे हो! सोचो, यह विचार करो कि अब मेरे जीवन का अंशमात्र भी पतन नहीं होगा। जल से कुछ सीखो। इसका मूलस्रोत गहराई की ओर होता है। कहीं पर भी जल को डाल दो, वह नीचे की ओर ही जायेगा। अग्नि से सीखो, उसे कहीं भी प्रज्ज्वलित करो, उसकी लौ ऊपर की ओर ही उठेगी, क्योंकि उसका मूलस्रोत सूर्य है। आप तो अग्नि से भी ऊँचे हो। साधकों ने सूर्य को भी रोक दिया है। लेकिन आज तुम्हें क्या हो गया है? तुम्हारा ज्ञान कहाँ गया? विज्ञान और भौतिकता की ओर भाग रहे हो। अरे, ज्ञान से विज्ञान है, न कि विज्ञान से ज्ञान!’’

आत्मा, सुषुम्ना नाड़ी और सातों चक्रों की तृप्ति के लिए सद्कर्म करो

‘‘जिस तरह भोजन शरीर का आहार है, उसी तरह तुम्हारी आत्मा, सुषुम्ना नाड़ी, सातों चक्रों का भी आहार होता है। इनके आहार हैं- सद्कर्म, परोपकार, पुरुषार्थ। सद्कर्म करो, ये सभी तृप्त होते चले जायेंगे। लेकिन, आज मनुष्य में लोभवृत्ति बढ़ती चली जा रही है और वह भौतिकता की अन्धी दौड़ में दौड़ता चला जा रहा है। यदि यही चलता रहा, तो तुम्हारी आत्मा के ऊपर आवरण पर आवरण पड़ते चले जायेंगे और तुम अपनी कार्यक्षमता खोते चले जाओगे। हमारे ऋषियों-मुनियों ने हज़ारों वर्ष तक तपस्या की, वे कालजयी थे, ज्ञानी थे और जो भी अच्छा देख रहे हो, यह उन्हीं की देन है। उस सत्य को समझो और पुरुषार्थी, परोपकारी बनो तथा जातीयता, छुआछूत, सम्प्रदायवाद से ऊपर उठो, सबके कल्याण की इच्छा रखो। हम सब एक हैं और उसी ‘माँ’ के पुत्र हैं। यदि तुम किसी का रास्ता अवरुद्ध करोगे, तो परमसत्ता तुम्हारा रास्ता अवरुद्ध कर देंगी।’’

हर समस्या का समाधान तुम्हारे अन्दर निहित है

‘‘तुम्हारे सामने एक छोटी सी समस्या आई नहीं, कि असंतुलित होजाते हो, घर बनाने की समस्या हो या कोई और समस्या हो। इसलिए कि तुम अपनी शक्तिसामथ्र्य को पहचानते नहीं हो। समस्या आई नहीं, कि तनाव दूर करने के लिए शराब की दुकान पर पहुँच जाओगे! क्या नशा कर लेने से समस्या दूर हो जायेगी? अरे, कर्म करो, अपनी अन्तर्शक्ति को जानो, पहचानो। अपने बच्चों की शिक्षा व उनके स्वास्थ्य और संस्कार पर ध्यान दो।

धार्मिक बनना, कर्म करना, पुरुषार्थ करना आडम्बर नहीं है। ऐसे रास्ते पर चलो, जिससे परमसत्ता और गुरुसत्ता प्रसन्न हों। समाज में जगह-जगह भटकाव है, उसमें मत उलझो। भगवती मानव कल्याण संगठन, पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम और भारतीय शक्ति चेतना पार्टी, इन तीनों धाराओं का गठन ही आपके कल्याण के लिए किया गया है। हर मनुष्य के तीन ही प्रमुख कर्तव्य हैं- धर्म की रक्षा, राष्ट्र की रक्षा और मानवता की सेवा और यदि इन तीनों कत्र्तव्यों का पालन करते रहोगे, तो जीवन में कभी भी असहायों की जिन्दगी नहीं जीना पड़ेगा।

अपने धर्म की रक्षा करने के साथ दूसरों के धर्म का सम्मान करो और जो राष्ट्र की रक्षा नहीं करता, राष्ट्रहित के बारे में नहीं सोचता, वह मानवता के पथ का राही नहीं बन सकता। हर राष्ट्र को मानवता की कसौटी पर कसें। तीसरी धारा भारतीय शक्ति चेतना पार्टी राष्ट्रहित के लिए समर्पित है और इसके लिए आपमें जो सामथ्र्य हो, उसका उपयोग करो। चाहे कोई भी हो, जो राष्ट्रविरोधी, समाजविरोधी कार्य कर रहा हो, उसका विरोध करो। जब कर्म ही नहीं करोगे, तो फल कैसे पाओगे? प्रयास करो, हर समस्या का समाधान तुम्हारे अन्दर निहित है।’’

