शक्ति चेतना जनजागरण शिविर, सिद्धाश्रम, 15-16-17 अक्टूबर 2010

आज देश में चारों ओर अनीति-अन्याय-अधर्म का बोलबाला है। कलियग का नग्न ताण्डव हो रहा है। इससे त्रस्त जनता बुरी तरह कराह रही है, बिलख रही है। किन्तु, कोई भी उसे मुक्ति के लिये सान्त्वना देने वाला नहीं है। सब अपनी मौज में मस्त हैं। परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज समाज की इस दुरवस्था को देखकर अत्यन्त व्यथित हैं। उनके अनुसार, आज भ्रष्ट राजनेता और धर्मगुरु दोनों मिलकर समाज का शोषण कर रहे हैं और उसे लूट रहे हैं।
परम पूज्य गुरुवरश्री का संकल्प है कि भ्रष्ट राजनेताओं की नाक में नकेल डालकर वे आज की बेलगाम राजनीति को लगाम लगाएंगे। इसके लिये शीघ्र ही वे एक राजनैतिक दल का गठन करेंगे, जिसमें विशुद्ध रूप से उनके सत्यनिष्ठ, सच्चरित्र, कर्मठ एवं समर्पित शिष्य ही उतरेंगे। गुरुवरश्री के संग राजनीति और धर्म दोनों एक साथ चलेंगे, किन्तु उन्हें स्वयं सक्रिय राजनीति में कदापि नहीं आना है। उनका पूरा जीवन तो एकान्त साधना में एवं यज्ञाग्निके समक्ष ही व्यतीत होना है। किन्तु, राजनीति की बागडोर परोक्ष रूप से सदैव उन्हीं के हाथ में रहेगी, ताकि भ्रष्ट लोग उसमें प्रवेश न कर सकें।
धर्मगुरु का चोला पहनकर समाज को लूटने वाले कथावाचकों को भी परम पूज्य गुरुवरश्री ने चेतावनी दी है कि या तो वे अपने साधनात्मक तपबल को प्रमाणित करके समाज का आध्यात्मिक मार्गदर्शन करें, अन्यथा गेरुए वस्त्र उतारकर समाज में एक सामान्य व्यक्ति की भांति रहें।
परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का प्रत्येककार्य बड़े ही योजनाबद्ध एवं प्रभावी ढंग से होता है। जनसामान्य को उनके ऊपर हो रहे अन्याय के प्रति जाग्रत् करने तथा भय-भूख-भ्रष्टाचार को मिटाने के उद्देश्य से अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध धर्मयुद्ध छेड़ने की आवश्यकता एवं उसकी रणनीति बताने के लिये, उनके द्वारा वर्ष में दो बार शक्ति चेतना जन-जागरण शिविर का आयेजन किया जाता है। इनमें से एक त्रिदिवसीय शिविर शारदीय नवरात्र के अवसर पर पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में तथा दूसरा द्विदिवसीय शिविर समाज में किसी अन्य स्थान पर होता है। इन शिविरों में प्रतिवर्ष लाखों की भीड़ होती है। इन शिविरों के माध्यम से धर्मयुद्ध के योद्धा बनाने के लिये, लोगों के हृदय में गुरुवरश्री ‘माँ’की स्थापना करते रहे हैं, क्योंकि एक आत्मावान्-चेतनावान् व्यक्ति ही आत्मशक्ति के बल पर इस युद्ध को जीत सकता है।
इसी कड़ी में, इस वर्ष भी पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में शारदीय नवरात्र के पावन अवसर पर दिनांक 15,16,17 अक्टूबर के मध्य अष्टमी, नवमी एवं विजयादशमी की अति महत्त्वपूर्ण तिथियों में त्रिदिवसीय शक्ति चेतना जन-जागरण शिविर का आयोजन किया गया। यह दिव्य महाशिविर माँ-गुरुवर की कृपा से हर्ष एवं उमंग के साथ सम्पन्न हुआ।इसमें देश-विदेश से आये गुरुवरश्री लाखों शिष्यों, माँ के भक्तों तथा श्रद्धालुओं ने परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के द्वारा निर्दिष्ट साधनाक्रमों को अपनाते हुये उनकी ओजस्वी दिव्य वाणी को हृदयंगम किया।
शिविर के अन्तिम दिन विजयादशमी को प्रातः सात बजे 25 हजार से भी अधिक लोगों ने गुरुदीक्षा प्राप्त की और पूर्ण नशामुक्त एवं मांसाहारमुक्त जीवन जीने का संकल्प लिया। इस प्रकार, उन्होंने अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध धर्मयुद्ध छेड़ने के लिये स्वयं को कटिबद्ध किया। इसी दिन सायंकालीन सत्र के अन्तर्गत परम पूज्य गुरुवरश्री की पावन सन्निधि में ग्यारह नवयुगलों के विवाह संस्कार योगभारती विवाह पद्धति के अनुसार, बिना दहेज तथा बिना किसी आडम्बर के सामूहिक रूप से सम्पन्न हुये। यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि इसी क्रम के अन्तर्गत त्रिशक्तिस्वरूपा तीनों बहनों में से सबसे बड़ी पूजा दीदी भी दाम्पत्य सूत्र में बंध गईं।
इस विशाल अलौकिक आयोजन में परम पूज्य गुरुवरश्री द्वारा गठित भगवती मानव कल्याण संगठन के विभिन्न प्रान्तों से आये लाखों सदस्यों के साथ-साथ माँ के भक्तों, श्रद्धालुओं, जिज्ञासुओं तथा क्षेत्रीय जनता और राष्ट्रीय, प्रान्तीय एवं संभागीय स्तर के जन प्रतिनिधियों, कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं प्रशासनिक अधिकारियों व प्रबुद्ध वर्ग के लोागों की विशिष्ट उपस्थिति रही।

