शक्ति चेतना जनजागरण शिविर, पुलिस भूमि, दमोह (म.प्र.) 18-19 अप्रैल 2015

इस घोर कलिकाल में आज चहुं ओर अनीति-अन्याय-अधर्म फल-फूल रहे हैं और इनकी भयावहता से आम आदमी त्रस्त है। किन्तु, न तो शासनसत्ता और न ही कोई धर्मगुरु लोगों को इनसे मुक्ति दिलाने के लिए गम्भीर हैं। परम पूज्य सद्गुरुदेव परमहंस योगिराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज, जिनका रोम-रोम समाजकल्याण के लिए समर्पित है, इस स्थिति से अत्यन्त व्यथित हैं। आपके द्वारा अनीति-अन्याय-अधर्म के प्रति लोगों को जाग्रत् करने तथा उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए यह 109वां शक्ति चेतना जनजागरण शिविर मध्यप्रदेश के दमोह ज़िला मुख्यालय पर आयोजित किया गया। इस क्षेत्र के लोगों का यह परम सौभाग्य है कि इससे पूर्व भी यहां पर दो अन्य ऐसे शिविर आयोजित किये जा चुके हैं।

सद्भावना रैली
इस बार रैली में मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं गुजरात आदि प्रदेशों से भी अनेकों गुरुभाई-गुरुबहनें सम्मिलित हुए।
दिनांक 16 अप्रैल गुरुवार को प्रातः परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मन्दिर में नमन करने के उपरान्त अपने पूज्य पिता ब्रह्मलीन दण्डी संन्यासी स्वामी रामप्रसाद आश्रम जी महाराज की समाधि पर पहुंचे। उन्हें प्रणाम करके निकटस्थ त्रिशक्ति गोशाला होते हुए आश्रम में रहने वाले सभी शिष्यों-भक्तों को आपने अपना दिव्य आशीर्वाद देकर ठीक 09:30 बजे दमोह के लिए प्रस्थान किया।
इस अवसर पर, अनेक शिष्य मोटरसाईकिल पर सवार होकर शक्तिदण्डध्वज हाथ में लिए जयघोष करते हुए परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के वाहन के आगे चल रहे थे। आपके वाहन के पीछे शेष चौपहिया वाहन क्रमबद्ध ढंग से चल रहे थे, जिनके दोनों ओर सद्भावना यात्रा वाले फ्लैक्स लगे थे और आगे शक्तिध्वज फहरा रहे थे। दो वाहनों पर ‘शक्तिपुत्र जी आए हैं, शक्ति चेतना लाए हैं’, जन-जन की पुकार वाला गीत लाउडस्पीकर के द्वारा प्रसारित किया जा रहा था।
शहडोल-रीवा राजमार्ग पर आते ही सर्वप्रथम खामडांड गांव के प्रतीक्षारत भक्तों को महाराजश्री ने प्रणाम करने का अवसर प्रदान किया। आगे चलकर ब्यौहारी में बनसुकली चौराहे पर तोरणद्वार बना था और
सैकड़ों लोग गुरुवरश्री के स्वागत की प्रतीक्षा कर रहे थे। यहां पर भी आपने लोगों को प्रणाम करने का अवसर प्रदान किया। इसके बाद, गोवर्दे तथा मानपुर आदि स्थानों पर भी भव्य स्वागत हुआ।
दोपहर 12:45 बजे यह रैली उमरिया पहुंची। वहां सड़क के ऊपर भव्य तोरणद्वार बनाया गया था और सड़क के दोनों ओर महिलाएं एवं बच्चे सिर के ऊपर जलकलश रखे तथा हाथों में आरती थाल लिए खड़े थे, शंखध्वनि हो रही थी।
यह रैली 13:45 बजे शहपुरा पहुंची। वहां से 3-4 किमी पहले से ही कुछ मोटरसाईकिल सवारों ने अगवानी की। इस बीच जगह-जगह पर सड़क के दोनों ओर महिलाएं एवं बच्चे सिर पर कलश एवं हाथों में आरती थाल लिए खड़े थे।
कुण्डम में भारी भीड़ देखने को मिली। वहां पर ‘माँ’-गुरुवर की संयुक्त छवि की भव्य झांकी सजाई गई थी तथा दो व्यक्ति स्टेज पर खड़े माइक पर ‘जय गुरुवर की’ के घोष कर रहे थे। गुरुवर के दर्शन पाकर भक्त गद्गद दिखाई दिये।
अपराह्न सवा तीन बजे यह रैली तिलसानी पहुंची, जहां पर महिलाओं एवं बच्चों ने सिर पर जलकलश और हाथों में आरती का थाल लेकर भव्य स्वागत किया। यहां पर भी माइक से ‘जय गुरुवर की’ का घोष हो रहा था।
इसके आगे आमारवोह, उमरिया गांव तथा रांझी आदि स्थानों में रैली का स्वागत किया गया।
अपहराह्न सवा चार बजे यह रैली जबलपुर नगर के प्रवेश द्वार पर पहुंची, जहां पर शक्तिध्वजधारक सैकड़ों बाईकर्स ने इसकी अगवानी की। तदुपरान्त, कांचघर, रानीताल चौराहा, बलदेव बाग, उखरी चौक एवं अहिंसा चौक होते हुए यह यात्रा विजयनगर पहुंची। इन सभी स्थानों पर लोगों ने भारी संख्या में बड़े हर्ष एवं उल्लास के साथ स्वागत किया। अन्त में, विजयनगर स्थित भारतीय शक्ति चेतना पार्टी के ज़िला कार्यालय पर अपार भीड़ देखने को मिली। यहां पर स्वागत के लिए भव्य तोरणद्वार बनाया गया था, बच्चे व महिलाएं मार्ग के दोनों ओर आरती थाल और कलश लिए खड़े थे तथा माइक पर जयघोष हो रहा था।

पार्टी कार्यालय भी भलीभांति सजाया गया था। परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् ने कार्यालय की छत पर खड़े होकर उपस्थित जनसमूह को बड़ी देर तक अपना दिव्य आशीर्वाद प्रदान किया। जबलपुर नगर में रैली ने रात्रि विश्राम किया।
अगले दिन 17 अप्रैल को प्रातः 09:30 बजे रैली ने जबलपुर से दमोह के लिए प्रस्थान किया। इसके आगे सैकड़ों शक्तिध्वजयुक्त बाईकर्स चल रहे थे, जिनमें से अनेक दमोह तक साथ गए।
दीनदयाल चौराहे पर, माढ़ोताल पर तथा सुरतलाई में तोरणद्वार बनाकर सिर पर कलश और हाथों में आरती के थाल लिए ढोल-नगाड़े बजाते हुए लोगों ने रैली का स्वागत किया। अनेक लोग महाराजश्री के वाहन के साथ-साथ उनकी एक झलक पाने के लिए दौड़े। कुछ ने धरती पर लेटकर आपको प्रणाम किया। इस बीच ठण्डे पेयजल के पाउच वितरित किये गये।
आगे चलकर बेलखेड़ा में काफी भीड़ होने के कारण वहां से निकलने में बहुत देर लगी। यहां पर महिलाएं व बच्चे कलश और आरती थाल लिए खड़े थे, ढोल बज रहे थे, पुष्पवर्षा हो रही थी तथा माइक से जयघोष हो रहा था।
आगे झगरा और बोरीया में भी भारी भीड़ थी। यहां पर दो जगह तोरणद्वार बनाए गए थे और बैण्ड बज रहा था। झुरुरई में भव्य स्वागत हुआ। लोहारी में भी तोरणद्वार बनाकर स्वागत किया गया तथा केला फल एवं ठण्डे पेयजल के पाउच वितरित किये गये। पोडी में भी तोरणद्वार बनाया गया था, ढोल बज रहे थे और पुष्पवर्षा हो रही थी। जगह-जगह पर लोग गुरुवरश्री की एक झलक पाने के लिए उनके वाहन के साथ-साथ दौड़ रहे थे। कुछ लोग गुरुवरश्री के वाहन को स्पर्श करके ही अपने आपको धन्य कर रहे थे। कटंगी में भारी भीड़ थी तोरणद्वार बनाए गए थे, ढोल और बैण्ड बज रहे थे, पुष्पवर्षा हो रही थी तथा माइक पर ‘जय गुरुवर की’ का घोष हो रहा था।
जैसे ही रैली कटंगी के आगे टोल प्लाज़ा पर पहुंची, वहां पर प्रतीक्षारत दमोह के कई सौ बाईकर्स ने उसकी अगवानी की। दमोह के विभिन्न बाज़ारों से गुज़रते हुए रैली के आगे चल रहे ध्वजयुक्त मोटरसाईकिल के इस काफिले को देखकर लोग अभिभूत हो रहे थे। महाराजश्री के वाहन के आगे चल रही दो मोटरसाईकिलों के पीछे बैठे हुए गुरुभाई आगे-आगे निरन्तर पुष्पवर्षा कर रहे थे। दो अन्य मोटरसाईकिलों से गुरुभाई पुष्पों की आपूर्ति लगातार कर रहे थे। इस प्रकार, दमोह तक के लगभग 70 किमी लम्बे मार्ग पर निरन्तर पुष्पवर्षा होती रही थी।
दमोह जिले की सीमा प्रवेश पर गुबराकलां और सिंग्रामपुर में भीड़ का आलम देखने योग्य था। यहां पर भी भव्य तोरणद्वार बनाये गये थे, पुष्पवर्षा हो रही थी तथा माइक पर ‘जय गुरुवर की’ का घोष हो रहा था। अनेक लोग गुरुवरश्री के वाहन के साथ दौड़ रहे थे। कुछ वाहन को स्पर्श करके ही स्वयं को धन्य कर रहे थे। इस प्रकार, हरदुआ खुर्द में भी लगभग यही हाल था।
अपराह्न पौने दो बजे यह रैली जबेरा पहुंची। यहां के लोगों का उत्साह देखते ही बनता था। यहां पर अनेकों तोरणद्वार बनाए गए थे– एक नगर के प्रवेश द्वार पर, एक निकासी द्वार पर तथा कई बाज़ार के बीच में। प्रवेश और निकासी द्वारों पर सड़क के दोनों ओर महिलाएं और बच्चे आरती के थाल एवं कलश लिए खड़े थे, पुष्पवर्षा हो रही थी तथा ढोल बज रहे थे। भीड़ का आलम यह था कि पूरा जबेरा नगर पार करने में रैली को लगभग एक घण्टा लगा।