भारत के गौरवशाली इतिहास को जीवंत बनाना है

‘‘स्वतंत्रता सेनानियों के शौर्यपथ को अपनाओ, अन्यायी-अधर्मियों को प्रश्रय मत दो, उन्हें मुँहतोड़ जवाब देना है। आपको भारत के गौरवशाली इतिहास को जीवंत बनाना है। कांग्रेस पार्टी तो देश को बरबाद करने पर तुली हुई थी, बीजेपी आई, जो कुछ अच्छा कार्य कर रही है, लेकिन पूरी तरह नहीं! जहाँ शराब के ठेके चल रहे हों, मािफया का साम्राज्य हो और जो राजनेता देश की जनता को शराब पिलाएं, वे द्रेशद्रोही नहीं हैं तो क्या हैं? नशा ही अपराध का मूल कारण है। आख़्िार राजसत्ताएं किस तरह का विकास कर रही हैं? यदि देश को नशामुक्त नहीं कराया गया, तो अपराध बढ़ते रहेंगे, टुकड़े-टुकड़े गैंग पनपते रहेंगे और राष्ट्रध्वज का अपमान होता रहेगा। 26 जनवरी को जो हुआ, वह स्वतंत्रता के बाद से कभी नहीं हुआ। टुकड़े-टुकड़े गैंग, खालिस्तानी व कांग्रेस मानसिकता के लोग और कथित किसान नेता, जो देश को टुकड़े-टुकड़े कर देना चाहते हैं, ये राष्ट्रध्वज का अपमान करेंगे, बहन-बेटियों को बेइज्जत करेंगे। मेरा मानना है कि किसानों के नाम पर जो आन्दोलन कर रहे हैं, वे किसान नेता हैं ही नहीं!’’

दंगाई आन्दोलनकारी किसान हो ही नहीं सकते

‘‘जब हमारे देश की सेनाएं सीमा पर मौत के मुहाने पर खड़ी हुई हैं और कोरोना महामारी के चलते देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ चुकी हो, तब कोई भी कृषक मानसिकता का व्यक्ति ऐसा आन्दोलन कर ही नहीं सकता। मेरा मानना है कि ये अन्नदाता हो ही नहीं सकते, बल्कि नास्तिक लोग हैं। इतना ज़रूर है कि कुछ अन्नदाता इनके चंगुल में फंस सकते हैं। भगवती मानव कल्याण संगठन ऐसे किसी भी आन्दोलन का समर्थन नहीं करता। वे अन्यायी-अधर्मी, दंगाई कहते हैं कि सालों आन्दोलन चलता रहेगा। क्या वे किसान हो सकते हैं? जो आन्दोलन चला रहे हैं, वे ठेकेदार मानसिकता और दंगाई मानसिकता के लोग हैं। राष्ट्रध्वज का अपमान हुआ, जिसका एक भी तथाकथित किसान नेता ने विरोध नहीं किया, तो ये दंगाई नहीं हैं तो और कौन हैं? ऐसी विषम परिस्थितियों में सरकार के साथ खड़े रहने की आवश्यकता है कि कोई उत्पात न कर सके, चकाजाम न कर सके।

मैं तो केन्द्र की बीजेपी सरकार की इस बात की सराहना करता हूँ कि यदि कांग्रेस की सरकार होती, तो आज देश का हज़ारों किलोमीटर भू-भाग चीन के कब्जे में चला गया होता।’’

देश को खण्ड-खण्ड करने की आज़ादी नहीं दी जा सकती

‘‘अभिव्यक्ति की आज़ादी की भी सीमा होनी चाहिए। देश को खण्ड-खण्ड करने की आज़ादी नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह अभिव्यक्ति नहीं, द्रेशद्रोह है। तथाकथित द्रेशद्रोहियों के प्रति केन्द्र सरकार कहीं न कहीं रियायत कर रही है। जिस समय राष्ट्रध्वज का अपमान हो रहा था, यदि दो-चार दंगाइयों के ऊपर गोली दाग दी जाती, तो यह उनके लिए बहुत बड़ा सबक होता। किसान वे हैं, जो खेतों पर काम कर रहे हैं। भगवती मानव कल्याण संगठन देश की अस्मिता की रक्षा के लिए सरकार के साथ खड़ा है। कश्मीर समस्या के समाधान के लिए प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की भूरि-भूरि प्रशंसा की जानी चाहिए। अपने कत्र्तव्यों को जानो और उस दिशा में आगे बढ़ो। जिस तरफ भी नज़र उठाकर देखोगे, अनीति-अन्याय-अधर्म का साम्राज्य दिखेगा, जिससे निज़ात पाने के लिए तीनों धाराओं से जुडक़र कर्तव्यकर्म करने की ज़रूरत है। ‘कानून वापस करो, तब आन्दोलन वापस होगा’ यह राष्ट्र को कमज़ोर करने का क्रम है और भगवती मानव कल्याण संगठन इसका विरोध करता है।’’

