शक्ति चेतना जनजागरण शिविर, जगाधरी (यमुनानगर), हरियाणा, 24-25 नवम्बर 2012

हरियाणा का यह बहुत बड़ा सौभाग्य है कि परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के द्वारा अब तक किये गए कुल आठ महाशक्तियज्ञों में से चार इसी प्रदेश में सम्पन्न किये गए हैं। हरियाणा में भी यमुनानगर जिला सबसे अधिक सौभाग्यशाली रहा है, जिसे अब तक हरियाणा में आयोजित किये गए कुल छः शक्ति चेतना जनजागरण शिविरों में से चार प्राप्त हुये और अब 24-25 नवम्बर 2012 को यह एक और शिविर प्राप्त हुआ है।
ऐसा अकारण ही नहीं हो गया है। इसके पीछे हरियाणावासियों की गुरुवरश्री के प्रति अगाध श्रद्धा एवं पूर्ण समर्पण भावना तथा उनके कार्य के प्रति निष्ठा, लगन, परिश्रम एवं कर्मठता है। ये लोग प्रारम्भ से ही युग परिवर्तन की उनकी यात्रा में गुरुवरजी के सहगामी रहे हैं। उनके साथ चलकर इन्होंने सत्य के दर्शन प्राप्त किये हैं। यही कारण है कि गुरुवरश्री के एक निर्देश पर पूरा हरियाणा प्रान्त एकजुट खड़ा नजर आता है।
दिल्ली में महाराजश्री के द्वारा युग परिवर्तन का प्रथम शंखनाद किया गया था। तत्पश्चात्, द्वितीय सागर (म.प्र.) में और तृतीय सिद्धाश्रम में महाशंखनाद के रूप में किया गया, जो अति विशिष्ट और महत्त्वपूर्ण था। यमुनानगर (हरियाणा) के इस शिविर में भी शंखनाद किया गया और इसके बाद कहीं भी होने वाले प्रत्येक शिविर में यह शंखनाद बराबर होता रहेगा। गुरुवरश्री का निर्देश है कि हम लोग जहां पर भी रहें, वहां सुबह-शाम शंखनाद अवश्य करते रहें। इससे वातावरण स्वच्छ एवं निर्मल होता है और सात्त्विकता का सृजन होता है।
परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् ने इस शिविर की घोषणा मई 2012 में संगठन के कार्यकर्ताओं की बैठक में की थी। तभी से हरियाणा के कार्यकर्ता इसकी तैयारी में जुट गए थे। तदुपरान्त, 22 से 24 अक्टूबर 2012 को आश्रम में ‘युग परिवर्तन का महाशंखनाद’ शिविर सम्पन्न होते ही हरियाणा के इस शिविर की विभिन्न व्यवस्थाओं हेतु हजारों कार्यकर्ता अपने तन-मन-धन के समर्पण से लग गये थे।
इस द्विदिवसीय शिविर से सम्बन्धित पैम्फ्लैट्स भी छपवाए गये थे और ‘युग परिवर्तन का महाशंखनाद’
शिविर में सम्मिलित शिविरार्थियों को वितरित किये गए थे। इसके अतिरिक्त संगठन के कार्यकर्ताओं को ये पैम्फ्लैट्स उनके क्षेत्रों में वितरित करने हेतु दिये भी गए थे। शेष प्रचार कार्य यमुनानगर के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने अपने स्तर से अपने ढंग से किया, ताकि अधिक से अधिक लोग इस शिविर का लाभ ले सकें।
उल्लेखनीय है कि अन्य धर्मगुरुओं के विपरीत, धर्मसम्राट् परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज नितान्त निःशुल्क शिविर आयोजित करते हैं, जिनमें शिविरार्थियों के लिए भोजन एवं आवास व्यवस्था भी निःशुल्क रहती है और गुरुदीक्षा प्रदान करने के लिए भी कोई शुल्क नहीं लिया जाता।
इस शिविर में दोनों दिन प्रातः आठ से नौ बजे तक मंत्र जाप और ध्यान-साधना का क्रम हुआ। अपराह्न दो से तीन बजे तक माता के भजन, भावगीत एवं जयकारों का कार्यक्रम हुआ और सायं तीन बजे से पांच बजे तक महाराजश्री के चेतनात्मक प्रवचन के उपरान्त आरती, समर्पण स्तुति एवं प्रसाद वितरण हुआ। दिव्य आरती का नेतृत्व शक्तिस्वरूपा तीनों बहनों पूजा, संध्या एवं ज्योति योगभारती जी ने किया। अन्तिम दिन 25 नवम्बर को प्रातः आठ बजे इच्छुक व्यक्तियों को परम पूज्य सद्गरुदेव भगवान् ने निःशुल्क गुरुदीक्षा प्रदान की। लगभग 5000 लोगों ने दीक्षा ग्रहण की। कार्यक्रम का जीवन्त प्रसारण दोनों दिन अपराह्न 02ः30 से 06ः00 बजे तक श्रद्धा चैनल पर किया गया।

चिन्तन प्रदान करते हुए सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज

प्रथम दिवसः दिव्य उद्बोधन
वर्तमान में पूरी मानवता तड़प रही है, कराह रही है। वह अनीति-अन्याय में ऐसी फंस चुकी है कि निरन्तर सहायता के लिए बाट जोह रही है। किन्तु, कोई सहायता देने वाला नहीं है। धर्मगुरु सहायता देने की बजाय उसे लूट रहे हैं। मनुष्य मानसिक रूप से विकलांग होता जा रहा है। मनुष्य के अन्दर आध्यात्मिक ज्योति कभी बुझती नहीं है। यह अलग बात है कि वह उसे देख नहीं पा रहा है।
इसके लिए एकमात्र मार्ग माता भगवती की अराधना है, जो हम सबकी जननी हें। समय-समय पर देवाधिदेवों ने भी उसे ही पुकारा है। हिन्दू हो या मुस्लिम, सिख हो या ईसाई, सभी का शरीर एक समान है। जीवन जीने की शैली एक ही है। वे सभी एक ही ढंग से उत्पन्न होते हैं और सबकी मृत्यु भी एक ही प्रकार से होती है। इन सभी की जननी माता भगवती ही हैं और सबके भीतर उसी का अंश आत्मा के रूप में विद्यमान है।
आज की समस्याओं के समाधान के लिए कथा-भागवत की आवश्यकता नहीं है। मैंने बार-बार कहा है कि धर्मग्रन्थों को कुछ समय के लिए समेटकर रख दो। अपनी आत्मा के ग्रन्थ का अध्ययन करो। इससे आप लोग धर्मग्रन्थों के द्वारा भटकाए जाने से बच जाओगे। एक समय था जब हमारे यहां चार शंकराचार्य होते थे, जिन्होंने समाज का सही मार्गदर्शन किया। किन्तु, आज पैंसठ-पैंसठ शंकराचार्य होते हैं, फिर भी सामज पतन के मार्ग पर जा रहा है। इसके कारण को खोजने की आवश्यकता है।
मैं भी आप लोगों को कथा-वार्ताएं सुनाता रह सकता हूँ, किन्तु उससे कोई लाभ नहीं होगा। इसीलिए मैं साधक तैयार कर रहा हूँ। ‘माँ’ की आराधना करो, उसे प्रेम-श्रद्धा से याद करो। ठीक उसी प्रकार जैसे तुम किसी पारिवारिक सम्बन्धी से प्रेम करते हो, उसी तरह ‘माँ’ से प्रेम करके देखो। तुम आत्मा के बारे में सुनते तो हो, पर उसे जानना नहीं चाहते।
