त्रिदिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर, सिद्धाश्रम धाम, ब्यौहारी (म.प्र.), 12-14 अक्टूबर 2013

वर्तमान में हमारा देश लगातार पतन की ओर जाता दिखाई दे रहा है। जहाँ देखो, हर तरफ पापाचार एवं दुराचार व्याप्त है। आम आदमी दुःखी और परेशान है। इस दुरवस्था के लिए प्रमुख रूप से हमारे भ्रष्ट राजनेता और धर्मगुरु ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि वे ही समाज को दिशा देते हैं। उन्होंने उसे सही दिशा नहीं दी, बल्कि स्वयं सन्मार्ग से भटक गए हैं।
इस समय धर्मगुरु जनता का आध्यात्मिक मार्गदर्शन करने की बजाय, शिविरों के माध्यम से कथा-वार्ताएं सुनाकर और योग के नाम पर मात्र आसन-प्राणायाम सिखाकर लोगों से भारी धन लूट रहे हैं। अपने शरीर को साधना में तपाने के स्थान पर वे विलासिता का जीवन जी रहे हैं। उनमें से कुछ तो यौन शोषण में भी संलिप्त हैं। उधर राजनेता भी प्रायः समाजसेवा न करके सरकारी खज़ाने से धन लूट रहे हैं और जेल की हवा खा रहे हैं। और, जनता है कि उन्हीं धर्मगुरुओं और राजनेताओं के पीछे अन्धी होकर दौड़ रही है। इस तरह धर्मगुरु, राजनेता और जनता सभी पतन के मार्ग पर जा रहे हैं।
परिणामस्वरूप, आज धर्म, मानवता और राष्ट्र के ऊपर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् योगिराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज इस स्थिति से अत्यन्त व्यथित हैं। अतः इनकी रक्षा के लिए आपने समाज को क्रमशः पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम, भगवती मानव कल्याण संगठन तथा भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की त्रिधारा प्रदान की है, जिसमें मानवजीवन की पूर्णता समाहित है।
इस वर्ष शारदीय नवरात्र के पावन पर्व पर 12-14 अक्टूबर को सिद्धाश्रम में आयोजित त्रिदिवसीय शक्ति चेतना जनजागरण शिविर में देश-विदेश से आए लाखों लोगों ने इस त्रिवेणी में अवगाहन किया। इन तीनों दिनों में उन्होंने धर्मसम्राट् परमहंस योगिराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के ओजस्वी चिन्तन को हृदयंगम किया और अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध उठ खड़े होकर संघर्ष करने का संकल्प लिया।
शिविर के अन्तिम दिन विजयादशमी को प्रातः सात बजे लगभग दस हज़ार लोगों ने गुरुदीक्षा प्राप्त की तथा आजीवन पूर्ण नशामुक्त एवं मांसाहारमुक्त रहने का संकल्प लिया। इसी दिन सायंकालीन सत्र में परम पूज्य गुरुवरश्री की पावन सन्निधि में छः नवयुगलों के विवाह संस्कार योगभारती विवाह पद्धति के अनुसार बिना दहेज तथा बिना किसी आडम्बर के सामूहिक रूप से सम्पन्न हुए। उल्लेखनीय है कि इस अवसर पर सिद्धाश्रमरत्न एवं केन्द्रीय मुख्य सचिव श्री आशीष शुक्ला, उर्फ ‘राजू भैया’ भी परिणय सूत्र में बंध गए
इस विशाल अलौकिक आयोजन में परम पूज्य गुरुवरश्री के द्वारा गठित भगवती मानव कल्याण संगठन के विभिन्न प्रान्तों से आए लाखों सदस्यों के साथ-साथ ‘माँ’ के भक्तों, श्रद्धालुओं, जिज्ञासुओं तथा क्षेत्रीय जनता और राष्ट्रीय, प्रान्तीय एवं सम्भागीय स्तर के जनप्रतिनिधियों, कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं प्रशासनिक अधिकारियों व प्रबुद्ध वर्ग के लोगों की विशिष्ट उपस्थिति रही।

जयकारे लगाते हुए शक्तिस्वरूपा बहनें

प्रारम्भिक तैयारियां-
पिछले वर्षों में अनुभव किया गया है कि शिविरार्थियों की भीड़ साल-दर-साल गुणोत्तर श्रेणी में बढ़ती जा रही है। इस कारण समूचे आश्रम परिसर को गत चार-पांच महीनों में पूरी तरह से व्यवस्थित कर दिया गया था, ताकि आवासीय पण्डाल लगाने के लिए और अधिक स्थान उपलब्ध हो सके तथा शिविरार्थियों को समायोजित किया जा सके। इसके साथ ही तीर्थयात्रियों की दैनन्दिन बढ़ती संख्या को आवासीय व्यवस्था प्रदान करने के लिए दो नए विशाल स्थायी टिनशैड्स का निर्माण कराया गया।
जिस स्थान पर इतना विशाल जनसमूह एकत्र होता है, स्वाभाविक ही वहां पर मलजल के निपटान की समस्या बहुत विकट होती है। अतः इसके समाधान के लिए दूर-दूर तीन-चार स्थानों पर अस्थाई स्वक्षालन शौचालयों का निर्माण कराया गया तथा वहीं पर स्नान करने के लिए बोरिंग कराकर जलापूर्ति की व्यवस्था की गई। साथ ही, तीन अतिरिक्त स्थानों पर स्वच्छ शीतल पेयजल की स्थायी व्यवस्था भी की गई।
यह भी उल्लेखनीय है कि नशामुक्त श्रमिकों वाली निर्माता कम्पनी की अनुपलब्धता के कारण काफी समय से प्रस्तावित नए श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ भवन का निर्माण नहीं हो पा रहा था। प्रसन्नता का विषय है कि अब नशामुक्त कम्पनी मिल गई है और इस भवन का निर्माण भी प्रारम्भ हो चुका है।
सेवा-श्रमदान का कार्य करने वाले अनेक गुरुभाई-बहनें नवरात्र प्रारम्भ होने से पहले ही आश्रम पहुंच गए थे। उन्होंने नवरात्र की पूरी अवधि यहां पर रहकर सेवा-साधना में व्यतीत की तथा जीतोड़ मेहनत करके विभिन्न कार्यों में अपना अमूल्य योगदान दिया।
इस वर्ष देवराज इन्द्र की कुछ अधिक ही कृपा रही। सितम्बर के अन्त तक मौसम बिल्कुल खुल चुका था, किन्तु अक्टूबर प्रारम्भ होते ही आकाश में बादल छा गए और पानी गिरने लगा, जैसे गया हुआ मानसून फिर से लौट आया हो। इस प्रकार छठे नवरात्र, 10 अक्टूबर तक लगभग प्रतिदिन वर्षा होती रही, जिसके कारण शिविर की तैयारियों में बाधा पड़ी और कितने ही कराए गए कार्य खराब होगए। सभी चिन्तित थे कि इस प्रकार कैसे चलेगा? अभी तक न तो शिविर पण्डाल और न ही किसी आवासीय पण्डाल का निर्माण हुआ था।
ग्यारह अक्टूबर को रातभर पण्डाल निर्माण का कार्य पूर्ण करके देर शाम तक किसी प्रकार शिविरार्थियों को सम्बन्धित पण्डालों में व्यवस्थित कर दिया गया। भास्कर भगवान् के दर्शन प्राप्त करके सबने चैन की सांस ली कि अब अन्त तक मौसम साफ रहेगा। इस प्रकार, शिविर के प्रथम दिवस का कार्यक्रम सुचारू रूप से सम्पन्न भी हो गया।
किन्तु, द्वितीय दिवस का कार्यक्रम प्रारम्भ होने से ठीक पहले अचानक फिर से वर्षा प्रारम्भ हो गई, जो कुछ देर बाद बन्द हो गई और सब शिविरार्थी प्रसन्नचित्त होकर पण्डाल में बैठ गए। परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का उद्बोधन चल ही रहा था कि पुनः तेज़ वर्षा प्रारम्भ हो गई, जो कार्यक्रम के अन्त तक चली। किन्तु, सभी शिविरार्थी इसकी परवाह किये बिना उसी तन्मयता के साथ महाराजश्री को सुनते रहे। कार्यकर्ता भी जहां पर तैनात किये गए थे, वहीं पर तरुवर की भांति अटल खड़े रहे और बारिश में भीगे तेज़ हवा के थपेड़े खाकर कांपते रहे। फिर भी किसी के भी मुख पर दुःख या चिन्ता की रेखा तक नहीं उभरी। इस प्रकार, सभी ने अपने आपका साधक होने का परिचय दिया, जो जीवन के उतार-चढ़ावों में समभाव बनाए रखता है।
परम पूज्य गुरुवरश्री के प्रति अगाध श्रद्धा एवं आस्था के कारण किसी भी व्यक्ति से कोई शिकायत सुनने को नहीं मिली। भक्तों की परेशानी से महाराजश्री इतने व्यथित एवं बेचैन रहे कि आपश्री ने दो रातें नितान्त विश्रामरहित बिताईं।
अन्तिम दिन प्रातः सात बजे गुरुदीक्षा का कार्यक्रम था। नियत समय पर लगभग दस हज़ार दीक्षार्थी शिविर पण्डाल स्थल पर उपस्थित हुए तथा आकाश में छाए घने बादलों के बावजूद यह कार्यक्रम निर्विघ्न सफल हो गया। सायंकाल छः जोड़ों के विवाह भी योगभारती विवाह पद्धति के अनुसार बड़े आराम से सम्पन्न हो गए। किन्तु, दिव्य आरती होने के उपरान्त जैसे ही श्री गुरुचरणपादुकाओं का नमन-वन्दन एवं प्रसाद वितरण प्रारम्भ हुआ, धुंआधार वर्षा प्रारम्भ हो गई और सबने जमकर प्रकृति माँ की गोद का आनन्द लिया तथा स्वयं को धन्य महसूस किया।
इस प्रकार, इस समुद्री तूफान के कारण जहां अन्य प्रान्तों में अरबों-खरबों रुपये की सम्पत्ति की व जनहानि हुई, वहीं यहां पर मात्र थोड़ी सी वर्षा होकर यह प्राकृतिक आपदा टल गई तथा चहुँ ओर आनन्द ही आनन्द रहा।