अकर्ता प्रशासन ने ले ली पचास से अधिक लोगों की जान

मध्यप्रदेश के शासन-प्रशासन के अकर्ता होने का जि़क्र करते हुए सद्गुरुदेव जी महाराज ने कहा कि ‘‘सीधी जि़ले में हुई बस दुर्घटना, जिसमें पचास से अधिक लोगों की, जिसमें अधिकांश छात्र थे, अकाल मौत हो गई। आज तक रोड का जीर्णोद्धार नहीं कराया जा सका। छुहिया घाटी में कई वर्षों से जाम लग रहा है, दो-दो दिनों तक जाम लगा रहता है और इसकी वजह से आएदिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं। शासन-प्रशासन इसे अच्छी तरह जानता है, लेकिन आज तक इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। क्या मौतों के बदले मुआवजा दे देने से जीवन वापस लौट आयेगा? सरकारें केवल अपनी कुर्सी बचाने में लगी हैं। जब तक सरकारें कुर्सी बचाने के फेर में रहेंगी, तब तक वे मानवता का हित कर ही नहीं सकतीं। अरे, सत्य की यात्रा पर चलो। किसी भी राजनीतिक दल का नेता हो, वह न तो इन अव्यवस्थाओं का विरोध करता है और न ही शराब के धंधे का। ऐसे लोगोंं को वोट नहीं देना है और जो जातीयता व सम्प्रदायिकता को प्रश्रय देते हैं, उन्हें भी वोट नहीं देना है।’’

आपको नित्यप्रति अच्छी आदतों का संकल्प लेना है

भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं से, अपने शिष्यों से परम पूज्य गुरुवरश्री ने कहा कि ‘‘सत्य की यात्रा पर चलो और नित्यप्रति आपको अच्छी आदतों का संकल्प लेना है। वृक्षारोपण का संकल्प लो। हर वर्ष हर कार्यकर्ता को एक वृक्ष अवश्य लगाना है और उसे संरक्षित करना है। एक संकल्प और लो कि नशामािफयाओं का साम्राज्य समाप्त करना है। संगठन का एक प्रतिनिधिमंडल मध्यप्रदेश की सरकार से अवश्य मिलेगा कि शराब की होमडिलेवरी के निर्णय को रोको, अन्यथा संगठन इसका पुरजोर विरोध करेगा।

 नित्यप्रति कम से कम 15 मिनट, पूजा-पाठ के अलावा, प्राणायाम, बीजमंत्रों का क्रमिक उच्चारण और ध्यान में अवश्य दो। गहरी श्वास भरें और जितनी देर रोक सकते हैं, रोकें और धीरे-धीरे निकाल दें, फिर कुछ समय ‘माँ’-ú का उच्चारण करें, तत्पश्चात् आज्ञाचक्र पर ध्यान लगाएं। आज्ञाचक्र को राजाचक्र कहा जाता है और यह चक्र आपके पूरे शरीर को संचालित करने के साथ निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाता है। ध्यान के समय पहले जो मन्त्र आपको दिए गए हैं, मन ही मन उनका जाप करो, फिर धीरे-धीरे जाप को रोककर विचारों को शान्त कर दो। यदि एक सेकण्ड के लिए भी शून्य में ध्यान चला गया, तो दिनभर के लिए एनर्जी प्राप्त हो जायेगी।’’

योगशक्ति, आत्मशक्ति, कुण्डलिनीशक्ति को पहचानो

‘‘योगी बनो, भोगी नहीं! योगशक्ति, आत्मशक्ति, कुण्डलिनीशक्ति को पहचानो। आपका एक-एक पल महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि जब मौत आयेगी, तो एक पल भी प्रतीक्षा नहीं करेगी। मृत्यु से भयभीत मत होना, क्योंकि यह तो एक शास्वत सत्य है। कर्म करो। तुम भक्ति तो करते हो, लेकिन कर्म नहीं करते! अधिकांश लोग हैं कि गधों की तरह सोते रहते हैं, जबकि प्रात:काल चिडिय़ाँ भी चहचहाने लगती हैं। एक बार यह ठान लो कि बस बहुत हो चुका और अब हमारा पतन नहीं होगा।

गाय के गोबर से उपले बनाकर कम से कम सप्ताह में एक बार इन्हें जलाकर हवन करें, इससे घर का वातावरण सात्विक बनने के साथ ही वायरस समाप्त होगा। हवन के बाद जो भस्म बचे, उसे छान लें और हफ्ते में एक बार शरीर में अवश्य लगाएं, फिर आधे-एक घण्टे बाद स्नान कर लें, इससे चर्मरोग नहीं होंगे।

पीपल के पत्ते में तो ज़हर उतारने की ताकत है। पीपल के पत्ते को कान में घुमाकर सर्प का ज़हर निकाला जा सकता है। पीपल के पत्ते को कान में घुमाते समय उसे पकड़े रहें, नहीं तो वह अन्दर चला जायेगा। सर्प काटने पर यह प्रारम्भिक उपचार कर लें, इससे ज़हर नहीं चढ़ेगा और फिर अस्पताल जाकर भी इलाज करा लें। प्रकृति ने सबकुछ दे रखा है। गाय की सेवा करें, गौअर्क का उपयोग करें, इससे आपके अन्दर रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। इस संकल्प शिविर में संकल्प लेकर जाएं कि शारदीय नवरात्र में 13, 14, 15 अक्टूबर 2021 को होने वाले शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में पाँच नए परिवारों को जोडक़र सिद्धाश्रम पर अवश्य लाना है।’’