रास्तेभर जहां पर भी महाराजश्री का वाहन धीमा होता, वहां पर खड़े दर्शनार्थी उनके ऊपर पुष्पवर्षा करते थे। आपश्री ने खिड़की का शीशा ऊपर चढ़ाकर आशीर्वाद देने हेतु अपना हाथ थोड़ा सा बाहर निकाल लिया। तब लोग वाहन के साथ दौड़कर उस हाथ को स्पर्श करने लगे। छोटे बच्चे उछलते और हाथ को पकड़ लेते थे। भक्तगण गुरुवरश्री का हाथ अपने सिर पर रखकर प्रफल्लित हो रहे थे। परम कृपालु गुरुवरश्री स्नेह एवं प्रेमवश इस पीड़ा को सहन करते रहे और अपना भरपूर आशीर्वाद देते रहे।
इससे आगे, पहाड़ी से पहले वंशीपुर ग्राम में तथा कलेहरा, खेड़ा, भाट खमरिया, पिपरिया जुगराज आदि ग्रामों की अपार भीड़ देखने को मिली। यहां पर तोरणद्वार बनाए गए थे, ढोल और बैण्ड बज रहे थे तथा सड़क के दोनों ओर महिलाएं व बच्चे आरती थाल एवं कलश लिए खड़े थे। घानामैली गांव, हरदुआ सड़क, 17 मील तथा घाट गांव में भी तोरणद्वार बनाकर लोगों ने रैली का भव्य स्वागत किया। लम्बे समय से प्रतीक्षारत पुरुष, महिलाएं और बच्चे परम पूज्य गुरुवरश्री की एक झलक पाने के लिए मार्ग के दोनों ओर, छतों पर व जिसे जहां पर जो जगह मिली, वहां से खड़े उत्सुकताभरी निगाहों से देख रहे हैं। आनन्दातिरेक के आंसुओं से भरी उनकी आंखें और उनकी विह्वलता देखते ही बनती थी।
नोहटा में भारी भीड़ थी। यहां पर तोरणद्वार बनाया गया था और सड़क के दोनों ओर महिलाएं एवं बच्चे आरती थाल व कलश लिए खड़े थे, बैण्ड बज रहा था तथा इसके साथ-साथ ठण्डे पेयजल के पाउच और नमकीन वितरित की गई। अपराह्न चार बजे रैली अभाना पहुंची। यहां पर भी अपार भीड़ थी। ढोल की ध्वनि पर हर्षित लोग नृत्य कर रहे थे। भव्य तोरणद्वार पर सड़क के दोनों ओर महिलाएं एवं बच्चे आरती थाल एवं कलश लिए खड़े थे तथा शंखध्वनि हो रही थी।
इसके बाद, विसनाखेड़ी, हथिनी एवं मारूताल में उमड़े जनसमूह ने तोरणद्वार बनाकर, ढोल बजाकर और शंखध्वनि करके रैली का भव्य स्वागत किया था।
सायं पांच बजकर दस मिनट पर रैली दमोह नगर के प्रवेश द्वार पर पहुंची। यहां पर तोरणद्वार बना था और सड़क के दोनों ओर महिलाएं व बच्चे कलश एवं आरती थाल लिए खड़े थे। ढोल बज रहे थे, पुष्पवर्षा हो रही थी और शंखध्वनि भी हो रही थी। सैकड़ों लोग संगठन के बैनर्स लिए रैली के साथ चल रहे थे। बीच बाज़ार में भी रैली के स्वागत के लिए तोरणद्वार बनाया गया था। भारी भीड़ होने के कारण धीरे-धीरे चलते हुए पौने छः बजे रैली उस स्थान पर पहुंचकर सम्पन्न हुई, जहां पर परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् को शिविर के दौरान निवास करना था। आवास की छत पर पहुंचकर महाराजश्री ने शिविरार्थियों को अपना दिव्य आशीर्वाद प्रदान किया। तदुपरान्त, रात्रिभोजनोपरान्त सभी ने रात्रि विश्राम किया।

प्रारम्भिक तैयारियां
इससे पहले भगवती मानव कल्याण संगठन के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने दमोह में शिविर स्थल की सफाई करके चिन्तन पण्डाल, मंच एवं आवासीय पण्डाल के निर्माण का कार्य किया। देश-विदेश से लाखों शिष्य एवं श्रद्धालु सीधे दमोह पहुंच गए थे।
भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में इस शिविर के लिए पैम्फ्लेट्स वितरित करके खूब प्रचार किया था। देश-विदेश में वृहद् स्तर पर की गई आरतियों, महाआरतियों एवं श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठों के आयोजन के माध्यम से भी काफी प्रचार हुआ था। इसके अतिरिक्त, दमोह की ओर आने वाले मुख्य मार्गों पर बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाए गए थे। खासकर, दमोह के प्रत्येक गांव में कार्यकर्ताओं ने पहुंचकर क्षेत्रीयजनों को आमंत्रित किया। इस प्रकार, इस शिविर का व्यापक प्रचार हुआ था।
यही कारण है कि परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के ओजस्वी चिन्तन को सुनने के लिए दमोह में अपार जनसमूह उमड़ा। इनमें से लगभग दस हज़ार लोगों ने गुरुदीक्षा ग्रहण की। इस बीच, भोजन एवं शान्ति व्यवस्था सुचारू रूप से चली। संगठन के पांच हज़ार से भी अधिक सक्रिय कार्यकर्ताओं ने इस शिविर की सभी व्यवस्थाएं पूर्ण कीं।

योगक्रम

दैनिक कार्यक्रम
शिविर पण्डाल में पहले दिन प्रातः 06 से 08 बजे तक योगाभ्यास, मंत्रजाप एवं ध्यानसाधना का क्रम सम्पन्न हुआ, जिसे शक्तिस्वरूपा बहन संध्या योगभारती जी ने सम्पन्न कराया। अपराह्न दोनों दिन 04 से 05 बजे तक भावगीतों का कार्यक्रम होता था, जिसके अन्तर्गत विभिन्न शिष्यों एवं श्रद्धालुओं के द्वारा अपने भावसुमन अर्पित किये जाते थे। तदुपरान्त, ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाए जाते थे। इस बीच परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का शुभागमन होता था और शक्तिस्वरूपा तीनों बहनों पूजा, संध्या एवं ज्योति योगभारती जी के द्वारा उनके पदप्रक्षालन व वन्दन के उपरान्त आपश्री की अमृतवाणी सुनने को मिलती थी।
तदुपरान्त, दिव्य आरती होती थी, जिसका नेतृत्व तीनों बहनों के द्वारा किया जाता था। अन्त में, महाराजश्री की चरणपादुकाओं का स्पर्श करके शिविरार्थी प्रसाद ग्रहण करते थे। महाराजश्री मंच पर तब तक विराजमान रहते थे, जब तक सभी उपस्थित जन प्रणाम नहीं कर लेते थे।

प्रथम दिवस- दिव्य उद्बोधन
‘माँ’ शब्द बोलने मात्र से ही अपार शान्ति एवं अपनेपन का अहसास होता है। इसकी गहराई न तो आज तक कोई पा सका है और न ही पा सकेगा। आज का मनुष्य यदि इसकी गहराई में डूब जाता, तो आज वह चेतनता का जीवन जी रहा होता। ‘माँ’ ही हम सबकी जननी हें। यदि हम अपनी आत्मा की जननी से अपने सम्बन्ध को समझ जायं, तो कोई समस्या ही न रहे।
हमारे सभी ऋषियों ने कहा है कि हमारे शरीर में सारा ब्रह्माण्ड समाहित है। वेद आत्मज्ञान का छोटा सा अंश है। ऋषियों ने आत्मा का शोधन करके समाज को ज्ञान दिया। उनमें नए स्वर्ग की रचना करने की सामर्थ्य थी।
आज का समाज भौतिकता में डूबे होने के कारण असमर्थ है। वह आत्मा की ओर देखना ही नहीं चाहता। आत्मा, गुरुसत्ता और प्रकृतिसत्ता में कोई भेद नहीं है। मेरे द्वारा आत्मा को जानने का बहुत सरल मार्ग दिया गया है।
वेद-शास्त्र और पुराण जीवन जीने का ज्ञान देते हैं। आज ग्रन्थों के ज्ञानी तो बहुत हैं, किन्तु आत्मज्ञानी कोई नहीं है। सबके सब रट्टू तोता बनकर तृप्ति प्राप्त कर रहे हैं। वे पूरा जीवन ग्रन्थों के अध्ययन और उनको सुनाने में लगा देते हैं। आज ज्ञान व्यावसायिक बन गया है और इसीलिए समाज का पतन हो रहा है।
आपका गुरु इससे कोसों दूर है। समाज के साथ मेरा रिश्ता धन को लेकर नहीं है, बल्कि आत्मा का रिश्ता है। यह सम्बन्ध उसके कल्याण के लिए रहता है। दूसरे धर्मगुरुओं का लक्ष्य समाज से सौदागिरी करना है, जब कि मैं समाजकल्याण के लिए साधनारत रहता हूँ। मेरे सामने उपस्थित होने वाला कभी भी खाली हाथ नहीं जाता है।
मेरी यात्रा पूर्णरूप से साधनात्मक है। आप लोगों का एक-एक पल मेरे ऊपर ऋण है। इसीलिए मैं आपको अपनी साधनात्मक ऊर्जा प्रदान करता हूँ। मैं कभी भी कहीं पर भी अपना स्वागत नहीं कराता। मेरी तीनों बच्चियां मेरे चरणपूजन करती हैं, वह भी केवल शिविर के समय, अन्यथा बाद में कभी नहीं।
मैंने शिखर से शून्य की यात्रा आप लोगों को शिखर पर लेजाने के लिए की है। दूसरे धर्मगुरुओं की तरह मैं भी धनाढ्यों के साथ सम्बन्ध बनाकर धन अर्जन कर सकता था, किन्तु मैंने गरीब एवं असहाय लोगों को अपनाया है।