श्री सिद्धाश्रम धाम का विहंगावलोकन
श्री पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम धाम की स्थापना परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के द्वारा दिनांक 23 जनवरी सन् 1997 को हुई थी। सम्प्रति इसमें, एक-दो को छोड़कर, सभी संरचनायें अस्थायी हैं। यहाँ पर स्थायी निर्माण कार्य इस शिविर के तुरन्त बाद होना प्रस्तावित है। अनुमान है कि आने वाले वर्षों में यह आश्रम एक भव्य साधनात्मक स्थल बन जायेगा। किन्तु, अभी भी यहाँ का एक-एककण इतना ऊर्जावान् है कि लाखों लोग खिंचे चले आते हैं। कल्पना कीजिये कि यहाँ पर जब मूल मन्दिर में ‘माँ’ प्रतिष्ठित हो जायेंगी, तब यहाँ पर कितना आकर्षण होगा। यह आश्रम मध्य प्रदेश के शहडोल जिलान्तर्गत ब्यौहारी से रीवा राजमार्ग पर आठ किलोमीटर की दूरी पर मऊ ग्राम के निकट स्थित है। नैसर्गिक सौन्दर्य एवं दिव्यता से परिपूर्ण यह दिव्य धाम तीन ओर से पापविमोचिनी पावन समधिन सरिता से घिरा हुआ है तथा कमलदल आकृति से युक्त पर्वत शृंखलाओं से सुसज्जित है।
पावन समधिन धारा पार करते ही सर्वप्रथम दाईं ओर आश्रम की आधुनिक सुविधाओं से युक्त त्रिशक्ति गौशाला स्थित है। इसमें सैकड़ों की संख्या में अच्छी नस्ल की गायें हैं। उन्हें सदैव पूर्णतया व्यवस्थित एवं स्वच्छ रखा जाता है। गौशाला में ही उनके लिये हरे घास एवं स्वच्छ जल की व्यवस्था की गई है। प्रकृति के सन्निकट रखने के लिये, उन्हें घास चरने के लिये प्रतिदिन स्वतन्त्र छोड़ दिया जाता है और दो सदस्य उनकी सतत निगरानी करते हैं। गौशाला में उत्पादित दूध का उपयोग आश्रम की व्यवस्था में ही किया जाता है। श्री मंगल सिंह जी तथा श्री सुनील जी सरीखे कर्मठ सदस्य गौशाला की सेवा में सक्रियता के साथ लगे हैं।
कुछ दूर आगे चलने पर समधिन सरिता के तट पर श्री गुरुदेव भगवान् के पूज्य पिता दण्डी सन्यासी स्वामी श्री रामप्रसाद आश्रम जी महाराज की भव्य समाधि है। इसके रखरखाव के लिये एक स्थायी कार्यकर्ता शैलेन्द्र त्रिपाठी जी नियुक्त हें, जो नित्यप्रति सुबह समाधि के भीतर रखी हुयी स्वामी जी की छवि, दण्ड एवं कमण्डल आदि को साफ करते हैं तथा भीतर के फर्श एवं समाधि के बाहर बने चारों ओर के चबूतरे की धुलाई करते हैं। तदुपरान्त, धूप-दीपादि प्रज्जवलित करके वातावरण को सुगन्धित बनाते हुये पूजा-अर्चनादि की जाती है। नित्यप्रति पूरे दिन सैकड़ों लोग समाधि के बाहर से ही दर्शन करते हैं और स्वामी जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
विदित हो कि स्वामी जी अपने जीवन के अन्तिम चरण में इसी आश्रम में आकर रहे, सभी आश्रमवासियों को अपना सान्निध्य एवं स्नेह प्रदान किया तथा यहीं पर उन्होंने अपने स्थूल शरीर का त्याग किया था। उनका कहना था कि उन्होंने पूरे देश में अनेक तीर्थ स्थानों एवं आश्रमों का भ्रमण किया, किन्तु जो शान्ति उन्हें सिद्धाश्रम में आकर मिली, वह अन्यत्र कहीं पर भी नहीं मिली। वर्तमान में स्वामी जी इसी आश्रम में अदृश्य सूक्ष्म जगत् का प्रतिनिधत्व करते हैं और अपनी विराट् चेतना के साथ यहीं पर वास करते हैं।
इससे आगे चलते हुये बाईं ओर आवासीय भवनों के दो मंजिले दो ब्लॉक दिखाई देते हैं। यहां से सीधा रास्ता गुरुआवास की ओर जाता है और दूसरा इन दोनों ब्लॉक्स के बीच से होकर शॉर्टकट के रूप में उसी मुख्य मार्ग से जुड़ जाता है, जहाँ पर संकल्प शक्ति साप्ताहिक समाचार पत्र का कार्यालय है। दो मंजिले ब्लॉक्स में से बायें वाले ब्लॉक में भूतल पर महिलाओं और पुरुषों के लिये अलग-अलग सुलभ शौचालय कॉम्प्लैक्स हैं। दायें वाले ब्लॉक में भूतल पर आश्रम की स्टॉल्स हैं तथा ऊपर की मंजिल पर आवासीय कमरे हैं। भूतल पर सबसे पहले भगवती मानव कल्याण संगठन का जनसम्पर्क कार्यालय है। यहाँ पर आगन्तुक तीर्थयात्रियों को आते ही उनके पण्डाल की जानकारी मिलती है, ताकि उन्हें ठहरने में सुविधा हो सके। इस कार्यालय का संचालन मुकेश जी की प्रमुखता में विभिन्न क्षेत्रों से आये कार्यकर्ताओं शशिभूषण जी, रामशरन जी, शिवशंकर जी, रामेन्द्र जी, विमल जी आदि ने संयुक्त रूप से सफलतापूर्वक किया।
तीर्थ यात्रियों के ठहरने के लिये अनेक पण्डाल लगाये गये थे तथा विभिन्न क्षेत्रों के लिये अलग-अलग पण्डालों की व्यवस्था थी। सुविधा के लिये इनके प्रवेश द्वारों पर सम्बन्धित क्षेत्र के नाम की पट्टिकायें लगाई गई थीं।
सिद्धाश्रम में श्री दुर्गा चालीसा अखण्ड पाठ मन्दिर स्थित है, जहाँ पर दिनांक 15 अप्रैल सन् 1997 से अनन्तकाल तकके लिये श्री दुर्गा चालीसा पाठ चल रहा है। यहाँ पर पुरुषों एवं महिलाओं के लिये अलग-अलग बैठने की व्यवस्था है। सामने की ओर माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की छवियों के साथ-साथ विभिन्न देवताओं की आकर्षक छवियाँ भी विराजमान हैं। उनके सामने परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का आसन है, जिस पर आसीन होकर वे नित्य प्रातः-सायं आरती एवं ध्यान करते हैं। इस मन्दिर की सम्पूर्ण व्यवस्था श्री रामस्वरूप विश्वकर्मा जी सफलतापूर्वककर रहे हैं।
नित्य प्रातः एवं सायंकालीन आरतियों के उपरान्त, श्री गुरुदेव जी महाराज भक्तों का प्रणाम-निवेदन स्वीकार करने के लिये अपने आवास के प्रांगण में विराजमान हो जाते हैं। सभी लोग पंक्तिबद्ध होकर उनके चरण स्पर्श करते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। तदुपरान्त, वे उन लोगों को उनकी समस्याओं का समाधान प्रदान करते हैं, जो आश्रम से तत्काल प्रस्थान करना चाहते हैं। और, इसके लिये कोई भी शुल्क नहीं लिया जाता। उल्लेखनीय है कि शिविर से कुछ दिन पूर्व, शिविर की अवधि में तथा उसके बाद भी कुछ दिन तक व्यस्ततावश गुरुवरश्री भक्तों से मिलना बन्द कर देते हैं।
चालीसा भवन की पूर्व दिशा में एक पहाड़ी पर माँ भगवती का छोटा सा अस्थायी मन्दिर है, जिसके ऊपर मूलध्वज फहरा रहा है। यहीं पर श्री गुरुदेव जी द्वारा सम्पन्न किये जाने वाले 108 महाशक्ति यज्ञों की शृंखला के शेष 100 यज्ञों को सम्पन्न किया जायेगा। यहाँ पर तीर्थयात्री परिक्रमा करते हैं तथा ‘माँ’के चरणों में अपनी भौतिक एवं आध्यात्मिक समस्याओं के समाधान के लिये निवेदन करते हैं और वास्तव में उन्हें समाधान मिलता भी है। इस बार अधिक सम्भावित भीड़ को दृष्टिगत रखकर परम पूज्य गुरुवरश्री ने जनसामान्य को निर्देशित किया था कि उन्हें मात्र एक परिक्रमा से ही 108 परिक्रमा का पूर्ण लाभ प्राप्त होगा। अतः वे एक परिक्रमा करके ही सन्तोष करें। भीड़ कम हो जाने पर अधिक से अधिक पाँच परिक्रमायें कर सकते हैं। इस प्रकार, अधिकतर लोगों ने एक ही परिक्रमा की और वहां पर सब कुछ सुचारू रूप से चला। यहां पर भी नित्य प्रातः-सायं आरतियाँ होती हैं, माता के इस मन्दिर की सम्पूर्ण व्यवस्था श्री देशराज पटेल, श्री राधेश्याम पाल जी, श्री रामभूषण पाण्डेय जी आदि के द्वारा बड़े ही सफलतापूर्ण ढंग से की गई।
उल्लेखनीय है कि सिद्धाश्रम में सभी व्यवस्थायें सदैव निःशुल्क रहती हैं। महाराजश्री नित्यप्रति जनसामान्य से प्रातः-सायं दोनों वक्त मिलते हैं तथा उनकी विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिये दिशा-निर्देश देते हैं। इसका भी कोई शुल्क नहीं लिया जाता और न ही किसी स्थान पर कोई दान-पात्र ही रखा है। किसी से कोई दान भी नहीं लिया जाता। यदि कोई व्यक्ति गुरुवरश्री के द्वारा किये जा रहे जनकल्याणकारी कार्यों में समर्पण भाव से सहयोग करना चाहता है, तो उसका एक रुपया भी सहर्ष स्वीकार किया जाता है। आश्रम की सारी व्यवस्थायें परम पूज्य गुरुवरश्री के द्वारा गठित भगवती मानव कल्याण संगठन के लाखों सदस्यों के सहयोग तथा माँ’-‘गुरुवर’ की कृपा से सहज एवं सरल रूप से चल रही हैं।

प्रारम्भिक तैयारियाँ
अब तकका अनुभव बताता है कि प्रत्येक शिविर में उससे पहले साल की अपेक्षा प्रतिवर्ष सदैव सवाये-ड्योढ़े लोग आते हैं। गत वर्ष चिन्तन पण्डाल तथा उसके तीनों ओर का क्षेत्र छोटा पड़ गया था। अतः निरन्तर बढ़ रहे जनसैलाब को देखते हुये महीनों पहले से ही शिविर स्थल के चारों ओर के क्षेत्र को समतल करके बढ़ा दिया गया था। चिन्तन पण्डाल को भी बढ़ाकर लगभग दोगुना कर दिया गया था। आवासीय पण्डालों का आकार एवं उनकी संख्या भी बढ़ा दी गई थी। इस प्रकार, इस आश्रम प्रांगण ने एक अच्छे खासे नगर का रूप ले लिया था। कुछ क्षेत्रों से आये कार्यकर्ता शिविर से आठ-दस दिन पहले ही आश्रम पहुंच गये थे। उन्होंने बड़े उत्साह, लगन एवं तन्मयता के साथ कठिन से कठिन कार्यों को सम्पन्न करने में अपना योगदान दिया।
इस शिविर की विस्तृत जानकारी देने वाले लाखों प्रचार-प्रपत्र छपवाकर भगवती मानव कल्याण संगठन के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं के माध्यम से अनेकों क्षेत्रों में बंटवाये गये थे। आश्रम के पहुँच मार्गों पर बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाये गये थे। इसके अतिरिक्त, कैलेण्डर के आकार के कटआउट्स जनसामान्य को नाममात्र के मूल्य पर दिये गये थे। इन पर लोगों ने स्वयं को अथवा अपने प्रतिष्ठान को निवेदक दर्शाकर अपने घर पर या प्रतिष्ठानों में लगाया। इस प्रकार, इस शिविर के आयोजन का आवश्यक ही प्रचार-प्रसार हुआ था।
फलस्वरूप, आवासीय पण्डालों, चिन्तन पण्डाल तथा उसके चारों ओर के क्षेत्र को बढ़ाने के बावजूद, शिविर की अवधि में भीड़ का आलम यह रहा कि सब कुछ ठसाठस भर गया था, यहां तक कि चलने-फिरने के रास्ते भी तंग हो गये थे। कुछ लोग तो खड़े-खड़े ही चिन्तन सुनते दिखाई दिये। एक अनुमान के अनुसार, इस शिविर में लोगों की उपस्थिति एक लाख से भी ज्यादा रही। यदि यही हाल रहा, तो आने वाले समय में शिविरार्थियों की संख्या कहां पहुंचेगी और उसे कैसे संभाला जायेगा, कहा नहीं जा सकता। परमपूज्य गुरुवरश्री का कहना है कि जनप्रवाह अब चल निकला है और अब इसे दुनिया की कोई शक्ति रोक नहीं पायेगी।

