शक्ति चेतना जन-जागरण शिविर, उच्चतर माध्यमिक विद्यालय खेल मैदान डी एल डब्ल्यू, वाराणसी (उ.प्र.), 22-23 नवम्बर 2014

उत्तरप्रदेश में गंगा नदी के तट पर स्थित भगवान् आशुतोष विश्वनाथ बाबा भोले शंकर की धर्मनगरी काशी एक अति प्राचीन पौराणिक नगर है। यहां पर अनेक धर्माधिकारी एवं मठाधीश निवास करते हैं। सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र के सत्य की परीक्षा यहीं पर हुई थी।
एक महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान होने के साथ-साथ बनारस एक उच्च स्तर का शैक्षणिक केन्द्र भी है। पं. मदन मोहन मालवीय जी के द्वारा संस्थापित बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के अतिरिक्त, यहाँ पर और अनेक शैक्षणिक संस्थाएं हैं। इसके अलावा, वाराणसी प्रारम्भ से ही राष्ट्रीय राजनीति का केन्द्र रहा है।
एक समय था, जब यहां पर उच्च कोटि के त्यागी-तपस्वी, योगी और संन्यासी रहा करते थे। उस समय यहां का वातावरण इतना पावन था कि यहां पर रहकर शरीर त्यागने मात्र से मनुष्य को भवबन्धन से मुक्ति मिल जाती थी। किन्तु, अब ये बातें कपोलकल्पित बनकर रह गई हें।
आज धर्म और राजनीति दोनों क्षेत्रों में भटकाव है। इस परिप्रेक्ष्य में, परम पूज्य सद्गुरुदेव परमहंस योगिराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के द्वारा बनारस में 22-23 नवम्बर 2014 के मध्य आयोजित किया गया शक्ति चेतना जनजागरण शिविर का यह आयोजन एक अति महत्त्वपूर्ण घटना है।
महाराजश्री का स्पष्ट निर्देश था कि सभी शिविरार्थी अपनी-अपनी व्यवस्था से सीधे शिविरस्थल पर पहुंचेंगे तथा कोई रैली नहीं जाएगी। फिर भी कुछ शिष्यों, श्रद्धालुओं एवं भक्तों ने आपश्री से अनुमति लेकर आपके साथ चलने का आनन्द लेना उचित समझा।
फलस्वरूप, दिनांक 20 नवम्बर को प्रातः 08:30 बजे परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मन्दिर में नमन करने के उपरान्त अपने पूज्य पिता ब्रह्मलीन दण्डी संन्यासी स्वामी श्री रामप्रसाद आश्रम जी महाराज की समाधि पर पहुंचे। उन्हें प्रणाम करके निकटस्थ त्रिशक्ति गोशाला होते हुए आपने आश्रम में रहने वाले सभी शिष्य भक्तों को अपना दिव्य आशीर्वाद देकर वाराणसी के लिए प्रस्थान किया।
इस अवसर पर परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के आगे अनेक शिष्य मोटरसाईकिलों पर सवार शक्तिदण्डध्वज लिए जयघोष करते हुए चल रहे थे। आपके वाहन के पीछे अनेकों चौपहिया वाहन क्रमबद्ध ढंग से चल रहे थे, जिनके दोनों ओर सद्भावना यात्रा वाले फ्लैक्स लगे थे और आगे शक्तिध्वज फहरा रहे थे। इनमें से प्रचार वाहन पर ‘शक्तिपुत्र जी आए हैं, शक्ति चेतना लाए हैं’ पंक्ति वाला गीत लाउडस्पीकर के द्वारा प्रसारित किया जा रहा था। इस प्रकार, परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् की इस यात्रा ने अनायास ही एक लघु रैली का रूप धारण कर लिया था।
यह यात्रा देवलौंद, बघवार, हत्था, रामपुर नैकिन, पैकिनिय, चुरहट, सीधी, अमिलिया, हनुमना (म.प्र.), डालगंज (उ.प्र.) होते हुए रात्रि 20:45 बजे मिर्ज़ापुर पहुंची, जहां पर भोजन करके सभी ने रात्रिविश्राम किया। अगले दिन 21 नवम्बर को प्रातः सभी ने माता विन्ध्वासिनी के दर्शन करके भोजनोपरान्त प्रातः 10:00 बजे बनारस के लिए प्रस्थान किया और दोपहर ठीक 13:00 बजे वाराणसी शिविरस्थल पर पहुंच गए।

इस बीच जगह-जगह पर श्रद्धालु शिष्यों एवं भक्तों के द्वारा इस यात्रा का भव्य स्वागत किया गया तथा अनेक मोटरसाईकिल सवार एवं चौपहिया वाहन इससे जुड़ते गए। कई स्थानों पर सड़क के ऊपर तोरणद्वार बनाए गए थे तथा सड़क के दोनों और महिलाएं एवं बच्चे कलश और आरती का थाल लिए पंक्तिबद्ध खड़े थे तथा ढोल एवं बैण्ड बज रहे थे। सीधी तथा अमिलिया जैसे कई स्थानों पर श्रद्धालु दर्शकों की भीड़ इतनी उमड़ी कि गुरुवरश्री को चलते वाहन की खिड़की पर खड़े होकर उन्हें आशीर्वाद देना पड़ा।
परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् चुरहट में श्री सनत त्रिपाठी जी के आवास पर 15 मिनट, सीधी के एम.पी. गेस्ट हाउस में 15 मिनट तथा अमिलिया में द रॉयल कान्वेन्ट पब्लिक स्कूल में आधे घण्टे तक रुके। श्रद्धालु दर्शकों के हृदय में हर जगह एक अलौकिक हर्ष, उल्लास एवं उत्साह भरा दिखाई देता था। परम कृपालु गुरुवरश्री ने भी किसी को अपने दिव्य आशीर्वाद से वंचित नहीं किया। जिस स्थान पर कुछेक स्त्री-पुरुष, बच्चे भी खड़े आपकी राह निहार रहे थे, आपने गाड़ी धीमी कराकर उन्हें भी भरपूर आशीर्वाद दिया। संगठन की शाखा-सीधी के कार्यकर्ताओं ने स्वागत एवं प्रचार होर्डिंग्स व तोरणद्वारों से पूरे मार्ग को भक्तिमय बना दिया था।
बनारस में शिविरस्थल से लगभग पांच किमी पहले से शिविरस्थल तक सड़क के दोनों ओर पंक्तिबद्ध खड़े शिष्यों एवं भक्तों ने शंखध्वनि करके और जयकारे लगाकर परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का भव्य स्वागत किया। शिविर स्थल पर पहुंचकर यह यात्रा सम्पन्न हुई। सभी शिविरार्थी अपने-अपने ठहरने के स्थान पर व्यवस्थित हुए तथा खिचड़ी प्रसाद ग्रहण करके उन्होंने रात्रि विश्राम किया।