दैनिक कार्यक्रम
शिविर पण्डाल में प्रतिदिन प्रातः सात से नौ बजे तक मंत्रजाप एवं ध्यान-साधना का क्रम चलता रहा तथा अपराह्न दो से लगभग तीन बजे तक भावगीतों का कार्यक्रम रहता था। तदुपरान्त ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगाए जाते थे, जिनके बीच परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् का शुभागमन होता था। त्रिशक्तिस्वरूपा बहनों पूजा, संध्या एवं ज्योति योगभारती जी के द्वारा उनके पदप्रक्षालन एवं वन्दन के उपरान्त भी भावगीतों का क्रम जारी रहता था। अन्त में शक्तिस्वरूपा बहन संध्या एवं ज्योति योगभारती जी के द्वारा पुनः ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे लगवाने के पश्चात् गुरुवरश्री सबको अपना पूर्ण आशीर्वाद समर्पित करके अपना उद्बोधन प्रारम्भ करते थे।

चिन्तन प्रदान करते हुए सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज

दिव्य उद्बोधनः प्रथम दिवस
जीवन में हर पल का महत्त्व होता है। इसलिए एक पल भी व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। यहां पर हर पल परिवर्तन आ रहा है। यहां की ऊर्जा देश में ही नहीं, विदेश तक में जा रही है। परिवर्तन डालने का जो कार्य मुझे ‘माँ’ ने दिया है, हम उस लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं। हमें हर पल के उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। सौभाग्य तो हम सबको मिला है, किन्तु हमने उसका कितना उपयोग किया, इस बात का महत्त्व है। हमें अपनी चेतना को ऊर्ध्वगामी बनाना चाहिए। ये क्षण जो प्राप्त हो रहे हैं, पूरे मन-मस्तिष्क को एकाग्र करके उनका उपयोग करें।
एक समय आएगा, जब मेरा सान्निध्य प्राप्त करने के लिए लाखों-करोड़ों लोग तड़पेंगे। मैं परम सिद्धाश्रम सिरमौर स्वामी सच्चिदानन्द का अवतार हूँ और मानव के पतन को रोकने आया हूँ। जितनी व्याकुलता-तड़प बनी रहती है, उन्हीं को लेकर मैंने आपसे सम्बन्ध जोड़ा है। मैं किसी चीज़ का भूखा नहीं हूँ। मैं मानवता की रक्षा के लिए अपने आपको तपाने आया हूँ। आपसे मेरा आत्मिक रिश्ता है, जिसे मैंने अन्तिम सांस तक के लिए जोड़ा है।
मेरी यात्रा, जो प्रारम्भ में थी, आज भी वही है और भविष्य में भी वही रहेगी। इसे आप कितना समझ पाते हैं, यह आपके ऊपर रहेगा। आज पूरी मानवता अज्ञान में उलझी हुई है। हर व्यक्ति बड़ी जल्दी रासरंग में रसबस जाता है, किन्तु सत्य की यात्रा कठिन होती है, पर आनन्द उसी में छुपा होता है। आज जो पतन हो रहा है, उसे रोकने के लिए ‘माँ’ की आराधना ही एकमात्र मार्ग है। वही जीवन को परिवर्तित कर सकती है।
परिवर्तन के लिए लोगों को कर्मवान् बनाना पड़ेगा। मैं भी अन्य धर्मगुरुओं की तरह कथा-वार्ताएं सुनाता रह सकता था, किन्तु उससे परिवर्तन नहीं आएगा। यहां पर ‘माँ’ का गुणगान इसीलिए प्रारम्भ किया गया, जिससे आपका एक पल भी बेकार न जाय। और, इससे दूर-दूर तक परिवर्तन आ रहा है। घर-घर में ‘माँ’ की ज्योति जल रही है, आरती एवं चालीसा का पाठ हो रहा है और लोग नशा-मांस से मुक्त हो रहे हैं। सत्य को देखने-समझने की आवश्यकता होती है। आप लोग सोचें, विचार करें और संशयों से दूर रहें।
श्री दुर्गाचालीसा का पाठ कोई सामान्य पाठ नहीं है। इसे चेतनता से बैठकर निष्ठा से करने की आवश्यकता है। जीवन रूपान्तरित होता चला जाएगा। इसमें डूबकर तो देखो। आत्मा पर पड़े आवरणों के कारण मन एकाग्र नहीं होता। इन्हें हटाने के लिए ही गुरु की आवश्यकता होती है।
हमारा आध्यात्मिक इतिहास बताता है कि देवता भी कई बार असफल हुए हैं। किन्तु, परमसत्ता प्रकृति माँ कभी भी असफल नहीं होती। वह सबकी जन्मदात्री हैं। एक साधक के रूप में उनकी भक्ति में डूबो। अपनी सामर्थ्य के बारे में मत सोचो और अबोध बालक बन जाओ। अपनी माँ की उंगली पकड़कर चलता हुआ बच्चा कभी भी अपनी सामर्थ्य नहीं देखता। उसे अपनी माँ की सामर्थ्य पर विश्वास होता है। जिस दिन आपको जगज्जननी जगदम्बा की सामर्थ्य का ज्ञान हो जाएगा, तुममें परिवर्तन आता चला जाएगा।
पूर्व कर्मों के अनुसार जीवन में दुःख-तकलीफें तो आएंगी ही। जब भी ‘माँ’ की साधना-आराधना में बैठें, कामनाओं की बौछार मत करें। इससे ऊपर उठें और सत्य की दिशाधारा को पकड़ें। आपकी समस्याओं का समाधान स्वतः होता चला जाएगा। जिस हाल में हमें ‘माँ’ रखे, उसी में आराधना करते रहें। उसके प्रति तड़प और भाव पैदा करें तथा निष्ठा एवं विश्वास के साथ आराधना करें। तब ही अन्तःकरण की चेतनातरंगें ऊर्ध्वगामी होंगी।
यह कलिकाल संघर्षों से भरा हुआ है। इसलिए ‘माँ’ की भावभूमि में डूबो। यह धाम अभी प्रारम्भिक चरण में चल रहा है। नए श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ भवन का निर्माण कार्य प्रारम्भ हो चुका है। मैं यहां के वातावरण को चेतन बना रहा हूँ। यहां के चप्पे-चप्पे पर मेरे चरण हज़ारों बार पड़ चुके हैं।
कोई भी देवी-देवता कभी भी किसी के सिर पर सवार नहीं होते। यदि कहीं पर ऐसा हो रहा है, तो या तो वह व्यक्ति नाटक कर रहा है, या पागल है, या किसी भूत-प्रेत से पीड़ित है। अपने अन्दर आत्मकल्याण और जनकल्याण की भावना जगाओ। परोपकार करने से बुद्धि निर्मल रहती है। इसलिए समाजकल्याण के कार्य में लगो। इसी उद्देश्य से आप लोग यहां पर बैठे हैं। उतावलेपन की ज़रूरत नहीं है। अपनी नींव को मज़बूत करो। मेरी यह यात्रा कोई एक जन्म की नहीं है। हमें कोई दिखावा या प्रदर्शन नहीं करना है। समाज देखे या न देखे, परमसत्ता हमें हर पल देख रही है।
अपनी उपार्जित पूंजी को कोई बांटना नहीं चाहता। किन्तु, आपका गुरु आपको हर पल अपनी साधना लुटा रहा है। यह शिविर कोई सामान्य शिविर नहीं है। यहां पर आपकी पात्रता विकसित होती जा रही है। ब्राह्ममुहूर्त में जगना सीखो। यदि ऐसा नहीं कर सकते, तो कम से कम सूर्योदय से पहले अवश्य उठ जाओ। मैं स्वयं प्रातः ढाई-तीन बजे उठ जाता हूँ। एलार्म की ज़रूरत नहीं होती। एक क्रम बना हुआ है। मेरे अन्दर हर पल त्याग और तड़प बनी रहती है। अब मैं समाज के लिए साधना करता हूँ। ऐसा ही जीवन जीने के लिए मैं आपको प्रेरित करता हूँ। इसलिए सूर्योदय से पहले उठो, स्नान करलें, तो और अच्छा तथा सबसे अच्छा यह होगा कि अपनी आराधना भी पूर्ण कर लें।