अच्छे कर्म करो और धर्म, राष्ट्र, मानवता के प्रति सोचो

‘‘मैं युवाओं से कहता हूँ कि इस तड़पती, कराहती मानवता के लिए तो सोचो। अच्छे कर्म करो और धर्म, राष्ट्र, मानवता के प्रति सोचो। अच्छी शिक्षा ग्रहण करो, संस्कारवान बनो। कोई भी निर्णय लो, उसमें माता-पिता की इच्छा शामिल हो और विकारों से दूर रहो। वासना के वशीभूत हो करके पागलपन मत करो। जो वासना का गुलाम हो और सत्यपथ पर न चले, वह कभी दुनिया को नहीं बदल सकता। आज अधिकांश युवा भटक रहा है। अरे, अपने जीवन का अच्छे कार्यों में उपयोग करो।’’

ऋषिवर के चिन्तन के पश्चात्, शिविरस्थल पर उपस्थित सभी भक्तों ने शंखध्वनि के साथ साधनाक्रम पूर्ण करते हुए शक्तिस्वरूपा बहनों के करकमलों से सम्पन्न दिव्यआरती का लाभ प्राप्त किया और परम पूज्य गुरुवरश्री के चरणकमलों को नमन करके जीवन को धन्य बनाया।

शिविर के तृतीय दिवस (21 फरवरी) का द्वितीय सत्र

‘‘सफलता के शिखर तक पहुंचने के लिये पांच बातों पर सदैव चिन्तन, ध्यान बना रहना चाहिये। ‘धैर्य, धर्म, पुरुषार्थ, गुरुसत्ता और परमसत्ता।’ कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी इनका त्याग नहीं करना चाहिये। समय का हर पल महत्त्वपूर्ण है, न जाने कब, किस क्षण इस जगत् की स्रष्टा परमसत्ता माता जगदम्बे की कृपादृष्टि हम पर पड़ जाए और यदि हमने उस एक क्षण को गवां दिया, तो उनकी कृपा से वंचित होना पड़ सकता है। चाहे कैसी भी स्थिति-परिस्थिति आ जाए, अपनी सामथ्र्य तक संघर्ष करते रहें। जब सामथ्र्य घट जाये, तब गुरुसत्ता और परमसत्ता का ध्यान करें, उनका सहारा अवश्य प्राप्त होगा।’’ 

अपराह्न बेला में 02:00 बजे, ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के मंचासीन होते ही उपस्थित सभी शिष्य शंखनाद के पश्चात, एकाग्र होकर उनकी ओर अपलक निहारने लगे कि तभी शक्तिस्वरूपा बहन पूजा जी, संध्या जी और ज्योति जी उपस्थित समस्त भक्तों की ओर से आपश्री के चरणों को जल से धोकर पुष्प समर्पित करती हैं। तदोपरान्त, कुछ भक्तों ने गुरुवरश्री के चरणों में भावसुमन प्रस्तुत किये, जिनके प्रारम्भिक अंश इस प्रकार हैं–

 ‘पावन सिद्धाश्रम तुमने रचाया, जय हो तुम्हारी गुरुवर, जय हो तुम्हारी।’- आरती त्रिपाठी जी, सिद्धाश्रम। ‘मानव का मिला जीवन परहित में लगाना, संकल्प शिविर में संकल्प लेकर जाना।’- बाबूलाल विश्वकर्मा जी, दमोह। ‘पैसा से बड़ा होता है, ईमान जिन्दगी में। पैसा ही नहीं है सब कुछ वीरान जिन्दगी में।’- वीरेन्द्र दीक्षित जी, दतिया।

भावगीतों का क्रम समाप्त होते ही एकाएक शीतल पवन का झोंका आया और शान्त होगया, जैसे वह भी ऋषिवर के वचन सुनने के लिए निस्पंद बैठ गया हो।

 परम पूज्य गुरुवरश्री ने चिन्तन प्रारम्भ किया, ‘‘शिविर के ये एक-एक पल  ‘माँ’  के स्मरण चिन्तन के साथ आपकी दिशाधारा को बदलने वाले हैं। आज प्रात: 06 हज़ार से अधिक नए भक्तों ने दीक्षा प्राप्त की। यही परिवर्तन का चक्र है। लोग सत्यपथ के राही बन रहे हैं और यही ‘माँ’ की कृपा है।

‘माँ’ की कृपा से समाज में सहजभाव से परिवर्तन आता चला जा रहा है। इस पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में 24 वर्ष से चल रहे श्री दुर्गाचालीसा पाठ की अनन्त ऊर्जा आज भारत देश के साथ ही विदेशों में भी फैल रही है और वहां भी लोग श्री दुर्गाचालीसा का पाठ मुग्धभाव से कर रहे हैं। भगवती मानव कल्याण संगठन के लाखों स्वयंसेवी कार्यकर्ता डोर टू डोर जाकर समाज में परिवर्तन का कार्य कर रहे हैं। वर्तमान के कलिकाल की परिस्थितियों से ग्रसित लोग जब केवल स्वहित में लगे हुए हैं, तब कार्यकर्ता समाजसुधार का कार्य कर रहे हैं।