आवास व्यवस्था
वैसे तो बड़े-बड़े आवासीय पण्डाल लगाये गये थे, किन्तु अप्रत्याशित भीड़ होने के कारण, रात्रिविश्राम के लिये तीर्थयात्रियों ने चिन्तन पण्डाल का भी भरपूर उपयोग किया। जब यह पण्डाल भी अपर्याप्त हो गया, तो हजारों लोग खुले आकाश के नीचे कंकड़ों पर लेटे हुये दिखाई दिये। किन्तु, सिद्धाश्रम की इस पावन धरा के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा के कारण कहीं पर भी व्यवस्था की न्यूनता की कोई शिकायत सुनने को नहीं मिली। सभी लोग तनावरहित एवं प्रसन्नचित्त थे और यहां पर आकर स्वयं को धन्य हुआ मान रहे थे। आवास व्यवस्था में सर्वश्री बलराम सिंह, राजेश्वर त्रिपाठी, शिवबहादुर सिंह तथा मनोज योगभारती आदि अनेक सहयोगी कार्यकर्ताओं का कार्य अत्यन्त सराहनीय रहा।

भोजन वितरण एवं भण्डार व्यवस्था –
वैसे तो इतने विशाल आयोजन की सभी व्यवस्थायें कठिन होती हैं, किन्तु उनमें भोजन व्यवस्था सबसे कठिनतम एवं श्रमसाध्य होती है। भोजन वितरण में सर्वश्री ज्ञानेन्द्र सिंह उर्फ बबलू भैया, डॉ. सुजान सिंह, शशिभूषण दीक्षित, वृन्दावन सिंह, अभिषेक शुक्ला, बालेन्द्र सिंह तथा प्रकाश चन्द्र सोनी आदि और भोजन भण्डार व्यवस्था में सर्वश्री अशोक आहूजा (रायपुर), डॉ. रामनाथ सिंह, भुवनेश्वर, हीरा सिंह, रामशरण पाण्डेय, सनत त्रिपाठी, कृष्ण त्यागी, साहब सिंह, रिंकू, घनश्याम नेताम, डमरू भैया तथा सर्वश्रीमती कुसुम पाण्डेय, करुणा पाण्डेय, प्रेमलता द्विवेदी, स्नेहलता द्विवेदी, विनीता अग्निहोत्री, एवं लक्ष्मी दुबे आदि हजारों कार्यकर्ताओं का प्रशंसनीय योगदान रहा।
ज्ञातव्य है कि इस आश्रम के पास एक समय में सात हजार लोगों को एक साथ बैठाकर भोजन कराने की व्यवस्था है। परम पूज्य गुरुवरश्री का उद्बोधन प्रतिदिन लगभग छः बजे सायं पूर्ण हो जाता था और रात्रिभोजन साढ़े छः बजे प्रारम्भ होता था तथा डेढ़-दो बजे तक चलता था। व्यवस्था में लगे लोगों ने सदैव सभी भक्तों को भोजन कराने के उपरान्त ही भोजन ग्रहण किया।

अन्य व्यवस्थायें
बिजली व्यवस्था के प्रमुख श्री सन्तोष मिश्रा जी के निर्देशन में सर्वश्री नरेश जी तथा सोहन सिंह जी आदि कार्यकर्ताओं ने बड़ी तन्मयता एवं निष्ठा से कार्य किया। जल व्यवस्था का उत्तरदायित्व सर्वश्री लालता पटेल, ब्रजकिशोर तथा श्रीनिवास जी ने सफलतापूर्वक निभाया। त्रिशक्ति इण्टरप्राइजेज साधना स्टॉल में सर्वश्री अनिल जी, लालजी, जागेश्वर सोनी, नरेश जैसवानी एवं सिद्धनाथ वर्मा और चेतना फल भण्डार में श्री रावेन्द्र पाठक एवं मदनलाल लीखा आदि का कार्य सराहनीय रहा। मंच सज्जा का कार्य सर्वश्री दिनेश चक्रवर्ती, शैलेन्द्र सोनी उर्फ गोरे भैया तथा विक्रम सैनी आदि अनेकों कार्यकर्ताओं ने बड़े ही सुरुचिपूर्ण ढंग़ से किया।
पण्डाल व्यवस्था के अन्तर्गत सर्वश्री अशोक आहूजा, प्रदीप सिंह, रामबिहारी शुक्लेा, संजय कश्यप, यज्ञपाल सिंह, प्रवीण कुमार, राजेन्द्र मेहता, रामकरण सिंह, आनन्द मिश्रा, कमल बाली और सर्वश्रीमती छाया पाठक, शशिकला मिश्रा, इन्दु पारिक, वीणा सैनी, पुष्पा द्विवेदी, आरती शुक्ला तथा सुलक्षणा सिंह बघेल आदि सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने बड़ी मुस्तैदी के साथ अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया। मंच संचालन का कार्य सर्वश्री वीरेन्द्र दीक्षित, रमेश प्रसाद शुक्ला उर्फ ज्वाला जी तथा रमेश चन्द्र मिश्र ने बड़ी ही कुशलतापूर्वक किया।

श्री भुज्जीलाल सेन के नेतृत्व में सर्वश्री श्याम सिंह, लखपत सिंह, वीरेन्द्र तिवारी, नारायण सिंह, सन्तोष सिंह, रामसेवक चौरसिया, दिनेश यादव तथा पुन्नू सिंह, राजेन्द्र पटेल, वृन्दावन विश्वकर्मा, विजय गुप्ता, यज्ञ नारायण सोनी आदि सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने शान्ति सुरक्षा व्यवस्था को संभाला। उल्लेखनीय है कि यह विशाल आयोजन शान्तिपूर्वक सम्पन्न हुआ तथा कहीं पर भी कोई अप्रिय घटना नहीं हुई।
इस बार इन्द्रदेव की भी महनीय कृपा रही। शिविर की अवधि में आद्यान्त आसमान पर बादल छाये रहे और मौसम लगातार सुहावना बना रहा। शिविर के दूसरे दिन तो, जब परम पूज्य गुरुवरश्री का दिव्य चिन्तन चल रहा था, बारिश हुई। इस कारण, से पण्डाल से पानी गिरने लगा, किन्तु कोई भी श्रोता अपने स्थान से टस से मस नहीं हुआ और बच्चे-बूढ़े, युवा सभी महाराजश्री के प्रवचन का बड़ी तन्मयता से श्रवण करते रहे। वर्षा हो जाने के कारण लोगों के चलने-फिरने और तेज हवा चलने से धूल नाममात्र को भी नहीं उड़ी।
शिविर के तीनों दिन प्रातःकाल, मूलध्वज एवं श्री दुर्गा चालीसा अखण्ड पाठ मन्दिर की आरतियों और गुरुवरश्री की चरण पदुकाओं के वन्दन के उपरान्त चिन्तन पण्डाल में सात से दस बजे तक मन्त्र जाप तथा ध्यान साधना का क्रम होता था। अपराह्न दो से पौने तीन बजे तक विभिन्न क्षेत्रों से आये माँ के भक्तों द्वारा अपने-अपने भावगीत प्रस्तुत किये जाते थे। पौने तीन से तीन बजे तक परम पूज्य गुरुवरश्री का पदार्पण होने तक‘माँ-गुरुवर’के जयकारे लगाये जाते थे। इससे सम्पूर्ण वातावरण ‘माँमय’ बन जाता था। महाराजश्री के मंचासीन होने के उपरान्त भी भावगीतों का क्रम जारी रहता था। अन्त में, शक्तिस्वरूपा बहन संध्या योगभारती एवं ज्योति योगभारती के द्वारा पुनः‘माँ’-‘गुरुवर’के जयकारे लगवाने के पश्चात् गुरुवरश्री पूर्ण आशीर्वाद समर्पित करके अपना उद्बोधन प्रारंभ करते थे।