अचानक सिद्धि नहीं हो जाएगी। इसके लिए आपको नियमित रूप से अपना शरीर तपाना पड़ेगा। यहां पर आश्रम में हर वर्ष नवम्बर से फरवरी तक निःशुल्क योग सिखाया जाता है। भोजन-आवास व्यवस्था भी सदैव निःशुल्क रहती है, किन्तु कोई भी आगे नहीं आता। आप लोग सांस लेना भूल चुके हैं। इसलिए कम से कम सहज प्राणायाम ही अपनालो। प्राणसाधना से बड़ी सामर्थ्य किसी साधना में नहीं है। यदि प्राणों को साध लोगे, तो परमसत्ता तुमसे दूर नहीं रहेंगी।
मैं तुम्हें शून्य से उठाने आया हूँ। मन को शान्त करके सहज प्राणायाम में बैठो। धीरे-धीरे सांस अन्दर भरो (पूरक), फिर जितनी देर सहजता से रोक सको (कुम्भक), रोको और फिर धीरे-धीरे पूरी सांस बाहर निकाल दो (रेचक)। यह क्रिया प्रतिदिन कम से कम पन्द्रह मिनट तक करो। इससे तुम्हारी आयु बढ़ेगी तथा बुद्धि और कार्यक्षमता भी बढ़ेगी। साथ ही चेतना चैतन्य होती चली जाएगी। प्राचीनकाल में लोग सौ-डेढ़ सौ वर्ष तक जीते थे, जबकि आज पचास-साठ साल के बाद वे मृत्यु का इन्तज़ार करने लगते हैं। इसका कारण यह है कि आज के मनुष्य की कोशिकाएं तथा अंग-प्रत्यंग संकुचित होते जा रहे हैं। प्राणसाधना से यह संकुचन समाप्त होजाता है, कोशिकाओं की जड़ता समाप्त होती है तथा सतोगुणी ऊर्जा प्रभावक होती है।
आज भौतिकता में लिप्तता इतनी बढ़ चुकी है कि लोगों की नींद गायब हो गई है, किन्तु आराधना में बैठने पर उन्हें नींद आने लगती है। लोग विकारों में लिप्त हो गए हैं। कामवासना सबसे बड़ा पतन का कारण है। यह सबसे बड़ी शत्रु है, क्योंकि हर पल पतन की ओर ले जाती है। वास्तव में, सृष्टि को चालित रखने के लिए प्रकृति ने यह उपहार दिया था, किन्तु मनुष्य ने उसकी दिशा ही बदल दी। वासना से साधना की ओर चलो। साधना तुम्हें उत्थान की ओर ले जाएगी। जो आनन्द ब्रह्मचर्य में है, वह वासना में बिल्कुल भी नहीं है।
एक योगी का साधनात्मक तपबल प्रभावक होता है। सन्तानोत्पत्ति के उपरान्त मैं सपत्नीक मन-वचन-कर्म से पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता हूँ। जो अपने आपको बालब्रह्मचारी कहते हैं, उनकी चेतना तरंगों की तुलना मेरी चेतना तरंगों से करें। वैज्ञानिक यंत्रों के द्वारा ऐसा किया जा सकता है। तब मेरे साधनात्मक तपबल का पता चलेगा। धर्मगुरुओं को सत्यपरीक्षण की चुनौती मैंने इसीलिए दी थी।
मुक्ति काशी में मरने से नहीं होती। यह साधु-सन्तों के द्वारा फैलाया गया भंवरजाल है। वहां मरने से वे स्वयं भी मुक्त नहीं होगे। जीवन के रहते अपने साधनात्मक तपबल के द्वारा किसी भी भौतिक वस्तु की इच्छा जब एक सौ एक प्रतिशत समाप्त हो जाय और केवल परमसत्ता से मिलने की इच्छा रहे, तब वहीं से सच्ची मुक्ति का मार्ग खुलता है। मेरी यह यात्रा लम्बी ज़रूर है, कठिन भी है, किन्तु असम्भव नहीं है।
जन्म-मृत्यु के बीच के आनन्द को हर व्यक्ति नहीं समझ पाता। स्वयं से सम्बन्धित एक भी इच्छा जब तक रहेगी, तो मृत्यु के समय वेदना, दुःख और तकलीफ होगी और पुनः जन्म लेना पड़ेगा। जब अपनी स्वयं के लिए इच्छा समाप्त होजाती है, तो मृत्यु के समय सन्तोष और आनन्द मिलता है और पुनः जन्म नहीं लेना पड़ता, व्यक्ति मुक्त हो जाता है। मेरी स्वयं की लिप्तता सदैव केवल मेरे लक्ष्य से रहती है, जो जनकल्याण है।
रास्ते सबके लिए खुले हैं। तुम दो कदम चलो तो। भौतिक जगत् का सम्बन्ध केवल तुम्हारे कर्तव्यों को लेकर जुड़ा होना चाहिए, अन्यथा तुम्हारा जीवन आध्यात्मिक होना चाहिए। धीरे-धीरे मुक्ति पथ पर बढ़ते चले जाओगे। यह जीवन की सबसे बड़ी सफलता होगी। ‘माँ’ से आपका रिश्ता कभी टूटे नहीं और इस धाम से भी सदैव जुड़े रहना चाहिए। इस बात का सदैव ध्यान रहे कि तुम्हारा वास्तविक कल्याण इसी में छुपा है।
मेरे द्वारा प्रदान की गई त्रिधारा में जिसने डुबकी लगा ली, उसका पतन कभी हो नहीं सकता। इनके लिए सदैव समर्पित रहो। यह त्रिधारा पूजा-संध्या-ज्योति के द्वारा चलेगी और मेरी ऊर्जा इसके साथ जुड़ी रहेगी। पूरी निष्ठा एवं विश्वास से अपना यह जीवन इसके लिए समर्पित कर दो और अपनी पूरी सामर्थ्य का उपयोग करो। जो व्यक्ति धर्म, मानवता और राष्ट्र की रक्षा नहीं करता, वह अधर्मी-अन्यायी है, बल्कि पशु से भी बदतर है। स्वयं मुझे किसी चीज़ की आवश्यकता नहीं है, किन्तु मेरा कर्तव्य है कि मैं आपकी रक्षा करूं। जब तक आप लोग अधर्मी-अन्यायियों की गुलामी करते रहोगे, पतन होता ही रहेगा। मैं समाज को लुटते हुए नहीं देख सकता। मुझे राजसत्ता की कोई लालसा नहीं है। इसीलिए भारतीय शक्ति चेतना पार्टी आपको दी गई है।
मेरी यह यात्रा लम्बी है और संघर्षपूर्ण है। आज हर कोई परिवर्तन चाहता है, क्योंकि व्यथित है। हमारे देश का कोई भी नेता अधर्मी-अन्यायी न हो और चरित्रहीन न हो। इसीलिए, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है कि किसी भी सांसद अथवा विधायक की सदस्यता समाप्त हो जाएगी, यदि वह सज़ायाफ्ता होगा। वह चुनाव भी नहीं लड़ पाएगा। न्यायपालिका ने यह बहुत ठीक किया है। ऐसा प्रवाह पहले कभी नहीं उठा। मेरी चेतना तरंगें हर पल इस ओर जा रही हैं।
हम लोग अपनी साधनाशक्ति एवं इच्छाशक्ति के बल पर परिवर्तन लाएंगे। आज हमारे साथ करोड़ों लोगों का समाज जुड़ा है। तुम लोग यदि सत्यपथ के राही हो, तो ‘माँ’ की कृपा अवश्य मिलेगी। हरपल आपके अन्दर समाजसुधार की तड़प होनी चाहिए। जहाँ कहीं पर भी आप बैठो, वहां पर समाजसुधार की चर्चा करो और लोगों को जोड़ो। समाज में धीरे-धीरे परिवर्तन आ रहा है। कहीं-न-कहीं ‘माँ’ की ऊर्जा कार्य कर रही है। मेरी चेतना तरंगें कार्य कर रही हैं।