वर्तमान युग ‘माँ’ का युग है। इस काल में सब कुछ सम्भव है। मैंने विश्व अध्यात्मजगत् को साधनात्मक चुनौती दी है। मैं सामान्य सा जीवन जीता हूँ, कम भोजन करता हूँ और प्रतिदिन दो-ढाई घण्टे से अधिक विश्राम नहीं करता। परमसत्ता ने जो स्थान मुझे दे रखा है, उससे बड़ा कोई पद नहीं है। मैं ऋषि था, ऋषि हूँ और ऋषि ही रहूंगा। ऋषित्व पूर्णत्व का जीवन है।
‘माँ’ की कृपा प्रेम और भक्ति से मिलती है। अपने हृदय को ‘माँ’ का मन्दिर बना लो। इस हेतु अपने आचार-विचार-व्यवहार में परिवर्तन लाना होगा। अपनी आत्मा पर पड़े हुए विकारों के आवरणों को हटाते चले जाओ। इनसे ऊर्जा का ह्रास होता है। इसीलिए अपने विचारों को दिशा दो। संकल्प ले लो कि नशे-मांस का सेवन न करके चरित्रवान् जीवन जियेंगे। विकारों को भगाओ। इसके बिना कुण्डलिनी के सातों चक्र जाग्रत् नहीं हो सकते। गीता-भागवत् को रटने की बजाय, उन पर अमल करना होगा।

मैं स्वयं ऐसा जीवन जीता हूँ। शादी के पहले पूर्ण ब्रह्मचर्य, शादी के बाद एक पत्नी/पति व्रत का पालन और सन्तानोत्पत्ति के उपरान्त पुनः सपत्नीक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता हूँ। तुम लोग पुत्र प्राप्ति के लिए परेशान रहते हो। मैंने ‘माँ’ से प्रार्थना की थी कि मेरे यहां जब भी सन्तान का योग हो, तो मात्र पुत्रियां ही आएं। और, मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे तीन पुत्रीरत्न ही प्राप्त हुए हें। मेरा परिवार सबसे सुखी और शान्त है।
आप जानते हैं कि छः महीने का बच्चा अपनी माँ से कभी भी अलग नहीं होना चाहता। आप भी प्रकृतिसत्ता से ऐसा सम्बन्ध स्थापित कर लो। तुम लोग माता भगवती से पता नहीं क्या-क्या मांगते रहते हो। यदि मांगना ही है, तो उनसे केवल भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति मांगो। इन तीनों में दुनिया की सारी चीज़ें समाहित हैं। ‘माँ’ से केवल उनकी कृपा मांगो। तब फिर कुछ भी मांगने की ज़रूरत नहीं होगी। शान्ति और शक्ति में सब कुछ समाहित है।
शान्ति के साथ शक्ति नितान्त आवश्यक है। यदि शक्ति नहीं है, तो जीवन में निष्क्रियता आ जाएगी। आजकल समाज में शान्त लोगों की कमी नहीं है, किन्तु वे सब निष्क्रिय हैं। आत्मा की शक्तियों को जानने का प्रयास करो। नित्यप्रति ‘माँ’-ऊँ बीजमंत्रों का क्रमिक उच्चारण करो। इससे शान्ति एवं शक्ति दोनों प्राप्त होंगी।
कुण्डलिनी जागरण कठिन नहीं है, किन्तु लम्बी यात्रा ज़रूर है। अपने आपको निर्मल, पवित्र और चेतनावान् बनाओ तथा विषयविकारों से दूर रहो। तब तुम्हारी सन्तानें भी ऐसी होंगी, जो अनीति-अन्याय-अधर्म के सामने घुटने नहीं टेकेंगी। मैंने इनसे कभी भी समझौता नहीं किया है।
इस कलिकाल में यदि आप अपनी जननी को नहीं पुकार सके, तो पतन निश्चित है। मैं समाज का आवाहन करता हूँ कि भगवती मानव कल्याण संगठन से जुड़ें। आज धर्म के नाम पर खून-खराबे हो रहे हैं, जब कि मानवता का धर्म सबसे बड़ा धर्म है।
अपने सुधार के लिए संयम, सेवा और साधना ज़रूरी हैं। आप लोग मन्दिर-मस्जिद-गुरुद्वारे ज़रूर जाओ, किन्तु आपका मुख्य ध्यान अपनी आत्मा की ओर रहना चाहिए। देखा जाय, तो आज धर्म भटका हुआ है।
आज मन्दिर-मठों में बैठे हुए धूर्त लोग माया में सबसे अधिक लिप्त हैं और कहते हैं कि ‘माया महाठगिनी मैं जानी।’ वे सब अन्दर से खोखले हैं और ध्यान-साधना से कोसों दूर हैं। उनमें अपना सूक्ष्म शरीर जाग्रत् करने की क्षमता नहीं है। इसीलिए समाज का पतन हो रहा है। वे साधनाशून्य हैं। और, अगर नहीं हैं, तो मैं ससम्मान उन्हें चुनौती देता हूँ। वे आएं और मेरी साधनात्मक क्षमता का सामना करें।
अब समाज को जगाने का वक्त आ गया है। आज अभी भी अनेक आसाराम बापू समाज में मौजूद हैं, जो दिन में राम-राम और रात में पौवा चढ़ाते हैं। उनके आश्रमों में विदेशियों को बीयर परोसी जाती है।
‘माँ’ के सामने नित्य गिड़गिड़ाओ। उनसे सच्चे मन से प्रार्थना करो। अपने टूटे-फूटे शब्दों में भाव जाग्रत् करो। कहो कि हे माँ, आपकी कृपा से हम आपकी स्तुति कर रहे हैं। हे ममतामयी, करुणामयी माँ, हमें अपनालो। हमें हमारे विकारों से मुक्त कर दो। हे माँ, हमें अपने से दूर मत करो। हमें भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति के अतिरिक्त कुछ भी नहीं चाहिए। आपका भाव निष्ठा, विश्वास और समर्पण से भरा होना चाहिए तथा हृदय द्रवित और शरीर रोमांचित होजाना चाहिए। इससे आपका अन्तर्मन आनन्द से भर जाएगा, सतोगुणी कोशिकाएं जाग्रत् हो जाएंगी और रजोगुण-तमोगुण दबते चले जाएंगे।
लोग सुबह आठ बजे तक पड़कर सोते हैं और पूजा में समय ऐड्जस्ट करते हैं। एक सौ आठ दानों की माला फेरने की बजाय, सच्चे मन से यदि ग्यारह बार मंत्र का उच्चारण कर लोगे, तो अधिक फलीभूत होगा। ‘माँ’ को केवल मानने से नहीं, बल्कि उसे जानने से कल्याण होगा। ‘माँ’ ने तुम्हें इस जग में किस निर्मल-निश्छल रूप में भेजा था और अब क्या बन गए हो? ज़रा सोचो! तुम नशा-मांसाहार करते हो, भ्रष्टाचार-दुराचार करते हो और अन्याय-अधर्म करने से भी नहीं चूकते हो। तुमने समाज में जातपांत की खाई खोद डाली है। इससे ‘माँ’ कभी प्रसन्न नहीं होतीं।
मैंने आठ महाशक्तियज्ञ समाज के बीच में समाज को जगाने के लिए किये हैं। तब मैंने कहा था कि मेरे हर यज्ञ में बरसात होगी और वास्तव में हुई, जब कि वे अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मौसमों में किये गये थे। भीषण होती हुई बरसात को मैंने रोका था और ‘माँ’ के हृदय में मैंने अपनी छवि दिखाई थी। इस समय यहां पर इन्द्रपाल आहूजा और कमलेश गुप्ता जैसे कई लोग बैठे हैं, जो इन बातों के साक्षीभूत रह चुके हैं। आप उनसे मिलें और जानें कि क्या वास्तव में ऐसा हुआ था? किन्तु, साधना धर्म की रक्षा के लिए होती है, चमत्कार दिखाने के लिए नहीं।
आज 108 और 1008 कुण्डीय यज्ञ हो रहे हैं। धन ऐंठने के लिए किराए के पण्डित बुलाए जाते हैं। वहीं मेरे भी यज्ञ हुए हैं। इनमें से हर यज्ञ में ग्यारह दिन का समय लगता है और प्रत्येक दिन आठ घण्टे एकासन पर बैठकर आहुतियां देनी होती हैं। साधना पूर्ण होगी, या यह शरीर नष्ट होगा- यह संकल्प रहता है। रीवा के यज्ञ में एक मरणासन्न रोगी को यज्ञवेदी के सामने बैठाकर बिना किसी दवाई और स्पर्श के ठीक किया गया। ग्यारह दिन के बाद वह खुद चलकर गया। सत्यधर्म आज भी समाज में जीवित है।
एक यज्ञ में अग्नि की लपटें मेरे शरीर को स्पर्श कर रही थीं, किन्तु मेरे एक रोम को भी नहीं जला पा रही थीं। और, दूसरे लोग यज्ञवेदी से चार-पांच फट की दूरी पर भी नहीं बैठ सके थे। इस सबका लक्ष्य चमत्कार दिखाना नहीं था, बल्कि लोगों में धर्म के प्रति विश्वास जगाना था।
मेरा कोई भी शिष्य गरीब ज़रूर हो सकता है, किन्तु चेतनाविहीन नहीं हो सकता। जनकल्याण से बड़ा कोई धर्म नहीं है। सत्कर्म करना शुरू कर दो। इसके लिए धन की ज़रूरत नहीं है। भौतिकता में ऊपर की ओर नहीं, नीचे की ओर देखो। इसी प्रकार, अध्यात्म में नीचे नहीं, ऊपर की ओर देखो। तब तुम स्वयं को करोड़ों लोगों से ऊपर पाओगे। ऐसे अभावग्रस्त लोगों को तुम देना शुरू कर दो, तो ‘माँ’ तुम्हें देना शुरू कर देंगी।
मुकेश अम्बानी हों या कोई और, सभी ने बेईमानी की नींव पर महल खड़े किये हुए हैं। ऐसे लोगों के जीवन को देखो, कितने अशान्त हैं!