 ‘माँ’ का यह अखण्ड अनुष्ठान, जो अभी एक अस्थाई भवन में चल रहा है, तब यह स्थिति है और आगे क्या होगा, यह समझा जा सकता है। मेरे द्वारा 108 महाशक्तियज्ञों की शृंखला के 08 यज्ञ समाज के बीच किए गए और असम्भव से असम्भव कार्य करके, लोगों को लाभान्वित करके समाज को यज्ञों की ऊर्जा का एहसास कराया जा चुका है। अभी तो यहाँ सिद्धाश्रम में शेष 100 महाशक्तियज्ञ होंगे। एक-एक यज्ञ की ऊर्जा समाज में क्या प्रभाव डालेगी, आप कल्पना कर सकते हैं!

मेरे द्वारा एक-एक यज्ञ जो सम्पन्न किए जाते हैं, स्वयं को मौत के मँुह में लेजाने वाले होते हैं। 11 दिन का अखण्ड अनुष्ठान, जिसमें निराहार रहकर नित्यप्रति 7-8 घण्टे प्रज्ज्वलित अग्नि में आहुति देना होता है। मन्दिर बनाकर मूर्तियाँ रख देने से मूर्तियाँ जीवंत नहीं होजातीं। इसके लिए ‘अखण्ड भक्ति और प्रचण्ड पुरुषार्थ’ की आवश्यकता होती है। वैभवशाली अनेक मंदिर बने होंगे, लेकिन सब प्रदर्शनात्मक हैं। ऐसे साधक ही नहीं हैं, जिनमें चैतन्य मन्त्रों की शक्ति समाहित हो। धीरे-धीरे इस स्थान को ऊर्जात्मक बनाया जा रहा है। इसीलिए आपको ‘माँ’-ú बीजमंत्रों का जाप, प्राणायाम, योग-ध्यान व चालीसा पाठ के क्रम दिए गए हैं।’’

लिए गए संकल्पों का दृढ़ता से पालन करिए

‘‘नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन के बिना भक्ति हो ही नहीं सकती। अब तक जितने शिविर हुए हैं, उनमें लिए गए संकल्पों को याद करिए तथा उनका पालन और दृढ़ता से करिए। ध्यानक्रिया में अलौकिक शक्ति समाहित है। इसीलिए ऋषि-मुनि कहते हैं कि ध्यान की क्रिया अपनाओ, अपने आज्ञाचक्र पर ध्यान लगाओ, क्योंकि इसी में ‘माँ’ की शक्ति समाहित है। अत: यदि जीवन में ‘माँ’ की कृपा चाहते हो, सुख-समृद्धि चाहते हो, तो नित्यप्रति प्राणायाम, बीजमंत्रों का जाप और ध्यानक्रिया में कम से कम 15 मिनट का समय अवश्य दें, इससे विशेष ऊर्जा प्राप्त होगी। गलत रास्ते पर चलकर अपनी ऊर्जा को नष्ट न करें। विचार करिए कि जो आप कर रहे हैं, उस कार्य से आपकी ऊर्जा नष्ट हो रही है या आपको ऊर्जा प्राप्त हो रही है! जिस कार्य से ऊर्जा प्राप्त हो रही हो, उसे और करो। मैंने पहले भी यह कभी नहीं कहा कि ‘माया महाठगिनि मैं जानी’ बल्कि यह कहा है कि ‘काया महाठगिनि में जानी।’ माया कभी नहीं ठगती और यह शरीर कर्म के लिए मिला है। यह शरीर आपको पल-पल ठगता है, अत: इसका उपयोग कर डालो। पता नहीं कब मौत आजाए।’’

सद्कर्म ही हमारे पूर्व के अवगुणों को दूर करने में सहायक हैं

‘‘तुम शरीर नहीं आत्मा हो, अपितु उस चेतना की ओर अपने आपको आकर्षित करो। आलस्य से दूर रहो और नित्यप्रति आकलन करो कि क्या आज कुछ और अच्छा कार्य कर सकता था? नित्यप्रति सोचो कि आपके गुरु ने ‘आत्मा की अमरता और कर्म की प्रधानता’ के महत्त्व के बारे में बतलाया है। आपको अच्छा कर्म करना है या बुरा कर्म करना है? बुरा कर्म करोगे, तो आत्मा पर आवरण पड़ते चले जायेंगे। जिस तरह एक गन्दे पाइप में स्वच्छ जल डालते रहोगे, तो एक दिन उसमें से स्वच्छ जल निकलने लगेगा। इसी तरह अच्छे कर्म करते रहने से आत्मा पर पड़े आवरण हटते चले जायेंगे और आपका अन्त:करण पवित्र होता चला जायेगा। ‘माँ’ की भक्ति और सद्कर्म ही हमारे पूर्व के अवगुणों को दूर करने में सहायक हैं।’’