इससे पहले भगवती मानव कल्याण संगठन के सैकड़ों कार्यकर्ता हफ्तों पहले से ही बनारस पहुंच गए थे। वहां पर उन्होंने शिविर स्थल की सफाई करके चिन्तन पण्डाल एवं मंच के निर्माण का कार्य कराया। देश-विदेश से लाखों शिष्य एवं श्रद्धालु सीधे बनारस पहुंच गए थे।
इस शिविर के लिए भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में पैम्फ्लेट्स वितरित करके महीनों पहले से खूब प्रचार किया था। देशभर में वृहद् स्तर पर की गई आरतियों, महाआरतियों एवं श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठों के आयोजन के माध्यम से भी काफी प्रचार हुआ था। इसके अतिरिक्त, बनारस की ओर आने वाले मुख्य मार्गों पर बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाए गए थे। इस प्रकार, इस शिविर का व्यापक प्रचार हुआ था।
इसके फलस्वरूप, परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के ओजस्वी चिन्तन को सुनने के लिए बनारस में अपार जनसमूह उमड़ा। एक अनुमान के अनुसार एक लाख से अधिक शिविरार्थियों की उपस्थिति रही, जिनमें से लगभग पांच हज़ार से भी अधिक लोगों ने अगले दिन गुरुदीक्षा ग्रहण की। इस बीच भोजन एवं शान्तिसुरक्षा व्यवस्था सुचारू रूप से चली। संगठन के पांच हज़ार से भी अधिक सक्रिय कार्यकर्ताओं ने इस शिविर की सभी व्यवस्थाएं पूर्ण कीं।
शिविर पण्डाल में प्रथम दिवस 07 से 09 बजे तक मंत्र जाप एवं ध्यानसाधना का क्रम सम्पन्न हुआ, जिसे शक्तिस्वरूपा बहन संध्या योगभारती जी ने सम्पन्न कराया। अपराह्न 01 से 02 बजे तक भावगीतों का कार्यक्रम होता था, जिसके अन्तर्गत विभिन्न शिष्य एवं श्रद्धालु अपने भावसुमन अर्पित करते थे। तदुपरान्त, ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाए जाते थे। इस बीच परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का शुभागमन होता था और शक्तिस्वरूपा तीनों बहनों पूजा, संध्या एवं ज्योति योगभारती जी के द्वारा उनके पदप्रक्षालन व वन्दन के उपरान्त आपश्री की अमृतवाणी सुनने को मिलती थी।
तदुपरान्त, दिव्य आरती होती थी, जिसका नेतृत्व तीनों बहनों के द्वारा किया जाता था। अन्त में, महाराजश्री की चरणपादुकाओं का स्पर्श करके शिविरार्थी प्रसाद प्राप्त करते थे। महाराजश्री मंच पर तब तक विराजमान रहते थे, जब तक सभी उपस्थित जन प्रणाम नहीं कर लेते थे।

प्रथम दिवस-दिव्य उद्बोधन
मानव जीवन माता भगवती की अनुपम कृति है। इसीलिए इसे देवताओं के लिए भी दुर्लभ बताया गया है। यही अनुपम कृति आज अनीति-अन्याय-अधर्म के कारण तड़प रही है, कराह रही है। लोग काशी नगरी का हाल देखें। ज्ञान की यह नगरी आज अन्धकार में डूबी है। तब, मानवता का यह हाल तो होना ही है। अनेक धर्मगुरु यहां पर हैं। उनमें सामर्थ्य है, आध्यात्मिक सामर्थ्य नहीं, किन्तु आर्थिक सामर्थ्य तो है। वे विद्वान् हें और खाली प्रवचन दे सकते हैं। यहां पर अनेकों धर्मप्रमुख हैं, किन्तु फिर भी मानवता पतन की ओर जा रही है।
मैं यहां पर आपका स्वागत भोगने नहीं आया हूँ, बल्कि कुछ देने आया हूँ। यदि आप मेरे एक बिन्दु को भी धारण कर लें, तो वह उस स्वागत से भी अधिक होगा, जो मुझे सैकड़ों मालाएं अर्पित करने से होता। मैंने आज तक कभी भी कहीं पर अपना स्वागत नहीं कराया है।
मैं धर्मवान् लोगों का अपमान होते नहीं देख सकता। आज लोग धर्मगुरुओं को घण्टों मालाएं डालते रहते हैं, जब कि मेरा हर क्रम पात्रता-कुपात्रता को देखकर चलता है।
जिस सत्य की यात्रा पर हम बढ़ रहे हैं, उसमें आपको हर पल सजग रहना चाहिए। सबसे पहले स्वयं के द्वारा स्वयं को नियन्त्रित करो। केवल मानवजीवन ही ऐसा है, जिसके द्वारा आप वास्तविक मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं और कुण्डलिनी जाग्रत् कर सकते हैं। देवत्व जीवन की पूर्णता नहीं है, बल्कि ऋषित्व जीवन की पूर्णता है।
यह शरीर एक बहुत बड़ी प्रयोगशाला है। इसमें स्वयं के द्वारा स्वयं का अनुसन्धान करो। जब हम इस दिशा में बढ़ते हैं, तो एक-एक कदम का हमें फल प्राप्त होता है। हमारी कार्यक्षमता बढ़ती है और बौद्धिक क्षमता भी बढ़ती है। इसलिए एक वैज्ञानिक की भांति अपने शरीर का शोध करो।
खोज करो कि मैं कौन हूँ? मैं आत्मा हूँ और उसकी जननी आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा हैं। क्षमता सबमें मौजूद है, किन्तु सोई पड़ी है। उसे आपको जगाना है।
वर्तमान में मानवजीवन पतन के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। ज्ञान अज्ञान के नीचे दब गया है। हमें धर्म को जगाना है। धर्मगुरु धर्मग्रन्थों के कीड़े हैं और अनुसन्धान में शून्य हैं। यही पतन का कारण है। बड़ी-बड़ी कथाएं करने से समाज का कल्याण नहीं होगा। उन पर आचरण करना पड़ेगा।
हमारे धर्मगुरु कभी बहुत सोच-समझकर दान लेते थे, अन्न ग्रहण करते थे। आज धर्मप्रमुखों को जगाने की आवश्यकता है, लोग स्वयं जाग जाएंगे। धर्मगुरु जब झूठे, लम्पट और व्यभिचारी होंगे, तो वे समाजकल्याण क्या करेंगे?
