शक्ति चेतना जनजागरण शिविर, शासकीय भूमि- पेटियाडीह, धमतरी (छ.ग.) 28-29 नवम्बर 2015

जनसामान्य की इच्छाओं, आकांक्षाओं एवं मनोकामनाओं को पूर्ण करने की सामर्थ्य जिनके पास होती है, उनके स्वयं के संकल्प पूर्ण होने में दुनिया की कोई भी शक्ति अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकती। अब से लगभग पच्चीस वर्ष पूर्व परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् योगिराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज एक व्यक्तिगत कार्यवश जब धमतरी में पधारे थे, तो उस समय आपने निर्णय किया था कि यहां पर एक शिविर का आयोजन अवश्य होगा। परम सौभाग्य का विषय है कि इसी दिव्य संकल्प के फलस्वरूप यह 111वां शक्ति चेतना जनजागरण शिविर छत्तीसगढ़ के धमतरी ज़िला मुख्यालय पर आयोजित किया गया।
इस द्विदिवसीय शिविर में देश-विदेश से आए लाखों लोगों ने परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के ओजस्वी चिन्तनों को हृदयंगम किया, ध्यान-साधनाक्रम एवं योगाभ्यास किया तथा सात हज़ार से अधिक ने गुरुदीक्षा प्राप्त करके जीवनपर्यन्त पूर्ण नशा-मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् रहने का संकल्प लिया।
सद्भावना रैली
इस रैली में देशभर से हज़ारों गुरुभाई-बहनें सम्मिलित हुए।
दिनांक 26 नवम्बर गुरुवार को प्रातः 08:45 बजे परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मन्दिर में नमन करने के उपरान्त अपने पूज्य पिता ब्रह्मलीन दण्डी संन्यासी स्वामी रामप्रसाद आश्रम जी महाराज की समाधि पर पहुंचे। उन्हें प्रणाम करके निकटस्थ त्रिशक्ति गोशाला होते हुए सभी आश्रमवासी शिष्यों-शिष्याओं को अपना दिव्य आशीर्वाद देकर ठीक 09:30 बजे आपने धमतरी के लिए प्रस्थान किया।
इस अवसर पर, अनेक शिष्य मोटरबाईक्स पर सवार होकर शक्तिदण्डध्वज हाथ में लिए जयघोष करते हुए परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के वाहन के आगे चल रहे थे। आपके वाहन के पीछे शेष चौपहिया वाहन क्रमबद्ध ढंग से चल रहे थे, जिनके दोनों ओर सद्भावना यात्रा वाले फ्लैक्स लगे थे और आगे शक्तिध्वज फहरा रहे थे।
शहडोल-रीवा राजमार्ग पर आते ही सर्वप्रथम खामडांड़ गांव के प्रतीक्षारत भक्तों को महाराजश्री ने प्रणाम करने का अवसर प्रदान किया। आगे चलकर ब्यौहारी में बनसुकली चौराहे पर तोरणद्वार बना था और सैकड़ों लोग गुरुवरश्री के स्वागत की प्रतीक्षा कर रहे थे। यहां पर भी आपने लोगों को प्रणाम करने का अवसर प्रदान किया।
इसके बाद, यह यात्रा जयसिंहनगर होते हुए 10:35 बजे खन्नौधी पहुंची, जहां पर श्रद्धालुओं एवं भक्तों ने भव्य स्वागत किया तथा यात्रियों के बीच प्रसाद वितरित किया। आगे गोहपाः में भी स्वागत हुआ तथा टोलप्लाज़ा पर शक्तिदण्डध्वज लिए हुए शहडोल शाखा के सैकड़ों बाईकर्स गुरुभाइयों ने अगवानी की। छतवई में भी स्वागत हुआ और पिपरिया में स्कूली बच्चे पंक्तिबद्ध खड़े ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगा रहे थे। सोहागपुर में सड़क के दोनों ओर दूर तक महिलाएं सिर पर कलश तथा हाथों में आरतीथाल लिए हुए खड़ी थीं और स्वागत में बैण्ड बज रहा था। यहां पर प्रसाद भी वितरित किया गया।
शहडोल में जयस्तम्भ चौक पर महिलाएं सिर पर कलश लिए हुए खड़ी थीं, पुराने बस स्टैण्ड पर भव्य तोरणद्वार बनाया गया था तथा सिंहपुर रोड पर भी यात्रा का भव्य स्वागत हुआ। आगे पड़मनिया में महिलाएं सिर पर कलश रखे हुए खड़ी थीं। सिंहपुर में लगभग एक किमी तक पुरुष तथा महिलाएं पूर्ण नमन भाव से अपने हाथों में पुष्प लिए खड़े थे। न्यू सिगुड़ी में भी अच्छा स्वागत हुआ तथा अमरहा में दूर तक महिलाएं सिर पर कलश लिए खड़ी थीं। बमुरा-बमुरी, पथकई में रंगोली बनाकर यात्रा का स्वागत किया गया।
सरई में लोगों के अन्दर विशेष उत्साह देखने को मिला। यहां पर भव्य तोरणद्वार बना था। लगभग एक किमी तक महिलाएं कलश एवं आरतीथाल लिए खड़ी थीं, बैण्ड बज रहा था तथा माईक पर ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाए जा रहे थे। तदुपरान्त, बगदरा में स्वागत हुआ और अमदरी में भारी भीड़ देखने को मिली। यहां पर तोरणद्वार बनाया गया था, दूर तक महिलाएं सिर पर कलश लिए खड़ी थीं और लोगों के द्वारा शंखध्वनि की जा रही थी। इससे आगे, करनपठार, लहरपुर और तुलरा में महिलाओं ने सिर पर कलश रखकर यात्रा का स्वागत किया।
पीपरटोला का दृश्य बड़ा ही मनभावन था। यहां पर ढोल बजाकर लोकनृत्य करते हुए काफी दूर तक नर्तक महाराजश्री के वाहन के आगे-आगे चले। टेंढ़ी लालपुर में भारी भीड़ थी। यहां पर भव्य तोरणद्वार बनाया गया था, महिलाएं सड़क के दोनों ओर सिर पर कलश एवं हाथों में आरती थाल लिए दूर तक खड़ी थीं, बैण्ड बज रहा था तथा माईक पर जयकारे लगाये जा रहे थे। चन्दनघाट पर तोरणद्वार बनाकर लोगों ने यात्रा का भव्य स्वागत किया। यहाँ पर स्थानीय लोगों की भीड़ का यह आलम था कि हज़ारों लोग पंक्तिबद्ध होकर गुरुवरश्री के दर्शन हेतु नमनभाव से खड़े थे। सुकुलपुरा में महिलाओं ने सिर पर कलश रखा हुआ था और माईक पर जयकारे लगाए जा रहे थे। सागरटोला में भी यात्रा का अच्छा स्वागत हुआ।
आगे चलकर गाड़ासरई के पूरे नगर में अपार भीड़ थी। यहां पर जगह-जगह भव्य तोरणद्वार बनाए गए थे। महिलाएं सिर पर कलश और हाथों में आरतीथाल लिए हुए खड़ी थीं, पुष्प वर्षा हो रही थी और अनेक लोग गुरुवरश्री की एक झलक पाने के लिए उनके वाहन के साथ-साथ दौड़ रहे थे। यहां पर प्रसाद वितरण भी किया गया। लालपुर और धानौली में भी तोरणद्वार बनाए गए थे तथा महिलाएं सिर पर कलश एवं हाथों में आरतीथाल लिए खड़ी थीं। बजाग में भी कुछ ऐसा ही दृश्य था। इसके साथ-साथ ढोल बजाकर लोग अपने उत्साह एवं उमंग को व्यक्त कर रहे थे। आगे भानपुर में भी भव्य स्वागत हुआ।
अन्ततः रात्रि 06:45 बजे यह सद्भावना यात्रा कवर्धा पहुंची। यहां पर सड़क के दोनों ओर प्रज्वलित मोमबत्ती लिये हुए मानवश्रृंखला देखने को मिली, बैण्ड बज रहा था और लोगों में अपार हर्ष था। यह भव्य स्वागत वास्तव में अलौकिक था। सबने पूड़ी-सब्ज़ी का तृप्तिपूर्ण भोजन किया तथा रात्रिविश्राम किया।
अगले दिन 27 नवम्बर को भोजनोपरान्त प्रातः 09:00 बजे इस सद्भावना यात्रा ने कवर्धा से धमतरी के लिए प्रस्थान किया। बेमेतरा और सिमगा में अच्छा स्वागत किया गया। कचना में तोरणद्वार बना था, सड़क के दोनों ओर लम्बी मानवश्रृंखला बनी थी तथा दूर तक महिलाएं सिर पर कलश लिए खड़ी थीं। सिलिडीह में भी लगभग यही दृश्य था। वहां पर स्कूली बच्चे बड़ी उमंग के साथ जयकारे लगा रहे थे। रायपुर शहर के मुख्यमार्गों से होते हुए यात्रा ने धमतरी ज़िले की सीमा में प्रवेश किया।
ग्राम सिलतरा में लोगों का उत्साह देखते ही बनता था। वहां पर दो तोरणद्वार बनाए गए थे तथा सड़क के दोनों तरफ बन्दनवारें बंधी थीं। सड़क पर फूल बिछाए गए थे, पुष्पवर्षा हो रही थी, ढोल बजाकर लोकनृत्य किया जा रहा था तथा माईक पर जयकारे लगाए जा रहे थे। यहां पर भोजन प्रसाद तथा पानी के पाऊच भी वितरित किए गए। आगे चलकर सेमरा ग्राम में भारी भरकम भीड़ देखने को मिली, जैसे पूरा गांव ही उमड़ पड़ा हो। यहां पर भव्य तोरणद्वार बना था तथा पंक्तिबद्ध खड़े स्कूली बच्चों एवं शिक्षिकाओं में विशेष उत्साह था। तदुपरान्त, नगर पंचायत भरवारा, कोसमर्रा, कुरमातराई तथा अर्जुनी मोड़ पर तोरणद्वार बनाकर श्रद्धालु भक्तों ने सद्भावना यात्रा का भव्य स्वागत किया।
उसके बाद, सायं 04:00 बजे यह यात्रा धमतरी पहुंची। यहां पर स्वागत के लिए कई भव्य तोरणद्वार बनाए गए थे। पोटियाडीह में शिविरस्थल से पहले सड़क के दोनों ओर लगभग एक किमी तक मानवश्रृंखला देखने को मिली। अन्त में, ग्राम पंचायत लोहसरी के नवीन विश्रामगृह पर पहुंचकर यह सद्भावना यात्रा सम्पन्न हुई। यहीं पर गुरुवरश्री ने विश्राम किया। शेष सभी शिविरार्थी भी अपने-अपने ठहरने के स्थान पर पहुंचे और रात्रिभोजन ग्रहण करके विश्राम किया।