भोजन व्यवस्था

आज पतन की पराकाष्ठा है। पांच-पांच साल की बच्चियों के साथ बलात्कार हो रहा है। आने वाला समय और भी वीभत्स होगा। किसी की इच्छा के विरुद्ध उसका यौनशोषण करना हत्या के समान होता है। धरने-प्रदर्शन से कभी कल्याण नहीं होगा। पिछले दिनों पैरामेडिकल की एक छात्रा के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के बाद धरना-प्रदर्शन हुआ। बड़ी अच्छी बात है कि समाज ने अन्याय के विरुद्ध आवाज़ बुलन्द की। किन्तु, मेरा मानना है कि प्रदर्शन करने वाले लोगों में आधे से अधिक लोग नशाखोर, मांसाहारी और चरित्रहीन थे। इसलिए, समाज को नशा-मांसाहार से मुक्त करके व्यक्ति-दर-व्यक्ति परिवर्तन डालना होगा। फांसी की सज़ा देने से भी बलात्कार समाप्त नहीं होगा। यदि इसे समाप्त करना है, तो समाज को नशे से मुक्त कर दो। इस प्रकार की पचास से पचहत्तर प्रतिशत घटनाएं नशे के सेवन से घटित होती हैं। विधानसभाओं और संसद में तीन चौथाई लोग चरित्रहीन हैं। कौन सुधारेगा इन्हें? अतः हमें नए पौधों का रोपण करना पड़ेगा। इसीलिए भारतीय शक्ति चेतना पार्टी का गठन किया गया है।
आज एक भी धर्मगुरु ऐसा नहीं है, जिसके पास साधनाशक्ति हो। इसीलिए मैंने उनके सत्यपरीक्षण किये जाने की आवाज़ उठाई थी, जिसे किसी ने नहीं सुना। परिणाम सामने आएंगे अवश्य। मेरी चेतनातरंगें उन्हें नंगा करके रख देंगी।
प्रयाग की त्रिवेणी में सरस्वती लुप्त हो गईं, अर्थात् ज्ञान लुप्त हो गया। तब गंगा-यमुना कुछ नहीं कर पाएंगी। सत्त्व के अभाव में रजोगुण-तमोगुण कुछ नहीं कर पाएंगे। किन्तु, मेरे द्वारा प्रदान की गई त्रिधारा में ज्ञानदेवी सरस्वती विद्यमान हैं। इसीलिए वह तुम्हें लक्ष्य तक अवश्य पहुंचाएगी। किन्तु, याद रखो तुम रक्षक हो, भक्षक कभी मत बनना।
इस सामान्य से आश्रम के लिए भी मुझे अपने आपको तपाना पड़ा था। आज भी मैं चौबीस घण्टे में मात्र तीन-चार घण्टे विश्राम करता हूँ। यही मैं आपसे चाहता हूँ। इस काया का भरपूर उपयोग करो। यह महाठगिनी है। यह आपकी मित्र भी है और शत्रु भी। इसे सुन्दर बनाने में समय नष्ट मत करो, बल्कि इसे परोपकार और समाजसेवा में झोंक दो।
वासना आपको बार-बार खींचेगी। उस समय अपने मन को टोको कि यह पतन है। आपकी माँ-बेटी-बहन भी तो सुन्दर हैं, किन्तु उनके प्रति मन में कभी विकार नहीं आता! जब इस भूमि पर आकर खड़े हो जाओगे, तो विकारों से दूर होते चले जाओगे। यदि नशा प्राप्त करना है, तो अपनी चेतना का, ‘माँ’ का नशा प्राप्त करो, जिसके सामने सारे नशे तुच्छ हैं- एक खुमारी ‘माँ’ के नाम की, चढ़ी रहै दिन-रात!
चेतना का सम्भोग मुक्ति का मार्ग है। इसमें असीम आनन्द है। आपका गुरु उसी आनन्द को प्राप्त करता है। भौतिक सम्भोग में पतन है। तुम मुझे देखो या न देखो, मैं तुम्हें हर पल देख रहा हूँ। छोटे बच्चों में भाव हैं कि वे आश्रम में आकर मेरे सान्निध्य में रहें। तुम भी ऐसे भाव पैदा करो। आपका गुरु इसके अतिरिक्त आपसे कुछ नहीं चाहता। अगर मेरे शिष्य बनना चाहते हो, तो नशा-मांसाहारमुक्त होकर चरित्रवान् बनना ही पड़ेगा। यदि मेरे विचारों के अनुसार नहीं चलोगे, तो मेरे तुम्हारे बीच की दूरियां बढ़ती चली जाएंगी।
यदि कोई मौसम हमारा मार्ग रोक सके, तो यह हमारी दुर्बलता होगी। फिर हम साधक कैसे? आप विपरीत परिस्थिति में भी आगे बढ़ते चले जाओ। यदि पानी बरसेगा, तब भी शिविर सम्पन्न होगा और नहीं बरसेगा, तब भी। यदि हम अपनी इच्छा के अनुसार प्रकृति को चलाना चाहते हैं, तो न हम भक्त हैं न साधक।
आज संकल्प लेने का दिन है। संकल्प वह होना चाहिए, जिसमें कोई विकल्प न हो। मैंने जब भी कोई संकल्प लिया है, वह कभी टूटा नहीं है। आप लोग मन-वचन-कर्म से नाजायज़ सम्बन्धों का त्याग करें और नशों एवं मांसाहार से दूर रहें।
(दोनों हाथ उठवाकर संकल्प दिलाया गया कि पूर्ण नशामुक्त-मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् साधक/साधिका का जीवन जीने का संकल्प लेते हैं और अन्तिम सांस तक इसे नहीं तोड़ेंगे।)
मैं वह आत्मा हूँ, जिसके लिए नर और नारी में कोई भेद नहीं है। धिक्कार है उन शंकराचार्यों को, जो नारी को वेदपाठ करने से वंचित करते हैं! गद्दियों पर बैठ गए हैं, किन्तु उन्होंने चेतना प्राप्त नहीं की है। यहां पर उनका भी आवाहन है कि ‘माँ’ के भक्त बनो और आत्मज्ञान प्राप्त करो।
उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश और केरल जैसे समुद्र तटीय प्रदेशों में आने वाले समुद्री तूफान से भारी तबाही होने वाली है। उससे रक्षा के लिए मैंने ‘माँ’ के चरणों में प्रार्थना कर दी है। एक त्रासदी हम पिछले दिनों उत्तराखण्ड में झेल चुके हैं। जब इतने सारे लोगों की जान की हानि होती है, तो व्यथित होना स्वाभाविक है। यह वर्ष ही कुछ ऐसा है।