रामदेव के द्वारा योग के नाम पर देश को लूटा गया और बेईमान राजनेता उसे सहयोग देते रहे। इसके फलस्वरूप उसने बड़े-बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठान खड़े कर लिये। पहले कहा करते थे कि सूक्ष्म शरीर होता ही नहीं हैं, कोई देवी-देवता होते नहीं हैं। आज वही रामदेव कहते हैं कि सूक्ष्म शरीर होता है। जब उनके द्वारा भारी शुल्क लेकर योग शिविर लगाने की आलोचना मेरे द्वारा की गई, तो अब निःशुल्क शिविर लगाना शुरू कर दिये।
किसी का बेटा या बेटी खो जाता है, तो वह इसके लिए मीडिया में विज्ञापन देता है। रामदेव के गुरु खोगये, किन्तु उसने उन्हें खोजने का कोई प्रयास नहीं किया। धिक्कार है ऐसे शिष्य को!
दिल्ली के रामलीला मैदान में जब पुलिस पीछे पड़ी, तो रामदेव वहां से महिलाओं के कपड़े पहनकर भागे और फिर भी पकड़े गए। उस समय कहां गया उनका योगबल? उसके बाद, अपने संस्थान में पहुंचकर फूट-फूटकर रोए। एक वास्तविक योगी अपने इष्ट के सामने तो रो सकता है, किन्तु आम जनता के सामने कभी भी नहीं रोएगा।
पांच-सात दिन भोजन न मिलने के कारण रामदेव का क्या हाल हुआ? यह सब जानते हैं। मैं जब तक चाहूं, बिना भोजन किए रह सकता हूँ। इससे मेरे तन-मन पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है।
रामदेव कहते हैं कि वह कभी झूठ नहीं बोलते। ज़रा मेरे सामने आएं, मैं उनके हज़ारों झूठ गिना दूंगा। मेरे पास उसकी सब रिकार्डिंग रखी हैं। क्या समाज में उसके विरुद्ध कोई आवाज़ नहीं उठाएगा? मेरी आवाज़ को कोई दबा नहीं पाएगा और सत्य की मेरी यात्रा को कोई रोक नहीं पाएगा। मैं किसी का अपमान नहीं करता, किन्तु अन्याय-अधर्म के विरुद्ध समाज को जगाने के लिए कहना मेरा धर्म है। राजसत्ता यदि किसी अधर्मी-अन्यायी को सम्मानित करती है, तो मैं उसका घोर विरोध करता हूँ।
अपने आपको ब्रह्मर्षि कहने वाले कुमारस्वामी बीजमंत्र बेचकर लोगों को लूट रहे हैं। इसी तरह निर्मल बाबा लोगों को ठग रहे हैं। आखिर, कब तक लुटते-पिटते रहोगे?
नरेन्द्र मोदी का मैं एक सीमा तक समर्थक हूँ, किन्तु उनके द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई कार्य नहीं हुआ है। उपयुक्त समय आने पर मैं उनके खिलाफ भी आवाज़ उठाऊंगा।
गत फरवरी 2015 के भोपाल शिविर में मैंने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से बात की थी कि यदि इस प्रदेश को नशामुक्त घोषित कर दो, तो मैं अपने शिष्यों को आपके समर्थन में उतार दूंगा, किन्तु कुछ नहीं हुआ।
अधिकतर राजनेता स्वयं शराबी हैं। इसीलिए शराब बन्द नहीं करते। उनसे मेरा कहना है कि यदि पेट भर गया हो, तो अब भी सुधर जाओ। हम पुरानी बातें नहीं उखाड़ेंगे। हम सुधार चाहते हैं।
शहरों में बड़े-बड़े भूखण्ड राजनेताओं और उद्योगपतियों के होते हैं, जब कि बेचारा गरीब 10 बाई 10 फट की ज़मीन को तरस रहा है।
पुलिस भर्ती में भारी भ्रष्टाचार होता है। लाखों रुपए देने पड़ते हैं, तब कहीं जाकर नौकरी मिलती है। और, यह पैसा नेताओं तक जाता है। फिर पुलिस वाले कैसे ईमानदार रहेंगे?
इसीलिए मैंने समाज को तीन धाराएं प्रदान की हैं– मानवता की सेवा के लिए भगवती मानव कल्याण संगठन, धर्म की रक्षा एवं व्यक्ति के परिष्कार के लिए पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम तथा राष्ट्ररक्षा के लिए भारतीय शक्ति चेतना पार्टी। राजनेताओं को लुटेरा नहीं, बल्कि समाजसेवक होना चाहिए। एक दिन हमारी भारतीय शक्ति चेतना पार्टी का कोई साधक या साधिका दिल्ली के लाल किले पर तिरंगा ज़रूर फहराएगा। किन्तु, मैं किसी को भी अपने आशीर्वाद से नहीं जिताऊंगा। कर्म करो, आगे बढ़ो और स्वयं जीतो।
नशामुक्ति के लिए राजसत्ता को मैंने एक निर्धारित समय दिया है और सहयोग देने के लिए भी कहा है, किन्तु हम कब तक वेदना सहेंगे? आठ-नौ साल के बच्चे पेरे पास आकर रोते-गिड़गिड़ाते हैं और कहते हैं-गुरुजी, हमारे पिताजी की शराब छुड़वा दो। हम बहुत दुःखी हैं। हम पढ़ना चाहते हैं, लेकिन फीस देने के लिए पैसे नहीं हैं।
मेरे 1000 शिष्यों में से 999 पूर्ण नशामुक्त-मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् हैं। उनमें जो गलती करते हैं, उन्हें दण्डित भी किया जाता है।
थाने में गरीब बेकसूर आदमी को माँ-बहन की गालियां सुनाई जाती हैं और अधर्मी-अन्यायियों को कुर्सी पेश की जाती है। इस तरह गुण्डा तत्त्व फल-फूल रहा है और आम आदमी उनसे त्रस्त है।
आज हालत यह है कि एक चौराहे पर यदि एक अधर्मी-अन्यायी खड़ा है, तो दस ईमानदार शरीफ लोग उसके सामने सिर झुकाकर निकलते हैं। तुम एक जीवन मुझे समर्पित कर दो। मैं वह दिन देखना चाहता हूँ कि यदि एक शरीफ आदमी कहीं खड़ा है, तो दस अधर्मी-अन्यायी उसके सामने से गर्दन झुकाकर जाएं।
गांधी जी के तीन बन्दरों के द्वारा दिया गया सन्देश वह नहीं है, जो लिया जा रहा है। उनका सन्देश, वास्तव में, यह था कि यदि कहीं पर बुराई हो रही है, तो अपने आंख-कान-मुंह खुले रखो। और, अगर ज़रूरत पड़े, तो दोनों हाथ भी खुले रखो। नहीं तो, बुराई इसी तरह बढ़ती चली जाएगी।
यदि कोई तुम्हारी तरफ एक हाथ उठाए, तो उसे चेतावनी दे दो। यदि फिर भी उठाय, तो उसका हाथ तोड़ दो, जिससे वह दुबारा हाथ उठाने लायक न रहे। याद रखो कि हम शान्ति के उपासक हैं, किन्तु शक्ति के साधक भी हैं। हमारे देवी-देवताओं के हाथों में जो अस्त्र-शस्त्र हैं, वे अनीति-अन्याय-अधर्म को खत्म करने के लिए ही हैं।
दूसरों को जीतने की बजाय, स्वयं को जीतो। तब सारी दुनिया तुम्हारे साथ खड़ी नज़र आएगी।
नारी, तुम शक्तिस्वरूपा हो। तुम्हारी एक हुंकार से अधर्मी-अन्यायियों के दिल कांपने चाहिएं। तुम उनकी आंखें फोड़ने के लिए तैयार रहो।
किसी की हत्या करने की अपेक्षा, यदि उसे नशे-मांस से मुक्त कर दोगे, तो समझो कि तुमने एक बड़ा धर्मयुद्ध जीत लिया।
धर्मवान् का सदैव सम्मान करो। हमारा किसी से विरोध नहीं है। हम अनीति-अन्याय-अधर्म के विरोधी हैं। जीवन में संघर्ष अवश्य आएंगे, किन्तु उनसे घबड़ाओ मत। उनका सामना करो। जब जीवन में संघर्ष आएंगे, तभी तो उनसे टकराने के लिए ‘माँ’ से सामर्थ्य मांगोगे।
निष्ठा और विश्वास के बल पर कोई भी कार्य करना असम्भव नहीं है। युग परिवर्तन चल रहा है। करोड़ों-करोड़ लोगों को नशे-मांसाहार से मुक्त कराया गया है, जो आज दूसरों को नशे-मांस से मुक्त करा रहे हैं।