प्रारम्भिक तैयारियां
इससे पूर्व भगवती मानव कल्याण संगठन के सैकड़ों सदस्यों ने धमतरी शिविरस्थल की सफाई करके चिन्तनपण्डाल, मंच एवं विभिन्न आवासीय पण्डालों के निर्माण का कार्य किया। उधर देश-विदेश से लाखों शिष्य एवं श्रद्धालु सीधे धमतरी पहुंचे।
भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में शिविर से सम्बन्धित पैम्फ्लैट्स वितरित करके खूब प्रचार किया था। वृहद् स्तर पर की गई आरतियों, महाआरतियों तथा श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठों के आयोजन के माध्यम से भी काफी प्रचार हुआ था। इसके अतिरिक्त, धमतरी की ओर आने वाले मुख्य मार्गों पर बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाए गए थे।
विशेष रूप से धमतरी के आसपास के गांवों में पहुंचकर कार्यकर्ताओं ने क्षेत्रीय लोगों को व्यक्तिगत रूप से आमन्त्रित किया था। इस प्रकार, इस शिविर का व्यापक प्रचार हुआ था।
यही कारण है कि परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के ओजस्वी चिन्तनों को सुनने के लिए धमतरी के इस शिविर में अपार जनसमूह उमड़ा। इनमें से सात हज़ार से अधिक ने गुरुदीक्षा प्राप्त की। इस बीच, भोजन एवं शान्ति व्यवस्था बड़े सुचारु रूप से चली। इस शिविर की सभी व्यवस्थाएं संगठन के पांच हज़ार से भी अधिक सक्रिय कार्यकर्ताओं ने पूर्ण कीं।
दैनिक कार्यक्रम
शिविर पण्डाल में पहले दिन प्रातः 07:00 से 09:00 बजे तक योगाभ्यास, मंत्रजाप एवं ध्यानसाधना का क्रम सम्पन्न हुआ, जिसे भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष शक्तिस्वरूपा बहन संध्या दीदी जी ने सम्पन्न कराया। दूसरे दिन इसी अवधि में गुरुदीक्षा का कार्यक्रम हुआ। अपराह्न दोनों दिन 01:00 से 02:00 बजे तक भावगीतों का कार्यक्रम होता था, जिसके अन्तर्गत विभिन्न शिष्यों एवं श्रद्धालुओं के द्वारा अपने भावसुमन अर्पित किये जाते थे। तदुपरान्त, ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाए जाते थे। इसी बीच गुरुवरश्री का शुभागमन होता था और शक्तिस्वरूपा तीनों बहनों पूजा, संध्या एवं ज्योति जी के द्वारा उनके पदप्रक्षालन एवं वन्दन के उपरान्त कुछ और भावगीतों के प्रस्तुतीकरण एवं संध्या एवं ज्योति दीदी जी के द्वारा जयकारे लगवाये जाने के पश्चात् गुरुवरश्री की अमृतवाणी सुनने को मिलती थी।
तदुपरान्त, दिव्य आरती होती थी, जिसका नेतृत्व शक्तिस्वरूपा तीनों बहनों के द्वारा किया जाता था। अन्त में, महाराजश्री की चरणपदुकाओं का स्पर्श करके शिविरार्थी प्रसाद ग्रहण करते थे। महाराजश्री तब तक मंच पर विराजमान रहते थे, जब तक सभी शिविरार्थी प्रणाम नहीं कर लेते थे।
प्रथम दिवस

माता स्वरूपं माता स्वरूपं, देवी स्वरूपं देवी स्वरूपम्।
प्रकृतिस्वरूपं प्रकृतिस्वरूपं, प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यम्।।