सफलता के लिए प्रकृतिसत्ता सभी को राह दिखाती हैं

‘‘मन्त्रों के जाप को आडम्बर न मानें, एक-एक मंत्र में अलौकिक शक्ति छिपी हुई है। शब्द आकाशीय गुण है। मन्त्रों का जाप करने से हमारी सुषुम्ना नाड़ी चैतन्य होती है। आज लोग नास्तिकता की ओर जा रहे हैं और पूजा-पाठ को ढोंग समझ रहे हैं। आपने सुना होगा कि यूएसए ने मंगलग्रह पर अपना रोबोट यान उतारा है। तो जानते हो, नासा के वैज्ञानिकों ने क्या किया? सफलता के लिए यान को मंगलग्रह पर भेजने से पहले मूँगफली का प्रसाद बाँटा। आज विदेशी वैज्ञानिक भी टोटका करने के लिए बाध्य हैं। प्रकृतिसत्ता सभी को राह दिखाती है कि कैसे सफलता मिलेगी और कैसे असफलता मिलेगी? किसी अच्छे कार्य के लिए जाते समय यदि किसी को छीक आजाए, तो इसका भी प्रभाव पड़ता है। हमारा धर्मकर्म आडम्बर नहीं है। इस हेतु की जाने वाली छोटी-छोटी क्रियाओं को छोटा मत मान लेना।

आप किसी कार्य के लिए जाएं, तो सफलता के लिए माता-पिता का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त कर लें, इससे आपके अन्दर की ऊर्जा तथा आपका आत्मविश्वास और बढ़ जायेगा। जिस तरह बूँद-बूँद से घट भरता है, उसी तरह छोटी-छोटी क्रियाओं से जीवन में परिवर्तन आता चला जाता है। अत: पूजा-पाठ और योग-ध्यान-साधना के क्रम करते रहो। नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन अपनाओ और यदि कहीं अनीति-अन्याय-अधर्म हो रहा हो, तो उसके विरुद्ध आवाज़ उठाओ। तुम परमसत्ता के प्रतिनिधि हो। तुम आवाज़ नहीं उठाओगे, तो और कौन उठायेगा?’’

समाजसुधारक बनो, भले ही अपमान सहना पड़े

‘‘परमसत्ता ने किसी को छोटा-बड़ा या ऊँच-नीच नहीं बनाया है, सभी समान हैं। इसलिए मैं कहता हूँ कि जातीयता, छुआछूत, सम्प्रदायिकता, ये भयानक बीमारी हैं, अत: इनसे दूर रहो। तुम क्या नहीं कर सकते? नशेडिय़ों को नशामुक्त बना सकते हो, अपराधियों को इन्सान बना सकते हो! 90 प्रतिशत लोग मुझसे आमसमाज के लोग जुड़े हैं। धनवानों का जीवन तो चल जायेगा, लेकिन गरीबों के तो परमसत्ता और गुुरुसत्ता ही सहारे हैं। आज देश विषम परिस्थितियों से गुज़र रहा है। किसी के धर्म का विरोध न करो, बल्कि अधर्मियों का प्रतिकार करो। समाज में हज़ार में से 999 लोग, समाजसेवा के नाम पर स्वयं की समृद्धि तय करते हैं और अच्छे लोगों के साथ ही वे गलत लोगों को भी प्रश्रय देते हैं। समाजसेवक कहे जाने वाले लोग जगह-जगह सम्मान पाते हैं, जबकि समाजसुधारक को जगह-जगह अपमानित होना पड़ता है, क्योंकि वह गलत का विरोध करता है। तो, गलत करने वाले अपमान ही तो करेंगे!

समाजसुधारक बनो, भले ही अपमान सहना पड़े। राजनीति का पतन होता जा रहा है। आज़ादी के बाद से देश को आज तक लूटा ही जा रहा है। किसी भी सरकार ने आज तक भ्रष्टाचार और अपराध को रोकने का कार्य नहीं किया। बल्कि, सरकारें स्वयं नशे का व्यवसाय कर रही हैं। हमें इस कड़ी को तोडऩा होगा।’’

सराहनीय है भगवती मानव कल्याण संगठन का कार्य

युग परिवर्तन के लिए कटिबद्ध ज्ञानशिरोमणि सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं, शिष्यों-भक्तों से कहा कि ‘‘आपको समय, परिस्थितियों के अनुरूप कर्मपथ पर तेजी से बढऩे की आवश्यकता है। यदि आपके समझाने पर सौ बुरे लोगों में से 10 लोग भी सुधर जाते हैं, बुराकर्म छोडक़र अच्छाकर्म करने लगते हैं, तो समझिए आपने एक धर्मयुद्ध जीत लिया। आपके प्रयास सराहनीय हैं, क्योंकि जो कार्य सरकारें नहीं कर पाईं, 1500 शराब की नाज़ायज़ खेपों को पकड़ाकर आपने कर दिखाया है। इसी तरह सही दिशा में आगे बढ़ते रहना है और जो कार्य सरकारें नहीं कर सकतीं, वह आपको करना है।