दिव्य उद्बोधन: प्रथम दिवस

दिनांक 15.10.2010 को चिन्तन पण्डाल अपराह्न दो बजे ही पूर्ण रूप से भर चुका था। ‘मां’-‘गुरुवर’के भक्त अपने-अपने भावगीत प्रस्तुत कर रहे थे। लगभग पौने तीन बजे श्री राजेश श्रीवास्तव जी ने ‘माँ’-‘गुरुवर’के जयकारे प्रारम्भ किये। इसी बीच श्री गुरुदेव जी का पदार्पण हुआ। उनके मंचासीन होते ही बहन पूजा, संध्या एवं ज्योति योगभारती ने उपस्थित शिष्यों एवं भक्तों की ओर से उनके चरण पखारे तथा वन्दन किया। इसके पश्चात् भी भावगीतों काक्रम जारी रहा तथा बहन संध्या एवं ज्योति योगभारती के द्वारा गुरुवरश्री एवं माता भगवती के जयकारे लगाये गये। जयकारों के बाद महाराजश्री का दिव्य उद्बोधन प्रारम्भ हुआः
जीवन में मनुष्य यदि सजग-सचेत रहे और विचार-चिन्तन करता रहे कि उसके कदम सत्य पथ की ओर पड़ रहे हैं, असत्य पथ की ओर नहीं जा रहे हैं, तो वह बहुत कम भटक पाता है। क्षण-प्रतिक्षण यह सोच रहनी चाहिये कि मैं सजग प्रहरी बनकर जिऊंगा। तब मनुष्य मानसिक विकलांगता से ऊपर उठकर उत्थान की ओर जायेगा।
गन्तव्य तक पहुंचने के लिये हर काल-परिस्थिति में अलग-अलग मार्ग होते हैं। बरसात के दिनों में नदी को किसी पुल या नाव की सहायता से पार करते हैं। जब नदी में पानी कम हो, तब नाव-पुल की खोज करते रहें, तो समय ही बर्बाद करेंगे। इसलिये, विवेकवान् बनकर जीवन जीना चाहिये।
आज हर किसी का मन अशान्त है। बड़े-बड़े धनाढ्य भी अशान्त हैं। मनुष्य की क्षमता निरन्तर क्षीण हो रही है। हर पल सोचने-समझने की आवश्यकता है कि हम किस अन्धी दौड़ में दौड़ रहे हैं? नवरात्र में ‘माँ’की अराधना के विशेष क्षण होते हैं। इस अवधि में यह सोच हर पल-हर क्षण होनी चाहिये।
उपवास का मतलब होता है, अपनी आत्मा के नजदीक वास करना। सामान्य जीवन जीते हुये आप निराहार नहीं रह सकते। नौ दिनों तक दिन में एक बार थोड़ा फलाहार अवश्य होना चाहिये और सूर्यास्त के बाद एक समय भोजन लेना चाहिये।
स्वयं को पतन के मार्ग से बचाने की आवश्यकता है। पतन से बचने के तीन पथ होते हैं- सत्य पथ पर चलना, शान्ति धारण करना और शक्ति अर्जित करना। सत्य, शान्ति और शक्ति का सहारा लेकर ही भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति प्राप्त की जाती है। सत्य कभी भी पराजित नहीं होता। इसलिये, सत्य का सहारा लो। शान्ति धारण करने से ऊर्जा का संरक्षण होता है। उससे ज्ञान का पक्ष खुलता चला जाायेगा और परमसत्ता की प्राप्ति होगी, यही हमारा लक्ष्य है।
इससे अगली सीढ़ी सेवा की है। सेवायें नौ हैंः- माता-पिता के प्रति सेवाभाव, परिवार के प्रति सेवाभाव, समाज के प्रति सेवाभाव; गऊ के प्रति, गंगा के प्रति, देवस्थान के प्रति तथा आत्मा के प्रति, गुरु के प्रति एवं इष्ट के प्रति सेवाभाव।
मां-बाप की सेवा हमारा पहला धर्म है। किन्तु, आज के तथाकथित प्रगतिशील लोग मां-बाप का परिचय नौकर के रूप में देते हैं। इससे उनकी कोशिकायें नष्ट होती हैं।
परिवार एवं समाज से हमने अनेक सेवायें पाई हैं। हमें उनका कृतज्ञ होना चाहिये। उनको दिशा देना हमारा धर्म है। उन्हें दिशा देकर हम आंशिक रूप में उनके उपकार का बदला चुका सकते हैं।
गाय की श्वास, स्पर्श, दूध, गोबर तथा मूत्र सभी फलदायी हैं। इसीलिये वह माता के समान पूज्य है। उसकी सेवा करना हमारा धर्म है। पहली बार जब मैं आश्रम आया था, तो एक गाय-बछड़ा अपने साथ लाया था। आज तो यहां पर अच्छी-खासी गोशाला है, जिसमें सैकड़ों गायें हैं। इसी प्रकार, गंगा एक पवित्र नदी है। उसकी पवित्रता बनाये रखना हमारा कर्तव्य है। किन्तु, आज गंगा इतनी प्रदूषित हो चुकी है, जिसका कोई हिसाब नहीं। हमारा प्रयास होना चाहिये कि हम गंगा को बचायें। देवस्थान कोई भी हो, उसके प्रति हमारा नमन भाव होना चाहिये। मन्दिर, गुरुद्वारा, मस्जिद, किसी का भी अपमान नहीं होना चाहिये। हर क्षण नमन भाव होना चाहिये, श्रद्धाभाव होना चाहिये। इससे सात्विककोशिकायें जाग्रत होंगी। जिस मन्दिर में निरीह पशुओं की बलि दी जाती है, वहां पर हमारी विचारधारा वहां के पुजारी तथा बलि देने वालों के विरुद्धहोनी चाहिये। वे लोग जल्लाद हैं, किन्तु मन्दिर का अपमान नहीं होना चाहिये।
शरीर को एक मशीन समझो। उसकी संचालक आत्मा है। इस पर विश्वास होना चाहिये। आत्मा, गुरु, एवं परमसत्ता में कोई भेद नहीं है। इनसे एकाकार करने की सोच होनी चाहिये। चाट, मिर्च-मसाला और मांसाहार से सदैव दूर रहो। इनसे हानिकारक एवं तामसिक प्रवृत्ति उत्पन्न होती है। एक चेतनावान्, परमसत्ता से एकाकार ऋषि की गुरु के रूप में प्राप्ति परम सौभाग्य होता है। उस पर पूर्ण निष्ठा एवं विश्वास होना चाहिये। गुरु के साथ आत्मा का रिश्ता होता है।
इष्ट पर भी पूर्ण विश्वास होना चाहिये। किसी व्यक्ति के एक ही मां-बाप होते हैं। इसी प्रकार, हमारी सबकी जननी एक हैं और वह हैं आदिशक्ति जगत जननी भगवती। वही एकमात्र हमारी इष्ट हैं। शेष देवी-देवता सहायक शक्तियां हैं। इसीलिये अपनी इष्ट की आवाज सुनो। उससे जुड़े रहने के लिये धर्म के मार्ग पर चलो। भौतिकता के कारण आपकी 99 प्रतिशत कोशिकायें संकुचित हो चुकी हैं।
भौतिक सामर्थ्यकोई सामर्थ्य नहीं होती। धन-सम्पत्ति तो यहीं पर पड़े रह जायेंगे। सदैव यह सोच बनाकर रखो कि मैं एक अजर-अमर-अविनाशी आत्मा हूँ। मन को मारो नहीं, उसे जगाओ और समाज-सेवा में लगाओ।
साकार गुरु तुम्हारे सामने बैठा है। यह तुम्हारा सबसे बड़ा सौभाग्य है। अधर्मी-अन्यायी लोग और आसुरी शक्तियां आपस में टकरायेंगी। यह सबसे बड़ा सौभाग्य होगा, क्योंकि वे इसी प्रकार से नष्ट होंगे। यह रास्ता कठिन अवश्य है, पर असम्भव नहीं। संघर्षों से घबराओ मत, अन्यथा सन्मार्ग से भटक जाओगे। आज आदर्श नाम की कोई चीज नहीं रह गई है, न तो धर्मक्षेत्र में और न ही राजनैतिक क्षेत्र में। आप लोग सौभाग्यशाली हैं, जो भगवती मानव कल्याण संगठन से जुड़े हैं। सुविधाओं की खोज मत करो, ऊर्जा की खोज करो। कष्टों से मत घबराओ। उन्हीं में फल छिपा हुआ है।
अन्त में, बहन पूजा, सध्ंया एवं ज्योति योगभारती के द्वारा सुसज्जित आरती थालियों के माध्यम से दिव्य आरती का क्रम पूरा किया गया। तत्पश्चात्, परम पूज्य गुरुवरश्री की चरणपदुकाओं के प्रणाम का कार्यक्रम बड़े ही व्यवस्थित ढंग से सम्पन्न हुआ। सद्गुरुदेव भगवान् मंच पर तब तक विराजमान रहे, जब तक एक-एक व्यक्ति ने प्रणाम नहीं कर लिया। प्रणाम क्रम के तुरन्त बाद सबने प्रसाद ग्रहण किया और रात्रि भोजन करके विश्राम किया।