इस शिविर में आए हुए ‘माँ’ के समस्त भक्तों, श्रद्धालुओं, अपने चेतनाअंशों शिष्यों और शिविर की विभिन्न व्यवस्थाओं में लगे कार्यकर्ताओं को अपने हृदय में धारण करता हुआ, माता भगवती आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का आशीर्वाद प्राप्त करता हुआ, सभी को अपना पूर्ण आशीर्वाद समर्पित करता हूँ।
किसी भी तपस्वी से भूत, वर्तमान एवं भविष्य छिपे नहीं होते। अब से पच्चीस वर्ष पूर्व जब मैं यहां पर एक व्यक्तिगत कार्य से आया था, तभी मैंने निर्णय किया था कि एक शक्ति चेतना जनजागरण शिविर का आयोजन यहां पर अवश्य होगा।
कथाएं-कहानियां तो आप लोग अनेक धर्मगुरुओं से सुनते ही रहते हैं, किन्तु उनसे कभी भी परिवर्तन नहीं आता। अतः इसके लिए समाज की सोई हुई चेतना जगाना मेरा लक्ष्य है। अन्य धर्मगुरुओं की तरह, मैं यहां पर धन अर्जन की कामना से नहीं आया हूँ। मैं तपस्यात्मक जीवन जीता हूँ। मैं ऋषि था, ऋषि हूँ और ऋषि ही रहूंगा। ‘माँ’ ने जो लक्ष्य मुझे सौंपा है, मैं उसी के अनुसार कार्य कर रहा हूँ। मेरे लिए राजनेता, उद्योगपति, अमीर और गरीब सभी एक समान हैं और मैं उन सबको अपने हृदय में धारण करता हूँ। यदि उनके जीवन में थोड़ा सा भी परिवर्तन आ गया, तो समाज बदलता चला जाएगा।
वर्तमान में, पूरा समाज अनीति-अन्याय-अधर्म का सामना कर रहा है। सभी दुःखी हैं, किन्तु उन्हें दूर करने की बजाय, उसी चक्रव्यूह में फंसते जा रहे हैं। उस दलदल से निकलने का कोई रास्ता नहीं निकलता। इसके लिए सिर्फ एक मार्ग है– स्वयं की पहचान। मैं कौन हूँ? इसकी खोज करना। मैं परमसत्ता प्रकृतिस्वरूपा माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का एक अंश अजर-अमर-अविनाशी आत्मा हूँ। इसलिए मैं इतना कमज़ोर हो ही नहीं सकता कि बिल्कुल निरीह होजाऊं। आज का इन्सान मानवीय मूल्यों से काफी दूर होगया है। धनवान् बनना ही उसका एकमात्र लक्ष्य रह गया है। धन आना चाहिए, सही रास्ते से आए या गलत से, जब कि प्रकृति का नियम है– सत्कर्म करेंगे, तो अच्छा फल मिलेगा और दुष्कर्म का फल सदैव बुरा होता है।
इसलिए कुछ समय के लिए ठहर जाओ और अपने अन्दर की ओर झांककर देखो। यह निखिल ब्रह्माण्ड हमारे शरीर में बैठा है। यह मानवशरीर अलौकिक शक्तियों का भण्डार है। अपने आपको पहचानो। ‘माँ’ को अपना इष्ट मानो। उनकी आराधना से सरल कोई आराधना नहीं है। यदि आराधना में अज्ञानवश कोई गलती होजाती है, तो वह क्षमा कर देती हैं। ‘माँ’ शब्द कहकर तो देखो। अपनेपन का ऐहसास होता है। ‘माँ’ मेरी हैं, मैं ‘माँ’ का हूँ।
‘माँ’ हमसे चाहती क्या हैं? ममता, दया, करुणा और वात्सल्य उनके गुण हैं। उन्हें अपने अन्दर समाहित करो। यही भक्ति का लक्ष्य है। किन्तु, प्रायः लोग ऐसा नहीं करते। ‘माँ’, हमें यह दो, वह दो– यह उनका एकमात्र लक्ष्य रहता है। यह भटकाव का मार्ग है।
भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति, इन तीनों शब्दों में सब सार समाहित है। इनके बाद कुछ शेष रहता ही नहीं है। इसलिए, इनके सिवाय कुछ मत मांगो। ‘माँ’ से अटूट भक्ति मांगो कि हे माँ, मैं सिर्फ आपकी भक्ति चाहता हूँ। मुझे वह ज्ञान दो, जिससे मैं आपकी भक्ति कर सकूं और सत्य-असत्य की पहचान कर सकूं। और, आत्मशक्ति के बिना सब कुछ बेकार है। इसके अभाव के कारण जीवन में निष्क्रियता आजाएगी तथा भक्ति और ज्ञान भी बेकार हो जाएंगे। यदि आत्मबल प्राप्त होगया, तो सब कुछ प्राप्त कर सकते हो। आत्मबल रावण के अन्दर भी था, किन्तु वह उसका दुरुपयोग करता था। इसलिए, आपको मिले आशीर्वाद का कभी भी दुरुपयोग मत करो।
‘माँ’ का भक्त कभी भी कमज़ोर नहीं हो सकता। यह शरीर मात्र हाड़-मांस का पुतला नहीं है। इसके अन्दर कुण्डलिनी है, उसके सातों चक्र हैं और इसमें असीम शक्ति भरी है।
एक चोर के अन्दर भी वही शक्ति है। चोरी करने के लिए वह पूरी रात जागता है। उसे आलस्य और नींद नहीं आती। एक प्रेमी और उसकी प्रेमिका को पूरी रात नींद और आलस्य नहीं आता। तुम भी यदि ‘माँ’ के साथ प्रेम का सच्चा रिश्ता जोड़ लो, तो उसकी भक्ति में तुम्हें भी कभी आलस्य और नींद नहीं आएगी। एक शिशु बन जाओ, वह भाव उससे लेलो। किन्तु, समाज इससे दूर होता जा रहा है। अपने अन्दर ‘माँ’ के प्रति एक व्याकुलता पैदा करो। वह आपके अन्दर हैं, दूर नहीं हैं। उनसे तार जोड़कर तो देखो। अपनी कुण्डलिनी शक्ति को चैतन्य करने के लिए कुछ देर ध्यान में बैठो। धीरे-धीरे बूंद-बूंद करके आपका घट भर जाएगा।