भक्ति का अर्थ केवल मन्दिर जाकर मत्था रगड़ना नहीं है। इसका अर्थ है अपने जीवन चरित्र को बदलो। लोग तीर्थयात्रा करते हैं, सत्संग में बैठते हैं, किन्तु उनकी कार्यप्रणाली अधर्म की ओर रहती है। यह भक्ति नहीं है। सबको धन-सम्पत्ति और भौतिकवाद की भूख पैदा हो चुकी है। इतिहास बताता है कि जिनके पास अरबों-खरबों की सम्पत्ति थी, वे सदैव दुःखी ही रहे। किन्तु, गरीब चेतनावान् व्यक्तियों ने लोगों के जीवन को बदला है और स्वयं भी सुखी रहे। आज धर्म में पूरा समाज लुट रहा है, क्योंकि सब चाहते हैं कि हमारी एक इच्छा पूरी हो जाय।
इस हरियाणा प्रान्त में कभी धर्म था, किन्तु आज पूरा प्रान्त उन धर्म के लुटेरों से लुट रहा है। कुछ चौकियां लगाकर लूट रहे हैं और भोलेभाले लोगों का बेवकूफ बना रहे हैं। वास्तविकता यह है कि कोई भी देवी-देवता किसी के सिर चढ़कर नहीं बोलते। यदि कोई ऐसा दावा करता है, तो मेरे सामने आकर दिखाए। मैंने चुनौती इसीलिए रखी है। मेरी इस चुनौती को स्वीकार करो, ताकि समाज कम से कम देख सके कि साधनात्मक क्षमता किसके पास है? इसे मैं जानता हूँ, क्योंकि मैंने अपनी कुण्डलिनी चेतना जाग्रत् की है। इसलिए सब तथाकथित धर्मगुरुओं का सत्यपरीक्षण होना चाहिये।
कोई बीजमंत्र बेच रहा है, कोई दरबार लगाकर टोटके बता रहा है और कोई योग के नाम पर लोगों को लूट रहा है। समाज को लूटना-ठगना बन्द करो। भगवती मानव कल्याण संगठन का गठन मैंने इसी सुधार के लिए किया है। मुझे आज तक ऐसा कोई सन्त नजर नहीं आया, जो धन्ना सेठों की चौखट पर दुम न हिलाता हो।
भगवती मानव कल्याण संगठन के मेरे दस लाख से भी ज्यादा दीक्षित शिष्य घर-घर जाकर लोगों को ‘माँ’ की भक्ति सिखा रहे हैं। विगत सोलह वर्षों से मेरे आश्रम में श्री दुर्गा चालीसा का अखण्ड पाठ चल ही रहा है। ऐसा कोई दिन खाली नहीं जाता, जब समाज में मेरे शिष्यों द्वारा श्री दुर्गा चालीसा पाठ न कराया जाता हो। ये लोग स्वयं साधना कर रहे हैं और लोगों को भी साधना करना सिखा रहे हैं।
दूसरे धर्मगुरु दर-दर पैसे के लिए घूमते हैं। दान के पैसे से उनका गुजारा चलता है। मैं अपने कर्मबल से प्राप्त धन से अपना तथा अपने परिवार का जीविकोपार्जन चलाता हूँ और उसी में से ‘माँ’ के कार्य में भी लगाता हूँ। हर घर को ‘माँ’ का मंदिर बनाना मेरा लक्ष्य है। इन अधर्मीयों-अन्यायियों ने लाखों लोगों को लूटा है। भगवती मानव मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ता स्वयं सीधे रहते हैं और दूसरों को भी सीधा कर सकते हैं। ये सभी पूर्ण अनुशासित रहते हैं। विश्वास न हो, तो उन जिलों में जाकर देखें, जहाँ पर वे कार्य कर रहे हैं। राजनेता भी उन्हें सम्मान देने के लिए बाध्य हैं।
हरियाणा प्रान्त आज विनाश की ओर बढ़ रहा है। यहाँ के अस्सी प्रतिशत लोग ऋण में डूबे हैं। सब दूसरे के महल को देखकर उससे बड़ा महल बनाना चाहते हैं। कब तक बहोगे इन झंझावातों में? पुराने राजा-महाराजाओं के महलों को देखो। आज वहाँ पर गीदड़ और उल्लू बोलते हैं।
अपनी आत्मशक्ति को जाग्रत् करो तो। श्री दुर्गा चालीसा पाठ अत्यन्त सरल और सहज है। इसे करके तो देखो। इन क्रमों का दौर देश-विदेश में चल पड़ा है।
आज धर्मगुरुओं के नाम पर ढोंगियों और पाखण्डियों की भरभार है। देश को इतना राजनेताओं ने नहीं लूटा, जितना इन ढोंगियों ने लूटा है। धर्मगुरुओं के सत्यपरीक्षण की मेरी मांग हर मंच से उठती है और उठती रहेगी। किसी भी धर्मगुरु के सामने सिर झुकाने से पहले उसके चरित्र को देखो। इससे तुम लुटने से बच जाओगे।
मैं इस मंच से बीजमंत्र बेचने वालों, योग के नाम पर लूटने वालों और टोटके बताने वालों को चुनौती देता हूँ। अब तो पासवर्ड दिया जाने लगा है। इससे बड़ा फ्रॉड और कोई नहीं हो सकता है। समाज को छला जा रहा है, लूटा जा रहा है।
अपने आपको योगऋषि और योगगुरु कहने वालों के पास कोई नैतिक बल नहीं है, अन्यथा पुलिस के डर से महिलाओं के कपड़े पहनकर भागने की क्या जरूरत थी? मीडिया के सामने रोने की क्या जरूरत थी? यह एक योगी का कर्म नहीं है। ये शुरू में धर्मगुरुओं की बुराई करते थे और स्वयं को गुरु नहीं कहते थे। धीरे-धीरे आगे चलकर योगगुरु बन गए। कहते थे सूक्ष्म शरीर कुछ होता ही नहीं है,किन्तु अब स्थूल और सूक्ष्म दोनों शरीरों की बातें करते हैं। इण्टरनेशनल भिखारी बनकर पैसा इकठ्ठा किया और गर्व से कहने लगे कि उन्होंने शून्य से शिखर की यात्रा तय की है, अर्थात् पैसा उनके लिए शिखर है। वास्तविकता यह है कि इन्हें योग की पूर्णता का ज्ञान नहीं है।
मैं कहता हूँ कि मैंने शिखर से शून्य की यात्रा की है, ताकि उन लोगों को अपने साथ शिखर पर ले जा सकूँ, जो शून्य पर खड़े हैं।
मैं जो कुछ कहता हूँ, प्रमाण के साथ कहता हूँ। मेरे पास रिकॉर्ड की हुई इनकी क्लिपिंग्स रखी हैं, जिनमें इनके एक सहयोगी ने किसान गोष्ठी में कहा है कि तुम्हारे पास जो अच्छे सेब हैं, उन्हें तुम बाजार में बेच दो और जो गले-सड़े सबसे खराब हैं, जिन्हें जानवर भी न खाते हों, उन्हें हमें दे दो। हम उनका मुरब्बा बनाएंगे। अब आप सोचिए कि जो इनका बनाया हुआ सेब का मुरब्बा आप खा रहे हैं, वह क्या है? यही हाल इनके यहाँ के गोमूत्र का है, जिसके स्थान पर ये भैंस का मूत्र पिला रहे हैं।
इन्होंने आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने के बड़े-बड़े प्रतिष्ठान स्थापित कर रखे हैं। उनके द्वारा बनाई गई औषधियों का भी क्या भरोसा? आयुर्वेद की वकालत वे इसलिए करते हैं कि इनके लिए आयुर्वेद के उपभोक्ता तैयार हो जाएं। जब ये योग से सारी बीमारियों को दूर कर सकते हैं, तो आयुर्वेदिक दवाइयों की क्या जरूरत?