आज धर्मसंस्थाएं व्यभिचार की केन्द्र बनी हुई हैं। उधर राजनेताओं को सिर्फ अपना वोट बैंक दिखाई देता है। मेरे द्वारा आत्महत्या करने जा रहे लोगों को सन्मार्ग दिखाया गया है। वे ही आत्महत्या का विचार छोड़कर आज दूसरों को राह दिखा रहे हैं।
आपके अपने अन्दर जो है, आपने उसे जानने का प्रयास नहीं किया। आपको स्वयं एक साधक, एक ऋषि बनना पड़ेगा। नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् जीवन जीना पड़ेगा और अपनी कुण्डलिनी को जगाना पड़ेगा।
आज लोग दूसरों को देखकर दुःखी हैं। ऊपर नहीं, नीचे की ओर देखो। इससे बहुत सन्तोष मिलेगा। तुम पैदल चल सकते हो, किन्तु दूसरों के पैर ही नहीं हैं। धर्म और धैर्य को धारण करो। आप लोग ज्ञान की ज्योति जलाना नहीं चाहते। यदि भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति हो, तो सब कुछ प्राप्त हो जाएगा।
मैंने जीवन में कभी भी धनवान् बनना नहीं चाहा। मन में सदैव एकमात्र लालसा रही अपनी जननी से जुड़ने की। आप लोग अपने आप पर विश्वास नहीं करते हो। इसीलिए न तो तुम्हारा देवी-देवताओं पर विश्वास है और न गुरु पर। यदि माता भगवती से जुड़ गए, तो भौतिक जगत् की हर वस्तु तुम्हें कंकड़-पत्थर नज़र आएगी।
पुनर्जन्म की परम्परा बराबर चल रही है। आत्मा अजर-अमर-अविनाशी है। सदैव सत्कर्म करो और सत्यपथ पर चलो। इससे जीवन में सुख-शान्ति और समृद्धि बढ़ती चली जाएगी। ज्ञान से अज्ञान का अन्धकार दूर होता है। भक्ति में शक्ति भरी है। आत्मशक्ति एक अलौकिक शक्ति है। सत्य का ज्ञान प्राप्त करो। इससे अन्तःकरण का अन्धकार मिट जाएगा।
आप लोग सवा मन प्रसाद चढ़ाकर अपनी सारी समस्याओं का समाधान चाहते हो, इसीलिए ठगे जा रहे हो। एक किसान परिवार में जन्म लेकर मैंने विश्व अध्यात्म जगत् को चुनौती दी है, किसी गर्व-घमण्ड से नहीं, बल्कि सत्यधर्म की रक्षा के लिए।
आज बड़े-बड़े मठाधीश सो रहे हैं। मैं उन्हें जगाकर रहूंगा। मैं यहां पर इसीलिए आया हूँ। मैं मान-अपमान से ऊपर हूँ। मेरे सत्य को कोई रोक नहीं सकता। सन्तानोत्पति के उपरान्त मैं सपत्नीक ब्रह्मचर्य का जीवन जी रहा हूँ। इसीलिए आपको यह सन्देश दे रहा हूँ। मेरा परिवार सबसे सुखी परिवार है। मैंने कभी भी अनीति-अन्याय-अधर्म का रास्ता तय नहीं किया है।
मैं दान के पैसे से अपना और अपने परिवार का गुज़ारा नहीं करता। मुझे कोई लोभ-लालच नहीं है। आज के धर्मगुरु भी लोभी प्रवृत्ति से ऊपर उठें और त्यागी-तपस्वी बनें।

माता-पिता के तीन प्रमुख कर्तव्य हैं- अपने बच्चों को अच्छा स्वास्थ्य देना, अच्छी शिक्षा देना और धर्ममार्ग पर बढ़ाना। अतः उन्हें चाट-पकौड़ी की बजाय शुद्ध-सात्त्विक, सुपाच्य एवं पौष्टिक आहार दो। बच्चों को अच्छी से अच्छी ऊंची शिक्षा दो। इसके साथ-साथ उन्हें नास्तिक न बनने दो, बल्कि धर्माचरण सिखाओ और सत्यमार्ग पर बढ़ाओ।
परमसत्ता से अपनी दूरियां समाप्त करो और सदैव ‘माँ’ की गोद में रहने का अहसास करो। एक अबोध शिशु बन जाओ। आदर-सम्मान सभी देवी-देवताओं का करो और उनसे आशीर्वाद मांगो कि आप दो कदम ‘माँ’ की ओर बढ़ सकें।
आज समाज में मुक्ति के बारे में बड़ा भ्रम है। काशी में मरकर तब मुक्ति होती थी, जब यहां पर ज्ञानी धर्मगुरु रहते थे, पर अब ऐसा नहीं है। अगर मेरे सत्य को कोई झुका देगा, तो मैं अपना सिर काटकर उसे चढ़ा दूंगा। या तो अब धर्मगुरु जागेंगे, या वे अपना पद छोड़ेंगे। धर्म का चोला पहने हुए लोग आज जेल की सलाखों की ओर बढ़ रहे हैं।
हिन्दूधर्म में सारे धर्म समाहित हैं। अतः यदि धर्मों की रक्षा करनी है, तो हिन्दुत्व की रक्षा करो। धर्म की रक्षा के लिए आज मैं इस काशी नगरी में विश्व अध्यात्म जगत् को आध्यात्मिक चुनौती देता हूँ। यहां पर धर्मगुरुओं का एक विश्वस्तरीय सम्मेलन होना चाहिए, जहां पर मीडिया, राजनेताओं और आम जनता की उपस्थिति में सबका सत्यपरीक्षण होना चाहिए। इससे झूठे, पाखण्डी और लोभी-लम्पट धर्मगुरुओं का पर्दाफाश हो जाएगा और भोलेभाले भावनावान् लोग लुटने से बच जाएंगे।
मीडिया को चाहिए कि राजनेताओं को छोड़कर उन्हें अब धर्मगुरुओं के पीछे पड़ना चाहिए। धर्मरक्षा के लिए एक बार ऐसा सम्मेलन ज़रूरी है। कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ, इसका परीक्षण विज्ञान कर सकता है। सारे धर्मगुरु इस बात के लिए तैयार हों। या तो अपने खर्च पर मैं यह आयोजन कर दूंगा, या वे आयोजन करें, मैं स्वयं उसमें सम्मिलित होने के लिए तैयार हूँ। इसमें किसी का अपमान होने का कोई कारण नहीं है। ऐसा आयोजन इस काशी नगरी में होना चाहिए। अब ज्ञान की ज्योति जलानी ही पड़ेगी।
लोग कहते हैं कि गंगा मैली हो गई है। अरे, मैले तो हो गए हैं आप और ये धर्मगुरु। यदि सारे धर्मगुरु आवाहन कर दें, तो उनके सारे शिष्य थोड़ा सा व्यय करके गंगा को स्वच्छ कर देंगे। शासन की कोई ज़रूरत नहीं पड़ेगी। हम लोगों ने सरस्वती को खो दिया है, क्या अब गंगा को भी खोओगे?
मैं किसी भी पार्टी का समर्थक नहीं हूँ। जो भी राजनैतिक पार्टी अच्छा कार्य करती है, मैं उसका समर्थन करता हूँ। जो गलत करती है, उसका प्रखर विरोध करता हूँ। गलत काम करने से देश की सबसे बड़ी पार्टी धराशायी हो गई है। अब मोदी को मौका मिला है, उन्हें अच्छा कार्य करना चाहिए। मोदी यहां से सांसद हैं। अन्यथा, वह दिन दूर नहीं, जब लोग राजनेताओं को उनके घर से घसीट-घसीटकर बाहर सड़कों पर पीटेंगे।
छुआछूत एक अज्ञानता है। इससे ऊपर उठो। साम्प्रदायिकता के ज़हर को मत बढ़ाओ। निश्चित रूप से अपराधी को दण्ड मिलना चाहिए, किन्तु निरपराधी को खरौंच तक नहीं आनी चाहिए।
आज के धर्मगुरु विदेश में ज्ञान का प्रकाश फैलाने के लिए नहीं, बल्कि धनार्जन के लिए जाते हैं।
हाल ही में ‘हर-हर मोदी’ का बड़ा विरोध हुआ है। मैं कहता हूँ कि हर व्यक्ति अपने नाम के साथ ‘हर-हर’ लगा ले, किन्तु भोला शंकर मत बने। न तो भांग खाओ और न ही भांग का गोला शिव जी को चढ़ाओ। ऐसा करने वाला व्यक्ति कभी शिवभक्त हो ही नहीं सकता।
होली के पावन पर्व पर लोग नशा करते हैं। होली हमें धर्म का आचरण सिखाती है। क्या नशा धर्म का आचरण है? यदि भांग खाना धर्म है, तो पैदा होते ही बच्चे को खिलाओ और महिलाओं को भी खिलाओ। फिर देखो यह देश कहां जाता है?