यदि मुझे कुछ देना चाहते हो, तो अपने अवगुण समर्पित कर दो। इसके फलस्वरूप मैं तुम्हें अब तक किये गए सारे पापों से मुक्त कर दूंगा। संघर्षों में यदि कहीं पर तुम्हें एक कांटा लग रहा होगा, तो तुम्हारा गुरु और परमसत्ता उस पर मरहम लगा रहे होंगे। दुनियाभर में तुम कहीं भी घूम लो, तुम्हें उतनी शान्ति नहीं मिलेगी, जो ‘माँ’ की आराधना में मिल जाएगी।
मेरा एक-एक शिविर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इनमें सम्पन्न होने वाली दो दिव्य आरतियों का लाभ सालभर की साधना से अधिक है।
इस धरा पर मुझ जैसा धनी कोई नहीं है। मैं किसी देवी-देवता का अवतार नहीं हूँ। मैं परम सिद्धाश्रम धाम के ब्रह्मर्षि योगेश्वर स्वामी सच्चिदानन्द का स्वरूप हूँ। मेरे शिष्य सिर कटा सकते हैं, किन्तु झुका नहीं सकते।
कल सुबह सात बजे दीक्षा होगी। मेरे द्वारा दीक्षा मात्र शिविर में ही दी जाती है। बाद में करोड़ों रुपए देकर भी प्राप्त नहीं की जा सकती। आज तो कुछ धर्मगुरुओं के द्वारा फोन पर दीक्षा दे दी जाती है। मेरे यहां दीक्षा का कोई शुल्क नहीं रहता। मैं अपना तथा अपने परिवार का जीविकोपार्जन अपने कर्मबल से उपार्जित धन से करता हूँ, दान से नहीं। मेरे आश्रम में कहीं पर भी कोई दानपात्र आदि नहीं रखा है। यही शिक्षा मैंने अपनी पुत्रियों को भी दी है।
जाति मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती। छुआछूत जघन्य अपराध है। किन्तु, शुद्धता का ध्यान अवश्य रखता हूँ। मैं सभी जाति और धर्मों के लोगों के द्वारा छुआ और बनाया हुआ भोजन कर लेता हूँ।
मेरी शुद्धता और सफाई मोदी जैसी नहीं हैं। मोदी जी ने सफाई अभियान शुरू किया, बड़ी अच्छी बात है। किन्तु, पहले अपने विभागों की सफाई कराओ। भ्रष्ट विधायकों और सांसदों की सफाई करो।
गाय का संरक्षण करने वाली संस्थाएं प्रायः भ्रष्ट हैं और व्यापार करती हैं। गोवंश से भरे पकड़े गए ट्रकों को पैसे लेकर छोड़ देती हैं। हिन्दुत्व की बात करने वाले 75 प्रतिशत लोग नशे में डूबे रहते हैं। तब, इस देश को विश्व का धर्मगुरु कैसे बनाएंगे?
मोदी के सामने अभी वक्त है। कार्य करो, नहीं तो सत्ता किसी की बपौती नहीं है। उद्योगपतियों के पक्ष में ही कार्य मत करो, गरीबों की ओर भी देखो। जब से मोदी सत्ता में आए हैं, साम्प्रदायिकता बढ़ी है। देश के बच्चों को साम्प्रदायिकता के विष से बचाओ। यदि उनमें साम्प्रदायिकता भर गई, तो उन्हें संभाल पाना मुश्किल हो जाएगा। आज सम्प्रदायवादी भगवाधारी आम आदमी को दस-दस बच्चे पैदा करने की बात करते हैं। अरे धूर्तों, तुमसे तो एक भी पैदा नहीं किया गया।
नक्सलवाद हमारे राजनेताओं की देन है। एक दल उसका विरोध करता है, तो दूसरा उसका पक्ष लेने लगता है। किन्तु, समस्या को कोई सुलझाना नहीं चाहता। एक नक्सलवादी मरता है, तो दस-दस जवान शहीद होते हैं। उनके घर वालों की वेदना को महसूस करो, जिनके वे पिता, पुत्र या पति हैं।
अन्त में, दोनों हाथ उठवाकर सबको संकल्प दिलाया गयाः मैं नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीता हुआ धर्मरक्षा, राष्ट्ररक्षा तथा मानवता की सेवा के लिए सदैव समर्पित रहूंगा/रहूंगी।

द्वितीय दिवस- गुरुदीक्षा क्रम
शिविर के अन्तिम दिन सभी दीक्षार्थी शिविर पण्डाल में प्रातः 07ः00 बजे से पहले ही पहुंच गए थे। ठीक समय पर परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का शुभागमन हुआ। दीक्षा प्रदान करने से पूर्व महाराजश्री ने एक संक्षिप्त उद्बोधन दियाः
गुरु-शिष्य का रिश्ता ऐसा है, जो इस भूतल पर सर्वश्रेष्ठ होता है। यह आत्मीयता का रिश्ता है। एक गुरु अपने शिष्यों का सदैव कल्याण चाहता है। आप लोग चेतनावान्-चरित्रवान्-कर्मवान् बन सकें, यही मेरा चिन्तन रहता है। इसमें प्रकृतिसत्ता की कृपा रहती है। मैं अपना चरणपूजन नहीं कराता हूँ। मैं स्वयं आप लोगों को अपने चिन्तन में लेकर, अपने हृदय में धारण करके आपका पूजन करता हूँ। दूसरे धर्मगुरु घण्टों अपना पूजन करवाते हैं और विविध प्रकार की धन-सामग्री मंगवाते हैं। मेरे लिए सबसे बड़ा समर्पण यह होता है, जब आप नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीने का संकल्प लेते हैं। इससे समाज में तीव्र गति से बदलाव चल रहा है।
दीक्षा लेते ही आपको भी उन करोड़ों लोगों के साथ जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त हो जाएगा, जो समाज में परिवर्तन डाल रहे हैं। धर्म-सम्प्रदाय मेरे लिए बेमानी हें।
दीक्षा कक्षा में प्रवेश लेने के समान है। मात्र प्रवेश लेने से शिक्षा प्राप्त नहीं होती है। प्रवेश के उपरान्त नियमित रूप से पढ़ाई करनी होती है। तब कहीं जाकर सफलता मिलती है। आपने गुरु को स्वीकार कर लिया और गुरु ने आपको स्वीकार कर लिया। खाली इससे काम नहीं चलेगा। आपको गुरु के आदेश का पालन करना होगा। यदि ऐसा करोगे, तो आपके अन्दर वह पात्रता आजाएगी कि आप दीनों-हीनों का जीवन नहीं, चेतनावानों का जीवन जियेंगे।
गुरु कभी भी अपने शिष्यों का त्याग नहीं करता। शिष्य यदि गुरुआज्ञा के विपरीत चलेगा, तो वह स्वयं दूर होता चला जाएगा। मेरे लिए धन महत्त्वपूर्ण नहीं है। मेरा सबसे प्रिय शिष्य वह है, जो भावनावान् है, आज्ञाकारी है, भले ही वह निर्धन हो।
यह एक बहुत बड़ी भ्रान्ति है कि दीक्षा प्राप्त करके पति-पत्नी भाई-बहन बन जाते हैं। आपके सामाजिक रिश्ते वही बने रहेंगे। मैं अपने शिष्यों को कभी भी बांधकर नहीं रखता। यदि तुम्हें कभी ऐसा लगे कि तुम किसी दूसरी जगह से अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकते हो, तो तुम वहां जाने के लिए स्वतंत्र हो।
मैंने ‘माँ’ की कृपा के फलस्वरूप असम्भव से असम्भव कार्य किये हैं। आप भी उसी दिशा में बढ़ें।
आप अपने घर में अपनी व्यवस्था के अनुसार पूजा का एक स्थान नियत कर लें। यदि अलग से पूजनकक्ष नहीं है, तो किसी अलमारी में, आले में या दीवार पर छवि लगा सकते हैं। किसी भी देवी-देवता को स्नान कराने या पुष्प आदि चढ़ाने का कार्य पहले या बाद में कर सकते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। घर में नशे-मांस का सेवन नहीं होना चाहिए। आपके परिवार के अन्य लोग भी नशे-मांस से मुक्त हो जाएंगे। उन्हें समझाते रहिये।
कल तक आप कुछ भी करते रहे थे, आज स्वयं को बदलने का यह अवसर मिला है। यह आपका नया जन्म होगा। एक बार एक दृढ़ संकल्प ले लें, किन्तु उसमें कोई विकल्प नहीं होना चाहिए, वह कभी टूटे नहीं। अपने अवगुणों को त्यागकर आगे बढ़ें। तब कभी आपका पतन नहीं होगा, उत्थान ही होगा।
हज़ारों मील दूर रहकर भी यदि पुकारेंगे, तो कहीं न कहीं आपको गुरु का सहारा अवश्य मिलेगा। भगवती मानव कल्याण संगठन से जुड़कर आप लोगों में शान्ति एवं शक्ति आएगी और इस अभियान से जुड़कर आप भी संगठन का कार्य करेंगे।