दिव्य उद्बोधनः द्वितीय दिवस-
प्रत्येक साधक वर्षभर शारदीय नवरात्र का इन्तज़ार करता है। इन क्षणों में बड़े से बड़े संकट सामान्य होकर निकल जाते हैं। कल की घटना बड़ी भयानक थी। लाखों लोगों की जान जा सकती थी और करोड़ों के माल की हानि होनी थी। मौसम विभाग तथा प्रदेश सरकारों को धन्यवाद है, जिनके कारण लोगों की जान बची। यह ‘माँ’ की कृपा थी। मैं अपनी प्रार्थना की बात नहीं करता। चिन्तन देते समय मेरा ध्यान उस ओर था। बार-बार मेरा गला रुंध रहा था। मेरा अन्तर्मन ऐसी स्थिति में एक शिशु के समान हो जाता है। अन्य अनेक लोगों ने भी प्रार्थना की होगी। इससे तूफान की रफ्तार 250 किमी प्रति घण्टा से घटकर बहुत कम हो गई। बारिश तो लगभग हर प्रान्त में हो रही है। मध्य प्रदेश का तो मात्र दस प्रतिशत भाग ही प्रभावित है। तूफान सामान्य होकर निकल गया है। इसका मात्र पांच से दस प्रतिशत ही प्रभाव रहा है। इससे इस आश्रम का वातावरण कितना सुहावना हो गया है!
इक्कीसवीं सदी संघर्षों की सदी है। इसमें बड़ी-बड़ी आपदाएं आएंगी। किन्तु, एक साधक हर काल-परिस्थिति में सत्यपथ पर बढ़ता रहता है। जिस दिशा की ओर आप लोग बढ़ रहे हैं, वह सेवा, समर्पण और ‘माँ’ की आराधना का मार्ग है। इससे आपकी कार्यक्षमता बढ़ रही है।
आज शारदीय नवरात्र की नवमी तिथि है। नवमी पर्व ज्ञान का पर्व होता है। ज्ञान का तात्पर्य पुस्तकीय ज्ञान से नहीं है, बल्कि उस ज्ञान से है, जिसके कारण हमारा हर कर्म सत्कर्म बन जाता है। इसी के लिए हमें ‘माँ’ से प्रार्थना करनी है। मैं कामना करता हूँ कि आपकी ऊर्जा सिर्फ रचनात्मक कार्यों में ही लगे।
एक साधक का हृदय पाषाण की तरह कठोर एवं गुलाब की पंखुड़ी की तरह कोमल होता है। अनीति-अन्याय-अधर्म के समक्ष वह पाषाण की भांति कठोर होता है और दूसरों के दुःख-दर्द के सामने गुलाब की पंखुड़ी की तरह कोमल होता है। आपको इन दोनों परिस्थितियों के लिए आगे बढ़ना होगा। इसलिए एकाग्रता के साथ परोपकार में लग जाओ और ‘माँ’ की कृपा पाने की आकांक्षा रखो। आराधना में शिशु बन जाओ। आपका जीवन सुगन्धित भी होना चाहिए। यह तभी होगा, जब सत्कर्म करोगे। जब सद्गुण और संस्कार बढ़ेंगे, तो आपका आभामण्डल प्रकाशित होता चला जाएगा। सत्कर्मों के फल को दुनिया की कोई शक्ति क्षीण नहीं कर सकती। समाज में आपका व्यवहार सद्भावनापूर्ण होना चाहिए। किसी को गाली दोगे, तो तनाव होगा, जबकि सद्भावना से मन प्रफल्लित रहेगा।
शंखध्वनि वातावरण में विशेष प्रभाव डालती है। इसलिए नित्यप्रति अपने घर में शंखध्वनि अवश्य करें। इससे मन में एकाग्रता आती है। ‘माँ’-ऊँ का क्रमिक उच्चारण नियमित रूप से करें। धीरे-धीरे यह आपके श्वास में समा जाएगा और अवगुण स्वतः भागते चले जाएंगे। मेरा मार्ग कठिन अवश्य है, मगर इस पर चलने से आपके साथ-साथ आपके बच्चों में भी परिवर्तन आएगा।
परोपकार की भावना हमारे अन्दर समा जानी चाहिए। इससे दूसरों की दुआएं मिलती हैं। दुःखी स्थिति में दी गई बददुआ का एक सौ एक प्रतिशत प्रभाव पड़ता है। यहां पर एक अदृश्य जगत् विद्यमान है। यदि हममें पवित्रता आजाय, तो हमारा सम्बन्ध उससे जुड़ जाता है और हमें उसका समर्थन मिलता है। प्रार्थना में बड़ी शक्ति होती है। जब भी आराधना में बैठो, ‘माँ’ से भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति की ही प्रार्थना करो। स्वयं के लिए प्रार्थना न करके, दीन-दुखियों के लिए प्रार्थना करो।
जीवन में सात्त्विकता और पवित्रता के लिए सात्त्विक आहार लो। यहां से संकल्प लेकर जाओ कि समाज में किसी को माँ-बहन-बेटियों के शब्दों का प्रयोग करके गाली नहीं देंगे। यह सबसे बड़ी कमज़ोरी होती है। जब हम लड़ नहीं सकते, तो गाली दे देते हैं। ऐसा करना बन्द करो। इसे मेरा आदेश मानो। यदि किसी ने फिर भी ऐसा किया और यहां पर सूचना मिली, तो उसे दण्डित किया जाएगा।
जो ऊर्जा मैं शिविरों में प्रदान करता हूँ, वह अन्य किसी अवसर पर तुम नहीं प्राप्त कर सकोगे। इसलिए किसी भी शिविर को न छोड़ें। दीक्षा भी शिविर में ही प्रदान की जाती है। करोड़ों-अरबों की सम्पत्ति देकर भी यदि कोई कहे कि अलग से दीक्षा देदो, तो मैं कभी नहीं देता।
निर्धन लोगों की स्थिति देखकर मैंने योगभारती विवाह पद्धति से विवाह करने का क्रम दिया है। मैं पुरुषवर्ग का आवाहन करता हूँ कि दहेजप्रथा से ऊपर उठें। स्वयं मैंने अपनी शादी में एक रुपया भी दहेज में नहीं लिया था और ‘आशीष शुक्ला’ राजू की शादी में भी ऐसा ही होगा। यही अपेक्षा मैं आप लोगों से भी करता हूँ। युवाओं से मैं चाहता हूँ कि वे अपने माता-पिता को समझाकर अपना बायोडाटा यहां पर आश्रम में भेजें। इससे अपने संगठन के अन्दर ही उनकी परस्पर शादियां करवाने में सुविधा होगी, दहेज लेने-देने की समस्या समाप्त होगी और विवाहित बच्चे-बच्चियां आजीवन सुखी रहेंगे।
कल यहां पर छः शादियों का क्रम है। उनमें सिद्धाश्रमरत्न आशीष शुक्ला की भी शादी होनी है। वह मेरा भतीजा है, शिष्य है। अतः मैं आप सबको आमन्त्रित करता हूँ कि कल आप उसमें अवश्य शामिल हों। विवाह का सम्बन्ध भौतिक होता है। दहेज मांगकर क्या करोगे? पैसा तो इधर आया और उधर गया। कर्मवान् बनो और खुद धन अर्जित करो। आपके परिवार में एक बच्ची आकर आपकी सेवा करेगी। यह क्या कुछ कम है? अधिकांश पचहत्तर प्रतिशत शादियां करने वाले माँ-बाप कर्ज़दार बन जाते हैं। यदि तुम बिना दहेज के शादी करोगे, तो प्रकृतिसत्ता प्रसन्न होगी।
बच्चे-बच्ची का भेद खत्म करो। कोई भी किसी का वंश नहीं चला रहा है। मैं स्वयं ऐसा ही जीवन जीता हूँ। मैंने ‘माँ’ से बच्चियों के लिए ही प्रार्थना की थी, ताकि आप लोगों को भी इसके लिए प्रेरित कर सकूँ। आज अधिकांश माता-पिता अपने लड़कों से दुःखी हैं। आपकी लड़की के साथ यदि बलात्कार हो जाय, तो उससे नफरत करोगे और उसके हाथ-पैर तोड़ दोगे। किन्तु, यदि लड़का रोज़ बलात्कार करके आय, तो उसे कुछ नहीं कहोगे। और, यदि पकड़ा गया, तो उसे कानून से बचाने के लिए ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दोगे। आपकी बच्ची बाहर से आने में शाम को दो घण्टे लेट होजाय, तो उस पर शक करोगे और उससे हज़ार तरह के सवाल करोगे। यदि आपका लड़का शराब पीकर रात के बारह बजे लडख़ड़ाता हुआ आए, तो उसे बड़े प्यार से कहोगे, ‘आओ बेटा, खाना खालो!’ वर्जनाएं दोनों के लिए समान होनी चाहिएं।
समाज के लोग भारतीय परिवेश (वेशभूषा) से दूर होते जा रहे हैं और पश्चिमी सभ्यता में डूब रहे हैं। जीन्स और हाफपैण्ट लड़कियां भी पहनने लगी हैं। फैशन और नग्नता में बहुत अन्तर है। इसे समझने का प्रयास करो। महिलाएं ऐसे वस्त्र पहनने लगी हैं कि पूरी पीठ खाली दिखाई देती है। बस, एक रस्सी बांध दी जाती है। जिनका अनुसरण तुम कर रहे हो, उनका जीवन कितना गन्दा है! वे वेश्याओं का जीवन जीती हैं। आप सती अनुसूइया का जीवन जिओ!
बांदा (उत्तर प्रदेश) का शक्ति चेतना जनजागरण शिविर 07-08 दिसम्बर को आयोजित होगा। मैं आश्रम से दो दिन पहले 05 दिसम्बर को प्रस्थान करूंगा तथा एक रात्रि चित्रकूट में विश्राम करके 06 दिसम्बर को बांदा पहुंच जाऊंगा। शिविर सम्पन्न होने के बाद वहां से 10 दिसम्बर को वापस आश्रम के लिए प्रस्थान करूंगा। जो लोग भी मेरे साथ चलना चाहें, वे प्रमुख कार्यकर्ताओं से बात करके वाहन की व्यवस्था करा सकते हैं। छत्तीसगढ़ का शक्ति चेतना जनजागरण शिविर 15-16 फरवरी 2014 को भिलाई, ज़िला दुर्ग में आयोजित किया जाएगा।
भारतीय शक्ति चेतना पार्टी के जितने प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं, उनके विषय में इस भ्रम को दूर करें कि गुरु जी चुनाव जिता देंगे। यदि मैं ऐसा करता, तो समाज की कोई आवश्यकता नहीं थी। मैं किसी भी प्रत्याशी को अपने आशीर्वाद के बल पर नहीं जिताऊंगा। इस बात को अच्छे से समझ लें। हर प्रत्याशी को अपने कर्मबल से जीतना होगा।