धर्मगुरुओं को मैं कहना चाहता हूँ कि मानवता की रक्षा का कार्य करो। यदि पहले से कर रहे हो, तो हम तुम्हारे साथ हैं। करोड़ों-करोड़ों रुपया इक-ा करने से ऊपर उठो। ताल-तलैया भी बरसात में भरकर इधर-उधर फैल जाते हैं। अतः गरीब जनता की ओर ध्यान दो। आज हालत यह है कि एक गरीब और फटेहाल व्यक्ति धर्मगुरुओं के चरणस्पर्श भी नहीं कर सकता।
हमारे देश में अनेकों मठ-मन्दिर हैं, जहां पर अकूत धन-सम्पदा है। हमारा पहला कदम गरीबों के लिए उठना चाहिए। मैं शंकराचार्यों और धर्माधिकारियों से भी कहता हूँ कि वे गरीबों के दुःख-दर्द को देखें। आज सारा समाज नशे में डूबा है। उन बहनों के पास जाओ, जिनका पति नशा करता है। उन धर्मगुरुओं को धिक्कार है, जो उनके दुःख-दर्द को नहीं समझते।
आज अज्ञान में डूबे लोग जनसामान्य को कृपा दिला रहे हैं। इस प्रकार बड़े आराम से देश को लूटा जा रहा है। बीजमंत्र बेचे जा रहे हैं और समाज को दिशाभ्रमित किया जा रहा है। यदि काला पर्स रखने से पैसा आता है, तो क्यों नहीं सारे गरीबों को काले पर्स दिला दिये जाते?
रामदेव ने लोगों को योग सिखाया, बड़ी अच्छी बात है। किन्तु, वह बताएं कि क्या वह स्वयं योगी हैं? उनके द्वारा योग सिखाने का भारी शुल्क लिया गया, जो अनुचित है। चित्त की वृत्तियों का निरोध योग की पहली सीढ़ी है। रामदेव यह करके तो दिखाएं।
मैं शिखर से शून्य पर आया हूँ, शून्य पर खड़े लोगों को शिखर पर लेजाने के लिए। रामदेव कहते हैं कि वह शून्य से शिखर पर आए हैं। आध्यात्मिकता के शिखर पर तो नहीं, भले ही भौतिकता के शिखर पर आगए हों। पहले कहते थे माता जी से प्रणाम मत कराओ और आज करा रहे हैं। समाज जानना चाहता है और मैं जानना चाहता हूँ कि वह पहले सही थे या अब सही हैं? उनके परिवार के लोग देखते-देखते करोड़पति बन गए। उनसे समाज की गरीबी तो दूर हुई नहीं, अपनी गरीबी ज़रूर दूर कर ली।
एक योगी महिलाओं के कपड़े पहनकर भाग निकले और फिर भी उसे पुलिस पकड़ ले, तो फिर कैसे योगी? एक योगी कभी भी रोता नहीं है। रामदेव फूट-फूटकर रोए। इसलिए अब समाज को जागना ही पड़ेगा।
मैंने समाज के बीच आठ महाशक्तियज्ञ अपनी पात्रता प्रमाणित करने के लिए किये थे। इनमें से हर यज्ञ में वर्षा अवश्य हुई है, जब कि ये अलग-अलग मौसमों में अलग-अलग क्षेत्रों में किये गये थे। चमत्कार तो कोई जादूगर भी कर सकता है, किन्तु प्रकृति को अपने अनुकूल करना हंसी खेल नहीं है।
विश्वभर में एक भी संस्था ऐसी नहीं है, जहां पर कोई धार्मिक अनुष्ठान सतत चल रहा हो। मेरे यहां गत सत्रह-अठ्ठारह वर्षों से श्री दुर्गाचालीसा का अखण्ड पाठ अनन्तकाल तक के लिए चल रहा है।
कानून बनाने मात्र से जुर्म कभी खत्म हो ही नहीं सकता। जुर्म की जड़ को समाप्त करना पड़ेगा। वास्तव में, नशे के ठेके देने वालों को फांसी होनी चाहिए। मोदी जी पूछते हैं कि नशा कैसे बन्द हो? उनको मेरी सबसे बड़ी सलाह यह है कि देश में शराब के ठेके बन्द करा दो। यदि इसके कारण राजस्व कम पड़ेगा, तो देश के बच्चे अपनी पॉकेट मनी से और महिलाएं अपने ज़ेवर बेचकर उसे पूरा कर देंगे। और, इस तरह देश में समृद्धि लौट आएगी।

मोदी जी भोपाल में 15-19 फरवरी 2015 के मध्य आकर देखें, जहां पर लाखों लोगों की मानव श्रृंखला पूर्ण नशामुक्त होने का संकल्प करेगी। भारतीय जनता पार्टी की यह अकर्मण्यता है, जो कहते हैं कि मोदी आएंगे, तो यह करेंगे, वह करेंगे। तो, भाई तुम स्वयं क्या करोगे?
हर राजनैतिक पार्टी में अच्छे लोग हैं, किन्तु उनमें नब्बे प्रतिशत बेईमान है। इसलिए, भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ नहीं उठाते! जगह-जगह भ्रष्टाचार, फिर भी ईमानदार! बड़े-बड़े घोटाले हो रहे हैं। चिट्फण्ड कम्पनियां भोलेभाले लोगों को लूट रही हैं। कोई आवाज़ उठाने वाला नहीं है।
धर्म यही कहता है कि स्वयं जागो और समाज को जगाओ। एक बेचारे डी.एम को नेताओं की चाटुकारिता से ही फर्सत नहीं मिलती। तब वह क्या प्रशासन करेगा? जनता अब तक बहुत सह चुकी है। समाज अब विवेकवान् बन रहा है। एक दिन यही समाज खदेड़-खदेड़कर ऐसे लोगों को मारेगा।
रामदेव को ज़ैड-श्रेणी की सीक्योरिटी दी गई है, क्यों? मुझे किसी भी तरह की सुरक्षा की ज़रूरत नहीं है। मेरा संगठन मेरी सुरक्षा करता है और ज़रूरत पड़े, तो शासन को भी सुरक्षा प्रदान कर सकता है। हम कानून के दायरे में रहकर अपना काम कर रहे हैं। रामपाल की भांति कोर्ट की अवज्ञा नहीं करते। मेरा संगठन अपमान सहन करके भी समाजसेवा करता रहेगा।
समाज का आईना देखना हो, तो कथावाचकों को देखो। उनका एकमात्र लक्ष्य धनार्जन होता है। निन्यानवे प्रतिशत कथावाचक रत्नजड़ित अगूंठियां पहने बैठे हैं, भयभीत हैं। फिर, वे समाज को कैसे भयमुक्त करेंगे? सबसे बड़ा रत्न तो हमारे अन्दर बैठा है, उसे जगाओ। आपका गुरु कहता है कि उसकी मुठ्ठी में नौ के नौ ग्रह हैं। इसीलिए वह भयमुक्त है और भयमुक्त समाज का निर्माण कर रहा है। मैं किसी का अवतार नहीं हूँ। मैं ऋषि था, ऋषि हूँ और ऋषि ही रहूंगा। मैं परम सिद्धाश्रम धाम सिरमौर योगेश्वर ब्रह्मर्षि स्वामी सच्चिदानन्द का स्वरूप हूँ।
शादी से पहले पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करो। शादी के बाद वासना में मत डूबो। एक बैडरूम की संस्कृति छोड़ो। महिलाएं अपने बच्चे को स्तनपान नहीं करातीं, इस डर से कि उनकी फीगर बिगड़ जाएगी। बच्चे को शुरू से ही बॉटल पकड़ा दी जाती है और बड़ा होकर वह बड़ी बॉटल पकड़ लेता है, तो क्या गलत करता है? सन्तानोत्पत्ति के बाद पुनः ब्रह्मचर्यव्रत का पालन होना चाहिए।