सरकारों का दोहरा व बेईमानी से भरा चरित्र है। एक ओर शराब का व्यवसाय खुलेआम किया जा रहा है, तो दूसरी ओर नशामुक्ति का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है, नशामुक्ति के लिए दवाइयाँ बनवाई जा रही हैं और नशामुक्ति केन्द खोले जा रहे हैं। सरकारें केवल यह करें कि जो नशे का बीज बो रही हैं, उसे समाप्त करके देश को नशामुक्त बना दें। भारत अपने आप आत्मनिर्भर बन जायेगा। माता-पिता यदि अपने बच्चों की भलाई चाहते हैं, तो उन्हें योगी बनाएं, भोगी नहीं और स्वयं भी योगी बनो।’’

संकल्प में बहुत बड़ी शक्ति होती है

‘‘जब मैं साधना में बैठ जाता था, तो ‘साधना सिद्ध होगी या शरीर नष्ट होगा’ मेरा यह संकल्प होता था। संकल्प में बहुत बड़ी शक्ति है। एक पावन पुनीत लक्ष्य तुम्हारे पास है, उस लक्ष्य को पूरा करने में अपनी पूरी सामथ्र्य लगा दो। मिलावटखोरों और नशे के विरुद्ध कार्य करो। अपराधियों की जानकारी प्रशासन को दो। मेरा संकल्प है कि एक दिन सरकारें नशा बेचना बन्द करके देश को नशामुक्त करने की दिशा में कार्य अवश्य करेंगी। बाध्य होकरके मुझे भारतीय शक्ति चेतना पार्टी के रूप में तीसरी धारा का गठन करना पड़ा। राष्ट्र सभी का है, इस पर किसी का एकाधिकार नहीं है। धर्म से भी बढक़र पहले राष्ट्र है और राष्ट्र सुरक्षित है, तो धर्म भी सुरक्षित रहेगा। एक दिन ऐसा आयेगा, जब शक्तिसाधक या शक्तिसाधिका लालकिले पर राष्ट्रीयध्वज फहरायेंगे।’’

संस्कार और पुरुषार्थ

जीवनरथ के दो पहिए हैं

‘‘सरकारों को सचेत होना चाहिए, देश में बेरोजगारी बढ़ती ही जा रही है। बेरोजगारी से अपराध बढ़ रहे हैं। देश के लोगों को स्वावलम्बी बनाओ, छोटे-छोटे उद्योग स्थापित करो। देश में निर्मित वस्तुओं को महत्त्व दो और चायनीज सामान का बहिष्कार करो। अभी हरियाणा में चपरासी के 17 पद निकले थे। उसके लिए अच्छे पढ़े-लिखे 2700 बेरोजगार साक्षात्कार के लिए पहुँचे थे। अरे, जो कार्य मिले, उसमें लग जाओ। मेहनत करना शर्म की बात नहीं है! संस्कार और पुरुषार्थ जीवनरथ के दो पहिए हैं। संस्कारवान् और धर्मवान् व्यक्ति कभी गलत बातें नहीं सोचता, वह ऊर्जावान होता है। आस्तिकता के पथ पर चलो, कार्यक्षमता बढ़ती चली जायेगी।’’

कर्तव्य और परोपकार के पथ से दूर होता जा रहा है हिन्दूसमाज

‘‘कर्तव्यपथ पर, परोपकार के पथ पर आगे बढ़ो। हिन्दूसमाज इससे दूर होता चला जा रहा है। कथावाचकों ने केवल यही सिखाया है कि कथा सुनो, दक्षिणा दो और चले जाओ। वे पैसे के लिए ही कथा सुनाते हैं कि एक बार भागवत सुन लो, मुक्त हो जाओगे। अरे, हज़ारों बार कथा बाँच चुके हो, तुम मुक्त नहीं हुए! उनके हाथों में देखोगे, तो रत्नों की अनेक अँगूठियाँ पहने हुए होंगे कि कहीं उनकी कमाई न बन्द होजाए!’’

संविधान भी हमें आत्मरक्षा

का अधिकार देता है

‘‘मानव हो, मानवता के पथ पर चलो और निष्ठा, विश्वास से ‘माँ’ की अराधना करो। आप लोग संगठन की विचारधारा पर चलें। शक्तिसाधकों के अस्त्र-शस्त्र हैं- शक्तिदण्डध्वज, गले में रक्षाकवच, महिलाओं के लिए रक्षारुमाल, आज्ञाचक्र पर कुंकुम का तिलक। जब भी कहीं जाओ, तो आपके साथ दण्डध्वज अवश्य होना चाहिए, इससे भयमुक्त रहोगे। आवश्यकता पडऩे पर उससे अपने साथ ही दूसरों की भी रक्षा कर सकते हो। पुरानी चीजों से भागो नहीं। कृषि के औजार हैं- हसिया, खुरपी, कुल्हाड़ी और गड़ासा। इनसे कृषिकार्य कर सकते हो और ज़रूरत पडऩे पर अपनी सुरक्षा भी कर सकते हो। इन वस्तुओं में लायसेंस की ज़रूरत नहीं है। आक्रामक नहीं, बल्कि रक्षात्मक क्षमता होनी चाहिए। अपने बच्चों के अन्दर चेतना भरो। हमारा संविधान भी हमें आत्मरक्षा का अधिकार देता है। आत्मरक्षा के लिए सदैव सजग रहें। हर घर में उक्त चीजें मौज़ूद होनी चाहिएं।’’

