शक्ति चेतना जनजागरण शिविर, बांदा (उ.प्र.) 7-8 दिसम्बर 2013

उत्तर प्रदेश के बांदा नगर में आयोजित यह शिविर इसलिए भी महत्त्वपूर्ण था, क्योंकि बांदा ज़िला परम पूज्य सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का ननिहाल है। यहां पर आपश्री ने अपने बचपन के काफी दिन व्यतीत किये तथा उस अवधि में आपके द्वारा की गई अनेक लीलाओं से आपकी यादें जुड़ी हैं।
इस शिविर की घोषणा महाराजश्री ने पिछली कार्यकर्ता बैठक में ही कर दी थी। उत्तर प्रदेश शाखा के भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं के लिए अपने सौभाग्य को जगाने का इससे बेहतर और कोई अवसर हो नहीं सकता था। अतः आश्रम में आयोजित शारदीय नवरात्र के शक्ति चेतना जनजागरण शिविर के तुरन्त बाद ही ये कार्यकर्ता बड़े मनोयोग से इसकी तैयारी में जुट गए थे।

शक्ति चेतना जनजागरण सद्भावना रैली
इस शिविर के लिए शिष्यों, भक्तों ने शक्ति चेतना जनजागरण सद्भावना रैली के रूप में आश्रम से प्रस्थान किया। दिनांक 05 दिसम्बर को प्रातः ठीक 09ः00 बजे धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज अखण्ड श्री दुर्गा चालीसा पाठ मन्दिर में नमन करने के उपरान्त अपने पूज्य पिता नित्य लीलालीन दण्डी संन्यासी स्वामी श्री रामप्रसाद आश्रम जी महाराज की समाधि पहुंचे। वहां पर उन्हें प्रणाम करके आपने त्रिशक्ति गोशाला होते हुए आश्रम के सभी शिष्यों-भक्तों को अपना आशीर्वाद देते हुए बांदा के लिए प्रस्थान किया।
परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के वाहन के आगे सैकड़ों मोटरसाईकिल सवार शक्तिदण्डध्वज लिए और जयघोष करते हुए चल रहे थे। महाराजश्री के पीछे भी सैकड़ों चौपहिया वाहन क्रमबद्ध ढंग से चल रहे थे, जिनके दोनों ओर सद्भावना यात्रा वाले फ्लैक्स लगे थे और आगे शक्तिध्वज फहरा रहे थे। इनमें से एक वाहन पर ‘शक्तिपुत्र जी आए हैं, शक्ति चेतना लाए हैं’, पंक्ति वाला गीत लाउडस्पीकर के द्वारा प्रसारित किया जा रहा था। रैली में सम्मिलित हर व्यक्ति के हृदय में एक अलौकिक हर्ष, उल्लास एवं जोश भरा था। इस दृश्य को देखकर लग रहा था, मानो भगवती मानव कल्याण संगठन के पूर्ण नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् धर्मयोद्धा आज इस घोर कलिकाल को पराजित करने के लिए अपने घर से निकल पड़े हों।
देवलौंद होते हुए लगभग 11ः00 बजे रैली गोविन्दगढ़ पहुंची। वहां पर स्थानीय कार्यकर्ताओं के द्वारा आकर्षक तोरणद्वार बनाया गया था तथा सड़क के दोनों ओर पंक्तिबद्ध पुरुष, महिलाएं एवं बच्चे करतल ध्वनि करते हुए जयघोष कर रहे थे। महिलाएं सिर पर कलश रखे हुए हाथों में आरती का थाल लिए खड़ी थीं। बैण्ड बाजे के साथ लोगों ने रैली का भव्य स्वागत किया। यहां से अनेकों अन्य वाहन भी रैली में सम्मिलित हुए।
इससे आगे टिकर, बेला और रामपुर आदि स्थानों पर तोरणद्वार बनाकर और बैण्ड बाजे के साथ रैली का स्वागत किया गया। दोपहर एक बजे के लगभग रैली सतना पहुंची, जहां पर सैकड़ों की संख्या में भक्तों ने तोरणद्वार बनाकर भव्य स्वागत किया।
चित्रकूट से चार-पांच किमी पहले एक भव्य तोरणद्वार बना था। वहां पर उत्तर प्रदेश के सैकड़ों मोटरसाईकिल सवार कार्यकर्ता अगवानी के लिए खड़े थे। जयकारों के बीच ठीक 04ः00 बजे रैली चित्रकूट पहुंची, जहां पर श्री श्रीधर धाम के मुख्य द्वार पर ढोल-ताशे बजाकर स्वागत किया गया। परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् ने यहीं पर रात्रिविश्राम किया। आधे से अधिक शिष्यगण भी यहीं पर रुके। शेष के विश्राम की व्यवस्था आरोग्य धाम तथा अखण्ड परम धाम में की गई थी। रात्रि भोजन में पूड़ी-सब्ज़ी के पैकेट्स वितरित किये गये। कुल मिलाकर यहां की व्यवस्था आनन्ददायक थी।
अगले दिन प्रातः सात बजे गुरुवरश्री ने कामतागिरि मन्दिर में पूजा-आराधना की। तत्पश्चात्, मन्दाकिनी नदी में नौकाविहार करते हुए आपश्री ने शिष्यों को आशीर्वाद प्रदान किया। नौकाविहार के अद्भुत क्षण थे, जब गुरुवरश्री के साथ दर्जनों नौकाओं में शिष्य नौकाविहार का आनन्द ले रहे थे। जयकारों की गूंज के मध्य गुरुवरश्री सभी शिष्यों और वहाँ घाट पर उपस्थित हज़ारों भक्तों को अपनी मृदुल मुस्कान के साथ आशीर्वाद प्रदान करते जा रहे थे। वहां से लौटकर सभी ने लंच पैकट्स प्राप्त किये और तृप्तिपूर्ण भोजन किया। तदुपरान्त, ठीक 10ः00 बजे सद्भावना रैली ने बांदा के लिए पुनः प्रस्थान किया। रास्तेभर भरतकूप, बदौसा, अतर्रा तथा ग्राम महुआ आदि अनेकों स्थानों पर गुरुवरश्री के शिष्यों, श्रद्धालुओं और ‘माँ’ के भक्तों ने तोरणद्वार बनाकर बैण्ड बाजे एवं पुष्प समर्पण के साथ रैली का स्वागत किया।
अन्त में, सायं ठीक 04ः00 बजे सद्भावना रैली ने बांदा नगर में प्रवेश किया। यहां पर बड़ी धूमधाम से स्वागत हुआ। अब रैली का नगर भ्रमण प्रारम्भ हुआ। जगह-जगह पर मार्ग के दोनों ओर गुरुभाई-बहनें पंक्तिबद्ध खड़े थे। महिलाएं सिर पर कलश रखे और आरती के थाल लिए खड़ी थीं। कहीं-कहीं पर बैण्ड तथा ढोल-ताशे बज रहे थे। सभी लोग महाराजश्री की एक झलक पाने के लिए उत्सुक थे। जनसामान्य में यह कौतूहल था कि यह हर्षोल्लास का वातावरण क्यों निर्मित हो रहा है? और गुरुवरश्री के दर्शन होने पर भक्तिभाव से उनके सिर गुरुवरजी को नमन कर रहे थे।
इस सद्भावना रैली का समापन गुरुदेव पैलेस पर जाकर हुआ, जहाँ पर परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के प्रवास की व्यवस्था की गई थी। शेष सभी लोग अपने-अपने ठहरने के स्थान पर जाकर व्यवस्थित हुए तथा खिचड़ी प्रसाद ग्रहण करके रात्रि विश्राम किया।
इससे पूर्व संगठन के सैकड़ों कार्यकर्ता हफ्तों पहले से बांदा पहुंच गए थे। वहां पर उन्होंने बांदा शाखा के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर शिविरस्थल की सफाई कराई तथा चिन्तन पण्डाल एवं मंच निर्माण का कार्य कराया। देशभर से लाखों शिष्य एवं श्रद्धालु सीधे बांदा पहुंचे।
अनीति-अन्याय-अधर्म के नाश और सत्यधर्म की स्थापना के उद्देश्य से जनसामान्य में शक्ति चेतना जाग्रत् करने हेतु होने वाले इस शिविर के लिए भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में पैम्फ्लैट्स वितरित करके महीनों पहले से खूब प्रचार किया था। देश-विदेश स्तर पर आरतियों, महाआरतियों एवं अखण्ड श्री दुर्गाचालीसा पाठ के आयोजन के माध्यम से भी प्रचार हुआ था। इसके अतिरिक्त, बांदा की ओर आने वाले मुख्य मार्गों पर बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाए गए थे। इस प्रकार, इस शिविर का व्यापक प्रचार हुआ था।
इसके फलस्वरूप, जनसैलाब इतना उमड़ा कि विशाल शिविर पण्डाल उसको समायोजित नहीं कर सका। पण्डाल में जितने लोग बैठे थे, उससे लगभग पांच गुना लोग बाहर बैठे थे। एक अनुमान के अनुसार एक लाख से अधिक भक्तों की उपस्थिति रही, जिनमें से लगभग पन्द्रह हज़ार लोगों ने गुरुदीक्षा प्राप्त की। भोजन व्यवस्था बड़े ही सुचारू रूप से चली और शान्ति-सुरक्षा व्यवस्था चाकचौबन्द रही। कहीं पर भी कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। पांच हजार से भी अधिक सक्रिय कार्यकर्ताओं ने सभी व्यवस्थाएं पूर्ण कीं।
शिविर पण्डाल में प्रतिदिन प्रातः 07:00 से 09:00 बजे तक मंत्रजाप एवं ध्यान-साधना का क्रम चलता रहा। अपराह्न 02:00 से 03:00 बजे तक भावगीतों का कार्यक्रम होता था। तदुपरान्त, माँ-गुरुवर के जयकारे लगाए जाते थे। इसी बीच परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का शुभागमन होता था तथा त्रिशक्तिस्वरूपा तीनों बहनों पूजा, संध्या एवं ज्योति योगभारती जी के द्वारा उनके पदप्रक्षालन एवं वन्दन के उपरान्त आपश्री की अमृतवाणी सुनने को मिलती थी। तदुपरान्त, दिव्य आरती होती थी, जिसका नेतृत्व त्रिशक्तिस्वरूपा तीनों बहनों के द्वारा किया जाता था। अन्त में, महाराजश्री की चरणपादुकाओं का स्पर्श करके सभी शिविरार्थी प्रसाद प्राप्त करते थे। गुरुवरश्री मंच पर तब तक विराजमान रहते थे, जब तक सभी उपस्थित जन प्रणाम नहीं कर लेते थे।