(इस अवसर पर दोनों हाथ उठवाकर सभी को संकल्प दिलवाया गया कि शादी से पहले पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करेंगे, शादी के बाद एक पति/पत्नी व्रत का पालन करेंगे और सन्तानोत्पत्ति के बाद पुनः ब्रह्मचर्य व्रत धारण करेंगे।)
इसके अतिरिक्त, पूर्ण नशा-मांसाहारमुक्त जीवन जिओ। इस संकल्प को नहीं तोड़ना। यदि इससे पूर्व नशा करके तुमसे कुछ पाप होगया होगा, तो मैं आपको उससे मुक्त कर दूंगा। इस संकल्प में कोई विकल्प नहीं होना चाहिए। यदि कभी आए, तो इन क्षणों को याद कर लेना। मोदी जी से भी मैं कहूंगा कि उन्हें हमारे यहाँ आकर देखना चाहिए कि परिवर्तन इस तरह होता है।
कल यहां पर पुलिस वाले एक कुत्ते को सलामी दे रहे थे। मैं उनसे कहता हूँ कि तुम अच्छे काम करने लगो, तो पूरा समाज तुम्हें सलामी देगा। आज पुलिस थानों में गरीब आदमियों को गालियां दी जाती हैं और नेताओं के चमचों को कुर्सी पेश की जाती है। पुलिस में भ्रष्टाचार बहुत है, किन्तु उसकी शुरूआत भर्ती से होती है। जब भर्ती के समय कोई चार-पांच लाख रुपये देगा, तो भ्रष्टाचार उसकी मजबूरी होगी।
शान्ति और सन्तोष का जीवन अधिक चेतनावान् होता है। आपके पूर्वज ऐसा ही जीवन जीते थे और एक-एक क्विंटल की बोरी सहज ही उठा लेते थे। अब क्षमता इतनी घट गई है कि पचास किलो की कट्टी उठाने में कठिनाई होती है। इसलिए अपनी सामर्थ्य को जगाओ। अधिक भोजन करने से स्वस्थ नहीं हो जाओगे। सुख-सन्तोष से स्वल्पाहार लो और शरीर को अधिक से अधिक व्यस्त रखो।
भले ही साधु-सन्त-संन्यासी कहते हों, ‘श्माया महाठगिनी मैं जानी,’’ किन्तु मैं कहता हूँ कि काया महाठगिनी है। इसका उपयोग करो, उपभोग नहीं। अन्यथा, यह काया तुम्हें ठग लेगी।
देवी-देवताओं के नाम पर बलि देना बहुत बड़ा पाप है। इससे कभी भी कल्याण नहीं होगा। यदि अपने सुख के लिए आप किसी निरीह प्राणी की जान लेते हैं, तो उससे कोई देवी-देवता प्रसन्न नहीं होते। इससे दिव्य शक्तियां लुप्त होजाती हैं।
विन्ध्यवासिनी मन्दिर में भी एक स्थान बलि देने के लिए नियत किया गया है। वहां पर मुझसे कहा गया, ‘‘जो भी मांगना हो, मांग लो।’’ तब मैंने ‘माँ’ के चरणों में प्रार्थना की, ‘‘हे माँ, यहां पर भी रहो और मेरे आश्रम में भी आकर रहो।’’ फिर कहा गया, ‘‘यहां पर सोलह पुजारी हैं, उनके एक दिन के भोजन का संकल्प करो।’’ इस पर ज्योति ने कहा, ‘‘हमारे यहां अखण्ड भण्डारा चल रहा है, वहां आकर भोजन कर लो।’’ दुर्भाग्य है कि प्रतिदिन सुबह से शाम तक इतना चढ़ावा इस मन्दिर में आता है, फिर भी पुजारियों का पेट नहीं भरता। यदि ये लोग धर्मशाला आदि के लिए धन की मांग करते, तो मैं कई गुना दे देता।

द्वितीय दिवस- गुरुदीक्षा क्रम
शिविर के अन्तिम दिन सभी दीक्षार्थी पण्डाल में प्रातः 08ः00 बजे से पहले ही पहुंच गए थे। ठीक समय पर परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का शुभागमन हुआ। दीक्षा के पूर्व महाराजश्री ने एक संक्षिप्त उद्बोधन दियाः
जीवन में समय का सबसे अधिक महत्त्व होता है। जो इसे समझने में सफल होगया, वही मानव सबसे सौभाग्यशाली होता है। कुछ क्षण ऐसे होते हैं, जो हमारे पूरे जीवन को बदल देते हैं। उससे हम पतन में भी जा सकते हैं और उत्थान में भी जा सकते हैं।
मनुष्य का एक जन्म माँ के गर्भ से होता है। किन्तु, वास्तविक जन्म उसका तब होता है, जब वह किसी चेतनावान् गुरु से दीक्षा प्राप्त करता है। दीक्षा का अर्थ मात्र मंत्र प्राप्त करना ही नहीं है। इसके अतिरिक्त, गुरु के द्वारा बताए मार्ग पर चलना पड़ता है। जो पूर्ण निष्ठा एवं विश्वास के साथ उस मार्ग पर चलते रहते हैं, उनका कभी पतन नहीं होता।
अभी आपको एक संकल्प कराया जाएगा। यदि उस पर अमल करते रहेंगे, तो आपकी बड़ी-बड़ी समस्याएं सामान्य बनकर निकल जाएंगी। आप लोग अनीति-अन्याय-अधर्म का कोई भी कार्य नहीं करेंगे। अपनी मेरुदण्ड को सदैव सीधी करके बैठा करें। इससे शिथिलता दूर होती है तथा सतोगुणी प्रवृत्ति जाग्रत् होती है। अपने मन-मस्तिष्क को एकाग्र करके बैठें। जब गुरु मंत्रों का स्वयं उच्चारण कराता है, तो वे शिष्यों के लिए उत्कीलित होजाते हैं।
साधना से सम्बन्धित समाज में व्याप्त भ्रम को दूर करो। आप किसी भी छवि को पहले या बाद में स्नान करा सकते हैं, पुष्प समर्पित कर सकते हैं या तिलक कर सकते हैं। उनमें कोई भेदभाव नहीं है। अपने घर में ‘माँ’ का मन्दिर बनाएं। यदि स्थान का अभाव है, तो दीवार पर छवि टांग सकते हैं। इसके अतिरिक्त, अपने हृदय में ‘माँ’ का बड़ा मन्दिर बनाएं। ‘माँ’-ऊँ बीजमंत्रों का क्रमिक उच्चारण करें। ये मन का मंथन करते हैं और इनसे आन्तरिक शुद्धता होती है। इन ध्वनियों के गुंजरण पर ध्यान केन्द्रित करें। गुरु-शिष्य का रिश्ता सब रिश्तों में सर्वोपरि होता है। यह एक आत्मिक रिश्ता है, शेष सभी रिश्ते भौतिक हैं।
अपने घर पर ‘माँ’ का ध्वज लगाओ। इससे सारे ग्रहदोष और वास्तुदोष दूर हो जाएंगे। यह ध्वज सात्त्विक तरंगों को आकर्षित एवं असात्त्विक तरंगों को विकर्षित करता है। अपने मस्तक को सदैव कुंकुम तिलक से आच्छादित करके रखें। पुरुष हमेशा रक्षाकवच और महिलाएं रक्षारूमाल धारण करें तथा नित्य शक्तिजल का पान करें।
(अब तीन बार ‘माँ’-ऊँ का उच्चारण कराया गया तथा तीन बार शंखध्वनि की गई।)