(अब तीन बार शंखध्वनि की गई और वातावरण की शुद्धि के लिए तीन-तीन बार ‘माँ’-ऊँ का उच्चारण किया गया। तदुपरान्त, सभी दीक्षार्थियों को एक संकल्प कराया गया, जिसका सार यह है कि ‘मैं धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज को अपना गुरु स्वीकार करता हूँ। मैं जीवनपर्यन्त पूर्ण नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् जीवन जीने के साथ गुरुवर जी के हर आदेश का पूर्णतया पालन करूंगा। इसके साथ-साथ भगवती मानव कल्याण संगठन एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम की विचारधारा पर चलूंगा और इसके प्रति पूरी निष्ठा से समर्पित रहूंगा।’)
यह संकल्प आपके जीवन का आधार होगा। यदि इस पर अडिग रहे, तो आपको मुझसे कोई अलग नहीं कर सकेगा। जो व्यक्ति एक कदम मेरी ओर बढ़ता है, उसे मैं दस कदम आगे बढ़कर अपना लेता हूँ और जो एक कदम विपरीत दिशा में चलता है, उसे दस कदम वापस धकेल देता हूँ।
अब निम्नलिखित मंत्रों का तीन-तीन बार उच्चारण कराया गया- 1. बजरंग बली जी की कृपा प्राप्त करने के लिए- ऊँ हं हनुमतये नमः, 2. भैरव देव जी की कृपा प्राप्त करने के लिए- ऊँ भ्रं भैरवाय नमः, 3. गणपति देव जी की कृपा प्राप्त करने के लिए-ऊँ गं गणपतये नमः, 4. ‘माँ’ का चेतना मंत्र- ऊँजगदम्बिके दुर्गायै नमः, 5. गुरुमंत्र- ऊँ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः।
गुरु और ‘माँ’ के मंत्रों में कोई भेद नहीं होता। ‘माँ’ मेरी इष्ट हैं। जो उनके प्रति समर्पित है, वह मुझे भी समर्पित है।
गुरुमंत्र पूजन से पहले और किसी गलती की क्षमा हेतु बाद में भी जाप करें। इससे बहुत लाभ होगा।
दीक्षा के उपरान्त, आप सबको निःशुल्क शक्तिजल प्रदान किया जाएगा। इससे हर प्रकार का लाभ होता है। इसको गंगाजल अथवा नर्मदा जल से मिलाकर बढ़ा लें। परिवार के सदस्यों को सादे जल में दो-चार बूंदें डालकर पिला सकते हैं। समाज में किसी को भी देकर लाभ प्रदान कर सकते हैं, किन्तु उसे नशा-मांसाहारमुक्त होना पड़ेगा।
इसके बाद आप लोग कभी भी आश्रम में आएं। वहां पर सभी को चरणस्पर्श करने तथा बात करने का समय समान रूप से दिया जाता है। ‘साधना संजीवनी’ पुस्तक का अनुसरण करते हुए नित्यप्रति साधना सम्पन्न करें। आश्रम में गत अ-ारह साल से चल रहे श्री दुर्गाचालीसा के अखण्ड पाठ में सम्मिलित हों।
अपने घर पर ‘माँ’ का शक्तिध्वज लगाओ। यह सात्त्विक तरंगों को आकर्षित करता है और इससे सभी प्रकार के ग्रहदोष एवं वास्तुदोष निष्क्रिय होते हैं। मैं हर घर को ‘माँ’ का मन्दिर बनाना चाहता हूँ और हर पल आपका कल्याण चाहता हूँ। भगवती मानव कल्याण संगठन की विचारधारा में आगे बढ़ो। जितना आगे बढ़ोगे, आपका गुरु आपको उतनी ही ऊर्जा प्रदान करता चला जाएगा। आज से आप संगठन के सम्मानित सदस्य बन गए हैं। एक बार आश्रम आकर मूलध्वज मन्दिर, श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मन्दिर, गोशाला तथा पूज्य दण्डी संन्यासी जी की समाधि का लाभ लें।
अन्त में, तीन बार शंखनाद किया गया तथा गुरुचरणपादुकाओं को नमन करते समय सभी दीक्षाप्राप्त नए शिष्यों को निःशुल्क शक्तिजल प्रदान किया गया।

द्वितीय दिवस- दिव्य उद्बोधन
एक-एक शिविर में दस-दस, बीस-बीस हज़ार लोग दीक्षा ले रहे हैं। परिवर्तन चल रहा है। यह सत्य का पथ है। अपने ‘मैं’ को जानने का सतत प्रयास करो कि मैं कौन हूँ? ‘माँ’ से पहले अपने आपको जानो। उन्हें केवल मानना नहीं, जानना होगा। अपने ‘मैं’ को जानने का चिन्तन मेरे द्वारा सबसे पहले दिया गया था, तो अनेक संस्थाओं ने इसका विरोध किया था। किन्तु, आज इतना परिवर्तन आ चुका है कि वे सभी ‘मैं’ को जानने की बात करते हैं।
मेरी विचारधारा को एक-न-एक दिन सबको स्वीकार करना ही पड़ेगा। आखिर एक जीवन में कितने शास्त्रों का अध्ययन कर सकोगे? शास्त्रों में जो कुछ कहा गया है, उस पर अमल करने लगो। आत्मा को यदि स्वीकार कर लो, तो ‘माँ’ के प्रति विश्वास बढ़ता चला जाएगा। इसके लिए सात्त्विकता-पवित्रता का मार्ग है। व्यक्ति का भौतिक परिचय तो अस्थायी है, जब कि असली परिचय उसकी आत्मा है। इसका शोध होना चाहिए। ‘माँ’ की आराधना में जो आनन्द है, वह दुनिया की किसी वस्तु में नहीं है। वह आनन्द स्थायी होता है।
असली आनन्द लेना सीखो। तब बाहर के आनन्द तुच्छ लगेंगे। नित्यप्रति अभ्यास करो। साधना केवल सुबह-शाम की पूजा नहीं है। हर पल साधक बनने का ध्यान रहना चाहिए। विकारों को दूर भगाओ। जो विचार आपके मस्तिष्क को संकुचित कर रहे हैं, उन्हें भगाओ। वे शत्रु के समान हैं। उस दिशा से अपने मन को हटाकर सात्त्विकता की ओर ले जाओ। अपने आभामण्डल को सतोगुणी बनाओ। नकारात्मक विचारों को दूर भगाओ। अन्त में, वह स्थिति आजाएगी कि हर पल ‘माँ’ का अहसास होता रहेगा।
बिना क्रोध आए, आप किसी को एक गाली नहीं दे सकते। विकारात्मक भाव के बिना कोई भी विषयभोगों की ओर नहीं जा सकता। इसलिए सदैव सात्त्विक विचार बनाए रखो। अपनी कुण्डलिनी के सातों चक्रों को जाग्रत् करो। इसके लिए अपने आज्ञाचक्र का उपयोग करो, उसे प्रभावक बनाओ। तुम अपनी आंखें बन्द करके भी अहसास कर सकते हो कि तुम्हारे आसपास क्या हो रहा है? अपनी शक्तियों को पहचानो। आपके अन्दर अलौकिक शक्तियां भरी हैं। हर पल शोध करो- मैं कौन हूँ और मेरी जननी कौन हैं?
सात विकारों से सदैव सजग रहो। ये हैं नशा, मांस, भ्रष्टाचार, जातीयता, साम्प्रदायिकता, नास्तिकता और विकारात्मक जीवन। आजकल मानवता इनसे जकड़ी हुई है। इसके फलस्वरूप लोग मानसिक रूप से विकलांग हो चुके हैं। 99 प्रतिशत लोगों की मानसिक क्षमता कमज़ोर हो चुकी है। इसी के कारण लोग आत्महत्या कर रहे हैं।
नशे से सबसे अधिक पतन हो रहा है। इससे विनाश हो रहा है, किन्तु राजसत्ता फिर भी ध्यान नहीं दे रही है। नित नए शराब के ठेके उठ रहे हैं और दुकानें खोली जा रही हैं। क्या इसी तरह यह देश जगद्गुरु बन जाएगा? भगवती मानव कल्याण संगठन आज नशामुक्ति के प्रयास में लगा है। इसके फलस्वरूप करोड़ों लोग नशामुक्त चरित्रवान् जीवन जी रहे हैं। मेरे आश्रम में आकर देखो। दस-दस, पन्द्रह-पन्द्रह लोग एक साथ शराब छोड़ने आते हैं। आखिर, वह कौनसी शक्ति है, जो उन्हें उधर खींच रही है? नशा छोड़ने के लिए वहां पर कोई दवाई नहीं दी जाती, किन्तु 99 प्रतिशत लोग वहां से नशामुक्त होकर जाते हैं। शासन एक ओर शराब का ज़हर पिला रहा है तथा दूसरी ओर उससे मुक्ति के लिए शिविर लगाता है। यह कैसी विडम्बना है?