द्वितीय दिवस
अगले दिन 16 अक्टूबर 2010 को भी प्रथम दिवस की भांति प्रारम्भ में भावगीतों और जयकारों काक्रम जारी रहा। परम पूज्य गुरुवरश्री पधारकर मंचासीन हुये। चरण वन्दन होने के उपरान्त, पूर्ण आशीर्वाद समर्पित करके उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा:
जीवन एकपक्षीय नहीं होना चाहिये। आध्यात्मिकता और भौतिकता के बीच सन्तुलन होना चाहिये। नवरात्र के हर पल को जीने का प्रयास होना चाहिये। मानव शरीर में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड समाहित है। हमें अपने लक्ष्य के अनुरूप कार्य करने होते हैं। विचार के अनुरूप शरीर कार्य करने लगता है। हमारी कोशिकायें तदनुरूप जाग्रत् हो जाती हैं। काम, क्रोध-लोभ, मोहादि के भाव जब मन में उठते हैं, तो उसी के अनुसार कोशिकायें जाग्रत् होकर कार्य होने लगते हैं। हमारा लक्ष्य दिव्य है, महान् है। तब कर्म भी हमें बड़े ही करने पड़ेंगे। हमें उस मूल धरातल को मजबूत करना है कि समाज को भिखारी का जीवन न जीना पड़े। अगर आपके अन्दर गुरु का वास है, तो वह कौन सी समस्या है, जिसका सामना आप नहीं कर सकते?
हमारे ऋषियों में बड़ी शक्ति थी, जैसे सूर्य की चाल को रोकना, समुद्र को पी जाना इत्यादि। उन्होंने आशीर्वाद का जीवन नहीं जिया, अपितु कर्मपथ का चयन किया, अपने शरीर को तपाया और नये स्वर्ग का निर्माण किया। वशिष्ठ और विश्वामित्र इसके उदाहरण हैं। तुम भी आशीर्वाद के फलस्वरूप अपनी समस्याओं में उलझकर मत रह जाओ, कर्मवान बनो। धनाढ्य लोग पश्चिम में पैदा होते होंगे, किन्तु भारतवर्ष देवभूमि है। विज्ञान ने निश्चित रूप से तरक्की की है, किन्तु अधिकांशतः इससे आप पतन की ओर गया है और लोग मानसिक रूप से विकलांग हुये हैं।
समाज-सेवा के द्वारा पहले आध्यात्मिकता को बढ़ाओ, भौतिकता तुम्हारे पीछे दौड़ेगी। मशीनों पर आश्रित न होकर अपनी अन्तर्निहित शक्तियों को बढ़ाओ। बीस-पच्चीस साल पहले, नमक-रोटी खाकर लोग तृप्ति का जीवन जीते थे, घर में शान्ति रहती थी। उस समय मनुष्य के भीतर मानवीय मूल्य थे, आज उनका हस हो रहा है। यही दुःख का कारण है।
धन ही सब कुछ नहीं दे सकेगा। तुम अपने दुःख से इतने दुःखी नहीं हो, जितना अपने पड़ोसी को सुखीदेखकर दुःखी हो रहे हो। हर पल तनावग्रस्त रहते हो। इससे ऊर्जा नष्ट हो रही है। आज 90 प्रतिशत बीमारियां तनाव की वजह से हैं। इनसे मुक्ति के लिये सोच बदलने की जरूरत है। हजार परिवारों में एक या दो परिवार ऐसे मिलेंगे, जो अपने बच्चे को सन्मार्ग पर बढ़ा रहे होंगे, अन्यथा सब अपने बच्चों को उल्टी शिक्षा दे रहे हैं।
आज के अधर्मी-अन्यायियों को समाज के दुःख नजर नहीं आते। राजनेता अधर्मी हो चुके हैं। राजनीतिक क्षेत्र, धर्मक्षेत्र और मीडिया, सब पतन की ओर जा रहे हैं। समाज पशुवत् जीवन जी रहा है, अन्याय सहन करने का आदी हो चुका है। वह लुटने और गुलामी का जीवन जीने का आदी हो चुका है। अनीति-अन्याय-अधर्म के खिलाफ कोई भी आवाज नहीं उठाता। नेताओं में सोचने-समझने की शक्ति नहीं है। उनमें से पांच-दस प्रतिशत को छोड़कर, सारे नेता गद्दार हैं। उन्हें फांसी होनी चाहिये। जब तक बेईमानी दूर नहीं होगी, कुछ भी सुधार होने वाला नहीं है। आज प्रजातन्त्र नहीं, गुण्डातन्त्र, माफिया तन्त्र है। अंग्रेजों के समय में इतना पतन नहीं हुआ था, जितना आज हुआ हैं
अज्ञानी लोग आज ज्ञान बांट रहे हैं। ऐसे लोग कथा-वार्तायें सुनाकर समाज को लूट रहे हैं और अपना वैभव बढ़ाने में लगे हैं। इन भ्रष्ट धर्माचार्यों के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाता। हमेशा सत्य बोलने की सामर्थ्य रखो।
समाज में आज पांच महामारियां हैं। यदि उन्हें समाप्त कर दो, तो समाज को पतन की ओर जाने से बचाया जा सकता है। ये महामारियां हैं- नशा, मांसाहार, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता और नास्तिकता। कोई भी नशेड़ी निश्चित रूप से पतन के मार्ग पर जाता है। साथही अपने परिवार के विनाश का भी कारण बनता है। नशा करके वह अपनी निर्दोष पत्नी के साथ गालीगलौज करता है और उसे मारता-पीटता है। उसके बच्चे अभाव का जीवन जीते हैं। इस पक्ष में सरकार के द्वारा समाज को बुरी तरह छला जा रहा है। एक ओर मद्यनिषेध के विज्ञापनों पर करोड़ो रुपये खर्च किये जा रहे हैं और दूसरी तरफ राजस्व कमाने के नाम पर शराब के ठेके दिये जा रहे हैं।
आजकल नई पीढ़ी प्रगतिशीलता के नाम पर मांसाहार की ओर आकृष्टहो रही है। यह अत्यन्त सोचनीय विषय है। मांसाहार से मनुष्य के अन्दर क्रोध, क्रूरता एवं संवेदनहीनता जैसी तामसिक प्रवृत्तियां उत्पन्न होती हें और मानवीय मूल्यों का हस होता है। यही कारण है कि आज का समाज अत्यन्त तनावग्रस्त एवं अशान्त है।
भ्रष्टाचार अमरबेल की तरह ऊपर से नीचे को चलता है। इसलिये ऊपर से ही खत्म करना पड़ेगा। राजनेताओं और धर्मगुरुओं को ठीककरना होगा। शासन-प्रशासन को सुधारना होगा। यह कार्य मेरे अतिरिक्त किसी के वश का नहीं है। मैं इसे करके ही रहूंगा। आप लोग नित्य ‘माँ’ से प्रार्थना करें कि भ्रष्ट राजनेता जल्दी से जल्दी खत्म हों।
आज पूरा समाज जातियों और धर्मों में बंटा हुआ है। जातीयता के संगठन समाज में जहर घोल रहे हैं। इनसे अपने आपको दूर रखो। मन्दिर-मस्जिद के झगड़े में साम्प्रदायिकता उभरकर आती है। यह कब कितना विकराल रूप धारण कर ले, कहना कठिन है। ये सब बीमार मानसिकता के परिणाम हैं। देश की प्रगति बुरी तरह से बाधित होती है। इसलिये, जातीयता साम्प्रदायिकता को तो समाप्त करो और आपसी सद्भाव बढ़ाओ।
नास्तिक व्यक्ति आतंकवादी से भी अधिक खतरनाक होता है। ऐसा भावनाविहीन व्यक्ति कभी भी कुछ भी कर सकता है। इसलिये, उससे सदैव दूर रहना चाहिये। आज के तथाकथित प्रगतिशील लोग नास्तिकता को बढ़ावा दे रहे हैं और अपनी सनातन संस्कृति को समाप्त करने में लगे हैं।
किन्तु, मेरे द्वारा संस्थापित भगवती मानव कल्याण संगठन इन पांचों महामारियों को समूल समाप्त करने के लिये कटिबद्ध है। महाआरतियों और श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठों माध्यम से शक्ति चेतना जन-जागरण तीव्र गति से चल रहा है। लोग नशामुक्त और मांसाहारमुक्त हो रहे हैं। जातीय एवं साम्प्रदायिक भेदभाव मिट रहे हैं तथा लोगों में आस्तिकता जाग रही है। अगले वर्ष मेरे द्वारा एक राजनैतिक दल का गठन किया जायेगा। जब मेरे सच्चे-ईमानदार शिष्य चुनाव जीतकर संसद भवन पहुंचेंगे, तब वे शासन को सुधारेंगे और भ्रष्टाचार का नाम-ओ- निशान मिट जायेगा।
संघर्षों से कभी मत घबराओ। सत्य की ऐसी ज्वाला प्रज्जवलित करो, जिसे कोई बुझा न सके। राष्ट्रीय साप्ताहिक समाचार पत्र ‘संकल्प शक्ति’ इस कार्य में अपूर्व योगदान देगा। धीरे-धीरे इसे दैनिक प्रकाशन बनाया जायेगा।
यहां पर सिद्धाश्रम में शुद्धता-पवित्रता बनाये रखना आपका धर्म है। आप लोग स्वयं इस बात का ध्यान रखें और दूसरों को भी इसके लिये प्रेरित करें। साधना के साथ जनसेवा भी जरूरी है, क्योंकि जनकल्याण में ही आत्मकल्याण निहित है।
यहां सिद्धाश्रम में शारदीय नवरात्र पर वर्ष में मात्र एक जनजागरण शिविर होता है, किन्तु समाज में श्री दुर्गा चालीसा पाठ के माध्यम से एक-एक दिन में सैकड़ों शिविर हो रहे हैं, उन सबमें मेरी उपस्थिति रहती है। अगले वर्ष नवम्बर में देश की राजधानीदिल्ली में भी एक शक्ति चेतना जनजागरण शिविर का आयोजन किया जायेगा। इसमें भारत के ही नहीं, अपितु विश्वभर के समस्त धर्मगुरुओं को मैं ससम्मान आमन्त्रित करता हूँ। वे इस आयोजन में सम्मिलित हों और मेरे साधनात्मक तपबल का सामना करें। सत्यधर्म की स्थापना के लिये यह अत्यन्त आवश्यक है। इस शिविर के माध्यम से हमें अपनी आवाज को विदेश में उठाना है। अपनी नींव को मजबूत करके वट वृक्ष तैयार करना है। अगले साल राजनैतिक दल का गठन किया जायेगा, किन्तु स्वयं मुझे कभी भी चुनाव नहीं लड़ना है। माँ से कर्मवान् बनने का आशीर्वाद लेना है। हम धर्मयुद्ध के योद्धा हैं और आज के अधर्मी-अन्यायी राजनेताओं को बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के अपने आत्मबल से पराजित करके दिखायेंगे। उन्हें अपने आपमें सुधार करने के लिये बाध्य करेंगे, अन्यथा वे चूहे के समान जीवन जियेंगे। ये अधर्मी राजनेता हमें भयावह युद्ध में झोंक रहे हैं। हमें इस भयावह युद्ध से समाज की रक्षा करनी है। मेरे लिये पूरा विश्व मेरा अपना है।
अन्त में, तीनों त्रिशक्तिस्वरूपा बहनों के द्वारा दिव्य आरती क्रम पूरा किया गया। तदुपरान्त, परम पूज्य गुरुवरश्री की चरणपादुकाओं को प्रणाम कर सभी ने प्रसाद ग्रहण किया और भोजनोपरान्त रात्रि विश्राम किया।