ये ध्वनियां वातावरण को पवित्र करती हैं। तदुपरान्त, सभी को एक संकल्प कराया गया, जिसका सार यह है कि मैं धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगिराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज को अपना गुरु स्वीकार करता हूँ। मैं जीवनपर्यन्त पूर्ण नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् जीवन जीने के साथ गुरुवर जी के हर आदेश का पूर्णतया पालन करूंगा। इसके साथ-साथ भगवती मानव कल्याण संगठन एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम की विचारधारा पर चलूंगा और इसके प्रति पूरी निष्ठा से समर्पित रहूंगा।
अब निम्नलिखित मंत्रों का तीन-तीन बार उच्चारण कराया गया-

  1. बजरंग बली जी की कृपा प्राप्त करने के लिए- ऊँ हं हनुमतये नमः, 2. भैरव देव जी की कृपा प्राप्त करने के लिए- ऊँ भ्रं भैरवाय नमः, 3. गणपति देव जी की कृपा प्राप्त करने के लिए- ऊँ गं गणपतये नमः, 4. ‘माँ’ का चेतनामंत्र- ऊँ जगदम्बिके दुर्गायै नमः, 5. गुरुमंत्र- ऊँ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः
    साधना में शुद्धता एवं पवित्रता नितान्त आवश्यक है। आपका जीवन सदैव आत्मकल्याण एवं जनकल्याण के प्रति समर्पित होना चाहिए। साथ-साथ तीनों धाराओं के प्रति भी समर्पित होना चाहिए। अब आप इस अभियान से जुड़ चुके हैं। मेरा पूरा जीवन शिष्यों के प्रति समर्पित रहता है।
    आप लोग सदैव सूर्योदय से पहले उठने की आदत डालें। दो-तीन साल के बच्चों को छोड़कर शेष बच्चों को भी जगाएं, भले ही वे दिन में एक-दो घण्टे सो लें।
    मैं कभी भी अपना पूजन नहीं कराता, बल्कि आपका पूजन करता हूँ और सबको समान भाव से स्वीकार करता हूँ। यदि आप पूरी श्रद्धा और विश्वास से इस यात्रा पर चलेंगे, तो भले ही आप करोड़ों मील दूर क्यों न हों, वहां पर भी आपको मेरी निकटता का ऐहसास होगा।
    अन्त में तीन बार शंखनाद किया गया। गुरुचरणपादुकाओं को नमन करते समय सभी दीक्षाप्राप्त नए शिष्यों को शक्तिजल प्रदान किया गया।
    द्वितीय दिवस- द्वितीय सत्र
    मानवजीवन के उतार-चढ़ाव धर्म और अधर्म पर आधारित होते हैं। यह मनुष्य के ऊपर है कि वह धर्म के पथ पर चलना चाहता है या अधर्म के। धर्मपथ पर चलने से ही सौभाग्य बनता है। अधर्म के पथ पर चलना दुर्भाग्य का सबसे बड़ा कारण है।
    मनुष्य के द्वारा किया गया प्रत्येक वह कार्य धर्म है, जिससे आत्मा की परमसत्ता से निकटता बढ़ती है तथा मनुष्य के द्वारा किया गया प्रत्येक वह कार्य अधर्म है, जिससे आत्मा की परमसत्ता से दूरियां बढ़ती हैं।
    समस्त ज्ञान हमारी आत्मा में समाहित है। आत्मज्ञानी ही पूर्ण मुक्ति का अधिकारी होता है। ‘योग ही जीवन है, वियोग ही मृत्यु है। कुण्डलिनी का जागरण ही, जीवन की मुक्ति है।’ सच्ची मुक्ति में कभी भी पतन नहीं होता। देवत्व को प्राप्त करना सरल है, किन्तु ऋषित्व को प्राप्त करना बहुत कठिन है। देवता तो भटक सकते हैं, किन्तु एक ऋषि कभी भी पतित नहीं होता। ऋषित्व की प्राप्ति मात्र मानवजीवन से ही होती है।
    ‘माँ’ की ममता का सागर ऐसा है, जिसका पार न तो कोई पा सका है और न पा सकेगा। यह सब भ्रम है कि काशी में मरने से कोई मुक्ति प्राप्त कर लेगा। कोई भी देवी-देवता किसी को मुक्ति नहीं दे सकते, समस्याओं का हल तो वे कर सकते हैं। वे व्यक्ति को सद्गुरु की शरण में भेज सकते हैं।
    आप लोगों के अन्दर साधक बनने की तड़प होनी चाहिए। आडम्बरों से दूर हटकर शक्तिसाधक बनो। भिखारियों का जीवन मत जिओ। कर्मवान् बनो, तभी तुम धर्मवान् बन सकोगे। खुले मन-मस्तिष्क से सत्य को पहचानने का प्रयास करो। जो बीत गया, सो बीत गया। वर्तमान हमारे पास है। तीसरा नेत्र क्यों नहीं जाग्रत् करते?
    आज्ञाचक्र राजा चक्र है। उसकी शरण में जाओ। उसे जाग्रत् करो। अपनी आत्मा पर पड़े जितने आवरणों को हटा लोगे, उतनी ही तुम्हारी कार्यक्षमता बढ़ती चली जाएगी। किन्तु, प्यासे तो तुम भौतिक जगत् के हो। उसे छोड़कर परमसत्ता के प्यासे बनो। शुद्धता का जीवन जिओ। शुद्ध-सात्त्विक आहार लो। हर पल सचेत रहो और स्वयं को स्वयं के द्वारा नियन्त्रित करो। भावना का समर्पण ही सबसे बड़ा समर्पण है। ध्यान लगाना प्रारम्भ कर दो। इसे हर कोई कर सकता है। एक बार जब आपको लगे कि आपका शरीर हल्का हो गया है, सूक्ष्म शरीर जाग्रत् हो गया है, तो वह प्यास और बढ़ जाएगी।
    समाधि जीवन की शून्यता है, पूर्णता नहीं। साधनापथ पर चलना तलवार की धार पर चलने से भी कठिन है। यह एक लम्बी यात्रा है। आज के सभी साधु-सन्त भटके हुए हैं और दूसरों को भी भटका रहे हैं। अन्त में, उनके हाथ कुछ नहीं लगता–केवल ‘राम-राम’ और ‘जय भाले की!’ शेष रह जाता है।
    मैं यहां पर ‘माँ’ का जयघोष करके शंकर जी को सुनाने आया हूँ। जहां पर ‘माँ’ का जयघोष होता है, वहां शंकर प्रसन्त होते हैं। शिवभक्तों को चाहिए कि उन्हें अपने हृदय में धारण करें। वर्तमान में, अब तक किसी शिवभक्त ने भी शंकर के दर्शन नहीं किये हैं। मैंने ‘माँ’ के दर्शन किये हैं। शंकर भगवान् कभी भांग-धतूरे का सेवन नहीं करते। वह तो अत्यन्त शुद्ध और सात्त्विक हैं।
    शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द ने साईं बाबा के बारे में तो उल्टी-सीधी टिप्पणी की है, किन्तु हर जगह पर जो म्लेच्छ बैठे हुए हैं, उनके खिलाफ आवाज़ क्यों नहीं उठाई? गांजा-चिलम चढ़ाने से चेतनात्मक विकास नहीं होता। बलिप्रथा तथा शराब के विरुद्ध उन्होंने आवाज़ क्यों नहीं उठाई? आज देश में अनेकों अखाड़े चल रहे हैं, किन्तु क्या इनसे समाज का कल्याण हुआ?