मैंने एक किसान परिवार में जन्म लिया है और सात-आठ घण्टे तक खड़े रहकर मज़दूरों से कार्य कराता हूँ। ऐसा आप भी कर सकते हैं। अपने मन की दिशा को मोड़ो। अपने विचारों को सही दिशा दो। आपको आनन्द आने लगेगा। आप अनुभव करेंगे कि बाह्य जगत् में कुछ भी नहीं है, सब कुछ आपके अन्दर है। सच्चे गृहस्थ बनकर आप वह कर सकते हो, जो बड़े-बड़े तपस्वी नहीं कर सकते।
भौतिक जगत् की पूरी कमाई यहीं पड़ी रह जाएगी और सच्ची भक्ति की पूंजी सदैव आपके साथ रहेगी। वेद-शास्त्र-पुराणादि रट्टू तोता बनकर रटने से कुछ नहीं होगा। वेदों का असली ज्ञान तो आपके इष्ट के चरणों में है। ज्ञानी सदैव भटकता है, किन्तु भक्त कभी नहीं भटकता।
मैं समाज को सत्य की ओर बढ़ाने आया हूँ। उसे नशे-मांस से मुक्त करके चरित्रवान् बनाने आया हूँ। मेरे एक लाख से अधिक शिष्य समाज में कार्य कर रहे हैं। हमारी चेतनातंरगों और सत्यवाणी के फलस्वरूप परिवर्तन आता है।
मैं भी गृहस्थ का जीवन जीता हूँ। मेरी पत्नी और तीनों पुत्रियां सामने बैठी हैं। मैंने ‘माँ’ से पुत्रियों के लिए प्रार्थना की थी। सन्तानोत्पत्ति के बाद मैं सपत्नीक ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करता हूँ। विज्ञान आए और मेरा परीक्षण करे। मेरे ब्रह्मचर्य के सामने बड़े-बड़े ब्रह्मचारी नगण्य हैं।
मेरे आठ महाशक्तियज्ञ समाज में अलग-अलग स्थानों पर और अलग-अलग मौसमों में हुए। उनमें हरेक में वर्षा हुई थी। मैंने कहा था कि यदि मेरे द्वारा किए गए किसी महाशक्तियज्ञ में वर्षा न हो, तो मैं अध्यात्म छोड़कर वनों में चला जाऊंगा। आज समाज में एक-एक हज़ार कुण्डी यज्ञ हो रहे हैं। उनमें किराए के पण्डित आते हैं, आहुतियां दी जाती हैं और कोई लाभ नहीं होता। मैंने अपने महाशक्तियज्ञों में मरणासन्न लोगों को जीवनदान दिया है, जिन्हें डॉक्टरों ने घोषित कर दिया था कि इन्हें घर ले जाइए, ये नहीं बचेंगे।
अनीति-अन्याय-अधर्म का मूल कारण है कि हमारे शंकराचार्य भटक गए हैं। वे तपस्यात्मक जीवन नहीं जीते हैं। आज समाज में सैकड़ों शंकराचार्य बैठे हैं, जो खाली अपनी गद्दी और परम्पराओं की रक्षा कर रहे हैं। मेरे एक हज़ार में से नौ सौ निन्यानवे शिष्य पूर्ण नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् जीवन जीते हैं। मैं जो उपदेश देता हूँ, सबसे पहले मैं स्वयं उसका पालन करता हूँ।
जब मैं ध्यानावस्था में होता हूँ, या मेरी इच्छा के विरुद्ध यदि कोई मुझे स्पर्श कर लेता है, तो उसे 440 वोल्ट बिजली का झटका लगता है। ऐसा मैं चमत्कार के लिए नहीं कहता, बल्कि इसलिए बताता हूँ कि मैं ऐसा जीवन जीता हूँ।
मैंने विश्व अध्यात्म जगत् को सत्यधर्म की रक्षा के लिए ससम्मान चुनौती दी है। एक विश्वस्तरीय धर्मसम्मेलन होना चाहिए, जिसमें सारे धर्मगुरु उपस्थित होकर अपना परीक्षण कराएं। विज्ञान के पास ऐसे यंत्र हैं, जिनके द्वारा इस बात का पता लगाया जा सकता है कि कौन धर्मगुरु सच बोल रहा है और कौन झूठ? कौन ध्यान की गहराई में जा सकता है और कौन नहीं? या फिर ऐसे कार्य करने के लिए कहा जाय, जैसे वर्षा कराना, भीषण वर्षा को रोकना, किसी व्यक्ति के असाध्य रोग को ठीक करना। ऐसे परीक्षण और कार्य के लिए यह शरीर सबसे पहले आगे खड़ा नज़र आएगा।
सरकारों के भटकने का मूल करण है कि धर्म भटक गया है। इसलिए समाज को जगाना होगा। मैंने समाज के गरीब लोगों को, जो असहाय थे, निरीह थे, असमर्थ थे, उनमें चेतना भरकर उन्हें ऐसा बनाया है कि वे दूसरों के दुःख-दर्द दूर कर सकते हैं। मेरी चुनौती है कि मेरे प्रवाह को यदि कोई रोक सके, तो रोककर दिखाए। मेरे शिष्य गरीब हो सकते हैं, किन्तु वे असमर्थ, असहाय नहीं हो सकते। वे चेतनावान् एवं कर्मवान् होंगे।
हमारे माता-पिता नमक-रोटी खाते थे और सौ किलो की बोरी उठा लेते थे। अब तरह-तरह के स्वादिष्ट भोजन करने वाले लोग पचास किलो की कट्टी मुश्किल से उठा पाते हैं। हो सकता है आने वाली पीढ़ी इतना वज़न भी न उठा पाए। आप लोग ऊपर की ओर देख रहे हो। नीचे की ओर देखो। आप जूता पहनते हो, दूसरे के पास चप्पल भी नहीं हैं। इसलिए सन्तोष का जीवन जिओ। सादा भोजन करो और विचार उच्च रखो।
अपनी मूल शक्ति को क्यों खोते जा रहे हो? मन्दिरों में मत भटको, अपने घर को ही मन्दिर बना लो। सच्चे मन से ‘माँ’ को पुकार लो। इसके लिए पवित्रता की आवश्यकता है। सबसे पहले अपने आहार को पवित्र बनाओ। भोजन करने से पहले सोचो कि यह आपको शान्ति-सन्तोष देगा या बुरे विचार लाएगा? मांसाहार से दूर रहो। शुद्ध-सात्त्विक आहार लो। इससे आपके विचार पवित्र होते चले जाएंगे। नकारात्मक विचारों को छोड़ो, विकारात्मक जीवन छोड़ो। साधना का अर्थ सुबह-शाम की पूजा ही नहीं है। चौबीस घण्टे सजग रहना होगा। अपने जीवन का रोज़ आकलन करो। अच्छा सोचो और अच्छा करो।
ऐहसास करो कि गुरुसत्ता और परमसत्ता हर पल आपको देख रही हैं। आप अच्छा-बुरा जो कुछ भी करते हैं, आपके अन्दर स्थापित आपका सुपरकम्प्यूटर वैसा अंकित करता रहता है। उसके पास हर क्षण का लेखाजोखा रहता है।
समाज में जगह-जगह पर बड़ी-बड़ी कथाएं होती हैं। कथावाचक कहते हैं कि इन्हें सुनने से तुम्हारा कल्याण होजाएगा। अरे, इतने दिनों से वे कथा कहते आए हैं, जब उनका आज तक कल्याण नहीं हुआ, तो वे तुम्हारा कल्याण क्या करेंगे? वे अपनी उंगलियों में आठ-आठ रत्नों वाली अंगूठियां धारण करते हैं। इसका अर्थ है कि उन्हें अपने इष्ट पर विश्वास नहीं है। मेरा कहना है कि धर्म का प्रचार करना बड़ी अच्छी बात है। किन्तु, आज के कथावाचक अपने आपको भगवान् कहते हैं। यह गलत है। इसका मैं घोर विरोध करता हूँ। वास्तव में, वे व्यवसायी हैं। कथा-वार्ताएं सुनाकर वे समाज को लूट रहे हैं। कथा के नाम पर लोगों को लुभाने के लिए वे रासरंग करते हैं और नृत्य कराते हैं।
मैं आपको अपने हृदय में बैठाकर रखता हूँ। ज़रा दूसरे धर्मगुरुओं को देखो, जो मंच पर सोफे सजाकर रखते हैं। कोई राजनेता या मंत्री आया नहीं कि दौड़ पड़ते हैं उनका स्वागत करने, उनका माल्यार्पण करने। यह धर्म का पतन है। इन राजनेताओं का दिमाग घुटनों में जा चुका है, जो हमें नशा पिला रहे हैं। अपराधियों को फांसी पर लटकाने से कभी भी अपराध बन्द नहीं होंगे। यह हम देख रहे हैं। नशा बन्द करा दो, पचास प्रतिशत अपराध तत्काल बन्द होजाएंगे। अधिकतर अपराधों की जड़ नशा ही है।
नशे के कारण लोगों के बच्चे भूखे मर रहे हैं। वे स्कूल जाकर पढ़ना चाहते हैं, किन्तु आर्थिक तंगी के कारण स्कूल नहीं जा पाते। शराबी लोग अपनी पत्नी को प्रताड़ित करते हैं, उसके साथ गालीगलौज करते हैं और उसे मारते-पीटते हैं। इस सबके विरुद्ध समाज को जगाना होगा। धर्मयोद्धा बनकर अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध संघर्ष करना होगा। हमें कोई अस्त्र-शस्त्र नहीं उठाना है। एक-एक घर में जाकर नशा छुड़वाना है।
नशे के विरुद्ध हमें राजनेताओं को भी प्रेरित करना है, जो जड़ की तरफ ध्यान नहीं देते और एक-एक पत्ते को तोड़कर परिवर्तन लाना चाहते हैं। सरकार बेईमान गुण्डों को शराब के ठेके देती है।
स्वार्थ से ऊपर उठकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ो। राजसत्ता के लोग भी तुम्हें सुनेंगे। यदि नहीं सुनते, तो तुम्हारे गुरु के पास उन्हें धूल चटाने की भी शक्ति है। किसी भी सरकारी दफ्तर में जाओ, वहां पर कोई भी काम घूस दिये बिना नहीं होता। हर जगह बेईमान लोग बैठे हुए हैं। सरकारों ने यदि ईमानदारी से काम किया होता, तो आज देश की यह बदहाली देखने को न मिलती। लोग खुशहाल होते तथा हर घर में शान्ति के साथ ‘माँ’ की आराधना होती।
इस पक्ष में समाज भी कम दोषी नहीं है। वह भी भ्रष्ट है। मुझे यह कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं है। तुम रिश्वत देते हो। चुनावों के समय शराब की बोतल, कम्बल और नोट लेकर भ्रष्ट नेताओं को वोट देते हो। जीतने के बाद वे तुम्हारी तरफ देखना भी पसन्द नहीं करते। इसलिए सबसे पहले अपने आपको सुधारो।
यदि अन्य धर्मगुरुओं की तरह मैंने भी भ्रष्ट और बेईमान राजनेताओं का सहारा लिया होता, तो अब तक अपने आश्रम को वैभवशाली बना चुका होता। किन्तु, अठ्ठारह वर्ष के बाद भी वहां पर एक अस्थायी भवन में श्री दुर्गाचालीसा का अखण्ड पाठ चल रहा है। इसके लिए स्थायी निर्माण अब प्रारम्भ किया गया है। मैं विज्ञान का आवाहन करता हूँ कि वह आकर परीक्षण करे– आखिर, वहां पर वह कौन सी ऊर्जा कार्य कर रही है, जो अन्य वैभवशाली आश्रमों में नहीं है।
अपने जीवन में पवित्रता ले आओ। हमारे ऋषि-मुनियों में नए स्वर्ग के निर्माण करने की शक्ति थी। क्या तुम इस समाज को भी परिवर्तित नहीं कर सकते? मेरी असली सामर्थ्य मेरे अन्दर है। मैं देवत्व को ठुकराता हूँ। ऋषित्व उससे कहीं ऊपर होता है।
मैं रामदेव नहीं हूँ, जो कहता है कि उसने शून्य से शिखर की यात्रा की है। निश्चित ही वह इस समय भौतिकता के शिखर पर है। किन्तु, मैंने आध्यात्मिकता के शिखर से शून्य की यात्रा तय की है, ताकि आप लोगों को शिखर पर लेजा सकूं। यही पूर्णत्व होता है, इसे प्राप्त करो। तुम्हारे प्रयास से समाज बदलता चला जाएगा।
पारस तो लोहे को सोना बनाता है, किन्तु मैं तुम्हें वह बना रहा हूँ कि जो तुम्हारे सम्पर्क में आएगा, वह तुम्हारे समान हो जाएगा। यह दो दिन का बहुमूल्य समय आपके पास है। इसमें नशे-मांस से दूर रहने का संकल्प ले लो और ‘माँ’ के भक्त बन जाओ।
आज एक चौराहे से एक गुण्डा व्यक्ति गुज़र रहा होता है, तो दस लोग उसे देखकर सिर झुका लेंगे कि कौन उसके साथ उलझे? किन्तु, मैं वह दिन देखना चाहता हूँ कि चौराहे पर एक शक्तिसाधक खड़ा हो, तो दस गुण्डे सिर झुकाकर निकलें कि कहीं उनके ऊपर आफत न आजाय।
शान्ति के पक्षधर प्रायः कहते हैं कि अगर कोई तुम्हारी गाल पर एक तमाचा मार दे, तो दूसरा गाल उसकी तरफ कर दो। हम भी शान्ति के उपासक है, किन्तु शक्ति के आराधक भी हैं। मैं कहता हूँ कि यदि तुम्हारी गाल पर कोई एक तमाचा मारे, तो उसे चेतावनी दे दो। फिर भी यदि वह दूसरा तमाचा मारने के लिए हाथ उठाए, तो उसका हाथ तोड़ दो, जिससे वह आगे ऐसा करने के योग्य ही न रहे। किन्तु, अपनी शक्ति का कभी भी दुरुपयोग न करो। कोई क्षमा मांग ले, तो उसे क्षमा कर दो। आखिर, राम को अस्त्र-शस्त्रों की ज़रूरत क्यों पड़ी? अपराधी को दण्ड मिलना ही चाहिए।
तुम्हें कभी भी अपराधी नहीं बनना है। मेरे शिष्यों ने कहीं पर भी कभी कोई तोड़-फोड़ नहीं की है और न ही कभी साम्प्रदायिकता में सम्मिलित हुए हैं।
आज हाल यह है कि कहीं पर एक दुर्घटना होजाती है, तो दसियों गाडिय़ां फूंक दी जाती हैं, जिनका उस दुर्घटना से कोई लेना-देना नहीं होता। गलती एक ड्राईवर की होती है। उसे पकड़कर कानून के हवाले करना चाहिए, किन्तु पागलों की तरह लोग दर्जनों गाडिय़ों का नुक्सान करते हैं।
हम हर धर्म का सम्मान करते हैं, मानवता का जीवन जीते हैं। हमें विश्वकल्याण का जीवन जीना है। समाज में यदि हर आदमी सजग हो जाय कि उसके घर में कोई अपराधी नहीं रुकेगा, तो पुलिस का काम आधा रह जाएगा। आतंकवाद में एक हद तक रोक लगेगी।
मैंने दर्जनों लोगों को अपने आशीर्वाद से चुनावों में जिताया है। किन्तु, जीतने के बाद उनका हाल वही ‘कुत्ते की पूंछ’ जैसा रहा। वैसे, हर पार्टी में अच्छे लोग भी हैं। हमें उनकी संख्या को बढ़ाना है। राजनीति के वर्तमान स्वरूप को भी आपको बदलना है। यदि तुम नहीं बदलते, तो एक निर्धारित अवधि के बाद मैं उसे बदलूंगा। हमारे धर्मगुरु और राजनेता मात्र उद्योगपतियों के पास जाते हैं। क्या उन्हें कभी गरीब लोगों का भी विचार आया? इस धरती पर ऐसा कोई पैदा नहीं हुआ है, जो मेरे किसी शिष्य को झुका सके।
रामदेव ने बीजेपी को समर्थन दिया, क्योंकि कांग्रेस ने उसके ऊपर मकदमें लाद दिये थे। अब बीजेपी वालों ने उसके ऊपर से सब केस वापस ले लिये हैं। क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है? रामदेव ने लोगों को योग सिखाया, बड़ी अच्छी बात है। किन्तु, योग के नाम पर लोगों को लूटा गया। यह अत्यन्त निन्दनीय है। उसका संस्थान आज कालेधन पर खड़ा है।
राजसत्ता को सुधरना है, तो उसे धर्म के सामने झुकना ही पड़ेगा। सत्य को स्वीकार किये बिना सरकारों में सुधार नहीं आएगा। केजरीवाल को दिल्ली में प्रचण्ड बहुमत मिला, किन्तु उसे कार्य नहीं करने दिया जा रहा है।
विदेशों में कालाधन चला गया, सो गया। लेकिन, यदि भ्रष्टाचार को समाप्त कर दिया जाय, तो दस-पांच वर्षों में समाज में शान्ति आ जाएगी। किन्तु, जिस प्रकार से चल रहा है, धीरे-धीरे कालाधन सफेद बन जाएगा। गरीब पिसता रहेगा तथा वह और गरीब होता रहेगा। अतः आप लोग शासन-प्रशासन को प्रेरित करते रहो कि यह सब गलत हो रहा है।
हमारे संगठन ने अवैध शराब की बिक्री के इतने प्रकरण पकड़वाए हैं, जितने पुलिस प्रशासन ने भी नहीं पकड़े होंगे। शराबमाफियाओं के द्वारा हमारे कार्यकर्ताओं को उल्टे लटकाकर पिटाई की गई और बहनों के ऊपर खौलता हुआ तेल डाला गया। फिर भी संगठन बराबर अपना कार्य कर रहा है।
आप चाहें, तो आश्रम में आकर निःशुल्क योग सीख सकते हैं। वहां पर भोजन एवं आवास की व्यवस्था सदैव निःशुल्क रहती है। कभी समय मिले, तो आश्रम में आकर श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ का आनन्द लें।
(अन्त में, सबको दोनों हाथ उठवाकर संकल्प कराया गया– मैं संकल्प करता हूँ कि शादी से पहले पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का तथा शादी के बाद एक पति/पत्नी व्रत का पालन करूंगा तथा नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीते हुए मानवता की सेवा, धर्मरक्षा एवं राष्ट्ररक्षा के लिए पूर्ण समर्पित रहूंगा।)