इस शिविर का मूल लक्ष्य आप लोगों को धर्मवान्, कर्मवान् एवं चरित्रवान् बनाना है। आपके अन्दर ममता, दया एवं करुणा आ सके तथा पूर्ण नशा-मांसाहारमुक्त होने की अभिलाषा जाग सके, यह शिविर तभी सार्थक होगा।
इस कलिकाल में लोग धर्मपथ से भटक गए हैं। वे भूल गए हैं कि धर्म वास्तव में है क्या? हर वह कर्म धर्म है, जिसके करने से परमसत्ता और हमारे बीच की दूरियां कम होती हैं। इसके विपरीत, हर वह कार्य अधर्म है, जिसके करने से परमसत्ता और हमारे बीच की दूरियां बढ़ती हैं। अतः हमें हर कीमत पर सदैव सत्कर्म करने होंगे।
प्रायः हम यह नहीं समझ पाते कि हमारा इष्ट कौन है? हम किसकी आराधना करें? हमारा पूरा जीवन इसी झंझावात में बीत जाता है। हम इसी बात में उलझे रहते हैं कि हम राम की आराधना करें या कृष्ण की? गणेश की आराधना करें या हनुमान की? वास्तव में सभी देवी-देवता हमारे पूज्य हैं, किन्तु माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा हमारी मूल इष्ट हैं। वही सबकी जननी हैं। वही अजन्मा-अविनाशी पूर्ण सत्ता हें। अनन्त लोक हैं, अनेक सौरमण्डल हैं तथा ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी अनेक हैं। उन सबकी जननी वही आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा हैं। इष्टों की खोज में आप इधर-उधर दौड़ते रहें, यह सबसे बड़ी अज्ञानता है।
हमारे सहायक-सम्बन्धी अनेक हो सकते हैं, ताऊ-चाचा, भाई-मामा आदि। किन्तु, वे हमारे माता-पिता के समान नहीं हो सकते। इसी प्रकार, देवी-देवता अनेक हैं, पर वे आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा के समान नहीं हो सकते। इसलिए उस जननी को अपना इष्ट स्वीकार करें। उनकी ही आराधना करें। इसके लिए ज़रूरी है पूर्ण समर्पण। अपने आपको पूरी तरह से माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा के चरणों में समर्पित कर दें।
भोजन, जल और वायु के बिना जीवन नहीं चल सकता। यदि भोजन छोड़ दिया जाय, तो जल पर कुछ दिन जी सकते हैं, किन्तु शरीर दुर्बल हो जाएगा। वायु के बिना तो जीवन सम्भव ही नहीं है। इसी प्रकार मानवता के लिए कर्म, धैर्य और धर्म अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। कर्म छोड़कर धैर्य के सहारे कुछ दिन मानवता कायम रह सकती है। किन्तु, यदि धर्म छूट गया, तो जीवन पशु के समान हो जाता है। इसलिए मानवता की रक्षा के लिए कर्मवान्, धैर्यवान् एवं धर्मवान् होना अनिवार्य है।
कर्मवान्, धैर्यवान् एवं धर्मवान् बनने के लिए सच्चा भक्त होना ज़रूरी है। जब तक भक्त नहीं बनेंगे, यह सम्भव नहीं होगा। एक बार सच्चे भक्त बनकर देखो। आपके भीतर वह ऊर्जा प्रवाहित होगी कि आपकी सारी समस्याएं दूर होती चली जाएंगी। कथा-वार्ताएं सुनने-सुनाने से समस्याएं दूर नहीं होंगी। इससे हमेशा रट्टू तोता बने रहोगे। कथानकों में सुनी गई बातों को जीवन में उतारो।
आपका गुरु उसी पथ पर चलता है। मैं भी आपके ही समान जीवन जीता हूँ, किन्तु मैंने कभी भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा है। मैंने साधक का जीवन जिया है और उसी पथ पर आपको भी बढ़ा रहा हूँ। कर्मयोगी और परोपकारी बनो। दूसरों को नशे-मांस से दूर करो। अभावग्रस्त लोगों के घर जाकर उनकी समस्याएं सुनो और उन्हें दूर करो। देखो आपको कितना आनन्द और तृप्ति मिलती है।
हमारे भीतर पूर्ण प्रकृति और ब्रह्माण्ड समाहित है। हमें इस पूर्णत्व का विकास करना होगा। तमोगुण और रजोगुण को समूल नष्ट नहीं किया जा सकता, किन्तु इतनी साधना करो कि ये हमारे सतोगुण के अधीन हो जायं। मैं स्वयं मात्र ढाई-तीन घण्टे विश्राम करता हूँ और प्रकृति की उस सामर्थ्य को प्राप्त करने के लिए साधनात्मक जीवन जीता हूँ।
समाधि जीवन की पूर्णता नहीं, शून्यता है। यह हमारा लक्ष्य नहीं है। साधनापथ पर चलते हुए काम-क्रोधादि अपनी ओर खींचते हैं, किन्तु उनसे विचलित न होकर हमें निरन्तर आगे बढ़ते जाना है। मैंने इन पर विजय प्राप्त की है। मेरी पत्नी है और तीन बच्चियां हैं, जो आपके बीच बैठी हैं। सन्तानोत्पत्ति के उपरान्त, मैं सपत्नीक पूर्ण ब्रह्मचर्य का जीवन जीता हूँ, ताकि समाज का कल्याण कर सकूँ। विज्ञान यदि चाहे, तो मेरा परीक्षण कर सकता है। उसके पास ऐसे यंत्र मौजूद हैं।
केवल हमारे देश में ही हज़ारों सन्त हैं। वे सभी गलत नहंी हैं, किन्तु मेरा मानना है कि उनमें से नौ सौ निन्यानवे गलत हैं। साधना को भूलकर वे विलासिता का जीवन जी रहे हैं तथा अपने साथ-साथ समाज को भी पतन के मार्ग पर ले जा रहे हैं। उनकी कुण्डलिनी जाग्रत् नहीं है। बड़े-बड़े धर्माचार्यों और मठाधीशों की कुण्डलिनी मात्र वैभव है। और, वे कहते हैं कि शून्य से शिखर पर आए हैं, जब कि मैं आप लोगों को अपने कन्धों पर उठाकर शिखर पर लेजाने के लिए शिखर से शून्य पर आया हूँ। आपको ‘माँ’ का भक्त बनाने आया हूँ।
कहीं न कहीं समाज की ओर से आवाज़ उठनी चाहिए कि विश्वभर के धर्मगुरुओं का सत्यपरीक्षण हो, जिससे यह पता लगाया जा सके कि किसकी कुण्डलिनी पूर्ण जाग्रत् है? वही समाज का आध्यात्मिक मार्गदर्शन करने का अधिकारी होगा। यह समाज का शोषण रोकने तथा सत्यधर्म की पुनर्स्थापना के लिए नितान्त आवश्यक है।
‘माँ’ की आराधना से बढ़कर और कोई साधना नहीं है। इसमें अज्ञानता से यदि कोई न्यूनता हो जाय, तो ममतामयी ‘माँ’ क्षमा कर देती हैं। यदि कभी ऐसा हो जाता है, तो उसके लिए ‘माँ’ से प्रार्थना करो। किन्तु ‘माँ’ की आराधना केवल एक पक्ष है। दूसरा पक्ष है अपनी सामर्थ्य का परोपकार में उपयोग करना। इसके लिए अभावग्रस्त लोगों की सहायता करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दो। अपनी गृहस्थी की ज़िम्मेदारियां पूरी करने के बाद, सारा समय परोपकार में लगाओ। आपसे नीचे बहुत लोग हैं। आपके पास कपड़े हैं, वे अधनंगे हैं। आपके पास दो वक्त़ का भोजन करने की सामर्थ्य है, वे सूखी रोटी भी मुश्किल से जुटा पाते हैं। वे तुम्हारी ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं।
धर्मग्रन्थों को प्रणाम करके अब एक ओर रख दो और कहो कि अब तक जो पढ़ा है, उसे कर्म में बदलना है। अनेक लोग धर्मग्रन्थों को रटते हैं, दूसरों को सुनाते हैं, किन्तु यदि उसे जीवन में नहीं ढाला, तो सब व्यर्थ है। भगवान् कृष्ण ने भी अर्जुन को गीता का उपदेश दिया, जिसने उस पर अमल करके विजय प्राप्त की।

आशीर्वाद प्रदान करते हुए सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज

अनेक साधु-सन्त आज कथा सुनाकर स्वयं नृत्य करते और दूसरों से कराते हैं। इसीलिए किसी ने भी एक अर्जुन तैयार नहीं किया। वास्तव में, सत्यपथ पर कोई नहीं चलता। कर्म सर्वोपरि है। अगर धर्मगुरु भी गलत कार्य करते हैं, तो उनके खिलाफ आवाज़ उठाओ। धर्मभीरू नहीं, धर्मवान् बनो।
गुरु के चरणों के नख पर तीर्थों का वास होता है, किन्तु आज पचास प्रतिशत गुरु दिन में राम-राम और रात में पौवा चढ़ाते हैं। कुम्भ के अवसर पर शाही सवारी जब निकलती है, तो शासन-प्रशासन उनकी अगवानी करता है। वे लोग गांजा चिलम चढ़ाते हैं तथा नशे के कारण उनकी आंखें लाल रहती हैं। एक लंगोटी बांधने से उनका धर्म बाधित होता है, जब कि नज़र कमज़ोर होती है, तो चश्मा लगा लेते हैं। तब लंगोटी लगाने में क्या दिक्क़त है?