अब तो कांग्रेस पार्टी से इनका टकराव हो गया और ये उसकी बुराई करने लगे, नहीं तो इन्होंने हर पार्टी से पैसे लिए और विभिन्न भ्रष्ट राजनेताओं की कृपा से अपने आश्रम के वास्ते जमीन लेकर उसका विस्तार किया। इस कारण इन्होंने अपने मंच से बेईमान नेताओं का सम्मान किया। टिकट बेच-बेचकर योग सिखाया और खुद कालेधन के अम्बार पर बैठे हें, जब कि देश के कालेधन को स्विस बैंक से वापस लाने की वकालत करते हैं। क्या एक योगी कभी योग को बेचता है?
निर्मल दरबार लगाने वाले, बीजमंत्र बेचने वाले और योग शिविरों में भोलेभाले लोगों का मोटा पैसा ऐंठने वाले, ये लोग देश के गद्दार हैं, लुटेरे हैं। यह कहने में मुझे तनिक भी संकोच नहीं है।
कथावाचक धर्मगुरु कहते हैं कि एक भागवत कथा करा लो, तुम्हें भगवान् की कृपा प्राप्त हो जाएगी, तुम्हारा उद्धार हो जाएगा। उन्होंने इतनी भागवत अभी तक की, उनका स्वयं का उद्धार क्यों नहीं हुआ? क्यों पैसा लूटने के चक्कर में पड़े हैं? वे अपने हाथों में रत्नजड़ित अंगूठियां इसलिए पहनते हैं कि स्वयं भयभीत हैं। ऐसे लोग तुम्हारा क्या कल्याण करेंगे?
किसी कथावाचक ने कहा कि अमुक राजा ने इतनी गाएं दान कीं, जितने आकाश में तारे हैं। उन्हें इस बात का भी ज्ञान नहीं कि आकाश का कितना विस्तार है? आकाश के तारों की संख्या के बराबर गाएं यदि धरती पर आ जाएं, तो पैर रखने के लिए जगह नहीं बचेगी। ऊलजलूल बातें करते इन्हें शर्म नहीं आती। कहते हैं कि एक चोर शिव जी के मस्तक पर पैर रखकर ऊपर चढ़ा, तो वह प्रगट हो गए। अरे धूर्तों, तुमने उन्हें क्या समझ रखा है, जो त्रिदेवों में से एक हैं?
मोरारी बापू का मैं सम्मान करता हूँ, उम्र के लिहाज से और ज्ञान की दृष्टि से भी। वे रामचरितमानस के आलोचकों को आमंत्रित करते हैं। उनका सम्मान करते हैं। उन्हें मंच पर बैठाते हैं और स्वयं नीचे बैठते हैं। ये घोर नास्तिक लोग जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम की ओर उंगलियां उठाते हैं और उनकी बुराई करते हैं, तो वे चुपचाप बैठे हुये टुकुर-टुकुर सुनते हैं। क्या इससे दर्शकों के मन में भगवान् राम के प्रति अनास्था उत्पन्न नहीं होगी?
पहले राक्षसों के दांत और बाल लम्बे होते थे। उनका भयानक रूप देखकर डर लगता था। किन्तु, आज उनके स्वरूप बदल गए हैं। वे देखने में सौम्य और आकर्षक लगते हैं। वे दिन में सफेदपोश और रात को राक्षसी कार्य करते हैं। मदिरापान करके मांस का भक्षण करते हैं। उनके द्वारा समाज, देश और धर्म को लूटा जा रहा है। बेचारे किसान आत्महत्या कर रहे हैं और ये अपनी रंगरेलियों में करोड़ों रुपया पानी की तरह बहाते हैं। इसके लिए एक ही रास्ता है-समाज को जगाओ। उनकी आत्मा को झकझोरने की जरूरत है। मेरे शिष्य यह सब कुछ कर रहे हैं। अपने बच्चों को चरित्रवान् बनाओ। उन्हें नशा-मांस से दूर रखो।
एक हजरत जीवन जीने को एक कला बताते हैं। वह ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ की क्लासें चलाते हैं और लोग बेवकूफ बन रहे हैं। जीवन जीना कभी भी कला नहीं है। अपने जीवन में, आचार-व्यवहार में परिवर्तन करना होगा। बिना इसके सुधार हो ही नहीं सकता। समाज का हर व्यक्ति आज भयग्रस्त है, तनावग्रस्त है। यदि यही सब कुछ चलता रहा, तो आने वाली पीढ़ी क्या करेगी? उसका क्या हाल होगा? युवाशक्ति को संभालो। यदि वह भटक गई, तो देश का विनाश अवश्यम्भावी है।
एक ही मार्ग है- तप करो। इसका एक पल भी निष्फल नहीं जाएगा। कर्म का फल कभी भी नष्ट नहीं होता। इसलिए, सचेत हो जाओ। संकल्प लो कि आज के बाद हमसे कोई भी दुष्कर्म नहीं होगा। यदि भूले से कभी होगा, तो रात्रिविश्राम में जाने से पूर्व हृदय से उसके लिए प्रायश्चित करो। भोजन करने से पहले भगवान् को भोग लगाओ या नहीं, गुरु को भोग लगाओ या नहीं, किन्तु पहला कौर मुख में रखने से पहले उन अभावग्रस्त, लाचार-बेवस लोगों के बारे में अवश्य सोचो, जो दो जून के भोजन की व्यवस्था भी नहीं कर पाते।
राजनेता तो भ्रष्ट हैं ही, सबसे ज्यादा भ्रष्टाचारी तो जनता बन चुकी है। चुनाव के समय नेता जी ने टुकड़ा डाल दिया और उसके पीछे दुम हिलाते हुये लोग उनके पक्ष में वोट दे देते हैं। फिर पांच साल तक उन नेताओं के कभी दर्शन नहीं होते। आखिर, कब तक बेवकूफ बनते रहोगे? मेरा धर्म और कर्तव्य है तुम्हें जगाना और मैं तुम्हें जगाता रहूंगा।
आज की गंदी और बेलगाम राजनीति को लगाम लगाने के लिए मैंने देश को ‘भारतीय शक्ति चेतना पार्टी’ प्रदान की है। वर्ष 2015 तक तुम्हें और जगाऊंगा और उसके बाद फरवरी 2015 में जो रैली दिल्ली जाएगी, वह निर्णायक होगी। भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ता मेरे शिष्यों ने मात्र छः महीने के अन्दर सवा सौ से अधिक शराब की नाजायज बिक्री के मामले पकड़वाकर करोड़ों रुपये की अवैध शराब जब्त कराई है। हम जो कहते हैं, वह अवश्य करते हैं।