द्वितीय दिवस- गुरुदीक्षा क्रम
शिविर के अन्तिम दिन सभी दीक्षार्थी शिविर पण्डाल में प्रातः 07ः00 बजे से पहले ही पहुंच गए थे। ठीक समय पर परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का शुभागमन हुआ। दीक्षा प्रदान करने से पूर्व आपश्री ने एक संक्षिप्त उद्बोधन दियाः
शिष्यों के लिए वे क्षण बड़े सौभाग्य के होते हैं, जब वे एक चेतनावान् गुरु से दीक्षा प्राप्त करते हैं। एक प्रकार से यह उनका नया जन्म होता है, जहां से नया जीवन प्रारम्भ होता है। यहां से हम चेतनापथ पर चलते हैं। जो व्यक्ति इन क्षणों का सदुपयोग कर लेता है, उसका जीवन सफल होजाता है। दीक्षा प्राप्त करने का तात्पर्य है, एक नए सम्बन्ध को जोड़ना। गुरु और शिष्य का सम्बन्ध आत्मा का होता है। गुरु हर पल शिष्यों का कल्याण चाहता है और उसे उस पथ की ओर बढ़ाता है।
जो लोग गुरुनिर्देशनों का पालन करते हैं, उनका जीवन परिवर्तित होता चला जाता है। गुरुदीक्षा प्राप्त करना स्कूल में प्रवेश लेने के समान है। जो बराबर परिश्रम करता है, वही सफल होता है। मैं अन्य धर्मगुरुओं की बात नहीं करता, किन्तु मैं अपने शिष्यों को अपने हृदय में धारण करता हूँ। हर पल मेरी चेतनातरंगें उन्हें आबद्ध करके रखती हैं।
हमारे माता-पिता-शिक्षक आदि भी हमारे गुरु होते हैं, किन्तु उनके अन्दर वह सामर्थ्य नहीं होती कि यदि शिष्य पुकारे, तो उनकी चेतनातरंगों को आकर्षित कर सकें। आपका गुरु अपने अस्तित्व को मिटाकर आपका अस्तित्व स्थापित करने आया है। आप लोगों को निरन्तर साधना करनी चाहिए, तभी तुम दूसरों का कल्याण कर सकोगे।
शुद्धता का सदैव ध्यान रखें। अपने घरों पर ‘माँ’ का ध्वज लगाओ। उससे किसी की दूषित निगाहों का प्रभाव नहीं पड़ेगा। यदि आपके पास पर्याप्त स्थान है, तो एक पूजनकक्ष बना लें, अन्यथा किसी अल्मारी में, आले में या दीवार पर छवि लगा लें। दैवी शक्तियों में कोई भेदभाव नहीं होता। किसी भी छवि को पहले या बाद में तिलक कर दें, पुष्प अर्पित कर दें। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
अपने मस्तक पर कुंकुम का तिलक लगाकर अपने आज्ञाचक्र को सदैव आच्छादित रखें। इससे दूषित निगाहें प्रभाव नहीं डाल पाएंगी। अपने गले में गर्व के साथ रक्षाकवच डालकर रखें। घर में पवित्रता बनाकर रखें। यदि आपका कोई अतिथि भी नशा करके आए, तो उसे समझाएं। यदि वह नाराज़ होकर चला जाय, तो जाने दें। वह कल पुनः आकर आपसे माफी मांगेगा। शक्तिजल का स्वयं नित्यप्रति पान करें और अपने परिवार के अन्य सदस्यों को कराएं। उनमें भी परिवर्तन आएगा। यदि नहीं आता, तो प्रेरित करके उन्हें आश्रम में लाएं। वहां पर आकर निन्यानवे प्रतिशत लोग नशामुक्त होकर जाते हैं। यह उस आश्रम की तरंगों का प्रभाव है।
यह प्रवाह व्यापक है। यह भी ‘माँ’ की कृपा है। चरित्रहीन लोग चरित्रवान् बन रहे हैं। आपके ज़िले में यदि कहीं पर महाआरती का क्रम चल रहा हो, तो उसमें अवश्य शामिल हों। इससे आपको आश्रम की आरती का फल मिलेगा। आज से आप लोग एक बड़े परिवार के सदस्य बन रहे हैं। दीक्षा ग्रहण करने के बाद स्वतः ही आप भगवती मानव कल्याण संगठन के सदस्य बन जाएंगे।
आप मेरे हैं, मैं आपका हूँ। मेरे लिए गरीब-अमीर सब एक समान हैं। आप मेरे चेतनाअंश बनने जा रहे हैं। सदैव अपनी मेरुदण्ड को सीधा करके बैठें। इससे हमारे मन-मस्तिष्क एकाग्र होते हैं, क्योंकि इससे हमारे सातों चक्र एक सीध में हो जाते हैं।
(अब तीन बार शंखध्वनि करने और तीन-तीन बार ‘माँ’-ऊँ बीजमंत्रों का उच्चारण करने के बाद एक संकल्प कराया गया, जिसका सार यह है कि ‘मैं धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र महाराज को अपना गुरु स्वीकार करता हूँ। मैं जीवनपर्यन्त पूर्ण नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् जीवन जीने के साथ गुरुवर जी के हर आदेश का पूर्णतया पालन करूंगा। इसके साथ-साथ भगवती मानव कल्याण संगठन एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम की विचारधारा पर चलूंगा और परम पूज्य गुरुवरश्री द्वारा प्रदत्त त्रिधाराओं के प्रति पूर्ण निष्ठा से समर्पित रहूंगा।’)
यह संकल्प आपका जीवन बन जाना चाहिए। यदि आप इस पर अमल करते रहे, तो कभी भी मुझसे दूर नहीं रहोगे। ‘माँ’ की आराधना से सभी देवी-देवताओं की आराधना स्वतः होजाती है।
(अब निम्नलिखित मंत्रों का तीन-तीन बार उच्चारण कराया गयाः