तृतीय दिवस-प्रथम सत्र (गुरुदीक्षा)-
प्रातः साढ़े सात बजे से पहले ही सारे दीक्षार्थी शिविर स्थल पर उपस्थित हो चुके थे। कुल मिलाकर लगभग दस हज़ार लोगों ने गुरुदीक्षा प्राप्त की। नियत समय पर सद्गुरुदेव भगवान् का पदार्पण हुआ। मंचासीन होने के बाद सबको अपना पूर्ण आशीर्वाद समर्पित करके आपने सबसे पहले एक संक्षिप्त सा चिन्तन दिया-
विषम परिस्थितियों में भी आप लोगों ने यहां पर प्रसन्नचित्त होकर रात्रि गुज़ारी। इससे आपका आत्मबल प्रभावक होता है, पात्रता विकसित होती है और कार्यक्षमता बढ़ती है। ऐसे में आप असन्तुलित न हों और आनन्द लेते रहें। साथ ही दूसरों को जितना सहारा दे सकें, दें।
एक चेतनावान् गुरु से दीक्षा प्राप्त करना जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य होता है। इस दिन व्यक्ति का दूसरा जन्म होता है। इस भौतिक जगत् में और भी अन्य अनेक रिश्ते हैं, किन्तु गुरु का रिश्ता सर्वोपरि होता है। मेरा आप लोगों को बारम्बार आशीर्वाद है।
यहां पर दीक्षा का कोई शुल्क नहीं रहता। मैं शक्तिपात करता हूँ। जातपांत से दूर रहकर मैं सबको अपना शिष्य स्वीकार करता हूँ। मुझे आपसे कुछ भी शुल्क नहीं चाहिए। यदि आप इस समय पूर्ण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त और चरित्रवान् जीवन जीने का संकल्प लेते हैं, तो मेरे लिए यह सबसे बड़ा शुल्क होगा।
अब से आगे आप गुरुवार का व्रत रखें। इच्छा हो, तो माह में एक बार कृष्णाष्टमी का व्रत भी रखें। यदि कृष्णाष्टमी का किसी कारणवश छूट जाय, तो नवमी या चतुर्दशी का व्रत रख लें। इन तीनों दिनों के व्रत का फल एक रहता है। मेरे द्वारा निःशुल्क वितरित शक्तिजल का नित्य पान करें।
जब गुरु के द्वारा कोई मंत्र उच्चारित होता है, तो वह उत्कीलित हो जाता है। अतः अब आप लोग मेरे साथ मंत्रों का उच्चारण करें। (निम्न मंत्रों का तीन-तीन बार उच्चारण किया गयाः)