प्राचीनकाल में नागा लोग जंगलों में रहते थे और साधना में इतना लीन रहते थे कि उन्हें अपने वस्त्रों का भी ध्यान नहीं रहता था। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए वे रात के अंधेरे में ही चलते थे, ताकि समाज उन्हें देख न पाए। किन्तु, आज ये लोग अपनी नग्नता का प्रदर्शन करते हैं।
धर्मरक्षा के लिए ही मैंने विश्व आध्यात्म जगत् को चुनौती दी है। धर्मगुरुओं का एक विश्वस्तरीय सम्मेलन होना चाहिए, जहां पर राजनेता और मीडिया के लोग भी उपस्थित हों। इनकी उपस्थिति में सबका ब्रेनमैपिंग होना चाहिए। इसके लिए मैं सबसे पहले स्वयं को प्रस्तुत करूंगा। बांदा ज़िले के जमालपुर गांव में मेरा ननिहाल है। फतेहपुर ज़िले का भदवा गांव मेरा जन्मस्थान है। मेरा जन्म एक ब्राह्मण किसान परिवार में हुआ है। प्रारम्भ से ही मैं अपने पिता जी के साथ श्रम करता था और विश्राम बहुत कम करता था। आज भी चौबीस घण्टे में ढाई-तीन घण्टे से अधिक विश्राम नहीं करता।
अंधियारी वन में मुझे आश्रम निर्माण का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। किसी भी राजनेता या उद्योगपति का सहयोग मुझे प्राप्त नहीं था। किन्तु, जिसके पास आत्मबल होता है, वह एक जंगल को भी इन्द्रप्रस्थ में बदल सकता है। यद्यपि शिष्यों ने मुझे शहर में रहकर आश्रम निर्माण का सुझाव दिया था, फिर भी मैंने वहीं पर सपरिवार एक झोपड़ी में रहना प्रारम्भ कर दिया था। आज यहां पर अनन्तकाल तक के लिए अखण्ड श्री दुर्गाचालीसा पाठ चल रहा है, जब कि मैंने इसके लिए किसी भवन के बारे में सोचा भी नहीं था।
परोपकार जैसा आनन्द किसी भी चीज़ में नहीं है। भूल जाओ कि हम हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख या ईसाई हैं। हम सभी मानव हैं। देशभर में दस लाख से भी अधिक मेरे शिष्य सेवाकार्य में रत हैं। उन्होंने आज तक कहीं पर भी उद्दण्डता नहीं की, कहीं दंगे नहीं किये और न ही कहीं पर हड़ताल या तोड़फोड़ की। निन्यानवे प्रतिशत मेरे शिष्य पूर्ण अनुशासित एवं मर्यादित हैं। इसकी मैं गारण्टी लेता हूँ।
हर धर्म हमें सत्यपथ और सेवापथ पर चलना सिखाता है। हर आदमी किसी न किसी धर्मगुरु से जुड़ा है। लोग कथा-वार्ताएं सुनेंगे, किन्तु बेईमानी करना नहीं छोड़ेंगे। तब ऐसी कथाएं सुनने से क्या फायदा? आप किसी भी धर्मगुरु से जुड़े हों, उनकी बातों पर अमल करना शुरू कर दो। आपका कल्याण हो जाएगा। मैं जगह-जगह मन्दिर निर्माण करने की बजाय, हर दिल में मन्दिर का निर्माण कर रहा हूँ।
जिस वर्ग को समाज हेय दृष्टि से देखता रहा है, मैंने उन्हीं लोगों को अपने साथ जोड़ा है। उन्हें नशे-मांसाहार से मुक्त कराया है और आज वे ही समाज में परिवर्तन डाल रहे हैं। कर्ता-कर्म-क्रिया एक होंगे, तो सब कुछ किया जा सकता है।
सदैव सत्यपथ पर चलो। बेईमानी और पाप से कमाया हुआ धन कभी भी फलीभूत नहीं होता। जिन राजा-महाराजाओं ने गरीबों को लूटकर और उनका शोषण करके महलों में ऐश-ओ-आराम की ज़िन्दगी बिताई है, आज उन्हीं के महलों में फौजियों के बूटों की चाप सुनाई देती है। पाप के धन से माल-पुआ खाने की अपेक्षा ईमानदारी की कमाई से नमक-रोटी खाने में कहीं अधिक तृप्ति मिलती है।
आरामतलबी का जीवन जीते हुए आज लोगों की कार्यक्षमता घटती जा रही है। उनकी कोशिकाएं संकुचित हो रही हैं। पहले लोग सौ किलो की बोरी बड़े आराम से उठा लेते थे। अब पचास किलो की बोरी उठाने में दम फूलता है। मैं सात-सात, आठ-आठ घण्टे मज़दूरों के साथ खड़े होकर काम कराता हूँ और कभी भी थकान नहीं होती। हर मौसम में ये ही दो वस्त्र पहनता हूँ। शॉल ओढ़ने की मुझे कभी भी ज़रूरत नहीं पड़ी। आप लोग इनर पहन लोगे, कपड़ों पर कपड़े लाद लोगे। फिर भी कांपते रहते हो। आपने अपने शरीर को विकसित नहीं किया है। प्रकृति ने शरीर में सब कुछ दे रखा है। शरीर को इनर्जी मिलनी चाहिए।
यदि तुम विषय-विकार का जीवन जिओगे, तो तुम्हारे बच्चे अय्याश बनेंगे ही। दिल्ली में एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ, जिसके फलस्वरूप लोग सड़क पर उतरे और आन्दोलन हुआ। बड़ी अच्छी बात है कि लोगों ने अपने गुस्से का इज़हार किया, किन्तु आन्दोलन से बलात्कार रुकने वाला नहीं है। मेरा मानना है कि जो आन्दोलन हुआ, उसमें पचहत्तर प्रतिशत लोग दुष्चरित्र एवं नशेड़ी रहे होंगे। वास्तव में, समाज को जगाने की ज़रूरत है।
आप लोग अपने बच्चों को अपने जैसा ही आलसी बना रहे हैं। उन्हें सुबह-सवेरे उठाने की बजाय कहोगे, ‘सोते रहो, बेटा, गधों की तरह!’ अरे, ब्राह्ममुहूर्त में स्वयं जगो और बच्चों को भी जगाओ। आजकल बाज़ार ग्यारह बजे से पहले नहीं खुलते। जब देर रात तक जागते रहोगे और रासरंग करोगे, तब नौ बजे तक पड़कर सोओगे ही। इससे बच्चों के विचार अपने आप बदलते चले जाते हैं। यह सब कुछ राक्षसी हो रहा है।
आदिशंकराचार्य ने अकेले चार पीठों की स्थापना कर दी थी, जब कि उस समय परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं थी। आज समाज में पैंसठ शंकराचार्य मौजूद हैं। वे सब क्या कर रहे हैं? आश्रमों का हाल यह है कि जो चाहे खाओ और जो चाहो पिओ। वहां पर विदेशियों के लिए बीयर परोसी जाती है और वे अय्याशी के अड्डे बनकर रह गए हैं। धर्मगुरु कहते हैं- ‘बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो।’ इसका मतलब यह हुआ कि यदि किसी माँ-बहन की इज़्ज़त लुट रही हो, तो लुटने दो, उसे मत देखो। शराबी को शराबी मत कहो। सच्चा साधक सदैव बुरे को बुरा कहता है। दुनियाभर के अधर्मी-अन्यायी मुझसे टकराकर देखें। वास्तव में, वे सब डरते हैं कि किसी के साथ टकरा न जायं।
दरअसल, गांधी जी के तीन बन्दरों से लोगों ने गलत सन्देश लिया है। यदि यह सन्देश दिया जाता, तो बन्दरों की जगह गांधी जी को तीन मनुष्य खड़े करने चाहिएं थे। वह सन्देश बन्दरों के लिए था। मनुष्य के लिए ज़रूरी है कि कान खोलकर बुराई को सुनो, आंख खोलकर बुराई को देखो और मुंह खोलकर अपनी पूरी सामर्थ्य के साथ उसके विरुद्ध आवाज़ बुलन्द करो। मेरे द्वारा भगवती मानव कल्याण संगठन का गठन इसी के लिए किया गया है।
हमें किसी के विरुद्ध अस्त्र-शस्त्र नहीं उठाना है। हमारे शस्त्र हैं शक्तिदण्डध्वज, कुंकुम तिलक और शक्तिजल। ‘माँ’ की भक्ति और संगठन की शक्ति पर विश्वास रखो। हम अपने आपको बदल देंगे, तो समाज स्वयं बदलता चला जाएगा। आडम्बरों से हमेशा दूर रहो। आर्टिफीश्यिल फूल मत बनो। ऐसा नहीं कि नवरात्र में हम अण्डा नहीं खाएंगे, भले ही उससे पहले और बाद में खाते रहें। नवरात्र तभी फलीभूत होंगे, जब सदा-सदा के लिए नशे-मांस से मुक्त होने का संकल्प ले लोगे। तुम सब कुछ कर सकते हो।
आपकी बेटी के साथ कुछ गलत हो जाय, तो उसे हेय दृष्टि से देखोगे, गालियां दोगे और एक कोठरी में बन्द कर दोगे। वहीं आपका बेटा कुछ गलत करके आए और थाने में उसके विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज होजाय, तो उसे कोई भी बुरा-भला नहीं कहेगा, न उसे कोठरी में बन्द करके रखा जाएगा। बल्कि, उसे कानून की गिरफ़्त से बचाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाया जाएगा। ऐसा क्यों? क्या इसलिए कि मरने के बाद क्रियाकर्म करके वह मुक्ति दिलाएगा? इस भ्रम को दूर करो। इससे आपको कभी मुक्ति नहीं मिलेगी।
बेटे-बेटी में भेद करना बन्द करो। मैंने ‘माँ’ के चरणों मे प्रार्थना की थी कि मेरे यहां जब भी सन्तान का योग हो, तो सिर्फ बेटियां ही हों। मैं स्वयं को गर्वान्वित महसूस करता हूँ कि मैं तीन पुत्रियों का पिता हूँ। मेरा पूरा परिवार सत्कर्म में लगा है और मेरा मानना है कि मेरी गृहस्थी सबसे उत्तम गृहस्थी है।

मन्दाकिनी नौकाविहार

धन-दौलत का कितना ही अम्बार लगा हो, फिर भी माँ-बाप पाप की कमाई करते नहीं अघाते। ऐसी दौलत पर उनके बच्चे अय्याशी करते हैं।
आज देश में इतने सारे धर्मगुरु हैं, किन्तु अफसोस कि अभी तक किसी ने भी एक सच्चरित्र सांसद तैयार नहीं किया। सबके सब अधर्मी-अन्यायियों को अपने मंच पर बैठाकर माल्यार्पण करते हैं। वह बात है कि हम भी चोर, तुम भी चोर। चोर-चोर मौसेरे भाई!