1. बजरंग बली जी का स्मरण-चिन्तन करने के लिए – ऊँ हं हनुमतये नमः, 2. भैरव जी का स्मरण-चिन्तन करने के लिए – ऊँ भ्रं भैरवाय नमः, 3. गणपतिदेव जी का स्मरण-चिन्तन करने के लिए – ऊँ गं गणपतये नमः, 4. ‘माँ’ का चेतनामंत्र – ऊँ जगदम्बिके दुर्गायै नमः, 5. गुरुमंत्र – ऊँ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः)
गुरुमंत्र का जाप पूजन के प्रारम्भ में और बाद में भी करें। इससे बहुत लाभ होता है। दीक्षा के उपरान्त, आपको एक-एक शीशी निःशुल्क शक्तिजल प्रदान किया जाएगा। यह मेरा आशीर्वादात्मक प्रसाद है। इसे आप गंगाजल या नर्मदाजल में मिलाकर बढ़ा सकते हैं। इसके पान करने से हर प्रकार का लाभ होता है। आपको रत्न धारण करने की आवश्यकता नहीं होगी।
अन्त में, तीन बार शंखनाद किया गया तथा गुरुचरणपादुकाओं को नमन करते समय सभी नए दीक्षाप्राप्त शिष्यों को निःशुल्क शक्तिजल प्रदान किया गया। साथ ही सभी ने दीक्षापत्रक भरकर जमा किया।