वे भ्रष्ट राजनेता देश के गद्दार हैं, जो समाज को शराब का विष पिलवा रहे हैं। आठवीं-दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे नशे की ओर जा रहे हैं। सोचिए, देश का भविष्य क्या होगा? ये वर्तमान नेता देशहित के बारे में कैसे सोच सकते हैं, जिनमें अस्सी प्रतिशत शराबी हैं, मांसाहारी हैं और चरित्रहीन हैं? एक दिन इन्हें हम शराब के ठेके बन्द करने के लिए बाध्य करेंगे।
ऐसे गद्दारों को मैं कभी भी अपने मंच से सम्मानित नहीं करता। दूसरे धर्मगुरु उन्हें सम्मानित करते हैं और उनकी लम्बी आयु की कामना करते हैं। किन्तु, मैं कहता हूँ कि उनकी उम्र कम हो, वे जल्दी मरें, दुर्घटना के शिकार हों और यदि कहीं पर आंतकवादी हमला हो, तो उसमें मारे जायं।
देश में बनाई गई कोई भी सड़क छः महीने से ज्यादा नहीं चलती, टूट-फूटकर बराबर हो जाती है। भ्रष्ट लोग मिलजुलकर सब पैसा डकार जाते हैं। यदि किसी कारण कोई सड़क अच्छी बन गई, तो उस पर जगह-जगह टोल बेरियर लगाकर लोगों को लूटा जाता है और फिर वही बन्दरबांट। विदेशों से ऋण लेकर काम कराए जाते हैं। आज पूरा देश ऋण में डूबा है।
देश के बेईमान राजनेता समाजसेवकों को मच्छर कहते हैं। तब आपको कीड़े-मकौड़े मानते होंगे। यदि अन्याय-अधर्म सहोगे, तो ‘माँ’ की कृपा कैसे प्राप्त करोगे? केजरीवाल को मेरा सन्देश है कि डेंगू का मच्छर नहीं, सिंह बनकर दहाड़ो, जिससे ये नेता रूपी सियार भाग खड़े हों। अन्ना हज़ारे का मैं सम्मान करता हूँ। वह ईमानदार हैं, चरित्रवान् हैं, किन्तु लोगों को सही दिशा नहीं दे सके।
आज के नेता समाज में विष घोल रहे हैं। जाति-धर्म-सम्प्रदाय की दीवारें खड़ी करके अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। वे कभी नहीं चाहते कि जनता सशक्त बने। इसलिए अपने-अपने क्षेत्र से ऐसा एक-एक नेता चुनकर लोकसभा में भेजो, जो ईमानदार हो और चरित्रवान् हो। तभी कुछ सुधार की आशा की जा सकती है। हम लोग शान्ति और शक्ति के पुजारी हैं। हम औरों की तरह तोडफ़ोड़ नहीं करते। किन्तु, अन्याय को करना जितना पाप है, उतना ही पाप उसे सहना भी है। सच्चाई के मार्ग पर चलने वाला कभी भी भूखों नहीं मरेगा, बिना मकान के नहीं रहेगा और बिना वस्त्र के नहीं रहेगा। प्रकृति माता सदैव उसकी रक्षा करती है।
गांधी जी के तीन बन्दरों का अर्थ लोगों ने बिल्कुल गलत लगाया है कि बुराई मत देखो, बुराई मत सुनो और बुराई मत कहो। ये बातें तब तो ठीक हैं, यदि तुम बन्दर की औलाद हो। किन्तु, मेरा कहना है कि तुम तो इन्सान की औलाद हो। इसलिए, बुराई को खुली आंखों से देखो और खुले कानों से सुनो और उसके बाद मुंह खोलकर उसके खिलाफ आवाज बुलन्द करो। यदि जरूरत पड़े, तो हाथ उठाने में भी संकोच मत करो।
हर धर्म हमें सच्चाई-भलाई के मार्ग पर बढ़ने की शिक्षा देता है। आप हिन्दू हैं, मुसलमान हैं, सिख या ईसाई हैं- जिस धर्म में भी हैं, उसका निष्ठापूर्वक पालन करें। आपके ऊपर ‘माँ’ की कृपा बरसती नजर आएगी। अपने बच्चों को बेईमान बनने की शिक्षा मत दो। यदि वे ईमानदारी के रास्ते पर चलने से मना करते हैं, तो चाहे वह आपका बेटा है, पति है या पिता है, उसका परित्याग कर दो।
याद रखो, तुम्हारी आवाज परमसत्ता तक पहुंचती है। किन्तु, उसकी आवाज तुम सुन नहीं पाते, क्योंकि तुमने अपनी आत्मा पर आवरण चढ़ा रखे हैं। बच्चों को सहज-सरल जीवन जीना सिखाओ। उन्हें फैशन की तरफ मत धकेलो। दिखावे का जीवन मत जियो। बच्चों को सही दिशा दो। सत्कर्म करो। निश्चित रूप से अच्छे परिणाम सामने आएंगे।
कोई भी देवी-देवता बलि स्वीकार नहीं करते। यह एक भ्रम है कि बलि देने से वे प्रसन्न होते हैं। वास्तविकता यह है कि इससे वे कुपित होते हैं। काली कभी भी मांस स्वीकार नहीं करती। भगवान् शिव ने विश्वकल्याण के लिए हलाहल पिया था, किन्तु उसे अपने कण्ठ में ही रोक लिया। तुम भी समाज को विष से बचाओ।
रक्षाकवच और कुंकुम तिलक धारण करने वाले मेरे शिष्य इतने ईमानदार व चरित्रवान् हैं कि उनमें 1000 में से 999 पर कोई उंगली नहीं उठा सकता। मैं नमक-रोटी खाना पसन्द करता हूँ, किन्तु किसी राजनेता की वैसाखी स्वीकार नहीं करता। मेरी बैसाखी तो परमसत्ता माता भगवती हैं। यह जनजागरण का प्रवाह कभी रुकेगा नहीं, हमेशा चलता रहेगा। हरियाणा प्रदेश सदा से अग्रणी रहा है, किन्तु मैं चाहता हूँ कि आप लोग अधर्मी-अन्यायियों के आगे न झुकें।
यहां पर हरियाणा में मैंने चार महाशक्तियज्ञ सम्पन्न किये हैं। उनमें से हरेक यज्ञ में बरसात हुई है। कई लोगों को, जो मरणासन्न थे, जीवनदान दिया गया है। कब किसकी मृत्यु होनी है, वह तारीख बताई है। लोगों ने उपहास किया, किन्तु वे दंग रह गए, जब उसकी मृत्यु उसी दिन हुई। इसके अतिरिक्त, और क्या प्रमाण समाज लेना चाहता है?