    गंगा मैली हो गई है। उसे स्वच्छ करना सरकार का काम नहीं है, बल्कि हिन्दू समाज के ठेकेदारों का काम है। गंगा को न तो दूध की ज़रूरत है और न ही पुष्प की। गंगा पूजन के नाम पर इन चीज़ों को चढ़वाना बन्द करें-यह मोदी को मेरी सलाह है। वास्तव में, गंगा को गंगा माँ के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। मैं सभी शंकराचार्यों का आवाहन करता हूँ कि वे गंगा की सफाई में अपनी सारी शक्ति झोंक दें। मैं अपना पूर्ण सहयोग देने को तैयार हूँ।
    साईं बाबा के पास जो तपबल था, आज के साधु-सन्तों के पास उतना भी नहीं है। आज पैंसठ शंकराचार्य हैं, फिर भी समाज पतन की ओर जा रहा है। वे सब शुल्क के पीछे दौड़ रहे हैं। तथाकथित अछूत उनके चरण स्पर्श नहीं कर सकते। मैं सभी के हाथ का बनाया भोजन कर लेता हूँ। इससे मेरा धर्म कभी भी बाधित नहीं हुआ। मेरे पिता दण्डी संन्यासी जी का कहना था कि उन्होंने देश के सभी तीर्थों का भ्रमण किया। किन्तु, जो शान्ति उन्होंने सिद्धाश्रम में आकर प्राप्त की, वह उन्हें कहीं पर भी प्राप्त नहीं हुई।
    मेरी जन्मस्थली ग्राम भद्रवास की घटना है। वहां पर एक यज्ञ का आयोजन किया गया था। उसमें शंकराचार्य भी सम्मिलित हुए थे। मैं भी वहां पर एक कार्यकर्ता के रूप में उपस्थित था। कुछ महिलाएं शंकराचार्य जी के दर्शन हेतु वहां पर आ गईं। इस पर शंकराचार्य जी बिफर गए और बोले, ‘‘इन भैंसों को यहां पर आने की आज्ञा किसने दी?’’ यह सुनकर मुझे भारी कष्ट हुआ कि जिस नारी ने शंकराचार्यों को जन्म दिया, वे ही उन्हें ‘भैंस’ शब्द से सम्बोधित कर रहे हैं। फलतः, विरोधस्वरूप मैंने तत्काल पण्डाल छोड़ दिया। आज शंकराचार्यों में ऐसी सैकड़ों कमियां हैं। वास्तव में, धर्माधिकारी साधनाविहीन हो चुके हैं।
    अगर धर्म का पतन नहीं होता, तो आज राजनीति का पतन नहीं होता। आज के भ्रष्ट राजनेताओं को मेरा आशीर्वाद है कि उन्हें कैंसर की बीमारी हो और वे दुर्घटना के शिकार हों।
    आज के कथावाचक रासरंग में डूबे हैं। उन्होंने भगवान् श्रीकृष्ण को रसिया बनाकर रख दिया है। मैं आज इस मंच से कह रहा हूँ कि उनमें निन्यानवे प्रतिशत चरित्रहीन हैं। जहां भी जाते हैं, वहां पर वे अपनी प्रेमिकाएं बना लेते हैं। कृष्णजन्माष्टमी के पावन पर्व पर बारबालाओं को बुलाकर नृत्य कराया जाता है। इससे बड़ा पतन और क्या होगा?
    एकमात्र रास्ता है- ‘माँ’ की शरण में आजाओ। अपने अन्दर पुत्रत्व भाव लाओ। आपको अकर्मण्य नहीं, एक साधक बनना है। आपको एक तपस्वी बनना है। तप के बिना इस भूतल पर कुछ भी सम्भव नहीं है।
    अधर्मी-अन्यायी यह न समझें कि अपने अधर्म के बल पर वे फलते-फूलते चले जाएंगे। एक न एक दिन इसका फल उन्हें ज़रूर मिलेगा। आप अपने स्वयं के प्रति समर्पण रखो और स्वयं को निखारो। आत्मा के ऊपर पड़े आवरणों को ध्यानसाधना से ही हटाया जा सकता है। रासरंग से तो और अधिक आवरण पड़ते हैं।
    प्रतिदिन ब्राह्ममुहूर्त में जगना शुरू करो। आपका गुरु रोज़ ढाई से तीन बजे के बीच जगता है। आज गुरु कह रहा है कि उससे पहले मत जगो, किन्तु सूर्योदय से पहले ज़रूर उठ जाओ। सूर्योदय के बाद भी पड़कर सोना एक राक्षसी प्रवृत्ति है। पिछले मात्र पच्चीस सालों में समाज का इतना पतन होगया है कि दुकानदार रोज़ आठ-नौ बजे तक पड़े सोते रहते हैं। इसके फलस्वरूप मार्केट ग्यारह-बारह बजे से पहले नहीं खुलता। ऐसा कब तक चलेगा?
    आठ महाशक्तियज्ञ मैंने अपनी पात्रता प्रमाणित करने के लिए किये थे। मैं ‘माँ’ में हूँ और ‘माँ’ मुझमें हैं, यह मैंने उन यज्ञों के अन्तर्गत स्पष्ट दिखाया है। होती हुई धुंआधार वर्षा को मेरे द्वारा रोका गया है और खिली धूप में वर्षा की गई है। यदि इसे कोई झूठा साबित कर देगा, तो मैं उससे अलग दस घटनाएं और करके दिखा दूंगा।
    मैं कभी भी किसी तंत्र-मंत्र का प्रयोग नहीं करता। मेरे आश्रम की मात्र ऊर्जा से लोग रोगमुक्त हो रहे हैं और उनकी विभिन्न समस्याओं का समाधान हो रहा है। मैं वहां के कण-कण को ऊर्जावान् बना रहा हूँ। मात्र धर्म ही एक ऐसा मार्ग है, जिस पर चलकर समस्याओं का समाधान होता चला जाता है। इसलिए भक्तिकाल उपस्थित करो और अपनी चेतना से एकाकार करो।
    यदि वास्तव में तुम शिवभक्त बनना चाहते हो, तो उन पर भांग-धतूरा मत चढ़ाओ और स्वयं भी नशामुक्त रहो। बनारसी पान, सुपारी और गुटखा आदि से दूर रहो। इनसे बीमारियां होती हैं। कथावाचकों की बातों में मत आओ, जो कहते हैं कि शंकर भोले भण्डारी हैं, थोड़ी सी बात से ही प्रसन्न हो जाते हैं। ये कथावाचक समाज में भ्रमजाल फैलाते हैं तथा पूजा के लिए तो घटिया वाली सुपारी मंगवाते हैं और अपने लिए उन्हें बढ़ियां से बढ़िया धोती चाहिए।
    मैं अपना जीविकोपार्जन अपने कर्मबल से उपार्जित धन से करता हूँ, दान के पैसे से नहीं। मेरे आश्रम में रहना और खाना सदैव निःशुल्क रहता है। मुझसे मिलने का भी कोई शुल्क नहीं है और योग भी निःशुल्क सिखाया जाता है, किन्तु अन्यत्र सब कुछ उल्टा हो रहा है। इसे समाज को ही सुधारना पड़ेगा। परन्तु, सबसे पहले अपने आपको सुधारो।
    मेरा जन्म 09 दिसम्बर 1960 को हुआ था। यदि 09 दिसम्बर को आप मेरा जन्मदिवस मनाते हैं, तो उस दिन कम से कम पांच घण्टे का श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ अवश्य करो। जिस दिन यह देश पूर्ण नशामुक्त हो जाएगा, उस दिन मैं स्वयं अपना जन्मदिवस मनाऊंगा।