आपके बीच मैं आपके हित के लिए आता हूँ, ताकि आप भी सच्चे साधक बनें और पूर्णतया नशा-मांसाहार से मुक्त हों। समाज के बीच में जितने साधनात्मक आयोजन मेरे शिष्यों के द्वारा कराए जाते हैं, उतने कोई भी आश्रम नहीं कराता। यह कलिकाल कब आया, पता ही नहीं चला। इसी प्रकार इसका धरातल कब खिसक जाएगा, पता नहीं चलेगा।
साधना सिद्ध होगी, या यह शरीर नष्ट होगा- मैं ऐसा जीवन जीता हूँ। इसी प्रकार मैंने युग परिवर्तन का संकल्प ठाना है- युग परिवर्तन होगा, या यह शरीर नष्ट होगा। और, निश्चय ही मेरा यह संकल्प पूर्ण होकर रहेगा।
योगगुरु रामदेव आन्दोलन कर रहे थे। वह पुलिस को आते देखकर महिलाओं के कपड़े पहनकर भागे। यह कायरता का जीवन है। आसाराम बापू और उसका बेटा अय्याशी करते रहे। अब जेल में पड़े हैं। ऐसे लोगों के कारण समाज में धर्म-अध्यात्म के प्रति अनास्था पैदा होती है। निर्मल दरबार लगाकर टोटके बताने वाले और बीजमंत्र बेचने वाले ब्रह्मर्षि के बारे में मैंने अब से सत्रह वर्ष पहले बता दिया था। चमत्कार और जादूगरी दिखाना बड़ा आसान है। धर्मगुरुओं और सन्तों के जीवन में निर्मलता एवं पवित्रता होनी चाहिए।
आज हज़ार-हज़ार कुण्डी यज्ञ होते हैं। इनमें किराए के पण्डित बुलाए जाते हैं, जिनका ध्यान केवल दक्षिणा पर रहता है। यही कारण है कि ये यज्ञ फलीभूत नहीं होते। किसी समय ऋषियों में सामर्थ्य हुआ करती थी। यज्ञों के माध्यम से वे निःसन्तानों को सन्तान देने की क्षमता रखते थे। मेरे द्वारा किये गए यज्ञ साधनात्मक होते हैं। एक यज्ञ में ग्यारह दिनों का समय लगता है। एकासन पर बैठकर 32 किलो सामग्री की आहुति दी जाती है। इस बीच एक बूंद जल तक ग्रहण नहीं किया जाता। इनका प्रभाव यह हुआ कि हर यज्ञ में वर्षा हुई, जब कि वे विभिन्न मौसमों में विभिन्न स्थानों पर किये गए थे। इन यज्ञों के माध्यम से लोगों को असाध्य रोगों से मुक्त किया गया तथा मरणासन्न लोगों को जीवनदान दिया गया।
सत्यधर्म आज भी जीवित है। मैं आपके जीवन में परिवर्तन डालने आया हूँ। किसी पण्डित को दक्षिणा देकर एक हज़ार पाठ कराने की अपेक्षा स्वयं एक मंत्र का जाप करना कहीं अधिक श्रेष्ठ है।
किसी पर्व पर यदि कोई परिजन खत्म होजाय, तो लोग कहते हैं कि पर्व अशुभ हो गया। धिक्कार है ऐसी अज्ञानता को। अरे, उस त्यौहार को सौभाग्यशाली मानो।
मेरे पिता जी एक दण्डी संन्यासी थे। ऐसे लोग एक बार गृह त्याग करने के बाद पुनः लौटकर घर नहीं आते। मैंने अपने भाइयों से कह रखा था कि समय आने पर मैं उन्हें अपनी साधनात्मक क्षमता से अपनी ओर खींच लूंगा और अपने पुत्र होने का कर्तव्य पूर्ण करूंगा। और, ऐसा ही हुआ। वह आश्रम में आकर मेरे पास रहे। उनका कहना था कि देश के कोने-कोने में घूमकर उन्हें वह शान्ति नहीं मिली, जो यहां पर आकर मिली। मैंने उन्हें कई शक्ति चेतना जनजागरण शिविरों का लाभ दिया। ब्राह्ममुहूर्त में ध्यान में जाकर उन्होंने अपने शरीर का त्याग किया। ऐसा सौभाग्य आपको भी मिल सकता है। सत्कर्म करो और लाभ-हानि-जीवन-मरण से ऊपर उठकर जीवन जिओ।
आपको सरल से सरल साधन दिया गया है। ‘माँ’-ऊँ का क्रमिक उच्चारण करो। इससे शरीर का मन्थन होगा और शान्ति मिलेगी तथा मन एकाग्र होगा। इसे हिन्दू-मुस्लिम कोई भी कर सकता है। इससे बीमारियां दूर होंगी, मन पवित्र होगा तथा आलस्य एवं जड़ता दूर होंगे। देवस्थानों पर जाने से मैं मना नहीं करता, किन्तु तंत्र-मंत्र के चक्कर में मत पड़ो। सच्चे मन से ‘माँ’ की भक्ति करके देखो। किन्तु, आपका जीवन नशे-मांस से मुक्त होना चाहिए।
मैं अपने ननिहाल के इस क्षेत्र के लोगों से भी अपेक्षा करता हूँ कि वे भी ‘माँ’ की भक्ति में डूबकर अपने जीवन को सार्थक करें। मैं इसी कर्तव्य को पूरा करने आया हूँ। पिछले चालीस सालों से मैं यहां पर नहीं आ पाया हूँ। जिन लोगों ने मुझे कहीं पर भी सहारा दिया है, उनके लिए मैं अपने आपको लुटाने आया हूँ।
अपने जीते जी ऐसा पूजा-पाठ और कर्म कर लो कि आपका पुत्र मुखाग्नि दे या न दे, आप स्वतः मुक्त हो जाओगे। अपने पुत्र को भी धर्ममार्ग में बढ़ाओ। इससे वह भी मुक्त हो जाएगा। उम्र चाहे कम हो, चाहे ज्य़ादा, आज सबके मन में विषय-विकार भर गए हैं। जब अपनी माँ-बेटी के लिए आपके मन में कोई विकार नहीं आता, तब दूसरी महिलाओं के प्रति क्यों आता है?
कथित योगऋषि कहते हैं कि वह एकान्त में अपनी माँ के पास भी नहीं बैठते। तब कैसे योगी? अरे, इसे तो अपना सौभाग्य मानो कि तुम्हें माँ का सान्निध्य मिला है। वह आंचल मिला है, जहां बचपन में लेटते थे। दूसरी सुन्दर स्त्रियों को देखकर मन में विकार आने से पहले सोचो कि क्या ही अच्छा होता यह मेरी माँ, बहन या बेटी होती!