द्वितीय दिवस- दिव्य उद्बोधन
परमसत्ता से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए हमें अपने जीवन में परिवर्तन करना होगा। यदि हम धर्म की मूल बातों को धारण कर लें, तो हमारा जीवन बदलता चला जाएगा। पूरा ब्रह्माण्ड हमारी आत्मा में समाहित है। ‘माँ’ ने हमें सब कुछ दे रखा है। कुण्डलिनी के सातों चक्र सभी के अन्दर दिये हैं तथा सभी के लिए उससे एकाकार करने का मार्ग खुला है। इससे आप पूर्णत्व प्राप्त कर सकते हैं।
साधना का लाभ तत्काल मिलता है। अपने वर्तमान को संवार लो। तुमने कल तक क्या किया, उसे भूल जाओ। यदि कोई अपराध होगया हो, तो उसके लिए प्रायश्चित करें। आपका वर्तमान संवर जाएगा और भविष्य उज्ज्वल होगा।
तुम सालभर अनीति-अन्याय-अधर्म करते रहो और एक बार ‘माँ’ के दरबार में चले जाओ, तो इससे कभी भी भला नहीं होगा। ‘माँ’ की कृपा का आकलन भौतिक जगत् की प्राप्ति के आधार पर मत करो। इसकी बजाय, देखो कि आप पर-हित के लिए क्या करते हो? आपके अन्दर सात्त्विकता आ रही है या नहीं? हमें सत्य को धारण करना है। यदि ऐसा नहीं करते, तो हमारी नई पीढ़ी दुष्प्रभावित होगी। हमारे बच्चों में अच्छे संस्कार नहीं पड़ेंगे। उन्हें अच्छे संस्कार देकर जाओ। यह उनके लिए अच्छी पूंजी होगी। यह जग तभी बदलेगा, जब हम अपने आपको बदलेंगे। यह जीवन संस्कारों का खेल है।
हमारी कथनी और करनी में कोई अन्तर नहीं होना चाहिए। सबसे पहले अपने शरीर को पवित्र बनाओ। नशा-मांस, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता, नास्तिकता और आलस्य को त्यागो। ‘माँ’ ने जैसा आपको भेजा था, वैसे निर्मल बन जाओ। आपके अन्दर त्याग और तपस्या की पराकाष्ठा होनी चाहिए। अभ्यास से सब कुछ सम्भव है। धीरे-धीरे जीवन को बदलना शुरू करो।
व्यापारी बनकर साधना मत करो। हमेशा निर्मल मन से ध्यान करो। आप लोग या तो जाग्रत् अवस्था का जीवन जी रहे हो, या सुषुप्तावस्था का। आपके अन्दर जो आनन्द भरा है, उसकी ओर ध्यान दो। तब भौतिक जगत् शून्य नज़र आएगा। ध्यान करने के आदी बनकर देखो। आपकी कुण्डलिनी की तरंगें यदि एक बार भी मस्तिष्क तक पहुंच गईं, तो सारे बाह्य सुख नगण्य नज़र आएंगे। दिनभर आपका मन प्रसन्न रहेगा। उसी के लिए कहा गया है कि इस नशे के बराबर कोई नशा नहीं है।
नशे-मांस का सेवन करना न तो कोई देवी-देवता सिखाते हैं और न ही कोई धर्म सिखाता है। संकल्प करो कि जीवन में कभी भी नशा-मांसाहार का सेवन नहीं करेंगे। सदैव सात्त्विक आहार लो। इससे ज़्यादा शक्ति मिलेगी और सन्तोष प्राप्त होगा। हमें किसी भी जीव की हत्या करके उसे ग्रहण करने का अधिकार नहीं है। यदि ऐसा करेंगे, तो पाप के भागीदार बनोगे।
भ्रष्टाचार सबसे बड़ी महामारी है। अनीति-अन्याय-अधर्म के द्वारा आया पैसा विष के समान होता है। उससे कभी भी कल्याण नहीं होगा। नौकरी पाने के लिए यदि कोई पांच-दस लाख रुपए देगा, तो बाद में वह भ्रष्टाचार करेगा ही। इसीलिए इसे ऊपरी स्तर से समाप्त करना होगा। भ्रष्टाचार करने की बजाय, परिश्रमी और पुरुषार्थी बनो।
आप लोग सदैव साम्प्रदायिकता से दूर रहो। अपने आपको सुधारो। हम इन्सान हैं। इसलिए इन्सानियत का व्यवहार करें। एक-दूसरे के धर्म का सम्मान करें। यदि आप साम्प्रदायिक बनेंगे, तो आपके बच्चों का स्वभाव भी उग्र होगा। उनमें आपराधिक मानसिकता स्वतः विकसित हो जाएगी। इसलिए उनमें गरीबों के प्रति सहानुभूति पैदा करो। उन्हें बताओ कि वे लोग कैसा अभाव का जीवन जी रहे हैं। आप लोग गरीबों का सहारा बनो। साम्प्रदायिकता से कभी भी किसी का हित नहीं हुआ है। पाकिस्तान का उदाहरण आपके सामने है। उसने उग्रवाद को बढ़ावा दिया और आज सबसे ज़्यादा उग्रवाद की त्रासदी वही झेल रहा है।
अपने देश को यदि हमें सोने की चिडिय़ा बनाना है, तो हमें संस्कारों की ओर दौड़ना पड़ेगा और अपने आपको संवारना होगा।
नास्तिकता आज का सबसे बड़ा रोग है। वैसे, स्वभाव से कोई नास्तिक होता नहीं है। उसे रात में आप श्मशान में लेजाओ, तो वह डरेगा और जो डरता है, वह नास्तिक कभी हो नहीं सकता।
अपने कर्तव्यों और ज़िम्मेदारियों को समझो और उन्हें पूरा करो। मैं अपना और अपने परिवार का व्यय अपने कर्मबल के द्वारा उपार्जित धन से करता हूँ। ऐसा ही आप भी करो। इससे आपके बच्चे स्वतः ऐसे ही बन जाएंगे।
आलस्य के आप गुलाम बने हो, जब कि परमसत्ता ने आपको असीम शक्ति दी है। नित्यप्रति सूर्योदय से पहले उठो। उस समय पक्षी भी चहचहाने लगते हैं। किन्तु, आप लोग देवत्व से दूर चले गए हैं और असुरत्व धारण कर लिया है। आज के बच्चों ने प्रायः सूर्योदय देखा नहीं है। उन्हें भी सूर्योदय से पहले जगाओ। मैंने स्वयं अपनी बच्चियों को छः महीने की उम्र होने के बाद सूर्योदय से पहले जगाया है। आज धनवान् लोग दस बजे से पहले नहीं उठते। यह आसुरी प्रवृत्ति है। पहले दुकानें सुबह सात बजे खुल जाती थीं। अब ग्यारह बजे के बाद ही खुल पाती हैं।
गांव के लोग अब भी प्रातः उठते हैं, किन्तु शहर के लोगों में राक्षसी प्रवृत्ति आ रही है और उनके जीवन में विकार भरते जा रहे हैं। आलस्य से आपकी कार्यक्षमता घटती है।
बेटे को कोई नहीं पूछता कि रात बारह बजे तक कहां था? किन्तु, बेटी को एक घण्टा देर हो गई, तो उससे हज़ार प्रश्न पूछे जाएंगे। वर्जनाएं दोनों के लिए समान होनी चाहिएं। यदि एक बेटी के साथ कुछ गलत होता है, तो उसके लिए कोई न कोई बेटा ज़िम्मेदार होता है।
बेटियों और बेटों में भेद मत करो। मैंने स्वयं ‘माँ’ के चरणों में प्रार्थना की थी कि मेरे यहां बेटियां ही जन्म लें और मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे तीनों बेटियां ही प्राप्त हुई हैं। सन्तानोत्पत्ति के उपरान्त मैं सपत्नीक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता हूँ। ब्रह्मचर्य में बड़ी शक्ति होती है। आप लोग भी मर्यादित जीवन जिएं।
अधिक से अधिक परोपकार के कार्य करो। दूसरों के बच्चों के सहारा बनो और उन्हें पढ़ाओ तथा अच्छी-अच्छी बातें बताओ। आपके अन्दर चेतनता होनी चाहिए। मैंने कभी भी छुआछूत को नहीं माना है। आश्रम में आकर मेरे जीवन को देखो और उसका अनुसरण करो।
निराशा को दूर भगाओ और समझने का प्रयास करो कि जीवन कैसे जियें? समस्याएं सभी के जीवन में आती हैं, किन्तु उनसे घबराकर कुछ लोग आत्महत्या कर लेते हैं। यह सबसे बड़ा पाप है। इससे बाहर निकलो। आत्महत्या आपका अधिकार नहीं है। यह शरीर परमसत्ता का है। मैंने लोगों के अन्दर आत्मबल भरा है और उन्हें आत्महत्या से बचाया है।
मेरी आवश्यकता सबसे पहले गरीब लोगों को है। मैंने उन्हें बदला है और अब वे दूसरों को बदल रहे हैं। तुम दूसरों को सहारा दो, परमसत्ता तुम्हें सहारा देंगी। कुएं से पानी निकालते रहोगे, तो ताज़ा स्वच्छ जल स्वतः आता चला जाएगा। इसी प्रकार, अपने धन का उपयोग दूसरों के लिए करो।
हमें अपने धर्म को सुधारना है। भगवती मानव कल्याण संगठन में करोड़ों लोग हैं। इनमें से लाखों लोग समाज में श्री दुर्गाचालीसा का अखण्ड पाठ निःशुल्क कराते हैं। मैं सालभर में तीन शक्ति चेतना जनजागरण शिविरों का आयोजन करता हूँ। इनमें से एक शारदीय नवरात्र की अष्टमी, नवमी एवं विजयादशमी की अवधि में आश्रम में होता है तथा दो आश्रम से बाहर समाज में होते हैं। इसका परिणाम यह है कि समाज में ‘माँ’मय वातावरण बन रहा है।
हर मनुष्य के तीन कर्तव्य हैं मानवता की सेवा, धर्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा। धर्म की रक्षा का अर्थ है कि हम उसे अपने जीवन में धारण करें और किसी दूसरे व्यक्ति के धर्म को न्यून न समझें। कोई भी धर्म छोटा नहीं है। दूसरे धर्मों का सदैव सम्मान करो। मेरे द्वारा संस्थापित भगवती मानव कल्याण संगठन का एक भी कार्यकर्ता साम्प्रदायिकता में लिप्त नहीं है। हम अपने धर्म की रक्षा भी करना जानते हैं। सोमनाथ का मन्दिर क्यों टूटा? वहां के पुजारियों ने उसकी रक्षा नहीं की। वे उसकी रक्षा के लिए खाली भगवान् से प्रार्थना करते रहे और सोचते रहे कि भगवान् आक्रमणकारियों की आंखें फोड़ देंगे। हम सभी धर्मों के साथ रह सकते हैं।