दूसरी वस्तु मांस है। जैसा भोजन करोगे, वैसे विचार बनेंगे। जीवों को प्रायः तड़पा-तड़पाकर मारा जाता है। कहते हैं कि इससे उनका मांस टेस्टी बनता है। दुर्भाग्य है! इस दिशा में भी भगवती मानव कल्याण संगठन को सुधार करना है। आप लोगों का कर्तव्य बनता है कि लोगों को शुद्ध-सात्त्विक भोजन लेने के लिए प्रेरित करें।
विकारात्मक जीवन मन-म्स्तिष्क को संकुचित करता है। विकार हमारे शत्रु हैं। इसलिए सात्त्विकता की ओर मुड़ो और ‘माँ’ की आराधना करो। इससे विकार दूर होंगे। मैं स्वयं इस प्रकार का जीवन जीता हूँ। सन्तानोत्पत्ति के बाद सपत्नीक ब्रह्मचर्य का जीवन जीता हूँ। विज्ञान चाहे, तो इसका परीक्षण कर सकता है।
फांसी देकर कभी भी बलात्कार दूर नहीं होंगे। एकमात्र मार्ग है कि डोर-टु-डोर जाकर लोगों को समझाया जाय। उन्हें शिक्षित किया जाय कि शादी से पहले पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत, शादी के बाद एक पति/पत्नी का व्रत और सन्तानोत्पत्ति के बाद पुनः ब्रह्मचर्य व्रत का पालन होना चाहिए। परिस्थिति नहीं बदल सकते, तो अपनी सोच को बदलो और समाज को चरित्रवान् बनाओ।
भ्रष्टाचार ने आज समाज को घेर रखा है। इससे आया पैसा विष के समान होता है। यह आप और आपके बच्चों को पतन की ओर लेजाएगा। यदि ऐसा पैसा आपके पास है, तो उसे गरीबों की सेवा-सहायता में लगाओ।
रिश्वत देना एक बार तुम्हारी मजबूरी हो सकती है, किन्तु लेना बिल्कुल भी मजबूरी नहीं है। भ्रष्टाचार की अपेक्षा मौत को स्वीकार करना श्रेष्ठ है।
आज लोगों को सम्प्रदायवाद में झोंका जा रहा है। इससे उग्रवाद पनप रहा है और आतंकवाद फैल रहा है। हमारा युवा भटक रहा है। यदि किसी को जीवन दे नहीं सकते, तो किसी का जीवन कैसे ले सकते हो? इसलिए साम्प्रदायिकता से ऊपर उठो। दूसरों के धर्म की रक्षा करो, भले ही तुम्हारा जीवन चला जाय। आतंकवादी हमारा शत्रु है, वह किसी भी धर्म का क्यों न हो।
नास्तिकता समाज के पतन का मूल कारण है। नास्तिक लोग अपनी माँ का भी सम्मान करना भूल जाते हैं।
जातीयता एक ज़हर है। लोग छोटी जाति के लोगों को हेय दृष्टि से देखते हैं। वही कथित अछूत लोग, जो कुंआ खोदते हैं और जिनके पैरों से कुएं का पहला जल स्पर्श करता है, उन्हें बाद में उसी कुएं पर चढ़ने नहीं दिया जाता। जातीयता की जो खाई आज खोद रहे हो, तुम कल उसी में गिरोगे। हो सकता है तुम्हारा अगला जन्म छोटी जाति में ही हो। मैंने बचपन से ही कभी भी जातीयता को नहीं माना है। भगवती मानव कल्याण संगठन का कोई भी सदस्य कभी भी किसी जातीय संगठन में सम्मिलित नहीं होगा। जातीयता से ऊपर उठो। तुम सिर्फ इन्सान हो, इसलिए इन्सानियत का जीवन जिओ और ‘माँ’ के सच्चे भक्त बनो।
समाज में बलिप्रथा आज भी चल रही है। यह महापाप है, जो तुम्हें भोगना पड़ेगा। इससे कोई भी देवी-देवता सन्तुष्ट नहीं होते। उन मन्दिरों के पुजारी जल्लाद हैं, जहां पर निरीह पशु-पक्षियों की बलि दी जाती है। इस घिनौनी प्रथा से बचो, तभी घर में सुख-समृद्धि आएगी।
हमारे शास्त्रों में बलि के तीन प्रकार बताए गए हैं- बाह्य बलि (फल-फूल-मिष्ठान्न आदि समर्पित करना), अन्तर्बलि (अपने विषयविकारों को अर्पित करना) और सर्वश्रेष्ठ आत्मबलि (स्वयं को इष्ट के प्रति समर्पित करना)। यदि बलि देना चाहते हो, तो ये तीन बलियां दो और सत्य के मार्ग पर चलो।
तप-सेवा करने और चरित्रवान् जीवन जीने से इस कलिकाल को भगाया जा सकता है। प्रकृति से पाठ सीखकर त्यागी बनो और परोपकार करो। उसका एक-एक घटक दूसरों के लिए स्थित है। परोपकार करोगे, तो तुम्हारे बच्चे भी वैसे ही उत्पन्न होंगे। अपने अन्दर के कलिकाल को मिटाओ। यही एक मार्ग है। इसके अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं है।
अपने बच्चों के प्रति माँ-बाप के मुख्य रूप से तीन कर्तव्य हें- उन्हें अच्छा स्वास्थ्य देना, अच्छी से अच्छी शिक्षा देना और धर्ममार्ग में बढ़ाना। ये तीनों कर्तव्य पूरा करने से ही घर में सुख-शान्ति आएगी। किन्तु, आज कोई भी माँ-बाप इनका पालन नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि बच्चे प्रायः आलसी और अकर्मण्य बन रहे हैं। उन्हें नित्य ब्राह्ममुहूर्त में जगाओ और स्नान कराकर अपने साथ पूजा-पाठ में बैठाओ। इससे वे स्वस्थ और चेतन रहेंगे, नहीं तो उन्हें सर्दी-खांसी होगी और वे बीमार पड़ेंगे।
आज प्रायः बच्चे आज्ञाकारी नहीं हैं। उन्हें अच्छे संस्कार दो और हमेशा अच्छी बातें समझाओ। कुम्हार जिस प्रकार घड़े को आकार देता है, उसी तरह तुम भी उन्हें सुधारो। इस प्रकार, वे अपने जीवन में सामर्थ्यवान् बन जाएंगे। उन्हें मेरे द्वारा दी गई तीनों धाराओं के प्रति समर्पित होने के लिए प्रेरित करो।
आज आप लोगों का मन प्रायः दो बातों में उलझा हुआ है- जब जागते हो, तो विषयविकार और जब पूजा कर रहे हो, तो नींद। एक चोर धन चोरी करने के लिए पूरी रात जागता रहता है। परमसत्ता से परम धन प्राप्त करने के लिए आप भी कुछ समय अवश्य दो। प्रेमी-प्रेमिका नश्वर प्यार के लिए रातभर जागते रहते हैं। आप लोग परमसत्ता से प्रेम करके देखो। ‘माँ’ की सच्ची भक्ति करके देखो। एक अबोध बच्चे जैसी भावभूमि पर खड़े होकर देखो। ‘माँ’ के सामने सच्चे मन से रोओ, गिड़गिड़ाओ। श्री दुर्गाचालीसा पाठ की एक-एक लाईन पर मन को एकाग्र करो। ‘माँ’-ऊँ का क्रमिक उच्चारण करो और शान्तचित्त होकर बैठो। इससे एकाग्रता आएगी।
आज्ञाचक्र कुण्डलिनी के सातों चक्रों का राजा है। उसकी शरण में जाओ और उस पर ध्यान एकाग्र करो। वहां पर विचारशून्य होना ही सच्ची साधना है। इस तरह नित्य अभ्यास करते-करते आज्ञाचक्र प्रभावक हो जाएगा। अपनी प्राणशक्ति को जाग्रत् करो, प्राणसाधना करो और अपने शरीर की कोशिकाओं को चैतन्य बनाओ। इससे आपकी कार्यक्षमता बढ़ेगी।
अपनी बौद्धिक क्षमता का विकास करो और अन्तर्मन की आवाज़ को सुनो। मन से बड़ा सशक्त हथियार मनुष्य के पास है ही नहीं। इस पर बुद्धि का अंकुश लगाओ और सतोगुणी बनाओ। इसकी चंचल वृत्ति का उपयोग सात्त्विकता की ओर करो।
यह काया हर पल तुम्हें ठग रही है और आलस एवं जड़ता की ओर लेजाती है। तुम इसके गुलाम बत बनो। तुम्हें इसे ठगना है। इसे भोजन कराओ बड़े प्रेम से और इसका उपयोग करो शत्रु की तरह।
नित्य रात्रि में सोने से पहले पानी पीकर लेटो। इससे आपकी किड्नी खराब नहीं होगी। अपने बच्चों को भी इसकी आदत डालो।
अपने धन का सदुपयोग करो। आवश्यकता से अधिक धन को मानवता की सेवा में लगाओ, परोपकार एवं सत्कर्म में लगाओ। सत्कर्म की पूंजी एकत्र करो। परलोक में यही साथ जाएगी।
जनबल का उपयोग जनकल्याण के लिए करो। उसे धर्मरक्षा, राष्ट्ररक्षा और मानवता की सेवा में लगाओ। इससे सब कुछ प्राप्त हो जाएगा।
बेटों के मुखाग्नि देने से कभी भी मुक्ति नहीं होगी। अपने जीवित रहते हुए सत्कर्म कर डालो, तो मुक्ति सुनिश्चित है। बेटी मां-बाप को बेटे से अधिक प्रेम करती है। उन्हें एक समान मानकर चलो। मैंने ‘माँ’ के चरणों में कन्याओं के जन्म की प्रार्थना की थी और मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे तीनों पुत्रियां ही मिली हैं।