मैं अपने जीवन का एक-एक पल समाज सुधार के कार्य में लगा रहा हूँ। मैंने अपनी बच्चियों को भी यही सीख दी है कि समाजसेवा का जीवन जियो। आप लोग भी अपने बच्चों को समाजसेवा में लगाएं। मैं गृहस्थ में रहते हुये भी अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करता हूँ।
लोग बेटे के लिए पागल हैं। फलतः आज समाज में भ्रूण हत्याएं हो रही हैं। किन्तु, मैंने ‘माँ’ से प्रार्थना की थी कि यदि मेरे परिवार में किसी का जन्म हो, तो पुत्रियां ही आएं। पुत्र मुखाग्नि दे देगा, तो उससे मुक्ति नहीं मिल जाएगी। स्वयं अपने जीते जी इतने सत्कर्म कर लो कि पुत्र यदि तुम्हारे शरीर को कहीं फेंक भी दे, तो तुम फिर भी मुक्त रहोगे। मैं स्वयं जीते जी हर पल मुक्त हूँ।
आप लोग हाथ उठाकर संकल्प लो कि शादी से पहले पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करेंगे, शादी के बाद एकपत्नी/एकपति व्रत का पालन करेंगे और सन्तान उत्पत्ति के बाद पुनः ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करेंगे।
शंखध्वनि हर काल में लाभदायक है- सुख में भी और मृत्यु होने पर भी। इससे दिवंगत आत्मा का आत्मकल्याण होगा। इससे घर में पवित्रता-निर्मलता आती है। घर के सब दोष दूर होते चले जाएंगे। घर के ऊपर ‘माँ’ का ध्वज लगाओ, घर को ‘माँ’ का मंदिर बनाओ और ‘माँ’ की आराधना करो। इससे सभी वास्तुदोष दूर हो जाएंगे।
मेरे द्वारा शक्तिजल निःशुल्क दिया जाता है। उसमें ‘माँ’-गुरु का आशीर्वाद रहता है। किसी को जादूटोना या नजऱ लगी हो, तो इसके पान से दूर हो जाते हैं। दीक्षा भी मेरे द्वारा निःशुल्क दी जाती है। यदि आप दीक्षा के लिए कुछ देना चाहते हैं, तो अपने अवगुण मुझे दे दो। इससे तुम्हारा कल्याण हो जाएगा। गुरुदीक्षा शिविर में ही दी जाती है। उसके बाद कोई धन्नासेठ यदि अरबों की सम्पत्ति भी लाकर डालेगा, तब भी दीक्षा प्राप्त नहीं कर सकेगा। कुछ धर्मगुरु पैसा लेने के लालच में टेलीफोन पर दीक्षा दे देते हैं। किसी जाति-धर्म-सम्प्रदाय का कोई भी व्यक्ति मुझसे दीक्षा प्राप्त कर सकता है।
शक्ति चेतना जनजागरण शिविर की दिव्य आरतियों का लाभ अवश्य लें। यह सौभाग्य कभी किसी अन्य अवसर पर नहीं मिलता।
मुझे दान से सख्त नफरत है। दान सदैव अपने से नीचे वालों को दिया जाता है। दान देना है, तो भूखे-नंगों को दान दो। मैं दान नहीं, भेंट या समर्पण स्वीकार करता हूँ। जिस तरह प्रकृतिसत्ता से हमें प्राप्त हो रहा है, वही हम समर्पित करते हैं। भावना यह होनी चाहिये-तेरा तुझको अर्पण।
यदि आपको शान्ति देखनी है, तो पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में आकर देखें, जहां पर कोई वैभव नहीं है। वास्तव में, वैभव से आश्रम नहीं बनता। वहां पर सैकड़ों लोग रोज आते हैं और कहते हैं, ‘‘गुरुजी, हम नशा छोड़ने आए हैं’’। और, वहां की कृपा से उनका नशा छूटता है। भ्रष्ट राजनेताओं और धर्मगुरुओं को मेरी चेतनावनी है-या तो सुधर जाओ, नहीं तो भगवती मानव कल्याण संगठन तुम्हें सुधारेगा।
मेरी कही बात यदि आपको अच्छी लगे, तो उस पर अवश्य ही विचार करना और अपने कर्तव्य का पालन करना। मैं एक ऋषि था, ऋषि हूँ और ऋषि ही रहूँगा। मैं योगेश्वर ब्रह्मर्षि स्वामी सच्चिदानन्द का अवतार हूँ और समाज को सुधारने आया हूँ। मैं एकान्त स्थान पर साधना करके ऊर्जा प्रवाहित करता हूँ।
अब पांच-पांच बार शंखध्वनि की गई। तदुपरान्त, दिव्य आरती सम्पन्न हुई, जिसका नेतृत्व त्रिशक्तिस्वरूपा तीनों बहनों, पूजा, संध्या तथा ज्योति योगभारती जी के द्वारा किया गया। पुनः पांच-पांच बार शंखनाद हुआ तथा प्रणाम एवं प्रसाद प्राप्त करके सभी ने अन्नपूर्णा भोजन भण्डारे का महाप्रसाद ग्रहण किया।

द्वितीय दिवस- प्रथम सत्र (गुरुदीक्षा)
अगले दिन 25 नवम्बर को प्रातः आठ बजे से पहले ही सभी दीक्षार्थी शिविर पण्डाल में अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे। परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का शुभागमन हुआ। सबसे पहले, अपना पूर्ण आशीर्वाद समर्पित करके आपश्री ने एक संक्षिप्त चिन्तन दिया-
गुरुदीक्षा किसी भी व्यक्ति के लिए सबसे अधिक सौभाग्यदायक है। गुरुदीक्षा होते हुये देखना भी विशेष सौभाग्यदायक होता है। इसलिए शेष सभी आगन्तुक और दीक्षाप्राप्त लोग भी इसे देखें। यह फलदायी होगा। सब लोग मन को एकाग्र करें और प्रवाहित की जा रही मेरी चेतना तरंगों को प्राप्त करें।
किसी मानव का सौभाग्य उदय होता है, जब वह एक चेतनावान् सद्गुरु के सम्मुख बैठकर दीक्षा प्राप्त करता है। वास्तव में, यह एक नवीन जीवन का प्रारम्भ होता है। यह मुक्ति का, सत्य का, धर्म का पथ है।
कोई बच्चा विद्यालय में नाम लिखाता है और विद्यार्थी बन जाता है। सफलता प्राप्त करने के लिए उसे कठोर परिश्रम करना पड़ता है। ठीक उसी प्रकार दीक्षा प्राप्त कर लेने मात्र से कुछ नहीं होगा। सफलता प्राप्त करने के लिए साधना करनी होगी।
एक सद्गुरु सभी दीक्षार्थियों को पूर्णत्व के साथ मन-वचन-कर्म से शिष्य स्वीकार करता है। जो शिष्य गुरु के बताए मार्ग पर चलता है, उसका कभी पतन नहीं होता। आप लोग संकल्प लें कि आज से अवगुणों को छोड़कर सत्यपथ पर बढ़ेंगे। नशे-मांस का सेवन नहीं करेंगे और चरित्रवान् बने रहेंगे।
माता भगवती ही हमारी मूल इष्ट हैं- इस विचारधारा को समाहित करें। वैसे सभी देवी-देवताओं का सम्मान करें, किन्तु मुख्य ध्यान ‘माँ’ के चरणों में रखें। नित्यप्रति ‘माँ’ की आराधना करें। अपनी विचारधारा को सिद्धाश्रम से जोड़ें। वहां पर श्री दुर्गा चालीसा अखण्ड पाठ विगत सोलह वर्षों से सतत चल रहा है। ‘माँ’ कण-कण में मौजूद हें। वह हमारी छोटी से छोटी गतिविधि को देख रही हैं।
अब से आप यह सोचकर चलें कि गुरु केवल मेरे और मेरे लिए हैं। भले ही आप मुझसे हजारों मील दूर रहें, तब भी मेरे सन्निकट हैं। जिस प्रकार, एक अच्छे माता-पिता को आभास हो जाता है कि उनके बच्चे को कोई कष्ट हो रहा है, ठीक वैसे ही एक चेतनावान् सद्गुरु को अपने हर शिष्य का अहसास रहता है।