ऋषित्व मार्ग से बढ़कर कोई मार्ग नहीं है। यदि महिलाएं इसे पकड़ लें, तो ब्रह्मा-विष्णु-महेश को भी पालने में झूलने के लिए मजबूर कर देंगी।
बेटी तो बेटी होती है, बहू को भी बहू का दर्जा तो दो। हर घर में बेटी को शिक्षा दी जाती है कि जितना जल्दी हो सके, सास-ससुर को छोड़कर अलग घर बसा लेना। तब यदि तुम्हारी बहू ऐसा करती है, तो क्यों बुरा लगता है? जब तक साधनापथ पर नहीं बढ़ोगे, तब तक ‘माँ’ के भक्त नहीं बन सकोगे और परिवर्तन नहीं आएगा।
आजकल अतिथियों का स्वागत पान-तम्बाकू के बिना नहीं होता। इस परम्परा को छोड़ो। इसके स्थान पर लौंग-इलायची-सौंफ आदि पेश करो, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है। ब्याह-शादियों में भी पान-तम्बाकू पेश करना बन्द करो। प्रारम्भ में ही यदि दामाद को नशे की चीजें दोगे, तो बाद में यदि वह शराब पीकर आता है, तो क्या बुरा करता है? मेरे आश्रम में कई बार सौ-सौ लोग एक साथ आते हैं और कहते हैं कि नशा छोड़ने आए हैं। आप लोग इस पण्डाल में बैठकर संकल्प ले लो कि आगे से कोई नशा नहीं करेंगे।
मैं किसी स्थान पर बैठकर कुछ बोलूं या न बोलूं, इस भूखण्ड पर ही नहीं, पूरे ब्रह्माण्ड में अपनी चेतना तरंगें भेजता हूँ। दिव्य आरती का अपना महत्त्व होता है, जहाँ पर मेरी साकार उपस्थिति होती है। मैं ‘माँ’ का आह्वान करके बैठता हूँ। मैं आपसे भूतल का सबसे पवित्र और सशक्त रिश्ता जोड़ता हूँ। मैं किसी देवी-देवता का अवतार नहीं हूँ। मैं ब्रह्मर्षि स्वामी सच्चिदानन्द का अवतार हूँ। जिस समय समाज सोता है, तब मैं जागकर आपके कल्याण के लिए साधना करता हूँ। मेरा रोम-रोम चीख-चीखकर कहता है, मैं रोता हूँ और बिलखता हूँ कि समाज के दुःख-दर्द को पी जाऊं।
मैंने समाज को धर्मरक्षा के लिए पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम, मानवता की रक्षा के लिए भगवती मानव कल्याण संगठन तथा राष्ट्ररक्षा के लिए भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की तीन धाराएं प्रदान की हैं। इनमें मानव जीवन की पूर्णता समाहित है। वक्त़ कितना भी लग जाय, किन्तु मैं परिवर्तन डालकर ही जाऊंगा। एक दिन वह अवश्य आएगा, जब लालकिले पर कोई शक्ति साधक या साधिका तिरंगा फहराएगी।
देश के सांसदों का वेतन बढ़ता चला जाता है। कर्मचारियों के बारे में भी कोई सोचता है? राजनेता चारा खा गए, सीमेण्ट और कोयला खा गए, यहां तक कि ताबूत भी खा गए! अंग्रेज़ों ने हमें इतना नहीं लूटा, जितना हमारे कर्णधारों ने लूटा है। वे सुनामी लहरों से भी ज्य़ादा खतरनाक हैं। यदि राजनेताओं ने ईमानदारी से कार्य किया होता, तो आज हर गांव में स्कूल, कॉलेज और अस्पताल होते। इन बेईमानों ने हमारे देश को कंगाल करके रख दिया है। इन बेईमानों के सामने सिर मत झुकाओ।
छुआछूत से ऊपर उठो। हम सब एक माँ की सन्तान हैं। अछूत समझे जाने वाले लोग कुंआ खोदते हैं। तब पहला जल उनके चरणों को छूता है। बाद में उसे ही तुम पीते हो। फिर वे अछूत कैसे हुए?
मैं आपसे धन-दौलत नहीं मांगता। बस, संकल्प ले लो कि आज से आगे पूर्ण नशा-मांसाहारमुक्त, चरित्रवान् जीवन जियेंगे।
नौ दिसम्बर मेरा जन्मदिन है। वह मैं अपने ननिहाल में ही मनाऊंगा। उस परिवार को भी मैं सत्यपथ पर बढ़ाना चाहता हूँ। परसों नौ बजे प्रातः मैं अपने ननिहाल जमालपुर गांव जाऊंगा। वहां पर बारह बजे तक रहूंगा। फिर नजदीक के ग्राम करहिया जाऊंगा और शाम को बांदा लौट आऊंगा।
यदि बांदा ज़िले में ‘माँ’मय वातावरण बनता है, तो अगले पांच वर्षों में मैं यहां पर एक और शक्ति चेतना जनजागरण शिविर प्रदान करूंगा।
23 जनवरी 2014 को आश्रम का स्थापना दिवस मनाया जाएगा। उस दिन दौड़ प्रतियोगिता होगी, योगभारती विवाहपद्धति से सामूहिक विवाह का कार्यक्रम होगा और रात्रि में भावगीतों का कार्यक्रम ‘सुर संध्या’ तथा कविसम्मेलन होगा। उसमें आप लोग सभी आमंत्रित हैं। अगला शक्ति चेतना जनजागरण शिविर भिलाई, जिला-दुर्ग (छ.ग.) में 15-16 फरवरी 2014 को होगा। दिनांक 13 फरवरी को रैली प्रातः आश्रम से प्रस्थान करेगी। रात्रिविश्राम अमरकण्टक में होगा। शिविर के समापन के उपरान्त 18 फरवरी को वापसी होगी।

परम पूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज के चिन्तन श्रवण करते हुए भक्तगण

द्वितीय दिवस: प्रथम सत्र- गुरुदीक्षा
अगले दिन प्रथम सत्र में प्रातः 08ः00 बजे से गुरुदीक्षा दी गई। पूरा पण्डाल 07ः30 बजे तक दीक्षार्थियों से खचाखच भर गया था। एक अनुमान के अनुसार, पन्द्रह हज़ार से अधिक लोगों ने गुरुदीक्षा प्राप्त की। ठीक 08ः00 बजे परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का शिविर पण्डाल में शुभागमन हुआ। तीन बार शंखनाद होने के बाद आपश्री ने दीक्षार्थियों को एक संक्षिप्त उद्बोधन दिया-
वे सौभाग्य के क्षण होते हैं, जब कोई व्यक्ति एक चेतनावान् गुरु से दीक्षा प्राप्त करता है। यह मनुष्य का वास्तविक जन्म होता है, क्योंकि यहीं से उसका जन्म सार्थक होता है। यहीं से वह मुक्ति के पथ पर, अच्छाई के पथ पर, भलाई और धर्म के पथ पर बढ़ता है।
मेरे द्वारा शक्तिपात किया जाता है तथा बीजमंत्रों का उच्चारण कराया जाता है। मेरे द्वारा दीक्षा पूर्ण निःशुल्क होती है। मेरी गुरुदक्षिणा आपके अवगुण होते हैं। यदि कुछ देना चाहते हो, तो अपने अवगुण मुझे समर्पित कर दो। अतः आज आप संकल्प लेंगे कि पूर्ण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् जीवन जियेंगे और एक पति/पत्नी व्रत का पालन करेंगे।
दीक्षा से पहले दूसरे गुरु अपनी पूजा और चरणवन्दन कराते हैं, जब कि इन क्षणों पर शिष्य पूज्य हो जाते हैं।
जाति-धर्म-सम्प्रदाय तथा ऊंच-नीच पर विचार न करके मैं सभी को समान भाव से स्वीकार करता हूँ। कल तक आप क्या थे, इस पर ध्यान नहीं दिया जाता।
गुरु-शिष्य का रिश्ता पूर्णत्व का होता है। ऐसा रिश्ता न कभी हुआ है और न कभी होगा। इसमें कोई आडम्बर या दिखावा नहीं रहता।
अपने घर पर आप लोग ‘माँ’ का मन्दिर बनाएं। यदि अलग कक्ष हो, तो अच्छा। अन्यथा किसी कमरे में गुरुवर-‘माँ’ की संयुक्त छवि स्थापित कर सकते हैं। कमरे में भी स्थान का अभाव हो, तो दीवार पर लगा सकते हैं।
गुरुवार का व्रत रखें। इसमें सभी व्रतों का समावेश होता है। इसके अतिरिक्त, हर महीने की कृष्णाष्टमी का व्रत भी रखें। किसी अपरिहार्य कारण से यदि यह छूट जाय, तो अगले दिन नवमी अथवा चतुर्दशी का व्रत कर सकते हैं। ये तीनों एक समान हैं। नित्य साधनाक्रम अत्यन्त सरल है। उसे प्रतिदिन दोनों समय पूर्ण करें।
मेरुदण्ड को सदैव सीधा करके बैठें। इससे बहुत लाभ होगा। हमारी चेतना तरंगें कार्य करती हैं। मन को एकाग्र रखें और सभी विचारों को त्याग दें। आज से आपको सत्यपथ पर चलने का सौभाग्य मिल रहा है और करोड़ों गुरुभाई-बहनों से जुड़ रहे हो। जब गुरु, मंत्रों को उच्चारित करता है, तो वे उत्कीलित हो जाते हैं।
(अब तीन-तीन बार ‘माँ’ और ॐ का उच्चारण कराने के बाद संकल्प कराया गया।)
यदि इस संकल्प को आप जीवन में ढालकर रखोगे, तो कभी भी मुझसे दूर नहीं रह सकोगे। सदैव मेरी कृपा मिलती रहेगी। मेरा पूरा जीवन आपके लिए ही है। अब एक बार पुनः ‘माँ’-ऊँ का उच्चारण कराने के उपरान्त, निम्नलिखित बीजमंत्रों का तीन-तीन बार उच्चारण कराया गयाः

  1. ॐ हं हनुमतये नमः- बजरंग वली की कृपा पाने के लिए,