तृतीय दिवस-प्रथम सत्र

दिनांक 17 अक्टूबर 2010 को विजयादशमी पर्व पर इस शिविर का अन्तिम दिवस था। उस दिन प्रातः सात बजे से गुरुदीक्षा का कार्यक्रम था। इसमें कुल मिलाकर लगभग पच्चीस हजार से अधिक पुरुषों, महिलाओं तथा बच्चों ने दीक्षा प्राप्त की। सर्वप्रथम, कार्यकर्ताओं के द्वारा सभी दीक्षार्थियों के आज्ञाचक्रको अभिमन्त्रित कुंकुम के तिलक से आच्छादित किया गया। लगभग साढ़े सात बजे ‘माँ’-‘गुरुवर’ के जयकारों के मध्य परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का शुभागमन हुआ। मंचासीन होने के उपरान्त, उन्होंने सबको अपना अशीर्वाद समर्पित किया। इस समय दीक्षा से पूर्व उन्होंने संक्षिप्त चिन्तन दियाः
गुरु-शिष्य का रिश्ता विश्व में सर्वोपरि है। अन्य रिश्ते शरीर को लेकर होते हैं, किन्तु गुरु से सम्बन्ध आत्मिक होता है। गुरु, शिष्य को परमसत्ता तक पहुंचाने की कड़ी है, माध्यम है। वह सदैव शिष्य के कल्याण के लिये सोचता है। जब वह दीक्षा देता है, तो शिष्यों का पूजन कराता है, क्योंकि शिष्यों से यदि वह कुछ लेने लगेगा, तो उन्हें कुछ भी दे नहीं सकेगा। आज के तथाकथित गुरु अपना पूजन कराते हैं और दीक्षा शुल्कके नाम पर भारी रकम लेते हैं।
आत्मा से स्वीकार करें, तो गुरु-शिष्य का रिश्ता प्रगाढ़ हो जाता है। गुरु तो आता ही है शिष्यों को अपनाने के लिये। जो मेरी ओर एककदम चलता है, उसे मैं दस कदम बढ़कर खींच लेता हूँ। गुरु अपने शिष्य से कभी भी सम्बन्ध नहीं तोड़ता, जब कि शिष्य इस सम्बन्ध को तोड़ने के लिये स्वतन्त्र है। चेतनावान् गुरु और परमसत्ता के बीच कोई भेद नहीं है।
‘माँ’ की आराधना सबसे अधिक सहज एवं सरल है। उनके साथ सहायक शक्तियाँ भी रहती हैं। इनमें किसी को भी पहले तिलक लगा सकते हैं, पुष्प समर्पित कर सकते हैं। सूक्ष्म शक्तियाँ कभी रुष्ट नहीं होतीं। ये भ्रांतियां आपको हमेशा तनाव देती रहती हैं। और, माँ तो परम दयालु हैं। अज्ञानता से यदि कोई गलती हो जाय, तो क्षम्य है। किन्तु, जानबूझकर की गई गलती अपराध की श्रेणी में आती है। आराधक में शुद्धता का होना परमावश्यक है।
सिर्फ हमारे माता-पिता ही हमारे जन्मदाता हैं। वे पूजनीय हैं, किन्तु उनके अतिरिक्त, दूसरे रिश्ते भी सम्माननीय हैं। इसी प्रकार, सहायक शक्तियों का भी आशीर्वाद लेना चाहिये, जिससे कि हम माँ की ओर बढ़ सकें।
कक्षा में प्रवेश लेना ही पर्याप्त नहीं है। इसके पश्चात् दत्तचित होकर पढ़ाई करना भी जरूरी है। तभी सफलता की आशा की जा सकती है। इसी प्रकार, दीक्षा लेने के उपरान्त, इस मार्ग पर सतत रूप से बढ़ना है। इससे ज्ञानवान् बनोगे और इसी मार्ग पर चलकर परमसत्ता की प्राप्ति होगी। मेरे द्वारा दिये गये चिन्तनों पर अमल करना नितान्त आवश्यक है। अब नशा और मांसाहार से दूर रहने का दृढ़ संकल्प कर लें कि आगे इन्हें नहीं करेंगे।
आप लोगों में से जो लोग मेरे विचारों से सहमत न हों और दीक्षा न लेना चाहते हों, वे अभी भी उठकर जाने के लिये स्वतन्त्र हैं। यदि कोई देर से आये हों, वे दो मिनट में अन्दर आ सकते हैं। इसके बाद किसी को भी प्रवेश नहीं मिलेगा। जितने लोग पण्डाल के भीतर होंगे, उन्हें मैं अपने मन में बिठा लेता हूँ और शक्तिपात करता हूँ।
अब शान्तचित्त होकर मेरुदण्ड सीधा करके एक सहज प्राणायाम करें। पूजन में बैठने से पूर्व भी ऐसा करना चाहिये। अब मेरे साथ तीन बार ‘माँ’-‘ॐ’का क्रमिक उच्चारण करें। ये वे बीजमन्त्र हैं कि यदि इनका सहारा ले लें, तो सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं। ‘माँ’ के उच्चारण से हम स्थूल से सूक्ष्म में जाने की भावना करते हैं तथा ॐ के उच्चारण से सूक्ष्म से स्थूल में जाने की भावना करते हैं। यह एक ऐसा मन्थन है, जिससे हमारा सूक्ष्म शरीर सक्रिय होने लगता है। इसे सहज मध्यम ध्वनि से करें और गुंजरण पर ध्यान दें। इससे मानसिक शक्ति प्रबल होगी, बाहर का वातावरण शान्त होने लगेगा और मन एकाग्र होगा। इस ध्वनि में वह प्रभाव है, जैसे बीन की ध्वनि का सर्प के ऊपर प्रभाव होता है।
(तत्पश्चात, एक संकल्प बुलवाया गया)
इन शब्दों में जीवन का सम्पूर्ण सार समाहित है। यदि इनका पालन करें, तो कोई भी आपको सत्य पथ से दूर नहीं कर सकता। अब मेरे साथ तीन-तीन बार इन मन्त्रों का उच्चारण करें:
ॐ गं गणपतये नमः- गणेश जी का आशीर्वाद लेने हेतु
ॐ भ्रं भैरवाय नमः- भैरव जीका आशीर्वाद लेने हेतु
ॐ हं हनुमतये नमः- बजरंग बली जी का आशीर्वाद लेने हेतु

ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नमः – माँ का चेतना मंत्र
ॐ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः- गुरु मंत्र

चेतना मंत्र और गुरुमंत्र में कोई भेद नहीं है। इनके उच्चारण से स्वामी सच्चिदानन्द के समस्त स्वरूपों का आशीर्वाद मिलता है। कोई भी मंत्र आगे-पीछे किया जा सकता है। किन्तु, जब सामूहिक रूप से करें, तो जैसा क्रम पुस्तक में दिया गया है, वैसा करें और वैसी ही जानकारी समाज को दें।
घर में परिस्थिति के अनुसार ‘माँ’का मंदिर बना लें। अलग से स्थान उपलब्ध नहीं है, तो कहीं दीवार पर छवि लगा सकते हैं, यहाँ तक कि बैडरूम में भी लगा सकते हैं। इस विषय में अज्ञानी धर्मगुरुओं ने भ्रान्तियाँ पैदा कर रखी है। घर में यदि किसी का देहावसान हो जाता है, तो दाह संस्कार करके स्नान के बाद आराधना होनी चाहिये। अरे! ऐसे समय में आखिर सहारा कौन देगा? धर्म को कभी मत छोड़ो, स्मरण होते रहना चाहिये। सूतक में भी आराधना कर सकते हैं। स्वयं प्रसूता को प्रसव से पूर्व और बाद में मानसिक स्मरण करते रहना चाहिये। बीस-इक्कीस दिन के बाद प्रसूता शुद्ध हो जाती है, तब सामान्य रूप में आराधना करनी चाहिये।
गुरु आपका अपना है। आप गुरु को कितना अपनाते हैं, यह आपके ऊपर निर्भर है। मैं आपको साधक बना रहा हूँ, जो साधु-सन्तों से ऊपर होते हैं। दीक्षा लेते ही आप स्वतः ही भगवती मानव कल्याण संगठन के सम्मानित सदस्य बन जाते हैं।
यहाँ पर शीघ्र ही एक शक्तिपीठ का निर्माण होने जा रहा है। यह मात्र तन की ही नहीं, मन की भी शुद्धि करेगा। गुरु की चेतना तरंगों का लाभ मिलेगा। सरकार साठ साल के बाद रिटायर कर देती है, किन्तु मैं कभी भी किसी को रिटायर नहीं मानता। यहां पर जीवन की अन्तिम श्वास तक आपकी क्षमता निखरेगी और मेरा आशीर्वाद रहेगा।
प्रेतयोनियां यहां पर आकर लाभान्वित होने के लिये लालायित रहती हैं। किन्तु, यह स्थल झाड़-फूंकके लिये नहीं है। इसे भौतिक लाभ का नहीं, अपितु आध्यात्मिक ऊर्जा का केन्द्र समझो। मेरे द्वारा आपको मन में बिठा लिया गया है। लाभ-हानि, जीवन-मरण से ऊपर उठकर जीवनदानी शिष्य बनो और यहां आकर सेवा कार्य करो।
अन्त में, परम पूज्य गुरुवरश्री ने दीक्षित लोगों को निर्देश दिया कि वे मूलध्वज की कम से कम एक परिक्रमा करें और चालीसा भवन में जाकर कम से कम एक चालीसा पाठ करें या सुनें। मस्तक पर सदैव कुंकुम का तिलक लगायें, रक्षाकवच या रक्षा-रूमाल धारण करें और घर में शक्तिध्वज स्थापित करें। साथ ही अपने क्षेत्र में कहीं पर भी यदि महाआरती या श्री दुर्गा चालीसा अखण्ड पाठ हो रहा हो, तो उसमें सम्मिलित हुआ करें।
गुरुवरश्री की चरणपादुकाओं को प्रणाम करके जाते समय सबको निःशुल्क शक्तिजल प्रदान किया गया व गुरुदीक्षा प्राप्ति पत्रक भी भरकर वापस देने को कहा गया।

तृतीय दिवस-द्वितीय सत्र
इस सत्र में सबसे पहले ग्यारह नवयुगलों के विवाह संस्कार योगभारती पद्धति से सम्पन्न होने थे। दो बजे से भावगीतों का क्रम प्रारम्भ हुआ। निर्धारित समय पर ‘माँ’-‘गुरुवर’के जयकारों के बीच परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का पण्डाल में पदार्पण हुआ।जयकारे प्रतीक मिश्रा व अमन शर्मा द्वारा लगवाये गये। गुरुदेव जी के मंचासीन होते ही उनके चरणकमलों का प्रक्षालन एवं वन्दन हुआ और अपना पूर्ण आशीर्वाद समर्पित करके उन्होंने संक्षिप्त चिन्तन दियाः
वे बच्चे-बच्चियाँ सौभाग्यशाली हैं, जो आज इस समय मेरे सम्मुख दाम्पत्य सूत्र में बंधने जा रहे हैं। आजकल समाज में शादियों का प्रारम्भ ही राक्षसी प्रवृति से होता है। नशे में धुत्त लोग शराब परोसकर बारात का स्वागत बैण्ड बाजे से करते हैं, नाचते-कूदते हैं और गालियाँ दी जाती हैं, तब जीवन तो अशान्त रहेगा ही। इसीलिये, मेरे द्वारा योगभारती पद्धति से विवाह कराने की शुरूआत की गई है। यहां का वातावरण पूर्णरूप से सात्त्विक रहता है, माँ का गुणगान अनवरत चल रहा है। अभी ये शादियाँ केवल आश्रम में हो रही हैं। जब मेरी शेष दो बच्चियों की भी शादियाँ हो जायेंगी, तब इस प्रकार की शादियाँ बाहर समाज में करने की अनुमति दे दी जायेगी।
वर पक्ष के भीतर सहयोगी बनकर आने का भाव होना चाहिये, बाराती बनकर आने का नहीं। उनके अन्दर सम्मान पाने की अपेक्षा नहीं होनी चाहिये। लेन-देन की अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिये। कोई मांग नहीं होनी चाहिये। मैंने स्वयं इस विचारधारा को अपनाया है। दहेज मांगने के कारण ही जीवन अशान्त है। हमें कर्मवान् बनना चाहिये। कन्या-पक्ष और वर-पक्ष दोनों को सन्तुलित होना चाहिये। हम आदिशक्ति की सन्तान हैं और उसी की परम्परा को चला रहे हैं। इसलिये, लड़के-लड़की के भेद को छोड़ो।
पर्देकी प्रथा एक बड़ा भारी अभिशापहै। महिलाओं के लिये यह एक दण्ड है। इसे जल्दी से जल्दी दूर करो। इसे दूर करने से पारिवारिक सामंजस्य और प्रगाढ़ होगा।

अब सामूहिक विवाह संस्कार का क्रम प्रारम्भ हुआ। इसमें निम्नलिखित ग्यारह नवयुगलों के विवाह सम्पन्न हुयेः