जो कुछ भी ‘माँ’ के दरबार में मिलेगा, वह दूसरी जगह कहीं पर भी नहीं मिलेगा। मेरे द्वारा वितरित शक्तिजल में मेरा पूर्ण आशीर्वाद रहता है। उसे विशेष मंत्रों के द्वारा अभिमंत्रित किया गया है। यह आपका सहारा बनेगा। दवा के साथ जब दुआ भी हो, तो वह अधिक फलदायी होती है। शक्तिजल का पान करने वाले के समस्त ग्रह अनुकूल रहते हैं। यह फायदा उसे करेगा, जो पूर्ण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् होगा। वैसे इसे आप किसी भी व्यक्ति को दे सकते हैं। उसमें भी धीरे-धीरे परिवर्तन आएगा। घर को ‘माँ’ का मंदिर बनाएं। शक्तिध्वज टांगें। इससे सात्त्विक तरंगें आकर्षित होंगी और सारे गृहदोष समाप्त हो जाएंगे।
नित्य सुबह-शाम ‘माँ’ की पूजा करें। शुद्धता-सात्त्विकता के साथ करें। इससे परिवार में चेतनता आएगी और घर में परिवर्तन आएगा। कुंकुम का तिलक और रक्षाकवच धारण करें। आज्ञाचक्र को सदैव आच्छादित रखें। मैं आप लोगों को संन्यासी नहीं बना रहा हूँ, अपितु गृहस्थ साधक बनाता हूँ। आपकी कार्यक्षमता और सोचने-समझने की शक्ति बढ़ती जाएगी और समस्त विघ्न-बाधाएं दूर होती चली जाएंगी।
अब परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् ने तीन बार ‘माँ’ और उसके बाद तीन बार ‘ऊँ’ का उच्चारण कराया। तदुपरान्त, सबसे संकल्प बुलवाया गया कि वे परम पूज्य योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज को अपना गुरु स्वीकार करते हैं। सदैव नशा-मांस से दूर रहकर चरित्रवान् जीवन जियेंगे और संगठन के आदेशों-निर्देशों का निष्ठापूर्वक पालन करेंगे।
परम पूज्य गुरुदेव जी ने कहा कि अब आप मेरे शिष्य बन गए हैं। यदि इन संकल्पों का पालन करेंगे, तो आपके ऊपर सदैव गुरुकृपा रहेगी।
अब निम्नलिखित मंत्रों का तीन-तीन बार उच्चारण कराया गयाः

विघ्नविनाशक भगवान् गणेश- ॐ गं गणपतये नमः

बजरंग बली भगवान्- ॐ हं हनुमतये नमः

भैरव देव जी- ॐ भ्रं भैरवाय नमः

‘माँ’ का चेतनामंत्र- ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नमः

गुरुमंत्र- ॐ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः
आज से इन मंत्रों का अधिक से अधिक जाप करेंगे और आत्मकल्याण एवं जनकल्याण के पथ पर चलेंगे। जब भी मन में विकार उठे, गुरु का ध्यान करते हुये गुरुमंत्र का जाप करें। विकार हटते चले जाएंगे।
शिष्यत्व की जितनी गहराई में डूबोगे, उतनी ही गुरुकृपा आपको मिलती जाएगी। ध्यान रहे, आज सायंकाल की आरती छूटने न पाए।
समाज में अन्य धर्मगुरु गुरुदक्षिणा मंगवाते है और विभिन्न सामान मंगवाते है। वे अपनी पूजा करवाते हैं। किन्तु, यहां पर कोई शुल्क नहीं है। गुरुदक्षिणा के रूप में अपने अवगुण समर्पित कर दें। मेरी दीक्षा शक्तिपात के रूप में होती है, जिसमें कोई दिखावा नहीं रहता।
अब नमन-वन्दन का क्रम हुआ। इस समय दीक्षा ले चुके शिष्यों को एक-एक शीशी निःशुल्क शक्तिजल की दी गई तथा दीक्षा प्रपत्र भरकर लौटाने के लिए दिया गया।
इस अवसर पर शक्तिस्वरूपा बहन पूजा योगभारती जी ने कहा कि यह आप लोगों का परम सौभाग्य है कि आप एक चेतनावान् गुरु के शिष्य बने, जिनके समान इस धरती पर कोई नहीं है। अब आप इतने बड़े परिवार से जुड़ गए हैं, जिसके सदस्य घर-घर जाकर जनजागरण कर रहे हैं। आपको भी अब जनकल्याण करने का सौभाग्य प्राप्त हो गया है। आप जितना अधिक से अधिक इस कार्य से जुड़ेंगे, उतना ही आपका आत्मकल्याण होगा। आप लोग अपनी सुविधानुसार शीघ्रता से पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम धाम पहुंचें और वहां की ऊर्जा तरंगें प्राप्त करें।

दिव्य आरती करते हुए शक्ति स्वरूपा बहनें

द्वितीय दिवस-द्वितीय सत्रः दिव्य उद्बोधन
मेरा हर पल यही प्रयास रहता है कि आप लोगों का एक-एक पल सार्थक हो। जो भी समय आप यहां पर दे रहे हैं, उसे मैं अपने ऊपर ऋण मानता हूँ। ‘माँ’ की कृपा से जनजागरण का यह प्रवाह तीव्र गति से चल रहा है। हरियाणा में भी इसकी नींव पड़ चुकी है। यहां पर भी निश्चित रूप से परिवर्तन आएगा, क्योंकि सत्य की नींव को कोई नकार नहीं सकता।
मानव जीवन के दो मार्ग हैं- एक वासनात्मक और दूसरा साधनात्मक। वासना विष है और साधना अमृत। चयन आपको करना है कि आप इनमें से क्या चाहते हैं? जिस मानव शरीर में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड समाहित है, उसकी क्षमता सामान्य नहीं हो सकती। किन्तु, आज वह अपनी सुख-सुविधा के साधन भी नहीं जुटा पा रहा है। उसके जीवन में भटकाव आता जा रहा है। उसे पक्का विश्वास हो गया है कि बेईमानी किये बिना जीवन नहीं चलेगा। इसीलिए वह झूठ, फऱेव, छल-कपट आदि का सहारा लेकर या कैसे भी भौतिकता के पीछे दौड़ रहा है!
वास्तविकता यह है कि अनीति-अन्याय-अधर्म से कमाया गया धन कभी भी सार्थक नहीं होता। यह धन सुख-सुविधाएं तो जुटा सकता है, किन्तु शान्ति सच्चाई-ईमानदारी से कमाया धन ही प्रदान करता है। अतः ईमानदारी से काम करना सीखो। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर पतन के मूल कारण कहे गए हैं। इनमें से किसी का विचार उत्पन्न होते ही शरीर के अंगों में वैसे ही प्रभाव आने लगते हैं।
इस सम्बन्ध में भोजन और विचार, ये दो बिन्दु विचारणीय हैं। सात्त्विक, सादा और ईमानदारी से कमाए धन से प्राप्त भोजन ज्यादा तृप्ति देता है। पहले के लोग नमक-रोटी खाकर चेतनावान् रहते थे और अधिक स्वस्थ थे। आज तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान्न खाकर भी लोग कमजोर हैं और प्रायः बीमार रहते हैं, क्योंकि सब कुछ वासनात्मक हो गया है। लोग विभिन्न रोगों से ग्रसित हैं। डॉक्टरों पर विश्वास समाप्त हो गया है। इसलिए, जादू-टोना के चक्कर में पड़ जाते हैं। दवा और दुआ को साथ लेकर चलो। नशे और मांसाहार से दूर रहो। इनसे तमोगुण बढ़ता है। सबसे पहले भोजन के प्रति सजग हो जाओ।
डाइटिंग करना छोड़ दो। यह महामारी की तरह फैल रही है। इससे पाचन तंत्र पर दुष्प्रभाव पड़ता है और अन्य अंग भी कमजोर होते हैं। इस प्रकार के बच्चे आश्रम में आकर मेरे सामने रोते हैं कि क्या करें? शुद्ध-सात्त्विक-पौष्टिक भोजन करो और मेहनत करो। अपने बच्चों को समझाओ और स्वयं सात्त्विक रहो। माता-पिता सात्त्विक होंगे, तो अनायास ही बच्चे वैसे बन जाएंगे। मेरे आश्रम में सैकड़ों लोग रोज नशा छोड़ने आते हैं और मेरे समझाने से उनमें से 99 प्रतिशत नशा छोड़कर जाते हैं।