आज के कथित शंकाराचार्य न तो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं, न नशा-मांसाहार के खिलाफ और न ही अपने आपको भगवान् कहने वालों के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं। हिन्दूधर्म के सबसे बड़े शत्रु हिन्दू लोग ही हैं। ऐसा एक विश्वस्तरीय धर्मसम्मेलन आयोजित कराने की आवाज़ शंकराचार्य लोग क्यों नहीं उठाते? मैंने विश्व के समस्त धर्मगुरुओं को ससम्मान चुनौती दी है कि वे मेरे साधनात्मक तपबल का सामना करें। मेरी पूर्ण कुण्डलिनी चेतना जाग्रत् है। मैं किसी भी मरणासन्न व्यक्ति को जीवनदान दे सकता हूँ। घनघोर होती वर्षा को रोकने और कराने की सामर्थ्य मुझमें है। कौन सोना है और कौन लोहा? इसका परीक्षण हो सकता है। विज्ञान के पास ऐसे यंत्र हैं। यदि एक बार ऐसा होजाय, तो यह चमत्कार नहीं, धर्म की रक्षा होगी।
हम विश्वकल्याण की बातें करते हैं। यही समाज गंगा की सफाई एक साल के अन्दर कर सकता है। कई ऐसे धार्मिक संस्थान हैं, जिनके पास अकूत धन-सम्पत्ति है। देश में कई्र बार अकाल पड़े, किन्तु उन्होंने कुछ नहीं किया। अनेक लोग मरकर चले गए और उनका धन यहीं पड़ा रह गया। वे कहते हैं, ‘माया महाठगिनी मैं जानी’ और माया में सबसे ज़्यादा लिप्त वही हैं। काया, वास्तव में, महाठगिनी है, जो हर पल आपको ठग रही है–आलस के रूप में, आराम के रूप में, विषय-विकारों के रूप में, आदि-आदि। इस काया का उपयोग करो। इसका मित्र बनकर इसे भोजन कराओ और शत्रु बनकर इससे परिश्रम कराओ। इसे अन्ततः नष्ट तो होना ही है।
मैंने समाज को तीन धाराएं प्रदान की हैं। मानवसेवा के लिए भगवती मानव कल्याण संगठन का गठन किया है। हमारे पास मन-बुद्धि-शरीर की जो सामर्थ्य है, हम उन्हीं से कार्य कर रहे हैं। आने वाले समय में नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीने वाला यह विश्व का सर्वश्रेष्ठ संगठन होगा।
धर्म की रक्षा के मैंने लिए पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम की स्थापना की है। वहां पर श्री दुर्गाचालीसा का अखण्ड पाठ अहर्निश चल रहा है। प्रतिवर्ष लाखों लोग यहां आकर आध्यात्मिक एवं भौतिक लाभ प्राप्त करते हैं। बेईमान राजनेताओं ने आज़ादी मिलने के बाद यदि ईमानदारी के साथ कार्य किया होता, तो देश की यह दुर्दशा नहीं होती। प्रयास करते रहो। एक न एक दिन सरकारें अवश्य बाध्य होंगी।
राष्ट्र की रक्षा के लिए मैंने भारतीय शक्ति चेतना पार्टी का गठन किया है। स्वयं मेरे पास सक्रिय राजनीति में भाग लेने का समय नहीं है। मुझे महाशक्तियज्ञ करने हैं। पार्टी का गठन सत्तासुख भोगने के लिए नहीं, बल्कि समाजसेवा के लिए किया है। जो बेईमान राजनेता देश को लूटकर सुख भोग रहे हैं, हम उन्हें सत्ता से उतारना भी जानते हैं।
इन तीनों धाराओं में मेरे निष्काम कार्यकर्ता लगे हैं। मेरी हर पल की साधना उनसे जुड़ी है। आप लोग कार्य करें, राजसत्ता अपने आप सुधर जाएगी। किन्तु, अपनी शक्ति का कभी भी दुरुपयोग मत करो।
न तो कभी अनीति-अन्याय-अधर्म करो और न ही उन्हें स्वीकार करो। अगर तुम कुछ नहीं करोगे, तो परमसत्ता भी कुछ नहीं करेगी। संगठित होकर आवाज़ उठाओ और अहिंसक रूप में आगे बढ़ो।
फिल्म अभिनेता अश्लीलता परोस रहे हैं। आपके अन्दर उनके प्रति नफरत का भाव होना चाहिए। उन्हें कदापि सम्मान मत दो।
राजनेता बड़े-बड़े आश्वासन देकर आपको छल रहे हैं। आज का कोई भी मुख्यमंत्री यह नहीं कह सकता कि उसने भ्रष्टाचार नहीं किया है।
यदि कोई भी सरकार देश को पूर्ण नशामुक्त घोषित कर दे, तो हम उसे समर्थन देने को तैयार बैठे हैं। प्रदेशों की राजधानी में हम लोग सरकारों को समझाने और साथ ही चेतावनी देने भी जाते हैं।
बहुत शीघ्र मैं छत्तीसगढ़ में एक बार पुनः आऊंगा। फरवरी 2017 में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में नशामुक्ति महाशंखनाद किया जाएगा। छत्तीसगढ़ के लोगों ने इस शिविर के आयोजन में दिल खोलकर सहयोग दिया। अतः मैं उन्हें अपना पूर्ण आशीर्वाद प्रदान करता हूँ।
आगामी 20-21 फरवरी 2016 को उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में नशामुक्ति महाशंखनाद शक्ति चेतना जनजागरण शिविर का आयोजन होगा। मैं 17 फरवरी को प्रातः आश्रम से प्रस्थान करूंगा और इलाहाबाद में रात्रिविश्राम करूंगा। अगले दिन 18 फरवरी को वहां से चलकर कानपुर में रुकूंगा और 19 तारीख को लखनऊ पहुंचूंगा। उसके बाद आगामी नवरात्र की अष्टमी, नवमी और विजयादशमी में हर वर्ष की भांति आश्रम में शक्ति चेतना जनजागरण शिविर का आयोजन दिनांक 9, 10, 11 अक्टूबर को होगा और 26, 27 नवम्बर 2016 को सागर (म.प्र.) में शिविर आयोजित किया जाएगा।
समाज में अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध जो व्यक्ति आवाज़ नहीं उठाता, वह सबसे बड़ा अधर्मी है। आजकल राजनेताओं का सम्मान होता है। उन्हें नशा-मांस परोसा जाता है। इसका पर्दाफाश अतिशीघ्र होगा। आप लोग साधना करते रहो। आसाराम बापू, रामदेव, निर्मल बाबा और कुमारस्वामी जैसे लोग हमें ठग न सकें, इसलिए इनके खिलाफ मैं आवाज़ उठाता रहूंगा। बड़े से बड़े को आप ठोकर मार सको, यह शक्ति ‘माँ’ से मांगो। और, गरीबों को कभी मत सताओ।
‘माँ’ के सच्चे भक्त बनो। यह सृष्टि कर्मप्रधान है, इसलिए सत्कर्म करो। नित्य जब साधना में बैठो, तो ‘माँ’ से प्रार्थना करो कि हे माँ, ये भ्रष्ट बेईमान अधर्मी-अन्यायी राजनेता बड़ी-बड़ी बीमरियों के शिकार हों, दुर्घटनाओं में मरें।
अपने मन को सदैव शान्त रखो। इसके लिए मैंने आपको दो बीज मंत्र ‘माँ’-ऊँ दिये हैं। इनका क्रमिक उच्चारण करो और इनके गुंजरण को सुनो। इससे विकार दूर होंगे। उसके बाद ध्यान में बैठो और शून्यवत् होने का प्रयास करो। अपने आज्ञाचक्र पर ध्यान केन्द्रित करो। यह राजाचक्र है। अपने बच्चों को भी ध्यान में बैठाओ। इससे उनकी याददाश्त तेज़ होगी और मन की एकाग्रता बढ़ेगी। इससे आगे यदि कोई जानना चाहे, तो वह आश्रम में आकर मुझसे जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
हमारे ऋषि-मुनियों की बातें कभी भी झूठी नहीं हो सकतीं। उन्होंने कण-कण में परमसत्ता का वास बताया है। आप लोग अपनी आत्मा से रिश्ता जोड़ने का संकल्प लो। परमसत्ता आपको जैसा बनाना चाहती है, वैसे बन जाओ। यही सच्ची भक्ति है।
अपने घर पर ‘माँ’ का ध्वज लगाओ। इससे सात्त्विक तरंगें आकर्षित होंगी और असात्त्विक तरंगें दूर भागेंगी। किसी चेतनावान् गुरु के द्वारा यदि मिट्टी भी उठाकर दे दी जाती है, तो वह प्रसाद बन जाता है। आप सभी अधिक से अधिक जनजागरण करें, ताकि धमतरी एक ‘माँ’मय नगरी के रूप में जानी जाय।
दिनांक 30 नवम्बर को परम पूज्य गुरुवरश्री ने पोटियाडीह के ग्रामवासियों को मिलने का अवसर दिया, जिन्होंने गांव के कल्याण एवं विकास का भरपूर आशीर्वाद प्राप्त किया। साथ ही, मीडिया के कुछ गण्यमान्य पत्रकारों को भी गुरुवरश्री से मिलकर अपनी जिज्ञासाओं की पूर्ति करने का अवसर मिला।
इस प्रकार, धमतरी में दो दिवसपर्यन्त चला यह विशाल शक्ति चेतना जनजागरण शिविर माता भगवती आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की अहैतुकी कृपा एवं परम पूज्य सद्गुरुदेव योगिराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के दिव्य आशीर्वाद के फलस्वरूप निर्विघ्न सम्पन्न होगया। कहीं पर भी कोई अप्रिय घटना नहीं घटी तथा चंहुओर आनन्द ही आनन्द रहा।

जय माता की - जय गुरुवर की

यूट्यूब चैनल

BMKS

Siddhashram Dham

Bhajan Sandhya Siddhashram

BSCP

फेसबुक

Twitter

मौसम

India
clear sky
37.8 ° C
37.8 °
37.8 °
23 %
2kmh
6 %
Fri
39 °
Sat
39 °
Sun
37 °
Mon
33 °
Tue
38 °