  1. माँ
  2. ॐ हं हनुमतये नमः
  3. ॐ भ्रं भैरवाय नमः
  4. ॐ गं गणपतये नमः
  5. ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नमः
  6. ॐ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः
    इन मंत्रों के साथ मैं आप सबको अपना शिष्य स्वीकार करता हूँ।
    (अब सभी को परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् को गुरु स्वीकार करने और भगवती मानव कल्याण संगठन के निर्देशों का पालन करने का संकल्प कराया गया)।
    इस संकल्प में पूरा सार छिपा है। यदि इसका सतत पालन करते रहे, तो आप कभी भी सत्यपथ से भटक नहीं पाएंगे।
    अब आप लोग एक धर्मयोद्धा के रूप में मेरे द्वारा प्रदान की गई त्रिधारा से जुड़ चुके हैं। मेरे जीवन का एक-एक पल आप लोगों के लिए और समाजसेवा के लिए समर्पित रहता है।
    अपने घर में कहीं पर भी एक पूजनकक्ष बना लें और नित्य प्रातः-सायं मेरे द्वारा निर्दिष्ट साधनाक्रम सम्पन्न करें। मेरी यात्रा बड़ी खुली है। आज सायंकाल की दिव्य आरती अवश्य लें। इसके उपरान्त, दस-पन्द्रह दिन बाद यदि कभी भी आश्रम आएं, तो आप मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिल सकते हैं। आप सभी मेरे अपने हैं और मेरा रोम-रोम आपको समर्पित है। मैं देखना चाहता हूँ कि आप अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध प्रखर आवाज़ उठाएं और हमेशा सिर ऊंचा करके चलें। आपका कोई कभी कुछ बिगाड़ नहीं पाएगा। मेरी चेतना तरंगें सदैव आपको मिलती रहेंगी। मैं बारम्बार अपना दोगुना आशीर्वाद आपको प्रदान करता हूँ।
    अब जयघोष किया गया तथा चरणस्पर्श के उपरान्त सबको गुरुदीक्षा पत्रक भरकर लौटाने को दिया गया और शक्तिजल वितरित किया गया।
सामूहिक विवाह

तृतीय दिवस-द्वितीय सत्र (सामूहिक विवाह)
आज इस सत्र में सामूहिक विवाह का अतिक्ति कार्यक्रम होने के कारण, परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् अपराह्न दो बजे शिविर पण्डाल में मंचासीन हो गए थे। इससे पूर्व निम्नलिखित छः नवयुगल मंच के सामने अपना स्थान ग्रहण कर चुके थेः 1. चि. आशीष शुक्ला संग आयु. रंजना, 2. चि. रामू संग आयु. ऋचा, 3. चि. भूपेन्द्र संग आयु. उषा, 4. चि. केशव कुमार संग आयु. दुलेश्वरी, 5. चि. मनोज संग आयु. रूपा तथा 6. चि. वैभव संग आयु. दीपिका।
विवाह अनुष्ठान प्रारम्भ होने से पूर्व परम पूज्य महाराजश्री ने एक संक्षिप्त चिन्तन दिया-
हम लोग अपने मूल लक्ष्य की ओर सतत बढ़ रहे हैं। यहां पर योगभारती विवाह पद्धति के माध्यम से जो विवाह सम्पन्न होने जा रहे हैं, यह संकल्प मेरे द्वारा दहेजरूपी दानव को दूर करने के लिए लिया गया है। आज समाज में बच्चों की सौदेबाज़ी होती है। ठोक-बजाकर दहेज लेने के बावजूद, जब दरवाज़े पर बारात पहुंच जाती है, तो अतिरिक्त मांग रख दी जाती है। लड़के के बाप का शहंशाह की तरह मान-सम्मान होता है और इस शुभकार्य के प्रारम्भ पर तनावपूर्ण वातावरण निर्मित होजाता है। मदिरा सेवन और अश्लील नाच-गानों से वातावरण दूषित होता है। वास्तव में लोग पवित्रता को भूल गए हैं। किराए का पण्डित बुलाकर विवाह की औपचारिकता पूर्ण की जाती है।
ये बुराइयां दूर करने के लिए ही मेरे द्वारा यह पद्धति प्रारम्भ कराई गई है। यहां पर सब कुछ निःशुल्क रहता है। अपनी शादी में मैंने एक भी रुपया दहेज में नहीं लिया था और अब राजू की शादी में भी नहीं लिया गया। अपने कर्मबल पर विश्वास रखो। एक परिवार आपको अपनी लड़की दे देता है, तो और क्या चाहिए? हमें इस बात का ध्यान रखना है कि विवाह के कारण कोई माता-पिता कर्ज़दार न बनें। इस पवित्र धाम पर शादी होने से बड़ा और कोई सौभाग्य हो नहीं सकता। सभी वर-वधुओं को मेरा आशीर्वाद है।
एक साधक कभी भी परिस्थितियों का गुलाम नहीं होता। वह उन्हें अपने अनुकूल ढाल लेता है। इस विवाह पद्धति में सभी महत्त्वपूर्ण हिन्दू रीति-रिवाजों को समाहित किया गया है। इसमें ‘माँ’ के ध्वज को माध्यम बनाया जाता है, जिससे शादियां कभी टूटती नहीं हैं। इस ध्वज पर वर-वधू के हाथ का थापा हल्दी से लगाया जाता है और यहीं से शादी का प्रारम्भ होता है। इस पद्धति में कोई आडम्बर नहीं है और न ही कोई दिखावा रहता है। ‘माँ’ का आशीर्वाद रहता है। जो भी भगवती मानव कल्याण संगठन से जुड़ा रहेगा, उसी पर आशीर्वाद फलीभूत होता है। अब तीन बार शंखनाद किया गया और जयकारे लगाए गए।

संकल्पः अब वर-कन्या ने दोनों हाथों में संकल्प की सामग्री लेकर और ‘माँ’ का ध्यान करते हुए एकाग्र मन से संकल्प लिया। यह सामग्री ध्वज में बांधी गई, जिसे घर पर आजीवन सुरक्षित रखा जाएगा।

माल्यार्पणः वर-कन्या ने खड़े होकर एक-दूसरे का माल्यार्पण किया और बैठ गए।

गठबन्धनः वर के रक्षाकवच और कन्या की चुनरी के बीच मज़बूत गांठ बांधी गई, जो कभी भी खोली नहीं जाएगी। इस कार्य को परिजनों ने पूर्ण किया। ऊपर से मौली की गांठ बांधी गई। त्रिशक्तिस्वरूपा तीनों बहनों ने भी आशीर्वादस्वरूप मौली बांधी। यह गठबन्धन घर पर सदैव सुरक्षित रखा जाएगा।

सिन्दूर समर्पणः वर ने कन्या की मांग में सिन्दूर भरा।

मंगलसूत्र समर्पणः वर ने वधू को मंगलसूत्र पहनाया।

सात फेरेः वर-कन्याओं ने हाथ में पुष्प लेकर क्रम से मंच के सात फेरे लगाए। एक फेरा पूर्ण होने पर पुष्प गुरुवरश्री के सम्मुख मंच पर समर्पित किया और दूसरा पुष्प हाथ में लेकर अगला फेरा प्रारम्भ किया। फेरे लगाते समय वर-कन्या आगे-पीछे नहीं, बल्कि बराबर-बराबर चले। इस बीच ‘माँ’-गुरुवर के जयकारे चलते रहे। सातों फेरे क्रमशः पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश एवं वायु तत्त्वों तथा दृश्य एवं अदृश्य जगत् की स्थापित समस्त शक्तियों को साक्षी मानकर लगाए गए।