आज से सत्कर्म करना शुरु कर दोगे, तो भविष्य निश्चित रूप से सुधरेगा। इसे कोई नकार नहीं सकता। सत्यता का जीवन जीने से ऋद्धियां-सिद्धियां सहायक होती हैं। इस बात का प्रमाण मैंने अनूपपुर (म.प्र.) में छठवें महाशक्तियज्ञ में दिया था। वहां पर चार-पांच हजार लोगों के लिए भोजन बना था, किन्तु ‘माँ’ की कृपा से 25 हजार से भी अधिक लोगों ने भोजन किया और फिर भी कुछ बचा रहा।
देश के अन्दर जितने भी साधु-सन्त-संन्यासी हैं, उनसे अधिक पात्रता आप लोगों के भीतर है। इसीलिए मैं उन्हें अपने मंच पर स्थान नहीं देता। भगुए वस्त्र पहनने मात्र से कोई व्यक्ति साधु नहीं बन जाता। इसके लिए साधना करनी पड़ती है। इसीलिए भगुए वस्त्रों को नमन करना छोड़ दो और सत्य को नमन करो।
भिखारियों का जीवन मत जियो कि समस्या आई तो मंदिर में जाकर देवी-देवताओं के आगे रोने-गिड़गिड़ाने लगे। व्यापारी मत बनो कि हमारी यह कामना पूरी हो जाएगी, तो यह अनुष्ठान करा देंगे। साधना का तात्पर्य है सबसे पहले शरीर को साधना, अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करना। तुम्हें सुस्वादु मिष्टान्न खाने से वह तृप्ति नहीं मिलेगी, जो मिल बांटकर खाने से मिलती है। बाजार से मिठाई लाओ और 10-5 अभावग्रस्त लोगों में बांटो, तो अधिक तृप्ति मिलेगी।
शरीर को साधने के लिए सबसे पहले ब्राह्ममुहूर्त में जगना प्रारम्भ करो। इससे शरीर में चेतनता आती है। कम से कम सूर्योदय से पहले बिस्तर अवश्य छोड़ दो। जीवन में परिवर्तन आता चला जाएगा। पहले बाजार प्रातः आठ बजे तक खुल जाते थे। लोग जल्दी सोते और जल्दी जाग जाते थे। आजकल रात के ग्यारह-बारह बजे तक लोग पार्टियां अटैंड करते हैं और फिर देर सूरज निकलने के बाद तक गधों की तरह पड़े सोते रहते हैं। इसलिए 10-11 बजे से पहले बाजार नहीं खुलता। इस पशुता से ऊपर उठो।
धन-वैभव उतना एकत्र करो, जिससे जीवन चल सके। यदि धन संचय का शौक है, तो आध्यात्मिक धन एकत्र करो। ‘माँ’ के सामने एक बार अपनी कामना रखो और कहो कि हे माँ, मेरी यह कामना तभी पूर्ण हो, यदि यह मेरे हित में हो, नहीं तो बिल्कुल भी पूरी न हो। अगर ‘माँ’ से कुछ मांगना है, तो केवल भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति मांगो। इसमें सब कुछ समाहित है। अपनी अपार क्षमता को पहचानो और उस ओर बढ़ो।
आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोग कर्म नहीं करना चाहते। एक बार वैष्णव देवी हो आए और सोचते हैं कि सारी समस्याएं हल हो जाएं, भले ही कुकर्म करते रहो। ऐसा कभी भी सम्भव नहीं है।
आजकल समाज में हजार-हजार कुण्डी यज्ञ हो रहे हैं, जो दिखावा है। उनके लिए किराए के पण्डित बुलाए जाते हैं, जिनकी कोई पात्रता नहीं होती। तब ऐसे यज्ञों से क्या लाभ होगा? प्राचीनकाल में, पुत्रेष्टि यज्ञ हुआ। उसके लिए एक पात्र ऋषि को बुलाया गया था। हर ऋषि उसे सम्पन्न करने का पात्र नहीं था। मैंने अपने आठ महाशक्तियज्ञ करके अपनी पात्रता का परिचय दिया था।
तुम लोग भी साधक बनो। धीरे-धीरे पात्रता आती चली जाएगी। जिस प्रकार स्कूल में बच्चा शुरू-शुरू में लाईन खींचना सीखता है। फिर अक्षर बनाने लगता है और बाद में अक्षरों को जोड़कर शब्द और वाक्य बनाना सीख जाता है। इस प्रकार धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुये वह डॉक्टर, इंजीनियर और वैज्ञानिक बन जाता है। ठीक यही हाल साधना पथ का है। एक दिन में सिद्धियां प्राप्त नहीं होतीं, धीरे-धीरे बढ़कर प्राप्त होती हैं।
आज 10 लाख से अधिक मेरे शिष्य पूर्ण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवानों का जीवन जी रहे हैं और दूसरों को साधना सिखा रहे हैं। अपने सत्य के धरातल को मजबूत करो। धर्मवान् बनो, धर्मभीरू नहीं।
सबसे ज्यादा अनीति-अन्याय-अधर्म साधु-सन्तों में है। मेरा मानना है कि धार्मिक संस्थाओं के लिए ऐसा कड़ा कानून बने कि उनके पास जो धन है, उसे सरकार ज़ब्त करके जनकल्याण में खर्च करे। उनके पास इतना धन है कि यदि वह बाहर आ जाय, तो देश की गरीबी मिट जाएगी। आखिर, कौन उठाएगा यह आवाज? धर्मगुरु कहते हैं लोगों को, कि माया महाठगिनी मैं जानी, जब कि वे खुद माया में लिप्त हैं। जो साधु-सन्त समाधि में जाता है, वह कभी भी धन एकत्र नहीं करता, उल्टे वह तो लुटाता है।
मुझे यह कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं है कि दिल्ली और हरियाणा के लोग पढ़े-लिखे होकर भी अज्ञानी हैं। धर्म के चोर-लुटेरे सबसे ज्यादा इन्हें ही लूट रहे हैं। इसलिए विवेकवान् बनो और सजग रहो। इन धूर्तों के चक्कर में मत पड़ो।
सबसे पहले स्वयं को बदलो। अपने आपको एक सुगन्धित पुष्प के समान बना लो। जो भी तुम्हारे सम्पर्क में आए, वह भी बदलता चला जाय। मेरे एक लाख से भी अधिक समर्पित सक्रिय कार्यकर्ता शिष्य मेरे कार्य को कर रहे हैं। इतने कार्यकर्ता किसी भी संस्था के पास नहीं हैं।
भ्रष्टाचार की जड़ ऊपर है। जब तक भ्रष्ट राजनेताओं को ठीक नहीं किया जाएगा, भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा। न हम गलत करेंगे और न गलत सहेंगे।
आप लोग सब जानते हैं कि कसाब एक आतंकवादी था। उसके ऊपर 40 करोड़ रुपये खर्च किये गए। न्यायालय ने उसे फांसी की सजा बहुत पहले दे दी थी, किन्तु पता नहीं क्यों उसे टाला जाता रहा। फिर एक दिन उसे चोरों की तरह फांसी दी गई कि किसी को पता न चले। यहां तक कि प्रधानमंत्री को भी मालूम नहीं था! ऐसे डरपोक और नपुंसक हैं हमारे नेता और इतना निकृष्ट प्रधानमंत्री देश में आज तक नहीं हुआ। मेरा मानना है कि मीडिया को बुलाकर कसाब को सार्वजनिक रूप से फांसी दी जानी चाहिये थी और टी.वी पर उसका जीवन्त प्रसारण होना चाहिये था, ताकि जिसने हमारा इतना नुकसान किया, उसको फांसी पर चढ़ते देखकर लोग जश्र मनाते।
हमारे भगवती मानव कल्याण संगठन के सजग प्रहरियों ने 125 से अधिक अवैध शराब बिक्री के मामले पकड़े हैं और एक दिन हम देश को पूर्ण नशामुक्त बनाकर रहेंगे।