आज मानवता तड़प रही है। जब तुम भोजन करने बैठो, तो मुझे भोग लगाओ या न लगाओ, ‘माँ’ को भोग लगाओ या न लगाओ, पहला कौर मुंह में रखने से पहले गरीबों का ध्यान अवश्य करो। आज राजनेता मौजमस्ती मार रहे हैं और लोग भूखों मर रहे हैं तथा किसान आत्महत्या कर रहे हैं। इसलिए समाज को जगाना होगा और कुछ करना होगा। नाममात्र के लिए किसान को कुछ रुपए मुआवज़े के रूप में दे दिए जाते हैं, जब कि उसकी पूरी फसल चौपट हो चुकी है, जिस पर उसका और उसके परिवार का गुज़ारा चलता है।
हमारे बेईमान राजनेताओं का दिमाग आज घुटनों में चला गया है। उन्होंने समाज को बेवकूफ समझ रखा है। ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा लगाते हैं और बेईमान सारा पैसा अपने पेट में भर लेते हैं।
लोगों में निडरता पैदा करो और उनसे कहो कि बेईमान व नशेड़ी नेताओं को वोट न दें। प्रशासनिक अधिकारी अपना ट्रान्सफर होजाने के भय के कारण राजनेताओं से बहुत दबते हैं। उन्हें उनकी गलत आज्ञा का पालन नहीं करना चाहिए।
वास्तव में, समाज के पास सामर्थ्य की कमी नहीं है। बस उसे सही दिशा में लगना चाहिए। भगवती मानव कल्याण संगठन के लोग पारस से भी बढ़कर हैं। अपने सम्पर्क में आने वालों को वे अपने जैसा बना लेते हैं। समाज को सही दिशा उन्हीं से मिलेगी। आप लोग सदैव मानवता के पथ पर चलें।
कभी आकर मेरे जीवन को भी देखो। यदि एक भी कमी निकाल दोगे, तो मैं आध्यात्मिक जीवन छोड़ दूंगा।
मैंने विज्ञान को चुनौती दी है। चुनौती धर्मगुरुओं को भी दी है। एक आयोजन तो करो। चमत्कार दिखाना मेरा लक्ष्य नहीं है। किन्तु, सत्यधर्म की रक्षा के लिए मैं चमत्कार भी दिखाने के लिए तैयार हूँ।
आज कथावाचक ग्रहों से भयभीत हैं और रत्नजड़ित अंगूठियां पहनते हैं, जब कि लोगों को पाठ पढ़ाते हैं मुक्ति का। सारे ग्रह मेरी मुट्ठी में हैं। मेरी कुण्डलिनी चेतना पूर्णतया जाग्रत् है।
आदिगुरु शंकराचार्य ने बत्तीस वर्ष की आयु में चार मठों की स्थापना कर दी थी। आज पैंसठ शंकराचार्य बैठे हैं, किन्तु समाज फिर भी पतन की ओर जा रहा है।
समाज एक दिन जागेगा ज़रूर। यदि नहीं जागेगा, तो मैं उसे जगाऊंगा।
गोसेवा और गोसंरक्षण में अपना धन लगाओ। प्रशासन में भ्रष्टाचार होने के कारण पूरा धन गोशालाओं तक नहीं पहुंच पाता। इसीलिए गोसेवा पूरी नहीं होपाती है। डीएम ने मुझसे भी कमीशन देने के लिए कहलवाया था। मैंने उन लोगों से कहा था कि जितना पैसा उसने मुझसे मांगा है, उससे अधिक जूते मारने के लिए मैं तैयार बैठा हूँ। ईमानदार अफसरों का मैं आदर करता हूँ, किन्तु बेईमानों का तिरस्कार करता हूँ। यदि समाज नहीं जागेगा, तो भ्रष्टाचार इसी तरह बढ़ता जाएगा।
मोदी ने सौ दिनों के अन्दर कालाधन वापस लाने और कालाधन जमा करने वालों के नाम उजागर करने का वायदा किया था। अब एक साल हो रहा है, किन्तु कुछ नहीं हुआ। कार्य अच्छा ज़रूर हुआ है, किन्तु यह पर्याप्त नहीं है। उन्हें बेईमान राजनेताओं के नाम उजागर करने चाहिएं। मेरा विरोध किसी भी पार्टी से नहीं है। मैंने सभी का सहयोग भी किया है, किन्तु वे सब कुत्ते की पूंछ की तरह रहे। इसीलिए मैंने समाज को तीन धाराएं प्रदान की हैं। इन्हें रोकने की हिम्मत किसी में नहीं है। हमारी भारतीय शक्ति चेतना पार्टी का लक्ष्य सत्तासुख भोगना नहीं, बल्कि समाजसेवा है। मेरी वाक्शक्ति को कोई रोक नहीं सकता। राजसत्ता की चाटुकारिता करने वाला कोई योगी या ऋषि हो ही नहीं सकता।
आपका कोई परिजन किसी त्यौहार के दिन खत्म होजाता है, तो आप उस त्यौहार को मनाना छोड़ देते हो। कितनी बड़ी अज्ञानता है! अरे, आपको तो प्रसन्न होना चाहिए कि उसे एक शुभ दिन मिला है शरीर त्यागने के लिए। क्या तुम चाहते हो कि शरीर छोड़ने के लिए कोई निकृष्ट दिन मिले?
किराए के पण्डितों के द्वारा कभी भी कोई जाप मत कराओ। यदि स्वयं एक पाठ कर लो, तो वह अधिक फलीभूत होगा। अपने द्वारा खाया भोजन ही स्वयं को लगता है।
सत्य हर काल में रहता है। वह आज भी जीवित है। यदि तुम मेरे चिन्तनों के कैसेट्स सुनोगे, तो तुम्हारी सभी समस्याओं के समाधान तुम्हें मिल जाएंगे। नेपाल के लोगों को इस यात्रा के सत्य का अहसास हुआ है। इसीलिए वे हर शिविर में आते हैं और नेपाल में जनजागरण कर रहे हैं।
उत्तरप्रदेश सरकार को जगाने के लिए 6-7 फरवरी 2016 को लखनऊ में एक नशामुक्ति महाशंखनाद शिविर का आयोजन किया जाएगा। सागर (म.प्र.) में भी नवम्बर 2016 में एक शिविर होगा। सागर सम्भाग के लोग मेरे हृदय में बसते हैं। उन्हें केवल आशीर्वाद चाहिए। उन्हें मालूम है कि गुरु के आशीर्वाद में सब कुछ समाहित है।
जब रैली आ रही थी, तो मुस्लिम भाइयों ने जगह-जगह पर पीने के स्वच्छ जल की व्यवस्था की थी। ऐसी व्यवस्था ये लोग स्वागतद्वार बनाकर हर बार करते हैं। उन्हें मेरा पूर्ण आशीर्वाद है।
पुलिस अधीक्षक (दमोह) को भी मेरा आशीर्वाद है, जिन्होंने इस शिविर के लिए यह ग्राउण्ड उपलब्ध कराया। साधना चैनल, ओम् चैनल तथा सिटी चैनल को भी इस कार्यक्रम का जीवन्त प्रसारण दिखाने हेतु आशीर्वाद है। प्रिण्ट मीडिया ने मेरे इन कार्यक्रमों को अपने समाचार पत्र में स्थान दिया। इसके लिए उन्हें भी मेरा पूर्ण आशीर्वाद है।
इस शिविर की विभिन्न व्यवस्थाओं में लगे कार्यकर्ताओं, समस्त भक्तों तथा नेपाल से आए शिष्यों को भी पूर्ण आशीर्वाद है। आगे बढ़ेंगे और अच्छा कार्य करेंगे, तो राजनेताओं को भी मेरा आशीर्वाद है।
किसानों का आत्मबल बढ़े, वे आत्महत्या का निर्णय न लें, उन्हें भी मेरा पूर्ण आशीर्वाद है। बच्चों को भी कहता हूँ कि वे कभी भी आत्महत्या का निर्णय न लें।
मैं आपका हूँ, आप मेरे अपने हैं। जब भी मुझमें लोभवृत्ति आजाएगी, तो मैं शरीर त्यागना पसन्द करूंगा। मेरा आपका आत्मा का सम्बन्ध है। इस शरीर को त्यागने के उपरान्त भी मैं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में सूक्ष्म रूप से वास करता रहूंगा। मैंने वहां पर अपनी चेतना को सदा-सर्वदा के लिए स्थापित किया है।
अन्त में, सबको दोनों हाथ उठवाकर पुनः संकल्प दिलाया गया- मैं संकल्प करता/करती हूँ कि आज के बाद मैं नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जिऊंगा/जिऊंगी और तीनों धाराओं के प्रति आजीवन समर्पित रहूंगा/रहूंगी।
इस प्रकार, दमोह में दो दिवसपर्यन्त चला यह विशाल शक्ति चेतना जनजागरण शिविर माता भगवती आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की अहैतुकी कृपा एवं परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् योगिराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के दिव्य आशीर्वाद के फलस्वरूप निर्विघ्न सम्पन्न हुआ। कहीं पर भी कोई अप्रिय घटना नहीं घटी तथा चहुंओर आनन्द ही आनन्द रहा।
शिविर सम्पन्न होने के उपरान्त, परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् 20 अप्रैल को प्रातः दस से बारह बजे के मध्य पत्रकारों से मिले और उनकी जिज्ञासाओं का समाधान किया। पत्रकार बंधुओं ने भी गुरुवरश्री से निवेदन किया कि हम सभी की यह इच्छा है कि आप प्रतिवर्ष दमोह आते रहें, जिससे यह ज़िला पूर्णरूपेण नशामुक्त हो जाये और लोगों के जीवन में खुशहाली आये।
तदुपरान्त, गुरुवरश्री ने अगले दिन दमोह से प्रस्थान किया और जबलपुर होते हुए अपराह्न चार बजे आश्रम पहुंच गए।

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