  2. ॐ भ्रं भैरवाय नमः- भैरव जी की कृपा पाने के लिए,
  3. ॐ गं गणपतये नमः- गणेश जी की कृपा पाने के लिए,
  4. ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नमः- ‘माँ’ का चेतनामंत्र,
  5. ॐ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः- गुरुमंत्र।
    इनके उच्चारण में क्रम का कोई फर्क नहीं पड़ता। सूक्ष्म शक्तियों के मंत्रों में कोई भेद नहीं रहता। इस प्रकार के भ्रम को मिटाओ। गुरुमंत्र बाद में भी कर लेना चाहिए। ये मंत्र आपके लिए फलीभूत होंगे। प्रतिदिन दोनों समय आरती-वन्दन करें। यदि आपके घर का एक सदस्य भी कर लेता है, तो आपको करने की आवश्यकता नहीं है। यदि कर लें, तो अति उत्तम। शंखध्वनि प्रारम्भ और अन्त में भी करें।
    अगरबत्ती वातावरण को शुद्ध करने के लिए लगाई जाती है। छोटे कक्ष में एक या दो और बड़े कमरे में अधिक जला सकते हैं। ज्योति घी की या किसी खाद्य तेल की जला सकते हैं। अन्यथा, अगरबत्ती जलाकर आरती कर सकते हैं। यदि अगरबत्ती भी उपलब्ध न हो, तो मानसिक रूप से कर लें। यदि कोई समस्या हो, तो एक बार ‘माँ’ के चरणों में रख दें, बार-बार नहीं। सूक्ष्म शक्तियां आपकी समस्याओं को आपसे अधिक जानती हैं।
    अपने घर पर ‘माँ’ का ध्वज लगाकर रखें। इससे सारे वास्तुदोष समाप्त हो जाएंगे। अपने मस्तक पर कुंकुम तिलक सदैव लगाकर रखें। यदि कुंकुम से ऐलर्जी हो, तो चन्दन लगा सकते हैं। पुरुष रक्षाकवच और महिलाएं रक्षारूमाल धारण करें। इनमें मेरा आशीर्वाद रहता है। ये सात्त्विक तरंगों को आकर्षित एवं तामसिक तरंगों को विकर्षित करते हैं। भगवती मानव कल्याण संगठन की वेशभूषा धारण करें और सात्त्विक जीवन जियें। अपने ज़िले की महाआरतियों में सपरिवार सम्मिलित हों। ‘माँ’ की कृपा बरस रही है- इस विचारधारा से स्वयं को जोड़ दो। इस प्रवाह में स्वयं को समाहित कर दो। जल्दी ही एक बार आश्रम में आएं। उस समय आप मुझसे मिल भी सकते हैं। मैं आपको अपना पूर्ण आशीर्वाद समर्पित करता हूँ।
    तदुपरान्त, प्रणाम का कार्यक्रम हुआ। सभी दीक्षाप्राप्त लोगों को एक-एक शीशी शक्तिजल वितरित किया गया तथा दीक्षा पत्रक भरकर लौटाने के लिए दिया गया।

द्वितीय दिवस- दिव्य उद्बोधन
आजकल चारों ओर अनीति-अन्याय-अधर्म का वातावरण छाया है और मानवता तड़प रही है। सुख की खोज में मनुष्य पतन की ओर जा रहा है। इसे रोकने के लिए ‘माँ’ की आराधना का ही एक मार्ग है। वह अपने पुत्रों को भटकने नहीं देंगी। सांसारिक ‘माँ’ भी अपने बच्चों को भटकने से बचाती हैं।
अपने अन्तर्मन की आवाज़ सुनो। किन्तु, आवरण इतने पड़े हैं कि आप इस आवाज़ को सुन नहीं पाते। क्या समाज इसी तरह चलता रहेगा? तुम साधक बनो, भक्त बनो, उस ‘माँ’ के जो अजर-अमर-अविनाशी हें। वही तुम्हारी इष्ट हैं। उनकी आराधना से सरल और कोई मार्ग नहीं है।
अन्य देवी-देवताओं की आराधना से हम कोई मनवांछित फल तो प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु जब ‘माँ’ की आराधना करोगे, तो पूर्णता प्राप्त होगी। ‘माँ’ सब कुछ समझती हैं। बस, हम केवल मानव बन जाएं और सत्यपथ पर चलना शुरू कर दें। रज-तम को कभी भी नष्ट नहीं किया जा सकता, किन्तु इन्हें सतोगुण के अधीन कर लो। इससे सभी कोशिकाएं विकसित होती हैं। ‘माँ’ की भक्ति से तुम धर्मवान्, कर्मवान् और विवेकवान् बनोगे।
हमारे ऋषियों ने हमें एक दिशा दी थी, किन्तु हम भटक गए। उन्होंने अपने शरीर को तपाकर जिन पीठों को चैतन्य बनाया था, आज के सन्त केवल उनके रखरखाव और साज-सज्जा में लगे हैं। वे अपने शरीर को तपाना नहीं चाहते। अपने आचार-विचार को पवित्र बनाने के स्थान पर, वे रासरंग में उलझे हैं, कथाएं सुनाते हैं और नृत्य करते हैं। उनके द्वारा बारबालाएं बुलाई जाती हैं और ग्रुप बनाकर नाचा जाता है। यह पतन का मार्ग है।
मैं आपको जगाने आया हूँ। कथा-वार्ताएं सुनकर यदि आपके भाव जगें, तो उन्हें पचाना चाहिए, नाचना नहीं चाहिए। नाचने से ऊर्जा स्थूल की ओर जाएगी, जब कि लक्ष्य है सूक्ष्म में जाना, गहराई में जाना और आप स्थूल में खोए हैं। सच्चा साधक वह होता है, जो ऊर्जा को पचाकर स्वयं में खो जाय। इससे चेतनता का विकास होगा। इसलिए मन को एकाग्र करने का प्रयास करो।
भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति में सब कुछ समाहित है। इनके अतिरिक्त ‘माँ’ से कुछ भी मांगने की ज़रूरत नहीं है। इनके द्वारा असम्भव से असम्भव कार्य कर सकते हो। आपके पास सब कुछ होते हुए भी यदि अकर्मण्यता है, तो कुछ नहीं कर सकोगे। यदि भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति है, तो कभी भटक नहीं सकोगे। आपकी अगली पीढ़ी भी कर्मवान् होगी। अनीति-अन्याय-अधर्म के सामने सिर मत झुकाओ। सदैव सन्मार्ग पर चलो। इससे तृप्ति एवं सन्तोष मिलेगा।
आकाश में सभी प्रकार के शब्द व्याप्त हैं। इनमें से आप किन्हें ग्रहण करते हो, यह आपके ऊपर है। आज समाज में ब्याह-शादी तथा अन्य उत्सवों के अवसर पर चारों ओर कान फोड़ने वाले डीजे बज रहे हैं। इसी तरह की अन्य चीजें परोसी जा रही हैं। वही अश्लील गीत छोटे बच्चों के मन पर छाए रहते हैं। तब कैसे सम्भव है कि बड़े होकर वे चरित्रवान् बनेंगे?
हमारे देश की नारियां पूज्य हैं, सम्माननीय हैं, किन्तु उनमें कुछ ऐसी भी हैं, जो पैसे के पीछे अपनी मर्यादाओं को लांघ गई हैं। उन्हें अंग प्रदर्शन करने में कोई लज्जा नहीं आती। बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि इस पतन को रोकने के लिए कोई आवाज़ नहीं उठाता। बेशर्म चरित्रहीन राजनेता कानों में उंगली डालकर बैठे हैं। इसे भी हम ही रोकेंगे। कोई तोड़फोड़ नहीं, स्वयं को बदलो। सबसे पहले नशा-मांस छोड़ो और छुड़वाओ। परिवर्तन ज़रूर आएगा। साधना से सब कुछ सम्भव है।
दो बैडरूम्स की पाश्चात्य संस्कृति को त्यागो, जिससे बच्चे अलग न सोएं। माँ-बाप को सदैव बच्चों के साथ सोना चाहिए। इससे उनमें सुसंस्कार पैदा होंगे। सूर्योदय से पहले स्वयं उठो और बच्चों को भी उठाओ। ‘माँ’ की भक्ति के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है। उठकर स्नान करो, तो उत्तम और यदि साधना भी करलो तो अति उत्तम है।
धैर्य, धर्म, सत्कर्म, गुरु और इष्ट का कभी भी त्याग मत करो। यदि इन पांचों का स्मरण करते रहोगे, तो आपकी समस्याओं का समाधान स्वतः मिलता चला जाएगा।
कोई राजनेता बीमार होकर आई.सी.यू में भर्ती हो जाय, तो उसके चमचे प्रदर्शन के लिए गीता का पाठ करने लगते हैं या यज्ञ कराने लगते हैं, जिसका टी.वी. पर प्रसारण किया जाता है। यह पतन का मार्ग है। वास्तव में धर्मसत्ता और राजसत्ता दोनों भटक गई हैं। इसके लिए स्वयं को सुधारो। मेरे द्वारा समाज को आत्मकल्याण और जनकल्याण के लिए बढ़ाया जा रहा है।
ग्रन्थों को रटने से कुछ नहीं होगा। उनमें जो कुछ लिखा है, उस पर अमल करना होगा। कथा-वार्ताओं के सुनने और मन्दिरों में माथा रगड़ने से कल्याण नहीं होगा। इन सब से लाभ तभी होगा, जब सत्यपथ पर चलोगे।
अपने आहार पर विशेष ध्यान देना होगा। नशे-मांस से मुक्त रहो। कथा-वार्ताएं उनसे सुनो, जो मर्यादित हों, जहां पर रासरंग न हो और पैसा न बटोरा जाय। इसी कारण, सत्यधर्म की रक्षा के लिए मैंने चुनौती दी थी। वर्तमान में, किसी भी शंकराचार्य की कुण्डलिनी जाग्रत् नहीं है। इसीलिए, वे भटक गए हैं। जब धर्मक्षेत्र राजसत्ता के चरणों में सिर टेक देता है, तो पतन वहीं से शुरू होता है। राजसत्ता को धर्म के सामने झुकना चाहिए। प्राचीनकाल से ऐसा ही होता आया है।