  1. नीरज कुमार साहू संग मोनी देवी, 2.अनुज पाण्डेय संग अंजलि शुक्ला, 3. अजय कुमार जायसवाल संग रेखा जायसवाल, 4. रंजीत कुमार संग शशिकला चौधरी, 5. महेश साहू संग संजना साहू, 6. अरुण कुमार संग डाली गुप्ता, 7. मनीष वाजपेयी संग कल्पना त्रिपाठी, 8.कान्तनीश पटेल संग सत्यवती पटेल, 9.अमृतलाल संग अर्चना मोगरे, 10. श्रीकान्त मिश्रा संग गीता दुबे, 11. अजय अवस्थी संग पूजा योगभारती।
    भगवती मानव कल्याण संगठन इन सभी के सुखी एवं सफल दाम्पत्य जीवन की शुभकामना देता है।
    असीम हर्ष का विषय है कि त्रिशक्तिस्वरूपा तीनों बहनों में सबसे बड़ी आयुष्मती पूजा दीदी (परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् की ज्येष्ठतम आत्मजा) ने चिरंजीव अजय अवस्थी जी के साथ दाम्पत्य सूत्र में बंधकर इस पावन अवसर को चिरस्मरणीय बना दिया। श्री अवस्थी जी पहले से ही भगवती मानव कल्याण संगठन के समर्पित प्रमुख कार्यकर्ता रहे हैं। सम्प्रति वे इस संगठन के केन्द्रीय महासचिव पद को सुशोभित कर रहे हैं। उनका सारा परिवार परम पूज्य गुरुवरश्री के प्रति पूर्णतया समर्पित है। इस समर्पण के कारण ही उन्हें महाराजश्री के परिवार के सम्बद्ध होने का सौभाग्य मिला है।
    सर्वप्रथम समस्त नवयुगलों को संकल्प की सामग्री देकर संकल्प बुलवाया गया और यह सामग्री पवित्र शक्तिध्वज को अर्पण की गई। बताया गया कि इसे बांधकर सदैव सुरक्षित रखेंगे और इस संकल्प का आजीवन पालन करेंगे।
    तदुपरान्त, वरों-कन्याओं ने परस्पर माल्यार्पण किया तथा उनके परिजनों एवं रिश्तेदारों ने वर के रक्षाकवच तथा कन्या की चुनरी के बीच मौली के द्वारा गठबन्धन किया। इसे भी इन नवदम्पतियों के द्वारा आजीवन सुरक्षित रखा जाएगा और यदि इनमें कभी कोई असामंजस्य उत्पन्न होता है, तो रातभर अपने तकिये के नीचे रखकर सोने से सामंजस्य आ जाएगा। अन्त में, मौली गठबन्धन के क्रम में उपस्थित सभी जनसामान्य की शुभकामनाओं एवं आशीर्वादस्वरूप पूज्यनीय माता जी, बहन सन्ध्या एवं ज्योति योगभारती के द्वारा भी गठबन्धन किया गया।
    अब वरों ने कन्याओं की मांग में कुंकुम (सिंदूर) भरा तथा उन्हें मंगलसूत्र पहनाया। तत्पश्चात्, फेरों का क्रम प्रारम्भ हुआ। वर-कन्या दोनों ने हाथों में पुष्प लेकर दिव्य मंच के सात फेरे लगाए। इस समय वर-कन्या आगे-पीछे न होकर, बराबर-बराबर चले और कन्या वर के वाम भाग में रही। ये फेरे क्रमशः पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश, वायु तत्त्वों तथा दृश्य एवं अदृश्य जगत् की समस्त स्थापित शक्तियों को साक्षी मानकर लगाए गए और गुरुवरश्री को प्रणाम निवेदन के साथ पुष्प समर्पित किये गये।
    अन्त में, सभी नवदम्पतियों ने साथ जाकर मूलध्वज एवं चालीसा भवन में एक-एक परिक्रमा की और दिव्य आरती के पहले आकर पूज्यनीय भगवान् के चिन्तन को सुना। इस प्रकार, यह सामूहिक विवाह क्रम बिना किसी तड़क-भड़क एवं आडम्बर के शीघ्र ही सम्पन्न हो गया। अब पुनः परम पूज्य महाराजश्री का दिव्य उद्बोधन प्रारम्भ हुआः
    नवरात्र के नौ दिन तथा विजयादशमी! ये दस दिन अति महत्त्वपूर्ण एवं शुभ दिन होते हैं। इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य, बिना ग्रह-नक्षत्र का विचार किये, किया जा सकता है।
    रावण को हर साल जलाया जाता है, किन्तु उसी समय रावण की प्रवृत्ति के लोग वहाँ पर उपस्थित रहते हैं। दुष्प्रवृत्तियों के रूप में रावण तो व्यक्ति के अन्दर बैठा है। आपको उन दुष्प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। विषय-विकारों से दूर रहना चाहिए। इससे आपके शरीर की सतोगुणी कोशिकाएं प्रभावक होती हैं।
    पर्वों-त्योहारों को सहज भाव से मनाना चाहिए। इस अवसर पर गहन चिन्तन-मनन करना चाहिए कि आप कहां जा रहे हैं? हमारे पूर्वजों ने, ऋषियों ने जो मार्ग दिया है, उससे भटक गए हैं। आज पर्वों पर नृत्य होते हैं, बार-बालाओं के डान्स का आनन्द लिया जाता है। हफ्तों पहले से गरबा डान्स की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। धर्म अब नौटंकी बनकर रह गया है और सत्य से कोसों दूर चला गया है।
    देवी-देवता किसी के सिर पर नहीं आते। वे तो हमें दिव्य दर्शन तथा ज्ञान देते हैं। यदि कोई कहता है कि उसके सिर पर कोई देवी-देवता आते हैं, तो समझ लीजिये कि वह व्यक्ति या तो पागल है, या नाटककर रहा है। आप चाहें, तो उसे तमाचा मार सकते हैं, वह आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा। तन्त्र-मन्त्र के द्वारा समाज का पतन हो रहा है। इसके विरुद्ध बोलने वाला कोई नहीं है। इस ओर धर्माचार्यों की निगाह नहीं जाती। आपको बुरी तरह से छला जा रहा है।
    हमें अपना बहुमुखी विकास करना है। इससे हम परमसत्ता के नजदीक होते जाएंगे। जो कुछ हमें ‘माँ’ से मिल सकता है, वह कहीं से भी नहीं मिल सकता। अपने घर में श्री दुर्गा चालीसा का अखण्ड पाठ कराओ। इससे आपकी कई पीढ़ियाँ तर जाएंगी, उन्हें प्रेत-योनि से मुक्ति मिल जाएगी।
    नई पीढ़ी आज माता-पिता की उपेक्षा कर रही है, अवज्ञा करती है। इसमें कहीं न कहीं स्वयं माता-पिता दोषी हैं। उन्होंने बच्चों का ठीक से मार्गदर्शन नहीं किया। मोहवश उन्होंने उन्हें अत्यधिक प्यार दिया और सन्मार्ग की ओर नहीं बढ़ाया। माता-पिता का धर्म-कर्म बनता है कि वे अपनी सन्तान का निर्माण इस प्रकार से करें, जिस प्रकार कुम्हार घड़े का निर्माण करता है। वह निर्माणाधीन घड़े के भीतर हाथ डालकर बाहर से चोट मारता है। इसी प्रकार, माता-पिता भीतर से सन्तान के प्रति स्नेह रखें, किन्तु बाहर से उसे ताड़ते रहें, तब बच्चे कभी सन्मार्ग से भटक नहीं पाएंगे।
    कुछ धर्माचार्यों ने भ्रान्ति फैलाई है कि गृहस्थों को ‘ॐ’का जाप नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे वैराग्य उत्पन्न होता है, जो गृहस्थों के लिए उपयुक्त नहीं है तथा ‘ॐ’का जाप मात्र उनके लिए है जो गृहस्थ का त्याग कर चुके हैं। यह बिल्कुल निराधार बात है। बल्कि, वास्तविकता यह है कि सत्य की ओर जाने से कभी भी वैराग्य नहीं होता। इस प्रकार की भ्रान्तियों से सदैव सजग रहो।
    समाधि जीवन की शून्यता है, पूर्णता नहीं। कोई भी व्यक्ति समाधि प्राप्त कर सकता है, किन्तु सत्य की खोजकोई नहीं करता। धर्म-अध्यात्म के प्रति भूख पैदा करो, भौतिकता की भूख को टाल दो और सत्यता का जीवन जिओ।
    जितनी सामर्थ्य आज तकके सारे ऋषियों में थी, उससे करोड़ों गुना सामर्थ्य आपके गुरु के भीतर है। मेरी ऊर्जा आप लोगों के माध्यम से कार्य करेगी। धन को धर्म में बदलना शुरू करो और अपने बच्चों को संस्कारवान् बनाओ। आपके पास धन है, तो कुछ नहीं है। धर्म है, तो सब कुछ है। धर्म चला गया, तो आपके पास कुछ नहीं बचेगा।
    अन्त में, परम पूज्य गुरुवरश्री ने विभिन्न कार्यों में लगे कार्यकर्ताओं की भूरि-भूरि प्रशंसा की और इस शिविर में सम्मिलित लोगों को यह कहते हुये आशीर्वाद प्रदान किया कि उन्होंने कुछ असुविधाओं के बावजूद धैर्य एवं सन्तोष का परिचय दिया और इस अवधि में सभी पूर्ण अनुशासित एवं मर्यादित रहे।
    तदुपरान्त, नित्य की भांति आरती क्रम पूरा किया गया। इस बार एक विशेष उल्लेखनीय बात यह रही कि इस क्रम का नेतृत्व कर रही त्रिशक्तिस्वरूपा तीनों बहनों के साथ श्री अजय अवस्थी जी भी उनके साथ सम्मिलित हुए, क्योंकि आज से वे गुरु परिवार के सदस्य बन गए। अब सभी ने पंक्तिबद्ध होकर गुरुवरश्री की चरणपादुकाओं को प्रणाम किया और प्रसाद ग्रहण किया।
    इस प्रकार, तीन दिन तक चला यह विशाल दिव्य आयोजन पुलिस प्रशासन के सहयोग के बिना शान्तिपूर्वक हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हो गया। ‘माँ’-‘गुरुवर’की कृपा से कोई भी अप्रिय घटना नहीं हुई। परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् के द्वारा छेड़ा गया जनजागरण का यह विलक्षण अभियान अब तीव्र गति पकड़ चुका है। दुनिया की कोई भी शक्ति अब इसे रोक नहीं पाएगी। धर्मयुद्ध के योद्धाओं की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ रही है। देश में ‘माँमय’ वातावरण निर्मित हो रहा है और देखते ही देखते इसी पीढ़ी में आसुरी शक्तियाँ धराशायी हो जाएंगी। ये अधर्मी-अन्यायी लोग या तो गुरुचरणों में आकर स्वतः ही स्वयं को सुधार लेंगे, अन्यथा उन्हें जनता-जनार्दन सड़क पर लाकर धूल चटाएगी। दुनिया देखेगी कि हम इस धर्मयुद्ध को आत्मशक्ति के बल पर जीतेंगे।

जय माता की - जय गुरुवर की

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