गुरुपूर्णिमा पर्व पर भी होगा सामूहिक योगभारती विवाह का क्रम

‘‘ऋषिवर ने बताया कि सिद्धाश्रम स्थापना दिवस 23 जनवरी के साथ ही प्रतिवर्ष गुरुपूर्णिमा के अवसर पर भी योगभारती विवाह पद्धति से सामूहिक विवाह का क्रम प्रदान कर दिया गया है। परम पूज्य गुरुवरश्री के इस निर्णय से उपस्थित भक्तों ने पूर्ण प्रसन्नता के साथ तालियाँ बजाकर जयघोष किया।’’

देशहित में एक संविधान,

एक नीति, एक विचार की आवश्यकता है

 ‘‘हमारे देश के प्रधानमंत्री काशी से चुनाव लड़ते हैं, तो काशी का अच्छा विकास हो रहा है। इसमें अन्य सांसद, विधायकों के मद की राशि भी लग जाए, तो कोई बात नहीं है। अरे, समानभाव से देश के सभी क्षेत्रों का विकास होना चाहिए। मेरा मानना है कि सभी सांसद, विधायकों को अपने-अपने क्षेत्रों के विकास की माँग उठानी चाहिए। यदि विकास हुआ होता, तो छुहिया घाटी में नित्यप्रति जाम न लगता और सीधी जि़ले में संकरी रोड की वजह से बस दुर्घटना न होती और न 50 से अधिक यात्री मारे जाते, जिसमें अधिकांश छात्र बच्चे थे।

भगवती मानव कल्याण संगठन की माँग नशामुक्ति के लिए तो है ही तथा हर भूमिहीन को पाँच एकड़ भूमि दिलाई जाए। लाखों एकड़ भूमि बेकार पड़ी हुई है। एक ऐसी नीति बननी चाहिए और वह भी इस शर्त के साथ कि भूमि प्राप्त करने वाले एक एकड़ भूमि पर वृक्ष लगायेंगे। वह हमेशा उस भूमि का मालिक बना रहे, इसके लिए जनसंख्या नियंत्रण भी आवश्यक है। इसके लिए भी संगठन आवाज़ उठायेगा। देश में एक नीति होनी चाहिए। देश में कहीं भी चाहे कोई भी दुर्घटना में मारा जाए या किसी की हत्या होजाए, उसके आश्रितों को एक करोड़ रुपए देना अनिवार्य होना चाहिए। देशहित में एक संविधान, एक नीति, एक विचार की आवश्यकता है। कानून बना दिए जाते हैं, लेकिन उस पर अमल नहीं होता। पीडि़तों, गरीबों को कोई लाभ नहीं मिलता और वह बेचारा वहीं का वहीं रह जाता है।’’

दिव्य चेतनाप्रद चिन्तन एवं दिव्यआरती के क्रम के पश्चात् तीन-तीन बार शंखनाद किया गया और सद्गुरुदेव भगवान् की चरणपादुकाओं पर नतमस्तक होकर सभी अपने भाग्य पर गौरवान्वित हुए। 

हज़ारों कार्यकर्ताओं ने संभाली शिविर व्यवस्था

 शिविर के वृहद कार्यक्रम को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में भगवती मानव कल्याण संगठन के पाँच हज़ार से भी अधिक सक्रिय समर्पित कार्यकर्ताओं ने अथक परिश्रम किया। शिविर प्रारम्भ होने के एक सप्ताह पूर्व से संगठन के अनेक कार्यकर्ताओं ने पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम पहुंचकर लाखों श्रद्धालुओं के ठहरने हेतु दिन-रात अथक परिश्रम कर आवासीय पण्डाल व्यवस्था प्रदान की व शिविर में शांति व्यवस्था कायमी के लिये सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने अग्रणी भूमिका निभाई। भोजन भण्डारा व्यवस्था, प्रवचन स्थल व्यवस्था, जनसम्पर्क कार्यालय, खोया-पाया विभाग, प्राथमिक उपचार व्यवस्था, सोशल मीडिया कार्यालय, स्टॉल व्यवस्था, जल व्यवस्था, प्रसाद वितरण, लाईट, साउण्ड, माईक, कैमरा व्यवस्था तथा मूलध्वज साधना मंदिर व श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मंदिर में प्रात:कालीन व सायंकालीन साधनाक्रम तथा आरती सम्पन्न कराने हेतु हज़ारों कार्यकर्ता अनुशासित ढंग़ से लगे रहे। इस तरह परमसत्ता की कृपा व गुरुवरश्री के आशीर्वाद से जन-जन में चेतना का संचार करने व मानवता के कल्याणार्थ आयोजित यह वृहद कार्यक्रम धार्मिक वातावरण में शालीनतापूर्वक सम्पन्न हुआ।

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