पचास प्रतिशत से अधिक राजनेता पैसे के बल पर नाजायज तरीके अपनाकर चुनाव जीतते हैं और बड़े गर्व से कहते हैं कि उन्हें जनता ने चुना है। उन्हें अपने आपको सुधारना होगा। नहीं सुधरेंगे, तो कानून भी हम हाथ में लेने से नहीं हिचकिचाएंगे और इसके लिए जो दण्ड दिया जायेगा, उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे। वर्ष 2015 एक निर्णायक वर्ष होगा, उसका इन्तजार करो। मेरी तीनों धाराएं अपना-अपना कार्य करेंगी। हम तोडफ़ोड़ और उद्दण्डता में विश्वास नहीं करते, किन्तु अधर्मी-अन्यायियों के सामने सीना तानकर खड़े होते हैं।
जिसमें शान्ति और शक्ति दोनों होती हैं, वह साधक होता है। मेरी साधनाएं निष्फल नहीं जाएंगी। चार-पांच सौ साल पहले के भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों को खोजो, जिनमें मेरे विषय में कहा गया है कि कहां पर मेरा जन्म होगा और क्या मेरा कार्य होगा तथा मेरे हाथों में कौन-कौन से योग पड़े हैं? या तो उन पर विश्वास करो, नहीं तो मेरी चुनौती स्वीकार करो। साधु-सन्तों की सामर्थ्य का परीक्षण होना बहुत जरूरी है। इस भ्रमजाल को तोड़ना होगा। भगवती मानव कल्याण संगठन इसके लिए भी सरकार को बाध्य करेगा।
मैं बार-बार कहता हूँ कि मेरे द्वारा कोई चुनाव नहीं लड़ा जाएगा। ऐसे ईमानदार लोग, जो स्वयं की सामर्थ्य को लुटा सकते हैं, उन्हें राजनीति के शिखर तक पहुंचाया जाएगा।
जातीयता से ऊपर उठो, तुम मानव हो। आरक्षण का आधार निर्धनता होना चाहिये। निर्धनों को आरक्षण मिले, भले ही वे किसी जाति के हों। इससे हर जाति के लोगों को लाभ होगा। अन्यथा, आज एक जाति आरक्षण का मांग कर रही है, कल दूसरी करेगी। इसका कोई अन्त नहीं होगा।
आज नारी को उपभोग की वस्तु बनाकर रख दिया गया है। प्रायः हर विज्ञापन में उसका अंग प्रदर्शन किया जाता है। आखिर, नारीजाति को कब तक अपमानित किया जाता रहेगा? चन्द सिरफिरी महिलाएं पैसे के लिए अपना सब कुछ बेचने के लिए तैयार हैं। वे सभी नारीजगत् का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं। ऐसे विज्ञापनों से आठवीं-नवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे विषय-विकारों में फंस रहे हैं। इस सम्बन्ध में गांवों की खाप पंचायतों से मेरा कहना है कि वे महीने में एक बार पंचायत की बैठक का आयोजन करें। उसमें युवाओं को बुलाएं और उन्हें नशामुक्त-मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् होने के बारे में समझाएं। लेकिन, इससे पहले खाप पंचायतें हुक्का गुडग़ुड़ाना छोड़ें, तभी उनकी बात का युवाओं पर असर पड़ेगा।
हरियाणा और पंजाब में कभी दूध की नदियां बहती थीं, किन्तु आज यहां पर शराब की नदियां बह रही हैं। इसका कारण यह है कि यहां पर ज्ञान मर चुका है। यदि आप चाहते हैं कि फिर से वैसा ही हो, तो ज्ञान को पुनरुज्जीवित करना होगा, अन्यथा भविष्य बहुत ही भयानक होगा।
आज हम आजाद होते हुये भी आजादी का जीवन नहीं जी रहे हैं, बल्कि गुलामी का जीवन जी रहे हैं। अंग्रेजों ने हमें इतना नहीं सताया, जितना ये हमारे अपने बेईमान-भ्रष्ट राजनेता सता रहे हैं। लोग घुट-घुटकर जीने को मजबूर हैं। यदि कोई इनके खिलाफ आवाज उठाता है, तो उसकी बहन-बेटियों को उठवाकर ये उन्हें प्रताड़ित और बेइज्जत करते हैं। अपनी पगार और भत्तों को बढ़ाने का बिल ये ध्वनिमत से पास कर लेते हैं, किन्तु आम कर्मचारी को इसके लिए आन्दोलन करना पड़ता है और लाठियां खानी पड़ती हैं।
पढ़े-लिखे डी.एम. और एस.पी. इन अनपढ़, बेईमान भ्रष्ट राजनेताओं के सामने हाथ जोड़े खड़े रहते हैं। यह ज्ञान का घोर निरादर है और यह अब अधिक दिनों तक नहीं चलेगा। इसे भी हम ही रोकेंगे।
वासना जीवन का सार नहीं है। जीवन का असली सार है साधना। भारतीय शक्ति चेतना पार्टी का गठन हमने गत शारदीय नवरात्र में कर दिया है। इसके विधिवत् रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया दिल्ली में चल रही है। इसका सदस्यता अभियान 23 जनवरी 2013 से चलाया जाएगा।
दिल्ली में आयोजित शक्ति चेतना जनजागरण शिविर का सीधा प्रसारण कर रहे ज़ी-जागरण चैनल ने जो धृष्टता की थी, वही इस शिविर में श्रद्धा चैनल ने भी की। जब-जब भी परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् ने अपने दिव्य उद्बोधन के अन्तर्गत ढोगियों-पाखण्डियों के काले कारनामों का उल्लेख किया, तब-तब जीवन्त प्रसारण रोक दिया गया। इस प्रकार, यह चैनल भी महाराजश्री के दिव्य आशीर्वाद को प्राप्त करने से वंचित रहा और वह अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में नहीं बदल सका। परम पूज्य सद्गुरुदेव ने चैनल वालों से कहा कि अगर तुम सत्य की आवाज को रोकते हो, तो इससे बड़ी कायरता कोई हो नहीं सकती। आपश्री ने कहा कि मुझे ऐसेे कायरों की आवश्यकता भी नहीं है।
इसके बाद, परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् ने इस शिविर की विभिन्न व्यवस्थाओं में लगे कार्यकर्ताओं और शिविरार्थियों को अपना दिव्य आशीर्वाद प्रदान किया। आपश्री ने उन पत्रकारबन्धुओं को भी आशीर्वाद दिया, जिन्होंने इस कार्यक्रम का कवरेज अपने समाचार पत्र में दिया।
अब पांच-पांच बार सामूहिक रूप से शंखध्वनि की गई। तदुपरान्त, दिव्य आरती का क्रम सम्पन्न हुआ, जिसका नेतृत्व शक्तिस्वरूपा तीनों बहनों, पूजा, संध्या और ज्योति योगभारती जी ने किया। एक बार पुनः सामूहिक शंखनाद हुआ तथा गुरुवरश्री की चरणपादुकाओं के प्रणाम निवेदन एवं प्रसाद वितरण का क्रम हुआ।
इस प्रकार, दो दिन तक चला यह शक्ति चेतना जनजागरण शिविर ‘माँ’-गुरुवर की कृपा से सानन्द एवं सोल्लास निर्विघ्न सम्पन्न हो गया। हरियाणा प्रान्त के भगवती मानव कल्याण संगठन के कर्मठ कार्यकर्ता बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने दिन-रात अथक परिश्रम करके इस शिविर को सफल बनाया। अगला शक्ति चेतना जनजागरण शिविर 09 से 10 फरवरी 2013 तक जबलपुर (म.प्र.) में होगा।

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