    हर साल 31 दिसम्बर एवं 01 जनवरी के बीच की मध्यरात्रि में नए साल का स्वागत ‘माँ’ के चौबीस घण्टे के गुणगान से करो। आश्रम के स्थापना दिवस 23 जनवरी को पांच-पांच घण्टे या 24 घण्टे के श्री दुर्गाचालीसा पाठ का अनुष्ठान करो। इस दिन आश्रम में योगभारती विवाह पद्धति से सामूहिक विवाह होते हैं, सिद्धाश्रम दौड़ प्रतियोगिता एवं सायंकाल में भक्ति संगीत का कार्यक्रम सिद्धाश्रम सुरसंध्या एवं कवि सम्मलेन होता है। इसके लिए जो भी स्वेच्छा से आना चाहें, आ सकते हैं। मेरे द्वारा इसके लिए आवाहन नहीं किया जाता।
    हम लोग खजूर के पेड़ की तरह नहीं बढ़ रहे हैं, बल्कि अपने धरातल को मज़बूत कर रहे हैं। हो-हल्ला से दूर रहकर हमने अवैध शराब इतनी पकड़ाई है, जितनी सरकार ने नहीं पकड़ी है। हम देश के हर प्रदेश में नशामुक्ति आन्दोलन छेड़ेंगे। यदि पूरे देश को नशा-मांसाहार से मुक्त कर दो, तो देश विकास के पथ पर दौड़ पड़ेगा। सरकार एक ओर नशे के ठेके उठाती है और दूसरी तरफ नशामुक्ति कैम्प लगाती है। कैसी अज्ञानता है? हमारा संगठन जीवन की अन्तिम सांस तक देश को नशामुक्त करने का प्रयास करता रहेगा, आन्दोलन करेगा और सरकार को ज्ञापन देगा।
    वर्ष 2025 के बाद हमारी सामर्थ्य ऐसी होगी कि नशा पूरी तरह बन्द होगा और भ्रष्ट राजनेताओं को धूल चटाई जाएगी। आगामी दस साल तक हम सरकार से निवेदन करेंगे। उसके बाद, कानून के दायरे में रहकर अपनी शक्ति का उपयोग करेंगे।
    इसके लिए मैंने तीन धाराएं प्रदान की हैं- पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम, भगवती मानव कल्याण संगठन और भारतीय शक्ति चेतना पार्टी। हम एक-एक करके अपने कदम बढ़ा रहे हैं। पार्टी का गठन हमने राष्ट्ररक्षा के लिए किया है, सत्तासुख के लिए नहीं। कभी वह समय ज़रूर आएगा, जब दिल्ली के लालकिले पर कोई शक्तिसाधक या साधिका ही राष्ट्रध्वज फहराएंगे।
    नरेन्द्र मोदी अपने आसपास के मगरमच्छों को सुधारें, नहीं तो वह भी रसातल में चले जाएंगे। पांच साल तक उन्हें कार्य करने दें। उनके हर अच्छे कार्य को हमारा समर्थन रहेगा, किन्तु हर बुरे कार्य का हम विरोध करेंगे।
    हर मनुष्य के तीन मुख्य कर्तव्य हैं– धर्म की रक्षा, मानवता की सेवा और राष्ट्ररक्षा। यदि अपने आपको इस त्रिवेणी में डुबा दोगे, तो आपकी मुक्ति निश्चित है।
    वर्ष 2015 में दिनांक 15 से 19 फरवरी तक मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में नशामुक्ति का महाशंखनाद होगा। सभी शिष्यों को मेरा आदेश है कि वे वहां पर सपरिवार उपस्थित हों।
    उस अवसर पर, 16 फरवरी को मानव शृंखला बनाकर हम शासन का ध्यान आकर्षित करेंगे कि समूचे प्रदेश को यथाशीघ्र नशामुक्त करें। सौभाग्यशाली होंगे वे शिष्य, जो इस श्रृंखला से जुड़ेंगे।
    हमारा संकल्प है कि पूरा देश नशामुक्त हो, नारी का सम्मान हो और गोहत्या बिल्कुल बन्द हो। यदि नारी का सम्मान करना चाहते हो, तो पूरे देश को नशामुक्त करा दो।
    सभी लोग भोपाल में 14 फरवरी की शाम या 15 फरवरी की सुबह तक अवश्य पहुंच जायं। वहां पर जनसम्पर्क कार्यालय में अपना नाम, पता और मोबाईल नं. नोट कराएं, जिसके आधार पर एक बुकलेट छपेगी। जिस ज़िले के कम से कम दस हज़ार लोग 15 फरवरी को वहां पहुंच जाएंगे, उन्हें एक साल के अन्दर मेरे द्वारा एक शक्ति चेतना जनजागरण शिविर प्रदान कर दिया जाएगा।
    समाज में गोरक्षण की बड़ी बातें होती हैं, किन्तु गोशाला की नहीं। वास्तव में गाय का संरक्षण और संवर्द्धन होना चाहिए। मेरे द्वारा हर महीने की शुक्लाष्टमी गोसेवा समर्पण के लिए समर्पित की गई है। सभी को चाहिए कि इस दिन पूरे मनोयोग से कहीं न कहीं गोसेवा करें। यदि नहीं कर पाते, तो हर महीने एक दिन की अपनी आय गोसेवा को समर्पित करें और यथासम्भव गोपालन प्रारम्भ करें।
    इस प्रकार, धर्मनगरी काशी में दो दिवसपर्यन्त चला यह विशाल शक्ति चेतना जनजागरण शिविर माता भगवती आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की अहैतुकी कृपा एवं परम पूज्य सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के दिव्य आशीर्वाद के फलस्वरूप निर्विघ्न सम्पन्न होगया।
    अब हर व्यक्ति आगामी फरवरी 2015 में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित होने वाले पंचदिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर के लिए बड़ी उत्कण्ठा के साथ प्रतीक्षारत है।
    दिनांक 25 नवम्बर को प्रातःकाल 08 बजे भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करने के उपरान्त, परम पूज्य सद्गुरुदेव योगीराजश्री शक्तिपुत्र जी महाराज वाराणसी से सिद्धाश्रम के लिये इलाहाबाद, रीवा मार्ग से होते हुये पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम पहुंचे।
    यात्रा में गुरुवरश्री के वाहन के पीछे पूजनीया माता जी व शक्तिस्वरूपा बहनों का वाहन, फिर कतारबद्ध शिष्यों के वाहन चल रहे थे। राह में अनेक शिष्य-भक्त जगह-जगह अपने आराध्य के दर्शनार्थ आतुर खड़े दिखाई दिये।
    वाराणसी से औराई, गोपीगंज, बरौत, हण्डिया, झूंसी, इलाहाबाद, नैनी, घूरपुर, जारी, नारीवारी, चाकघाट, कटरा, गढ़, गंगेव, मनगवां, रायपुर कर्चुलियान, रीवा, गोविन्दगढ़, बघवार व देवलोंद में हज़ारों की संख्या में शिष्य व भक्त गुरुवरश्री का आशीर्वाद प्राप्त करके कृतार्थ हुये। सायंकाल 06ः30 बजे जैसे ही सद्गुरुदेव भगवान् आश्रम पहुंचते हैं, आश्रमवासियों और भक्तों में प्रसन्नता की लहर व्याप्त हो गई। ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे व शंखध्वनि से सम्पूर्ण वातावरण गुंजायमान हो उठा।

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