अनीति-अन्याय-अधर्म के सामने सिर टेकने की बजाय, नमक-रोटी खालो और वह भी न मिले तो मौत स्वीकार करना अधिक श्रेयस्कर होगा।
माया नहीं, काया महाठगिनी है। इसका भरपूर उपयोग करो। तुम शरीर नहीं, बल्कि आत्मा हो। शरीर को आराम मत दो। ऐसा करोगे, तो तुम ठगे जाओगे। इसको नहलाओ-धुलाओ और पौष्टिक आहार दो, वह इसलिए क्योंकि स्वस्थ रहकर तुम्हें सत्कर्म करना है। विश्राम कम से कम करोगे, तो शरीर चेतन रहेगा। शरीर की सामर्थ्य अनन्त है, उसे जगाओ। ‘माँ’-ऊँ बीज मंत्र इसीलिए दिये गए हैं।
आप लोग इतने सारे कपड़े पहनकर भी कांप रहे हो, जब कि मैं सदैव इन्हीं दो वस्त्रों में रहता हूँ। मुझे अब तक कहीं भी कम्पन नहीं आया। रात्रि में सोते समय केवल एक कम्बल का प्रयोग करता हूँ, वह भी सीने से नीचे। क्वायल और ऑल आउट जैसी चीज़ों का आपकी तरह मैं कभी भी प्रयोग नहीं करता। ये ज़हर हैं, इनसे सदा बचो।
तुम स्वयं केवल मानव बन जाओ, खोजी बन जाओ, सजग प्रहरी बन जाओ। यदि ऐसा कर लोगे, तो पुलिस को आधा कम किया जा सकता है। चारों ओर निगाह उठाकर देखो, मिलावट किस-किस तरह से हो रही है? दूध और मावा तो सिन्थेटिक मिल रहे हैं। बच्चों को विषाक्त दूध पिलाया जा रहा है।
आज सौ में से दस महिलाओं के गर्भाशय में गांठें हैं। बिन ब्याही बच्चियों का भी ऑपरेशन कराना पड़ता है। यह सब इसी मिलावट का नतीजा है। इसके रोकने के लिए आपका भी कुछ कर्त्तव्य बनता है। अपने चारों ओर के वातावरण को स्वच्छ बनाकर रखो। विवेकवान् बनो और शासन-प्रशासन पर निर्भर मत रहो। समाज में परिवर्तन आता चला जाएगा।
भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं में विनम्रता होनी चाहिए। उनको चाहिए कि वे सदा मर्यादा का ध्यान रखें। इस संगठन में मेरे प्राण बसते हैं। यह विश्व का ऐसा संगठन है, जिसके समकक्ष अन्य कोई संगठन नहीं होगा।
दूसरों के दुःख-दर्द को देखकर यदि तुम्हारा हृदय नहीं पिघलता, तो तुम मेरे शिष्य नहीं हो। जातीयता और छुआछूत से ऊपर उठो। जातियां समाज को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए बनाई गई थीं, छुआछूत के लिए नहीं। जिन्हें तुम अछूत समझते हो, उनकी गन्दगी को दूर करो, उन्हें नहीं। ऐसा करने से ‘माँ’ तुमसे प्रसन्न होंगी। उनकी कृपा प्राप्त होगी। ‘माँ’ तुमसे जो चाहती हें, वह करो। पहले स्वयं को बदलो और फिर अपने परिवार को। समाज स्वतः बदलता चला जाएगा। समाज में विष मत घोलो, उसमें समरसता लाओ। किसी भी जातीय संगठन के पदाधिकारी मत बनो, अन्यथा यहां पर तुम्हारे लिए कोई स्थान नहीं होगा।
सभी धर्मों के लोग मेरे शिष्य हैं, किन्तु मैं कभी भी उनसे नहीं कहता कि अपने धर्म को बदलो। जो कुछ भी तुम्हारे धर्म में है, उसका सही से पालन करो। प्रदर्शन, तोड़फोड़ और साम्प्रदायिक दंगों में मत पड़ो। यदि किसी ड्राईवर की गलती से कुछ नुक़्सान हो गया, तो उसे पकड़कर कानून के हवाले करो। किन्तु, इस कारण ट्रैफिक जाम करना और सैकड़ों वाहनों को तोड़ना-जलाना एक मानसिक विकलांगता है।
मेरे भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं ने पिछले साल-डेढ़ साल में करोड़ों रुपये की अवैध शराब पकड़कर पुलिस के द्वारा ज़ब्त कराई तथा सैकड़ों अराजक तत्त्वों को जेल भिजवाया है। इससे खफा होकर शराबमाफियाओं के द्वारा उन पर तेज़ाब फेंका गया और महिलाओं के ऊपर गर्म तेल डाला गया। फिर भी उनका मनोबल नहीं टूटा। इसका परिणाम यह हुआ कि इस साल शराब के कम ठेके उठे। कोई बोली लगाने वाला ही नहीं आया। जब हम लोगों का नशा छुड़वाएंगे, तो ठेकों पर कौन शराब लेने आएगा? धिक्कार है उन राजनेताओं को, जिनके क्षेत्र में शराब के ठेके चल रहे हैं! वे उनके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाते। आवाज़ उठाओगे, तो वे ज़रूर बन्द होंगे। यदि अकेले ऐसा नहीं कर सकते, तो हमसे जुड़ जाओ।
मैं उन सन्तों का सम्मान करता हूँ, जिनमें सन्तता है, किन्तु मेरा मानना है कि आज के हज़ार सन्तों में से नौ सौ निन्यानवे मात्र चोलाधारी हैं, जो समाज को लूट रहे हैं। फिर भी लोग उन्हें नमन करते हैं। कहते हैं कि वे तो भगवा भेष को नमन करते हैं। यदि भगवा को नमन करने से कल्याण होता है, तो मैं एक सरल मार्ग बता रहा हूँ। अपने घर के किसी सदस्य को भगवा पहना दो और उसे नमन कर लो।
विभिन्न आश्रमों में भी आपकी खोजी प्रवृत्ति होनी चाहिए कि वहां पर नशा तो नहीं किया जा रहा या अय्याशी तो नहीं हो रही? यदि कहीं पर ऐसा कुछ हो रहा हो, तो उसके विरुद्ध आवाज़ उठाओ।
सोवियत रूस में आजकल शाकाहार के मानव जीवन पर प्रभाव पर अध्ययन चल रहा है। उन्होंने इसके लिए मेरे आश्रम को चुना। फलस्वरूप, वहां से एक नौ सदस्यीय टीम यहां आई। अपने तीन-चार दिन के प्रवास के दौरान वे लोग आश्रम के वातावरण से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने स्वतः नशा-मांसाहारमुक्त जीवन जीने और स्वदेश लौटकर इसका प्रचार करने का संकल्प लिया। वे लोग यहां से रक्षाकवच / रूमाल तथा कुंकुमादि साधना सामग्री अपने साथ ले गए तथा वहां जाकर नित्य साधनाक्रम सम्पन्न कर रहे हैं।
आप लोग धर्म, मानवता और राष्ट्र की रक्षा हेतु समर्पित हो जाओ। आप देखेंगे कि भारत धर्मधुरी बनकर पूरे विश्व का संरक्षण करेगा।
‘माँ’ का ध्वज अपने घर पर फहराओ। जब भी घर से बाहर जाओ, उसे प्रणाम करके जाओ तथा जब लौटकर आओ, तब भी उसे प्रणाम करके घर में प्रवेश करो। यह ध्वज घर के सारे वास्तुदोषों को समाप्त कर देगा। इसमें तंत्र-मंत्र कुछ नहीं कर पाएगा। आडम्बरों में बिल्कुल मत उलझो। चरित्रवान् बनो और अवगुणों से दूर रहो। अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए यहां-वहां भटकने की कोई भी ज़रूरत नहीं है। बस, भगवती मानव कल्याण संगठन के किसी कार्यकर्ता के द्वारा अपने घर में चौबीस घण्टे का निःशुल्क अखण्ड श्री दुर्गाचालीसा पाठ करा लो।
मेरे आश्रम में आने वाली उन महिलाओं को ‘माँ’ की कृपा से बच्चे हुए हैं, जिनके लिए लेडी डॉक्टरों ने कह दिया था कि वे जीवन में कभी माँ नहीं बन पाएंगी। ‘माँ’ के भीतर असीम सामर्थ्य है। किन्तु, मेरा लक्ष्य यह नहीं है कि मैं जगह-जगह ऐसे करता फिरूं। मेरा लक्ष्य लोगों में परिवर्तन डालना है।
मेरे द्वारा वितरित किये जा रहे शक्तिजल का कोई भी शुल्क नहीं होता। यदि मैं इसका शुल्क लेता, तो अब तक करोड़ों-अरबों रुपये इकठ्ठे हो जाते। मैं दान नहीं, केवल समर्पण स्वीकार करता हूँ। जो कुछ भी धन-दौलत तुम्हारे पास है, वह सब प्रकृतिसत्ता की देन है। उसे तुम दान में क्या दोगे? यदि सौ बार तुम्हारी अन्तरात्मा कहे कि मेरे आश्रम में सच्चाई है, तो जो चाहो समर्पण भाव से दो (तेरा तुझको अर्पण!), नहीं तो आसाराम बापू जैसे लोग तुम्हें लूटते रहेंगे।
शोभन सरकार ने सपने में गड़ा हुआ सोना देखा। उसके चक्कर में शासन ने खुदाई करने में समय, शक्ति और धन बर्बाद किया और कुछ भी नहीं निकला। सपने भी आते हैं, तो गड़े हुए धन के। तो कैसे योगी? शोभन सरकार के पास कोई शक्ति नहीं है। यदि है, तो मेरे तपबल का सामना करे। मीडिया के लोगों का कर्तव्य है कि वे इस आवाज़ को जनसामान्य तक पहुंचाएं। विज्ञान के पास आज वे यंत्र हैं, जिससे यह पता किया जा सकता है कि किस के पास समाधि में जाने की क्षमता है?