पुनः दिव्य उद्बोधन-
हम परम्पराओं से दूर होते जा रहे हैं। समाज भटक रहा है। आज के दिन रावण का दहन करते समय वहां पर सैकड़ों रावण मौजूद रहते हैं। विजयादशमी पर्व पर अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध खड़े होकर संकल्प लेना चाहिए। अतीत को याद करके भविष्य को सुधारने का संकल्प करना चाहिए। इस पर्व को सात्त्विकता और पवित्रता के साथ मनाया जाना चाहिए और समाज में परिवर्तन आना चाहिए।
हमारे भगवती मानव कल्याण संगठन में लोग पूर्णतया नशा-मांसाहारमुक्त चरित्रवान् हैं। दूसरे संगठनों में कोई भी संगठन ऐसा नहीं है, जिसमें पचास प्रतिशत भी ऐसे लोग हों। हम बदलेंगे, जग बदलेगा। अतः कर्मवान् बनो, धर्मवान् बनो और बच्चों को संस्कारवान् बनाओ तथा ईमानदारी का जीवन जिओ। सत्कर्म करो। अन्य कामनाओं को एक बार ‘माँ’ के चरणों में रखकर सिर्फ भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति की कामना करो।
आज पतन को रोकने की ज़रूरत है। इस पतन के पीछे लोगों के कर्म हैं। बलिप्रथा को मिटाओ। यह एक अपराध है। चौकी लगाने से बड़ा आडम्बर कुछ भी नहीं है। हमारे ऋषि-मुनि जिस-जिस भी देवी-देवता का आवाहन करते थे, वे साक्षात् प्रकट होकर आशीर्वाद प्रदान करते थे।
वह मानव नहीं, दानव है, जो धर्म, मानवता और राष्ट्र की रक्षा नहीं करता। मुझे किसी राजनैतिक पार्टी अथवा अन्य किसी चीज़ की कोई आवश्यकता नहीं है, किन्तु मेरा धर्म और कर्तव्य बनता है कि मैं इन तीनों की रक्षा करूं। इसके अलावा मनुष्य का चौथा कोई कर्तव्य है ही नहीं। मेरे द्वारा प्रदान की गई त्रिधारा में मेरा पूरा जीवन समर्पित है और रहेगा। मुझे कोई चुनाव नहीं लड़ना है। मैं तपस्यात्मक जीवन जीता हूँ और उसके लिए आपको भी प्रेरित करता हूँ। जातिभेद, छुआछूत और धर्म-सम्प्रदाय आदि के भेद समाप्त करो। मैंने इन्हें कभी भी नहीं माना है। मेरा इससे धर्म-कर्म नष्ट नहीं हुआ। आज के अधर्मी-अन्यायी राजनेता तुम्हें इनके आधार पर लड़ाते रहेंगे।
आज हर पार्टी की सरकार लुटेरी है। इनमें नब्बे प्रतिशत नेता शराबी, मांसाहारी और चरित्रहीन हैं। चाहो तो उनका ब्रेन मैपिंग कराकर देख लो। मैं ऋषित्व का जीवन जीता था, जीता हूँ और जीता रहूँगा। मैं शून्य से शिखर पर नहीं, बल्कि शिखर से शून्य पर आया हूँ। अन्य धर्मगुरु केवल भौतिकता को देख रहे हैं।
नित्य ‘माँ’ की आराधना करो तथा कठोर एवं कोमल बनो। अनीति-अन्याय के विरुद्ध पाषाण और गरीबों के दुःख-तकलीफ में गुलाब की पंखुड़ियों की तरह कोमल। वैभवशाली आश्रम भी किसी न किसी दिन यहां पर अवश्य बनेगा।
आज स्थिति यह है कि समाज के पचास प्रतिशत लोग अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पाते और बीमार हो जायं, तो ईलाज नहीं करा पाते। इस दुरवस्था के लिए राजनेता ज़िम्मेदार हैं। मेरी निगाह में भ्रष्ट नेता देशद्रोही हैं, गद्दार हैं।
धर्मगुरु अधिकतर भटक चुके हैं। कई आश्रमों में अय्याश नेताओं को लड़कियां सप्लाई की जाती हैं और स्मग्लिंग तक होता है। या तो ऐसे नेता और धर्मगुरु स्वयं सुधर जायं, नहीं तो मैं उनका धरातल ऐसा खिसका दूंगा कि उन्हें पता भी नहीं चलेगा। मेरी एकान्त साधना और ‘माँ’ से की गई प्रार्थना कभी भी व्यर्थ नहीं जाती। मैं समाज के लिए पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता हूँ, ताकि मेरी चेतना तरंगें विकाररहित हों। यदि विज्ञान चाहे, तो इसका परीक्षण कर ले।
आप लोगों से मेरा रिश्ता इस जन्म का ही नहीं, बल्कि जन्म-जन्म के लिए जुड़ा है। इस शरीर का त्याग करने के बाद भी मैं सूक्ष्म रूप से यहीं पर उपस्थित रहूँगा और आपकी आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करता रहूंगा। ‘माँ’ ही मेरा लक्ष्य हैं और उसी की ओर मैं तुम्हें भी बढ़ा रहा हूँ। सच्चाई-भलाई और निडरता का जीवन जिओ! सच्चाई-ईमानदारी में जो सुख है, उसके बराबर कोई दूसरा सुख नहीं है।
तदुपरान्त, इस वर्ष के श्रमशक्ति पुरस्कार श्री भाग्यचन्द जी तथा राजकुमार जी एवं उनकी पत्नी रेखा जी को वितरित किये गये। उन्हें त्रिशक्तिस्वरूपा तीनों बहनों पूजा-संध्या-ज्योति योगभारती जी के करकमलों के द्वारा ग्यारह-ग्यारह हज़ार रुपये नकद, एक-एक शॉल और प्रशस्ति पत्र प्रदान किये गये।
इस अवसर पर महाराजश्री ने उन्हें अपना आशीर्वाद देते हुए कहा कि उनका अगला जन्म मज़दूर के रूप में नहीं होगा।
अन्त में, परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् ने कहा कि हमें हर पल अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाना है। मौत भी यदि आजाय, तो आगे ही गिरें। इस काया को अपना शत्रु मानकर इसका भरपूर उपयोग करो। इसे सजाने-संवारने में समय बर्बाद मत करो। खाना-पीना भी इसे सिर्फ इसलिए दो कि इससे काम लेना है।
इस प्रकार, समय-समय पर वर्षा होने के बावजूद, तीन दिन तक चला यह शक्ति चेतना जनजागरण शिविर ‘माँ’-गुरुवर की कृपा से निर्विघ्न सम्पन्न हो गया। अपार भीड़ के बावजूद, न तो कहीं अव्यवस्था हुई और न ही कोई अप्रत्याशित घटना घटी। प्रतिदिन वर्षा के साथ आनन्द ही आनन्द बरसता रहा।
जब गुरुवरश्री त्रिशक्ति गौशाला पहुंचे
शारदीय नवरात्रि पर्व पर आयोजित त्रिदिवसीय शाक्ति चेतना जनजागरण शिविर के बाद एकादशी को हवन कार्य सम्पन्न करके सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने 10 दिनों पश्चात् अपना व्रत तोड़ा। द्वादशी की प्रातःकालीन बेला में पूज्य दण्डी संन्यासी की समाधिस्थल पर गये और नमन् करके परिक्रमा की। तदुपरान्त आपश्री त्रिशक्ति गौशाला पहुंचे और वहां गौमाताओं को अपने करकमलों से पूड़ियां खिलाईं। गौशाला की सभी गायें गुरुवरश्री का स्नेह पाकर गद्गद होकर रंभाते हुये अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रहीं थीं।

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