आज बीजमंत्र बेचने वाले लोग समाज को लूट रहे हैं। या तो वे स्वयं सुधर जाएंगे, नहीं तो उन्हें मेरा सामना करना पड़ेगा। हमारे ऋषियों ने हमें सत्यपथ पर बढ़ना सिखाया था, समाज को लूटना नहीं।
सिर्फ हिन्दू धर्म में ही नहीं, बाकी सभी धर्मों में भी न्यूनताएं हैं। सभी धर्मों के धर्माधिकारियों को मैंने चुनौती दी है। हमें उन्हें सुधारना है। इसके लिए ‘माँ’ की भक्ति और आपका कर्म, रथ के दो पहियों के समान हैं। इसलिए ‘माँ’ की आराधना के साथ-साथ सत्कर्म करो। मैं तो आप लोगों के लिए ही जीवन जी रहा हूँ।
वर्ष 2012 के शारदीय नवरात्र में आश्रम में आयोजित शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में कलिकाल को पराजित करने के लिए लाखों लोगों ने एक साथ महाशंखनाद किया था। वह कोई सामान्य घटना नहीं थी। हमें पुरानी परम्पराओं को लाना होगा। प्रतिदिन दो समय ‘माँ’ की आराधना करो। इसके प्रारम्भ और अन्त में भी शंखनाद अवश्य करो। वृद्धों की सेवा करो तथा परोपकार के लिए पूर्णरूप से समर्पित हो जाओ।
हमारे देश में कानून का समान रूप से पालन नहीं हो रहा है। अमीरों के लिए उसे ढीला कर दिया जाता है। पत्नी की बीमारी के आधार पर संजय दत्त को पैरोल पर रिहा कर दिया गया। मैं सरकार से पूछना चाहता हूँ कि गरीबों को भी ऐसी परिस्थितियों में पैरोल की सुविधा क्यों नहीं दी जाती?
आज पांच-पांच साल की बच्चियों के साथ सामूहिक बलात्कार हो रहे हैं। इस प्रकार की एक प्रतिशत खबरें ही उभरकर सामने आती हैं। शेष दबकर रह जाती हैं। यह सामाजिक पतन की पराकाष्ठा है। इसलिए समाज को चरित्रवान् बनाना पड़ेगा। (सबको दोनों हाथ उठवाकर संकल्प कराया गया कि विवाह से पहले पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत और शादी के बाद एक पति/पत्नी व्रत का पालन करेंगे तथा पूर्ण नशामुक्त-मांसाहारमुक्त जीवन जियेंगे।)
अपार धन-सम्पदा है और बुढ़ापे के कारण गर्दन हिल रही है, फिर भी धन-दौलत पाने की भूख शान्त नहीं हो रही है। आखिर, यह बात कब समझ में आएगी कि मरने के बाद सब कुछ यहीं पड़ा रह जाएगा?
बाज़ार में जाकर आप लोग किसी के भी हाथ की बनी चाट-पकौड़ी और जलेबी खा लेते हो। वहां पर जाति क्यों नहीं पूछते? किन्तु, अपने घर पर आए किसी जाति विशेष के व्यक्ति को छूने के डर से उसका अपमान करते हो। छुआछूत से मेरा तो धर्म कभी नष्ट नहीं हुआ। जिस जाति के व्यक्ति से आज तुम छुआछूत कर रहे हो, हो सकता है मरने के बाद तुम्हारा जन्म उसी जाति में हो। तब तुम्हारे ऊपर क्या बीतेगी?
तुम्हारे घर में गड़े धन को निकालने वाला यदि कोई आपके यहां आय, तो उसे बड़ी इज्ज़त के साथ बैठाओ और थाने में फोन करके पुलिस के सुपुर्द करो। कई बार आपके मोबाईल पर आपको आपकी लॉटरी निकलने की सूचना दी जाती है और कहा जाता है कि इनकम टैक्स के रूप में दस-बीस हज़ार रुपया उनके द्वारा बताए गए खाते में जमा कर दो। ऐसे धोखेबाज़ों से हमेशा बचो। इसी तरह विभिन्न चिट्फण्ड कम्पनियां समाज को लूट रही हैं। यदि संगठन का कोई कार्यकर्ता ऐसी कम्पनी के लिए कार्य करता है, तो तुरन्त उसे बाहर किया जाएगा।
यह शिविर व्यर्थ नहीं जाएगा। खोजी प्रवृत्ति लेकर देखें। यहां पर नशा-मांस से मुक्त इतने लोग होंगे कि आपको आश्चर्य होगा। यहां पर ‘माँ’मय वातावरण का निर्माण होगा।
इस प्रकार, दो दिन तक चला यह विशाल शिविर ‘माँ’-गुरुवर की कृपा से सानन्द एवं सकुशल सम्पन्न हो गया। आशा की जानी चाहिए कि शीघ्र ही बांदा में ‘माँ’-मय वातावरण बनेगा और पुनः यहां पर एक और कार्यक्रम सम्पन्न होगा।
अगला द्विदिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर भिलाई (छत्तीसगढ़) में 15-16 फरवरी 2014 को सम्पन्न होगा।

ननिहाल भ्रमण
अगले दिन 09 दिसम्बर को परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का शुभ जन्मदिवस था, जिसे आपने अपने ननिहाल के ग्राम जमालपुर में मनाया। यद्यपि महाराजश्री की ओर से ऐसा कोई निर्देश नहीं था, फिर भी आपश्री के साथ जाने के उत्सुक शिष्य जमालपुर जाने का लोभ संवरण नहीं कर सके। फलस्वरूप, 09 दिसम्बर को प्रातः 09 बजे जैसे ही गुरुवरश्री का वाहन चला, उनके आगे सैकड़ों मोटरसाईकिलें तथा पीछे अनेकों चौपहिया वाहन रैली के रूप में चल पड़े। जमालपुर में 10:00 बजे गुरुवरश्री का शुभागमन हुआ। आप 10:45 बजे तक अपने ननिहाल में रहे। इस बीच थोड़ी देर के लिए गुरुवरश्री तलैया पर बने उस मन्दिर पर भी गए, जहां पर बचपन में जाकर आप प्रायः बैठा करते थे। तदुपरान्त, ठीक 10:45 बजे आप गांव के एक छोर पर बने भव्य मंच पर विराजमान हुए। वहां पर ग्रामवासियों की हज़ारों की भीड़ पहले से ही आपके दर्शन पाने के लिए प्रतीक्षारत थी।
अपने संक्षिप्त दिव्य उद्बोधन में महाराजश्री ने कहाः
लगभग चालीस वर्ष के बाद मैं एक बार फिर यहां पर आया हूँ। मेरे लिए यह पूरा गांव एक समान है। इन्हीं गलियों में मुझे भी घूमने का सौभाग्य मिलता था। उस समय मैं कई घरों में भी जाता था। आज मैं आपसे आध्यात्मिक रिश्ता जोड़ने आया हूँ। मैं चाहता हूँ आपका भी कल्याण हो। मेरा आशीर्वाद सदैव बना रहेगा।
आप लोग पूरे गांव को नशामुक्त करने का प्रयास करें। इसी से समाज का कल्याण हो सकता है। आप लोग ‘माँ’ की आराधना करें और नित्य श्री दुर्गाचालीसा का पाठ करें। मेरे आश्रम में यह अनन्तकाल तक के लिए सतत चल रहा है। आप लोग कुछ समय निकालकर वहां आएं और सौभाग्य प्राप्त करें। अपने छोटे बच्चों को भी धर्ममार्ग पर बढ़ाएं।
आज मैं आप लोगों को अपने आश्रम में वर्ष 2014 के शारदीय नवरात्र में आयोजित होने वाले शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में आने का निमंत्रण देता हूँ।
‘माँ’ की आराधना में ही मनुष्य अपनी समस्त समस्याओं का समाधान पा सकता है। वही हमारी मूल जननी हें। उनकी आराधना सभी जाति-धर्म के लोग कर सकते हैं। इससे सरल कोई मार्ग नहीं है।
गांव का विकास अपेक्षित गति से नहीं हो पा रहा है। शासन-प्रशासन के द्वारा दी गई योजनाओं पर आपका अधिकार है। उनका लाभ उठाएं। भगवती मानव कल्याण संगठन के द्वारा भी सहयोग किया जाएगा।
इसके बाद महाराजश्री के चरणस्पर्श का क्रम बड़े ही व्यवस्थित ढंग से हुआ। अन्त में, सभी ग्रामवासियों ने तृप्तिपूर्ण भोजन प्रसाद ग्रहण किया।
इसके पश्चात्, गुरुवरश्री संगठन के केन्द्रीय मुख्य सचिव आशीष शुक्ला ‘राजू भैया’ के ननिहाल निकटस्थ करहिया गांव भी गए, जहां पर उनका भव्य स्वागत हुआ। करहिया में हज़ारों भक्तों ने गुरुवरश्री के दर्शन प्राप्तकर स्वयं को धन्य महसूस किया व उन्हें चरणस्पर्श करने का अवसर प्राप्त हुआ। सभी लोगों के लिए स्वल्पाहार की भी व्यवस्था की गई थी। वापस बांदा लौटकर 04ः30 से 05ः00 बजे सायं तक पत्रकार सम्मेलन हुआ। अगले दिन 10 दिसम्बर को प्रातः 09ः00 बजे बांदा से प्रस्थान करके चित्रकूट होते हुए महाराजश्री सायं 05ः00 बजे आश्रम लौट आए।

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